बारह दिसंबर !
हम पति-पत्नी के लिए यह दिन वर्ष के शेष तीन सौ चौंसठ दिनों से बिल्कुल अगल और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दिन है, क्योंकि इसी पवित्र दिन हम दाम्पत्य - सूत्र बंधन में बंधे थे।
अपने इस महान् पर्व को सिर्फ हम दोनों पूरी शक्तिशाली और सादगी के साथ मनाया करते हैं, इसलिए प्रत्येक वर्ष के बारह दिंसबर को मेरठ से कहीं बाहर, दूर, किसी हिल स्टेशन, महानगर या ऐतिहासिक महत्त्व के स्थान पर निकल जाते हैं। इससे हमारा 'इन्जॉय' तो होता ही है, साथ ही नई-नई चीजें देखने, विभिन्न किस्म के लोगों से मिलने आदि से ऐसी जानकारियां भी मिल जाती है, जिसने मुझे अपने पाठकों के लिए दिलचस्प और नए-नए कथानक तैयार करने में मदद मिलती है। ऐसी ही एक कथानक मुझे इस बार 'जिन्दल पुरम्' से मिला ।
जी हां ! जिन्दल पुरम् ।
एक औद्योगिक नगर ।
इस बार हमने अपना ‘मैरिज डे' इसी औद्योगिक नगर में गुजारने का निश्चय किया था। इस नगर में जो कथानक मुझे मिला, इस बार 'साढ़े तीन घंटे" के नाम से उसी को कलमबद्ध कर रहा हूँ।
‘जिन्दल पुरम्’ पहुंचने पर हमने वहां के सबसे अच्छे होटल 'इन्ज्वॉय' में एक कमरा लिया। थोड़ी देर आराम और स्नानादि करके घूमने निकल गए।
यह नगर सिर्फ एक व्यक्ति ने बसाया था। जी हां, केवल एक ही व्यक्ति ने अपनी अक्ल, लगन, परिश्रम और योग्यता से। उस व्यक्ति का नाम था- हरिकेश बहादुर जिन्दल । प्रसिद्ध था कि हरिकेश बहादुर का जन्म एक गरीब दम्पति की झोपड़ी में हुआ था। वे अपने माता-पिता की प्रथम संतान थे। उनके बाद, उनके तीन छोटे भाई और दो बहनें भी इस दुनिया में आ गई । एक दुर्घटना में पिता अपाहिज हो गए। गृहस्थी का सारा भार हरिकेश बहादुर पर आ पड़ा। उस वक्त हरिकेश बहादुर की उम्र केवल सोलह साल की थी, जब गृहस्थी चलाने के लिए एक लॉटरी का पत्ता लेकर अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठा। साठ साल की आयु तक पहुंचते-पहुंचते वह कागज बनाने वाली एक मिल का मालिक बन गया। अब व्यापार में उसके छोटे भाई भी उसके साथ थे। देखते ही देखते वे एक के बाद दूसरी मिल की स्थापना करते चले गए।
नब्बे साल की आयु में हरिकेश बहादुर की मृत्यु हो गई ।
परंतु अपने पीछे वे एक भरा पूरा परिवार पत्नी और बच्चे छोड़ गए थे। साथ ही छोड़ गए थे खूब फैला हुआ बिजनेस, जिसे उनके भाईयों और पुत्रों ने मिलकर संभाला ही नहीं, बल्कि बढ़ाते ही चले गए। हरिकेश बहादुर के बाद से चार पीढियां बदल गई।
आज पूरा 'जिन्दल पुरम् बस गया है।
नगर में जिन्दल परिवार की शगर फैक्टी, डिस्टरी, कपड़ामिल, कागज मिल, रबर फैक्ट्रियां आदि लगभग हर वस्तु का उत्पादन करने की फैक्ट्री है। नगर के लोग जिन्दल परिवार के प्रत्येक सदस्य को पूज्यनीय मानते हैं। हरेक के दिल में उनके लिए असीमित श्रद्धा एवं सम्मान है।
इस वाक्य जिन्दल परिवार में केवल तीन ही प्राणी हैं। सबसे बड़े गजेन्द्र बहादुर जिन्दल, उनका युवा पुत्र अनूप जिन्दल की पत्नी विभा जिन्दल |
आप लोग, यानी मेरे पाठक सोच रहे होगें कि मैं व्यर्थ ही जिन्दल परिवार का इसलिए लिखकर आप लोगों को बार क्यों कर रहा हूं ! लेकिन नहीं, मैं ऐसी एक पंक्ति भी लिखना पंसद नहीं करता, जिसका मेरे मूल कथानक से संबंध न हो ।
मैं तो कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि वहां मेरी मुलाकात विभा से हो जाएगी। जी हां, उस विभा से जिसका ख्याल आते ही मैं बेचैन-सा हो उठता हूं। जुबां पर नाम आते ही दिल बेकाबू होकर धड़कने लगता है। मेरे अतीत का एक टुकड़ा रह-रहकर आंखों के सामने चकराने लगता है। विभा से मुलाकात होने के बाद जो कुछ हुआ वह एकदम अप्रत्याशित, दर्दनाक सनसनीखेज और अत्यन्त ही रहस्यमय था । मेरे अब तक के लिखे गए हर जासूसी उन्यास से कहीं ज्यादा रहस्मय ।
शायद इसीलिए मैंने उस सबको एक कथानक के रूप में अपने पाठकों के सामने रखने का निश्यच कर लिया। हालांकि मैं जानता हूं कि मेरे इस कृत्य को विभा बदतमीजी और जलालत ही कहेगी। मेरे दिल की धड़कन मुझसे नाराज भी हो सकती है, परंतु अंजाम चाहे जो हो, एक सच्चा कलाकर होने के नाते वह सारा किस्सा 'साढ़े तीन घंटे' में लिख रहा हूं। लगता है कि मैं बहक रहा हूं। भावनाओं में बह रहा हूं। ढेर सारी बातें बहुत जल्दी, एक ही सांस में कह देना चाहता हूं। यदि मैं इसी तरह लिखना रहा तो सब कुछ अटपटा-सा लगेगा, अतः अगले अनुच्छेद से प्रत्येक घटना को क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत कर रहा हूं।
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