"सुधीर कोहली, दि ओनली वन ।”


"क्या कहने !"


"यादव साहब, प्लीज !"


"तुम साले टॉप के हरामी दोस्त तो क्या बनोगे किसी के लेकिन प्लीज बोलते हो तो सुनो । वो लड़की ड्रग्स लेती थी


“कैसे जाना ? उसके फ्लैट से ड्रग्स बरामद हुए ? कोई नशे की गोलियां बरामद हुई ?"


"नहीं, लेकिन हमारी तफ्तीश बताती है, कनफर्म करती है कि वो पिल्स लेती थी । ऐसी बातें छुपती नहीं हैं । कोई न कोई बोल ही देता है । "


"ऐसा बोला गलत भी हो सकता है । भटकाने वाला भी हो सकता है।" - छोटी बहन ने शीना के ड्रग्स लेती होने की तसदीक की थी फिर भी मैंने वो बात कही ।


“तुम कुछ सुनना चाहते हो या पुलिस तफ्तीश में नुक्स निकालना चाहते हो ?"


"सॉरी! तो पुलिस तफ्तीश कहती है कि वो ड्रग्स लेती थी, भले ही नशे की कोई गोलियां उसके फ्लैट से बरामद नहीं हुई थीं !"


" और मैं क्या कह रहा हूं ?


“आगे ?"


" और फ्लैट में वोदका और विस्की की बोतलें भी मौजूद थीं । यानी कि ड्रिंक भी करती थी ।"


“लोगबाग घर में ड्रिंक का इंतजाम मेहमानवाजी के लिये भी रखते हैं !"


“चरस का भी ?"


"क्या फरमाया, जनाब ?"


"फ्लैट पर चरस के सिग्रेट भी मौजूद पाये गये थे।"


मेरा फिर उस लाइन पर एतराज उठाने का मुंह न बना ।


उसने कुछ क्षण अपलक मुझे देखा, फिर बोला - "हमारी तफ्तीश, तफ्तीश से हासिल जानकारी निर्विवाद रूप से ये स्थापित करती है कि मरने वाली मौज मेले की शौकीन थी । इस बिना पर अब सोचो, कल रात क्या हुआ होगा ?"


“क्या हुआ होगा ?”


- ऐसी दो, नतीजतन 'भई, कोई पिल गटक ली होगी, चरस के सिग्रेट के कश भी लगा लिये होंगे और कोई बड़ी बात नहीं कि साथ में वोदका की या विस्की की जुगलबंदी कर ली हो तीनचौथाई भरी, बोतलें वहां खुली पाई गयी थीं भेजा हिल गया, नशे ने होशोहवास पर कब्जा कर लिया, फिर उसे पता भी न लगा होगा कि कब वो खिड़की पर पहुंची और कब वहां से टपक गयी । इसी वजह से मैंने बोला कि उसने खुदकुशी न की तो समझो एक हादसे की शिकार हुई । "


"अब केस की क्या पोजीशन है ?"


"अरे, जब केस ही नहीं है तो पोजीशन क्या होगी ?" " यानी क्लोज्ड ?"


"हां"


“कत्ल पर गौर करने की कोई गुंजायश नहीं ?"


"नहीं, कोई गुंजायश नहीं ।”


"उसकी बहन कहती है, बल्कि दावा करती है कि ये कत्ल..."


“कहे । करे दावा । क्या फर्क पड़ता है ! ऐसी वारदात पर मरने वाले के करीबी वाही तवाही बकते ही हैं। क्या नयी बात है ?"


" है तो सही एक नयी बात !"


"क्या ?"


"बहन कातिल का नाम लेती है। एक मनोरथ सलवान का नाम लेती है जिसे मकतूला का बॉयफ्रेंड, लिव-इन- पार्टनर, बताती है ।"


“अरे, तुम्हें बताती है न ! पड़ताल करनी थी उसकी !”


"मैंने की थी । "


“अच्छा, की थी !"


"हां ।”


"क्या जाना ?"


"वारदात के वक्त के आसपास वो एक प्राइवेट पार्टी में था।” 


"प्राइवेट पार्टी ?"


"हां, यार दोस्तों की प्राइवेट पार्टी । बंगाली मार्केट के इलाके के एक फ्लैट में । "


"ये तसदीकशुदा बात है या बस, वो ही कहता है ?" “अभी तो वो ही कहता है !"


“ये हाल है ! फिर भी दावा टॉप पीडी होने का है शहर का।"


मैं खामोश रहा ।


“लगता है तुम्हारे से दरवाजे की कथा किसी ने नहीं की "


“दरवाजे की कथा ! वो क्या हुई ?"


"बहन ने भी नहीं बताया ? ठीक है, मेरे से सुनो। मरने वाली के फ्लैट का मेन डोर लॉक्ड था और भीतर से सेफ्टी चेन चढ़ी हुई थी। पुलिस ने ताले चाबी के मिस्त्री को बुलावा कर दरवाजे का बिल्ट-इन- लॉक खुलवाया था तो पता चला था कि भीतर से सेफ्टी चेन चढ़ी हुई थी जिसकी वजह से दरवाजा बस कुछ इंच ही खुल सकता था । बोल्ट कटर मंगवा कर चेन को काटा गया था तो पुलिस ने भीतर दाखिला पाया था।"


“आई सी ।" - मैं मै भावहीन स्वर में बोला । -


"इतना तो जानते हो न कि सेफ्टी चेन को भीतर से चढ़ाया जा सकता है !"


“हां ।"


"तो फिर ये कत्ल का केस कैसे बना ? कातिल कोई प्रेत था जो बंद दरवाजे के आरपार गुजर सकता था या सेफ्टी चेन से बनी चंद इंचों की झिरी में से गुजर सकता था ! भीतर से सेफ्टी चेन का चढ़ा होना अपने आप में सबूत है कि ये नहीं हो सकता कि लड़की को किसी ने खिड़की पर से नीचे धक्का दिया हो । वो ऐसा करने के बाद भीतर से सेफ्टी चैन चढ़ा कर दरवाजे से बाहर कदम नहीं रख सकता था ।”


"तो बाहर कदम नहीं रखा होगा ।"


"क्या मतलब ?"


“कत्ल के बाद भीतर ही टिका रहा होगा।”


"अरे, क्या बक रहे हो ?"


“दरवाजा खुल जाने के वाद क्या पुलिस ने भीतर की मुकम्मल, चौकस तलाशी ली थी ? सुनिश्चित किया था कि भीतर कहीं कोई नहीं छुपा हुआ था ?"


वो खामोश रहा ।


"या वाचमैन से दरयाफ्त किया था कि क्या आधी रात के बाद उसने किसी जाने अनजाने शख्स को टावर से निकल कर बाहर जाते देखा था ?"


वो फिर भी खामोश रहा ।


"लगता है ऐसा कुछ नहीं हुआ था । न किसी जाने अनजाने शख्स की बाबत दरयाफ्त किया गया था, न किसी ऐसे शख्स की फ्लैट में मौजूदगी की सम्भावना के तहत ऐसी किसी तलाशी को अंजाम दिया गया था !”


“ये बेकार की बातें हैं ।" - वो झुंझला कर बोला - "ऐसी बातों की कोई अहमियत नहीं । होती तो तब होती जब हमें केस के खुदकुशी का होने पर कोई शुबह होता।"


“आई सी ।" - मैं शुष्क, आश्वासनहीन स्वर में बोला ।


"रुटीन के तौर पर फ्लैट में निगाह दौड़ाई गयी थी, सूई तलाश करने की तरह तलाशी नहीं ली गयी थी क्योंकि ऐसी तलाशी की कोई जरूरत सामने नहीं थी। सब कुछ ओपन एण्ड शट था । खिड़की खुली थी, उसके करीब पड़ी एक कुर्सी पर उसके वो कपड़े पड़े थे जो कि छलांग लगाने से पहले उसने अपने जिस्म से उतारे थे...'


"क्यों ?"


“क्या पता क्यों ! जिंदा बचती तो देती कोई जवाब तुम्हारी क्यों का ।"


"कातिल भीतर कहीं छुपा हो सकता था- किसी क्लोजेट में, किसी लोफ्ट में, पलंग के नीचे, कहीं भी - जब मानते हो कि मुकम्मल, मुस्तैद तलाशी नहीं हुई थी..."


“अच्छा, था कातिल भीतर छुपा हुआ । तलाशी में वो गिरफ्त में आ जाता तो वो बता देता कि लड़की नंगी क्यों थी ? बता देता कि उसने लड़की को पहले कपड़े उतारने पर मजबूर किया था या बाहर धक्का देने से पहले खुद जबरदस्ती उतारे थे?"


"पता नहीं क्या होता ! लेकिन लड़की के निर्वसन होने की कोई वजह तो होनी चाहिये कि नहीं होनी चाहिये ?"


"वजह यही है कि उसके जो मन आया, वो उसने किया । नशे के हवाले दिमाग में आया होगा कि जिस हाल में उसने दुनिया में कदम रखा था, उसी हाल में उसे वहां से रुखसत होना चाहिये था ।"


"इसलिये कपड़ों से तिलांजलि !"


"क्यों नहीं ! खब्ती, खुराफाती दिमाग में कब क्या आ जाये, पता चलता है ? "


मैं खामोश रहा ।


"कैसे पीडी हो तुम जो इतना नहीं सोच सकते कि कत्ल के बाद किसी को गवारा होता है मौकायवारदात पर टिका रहना ! और वो भी कब तक ? जब तक वहां पुलिस न पहुंच जाये । फिर लड़की कहां रहती थी ? डेढ़ कमरे के फ्लैट में । न कि राष्ट्रपति भवन में। पीडी साहब, एक जगह खड़े होकर ऐसे फ्लैट में बस निगाह फिराई जाये तो, तुम्हारे लफ्जों में, मुस्तैद, चौकस तलाशी हो जाती है।"


वो ठीक कह रहा था, फिर भी मैंने जिद की "आधी रात को कातिल को वाचमैन की निगाह में आने से परहेज हो सकता था ।"


"तो इतनी बड़ी इमारत में कहीं और जा छुपता, मौकायवारदात पर ही किसलिये ?"


"तुम्हारी बात में दम है । "


"यूं बोला जैसे दम मानने में दम निकल रहा हो ।"


मैं हंसा ।


"तुम्हारी जानकारी के लिये टावर में कुछ फ्लैट खाली भी है । अगर उसने छुपना ही था तो वो उनमें से किसी को निशाना बनाता या मकतूला के फ्लैट को ?"


"उसे खाली फ्लैटों की खबर नहीं होगी !”


"क्यों नहीं होगी ? मनोरथ सलवान को, बॉयफ्रेंड को कातिल बता रहे हो तो क्यों नहीं होगी ?"


"तुम तो, यादव साहब, हर बात में मुझे लाजवाब किये दे रहे हो !"


"फुसफुसी बातें करोगे तो और क्या होगा ?"


"सौ बातों की एक बात, अगर ये कत्ल था तो तुम्हारे रौशन खयाल से कातिल मकतूला के फ्लैट में छुपा नहीं हो सकता था।"


“कत्ल नहीं था लेकिन तुमने 'अगर' लगाया, इसलिये दुरुस्त ।”


"बहन कहती है कि..."


"फिर वहीं पहुंच गये ?" "मुझे उसकी सुननी तो पड़ेगी न ?" "उसने तुम्हें रिटेन किया है ?"


“हां ।”


"तो तुम सुनो । पीडी वाला फर्ज निभाओ अपना । हमें क्यों सुनाते हो ?"


"ठीक । उसके निर्वसन होने वाली बात फिर भी है, यादव साहब, जो हलक से नीचे नहीं उतर रही ।"


"अरे, मैंने बोला न, वो नशे के हिंडोले पर सवार थी । जरूर समझती थी कि वो परी थी, उड़ रही थी, बादलों में विचर रही थी । अब परियां कहीं कपड़े पहनती हैं ?"


"इसलिये उतार दिये ?"


" और क्या !"


“पोस्टमार्टम से ये साबित हुआ है कि वो ड्रग्स के नशे के हवाले ?”


"पोस्टमार्टम ! वो किसलिये ?"


“तुम्हारा मतलब है पोस्टमार्टम नहीं हुआ ?"


"अरे, जब किसी फाउल प्ले की तरफ इशारा तक नहीं था तो पोस्टमार्टम किसलिये ?"


“सुना है दस्तूर है !"


"ऐक्सीडेंटल केसों में । संदिग्ध केसों में । ऐसे खुदकुशी के ओपन एण्ड शट केसों में नहीं । "


"फिर खुदकुशी पर पहुंच गये !"


"पुलिस का महकमा ओवरबिजी है, काम से ओवरलोडिड है, फालतू कामों में टाइम जाया करना अफोर्ड नहीं कर सकता । यूं अहम काम रह जाते है जो कि वांछित नहीं । उसे गोली लगी होती, खंजर घुपा होता तो कोई बात भी थी।"


"पोस्टमार्टम हुआ होता तो और नहीं तो इसी बात की तसदीक हो जाती कि वो, आपकी जुबान में, नशे के हिंडोले पर सवार थी ।"