क्या पुलिस ने वहां से कोई फिंगरप्रिंट्स उठाने की कोशिश की होगी ?


खुदकुशी की जिद पकड़े पुलिस को उस बाबत खयाल तक न आया होगा। प्रोजेक्शन भी इसी बात की चुगली कर रहा था जिस पर दिखाई देती हल्की सी धूल की परत बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं हुई थी ।


मैं खिड़की पर से हट गया । उसको वापिस बंद करने की कोशिश मैंने न की ।


फिर मैंने खिड़की के करीब पड़ी उस कुसी की तरफ तवज्जो दी जिस पर एक ढ़ेर की सूरत में मरने वाली के अपने जिस्म से उतारे कपड़े पड़े थे ।


मैंने अपने जेहन में तबके सीन' को रीकंस्ट्रक्ट करने की कोशिश की ।


यहां वो खड़ी होगी ! खिड़की पहले से खुली होगी या उसने उस पर पहुंच कर खोली होगी ! पहुंच कर खोली होगी तो कपड़े उतारने से पहले या बाद में ! यहां खड़ी होकर उसने एक एक करके जिस्म पर से कपड़े उतारे और एक एक करके उस कुर्सी पर डाले ।


लम्बा मफलर - जाहिर था कि सबसे पहले ।


फिर जैकेट ।


स्कीवी ।


ब्रा ।


जींस | पैंटीज |


मैंने एक एक करके कुर्सी पर पड़े कपड़ों का फिर मुआयना किया ।


वही कपड़े थे ।


ढेर में सबसे नीचे पड़ी ब्रा की तरफ मेरी तवज्जो खासतौर से गई । उसको पूरी तरह से देखने के लिये मुझे उसके ऊपर पड़े कपड़ों को सरकाना पड़ा । वो काले रंग की लेस लगी पैडिड ब्रा थी जो कि नयी जान पड़ती थी और जिसके कप इतने बड़े थे कि मुझे उसमें समाने वाले उरोजों का खयाल आये बिना न रहा ।


ऐसी प्राइम बाडी ! - मैंने आह सी भरी - वेस्ट में गयी । मफलर ढ़ेर में टॉप पर था लेकिन उसमें कोई खूबी नहीं थी।


मैं वहां से हटा ।


फिर एक जिद के तहत, यूं कहिये कि सनक में, सूई तलाश करने की नफासत से मैंने सारे फ्लैट की तलाशी ली ।


मेन डोर की वैसी चाबी, जैसी कि छोटी बहन के दिये मेरे पास थी, कहीं से बरामद न हुई ।


वो बात कत्ल की सम्भावना को बल देती थी ।


मैंने वापिस लौटने का निश्चय किया । वहां अब और


कुछ नहीं रखा था, वहां और रुकना वक्त की बरबादी के अलावा कुछ न था ।


मेन डोर पर पहुंच कर मैं ठिठका । दरवाजा खोलने के लिये बढ़ा अपना हाथ मैंने वापिस खींच लिया और सेफ्टी चेन की तरफ देखा, आती बार जिसकी तरफ मेरी तवज्जो नहीं गयी थी । बीच में से काटी जाने पर थी वो दो हिस्सों में विभक्त हो गयी थी और दोनों सिरे नीचे लटक रहे थे । एक सिरा दरवाजे पर पेचों के जरिये कसा हुआ था और दूसरा चौखट में फिट जेकेट में पिरोया पड़ा था ।


मैंने दोनों टुकड़ों को थाम कर उन्हें आपस में यूं मिलाया कि चौखट और पल्ले के बीच तनिक नीचे लटकी चेन साबुत लगने लगी । मैंने हाथ की पकड़ ढीली की तो दोनों सिरे पूर्ववत् नीचे को झूल गये । तब मुझे सर्जीकेल टेप याद आया जो मैंने बाथरूम की कैबिनेट में देखा था। मैं टेप वहां से निकाल लाया और चेन के दोनों सिरों को आपस में मिला कर मैंने मजबूती से उन पर टेप लपेटा ।


सेफ्टी चेन फिर एक हो गयी ।


मैंने उसका झूलता सिरा सॉकेट में डालने की कोशिश न की। मैंने दरवाजे से बाहर कदम रखा और दरवाजे को चौखट के करीब ला कर बाहर से चेन के आजाद सिरे को सॉकेट में डालने की कोशिश करने लगा ।


वैसा मुमकिन न हो पाया ।


मैंने ज्यादा शिद्दत से वो कोशिश की तो टेप उखड़ गया और चेन फिर दो टुकड़ों में विभक्त हो गयी ।


तब मैंने एक खतरनाक इरादा किया ।


वार्डरोब के एक दराज में कास्मैटिक्स के साथ मैंने एक लम्बा पेचकस पड़ा देखा था। मैं वो पेचकस वहां से निकाल लाया और सेफ्टी चेन के दरवाजे और चौखट में लगे सारे पेच खोल डाले ।


नतीजतन चेन के दोनों टुकड़े मेरे हाथ में आ गये ।


मैं वहां से निकला और कनाट प्लेस के एक हार्डवेयर स्टोर पर पहुंचा जहां सेफ्टी चेन्स की बड़ी वैरायटी उपलब्ध थी। मैंने ऐन वैसी सेफ्टी चेन वहां से खरीदी जैसी कि मैं साथ लाया था ।


मैं शीना के फ्लैट पर वापिस लौटा । वहां मैंने अपनी नयी खरीदी सेफ्टी चेन को पुरानी, दो टुकड़ों में विभक्त चेन की जगह फिट कर दिया। फिर मैंने बाहर निकल कर दरवाजे को चौखट के करीब सरकाया और बाहर की तरफ से नयी चेन के आजाद सिरे को चौखट में लगी सॉकेट में पिरोने की कोशिश की ।


थोड़ी सी ही कोशिश में मैं उस काम में कामयाब हो गया


दो तीन मर्तबा मैंने चेन का आजाद सिरा सॉकेट में डाला और वापिस निकाला ।


मेरी हर कोशिश कामयाब हुई ।


यानी पुलिस का ये दावा गलत था कि बाहर से सेफ्टी चेन को नहीं चढाया जा सकता था ।


वहां लगी सेफ्टी चेन, जो पता नहीं शीना ने खुद लगवाई थी या उसे लगी लगाई मिली थी, अपने मकसद में नाकाम थी । चेन चढ़ी हालत में उसमें उतनी ज्यादा ढ़ीली नहीं होनी चाहिये थी जितनी कि थी । वो किसी अनाड़ी कारीगर का काम था ।


यानी यह एक भ्रामक - बल्कि गलत - नतीजा था कि वारदात के वक्त शीना अपने फ्लैट में अकेली थी । दरवाजे का बाहर से ताला खोलना और चौखट और दरवाजे की झिरी के बीच में से हाथ डाल कर चैन को हटा लेना सरासर मुमकिन था ।


मुमकिन था तो वो कत्ल की सम्भावना को बल देता था


लेकिन कातिल उस फ्लैट में कहां छुप सकता था ? कहीं नहीं ।


उस बाबत यादव की बात ही ठीक थी कि किसी आदमजाद के छुपने के लिये वो जगह नाकाफी थी ।


मैंने नयी चेन दरवाजे पर से उतारी और पुरानी, कटी हुई, चेन को वापिस यथास्थान फिट कर दिया । नयी चेन मैंने जेब के हवाले की और पेचकस को वापिस बैडरूम की वार्डरोब में उसकी जगह पर पहुंचा दिया । फ्लैट से बाहर निकल कर मैंनै चाबी लगा कर मेन डोर को पूर्ववत् लॉक किया और वहां से रुखसत हो गया ।


***


पहाड़गंज के जिस बार में मनोरथ सलवान बतौर बारमैन मुलाजिम था, उसका नाम 'रियाल्टो' था । रियाल्टो का क्या मतलब था, मुझे नहीं मालूम था । बाद में वहां से पूछने पर मालूम हुआ कि किसी को भी नहीं मालूम था । रियाल्टो बस रियाल्टो था । बहरहाल मनोरथ सलवान मुझे वहां न मिला । मालूम पड़ा कि उस रोज छुट्टी पर था।


बड़ी मुश्किल से मैं वहां से उसके घर का पता दरयाफ्त कर पाया ।


वो गोल मार्केट के इलाके में एक किराये के फ्लैट में रहता था ।


मैं वहां पहुंचा ।


उसका फ्लैट तीसरी मंजिल पर था । उसका दरवाजा मजबूती से बंद था लेकिन भीतर से टीवी चलने की ऊंची आवाज आ रही थी इसलिए जाहिर था कि उस घड़ी फ्लैट आबाद था । मैंने कालबैल बजाई ।


तत्काल टीवी की आवाज धीमी पड़ी ।


"कौन ?" - फिर सवाल हुआ ।


"दरवाजा खोल के देखो भई।" - अपने स्वर में अधिकार का पुट लाता मैं बोला ।


"पहले बोलो ।"


“अरे, मनोरथ सलवान हो तो दरवाजा खोलो ।”


"तुम कौन हो ?


"डिटेक्टिव ।"


"दाता ! यहां पहुंच गये ! रुको, खोलता हूं।"


मैं प्रतीक्षा करने लगा ।


आखिर दरवाजा खुला ।


वो कोई पैंतीस साल का, दुबला पतला लेकिन लम्बा तड़ंगा आदमी था जो क्लीनशेव्ड था, सिर पर घने बाल थे जो कि उसके माथे पर बिखरे हुए थे और आंखों में पड़ते जान पड़ते थे । वो एक घिसी हुई जींस और गोल गले की टी-शर्ट पहने था जिसके फ्रंट में बड़े बड़े अर्धवृत्ताकार अक्षरों में 'रियाल्टो' अंकित था ।


मैंने उसे एक बाजू धकेल कर उस माचिस की डिबिया में कदम रखा जो कि उसका फ्लैट थी। मेरे उस व्यवहार पर वो हड़बड़ाया लेकिन मुंह से कुछ न बोला । मेरे पीछे उसने दरवाजा बंद किया ।


मैंने कमरे में - जो कि बैडरूम जान पड़ता था - निगाह दौड़ाई । मुझे भांपते देर न लगी कि वो एक ही कमरा उसकी रिहायश थी जिसके साथ एक छोटी सी किचन थी । जिसके दहाने पर दरवाजा नहीं था । बाजू में एक दरवाजा था जो कि बंद था | टीवी के सामने दो फोल्डिंग चेयर पड़ी थीं जिनके सामने रखी एक छोटी सी मेज पर दो गिलास पड़े थे जिनमें से एक के रिम पर लिपस्टिक के निशान थे जो कि इस बात की चुगली करते थे कि वहां कोई औरत मौजूद थी जो सलवान के मेन डोर खोलने से पहले जा कर बाथरूम में बंद हो गयी थी ।


"देखो" - वो उतावले स्वर में बोला- "अगर शीना की वजह से यहां आये हो तो अपना वक्त ही जाया करोगे । मैं पुलिस को पहले ही अपना बयान दे चुका हूं बोल चुका हूं कि वारदात के वक्त मैं हेली रोड के आसपास भी कहीं नहीं था । मैं आधी रात को 'रियाल्टो' में था जो कि हेली रोड से दूर पहाड़गंज में एक बार है ।"


“यानी बुधवार तो तुम उससे बिल्कुल ही नहीं मिले थे ? सूरत ही नहीं देखी थी ?"


वो हिचकिचाया ।


"जवाब दो।" - मैं सख्ती से बोला ।


“सूरत तो देखी थी !" - पूर्ववत् हिचकिचाता वो बोला ।


"कब ? कहां ?"


“बुधवार को ही । यहीं । सवा दस के करीब वो यहां आयी थी लेकिन पांच मिनट ही ठहरी थी।"


"आई क्यों थी ? क्या चाहती थी ?"


"फ्लैट की चाबी वापिस चाहती थी । जो कि उस घड़ी मेरे पास नहीं थी। मैंने पहुंचा देने का वादा किया था तो चली गयी थी ।”


“तुम साथ न गये ?"


“न गया, न जा सकता था। मेरी क्लोजिंग टाइम तक बार में हाजिरी जरूरी थी । "


"उसके बाद कहां गये ? यहां, घर आ गये ?"


"नहीं, एक पार्टी में गया । "


"आधी रात को ?"


"प्राइवेट पार्टी थी । सुबह चार बजे तक चली ।"


"कहां ?"


"बंगाली मार्केट । वहां बाबर रोड के एक फ्लैट में । "


"अकेले गये ?"


वो हिचकिचाया ।


मैंने अपलक उसे देखा ।


“एक... फ्रेंड साथ थी ।" - वो दबे स्वर में बोला ।


“आधी रात को ?”


“अकेली रहती है। मंदिर मार्ग पर एक वर्किंग गर्ल्स होस्टल है, वहां । पहले से फिक्स था कि मैं उसे वहां से पिक करूंगा।"


“आधी रात को ?”


“अब... है तो ऐसा ही ! "


"नाम ?”


"किसका ? होस्ट का ?"


"अरे, भई, लड़की का जिसके साथ गये ! जिसे आधी रात को पिक किया ?"


"बरखा | बरखा वर्मा |


"क्या करती है ?"


"कनाट प्लेस की एक ट्रैवल एजेंसी में रिसेप्शनिस्ट है । "


"तुम्हारे से फिट ?"


उसने जवाब न दिया, वो परे देखने लगा ।


" यानी दो किश्तियों के सवार थे ?"


" शीना से मेरी खटक गयी थी । "


" पार्टी में कब पहुंचे थे ?"


"घड़ी तो नहीं देखी थी लेकिन अंदाजा है कि तब साढ़े बारह का वक्त था।"


" यानी अमूमन जो वक्त पार्टी खत्म होने का होता है, वो तुम्हारे और तुम्हारी बरखा के लिये शुरुआत का था ?”


"मैंने बोला न, वो आल नाइट पार्टी थी ।"


"हूं।"


“मैं अपना बयान पहले ही दे चुका हूं । बाराखम्बा रोड थाने वालों को पहले ही सब बता चुका हूं।"


"बरखा प्राइवेट पार्टी वाली बात की तसदीक करेगी ?"


"करेगी । क्यों नहीं करेगी ?"


"कराओ ।”


"क्या ?"


"बुलाओ उसे ?


"बुलाऊं ? कहां से बुलाऊं ?"


“बाथरूम से । वहीं है न इस वक्त ?


“वाट नानसेस !” - वो भड़का |


मैंने दो गिलासों पर निगाह दौड़ाई और फिर अपलक उसे देखा ।


“वो... वो यहां थी ।” - वह कठिन स्वर में बोला "लेकिन तुम्हारे आने से जरा ही पहले यहां से चली गयी थी ।”