“जरूरत थी । इसलिये जरूरत थी क्योंकि आप जानती थी कि पुलिस को लगायी कॉल ट्रेस की जा सकती थी । कॉल आपके घर से की गयी होती तो क्योंकर ये स्थापित होता कि थाने फोन करने वाला कोई पड़ोसी था ?"


"अगर मेरा इरादा" - उसने नया एतराज पेश किया - "कत्ल का इलजाम अपने पति के सिर थोपने का होता तो क्या मैं खुद अपनी जुबानी कुबूल करती कि कत्ल मैंने किया था ?”


"वो इकबालेजुर्म भी आपकी आलीशान स्कीम का ही एक पहलू था । आपने फरमाया कि आपने इज्जत बचाने के लिये, आत्मरक्षा के लिये गोली चलायी । आपने थाने यूं फोन किया कि जब पुलिस वहां पहुंचती तो वो आपके पति को मौकायवारदात से लाश हटाने की कोशिश में मशगूल पाती । फिर आप ये जानते बूझते 'कत्ल मैंने किया है' का राग अलापने लगतीं कि कोई आपकी बात पर विश्वास नहीं करने वाला था क्योंकि आपने जानबूझ कर इतने लूपहोल, इतने संशय के सूत्र, जोड़ कर रखे थे कि जो कोई भी आपकी दुहाई सुनता, वो उस पर एतबार न ला पाता, उसे सहज ही ये लगता - जैसे कि मुझे लगा, जैसे कि एस.एच.ओ. साहब को लगा कि आप किसी और को बचाने के लिये गुनाह अपने सिर ले रही थीं । आप ये भी जानती थीं कि पुलिस को आपके पवन गुप्ता से अफेयर की खबर लग के रहनी थी लेकिन पुलिस का इस बात पर फोकस बनाने के लिये कि उस अफेयर की वजह से आपका पति हसद की आग में जल रहा था, आपने उसकी वार्डरोब में एक चिट्ठी और एक तसवीर प्लांट की।"


"तुम्हारी एक बात बिल्कुल सच है। मेरे पवन गुप्ता के



अफेयर के खयाल से ही मेरा पति अंगारों पर लोटने लगता था इसीलिये कल रात आखिरकार उसने अपने रास्ते का कान्टा निकाल फेंका। इसने पवन गुप्ता का कत्ल कर दिया |"


"तो अब आप अपना बयान बदल रही हैं ?"


"क्या करू ? मजबूरी है । अब जब जाहिर है मेरी 'कत्ल मैंने किया है' की दुहाई और नहीं चलने वाली तो हकीकत बयान करने के अलावा मेरे पास और क्या चारा है ?"


" और हकीकत ये है कि कत्ल आपके पति ने किया है ?"


"हां"


“ये ठीक कह रही हैं ?" - ग्रोवर ने सूद से पूछा "आपने किया था ऐसा ?"


सूद ने उत्तर न दिया, एकाएक वो बेहद बेचैन दिखाई देने लगा था ।


"ये गौरतलब बात है" - ग्रोवर आगे बढ़ा - "कि कल रात पवन गुप्ता अगर महज मेहमान की तरह आया होता तो उसने अपनी कार सीधे कोठी की पोर्टिको में लाकर खड़ी की होती । लेकिन उसने अपनी कार को सड़क पर कोठी से काफी परे खड़ा किया और गम बूट्स और बरसाती पहने बरसात में पैदल चलता चोरों की तरह कोठी तक पहुंचा । अगर वो आपका चाहने वाला था तो ऐसा उसने कोई पहली बार नहीं किया होगा, तो आप ही की उसको ये हिदायत रहती होगी कि वो कोठी पर यूं पहुंचे कि किसी को उसकी आमद की और फिर उसकी भीतर मौजूदगी की भनक न लगे । ऐसा उसकी कार के कोठी की पोर्टिको में खड़ी रहते मुमकिन नहीं था इसलिये वो कार को कोठी से दूर पार्क करके चुपचाप वहां पहुंचता था। अब ये जाहिर है कि ऐसी आमद तभी होती होगी जबकि उसे आपकी तरफ से पैगाम मिलता होगा कि फलां वक्त आप घर में अकेली होंगी। ये भी जाहिर है कि कल भी वो आपको कोठी में अकेले पाने की उम्मीद करता वहां पहुंचा था। लिहाजा टैरेस के रास्ते से जब उसने ड्राईगरूम में कदम रखा तो उसने आपको वहां हाथ में गन लिये उसका इन्तजार करते पाया । तब आपने बेहिचक उसे शूट कर दिया । मैडम, दिस अमाउन्ट्स टु डेलीब्रेट कोल्डब्लडिड मर्डर ।"


उसने बड़े उपेक्षापूर्ण भाव से मुंह बिचकाया ।


" आपने जी जान से ये भ्रम पैदा किया कि कत्ल के मामले में आप अपने पति की खातिर झूठ बोल रही थीं जबकि हकीकत ये है कि जो जज्बात किसी औरत को ऐसा कोई कदम उठाने के लिये उकसाते हैं वो मिस्टर सूद के लिये आपके मन में नहीं थे। मिस्टर सूद ने सच में भी खून किया होता तो आपने इनके बचाव में उंगली न हिलाई होती । क्योंकि आपको अपने पति से नहीं, पवन गुप्ता से मुहब्बत थी, कैसे भला आप ऐसे शख्स के लिये कुछ कर सकती थीं जिसने कि आपके प्यार का गला घोंटा होता। मिस्टर सूद ने अगर पवन गुप्ता का कत्ल किया होता तो इनको बचाने के लिये झूठ बोलने की जगह आप खुद गा गा कर पुलिस को बता रही होतीं कि आपका पति कातिल था ।"


"सब बकवास है । बकवास तुम जितनी मर्जी कर सकते हो लेकिन कुछ साबित नहीं कर सकते । तुम्हारे पास कोई नन्हा सा सबूत भी मेरे खिलाफ नहीं है ।"


"ऐसा तो नहीं है ।"


"तो कोई सबूत पेश करके दिखाओ ।'


“अभी लीजिये । मैंने अभी अर्ज किया था कि पवन गुप्ता आपका ये पैगाम हासिल होने पर आपकी कोठी पर आता था कि आप घर में अकेली थीं। वो पैगाम फोन पर अरसाल नहीं हो सकता था क्योंक उसके घर पर आपकी फोन कॉल की उसकी मां को खबर लग सकती थी और ऑफिस में स्विच बोर्ड आपरेटर या सैक्रेट्री को खबर लग सकती थी ।"


"मोबाइल भूल रहे हो ।"


"मुझे नहीं मालूम कि पवन गुप्ता के पास मोबाइल था या नहीं था, वो हर वक्त उसे पास रखता था या नहीं रखता था, वो हर वक्त उसे चालू रखता था या नहीं रखता था लेकिन ये हकीकत है कि कम से कम इस बार आपने उस तक अपना खास पैगाम टेलीफोन के जरिये एक्सटेंड नहीं किया था । कम से कम इस बार आपका पैगाम एक तहरीर को, एक चिट्ठी की, सूरत में था जो उसे मिली तो पढ़ कर फाड़ देने की जगह जिसे उसने अपनी जेब में रख लिया । आपकी याददाश्त को तरोताजा करने के लिये उस चिट्ठी की इबारत मैं आपको सुनाता हूं जो कि मुझे जुबानी याद है । सुनिये, क्या लिखा आपने ? आपने लिखा ! पवन डार्लिंग, खुशखबरी है कि बुधवार को मेरा पति सारी रात घर में नहीं होगा । जब आओगे तो मुझे अपनी बांहों में समाने को तड़पता पाओगे ।

आई लव यू डार्लिग । युअर्स फार ऐवर, शिल्पा ।”


शिल्पा के चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव आये ।


" आप सोच रही होंगी कि जो चिट्ठी आपने जला दी थी वो मेरे हाथ कैसे लगी ? जवाब है कि जला कर आतिशदान में डाली गयी चिट्ठी को पुलिस लैबोरेट्री में रेस्टोर करना हमारे टैक्नीशियनों का एक कारनामा था जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकती थीं।"


"पता नहीं वो कितनी पुरानी चिट्ठी थी" - वो लापरवाही से बोली- "और कब जला कर आतिशदान में डाली गयी थी |"


"ऐसा आप इसलिये कह रही हैं क्योंकि चिट्ठी पर तारीख दर्ज नहीं थी । लेकिन दिन दर्ज था । बुधवार का दिन दर्ज था । वो दिन दर्ज था जो कि पवन गुप्ता के कत्ल का दिन था । दूसरे, आतिशदान से साफ जाहिर होता था कि उसे ताजा ताजा साफ किया गया था । अगर वो चिट्ठी आतिशदान में पहले जलाई गयी होती तो उसके अवशेष भी आतिशदान की सफाई में ही शामिल हो गये होते ।"


वो खामोश रही ।


"मैडम, अपने पति के साथ लाश को ड्राईगरूम से निकालते वक्त आपने वो चिट्ठी मकतूल की जेब से निकाल ली होगी जो वहां पहुंचने पर पवन गुप्ता ने आपको ये जताने के लिये दिखाई होगी कि वो उसको मिल गयी थी और उसी के जवाब में वो वहां पहुंचा था। बाद में आपने चिट्ठी को माचिस दिखा कर आतिशदान में डाल दिया था और आप ऐसा करके हटी ही थीं कि मैं वहां पहुंच गया था । मैडम, वो चिट्ठी, वो राख हुई चिट्ठी - स्पेशल कैमरे से जिसकी राख में से भी इबारत का अक्स उतार लिया गया है - आपके खिलाफ सबसे पुख्ता सबूत है । वो चिट्ठी ये साबित करती है कि अपने पवन गुप्ता को जानबूझ कर गुमराह किया, कल आपका पति घर पर था, वो कहीं जाने वाला नहीं था, फिर भी आपने पवन गुप्ता को ये कह के बुलाया कि वो सारी रात घर मौजूद नहीं होने वाला था, कि आप उसकी बांहों में समाने के लिये घर में अकेली होतीं । जो औरत यार को चिट्ठी लिख कर अपने पहलू में न्योतती है, वो अपने शील की रक्षा के लिये खून नहीं करती । रेवड़ियों की तरह बंटती अस्मत को हिफाजत की जरूरत नहीं होती ।"


एकाएक उसमे बड़ी हौलनाक तब्दीली आयी । क्रोध से उसका हसीन चेहरा विकृत हो उठा और आंखों से चिंगारियां बरसने लगीं ।


"लेकिन" - बलवान सिंह उलझनपूर्ण भाव से बोला - “अगर ये मकतूल से इश्क करती थी तो कत्ल किस लिये ?" 


"क्योंकि" - ग्रोवर के जवाब देने के लिये मुंह खोलने से पहले ही वो यूं फट पड़ी जैसे एकाएक अपना मानसिक संतुलन खो बैठी हो - "क्योंकि मुझे मर्द की जात से नफरत है । मेरा बस चले तो मैं एक एक को गोली से उड़ा दूं । मैंने बहुत मर्दों से ताल्लुकात बनाये लेकिन दिल से सिर्फ दो को चाहा । एक तुम्हें सुन रहे हो मिस्टर अतुल ग्रोवर ! लेकिन तुम महज एक पुलिसिये थे जिसकी कोई आला माली हैसियत न थी और न कभी बन सकती थी इसलिये हमेशा महलों के सपने देखने वाली मैं तुम्हारा दामन न थाम सकी । ये मनमोहन - मेरा पति - एक कमजोर और पिछी सा आदमी था जो कि मुझे कभी नहीं भाया था लेकिन इसमें एक खूबी थी। जो मुझे लुभाती थी । ये पैसे वाला आदमी था और महलों के जो सपने मैं देखती थी ये उन्हें साकार कर सकता था । मैंने इससे शादी की लेकिन मेरे साथ धोखा हुआ। अपनी माली हैसियत की बाबत इसने मेरे से झूठ बोला, मुझे उल्लू बनाया । इसके पल्ले चार पैसे बराबर थे लेकिन वो इसकी रईसों में गिनती कराने के काबिल नहीं थे। फिर मेरी जिन्दगी में पवन गुप्ता आया जो हर लिहाज से मेरी पसन्द का आदमी था और जल्द ही अतुल ग्रोवर के बाद मेरी जिन्दगी में आया वो दूसरा शख्स बन गया जिसे कि मैंने दिल से चाहा। मैंने अपनी मुहब्बत का घड़ा उस पर उढ़ेल दिया, उस पर अपनी जवानी न्योछावर कर दी, अपना सब कुछ उसके हवाले कर दिया लेकिन वो कमीना फ्रॉड निकला । उसने कभी मुझसे मुहब्बत न की । उसने हमेशा मुझे अपनी खिलवाड़ का एक खिलौना समझा । जब मेरे से उकता गया तो कमीने ने अपनी नीयत मेरे से छुपाने तक की कोशिश न की । उसने मुझे एक तौलिये की तरह इस्तेमाल किया जिससे अपने गन्दे हाथ पोंछ कर वो जिसे पीछे फेंक जाना चाहता था । ऐसे शख्स को भला मैं कैसे जिन्दा छोड़ सकती थी ! कमीने की शक्ल देखने वाली थी जबकि साक्षात मौत बनी मुझे उसने अपने सामने खड़े देखा था। मैंने उस कुत्ते को शूट कर दिया और मुझे इस बात का कोई रंज नहीं ।' 


"लेकिन आपने किस्सा वहीं खत्म न किया ।" - ग्रोवर धीरे से बोला - "आपने एक तीर से दो शिकार करने की जुगत की । आपने अपने पति के जेहन में अच्छी तरह से ये बात बिठा दी कि एक बलात्कारी से अपने शील की रक्षा की कोशिश में कत्ल किया होने की दुहाई देते रह कर आप सजा से बच सकती थीं, आप आराम से बरी हो सकती थीं इसलिये वो कत्ल की बाबत बिलकुल खामोश रहे । मिस्टर सूद की खामोशी और आपकी 'कत्ल मैंने किया है' वो मुतवातर- दुहाई ने जो सिग्नल सरकाया - जिससे खुद मैं भी उल्लू बना वो ये था कि असल में कत्ल तो पति ने किया था लेकिन एक सती नारी अपने पति के कल्याण की खातिर वो इलजाम अपने सर ले रही थी । अपनी एक अरसे की खामोशी के बाद जब पति को कानून के लम्बे हाथ अपनी गर्दन से लिपटे दिखाई देते तो वो हकीकत की दुहाई देने लगता, गा गा के सुनाने लगता कि असल में क्या हुआ था ? लेकिन तब कोई उसकी बात पर विश्वास न करता । हर कोई उसकी खुदगर्जी को धिक्कारता और पति की खातिर शहीद होने से बाल बाल बची पत्नी को शाबाशी देता । कहने का मतलब ये है कि हकीकत तभी हकीकत का दर्जा पाती अगरचे कि मिस्टर सूद ने वो पहले दिन बयान की होती, बीवी की कुर्बानी का सिक्का जम चुकने के बाद ये उसकी दुहाई देते तो हकीकत अफसाना होती । मिस्टर सूद, शुक्र मनाइये खुदा का कि एक गहरे षड्यन्त्र का शिकार होकर बेगुनाह फांसी पर चढ़ जाने से आप बच गये ।" ।


"आपका ।" 'आपका, जनाब" - सूद भर्राये कण्ठ से बोला।


समाप्त