"इस बार 'ये क्या बकवास है' नहीं कहा आपने !"


उसने बेचैनी से पहलू बदला ।


"दूसरा अहम क्लू" - मैं आगे बढ़ा - "उसके वो कपड़े थे जो उसके फ्लैट में खिड़की के करीब की एक कुर्सी पर पड़े पाये गये थे। उन कपड़ों की बेतरतीबी साबित करती थी कि शीना ने उन्हें कुर्सी के करीब खड़ी होकर नहीं उतारा था और एक एक करके कुर्सी पर नहीं डाला था । उसके वो कपडे कातिल ने कहीं और से उठाये थे और लाकर वहां डाले थे ताकि जान पड़ता कि अपने फ्लैट में उसने अपने कपड़े उतारे थे और फिर खिड़की से बाहर छलांग लगाई थी । असल में उसका फ्लैट मौकायवारदात था ही नहीं । वहां की खिड़की खोल कर और करीबी कुर्सी पर उसके कपड़े डाल कर कातिल ने ये भ्रम पैदा करने की कोशिश की थी कि जो हुआ था, उसके फ्लैट में हुआ था। लेकिन असल में वो यहां की, आपके इस फ्लैट की उस खिड़की से नीचे जा कर गिरी थी । कहिये कि मैं गलत कर रहा हूं !"


उसने कुछ न कहा, केवल जोर से थूक निगली तो गले की घंटी उछली ।


"वो यहां आयी थी ।" - मैं बोला- "क्योंकि आपके उससे यौन सम्बंध स्थापित थे । उसने यहां, इस फ्लैट में, आ कर अपने कपड़े उतारे थे । आपके साथ हमबिस्तर होने के लिये । ठीक?"


उसने जवाब न दिया ।


“अब चुप रहने का कोई फायदा नहीं । या तो हामी भरिये या मेरा मुंह पकड़िये ।"


"ठीक ।" - वो फंसे कण्ठ से बोला ।


मैंने चैन की सांस ली ।


“मार क्यों डाला ?” - फिर पूछा ।


"मैंने न मारा ।”


"प्लीज एक्सप्लेन ।”


उसने एक्सप्लेन किया। एक बार बोलना शुरू किया और यूं बोलता चला गया जैसे सीने पर कोई बोझ था जिसे हलका करने के लिये वो तड़प रहा था ।


जो उसने कहा वो मेरे कयास से ज्यादा जुदा नहीं था ।


शीना तलवार मनोरथ सलवान के साथ लिव-इन रिलेशन बनाये थी लेकिन खुफिया तौर पर उसके दिनेश पाण्डेय से भी ताल्कुकात थे - महज जिंसी ताल्कुकात थे । पाण्डेय एक दवाइयां बनाने वाली बड़ी कम्पनी में चीफ कैमिस्ट था जहां से वो वैसी पिल्स चुरा कर लाता था जो कि नशा करने के काम आती थीं और उन्हें शीना को - जो कि ड्रग एडिक्ट थी - मुहैया कराता था । -


पाण्डेय की उस मेहरबानी का बदला वो अपने जनाना तरीके से मेहरबान हो कर चुकाती थी । यानी कि उनमें कोई प्रेम सम्बंध स्थापित नहीं था, उन दोनों के बीच जो गुजरता था, एक सौदे के तहत गुजरता था । पाण्डेय उसे पिल्स सप्लाई करता था, शीना उसे गाहे बगाहे सैक्स सप्लाई करती थी । यानी इस हाथ ले, उस हाथ दे जैसा प्रैक्टीकल, मशीनी रिश्ता उन दोनों में स्थापित था । वारदात की रात उस सौदे के तहत ही शीना पाण्डेय के फ्लैट में आयी थी । उस रात जब शीना वहां आयी थी तो ड्रग्स के गम्भीर नशे में थी बकौल पाण्डेय वो ड्रग्स तो नहीं लेता था लेकिन उस रात उस पर विस्की का बेतहाशा नशा हावी था । अपनी स्थापित रुटीन के तौर पर शीना ने अपने कपड़े उतारे थे और बैड पर पाण्डेय के हवाले हो गयी थी। बाद में नशे की तरंग में दोनों की आंख लग गयी थी । एक घंटा दोनों एक दूसरे की बांहों में सिमटे सोये रहे थे । फिर एकाएक शीना यूं चिहुंककर उठी थी जैसे कोई बुरा सपना देखा हो । एकाएक वो यूं चीखने चिल्लाने लगी थी जैसे उसको हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया हो । पाण्डेय के चुप कराये चुप नहीं होती थी, उलटे कटखनी बिल्ली की तरह काटने, नोचने, झंझोड़ने को दौड़ती थी । फिर, बकौल पाण्डेय, उसे गुस्सा आ गया और उसने शीना को दो करारे थप्पड़ रसीद कर दिये । मकसद शीना के होश ठिकाने लाना ही था लेकिन इत्तफाक ऐसा हुआ कि थप्पड़ों के वेग से वो लड़खड़ाई, धड़ाम से यूं गिरी कि उसका सिर एक करीबी टेबल के कोने से जाकर टकराया । वो निश्चेष्ट हो गई । पहले तो पाण्डेय ने यही समझा कि होश खो बैठी थी, पांचेक मिनट में होश में आ जाने वाली थी । ऐसा न हुआ तो उसने शीना का मुआयना किया । तब उसे पता लगा कि उसकी तो गर्दन टूट गयी थी और वो मरी पड़ी थी ।


"मेरे छक्के छूट गये ।" - वो कातर भाव से बोला - "आधी रात को अपने फ्लैट में मैं एक लाश के साथ, ये खयाल ही मेरे प्राण कम्पाने लगा ।”


"आपने तब यहां की खिड़की से बाहर धकेल कर लाश से पीछा छुड़ाया ?" - मैं बोला ।


"हं... हां । "


" इसी वजह से किसी ने उसकी चीख की आवाज न सुनी क्योंकि वो तो खिड़की से धकेले जाने से पहले ही मरी पड़ी थी ! लाश कैसे चीखती !"


"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं तो बस चाहता था कि उसको उसके फ्लैट में डाल आता । लेकिन कैसे करता ? मुझे कोई कारीडोर में मिल सकता था । लिफ्ट में मिल सकता था । ऊपर से वो नंगी थी। मैंने उसे उसके कपड़े वापिस पहनाने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सका था । कपड़ने पहनाने के लिये मैं उसके जिस्म को काबू में करता था तो उसकी टूटी गर्दन यूं इधर उधर लुढ़कने लगती थी जैसे किसी भी वक्त धड़ से अलग हो सकती हो । नहीं, मैं उसे कपड़े नहीं पहना सकता था। तब मजबूरी में मैंने वो किया जो कि हुआ ।”


"क्या ?"


“मैंने उसके फ्लैट की चाबी अपने काबू में की, उसके कपड़े समेटे और नीचे उसके फ्लैट पर पहुंचा। वहां मैंने उसके कपड़े खिड़की के करीब की एक कुर्सी पर डाल दिये, खिड़की खोल दी और भीतर के लाइट स्विच आन कर दिये । फिर फ्लैट से निकल कर मैंने मेन डोर को बाहर से सेफ्टी चेन लगा दी ।"


“आपको कैसे मालूम था कि वो सेफ्टी चेन बाहर से लग जाती थी ?"


"खुद शीना के बताये मालूम था । वो चेन उसने हाल में ही मेन डोर में फिट करवाई थी और हमेशा बढई को कोसती थी जो उसे ठीक से फिट नहीं करके गया था, उसने चेन को ज्यादा ढीली छोड़ दिया था, और अब बुलाने पर आ नहीं रहा था । शीना ने ही मुझे बोला था कि चेन में ढील ज्यादा होने की वजह से उसे बाहर से चढ़ाया, उतारा जा सकता था ।"


“आई सी ।”


"मैंने चेन को बाहर से चढ़ा दिया और मेन डोर को लॉक कर दिया।"


"ताकि लगता कि फ्लैट भीतर से बंद था, कोई बाहर से वहां आया नहीं हो सकता था, इसलिये जरूर उसने खुदकुशी की थी!"


“हां ।" 


“आगे ?"


"मैं अपने फ्लैट में लौटा। मैंने एक बार फिर तसदीक की कि वो वाकई मर चुकी थी। फिर फ्लैट की बत्तियां बुझाई, वो खिड़की खोली, लाश को उठा कर वहां ले कर गया, उसे खिड़की की चौखट पर टिकाया और फिर बाहर धकेल दिया। पीछे फौरन मैंने खिड़की बंद कर दी ।"


उसके शरीर ने यूं जोर की झुरझुरी ली जैसे तमाम नजारा निगाह के सामने तरोताजा हो उठा हो ।


"तो आपका दावा है लीना दुर्घटनावश मरी ? वो एक्सीडेंटल डैथ का केस था ?"


"ये हकीकत है । मैं उससे बहुत सुख पाता था । मैं उसकी जान लेने का खयाल भी नहीं कर सकता था । उसके मेरे बीच में जो चल रहा था, मैं उससे पूरी तरह से संतुष्ट था । क्यों भला मैं इरादतन उसकी जान लेता ! उस रात उसने ड्रग्स का घनघोर नशा न किया होता तो क्यों उसकी जान जाने की नौबत आती?"


"आपने उस पर हाथ उठाया !"


"मजबूरन उठाया । गुनाह किया। लेकिन किसी पर हाथ उठाना और उसे जान से मार डालना क्या एक ही दर्जे के गुनाह हैं ?"


"आप उसे ड्रग्स सप्लाई करते थे । वो अपने फ्लैट में ड्रग्स रखती थी । ढ़ेर मिकदार में ! ठीक ? "


"हां ।"


“अपना ड्रग्स का स्टाक वो बाथरूम की कैबिनेट में रखती थी ?”


“हां ।”


"जहां से वो आपने सरका लिया था ?"


"हां"


"सब न सरका पाये । "


"मैं सब कुछ उठा लाया था । केवल पीछे एक एस्परीन की शीशी छोड़ी थी..."


"जिसमें एस्परीन नहीं थी ।"


"एस्परीन नहीं थी ! तो क्या था ?"


"एल्प्राक्स । पार्टी ड्रग | जरूर आप ही का सप्लाई किया हुआ।"


“एस्परीन की शीशी में एस्परीन की जगह एल्प्राक्स की गोलियां थीं ?"


"हां। लिहाजा वहां से ड्रग्स सरकाने के अपने काम को आप सौ फीसदी कामयाबी से न अंजाम दे सके । लेकिन आपने ऐसा किया क्यों ?"


"क्योंकि.. क्योंकि पुलिस वो ड्रग्स बरामद कर लेती तो हो सकता था उनका रिश्ता मेरे से जोड़ने में कामयाब हो जाती ।”


“आई सी ।"


लिहाजा मेरा खयाल गलत था कि ड्रग्स मनोरथ सलवान ने सरकाये थे और उसके यहां मेरी विजिट के दौरान उनके साथ उसकी नाशक बरखा बाथरूम में थी । बरखा वहां थी तो मेरे वहां पहुंचने से पहले वहां से जा चुकी थी ।


“वो एक हादसा था ।" - वो यूं बोला जैसे ख्वाब में बड़बड़ा रहा हो ।


"फिर भी आपने जो किया, गलत किया । अगर वो एक हादसा था तो आपको उसे हादसा ही बने रहने देना चाहिये था । आपको उसे हस्पताल पहुंचाने का इंतजाम करना चाहिये था ।”


"मुर्दे हस्पताल नहीं पहुंचाये जाते ।”


"क्या पता वो मरी न होती !"


"लेकिन मैंने दो बार उसकी नब्ज देखी थी जो कि गायब थी । फिर जैसे उसकी गर्दन लटकी हुई थी, उसकी रू में उसका जिंदा होना करिश्मा होता । "


“आप कोई मैडीकल एक्सपर्ट नहीं हैं। हो सकता है अपनी घबराहट, बौखलाहट के आलम में आपने ठीक से, चौकसी से नब्ज न देखी हो । जमा, करिश्मे होते ही रहते हैं इस फानी दुनिया में | क्या पता इस बार भी करिश्मा होता और डाक्टर लोग उसे बचा लेते ! लेकिन आपने तो उसे अपनी खिड़की से नीचे धकेल कर किस्सा ही खत्म कर दिया |"


कुछ क्षण खामोशी रही ।


“अब क्या होगा ?" - फिर उसके मुंह से निकला ।


“अब जो होगा पुलिस के किये होगा।" - मैं बोला - "मैं पुलिस को फोन करता हूं।"


"क्या ! तुम पुलिस नहीं हो ?"


"नहीं । मैं प्राइवेट डिटेक्टिव हूं । "


"लेकिन मैंने तो समझा था...' "


"गलत समझा था। मैंने आते ही बोला था कि मैं प्राइवेट डिटेक्टिव हूं । शायद आपका ध्यान कहीं और था ।"


“शायद । यानी जो कुछ मैंने अभी कहा, पुलिस को न कहा ?"


“हां ।”


"गुड । फिर तो समझ लो मैंने कुछ नहीं कहा । इट विल बी युअर वर्ड अगेंस्ट माई वर्ड ।"


"तो ये पैंतरे हैं ?"


“हां।" - उसके स्वर में दिलेरी का पुट आया ।


"शीना से ताल्लुकात से कैसे मुकरोगे ?"


"मुकरने की नौबत ही नहीं आयेगी। मेरे उसके ताल्लुकात की बाबत कोई नहीं जानता। नौबत आने पर मेरा यही दावा होगा कि मैं तो शीना से वाकिफ तक नहीं था ।"


" आप शीना के फ्लैट में गये थे और चोरों की तरह वहां घुसे थे । वहां कहीं न कहीं आपने उंगलियों के निशान जरूर छोड़े होंगे । फिर क्या जवाब देंगे। जिस लड़की को आप जानते तक नहीं, उसके फ्लैट में आपके उंगलियों के निशान बने क्योंकर पाये गये?"


"मिटा दूंगा । अब मिटा दूंगा । चाबी अभी भी मेरे पास है..."


" अब नहीं मिटा पायेंगे। पुलिस ने फ्लैट को सील कर दिया हुआ है।"


वो हकबकाया ।


"फिर वो चाबी भी आपको फंसायेगी ।"


"क... क्या ?"


“अगर शीना ने खुदकुशी की थी तो लाक्ड फ्लैट में चाबी भीतर से बरामद होनी चाहिये थी । पुलिस का ध्यान इस बारीकी की ओर नहीं गया था । चाबी की तलाश में उन्होंने फ्लैट को नहीं खंगाला था, क्योंकि चाबी का उनको खयाल ही नहीं आया था । वो खयाल अब आयेगा । मैं बोलूंगा तो आयेगा । फिर चाबी आपके पास से बरामद होगी । तब क्या जवाब देंगे। मेरा फिर सवाल है, जिस लड़की को आप जानते तक नहीं, उसके फ्लैट की चाबी आपके पास होने का क्या मतलब ?"


“नहीं है मेरे पास । कौन कहता है कि है ? मैं अभी..."


उसने भीतर बैडरूम की तरफ कदम बढ़ाया ।


मैं छलांग मार कर उसके सामने जा खड़ा हुआ ।


“आप यहां से हिलेंगे भी नहीं ।" - मैं कहरबरपा लहजे से बोला।


वो डर गया, उसके शरीर ने प्रत्यक्ष झुरझुरी ली ।


“ये फौजदारी है।" - फिर मिमियाता सा बोला - "तुम जबरन यहां आए घुसे हो और..."


"है न फौजदारी ! पुलिस में शिकायत दर्ज कराना । समझो पुलिस को मैं बुलाकर तुम्हारा काम आसान कर रहा हूं । करना शिकायत । ओके ?"


उसके कस बल निकल गये । पराजय में उसने सिर झुका लिया।


मैं मोबाइल निकाल कर उस पर 100 पंच करने लगा ।


समाप्त