सत्तर हजार सीटों वाला अन्ना स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था । स्टेडियम के मध्य में एक गोल घूमने वाला स्टेज खास तौर से बनाया गया था जिस पर उस वक्त विदेश से आया, विशेषरूप से उस आयोजन के लिए आया, कोई पॉप सिंगर आर्केस्ट्रा की कर्णभेदी धुन पर गला फाड़-फाड़ कर कोई गीत गा रहा था जिसे कि स्टेडियम में मौजूद लोग मन्त्रमुग्ध होकर सुन रहे थे ।
स्टेडियम में स्टेट के मुख्यमन्त्री और भारत सरकार के गृह मन्त्री मौजूद थे । गनीमत थी कि प्रधानमन्त्री का काफी हद तक अपेक्षित आगमन टल गया था ।
प्रोग्राम शुरू हुए दो घण्टे हो चुके थे । लेकिन उन दो घण्टों में से पहला एक घण्टा राजनीतिज्ञों की भाषणबाजी और फूलमालाओं के आदान-प्रदान में ही गुजरा था । प्रोग्राम उस वक्त अपने पूरे जलाल पर आ चुका था और वह अभी तीन घण्टे और चलने वाला था । आइन्दा कार्यक्रमों में बम्बई से विशेषरूप से वहां पहुंचे बड़े-बड़े फिल्म स्टारों के भी नाम थे ।
स्टेडियम में मौजूद दर्शकों में एक-दूसरे से जुदा-जुदा वीरप्पा, सदाशिवराव, अब्राहम और विमल बैठे हुए थे ।
वीरप्पा की सीट राहदारी के एकदम करीब थी ।
एकाएक वीरप्पा अपने स्थान से उठा ।
किसी ने उसकी तरफ ध्यान न दिया ।
हर कोई यूं विलायती पॉप सिंगर का गाना सुन रहा था जैसे गाने का एक भी शब्द उसके कान में पड़ने से रह गया तो उसका सारा जीवन असफल हो जाएगा ।
वीरप्पा सीढ़ियां उतर कर आंख से ओझल हो गया तो सदाशिवराव अपने स्थान से उठा ।
फिर अब्राहम ।
और फिर विमल ।
स्टेडियम में दाखिल होने के लिए जो सीढ़ियां थीं, उन पर कारबाइनधारी गार्ड तैनात थे लेकिन उस घड़ी वे भी संगीत-रस ले रहे थे ।
विमल को बाहर वीरप्पा, सदाशिराव और अब्राहम में से कोई दिखाई न दिया ।
एक गार्ड ने सन्दिग्ध भाव से उसे देखा ।
“टॉयलेट ?” - विमल मुस्करा कर बोला ।
“इतने बड़े सिंगर के गाने के बीच में ?” - गार्ड बोला ।
“भाड़ में गया सिंगर ।” - विमल बोला - “मैं मोहम्मद रफी का फैन हूं और सिर्फ रफी साहब के लिए ही यहां आया हूं ।”
“ओह !”
गार्ड ने एक ओर हाथ उठा दिया ।
अपना चश्मा ठीक करता विमल लम्बे डग भरता उस ओर बढ़ चला ।
वह टॉयलेट में पहुंचा ।
उसके तीनों साथी पहले से वहां मौजूद थे ।
विमल ने चारों ओर निगाह दौड़ाई ।
“कोई नहीं है ।” - उसकी निगाह का मकसद समझ कर वीरप्पा धीरे से बोला ।
विमल ने बड़ी संजीदगी से सिर हिलाया ।
फिर चारों एक लैवेटरी में घुस गए ।
वहां इतनी कम जगह थी कि चारों बड़ी मुश्किल से फंस कर वहां खड़े हो पा रहे थे ।
वीरप्पा कमोड का ढक्कन गिरा कर उसके ऊपर चढ़ गया । इस प्रकार उसका हाथ रोशनदान तक पहुंच गया । उसने दोनों हाथों को रोशनदान की चौखट पर टिका कर अपनी ओर झटका दिया तो रोशनदान एक क्षण कहीं अटकने के बाद अपने स्थान से उखड़ कर उसके हाथ में आ गया । उसने रोशनदान अब्राहम को थमा दिया । अब्राहम बड़ी कठिनाई से उसे दरवाजे के साथ टिकाकर खड़ा करने लायक जगह बना पाया ।
विमल और सदाशिवराव ने वीरप्पा को नीचे से सहारा देकर ऊपर को हूला तो अगले ही क्षण वह रोशनदान में था । उस ने सावधानी से रोशनदान के झरोखे में से अपने शरीर को पार गुजारा और फिर परली तरफ लटक गया । इधर टॉयलेट के छत तक जाते कई पाइप दिखाई दे रहे थे । बन्दर जैसी फुर्ती से वह एक के सहारे ऊपर चढ़ने लगा ।
पीछे तीनों स्तब्ध खड़े रहे ।
उस दौरान टॉयलेट में किसी के दाखिल होने की और थोड़ी देर बाद वापिस चले जाने की दो बार पदचाप हुई ।
“अगर ऊपर बक्सा न हुआ ?” - अब्राहम फुसफुसाया ।
“चुप !” - सदाशिवराव बोला ।
अब्राहम ने जोर से थूक निगली ।
खुद विमल भी यही सोच रहा था ।
अगर ऊपर स्टेडियम की छत पर बक्सा न हुआ !
अगर उस बक्से की जगह कोई सिक्योरिटी गार्ड खड़ा हुआ तो !
तो उसकी गोली से हलाक हुई वीरप्पा की लाश अब तक स्टेडियम की छत पर बिछी पड़ी होगी ।
“मुझे पेशाब आ रहा है ।” - अब्राहम फुसफुसाया ।
“आ रहा है या डर से निकल रहा है ?” - सदाशिवराव आंखें निकाल कर बोला ।
“एक ही बात है ।”
“चुप !”
“मैं पेशाब करने वाला हूं ।”
“खबरदार !”
“कमाल है ! पेशाबघर में पेशाब करने की इजाजत नहीं ।”
सदाशिवराव ने जोर से अब्राहम की पसलियों को टहोका ।
“रस्सी !” - एकाएक विमल बोला ।
सदाशिवराव और अब्राहम ने तुरन्त रोशनदान की तरफ देखा ।
नायलोन की मजबूती रस्सी के दो सिरे रोशनदान के करीब सरकते दिखाई दे रहे थे ।
सदाशिवराव ने अब्राहम को इशारा किया ।
विमल और सदाशिवराव के हाथों और कन्धों पर से होता हुआ अब्राहम रोशनदान तक पहुंच गया । उसने दोनों सिरों में से एक सिरा पकड़ कर रोशनदान से भीतर खींचा और उसे नीचे विमल और सदाशिवराव को थमा दिया । फिर उसने दूसरा सिरा पकड़ कर उसका एक फंदा सा बनाया और फिर रोशनदान से पार निकल गया । उसने फन्दे में अपना एक पांव फसाया और रस्सी को मजबूती से दोनों हाथों से थाम लिया । उसने थोड़ी देर रस्सी की मजबूती को और उस पर अपनी पकड़ को परखा और फिर अपना एक हाथ खाली करके रस्सी के दूसरे सिरे को हौले से झटका दिया ।
सदाशिवराव और विमल ने फौरन अपने हाथ में थमा रस्सी का सिरा खींचना आरम्भ कर दिया । रस्सी टॉयलेट के फर्श पर जमा होने लगी । बाहर सर्विस शाफ्ट की कुएं जैसी संकरी जगह में अब्राहम का शरीर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा ।
वीरप्पा ने ऊपर छत पर एक पुल्ली (Pulley) लगा दी हुई थी जिसमें से रस्सी निर्विघ्न गुजर रही थी ।
थोड़ी देर बाद रस्सी और खिंचनी बन्द हो गयी ।
फिर उन्होंने महसूस किया कि उन्हें रस्सी पर लटका भार महसूस नहीं हो रहा था ।
यानी कि अब्राहम निर्विघ्न छत पर वीरप्पा के पास पहुंच चुका था ।
फिर रस्सी को एक झटका लगा ।
सदाशिवराव और विमल ने रस्सी पर से अपनी-अपनी पकड़ ढीली कर दी ।
रस्सी वापिस खींची जाने लगी ।
लगभग सारी रस्सी वापिस खिंच गयी तो उसका फन्दे वाला सिरा फिर रोशनदान पर प्रकट हुआ ।
सदाशिवराव विमल की सहायता से रोशनदान पर चढ़ गया ।
कुछ क्षण बाद अब्राहम की भांति वह भी वैल में रस्सी के सहारे ऊंचा उठता जा रहा था । अलबत्ता इस बार रस्सी खींचने वाला अकेला विमल होने की वजह से वह बहुत धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा था ।
सदाशिवराव के ऊपर पहुंचने तक विमल पसीने से नहा गया था और बुरी तरह से हांफ रहा था ।
फिर टॉयलेट के फर्श पर जमा हुई रस्सी वापिस खिंचने लगी ।
वह सोचने लगा ।
अगर वह भाग खड़ा हो तो ।
लेकिन भाग कर जाता कहां वो ?
जयशंकर स्टेडियम से बाहर था । उस घड़ी स्टेडियम से बाहर निकलता इकलौता आदमी क्या उसकी निगाह से छुप पाता ! स्टेडियम से निकासी के कई रास्ते थे लेकिन वे सब आधी रात को तब खोले जाने वाले थे जब कि शो खत्म होता और सत्तर हजार के अपार जनसमूह ने एक साथ बाहर निकलना होता ।
वह वापिस स्टेडियम में जाकर बैठ सकता था और शो खत्म होने पर भीड़ में मिलकर, भीड़ का एक अंग बनकर वहां से खिसक सकता था ।
लेकिन वैसा हो पाने में अभी तीन घंटे बाकी थे ।
स्टेडियम में वही चार सीटें खाली थीं जो उन लोगों ने अभी खाली की थीं । जयशंकर बड़ी आसानी से उसे पकड़वा सकता था ।
उसने भागने का ख्याल छोड़ दिया ।
रस्सी का फन्दे वाला सिरा रोशनदान पर प्रकट हुआ ।
टॉयलेट की सीट पर चढ़कर उसने वह सिरा थामा और उसे रोशनदान के रास्ते टॉयलेट के भीतर खींचा । उस सिरे के साथ उसने रोशनदान का फ्रेम बांध दिया ।
फिर उसने धीरे से टॉयलेट के दरवाजे की चिटकनी भीतर से खोल दी और फुर्ती से रोशनदान पर चढ़ गया ।
वह बड़ी नाजुक घड़ी थी । उस क्षण अगर कोई टॉयलेट का दरवाजा खोल देता तो नतीजा बहुत खतरनाक निकलता ।
रोशनदान पर पहुंच कर उसने रोशनदान का फ्रेम ऊपर खींच लिया । फिर बड़ी कठिनाई से वह फन्दे पर पांव टिका कर बाहर लटका और उसने रोशनदान को यथास्थान अटकाया ।
वह रोशनदान स्टेडियम की ऊंचाई के मध्य में था । वैल में अन्धेरा था लेकिन विमल अन्दाजा लगा सकता था कि ग्राउण्ड लैवल तक जाता वह वैल रोशनदान से भी कोई कम गहरा न था । वहां से गिर पड़ने पर उसकी हड्डी पसली एक हो सकती थी ।
उसने रस्सी को एक पूर्वनिर्धारित ढंग से झटका दिया ।
रस्सी खींची जाने लगी ।
इस बार रस्सी खींचने वाले क्योंकि तीन थे इसलिए वह तेजी से ऊपर उठने लगा ।
उसका शरीर पुल्ली के करीब पहुंचा तो तीन जोड़ी हाथों ने उसे थाम लिया । अब वह भी छत पर था ।
जिस छत पर उस क्षण वे चारों थे, वह स्टेडियम की मेन छत नहीं थी लेकिन वहां से उचक कर देखने से स्टेडियम की मेन छत भी दिखाई देती थी जिस के घेरे में कारबाइनधारी गार्ड फैले हुए थे; एक गार्ड तो उनसे मुश्किल से पन्द्रह गज दूर था लेकिन, जैसा कि उससे अपेक्षित था, छत से स्टेडियम के बाहर झांकता होने की जगह वह भीतर स्टेज की तरफ देख रहा था और सौ रुपये कीमत वाले नजारे से मुफ्त में आनन्दित हो रहा था ।
वीरप्पा ने पुल्ली को उसके स्थान से उतारा ।
सदाशिवराव और अब्राहम ने रस्सी समेटी ।
एक तरफ एक सन्दूक पड़ा था, उन्होंने वे दोनों चीजें उसमें डाल दीं ।
अन्धेरे में चारों ने एक-दूसरे की तरफ देखा ।
म्यूजिक की आवाज सारे स्टेडियम में यूं गूंज रही थी कि उसकी दीवारें थरथराती मालूम हो रही थीं । ऊपर से लोग संगीत की लय पर तालियां बजा रहे थे और कितने ही लोग तो गाने वाले का बाकायदा साथ दे रहे थे ।
वीरप्पा ने सन्दूक में से एक भरा हुआ एयरबैग निकाल कर अपने कन्धे पर लाद लिया । सन्दूक में से ही उसने दो कुदालें बरामद कीं, जो कि उसने विमल और अब्राहम को थमा दीं । आखिरी चीज दो साइलेंसर लगी रिवाल्वरें थीं जो कि एक उसने खुद ली और एक सदाशिवराव को थमाई ।
वे दबे पांव आगे बढ़े ।
वीरप्पा सबसे आगे था । उसे ही मालूम था कि आगे उन्होंने कहां तक बढ़ना था ।
एक स्थान पर वीरप्पा ठिठका । वहां उसने टटोल-टटोल कर छत का मुआयना किया और फिर सहमति में सिर हिलाया । उसने अपने जूते की नोक से छत पर एक स्थान पर पड़ा एक पत्थर परे सरकाया और विमल को संकेत किया ।
विमल आगे बढ़ा । उसने हिचकिचाते हुए कुदाल का वार उस स्थान पर किया । एक थप्प की आवाज हुई लेकिन वह स्टेडियम में गूंजते कानफोड़ संगीत में खोकर रह गयी । वह आवाज कहीं दूर तो क्या सुनाई देती, विमल के पास खड़े साथियों को ही बड़ी मुश्किल से सुनाई दी ।
वीरप्पा ने भी उसी स्थान पर कुदाल का प्रहार किया ।
दोनों ने बारी-बारी कई प्रहार किये ।
“यह छत तो सारी रात में नहीं टूटने वाली ।” - विमल बोला ।
“अभी टूटेगी ।” - वीरप्पा विश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।” - शुरूआत मुश्किल है, एक बार छेद हो जाए, फिर छेद बड़ा करना आसान होगा ।”
विमल और अब्राहम कुदाल चलाते रहे ।
थोड़ी देर बाद उनकी जगह वीरप्पा और सदाशिवराव ने ले ली ।
और पांच मिनट बाद सदाशिवराव ने अपनी कुदाल अब्राहम को और वीरप्पा ने विमल को थमा दी ।
“यार, मैं चोर हूं या मजदूर !” - अब्राहम भुनभुनाया ।
“यह मजदूरी साढ़े बारह लाख रुपये की है ।” - वीरप्पा सख्ती से बोला ।
“हमारे उस्ताद को यहां हमारे साथ नहीं होना चाहिये था ?”
“बॉस बूढ़ा है । हार्ट पेशेण्ट है । यह काम उसके बस का नहीं ।”
“फिर भी...”
“बकवास बन्द करो और हाथ चलाओ ।”
अब्राहम और विमल कुदाल चलाने लगे ।
वीरप्पा की बात सच निकली । एक बार छत के आर-पार छेद हो गया तो उसे बड़ा करने में बहुत कम वक्त लगा । छेद इतना बड़ा हो जाने पर कि एक मानव शरीर उसमें से गुजर पाता, उन्होंने कुदाल चलानी छोड़ दी ।
तभी संगीत बन्द हो गया ।
चारों दीवार के साथ लग कर बैठ गये और प्रतीक्षा करने लगे ।
नीचे स्टेडियम में मंच संचालक की इकलौती आवाज गूंजने लगी ।
थोड़ी देर बाद पाश्चात्य संगीत का सिंहनाद फिर शुरू हो गया ।
वे अपने स्थान से उठे ।
वीरप्पा ने कुदालें उठाई और उनके साथ उधर चल पड़ा जिधर संदूक पड़ा था ।
थोड़ी देर बाद वह वापिस लौटा तो उसके हाथ खाली थे ।
“वो कुदालें” - अब्राहम भुनभुनाया - “यहीं पड़ी रहतीं तो क्या आफत आ जाती ?”
“बॉस का ऐसा ही हुक्म है” - वीरप्पा सख्ती से बोला - “वह चाहता है कि हर काम मिलिट्री की ड्रिल जैसी नफासत से हो ।”
“यानि कि बाद में कन्क्रीट और सीमेंट के पलस्तर से यह छेद बन्द करने के लिए भी हमें रुकना होगा ।”
“बकवास मत करो ।”
“यह ठीक कह रहा है ।” - विमल बोला - “यूं वक्त की बरबादी...”
“तुम भी बकवास मत करो ।”
“मत ही करो, यार ।” - अब्राहम बोला - “यह हमारा मानीटर जो ठहरा, हैडमास्टर से शिकायत कर देगा बाद में ।”
विमल ने छेद के भीतर झांका ।
भीतर घुप्प अन्धेरा था । उसे कुछ भी न दिखाई दिया ।
वीरप्पा ने विमल को छेद से परे किया और स्वयं उसके स्थान पर पहुंचा । फिर उसने जेब से एक छोटी-सी टार्च निकाली और उसका प्रकाश भीतर डाला । उसने सावधानी से रोशनी नीचे चारों तरफ दौड़ाई ।
“वैसा ही है” - फिर वह बोला - “जैसा बताया गया था ।”
“स्टोर !” - विमल बोला ।
“बन्द !” - सदाशिवराव बोला ।
“खाली !” - अब्राहम बोला ।
“हां” - वीरप्पा बोला - “मैं भीतर उतरता हूं । जब मैं इशारा करूं तो बारी-बारी तुम लोग भी भीतर आ जाना ।”
“नहीं, इकट्ठे ।” - अब्राहम बोला ।
“अब्राहम” - वीरप्पा दांत पीसता हुआ बोला - “थेवड़िया पईया, मसखरी छोड़ दे ।”
“यस, बॉस ।” - अब्राहम बड़े तत्पर स्वर में बोला लेकिन उसके स्वर में व्यंग्य का स्पष्ट पुट था ।
वीरप्पा ने जलती टार्च अपने मुंह में दबा ली और छेद में दाखिल हुआ । उसका किनारा पकड़ कर वह नीचे लटका और फिर उसने हाथ छोड़ दिये ।
एक हल्की-सी खटाक की आवाज हुई ।
थोड़ी देर बाद नीचे से कोई चीज सरकाने की हल्की-सी आवाज हुई । फिर एक बार टार्च बुझ कर दोबारा जली ।
विमल नीचे उतरा ।
वीरप्पा ने छेद के ऐन नीचे एक मेज सरका दी थी इसलिए स्टोर में उतरने में उसे कतई कोई दिक्कत न हुई ।
फिर सदाशिवराव और अब्राहम भी नीचे उतर आये ।
उस स्टोर में पुराना फर्नीचर भरा हुआ था । उस बन्द स्टोर में भी म्यूजिक का शोर अपने पूरे जलाल के साथ गूंज रहा था ।
“अगर अभी स्टोर का दरवाजा खुले” - अब्राहम बोला - “और दो दर्जन कारबाइन और मशीनगनधारी गार्ड, सिक्योरिटी गार्ड यहां घुस आयें तो कैसा रहे !”
कोई कुछ न बोला । प्रत्यक्षत: अब्राहम का उस बार का मजाक सभी ने नापसन्द किया था ।
वीरप्पा ने टार्च की रोशनी एयरकन्डीशनिंग के डक्ट के उस कमरे में खुलते दहाने पर डाली । उस दहाने के रास्ते उन्होंने एयरकन्डीशनिंग के डक्ट वाली कारीडोर के ऊपर बनी फाल्स सीलिंग में दाखिल होना था ।
खामोशी से उन्होंने दहाने के नीचे पहले एक मेज सरकाई, उस पर एक कुर्सी रखी और फिर कुर्सी पर एक स्टूल रखा ।
वीरप्पा बन्दर जैसी फुर्ती से पहले मेज पर, फिर कुर्सी पर और फिर स्टूल पर चढ़ गया ।
बड़ी सहूलियत से उसने दहाने पर लगी प्लास्टिक की ग्रिल उखाड़ दी । आगे एयरकन्डीशनिंग का टीन का भौंपा था जिसे तोड़ने में उसे बहुत वक्त लगा । अन्त में स्थिति यह पैदा हो गयी कि अब एयरकन्डीशनिंग डक्ट के उस दहाने के रास्ते बाहर गलियारे पर से गुजरती फाल्स सीलिंग में दाखिल हुआ जा सकता था ।
वीरप्पा भीतर दाखिल हुआ ।
उसके पीछे विमल, फिर अब्राहम और फिर अन्त में सदाशिवराव भीतर दाखिल हुए ।
फाल्स सीलिंग में मुश्किल से तीन फुट की क्लियरेंस थी लेकिन जहां-जहां एयरकन्डीशनिंग का डक्ट और कमरों की तरफ घूमता था, वहां उतनी भी क्लियरेंस नहीं थी ।
वे छाती के बल आगे रेंगने लगे ।
यही सबसे ज्यादा दिक्कत का और सबसे ज्यादा सब्र का काम था ।
और केवल वीरप्पा, जो कि सबसे आगे था, जानता था कि उन्होंने कब तक, कहां तक, यूं ही आगे सरकना था ।
रेंगने का वह सिलसिला आधा घण्टा चला ।
उस दौरान विमल को अपने जिस्म पर कई जगह खरोंचें आती महसूस हुईं । उसकी हथेलियां और घुटने फोड़े की तरह दुखने लगे और ताजी हवा की कमी की वजह से उसका दम यूं घुटने लगा कि कई बार उसका दिल चाहा कि वह फाल्स सीलिंग तोड़ कर नीचे गलियारे में कूद जाए ।
आखिकार वीरप्पा ने फाल्स सीलिंग की एक दो गुणा दो की शीट पहले उसके शिकंजे पर से ढीली की और फिर उसे थोड़ा-सा एक ओर सरका कर नीचे झांका ।
नीचे, रोशनी से जगमगाता एक खाली गलियारा था जिसके एक तरफ कमरों के दरवाजे थे और दूसरी तरफ शीशे की खिड़कियां थीं जिनमें से कि आगे स्टेडियम में झांका जा सकता था ।
एक कारबाइनधारी गार्ड उन खिड़कियों में से एक के सामने खड़ा था और स्टेडियम की स्टेज पर चलते प्रोग्राम का आनन्द ले रहा था ।
उन लोगों की तरफ उसकी पीठ थी ।
गार्ड कोई पचास साल उम्र का मोटी तोंद वाला आदमी था । उसकी कारबाइन एक स्ट्रैप के सहारे उसके गले में लटकी हुई थी और वह जैसा निश्चिन्त दिखाई दे रहा था, उससे लगता था कि वह कभी कल्पना नहीं कर सकता था कि वहां उसके या उसकी कारबाइन के इस्तेमाल की कोई नौबत आ सकती थी, कोई जरूरत पैदा हो सकती थी ।
वीरप्पा ने एयरबैग में से चार नायलोन की नकाबें निकालीं, उसने तीन अपने साथियों को थमा दीं और एक अपने चेहरे पर चढ़ा ली । उस नकाब में से अब केवल उसकी आंखें दिखाई दे रही थीं ।
एयरबैग उसने अब्राहम को थमा दिया ।
उसने अपनी रिवॉल्वर निकाल कर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली ।
सदाशिवराव ने भी अपने चेहरे पर नकाब चढ़ा ली और अपनी रिवॉल्वर निकाल कर अपने हाथ में ले ली ।
विमल और अब्राहम ने भी नकाबें पहनीं, अलबत्ता हथियार के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था ।
“हमें भी तो हथियारबन्द होना चाहिए था ।” - अब्राहम भुनभुनाया ।
“होना चाहिए था” - वीरप्पा बड़े इत्मीनान से बोला - “लेकिन इत्तफाक से दो से ज्यादा रिवाल्वरों का इन्तजाम नहीं हो सका था ।”
“तीन का तो जरूर हुआ होगा ।”
“नहीं हुआ था...”
“यह क्या मानने की बात है कि हमारे बॉस के पास रिवॉल्वर न हो !”
“बॉस का मुझे नहीं पता । हमारे लिए दो ही रिवॉल्वर मुहैया करा सका था ।”
“जब कि बनता वो ऐसा तीसमारखां है कि क्या कोई भी काम नामुमकिन होगा उसके लिए !”
“अब बकवास बन्द करो ।”
अब्राहम चुप हो गया ।
“मैं नीचे कूदता हूं” - वीरप्पा सदाशिवराव से बोला - “मुझे उम्मीद तो नहीं कि इतने शोर में मेरे नीचे कूदने की आवाज गार्ड को सुनाई देगी, फिर भी तुम मुझे कवर करके रखना । अगर उसे आवाज सुनाई दे जाए तो तुमने उसे शूट कर देना है ।”
सदाशिवराव ने सहमति में सिर हिलाया ।
“तैयार ?”
“हां ।” - सदाशिवराव बोला ।
वीरप्पा नि:शब्द फाल्स सीलिंग के बाहर लटक गया ।
गार्ड पूर्ववत् बड़ी तन्मयता से खिड़की से बाहर देख रहा था ।
वीरप्पा कुछ क्षण सांस रोके गलियारे में लटका रहा, फिर उसने अपने हाथ छोड़ दिए ।
एक हल्की सी धप्प की आवाज के साथ वह गलियारे के फर्श पर गिरा ।
गार्ड के कान पर जूं भी नहीं रेंगी ।
वीरप्पा ने रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ले ली और दबे पांव गार्ड की तरफ बढ़ा ।
फाल्स सीलिंग के छेद पर सदाशिवराव हाथ में रिवॉल्वर लिए सतर्कता की प्रतिमूर्ति बना मौजूद था । उसकी रिवॉल्वर का रुख गार्ड की पीठ की तरफ था ।
वीरप्पा दबे पांव गार्ड के सिर पर पहुंच गया ।
गार्ड को तब भी अपने पीछे उसकी मौजूदगी का अहसास न हुआ । जरूर स्टेडियम में चल रहे प्रोग्राम में वह हद से ज्यादा खोया हुआ था ।
वीरप्पा ने रिवॉल्वर की नाल उसकी गर्दन के पृष्ठभाग के साथ सटा दी ।
“खबरदार !” - वह दांत भींचकर फुसफुसाया - “आवाज न निकले ।”
गार्ड को जैसे सांप सूंघ गया ।
“मेरे हाथ में साइलेंसर लगी रिवॉल्वर है जिसकी नाल तुम्हारी गर्दन में सुराख कर सकती है । अपनी जान की खैर चाहते हो तो जो कहा जाए, वो करो ।”
“क्या करूं ?” - गार्ड फंसे स्वर में बोला ।
“गले में लटकी कारबाइन निकाल कर फर्श पर डालो ।”
गार्ड ने आदेश का पालन किया ।
“इसे पांव की ठोकर से पीछे को सरकाओ ।”
गार्ड ने वह भी किया ।
“एक कदम आगे बढ़ो ।”
गार्ड ने वह भी किया ।
रिवॉल्वर की नाल यूं उसकी गर्दन पर से हट गयी । उसने गर्दन घुमाने की कोशिश की तो फौरन कोड़े की फटकार जैसा वीरप्पा का स्वर उसके कान में पड़ा - “खबरदार !”
वह फिर जड़ हो गया ।
वीरप्पा ने सावधानी से झुककर कारबाइन उठा ली ।
तब तक सदाशिवराव, अब्राहम और विमल भी गलियारे में उतर चुके थे ।
वीरप्पा ने कारबाइन अब्राहम को थमा दी ।
“वापिस घूमो ।” - वीरप्पा बोला ।
गार्ड हौले से वापिस घूमा । अपने सामने एक की जगह चार-चार नकाबपोश खड़े देखकर उसके छक्के छूट गए ।
“टॉयलेट में चलो ।”
गार्ड भारी कदमों से आगे बढ़ा ।
गलियारे के एक दरवाजे के सामने पहुंचकर वह ठिठका । उसने हिचकिचाते हुए दरवाजे के हैंडल की तरफ हाथ बढ़ाया ।
उसका हाथ हैंडल पर पड़ा और एक क्षण को ठिठका ।
“अगर” - वीरप्पा बर्फ से सर्द स्वर में बोला - “तुमने यह हैंडल घुमाया तो तुम तो मरोगे ही, भीतर मौजूद सारे के सारे जने भी मारे जायेंगे । सोच लो ।”
गार्ड ने फौरन हैंडल पर से अपना हाथ खींच लिया ।
गार्ड का वह ऐक्शन जाहिर करता था कि जयशंकर का यह ख्याल गलत था कि रात के उस वक्त एडमिनिस्ट्रेशन ब्लाक में ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ट वासन और उसके स्टाफ के अलावा और कोई मौजूद नहीं होने वाला था ।
गार्ड बिना किसी के कहे ही आगे बढ़ा । दो दरवाजे छोड़ कर वह तीसरे पर ठिठका । उसने उसका हैंडल घुमाकर उसे खोला ।
वह टॉयलेट का दरवाजा था ।
पांचों टॉयलेट में पहुंचे ।
वीरप्पा ने टॉयलेट का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया ।
“इसकी तलाशी लो ।” - विमल बोला ।
“किस लिए ?” - वीरप्पा बोला - “इसका हथियार तो हमारे पास है ।”
“इसके पास और भी हथियार हो सकता है ।”
वीरप्पा ने हिचकिचाते हुए गार्ड की तरफ कदम बढ़ाया ।
“मुंह दीवार की ओर ।” - उसके समीप आकर उसने आदेश दिया - “हाथ ऊपर । हथेलियां दीवार के साथ । माथा भी दीवार के साथ ।”
गार्ड ने आग्नेय नेत्रों से वीरप्पा की तरफ देखा ।
वीरप्पा ने अपने हाथ में थमी रिवॉल्वर की नाल की एक दस्तक गार्ड की नाक की हड्डी पर दी ।
“जल्दी ।” - वह बोला ।
गार्ड ने आदेश का पालन किया ।
वीरप्पा ने उसकी तलाशी ली ।
गार्ड की वर्दी में से एक रिवॉल्वर बरामद हुई ।
वीरप्पा के छक्के छूट गये ।
“मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इन गार्डों के पास डबल-डबल हथियार भी हो सकते थे ।” - फिर उसने प्रशंसात्मक नेत्रों से विमल की ओर देखा - “तुम तो बड़े उस्ताद हो ।”
“वहम है तुम्हारा । बड़ा क्या, मैं तो छोटा उस्ताद भी नहीं हूं ।”
“अपने हिस्से का हक तो तुमने अपनी इस एक सलाह से ही अदा कर दिया । हमारे जरा असावधान होने की देर थी कि यह गार्ड तो हम सबको भूनकर रख देता ।”
विमल खामोश रहा ।
“मैं बॉस को यह बात बताऊंगा । वो खुश होगा । वो तुम्हारे से बहुत खुश होगा ।”
विमल ने लापरवाही से कन्धे उचकाये ।
वीरप्पा गार्ड की तरफ घूमा ।
“तुम तो बड़े हरामी निकले !” - वह बोला ।
गार्ड खामोश रहा ।
“नाम क्या है तुम्हारा ?”
“सुब्रामन्यम ।”
“लोग क्या कहकर बुलाते हैं ? मणि ? या कुछ और ?”
“सुब्रामन्यम साहब ।”
“ओह ! साहब ! यानी कि हम तुम्हें साहब कह कर बुलायें ?”
“वो तो बुलाओगे ही ।”
“अच्छा ! कब ?”
“जब पकड़े जाओगे और मेरे जूतों और डण्डों का शिकार बनोगे ।”
“तुम्हें डर नहीं लग रहा ?”
“किस बात से ?”
“कि हम चार हैं और तुम हमारे सामने अकेले हो ?”
गार्ड ने उत्तर न दिया ।
“पहले भी तुम टॉयलेट की जगह कोई और दरवाजा खोलने लगे थे । मुझे पहले से न मालूम होता कि वह टॉयलेट का दरवाजा नहीं था तो तुम्हारी चाल चल गयी थी ।”
“तुम लोग क्या चाहते हो ?” - गार्ड कठिन स्वर में बोला ।
“यानी कि अभी तक तुम्हारी समझ में नहीं आया कि हम क्या चाहते हैं ।”
“तुम यहां का कैश लूटना चाहते हो ?”
“शाबाश !”
“मैं यहां का सिक्योरिटी गार्ड हूं । मेरा फर्ज बनता है कि मैं तुम्हें ऐसा न करने दूं ।”
“इसीलिए तुम कोई और दरवाजा खोलने जा रहे थे ?”
“हां ।”
“फिर खोला क्यों नहीं ? अपनी जान की फिक्र हो गई थी ?”
“अपनी जान की नहीं ।”
“ओह ! आई सी । आई सी ।”
“तुम लोग भीतर कैसे घुसे ? यहां तक पहुंचने में कामयाब कैसे हो गए ?”
वीरप्पा हंसा ।
“अपनी वर्दी उतारो ।” - उत्तर देने के स्थान पर वह बोला ।
“क्या ?”
“वर्दी उतारो । बहरे हो ? ऊंचा सुनते हो ? या वैसे ही भोले बनकर दिखा रहे हो ?”
“मैं वर्दी नहीं उतारूंगा । हरगिज नहीं उतारूंगा ।”
“ऐसी ढिठाई का फायदा ! खामख्वाह जान से हाथ धो बैठोगे ।”
“मैं...”
“तुम्हारी वर्दी हम चार जने तुम्हारे जिस्म से उधेड़ कर अलग कर सकते हैं । थोड़ी-बहुत चमड़ी भी साथ उधड़ आए तो कोई बड़ी बात नहीं ।”
“मेरी वर्दी का तुम्हारे प्लान में कोई इस्तेमाल है ?”
“यह भी कोई पूछने की बात है ?”
एकाएक गार्ड ने अपने दायें हाथ की दो उंगलियां अपने मुंह में घुसेड़ लीं ।
विमल कूद कर उसके सामने पहुंचा और इससे पहले कि वह अपने इरादे में कामयाब हो पाता उसने अपने दायें हाथ का एक प्रचण्ड घूंसा उसके चेहरे पर रसीद किया । गार्ड के मुंह से उसकी उंगलियां निकल गयीं और वह भरभरा कर पीछे को उलटा ।
“इसे दबोच लो ।” - विमल बोला ।
उसके स्वर में अधिकार का ऐसा पुट था कि सदाशिवराव और अब्राहम ने उसे फौरन दबोच लिया ।
“यह अभी तुम्हारे प्लान की टांग तोड़ने लगा था ।” - विमल बोला ।
“यह क्या करने लगा था ?” - वीरप्पा मुंह बाए उसे देखता हुआ बोला ।
“यह अपने हलक में उंगली मार कर वर्दी पर जबरन उलटी करने लगा था । फिर यह पहनने के काबिल न रह जाती ।”
वीरप्पा के नेत्र फट पड़े । बड़े अविश्वासपूर्ण ढंग से वह कभी विमल को तो कभी गार्ड को देखने लगा । फिर एकाएक उसका चेहरा क्रोध से लाल भभूका हो उठा । वह आगे बढ़ा, गार्ड के सामने पहुंच कर उसने रिवॉल्वर की नाल जबरन उसके हलक में धकेल दी ।
“साले !” - वह सांप की तरह फुंफकारा - “हरामजादे ! खून पी जाऊंगा ।”
उसने अपने पांव की एक भरपूर ठोकर उसकी पसलियों में जमाई ।
गार्ड की तोंद जोर से उछली और फिर पिचकी ।
“कुत्ते के पिल्ले ! मेरे से होशियारी दिखाता है ! वर्दी पर उलटी करने लगा था ! अभी निकालता हूं मैं तेरी होशियारी ।”
विमल ने आगे बढ़कर उसे रोका । उसने ऐसा न किया होता तो पता नहीं कब तक वह गार्ड पर लात-घूंसे बरसाता रहता । उसने वीरप्पा को परे धकेला और बड़े मीठे स्वर में गार्ड से सम्बोधित हुआ - “क्या फायदा ! यह कोई वक्त है हीरो बन कर दिखाने का ! खामख्वाह अपनी मिट्टी खराब कराओगे । मौजूदा हालात में तुम्हारी भलाई इसी में है कि जो तुमसे कहा जाये, तुम करो । फालोड, मिस्टर सुब्रामन्यम ?”
गार्ड ने पलकें झपका कर पीड़ा से आंखों में उबल पड़ने का तत्पर आंसुओं को रोका और बोला - “मैं तुम लोगों को भूलने वाला नहीं ।”
“मत भूलना । जो तुम्हारे जी में आए करना लेकिन बाद में । बाद में, जब तुम इस मौजूदा जंजाल से निजात पा चुको । फिलहाल जो कहा जाए वो करो । ओके ?”
वह खामोश रहा । फिर उसने हौले से सहमति में सिर हिलाया ।
“अब वर्दी उतारो ।”
गार्ड ने ऐसा कोई उपक्रम नहीं किया ।
“बाई गॉड ।” - वीरप्पा हिंसक स्वर में बोला - “मैं मार-मार कर इसका कीमा कूट दूंगा । मैं...”
“खामख्वाह ! उतार तो रहा है वो ।”
“मुझे नहीं दिखाई दे रहा ।”
“मुझे दिखाई दे रहा है ।” - विमल फिर गार्ड की तरफ घूमा - “मिस्टर सुब्रामन्यम, तुम एक बात भूल रहे हो ।”
“क्या ?”
“कि बकौल खुद तुम्हारे, तुमने हमें भूलना नहीं है, बाद में तुमने हमारी शिनाख्त करनी है । अगर मेरे इस साथी ने तुम्हें शिनाख्त करने के काबिल ही न छोड़ा तो हमारी शिनाख्त करने की तुम्हारी ख्वाहिश भला कैसे पूरी होगी ?”
यह बात गार्ड को जंची । उसके चेहरे पर एक बड़ी कड़वी मुस्कराहट उभरी ।
“फिक्र मत करो ।” - वह बोला - “मेरी ही वजह से तुम दस-दस साल के लिए नपोगे ।”
“जरूर ! जरूर ! वुई विश यू ऑल दि बैस्ट, मिस्टर सुब्रामन्यम । एण्ड नाओ, इन दी मीनटाइम...”
विमल ने फिर उसकी वर्दी की ओर इशारा किया ।
गार्ड ने आग्नेय नेत्रों से दायें-बायें से उसे दबोचे खड़े सदाशिवराव और सुब्रामन्यम की तरफ देखा ।
वीरप्पा के इशारे पर उन्होंने उसकी बांहें छोड़ दीं । गार्ड ने अपनी वर्दी अपने जिस्म से अलग की और टॉयलेट के फर्श पर डाल दी ।
“शुक्रिया ।” - विमल बोला ।
“अब और क्या चाहते हो ?” - गार्ड भुनभुनाया ।
“मैं कुछ नहीं चाहता । मैं तो पहले भी कुछ नहीं चाहता था ।”
“मैं चाहता हूं ।” - वीरप्पा बोला ।
गार्ड ने वीरप्पा की तरफ देखा ।
“लैवेटरी में चलो ।”
वहां चार लैवेटरी स्टाल थे । वीरप्पा ने कोने वाले स्टाल की तरफ संकेत किया । अपमान की पीड़ा से जलता हुआ अण्डरवियर और बनियान पहने गार्ड आखिरी स्टाल में पहुंचा ।
वीरप्पा के संकेत पर अब्राहम ने एयरबैग में से नायलोन की पतली लेकिन मजबूत डोरी का एक लच्छा निकाला ।
फिर वीरप्पा और सदाशिवराव ने मिल कर गार्ड की मुश्कें कस दीं ।
वीरप्पा गार्ड के मुंह में कपड़ा ठूंसने लगा तो एकाएक गार्ड बोला - “मुझ पर एक मेहरबानी करना ।”
“क्या ?” - वीरप्पा सकपका कर बोला ।
“कोशिश करना कि यहां का कैश लूटने की अपनी करतूत में तुम मारे न जाओ । तुम मर गये, खासतौर से तुम मर गये, तो मेरी यह ख्वाहिश मेरे मन में ही रह जायेगी कि मेरी गवाही की वजह से तुम्हें सजा हुई । और फिर मैंने तुम्हारे आज के व्यवहार का तुम से बदला भी तो चुकाना है ।”
वीरप्पा हंसा ।
“मैं” - गार्ड आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला - “जेल में तुम से रोज मिलने आया करूंगा, दस साल में एक भी नागा नहीं करूंगा मैं वादा...”
वीरप्पा ने जबरन उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया । उसकी आवाज उसके गले में ही घुट कर रह गयी ।
वीरप्पा ने उसे लैवेटरी में छोड़ कर उसका दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया ।
सदाशिवराव ने गार्ड की वर्दी पहन ली और कारबाइन सम्भाल ली ।
अपनी रिवॉल्वर उसने अब्राहम को दे दी और गार्ड की रिवॉल्वर उसने खुद ले ली ।
अब उन में इकलौता विमल ही था जो कि निहत्था था ।
गार्ड की यूनीफार्म सदाशिवराव को बहुत ढीली-ढाली आयी थी । गार्ड की टोपी उसे बड़ी थी, जो कि उसके माथे पर आंखों तक ढुलक आती थी । फिर भी सिलसिला नाउम्मीद करने वाला नहीं था ।
अपनी नकाब सदाशिवराव ने पहले ही उतार ली थी ।
“किसी एक के नाप की” - विमल बोला - “एक वर्दी साथ लाई जानी चाहिये थी ।”
“पहले जरूरत नहीं थी ।” - वीरप्पा बोला ।
“क्यों ?”
“क्योंकि पहले तुम्हारी जगह हमारा साथी कुप्पूस्वामी था जो कि ऐन इस गार्ड के कद-काठ का है । वह ऐन मौके पर दगा न दे गया होता तो यह वर्दी उसने पहनी होती और उसके फिट आयी होती ।”
“ओह !”
फिर सदाशिवराव टॉयलेट का दरवाजा खोल कर बाहर गलियारे में अपनी ड्यूटी पर चला गया ।
“तुमने” - वीरप्पा विमल से बोला - “गार्ड से बहुत बढ़िया तरीके से बात की थी । उसे बहुत स्टाइल से हैंडल किया था तुमने । उसे मिस्टर सुब्रामन्यम कह कर बुला रहे थे तुम । गार्ड पर इन बातों का बहुत उम्दा असर हुआ था । वो बहुत कोआपरेटिव हो गया था ।”
“तो ?” - विमल के माथे पर बल पड़ गये ।
“तुम्हारी जुबान मुझे पसन्द आयी है । तुम्हारा बात करने का मीठा तरीका ज्यादा कारआमद साबित हो सकता है ।”
“अरे तो ? कुछ कहो भी तो सही ।”
“तुम पढ़े-लिखे आदमी हो, अभी हम वासन नाम के जिस बड़े साहब के पास पहुंचने वाले हैं, मैं चाहता हूं, उससे बात तुम करो, अपने वैसे ही स्टाइलिश तरीके से जैसे तुमने ‘मिस्टर’ सुब्रामन्यम से की थी । मुझे लग रहा है तुम्हारा बात करना ज्यादा असरदार साबित होगा ।”
“तुम्हारा बॉस यह बात पसन्द करेगा ?”
“बॉस को प्लान की कामयाबी से मतलब है । उसे इस बात से मतलब है कि कैश हमारे हाथ आया या नहीं आया । अगर हम कामयाब रहे तो वह यह भला क्यों पूछेगा कि भीतर बड़े साहब से किसने बात की थी !”
“मैं बात करूं ?” - विमल संदिग्ध भाव से बोला ।
“हां ।”
“अगर मेरी बात का असर न हुआ ?”
“तो मैं कहीं चला थोड़े ही गया होऊंगा ! फिर मैं अपना तरीका आजमाऊंगा ।”
विमल खामोश रहा ।
“ओके ?” - वीरप्पा बोला ।
विमल ने सहमति में सिर हिला दिया ।
“बात, तुम्हें मालूम ही है, क्या करनी है ! कोई बात भूल गयी हो तो पूछ लो ।”
“नहीं, सब याद है ।”
“गुड । आओ ।”
तीनों बाहर निकले ।
सदाशिवराव खिड़की के पास गार्ड के स्थान पर जा खड़ा हुआ था ।
अब स्टेडियम की स्टेज पर कोई डांस प्रोग्राम चल रहा था इसलिए म्यूजिक का शोर पहले जैसा कान फोड़ू नहीं था ।
“हमारे चेहरों पर नकाबें चढ़ी हुई हैं” - विमल बोला - “गलियारे में यूं चलना मुनासिब होगा ?”
“गलियारा सुनसान पड़ा है” - वीरप्पा बोला - “जब से हम आये हैं तभी से सुनसान पड़ा है । कोई टॉयलेट तक में नहीं आया ।”
“अब तक नहीं आया तो अब आ सकता है ।”
“कोई आ जायेगा तो सदाशिवराव हमें चेतावनी दे देगा ।”
“किसी ने हमें दूर से भी देखा तो हमारे चेहरों पर चढ़ीं नकाबों की वजह से हमारा काम हो जायेगा ।”
“कोई दूर से नहीं देख पायेगा । स्टेज पर इतनी तीखी रोशनी है कि उसकी वजह से चौंधियायी आंखें यहां गलियारे में नहीं झांक पायेंगी ।”
“हूं ।”
तीनों दबे पांव आगे बढ़े । गलियारे में चलते हुए वे एक दरवाजे के आगे ठिठके । वीरप्पा ने हौले से उसका हैंडल ट्राई किया ।
दरवाजा भीतर से बन्द नहीं था ।
उसने रिवॉल्वर अपने हाथ में ले ली ।
अब्राहम ने भी ऐसा ही किया ।
“मेरे पास भी रिवॉल्वर होनी चाहिए थी ।” - विमल बोला ।
“चुप !” - वीरप्पा फुसफुसाया - “यह कोई वक्त है रिवॉल्वर डिसकस करने का !”
“सदाशिवराव के पास जो गार्ड की रिवॉल्वर है...”
“अब उसे लेने वापिस नहीं जाया जा सकता ।”
“लेकिन...”
“चुप !”
तभी बाहर स्टेडियम में फिर पॉप म्यूजिक का प्रोग्राम शुरु हो गया । शोर-शराबा फिर टॉप पर पहुंचने लगा ।
वीरप्पा ने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली और फिर सहमति में सिर हिलाया ।
“तैयार !” - वह बोला ।
वीरप्पा ने दरवाजा खोला ।
वह एक ऑफिसनुमा कमरा था जिसमें मेज के पीछे एक चश्माधारी अधेड़ व्यक्ति बैठा था । उसने सिर उठाया तो तीन नकाबपोशों को भीतर दाखिल होता पाया । उसके हाथ से उस का बाल प्वायंट पेन छूट गया ।
“ओह माई गॉड !” - वह आतंकित भाव से बोला ।
“खबरदार !” - वीरप्पा धीरे से बोला - “आवाज नहीं ।”
वह और विमल कमरे में आग बढ़ आए । अब्राहम - जैसा कि उसे निर्देश था - दरवाजे के पास ही खड़ा रहा ।
कमरे की एक दीवार फर्श से कोई साढ़े चार पांच फुट ऊपर से लेकर छत तक शीशे की थी और उसके पार शीशे में से दूसरा कमरा दिखाई दे रहा था । उस दीवार से बचते हुए वीरप्पा और विमल ने आगे कदम बढ़ाये थे ।
“क्या चाहते हो ?” - चश्मे वाला कांपती आवाज से बोला ।
“घबराइए नहीं” - विमल मीठे स्वर में बोला - “आप से कुछ नहीं चाहते । आपसे हमारा कोई मतलब नहीं । आप एकदम सेफ हैं ।”
चश्मे वाले ने अपने सूखे होंठो पर जुबान फेरी और बड़े नर्वस भाव से कुर्सी पर पहलू बदला, कुर्सी एक बार धीरे से चरमराई और शांत हो गई ।
“ब-ब-बाहर” - वह बोला - “एक ग-गार्ड था ।
“सुब्रामन्यम ?” - विमल बोला ।
“तुमने उसका क्या किया ?”
“कुछ नहीं । वो एकदम सही-सलामत है ।”
“उसके सही-सलामत होते हुए तुम लोग यूं भीतर तो नहीं आ सकते थे !”
“मेरा मतलब है कि वो हमें भीतर आने से रोकने की हालत में नहीं है लेकिन सही-सलामत है ।”
“ओह !”
“और आप भी सही-सलामत होंगे । आपके लिए फिक्र की कोर्इ बात नहीं ।”
“लेकिन...”
“आप वासन साहब हैं न ?”
वह चौंका ।
“तुम लोग मेरा नाम भी जानते हो ?”
“इत्तफाक से जानते हैं ।”
“मैंने किसी का कभी कुछ नहीं बिगाड़ा । तुम चाहते क्या...”
“सर, कहा न आपसे कुछ नहीं चाहते । अमूमन लोग सर ही कहते हैं न आपको ?”
“हं-हां, लेकिन....”
“देख लीजिए । हम भी आपको सर कह रहे हैं । अगर हम आपका कुछ बिगाड़ना चाहते होते तो यूं इतने अदब से आप से पेश आते ?”
“लेकिन फिर तुम लोग यहां...”
“हम लोग डकैत हैं और यहां डकैती डालने आए हैं । हमारा इरादा यहां मौजूद सत्तर लाख की रकम को लूटना है न कि किसी को नुकसान पहुंचाना या किसी को आतंकित करना । बस, हमने पैसा बटोरना है और यहां से चल देना है । वह पैसा आपका तो नहीं । न ही वह यहां मौजूद किसी और शख्स का है । इसलिए अब आप ही सोचिए कि इस बात में कहां की समझदारी है कि आप - या कोई और - ऐसे पैसे के लिए खामख्वाह गोली खा जाएं जो कि आपका है भी नहीं । हम खूनखराबा पसन्द नहीं करते । आप करते हैं ?”
वासन ने जल्दी से इन्कार में सिर हिलाया ।
“देख लीजिए” - विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “खूनखराबे के मामले में हमारे ख्यालात कितने मिलते हैं !” - विमल एक क्षण ठिठका और बोला - “पैसा अगले कमरे में है न ?”
वासन ने अपने सूखे होंठों पर फिर जुबान फेरी ।
शीशे वाली दीवार वासन के सामने थी, यानी कि उसकी टेबल का रुख शीशे की दीवार की तरफ था । उसके कोने में एक दरवाजा था जो परले कमरे में खुलता था । वह दरवाजा उस वक्त बन्द था । दरवाजा ईंटों की दीवार में था इसलिए शीशे वाली साइड में कोई चार फुट चौड़ी ओट वीरप्पा और विमल को हासिल थी । जहां वे उस क्षण खड़े थे वहां से वे शीशे के पार परले कमरे में नहीं देख सकते थे । वे ऐसी कोई कोशिश करते तो खुद भी देख लिए जाते लेकिन वासन की स्थिति ऐसी थी कि वह अपनी कुर्सी पर से जरा सा उचकता भी तो शीशे से पार देख सकता था ।
“कोई” - विमल बोला - “आपकी तरफ देख रहा है ?”
“क... क्या ?” - वासन हकलाया ।
“सर, मैंने पूछा है शीशे से पार परले कमरे में मौजूद लोगों में से कोई आपकी तरफ देख रहा है ?”
“न... नहीं ।”
“लेकिन कोई देखेगा तो झट जान जाएगा कि आप किसी से बातें कर रहे हैं, कि आपके कमरे में कोई है ।”
“तो ? तो ?”
“तो यह कि अपना बाल प्वायन्ट पैन वापिस उठाइये और लिखना शुरू किजिए ।”
“क्या लिखना शुरू करूं ?”
“कुछ भी ! जो जी में आए । बस जरा व्यस्त दिखाई दीजिए ताकि दूसरे कमरे में मौजूद लोगों की तवज्जो इधर न जाए ।”
“ओह !”
वासन ने बाल प्वायन्ट पैन वापिस उठा लिया और कांपते हाथों से अपने सामने पड़े लैटर पैड पर कुछ लिखने का उपक्रम करने लगा ।
“जरा नार्मल दिखने की कोशिश कीजिए । आपके रंग-ढंग से तो ऐसा लग रहा है जैसे आप अंगारों पर बैठे हों और कोई आपको हिलने न दे रहा हो ।”
उसने अपनी तरफ से नार्मल दिखने की कोशिश की लेकिन उसके कन्धे फिर भी तने रहे और उसकी निगाह रह-रह कर लैटर पैड से इधर-उधर भटकती रही ।
“सिर मत उठाइये, सर ।” - विमल बोला - “यूं ही लिखते रहिए या लिखने का अभिनय करते रहिए लेकिन अपने कान मेरी तरफ रखिए । जो मैं कहूं उसे गौर से सुनिए । आप सुन रहे हैं ?”
“हं... हां ।”
“गौर से ?”
“हां !”
“परले कमरे में कितने सिक्योरिटी गार्ड हैं ?”
“कि... कि... कितने सिक्यो... सिक्योरिटी गार्ड...”
“सवाल लगता है कुछ मुश्किल हो गया आपके लिए । चलिए इसका जवाब मैं दे देता हूं । उधर तीन सिक्योरिटी गार्ड हैं । ठीक ?”
वासन ने सहमति में सिर हिलाया ।
“हकीकतन दो गार्ड हैं, एक उनका इंचार्ज है ?”
“हां ।”
“इंचार्ज का नाम क्या है ?”
“बालैया ।”
“और बाकी दो ? उनके क्या नाम हैं ?”
“एक का नाम बाबू है, दूसरे का नाम नागेश ।”
“बालैया, बाबू और नागेश ! ये हैं वो तीन गार्ड जो उधर हैं ?”
“हां ।”
“गुड ! वैरी गुड ! अब आप यूं ही लिखते रहिएगा । प्लीज ! प्लीज, सर ! दैट्स सो नाइस ऑफ यू, सर ! थैंक्यू, सर ।”
विमल ने वीरप्पा को कोहनी से टहोका ।
वीरप्पा ने सहमति में सिर हिलाया । उसने इशारे से दरवाजे के करीब खड़े अब्राहम को समझाया कि वह सावधान रहे । फिर कुछ हिचकिचाते हुए उसने अपनी रिवॉल्वर विमल के हाथ में थमा दी ।
विमल ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
वीरप्पा तनिक मुस्कराया और फिर नीचे को झुका । वह घुटनों और हाथों के बल चलता हुआ तनिक आगे बढ़ा । वह शीशे के नीचे दीवार के साथ-साथ आगे सरक रहा था इसलिए ऐन शीशे के पास आए बिना उसे दूसरे कमरें में से नहीं देखा जा सकता था ।
उसने कन्धे पर से एयरबैग उतार कर खोला और उसमें से एक वैसा रियरव्यू मिरर निकाला जो कि मोटर साइकल जैसे दोपहिया वाहनों के हैंडलों पर लगाया जाता है । उस गोल शीशे को उसकी लोहे की कमानी से पकड़ कर उसने उसे इतना ऊंचा उठाया कि वह शीशे के निचले भाग से जरा-सा ऊंचा उठ गया । उसने शीशे का यूं एंगल बनाया कि फर्श पर बैठे-बैठे ही उसे शीशे में परले कमरे का एक भाग प्रतिबिम्बित होता दिखाई देने लगा । बड़ी सावधानी से धीरे-धीरे वह शीशे को यूं हरकत देने लगा कि परले कमरे का हर भाग पैन होता हुआ उसकी आंखों के सामने आने लगा ।
“क्या देखा ?” - विमल बोला ।
“बहुत बड़ा कमरा है ।” - वीरप्पा बोला - “इस कमरे से तीन गुणा बड़ा । शायद और भी ज्यादा बड़ा । गलियारे की तरफ खुलने वाले दो दरवाजे हैं, एक शीशे वाली दीवार के करीब, दूसरा परले सिरे पर । दोनों दरवाजों के बीच में दीवार के साथ लगा एक सोफा है । उस पर एक सशस्त्र गार्ड बैठा है । परले दरवाजे के पास एक मेज है जिसके पहलू में पड़ी एक कुर्सी पर एक और गार्ड बैठा है और सिगरेट पीता हुआ कोई मैगजीन पढ़ रहा है । कमरे के बीच में एक दूसरे के पीछे एक कतार में चार ऑफिस टेबलें लगी हुई हैं जिन पर चार आदमी बैठे नोट गिन रहे हैं । चारों मेजों पर नोटों के अम्बार लगे हुए हैं । नोटों को गिन कर बंडल बनाए जा रहे हैं और उन्हें पिन किया जा रहा है । पिछली दीवार में सिर्फ स्टील की अलमारियां हैं, दरवाजा कोई नहीं है बायीं दीवार में खिड़कियां हैं और खिड़कियों के बीच में दीवार से लगी टेबलें हैं ।”
“और ?”
“बस !”
“बस कैसे ? तीसरा गार्ड कहां है ?”
“ओह, वो ! वो सारे कमरे में टहलता फिर रहा है । किसी एक जगह नहीं टिक रहा वो ।”
“वो इंचार्ज होगा ।”
“बालैया ?”
“हां ?”
“हो सकता है । उसकी वर्दी पर दो फूल दिखाई दे रहे हैं ।”
“बाकियों की वर्दी दिखाई दे रही है तुम्हें ?”
“वर्दी दिखाई दे रही है लेकिन फूल हैं या नहीं, यह दिखाई नहीं दे रहा ।”
“सर !” - विमल वासन से सम्बोधित हुआ - “परले कमरे में जो गार्ड मौजूद हैं, उनमें से बालैया कौन है ?”
वासन ने एक बार शीशे की तरफ सिर उठाया और फिर तुरन्त झुका लिया ।
“जो कमरे में चहलकदमी कर रहा है ।” - वासन सिर झुकाये-झुकाये बोला ।
“और बाबू ?”
“जो मैगजीन पढ़ रहा है ।”
“तो फिर सोफे पर बैठा नागेश होगा ?
“हां ।”
“उधर फोन है ?”
“है ।”
“एक या एक से ज्यादा ?”
“एक ।”
“वीरप्पा, तुम्हें उधर फोन दिखाई दे रहा है ?”
“हां ।” - वीरप्पा बोला - “पहली टेबल पर एक फोन पड़ा है ।”
“और कहीं कोई फोन नहीं ?”
“दिखाई तो नहीं दे रहा ।”
“मिस्टर वासन सर, अगर आपने परले कमरे के टेलीफोन पर घन्टी करनी हो तो आप कौन सा नम्बर डायल करेंगे ?”
“टू वन ।”
“बस ! सिर्फ दो ही डिजिट ?”
“वो पी.ए.बी.एक्स. का फोन है । बाहर से कॉल आए तो छः डिजिट डायल करने पड़ते हैं लेकिन अगर मैं यहां से फोन करूं तो सिर्फ दो ।”
“मैं आपका फोन उठाऊं, उस पर टू वन डायल करूं तो परले फोन पर घन्टी बजेगी ?”
“हां ।”
“गुड ! नाओ सर, मिस्टर वासन सर, प्लीज डू मी ए फेवर ।”
“क्या ?”
“अपनी कुर्सी से उठिये और अपने पीछे मौजूद फाइलिंग कैबिनेट तक पहुंचिए । वहां कैबिनेट को खोलिए और यूं जाहिर कीजिए जैसे आप बड़ी शिद्दत से कोई खास कागज तलाश कर रहे हैं ।”
“उससे क-क्या होगा ?”
“जो होगा आपके सामने आ जायेगा । कहना मानिये, प्लीज... प्लीज, सर ।”
वासन ने आज्ञा का पालन किया । वह जाकर फाइलिंग कैबिनेट में झांकने लगा ।
विमल तत्काल उकड़ू हुआ और घुटनों और पंजों के बल चलता हुआ वासन की मेज के पीछे पहुंचा ।
उस घड़ी वासन फाइलिंग कैबिनेट में झांक रहा था और उसकी शीशे की पार्टीशन की तरफ पीठ थी । वीरप्पा अभी भी हाथ में शीशा लिए पार्टीशन के नीचे उकड़ू बैठा था, अब्राहम सावधानी की प्रतिमूर्ति बना हाथ में रिवॉल्वर लिये दरवाजे के पास खड़ा था और विमल पार्टीशन की तरफ झांकने के लिए मेज की ओट में से इंच-इंच करके सिर ऊपर उठा रहा था ।
विमल ने एक सावधान निगाह पार्टीशन के पास के कमरे पर डाली ।
वहां सब कुछ वैसा ही था जैसा वीरप्पा ने बयान किया था । कमरे में उस घड़ी चार क्लर्क और तीन गार्ड मौजूद थे लेकिन किसी की भी तवज्जो वासन के कमरे की तरफ नहीं थी ।
विमल ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया । एक-दो बार भटक कर उसका हाथ फोन पर पड़ा तो उसने उसे उठाकर मेज के नीचे कर लिया । उसने फोन को फर्श पर रखा और उसका रिसीवर उठाकर कान से लगाया ।
डायल टोन आ रही थी ।
उसने टू वन डायल किया ।
उसके कान में रिंग बैक की आवाज पड़ी लेकिन एक तो शीशे की लगभग साउन्डप्रूफ पार्टीशन की वजह से और दूसरे अब बाहर फिर तेज हो गए पॉप म्यूजिक की वजह से वह यह न समझ सका कि परली तरफ फोन की घन्टी बज रही थी या नहीं ।
लेकिन घन्टी बज रही थी क्यों कि तभी घन्टी बजनी बन्द हो गई ।
“एक क्लर्क ने फोन उठाया है” - अपने रियरव्यू मिरर में झांकता हुआ वीरप्पा बोला - “पर तुम क्या कर रहे हो ?”
तभी फोन में से भी आवाज आयी ।
“हल्लो !” - कोई बोला ।
“बाबू है ?” - विमल बोला ।
“है । होल्ड करो । बुलाते हैं ।”
“शुक्रिया ।”
“बाबू आ रहा है ।” - वीरप्पा बोला - “अपनी मैगजीन टेबल पर रख कर आ रहा है । लेकिन यह तुम कर क्या रहे हो ? फोन का क्या चक्कर है ?”
“बालैया उसकी तरफ ध्यान दे रहा है ?”
“नहीं ।”
“कोई और ? नागेश ! कोई और क्लर्क ! कोई भी !”
“नहीं । लेकिन फोन तुम...”
“यानी कि किसी गार्ड का वहां यूं फोन आना कोई अहम वाकया नहीं ?”
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
तभी विमल के इयरपीस में आवाज हुई ।
“हल्लो !” - कोई बोला ।
“बाबू ?”
“हां । कौन बोल रहा है ?”
“एक मिनट होल्ड रखो । तुम्हारा कोई फ्रेंड तुमसे बात बात करना चाहता है ।”
विमल ने रिसीवर टेलीफोन के पहलू में जमीन पर रख दिया ।
“अरे, यह फोन के साथ क्या खिलवाड़ कर रहे हो ?” - वीरप्पा झल्लाकर बोला - “कुछ मुझे भी तो बताओ ।”
“मैं परली तरफ का फोन खराब कर रहा हूं ।” - विमल बोला - “अब वो फोन हैल्ड अप है और तब तक उसकी लाइन खाली नहीं हो सकती जब तक कि मैं यहां से लाइन न काटूं जो कि मैं नहीं काटूंगा ।”
“फायदा ?”
“फायदा यह है कि अब परले फोन से न कोई कॉल की जा सकती है और न उस पर कोई कॉल आ सकती है ।”
“ओह !” - वीरप्पा ने चैन की सांस ली - “बॉस ने तो यह बात नहीं सोची थी ।”
“सोचना चाहिए तो थी । ऐन मौके पर वहां से की गयी कोई कॉल या एकाएक वहां आयी कोई कॉल सारा काम बिगाड़ सकती थी ।”
“ओह !” - वीरप्पा खुश हो गया - “वैल डन । वैल डन, फ्रेंड । तुम वाकई बड़े चोर हो ।”
“बकवास बंद करो ।”
वीरप्पा हड़बड़ाया । अब तक वही सबको बकवास बन्द करने को कहता आया था लेकिन अब उलटा हो रहा था ।
लेकिन फिर भी उसने बुरा न माना ।
“अब आगे बढ़ो ।” - वह बोला ।
“बढ़ता हूं ।” - विमल वासन से सम्बोधित हुआ - “वासन साहब । सर । घूमियेगा नहीं । जो आप कर रहे हैं, करते रहिये लेकिन जो मैं कहने जा रहा हूं, उसे गौर से सुनिये । पहले सुनिये और फिर उस पर अमल कीजिए । ओके ?”
“ओके ।” - वासन बोला।
“मेरे इशारा करने पर आप फाइलिंग कैबिनेट के पास से हटेंगे, दरवाजे पर जायेंगे, उसे खोलेंगे, जाकर परले कमरे का दरवाजा खोलेंगे और बालैया को कहेंगे कि वह एक मिनट के लिये आपके कमरे में आकर आपकी बात सुन कर जाये । ऐसा कहकर आप वापिस लौट पड़ेंगे । आप बालैया से पहले यहां वापिस दाखिल होंगे और दरवाजे को यूं खोल कर रखेंगे कि दरवाजे की ओट में खड़ा मेरा पार्टनर बालैया को दिखाई न दे पाये । आप उससे कोई हल्की-फुल्की बातें करते रहेंगे ताकि उसकी तवज्जो आपकी तरफ बनी रहे ।”
“क्या बातें करता रहूंगा ?”
“कुछ भी । वो आपके लिये कोई अजनबी तो है नहीं । जो वाकिफ हो, उससे बहुत बातें की जा सकती हैं । नीचे स्टेडियम में जो भूकम्पकारी प्रोग्राम चल रहा है, उसी की बाबत कुछ कह सुन लीजियेगा । ओके ?”
वासन ने अनिश्चित भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“गुड ! जब बालैया यहां कमरे में दाखिल हो जाये तो आप उसे बतायेंगे कि उसकी तरफ रिवाल्वरें तनी हुई हैं इसलिये वह कोई गलत हरकत न करे । हम हरगिज, हरगिज नहीं चाहते कि यहां खामख्वाह किसी की जान जाये । यह बात आपने उस शख्स को समझानी है । आप के समझाये वह समझ जायेगा । और विश्वास जानिये, यह आप का उस पर उपकार होगा ।”
वासन खामोश रहा ।
“आप उसे यह समझायेंगे कि हमारे साथ सहयोग करने में ही उसकी भलाई है । फालोड, सर ?”
“यस ।”
“जब बालैया यहां भीतर दाखिल हो जायेगा, आप उसके पीछे दरवाजा बन्द कर चुके होंगे तो जरा एक बार कह कर दिखाइये कि आप क्या कहेंगे ।”
“मैं क्या कहूंगा ?”
“हां ! क्या कहेंगे आप ?”
“मैं कहूंगा, बालैया यहां कुछ लोग मौजूद हैं जिन्होंने तुम्हें रिवाल्वरों से कवर किया हुआ है । क्योंकि मैं नहीं चाहता कि यहां कोई खूनखराबा हो इसलिये मेरी राय है कि तुम इन के साथ कोआपरेट करो ।”
“गुड ! याद रखियेगा, यही कहना है आपने । न सिर्फ कहना है बल्कि अपने कहे को मनवाना भी है ।”
“अच्छा ।”
“नाओ गैट गोईंग ।”
वासन फाइलिंग कैबिनेट के पास से हटा, घूमा और दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
दरवाजे के पास खड़ा अब्राहम एक ओर हट गया और दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो गया ।
वासन की चाल सन्तुलित नहीं थी । उसमें ऐसी लड़खड़ाहट थी जैसे वह नशे में हो ।
“एक बात और याद रखियेगा, वासन साहब ।” - विमल चेतावनीभरे स्वर में बोला ।
वासन दरवाजे के पास ठिठका ।
“गलियारे में जाकर अगर आपने भाग खड़े होने की कोशिश की तो आप पीछे से शूट कर दिये जायेंगे । अगर आपने बालैया को कोई चेतावनी देने की कोशिश की तो आपके साथ-साथ परले कमरे में मौजूद सारे आदमी मारे जायेंगे । हम अपनी नीयत पहले ही जाहिर कर चुके हैं । हम यहां कोई खूनखराबा नहीं चाहते । आप चाहते हों तो बात दूसरी है ।”
“मैं भी नहीं चाहता ।” - वह कम्पित स्वर में बोला ।
“गुड । समझदार आदमी हैं आप । जाइये ।”
वह दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया ।
वीरप्पा अपने रियरव्यू मिरर के माध्यम से और विमल मेज की ओट में से परले कमरे में झांकने लगे ।
परले कमरे का एक दरवाजा बाहर से खोला गया और उसकी चौखट पर वासन प्रकट हुआ । उसने बालैया को हाथ से इशारा किया और जुबान से भी कुछ कहा जिसे कि वे लोग सुन न सके ।
बाबू तब तक भी कान से टेलीफोन लगाए खड़ा था और रह-रहकर ‘हल्लो-हल्लो’ कह रहा था और पलंजर ठकठका रहा था ।
वासन वापिस लौट पड़ा ।
एक क्षण बाद बालैया भी कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ा ।
विमल ने वीरप्पा को इशारा किया ।
वीरप्पा उकड़ू चलता हुआ अब्राहम के पास पहुंचा और उसके पहलू में जा खड़ा हुआ ।
विमल पेट के बल मेज के पीछे फर्श पर लेट गया और रिवॉल्वर हाथ में थामे सांस रोके प्रतीक्षा करने लगा ।
कमरे में पहले वासन दाखिल हुआ । मेज के पीछे की अपनी पोजीशन से विमल को घुटनों तक उसकी टांगें ही दिखाई दीं लेकिन फिर भी उसकी पोशाक की वजह से उसे पहचानना मुश्किल न था ।
“अभी और कितना वक्त लगेगा नोटों को सम्भालने में ?” - वासन ने पूछा
“कोई आधा घण्टा और बता रहे थे क्लर्क लोग ।” - उसके पीछे से एक आवाज आयी जो कि निश्चय ही बालैया की थी - “नोटों में दिक्कत यह है कि वो हर कीमत के हैं, यहां तक कि एक-एक और दो-दो के भी । इसीलिये उन्हें सम्भालने में इतना वक्त लग रहा है । हर कोई सौ का पत्ता लाया होता तो काम आसान था ।”
वासन कमरे के भीतर आकर रुक गया था जिसकी वज‍ह से बालैया भी चौखट पर ही ठिठक गया था । उसे आगे बढता न पाकर वासन ने हाथ बढ़ाकर उसके पीछे दरवाजे दरवाजा बन्द करने का उपक्रम किया । तब बालैया को कमरे में कदम रखना पड़ा ।
“क्या सेवा है मेरे लिये ?” - बालैया तनिक उखड़े स्वर में बोला ।
वासन ने उत्तर न दिया । उत्कंठा से उसका दम घुटा जा रहा था और साफ मालूम हो रहा था कि वह अपनी जुबान चलाने में दिक्कत महसूस कर रहा था । उसने दरवाजा बन्द किया, फिर जब वह वापिस घूमा तो लड़खड़ा गया और उसे बालैया के कन्धे का सहारा लेना पड़ा ।
“बालैया” - वासन घुटे स्वर में बोला - “यहां रिवाल्वरों वाले नकाबपोश मौजूद हैं । भगवान के लिए कुछ न करना ।”
बालैया बुरी तरह चौंका । उसका हाथ फौरन अपनी बैल्ट के साथ लगे होलस्टर की तरफ बढ़ा लेकिन वासन के उसके कन्धे पर ढेर हुए होने की वजह से हाथ होलस्टर में रखी रिवॉल्वर तक न पहुंच सका । उसने वासन को परे झटकने की कोशिश की तो वासन और ज्यादा उससे लिपट गया और बोला - “बालैया ! प्लीज ! डोंट !”
विमल फर्श पर से सीधा हुआ और मेज की ओट में घुटनों के बल बैठ गया । उसने अपनी रिवॉल्वर बालैया की तरफ तान दी ।
बालैया के नेत्र फट पड़े ।
“एक गनमैन तुम्हारे पीछे भी है, मिस्टर बालैया ।” - विमल मीठे स्वर में बोला ।
बालैया ने गरदन घुमा कर अपने पीछे झांका ।
अब्राहम के चट्टान की तरह स्थिर हाथ में थमी रिवॉल्वर की नाल को उसने एक खतरनाक आंख की तरह अपनी तरफ झांकते पाया ।
“यह- क- क- क्या है ?” - बालैया हकलाया ।
विमल मुस्कराया ।
“वासन साहब ! सर, आप अलग हो जाइये ।”
वासन ने तत्काल आदेश का पालन किया । मन-मन के कदम रखते हुए वह बालैया से परे हटा ।
“बालैया” - वह प्रलाप-सा करता हुआ कह रहा था - “डोंट डू ऐनीथिंग । यहां खूनखराबा नहीं होना चाहिए । ये लोग पैसे की फिराक में हैं, उसे लुट जाने दो वर्ना हम सब लोग मारे जाएंगे । बालैया, आर यू लिसनिंग टू मी ? बालैया, फार गॉड सेक डोंट-डोंट...”
बालैया खामोश था । उसकी आंखों की पुतलियां मशीन की तरह चारों तरफ फिर रही थीं, उसका हाथ रिवॉल्वर की मूठ से केवल दो इंच परे ठिठका हुआ था और किसी भी क्षण रिवॉल्वर निकाल कर फायरिंग शुरू कर देने को तत्पर मालूम होता था ।
वीरप्पा ने फिर अपना शीशा इस्तेमाल किया और परले कमरे में झांका ।
“एकाध निगाह इधर उठने लगी हैं ।” - वह बोला - “जल्दी ही लोग सोचने लगेंगे कि बालैया दूसरे कमरे में यूं खड़ा क्या कर रहा था !”
परले कमरे में से बालैया और वासन को बाखूबी देखा जा सकता था ।
“मिस्टर बालैया” - विमल बोला - “एक कदम पीछे हटिए, नीचे झुकिए और फिर औंधे मुंह फर्श पर लेट जाइए ।”
बालैया ने आदेश के पालन का कोई उपक्रम न किया ।
“म्यूजिक के शोर में गोली चलने की आवाज नहीं सुनाई देने वाली ।” - विमल चेतावनीभरे स्वर में बोला - “मैं आपके दोनों घुटने फोड़ दूंगा फिर आप अपने आप ही औंधे मुंह फर्श पर पड़े होंगे ।”
“तुम-तुम ऐसा...”
“मेरे पास बहस के लिए वक्त नहीं है । लेटो, नहीं तो गोली । फैसला फौरन !”
“बालैया” - स्वयं को सन्तुलित करने के लिए अपनी मेज के एक किनारे का सहारा लेता हुआ वासन आतंकित स्वर में बोला - “कहना मानो वर्ना खामख्वाह जान से हाथ धो बैठोगे, हम सब खामख्वाह जान से हाथ धो बैठेंगे ।”
“तुम बच नहीं सकते ।” - बालैया कहरभरे स्वर में बोला ।
“देखेंगे ।” - विमल बोला ।
“तुम यहां से बाहर निकलने की कोशिश में ही पकड़े जाओगे ।”
“वुई विल सी । नाओ...”
बालैया एक कदम पीछे हटा, फिर वह धीरे से नीचे झुका और छाती के बल फर्श पर लेट गया ।
वीरप्पा फर्श पर रेंगता हुआ उसके करीब पहुंचा और उसने उसकी रिवॉल्वर अपने अधिकार में कर ली ।
विमल ने रिसीवर फिर उठा लिया और उसे कान से लगाया ।
“हल्लो ।” - वह धीरे से बोला ।
“अरे, कौन हो ?” - दूसरी ओर से बाबू का झुंझलाया हुआ स्वर सुनाई दिया - “बोलते क्यों नहीं हो ? मैं इतनी देर से होल्ड किए हुए हूं । किसने बात करनी है मेरे से ?”
“बाबू” - विमल सन्तुलित स्वर में बोला - “मैं जो कह रहा हूं, उसे गौर से सुनो । तुम्हारा बॉस बालैया इस वक्त यहां औंधे मुंह फर्श पर लेटा पड़ा है और तीन रिवाल्वरें, जिनमें से एक खुद उसकी अपनी है, उसकी तरफ तनी हुई हैं । अगर तुमने कोई उल्टी-सीधी हरकत की तो यहां मौजूद गनमैन पहले बालैया को गोलियों से भून डालेंगे और फिर बीच के शीशे के सामने प्रकट होकर शीशे में से ही तुम्हें शूट कर देंगे ।”
“मुझे ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा ।” - बाबू सशंक स्वर में बोला ।
“तुम्हें वासन साहब दिखाई दे रहे हैं । तुम उनकी तरफ देखो, वे अभी गरदन हिलाकर इस बात की हामी भरेंगे कि जो कुछ मैं कह रहा हूं, सौ फीसदी सच कह रहा हूं । वासन साहब, जरा सहमति में गरदन हिलाइए ।”
फौरन बड़े मशीनी अन्दाज से वासन की गरदन ऊपर-नीचे हिली ।
“देखा ?” - विमल बोला ।
“हां ।” - बाबू बोला ।
“समझ में आया कि तुम्हारे बॉस बालैया की, वासन साहब की, जान खतरे में है ?”
“हां ।”
“और तुम लोगों की भी ।”
वह खामोश रहा ।
“अब तुम वासन साहब की तरफ मुंह कर लो और अपना खाली हाथ अपने सिर के ऊपर रख लो ।”
“रख लिया है ।” - वीरप्पा ने अपनी शीशे में से झांकते हुए बताया ।
तब विमल उठ कर सीधा हुआ । वासन उसके एकदम सामने था ।
“आप बाएं हो जाइए ।” - वह बोला ।
मेज का सहारा छोड़े बिना वासन उसके सामने से बाएं सरक गया ।
उसके सामने से हटते ही विमल को शीशे के पार का नजारा साफ दिखाई देने लगा ।
तब तक परले कमरे में मौजूद लोगों को अहसास हो चुका था कि वहां कुछ असाधारण घटित हो रहा था । सबकी सशंक निगाहें अपने आप ही शीशे की तरफ उठ गई थीं । सोफे पर ऊंघता बैठा दूसरा गार्ड नागेश भी अब सचेत हो गया था । फिर एकाएक नागेश अपने स्थान से उठा और अपने जोड़ीदार बाबू की तरफ बढ़ा ।
चारों क्लर्क बुत बने अपनी सीटों पर बैठे थे लेकिन अब उनमें से कोई नोट गिनने का अपना काम नहीं कर रहा था । सब अपलक बाबू को देख रहे थे ।
फिर एक साथ सबकी निगाह शीशे के पार एकाएक उठ खड़े हुए विमल पर पड़ी ।
“बाबू !” - विमल बोला, उसके स्वर में कोड़े जैसी फटकार थी - “अपने जोड़ीदार से कहो कि वह जहां है, वहीं रुक जाए ।”
“नागेश !” - उसे इयर पीस में से बाबू की आवाज सुनाई दी - “जहां है, वहीं रुक जा । हमारी तरफ रिवाल्वरें तनी हुई हैं ।”
“उसे कहो कि वह अपने दोनों हाथ अपने सिर पर रखे ।”
“वो कह रहे हैं कि अपने दोनों हाथ अपने सिर पर रख ले ।”
“उसे कहो कि वह बायें घूमे ।”
“वो बायें घूमने को कह रहे हैं ।”
“अब उसे कहो कि वह यूं पीछे हटे कि उसकी पीठ दरवाजे के साथ जा लगे । करीब वाले दरवाजे के साथ ।”
“वो कह रहे हैं कि पीछे हटते हुए अपनी पीठ दरवाजे के साथ लगा ले ।”
“चारों क्लर्कों को कहो कि वे जाकर नागेश द्वारा खाली किए सोफे पर बैठ जायें ।”
“आप सब लोग जाकर सोफे पर बैठ जाइए ।”
चारों क्लर्क सोफे की तरफ बढ़े ।
एकाएक चारों में से एक युवक क्लर्क परले दरवाजे की तरफ भागा ।
वीरप्पा ने वासन के कमरे वाला दरवाजा खोला और बाहर भागा ।
युवा क्लर्क परला दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया ।
एकाएक जैसे सबको सांप सूंघ गया ।
म्यूजिक की आवाज अब वहां नगाड़े की चोट की तरह गूंजती मालूम होने लगी ।
फिर परला दरवाजा दोबारा खुला और युवा क्लर्क लड़खड़ाता-सा यूं भीतर आया जैसे उसे पीछे से किसी ने धक्का दिया हो । उसके पीछे-पीछे ही वीरप्पा भीतर दाखिल हुआ । युवा क्लर्क ने एक सहमी-सी निगाह वीरप्पा पर डाली और फिर तत्काल सोफे की तरफ बढ़ा । वह सोफे पर ढेर हुआ तो तब तक सोफे के करीब जा खड़े तीनों क्लर्क भी हड़बड़ा कर उस पर बैठ गए ।
वीरप्पा ने परला दरवाजा भीतर से बन्द किया और वापिस वासन वाले कमरे में आ गया ।
वातावरण तब तक ब्लेड की धार जैसा पैना हो उठा था और हर कोई किसी अनहोनी से आशंकित था, आतंकित था ।
वातावरण में कर्णभेदी पॉप म्यूजिक की स्वर लहरियां बदस्तूर गूंज रही थीं ।
फिर विमल ने अब्राहम को इशारा किया ।
उसने बीच का दरवाजा खोला और परले कमरे में कदम रखा । कमरे की खिड़‍कियों वाली साइड में चलता हुआ वह परले सिरे पर पहुंच गया ।
“आप भी” - विमल वासन से बोला - “दूसरे कमरे में जाइए और नागेश के करीब दीवार से लग कर खड़े हो जाइए ।”
वासन भारी कदमों से चलता हुआ परले कमरे में निर्देशित स्थान पर पहुंच गया ।
“अब आप” - विमल फर्श पर औंधे पड़े बालैया से बोला - “उठ कर खड़े हो जाइए ।”
बालैया उठा । उसका चेहरा गम्भीर था और आंखों में अपमान और बेबसी की पीड़ा थी ।
“आप भी दूसरे कमरे में पहुंचिए” - विमल बोला - “और जाकर नागेश के हमारी ओर वाले पहलू में दीवार से लग कर खड़े हो जाइए ।”
बालैया परले कमरे की तरफ बढ़ा तो वीरप्पा उसके पीछे-पीछे चलने लगा । परले कमरे में पहुंच कर उसने बड़ी सफाई से नागेश के होलस्टर में से उसकी रिवॉल्वर निकाल कर अपने अधिकार में ले ली ।
“फोन रख दो ।” - विमल माउथपीस में बोला । साथ ही उसने रिसीवर मेज पर रख दिया ।
बाबू ने अपना रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
उसके ऐसा करने पर भी लाइन हैल्ड अप ही रहनी थी, वह तक तक नहीं कट सकती थी जब तक कि विमल वासन वाला रिसीवर वापिस क्रेडल पर न रखता जो कि उसने नहीं रखा था ।
फिर विमल और वीरप्पा भी परले कमरे में पहुंच गए ।
“बाबू !” - विमल बोला - “तुम परले दरवाजे के पास पहुंचो और उसके साथ पीठ लगा कर खड़े हो जाओ ।”
बाबू ने आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“चलो ! जल्दी !” - विमल उसकी तरफ अपनी रिवॉल्वर लहराता हुआ बोला ।
बाबू दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
“उसकी रिवॉल्वर काबू में करो ।” - विमल वीरप्पा से बोला ।
वीरप्पा सहमति से सिर हिलाता हुआ आगे बढ़ा ।
बाबू तब तक दरवाजे के साथ पीठ लगा कर खड़ा हो चुका था ।
वीरप्पा उसके करीब पहुंचा तो बाबू ने एकाएक अपने हाथ नीचे गिरा दिए ।
“खबरदार !” - वीरप्पा आतंकित स्वर में चिल्लाया ।
बाबू के हाथ जैसे रास्ते में ही फ्रीज हो गए ।
“घूम !” - वीरप्पा बोला ।
“मैं पीठ में गोली खाने वाला नहीं ।” - बाबू कहरभरे स्वर में बोला - “अम्माले ओतवने ! गोली मारनी है तो छाती में मार !”
“अगर तू नहीं घूमा तो मैं यही करूंगा ।”
“तो कर न ! करता क्यों नहीं ?”
“वीरप्पा !” - विमल चेतावनीभरे स्वर में बोला ।
लेकिन वीरप्पा ने उसकी चेतावनी की तरफ ध्यान न दिया । उसने अपने दायें हाथ में थमी रिवॉल्वर बायें हाथ में स्थानान्तरित की और अपने दायें हाथ के घूंसे का एक वज्र प्रहार बाबू के पेट में किया । बाबू के मुंह से यूं सिसकारी निकली जैसे गैसभरे गुब्बारे का मुंह खुल गया हो । उसका शरीर दोहरा हुआ तो वीरप्पा ने एक घूंसा उसकी गरदन पर रसीद किया । बाबू के घुटने मुड़ गए और वह दरवाजे के साथ-साथ नीचे सरकता हुआ बैठी हुई स्थिति में पहुंच गया । वीरप्पा ने अपने पांव की एक ठोकर उसकी पसलियों में जमाई । बाबू का शरीर गेंद की तरह एक तरफ को उछला । उस क्षण वीरप्पा ने नीचे झुककर उसकी रिवॉल्वर होलस्टर में से खींच ली ।
“मैं छोडूंगा नहीं तुम लोगों को ।” - बालैया दांत पीसते हुए बोला - “तुम्हारी तलाश में मेरी सारी उम्र क्यों न लग जाये ।”
“अगर बची तो ।” - वीरप्पा उसकी तरफ देखता हुआ बोला - “तो सारी उम्र ही लगेगी, हरामजादे । अपनी उम्र के सिरे पर जल्दी पहुंचना चाहता है तो अपने इस गार्ड की तरह हुक्मउदूली करके दिखा ।”
बालैया खामोश रहा ।
“अब बोल ! बोलता क्यों नहीं ? कुछ कर ! करता क्यों नहीं ?”
बालैया ने अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरी ।
उस घड़ी जैसे वीरप्पा ने सारे ऑपरेशन की कमान फिर अपने हाथों में ले ली ।
वह सोफे के करीब पहुंचा ।
जो युवा क्लर्क कमरे से बाहर भागा था, उसने उसे गिरहबान पकड़ कर सोफे से उठा कर खड़ा कर दिया ।
क्लर्क थर-थर कांपता हुआ उठा ।
“क्या नाम है तेरा ?” - वीरप्पा बड़े हिंसक स्वर में बोला ।
“था -थामस । थामस ।” - युवक हकलाया ।
“तू एक बार हुक्मउदूली कर चुका है, उसकी तुझे कोई सजा नहीं मिली । दोबारा हुक्मउदूली करेगा ?”
थामस ने जल्दी से इन्कार में सिर हिलाया ।
“करेगा तो जानता है क्या होगा ?”
“जा-जानता हूं । जानता हूं” - वह बोला - “तुम जो कहोगे, मैं करूंगा ।”
“मेरे पर अहसान के तौर पर नहीं, हरामजादे” - वीरप्पा उसकी नाक पर एक घूंसा जमाता हुआ बोला - “अपनी जान की सलामती के लिए करेगा ।”
घूंसे की चोट से थामस का सिर गेंद की तरह उछला । तुरन्त उसके नथुने में से खून की एक पतली-सी लकीर फूट निकली । उसका एक हाथ स्वयंमेव अपनी नाम पर जाकर पड़ा । हाथ वहां से अलग हुआ तो उसने उंगलियां खून से सनी पायीं । वह आतंकित भाव से कभी खून से सनी उंगलियों को तो कभी अपने आक्रमणकारी के हिंसक चेहरे को देखने लगा ।
तभी उसके नाम से खून की एक बूंद उसकी उजली कमीज पर टपकी ।
खून के नजारे ने हर किसी पर बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला ।
अपने खाली हाथ से थामस ने जेब से रूमाल निकाला ।
वीरप्पा ने रूमाल उसके हाथ से झपट लिया और उसे एक ओर फेंक दिया ।
“खून नहीं पोंछना ।” - वीरप्पा गुर्राया ।
“ल- लेकिन - लेकिन...”
“खून नहीं पोंछना । समझा ?”
थामस ने बड़े भयभीत भाव से फौरन सहमति में सिर हिलाया ।
“तू मिसाल है अपने संगी-साथियों के लिये । और जब तक हम यहां हैं, मिसाल ही बनकर रहेगा ।”
थामस खामोश रहा ।
वीरप्पा ने अब्राहम को संकेत किया ।
अब्राहम ने उसका संकेत समझकर सहमति में सिर हिलाया ।
अब उस पर सबको कवर करके रखने की जिम्मेदारी थी ।
वीरप्पा पहले कमरे में पहुंचा जहां कि उसका एयरबैग पड़ा था । एयरबैग में से उसने गाव तकिये के गिलाफ जैसे तीन थैले निकाले और वापिस बड़े कमरे में लौटा ।
फिर विमल और वीरप्पा ने मिलकर नोटों को उन थैलों में ठूंसना आरम्भ कर दिया । सारे नोट उन तीन थैलों में समा गये । उन्होंने उनकी डोरियां खींच कर उनके मुंह बन्द किये तो वे गाव तकिए ही लगने लगे ।
तीनों थैलों को उन्होंने वासन वाले कमरे के दरवाजे के करीब सरका दिया ।
वीरप्पा ने घड़ी देखी और फिर बड़े सन्तुष्टिपूर्ण भाव से सिर हिलाया ।
सब कुछ कार्यक्रम के मुताबिक हो रहा था ।
फिर एयरबैग में से उसने नायलोन की पतली लम्बी डोरी निकाली । उस डोरी की सहायता से उसने चारों क्लर्कों की, दोनों गार्डों की और वासन की मुश्कें कस दीं ।
एयरबैग में से जो आखिरी आइटम उसने निकाली वे तीन सफेद वर्दियां थीं । वे वर्दियां उस प्रकार की थीं जैसी हस्पताल के आर्डरली पहनते थे । उसने दो वर्दियां विमल और अब्राहम को थमा दीं और एक स्वयं ले ली ।
तीनों ने अपने पहने हुए कपड़ों पर ही वे वर्दियां पहन लीं ।
वीरप्पा बालैया के पास पहुंचा ।
“बालैया” - वह कठोर स्वर में बोला - “अब तूने एक काम करना है जिसको ठीक से अंजाम देने पर ही यहां मौजूद बाकी लोगों की जिन्दगी का दारोमदार है ।”
“जहन्नुम में जाओ ।” - बालैया दांत पीसता हुआ बोला ।
“वो तो तू जायेगा और तेरे पीछे-पीछे तेरे ये दो गार्ड और चारों क्लर्क भी जायेंगे और ये अफसर साहब भी जायेंगे ।”
पहले से भयभीत सब और भयभीत दिखाई देने लगे ।
“अगर तू मेरा काम नहीं करेगा” - वीरप्पा बोला - “तो मैं तुझे शूट कर दूंगा और वही काम बाबू को करने को कहूंगा । बाबू नहीं करेगा तो मैं उसे भी शूट कर दूंगा और वही काम नागेश को करने को कहूंगा । नागेश नहीं करेगा तो... यह सिलसिला यहां मौजूद आखिरी आदमी की मौत तक चलेगा ।”
बालैया ने व्याकुल भाव से सब तरफ निगाह दौड़ाई ।
कहीं कोई मदद का जरिया नहीं था ।
“तो मैं शुरू करूं अपना प्रोग्राम ?” - वीरप्पा उसकी कनपटी से रिवॉल्वर सटाता हुआ बोला ।
“क - काम” - बालैया हकलाया - “क-काम क्या है ?”
“काम मामूली है । तूने एडमिनिस्ट्रेशन ब्लाक के गेट पर फोन करके वहां तैनात गार्ड को बताना है कि वासन साहब को एकाएक दिल का दौरा पड़ गया है जिसकी वजह से तुमने एक एम्बूलेंस मंगाई है । एम्बूलेंस गेट पर पहुंचने वाली है । तूने गार्ड को निर्देश देना है कि उस एम्बूलेंस के पहुंचते ही फौरन गेट खोल दिया जाये और उसे भीतर दाखिल हो लेने दिया जाये । ओके ?”
बालैया ने सहमति में सिर हिलाया । हामी भरते उसका कलेजा फटा जा रहा था लेकिन वह मजबूर था ।
“छोडूंगा नहीं ।” - वह बोला ।
“बाद में” - वीरप्पा बोला - “बाद में दिखाना अपनी सूरमाई । फिलहाल फोन कर ।”
बालैया फोन की तरफ बढ़ा ।
“फोन” - विमल धीरे से बोला - “यहां से तब तक नहीं होगा, जब तक उधर का रिसीवर नहीं रखा जायेगा ।”
“ओह !” - वीरप्पा बोला ।
वह लपक कर परले कमरे में गया और वासन के फोन का रिसीवर उसके क्रेडल पर रख आया ।
उसके बालैया को संकेत किया ।
बालैया ने क्रेडल पर से रिसीवर उठाया ।
“और फोन तूने गेट पर ही करना है” - वीरप्पा चेतावनी-भरे स्वर में बोला - “कहीं और नहीं ।”
“और कहां ?” - बालैया बोला ।
“तुझे मालूम है और कहां ! यूं भोला बन कर मत दिखा ।” - वीरप्पा बोला - “और कहना भी वही है जो मैंने बताया । एक लफ्ज भी फालतू न निकले मुंह से ।”
बालैया की गरदन बड़ी कठिनाई से सहमति में हिली ।
“फोन कर ।”
उसने फोन किया ।
सम्पर्क स्थापित होते ही उसने माउथपीस में वो सब कुछ कह दिया जो उसे वीरप्पा ने समझाया था । फिर वीरप्पा ने खुद उसके हाथ से रिसीवर ले लिया और उसे क्रेडल पर पटक दिया ।
एम्बूलेंस की प्रतीक्षा आरम्भ हुई ।
वीरप्पा बार-बार घड़ी देखने लगा ।
अपनी मौजूदा पोजीशन से गेट से भीतर दाखिल होती या एडमिनिस्ट्रेशन ब्लाक के सामने पहुंची एम्बूलेंस उन्हें नहीं दिखाई दे सकती थी । जयशंकर द्वारा ड्राइव कर के वहां लाई जाने वाली एम्बूलेंस की खबर उन्हें बाहर गार्ड की ड्यूटी पर मौजूद सदाशिवराव ने देनी थी जो सीढ़ियों तक जाकर नीचे झांक सकता था ।
बाहर संगीत का शोर उस घड़ी अपने पूरे जलाल पर था । एकाएक स्तब्ध वातावरण में टेलीफोन की घण्टी बज उठी ।
सब बुरी तरह से चौंके ।
वीरप्पा ने प्रश्नसूचक नेत्रों से विमल को देखा ।
“रिसीवर आफ रखना था ।” - विमल चिन्तित भाव से बोला - “तब घण्टी न बजती ।”
“अब भी क्या है ?” - वीरप्पा बोला - “बजने दो साली को ।”
“नहीं । यह नादानी होगी ।”
“क्यों ?”
“क्या पता गेट से ही फोन हो । एम्बूलेंस की बाबत ।”
“ओह !”
वीरप्पा ने रिसीवर उठाया ।
“हल्लो” - वह सावधान स्वर में बोला - “कौन ?”
“दामोदरन ।” - आवाज आयी - “बालैया साहब को फोन दो ।”
“होल्ड करो ।”
वीरप्पा ने रिसीवर के माउथपीस पर हाथ रखा और बालैया से बोला - “दामोदरन कौन है ?”
बालैया परे देखने लगा ।
वीरप्पा ने जोर से रिवॉल्वर की नाल उसकी पसलियों में चुभोई और कहरभरे स्वर में बोला - “दामोदरन कौन है ? जल्दी से जवाब दे, हरामजादे ।”
“ग-गेट का चौकीदार ।” - बालैया बोला ।
“क्या चाहता है ?”
“मुझे क्या पता ?”
“ले, बात कर” - वीरप्पा रिसीवर जबरन उसके हाथ में धकेलता हुआ बोला - “लेकिन याद रखना । कोई फालतू, कोई गलत बात मुंह से निकली तो भेजा खोपड़ी से निकल कर सारे कमरे में बिखरा पड़ा होगा ।”
“हल्लो !” - बालैया माउथपीस में बोला - “क्या है, दामोदरन ?”
जवाब सुनने के लिये वीरप्पा ने फोन उसके हाथ से छीन लिया ।
“एम्बूलेंस गेट पर आ गयी है, साहब ।” - वीरप्पा को सुनाई दिया - “वह गेट के भीतर ले ली गयी है ।”
“उसे कहो” - वीरप्पा रिसीवर खुद बालैया के कान से लगाता हुआ बोला - “एम्बूलेंस को यहां आने दे ।”
“एम्बूलेंस को” - बालैया बोला - “यहां एडमिनिस्ट्रेशन ब्लाक के दरवाजे पर आने दो ।”
वीरप्पा ने फिर रिसीवर अपने कान से लगा लिया ।
“ठीक है, साहब ।” - आवाज आयी ।
फिर दूसरी ओर से रिसीवर रख दिया गया ।
वीरप्पा की जान में जान आयी ।
इस बार उसने अपने हाथ में थमा रिसीवर क्रेडल से अलग रखा ।
दो मिनट बाद एक दरवाजे पर एक पूर्वनिर्धारित कोड के मुताबिक दस्तक पड़ी जो कि यह सिद्ध करती थी सदाशिवराव आया था
वीरप्पा ने सावधानी से दरवाजा खोला ।
सदाशिवराव ही आया था ।
“एम्बूलेंस आ गई ।” - वह बोला ।
वीरप्पा ने विमल को संकेत किया ।
दोनों बाहर गलियारे में निकल आए । वहां उन्होंने अपने चेहरों पर से नकाबें उतार लीं और सीढ़ियों की तरफ लपके ।
पीछे अब्राहम बालैया के सिर पर आ खड़ा हुआ ।
सदाशिवराव दरवाजे पर टिक गया ।
नीचे एम्बूलेंस दरवाजे के सामने तिरछी खड़ी थी । जयशंकर बाहर निकल आया हुआ था और उसका पिछला दरवाजा खोल रहा था ।
उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से वीरप्पा ने अपने दायें हाथ का एक अंगूठा ऊपर उठाया ।
“शाबाश !” - जयशंकर खुशी से झूमता हुआ बोला ।
वीरप्पा ने एम्बूलेंस के पृष्ठभाग से एक स्ट्रेचर खींच कर बाहर निकाला । उसने विमल को संकेत किया । दोनों ने दोनों तरफ से स्ट्रेचर सम्भाल लिया और वापिस इमारत में दाखिल हो गए ।
जयशंकर वापिस एम्बूलेंस की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा ।
स्ट्रेचर लिए विमल और विरप्पा ऊपर पहुंचे ।
उन्होंने दरवाजे पर पूर्वनिर्धारित ढंग से दस्तक दी ।
अब्राहम ने अपने हाथ में थमी रिवॉल्वर का एक भरपूर प्रहार बालैया की खोपड़ी पर किया ।
बालैया फर्श पर ढेर हो गया । उसकी आंखें उलट गयीं ।
बन्धे पड़े लोग विस्फारित नेत्रों से सब कुछ देख रहे थे ।
अब्राहम ने वासन के कमरे का दरवाजा भीतर से खोला ।
स्ट्रेचर उठाये वीरप्पा और विमल भीतर दाखिल हुए ।
उन्होंने नोटों से भरे तीनों थैले स्ट्रेचर पर सजाये और उन्हें ऊपर से एक सफेद चादर से ढंक दिया ।
फिर वीरप्पा ने अब्राहम को संकेत किया ।
अब्राहम ने बड़े कमरे की तरफ पीठ करके अपने चेहरे पर से नकाब उतार दिया और स्ट्रेचर का एक सिरा थामा ।
दूसरा सिरा विमल ने थामा ।
दोनों स्ट्रेचर उठाये बाहर निकले ।
स्ट्रेचर की एक तरफ वर्दी एवं कारबाइनधारी सदाशिवराव चलने लगा और दूसरी तरफ अपना रिवॉल्वर वाला हाथ अपने सफेद कोट की जेब में छुपाये वीरप्पा चलने लगा ।
दोनों सीढ़ियों की तरफ लपके ।
आधे रास्ते में उन्हें ऊपर आता एक व्यक्ति दिखाई दिया ।
वे सकपकाये लेकिन उनकी रफ्तार में कोई अन्तर न आया ।
“क्या हुआ, भई ?” - वह व्यक्ति बोला ।
“वासन साहब को दिल का दौरा पड़ गया है ।” - वीरप्पा जल्दी से बोला - “आप रास्ते से हट जाइए ।”
“ओह !” - वह व्यक्ति फौरन हड़बड़ाकर रेलिंग के साथ लग गया ।
वे निर्विघ्न ग्राउंड फ्लोर पर पहुंच गए ।
वीरप्पा और विमल स्ट्रेचर एम्बूलेंस के खुले पृष्ठभाग की तरफ बढ़े ।
तभी एकाएक वहां तीखी रोशनी कौंधी ।
सबकी निगाहें स्वयंमेव रोशनी के साधन की तरफ उठ गई । तेज रफ्तार से चलती एक फियेट कार वहां पहुंची और एम्बूलेंस से थोड़ा परे आकर रुकी । रोशनी उसी कार की हैडलाइट्स की थी ।
विमल ने स्ट्रेचर का अपनी ओर का सिरा एम्बूलेंस के फर्श से टिकाया और परे हट गया । वीरप्पा ने तुरन्त स्ट्रेचर को भीतर धकेल दिया और उसका पिछला दरवाजा बन्द कर दिया ।
कार में से एक अधेड़ व्यक्ति बाहर निकला और बड़े अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “यह क्या हो रहा है ?”
एक क्षण के लिए तो जैसे सबको सांप सूंघ गया । आगन्तुक के व्यक्तित्व का कुछ ऐसा रोब उन पर पड़ा कि किसी को कोई जवाब नहीं सूझा ।
“स्ट्रेचर पर कौन है ?” - आगन्तुक ने नया सवाल किया ।
“वा... वासन साहब ।” - वीरप्पा के मुंह से निकला ।
“क्यों ? क्या हुआ उन्हें ?”
“हार्ट अटैक !”
“ओह ! कब ?”
“अभी ?”
“तुम वासन को कहां ले जा रहे हो ?”
“हस्पताल में ।”
“कौन से हस्पताल में ?”
“सरकारी हस्पताल में ।”
“अरे, कौन से सरकारी हस्पताल में ?”
वीरप्पा के मुंह से बोल न फूटा ।
“अरे, तुम कौन से हस्पताल के आर्डरली हो ? अपने हस्पताल का नाम नहीं जानते हो ?”
“सेंट जार्ज हस्पताल ।” - वीरप्पा के मुंह से निकला ।
“तुम्हारी एम्बूलेंस पर हस्पताल का नाम क्यों नहीं लिखा ?”
“जी, वो.. वो.. आप कौन हैं ?”
“मेरा नाम श्रीपत है । मैं यहां का चीफ एडमिनिस्ट्रेटर हूं ।”
वीरप्पा के छक्के छूट गये ।
श्रीपत दो कदम आगे बढ़ा और ड्राइविंग सीट पर बैठे जयशंकर के करीब पहुंचा ।
वीरप्पा का हाथ धीरे से अपनी रिवॉल्वर की मूठ पर सरक गया ।
“ए, क्या नाम है तुम्हारा ?” - श्रीपत अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
“जयशंकर ।” - जयशंकर ने उत्तर दिया ।
“तुम नीचे उतरो जरा ।”
“लेकिन साहब, मरीज...”
“सुना नहीं ?”
जयशंकर खामोश रहा ।
“दामोदरन !” - एकाएक श्रीपत उच्च स्वर में बोला - “इधर आओ ।”
उस घड़ी वीरप्पा को एक ही एक्शन सूझा ।
उसने श्रीपत को शूट कर दिया ।
एम्बूलेंस को गुजर जाने देने की खातिर दामोदरन नामक गार्ड गेट खोले खड़ा था । श्रीपत की आवाज सुनकर वह गेट बन्द करने का उपक्रम करने लगा ।
तभी जयशंकर ने एम्बूलेंस स्टार्ट की और उसे पूरी रफ्तार से गेट की तरफ दौड़ा दिया ।
पीछे सब लोगों को एकबारगी जैसे सांप सूंघ गया ।
जयशंकर उन्हें मंझधार में छोड़कर खुद माल समेत भागा जा रहा था ।
म्यूजिक के शोर में गोली की आवाज तो न गूंजी लेकिन गेट पर बने शीशे के केबिन में मौजूद एक दूसरे गार्ड ने श्रीपत को धड़ाम से फर्श पर गिरते देखा ।
वह अपनी कारबाइन सम्भाले केबिन से बाहर को लपका ।
तभी एम्बूलेंस भड़ाक से बन्द होते फाटक के एक पल्ले से टकराई । गेट का फाटक उसे बन्द करने का उपक्रम करते दामोदरन के हाथ से छूट गया । वह खुद एम्बूलेंस की चपेट में आने से बाल-बाल बचा ।
कारबाइनधारी गार्ड ने एम्बूलेंस पर गोलियां बरसानी आरम्भ कर दीं ।
सदाशिवराव ने अपनी कारबाईन सीधी की और उसका रुख दोनों गार्डों की ओर करके उसे चलाना शुरू कर दिया ।
वीरप्पा भी फायर करने लगा ।
उनकी देखादेखी विमल और अब्राहम भी गोलियां बरसाने लगे ।
कारबाइन वाले गार्ड ने एम्बूलेंस का पीछा छोड़ दिया और केबिन की ओट लेकर भीतर की तरफ कारबाइन चलाने लगा ।
कई गोलियां सदाशिवराव की छाती से टकराई । उसके हाथ से कारबाइन निकल गई । उसके मुंह से एक कराह भी न निकली और वह श्रीपत की लाश के करीब ढेर हो गया ।
एक अन्य गोली अब्राहम को आकर लगी ।
“भागो !” - विमल बोला - “कार की तरफ !”
वह कार की तरफ लपका । एक डुबकी सी मार कर वह कार की पैसेंजर सीट की तरफ से स्टियरिंग के पीछे पहुंचा । कार की चाबियां इग्नीशन में ही लटक रही थीं । उसने इग्नीशन ऑन किया और कार को बड़ी दक्षता से कम्पाउण्ड में यू टर्न दिया ।
वीरप्पा ने चलती कार के साथ लिपट गया और उसका दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हुआ ।
विमल ने कार गेट की तरफ दौड़ा दी ।
वीरप्पा ने अपनी रिवॉल्वर में मौजूद आखिरी गोली कारबाइनधारी गार्ड पर दागी ।
गोली गार्ड के सीने में लगी ।
दूसरा गार्ड दामोदरन भीतर केबिन में से तेजी से कहीं फोन कर रहा था ।
एम्बूलेंस की ठोकर से पूरा खुल चुका फाटक उस घड़ी एकदम अरक्षित था ।
कार निर्विघ्न गेट से बाहर निकल गई ।
“वाहे गुरु सच्चे पातशाह !” - विमल के मुंह से निकला - “तू मेरा राखा सभनी थाहीं ।”
तभी पीछे स्टेडियम में चलती संगीत की आइटम समाप्त हो गयी और वातावरण में गूंजता बीट म्यूजिक एकाएक बन्द हो गया ।