"मनोरथ सलवान के पास फ्लैट की चाबी है ।" - मैं बोला - “और लोगों के पास भी हो सकती है । वहां रेलवे प्लेटफार्म की तरह लोगों का आना जाना वाजिब नहीं । एक जना स्टीरियो चोरी कर सकता है तो कोई दूसरा, तीसरा, चौथा वहां कोई और गुल खिला सकता है । "


"क्या ?"


“कोई ऐसा सबूत नष्ट कर सकता है जो कि कत्ल की तरफ इशारा करता हो । पुलिस को तो ऐसे किसी सबूत में दिलचस्पी है नहीं - वो तो पहले ही इसे खुदकुशी करार दे कर सहूलियत का रास्ता अख्तियार कर चुकी है - कत्ल की तरफ इशारा करने वाले किसी सबूत का, किसी क्लू का, उनके नोटिस में न आया होना क्या बड़ी बात है ! ऐसे किसी क्लू की अभी भी हिफाजत हो सकती है अगरचे कि फ्लैट को सील कर दिया जाये । "


"हूं।" - उसने गम्भीर हूंकार भरी ।


“ पुलिस का फर्ज बनता है केस के हर पहलू पर विचार करने का । आप की रिकार्ड की सूई परमानेंट करके खुदकुशी पर ही अटकी रहे, ये तो जायज बात नहीं !"


उसने सहमति में सिर हिलाया, फिर बोला - "मैं बाराखम्बा रोड थाने फोन लगाता हूं।"


कुछ अरसा वो फोन से उलझा रहा ।


"हो जायेगा फ्लैट सील ।" - आखिर बोला ।


"थैंक्यू है" मैं बोला- "एक बात और ।" -


" अभी और भी ?"


"प्लीज !"


"बोलो वो बात भी ।"


“मौकायवारदात पर पुलिस फोटोग्राफर ने भी अपना काम किया होगा ?"


"हां । रुटीन है ।"


"मैं उसकी खींची तसवीरें देखना चाहता हूं।"


"क्यों ?"


"यादव साहब, प्लीज, समझ लीजिये ये पीडी की रुटीन है।"


वो खामोश रहा ।


"दरअसल" - मैं व्यग्र भाव से बोला- "मैं मनोरथ सलवान के पीछे अभी और पड़ना चाहता हूं। उन तसवीरों के जरिये मुझे आगे बढ़ने के लिये कोई फुटहोल्ड मिल सकता है। "


"नानसेंस !"


“नानसेंस ही सही । नाउम्मीदी मुझे ही तो होगी ! लेकिन फिर ये गिला तो नहीं रहेगा कि केस पर मैंने दिलोजान से काम न किया !"


"नानसेंस ! तुम भूल रहे हो - या जानबूझ के नजरअंदाज कर रहे हो कि बाजरिया सेफ्टी चेन फ्लैट का दरवाजा भीतर से बंद था । यानी फ्लैट के मेनडोर की चाबी पास होने के बावजूद कोई भीतर दाखिल नहीं हो सकता था । इस बात को खातिर में लाओ, पीडी साहब, और कबूल करो कि केस का खुदकुशी के अलावा कोई आलटरनेट मुमकिन नहीं । अब ठहरे पानी में पत्थर फेंकना नाजायज हरकत है।"


“तसवीरों पर मेरे एक निगाह डालने से तुम्हारे नामोनिहाद ठहरे पानी में कोई हलचल नहीं पैदा होने वाली, यादव साहब ।"


"ठीक है । थाने जाओ । वहां सब-इंस्पेक्टर राहुल पचौरी से मेरे हवाले से इस बाबत बात करना ।"


"थैंक्यू यादव साहब, थैंक्यू वैरी मच ।”


***


मैं बाराखम्बा रोड थाने पहुंचा ।


और इंस्पेक्टर यादव के हवाले से युवा सब-इंस्पेक्टर राहुल पचौरी से मिला ।


उसने मुझे तसवीरें दिखाने में कोई हुज्जत न की। अपने आफिस में उसने मुझे बिठाया और एक लिफाफे में से कोई एक दर्जन आठ गुणा दस की तसवीरें निकाल कर मेरे सामने डाल दीं ।


मैंने उनकी तरफ तवज्जो दी ।


सबसे पहले लाश की तसवीरों को मैंने अलग डाला और बाकी - फ्लैट के इंटीरियर की तसवीरों की तरफ तवज्जो दी | -


एक तसवीर में ड्राईगरूम की साइड टेबल पर रखा वो स्टीरियो साफ दिखाई दे रहा था जो मैं सलवान के कब्जे से निकाल कर लाया था ।


एक दूसरी तसवीर में खुली खिड़की के करीब पड़ी वो कुर्सी चित्रित थी जिस पर एक ढ़ेर की सूरत में मरने वाली के कपड़े पडे थे ।


बाकी तसवीरों में मुझे दिलचस्पी के काबिल कुछ न दिखाई दिया ।


अपने मोबाइल से मैंने साइड टेबल वाली तसवीर की और कपड़ों वाली कुर्सी की तसवीर की तसवीरें खींच ली ।


सब-इंस्पेक्टर ने कोई ऐतराज न किया ।


इंस्पेक्टर देवेंद्र यादव के हवाले का जहूरा था।


***


शाम को सूरज ढ़ले छोटी बहन के सेवा नगर स्थित आवास पर मेरी उससे मुलाकात हुई ।


"मैं दिन में भी यहां आया था ।" - मैंने उसे बताया ।


“अच्छा !" - वो अनमने भाव से बोली ।


"तुम्हारे मोबाइल पर भी काल नहीं लग रही थी ।" "गलती से यहां रह गया था। मैं गुड़गांव में थी ।" "ओह !"


उसने मेरे लिये चाय बनाने की पेशकश की जिससे मैंने इंकार न किया ।


फिर मैंने स्टीरियो उसकी नजर किया ।


“स्टीरियो !” - वो सकपकाई - "मुझे तो इसकी जरूरत नहीं !"


“फिर भी ले लो । तुम्हारी बहन का है । "


“अच्छा !"


"हां । कीमती आइटम है, नहीं जरूरत तो बेच देना । और नहीं तो वो रकम ही रिकवर हो जायेगी जो कि तुमने मुझे दी थी ।”


"आपके पास कहां से आया ?"


मैंने बताया ।


"ओह ! तो क्या फैसला है आपका ? मनोरथ सलवान कातिल है ?"


"मेरे खयाल से तो नहीं !"


उसका चेहरा लटक गया ।


“चालू आदमी है । जरूरत पड़ने पर कुछ भी कर सकता है । लेकिन ये कत्ल उसने किया हो, ऐसा मुझे नहीं जान पड़ता । कत्ल उसने किया होता तो ये स्टीरियो न उठाया होता ।"


"तो ? शीना ने खुदकुशी ही की ?"


"नहीं । कत्ल तो मुझे पूरा यकीन है कि हुआ है ।"


"लेकिन कातिल सलवान नहीं है !"


"मुझे नहीं लगता कि है ।"


"तो कौन होगा कातिल ?"


“कोई तो होगा ही !"


“तलाश कर लेंगे ?


"कोशिश तो पूरी पूरी है ! अलबत्ता वक्त लगेगा ।”


“जो कि आप लगायेंगे ?"


“हां ।”


"जबकि मैं आपकी पूरी फीस नहीं भर सकी हूं।"


"कभी कभी मेरे पर गुड डीड आफ दि डे करने की सनक सवार होती है। समझ लो वो सनक अब सवार है । "


“कमाल के आदमी हैं आप।" - वो एक क्षण ठिठकी फिर बोली - “आज के अखबार में पुलिस के हवाले से छपा है कि फ्लैट का दरवाजा भीतर से भीतर से बंद था । "


मैंने उसे सेफ्टी चेन के साथ अपने तजुर्बे की बाबत बताया।


"ये तो" - वो उत्तेजित भाव से बोली- "साफ कत्ल की तरफ इशारा है ।”


"साफ तो नहीं, लेकिन है । ऐसा कुछ और भी मेरी नजर में आया है।"


" और क्या ?"


मैंने उसे मोबाइल पर कुर्सी की तसवीर दिखाई ।


“मैंने आज तुम्हारी बहन के फ्लैट का चक्कर लगाया था" - मैं बोला - "तो ये कुर्सी, जिस पर शीना के जम्प से पहले जिस्म पर से उतारे कपड़े पड़े हैं, मेरी तवज्जो में आयी थी । मुझे इसमें कुछ अहम लगा इसलिये बाजरिया पुलिस की ये तसवीर मैंने तसदीक की कि इस पर पड़े दिखाई दे रहे कपड़ों के साथ कोई छेड़ाखानी नहीं की गयी थी ।"


“कपड़ों की कोई अहमियत है ?”


"है तो सही !"


"क्या ?"


"आम धारणा है कि शीना ने पहले जिस्म पर के कपड़े उतार कर इस कुर्सी पर डाले और फिर खिड़की से नीचे छलांग लगाई ।”


"क्या खराबी है इसमें ?"


“खराबी एक्ट में नहीं है, कपड़ों की तरतीब में है । "


“मैं समझी नहीं ।”


"मैं समझाता हूं । इस ड्रेस के साथ इस कुर्सी के सामने खड़ी अपनी बहन की कल्पना करो । कल्पना करो कि किसी वजह से, किसी भी वजह से, उसने निर्वसन होकर आत्महत्या करने का मन बनाया इसलिये एक एक करके जिस्म पर से कपड़े उतार कर उस कुर्सी पर डाले । ओके ?"


उसने सहमति में सिर हिलाया ।


"पहले लम्बा मफलर, फिर जैकेट, फिर स्कीवी, फिर ब्रा, फिर जींस, फिर पैंटीज | नहीं ?"


"हां । "


“कपड़े उतारने की ये तरतीब ठीक है ?"


“हां ।”


"मोटे तौर पर इसी तरतीब से शीना ने कपड़े उतारे होंगे?"


"हां | क्या कहना चाहते हैं ?"


"तस्वीर में देखो।" - मैंने मोबाइल फिर उसके सामने किया - "मफलर कपड़ों के ढेर पर टॉप पर है जबकि उसे ढेर में सबसे नीचे होना चाहिये था क्योंकि जाहिर है वो सबसे पहले उतारा गया था।”