"हां ।"
"तुम्हारा पर्स यहां कैसे पड़ा है ?"
युवती ने उत्तर नहीं दिया ।
"देखो, तुम्हारी खामोशी तुम्हारे लिये बहुत दिक्कत पैदा कर सकती है। साफ-साफ बताओ क्या माजरा क्या है ?"
युवती ने मजबूती से दांत भींच लिए ।
तभी रस्तोगी के दोनों सिपाही वहां पहुंच गये ।
रस्तोगी ने युवती को उनके हवाले किया और फिर हरेन्द्रनाथ की तरफ आकर्षित हुआ ।
उसके पूछने पर हरेन्द्रनाथ ने जो कहानी सुनाई वह बड़ी सीधी-साधी थी । उसने उस लड़की को अंधेरे में से निकाल कर समुद्र के किनारे पहुंचते और फिर कोई चीज पानी की तरफ उछाल कर फेंकते देखा था । वह चीज पानी में गिरने कि जगह धम्म से पायर के एक तख्ते से टकराई थी लेकिन शायद युवती को यह बात नहीं मालूम हुई थी । तभी हरेन्द्रनाथ का कुत्ता भोंक पड़ा था और वह घबराकर फौरन वहां से भाग निकली थी । हरेन्द्रनाथ को मालूम था जिधर वह भागी थी उधर वहां गश्त करती पुलिस मौजूद होती थी इसलिए पहले उसने उसको पकड़ने की या उसके पीछे कुत्ता भगाने की कोशिश नहीं की थी। लेकिन जब उसने देखा कि युवती रस्तोगी की तरफ नहीं भाग रही थी और रस्तोगी उस पर गोली चलाने की तैयारी कर रहा था तो उसने उसके पीछे कुत्ता भगा दिया था । उस दौरान उसे एक क्षण के लिय भी नहीं सूझा था कि जिस आकृति के पीछे उसने कुत्ता दौड़ाया था, वह आदमी नहीं औरत थी ।
रस्तोगी फिर युवती से सवाल करने लगा लेकिन युवती तो कुछ कह कर राजी ही नहीं थी ।
साफ जाहिर हो रहा था कि उसने रिवाल्वर की गोलियों वाले डिब्बे और हीरे सहित अपने पर्स को समुद्र में फेंकने की कोशिश की थी। अगर वह पर्स समुद्र में जाकर गिरता तो फिर शायद कभी बरामद न हो पाता । पर्स के बाद शायद वह ताजी चलाई गई रिवाल्वर भी समुद्र में फेंकती लेकिन इत्तफाक की बात थी कि अपनी उस कोशिश में वह कामयाब नहीं हो सकी थी ।
कुत्ते ने जहां से पर्स बरामद किया था वह जगह पानी से मुश्किल से एक फुट दूर थी ।
बहुत पूछे जाने के बावजूद भी युवती ने नहीं बताया कि वह वहां क्या कर रही थी और असल में कहानी क्या थी । वह तो अपना नाम पता तक बताने को तैयार न हुई ।
मजबूरन उन्होंने उसे जीप में सवार कराया और उसे नजदीकी थाने में ले चले ।
हरेन्द्रनाथ भी उनके साथ गया ।
थाने में एक कांस्टेबल ने उस युवती को पहचान लिया । यह महज एक इत्तफाक था कि वह उसे जानता था ।
युवती का नाम अनिता भार्गव था और वह कमलनाथ तिवारी की भांजी थी। कमलनाथ तिवारी नगर का एक रईस आदमी था जो शंकर रोड के रईसों के इलाके में रहता था । जिस कांसटेबल ने युवती को पहचाना था वो इत्तफाक से एक बार कमलनाथ तिवारी की कोठी मे गया था और वहीं उसने उस युवकी को देखा था। फिर उसके बिना पूछे ही घर के किसी नौकर चाकर ने उसे बताया था कि वह मालिक की भांजी थी ।
कांसटेबल ने यह बात क्योंकि रस्तोगी को चुपचाप बताई थी इसलिये युवती तब भी यही समझ रही थी कि उसे कोई नहीं जानता था और इसलिए वह खामोश थी ।
हरेन्द्रनाथ पुलिस के उच्चाधिकारियों में बड़ी सम्मानित हस्ती थी। थाने का एस. एच. ओ. इन्स्पेक्टर भाटिया उसके साथ बड़े अदब से पेश आया और उसने इसे अपने लिये बड़ी इज्जत की बात माना कि हरेन्द्रनाथ खुद चलकर वहां आया था।
फिर वे लोग कमलनाथ तिवारी की कोठी की तरफ रवाना हो गए ।
इन्स्पेक्टर भाटिया पुलिस जीप में अपने सहयोगियों के साथ बैठने के स्थान पर हरेन्द्रनाथ के साथ उसकी कार में सवार हुआ ।
पुलिस की जीप और हरेन्द्रनाथ की कार आगे पीछे शंकर रोड पहुंची ।
कमलनाथ तिवारी की कोठी की घन्टी बजाई गई । बड़ी लम्बी इन्तजार के बाद कोठी का मुख्य द्वार खुला और दरवाजे पर एक आदमी प्रकट हुआ ।
पुलिस को देखकर वह सकपकाया ।
"तुम कौन हो ?" - इन्स्पेक्टर भाटिया ने पूछा ।
"हम यहां खानसामा है, साहब ।" - उत्तर मिला ।
"क्या नाम है तुम्हारा ?"
“गंगादीन ।”
'अनिता भार्गव यहां रहती है ? "
"जी हां । "
"वह इस वक्त कोठी में है ?"
“जी हां । है ।”
"उसे बुलाकर लाओ। एक केस के सिलसिले में हमने उससे कुछ पूछना है।"
"लेकिन वे तो सोई पड़ी हैं, साहब ।”
“जगाओ।"
गंगादीन के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव आए ।
“रास्ते से हटो ।”
वह फौरन एक तरफ हट गया ।
"हमें अनिता का कमरा दिखाओ । कहां है अनिता का कमरा ?"
"ऊपर ।"
“चलो।”
गंगादीन घूमकर सीढियों की तरफ बढ़ा ।
दो आदमी उसके पीछे हो लिए, बाकी वहीं खड़े रहे ।
थोड़ी देर बाद ऊपर से खटपट की आवाजें आने लगीं । वे आवाजे कुछ क्षण रात के स्तब्ध वातावरण में गूंजती रहीं, फिर दोनों आदमी वापिस लौटे।
उनके साथ नाइट सूट और गाऊन पहने एक आदमी था । उसके बिखरे बाल बता रहे थे कि वह सोते से उठकर आया था । उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव थे। पुलिस को जानकारी के लिए उस पर किसी तरह का जोर डालने की जरूरत नहीं पड़ी । वह खुद ही धाराप्रवाह बोलने लगा।
उसने बताया कि उसका नाम नवनीत कुमार था और वह कमलनाथ तिवारी का सैक्रेटरी था । उसने बताया कि अनिता भार्गव तिवारी की भांजी थी और उसकी इकलौती जीवित रिश्तेदार थी । लड़की बड़ी उच्छ्रिन्खल स्वभाव की थी । पढ़ने लिखने में उसकी कोई रूचि नहीं थी और शरारतों मे वह सबसे आगे थी। दो बार वह कालेज से निकाली जा चुकी थी । अब तीसरी बार उसे वापिस कालेज भेजने के स्थान पर तिवारी ने उसे अपने पास ही रख लिया था। यहां वह अपने मामा के काम धन्धे में पूरी दिलचस्पी लेने की कोशिश करती थी लेकिन उस दिलचस्पी का अंजाम यह हुआ था कि भांजी की गलती से मामा को पिछले महीने स्टाक एक्सचेंज में पांच लाख रुपये का घाटा हुआ था । लेकिन क्योंकि मामा की अपनी कोई आस औलाद नहीं थी और वह उसकी इकलौती जीवित रिश्तेदार थी इसलिए वह उसकी हर खता माफ कर देता था ।
कहने की जरूरत नहीं थी कि अनिता अपने कमरे में सोई पड़ी बरामद नहीं हुई थी । लड़की के कमरे का मुआयना करने पर पाया गया था कि उसके बिस्तर पर एक भी सिलवट नहीं थी जिससे साफ जाहिर होता था कि बिस्तर के हवाले तो वह हुई ही नहीं थी । उसके कपड़े इधर उधर बिखरे पड़े थे और वार्डरोब और मेज के दरवाजों की हालत बता रही थी कि उनकी बड़े अव्यवस्थित ढंग से तलाशी ली गई थी । वो घर वालों के लिए भी भारी हैरानी की बात थी कि अनिता इतने रहस्यपूर्ण ढंग से अपने कमरे से गायब थी ।
और फिर वह इतनी रात गए समुद्र तट पर क्या कर रही थी, इसका भी उत्तर अभी किसी के पास नहीं था । कोठी में रहने वाले बाकी लोगों को भी फटाफट चैक किया गया।
कोठी में नवनीत कुमार और गंगादीन के अलावा दो और नौकर थे, मुकुल दत्त नाम का तिवारी का एक असिस्टेंट था जो स्टेनोग्राफर और ड्राइवर के तौर पर भी तिवारी के काम आता था और ध्यानचन्द नाम का तिवारी का एक पुराना दोस्त था । तिवारी एक बड़ा उद्योगपति होने के साथ साथ एन्टीक कलैक्टर भी था । दुर्लभ हीरे जवाहरातों और पेंटिंगों के बारे में उसका ज्ञान बड़ा विस्तृत और प्रमाणिक माना जाता था । इस विषय में लिखे उसके लेख सारे संसार की पत्रिकाओं में छपते थे और इसी दिशा में अपनी सहायतार्थ वह अपने सैक्रेटरी और स्टेनोग्राफर को अपनी कोठी में ही रखता था ।
फिर घर के बाकी लोगों को भी जगाया गया ।
ध्यानचन्द सोने के कपड़े पहने होने के स्थान पर सूट बूट में हाजिर हुआ । उसको छोटी-छोटी काईयां आंखों में नींद का नामोनिशान भी नहीं था। उसने बताया कि वह सोते से नहीं जगाया गया था । वह तो उस वक्त भी अपने कमरे में बैठा एक निहायत दिलचस्प नावल पढ़ रहा था ।
वह इस बात से बहुत खफा हुआ कि पुलिस ने उसे खामखाह डिस्टर्ब किया था । सहयोग की भावना से वह आदमी कतई कोरा मालूम होता था ।
मुकुल दत्त एक दुबला पतला लेकिन बड़ा चाक चौबन्द नौजवान निकला । उसके व्यवहार से लगता था कि हर किसी से दबना, हर किसी की कैसी भी बात से सहमति प्रकट करना उसका स्वभाव बन चुका था ।
पुलिस को यह बात बड़ी अजीब सी लगी कि गंगादीन अपने आप को नौकरों चाकरों में शुमार नहीं करता था । वह कोठी में मौजूद सफेद पोश स्टाफ की बराबरी करता था ।
उसी ने बताया कि उसने जाकर कमलनाथ तिवारी के बैडरूम पर दस्तक दी थी लेकिन तिवारी ने न दरवाजा खोला था और न भीतर से जवाब दिया था । फिर पुलिस अधिकारी खुद ऊपर गए तो उन्होंने पाया कि तिवारी के बेडरूम का दरवाजा भीतर से बन्द नहीं था ।
बेडरूम खाली पाया गया ।
और पूछताछ पर मालूम हुआ कि तिवारी ने कोठी के ही एक विंग में अपना म्यूजियम और आफिस बनाया हुआ था । और कई बार वह काफी रात गए तक वहीं बैठा रहता था । सब लोग फिर नीचे आए और आफिस की तरफ बढे ।
नवनीत कुमार ने आगे बढ़ कर आफिस का दरवाजा ट्राई किया ।
दरवाजा बन्द था ।
“साहब !" - उसने आवाज लगाई ।
भीतर से कोई उत्तर न मिला ।
"तिवारी जी !" - इंस्पेक्टर भाटिया ने आवाज लगाई ।
जवाब नदारद ।
उसने दरवाजे के हैंडल को हिलाया डुलाया लेकिन दरवाजा अपनी जगह से हिला भी नहीं ।
"इस ताले की और चाबी होगी ?"
सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे ।
" है ।" - गंगादीन बोला- "हमारे पास है ।"
"तो लेकर आओ।"
“हमारे पास यहीं है।"
और उसने अपनी जेब से एक चाबी निकाली । इन्स्पेक्टर ने बड़े संदिग्ध भाव से उसकी तरफ देखा । फिर उसने उसके हाथ से चाबी ले ली और उसे ताले में लगाया । चाबी बड़ी सहूलियत से ताले में घूम गई । इन्स्पेक्टर ने हैंडल घुमाकर दरवाजा खोला और धीरे से उसे धक्का दिया ।
एकाएक सबके चेहरे पर गहरी व्यग्रता के भाव आ गए । सब उचक-उचक कर भीतर झांकने की कोशिश करने लगे । फिर सब आगे पीछे दाखिल हो गए ।
भीतर की हालत बता रही थी की वहां काफी उत्पात मचा था । फर्श पर किताबें, फाइलें बिखरी पड़ी थीं । मेज के सारे दराज अपनी जगह से निकले हुए थे और इधर-उधर गिरे पड़े थे । एक कोने में लगी एक सेफ का इस्पात का भारी दरवाजा खुला था और उसके बीच का सामान उससे बाहर बिखरा पड़ा था । मेज के बीचों-बीच लाल रंग के गाढे से तरल पदार्थ का एक तालाब सा बना हुआ था ।
कमलनाथ तिवारी वहां कहीं नहीं था ।
ध्यानचंद कुछ क्षण फटी फटी आंखों से मेज पर फैले लाल तरल पदार्थ को देखता रहा, फिर उसके मुंह से निकला - "यह तो खून है ।"
"खून !" - गंगादीन बोला ।
" अब सब लोग बाहर निकल जाईये ।" - एकाएक इन्स्पेक्टर अधिकारपूर्ण स्वर में बोला- " और बाहर ही रहिये । जिस किसी की हमें जरूरत होगी, उसे बुला लिया जाएगा |"
सब लोग भारी कदमों से बाहर निकल गए ।
"रस्तोगी" - इन्स्पेक्टर धीरे से अपने सब-इन्स्पेक्टर से बोला - "इनको किसी एक जगह इकट्ठा करके रखो । कोई ग्रुप से अलग न होने पाए । समझ गए ।”
"यस सर ।"
“जाओ।”
रस्तोगी बाहर जाते लोगों के पीछे लपका ।
फिर इन्स्पेक्टर अपनी तफ्तीश में जुट गया ।
हरेन्द्रनाथ बड़ी विचारपूर्ण मुद्रा बनाये चहलकदमी कर रहा था । बीच-बीच में वह सिगरेट के कश लगा लेता था और जब सिगरेट खत्म हो जाता था तो नया सुलगा लेता था । उसकी आंखों में एक बाज जैसी चमक और चौकन्नापन था ।
बाकी लोग एक झुण्ड में वहां जमा थे और अपनी अपनी काबलियत के मुताबित कोठी पर एकाएक हावी हो गए, रहस्य के वातावरण को समझने की कोशिश कर रहे थे । कभी कभार वे आपस में खुसर-पुसर कर लेते थे और फिर खामोश हो जाते थे ।
पुलिस वाले उनकी हर हरकत को नोट कर रहे थे ।
कहीं एक दरवाजे के चौखट से टकराने की आवाज हुई
गलियारा भारी कदमों से गूंज उठा।
सबकी निगाहें गलियारे की तरफ उठ गई ।
इन्स्पेक्टर भाटिया वहां पहुंचा । उसके चेहरे पर कठोरता के भाव थे ।
"पता नहीं क्या हो रहा है यहां" - इन्स्पेक्टर झुंझलाए स्वर में बोला- "टाइप राइटर में एक कागज लगा हुआ है जिस पर टाइप किया हुआ है कि अगर कमलनाथ तिवारी एक लाख नहीं अदा करेगा तो उसका अगुवा कर लिया जाएगा।"
"अगुवा ।" - किसी ने सिसकारी भरी ।
'और मेज पर सरेआम एक वसीयत पड़ी है। वसीयत तिवारी की की हुई है और उसके मुताबिक अपनी भांजी अनिता भर्गव को उसने अपनी आधी चल अचल सम्पत्ति की स्वामिनी बनाया है । अपनी बाकी आधी सम्पति का एक बड़ा भाग उसने अपने दोस्त ध्यानचन्द के लिए और बाकी को अपने कर्मचरियों में बराबर बराबर बांटा जाने के लिए छोड़ा है । कहने का मतलब यह है कि यहां मौजूद हर आदमी तिवारी की विपुल धनराशि का हिस्सेदार है, इसलिए हर आदमी के पास हत्या का उद्देश्य है । "
"हत्या !" - कोई बोला- "किसकी हत्या ?"
"वसीयत करने वाली की हत्या, और किसकी हत्या
“आप के ख्याल से" - मुकुल दत्त बोला - तिवारी साहब की हत्या हो गई है ?"
"हां"
“लाश कहां है ?"
"लाश की बरामदी के बिना" - ध्यानचन्द गम्भीर स्वर में बोला - "यह कैसे कहा जा सकता है कि तिवारी की हत्या हो गई है । हत्या हुई साबित करने के लिए लाश की बरामदी इन्तहाई जरूरी होती है। इसे कारपस डेलेक्टी कहते हैं । "
इन्स्पेक्टर ने घूर कर ध्यानचन्द को देखा ।
"तुम वकील हो ?" - उसने पूछा ।
“नहीं ।” - ध्यानचन्द बड़े सहज भाव से बोला ।
इन्स्पेक्टर के घूरने का अगर उस पर कोई असर हुआ था तो यह कम से कम उसकी सूरत से दिखाई नहीं दे रहा था।
"तो फिर तुम कारपस डेलेक्टी के बारे में कैसे जानते हो ?"
"यह कौन सी बड़ी बात है ? मैं जासूसी उपन्यास पढता हूं । जासूसी उपन्यासों में ऐसी बातों का जिक्र आम आता है। अभी कल परसों ही मैंने एक जासूसी उपन्यास पढ़ा था जो कि सारे का सारा कारपस डेलेक्टी पर ही आधरित था । फिर उक्सुक्तावश अपने एक वकील दोस्त से मैंने इस बारे में बात की थी उसने भी उपन्यास में लिखी बातों की तसदीक की थी। उसने भी यही कहा था कि लाश की बरामदी के बिना कत्ल नहीं माना जा सकता। लाश नहीं तो कत्ल नहीं । कत्ल नहीं तो सजा नहीं । यही कानून है।"
"होगा" - इन्स्पेक्टर कहर भरे स्वर में बोला- "लेकिन अगर कत्ल तुमने किया है तो तुम्हें मैं लाश की बरामदी के बिना भी फांसी के फंदे तक पहुंचा कर दिखा दूंगा ।"
ध्यानचंद के माथे पर बल पड़ गए। उसके जबड़े भिंच गए।
"मुझे ?" - वह बोला ।
"हां । तुम्हें ।"
“लाश बरामद हुए बिना ?"
"हां"
"लाश की बरामदी के बिना कौन मानेगा कि तिवारी का कत्ल हुआ है । कत्ल साबित करने के लिए एविडेंस भी तो होनी चाहिए ।
“सरकमस्टान्शल एविडेंस है। तिवारी के आफिस की हालत बता रही है कि वहां कत्ल हुआ है । और लाश ठिकाने लगाने के सौ तरीके हो सकते हैं। तुम जासूसी उपन्यासों के ऐसे ही रसिया हो तो दस बारह तरीके तुम्हें भी आते होंगे ।”
"सिर्फ दो तीन" - ध्यानचन्द धीरे से बोला - "लाश ठिकाने लगाने के कारआमद तरीके सिर्फ दो तीन ही हैं जो मुझे आते हैं।"
"तुम अपने मुंह से कबूल कर रहे हो कि तुम्हें लाश ठिकाने लगाने के तरीके आते हैं ?"
"हां । कर रहा हूं । लेकिन वे तरीके मुझे आने का मतलब यह थोड़ी ही है कि मैंने उन्हें इस्तेमाल भी किया है । "
"तुम एक बड़ी खतरनाक बात कर रहे हो । इसके आधार पर तुम्हें गिरफ्तार किया जा सकता है । "
"तो कर लो, मेरे भाई । किसने रोका है तुम्हें ? "
इन्स्पेक्टर खामोश रहा । वह कुछ क्षण खा जानी वाली निगाहों से ध्यानचन्द को देखता रहा लेकिन फिर उसे विचलित होता न पाकर उसने निगाह फेर ली ।
"आप लोग में से कोई" - वह सबसे सम्बोधित हुआ - "मौत का अंगारा नाम के किसी हीरे के बारे में कुछ जानता है ?"
"सफेद रंग का आसाधारण आकार का हीरा ?" - उत्तर उसे ध्यानचन्द से ही मिला ।
"हां।" - इन्स्पेक्टर फिर ध्यानचन्द की तरफ देखता हुआ बोला ।
"वह हीरा अमेजैन के एक घने जंगल के बीच छुपे एक मकबरे की खुदाई में निकला था। वह मकबरा सैकड़ों साल पुराना था और इत्तफाक से ही कुछ शिकारियों की निगाह में आ गया था । वह हीरा तिवारी को उसके किसी अमेरिकन दोस्त ने भेंटस्वरूप दिया था। उस हीरे के साथ कई मौतों का इतिहास जुड़ा हुआ है और वह अंगारे की तरफ दहकता हुआ मालूम होता है इसलिये वह मौत का अंगारा के नाम से जाना जाता है।"
"वह हीरा अब कहां है ?"
"कोठी में ही होगा। मेरा मतलब है जहां कहीं भी तिवारी उसे रखता था ।”
"तिवारी उसे कहां रखता था ?"
किसी ने उत्तर न दिया ।
वातावरण मे खामोशी छा गई ।
"कार गायब है।" - गंगादीन धीरे से बोला ।
“क्या ?" - इन्स्पेक्टर उसकी तरफ घूमा - "क्या कहा तुमने ?"
“कार गायब है ।"
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