"उसमे तुम्हें पांच सौ रूपये दिये हैं इसका मतलब यह हुआ कि उसके पास पैसा नहीं था ?”
"पैसा तो था लेकिन जितने की वह उम्मीद कर रहे थे, उतना नहीं था । उसके पास केवल दस हजार रूपये के शेयर थे जिनसे उनका मतलब हल नहीं होता था।"
"आई सी ।"
"जब अरविन्द की हत्या हो गई तो शामनाथ ने अनुभव किया कि यह बात पुलिस को मालूम हो जाने पर उस पर खामखाह शक किया जा सकता था । हत्या की खबर लगते ही उसने मुझे फोन किया था कि मैं इस बारे में पुलिस को कुछ न बताऊं ।"
" और अब वह तुम्हें दूसरी बार पांच सौ रूपये देने आया था ?”
“नहीं ! ये पांच सौ रूपये तो वही थे जो उसने मुझे जानकारी के बदले में देने थे । "
"वह कत्ल के बारे में क्या कहता है ?"
"वह कहता है कि कत्ल से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है और अपने को निर्दोष सिद्ध करने ले लिए उसके पास बड़ी ठोस शहादत है, जिसमें स्वयं पुलिस इन्स्पेक्टर अमीठिया भी कोई नुक्स नहीं निकाल सका है ।”
"मैं जानता हूं उसकी शहादत को और यह भी जानता हूं कि वह कितनी ठोस है ।"
"वह कहता है कि कोई इन्स्पेक्टर अमीठिया का ही दोस्त... सुनो, तुमने मुझे अपना नाम तो बताया ही नहीं।"
मैंने उसे अपना नाम बताया ।
"हे भगवान !" - वह बोली- "तुम्हीं तो हो उसकी शहादत और तुम तो कह रहे थे कि तुम फ्री लांस जर्नलिस्ट हो।"
“तो क्या गलत कह रहा था मैं ! शहादत देना क्या किसी आदमी का पेशा होता है ?"
उसने कुछ कहने ले लिये मुंह खोला और फिर चुप हो गई।
“और क्या कहा था शामनाथ ने ?"
" उसने मुझे यह राय दी थी कि अगर मैंने पुलिस को यह बताया कि जिस समय अरविन्द कुमार की मौत हुई थी, ठीक उस समय वह यहां मेरे फ्लैट पर अपेक्षित था तो पुलिस मुझसे बहुत अनाप-शनाप सवाल पूछेगी और मुझे बहुत परेशान करेगी ।"
“क्या मतलब ? उस रात को दो बजे अरविन्द कुमार यहां आने वाला था।”
"शुक्रवार रात को वह हमेशा ही यहां आता था । मैं डेढ़ बजे अल्का से आखिरी शो करके फ्री होती हूं । दस पन्द्रह मिनट मुझे यहां पहुंचने में लगते हैं। जब से मेरी अरविन्द कुमार से दोस्ती हुई है, तभी से यह सिलसिला नियमित रूप से चलता चला आ रहा है कि शुक्रवार रात को ठीक दो बजे वह यहां मेरे फ्लैट पर आ जाता है । "
"यह बात शामनाथ को कैसे मालूम थी ?"
"कभी वार्तालाप के दौरान मैंने ही बताई थी। मैंने ही उसे कहा था कि शुक्रवार रात को जब अरविन्द मेरे फ्लैट पर आता था, तभी उससे सहूलियत से जाना जा सकता था कि उसके पास कोई भारी रकम के शेयर थे या नहीं । "
"तो शामनाथ ने तुम्हें राय दी थी कि तुम पुलिस को अरविन्द के इस साप्ताहिक नियमित आगमन के बारे में कुछ न बताओ।"
"हां"
"तुम्हें यह बात अजीब नहीं लगी ?"
"नहीं । वह तो मेरे ही फायदे की बात कह रहा था । और फिर उसने तो कत्ल किया नहीं था जो कि तुम्हारी अपनी शहादत से जाहिर है । मुझे ऐसी कोई राय देने में उसे तो कोई फायदा था नहीं । "
"लेकिन अगर यह बात पुलिस को अब मालूम हो गई तो वे तुम्हें और भी ज्यादा तंग करेंगे ।”
वह भयभीत लगने लगी ।
"क्या तुम पुलिस को यह बात बताओगे ?”
“अगर तुम्हारा कत्ल से कोई वास्ता नहीं है तो नहीं बताऊंगा ।" - मैं बोला- "और कुछ ?"
"और कुछ क्या ? शुक्रवार रात आठ बजे अरविन्द मुझे अपनी कार पर अल्का के सामने छोड़ गया था। उसी रात दो बजे वह मुझे यहां मिलने वाला था । जब वह सारी रात यहां न आया तो मुझे चिन्ता होने लगी क्योंकि ऐसा आज तक नहीं हुआ था कि वह शुक्रवार रात दो बजे यहां न आया हो । वह उसका मेरे साथ तफरीह का पूर्वनिर्धारित साप्ताहिक दिन था । उस दिन के इन्तजार में तो वह तड़फता रहा करता था और अपने हजार काम छोड़कर आया करता था । इसीलिए मैं हैरान होने लगी थी कि आखिर वह क्यों नहीं आया था । इसीलिए मैं अगली सुबह उसके कालकाजी स्थित फ्लैट पर गई थी, जहां कि मुझे उसकी लाश पड़ी मिली थी । किसी ने उस शूट कर दिया था ।"
"कोई और बात ?”
"बस ! क्या तुम वाकई समझते हो कि शामनाथ ने कत्ल किया है ?"
"उसने नहीं किया तो उसके साथियों में से किसी ने किया है । बहरहाल यह काम है उन चारों में से ही किसी का । लेकिन यह बात मेरी समझ से बाहर है कि उनमें से किसी ने रात दो बजे एक आदमी की हत्या कैसे कर दी जबकि उस समय से चार घण्टे पहले तक और पांच घण्टे बाद तक हर क्षण वे मेरे साथ मौजूद थे।"
वह चुप रही ।
"यह मेरा कार्ड है।" - मैं उसे एक कार्ड थमाता हुआ बोला - "इस पर मेरे घर और दफ्तर दोनों जगहों का टेलीफोन नम्बर है और कोई बात सूझे तो मुझे फोन कर देना, ओके ?"
"ओ के।"
मैं वहां से विदा हो गया ।
***
उसी रोज कोई रात नौ बजे के करीब मेरे घर के टेलीफोन की घण्टी बजी। मैंने फोन उठाया । फोन सुनीता का था, उसके स्वर में भय का पुट था ।
“वे लोग मेरे पीछे पड़े हुए हैं । "
"कौन लोग ?" - मैंने पूछा ।
“शामनाथ वगैरह । तुम्हारे जाते ही शामनाथ ने मुझे फोन करके पूछा था कि तुम मुझसे क्या चाहते थे ? उसके बाद अभी थोड़ी देर पहले खुल्लर मुझसे मिलने आया था । मैंने उसे भी यही कहा कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया लेकिन किसी को भी मेरी बात पर विश्वास हुआ नहीं लगता । अगर शामनाथ को मेरी बात पर विश्वास आ गया होता तो वह खुल्लर को मेरे फ्लैट पर न भेजता । वह... वह मेरे साथ बहुत बेहूदगी से पेश आया । उसने मुझे थप्पड़ भी मारा ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि उसे विश्वास नहीं कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया । वह हम दोनों के बीच हुए वार्तालाप का एक एक शब्द सुनना चाहता था ।"
"और तुमने उसे सब कुछ बता दिया ?"
"न बताती तो वह मुझे और मारता ।"
"चलो, ठीक है । कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तुम भयभीत क्यों हो ?”
"मुझे लग रहा है कि वे लोग मेरी हत्या कर देंगे।"
"क्यों ? क्या खुल्लर ने कोई ऐसी धमकी दी है तुम्हें ?"
"साफ-साफ शब्दों में तो नहीं दी लेकिन उसकी सूरत से मुझे यही लग रहा था कि मेरी खैर नहीं और उसने मुझे यह चेतवानी भी दी कि मैं भविष्य में फिर कभी तुमसे बात न करू । क्या इसी से यह जाहिर नहीं होता कि वह जानता है कि मुझे तुमसे या कसी से भी फिर बात करने का मौका हासिल नहीं होगा ।”
"तुम आज कैब्रे के लिए होटल नहीं गई ?”
"मेरी फ्लैट से बाहर कदम रखने की हिम्मत नहीं हो रही । मुझे लग रहा है कि मेरी निगरानी हो रही है । मेरे फ्लैट के सामने की सड़क पर दोपहर से ही एक कार खड़ी है जिसके भीतर एक आदमी बैठा है ।"
"तुम उसे पहचानती हो ?"
"यहां से उसकी सूरत नहीं दिखाई दे रही ।"
"तुमने पुलिस को खबर की ?"
"नहीं, पुलिस को खबर करने का हौसला मैं अपने में जमा नहीं कर पा रही ।"
"तुमने मुझे क्यों फोन किया है ?”
"तुम मेरी कोई मदद करो ।"
"क्या मदद करू ?"
"मुझे यहां से किसी प्रकार बाहर निकलवा दो । फिर मैं
इस शहर से ही कूच कर जाऊंगी ।”
मैं कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला- “तुम फ्लैट को बन्द करके रखो, मैं आधे पौन घण्टे में वहां पहुंचता हूं।"
मैंने टेलीफोन बन्द कर दिया ।
आधे घण्टे में मैं माता सुन्दरी रोड पर पहुंच गया । मैंने देखा कि सड़क पर सुनीता के फ्लैट के सामने या आसपास कोई कार नहीं खड़ी थी। शायद उसकी निगरानी करने को तैनात आदमी वापिस बुला लिया गया था । मुझे दूर-दूर तक कोई संदिग्ध प्राणी नहीं दिखाई दिया ।
मैं इमारत की दूसरी मन्जिल पर पहुंचा। मैंने घण्टी बजाई । सुनीता ने फौरन दरवाजा खोला । मुझे तभी शक हो जाना चाहिए था । जिस लड़की को अपना कत्ल हो जाने की चिन्ता खा रही हो, वह बिना यह मालूम किए कि बाहर कौन आया था, दरवाजा नहीं खोल सकती थी। लेकिन पता नहीं क्यों उस वक्त मेरी अक्ल घास चरने गयी हुई थी । अपनी इस लापरवाही का खमियाजा मुझे उसके फ्लैट में कदम रखते ही भुगतना पड़ा । I
सुनीता के मेरे पीछे दरवाजा बन्द करते ही मुझे एक आवाज सुनाई दी - "हिलना नहीं, पाठक ।”
मैं एकदम ठिठक कर खड़ा हो गया। मैंने देखा बैडरूम के दरवाजे पर हाथ में रिवाल्वर लिए खुल्लर खड़ा था । उसके पीछे कृष्ण बिहारी खड़ा था ।
मैंने सुनीता की ओर देखा ।
"इन्होंने मुझे रिवाल्वर दिखा कर तुम्हें फोन करने के लिए मजबूर किया था" - वह भयभीत भाव से जल्दी से बोली - "अगर मैं तुम्हें फोन करके यहां न बुलाती तो खुल्लर मुझे शूट कर देता । "
"शट अप !" - खुल्लर घुड़क कर बोला- "इसकी तलाशी लो ।”
खुल्लर मुझे रिवाल्वर से कवर किये रहा । कृष्ण बिहारी मेरी तलाशी लेने लगा ।
"क्लीन ।" - थोड़ी देर बाद वह बोला ।
"तुम इस लड़की के साथ जाओ" - खुल्लर बोला - " और कार को इमारत के सामने लेकर आओ। मैं इसे लेकर आता हूं।"
सुनीता और कृष्ण बिहारी फ्लैट के बाहर निकल गये । खुल्लर मेरी ओर रिवाल्वर ताने खड़ा रहा ।
थोड़ी देर बाद बाहर से धीरे से हार्न बजने की आवाज आयी ।
"चलो।" - खुल्लर बोला ।
मैं घूम कर बाहर की ओर बढ़ा । खुल्लर मेरे पीछे पीछे चलने लगा । उसने अपना रिवाल्वर वाला हाथ अपने कोट की जेब में डाल लिया लेकिन मैं जानता था कि कोई शरारत करने पर वह जेब में से ही मुझे शूट कर सकता था।
हम नीचे पहुंचे। नीचे सड़क पर खड़ी एक कार में ड्राइविंग सीट पर कृष्ण बिहारी बैठा था और पिछली सीट पर भय से सिकुड़ी सी सुनीता बैठी थी । खुल्लर के संकेत पर मैं सुनीता की बगल में जा बैठा और स्वयं खुल्लर अगली सीट पर बैठ गया । उसके संकेत पर कृष्ण बिहारी ने कार आगे बढ़ा दी । खुल्लर ने रिवाल्वर निकालकर फिर हाथ में ले ली थी और वह बड़ी सावधानी से मुझे और सुनीता को कवर किये हुए था ।
"तुम लोग अपने व्यवहार से एक तरह कबूल कर रहे हो।" - मैं बोला- "कि अरविन्द कुमार का कत्ल तुम्हीं में से किसी ने किया है । बराय मेहरबानी यह भी बता डालो कि ऐसा तुम कैसे कर पाये ?”
“हमारे पास जादू की छड़ी है" - खुल्लर बोला- "यह उसी की करामात है । अब अपना थोबड़ा बन्द रखो और चुपचाप बैठे रहो ।”
मैं चुप हो गया ।
कार ओखला से आगे निकल आई ।
एक स्थान पर खुल्लर के संकेत पर कृष्ण बिहारी ने कार को एक कच्ची सड़क पर उतार दिया। थोड़ी दूर एक सुनसान जगह पर उसने कार रोकी ।
"बाहर निकलो।" - खुल्लर ने आदेश दिया ।
मैं बाहर निकला | मेरे बाद खुल्लर और फिर सुनीता और कृष्ण बिहारी भी बाहर निकल आए । कृष्ण बिहारी ने कार की डिकी में से एक फावड़ा निकाला और मेरे सामने जमीन पर रख दिया ।
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