"चुप करो । प्लीज ।”
उसने फर्श पर निगाह गड़ाई तो खून की और भी बून्दें उसे दिखाई दीं जो कि एक रूट सा बनाती एक बन्द दरवाजे पर पहुंची। उसने वो दरवाजा भी खोला तो पाया कि वो कई तरह के जरूरी, गैरजरूरी सामान से भरा एक अन्धेरा स्टोर था जिसका दहाना ही बाहर से वहां तक पहुंचती रोशनी से जरा रोशन हो रहा था ।
फिर उसे अहसास हुआ कि भीतर कोई था ।
उसने अपनी बैल्ट में लगे होलस्टर का फ्लैप खोल लिया और गन को आधा बाहर खींच लिया ।
"कौन है भीतर ?" - वो कर्कश स्वर में बोला ।
“अतुल, प्लीज" - पीछे से शिल्पा कराहती सी बोली - "फॉर गॉड सेक...."
"ओह, शटअप आलरेडी "लैट मी डू माई जॉब ।” - ग्रोवर चिड़ कर बोला -
उसने वहां भी दीवार टटोल कर स्विच बोर्ड तलाश किया और फिर एक स्विच ऑन किया ।
भीतर एक कैबिनेट के बाजू में उसे एक नहीं दो जने दिखाई दिये ।
एक जना मनमोहन सूद था जो कि बढ़िया सूट पहने था और सफेद कमीज पर सूट से मैच करती टाई लगाये था । अपने निगाह के चश्मे में से पलकें फड़फड़ाता वो उसकी तरफ देख रहा था ।
दूसरा शख्स फर्श पर औंधे मुंह पड़ा था, उसके जिस्म में कोई मामूली सी भी हरकत नहीं थी ।
"मरा पड़ा है ?" - उसने पूछा ।
जवाब देने से पहले सूद बड़ी मेहनत करके उठ कर अपने पैरों पर खड़ा हुआ, फिर उसने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया।
माथुर आगे बढ़ा, उसने एक घुटने के बल उकड़ होकर मृत का मुआयना किया तो पाया कि वो एक खूबसूरत शख्स था जिसके चेहरे पर नाक के ऊपर गोली का सुराख दिखाई दे रहा था। उसकी आंखें पथराई हुई थीं फिर भी उसने उसकी नब्ज टटोली, दिल टटोला ।
आखिरकार वो उठ कर सीधा हुआ ।
"गन कहां है ?" - वो बोला ।
सूद ने चुपचाप एक बत्तीस कैलीबर की ऑटोमैटिक पिस्तौल उसे सौंप दी।
"है कौन ये ?”
सूद ने उत्तर न दिया, उसने अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरी और बेचैनी से पहलू बदला ।
उसने घूम कर शिल्पा की तरफ देखा ।
“पवन गुप्ता ।" - शिल्पा इतने धीरे से बोली कि ग्रोवर बड़ी मुश्किल से वो नाम सुन पाया ।
वो नाम ग्रोवर के लिये सर्वदा अपरिचित था ।
उसने वापिस लाश की तरफ निगाह डाली तो पाया कि लाश के एक तरफ फैले एक हाथ के करीब एक बन्द दरवाजा था । उसने आगे बढ़ कर उस दरवाजे को धक्का दिया तो वो गैराज में खुला जहां कि ऐन दरवाजे के सामने एक मारुति एस्टीम खड़ी थी जिसकी डिकी का ढक्कन उठा हुआ था ।
"हूं।" - ग्रोवर बोला- "लगता है मैं कदरन जल्दी यहां पहुंच गया । पांच मिनट लेट पहुंचता तो लाश कार में होती और कार पता नहीं कहां होती ! लेकिन जहां होती, लाश यहां की जगह वहां होती, कार वापिस यहां होती और जब देर सबेर लाश बरामद होती तो पुलिस के पास ये जानने का कोई जरिया न होता कि कत्ल असल में कहां हुआ था ! यहां कहां किया ये कारनामा ? किसने किया ?"
"मैंने किया ।" - शिल्पा तत्काल बोली- "ड्राईगरूम में किया ।"
मनमोहन सूद चौंका, उसने हैरानी से अपनी पत्नी की तरफ देखा ।
"नहीं, नहीं।" - फिर वो बौखलाया सा बोला - "शिल्पा, तुम....
" मैं कुछ नहीं । तुम मेरा किया मुझे भुगतने दो। तुम चाहो भी तो मेरी बला अपने सर नहीं ले सकते क्योंकि ये बहुत काबिल पुलिस ऑफिसर हैं, चुटकियों में असलियत भांप जायेंगे ।"
अब ग्रोवर उस घड़ी को कोस रहा था जबकि उसने खुद वहां आने का फैसला किया था। जिस औरत को वो कभी दिलोजान से चाहता था, कैसे वो उसे फांसी के फन्दे की राह दिखा सकता था !
"क्यों किया आपने ऐसा ?" - प्रत्यक्षत: वो बोला; अब क्योंकि उसका पति वहां मौजूद था इसलिये वो अपनी भूतपूर्व प्रेमिका से अदब से मुखातिब हो रहा था, उसे 'आप' कह रहा था ।
"इसने... इसने मेरे पर हमला किया था ।”
ओह ! हमला किया था ! फिर तो इसे आत्मरक्षा में वो कदम उठाने का पूरा अख्तियार था ।
"बात का खुलासा कीजिये ।" - वो बोला ।
"ये - पवन गुप्ता - फैमिली फ्रेंड है - था । मैं... मैं ड्राईगरूम में बैठी हुई थी और घर में अकेली थी । टैरेस की तरफ से भीतर आया और आते ही इसने मुझे दबोच लिया । . बोला, मेरे पर मरता था और एक मुद्दत से वैसे किसी मौके की तलाश में था।"
***
कम्बख्त हसीन ही इतनी थी। किसी का भी ईमान डोल सकता था ।
"मैंने इसे टोका, समझाया, डांटा, फिर गिड़गिड़ाकर फरियाद तक की लेकिन इसकी वहशत में कोई कमी न आयी । इसने जबरन मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और अपनी मनमानी करने की कोशिश करने लगा ।"
"उस वक्त मिस्टर सूद कहां थे ?"
"ये घर में नहीं थे। मैंने बोला तो था कि मैं घर में अकेली थी । ये घर में होते तो क्या इस... शख्स की ऐसी मजाल होती जिस पर कि तब शैतान सवार था ।"
"लेकिन" - सूद ने कहना चाहा - "शिल्पा तुम.... तुम...."
"तुम चुप करो, जी । पुलिस के सामने झूठ नहीं चल सकता, मेरा हकीकत बयान करना जरूरी है ।"
चेहरे पर तीव्र अनिच्छा के भाव लिये सूद खामोश हो गया ।
"हे भगवान !" - शिल्पा कांपती सी बोली - "कैसी प्रलय की घड़ी थी मेरे लिये ! कैसे मैं इस पगलाये हुए शख्स से अपना बचाव कर सकती थी ! फिर... फिर मुझे इनकी गन का खयाल आया जिसकी बाबत मुझे मालूम था कि वो टी.वी. कैबिनेट के एक दराज में पड़ी थी। मैंने इसको भरमाने के लिये कुछ क्षण के लिये अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया । ये मुझे किस करने लगा, मेरे कपड़ों में हाथ डालने लगा और मुझे कालीन पर लिटाने लगा। जब इसने ऐसा किया तो मेरा हाथ टी. वी. कैबिनेट के दराज तक पहुंच गया, मैं उसे खोल कर गन अपने काबू में करने में भी कामयाब हो गयी । अतुल, मेरा ईश्वर मेरा गवाह है कि मेरा इसको मार डालने का कोई इरादा नहीं था। मैं तो गन से महज इसे डराना चाहती थी और चाहती थी कि ये डर कर मेरा पीछा छोड़ता और यहां से दफा होता । मेरे हाथ में गन देख कर उसने मुझे बन्धनमुक्त तो कर दिया लेकिन खौफजदा होने की जगह मेरे पर हंसने लगा। बोला मेरी मजाल नहीं हो सकती थी उस पर गोली चलाने की । बोला मेरे हाथ कांप रहे थे, मेरा कलेजा लरज रहा था, कैसे मैं गोली चला सकती थी !"
"फिर ?"
"फिर ये मेरे पर फिर झपट पड़ा और फिर... और फिर..."
"फिर क्या ?"
“गोली चल गयी ।"
वो सुबकने लगी ।
ग्रोवर का जी चाहा कि वो उसे बांहों में भर ले और सांत्वना दे । शुक्र था कि उसका पति वहां मौजूद था वर्ना वो शायद ऐसा कर भी बैठता ।
“फिर ?” - अपने जज्बात पर जबरन काबू पाता वो बोला ।
"फिर ये लौट आये।" - शिल्पा ने अपने पति की तरफ संकेत किया - "इन्होंने पवन गुप्ता को फर्श पर मरा पड़ा देखा । मैंने इन्हें बताया कि वो नौबत क्योंकर आयी थी । तब ये फैसला हुआ कि अगर हम लाश को कोठी से निकाल कर कहीं और..."
"किसका फैसला था ये ?"
"किसी का भी था, अब क्या फर्क पड़ता है ?"
" किसका था ?”
"इनका था क्योंकि तब मेरी हालत तो ऐसी विक्षिप्तों जैसी थी कि मेरे दिमाग ने तो जैसे काम करना ही बन्द कर दिया था ।"
"हूं।"
"ये मुझे बहुत चाहते हैं इसलिये इन्होंने ही सोचा कि..."
ठीक सोचा, भैया ! तुम्हारी जगह मैं होता तो मेरा भी वन प्वायन्ट प्रोग्राम अपनी परीचेहरा बीवी को हर बला से बचना ही होता।
खामोशी से उसने दरवाजे की चौखट पार की और आगे की दो सीढ़ियां उतर कर गैराज में कदम रखा । बड़ी बारीकी से उसने कार का मुआयना किया ।
खासतौर से अगले और पिछले बम्फर का और चारों टायरों का।
आखिरकार वो स्टोर में उन लोगों के पास वापिस लौटा
तब दोनों अगल बगल खड़े थे ।
शिल्पा तब यूं खड़ी कद में उसे अपने पति जितनी ही लम्बी लगी और ये भी उसकी बेपनाह खूबसूरती का एक प्लस प्वायन्ट था ।
ग्रोवर ने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली और बोला- "इस वक्त दस बज कर अट्ठारह मिनट हुए हैं। नौ बज कर तिरेपन मिनट पर थाने में वो कॉल आयी थी जिसमें कहा गया था कि दो मिनट पहले यहां से गोली चलने की और किसी के चीखने की आवाज सुनी गयी थी । यानी कि यहां जो कुछ भी हुआ सत्ताईस मिनट पहले हुआ । मिस्टर सूद, आप घर किस वक्त लौटे थे ?"
सूद ने उत्तर न दिया, उसने बेचैनी से पहलू बदला |
"जवाब दीजिये ।” वो परे देखने लगा ।
"मैडम के बयान से ये जाहिर होता है कि इस शख्स को साढ़े नौ बजे के बाद शूट किया गया था। शाम साढ़े सात बजे से मुतवातर बारिश हो रही है। फिर भी गैराज में खड़ी आपकी कार खुश्क है, आपकी कार के चारों टायर खुश्क हैं । ऐसा क्योंकर हुआ, मिस्टर सूद ?"
शिल्पा ने सशंक भाव से अपने पति की तरफ देखा ।
सूद एक क्षण बौखलाया और फिर सम्भला ।
"मैंने ये कब कहा" - वो बोला- "कि मैं कार पर घर लौटा था ?"
"अच्छा !" - ग्रोवर की भवें उठीं- "नहीं कहा ?"
"नहीं कहा ।"
"तो कैसे घर लौटे आप ?"
"चल कर ।"
"पैदल ?"
"पैदल ही चला जाता है, भई । "
"कहां से ? कहां से लौटे ?"
"कहीं से भी नहीं ।”
"क्या मतलब ?"
" मैं तो यूं ही जरा टहलने निकला था । "
"बारिश में ?"
"मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है ।”
"कोई हर्ज नहीं । जो काम अच्छा लगे, वो करना ही चाहिये । तो इसी ड्रैस में आप बारिश में टहलने निकले थे जो कि आप इस वक्त पहने हैं ? इस बढ़िया सूट में ? चमड़े के जूतों में ?"
"नहीं । हुड वाली बरसाती में और रबड़ के जूतों में । उन रबड़ के जूतों में जिन्हें गम बूट्स कहते हैं । और बरसाती के हुड से सिर ढंका जा सकता है ।"
"ज्ञानवर्धन का शुक्रिया । तो उन चीजों ने आपके दूसरे कपड़ों को जो कि आप इस वक्त पहने हैं- भीगने से - बचाया ?"
“जाहिर है ।”
"जिन्हें आपने घर लौट कर उतार दिया होगा ?"
" और क्या घर पर भी पहने रहता ?"
“आप घर के मालिक हैं, अपनी मर्जी के मालिक हैं, अपनी मौज के मालिक हैं । चाहें तो ऐसा भी कर सकते हैं, चाहें तो कैसा भी कर सकते हैं । "
वो खामोश रहा ।
"तेज बारिश में भीगे गम बूट्स और बरसाती अभी तक सूख तो गये नहीं होंगे ?"
"क्या मतलब ?"
"खुद समझिये। दिखाइये, वो दोनों चीजें कहां हैं ?"
सूद को एकाएक जैसे सांप सूंघ गया, उसने असहाय भाव से अपनी पत्नी की ओर देखा ।
"इन बातों की जरूरत क्या है ?" - शिल्पा तीखे स्वर में बोली - "जब मैं कुबूल कर रही हूं कि पवन गुप्ता को मैंने शूट किया है, जब मैं ये भी बता चुकी हूं कि वो नौबत क्योंकर आयी थी तो क्यों तुम गैरजरूरी, बेमानी बातों के पीछे पड़े हो ? और...."
" और क्या ?"
"और क्यों मेरा यहां... लाश के साथ... मौजूद रहना जरूरी है?"
"नहीं जरूरी । आई एम सॉरी । आइये ।”
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