उसके नेत्र फैले ।
"ब्रा को कपड़ों के ढेर के मिडल में कहीं होना चाहिये था लेकिन वो सबसे नीचे है । "
उसके नेत्र और फैले ।
"मतलब क्या हुआ इसका ?" - फिर बोली ।
“सोचो।”
"कपड़े पहले कहीं और उतारे मसलन उतार कर फर्श पर इधर उधर छितरा दिये, फिर उठा कर इकट्ठे किये और एक ढ़ेर की सूरत में कुर्सी पर डाल दिये और इस वजह से तरतीब बिगड़ गयी ।"
"कपड़े कहीं और उतारे, ये बात जंचती है लेकिन ये किधर जरूरी है कि बाद में उठा कर उसी ने कुर्सी पर डाले । वो खुदकुशी करने जा रही थी, उसे क्या फर्क पड़ता था कि उसके पीछे कपड़े कहां पड़े थे ! आप मरे जग प्रलय । फर्क पड़ता होता तो उन्हें तरीके से तह करके वार्डरोब में रखती, ढ़ेर की सूरत में बेतरतीबी से कहीं पड़े क्यों रहने देती ?"
"ठीक । लेकिन मतलब क्या हुआ इसका ?"
“मतलब इस बात पर मुनहसर है कि कुर्सी पर कपड़े उसने वहां डाले या किसी और ने डाले ?"
" और किसने ? कातिल ने ?"
" जरूरी नहीं हो सकता है पुलिस ने कपड़े फर्श पर ढेर हुए पाये हों और किसी पुलिसिये ने उन्हें उठा कर कुर्सी पर डाल दिया हो ।”
"लेकिन जब आप मानते हैं कि मामला कत्ल का है तो... तो कपड़ों की इस बेतरतीबी में कातिल का भी तो कोई हाथ हो सकता है !"
"कैसे ?"
“मैं क्या बोलूं ? आप डिटेक्टिव हैं, आप बताइये !"
" बताऊंगा । मैं ही बताऊंगा । वक्त आने दो ।"
"क्या करेंगे ?"
“शीना की निजी जिंदगी को टटोलूंगा । मालूम करूंगा किन लोगों से उसका मिलना जुलना उठना बैठना था । फिर सबको टटोलूंगा ।"
"ये तो लम्बा काम है ! कई दिन लग सकते हैं । "
“वो तो है ।”
"मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकती लेकिन वो रकम आफर कर सकती हूं जो कल आपने मेरे पास छोड़ दी थी । मैं लाती हूं।"
“जरूरत नहीं ।"
"स्टीरियो भी आप ही रखिये । इसे बेचकर... ॥
"अरे, बोला न, जरूरत नहीं । "
"लेकिन..."
" औरतों की लेकिन से मैं आजिज हूं।"
वो खामोश हो गयी ।
***
अगले दो मुकम्मल दिन मैंने शीना तलवार की निजी जिंदगी को टटोलने में गुजारे। जो बातें मेरी जानकारी में आयी, वो थीं :
उसे अभिनय का शौक था, टीवी सीरियल्स उसका निशाना थे और अपने इस मिशन के तहत वो हफ्ते में तीन बार नोयडा, फिल्म सिटी में बाकायदा एक्टिंग की क्लास अटैंड करने जाती थी ।
अजय शुक्ला नामक एक भूतपूर्व बायफ्रेंड था जिसका करोलबाग में सॉफ्टवेयर का बिजनेस था और जिससे गाहे बगाहे वो अभी भी मिलती थी ।
केटरिंग इंडस्ट्री में उसके वाकिफकारों की कोई कमी नहीं थी और वो अक्सर उनके द्वारा आर्गेनाइज की जाने वाली ड्रिंक डिनर की पार्टियों में शरीक होती थी ।
वो बहुत मसरूफ जिंदगी गुजारती थी इसलिये मोटे तौर पर अपने फ्लैट से उसका रिश्ता लाजिंग फार दि नाइट वाला ही था ।
उसके कई वाकिफकार मेरी जानकारी में आये लेकिन उनमें से कोई भी मुझे ऐसा न लगा जो कि उसे उसके फ्लैट
की खिड़की में से नीचे टपका सकता था ।
वारदात की रात को 'कोजी कार्नर' से अपनी ड्यूटी समाप्त करके वो सीधी 'रियाल्टो' गयी थी, वहां से निकलने के बाद वो कहीं और भी गयी थी या सीधी अपने फ्लैट पर लौटी थी, इस बाबत मैं कुछ न जान सका । अलबत्ता ये हिंट मुझे बराबर मिला कि बार हॉपिंग की शौकीन थी, यूं किसी नौजवान से मन रमता था तो उसे अपने फ्लैट पर भी ले आती थी । वारदात की रात उसने ऐसा कुछ किया था, इस बात की तसदीक न हो सकी । वाचमैन भी उस बाबत किसी काम न आया । मालूम पड़ा था कि देर रात में वो ऊंघता आंघता ही ड्यूटी करता था ।
फिर मालूम पड़ा कि शीना का मेल कम्पनी के साथ घर लौटना कोई नयी बात नहीं थी इसलिये कोई भी इस बात की तरफ कोई खास तवज्जो नहीं देता था । वाचमैन इस बात की भी तसदीक न कर सका कि वारदात की रात को वो घर अकेली लौटी थी या उसके साथ कोई था ।
मुझे ये भी हिंट मिला था कि नाइट वाचमैन अफीम खाने का आदी था इसलिये वाचमैन केबिन में कुर्सी पर पड़े पड़े उसका ऊंघ जाना आम बात थी । ऐसी गफलत वाचमैन की ड्यूटी करने वाले शख्स के लिये गलत थी लेकिन कोई उसे टोकने वाला नहीं था ।
इसी वजह से उसने शीना को गिरते नहीं देखा था, खाली उसके धड़ाम से गिरने की आवाज सुनी थी, तत्काल तो कर्टसी अंटा - जिसकी वजह भी उसकी समझ में नहीं आयी थी । -
"पहले तो मैं इसे अपनी खामखयाली ही समझा था ।"
उसने कहा था - "समझा था कि मैं कोई सपना देख रहा था । लेकिन वो तो यूं धड़ाम से आ कर गिरी थी कि मुझे धरती हिलती जान पड़ी थी । केबिन से निकल कर बाहर कम्पाउंड में झांका तो... तो... हे भगवान ! अभी भी वो नजारा याद आता है तो अंदर तक हिल जाता हूं।"
“चीख सुनी ?" - मैंने पूछा था ।
"चीखने वाला कौन था वहां ? हेली रोड तो आधी रात को सुनसान पड़ी थी ?"
“अरे, मैं मरने वाली की बात कर रहा हूं । उसके कमपाउंड में आ कर गिरने की धड़ाम की आवाज सुनने से पहले क्या उसकी चीख की आवाज भी सुनी थी ?"
“चीख का आवाज ! नहीं ! नहीं सुनी थी ।”
"पक्की बात ?"
"हां । कोई कहता है वो चीखी थी ?"
"कोई नहीं कहता । मैं तुमसे पूछ रहा हूं।"
"मैंने जवाब दिया न, साहेब ! नहीं सुनी थी ।"
जो कि कोई बड़ी बात नहीं थी । खुदकुशी की सूरत में कोई बड़ी बात नहीं था। खुद छलांग लगाने वाले का चीखने का क्या मतलब ? लेकिन जबरदस्ती धक्का दिया जाने की सूरत में चीख निकल जाना क्या स्वाभाविक नहीं था ?
था तो सही !
मैं कंपाउंड में उस स्थान पर पहुंचा जहां वो आ कर गिरी थी ।
वारदात की रात की तरह उस घड़ी भी आधी रात होने को थी और टावर में सर्वत्र सन्नाटा था। मैंने सिर उठा कर उसकी पूरी ऊंचाई में निगाह दौड़ाई तो पाया कि दो तीन खिड़कियों में उस घड़ी रौशनी थी और वो दो तीन खिड़कियां भी बंद थीं ।
तब एकाएक मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी ।
ऊपर से कोई नीचे आ कर गिरा तो न किसी ने उसे गिरते देखा और न चीख की आवाज सुनी। बाद में कंपाउंड में पड़ी क्षतविक्षत लाश मिली तो क्या लाश को देखके बताया जा सकता था कि वो कितनी ऊंचाई से नीचे आ के गिरी थी ?
हरगिज नहीं ।
मैं नहीं जानता था कि कातिल कौन था लेकिन उसकी तलाश करने का एक जरिया अब मेरे सामने था ।
अब कल दिन में मैंने निश्चित रूप से फिर वहां हाजिरी भरनी थी ।
***
सुबह दस बजे मैं फिर हेली रोड पर 'हिमसागर' के परिसर में था ।
मैं दसवी मंजिल पर पहुंचा और खामोशी से ऊपर की पांच मंजिलों के और नीचे की पांच मंजिलों के फ्रंट के फ्लैट्स की पड़ताल की तो पाया कि दो फ्लैट खाली थे तो तीन में बड़े परिवार बसते थे। अपनी जांच के दायरे में आने वाले मुझे बस पांच ही फ्लैट लगे जिनमें से दो दस मंजिल से नीचे थे और तीन ऊपर थे ।
पड़ताल का तसल्लीबख्श होना जरूरी था इसलिये उसमें मेरा लगभग सारा दिन खर्च हो गया था लेकिन मुझे परवाह नही थी क्योंकि हासिल नतीजे से मैं संतुष्ट था और जानता था कि उस वारदात का हल अब मेरे से ज्यादा दूर नहीं था ।
शाम सात बजे मैंने तेरहवीं मंजिल पर जा कर फ्लैट नम्बर 13 ए की कालबैल बजाई ।
शीना के फ्लैट की तरह वो प्लाट भी टावर के फ्रंट में था, शीना के फ्लैट के ऐन ऊपर था, और उसकी भी एक खिड़की का रुख फ्रंट के कंपाउंड की ओर था ।
एक कोई चालीस साल के चश्माधारी व्यक्ति ने दरवाजा खोला ।
वो कार्टूराय की पतलून और हाईनेक का पुलोवर पहने था और सूरत से बड़ा सम्भ्रान्त जान पड़ता था ।
“यस ?" - वो संजीदा लहजे से बोला ।
“नमस्ते ।” - मैं बोला- "जनाब, मैं आपसे शीना तलवार की बाबत बात करना चाहता हूं।"
उस पर मेरी बात की कोई प्रतिक्रिया होना तो अपेक्षित था लेकिन जो प्रतिक्रिया हुई, वो अप्रत्याशित थी ।
मेरे खामोश होने से भी पहले मैंने उसके चेहरे का रंग उड़ता साफ देखा ।
मुझे यकीन हो गया कि अब बाकी के चार फ्लैटों की पड़ताल जरूरी नहीं थी। पहली कोशिश में ही मैं सही ठिकाने पर पहुंच गया था ।
सुधीर कोहली, दि लक्की बास्टर्ड ! - मैंने मन ही मन खुद अपनी तारीफ की।
मैंने उसकी बांह थाम कर उसे चौखट पर से एक तरफ हटाया और फ्लैट के भीतर कदम रखा। मैंने अपने पीछे दरवाजा भिड़काया और आगे बढ़ा ।
वो पीछे जड़ सा यथास्थान खड़ा रहा ।
मैं सीधा ड्राइंगरूम की, फ्रंट की, इकलौती खिड़की पर पहुंचा ।
मैंने खिड़की खोली और चौखट से आगे के प्रोजेक्शन पर निगाह डाली ।
प्रोजेक्शन शीशे की तरह चमक रहा था । उस पर धूल, मिट्टी का नामोनिशान भी नहीं था । जान पड़ता था किसी ने उसे बड़े यत्न से साफ किया था, बड़ी लगन से रगड़ कर पोंछा था ।
गुड !
मैं वापिस घूमा ।
"आपका नाम दिनेश पाण्डेय है।" - मैं बोला- "मैं ये आपसे पूछ नहीं रहा हूं, आपको बता रहा हूं।"
वो खामोश रहा ।
"वो इस खिड़की से नीचे टपकी थी।" - मैं आगे बढ़ा - "ये भी मैं आपसे पूछ नहीं रहा हूं आपको बता रहा हूं।"
"ये क्या बकवास है ?"
"शुक्र है मुंह से बोल तो फूटा ! मेरे को तो फिक्र हो गयी थी कि आपको खड़े खड़े लकवा मार गया था ।”
"मैं कहता हूं ये क्या बकवास है ?"
“अव्वल तो ये बकवास है नहीं, मिस्टर पाण्डेय, है तो आपको मालूम है क्या बकवास है ! आपसे बेहतर किसी को मालूम हो ही नहीं सकता । अब... आई रिपीट, अब मुझे भी मालूम है लेकिन आपसे बेहतर फिर भी नहीं ।"
“क्या मालूम है ?”
" बताता हूं । ये भी बताता हूं कि कैसे मालूम है ! बल्कि यूं कहिये कि कैसे सूझा ! आपकी जानकारी के लिये मैं प्राइवेट डिटेक्टिव हूं और मेरा माइंड ट्रेंड है उन बातों को भी नोट करने को जिन को पुलिस नोट नहीं करती । या यूं कहिये कि आदतन नजरअंदाज करती है । वारदात की रात को किसी ने मरने वाली को लौटते नहीं देखा था । वाचमैन ने देखा होना चाहिये था लेकिन उसकी नालायकी है कि उसने न देखा । न ही किसी ने शीना को ऊपर से नीचे गिरते देखा । पुलिस आयी, उसने कम्पाउंड में टावर से टपकी, तुरंत मृत्यु को प्राप्त हुई शीना को देखा, सिर उठा कर टावर का मुआयना किया, एक ही खिड़की को - जो कि दसवीं मंजिल की थी, शीना के फ्लैट की थी खुली पाया और कूद कर इस • गलत - नतीजे पर पहुंच गयी कि वो वहीं से टपकी थी । फिर लाश की शिनाख्त हुई, पता चला कि वो शीना तलवार थी और दसवीं मंजिल के उस फ्लैट में रहती थी जिसकी खिड़की खुली थी तो आदत से मजबूर पुलिस ने दूसरा गलत जल्दबाजी का नतीजा निकाला कि शीना ने अपने फ्लैट की उस खिड़की से कूदकर खुदकुशी कर ली थी।" -
मैं अपने शब्दों का उस पर प्रभाव देखने को एक क्षण को ठिठका, फिर आगे बढ़ा - "शीना के खुदकुशी करने की कोई, कोई भी, वजह नुमायां नहीं थी इसलिये उसकी बहन की गुहार थी कि उसका कत्ल हुआ था । कत्ल हुआ था तो कोई कातिल भी था । लेकिन कातिल को टावर से रुखसत होते किसी ने नहीं देखा था । क्यों नहीं देखा था ? क्योंकि कातिल रुखसत हुआ ही नहीं था । क्यों रुखसत नहीं हुआ था? क्योंकि उसने टावर से बाहर कदम रखा ही नहीं था । क्यों कदम नहीं रखा था ? क्योंकि उसका मुकाम भी शीना की तरह यही था । वो भी इसी टावर का रेजीडेंट था । ये सूझ जाने पर आगे आप तक पहुंच जाना, देख लीजिये, मेरे लिये कोई खास मुश्किल साबित नहीं हुआ है ।"
वो खामोश रहा ।
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