" यानी बाथरूम में कोई नहीं है ?"
"नहीं, कोई नहीं है । बाथरूम खाली है ।"
"देखता हूं।"
“खबरदार !" - वो गुस्से से बोला ।
"गुस्सा मत कर, मेरे भाई । गुस्सा भेजे का फाटक बंद कर देता है और मुंह का रोशनदान खोल देता है ।"
“खबरदार !” - उसने जैसे सुना ही नहीं, वो पूर्ववत् गुस्से से बोला ।
"क्या खबरदार ?"
“तुम कुछ ज्यादा ही पसर रहे हो। ये हैरेसमैंट है । जब मेरा बयान हो चुका है तो तुम्हारे यहां आने का कोई मतलब नहीं । "
"बड़ी देर में सूझी ये बात !"
"तुम... मुझे अपना आई कार्ड दिखाओ ।"
"किसलिये ? क्योंकि मैंने बाथरूम में झांकने की बात कही ! नहीं कहता, भई । नहीं झांकता मैं बाथरूम में एतबार किया मैंने तुम्हारी बात पर कि तुम्हारी करंट फ्लेम बरखा वहां नहीं है । अब राजी ?"
"वो तो ठीक है लेकिन जब ये तय है कि शीना ने खुदकुशी की है तो इस तफ्तीश का क्या मतलब है ? क्या जरूरत है ? क्यों यहां आये हो ? जबकि जानते हो कि वारदात के वक्त मैं मौकायवारदात के आसपास भी नहीं था !"
"हेली रोड बाबर रोड से कोई ज्यादा दूर नहीं है । पहाड़गंज भी हेली रोड से कोई ज्यादा दूर नहीं है ।”
'ओ गॉड ! फिर वहीं पहुंच गये ! अरे, जब ये खुदकुशी का केस है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं हेली रोड से दूर था या पास ?”
"हिमसागर में हाल में कब गये थे ?"
"कौन कहता है कि मैं गया था ?"
“तुम मरने वाली के लिव-इन- पार्टनर थे । जब उससे - तुम्हारी जुबान में खटक गयी तो वहां से अपना सामान - उठाने गये या नहीं गये ?"
"वो तो... वो तो मैं गया था ।"
"कब ?"
"कल दोपहरबाद ।"
"कब से वहां डेरा जमाये थे ?"
"मैं डेरा नहीं जमाये था ।" - वो भुनभुनाया - "बस... आता जाता रहता था ।"
"जबकि ये ठिकाना भी काबू में था ?"
- "ये एक दोस्त का है । आज कल वो अहमदाबाद में है इसलिये मेरे हवाले है ।" - वो एक क्षण ठिठका, फिर बोला - "मैं तो सच पूछो तो रमता जोगी हूं । कभी यहां, कभी वहां वाली जिंदगी है मेरी । शीना के फ्लैट को मैंने अपना छोटा मोटा सामान स्टोर करने का ठिकाना बनाया हुआ था बस, परमानेंट लिव-इन-रिलेशन नहीं था मेरा उसके साथ । जब जरूरत महसूस करता था, तभी वहां जाता था ।”
“वो एतराज नहीं करता थी ?"
“करने लगी थी । तभी तो खटकी । बोली मैं उसे यूज करता था । "
"वो ऐसा समझती थी तो तुम्हें पहले ही क्यों न दरवाजा दिखा दिया ?"
“दिल के हाथों मजबूर थी ।"
"क्या मतलब ?”
"मेरे पर मरती भी तो थी !”
"क्या कहने ! काफी खुशफहम आदमी जान पड़ते हो ?"
“अब जो है सो है ।"
“जैसे वो मरी है, उसमें कत्ल को खुदकुशी की शक्ल देना कोई मुश्किल काम नहीं था ।”
"क्यों नहीं था ? मैंने सुना है उसके फ्लैट का दरवाजा भीतर से बंद था । ”
"सेफ्टी चेन के जरिये । जो कि ऐसी वाहियात थी कि बाहर से हटाई-लगाई जा सकती थी। इस बात का तजुर्बा किया जा चुका है ।"
“अच्छा !"
“हां । तो कल दोपहरबाद तुमने अपना निजी सामान वहां से उठाया ?"
"हां ।"
"स्टीरियो समेत ?"
"क्यों नहीं ? वो मेरा था । "
" आडियो सीडी ?”
"वो भी तकरीबन मेरी थीं लेकिन मैंने दो चार ही उठाई थीं, बाकी शीना के लिये पीछे छोड़ दी थीं क्योंकि वो उसकी फेवरेट थीं ।”
"तो स्टीरियो तुम्हारा था ? तुम्हारी अपनी खरीद थी ?" "हां ।”
" कैश मीमो दिखा सकते हो ?
"नहीं।"
"वजह ?"
“गुम हो गयी ।"
"कीमती आइटम की गारंटी होती है और गारंटी लागू रहे, इसके लिये कैश मीमो सम्भाल के रखनी पड़ती है । लेकिन तुमने गुम कर दी !"
"अब हो गयी तो क्या करू ? ऐसी लापरवाही किसी से भी हो सकती है । "
"असल वजह ये तो नहीं कि स्टीरियो शीना की खरीद थी इसलिये कैश मीमो तुम्हारे पास नहीं हो सकती थी ?"
"नहीं, ये असल वजह नहीं । अरे, कहीं तुम मेरे पर ये इलजाम लगाने की फिराक में तो नहीं हो कि शीना का स्टीरियो मैंने चोरी कर लिया ?"
" शीना की तरह पिल की शौकीनी तुम भी करते हो ?" "कौन कहता है शीना पिल लेती थी ?"
"पुलिस कहती है। पुलिस की तफ्तीश कहती है । उसके बाथरूम की कैबिनेट में मौजूद एल्प्राक्स की गोलियां कहती हैं जो कि फैंसी पार्टी ड्रग है । तुम वहां रहते थे, जरूर उन फैंसी पिल्स में तुम भी शेयरहोल्डर थे । "
"नानसेंस !"
"कोई बड़ी बात नहीं यहां पिल्स का तुम्हारा अपना स्टाक हो, मेरे यहां आने पर जिसे तुम्हारे कहने पर बरखा बाथरूम में ले गयी ताकि तलाशी की नौबत आती तो वो सारा स्टॉक टायलेट में बहा देती । "
“गॉड ! फिर वही राग अलापने लगे !"
"मैं यहां की तलाशी लूं तो ?"
"हरगिज नहीं । तलाशी के लिये सर्च वारंट दरकार होता है..."
"हमेशा नहीं । लेकिन मैं तुम्हारा नुकसान नहीं चाहता "
"नुकसान ?"
“मैंने जाकर बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो बरखा तुम्हारा ड्रग्स का सारा स्टॉक टायलेट में बहा देगी ।"
"तौबा !”
स्टीरियो, मैंने देखा कि, टीवी के पहलू में पड़ा था ।
"ये है वो स्टीरियो ?" - मैंने उसकी तरफ इशारा करते सवाल किया ।
"हां ।" - वो बोला- "क्यों ?"
"इसके तुम्हारे पास होने का कोई मतलब नहीं । लिव-इन-पार्टनर होने से कोई पार्टनर का वारिस नहीं बन जाता । इसे किसी झोले में डालो और मेरे हवाले करो । "
"तुम्हारे हवाले करू ?"
“ताकि ये वहां पहुंच सके जहां इसका मुकाम है । "
"कहां मुकाम है ?"
“वारिस के पास । जो कि छोटी बहन है । हुज्जत करोगे तो पछताओगे ।”
"तुम वारंट के बिना...'
“अरे, ढक्कन, मेरे को वारंट की जरूरत नहीं । "
"क्यों जरूरत नहीं ?"
"क्योंकि मैं पुलिस नहीं हूं।"
"पुलिस नहीं हो ! लेकिन तुमने कहा था तुम डिटेक्टिव हो !"
" पुलिस का नहीं । प्राइवेट । प्राइवेट डिटेक्टिव । सुधीर कोहली, दि ओनली वन । छोटी बहन ने मुझे शीना के कत्ल की..."
"कत्ल लेकिन...
"..तफ्तीश के लिये बतौर पीडी रिटेन किया है इसलिये मुझे हर वो चीज अपने कब्जे में लेने का अख्तियार है जो शीना की जिंदगी में उसकी मिल्कियत थी और जिस पर नाजायज तरीके से तुम काबिज हो । अब या तो इस बात में नुक्स निकालो या जो मैं कहता हूं वो करो । हुज्जत जारी रखोगे तो नतीजा गम्भीर होगा ।"
“क्या होगा ?"
“चोरी के इलजाम में गिरफ्तार होगे। एक बार पुलिस की गिरफ्त में आ गये तो अंदर ही बैठोगे ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि उनकी हरचंद कोशिश होगी कि कत्ल का इलजाम भी तुम पर थुपे ।"
वो घबरा गया ।
“वो तो खुदकुशी..."
"फिलहाल खुदकुशी । तुम्हारी गिरफ्तारी के बाद केस की बाबत उन का नजरिया बदल सकता है। बदल के रहेगा|"
“अगर... अगर मैं स्टीरियो तुम्हें सौंप दूं तो ?”
"तो कम से कम मेरी वजह से तुम्हारे लिये कोई प्राब्लम खड़ी नहीं होगी ।"
"प्रामिस ?"
"प्रामिस ।”
उसने स्टीरियो को एक बड़े से झोले में डाला और झोला मुझे सौंप दिया ।
मैं वहां से रुखसत हुआ ।
आखिरी क्षण तक मैं यकीनी तौर पर ये न जान सका कि बाथरूम में कोई था या नहीं था ।
मैंने पिंकी तलवार का मोबाइल बजाया ।
जवाब न मिला ।
उसने बताया था कि उसकी काल सेंटर की जॉब गुड़गांव में थी । दिल्ली में उसका आवास सेवा नगर में था जहां पता नहीं उस घड़ी वो होती या न होती । काल सेंटर की ड्यूटी शिफ्ट की होती थी, पता नहीं उन दिनों उसकी कौन सी शिफ्ट थी !
या बहन की मौत की वजह से छुट्टी पर थी ।
मुझे वो सम्भावना जंची ।
मैंने सेवा नगर का चक्कर लगाया ।
वो घर पर नहीं थी ।
मैं वापिस पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
और फिर इंस्पेक्टर देवेन्द्र यादव से मिला जो कि अपने ऑफिस में मौजूद था ।
“फिर आ गये ?" - भवें सिकोड़ता वो बोला ।
"रिजक कमाने की मजबूरी लायी।" - मैं विनीत भाव से बोला ।
“अभी भी शीना तलवार वाले केस को चेज कर रहे हो ?"
"हां"
"बतौर मर्डर ?"
"हां ।”
" अब क्या चाहते हो ?"
"एक मेहरबानी चाहता हूं इंस्पेक्टर साहब से ।”
"क्या ?"
"शीना तलवार के फ्लैट को सील करवाने का प्रबंध करवाइये ।"
"खामखाह ! हमारी तरफ से वो केस क्लोज्ड है। बतौर खुदकुशी क्लोज्ड है ।"
"यादव साहब, कत्ल की सम्भावना को बिल्कुल ही खारिज नहीं किया जा सकता ।"
“कोई और क्लू पकड़ाई में आ गया ?"
"है तो ऐसा ही !”
“क्या ?"
मैंने उसे मनोरथ सलवान से अपनी मुलाकात की बाबत बताया और इस बात पर खास जोर दिया कि कल दोपहरबाद वो शीना के फ्लैट पर गया था जबकि वहां से स्टीरियो उठा लाया था । शीना की जिंदगी में उसने वो हरकत की होती, इसकी सम्भावना कम दिखाई देती थी। लिहाजा बहुत मुमकिन था कि वो दोपहरबाद नहीं, आधी रात को वहां गया था - या दो बार वहां गया था - और दूसरे फेरे में, कत्ल के बाद, उसने वहां से कीमती स्टीरियो चोरी किया था ।
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