सुनील ने सीधे माला जोशी के बंगले का रुख नहीं किया ।
उसने पहली उसकी मां, भूतपूर्व स्टेज एक्ट्रेस नयना देवी, के बारे में जितनी जानकारी हासिल हो सकती थी, हासिल की ।
उसे मालूम हुआ कि नयना देवी अपने जमाने की सर्वश्रेष्ट स्टेज एक्ट्रेस ही नहीं थीं, बल्कि वह इन्तहाई खूबसूरत औरत भी थी और सही मायनों प्रतिभासम्पन्न थी । अभिनय उसका शौक था, पेशा नहीं । वह खूब पैसे वाली महिला थी क्योंकि उसने एक रियासत के राजकुमार से विवाह किया था जिसे कि लाखों रुपये का प्रीवी पर्स मिलता था । लेकिन उसकी जिन्दगी में जो सबसे बड़ी ट्रेजेडी हुई थी और जिसने उसका दिल तोड़ दिया था वह यह थी कि उसकी इकलौती औलाद माला के पैदा होने में थोड़ा अरसा पहले उसके पति की एक एक्सीडेन्ट में मृत्यु हो गई थी ।
लेकिन वक्त बड़े-बड़े जख्म भर देता है । वक्त टूटे दिलों को भी जोड़ देता है। पहले पति का गम नयना देवी हमेशा के लिये अपने कलेजे से लगाये न रह सकी । कुछ समय बाद उसने अपने एक हमपेशा व्यक्ति से शादी कर ली । नयना देवी के दूसरे पति का नाम मोहन कपूर था और वह रजत पट का काफी ख्यातिप्राप्त अभिनेता था ।
लेकिन शायद नयना देवी के मुकद्दर में पति का सुख नहीं लिखा था। शादी के कुछ ही महीने बाद मोहन कपूर गायब हो गया और उसकी भरपूर तलाश किये जाने के बावजूद उसका अता-पता तक न मिला । यह तक न मालूम हो सका कि वह जिन्दा था कि मर गया था । वह तो जैसे जादू के जोर से गायब हो गया था। बस, अभी था, अभी नहीं था।
दूसरी बार नयना देवी को वैधव्य का दुख बर्दाश्त नहीं हुआ । मोहन कपूर के गायब होने के कुछ ही दिन बाद उसने धोबी नाका क्रीक के पास समुद्र में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। पीछे रह गई नाबालिग बच्ची माला, जो अनायास ही अपनी मां के पहले पति राजा विक्रम सिंह की करोड़ों की जायदाद की वारिस बन गई । माला के बालिग होने तक कोर्ट की आज्ञा से जायदाद की देख-रेख के लिये ट्रस्टी नियुक्त कर दिये गये ।
आज माला जोशी को एक अभिनेत्री के रूप में जमाना जानता था लेकिन यह बहुत ही कम लोगों को मालूम था कि वह नयना देवी की लड़की थी और राजा विक्रम सिंह की विपुल धनराशी की इकलौती वारिस थी ।
रात के ग्यारह बजे के करीब सुनील नेपियन हिल पर स्थित माला जोशी के बंगले पर पहुंचा ।
बंगला नाम को ही बंगला था । हकीकतन वह एक आलीशान राजमहल था जो राजा विक्रम सिंह ने अपनी नई नवेली वधु के लिए विशेषरूप से बनवाया था । बंगले के चारों तरफ लाल पत्थर की ऊंची चारदीवारी थी और सामने एक खूबसूरत बगीचा था।
सुनील लोहे का फाटक खोलकर भीतर दाखिल हुआ और बंगले के मुख्यद्वार पर पहुंचा। माला की दी चाबी से उसने मुख्यद्वार को खोला और भीतर दाखिल हुआ । उसे बंगले में जहां भी बिजली का स्विच दिखाई दिया, उसने उसे ऑन कर दिया ।
कई कमरों में भटकने के बाद अन्त में उसे माला का बैडरूम मिल गया ।
यहां मेज के बीच के दराज में वह डायरी मौजूद थी जिसका जिक्र माला ने किया था ।
उसने मेज पर रखे टेबल लैम्प का स्विच ऑन कर दिया और डायरी लेकर मेज के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया ।
आधे घन्टे बाद वह एकाएक सारे बंगले में एक फावड़ा या कुदाल तलाश करता फिर रहा था । एक फावड़ा हाथ आ जाने के बाद वह बंगले से बाहर निकला और बगीचे में उस तरफ बढा जहां एक इकलौता पीपल का पेड़ खड़ा था । पेड़ के समीप पहुंचकर उसने एक जगह जमीन पर फावड़ा चलाना शुरू कर दिया ।
मन ही मन वह भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि कहीं उसे फोकट की मजदूरी ही न करनी पड़े। उसकी उस मेहनत का फल जरूर सामने आये ।
साढ़े बारह बजे के करीब वह फिर भीतर बंगले में था और बड़ी हड़बड़ाहट में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल को फोन कर रहा था ।
एक बजे के करीब अपने पूरे दल-बल के साथ इंस्पेक्टर प्रभूदयाल वहां पहुंच गया ।
“अगर यह मजाक हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं।" प्रभूदयाल आते ही बोला ।
"मैंने थोड़ी सी जमीन खोदने के बाद ही तुम्हें फोन कर दिया था । " - सुनील बोला- "अपने सब पुलिसियों से कहो कि वे बाकी की कब्र भी खोदें। उसके बाद ही कोई फैसला करना कि मैंने मजाक किया है या कुछ और।"
प्रभूदयाल अपने आदमियों को निर्देश देने लगा ।
बाहर पीपल के पेड़ नीचे फावड़े और कुदालें चलने लगी ।
"तुम यहां पहुंचे कैसे ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"माला जोशी की इजाजत से।" - सुनील बोला - "यह उसी का बंगला है । खुद उसने मुझे यहां की चाबी दी थी।”
"क्यों ?”
"क्योंकि वह चाहती थी कि मैं उसकी डायरी पढूं।"
"फिर ?”
"फिर जब मैं डायरी पढ रहा था तो एकाएक यह कागज का टुकड़ा डायरी में से निकलकर बाहर आ गिरा ।"
सुनील ने प्रभूदयाल को एक कागज का टुकड़ा दिखाया । प्रभूदयाल ने कागज उसके हाथ से ले लिया और उस पर लिखी इबारत पढी ।
कागज पर लिखा था:
बंगले में बाग, बाग में पीपल, पीपल के नीचे क्या ?
"यह क्या कोई गाना है ?" - प्रभूदयाल बोला ।
"गाना है या रोना, यह मुझे नहीं मालूम ।" - सुनील बोला - "लेकिन यह इबारत पढते ही मैंने एक फावड़ा तलाश किया और बाहर बगीचे में जाकर पीपल के पेड़ के नीचे खुदाई करनी शुरू कर दी। फिर ज्यों ही खोदी गई जगह में मुझे एक मानवीय खोपड़ी दिखाई दी, मैं फावड़ा फेंककर बंगले में भाग आया और मैंने फौरन तुम्हें टेलीफोन कर दिया |"
"तुम्हारा मतलब है कि पीपल के नीचे कोई लाश दफन हुई हुई है ? "
“मैंने तो सिर्फ खोपड़ी देखी थी । और खुदाई हो चुकने के बाद ही पता लगेगा कि वहां सिर्फ किसी का सिर दफन है या पूरा जिस्म ।"
प्रभूदयाल खामोश हो गया ।
दोनों खामोश बैठे प्रतीक्षा करते रहे ।
बाहर से कुदालें और फावड़े चलने की आवाजें आती रहीं।
फिर एक पुलिसिया भागा-भागा भीतर दाखिल हुआ और बोला- "वहां से एक पूरी लाश बरामद हुई है, साहब । लगता है कि वहां कोई आदमी पूरे कपड़ों और जूतों समेत दफना दिया गया था । वहां से एक हीरे की अंगूठी और एक सोने की घड़ी भी बरामद हुई है ।”
"घड़ी और अंगूठी को साफ करके यहां लाओ।” प्रभूदयाल ने आदेश दिया ।
“जी, साहब ।" - पुलिसिया बोला और वहां से चला गया।
“लड़की की डायरी पढी थी तुमने ?" - प्रभूदयाल ने सुनील से पूछा ।
"हां ।" - सुनील बोला ।
"क्या लिखा है उसमें ?"
"लिखने को तो उसमें लड़की का सारा जीवन वृतान्त लिखा है लेकिन जिन बातों में पुलिस को दिलचस्पी हो सकती है, वे डायरी में काफी आगे आकर शुरू होती हैं" सुनील ने जेब से डायरी निकाली और उसे एक जगह से खोलकर पढ़ना आरम्भ किया | लिखा था:
आज एक बड़ी अजीब घटना घटी। घटना मेरी समझ से सरासर बाहर है । मैं शूटिंग से वापिस आई और अपने लिये जिन का एक पैग बनाकर बाथरूम में चली गई। बाद में जब मुझे होश आया तो मैं हस्पताल में थी । बीच में क्या हुआ था इसकी मुझे उखड़ी उखड़ी सी, धुंधली-धुंधली सी याद थी । मुझे याद था कि मेरे आस-पास भारी उत्तेजना का वातावरण बना हुआ था । लोग बड़ी व्यस्तता से इधर-उधर आ-जा रहे थे । वे मुझे यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि मैंने जहर खाया था लेकिन मैं जानती थी कि हकीकतन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था । वे कहते थे कि मैंने लिपस्टिक से अपनी ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर 'अलविदा, ऐ जालिम जमाने, अलविदा' लिख दिया था। लेकिन जब तक मैं हस्पताल से घर वापिस पहुंची तब तक शीशे को किसी ने झाड़-पौंछ दिया था इसलिए मैं यह फैसला न कर सकी कि मैंने ऐसा कुछ लिखा था या नहीं । हस्पताल का डॉक्टर कहता था कि मेरे पेट में जहर पाया गया था लेकिन मैंने तो जहर खाया नहीं था ।
“लड़की पागल है ।” - प्रभूदयाल बोला ।
"अभी सुनते रहो ।" - सुनील बोला । उसने डायरी को आगे पढना शुरू किया । आगे लिखा था :
लेकिन मुझे याद है कि उस रात एक आदमी मेरे कमरे में आया । उसने मुझे आवाज लगाकर कहा था कि मेरे लिए टेलीग्राम थी । मैं उस वक्त बाथरूम में थी। मैंने उसे कहा था कि दरवाजा खुला था, वह भीतर आकर टेलीग्राम मेज पर रख दे । उस वक्त मेरा जिन का पैग मेज पर रखा था। मैंने बाथरूम से निकलकर जिन पी ली थी और तभी मुझे कुछ हो गया था ।
मुझे मेज पर कोई टेलीग्राम पड़ी नहीं मिली थी ।
जरूर वही आदमी टेलीग्राम का बहाना करके भीतर घुसा था और मेरे जिन के गिलास में जहर डाल गया था ।
"इसमें यह नहीं लिखा ।" - सुनील बोला- "कि उसे अस्पताल किसे पहुंचाया था ।”
“वह मुझे मालूम है।" - प्रभूदयाल बोला - "कोई बाजार गई उसकी नौकरानी से मिला था और उसने नौकरानी को कहा था कि वह खरीदारी छोड़कर फौरन घर जाए क्योंकि उसकी मालकिन को उसकी जरूरत थी। हालांकि उसने जहर की काफी मात्रा नहीं खाई थी लेकिन फिर भी अगर नौकरानी जल्दी घर न लौट जाती तो माला जोशी मर सकती थी ।"
"आई सी ।" - सुनील बोला ।
“आगे क्या लिखा है ?"
“आगे सुनो ।" - सुनील ने डायरी के कुछ पन्ने पलटे और फिर डायरी पढने लगा । आगे लिखा था :
कोई मेरा कत्ल करने की कोशिश कर रहा है । कोई निश्चय ही मेरा कत्ल करने की कोशिश कर रहा है ।
"यहां आत्महत्या के दूसरे प्रयत्न का जिक्र है।" - सुनील बोला - "तुम्हें मालूम ही है कि दूसरी बार क्या हुआ था ? वह किसी अन्य नाम से एक होटल में ठहरी हुई थी । जब होटल की मेड उसके होटल के कमरे में दाखिल हुई थी तो उसने उसे बाथरूम में पाया था । उसने ब्लेड से अपनी कलाइयों की नसें काट ली थीं । होटल की मेड का सफाई के लिए उसके कमरे में आने का एक निर्धारित समय था । उसने उस निर्धारित समय से थोड़ी ही देर पहले अपनी कलाइयों पर ब्लेड फेरा था।"
“जो कि उसकी मूर्खता थी ।" - प्रभूदयाल बोला " उसे चाहिए था कि वह मेड के कमरा संवार कर चले जाने के बाद आत्महत्या की कोशिश करती । जिस प्रकार उसने वह कोशिश की थी, उससे तो लगता था कि उसे मालूम था कि उसके प्राण निकल पाने से पहले ही मेड वहां पहुंच जाएगी और फिर वह मरने से बचा ली जाएगी ।"
"लड़की की डायरी के मुताबिक" - सुनील बोला - "उसे एक गुमनाम आदमी ने फोन करके कहा था कि अगर वह फलां होटल में जाकर फलां नाम से एक कमरा ले लेगी तो वह किसी मुनासिब वक्त पर उससे वहां सम्पर्क स्थापित करेगा और उसे बरसों से गायब मोहन कपूर के बारे में कोई बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देगा । वह उस गुमनाम आदमी के निर्देशानुसार उसके बताये नाम से उसके बताये होटल में पहुंच गई थी । फिर कुछ समय बाद उसके दरवाजे पर दस्तक हुई थी । उसने दरवाजा खोला था तो एक आदमी उसे वापिस कमरे में धकेलता हुआ भीतर घुस आया था । लड़की के कथनानुसार वह उसे जबरदस्ती बाथरूम में ले आया था और उसी ने उसकी कलाइयों को ब्लेड से काटा था और फिर उसे बाथरूम में बेहोश पड़ी छोड़कर वहां से खिसक गया था ।"
" उसने हमें यह कहानी सुनाई थी लेकिन हमें उसकी इस कहानी पर कतई विश्वास नहीं हुआ था ।”
"यह सच है कि 'अलविदा ऐ जालिम जमाने अलविदा !’ उस बार भी बाथरूम के शीशे पर लिखा हुआ था ?"
"हां । "
"लिपस्टिक से ही ।"
"हां, हां ! तुम आगे बोलो । डायरी में और क्या लिखा हुआ है ?"
"उस दूसरी बार आत्महत्या के प्रयत्न के बाद से तो डायरी के एक-एक शब्द में लड़की के दिलो-दिमाग पर छाई दहशत झलकती है । ये डायरी में लिखे आखिरी शब्द सुनो "
सुनील फिर डायरी पढने लगा, लिखा था :
मैं बहुत भयभीत हूं लेकिन साथ ही महसूस करती हूं कि हकीकत मुझे मालूम होनी चाहिए। मुझसे वादा किया गया है कि अगर मैं जैसा कहा जायेगा वैसा करूंगी तो मुझे बता दिया जायेगा कि मोहन कपूर - मेरी मां का दूसरा पति अर्थात् मेरा सौतेला बाप - कहां गायब हो गया था । मैं यह बात जरूर जानना चाहती हूं ।
सुनील ने धीरे से डायरी बन्द कर दी और बोला "जिस कागज के टुकड़े पर मुझे पीपल के नीचे खुदाई करने का संकेत लिखा मिला था, वह डायरी के आखिरी लिखे हुए पृष्ठ के पास रखा था।" -
"हूं!"
"इंस्पेक्टर साहब !" - सुनील गम्भीरता से बोला - "लड़की ने जहर खाया था लेकिन इतनी अधिक मात्रा में नहीं खाया था कि वह मर सकती । और फिर किसी ने उसकी नौकरानी को खास तौर से फौरन घर पहुंचने के लिये कहा था ताकि उसे जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचाया जा सकता । फिर वह एक फर्जी नाम से होटल में ठहरी और उसने अपनी कलाईयां काट लीं लेकिन बहुत बुरी तरह से नहीं और ऐसा उसने उस वक्त किया जिससे थोड़ी ही देर बाद होटल की मेड पहुंचने वाली थी ।”
"तुम क्या कहना चाहते हो ?" - प्रभूदयाल तनिक विचलित स्वर में बोला ।
“खास कुछ नहीं । तुम्हें याद है लड़की ने कहा था होटल की सातवीं मंजिल पर स्थित उसके कमरे की खिड़की से बाहर के प्रोजेक्शन पर किसी ने उसे जबरदस्ती धकेला था "
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