"अगर हममें से कोई" - ध्यानचन्द फिर बोला - "मेरे अजीज दोस्त कमलनाथ तिवारी की हत्या के लिए जिम्मेदार है तो कोई चतुर मनोवैजानिक, जो कि साहब आप लगता है कि हैं, हम लोगों के चेहरों पर ऐसा कुछ जरूर भांप सकता है जो हम में से किसी के गुनाह की चुगली कर सकता है ।"


सब हैरानी से हरेन्द्रनाथ को देखने लगे ।


"अब जनाब, आप खुद ही लोगों तो बता दीजिए" ध्यानचन्द बोला - "कि वास्तव में आप कोई मनोवैज्ञानिक हैं और हम लोगों के साथ कोई चाल चल रहे हैं । "


“मेरे कुछ बताने की जरूरत नहीं।" - हरेन्द्रनाथ कठोर स्वर में बोला- "आप लोगों को पहले ही बता दिया गया है कि मैं पुलिस का आदमी हूं। मैंने जो करना था कर दिया, जो देखना था, देख लिया । मैं असुविधा के लिए माफी चाहता हूं । अब आप लोग अपने अपने कमरों में तशरीफ ले जाइए।"


सब लोग बड़बड़ाते हुए वहां से विदा हो गये । हरेन्द्रनाथ एक ईजी-चेयर के हवाले हो गया । उसने अपना उपन्यास उठा लिया और उसने उसे यूं दोबारा पढ़ना आरम्भ कर दिया जैसे कुछ भी न हुआ था ।


एक घंटे बाद उसने किताब रख दी । उसने एक माचिस, माइक्रोस्कोप, और शीशे की कुछ स्लाईडें उठाई और फिर कोठी की सैर पर रवाना हो गया ।


सबसे पहले वह ध्यानचन्द के बैडरूम के सामने पंहुचा । उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।


थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला ।


ध्यानचन्द चौखट पर प्रकट हुआ ।


उसने विचित्र भाव से हरेन्द्रनाथ की ओर देखा और बोला - “क्या फिर कोई इम्तहान सूझ गया ? लगता है कि आज की रात इस कोठी में किसी को सोना नसीब नहीं होने वाला ।"


"सारी !" - हरेन्द्रनाथ सहज स्वर में बोला - "बात बहुत जरूरी न होती तो मैं आपको डिस्टर्ब नहीं करता। वैसे आपने मुझे मदद देने की आफर भी की थी ।"


"फरमाइये क्या बात है ?" - ध्यानचन्द नम्र स्वर में बोला ।


" मैंने सुबह होने तक हत्यारे को गिरफ्तार करके दिखाना है । उससे पहले आपके लिए और कोठी में मौजूद और लोगों के लिये थोड़ी असुविधा पैदा करना मेरे लिए जरूरी है उसके बिना मेरा काम नहीं हो सकता ।”


“आइये ।" - ध्यानचन्द दरवाजे से एक तरफ हटता हुआ बोला ।


हरेन्द्रनाथ भीतर दाखिल हुआ। उसने माइक्रोस्कोप एक मेज पर रख दिया और उसके सामने पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया ।


“बराय मेहरबानी जरा अपने स्लीपर उतारिये ।" - वह बोला ।


"क्या ?"


" और वापिस बिस्तर में दाखिल हो जाइए।"


"लेकिन..."


"मैं जैसा कह रहा हूं, वैसा कीजिए । "


ध्यानचन्द ने आदेश का पालन किया ।


"मैं अपने आप को बहुत होशियार समझता हूं" - वह बोला - "लेकिन आप क्या कर रहे हैं, यह मेरे पल्ले कतई नहीं पड़ रहा ।"


"क्या हर्ज है" - हरेन्द्रनाथ बोला - "आपके पल्ले कुछ पड़ेगा, इसकी खुद मुझे भी उम्मीद नहीं थी ।”


ध्यानचन्द खामोश हो गया ।


हरेन्द्रनाथ ने अपने जेब से एक चाकू निकाला । उसने पलंग के नीचे से ध्यानचन्द के स्लीपर और जूते उठा लिए और उसने तलों को चाकू की सहायता से धीरे-धीरे खुरचना आरम्भ कर दिया । फिर खुरचन को उसने शीशे की एक स्लाइड पर इकट्ठा किया और माइक्रोस्कोप के नीचे रखा ।


ध्यानचन्द उलझन भरी निगाहों से उसकी हर हरकत नोट कर रहा था ।


 "हूं।" - अन्त में हरेन्द्रनाथ ने एक बड़ी ऊंची हुंकार भरी ।


"क्या हुआ ?" - ध्यानचंद जल्दी से बोला ।


"आपके जूतों में एक अजीब बात है ।"


“क्या अजीब बात है ?" - ध्यानचन्द तुरंत बिस्तर से निकल आया - "मुझे दिखाइए । "


हरेन्द्रनाथ ने माइक्रोस्कोप पर से आंख हटा ली और परे हट गया ।


ध्यानचंद ने माइक्रोस्कोप लैंस के साथ आंख लगा कर उपकरण में झांका ।


"क्या दिखाई दे रहा है ।" - वह बोला- "धूल और मिटी के छोटे-छोटे कण दिखाई दे रहे हैं और... कहीं तुम्हारी तवज्जो उन सफेद रंगत वाली किसी चीज की निहायत बारीक परतों की तरफ तो नहीं ?"


"वहीं है । " 


“आई सी ।"


वह थोड़ी देर और माइक्रोस्कोप में झांकता रहा, फिर उसने गरदन उठाई ।


"क्या माजरा है ?" - उसने पूछा ।


हरेन्द्रनाथ ने माइक्रोस्कोप के बेस में से स्लाइड खींच ली और जेब से माचिस निकालकर एक तीली जलाई । तीली से निकली लपट उसने स्लाइड के साथ लगाई । एक क्षण बाद उसने सावधानी से लपट से निकल कर शीशे पर लग गया काला धुंआ साफ किया और स्लाइड को वापिस माइक्रोस्कोप में सरका दिया ।


उसने लैंस से भीतर झांका और फिर बड़े अर्थपूर्ण ढंग से गरदन हिलाता हुआ बोला- "अब देखो ।"


ध्यानचन्द ने फिर लैंस पर आंख लगाई ।


"वे सफेद परतें सी तो पिघल गई।" - ध्यानचन्द बोला


"क्या है यह ?" - हरेन्द्रनाथ ने पूछा ।


"मोम मालूम होता है।”


"करेक्ट !" - हरेन्द्रनाथ बोला ।


उसने जेब से एक लिफाफा निकाला और स्लाइड उसमें रख कर लिफाफे को बन्द कर दिया । उसने लिफाफे के ऊपर ध्यानचन्द का नाम लिखा और लिफाफा सावधानी से जेब में रख लिया । फिर उसने मेज पर से माइक्रोस्कोप उठाया और उठ खड़ा हुआ ।


ध्यानचन्द उलझनपूर्ण भाव से उसे देख रहा था ।


"मेहरबानी करके" - हरेन्द्रनाथ बोला- "अपने कमरे में ही रहना । "


ध्यानचन्द ने बड़े चिंतित भाव से सहमति में सिर हिलाया ।


हरेन्द्रनाथ कमरे से बाहर निकल गया ।


गलियारे में कुछ कदम आगे बढ़कर वह मुकुल दत्त के दरवाजे पर पंहुचा ।


उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।


साथ ही उसने की-होल में आंख लगाकर भीतर झांका


मुकुल दत्त बिस्तर में नहीं था । वह एक कुर्सी पर बैठा हुआ था । दस्तक सुनते ही वह उठ खड़ा हुआ और दरवाजे की तरफ बढ़ा ।


हरेन्द्रनाथ सीधा हो गया ।


मुकुल दत्त ने दरवाजा खोला ।


उसका चेहरा बदहवास था ।


"आप !" - वह बोला ।


"हां, मैं । मुझे भीतर आने दो ।”


वह एक तरफ हटा ।


हरेन्द्रनाथ भीतर दाखिल हुआ ।


एक बार फिर उसने वही ड्रामा किया जो वह अभी अभी ध्यानचन्द के कमरे में करके आया था। उसने मुकुल दत्त के जूते और स्लीपर भी अपने अधिकार में किये और चाकू से उनके तलों को खुरचा । उस खुरचन की उसने स्लाइड बनाई और फिर स्लाइड उसने मुकुल दत्त को दिखाई और उसने भी उन सफेद परतों को खांस तौर से देखा जो स्लाइड पर धूल और मिट्टी के कणों के साथ मौजूद थी।


मुकुल दत्त भी सारी क्रिया से उतना ही हैरान-परेशान हुआ, जितना कि ध्यानचन्द हुआ था ।


फिर उस स्लाइड को भी उसने माचिस की लौ दिखाई और उस पर से धुंआ साफ करके उसे वापिस माइक्रोस्कोप में रखा ।


उसने मुकुल दत्त को फिर माइक्रोस्कोप में झांकने के लिए कहा ।


"यह को किसी मोमबत्ती की मोम मालूम होती है।" - मुकुल दत्त बोला ।


हरेन्द्रनाथ ने सहमति में सिर हिलाया, उस स्लाइड को भी निकालकर उसने एक अलग लिफाफे में बन्द किया, लिफाफे पर मुकुल दत्त का नाम लिखा और लिफाफा सावधानी से जेब में रख लिया ।


उसने माइक्रोस्कोप उठाया और वहां से भी बाहर निकल गया । फिर वह नवनीत कुमार के कमरे में पहुंचा ।


वहां भी उसने वही सब कुछ किया जो वह दो बार पहले करके हटा था ।


वहां केवल एक फर्क सामने आया था कि नवनीत कुमार सोया पड़ा था । उसके खर्राटे लेने की आवाज बाहर तक आ रही थी और वह दरवाजे पर तीन चार बार दस्तक देने के बाद जागा था और दरवाजा खोलने आया था ।


उसने भी मोम की परतें देखीं और फिर उनके पिघल जाने के बाद स्लाइड फिर देखी ।


"अरे !" - वह हैरानी से बोला- "वो सफेद सफेद नन्हीं नन्हीं परतें तो पिघल गई ।"


"हां । " - हरेन्द्रनाथ बोला- "माचिस से जलाए जाने पर पिघली हैं वो ।”


उसके चेहरे पर उलझन के भाव आए । उसके माथे पर बल पड़ गए ।


"है क्या बला यह ?" - उसने पूछा ।


" तुम्हें नहीं मालूम ?" - हरेन्द्रनाथ ने पूछा ।


"नहीं । लेकिन आप बताइए, आपको तो मालूम होगा"


"मुझे भी नहीं मालूम ।" - हरेन्द्रनाथ बोला - "अभी और टेस्ट करने पड़ेंगे तब मालूम होगा ।"


नवनीत कुमार खामोश रहा ।


हरेन्द्रनाथ ने उस तीसरी स्लाइड को भी एक लिफाफे में बन्द किया, उस पर नवनीत कुमार का नाम लिखा और उसे बाकी दो लिफाफों के साथ जेब में रख लिया ।


"बराय मेहरबानी अपने कमरे में ही रहना । " - वह माइक्रोस्कोप उठाता हुआ बोला ।


नवनीत कुमार ने सहमति में सिर हिला दिया । उसके चेहरे पर उलझन के बड़े गहरे भाव थे ।


हरेन्द्रनाथ गंगादीन के कमरे के दरवाजे पर पंहुचा ।


दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही दस सेकेण्ड में दरवाजा खुल गया ।


उसने संदिग्ध भाव से हरेन्द्रनाथ की तरफ देखा ।


हरेन्द्रनाथ को अभिवादन करना उसने जरूरी नहीं समझा।


हरेन्द्रनाथ ने उसे समझाया कि वह क्या चाहता था ।


गंगादीन उसे अपने कमरे में ले आया ।


वही ड्रामा हरेन्द्रनाथ ने वहां भी दोहराया । उसके जूतों और स्लीपरों से उतरी खुरचन की भी स्लाइड बनाई और यह उसे माचिस दिखाने से पहले और बाद में गंगादीन को दिखाई गई ।


लेकिन गंगादीन की कोई प्रतिक्रिया हरेन्द्रनाथ को सुनने को न मिली। उसने न बताया कि वह चीज क्या थी जो जल कर पिघल गई थी और न अपना विचार जाहिर किया कि वह क्या हो सकती थी ।


हरेन्द्रनाथ एक चौथे लिफाफे में उसकी स्लाइड रखकर वहां से भी विदा हो गया । जाने से पहले वह उसे यह कहना न भूला कि वह अपने कमरे में ही रहे ।


फिर वह टेलीफोन पर पंहुचा ।


उस वक्त रात के ठीक दो बजे थे और वह इन्स्पेक्टर भाटिया को बताकर आया था कि रात के दो बजे वह उसकी टेलीफोन काल की प्रतीक्षा करे ।


इन्स्पेक्टर से बात करते वक्त हरेन्द्रनाथ ने अपनी आवाज धीमी रखने की कतई कोशिश नहीं की ।


"तिवारी की हत्या के केस से ताल्लुक रखती" - वह बोला - "एक बड़ी जोरदार जानकारी मेरे हाथ लगी है, इन्स्पेक्टर ।" - वह कुछ क्षण दूसरी तरफ से आती आवाज सुनने को ठिठका और फिर पूर्ववत उच्च स्वर में बोला - "केस से ताल्लुक रखती डिपार्टमेंट की जी थ्योरी थी, वह गलत थी । थ्योरी यह थी कि भांजी ने वसीयत को जानबूझ कर मेज पर इसलिए साफ साफ रख छोड़ा था क्योंकि वह इस बात के लिए बहुत व्यग्र थी कि वसीयत जल्दी से जल्दी हर किसी के जानकारी में आ जाए और ऐसा वह इसलिए चाहती थी क्योंकि इत्प्राण ने अपनी संपत्ति का आधा भाग उसके नाम किया था । लेकिन वास्तव में वसीयत की ऐसी नुमायश की भांजी को जरूरत नहीं थी। आखिर वह तिवारी इकलौती जीवित रिश्तेदार थी । वसीयत होने से तो उल्टा उसे नुकसान था क्योंकि तब वह केवल आधी जायदाद की मालकिन बनती जबकि वसीयत न होने पर अपने मामा का पूरे का पूरा माल उसे मिलता । इसलिए यह बात गले से नहीं उतरती कि उस वसीयत की तुरन्त बरामदी के लिए भांजी उत्सुक थी । उसके लिए तो ज्यादा फायदे की बात यह थी कि वह उसे फाड़कर फेंक देती । दूसरी गौर करने के काबिल बात यह है कि तिवारी की अपनी कार में उसकी लाश एक ऐसे आदमी ने देखी थी जो उसके इने-गिने अभिन्न मित्रों में से एक था । और उस कार को ऐन ऐसी जगह खड़ा किया गया था जहां अमरनाथ की निगाह उस पर पड़नी लाजमी थी ।


हत्यारे ने अमरनाथ और तिवारी का कोई वार्तालाप अमरनाथ की याट पर रवानगी से पहले सुना था जिसकी वजह से उसे मालूम था कि अमरनाथ उस रोज रात को किस वक्त वापिस पायर पर लौटने वाला था। अमरनाथ ने जब लाश देखी थी तो उसने उसके दांये पहलू में चाकू लगा पाया था लेकिन जब असल में लाश बरामद हुई थी तो चाकू दांये पहलू में यूं लगा पाया गया था कि वह दिल में उतर गया था । लाश के कोट में दांयी तरफ भी छुरे का कट था लेकिन उस कट के नीचे घाव नहीं था। इसी से साफ जाहिर होता है कि जिस लाश को अमरनाथ ने कार में दांये पहलू छुरा खाए देखा था वह लाश नहीं, डमी थी जो कि कारपस डेलिक्टी स्थापित करने के लिए तैयार की गई थी । यह भी गौर करने वाली बात है कि जिस वक्त कार में से लाश गायब हुई थी, उस वक्त अनिता भार्गव पुलिस की हिरासत में थी । इसलिए लाश को गायब कर पाना उसके लिए एकदम नामुमकिन था । वह तो तब जेल में बन्द थी । इन बातों को आधार मान मैंने जो काम किया है, उसका बड़ा अच्छा नतीजा निकला है । एक बात तो खास तौर से ऐसी मालूम हुई जिससे केस हल ही हो गया है । अब हत्यारे के खिलाफ एक आखरी सबूत हासिल करने के लिए मैं उस स्थान पर जा रहा हूं जहां कूड़े के ढेर में से लाश बरामद हुई थी। मैं फौरन यहां से रवाना हो रहा हूं क्योंकि मुझे भय है कि सुबह तक हत्यारे को भी सबूत सूझ न जाये और वह उसे नष्ट न कर दे । यह स्थान हैडक्वार्टर के मुकाबले में उस स्थान के करीब है इसलिए जाहिर है कि मैं आप लोगों से पहले वहां पहुंच जाऊंगा । मैं वहीं आप लोगों के आने का इन्तजार करता मिलूंगा । मेरी कार सड़क पर ही खड़ी होगी। मैं कार की डिम लाइट जलाकर रखूंगा ताकि आपको मुझे पहचानने में कोई दिक्कत न हो। मैं आपके आगमन के बाद ही उस आखिरी सबूत की तलाश की दिशा में कोई कदम उठाऊंगा । नमस्ते "


उसने फोन रख दिया ।


फिर वो इमारत से बाहर निकला । कम्पाउण्ड में उसकी कार खड़ी थी । उसके पास ही उसका वफादार कुत्ता बैठा था । अपने मालिक की आहट उसने फौरन पहचान ली । वह हौले-हौले गुर्राने लगा था ।


हरेन्द्रनाथ ने उसे पुचकारा । फिर दोनों कार में सवार हो गये । उसने कार को कम्पाउण्ड से बाहर निकाला और सड़क पर दौड़ा दिया ।


अन्धेरी रात में सुनसान रास्ते पर गाड़ी चलाता हुआ वह आगे बढता रहा ।


वह सीधा उस सड़क पर पंहुचा जिसके समीप वह कूड़े का ढेर था जहां से कि लाश बरामद हुई थी ।


उसने कार वहां रोकी । कार की पिछली सिट पर से उसने एक पुतला उठाया जिसे वह पहले से ही तैयार करके लाया था । उस पुतले को उसने अपने स्थान पर ड्राइविंग सीट पर स्टेयरिंग के पीछे टिका दिया और अपने सिर से अपनी टोपी उतारकर उसके सिर पर लगा दी । उसने कार की डिम लाइट जला दी । और कार से बाहर निकल आया।


कार से थोडा परे झाड़ियां थीं। अपने कुत्ते के साथ वह उसके पीछे जा छुपा ।


वीरान रात में मरघट का सा सन्नाटा छाया हुआ था ।


वक्त गुजरने लगा ।


फिर दूर कहीं से पुलिस के सायरन की आवाज आई। कुत्ता एकाएक चौकन्ना हो गया । वह कान खड़े करके नथुने उठाकर वातावरण में कुछ सूंघने की कोशिश करने लगा ।


प्रत्यक्षत: उसे कोई ऐसी आहट लगी थी जिसे सुनने में किसी इन्सान के कान असमर्थ थे । उसका शरीर तन गया और उसने एकाएक झपट पड़ने वाली मुद्रा बना ली । उसके गले से हल्की हल्की गुर्राहट निकलने लगी ।


“खामोश ।" - हरेन्द्रनाथ फुसफुसाया ।


कुत्ता फौरन खामोश हो गया ।


कुत्ता और उसका मालिक दोनों स्तब्ध प्रतीक्षा करते रहे कि आगे क्या होगा ।


“धांय ।”


अंधेरे में कहीं एक शोला कोंधा । एक फायर की आवाज से वातावरण गूंज गया। कार की तरफ से शीशा चटकने की आवाज आई ।


फिर एक और फायर हुआ ।


शीशों की झनझनाहट से वातावरण गूंज उठा। हरेन्द्रनाथ की कार के शीशों के परखच्चे उड़े जा रहे थे ।


फिर तीसरी गोली स्टेयरिंग के पीछे बैठे पुतले को लगी और वह सीट पर गिर गया ।


हरेन्द्रनाथ ने फौरन कुत्ते को सामने को धकेला ।


"मोती ! शूट !" - उसने आदेश दिया ।


कुत्ता तोप से निकले गोले की रफ्तार से आगे को लपका और एक छलावे की तरह अन्धेरे में कहीं विलीन हो गया । तभी एक और फायर हुआ ।


सायरन की आवाज अब पहले से ज्यादा करीब से आने लगी ।


अब हरेन्द्रनाथ भी झाड़ियों की ओट से निकल कर उसी दिशा में भागा जिधर कुत्ता भागा था, वह आंखें फाड़-फाड़ कर सामने देख रहा था और उन चीजों से बच रहा था जिनसे कि वह टकरा सकता था ।


कुत्ता एक बार बड़े खतरनाक ढंग से गुर्राया ।


साथ ही एक आदमी की चीख वातावरण में गूंजी।


फिर कोई भारी चीख धड़ाम से पक्की जमीन पर गिरी


सायरन इस बार बहुत ही करीब सुनाई दिया। फिर एक पुलिस की गाड़ी मोड़ काट कर उस सड़क पर दाखिल हुई।


फिर फायर हुआ ।


इस बार बहुत करीब से ।


कुत्ता जोर से भोंका ।


कोई फिर चीखा ।


हरेन्द्रनाथ एकाएक ठिठक गया ।


सामने जमीन पर एक आदमी गिरा हुआ था और कुत्ता उसकी छाती पर चढा हुआ था ।


"शाबाश, मोती ।" - हरेन्द्रनाथ बोला ।


कुत्ते ने हौले से भोंककर मानों शाबाशी कबूल की ।


तभी पुलिस की जीप भी वहां पहुंच गई। जीप की हैडलाइट की रोशनी सामने पड़ी ।


कुत्ता जोर जोर से भोंकने लगा ।


"मोती, खामोश ।" - हरेन्द्रनाथ ने आदेश दिया । कुत्ते का भोंकना बन्द हो गया । वह हौले-हौले गुर्राने लगा । 


जीप में से इन्स्पेटर भाटिया और तीन चार पुलसिये बाहर निकले ।


वे समीप पहुंच गए तो हरेन्द्रनाथ ने कुत्ते को नीचे गिरे पड़े आदमी की छाती से हटाया ।


दो पुलिसियों ने उसे बांहों से पकड़कर उठाया और उसे उसके पैरों पर खड़ा किया। उन्होंने उसका मुंह जीप की हैडलाइट की तरफ कर दिया ।


वह नवनीत कुमार था ।


"तुम !" - इन्स्पेक्टर हैरानी से बोला ।


नवनीत कुमार ने जवाब न दिया ।


"हथकड़ियां पहनाओ।" - इन्स्पेक्टर गरजा ।


सिपाही उसे हथकड़ियां पहनाने लगे तो एकाएक नवनीत कुमार के घुटने मुड़ गए और वह सिपाहियों की गिरफ्त से निकल कर वापिस जमीन पर ढेर हो गया ।


“इसे गोली लगी है ।" - हरेन्द्रनाथ बोला । सबसे पहले उसे ही उसकी गरदन से भल-भल करके बहता खून दिखाई दिया था ।


इन्स्पेक्टर घुटनों के बल उसके समीप बैठ गया ।


“नवनीत कुमार !" - वह व्यग्र भाव से बोला - "तुम्हें किसने गोली मारी ?"


"क... किसी ने... न.. नहीं।" - वह बड़ी कठिनाई से कह पाया - "म... मैंने.. खुद.."


"तुमने खुद अपने आपको शूट किया है ? तुमने आत्महत्या की है ? "


"हां"


"क्यों ?"


"म... मैं.. मैं ।"


क्षणों “नवनीत कुमार, तुम मर रहे हो। तुम सिर्फ कुछ के मेहमान हो । सच बात बताकर जाओ । कमलनाथ तिवारी का खून तुमने किया था ?"


"हां!" - वह घुटे स्वर में बोला ।


"क्यों ?”


"मुझे प... पैसे की जरूरत थी । किसी का क... कर्जा... कर्जा... चुकाना था । ... कोई मुझे कर्जा... न.. न.. चुकाने.. चुकाने पर मार डालने की धमकी दे रहा था । ति... तिवारी सा... साहब की व... वसीयत म... में.. मेरा भी... जि... जिक्र था । मुझे.. प... पैसा मिल ज... जाता।” ..


"तुमने मोम का पुतला अनिता को फंसाने के लिए इस्तेमाल किया था ?" - हरेन्द्रनाथ ने पूछा ।


“हां ।"


"क्यों ?"


और.... "खुद... खुद को... बचाने के... लिए | और....


" और क्या ? बोलो।"


"मुझे उस.. से नफ... नफरत थी । वह मुझे अपने प्या... प्यार... प्यार के काबिल नहीं समझती... थी। "


"तुम उससे प्यार करते थे लेकिन वह तुम्हारा तिरस्कार करती थी ?"


"हां"


"इसलिए तुमने उसे अपने मामा के कत्ल के इल्जाम में फंसाने की कोशिश की ?"


"हां । उस... उसके... सजा... प. पा.. जाने से...


"उसका हि... हिस्सा भी... ब.. बाकी लोगों में... बंट जाता।"


"तुम यहां कैसे आये थे ?"


“म... मैंने आपको... पु... पुलिस को फोन करते.... सुना था.... मैं आ... आपके... जाल... में फंस गया । मुझे... मोम... वाले... आ... आपके.. प्रयोग ने... बोखला दिया था । मैं समझा था कि... आप... आप मेरे... ब... बारे में... जान... जान गए थे। इसलिए पुलिस से... आपकी... बात होने से... प... पहले... आपको... गो... गो.. गोली...।"


एकाएक उसकी गरदन एक ओर लटक गई ।


इन्स्पेक्टर और हरेन्द्रनाथ लाश से परे हट गए ।


“क्या हुआ था ?" - इन्स्पेक्टर ने पूछा ।


हरेन्द्रनाथ ने सारी कहानी कह सुनाई ।


"मोम मैंने हत्यारे को जाल में फंसाने के लिए इस्तेमाल की थी ।" - हरेन्द्रनाथ बोला- "मैं जानता था कि हत्यारा जब अपने जूतों पर से मोम बरामद होती देखेगा तो बौखला जाएगा । मैं जानता था कि वह यह कभी नहीं समझ पाएगा, कि मैंने ही गलियारे में मोम फैलाई थी जो कि मेरे गोली चलाने का ड्रामा करने के बाद उसके गलियारे में कदम रखते ही उसके स्लीपरों को लग जाने वाली थी। मैंने सबको जूते और स्लीपर खुरच कर उन पर से मोम बरामद की लेकिन तिवारी के मोम के पुतले की वजह से मोम के मामले में हत्यारे के मन में चोर था इसलिए वह वही यही समझा कि मैं मोम के पुतले के बारे में जान गया था और वह अपने जूतों पर से मोम बरामद होने की वजह से फंस गया था । फिर मैंने जानबूझ कर यूं तुमसे टेलीफोन पर बात की कि वह हत्यारा भी सुन ले । उसने सुना कि फोन पर मैंने पुलिस को कुछ नहीं बताया था और यह कि मैं यहां पुलिस से पहले पहुंचने वाला था । मेरा मुंह बन्द करने के लिए उसने मेरी हत्या करने का फैसला कर लिया । मैं हत्यारे से ऐसे ही किसी एक्शन की उम्मीद कर रहा था इसलिए तैयार होकर आया था । उसने कार में मुझे बैठा जानकार उसी पर गोलियां बरसाई । फिर कुत्ते ने उसे दबोच लिया । अपने को फंस गया पाकर उसने आत्महत्या कर ली।"


“ओह !”


“बेचारा बुनियादी तौर से शरीफ आदमी था वर्ना आत्महत्या न करता ।"


"बेचारा !" - इन्स्पेक्टर हैरानी से बोला- "जिस आदमी ने एक जने का खून किया और दूसरे को उस खून के इल्जाम में फंसाने की कोशिश की उसे आप बेचारा कहते हैं |"


"मजबूरी बहुत कुछ करा देती है, इन्स्पेक्टर । मजबूरी देवताओं को भी राक्षस बनने पर मजबूर कर देती है । बेचारा जिन्दा रहता तो शायद अपनी मजबूरी की कोई ऐसी करुण कथा सुनाता कि तुम्हारा भी दिल पसीज जाता ।"


इन्स्पेक्टर खामोश हो गया ।


समाप्त