मैं वहां से निकला और अमीठिया से मिला ।
“अमीठिया" - मैं बोला- "मुझे पूरा विश्वास है कि हत्या इन्हीं लोगों में से किसी ने की है लेकिन कैसे की है, यह मेरी समझ से बाहर है । मेरा ख्याल है कि तुम्हारे पुलिस के डाक्टर से कोई गलती हुई है । वह कहता है कि हत्या रात को दो बजे के करीब हुई है लेकिन मेरे ख्याल से हत्या या तो दस बजे से पहले हुई है या सुबह सात बजे के बाद यानी किया तो जुए की महफिल की शुरुआत से पहले या समाप्ति के बाद । अगर हत्या उन चारों में से किसी ने की है तो यह सम्भव नहीं कि वह रात के दो बजे हुई हो ।”
"लेकिन हत्या दो बजे के आसपास ही हुई है । हमारा पुलिस का डाक्टर गारंटी करता है । "
"मैंने सुना है कि हत्या के समय के मामले में पुलिस को धोखा दिया जा सकता है । "
"कैसे ?”
"जैसे हत्या के बाद लाश को रेफ्रिजरेटर में बन्द करके रख दिया जाए और बहुत बाद में किसी समय निकाला जाए। जब वह वातावरण वाले तापमान पर पहुंचेगी तो ऐसा लगेगा जैसे हत्या थोड़ी देर पहले ही हुई हो जब कि वह कई घन्टों पहले हुई होगी ।"
"इस केस में ऐसा नहीं हुआ।"
"क्यों नहीं हुआ ?"
"क्योंकि हमने हत्या की रात अरविन्द कुमार की एक-एक गतिविधि की जानकारी हासिल की है। उसने परसों शाम सात बजे नेशनल रेस्टोरेन्ट में खाना खाया था । इस आधार पर हम उसके खाना खाने के समय के साथ-साथ डाक्टर को यह भी बता सके थे कि उसने क्या खाया था । खाने के पेट में पचने का हिसाब होता है जो ये चीर फाड़ करने वाले पुलिस के डाक्टर जानते होते हैं । उसने भोजन में चिकन खाया था । डाक्टर ने पेट खोल कर चिकन के उन अवशेषों का मुआयना किया था तो अभी तक पूरी तरह पच नहीं पाये थे और उसी के आधार पर उसने कहा था कि उसकी हत्या उसके भोजन करने के कोई सात घन्टे बाद हुई थी । यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है । "
"लेकिन....'
"और इस बात की कोई सम्भावना नहीं है कि हमारा डाक्टर उन बदमाशों से मिला हुआ हो और उनकी खातिर झूठ बोल रहा हो । उसकी तीस साल की पुलिस की एकदम बेदाग नौकरी है । पाठक साहब, हत्या तो रात दो बजे के करीब ही हुई है । यह अलग बात है कि हत्या उन्होंने की है या नहीं ।”
“अगर हत्या रात के दो बजे हुई है तो यह उन्होंने नहीं की हो सकती । उनके पास वहां से खिसक कर हत्या कर आने का न वक्त था और न इस बात की कोई सम्भावना दिखाई देती है ।"
"तो फिर उन्होंने हत्या नहीं की होगी ।"
"यह भी नहीं हो सकता । उनका मुझे जुए की महफिल में शामिल करना ही इस बात की चुगली कर रहा है कि उन्हें खबर थी की अरविन्द कुमार की हत्या होने वाली थी । वे लोग मेरे माध्यम से अपने लिए एक अकाट्य शहादत पैदा करना चाहते थे | तुम कहते हो कि हत्या उन्होंने करवाई भी नहीं है । उन्होंने हत्या खुद की हो यह सम्भव नहीं लगता, तो हत्या हुई कैसे ?”
“यही तो समस्या है जो समझ में नहीं आ रही ।"
"तुम्हें हत्या की खबर कैसे लगी थी ?”
“लाश बरामद की थी एक सुनीता नाम की लड़की ने । मालूम हुआ है कि वह अरविन्द कुमार की गर्लफ्रैंड थी । परसों शाम को अरविन्द कुमार ने उसी के साथ डिनर लिया था । बाद में वह सुनीता को अलका में छोड़ कर आया था जहां कि सुनीता कैब्रे करती है। उसका कहना है कि रात को अरविन्द कुमार उसके फ्लैट पर अपेक्षित था लेकिन वह आया नहीं था । उत्सुकतावश ही वह अगली सुबह कालकाजी स्थित उसके फ्लैट पर गई थी, यह जानने के लिए कि वह पिछली रात उसके यहां क्यों नहीं आया था । "
"यह सुनीता रहती कहां है ?"
सुनीता माता सुन्दरी रोड की चौदह नम्बर इमारत में रहती थी। मैं वहां पहुंचा। मैंने बड़ी आसानी से चौदह नम्बर इमारत तलाश कर ली । वह होटल रणजीत से मुश्किल से कोई एक सौ गज दूर थी । उसके सामने एक खाली स्कूटर खड़ा था । मेरे देखते-देखते इमारत के भीतर से शामनाथ बाहर निकला और स्कूटर की तरफ बढ़ा ।
"हल्लो, शामनाथ" - मैं बोला- "तुम क्या अब यहीं रहने लगे हो ?"
"नहीं, नहीं" - शामनाथ हड़बड़ाकर बोला - "यहां तो मैं किसी से मिलने आया था ।"
"सुनीता से ?"
"तुम क्या मेरा पीछा करते रहे हो ?" - वह तनिक क्रोधित स्वर में बोला ।
"नहीं तो।" - मैं सहज भाव से बोला । -
"तुम यहां कैसे आये ?"
"सुनीता से ही मिलने आया हूं।"
उसके माथे पर बल पड़ गए ।
“क्यों ?" - उसने पूछा ।
"अरविन्द कुमार की मौत का समय उसकी गवाही के आधार पर निश्चित किया गया है । लेकिन मेरा ख्याल है वह झूठ बोल रही है ताकि यह समझ लिया जाये कि हत्या रात "
दस और सुबह सात बजे के बीच हुई थी। मेरे ख्याल से उसकी हत्या दस बजे से पहले हुई थी। इस हिसाब से उसने सुनीता के साथ चिकन सात बजे नहीं तीन बजे से पहले खाया होगा । मैं इसी उम्मीद में आया हूं कि शायद उससे उसका झूठ उगलवा सकूं ।"
"तुम जासूस कब से हो गये हो ?"
"जासूस नहीं हुआ हूं। जासूसी नावल तो लिखता ही ह । ऐसे ही रचनाओं के लिए मसाला मिलता है ।"
“ऐसा मसाला ढूंढ़ते- ढूंढ़ते किसी दिन खुद मसाला मत बन जाना, दोस्त ।"
"दोस्त का लफ्ज ही इस्तेमाल कर रहे हो, शामनाथ | " मैं शिकायतभरे स्वर में बोला- "लेकिन तुम्हारी बातों से दोस्ती की बू नहीं आ रही है । " -
शामनाथ कुछ क्षण कहरभरी निगाहों से मुझे घूरता रहा, फिर वह प्रतीक्षारत स्कूटर में सवार हुआ और वहां से चला गया ।
मैं स्कूटर के निगाहों से ओझल होने तक वहीं खड़ा रहा और फिर इमारत में दाखिल हुआ ।
सुनीता का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था । जिस लड़की ने दरवाजा खोला वह निहायत खूबसूरत थी । उसके शरीर में कैब्रे डान्सर जैसा सन्तुलन था, यह उसके शरीर पर उस समय मौजूद सैक्सी ड्रेस से भी साफ दिखाई दे रहा था ।
"आप का नाम सुनीता है ?" - मैं बोला ।
उसने हामी भरी और उलझनपूर्ण ढंग से मेरी ओर देखा
"मैं एक फ्री लांस जर्नलिस्ट हूं। मैं अरविन्द कुमार के बारे मैं आप से बात करना चाहता हूं।"
" 'ओह ! आइये ।" - वह एक ओर हटती हुई बोली ।
मैं भीतर दाखिल हुआ । उसके फ्लैट की सजावट से ऐश्वर्य की बू आ रही थी। मैं मन ही मन सोचने लगा - इस फ्लैट की सजावट में उसकी कमाई लगी हुई थी या यार लोगों की ?
"क्या पूछना चाहते हैं आप अरविन्द कुमार के बारे में ?" - उसने पूछा ।
“मैंने अल्का में आपका डांस देखा है।" - मैंने झूठ बोला - "आप बहुत अच्छा नाचती हैं । "
लेकिन मेरी तारीफ का उस पर कोई असर नहीं हुआ । उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया ।
“आप अरविन्द कुमार के बारे में कुछ जानना चाहते थे ।" - वह बोली ।
मैंने एक गहरी सांस ली और पूछा - "आपका उससे क्या सम्बन्ध था ?" H
"वह मेरा ब्वाय फ्रैंड था ।" - वह बेहिचक बोली ।
"आपको उसकी मौत का कोई भारी अफसोस हुआ हो, आपकी सूरत देखकर ऐसा तो नहीं लगता ?"
"नहीं लगता होगा । आपको क्या फर्क पड़ता है इससे?"
"मैंने यह बात इसलिए कही कि शायद अफसोस आपने तब मना लिया हो जब शामनाथ ने आपको बताया हो कि अरविन्द कुमार की हत्या होने वाली है और उसके साथियों की सलामती के लिए झूठ गवाही देनी है।”
"क्या मतलब ? क्या कह रहे हैं आप ?"
"मैंने अभी शामनाथ को यहां से निकलते देखा है । शायद वह आपको आपकी झूठी गवाही का मेहताना देने आया था।"
"कैसी झूठी गवाही ?"
"कि अरविन्द कुमार ने अपना आखिरी भोजन रात सात बजे किया था, जबकि वह भोजन वास्तव में उसने तीन बजे से पहले किया था।"
वह एकाएक उछल कर खड़ी हो गई । उसका वक्ष जोरों से उठने गिरने लगा ।
“लगता है मैंने आपको भीतर आने देकर गलती की ।" वह क्रोधित स्वर में बोली- "आप तशरीफ ले जाइये यहां से "
मैंने देखा कि जब उसका वक्ष उठता था तो उसकी ड्रेस में से किसी नीली सी चीज का किनारा बाहर झांकने लगता था।
"रिश्वत ऐसी खूबसूरत खिड़की में से बाहर झांक रही है कि जी चाह रहा है कि..."
मैंने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
उसका हाथ फौरन अपने वक्ष पर पड़ा और उसने अपना गिरहबान ऊपर को खींचा।
"जिस चीज की झलक मुझे अभी दिखाई दी थी, वह सौ के नोट का एक कोना था। ऐसे कितने नोट इस खूबसूरत पिटारे में मौजूद हैं ?”
“गो टु हैल ।”
"आई वुड रादर गो टु पुलिस।" - मैं बोला ।
मैं अपने स्थान से उठा और दृढ़ कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ा ।
"सुनो !" - वह कम्पित स्वर में बोली ।
मैं चौखट के पास ठिठका, घूमा ।
"शामनाथ ने मुझे कुछ रूपये दिये हैं।" - वह बोली "लेकिन मैं ईश्वर की सौगन्ध खाकर कहती हूं कि उनका उसकी मौत से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही मैंने कोई झूठी गवाही दी है ।”
"कितने ?”
“पांच सौ ।” - वह बोली और उसने मुझे अपने वक्ष की घाटियों में से सौ-सौ के पांच नोट निकाल कर दिखाये ।
"इस रकम का अरविन्द की मौत से कोई सम्बन्ध नहीं है।" - उसने दोहराया - " और मैंने कोई झूठी गवाही नहीं दी । मैंने और अरविन्द ने सत्य ही शाम सात बजे नेशनल में खाना खाया था । आठ बजे मैं उससे जुदा हो गई थी । उसके बाद मैंने अगले दिन ही उसको देखा था- मेरा मतलब है उसकी लाश को देखा था । "
“लेकिन शामनाथ ने पांच सौ रूपये क्यों दिए तुम्हें ? और वह भी अरविन्द कुमार की मौत के फौरन बाद ?"
"इनका कत्ल से कोई सम्बन्ध नहीं और न ही मैंने झूठी गवाही दी है ।"
"वह बात तुम कई बार कह चुकी हो, लेकिन यह मेरे सवाल का जवाब नहीं । "
"दरअसल एक और बात थी, जिसका कि कत्ल से कोई रिश्ता नहीं था और जो मैंने पुलिस को नहीं बताई थी । मुझे खूब मालूम है कि शामनाथ का कत्ल से कोई सम्बन्ध नहीं । उसने मुझे वह बात पुलिस को न बताने के पांच सौ रूपये दिए हैं ।"
"वह बात है क्या ?"
वह हिचकिचाई ।
"कम आन, कम आन !" - मैं बोला
"सुनो।" - वह धीरे से बोली- "तुम जानते हो मेरा पेशा क्या है ! मैं एक कैब्रे डांसर हूं। किसी से मेरी मुहब्बत में कितनी संजीदगी हो सकती है इसका अन्दाजा तुम खूब लगा सकते हो । अरविन्द कुमार से मेरी मतलब की यारी थी । उसे मेरे जिस्म से मुहब्बत थी और मुझे उसके पैसे से । लेकिन अब उसका पैसा खलास हो चुका था और मैं किसी भी क्षण उससे रिश्ता तोड़ देने वाली थी ।"
"ठीक है। मैं समझता हूं। आगे बढ़ो । शामनाथ ने तुम्हे क्यों दिये थे पांच सौ रूपये ?”
"दरअसल पहले मुझे मालूम नहीं था कि अरविन्द कुमार अपना सारा पैसा जुए में उजाड़ चुका था और उस पर पेशेवर जुआरियों के कर्जे की मोटी-मोटी रकमें चढ़ी हुई थी । हाल में एक बार शामनाथ मुझसे मिला था और उसने मुझे यह बात बताई थी साथ ही उसने कहा था कि उसे कहीं से पता लगा था कि अरविन्द के पास कुछ प्रसिद्ध कम्पनियों के शेयर थे जो उसने कहीं बड़ी सावधानी से छुपा कर रखे हुए थे ताकि किसी को उनकी खबर न लग जाये | शामनाथ मेरे माध्यम से यह जानकारी चाहता था कि क्या वाकई अरविन्द के पास ऐसे कोई शेयर थे ? अगर उसे यह बात मालूम हो जाती तो उसे अपनी तथा अपने दोस्तों की कर्जे की रकम की वसूली होने की नई सूरत दिखाई दे जाती । उसी ने मुझे बताया था कि अरविन्द ने उसका, बृजकिशोर का, खुल्लर का और कृष्णबिहारी का कोई दो लाख रुपया देना था और वह अपने आपको कंगाल बता रहा था । अगर उन्हें पक्का पता लग जाता कि उसके पास कोई शेयर थे तो वे उस पर नये सिरे से दबाव डालना आरम्भ कर सकते थे। शामनाथ ने कहा था कि अगर मैं उन्हें पता करके यह बता सकूं कि अरविन्द के पास ऐसा कोई पैसा था तो वह मुझे एक हजार रुपया देगा, लेकिन अगर मैं उन्हें यह बताऊं कि उनके पास ऐसा कोई पैसा नहीं था तो वह मुझे पांच सौ रूपये देगा ।"
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