"ओह !"
“लेकिन अब तुम वर्टिगो का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो । तुम कतई मत घबराओ । अब तुम एकदम सुरक्षित हो ।'
"नहीं नहीं।" - वह हड़बड़ाकर बोली- "मैं सुरक्षित नहीं हूं।" - फिर वह प्रभूदयाल की ओर घूमी और फरियाद-सी करती हुई बोली- "आप पुलिस अधिकारी हैं । भगवान के लिए मुझे बचाइए । मेरी रक्षा कीजिए । कोई मेरी हत्या करने की कोशिश कर रहा है ।"
"कौन ?" - प्रभूदयाल बोला । उसके स्वर में अविश्वास का पुट था ।
"वह मुझे नहीं मालूम ।" - माला बोली ।
"क्यों ?"
"यह भी मुझे नहीं मालूम ।"
"मेम साहब !" - प्रभूदयाल कर्कश स्वर में बोला - "कहानियां छोड़ो और चुपचाप मेरे साथ चलो।"
"कहां ?" - वह हड़बड़ाकर बोली ।
"पुलिस हैडक्वार्टर | मैं तुम्हें गिरफ्तार कर रहा हूं।"
“कमाल है !" - सुनील बोला- "कातिल को गिरफ्तार करने के स्थान पर तुम उसे गिरफ्तार कर रहे हो जो कत्ल होने जा रहा था । "
"सुनील !" - प्रभूदयाल बोला- "अभी तुमने जो हमारी मदद की है, उसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं लेकिन अब आगे मेरे काम में टांग मत अड़ाओ। मुझे मेरा धन्धा मत सिखाओ ।"
"लेकिन ।" - माला ने आर्तनाद किया - "कोई वाकई मेरी हत्या करने की कोशिश कर रहा है ।"
"तुम बाहर प्रोजेक्शन पर उतरकर अभी नीचे कूदने वाली थीं और कह रही हो कि कोई तुम्हारी हत्या करने की कोशिश कर रहा है ।" - प्रभूदयाल बोला- "मेम साहब ! तुम आत्महत्या करने जा रहीं थीं। मैं तुम्हें आत्महत्या करने की कोशिश के अपराध में गिरफ्तार कर रहा हूं।"
"लेकिन यह झूठ है।" - माला चिल्लाई - "मैं बाहर प्रोजेक्शन पर खुद नहीं उतरी थी । किसी ने मुझे वहां जबरदस्ती धकेला था और वहां से वापिस आने में मुझे डर लग रहा था । "
"ऐसा किसने किया ? कौन है वो ? वो आदमी कौन है जो तुम्हारे कहने के मुताबिक तुम्हारी हत्या करने की कोशिश कर रहा है ?"
"मुझे नहीं मालूम । "
"वह तुम्हें प्रोजेक्शन पर जबरदस्ती धकेलने में कैसे सफल हुआ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"उसने मुझसे पहले वह चाय की ट्राली खिड़की से बाहर प्रोजेक्शन पर रख दी थी ।" - लड़की ट्राली की तरफ संकेत करती हुई बोली- "और फिर मुझे जबरन उठाकर बाहर रखी ट्राली पर बिठा दिया था। फिर उसने ट्राली को धक्का देकर प्रोजेक्शन पर आगे धकेल दिया था ।"
बोला । "ट्राली उलटी नहीं ?" - प्रभूदयाल व्यंगपूर्ण स्वर में
"नहीं।" - वह बोली- "लेकिन आंतक से मेरा हार्ट फेल होते-होते बचा था । ट्राली के प्रोजेक्शन पर स्थिर होते ही मैं उस पर से उतर गई थी और उकडू होकर प्रोजेक्शन पर बैठ गई थी ।”
" और ट्राली ?"
" उस आदमी ने वापिस कमरे में खींच ली थी । ”
“नानसेंस !” - प्रभूदयाल अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला
"यह मेंटल केस है ।” - प्रभूदयाल के साथ मौजूद एक आदमी बोला- "इसको अस्पताल की देखरेख की जरूरत है |"
"तुम ठीक कह रहे हो, डॉक्टर।" - प्रभूदयाल बोला ।
माला रुआंसी हो उठी। उसने असहाय भाव से कमरे में मौजूद एक-एक सूरत पर निगाह डाली । अन्त में उसकी निगाह सुनील पर आकर टिक गई ।
"मिस्टर" - फिर वह बोली- "क्या नाम है तुम्हारा ?"
"मेरा नाम सुनील है।" - सुनील बोला- "मैं प्रैस रिपोर्टर हूं।"
"मिस्टर सुनील, ये लोग मुझे झूठा करार दे रहे हैं । तुमने मेरी जान बचाई है । तुम जानते हो कि मैं वर्टिगो की बीमारी की वजह से बाहर प्रोजेक्शन पर से हिलने तक की हिम्मत नहीं कर रही थी । तुम तो मेरी बात पर विश्वास करो |"
"मुझे तुम्हारी बात पर पूरा विश्वास है।" - सुनील बोला ।
"तो फिर इन लोगों को विश्वास दिलाओ कि कोई वाकई मेरा कत्ल करने की कोशिश कर रहा है, इन्हें कहो कि ये उस आदमी को तलाश करें, उसे गिरफ्तार करें, उसे सजा दिलायें ।"
"प्रभू, सुन रहे हो ?"
"सुन रहा हूं । लेकिन मैं इसकी बातों में नहीं आने वाला । यह तीसरी बार है, जबकि इसने आत्महत्या करने की कोशिश की है । इस लड़की के मस्तिष्क में निश्चय ही ऐसा कोई विकार है जो इसे बार-बार आत्मघात के लिये प्रेरित करता है । मैं मानता हूं कि इसे सुरक्षा की जरूरत है लेकिन किसी हत्यारे से नहीं, इसे अपने आपसे सुरक्षा की जरूरत है । अगर हमने इसे गिरफ्तार न किया तो यह फिर आत्महत्या की कोशिश करेगी ।"
"लेकिन..."
"तुम इसकी केस हिस्ट्री नहीं जानते हो लेकिन मैं जानता हूं । आत्महत्या इस लड़की की पारिवारिक परम्परा है । इसकी मां भी आत्महत्या करके मरी थी।"
"इसकी मां !"
“हां ! नयना देवी । गुजरे जमाने की सबसे मशहूर स्टेज एक्ट्रेस । उसने भी तब आत्महत्या की थी - जब माला की ही तरह वह भी अपने प्रसिद्धि के शिखर पर थी ।"
"आत्महत्या की दो कोशिशें तुम पहले भी कर चुकी हो ?" - सुनील ने माला से पूछा ।
"यह थोड़े ही मानेगी कि यह पहले भी आत्महत्या की दो कोशिशें कर चुकी है ।" - प्रभूदयाल बोला - "मुझसे सुनो कि पहले क्या कर चुकी है यह। पहली बार इसने जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन क्योंकि इसे जहर का तजुर्बा नहीं था इसलिए इत्तफाक से इसने थोड़ी मात्रा में जहर खाया था और फिर कोई इसकी उम्मीद से पहले इसकी सहायता के लिए पहुंच गया था । दूसरी बार इसने ब्लेड से अपनी कलाईयां काट ली थीं लेकिन नातजुर्बेकारी की वजह से यह अपनी कलाई की वह नसें नहीं काट सकी थी जिनका काटना घातक होता है और फिर बहुत ज्यादा खून बह जाने से पहले ही होटल की एक मेड इसके कमरे में पहुंच गई थी । अब तीसरी बार इसने यहां सातवीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की है।"
“नहीं।" - माला तीव्र विरोध पूर्ण स्वर में चिल्लाई ।
"मैं तुमसे पूछता हूं कि इस शहर में मौजूद अपना बंगला छोड़कर तुम रहने के लिए इस होटल में आई क्यों ? और फिर तुमने यह कमरा एक फर्जी नाम से क्यों लिया ? तुमने होटल के रजिस्टर में अपना असली नाम क्यों नहीं लिखा ?"
"प्रभू !" - सुनील दबे स्वर में बोला- "आत्महत्या करने वाला शख्स साधरणतया अपने पीछे कोई चिट्ठी पत्री भी छोड़कर जाता है ताकि उसकी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाये ।"
"करैक्ट ।" - प्रभूदयाल बोला- "अब देखो वह क्या है ?"
उसने एक कोने में पड़ी तीन शीशों वाली ड्रेसिंग टेबिल की ओर संकेत किया ।
सुनील ने देखा बड़े गहरे रंग की लिपस्टिक से एक शीशे पर लिखा था : अलविदा, अलविदा, ऐ जालिम जमाने अलविदा ।
दूसरे शीशे पर लिखा था : खुश रहो अहलेवतन, हम तो सफर करते हैं ।
तीसरे शीशे पर लिखा था : मरके भी चैन नहीं पाया तो किधर जाएंगे ।
"ये तो फिल्मी गाने मालूम होते हैं !" - सुनील बोला ।
“यह फिल्मी अभिनेत्री जो ठहरी ।" - प्रभूदयाल बोला 'अपना सुईसाइड नोट यह साधारण लोगों की तरह कागज-पेन्सिल के इस्तेमाल से थोड़े ही लिखेगी ? यह तो इस काम में भी कोई ड्रामेटिक हरकत करेगी। अपनी लिपिस्टिक से शीशे पर लिखने जैसी ड्रामेटिक हरकत ।"
"यह सब मैंने नहीं लिखा ।" - माला तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली ।
सुनील ने बड़े गौर से अक्षरों के गहरे रंग को देखा और फिर बोला- "मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास है ।”
“ये सब बातें छोड़ो” - प्रभूदयाल बेसब्रेपन से बोला - "और फिर चुपचाप मेरे साथ चलो ।”
"लेकिन..."
“देखो । मुझे सख्ती करने पर मजबूर मत करो। तुम एक मशहूर हस्ती हो । मैं नहीं चाहता पब्लिक में तुम्हारी तौहीन हो । अगर तुम अपनी मर्जी से चुपचाप मेरे साथ नहीं चलोगी तो हर किसी को पता लग जाएगा कि तुम पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके ले जाई जा रही हो । अब जल्दी फैसला करो कि तुम वहां से कैसे जाना चाहती हो।"
वह चेहरे पर अनिश्चय के भाव लिए खामोश खड़ी रही
सुनील चुपचाप खिड़की के समीप सरक आया । उसने एक उलझनपूर्ण निगाह खिड़की के पास खड़ी चाय की ट्राली पर डाली और फिर खिड़की से बाहर झांका ।
नीचे से भीड़ छंट चुकी थी और वातावरण नार्मल हो चुका था ।
उसने बड़े गौर से प्रोजेक्शन को देखा ।
प्रोजेक्शन कम से कम ढाई फुट चौड़ा था और उसके किनारे समकोण की सूरत में कम से कम छ: इन्च ऊपर उठे हुए थे ।
“चलो ।” - प्रभूदयाल माला से बोला ।
माला असहाय भाव से सुनील को देखती हुई प्रभूदयाल के साथ हो ली ।
सुनील भी उनके पीछे-पीछे चल दिया ।
प्रभूदयाल ठिठका और सख्त स्वर में बोला- "फूटो।"
"मैं इस लड़की की जमानत देना चाहता हूं।" - सुनील बोला- "मैं तुम्हारे साथ जाऊंगा ।”
" तुम मेरे साथ नहीं जा सकते । जमानत कल अदालत में होगी। जमानत देने के लिए तुम अदालत में पहुंच जाना ["
"लेकिन..."
"मैं एक मिनट सुनील से बात करना चाहती हूं।" - एकाएक माला बोली । फिर उसने प्रभूदयाल के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना सुनील की बांह थामी और उसे भीड़ से परे कमरे के एक कोने में ले आई ।
प्रभूदयाल ने पहले तुरन्त आगे कदम बढाया लेकिन फिर कुछ सोचकर वह दरवाजे के पास ही ठिठका खड़ा रहा ।
"मिस्टर सुनील, मेरा विश्वास करो।" - वह फुसफुसाती हुई बोली- "मैंने कभी आत्महत्या की कोशिश नहीं की। मैं इतनी मौज की जिन्दगी जी रही हूं। मुझे संसार की हर सुख-सुविधा हासिल है । मैं भला आत्महत्या क्यों करूंगी ? आत्महत्या की कोई वजह तो हो ।"
"लेकिन फिर यह आत्महत्या की कोशिशों का किस्सा क्या है?" - सुनील बोला ।
" किस्सा सुनाने का इस वक्त मेरे पास वक्त नहीं है । यह पुलिस वाला मुझे तुमसे ज्यादा देर बात नहीं करने देगा । लेकिन मैंने अपनी डायरी में सब कुछ लिखा हुआ है । तुम मेरी डायरी पढ लो, तुम्हें सब मालूम हो जाएगा।”
"डायरी कहां है तुम्हारी ?"
"मेरे बंगले पर ।" - वह बोली । उसने अपने पर्स से एक चाबी निकालकर सुनील को सौंप दी - "मेरा बंगला नेपियन हिल पर है । नम्बर है चौदह । यह उसकी चाबी है । तुम मुझे भले आदमी लग रहे हो । तुम्हारे बारे में मेरा दिल गवाही दे रहा है कि तुम पर भरोसा किया जा सकता है । तुम मेरे बंगले पर चले जाना। मेरे बैडरूम के समीप एक मेज है जिसके बीच के दराज में मेरी डायरी पड़ी है। तुम डायरी में वह सब पढ लेना जिन्हें यह इंस्पेक्टर मेरी आत्महत्या की कोशिशें बता रहा है और फिर मुझे इस जंजाल से निकालने की कोई सूरत सोचना ।”
"तुम्हारा बंगला खाली पड़ा है ?"
"हां । पहले मैंने वहां एक केयरटेकर रखा हुआ था लेकिन अब मैंने काफी अरसा हुआ, उसे गैरजरूरी समझकर निकाल दिया है। मैं काफी अरसे से वहां गई नहीं इसलिए शायद धूल-मिट्टी का खूब बोलबाला हो वहां लेकिन तुम उसे माइंड मत करना । ओ. के. ?"
"ओ. के. । लेकिन यह तो बताओ कि वह शख्स है कौन जो तुम्हारे कथनानुसार तुम्हारी हत्या करने की कोशिश कर रहा है?"
"मुझे नहीं मालूम वह कौन है । आनेस्ट ।”
" उसका भी जिक्र डायरी में है ?"
"हां"
तभी प्रभूदयाल दृढ कदमों से उनकी तरफ बढा ।
"ओ. के. ।" - सुनील जल्दी से बोला- "मैं तुम्हारी डायरी देखूंगा।"
माला प्रभूदयाल की तरफ बढ़ चली ।
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