किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर उसने दराज खोला था जिसमें से वह रिवाल्वर रखा करती थी । रिवाल्वर को वहां मौजूद थी लेकिन उसमें से जले हुए बारूद की गन्ध आ रही थी। उसने चैम्बर खोल कर भीतर झांका तो पाया कि उसमें से दो गोलियां चलाई जा चुकी थीं । फिर उसने अपने जेवरात के डिब्बे को चैक किया तो पाया कि उसमें वह हीरा मौजूद था जो कि मौत का अंगारा के नाम से जाना जाता था । उसने बताया है कि हीरे को वह नाम उसी ने तब दिया था जब उसके मामा ने उसे उस हीरे से साथ जुड़ी मौतों का इतिहास सुनाया था । लड़की वहम को बहुत मानती है । और ऐसे अन्धविश्वासों से आदतन प्रभावित दिखाई देती है । वह कहती है कि उसके मामा का खून हो गया था और साफ जाहिर था कि कोई उस खून का इल्जाम उसके सिर मढ़ने की कोशिश कर रहा था । इसलिए उसने बड़ी बारीकी से यह देखने के लिए अपने कमरे की तलाशी ली कि कोई और भी ऐसी चीज तो नहीं थी जो उसे कत्ल के इल्जाम में फंसाने के लिए वहां प्लांट की गई थी ।"


“ऐसा कुछ मिला उसे ?"


"वह कहती है उसे वहां ऐसी कई चीजें मिलीं । "


"हूं । फिर ?"


"फिर उसने उन तमाम चीजों को अपने एक पुराने पर्स में बन्द किया और उसे और रिवाल्वर को समुन्द्र में फेंक देने की नीयत से पायर पर पहुंची । उसका ख्याल था कि समुन्द्र में फेंक देने से वे चीजें बरामद नहीं हो सकती थीं और उसे फंसवा नहीं सकती थीं क्योंकि उसे यह भी भय कि कही उसकी निगरानी न हो रही और निगरानी करने वाले को मालूम न हो जाए कि वे चीजें उसने कहां छुपाई थी।”


"फिर ?”


"फिर बस । इत्तफाक से वह पर्स समुन्द्र में गिर न सका । और वह वहां हिरासत में भी ले ली गई।"


"हूं।"


"जो केस उसके खिलाफ है, वह आपके सामने है । वह हीरा मृत व्यक्ति का है। लड़की की रिवाल्वर से चली गोली मृत की लाश में से बरामद हुई है ।'


"लेकिन ऐसी जगह से जहां गोली लगने से आदमी मरता नहीं ।" - हरेन्द्रनाथ ने याद दिलाया ।


"करैक्ट ।"


"आगे।"


"लड़की की अपनी फियेट कार उस स्थान से थोड़ी ही परे खड़ी पाई गई थी जहां कि आपने उसे तब देखा था जब वह अपना पर्स समुद्र में फेंकने की कोशिश कर रही थी । और मृत की नीली शेवरलेट भी उस स्थान से दो तीन ब्लाक ही परे खड़ी पाई गई थी। कार में पहले ही कमलनाथ तिवारी की लाश मौजूद थी कार के सारे दरवाजे खिड़कियां मजबूती से बन्द थे लेकिन बाद में उस बन्द कार में से लाश गायब हो गई थी ।"


इन्स्पेक्टर एक क्षण ठिठका और फिर बोला - "यह तो है केस । लेकिन इसमें विसंगतियां भी हैं। लड़की ने साफ जाहिर होता है कि किसी खास वजह से अपनी जुबान बन्द रखी थी । उसने तब तक अपनी जुबान नहीं खोली थी जब तक उसे वह सब मालूम नहीं हो गया था जो कि हमें मालूम था । जब फिर उसे हमारे मुकम्मल केस की जानकारी हो गई तो उसने अपनी हिमायत के लिए एक वकील बुला लिया और एक नपा-तुला, वकील द्वारा पढ़वाया हुआ, बयान दे दिया । लड़की बहुत चालक बनती है लेकिन कई बातें उसके खिलाफ हैं । सरकमस्टांशल एवीडेंस यही साबित कर रही है कि वह एक कोल्ड ब्लडिड हत्यारी है । लेकिन क्योंकि वह बड़े घर की बेटी है इसलिए उसे सावधानी से हैंडल करना हमारे लिए जरूरी है। हम गलत कदम उठाना अफोर्ड नहीं कर सकते । हम नहीं चाहते कि उसके खिलाफ केस इस ढंग से अदालत में पेश हो कि वह बरी हो जाए । अगर वह निर्दोष है तो यह बात हमें केस के अदालत में पहुंचने से पहले ही मालूम होनी चाहिए ।


इन्स्पेक्टर खामोश हो गया ।


हरेन्द्रनाथ विचारपूर्ण मुद्रा बनाए काफी चुसकता रहा ।


" है तो वह यही ।" - अन्त में वह बोला ।


"क्या ?" - इन्स्पेक्टर सकपकाया ।


"निर्दोष ।”


"आप कैसे कह सकते हैं कि वह निर्दोष है ?"


"जब तुमने लाश को कूड़े में बरामद किया था तो क्या उसके शरीर पर मौजूद कोट में बरामद किया था तो क्या उसके शरीर पर मौजूद कोट में दांयें कालर के पास एक कट था ?"


इन्स्पेक्टर ने सख्त हैरानी से हरेन्द्रनाथ की तरफ देखा


"था ।" - उसने स्वीकार किया ।


हरेन्द्रनाथ ने काफी का एक और घूंट पिया |


"लेकिन आप को कैसे मालूम ?"


हरेन्द्रनाथ मुस्कराया ।


"कुछ बताइए, हरेन्द्रनाथ जी ।”


"जो मैं तुम्हें बताऊंगा, तुम उस पर विश्वास नहीं करोगे|"


" आप बोलिये तो सही । "


"सुनो । अमरनाथ ने तिवारी की शेवरलेट में उसकी लाश नहीं देखी थी।"


इन्स्पेक्टर हंसा ।


"यह नहीं हो सकता । लाश उसके दो साथियों ने भी देखी थी । हम उनका बयान भी ले चुके हैं।"


“अमरनाथ ने या उसके साथियों ने लाश नहीं देखी थी ।” - हरेन्द्रनाथ दृढ़ स्वर मे बोला ।


"आप यह कहना चाहते हैं कि अमरनाथ ने झूठा बयान दिया था ? आप उसे भी उस केस में लपेटना चाहते हैं ?"


"नहीं । अमरनाथ का बयान एकदम सच्चा था । उसने जो कहा था ठीक कहा था ? वह यही समझता है कि उसने कार में लाश देखी थी लेकिन वास्तव में जो उसने देखा था वह कमलनाथ तिवारी की लाश नहीं थी ।”


"तो फिर क्या था वह ?"


"डमी । मोम का पुतला ।" 


"क्या ?"


"मोम की बनी हुई डमी देखी थी अमरनाथ ने । इसीलिए उसे लाश का चेहरा मोम जैसा सफेद लगा था और आंखें शीशे जैसी लगी थीं ।”


"कमाल है ।"


"जिस आदमी ने तिवारी का कत्ल किया था वह चाहता था कि कत्ल का इल्जाम उसकी भांजी पर आए । लेकिन अगर कहीं कोई गड़बड़ हो जाए तो वह फिर भी किसी झमेले में फंसने से बच जाए । उसने आरम्भ से ही सारा सिलसिला इस प्रकार जमाया था कि उसके पास ऐसी आप्शन रहे कि वह चाहे तो तिवारी की जान ले और चाहे तो कत्ल का इरादा छोड़ दे। यानी कि अगर कत्ल का इल्जाम पक्की तरह लड़की के सिर पर चस्पां हो जाए तो वह कत्ल कर दे नहीं तो वह ऐसा न करे । इतना कानून हत्यारा जरूर जानता था कि लड़की के सिर पर कत्ल का इल्जाम थोपने के लिए कारपस डेलेक्टी स्थपित होनी जरूरी थी अर्थात लाश बरामद होनी जरूरी थी । अब उसने क्या करना था ? उसने तिवारी का कत्ल किये बिना उसकी लाश बरामद करके दिखानी थी ।"


हरेन्द्रनाथ खामोश हो गया ।


"आगे" - इन्स्पेक्टर बेसब्रेपन से बोला - " बात की जरा तफसील से कहिये, हरेन्द्रनाथ जी । "


"मेरी थ्योरी यह है" - हरेन्द्रनाथ फिर बोला - "कि जो आदमी तिवारी का कत्ल करना चाहता था, वह चुपचाप उसके सिर पर पंहुचा, उसने उसे क्लोरोफार्म सुंघाकर या किसी और तरीके से बेहोश कर दिया और उसे चुपचाप कोठी से उठाकर ले गया । ऐसा करने के पहले उसने अपनी भांजी की रिवाल्वर चुराई, उसकी एक गोली तिवारी पर चलाकर उसके शरीर में ऐसा जख्म बनाया जो हरगिज भी घातक न सिद्ध हो सके और एक और एक गोली तिवारी के आफिस की एक दीवार में भी चला दी जो कि दीवार पर मढ़ी लकड़ी में धंस गई । फिर उसने वह रिवाल्वर और उसको कत्ल में उलझाने वाले कुछ और सूत्र लड़की के कमरे में प्लांट कर दिये । लड़की को इत्तफाक से उन चीजों की खबर हत्यारे की उम्मीद से पहले हो गई । वह समझ गई कि कोई उसे फंसाने की कोशिश कर रहा था । उसने अपने को फंसाने वाले सूत्रों को समुद्र की तह में पहुंचने की कोशिश की लेकिन वह न केवल अपनी कोशिश में नाकामयाब रही बल्कि वहीं गिरफ्तार भी हो गई । मेरे कुत्ते की वजह से लड़की का पर्स बरामद हो गया और एक तरह से खुद मैंने हत्यारे की मदद की । मेरी वजह से वे तमाम सूत्र पुलिस के हाथ लग गए जिन्हें लड़की ठिकाने लगाने की कोशिश कर रही थी।"


हरेन्द्रनाथ एक क्षण ठिठका और फिर बोला - "अपनी अति सुरक्षित योजना के अन्तर्गत हत्यारे ने तिवारी की शक्ल-सूरत वाला मोम का पुतला पहले से ही तैयार करवाया हुआ था जिसे कि वह लाश जाहिर करना चाहता था उसने उस पुतले को तिवारी के कपड़े पहना कर उसी के कार में समुद्र तट पर इस प्रकार प्लान्ट कर दिया कि वह देख लिया जाए और उसकी शिनाख्त हो जाए। जब उसकी वह शिनाख्त हो गई तो उसने पुतले को वहां से हटा दिया । अब वह इन्तजार करने लगा अगर किसी को उस पर शक हो जाता या किसी अकाट्य सबूत द्वारा लड़की अपने आपको बेगुनाह साबित करने में कामयाब हो जाती तो वह कमलनाथ तिवारी को रिहा कर देता और तिवारी को यह कभी पता नहीं लगता कि उसको रिहा करवाने वाला आदमी वास्तव में उसके अगवा के लिए भी जिम्मेदार था । तिवारी अपने अपहर्ता को पहचान न ले इसके लिए अपराधी ने जरूर उसे हर वक्त बेहोशी की हालत में रखा होगा। बाद में जब उसे छोड़ देने की जरूरत आन पड़ती तो वह उसे होश में आ जाने देता, खुद ही उसको वहां से छुड़वाता जहां कि वह गिरफ्तार था और फिर हर किसी से अपनी बहादुरी की वाहवाही भी हासिल करता ।”


इंस्पेक्टर खामोश रहा ।


अमरनाथ ने मोम के पुतले की छाती में दायीं तरफ छुरा धंसा देखा था जब कि लाश में बाई तरफ दिल के ऊपर छुरे का वार हुआ पाया गया था जो कि अपराधी की लापरवाही थी । इसी वजह से मैंने कहा था कि जरूर तिवारी की लाश पर बरामद कोट के दाई तरफ भी कट रहा होगा ।


"हरेन्द्र जी, गुस्ताखी माफ, लेकिन मुझे तो आपकी यह थ्योरी विश्वसनीय नहीं लग रही । "


"जरा गौर से इस पर विचार करोगे" - हरेन्द्रनाथ बड़े सब्र के साथ बोला - "तो यह विश्वसनीय लगने लगेगी । जरा सोचो जब अपराधी का इरादा तिवारी की हत्या करने का था तो फिर यह स्थापित करना क्यों जरूरी था कि उसका अपहरण किया गया था । ऐसा करना इसलिए जरूरी था कि अगर उसे तिवारी को छोड़ना पड़ जाए तो बात विश्वसनीय लगे कि फिरौती की खातिर ही उसका अपहरण किया गया था और अगर कत्ल हो जाए तो ऐसा लगे कि क्योंकि फिरौती वाली बात नहीं बनी इसलिए उसका कत्ल कर दिया गया था । अब क्योंकि तिवारी पहले जीवित था । लेकिन उसकी लाश अमरनाथ द्वारा देखी जाने के लिए पेश की गई थी तो क्या इससे साफ जाहिर नहीं होता कि लाश की जगह उसकी डमी इस्तेमाल की गई थी।"


"लेकिन अपराधी है कौन ?"


"यह मुझे क्या मालूम ।”


"कोई अन्दाजा ? "


"सारी ।"


"ऐसा नहीं हो सकता, हरेन्द्रनाथ जी । आप केस में और केस से सम्बन्धित तमाम लोगों से पूरी तरह से वाकिफ हैं। आपको किसी पर तो शक जरूर होगा।"


"वह तो है ।"


'आपकी राय में हत्यारा क्या तिवारी की कोठी पर मौजूद उन्हीं लोगों में से कोई है जिनका तिवारी प्रत्यक्षतः इतना भरोसा करता था । " 


"हां |"


"अगर आपकी थ्योरी को सच मान लिया जाए तो क्या आप हत्यारे का अपराध भी साबित कर सकते हैं ?"


"मुमकिन है । लेकिन आसानी से नहीं ।'


"मुश्किल से सही लेकिन कैसे ?”


“हत्यारे को एक और कत्ल करने के लिए मजबूर करके।”


"और कत्ल किसका ?"


"मेरा ।”


"जी !"


"हां । "


"लेकिन..."


"मैं सचमुच ही शहीद होने के लिए अपने आपको पेश नहीं करने वाला, इंस्पेक्टर।" - हरेन्द्रनाथ मुस्कराकर बोला ।


“तो।”


"जैसे हत्यारे ने अपने अपराध को अंजाम देने के लिए एक डमी इस्तेमाल की थी, वैसे ही एक डमी मैं भी उसको पकड़ने के लिए इस्तेमाल कर सकता हूं। कहने का मतलब यह है कि मैं एक सरासर किताबी कत्ल का ड्रामा स्टेज कर सकता हूं।"


"लेकिन इससे तो आपकी जान का खतरा बन जायेगा


“शायद ।”


"लेकिन आप समझते हैं कि अगर आपको अपने तरीके से काम करने दिया जाए तो आप इस केस को हल कर सकते हैं ?"


"हां । "


"ओह !"


"लेकिन अपना किताबी कत्ल स्टेज करने के लिए मुझे कुछ सामान की जरूरत पड़ेगी ।"


“कैसा सामान ? बताइए क्या चाहिए होगा ?"


"एक मोमबत्ती, एक माइक्रोस्कोप तो वह सामान है जो मुझे चाहिये । साथ ही तिवारी की कोठी तक मेरी पहुंच बनाना भी तुम्हारा काम होगा।"


"पहुंच कैसे ?”


"मुझे तुम्हें वहां स्थपित करना होगा । "


"कैसे ?"


“कह देना कि मैं पुलिस का साइंटिफिक एक्सपर्ट हूं इस केस को हल करने के लिए जिसका एकाध दिन हत्प्राण की कोठी में ही रहना निहायत जरूरी है । "


"वह तो कोई मुश्किल काम नहीं, आप जब कहेंगे हो जायेगा लेकिन आप वाकई यह समझते हैं कि आप मोमबत्ती और माइक्रोस्कोप की मदद से केस हल कर लेंगे।”


"हां । यह किताबी कत्ल है, किताबी तरीके से हल होगा।"


'और यह सब आप इसलिये करना चाहते हैं क्योंकि आप कहते हैं कि वह लड़की निर्दोष है ।"


"हां । "


"लेकिन वह लड़की निर्दोष नहीं है । वह... "


"मेरे दस के बदले में तुम्हारा एक । शर्त हो जाए कि वह लड़की निर्दोष है । "


इंस्पेक्टर खामोश रहा ।


"मेरे बीस के बदले में तुम्हारा एक ।" - हरेन्द्रनाथ चैलेंज भरे स्वर में बोला ।


“शर्त जाने दीजिये ।" - इंस्पेक्टर निर्णयात्मक स्वर में बोला- "मैं इन्तजाम करता हूं आपकी जरूरत के मुताबिक |"


***


पुलिस के साइंटिफिक एक्सपर्ट के तौर पर हरेन्द्रनाथ की कमलनाथ तिवारी की कोठी में स्थापना कोई कठिन काम न साबित हुई । हत्प्राण की कोठी में एक कमरा उसे अनिश्चत काल के लिए मिल गया । वहां पहुंचते ही उसने अपना ड्रामा शुरु कर दिया। कोठी में मौजूद लोगों को वह हाथ में फीता लिए गलियारों को नापता और मैग्नीफाईग ग्लास की सहायता से जगह जगह को निरखता परखता दिखाई देने लगा । एक दो बार उसने एक दो स्थानों से धूल मिट्टी के कण भी बड़ी सावधानी से इकट्ठे किए और उसका पुलिस डिपार्टमेंट से हासिल माइक्रोस्कोप द्वारा मुआयना करना भी वह आम देखा गया । कोठी में मौजूद लोग बड़े सशंक भाव से उसकी न समझ में आने वाली हरकतें देखते रहे ।


हत्प्राण का सेक्रेटरी नवनीत कुमार तो हरेन्द्रनाथ की हरकतों से साफ-साफ नर्वस दिखाई देने लगा था । खानसामा गंगादीन उसे ऐसी निगाहों से देखता था जैसे उसे कोठी में उसकी मौजूदगी ही नागवार गुजर रही हो । मुकुल दत्त ने तो बाकायदा हरेन्द्रनाथ को उसकी कोई भी सम्भव मदद करने की आफर दी । ध्यानचन्द उसके साथ यूं पेश आया जैसे हरेन्द्रनाथ का कोई अस्तित्व ही न हो । उसने एक बार भी हरेन्द्रनाथ के काम में दिलचस्पी नहीं ली। उसने औपचारिक रूप से भी हरेन्द्रनाथ से ये यह नहीं पूछा कि आखिर वह क्या कर रहा था या जो कुछ वह कर रहा था उससे वह क्या नतीजा हासिल होने की उम्मीद रखता था ।


लेकिन वास्तव में वह सब दिखावा था । केवल हरेन्द्रनाथ जानता था कि उसके काम में जो आदमी सबसे ज्यादा दिलचस्पी ले रहा था, वह ध्यानचन्द था ।


सारा दिन हरेन्द्रनाथ अपने उस फर्जी काम में लगा रहा । फिर अन्त में वह अपने बैडरूम में चला गया । उसका कमरा एक लम्बे गलियारे के आखिरी सिरे पर था ।


वह एक उपन्यास पढता रहा और रह-रहकर घड़ी देखता रहा । उसके कान खड़े थे और वह बहुत चौकन्ना होकर बाहर से आने वाली हर आवाज को नोट कर रहा था ।


फिर एक एक करके सब लोग ऊपर पहुंच गये और अपने कमरों में चले गये ।


हरेन्द्रनाथ प्रतीक्षा करता रहा ।


आधी रात से थोड़ी देर बाद उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला और बाहर झांका ।


गलियारा सुनसान पड़ा था ।


एक चाकू और मोमबती साथ लेकर वह कमरे से बाहर निकला । उसने चाकू से छीलकर मोमबती पर से मोम की पतली-पतली परतें उतारीं और उन्हें सारे गलियारें में फैला दिया । गलियारे के दूसरे सिरे तक जब मोम की परतें फैल गई तो वह वापिस अपने कमरे में लौट आया ।


उसने अपनी भारी रिवाल्वर निकाली जो पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद भी उसके पास थी ।


उसने बतियां बुझा दीं और एक खिड़की खोली ।


उसने रिवाल्वर का रुख खुली खिड़की से बाहर की तरफ किया और बाहर हवा में थोड़े-थोड़े वक्फे के बाद तीन फायर किये ।


रात के स्तब्ध वातावरण में गोलियां चलने की आवाज बड़े जोर से गूंजी ।


फिर तुरन्त वह कमरे के फर्श पर लेट गया । उसने अपने हाथ पांव फैला लिए, रिवाल्वर फर्श पर अपने पास रख ली और आंखें बन्द कर ली ।


गलियारा कई कदमों की आवाजों से गूंज गया । बाहर से लोगों के जोर जोर से बोलने की आवाजें आने लगी फिर उसका दरवाजा खटखटाया जाने लगा ।


हरेन्द्रनाथ ने महसूस किया कि कोठी में मौजूद तमाम लोग बाहर गलियारे में उसके कमरे के सामने इकट्ठे हो चुके थे ।


फिर दरवाजे पर ठोकरें पड़ने लगीं ।


कई लोगों के सामूहिक प्रहार से दरवाजा एकाएक टूटकर खुल गया । गलियारे की रोशनी कमरे में दाखिल होकर फर्श पर पड़े हरेन्द्रनाथ पर पड़ने लगी ।


“हत्या !" - एक आवाज आई जो हरेन्द्रनाथ ने साफ पहचानी कि ध्यानचन्द की थी ।


"हे भगवान !" - मुकुल दत्त की आवाज आई।


गंगादीन ने जुबान से आवाज न निकाली लेकिन वह एक बिल्ली की तरह कदम रखता हुआ हरेन्द्रनाथ के समीप पंहुचा । उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया ।


तुरन्त हरेन्द्रनाथ उठकर बैठ गया ।


लोग घबराकर पीछे हट गये ।


“सारी !” - हरेन्द्रनाथ बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से मुस्कराता हुआ बोला - "आप लोगों का इम्तहान लेने के लिए मैंने यह ड्रामा रचा था ।”


“कैसा इम्तहान ?” - नवनीत कुमार सख्त नाराजगी भरे स्वर में बोला ।


"मेरे को तो देख लेना कई दिन नींद नहीं आने वाली ।" - मुकुल दत्त बोला ।


गंगादीन हंसा |


“क्या कहने साहब !" - वह बोला- "इम्तहान ले रहे थे ?"


ध्यानचन्द ने एक अजीब निगाह टूटे दरवाजे पर डाली और फिर बोला- "इम्तहान ! वाह ! किसी नये इम्तहान में मेरी मदद की जरूरत हो तो मुझे निसंकोच बताइएगा जनाब । लोगों के छक्के छुड़ाने में मैं आपके बहुत काम आ सकता हूं । आपका राजदार बनने से मेरा यह फायदा होगा कि खुद मेरे छक्के नहीं छूटेंगे । वाह, साहब ! आधी रात को यूं एकाएक लोगों को जगा दिया और उन पर ऐसा जाहिर किया जैसे कोई कत्ल हो गया हो । वे कथित हत्प्राण को देखें और हत्प्राण उनको देखे । कत्ल की प्रतिक्रिया लोगों पर देखने का यह अच्छा मनोवैज्ञानिक तरीका है। वाह, साहब, वाह !"


कोई कुछ न बोला ।