होटल की इमारत के सामने इतनी भीड़ जमा थी कि सड़क पर ट्रैफिक जमा हो गया था । घटनास्थल पर पुलिस और फायर ब्रिगेड पहुंच चुकी थी। फायर ब्रिगेड वालों ने इमारत के नीचे दीवार के पास एक मजबूत जाल तान दिया था लेकिन उन्होंने दीवार के साथ सीढी लगाने की कोशिश नहीं की थी ।


होटल की इमारत आठ मंजिली थी और उसकी सातवीं मंजिल की खिड़कियों के नीचे बने प्रोजेक्शन पर एक युवती उकडू सी बैठी थी । उसे वहां उसी प्रकार बैठे दो घन्टे से ज्यादा समय हो गया था लेकिन हर किसी की धारणा थी कि वह किसी भी क्षण वहां से छलांग लगा सकती थी ।


एक पुलिस कर्मचारी हाथ में माइक्रोफोन लिए लड़की को निर्देश दे रहा था कि वह प्रोजेक्शन पर चलती हुई खिड़की तक पहुंचे और फिर वापिस अपने कमरे तक पहुंच जाये । युवती सब-कुछ सुन रही थी लेकिन जो कुछ वह सुन रही थी, उस पर अमल करने की उसकी कतई नीयत नहीं दिखाई दे रहीं थी ।


भीड़ की निगाहें एकटक युवती पर टिकी हुई थीं और शायद उन्हें उसके न कूदने की वजह से मायूसी हो रही थी क्योंकि उस छलांग के इन्तजार में खामखाह उनका कीमती वक्त बर्बाद हो रहा था ।


सड़क के सात मंजिल ऊपर उकडू बैठी युवती तनिक हिल-डुल तक नहीं रही थी। भीड़ में से किसी ने यह सम्भावना भी व्यक्त की थी कि शायद दहशत से ही उसके प्राण निकल चुके थे लेकिन पुलिस उस सम्भावना से सहमत नहीं थी क्योंकि अगर वह मर चुकी होती तो उसका उस उकडू सी मुद्रा में स्थिर रह पाना सम्भव न होता ।


सुनील उसी क्षण एक टैक्सी पर सवार होकर वहां पहुंचा था और भीड़ में सबसे पीछे खड़ा था ।


"यह कब से यूं ही प्रोजेक्शन पर बैठी है ?" - सुनील ने एक आदमी से पूछा ।


मिला । "दो घन्टे से कुछ ज्यादा ही वक्त हो गया है।" - उत्तर


"अच्छा ! कूदती क्यों नहीं ?"


“फायर ब्रिगेड वालों ने नीचे जाल फैलाया हुआ है । शायद इस वजह से न कूद रही हो कि अगर कूदी तो जाकर जाल पर गिरेगी और मरने से बच जाएगी ।"


"लेकिन फायर ब्रिगेड वाले तो इसके प्रोजेक्शन पर मौजूद होने की खबर सुनने के बाद ही यहां पहुंचे होंगे । उन्होंने यहां पहुंचने के बाद ही नीचे जाल फैलाया होगा । लड़की इतनी भीड़ जमा होने से पहले ही क्यों नहीं कूद गई ?"


"शायद पहले कूद पाने लायक हिम्मत न जुटा पाई हो"


“खिड़की में से बाहर निकलकर प्रोजेक्शन पर उतरना भी तो हिम्मत का काम था ! अगर इसमें वह काम करने की हिम्मत थी तो कूदने की हिम्मत क्यों नहीं है ?"


"मुझे क्या पता ?"


" और फिर यह प्रोजेक्शन पर उतरी ही क्यों ? अगर इसने आत्महत्या ही करनी थी तो खिड़की में से ही क्यों नहीं कूद गई?"


“अब मुझे क्या पता, भाई साहब ?”


"मुझे पता है ।" - सुनील बोला । एकाएक वह भीड़ के रेले में घुस गया । वह अपनी कोहनियां चला चलाकर भीड़ को चीरता हुआ होटल के प्रवेशद्वार की तरफ बढा । जब वह तमाशाइयों से पार निकल आया तो एक सिपाही ने उसे रोका । उसने सिपाही को परे धकेल दिया लेकिन आगे वह फिर भी न बढ़ सका ।


आगे फायर ब्रिगेड वालों ने रस्सियों से नाकाबन्दी की हुई थी ताकि कोई करीब न आ सके ।


"मैं होटल में ठहरा हुआ हूं।" - वह एक सिपाही से बोला - "मेरा भीतर जाना जरूरी है । "


“पिछवाड़े के रास्ते से जाइए।" - सिपाही बोला ।


सुनील बड़ी मुश्किल से भीड़ से निकल पाया । वह इमारत का घेरा काटकर पिछवाड़े में पहुंचा।


उधर कोई भीड़-भाड़ नहीं थी ।


वह होटल में दाखिल हुआ और एक लम्बा गलियारा पार करके सामने लाबी में पहुंचा। वहां से वह एक लिफ्ट में सवार हुआ और सातवीं मंजिल पर पहुंचा ।


वहां गलियारे में एक दरवाजे के सामने लोग जमा थे । सुनील लम्बे डग भरता हुआ उसके पास पहुंचा। वहां दरवाजे पर एक सिपाही खड़ा था । सुनील ने उसे धकेलकर भीतर दाखिल होने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सका । उलटे सिपाही ने बड़ी बेरुखी से उसे परे धकेल दिया ।


तभी कमरे के भीतर मौजूद तीन-चार आदमियों में उसे इंस्पेक्टर प्रभूदयाल की झलक मिली ।


"धक्का क्यों दे रहे हो ?" - सुनील क्रोधित स्वर में बोला - "मैं इंस्पेक्टर प्रभूदयाल की बुआ का लड़का । मैं इंस्पेक्टर साहब के लिए बुआ जी का सन्देशा लाया हूं।"


और वह झपटकर दरवाजा पार कर गया ।


सिपाही ने उसे रोकने की कोशिश फिर भी की थी लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका था ।


“अरे, कहां घुसे चले आ रहे हो ?" - उसे देखते ही इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल क्रोधित स्वर में बोला ।


"दो मिनट ।" - सुनील हांफता हुआ बोला- "मुझे दो मिनट का वक्त दो | दो मिनट बाद बाहर छजली पर बैठी लड़की यहां कमरे में होगी ।"


"कैसे ? हम हर कोशिश करके हार चुके हैं। वह हमारी बात नहीं सुनती ।"


" अगर तुम वाकई हर कोशिश करके हार चुके हो तब तो तुम्हें मेरे दो मिनट कोशिश कर देखने से कतई एतराज नहीं होना चाहिए ।”


"तुम उसे कैसे वापिस बुला लोगे ?"


"मेरे पास जादू का डण्डा है। उसे लड़की पर फिराते ही मैं उसे अपने वश में कर लूंगा । फिर वह वही करेगी जो मैं उसे करने के लिए कहूंगा ।"


"मजाक मत करो।"


"यह कोई मजाक करने का वक्त है ? किसी की जान पर बनी हुई है और मैं मजाक करूंगा ?"


"लेकिन..."


“प्रभू, दो मिनट । सिर्फ दो मिनट ।”


" ओ. के. ।" - प्रभूदयाल निर्णयात्मक स्वर में बोला - "लेकिन तुम्हारे उन दो मिनटों में अगर लड़की नीचे कूद गई तो मैं तुम्हें भी खिड़की से नीचे धकेल दूंगा।"


"मंजूर !"


सुनील खिड़की की तरफ लपका। उसने देखा खिड़की के पास एक चाय की ट्राली पड़ी थी लेकिन चाय के बर्तन वगैरह उस पर मौजूद होने के स्थान पर नीचे फर्श पर पड़े हुए थे ।


वह खिड़की के पास पहुंचा, उसने बाहर झांका ।


नीचे भीड़ बढ़ती जा रही थी ।


उसने गर्दन बाहर निकालकर अपने से दाई ओर प्रोजेक्शन पर झांका ।


लड़की सकते की सी हालत में वैसे ही उकडू बैठी हुई थी जैसे बैठा उसने उसे नीचे सड़क से देखा था । उसके बदहवास चेहरे पर करीब से निगाह डालने पर सुनील ने उसे फौरन पहचान लिया ।


वह फिल्म स्टार माला जोशी थी ।


"माला ।" - सुनील बेहद मीठे स्वर में उससे सम्बोधित हुआ ।


माला ने उसकी और देखा । भय से उसकी आंखें उसकी कटारियों से बाहर उबली पड़ रही थीं ।


"माला ।" - सुनील बेहद आश्वासनभरे स्वर में बोला "तुम कतई मत घबराना । तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा । मैं जानता हूं तुम्हें कैसा डर लग रहा है । वह डर मुझे भी लगता है । मुझे भी वर्टिगो की बीमारी है । ऊंचाई से मुझे भी चक्कर आने लगता है। मैं तो पांव ऊपर करके स्टूल पर भी बैठता हूं तो लगता है गिर पडूंगा । तुम्हें भी ऊंचाई से दहशत होती है न ?"


लड़की के चेहरे पर भाव तो नहीं बदले लेकिन उसने धीरे से, बहुत धीरे से, स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिलाया ।


“तुम बिल्कुल मत डरो, माला ।" - सुनील फिर बोला "तुम नीचे झांको ही मत । तुम आंखें बन्द कर लो और उठकर खड़ी हो जाओ । फिर दीवार की तरफ मुंह करके अपनी आंखें खोलो, दीवार पर अपने दोनों हाथ रखो और

फिर धीरे-धीरे मेरी तरफ बढो । माला, मेरी गारन्टी है कि तुम्हें कुछ भी नहीं होगा ।"


युवती के शरीर में हरकत न हुई ।


"कहना मानो, माला । और खिड़की की तरफ बढ़ते समय अपनी निगाह मुझ पर रखना । तुम नीचे झांकना ही नहीं । समझना कि तुम फुटपाथ पर चल रही हो ।"


युवती ने कसकर आंखें बन्द कर ली ।


सुनील ने चैन की सांस ली । जाहिर था कि अब वह उसकी राय पर अमल करने जा रही थी ।


“कतई मत डरना, माला ।" - सुनील बोलता रहा - “तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा। अगर तुम गिर भी गयीं तो भी तुम्हें कुछ नहीं होगा। नीचे फायर ब्रिगेड वालों ने तुम्हारी सुरक्षा के लिए जाल फैलाया हुआ है । जाल पर गिराने से तुम्हें दो-चार झटके ही लगेंगे और कुछ नहीं होगा । लेकिन तुम अपने आप को काबू में रखकर जरा-सी भी सावधानी से काम लोगी तो तुम सुरक्षित यहां अपने कमरे में पहुंच जाओगी ।"


युवती दीवार की ओर मुंह करके उठ खड़ी हुई ।


नीचे जोर का शोर मचा ।


सुनील ने भीड़ को मन ही मन हजार-हजार गालियां दीं । वह स्तब्ध रहने की घड़ी थी और लोग शोर मचा रहे थे ।


फिर लड़की दीवार पर हाथ रखे धीरे-धीरे खिड़की की ओर सरकने लगी ।


“शाबास ! शाबास !” - सुनील प्रोत्साहनभरे स्वर में बोला - "बस, अब थोड़ा-सा ही फासला रह गया है । सम्भल के ! सम्भल के !”


लड़की कुछ इंच सरकी और फिर रुक गई । उसके चेहरे पर आतंक के भाव और गहरे हो गए ।


“डरो नहीं माला, घबराओ नहीं । ठीक है, सांस ले लो और धीरे-धीरे फिर चलने लगो ।"


सुनील को मालूम था कि लड़की के पांव दहशत से जड़ हुये-हुये थे लेकिन जान-बूझकर उसे यही जताया कि वह समझ रहा था कि वह रुककर सांस ले रही थी ।


लड़की फिर खिड़की की ओर सरकने लगी ।


"तुम्हारी वह फिल्म बहुत बढ़िया थी जिसमें तुमने राजकुमारी का रोल किया था। मैंने वह फिल्म तीन बार देखी लेकिन फिर भी मन नहीं भरा । मेरा मतलब है फिल्म से तो मन भर गया था लेकिन तुम्हें देख-देखकर मन नहीं भरता था । फिल्म मेरे घर के पास के सिनेमा से उतर गई थी नहीं तो दो-तीन बार और देखता । नाम... नाम क्या था उस फिल्म का ?"


लड़की होंठों में कुछ बुदबुदाई ।


"हां, हां । वही ।" - सुनील उत्साहपूर्ण स्वर में बोला । हकीकतन उसे कतई पता नहीं लगा था कि लड़की ने क्या कहा था, कुछ कहा भी था या नहीं - "क्या फिल्म थी ! उससे ज्यादा सुन्दर तुम अपनी किसी फिल्म में नहीं लगीं।”


वह खिड़की की तरफ सरकती रही । फासला एक-एक इंच करके घटता जा रहा था ।


"लेकिन उस फिल्म में तुम्हारा हीरो किसी काम का नहीं था ।" - सुनील कहता रहा - "फिर उस हीरो के साथ कभी मत आना । वह तुम्हारे मुकाबले का हीरो नहीं था ।


लड़की के चेहरे पर तनिक नरमी आई।


सुनील यूं ही तब तक लड़की गुणगान करता रहा जब तक वह खिड़की के करीब न पहुंच गई। उसने न माला जोशी की कोई फिल्म देखी थी और न उसे मालूम था कि फिल्म में उसका हीरो कौन था लेकिन वह धाराप्रवाह बोलता हुआ उसकी तारीफ के पुल बांधे जा रहा था ।'


अब नीचे एकदम सन्नाटा छा चुका था ।


कमरे में प्रभूदयाल और उसके सहयोगी भी सांस रोके खड़े थे ।


फिर सुनील ने उसके दोनों हाथ थामकर खिड़की के भीतर खींच लिया ।


प्रभूदयाल ने तब कहीं जाकर सांस छोड़ी ।


सुनील ने माला को बांह पकड़कर पलंग पर बैठा दिया । धीरे-धीरे उसके चेहरे से भय के बादल छंटने लगे। उसके कागज की तरह सफेद हो चुके गालों पर गुलाबी रंगत लौटने लगी । वह लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगी ।


कितनी ही देर कोई कुछ न बोला ।


सुनील ने खिड़की से बाहर झांका । नीचे भीड़ छंटने लगी थी | फायर ब्रिगेड वाले अपना बोरिया बिस्तर लपेटकर कूच की तैयारी कर रहे थे । -


ड्रामा क्लाईमैक्स तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो चुका था । 


एकाएक माला पलंग पर से उठी और बाथरूम में घुस गई । 


थोड़ी देर बाद जब वह वापिस लौटी तो सुनील ने देखा कि वह अपने धूल से अटे कपड़े बदल चुकी थी और चेहरे पर मेकअप की परत चढा चुकी थी ।


"हल्के रंगत की लिपिस्टिक तुम्हारी गोरी रंगत से बहुत मेल खाती है।" - सुनील प्रशंसात्मक स्वर में बोला ।


"मुझे मालूम है ।" - वह सहज भाव से बोली- "गहरे रंगों से मुझे नफरत है ।"


आंतक का आलम खत्म हो चुका था ।


"अच्छा !" - सुनील बोला ।


"तुमने मेरी जान बचाई, उसका बहुत बहुत धन्यवाद ।" - वह बोली- "मैं ऊंचाई से गिर पड़ने से बहुत डरती हूं। मैं तो उम्र भर उस प्रोजेक्शन पर उकडू बैठी रहती ।"


" ऊंचाई से डरना बीमारी होती है।" - सुनील बोला - "उसे वर्टिगो कहते हैं। मुझे भी है । "