“फावड़ा संभाल लो” - खुल्लर बोला- " और वहां सामने एक इतनी बड़ी कब्र खोदनी आरम्भ कर दो जिसमें तुम दोनों समा सको।”
सुनीता के चेहरे से एक भय भरी चीख निकल गई । उसके हाथ छाती पर बंधे थे और नेत्र फटे पड़ रहे थे ।
"तुम हमें मार कर यहां दफनाना चाहते हो ?" - मैंने पूछा।
“समझदार आदमी हो ।" - खुल्लर बोला ।
"तो फिर मैं अपनी कब्र आप क्यों खोदूं ? तुम मारना चाहते हो तो मार दो हमें। बाद में हमें दफनाने के लिए खुद कब्र खोदते रहना ।"
खुल्लर सकपकाया । उसकी कृष्ण बिहारी से निगाहें मिलीं ।
"क्या तुम अपनी आंखों के सामने इस लड़की को बेइज्जत होते देखना पसन्द करोगे ?" - कृष्ण बिहारी बोला ।
मैं चुप रहा । फिर मुझे एक खयाल आया ।
"अच्छी बात है।" - मैं बोला ।
"शाबाश !" - कृष्ण बिहारी बोला ।
मैंने फावड़ा उठाया और खुल्लर द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा । वे सब भी मेरे पीछे-पीछे वहां पहुंच गये । खुल्लर के हाथ में थामी रिवाल्वर मेरी ओर तनी हुई थी। मैंने फावड़े से जमीन खोदनी आरम्भ कर दी। जमीन ज्यादा सख्त नहीं थी, मिट्टी बड़ी सहूलियत से उखड़ने लगी ।
खुल्लर और कृष्ण बिहारी मेरे दांये बायें सरक आये । सुनीता मेरे सामने खड़ी थी ।
ज्यों-ज्यों मिट्टी खुदती जा रही थी, सुनीता के चेहरे पर भय के भाव बढ़ते जा रहे थे । लगता था कि उसे अब ज्यादा अहसास हो रहा था कि उसका क्या अंजाम होने वाला था ।
जब जमीन कि एक इंच गहरी खुद गयी तो एका एक सुनीता गला फाड़कर चिल्लाई- "नहीं ! नहीं । "
और घूम कर भागी ।
"रुको !" - खुल्लर चिल्लाया - "वर्ना शूट कर दूंगा।"
उस क्षण मेरे हाथ में थमे फावड़े पर ढेर सारी मिट्टी मौजूद थी । मैंने बिजली की तेजी से वह सारी मिट्टी खुल्लर के चेहरे पर फेंक मारी और खाली फावड़े का भरपूर प्रहार सुनीता के पीछे भागने को तत्पर कृष्ण बिहारी पर किया । उसके मुंह से एक हल्की सी हाय निकली और वह दोहरा हो गया ।
खुल्लर आंखों में पड़ी धूल की वजह से चिल्ला रहा था । मैं एक ही छलांग में उसके पास पहुंचा और उसके गोली चला पाने से पहले मैंने फावड़ा उसके सिर पर मारा । उसका सिर तरबूज की तरह खुल गया और उसमें से खून का फव्वारा छूट पड़ा । रिवाल्वर उसके हाथ से निकल गई और वह जमीन पर लोट गया ।
मैं फावड़ा फेंककर रिवाल्वर उठाने झपटा । तभी कृष्ण
बिहारी ने मेरे पर छलांग लगा दी। उसने पूरी शक्ति से मुझे धकेला और स्वयं रिवाल्वर पर झपटा । रिवाल्वर उसके हाथ में आ गयी। मुझे लगा कि कहानी खत्म । लेकिन तभी कृष्ण बिहारी के चेहरे से कोई भारी चीज आकर टकराई । उसके मुंह से एक कराह तक नहीं निकली और वह खुल्लर की बगल में जमीन पर ढेर हो गया। उसका सारा चेहरा लहुलुहान हो गया था । रिवाल्वर अभी भी उसके हाथ में थी लेकिन अब वह एक बोझ की तरह उसकी उंगलियों में फंसी थी। मैंने जल्दी से रिवाल्वर अपने अधिकार में कर ली । मैंने घूमकर देखा, सुनीता कब्र के पास खड़ी थी और विस्फारित आंखों से मेरी ओर देख रही थी ।
"तुमने क्या किया था ?" - मैंने पूछा ।
"ईट... | " - वह बड़ी मुश्किल से कह पाई - "ईट मारी थी।"
"कमाल है ! तुम तो भाग रही थीं । "
वह चुप रही । मैं प्रशंसात्मक नजरों से उसकी ओर देखने लगा । बड़ी नाजुक घड़ी में लड़की ने हिम्मत दिखाई थी । वह भाग निकलने का इरादा न छोड़ देती तो मेरा काम तमाम हो गया था ।
“घबराओ नहीं ।” - मैं सांत्वनापूर्ण स्वर में बोला "अब ये लोग हमारा कुछ नहीं कर सकते ।" -
वह चुप रही । उसकी सांस अभी भी धौंकनी की तरह चल रही थी लेकिन चेहरे से आतंक के भाव गायब होते जा रहे थे ।
मैंने आगे बढ़कर खुल्लर और कृष्ण बिहारी का निरिक्षण किया। दोनों बेहोश पड़े थे ।
“तुम्हें कार चलानी आती है ?" - मैंने सुनीता से पूछा । उसने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिलाया ।
"कार पर सवार होकर मुख्य सड़क पर चली जाओ । रास्ते में मैंने एक पैट्रोल पम्प देखा था । तुम वहां से पुलिस को फोन करके उन्हें बुला लो और फिर उन्हें रास्ता दिखाती हुई यहां आ जाना ।”
"लेकिन तुम... तुम...?"
"मेरी फिक्र मत करो । ये दोनों बेहोश हैं । होश में आ भी गये तो कोई फर्क नहीं पड़ता। अब मेरा हाथ में यह तोप जो है ।"
वह फौरन कार की ओर बढ़ गई ।
***
पुलिस आयी, साथ में अमीठिया भी आया । सारी कहानी सुन कर वह सन्नाटे में आ गया ।
खुल्लर और कृष्ण बिहारी की हालत मेरी उम्मीद से ज्यादा खस्ता थी इतनी ज्यादा कि उन्हें फौरन हस्पताल में भरती करवाना पढ़ा |
रास्ते में अमीठिया की जीप में मेरी उससे बातें हुई ।
"तुम्हारे कत्ल की कोशिश का एक ही मतलब हो सकता है ।" - अमीठिया बोला- "कि ये लोग अरविन्द कुमार की मौत पर पर्दा डालना चाहते हैं। इसका मतलब है कि तुम ऐसा कुछ जानते हो जो मैं नहीं जानता । क्या माजरा है ?"
"माजरा अभी तुम्हारी समझ में आ जाता है।" - मैं बोला - "पहले तुम शामनाथ और बृजकिशोर की गिरफ्तारी का इन्तजाम करवाओ !"
"वह हो गया समझो।"
“शामनाथ और बृजकिशोर कहां रहते हैं, मुझे मालूम है, लेकिन मुझे खुल्लर और कृष्ण बिहारी के बारे में कुछ नहीं मालूम । तुम जानते हो वे कहां रहते हैं ?"
"जानता हूं । क्यों ?"
"बारी-बारी उन लोगों के घर चलो। मुझे एक चीज बरामद होने की उम्मीद है । "
"क्या चीज ?"
"एक टेप रिकार्डर | "
“मतलब ।”
"टेपरिकार्डर हाथ आने पर समझ में आयेगा ।"
अमीठिया ने बहस नहीं की। उसने जीप ड्राइवर को निर्देश दिया ।
सबसे पहले हम सुजान सिंह पार्क में स्थित खुल्लर के घर पहुंचे । वह वहां अकेला रहता था मैंने चाबी लगाकर दरवाजा खोला ।
"यह चाबी...?" - अमीठिया ने कहना चाहा ।
- " मैंने खुल्लर की जेब से निकाली थी।" - मैं बोला . "कृष्ण बिहारी के घर की चाबी भी मेरे पास है । "
अमीठिया यूं हैरानी से मेरा मुंह देखने लगा जैसे मेरे सिर पर सींग उग आये हों ।
वहां से टेपरिकार्डर बरामद नहीं हुआ ।
हम गोल मार्केट में स्थित कृष्ण बिहारी के घर पहुंचे।
टेपरिकार्डर वहां भी नहीं था ।
मुझे चिन्ता होने लगी ।
फिर हम शाहदरा में बृजकिशोर के घर पहुंचे। वह घर पर नहीं था, लेकिन घर में उसकी बीवी और बच्चे मौजूद थे । इतनी रात गए एक पुलिस अधिकारी को आया पाकर उसकी बीवी भयभीत हो उठी। अमीठिया ने बड़े अधिकारपूर्ण स्वर में उससे प्रश्न किया कि क्या घर में कोई टेप रिकार्डर था । उत्तर मिला कि उसके पति की अलमारी में टेप रिकार्डर था । टेपरिकार्डर मंगवाया गया और उसे बजाकर देखा गया । संयोगवश जो रिकार्डिंग मैं सुनना चाहता था वह अभी भी टेप पर मौजूद थी। वह बृजकिशोर की भारी लापरवाही का नमूना था कि उसने वह रिकार्डिंग अभी तक नष्ट नहीं की थी । टेप में से थोड़े-थोड़े अन्तर के बाद उसकी आवाज साफ कहती सुनाई दे रही थी - "शामनाथ, तुम्हारी काफी में चीनी कितनी डालनी है ? काफी में ब्राण्डी डालूं ? ...वगैरह...।"
"बात आई समझ में ?" - मैंने पूछा ।
"हां।" - अमीठिया गम्भीरता से बोला ।
"कत्ल बृजकिशोर ने किया था, लेकिन कत्ल की इस योजना में हिस्सेदार चारों ही थे इसलिए पकड़े चारों ही जाने चाहिएं ।”
"चारों ही पकड़े जाएंगे।" - अमीठिया बड़े इत्मीनान से बोला - "घबराओ नहीं । लेकिन इस कमबख्त टेप रिकार्डर का ख्याल मेरे मन में क्यों नहीं आया ।" ।
" मेरे मन में भी नहीं आया था । अगर ये लोग मेरी हत्या के चक्र में न पड़ते तो शायद अब भी न आता । जो बात मुझे शुरू से ही असम्भव लग रही थी, वह इस टेप रिकार्डर की वजह से सम्भव हुई थी । मेरा दावा था कि उन चारों में से होटल का कमरा छोड़कर कोई नहीं गया था, लेकिन वास्तव में बृजकिशोर टेप रिकार्डर में अपनी आवाज पीछे छोड़कर पिछले कमरे में से फायरएस्केप के रास्ते फूट गया था । उसकी आवाज पहले से ही रिहर्सल करके बड़ी होशियारी से भरी गई थी ताकि ऐन मौके पर वह शामनाथ के जवाबों के साथ एकदम फिट बैठ सके । टेप रिकार्डर की आवाज को जो जवाब हासिल हो रहे थे, वे पूर्वनिर्धारित थे । अगर उसने मुझसे कोई सवाल मुझसे पूछा होता तो यह ब्लफ न चलता, क्योंकि किसी को क्या पता था कि मैं कब कैसा जवाब देता ? इसीलिए जब हर किसी से पूछा गया था कि कौन क्या खाये पियेगा तो मेरे से कुछ नहीं पूछा गया था, लेकिन मुझे उसमें कोई सन्देहजनक बात नहीं लगी थी । सन्देहजनक बात लगनी तो दूर, मुझे तो यह तक नहीं सूझा था कि मुझसे इस सन्दर्भ में कुछ नहीं पूछा गया था । भीतर से मुझे जो बृजकिशोर और खुल्लर के वार्तालाप की आवाजें आ रही के थीं, वह वार्तालाप भी खुल्लर बड़ी होशियारी से टेप रिकार्डर से ही चला रहा था । बृजकिशोर तो निश्चय ही पिछले कमरे में दाखिल होते ही फायरएस्केप के रास्ते होटल से बाहर निकल गया था और जाकर अरविन्द कुमार का कत्ल कर आया था । दस मिनट के भीतर जिस रास्ते से वह गया था, उसी रास्ते वह वापिस आ गया था और मुझे खबर नहीं लगी थी कि वह पिछले कमरे से गायब था ।"
" यानि कि अगर बृजकिशोर होटल से बाहर गया भी तो केवल दस मिनट के लिए गया ?"
"हां ! उस दस मिनट के वक्फे का धोखा मुझे देने में वह कामयाब हो गया था। बाकी वक्त तो वह मेरी आंखों के सामने रहा था । "
"यहां मैं बृजकिशोर का ही एतराज दोहराता हूं। दस मिनट में होटल से बारह मील दूर कालकाजी जाकर अरविन्द कुमार का कत्ल करके वापिस होटल में लौट आना असम्भव है। "
"करैक्ट ?"
“तो फिर अरविन्द कुमार का कत्ल कैसे हुआ ?”
"देखो यह बात तो निश्चित है कि बृजकिशोर केवल दस मिनट के लिये होटल से गायब हुआ था और यह भी निश्चित है कि दस मिनट में बारह मील दूर कालकाजी जाकर कत्ल करके वापिस नहीं लौटा जा सकता । लेकिन कत्ल उस दस मिनट के अरसे में ही हुआ था और बृजकिशोर ने किया था ।"
"लेकिन कैसे ?"
"सुनीता ने बताया था कि अरविन्द कुमार हर शुक्रवार को रात के दो बजे उसके घर पर आता था और यह सिलसिला काफी अरसे से नियमित रूप से चला आ रहा था । उसने यह बात शामनाथ को बताई थी और यह बात शामनाथ के माध्यम से उसके अन्य साथियों को मालूम होना मामूली बात थी । सुनीता माता सुन्दरी रोड पर जिस इमारत में रहती है, वह तुम जानते ही हो कि, होटल रणजीत से मुश्किल से सौ गज दूर है। जाहिर है कि इसीलिये जुए की महफिल जमाने के लिए होटल रणजीत को चुना गया था । इन बातों से साफ जाहिर होता है कि कत्ल वास्तव में अरविन्द कुमार के कालकाजी स्थित फ्लैट में नहीं, बल्कि सुनीता के घर के सामने अरविन्द कुमार की कार में हुआ था । बृजकिशोर अरविन्द कुमार के आगमन से पहले वहां पहुंच गया था । अरविन्द कुमार के अपनी कार पर वहां पहुंचते ही बृजकिशोर ने उसे शूट कर दिया था और लाश को कार की सीट के नीचे डालकर ऊपर से ढक दिया था या शायद डिक्की में बन्द कर दिया था और कार को वहां से ले जाकर सुरक्षित स्थान पर खड़ा कर दिया था । अगली सुबह सात बजे जुए की महफिल बर्खास्त होने पर वह या उसका कोई साथी या वे सभी कार को कालका जी ले गये थे और लाश को अरविन्द कुमार के फ्लैट में डाल आये थे। बाद में तुम लोग यह समझ बैठे कि जहां से लाश बरामद हुई थी, वहीं कत्ल भी हुआ था ।”
"हूं।" - अमीठिया बड़ी संजीदगी से बोला ।
केस हल हो चुका था ।
समाप्त
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