सब-इन्स्पेक्टर रस्तोगी की पिछले एक महीने से समुद्र तट पर पायर नम्बर चालीस से पचपन तक के इलाके की गश्त की ड्यूटी थी । वह रात नौ बजे ड्यूटी पर आता था और सुबह चार बजे वहां से जाता था । उसके साथ दो सिपाही होते थे जिनके साथ गप-शप से वह अपना ड्यूटी का वक्त गुजारता था क्योंकि पिछले एक महीने से वहां ऐसी कोई घटना नहीं घटी थी जिसमें पुलिस की दखलंदाजी जरूरी समझी जाती ।


उसे एक महीने में उसने एक व्यक्ति को हर रात आधी रात के करीब सड़क पर सैर करते देखा था । उसका विलायती नसल का वफादार कुत्ता हमेशा उसके साथ होता था । रस्तोगी ने मालूम किया था उस आदमी का नाम हरेन्द्रनाथ था और उसके वहां सैर करने आने की मुख्य वजह थी कि पायर नम्बर चालीस पर उसका याट खड़ा रहता था । रस्तोगी का ख्याल था कि या तो उस आदमी का दिमाग खराब था या फिर वह रोशनी से जयादा अंधेरे को पसंद करता था । क्योंकि आधी रात के करीब जहां वह सैर करने आता था वहां उस वक्त न केवल तकरीबन अंधेरा होता था बल्कि वह जगह भी एकदम उजाड़ मालूम होती थी । उसकी और सिपाहियों कि तो बहरहाल मजबूरी थी कि उन्हें गश्त की खातिर वहां मौजूद रहना पड़ता था ।




रस्तोगी यह नहीं जानता था कि हरेन्द्रनाथ को न केवल वैसा अंधेरा और स्तब्ध वातावरण पसन्द था बल्कि उसकी आंखें अंधेरे की इतनी अभ्यस्त हो चुकी थीं कि वह किसी घाघ बिल्ली की तरह अन्धेरे में भी देख लेने की कैफियत रखता था ।




वह यह भी नहीं जानता था कि वह आदमी अब रिटायरों जैसी जिंदगी गुजार रहा था लेकिन पहले वह उसी में उसी के विभाग का एक उच्चाधिकारी रह चुका था के शहर ।




रस्तोगी पिछले एक महीने में अंधेरे में अपने कुत्ते के साथ एक प्रेत की तरह घूमती उस आकृति का आदी हो चुका था । वह जैसे रहस्यपूर्ण ढंग से एकाएक वहां प्रकट होता था वैसे ही एकाएक अन्धेरे में कहीं विलीन हो जाता था । उसका वफादार कुत्ता अपने खड़े कानों और चौकन्नी आंखों से हमेशा उसके पहलू में मौजूद दिखाई देता था ।




कुत्ता और उसका मालिक दोनों ही शायद रात को वहां टहलने आए बिना सो नहीं पाते थे ।




हरेन्द्रनाथ से वाकफियत करने की या उससे वार्तालाप करने की कोशिश में सब-इंस्पेक्टर रस्तोगी बहुत पहले नाकाम नाकामयाब हो चुका था । प्रत्यक्षत: हरेन्द्रनाथ कोई मिलनसार आदमी तो कतई नहीं लगता था । वह एक तन्हाई पसन्द आदमी मालूम होता था जो अपने और बाकी दुनिया के बीच एक पर्दा सा डाले रखता था जिसको भेद पाने का मौका शायद वह किसी को नहीं देना चाहता था ।




हरेन्द्रनाथ निश्चय ही बहुत रहस्यपूर्ण आदमी था । उस रात को भी वातावरण पर हमेशा की तरह अन्धेरे की रेशमी चादर पड़ी हुई थी । सब-इन्स्पेक्टर मन में बड़ी बेचैनी सी महसूस करता हुआ अपनी गश्त की ड्यूटी भुगता रहा था । उसके दोनों सिपाही उसके लिए वहीं चाय लाने का वादा करके दर कहीं चले गये थे । वातावरण स्तब्ध था। कहीं कोई पत्ता भी नहीं हिल रहा था । उसके सामने उससे कोई सौ गज पर एक अंधेरी गली थी जो घाटों के बीच में से गुजरती थी । गली में भी सन्नाटा था लेकिन न जाने क्यों एकाएक रस्तोगी को लगने लगा कि वहां कोई था ।




वह कुछ क्षण आंखें फाड़ फाड़ कर गली की तरफ देखता रहा और फिर मन ही मन एक दृढ निश्चय करके गली की तरफ बढ़ा।




कोई तीस पैंतीस गज आगे आ जाने के बाद उसने एक साये को अंधेरे से बाहर कदम रखते देखा ।




तुरन्त उसका हाथ अपनी बैल्ट के साथ जुड़े होल्स्टर में रखी रिवाल्वर पर पड़ा ।




लेकिन तभी उसे साये के साथ-साथ निशब्द चलता हुआ कुत्ता भी दिखाई दिया ।




रस्तोगी ने एक आह सी भरी और रिवाल्वर पर से हाथ हटा लिया । वह हरेन्द्रनाथ ही था और उसको अभिवादन के लिए भी बुलाने का कोई फायदा नहीं था ।




पिछले एक महीने से वह उस आदमी के सर्द मिजाज से पूरी तरह वाकिफ हो चुका था ।




कुत्ता नीचे को सिर झुकाये यूं दायें बायें गर्दन मार रहा था जैसे कुछ सूंघने, कुछ समझने की कोशिश कर रहा हो । उसके मुंह से गुर्राहट की हल्की सी आवाज लगातार निकल रही थी। फिर शायद रस्तोगी की गन्ध उस तक पहुंच गई उसे रस्तोगी की मौजूदगी का आभास हो गया । उसके गले से गुर्राहट की आवाज निकलना बंद हो गई और उसके स्थान पर उसकी पूंछ धीरे-धीरे हिलने लगी ।




कुत्ता रस्तोगी को पहचानता था । लेकिन अपने मालिक की ही तरह उस पहचान के बदले में वह भी कुछ करने को आमादा नहीं होने वाला था । हरेन्द्रनाथ रस्तोगी की दिशा में निगाह तक भी उठाये बिना कृत्रिम प्रकाश से प्रकाशित फुटपाथ पर चलता हुआ दो इमारतों के बीच में से शुरू होती हुई एक और गली की ओर बढ़ गया ।




कुछ क्षण बाद उस गली का अन्धेरा उसे और उसके कुत्ते को जैसे निगल गया ।




सब-इन्स्पेक्टर का काम घाटों के बीच की उन गलियों के चक्कर भी लगाना था। उन गलियों में क्योंकि हमेशा अन्धेरा ही रहता था इसलिए उनकी तरफ बढ़ते समय वह अपनी वर्दी में से टार्च निकालकर अपने हाथ में ले लेता था और फिर उसी की रोशिनी के पीछे पीछे गलियों में फिरता था । गलियों में इतना अन्धेरा होता था कि टार्च का प्रकाश भी कुछ कदम आगे तक का अन्धेरा दूर कर पता था । उन गलियों के सिरे पर प्रकाशित मेन रोड होती थी और दूसरी तरफ अंधेरा समुद्र जिसकी लहरों के घाटों पर सिर पटकने की आवाजें उन गलियों में बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से गूंजती रहती थीं ।




लेकिन हरेन्द्रनाथ पर उस रहस्यपूर्ण वातावरण का कोई प्रभाव होता नहीं मालूम होता था । वह तो खुद ही उस वातावरण का एक हिस्सा लगता था और अपनी और अपने कुत्ते की मौजूदगी से उसके रहस्य को दोबाला करता मालूम होता था । वहां के अन्धेरे और स्तब्धता से तो उसकी बाकायदा रिश्तेदारी मालूम होती थी ।




तब तक सब-इंस्पेक्टर उस गली के एक दहाने पर पहुंच चुका था जिसमें कि हरेन्द्रनाथ और उसका कुत्ता दाखिल होकर उसकी निगाहों से ओझल हुए थे ।




साथ ही गली भागते कदमों से गूंज उठी । वह हड़बड़ाकर एक कदम पीछे हटा । एक इमारत की एक दीवार के साथ उसकी पीठ जा लगी। उसका हाथ फिर होल्स्टर में रखी रिवाल्वर की मूठ पर पड़ा ।




गली में दहाने पर एक साया प्रकट हुआ जो अंधेरों से निकलकर रोशनी की तरफ भागा । वह एक हिरण की सी तेजी से यूं भाग रहा था कि उसके पांव जमीन को तो जैसे छू ही नहीं रहे थे ।




रस्तोगी सामने को झपटा।




"ठहरो !" - वह चिल्लाया ।




भागते साये ने एक भयभीत निगाह अपने पीछे डाली और फिर पहले से ज्यादा तेजी से भागा ।




रस्तोगी उसके पीछे भागा ।




लेकिन जल्द ही उसे महसूस हो गया कि भागते साये की फुर्ती का मुकाबला वह नहीं कर सकता था । साया हल्के फुल्के जिस्म वाला था और नौजवान था जब कि वह भारी भरकम उम्रदराज आदमी था। साया सड़क पर हिरण की तरह कुलांचें भर रहा था जबकि वह उसके पीछे ड्रम की तरह लुढक रहा था।




फिर मजबूर होकर रस्तोगी ने भागते साये को रोकने का दूसरा तरीका इस्तेमाल करने का फैसला किया । उसने रिवाल्वर होल्स्टर में से निकाल कर हाथ में ले ली । वह साये की दिशा में फायर करने ही लगा था कि एकाएक वह ठिठक गया ।




एकाएक उसे अपने पीछे से भी भागते कदमों की आहट मिली । फिर पलक झपकते ही कोई हवा की तरह उसके बगल से गुजर गया ।




उसकी बगल से कौन गुजरा था इसकी पहचान उसे उस कुत्ते की वजह से ही हुई जो कि हमेशा की तरह अपने मालिक के साथ भाग रहा था । यानी कि अभी उसके बगल से बगोले की तरह हरेन्द्रनाथ गुजरा था । रस्तोगी का रिवाल्वर वाला हाथ अपने आप ही नीचे झुक गया । अब अन्धाधुन्ध फायर करने से गोली का शिकार हरेन्द्रनाथ भी हो सकता था ।




सड़क पर धप्प धप्प पड़ते दो जोड़ी पैरों की आवाज उसके कानों में पड़ती रही ।




पिछला साया अगले साये के करीब होता जा रहा था । फिर अगले साये के मुंह से एक आतंक भरी चीख निकली । कुत्ता एक विशाल गेंद की तरह हवा में उछला । कुत्ते का कन्धा भडाक से अगले साये की पीठ से टकराया । अक्समात हुए उस प्रहार से भागते साये का सन्तुलन बिगड़ गया ।




वह भरभरा कर सड़क पर गिर गया । कुत्ता उसके सिर पर जा खड़ा हुआ । उसने अपने दांत निकाले हुए थे और वह बड़े खतरनाक ढंग से गुर्रा रहा था । वह यूं नीचे गिरे साये के ।




सिर पर खड़ा था जैसे उसके हिलने की भी कोशिश करने पर वह उस पर झपट पड़ना चाहता हो ।




फिर कुत्ते का मालिक भी कुत्ते के पास पहुंच गया ।




- "सावधान !" - रस्तोगी चेतावनी भरे स्वर में बोला - "वह हथियार बन्द हो सकता है । "




लेकिन हरेन्द्रनाथ ने उसकी चेतावनी की कोई परवाह न की । वह नीचे गिरे साये के सिर पर जा खड़ा हुआ । उसने कुत्ते को कोई इशारा किया जिसे देखते ही उसने गुर्राना बन्द कर दिया और वह नीचे गिरे साये से दो कदम पीछे हट गया ।




"उठ कर खड़े हो जाओ।" - हरेन्द्रनाथ ने आदेश दिया




तब तक हांफ्ता लुढ़कता रस्तोगी भी वहां पहुंच चुका था ।




"क... क्या.. क्या माजरा है ?" - वह बड़ी कठिनाई से कह पाया।




उत्तर में कोई कुछ न बोला ।




नीचे गिरी आकृति ने पहलू बदला और फिर अपने दोनों बांहों में अपना सिर दबाकर सुबकियां भरनी आरम्भ कर दीं ।




'अजीब आदमी हो !" - रस्तोगी तिरस्कार पूर्ण स्वर में बोला - "रो रहे हो !"




नीचे गिरे साये ने सुबकियां लेने बन्द न की ।




"उठो !" - रस्तोगी बोला ।




साया न उठा।




" उठते हो कि नहीं ?" - रस्तोगी सख्त स्वर में बोला । अपनी बात का साये पर कोई असर न होता पाकर वह नीचे झुका । उसने हाथ बढाकर साये को उसके कोट के कालर से पकड़ लिया ।




रस्तोगी का भारी भरकम शरीर जो भागने में साये का मुकाबला नहीं कर सका था, यहां काम आ गया । उसने साये को यूं उठाकर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया जैसे वो कोई भारहीन वस्तु हो । कालर को झटका लगने की वजह से साये की अपने सिर पर पहनी टोपी सिर पर से उछली और नीचे जा गिरी।




लम्बे, काले, घने बाल साये के कन्धों पर बिखर गए ।




"हे भगवान !" - रस्तोगी के मुंह से हैरानी भरी सिसकारी निकल गई - "यह तो औरत है ।"




वह एक सुन्दर नौजवान लड़की थी जो मर्दानी पोशाक पहने हुए थी। उसकी खूबसूरत काली आंखें आतंक से फटी पड़ रही थीं। उसके होंठ पीले पड़े हुए थे और चेहरे से सारा खून निचुड़ गया मालूम होता था ।




रस्तोगी को उस पर तरस आने लगा । लेकिन जल्दी ही उसने अपने आपको काबू में कर लिया । वह एक पुलिस अधिकारी था और ऐसी किसी स्थिति में तरस खाना उसका काम नहीं था।




"कौन हो तुम ?" - वह कठोर स्वर में बोला - " और क्या किस्सा है ?"




युवती ने उतर नहीं दिया । उसने अपनी गर्दन को यूं झटका दिया जैसे वो जताना चाहती हो कि वह उत्तर देने वाली भी नहीं थी । इस बारे में बुरी तरह भयभीत होते हुए भी वह बहुत दृढ प्रतिज्ञ दिखाई दे रही थी ।




"मैं पूछता हूं कौन हो तुम ?" - रस्तोगी गुर्राया ।




युवती ने फिर से इन्कार में सिर हिला दिया ।




"यह इतनी रात गए क्या कर रही हो तुम ?"




जवाब नदारद ।




"तुम भागी क्यों थीं ?"




फिर खामोशी ।




"देखो, अगर तुम जवाब नहीं दोगी तो मुझे मजबूरन तुम्हें गिरफ्तार करके थाने ले जाना पड़ेगा ।”




उत्तर फिर भी न मिला ।




"अच्छी बात है" - रस्तोगी दांत भींचकर बोला - "मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं।"




आम तौर पर गिरफ्तारी की धमकी का असर हमेशा सामने आता था लेकिन तब वह धमकी भी बेकार गई । युवती चेहरे पर दृढ़ता का भाव लिए खामोश खड़ी रही । उसकी आंखों में भय की छाया अभी भी तैर रही थी लेकिन उसके भिचें हुए होंठ उसकी दृढ प्रतिज्ञता की साफ चुगली कर रहे थे ।




"आफिसर" - हरेन्द्रनाथ पहली बार बोला - "क्यों न घाट पर चल कर देखा जाए कि यह वहां क्या कर रही थी। "




उसकी आवाज ऐसी प्रतिभाशाली थी कि सुनने वाला उस की तरफ तवज्जो दिये बिना रह नहीं सकता था ।




रस्तोगी ने एकाएक हाथ बढाकर युवती की एक बांह थाम ली और गम्भीर स्वर में बोला- "तुम्हारे पास कोई हथियार है ?"




युवती ने इन्कार में सिर हिलाया ।




“मुझे तुम्हारी तलाशी लेनी होगी।"




युवती अपने आप में सिकुड़ गई लेकिन मुंह से कुछ न बोली ।




रस्तोगी ने उसकी जेबें टटोलीं ।




उसने उसके कोट की भीतरी जेब में हाथ डाला तो उसके मुंह से हैरानी की एक सिसकारी निकल गई । उसने हाथ बाहर खींचा तो उसमें हाथी दांत के काम वाले दस्ते वाली एक रिवाल्वर थी । उसने इलजाम भरी निगाहों से युवती की तरफ देखा । युवती नीचे देखने लगी ।




रस्तोगी ने रिवाल्वर खोली ।




भीतर चार गोलियां और दो खाली कारतूस मौजूद थे । खाली कारतूसों के पृष्ठ भाग पर फायरिंग पिन की ठोकर के निशान बता रहे थे कि गोलियां उनमें से चल चुकी थीं ।




उसने रिवाल्वर की नाल को सूंघा ।




“अभी ताजी ताजी ही चलाई गई है।" - वह बोला । -




उसने फिर घूर कर लड़की की तरफ देखा ।




लड़की खामोश रही ।




उसने लड़की की बांह दोबारा थाम ली और आदेश दिया - "चलो ।"




वह उसे वापिस उस तरफ ले चला जिधर से वह भागती हुई आई थी ।




 हरेन्द्रनाथ और उसका कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे चलने लगे ।




रस्तोगी की टार्च का पीछा करते-करते वे लोग समुद्र के दहाने पर पहुंचे ।




रस्तोगी वहां पर फैले जमाने भर के कबाड़ में टार्च की रोशनी फिराने लगा ।




हरेन्द्रनाथ को तलाशी का वह तरीका न जंचा । उसने अपने कुत्ते की पीठ थपथपाई और उसे आदेश दिया - "मोती ! ढूंढो।”




कुत्ता नाक नीचे को झुकाये फौरन आगे लपका । वहां फैले कबाड़ के बीच बड़ी बेचैनी से गोल गोल घूमता हुआ वह कुछ सूंघने की कोशिश करने लगा ।




युवती पत्थर की प्रतिमा की तरह जड़ सी रस्तोगी के साथ खड़ी रही ।




रस्तोगी अपने टॉर्च की रोशनी सामने डालता हुआ कुत्ते का मार्ग निर्देशन करने लगा । अब वह भी यह देखने को उत्सुक हो उठा कि कुत्ते की तलाश में कोई नतीजा होने वाला था या नहीं ।




एकाएक कुत्ता भौंका और फिर एक स्थान पर जमकर खड़ा हो गया । उसने अपने अगले पंजे फैलाये हुए थे और वह नीचे कहीं निगाह जमाये हुए था ।




रस्तोगी ने आगे बढ़कर देखा तो पाया कि उसके अगले पंजे के बीच जमीन पर एक काले रंग का जनाना पर्स पड़ा था । उसने नीचे झुककर पर्स उठाने का उपक्रम किया ।




तुरन्त कुत्ते के खतरनाक नोकीले दांत चमके । वह रस्तोगी के बढ़ते हाथ पे झपटने ही वाला था कि अपने मालिक की कोड़े की फटकार जैसी आवाज सुनकर ठिठक गया । वह एक कदम पीछे हट गया और बड़ी बैचैनी से अपनी पूंछ हिलाने लगा ।




रस्तोगी ने पर्स उठाया ।




"यह पर्स तम्हारा है ?" - उसने पर्स युवती को दिखाते हुए सवाल किया ।




युवती ने उतर नहीं दिया ।




रस्तोगी ने टार्च हरेन्द्रनाथ को पकड़ा दी और पर्स खोला । हरेन्द्रनाथ ने अपना टार्च वाला हाथ इस प्रकार ऊंचा किया कि रोशनी पर्स के भीतर पड़ सके ।




पर्स में जनाने सौन्दर्य प्रसाधनों के बीच रिवाल्वर की गोलियों का एक पैकेट मौजूद था । पैकेट में गोलियों की किस्म के बारे में जो कुछ छपा हुआ था उससे वह उसी प्रकार की मालूम हो रही थी जो कि युवती के जेब से बरामद रिवाल्वर में फिट बैठ सकती थीं। उसने पैकेट खोला । वह गोलियों से आधा भरा हुआ था । बाकी भाग में रूई ठुसी हुई थी । उसने रूई हटायी तो एकाएक आश्चर्य से उसके नेत्र फैल गये ।




डिब्बे में एकाएक जगमग जगमग हो उठी थी । टार्च की रोशिनी में उसे गोलियों के बीच में एक शानदार हीरा पड़ा दिखाई दिया।




"हीरा !" - उसके मुंह से निकला ।




हीरा रंगत में सफेद था और असाधारण रूप से बड़ा था । उसकी इल्जाम भरी निगाह फिर युवती पर पड़ी । युवती परे देखने लगी ।




रस्तोगी ने उसे बांह पकड़कर झिंझोड़ा और कठोर स्वर में पूछा - "यह क्या है ?"




"मौत का अंगारा ।" - युवती धीरे से बोली ।




"क्या मतलब ?"


"यह इस हीरे का नाम है । "


यह हीरा तुम्हारा है ?"