“उस तसदीक के लिये गवाहों के बयानात काफी हैं, परिस्थितिजन्य सबूत, जो पुलिस को फ्लैट पर से मिले, काफी हैं ।”


"ये दलील नहीं, हाकिम की जिद है । क्या किसी को सिर्फ इतने से बलात्कारी साबित किया जा सकता है क्योंकि उसके पास बलात्कार का औजार है ?"


"शट अप !"


“पोस्टमार्टम से ये भी मालूम पड़ सकता था कि कहीं वो प्रेग्नेंट तो नहीं थी ! '


"तो भी हमारी खुदकुशी की थ्योरी पर कोई हर्फ न आता । बल्कि प्रेग्नेंसी - एक कुमारी कन्या की प्रेग्नेंसी - एडीशनल वजह बन जाती खुदकुशी की ।"


"कोई सुइसाइड नोट बरामद हुआ ?"


"क्या ?"


"कोई खुदकुशी करता है तो पीछे खुदकुशी कबूलती चिट्ठी छोड़ता है, सुइसाइड नोट छोड़ता है, ताकि उसकी मौत का इलजाम किसी बेगुनाह पर न आने पाये । ऐसा कोई नोट, कोई चिट्ठी, कोई परवाना फ्लैट से बरामद हुआ था ?"


"नहीं।"


"ये अजीब बात नहीं ?"


"कोई अजीब बात नहीं । मरने वाली नहीं थी इतनी कनसिडरेट कि फिक्र करती कि उसकी मौत के लिये कहीं कोई और जिम्मेदार न ठहराया जाने लगे। ऐसा कोई रूल नहीं है कि पीछे सुइसाइड नोट छोड़े बिना कोई खुदकुशी कर लेगा तो उसका चालान हो जायेगा ।"


"वो तो ठीक है लेकिन फिर भी..."


"क्या फिर भी ? मैंने बोला कि नहीं बोला कि मरने वाली नशे के हवाई घोड़े पर सवार थी इसलिये नीचे गिरी !"


" बोला । लेकिन...'


" इरादतन खुदकुशी की तो वो भी तब जब कि नशे के हवाले थी । ऐसे में उसकी पीछे सुइसाइड नोट छोड़ना न सूझा होना, न याद आया होना क्या बड़ी बात थी ?"


"क्या बड़ी बात थी ?"


“अरे, मैं तुमसे पूछ रहा हूं।" “शिनाख्त कैसे हुई ?” "क्या बोला ?"


“इतनी ऊंचाई से गिरने पर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई होगी ! कैसे तसदीक की कि मरने वाली शीना तलवार ही थी ?"


" उसकी मांजायी बहन ने शिनाख्त की न !”


"वो तो बाद की बात है। लाश की बरामदी पर कैसे पता चला कि वो कौन थी और ऊपर के कौन से फ्लैट से टपकी थी ?"


वो सकपकाया ।


“पूरी तरह से नंगी थी इसलिये कोई शिनाख्ती डाकूमेंट तो पाया नहीं गया होगा ! क्या वाचमैन ने पहचाना ?"


"वाचमैन ! वो तो साला लाश के करीब फटकने को तैयार नहीं था । ऊपर से आधी रात को कोई नशा किये जान पड़ता था । लाश को करीब से देखकर ही उसकी हालत बद हो गयी थी, उल्टियां करने लगा था । "


"तो कैसे जाना कौन थी ?"


"खिड़की से जाना न, भई, ऊपर दिखाई देती इकलौती खुली खिड़की से जाना । तब रात की उस घड़ी एक ही खिड़की खुली थी और वो दसवीं मंजिल के एक फ्लैट की थी जिसकी बाबत पूछने पर पता चला कि शीना तलवार के फ्लैट की थी । जमा, रात की उस घड़ी उसी खुली खिड़की वाले फ्लैट में रोशनी थी। फिर दो में दो जोड़ कर जवाव चार निकाल लेना क्या मुश्किल काम था ?"


"ठीक ।" - मैं एक क्षण ठिठका, फिर बोला - "तो मैं बहन को क्या बोलूं ?"


“यही बोलो कि वो कत्ल का खयाल जेहन से निकाल दे । दिल्ली पुलिस पर भरोसा दिखाये और अपना मेहनत से कमाया पैसा प्राइवेट डिटेक्टिवों पर जाया करना बंद करे।"


"अरे, क्यों मेरे पेट पर लात मार रहे हो, यादव साहब !"


वो हंसा, फिर बोला- "उसे बोलो कि ये यकीनी तौर पर खुदकुशी का केस है । वो बहन की मौत का मातम मनाये तो


ये न भूले कि जो हुआ, उसके लिये खुद बहन ही जिम्मेदार थी।"


"मैं फ्लैट पर एक निगाह डाल सकता हूं ?"


"काहे को ?"


"अगर फ्लैट को पुलिस ने सील नहीं किया हुआ तो..."


"नहीं, सील तो नहीं किया हुआ ! जरूरत ही न समझी गयी । जब फाउल प्ले आउट था तो पुलिस क्यों भला फ्लैट को सील करती ! कहने का मतलब है कि निगाह तो डाल सकते हो लेकिन कैसे डालोगे ? ताला लगा होगा !"


"कैसे लगा ?"


"क्या ? क्या कैसे लगा ?"


"ताला ! फ्लैट के मेन डोर का ! "


"उसमें क्या प्राब्लम थी ? मेन डोर पर आटोमैटिक बिल्ट-इन लॉक फिट था । भीतर से खटका दबाकर अंदर बाहर किधर से भी दरवाजा बंद करो लॉक खुद लग जाता था |"


"लेकिन खुलता तो चाबी से होगा ?"


"बाहर से । भीतर से आटोमैटिक लॉक बिना चाबी के, बस हैंडल घुमाने से खुल जाता है । "


"बहरहाल फ्लैट की मालकिन के पास उसकी चाबी तो फिर भी होनी चाहिये ! बाहर से भीतर आने के लिये ! नहीं?"


"हां । क्या कहना चाहते हो ?"


“आप कहते हैं उसने खुदकुशी की। सबूत के तौर पर भीतर से सेफ्टी चेन चढ़े लॉक्ड मेन डोर का हवाला देते हैं तो मालकिन की चाबी तो भीतर होनी चाहिये न ! बरामद हुई ?"


"नहीं।" - यादव के स्वर में लापरवाही का पुट आया"लेकिन वो कोई बड़ी बात नहीं । चाबी होगी भीतर कहीं । " -


"मरने वाली के जिस्म पर कपड़े होते तो मुमकिन था किसी जेब से बरामद होती !"


"हां । तभी तो बोला कि फ्लैट में होगी कहीं !"


"लेकिन..."


"छोड़ो। बात कुछ और हो रही थी । तुम बोलो, तुम फ्लैट के भीतर निगाह डालना चाहते हो, कैसे डालोगे ? फ्लैट तो लॉक्ड होगा ?"


"मेरे पास चाबी है । "


“तुम्हारे... तुम्हारे पास चाबी है ?"


"बहन ने दी ।"


“ओह, बहन ने दी । फिर क्या बात है ! लेकिन तुमने जवाब नहीं दिया । निगाह डालना काहे को चाहते हो ?"


"कोई खास वजह नहीं, सिवाय इसके कि बहन को क्लायंट को लगे कि हासिल फीस के बदले मैंने आखिर कुछ तो काम किया !" -


"कोहली, एक नम्बर का हरामी है । "


साहबान, खाकसार की राय है कि कभी किसी को हरामी मत कहिये । ऐसा आप उसी को कह सकते हैं जो न हो ।


"वो तो मैं हूं बराबर ।" - प्रत्यक्षत: मैं बोला- " आदमी का बच्चा जो कुछ भी हो-टॉप का या बाटम का हो तो एक नम्बर का हो वर्ना न हो। दो नम्बर का किस काम का ! तीन नम्बर का किस काम का !"


"मैंने तू पहला आदमी देखा है जिसको हरामी बोला जाये तो वो गुस्सा नहीं करता, तौहीन महसूस नहीं करता ।"


वजह मैंने बयान की न, साहबान, लेकिन मैंने हाकिम की बात भी रखनी थी इसलिये बोला- "क्योंकि मैं हूं । सुधीर कोहली, दि ओनली वन | देख लेना मेरी मौत पर हर अखबार में खबर होगी कि दिल्ली के टॉप के हरामियो ने अपना लीडर खो दिया ।”


उसकी बेसाख्ता हंसी निकल गयी ।


“हरामी भी" - वो बोला- “और खुशफहम भी ।"


मैं फरमायशी हंसी हंसा ।


हाकिम की बात पर हंसना ही बनता था, भले ही वो कितनी भी वाहियात हो ।


***


मैं हेली रोड पहुंचा ।


हिमसागर की लॉबी में अपने केबिन में बैठा मुझे वही वाचमैन दिखाई दिया जिससे मैं कल बतियाया था । मेन लॉबी में कदम रखा तो उसने एक सरसरी निगाह मेरे पर डाली और फिर परे देखने लगा । न उसने मुझे टोका, न कुछ पूछा, न कहीं कोई एंट्री करने को बोला । पता नहीं पिछले रोज उसने मुझे क्या समझा था जो तब वो मेरे से न्यारा न्यारा ही रहना चाहता था ।


लिफ्ट पर सवार होकर मैं दसवीं मंजिल पर पहुंचा ।


शीना का फ्लैट 10 ए था जो फ्रंट में था । उसके अलावा उस फ्लैट पर तीन फ्लैट और थे लेकिन उनका रुख आजू बाजू या पिछवाड़े की तरफ था ।


छोटी बहन पिंकी तलवार से हासिल हुई चाबी मैंने फ्लैट के बिल्ट-इन लॉक में डालकर घुमाई तो वो निर्विघ्न घूमी।


दरवाजा ठेल कर मैं भीतर दाखिल हुआ। अपने पीछे मैंने दरवाजा बंद कर दिया। मेरी निगाह पैन होती सारे फ्लैट में घूमी तो सबसे पहले मुझे अपनी इस गलत जानकारी का ही अहसास हुआ कि वो डेढ़ कमरे का फ्लैट था । वस्तुत: फ्लैट दो बैडरूम-ड्राइंग-डायनिंग था और खासा बड़ा था । अलबत्ता वहां के रखरखाव और रहन सहन के अंदाज से ऐसा जान पड़ता था कि मरने वाली उसे अपना अस्थायी ठिकाना ही मानती थी इसलिये वहां कोई टीप टाप नहीं थी, बस फौरी जरूरत की आइटमों का ही बोलबाला था । ड्राईगरूम में सीमित फर्नीचर था और एक बैडरूम में सिर्फ एक डबल बैड और एक टेबल पर रखा एक टीवी था। दूसरे में एक दीवान पड़ा था लेकिन कमरे की हालत साफ चुगली करती थी कि अमूमन वो इस्तेमाल में नहीं आता था । ड्राइंगरूम में सैंटर टेबल पर, फर्श पर बेतरतीबी से दैनिक अखबार और फिल्मी और फैशन पत्रिकायें बिखरी पड़ी थीं । एक साइड टेबल पर कुछ आडियो सीडी पड़ी थीं लेकिन स्टीरियो नदारद था । मैंने उस टेबल के करीब पहुंच कर पाया कि उसके दायें हिस्से में धूल की एक आयताकार परत बनी हुई थी जबकि वैसी धूल बाएं हिस्से में नहीं थी । लगता था कोई चीज दाई तरफ रखी जाती थी जिसके नीचे की धूल साफ करने का खयाल फ्लैट की मालकिन को कभी नहीं आता था और वो चीज हाल ही में वहां से उठा ली गयी थी । सारी सीडी हालिया देसी, विलायती म्यूजिक की थीं ।


डबल बैड वाले बैडरूम में एक वार्डरोब थी जिसमें शीना के पहनने के कपड़े टंगे थे जिनमें से कुछ तो मेरी पहचान में भी आ रहे थे जिन्हें कि मैंने उसे पहने देखा था । वार्डरोब में दो दराज भी थे जिनमें जनाना मेकअप का सामान पड़ा था । वहां ड्रेसिंग टेबल नहीं थी लेकिन वार्डरोब के एक पल्ले में एक फुल लैंग्थ शीशा फिट था ।


फ्लैट में बाथरूम एक ही था जो कि दोनों बैडरूम्स के बीच साझा था । वहां वाश बेसिन के ऊपर एक शीशा था जो उसके पीछे मौजूद कैबिनेट के ढक्कन का काम करता था । कैबिनेट में कई तरह के साबुन, पेस्ट, टेप, बैंडएड जैसी आइटमें भरी हुई थीं। उसमें तीन शैल्फ के जरिये चार हिस्से थे जिनमें से टाप शैल्फ पर केवल एक शीशी पड़ी थी, बाकी शैल्फ खाली था जो कि अजीब बात थी । कैबिनेट के तीन हिस्से सामान से भरे हुए थे और एक पर सिर्फ एक शीशी पड़ी थी ।


मैंने उसे शैल्फ पर से उठाया और उसका करीब से मुआयना किया ।


उस पर एस्परीन का लेबल लगा हुआ था ।


मैं उसे वापिस रखने ही लगा था कि ठिठका ।


एस्परीन तो सफेद होती थी ! शीशी में तो पीले रंग की पिल्स थीं !


मैंने शीशी खोल कर एक पीली गोली को अपनी हथेली पर डाला ।


एल्प्राक्स (Alprax)


महीन अक्षरों में उस पर गुदा था ।


मैं एल्प्राक्स से वाकिफ था । वो मूड एनहांसिंग पिल थी जिसके असर में नौजवान नस्ल लाउड म्यूजिक पर डांस करने को मचलने लगती थी ।


लिहाजा इंस्पेक्टर यादव की इस बात में, इस खोज में दम था कि वो ड्रग्स की आदी थी ।


छोटी बहन तो इस बात की तसदीक करती ही थी । मैं ड्राईगरूम में वापिस लौटा।


वारदात का जरिया खिड़की फ्रंट में इकलौती खिड़की थी जो किसी ने बंद कर दी हुई थी ।


किसने ?


जरूर पुलिस ने ।


क्यों ?


कोई वजह मुझे न सूझी।


मैंने खिड़की के करीब जा कर उसे खोला, गर्दन निकाल कर बाहर झांका और कल्पना की कि कैसे वो वहां से बाहर उलटी होगी और कम्पाउंड में जा कर पड़ी होगी ।


मैंने खिड़की से बाहर के प्रोजेक्शन पर निगाह डाली ।