"किसकी कार गायब है ?"


"साहब की ।"


“नीली शेवरलेट ?" - नवनीत कुमार ने पूछा ।


गंगादीन ने सहमति से सिर हिलाया ।


“शायद उसे अनिता ले गई हो ।" - ध्यानचन्द बोला ।


"नहीं, साहब" - गंगादीन इन्कार में सिर हिलाता हुआ बोला - "वह तो अपनी फियेट लेकर गई है।"


“तुम्हें कैसे मालूम है ?"


"साहब, फियेट गायब है, वह खुद गायब है, तो वही फियेट लेकर गई होगी ।"


बात चाहे जायज थी लेकिन उसके कहने का ढंग ऐसा था जैसे वह कोई शरारत भरी बात जबरन हर किसी के जहन में बिठाना चाहता हो ।


"तुम्हें खास तौर से मालूम होता है" - इन्स्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला- "कि लड़की ही अपने फियेट लेकर गई है बोलो, कैसे मालूम है तुम्हें ?"


"साहब" - गंगादीन अविचलित स्वर में बोला - "मैंने कहा न कि अनिता की कार गायब है, वह खुद गायब है, इसलिए वही कार लेकर गई होगी ?"


इन्स्पेक्टर खामोश हो गया ।


फिर सारी कोठी की तलाशी ली गई, लोगों से तरह-तरह के सवाल किये गये और फिर अन्त में पुलिस को कबूल करना पड़ा कि बात किसी सिरे नहीं चढ़ रही थी ।


फिर रात के तीन बजे वे इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर कोई बात बन सकती थी तो अनिता भार्गव से बात करके ही बन सकती थी जो कि अभी भी पुलिस की हिरासत में थी ।


वे वापिस लौटे ।


लड़की को दोबारा तलब किया गया ।


उसकी गिरफ्तारी क्योंकि हरेन्द्रनाथ की मौजूदगी में हुई थी इसलिए उससे भी अनुरोध किया गया कि वह लड़की से फिर से जवाबतलबी के दौरान वहां मौजूद रहें ।


लेकिन जवाब तलबी का वह सैशन भी फैल हो गया । लड़की ने फिर भी जुबान न खोली ।


पुलिस अधिकारियों ने उसे धमकाया, डराया, समझाया, मिन्नत समाजत भी की लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार गई । लड़की होंठ भींचे रही और भावहीन आंखों से शून्य में कहीं देखती रही ।


तभी टेलीफोन की घंटी बजी । इन्स्पेक्टर ने यूं घूरकर टेलीफोन की तरफ देखा जैसे उसका उस वक्त बजान उसे नागवार गुजरा हो । उस वक्त उसका सारा ध्यान लड़की की जुबान खुलवाने की कोशिश पर केन्द्रित था ।


टेलीफोन कहीं और उठा लिया गया तो घंटी बजनी बन्द हो गई ।


फिर दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।


"कम इन।" - इन्स्पेक्टर बोला ।


एक पुलसिया भीतर दाखिल हुआ ।


"लाइन पर एक आदमी है साहब" - वह विनीत भाव से बोला - “जो तिवारी वाले केस के सिलसिले में कुछ कहना चाहता है । कहता है बात बहुत जरूरी है ।"


इन्स्पेक्टर ने फौरन टेलीफोन का रिसीवर उठा लिया ।


"हैल्लो" - वह माउथपीस में बोला - "मैं इंस्पेक्टर भाटिया बोल रहा हूं । ..हां.. क्यों.. पक्की बात... इस वक्त कहां हो तुम ? .. तुम उसे अच्छी तरह से जानते पहचानते तो हो न ? तुम वहीं रहना । मैं पांच मिनट में वहां पहुंच रहा हूं।"


उसने रिसीवर क्रेडिल पर वापस पटक दिया और लड़की को वहां से ले जाने का आदेश दिया। फिर वो हरेन्द्रनाथ से बोला - "आपकी कार बाहर तैयार खड़ी है । आप जरा मुझे याट बेसिन तक लेकर चलिए । आपका अपना याट भी वहीं खड़ा होता है इसलिए जाहिर है कि आप इलाके की बेहतरीन जानकारी रखते होंगे। मुझे वहां आपकी सहायता या मार्गनिर्देशन की जरूरत पड़ सकती है ।"


“बात क्या है ?” - हरेन्द्रनाथ ने पूछा ।


"फोन कमलनाथ तिवारी के किसी दोस्त का था जो अभी अभी अपने याट पर कोई लम्बी समुद्री यात्रा करके वापिस लौटा है । वह कहता है कि तिवारी की नीली शेवरलेट वहां घाट के एक पहलू में खड़ी है। उसकी डोम लाइट जल रही है और भीतर तिवारी मरा पड़ा है ।"


"क्या ?"


"जी हां । वह कहता है कि उसकी छाती में एक छुरा धंसा हुआ साफ दिखाई दे रहा है । वह भीतर दाखिल नहीं हो सका क्योंकि कार के तमाम दरवाजे खिड़कियां बड़ी मजबूती से बन्द हैं ।"


“उसने लाश को ठीक से पहचाना है ?"


"कहता तो वह यही है । वह अपने आपको तिवारी का पुराना वाकिफकार बता रहा है इसलिए लगता नहीं कि उससे शक्ल पहचानने में भूल हुई हो ।"


" है कौन वह आदमी ?"


" उसने अपना नाम अमरनाथ बताया है।"


"मैं जानता हूं उसे । अगर वह कहता है कि उसने कार में तिवारी की लाश देखी है तो वह ठीक ही कहता होगा ।"


"चलें ?"


“हां ।”


दोनों बाहर निकले ।


दोनों हरेन्द्रनाथ की कार में सवार हुए। कार सुनसान सड़क पर दौड़ पड़ी।


रात जा रही थी और अब किसी भी क्षण भोर का उजाला फैल सकता था ।


"उसने याट क्लब की इमारत में से फोन किया था ।" - कार घाटों के करीब पहुंची तो इंस्पेक्टर बोला ।


हरेन्द्रनाथ ने सहमति में सिर हिलाया ।


उसने कार को एक संकरी गली से गुजारा और क्लब की दोमंजिली इमारत के सामने ला खड़ा किया ।


उसी क्षण पूर्व की तरफ से पहली किरण फूटी ।


कार के रुकते ही एक आदमी इमारत से अलग हुआ और लम्बे डग भरता हुआ वहां पहुंचा ।


हरेन्द्रनाथ और इंस्पेक्टर कार से बाहर निकले ।


अभिवादनों का आदान-प्रदान हुआ ।


"शेवरलेट" - वह आदमी बोला- "उधर कोई दो ब्लाक परे खड़ी है । वह जगह ऐन उस जगह के सामने थी जहां मैं अपना याट खड़ा करता हूं।"


फिर उसकी निगाह हरेन्द्रनाथ से मिली । अब तक उसकी सारी तवज्जो केवल इंस्पेक्टर की तरफ थी इसलिए उसने हरेन्द्रनाथ को नहीं पहचाना था ।


"हल्लो !" - वह बड़ी गर्मजोशी से हरेन्द्रनाथ से हाथ मिलाता हुआ बोला ।


"यह अमरनाथ है"- हरेन्द्रनाथ इन्स्पेक्टर से बोला "हम दोनों पुराने दोस्त हैं । " -


इन्स्पेक्टर ने भी उससे हाथ मिलाया ।


फिर तीनों कार में सावार हो गए ।


अमरनाथ के निर्देश पर कार चलाता हुआ हरेन्द्रनाथ उसे वहां ले आया जहां एक नीली शेवरलेट खड़ी थी । शेवरलेट की डिम लाइट जल रही थी इसलिए भीतर रोशनी थी ।


"वह देखो !" - अमरनाथ कार की और इशारा करता हुआ भर्राये स्वर में बोला ।


इन्स्पेक्टर ने सहमति में सिर हिलाया । घटनास्थल पर पहुंचकर वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ था । अपनी पुलिस की बीस साल की नौकरी के दौरान वह सैंकड़ों कत्ल के केसों की तफ्तीश कर चुका था ।


“लाश को किसी और ने भी देखा था ?" - इन्स्पेक्टर ने पूछा।


"हां" - अमरनाथ बोला- "मेरे याट के क्रियु के दो आदमियों ने देखा था । उस वक्त वे दोनों मेरे साथ थे । "


“अब कहां है वो ?"


"मैंने उन्हें याट पर वापिस भेज दिया था ।”


"क्यों ?"


"कत्ल देखकर मैंने सोचा था कि हो सकता था कि कोई गुण्डे बदमाश आस पास भी हों । मेरे याट में कुछ बड़ी कीमती चीजें मौजूद हैं जिन्हें हिफाजत की जरूरत थी ।"


"हूं।"


वे कार से बाहर निकले ।


“लाश कार के फर्श पर पड़ी है।" - अमरनाथ ने बताया - “उसका चेहरा इस प्रकार उठा हुआ है कि डिम लाइट सीधी चेहरे पर और छाती पर पड़ रही है । छाती में घुसा छुरा एकदम साफ दिखाई दे रहा है । ऐन इस जगह ।” और उसने अपने कोट के दाएं कालर को एक स्थान से छुआ । इन्स्पेक्टर कार के समीप पंहुचा ।


अमरनाथ और हरेन्द्रनाथ वहीं पर खड़े रहे ।


इन्स्पेक्टर ने कार के भीतर झांका ।


फिर उसने दरवाजे का हैंडल उमेठा ।


“बन्द है।" - परे खड़ा अमरनाथ बोला - "सारे दरवाजे बन्द हैं | मैंने चेक किए हैं।"


"गड़बड़ कर दी आपने" - इंस्पेक्टर शिकायत भरे स्वर में बोला- "हमें हैंडलों पर हत्यारे की उंगलियों के निशान मिल सकते थे ।”


“अब मुझे क्या पता था कि..."


"नैवर माइंड नाओ।" - इन्स्पेक्टर गंभीर स्वर में बोला " और भीतर लाश नहीं है ।"


"क्या ?" - अमरनाथ बुरी तरह चौंका ।


"कार खाली खड़ी है।"


अमरनाथ लपककर कार के पास पहुंचा। उसने बड़े व्यग्र भाव से कार के एक शीशे के समीप मुंह ले जाकर भीतर झांका | कार खाली थी ।


डिम लाइट की रोशनी काफी तेज थी । उसकी रोशनी में कार का भीतर का सारा भाग चमक रहा था । साथ में अब वातावरण में भोर का उजाला भी फैलने लगा था ।


कार की पिछली सीट के फर्श पर बिछे कालीन पर फैला खून का लाल धब्बा उन्हें साफ दिखाई दे रहा था । और कुछ देखने लायक कार में नहीं था ।


“आप ने वाकई कार के भीतर तिवारी की लाश देखी थी ?" - इन्स्पेक्टर ने अमरनाथ से पूछा ।


"इन्स्पेक्टर साहब" - अमरनाथ आहत भाव से बोला "ऐसे मामले में मैं आपसे झूठ बोलूंगा ।" -


"मेरा मतलब है आपको कोई गलतफहमी तो नहीं हुई।"


"नहीं हुई । " 


“पक्की बात ?”


“जी हां । और अगर कोई गलतफहमी मुझे हुई है तो क्या वह मेरे आदमियों को भी हुई थी ?"


“आपने ठीक से पहचाना था कि वह तिवारी ही था ?”


"एकदम ठीक से पहचाना था साहब । तिवारी मेरा पुराना दोस्त था । उसे पहचानने में मुझसे भूल नहीं हो सकती ।"


"हूं।"


"सच पूछिए तो ध्यानचन्द के बाद इस दुनिया में मैं ही उसका इकलौता दोस्त हूं । और सिर्फ मैं ही नहीं मेरे क्रियु के दोनों आदमी भी उससे परिचित थे । हम तीनों ने उसे खूब पहचाना था । एक आदमी से ऐसे पहचान में गलती हो सकती है । तीन-तीन आदमियों से तो नहीं हो सकती ? हम तीनों ने देखा था कि उसकी लाश सीटों के बीच के फर्श पर पीठ के बल पड़ी थी और डिम लाइट की रोशनी सीधी उसके चेहरे पर पड़ रही थी । गलती की कोई गुंजायश ही नहीं थी । वह कमलनाथ तिवारी की ही लाश थी ।” -


ओके" - इन्स्पेक्टर बोला- "आपके बयान से कारपस डेलिक्टी साबित हो जाती है। यानी कि यह साबित हो जाता है कि कत्ल हुआ है । अब कातिल को तलाश करके उसे उसके कुकर्म की सजा दिलवाना हमारा फर्ज बनता है।”


वह बात करते समय इन्स्पेक्टर के मानस पटल पर ध्यानचन्द का चेहरा घूम रहा था ।


कोई कुछ न बोला ।


"यह छुरे वाली बात भी पक्की है न ?" - इन्स्पेक्टर ने पूछा । 


"क्या मतलब ?" - अमरनाथ बोला ।


"छुरा वाकई उसकी छाती में धंसा हुआ था न ?”


"हां । मैंने साफ देखा था। छाती में दायीं तरफ । ठीक यहां ।”


"और वह मरा पड़ा था ? ऐसा तो नहीं था कि वह केवल घायल रहा हो ?"


"नहीं । वह शर्तिया मरा पड़ा था । उसका चेहरा मोम जैसा बेहिस और सफेद हो चुका था और आंखें शीशे की मालूम होती थीं । मैंने साफ देखा था कि उसकी आंखों से जीवन की ज्योति बुझ चुकी थी । "


"हूं।" फिर खामोशी ।


"ओके" - इन्स्पेक्टर बोला- "आप दोनों थोड़ी देर यहीं ठहरिये । मैं हैडक्वार्टर से लैबोरेट्री क्रियु को बुलवाता हूं । हो सकता है अभी भी हमें कार में कहीं से हत्यारे की उंगलियों के निशान हासिल हो जाएं । "


***


लैबोरेट्री क्रियु वहां पंहुचा ।


कार के हैंडलों पर जो उंगलियों के निशान उठाए गए, वे अमरनाथ के ही निकले । उसके अलावा वहां और किसी की उंगलियों के निशान अव्वल तो थे ही नहीं और अगर थे तो इतने अस्पष्ट थे कि किसी इस्तेमाल में नहीं आ सकते थे ।


कार के भीतर से किसी भी प्रकार के उंगलियों के निशान न मिले । साफ जाहिर था कि उन्हें सावधानी से पोंछ दिया गया था ।


यह बात भी निर्विवाद रूप से स्थापित हो गई कि कार कमलनाथ तिवारी की ही थी । कार में फैले खून को टैस्ट किया गया तो मालूम हुआ कि वह इन्सानी खून ही था ।


लेकिन लाश गई तो कहां गई ?


कार में से लाश हत्यारे ने गायब की थी या किसी और ने ? और फिर इसका क्या मतलब था कि अनिता भार्गव के पास से एक रिवाल्वर बरामद हुई थी जिसमें से दो गोलियां चलाई गई थीं लेकिन तिवारी की छाती में छुरा घुंपा हुआ देखा गया था ?


हरेन्द्रनाथ वापिस अपने याट पर चला गया था । प्रत्यक्षत: केस में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी ।


लेकिन वास्तव में यह बात नहीं थी । वह रह रह कर पुलिस हैडक्वार्टर फोन करता था और यह मालूम करने की कोशिश करता था कि आगे क्या तरक्की हुई थी या कोई तरक्की हुई भी या नहीं ।


उस घटना के बाद कमलनाथ तिवारी की कोठी की तलाशी दोबारा ली गई। दूसरी बार की तलाशी में एक नई दिलचस्प चीज बरामद हुई ।


आफिस की एक दीवार में से एक गोली बरामद हुई जो टैस्ट करने पर उसी रिवाल्वर से चलाई गई पाई गई जो गिरफ्तारी के वक्त अनिता भार्गव की जेब में पाई गई थी । पुलिस के तीस साल पुराने बैलेस्टिक एक्सपर्ट ने इस बात की तसदीक की थी लेकिन लड़की ने फिर भी उस बात को स्वीकार नहीं किया - न स्वीकार किया और न इनकार किया । पुलिस की तमाम धमकियों के बावजूद भी उसकी खामोशी बदस्तूर जारी रही । उसने अपने रिहाई के लिए भी कोई कदम उठाने की कोशिश नहीं की। उसे समझाया गया कि अगर वह चाहती तो अपने लिए कोई वकील नियुक्त कर सकती थी लेकिन उसने ऐसी कोई इच्छा जाहिर नहीं की । उसे पुलिस की हिरासत में रहने में रहने में कोई एतराज नहीं था ।


एक सप्ताह की भरपूर छानबीन के बावजूद भी केस में कोई तरक्की नहीं हुई । वह रत्ती भर भी आगे नहीं सरका।


फिर एक रोज कमलनाथ तिवारी की लाश फिर बरामद हो गई ।


इस बार लाश बरामद हुई तो उसके पुलिस की नाक नीचे से गायब हो जाने का कोई मतलब ही नहीं था ।


एक स्थान पर कुछ बच्चे खेल रहे थे। वहां पास ही कमेटी के कूड़े का विशाल ढेर था। बच्चों की गेंद उस ढेर में जा गिरी थी । उस गेंद को उठाने के लिए जब एक बच्चा वहां गया था तो उसने एक जोड़ी पांव कूड़े के ढेर के नीचे से झांकते देखे थे । वह भागा भागा अपने बाप के पास पहुंच गया था । बाप ने आकर वे पांव देखे तो फौरन समझ गया कि वहां कोई लाश पड़ी थी। उसने फौरन पुलिस को फोन कर दिया ।


लाश काफी सड़ चुकी थी लेकिन फिर भी अभी उसकी शिनाख्त सम्भव थी ।


उसके बायें कन्धे में एक गोली धंसी हुई पाई गई । उस गोली को निकाला गया और बैलेस्टिक एक्सपर्ट के हवाले किया गया ।


जांच के बाद मालूम हुआ कि वह गोली भी उस रिवाल्वर में से चलाई गई थी जो कि अनिता भार्गव के पास से बरामद हुई थी । लाश की छाती में बाई तरफ एक छुरे का घाव भी पाया गया । पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि मौत छुरे के घाव की वजह से हुई थी । छुरे का फल सीधा दिल में उतर गया था ।


उसने इन्स्पेक्टर भाटिया को फोन किया ।


“अब वह लड़की अपनी जुबान बन्द रखने की हठ छोड़ देगी" - इन्स्पेक्टर के लाइन पर आने से हरेन्द्रनाथ बोला - " मैं भी जानना चाहता हूं कि वह क्या बयान देती है । "


'आपको कैसे मालूम है ?" - इन्स्पेक्टर बेसब्रेपन से बोला- "कि अब वह अपनी हठ छोड़ देगी ।"


"मेरा अन्दाजा है । "


"अन्दाजे की कोई बुनियाद ?"


"कोई बुनियाद नहीं । बस यूं ही । मुझे लग रहा है कि अब वह अपनी जुबान खोल देगी ।"


“कमाल है । आपकी जानकारी के लिए लड़की अपनी जुबान खोल चुकी है और अपने लिए एक वकील की सेवायें भी प्राप्त कर चुकी है। अब हमें उसे शायद रिहा भी करना पड़ेगा ।"


"कहानी क्या सुनाई है उसने ?"


"कहानी सुनने के लिए आप यहीं आ जायें तो अच्छा होगा । एकाध बात मैं भी आप से पूछना चाहता हूं। आपको लड़की के खिलाफ अदालत में हमारी तरफ से गवाही भी देनी पड़ सकती है ।"


"ठीक है । " उसने रिसीवर रख दिया ।


वह पुलिस से रिटायर हो चुका था लेकिन फिर भी उसकी पुलिस विभाग में बड़ी पूछ थी । उसकी काबलियत से कोई भी पुलसिया नावाकिफ नहीं था । पुलिस के कई उच्चाधिकारी अब भी गाहे बगाहे उसके साथ सलाह करने चले आते थे ।


वह अपनी कार पर सवार होकर हैडक्वार्टर पहुंचा ।


इन्स्पेक्टर भाटिया ने उठकर उससे हाथ मिलाया ।


उसने काफी मंगाई ।


"लड़की अजीब व्यवहार कर रही है" - अन्त में इन्स्पेक्टर गम्भीरता से बोला - "आप जानते ही हैं कि शुरुआत से ही उसका व्यवहार अजीब रहा है।"


"हूं।" - हरेन्द्रनाथ काफी का एक घूंट हलक से उतारता हुआ बोला ।


"लाश बरामद होने तक उसने न कोई बयान दिया था और न अपने बचाव में कुछ कहा था लेकिन उसे मालूम था कि उसकी रिवाल्वर से चली गोली कहां से बरामद होने वाली थी, फिर उसने अपने लिए वकील भी बुलवा लिया हालांकि पहले कहने पर भी वह कदम नहीं उठा रही थी ।"


"बयान क्या दिया है उसने ?”


"बताता हूं । लेकिन बयान क्योंकि उसने अपने वकील से सलाह करने के बाद दिया है, इसलिए ये कहना कठिन है कि उसमें सच कितना है और वकील की पढाई हुई पट्टी कितनी है ।”


"हूं।"


"वह कहती है कि वह एक पार्टी में गई थी । पार्टी में उसने ड्रिंक वगैरह भी की थी । रात को जब वह कोठी में वापिस लौटी थी तो वह अपने मामा से मिलने की नीयत से उसके पास गई थी। मामा के आफिस में रोशनी और दरवाजा बन्द नहीं था । वह भीतर दाखिल हुई तो उसके कमरे की बेतरतीबी को उसी हालत में पाया जिसमें वह हमें मिला था । वह कहती है कि कमरे की वह हालत देखकर वह आतंकित हो उठी थी, वह वहां से निकली थी, उसने दरवाजे को बन्द किया था और भाग कर अपने कमरे में पहुंच गई थी । जो रिवाल्वर उसके पास से बरामद हुई थी, वह कहती है कि वह उसी की थी और वह उसे हमेशा अपनी ड्रेसिंग टेबल के दराज में रखती थी।