शाम को अन्धेरा होने से पहले इन्स्पेक्टर ग्रोवर वापिस राजाजी रोड मनमोहन सूद की कोठी पर पहुंचा।


गिरफ्तारी के वक्त जो साजोसामान सूद की जेबों से बरामद किया गया था, उसमें कोठी की चाबियां भी थीं जिन्हें इस्तेमाल करके वो भीतर दाखिल हुआ और सूद की स्टडी में पहुंचा जो कि किसी बिजनेस ऑफिस की तरह सुसज्जित थी । वहां मौजूद साजोसामान से लगता था कि अपने बिजनेस से सम्बन्धित काफी सारा ऑफिस वर्क सूद घर पर भी करता था।


उसने स्टडी टेबल के दराज टटोलने शुरू किये ।


जो नतीजा सामने आया वो ये था कि आज की तारीख में सूद के पास मोटा बैंक बैलेंस था और काफी सारे बड़ी कम्पनियों के शेयर और फिक्स डिपाजिट्स थे जिनके दम पर उसे साहूकार तो नहीं कहा जा सकता था लेकिन सम्पन्न जरूर कहा जा सकता था ।


वो ऊपर पहुंचा ।


- वहां तीन बैडरूम थे एक प्रत्यक्षत: मर्दाना, एक प्रत्यक्षत: जनाना और तीसरा शायद गैस्ट रूम था ।


जनाना - शिल्पा के - बैडरूम से कुछ हासिल न हुआ, वो लव लैटर्स भी नहीं जो उसकी सूद से शादी से पहले खुद उसने गाहेबगाहे लिखे थे।


मर्दाना - मनमोहन सूद के बैडरूम की वार्डरोब में से - से दो कमीजों के बीच में रखा एक पत्र बरामद हुआ। उसके लिफाफे पर सूद का नाम पता लिखा हुआ था और, उसने साफ पहचाना कि, वो शिल्पा के हस्तलेख में था । उसने लिफाफे में से पत्र निकाला तो पाया कि वो गोवा के एक होटल के लैटरहैड पर लिखा गया था और पत्र लिखने की तारीख उसी साल के जनवरी के महीने की थी । पत्र 'डियर मनमोहन' से शुरू हुआ था, 'तुम्हारी शिल्पा' पर खत्म हुआ था और तहरीर मुश्किल से चार सतरों की थी जिसमें ये शिकायत दाखिलदफ्तर की गयी थी कि गोवा में उसके बिना सब सूना था ।


वो एक रूटीन चिट्ठी थी जो एक फर्माबरदार बीवी ने अपने खाविन्द को लिखी थी । वो उसे तह करके वापिस लिफाफे में धकेलने लगा तो उसे महसूस हुआ कि लिफाफे में कुछ और भी था ।


उसने वो 'कुछ और ' बरामद किया तो वो पोस्ट कार्ड साइज का एक रंगीन कैमरा फोटोग्राफ निकला जिसमें बिकनी स्विम सूट पहने शिल्पा बीच पर मौजूद थी, उसके साथ उसी की तरह स्विम सूट पहने पवन गुप्ता था । उसकी बांह शिल्पा की नंगी कमर से लिपटी हुई थी और शिल्पा का एक गाल उसके नंगे कंधे पर टिका हुआ था। दोनों कैमरे की ओर देखकर मुस्करा रहे थे ।


वो सोच में पड़ गया ।


चिट्ठी तो शिल्पा ने पति को लिखी थी लेकिन ऐसी तसवीर वो यकीनन अपने पति को नहीं भेज सकती थी ।


तो ?


जरूर वो तसवीर सूद ने शिल्पा के गोवा से लौटने के बाद उसके हैंड बैग से या वैसे ही उसके किसी निजी सामान से बरामद की थी और पहले से आयी चिट्ठी वाले लिफाफे में ही सम्भाल कर रख ली थी । वो तसवीर वैसे भी चिट्ठी की तहरीर को झुठलाती थी कि शिल्पा के लिये अपने पति के बिना गोवा में सब सूना था । तसवीर तो साफ चुगली कर रही थी कि वहां तो पवन गुप्ता के लगाये रौनक ही रौनक थी ।


उसने चिट्ठी और तसवीर को अपनी जेब के हवाले किया और नीचे ड्राईगरूम में पहुंचा। वहां लौटने की खास वजह ये थी कि अब उसे पिछली रात की एक खास बात याद आ रही थी। पिछली रात जब वो वहां पहुंचा था तो शिल्पा को उसने आतिशदान के करीब देखा था जहां से वो उसकी आमद की आहट पाकर ही घूमी थी ।


उसने आतिशदान का मुआयना किया ।


साफ जाहिर हो रहा था कि उसे हाल ही में साफ किया गया था । इसी वजह से उसके ईटों के फर्श पर एक जले हुए कागज के अवशेष साफ दिखाई दे रहे थे । कागज का एक कोना भस्म होने से बच गया था जिससे जान पड़ता था कि वो जब साबुत था तो गुलाबी रंग का था ।


यानी कि जनाना इस्तेमाल की स्टेशनरी ।


उसने अपने मोबाइल से थाने फोन लगाया, अपनी बात कही और ड्राईगरूम में चहलकदमी करने लगा। फिर एक ग्लास डोर पर ठिठक कर उसने बाहर झांका ।


राजाजी रोड की उस कोठी के करीब की कोठियां सड़क की उसी ओर थीं, सामने तकरीबन प्लाट अभी खाली थे जिनमें से एक के सामने फुटपाथ पर बना वो टेलीफोन बूथ था जिसकी तरफ उसकी तवज्जो पिछले रोज भी गयी थी ।


सूद की कोठी वाली लाइन में भी कई प्लाट खाली थे; दाई ओर दो प्लाट खाली थे और फिर कोठी थी और बायीं ओर तो तीन खाली प्लाटों के बाद कोठी थी ।


कुछ सोच कर वो बाहर निकला और बारी बारी दायें बायें की दोनों कोठियों पर पहुंचा जहां के बाशिन्दों से उसने एक ही सवाल पूछा और फिर लौट आया ।


तभी पुलिस लैबोरेट्री का एक टैक्नीशियन वहां पहुंचा ।


ग्रोवर टैक्नशियन को आतिशदान के पास ले आया और उसने उसे अपनी मंशा समझाई ।


"कागज जल गया है लेकिन डिस्टर्ब नहीं है, किनारे गोल घूम गये हैं लेकिन राख टूटी नहीं है"- टैक्नीशियन बोला- "इसलिये जो आप चाहते हैं, वो हो सकता है । "


“तो करो, भाई ।”


टैक्नीशियन ने अपना ब्रीफकेस खोल कर एक स्प्रे की बोतल और पतले शीशे की दो शीट निकालीं । उसने जले कागज पर सावधानी से स्प्रे छिड़क कर उसे नम किया, राख को सावधानी से शीशे की एक शीट पर ट्रांसफर किया और दूसरी शीट उसके ऊपर रख दी। यूं दो शीशों के बीच सेंडविच हुई राख ए आयत की सूरत में चपटी हो गयी ।


"बाकी काम माइक्रोस्कोप का है और मिनियेचर कैमरे का है" - टैक्नीशियन बोला- "जो कि यहां नहीं हो सकता ।"


"मुझे तुम्हारा जवाब मिलने में कुल जमा कितना टाइम लगेगा?" - ग्रोवर ने पूछा ।


“एक घन्टा | बड़ी हद । "


"ठीक है । थाने फोन लगाना ।”


वो थाने लौटा ।


वो अपने ऑफिस में आकर बैठा ही था कि एस. आई. बालकिशन वहां पहुंचा।


"मैंने" - वो उसके सामने बैठता बोला - "शिल्पा सूद की गुजश्ता जिन्दगी की पड़ताल में बहुत टांगें तोड़ीं आज ।”


ग्रोवर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।


"कौन बोला ऐसा करने को ?" - उसने पूछा ।


'आपके मातहत ने अपनी मर्जी से किया, रूटीन के तौर पर किया और चस्के के हवाले होकर किया ।"


"चस्का ?"


“इतनी हसीन औरत की गुजश्ता जिन्दगी क्या कम हसीन होती!"


"चस्के के अलावा कोई काम की बात जानी ?"


"जानी।"


"क्या ?"


"ये पवन गुप्ता- मकतूल - सूद फैमिली का कुछ ज्यादा ही फैमिली फ्रैंड था । शिल्पा सूद का तो खासतौर से । पिछले सात आठ महीनों में दोनों की घनिष्टता को नये आयाम मिले जान पड़ते थे । शिल्पा ने जनवरी में महीने से ज्यादातर वक्फा पणजी में अकेले गुजारा था । उन्हीं दिनों महिमा दत्ता नाम की उसकी सहेली भी उधर ही थी । वो कहती है कि शिल्पा और पवन गुप्ता...."


"मैं समझ गया ।”


“रोमांटिक वातावरण ! बीच की तनहाई और रंगीनी ! घर वाला घर । प्यार बिना हो जाये गुजारा, यार बिना क्या जीना ! समझे कुछ ?”


"समझा ! पहले ही बोला ।"


"बहुत दरियादिल औरत जान पड़ती है ये शिल्पा सूद । इसीलिये ब्वायफ्रेंड्स की बहार है । शादी से पहले भी और शादी के बाद भी । शादी के बाद के ब्वायफ्रेंड्स की लिस्ट में जैसे एक मकबूल नाम पवन गुप्ता मरहूम का है वैसे ही शादी से पहले के ब्वायफ्रेंड्स की लिस्ट का एक मकबूल नाम" - वो जानबूझ कर एक क्षण ठिठका और फिर बोला - "अतुल ग्रोवर है ।"


ग्रोवर खामोश रहा ।


"खुशकिस्मत हो, भैय्या ।"


ग्रोवर फिर भी खामोश रहा ।


"केस का इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर और केस के प्राइम सस्पेक्ट का पुराना यार ! अखबार वालों को इस बात की खबर लग गयी तो... तो बताने की जरूरत है क्या होगा ?"


"क्या होगा ?"


“तुम्हारे पर तरफदारी का इलजाम आयेगा ।"


"देखा जायेगा ।" - ग्रोवर एकाएक उठ खड़ा हुआ ।


वो एस.एच.ओ. के कमरे में पहुंचा ।


"क्या खबर है ?" - बलवान सिंह बोला- "कहीं कुछ हाथ आया कत्ल के केस में ?"


“आया तो सही ।" - ग्रोवर बोला, उसने एस.एच.ओ. के सामने चिट्ठी और तस्वीर रखी और उसकी बरामदी की बाबत बताया ।


"इससे तो अब और भी साबित होता है कि खाविन्द ही कातिल है ।” - बलवान सिंह बोला- "सूद को पवन गुप्ता के अपनी बीवी से अफेयर की खबर थी, उस रोज जब बीवी का यार बीवी से मिलने आया तो उसने गन निकली, और उसे शूट कर दिया और फिर ये कहानी सैट कर ली कि उसने एक बलात्कारी को शूट किया था।"


"ऐसा ?"


“तुम्हारा खयाल कुछ और है ?"


इससे पहले कि ग्रोवर जवाब दे पता, फोन की घन्टी बजी ।


बलवान सिंह ने कॉल रिसीव की और फिर फोन उसकी तरफ बढ़ा दिया ।


फोन लैबोरेट्री टैक्नीशियन का था ।


वो कुछ क्षण फोन सुनता रहा फिर उसने 'थैंक्यू' बोल कर फोन रख दिया ।


"मेरा खयाल था तो सही कुछ और" - वो अपने सीनियर से बोला - "जो कि अन्तपन्त था खयाल ही । लेकिन अब वो खयाल हकीकत में बदल गया है । सर, जरा मेरे साथ आइये । प्लीज । "


चेहरे पर असमंजस के भाव लिये बलवान सिंह उसके साथ हो लिया ।


दोनों हवालात के बगल वाले कमरे में पहुंचे जहां कि शिल्पा सूद को फिर तलब किया गया ।


"मैडम" - ग्रोवर बोला- "मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं, गौर से सुनिये । वो क्या है कि...."


"पहले आप सुनिये ।" - वो गुस्से से बोली- “जो कि मैं कहना चाहती हूं ।”


"क्या ? क्या कहना चाहती हैं आप ?"


"मुझे पता चला है कि मेरे पति अभी भी गिरफ्तार हैं । क्यों गिरफ्तार हैं वो ? जब मैं अपने जुर्म का इकबाल कर चुकी हूं तो वो क्यों गिरफ्तार हैं ?"


"कोई वजह नहीं । अभी रिहा हो जायेंगे।"


"हैं कहां वो ?"


"मेल लॉकअप में हैं लेकिन अभी यहां आ रहे हैं । ये लीजिये.... आ ही गये । "


मनमोहन सूद ने भीतर कदम रखा ।


"तशरीफ रखिये ।" - ग्रोवर बोला । -


बैठ गया । सूद अपनी पत्नी के पहलू में पड़ी एक खाली कुर्सी पर


"मिस्टर सूद, आप अपनी बीवी पर फिदा हैं।"


"ये भी कोई कहने की बात है ?" - सूद बोला ।


"लेकिन निहायत खफा भी हैं !"


"क्या ?"


"एक ही वक्त में मुहब्बत और नफरत दोनों से नवाजता है आपका दिलोदिमाग अपनी शरीकेहयात को । नहीं ?"


"मैं कुछ समझा नहीं।"


“मैडम" - ग्रोवर शिल्पा से मुखातिब हुआ- "जैसा कि मैंने पहले ही अर्ज किया था, कल रात यहां पुलिस स्टेशन पर किसी औरत ने फोन किया था जिसने कहा था कि उसने आपकी कोठी में पहले गोली चलने की और फिर एक चीख की आवाज सुनी थी । आप इस हकीकत से बेखबर नहीं होंगी कि आपकी कोठी के सामने तो कोई कोठी है ही नहीं, आजू बाजू की दो कोठियां भी खाली प्लाटों से पार काफी फासले पर हैं। फिर भी अगर गोली और चीख की आवाज कहीं सुनी जा सकती थी तो वो आजू बाजू की उन दो कोठियों में ही सुनी जा सकती थी। उन कोठियों में से एक में एक बड़े डॉक्टर रहते हैं और दूसरी में एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर रहते हैं । आज मैंने खुद दोनों कोठियों में जाकर पूछताछ की थी। दोनों जगहों से मुझे एक ही जवाब मिला था और वो ये था कि वहां से ऐसी कोई टेलीफोन कॉल पुलिस को नहीं की गयी थी । वहां किसी गोली या किसी चीख की आवाज नहीं सुनी गयी थी। उनका कहना है कि ऐसी कोई आवाज हुई भी होती तो मूसलाधार बारिश में वो आवाज उन तक हरगिज न पहुंची होती। मैडम, मुझे उनकी बात पर यकीन है क्योंकि खुद मेरा भी यही खयाल है । अब सवाल ये पैदा होता है कि फिर पुलिस को फोन किसने किया ?"


"तुम बताओ।" - शिल्पा बोली ।


"आपने किया ।"


"क्या ? पागल हुए तो ? मैं कैसे..."


"वो फोन कॉल आपकी उस स्कीम का हिस्सा था जिसके तहत कत्ल का इल्जाम आप अपने पति के सिर थोपना चाहती थीं ।"


" "वाट नानसेंस ?" - सूद भड़का - "ये... ये क्या... ' " आप खामोश बैठिये । प्लीज । "


“जब घर में चालू फोन मौजूद था" - शिल्पा बोली"तो मुझे बरसात में पब्लिक टेलीफोन बूथ पर जाने की क्या जरूरत थी?"