“हां । लेकिन उस आदमी को खूब मालूम था कि उस प्रोजेक्शन पर ट्राली लुढकाई जाने पर ट्राली वहां से उलटने वाली नहीं थी। उसने सोचा था कि थोड़ी देर बाद वह प्रोजेक्शन पर चलती हुई खिड़की तक पहुंचेगी और अपने कमरे में आ जायेगी । लेकिन उसके ऐसा कर पाने से पहले कोई उसे प्रोजेक्शन पर देख चुका होगा और आत्महत्या करने को तत्पर समझकर पुलिस को फोन कर चुका होगा । जाहिर है कि उस आदमी को यह नहीं मालूम था कि लड़की वर्टिगो का शिकार थी, अर्थात् वह ऊंची जगहों से बहुत डरती थी, और वह वहां प्रोजेक्शन पर ही पत्थर की प्रतिमा बनी बैठी रह जायेगी । और" - सुनील एक क्षण रुक कर बोला "न ही उसे यह मालूम था कि कोई मेरे जैसा खुराफाती आदमी वहां पहुंच जायेगा ।"


"तुम कहना क्या चाहते हो ?"


"अभी तो मुझे खुद नहीं मालूम कि मैं क्या कहना चाहता हूं ?"


तभी एक पुलसिया वहां पहुंचा। उसने प्रभूदयाल को एक हीरे की अंगूठी और एक सोने की घड़ी थमाई और बोला "घड़ी पर किसी मोहन कुमार का नाम खुदा हुआ है साहब !"


“लाश से और क्या मालूम हुआ है ?" - प्रभूदयाल ने पूछा। 


"लाश तो केवल कंकाल रह गई है, साहब, लेकिन फिर भी इतना निश्चय से कहा जा सकता है कि उस आदमी का कत्ल हुआ था । छाती के पिंजर में फंसी एक गोली बरामद हुई है।"


"ओ. के. । तुम लाश के भग्नावशेषों को वहां से हटवाने का इन्तजाम करो ।"


"यस, सर !”


पुलसिया फिर बाहर चला गया ।


"सुनील !" - प्रभूदयाल ने पूछा- "वह कागज का पुर्जा जो डायरी में से मिला था, उस पर लिखी इबारत क्या उसी हैण्डराईटिंग में है जिसमें कि डायरी लिखी हुई है ? "


 "हां । सरासर । यह बात मुझे भी बहुत हैरान कर रही है।"


एक पुलिसिया फिर अन्दर दाखिल हुआ ।


" अब क्या है ?" - प्रभूदयाल बोला ।


"बाहर एक आदमी आया है।" - पुलिसिये ने बताया"वह माला जोशी को पूछ रहा है ।”


"है कौन वो ?”


" पता नहीं । अपना नाम पवन कपूर बता रहा है वह । "


“बुलाओ।"


"उसके साथ एक और आदमी भी है । "


"वह कौन है ?"


“उसका नाम कालीचरण है कहता है । वह बड़े-बड़े फिल्म और स्टेज के सितारों का सैकेट्री रह चुका है।"


"यह पवन कपूर भी क्या कोई फिल्म स्टार है ?"


"देखने में तो लगता है, साहब ।”


"दोनों को बुलाओ।"


पुलिसिया बाहर चला गया ।


"यह पवन कपूर क्या मोहन कपूर का कोई रिश्तेदार हो सकता है ?" - सुनील ने पूछा ।


"शायद हो ।" - प्रभूदयाल बोला- "अभी मालूम हुआ जाता है।"


" आज मैंने माला जोशी की मां नयना देवी के बारे में काफी पूछताछ की थी। मुझे किसी ने बताया था कि नयना देवी की जिंदगी में कोई कालीचरण नाम का आदमी उसका सैकेट्री हुआ करता था।"


"मुमकिन है यह वह कालीचरण हो । उसने कहा तो है कि वह बड़े-बड़े फिल्म और स्टेज के सितारों का सैकेट्री रह चुका है।"


तभी दो व्यक्तियों ने भीतर कदम रखा ।


एक लम्बा ऊंचा खूबसूरत नौजवान था। उसने बताया कि वह पवन कपूर था ।


दूसरा एक पचास से ऊपर की उम्र का मोटा, ठिगना व्यक्ति था । वह कालीचरण था ।


"यह क्या माजरा है ?" - भीतर आते ही पवन कपूर व्यग्र स्वर में बोला- "यहां क्या हो रहा है ? यहां पुलिस क्यों आई हुई है ? माला कहां है ? खैरियत तो है न ?”


"माला बेबी ठीक तो है ?" - कालीचरण बोला - "मैं उसका सेकेट्री हूं । वह..."


"वह है कहां ?" - परेशानहाल पवन कपूर बीच में ही बोल पड़ा।


“आप लोग चिन्ता मत कीजिये ।" - प्रभूदयाल बोला "माला देवी को कुछ नहीं हुआ है ?" -


"लेकिन वो है कहां ?"


प्रभूदयाल ने उसके प्रश्न को नजरअन्दाज कर दिया और फिर उसने पूछा - "क्या तुम्हारा मोहन कपूर से कोई रिश्ता है ?"


“मैं उनका भतीजा हूं ?"


" और माला जोशी के क्या हो तुम ?"


"अभी केवल दोस्त हूं लेकिन बहुत जल्दी बहुत कुछ होने वाला हूं । "


"मतलब ?"


“मैं और माला एक-दूसरे से प्यार करते हैं। बहुत जल्द हम शादी करने वाले हैं । "


"और फिर उसके बाद पैसे की सारी समस्यायें हल हो जायेंगी।" - कालीचरण बोला । -


“पैसे की समस्यायें ?” - प्रभूदयाल बोला - "क्या मतलब ?" 


"कुछ नहीं ।" - पवन कपूर बोला- "आप यह बताइये कि माला कहां है ?"


"माला को छोड़ो । पहले यह बताओ यह पैसे का क्या किस्सा है? पैसे की कौन सी समास्यायें हल हो रही हैं ? "


"वो दरअसल बात यह है ।" - कालीचरण चिकने-चुपड़े स्वर में बोला - "आप लोग जानते ही होंगे कि माला की मां नयना देवी ने एक राजकुमार से शादी की थी जो माला की मां की मौत से पहले ही मर गया था और अपनी करोड़ों की जायदाद नयना देवी के नाम छोड़ गया था । नयना देवी ने अपनी मौत से कुछ ही दिन पहले जो वसीयत की थी, उसके अनुसार उसने अपना सबकुछ अपने दूसरे पति मोहन कपूर के नाम लिख दिया था ।”


"लेकिन" - सुनील बोला- "मोहन कपूर को तब तक गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो चुका था ।"


"आप ठीक कह रहे हैं ।" - कालीचरण बोला - "इसीलिये नयना देवी की वसीयत में यह भी लिखा हुआ था कि जब तक मोहन कपूर का अता-पता मालूम न हो तब तक माला को अपनी माता की सारी अचल सम्पत्ति के इस्तेमाल का हक था और नयना देवी के पहले पति का जो रूपया कारोबार में लगा हुआ था और जो शेयरों की सूरत में था, उसके लाभांश की माला पूरी हकदार थी ।”


"मोहन कपूर का अता-पता मालूम होने का क्या मतलब था ? वह जिन्दा बरामद होना चाहिये या उसकी लाश की बरामदी भी चलेगी ?"


"इस बारे में तो वसीयत में विशेष रूप से कुछ लिखा नहीं है । "


"नयना देवी ने अपनी बेटी की जगह अपने दूसरे पति के नाम सबकुछ क्यों छोड़ा ? क्या उसे मोहन कपूर से बहुत मोहब्बत थी ?"


"मोहन कपूर में बहुत नुक्स थे । नयना देवी को उससे बहुत शिकायतें रही थीं । वह नयना देवी से धोखाधड़ी कर लेता था, रुपये-पैसों के मामले में उसे ठगने तक से बाज नहीं आता था लेकिन फिर भी नयना देवी को उससे बहुत प्यार था, बहुत मोह था । और नयना देवी का यह मोह उसकी आखिरी सांस तक नहीं टूटा था ।" - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला- "नयना देवी की वसीयत में एक क्लाज और भी थी । मोहन कपूर का अता-पता मालूम हो पाने से पहले - अर्थात जहां कहीं भी यह था, वहां से उसके लौट आने से पहले - अगर उसकी बेटी माला की मौत हो जाती तो फिर मोहन कपूर के वारिसों को नयना देवी की तमाम चल-अचल सम्पत्ति का मालिक माना जाता । या अगर मोहन कपूर के लौटने या बरामद होने से पहले माला शादी कर लेती तो नयना देवी की दौलत के मालिक माला और उसका पति बन जाते । वह बड़ी पेचीदी वसीयत है लेकिन नयना देवी भी तो कोई कम पेचीदी औरत न थी।"


"मोहन कपूर के वारिसों में कौन-कौन हैं ?"


"उसके भतीजे पवन कपूर के अलावा और कोई भी नहीं है ?"


"ओह... आई सी ।"


"लेकिन" - एकाएक पवन कपूर बोला पड़ा- "माला ने न ही अभी किसी से शादी की है और न ही अभी तक मेरा चाचा मोहन कपूर वापस लौटा है या बरामद हुआ है ।"


तभी एक पुलिसिया वहां पहुंचा । वह बोला- “लाश उठवा ली गई है, साहब | "


"लाश ?" - पवन कपूर के नेत्र फट पड़े - "किसकी लाश ? माला कहां है ? "


"मैं यहां हूं।" - माला की आवाज आई ।


सुनील चौंककर आवाज की दिशा में घूमा । प्रभूदयाल की गरदन भी फिरकनी की तरह आवाज की तरफ घूम गई ।


माला ने उस वक्त एक नर्स की यूनिफार्म पहनी हुई थी । ऊपर से उसने फर का वह कोट पहना हुआ था जो सुनील ने उसे होटल से प्रभूदयाल के साथ विदा होते वक्त पहने देखा था ।


उसके साथ एक आदमी था। सुनील उसे पहचानता था । वह फिल्म डायरेक्टर जयन्त सेठी था और वह माला की कई फिल्में डायरेक्ट कर चुका था ।


"हल्लो, ऐवरबाडी ।" - जयन्त सेठी बोला ।


फिर माला पर सवालों की बौछार होने लगी । सब एक ही सवाल पूछ रहे थे। वह वहां कैसे पहुंच गई थी ? और वह नर्स की यूनीफार्म में क्यों थी ?


“ये इंस्पेक्टर साहब" - माला ने प्रभूदयाल की ओर संकेत किया - "मुझे हस्पताल में भरती करवा आये थे । मेरा दिमाग चैक करवाने के लिये । मैं हर हालत में हस्पताल से बाहर निकलना चाहती थी क्योंकि मुझे कुछ-कुछ मालूम होने का मौका हाथ आता दिखाई दे रहा था । हस्पताल से भागना कोई मुश्किल साबित न हुआ । मैंने एक आर्डरली को रिश्वत देकर उससे जयन्त को फोन करवाया । जयन्त ने आकर मेरे दरवाजे पर पहरा देते एक पुलिसेये को रिश्वत दी कि वह मेरे दरवाजे से हट जाये । फिर जयन्त ने मुझे यह नर्स की यूनिफार्म लाकर दे दी । उसके पश्चात हस्पताल से फूटना क्या कठिन काम था ?"


"लेकिन हस्पताल से निकलने के बाद और यहां आने से पहले हमने एक बहुत महत्वपूर्ण काम कर लिया है । " जयन्त सेठी बोला ।


"क्या ?" - सुनील ने पूछा ।


"हमने शादी कर ली है।" - जयन्त सेठी बोला "साहबान, मिसेज जयन्त सेठी से मिलिये ।" -


"माला !" - पवन कपूर आहत स्वर में बोला ।


"बेवकूफ !" - कालीचरण बोला ।


माला ने किसी की बात की परवाह न की । वह दृढ स्वर में बोली - "इस बार हकीकत जानने से मुझे कोई नहीं रोक सकता । मैं यहां से जा रही हूं । कोई मुझे रोकने की कोशिश न करे ।" - एकाएक उसके हाथ में रिवाल्वर प्रकट हुई - "मेरी राय है कि आप लोग मेरा यही इन्तजार करें ।”


“मेरी रिवाल्वर !” - जयन्त सेठी हड़बड़ाकर बोला - "यह तुम्हारे हाथ कैसे पड़ गई ?"


“मैंने रास्ते में इसे तुम्हारी जेब में से निकाला था ।” वह सहज भाव से बोली। फिर एकाएक उसके स्वर में कठोरता आ गई " अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की या मेरे पीछे आने की कोशिश की तो मैं उसे शूट कर दूंगी । चाहे वह कोई हो । और जयन्त, यह बात में तुम्हें भी कह रही हूं। मैं तुमसे बहुत मुहब्बत करती हूं लेकिन में तुम्हें भी शूट करने से नहीं हिचकूंगी ।"


फिर वह घूमी और हवा के झोंके की तरह वहां से बाहर निकल गई ।


"जयन्त !" - एकाएक कालीचरण बोला "तुमने नाहक शादी की उससे । नयना देवी की दौलत विरासत में माला को नहीं मिलने वाली ।"


जयन्त सेठी कुछ क्षण ठिठका खड़ा रहा, फिर वह दरवाजे की तरफ भागा । एकाएक हर कोई दरवाजे की तरफ झपटा ।


कुछ क्षण बाद बाहर जितनी कारें मौजूद थीं, सब सड़क पर दौड़ चलीं ।


माला जयन्त सेठी की फियेट कार पर वहां से कूच कर चुकी थीं।


फिर सुनील ने एक कार की ड्राइविंग सीट पर पवन कपूर की झलक देखी ।


उन कारों के पीछे पुलिस की दो कारें दौड़ चलीं ।


पीछे सुनील अकेला रह गया ।


वह कुछ क्षण वहां खड़ा वहां से कूच करने की कोई तरकीब सोचता रहा फिर वह वापिस बंगले में दाखिल हो गया । बैडरूम में टेलीफोन था । उसके नीचे डायरेक्ट्री दबी हुई थी और उस पर एक नजदीकी टैक्सी स्टैंड का नम्बर लिखा हुआ था । सुनील ने उस पर घन्टी दी । बड़ी देर बाद शायद किसी ने सोते से उठकर फोन सुना । सुनील ने उसे बंगले का नम्बर बताया और उसे वहां एक टैक्सी भेजने को कहा ।


फिर उसने फोन रख दिया । उसने बंगले की सारी बत्तियां बुझाई और बाहर निकल आया। उसने मुख्यद्वार पर ताला लगा दिया और कम्पाउंड से बाहर निकलकर सड़क पर आ खड़ा हुआ ।


थोड़ी देर बाद टैक्सी वहां पहुंची ।


सुनील उसमें सवार हो गया ।


बोला । “कहां चलूं, साहब ?” - ड्राइवर नींद में डूबे स्वर में


केवल उसे मालूम था कि माला कहां गई थी । सुनील ने मन-ही-मन सोचा ।


“धोबी नाका क्रीक ।” - वह ड्राइवर से बोला - " और टैक्सी एक्सीडेन्ट कर देने वाली रफ्तार जितनी तेज भगाओ ।"


टैक्सी सड़क पर दौड़ चली ।