निहाल सिंह स्टेज के समीप की एक मेज पर बैठा हुआ था और रिहर्सल पर गौर कर रहा था । समीप आते कदमों की आहट सुनकर उसने गर्दन घुमाई और सुनील और ज्वाला प्रसाद को देखा । वह हड़बड़ाया और उठकर खड़ा हो गया । उसने आगे बढकर दोनों को रोकने की कोशिश की और तनिक नर्वस भाव से बोला - "क्या बात है ? क्या चाहते हो तुम लोग ? देख नहीं रहे हो इस वक्त हम व्यस्त हैं ?"


"जरा अपने ऑफिस में चलो निहाल सिंह ।" - सुनील गंभीर स्वर में बोला ।


"न ।" - वह बोला - "इस वक्त नहीं । रात को आना । इस वक्त मैं... "


और उसने व्याकुल भाव से दरवाजे की तरफ देखा ।


"क्या बात है निहाल सिंह ?" - सुनील उसे घूरता हुआ बोला - "क्या कोई खास आदमी आने वाला है ?"


“खास आदमी !” - उसने अपने होठों पर जुबान फेरी - "नहीं... नहीं तो.."


"वह नहीं आयेगा ।”


"कौन ? कौन नहीं आयेगा ?"


"वही जिसका तुम इन्तजार कर रहे हो ।”


"किसका ?"


"महेश कुमार का । वह मर चुका है । "


निहाल सिंह ने थूक निगली । उसने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन बोल न फूटा । फिर बड़ी मेहनत से उसने अपने आप पर काबू पाया और बोला- "क्या कह रहे हो तुम ?"


"अपने ऑफिस में चलो बताता हूं । और अपने बैंड मास्टर और अपनी कोयल को भी वहां बुला लो ।”


निहाल सिंह ने पहले विरोध करना चाहा लेकिन फिर इरादा बदल दिया । उसने टोनी और रूही को अपने साथ आने के लिए कहा ।


सब निहाल सिंह के ऑफिस में पहुंचे ।


“अब बोलो।" - निहाल सिंह बोला "क्या कहना चाहते हो ?"


सुनील ने एक गहरी सांस ली और बोला - "मेरा एक दोस्त था जिसका नाम कैलाश भार्गव था । कैलाश भार्गव तुम्हारी सिंगर रूही का पति था जो कि अपने पति से तलाक चाहती थी । लेकिन कानूनी पेचीदगियां कुछ ऐसी थीं कि कैलाश भार्गव के सहयोग के बिना रूही को तलाक हासिल नहीं हो सकता था । कैलाश भार्गव को रूही से कोई मुहब्बत बाकी नहीं रही थी लेकिन वह रूही से किनारा करके रूही को ताजी-ताजी हासिल हुई दौलत से भी किनारा नहीं करना चाहता था । इसलिये वह रूही को आजादी दे देने की कोई मुनासिब कीमत हासिल किये बिना तलाक के लिये राजी नहीं हो रहा था । रूही टोनी से शादी करना चाहती थी जो कि अपने पहले पति से तलाक हासिल किये बिना हो नहीं सकती थी । टोनी शादी के लिये इसलिये उतावला हो रहा था क्योंकि वह जल्दी से जल्दी रूही की दौलत पर अपने दांत गड़ाना चाहता था ।"


“झूठ ।" - टोनी चिल्लाया - "मैं रूही से मुहब्बत करता हूं, इसकी दौलत से नहीं । इसकी दौलत का मेरी मुहब्बत से कोई वास्ता नहीं ।”


“एक मिनट के लिये बहस के लिये मान लो कि तुम्हारी निगाह रूही की दौलत पर भी थी । रूही की दौलत तुम्हें रूही को हासिल किये बिना नहीं मिल सकती थी और रूही को हासिल करने में अड़ंगा बना खड़ा था कैलाश भार्गव । इस अड़ंगे को दूर करने के लिये तुमने एक योजना बनाई और उस योजना को कार्यरूप में परिणत करने के लिये तुमने निहाल सिंह की मदद मांगी। निहाल सिंह केवल क्लब ही नहीं चला रहा क्लब के माध्यम से ढेरों जाली नोट भी चला रहा था । लोग यहां मौज मेले के लिये आते थे । कई लोग निहाल सिंह को चैक देकर नकद नोट हासिल किया करते थे । निहाल सिंह उन लोगों पर जाली नोट थोप देता था जिनकी तरफ तरंग में किसी का ध्यान नहीं जाता था ।”


सुनील ने निहाल सिंह की तरफ देखा ।


वह बहुत आन्दोलित-सा बैठा था लेकिन खामोश था ।


"टोनी।" - सुनील आगे बढा - "निहाल सिंह तुम्हारी मदद करने के लिये तैयार हो गया । वैसे तुम्हारी मदद करने में इसका अपना ही स्वार्थ था । सी. आई.डी. वालों की निगाह इसकी क्लब पर लग गई थी और वह चाहता था कि जाली नोटों के मामले में किसी प्रकार सी. आई.डी. वालों का ध्यान उसकी तरफ न जाये । तुम दोनों की स्वार्थ सिद्धि एक ही बलि के बकरे से हो सकती थी और वह बलि का बकरा था कैलाश भार्गव । निहाल सिंह, तुमने ऐसा इन्तजाम किया कि सी.आई.डी. वालों को ऐसा लगे कि क्लब में जाली नोट कैलाश भार्गव चला रहा था । वह यहां अक्सर आता था इसीलिये कुछ जाली नोट उस पर थोपना तुम्हारे लिये कठिन काम नहीं था । तुमने वेटर द्वारा लाये कैलाश भार्गव के असली नोटों को जाली नोटों में बदल दिया और उस बेचारे को फंसवा दिया । जब शुरु में कैलाश भार्गव ने कहा था कि जाली नोटों के चक्कर में किसी ने उसे फंसवाया था तो मुझे उसकी बात पर विश्वास था लेकिन बाद में जब उसके फ्लैट की तलाशी में बीस हजार के जाली नोट बरामद हो गये तो उस पर विश्वास हिल गया।"


सुनील ने रूही की तरफ देखा और बोला- "मैडम, तुम्हारे लिये फ्लैट में बीस हजार के जाली नोट प्लांट कर देना मामूली काम था । तुम उस फ्लैट में रहती रही थी इसलिये उसकी चाबी तुम्हारे पास थी । निहाल सिंह ने तुम्हे जाली नोट दिए जिन्हें कि तुम चुपचाप अपने पति के फ्लैट में छुपा आई । उन जाली नोटों की पुलिस द्वारा बरामदी के बाद तुम्हारा काम आसान हो जाने वाला था । जाली नोटों के चक्कर में तुम्हारे पति को सजा हो जाती और फिर तुम्हें बड़ी सहूलियत से तलाक हासिल हो जाता । स्कीम बड़ी शानदार थी लेकिन इसमें एक ही नुक्स था । तुम्हारा पति न केवल निर्दोष था बल्कि वह भांप भी गया था कि असल में उसके खिलाफ क्या कुचक्र रचा जा रहा था । अपने सन्देह की पृष्टि के लिए उसने अपने एक मित्र प्राइवेट जासूस की सेवायें प्राप्त कीं । " . सुनील फिर निहाल सिंह की तरफ घूमा - "निहाल सिंह, तुम्हें कैलाश भार्गव से ऐसी होशियारी की उम्मीद नहीं थी । जब तुम्हें यह अनुभव हुआ कि वह तो तुम्हारा भांडा फोड़ने की फिराक में था तो तुम घबरा गये । उस मुसीबत से निकलने का तुम्हारे पास एक तरीका था और वह था कैलाश भार्गव का खात्मा । तुमने न केवल उसे खत्म करना था बल्कि तुम्हारे लिये उसकी लाश को गायब कर देना भी जरूरी था ऐसा तुम्हारे लिये दो वजहों से जरुरी था । एक तो तुम यह नहीं चाहते थे कि पुलिस द्वारा उस कत्ल की तफ्तीश हो । दूसरे लाश गायब हो जाने से वह फरार समझा जाता और जाली नोटों के मामले में सी. आई.डी. वालों का सारा ध्यान उसी की तरफ लगा रहता और किसी को तुम्हारी क्लब की टोह लेने का ख्याल भी न आता ।”


तब तक निहाल सिंह का सारा चेहरा पसीने से नहा गया था और उसकी आंखों में बदहवासी की छाया तैर आई थी।


" निहाल सिंह !" - सुनील फिर बोला- "तुमने कैलाश भार्गव का कत्ल करवा दिया और उसकी लाश समुद्र में फिकवा दी । आज तुमने अपनी तरफ से जो फोन महेश कुमार को उसके घर पर किया था, वह वास्तव में मैंने सुना था । मैंने महेश कुमार बनकर तुमसे बात की थी । निहाल सिंह, मैंने फोन पर तुम्हारी आवाज फौरन पहचान ली थी । तुमने महेश कुमार से टेलीफोन पर पूछा था कि क्या वह भी अपने दोस्त की तरह जल समाधि लेना चाहता था । मैं तभी समझ गया था कि कैलाश भार्गव की लाश को वजन बांध कर समुद्र में डुबों दिया गया था । फिर तुमने अपने आदमियों को कैलाश भार्गव के फ्लैट पर यह देखने के लिये भेजा कि वह अपने पीछे ऐसा कुछ तो नहीं छोड़ गया था जो तुम्हारे लिये खतरनाक साबित हो सकता । वहां तुम्हारे आदमियों के लिये एक नई मुसीबत आन खड़ी हुई । अभी तुम्हारे आदमी फ्लैट में ही थे कि वहां ऊपर से महेश कुमार आ गया । तुम्हारे आदमियों ने महेश कुमार पर किसी भारी चीज का वार करके उसे मार डाला लेकिन तुम्हारी तरफ से उन्हें ऐसा कोई निर्देश नहीं था इसलिये उन्होंने इस कत्ल के बारे में तुम्हें बताया नहीं। लेकिन हकीकत अगर तुम्हारे आदमी यह बात तुम्हें बता देते तो तुम उन पर खफा होने के स्थान पर शायद उन्हें शाबासी देते । बोनस देते। क्योंकि तब तक महेश कुमार भी तुम्हारे जाली नोटों के रैकेट के बारे में कुछ अपनी खोजबीन द्वारा और कुछ कैलाश भार्गव से हासिल हुई जानकारी के द्वारा काफी कुछ जान गया था। इसलिए जब कैलाश भार्गव एकाएक गायब हो गया तो उसको असलियत का बखूबी अन्दाजा हो गया । वह तुम्हारे पास पहुंचा । उसने तुम्हें बताया कि वह क्या जानता था और तुम पैसे द्वारा उसका मुंह बन्द करने को तैयार हो गये। आज सुबह वह तुम्हारे पास आने वाला था । पुलिस का ध्यान उसकी और आकर्षित होने से पहले ही तुम उसे कहीं खिसका देना चाहते थे और यही तुम दोनों में फैसला हुआ था । तुम उसे खूब रूपया दोगे, उसके और भी तमाम खर्चे उठाओगे और बदले में वह राजनगर छोड़कर कहीं चला जायेगा । आज जब वह अपने वादे के मुताबिक यहां न पहुंचा तो तुमने उसके घर उसे फोन किया जो कि इत्तफाक से मैंने सुना। मैंने तुम्हारी आवाज पहचान ली और तुम्हारे मुंह से निकली कई बातों ने मुझे सारी कहानी भी समझा दी । निहाल सिंह कत्ल चाहे तुमने अपने हाथों नहीं किया लेकिन कत्ल करवाये तुम्हीं ने हैं, इसलिए तुम भी उसी सजा के हकदार हो जिसका कि असली कातिल । और तुम..."


अभी इतनी देर से खामोश बैठा ज्वाला प्रसाद एकाएक बोल पड़ा - "लेकिन इन बातों से मेरा क्या वास्ता, सुनील । मुझे तो तुमने खामखाह यहां बुलाया । मैं जाता हूं।"


और वह उठकर दरवाजे की ओर बढा ।


"रुक जाओ, ज्वाला प्रसाद ।" - सुनील कठोर स्वर में बोला - "तुम्हारा भी पूरा वास्ता है इन बातों से।"


“वह ठिठका, घूमा और हैरानी से बोला - "मेरा !”


"हां तुम्हारा । जब से कैलाश भार्गव गायब हुआ तब से अपनी लाख रुपये की जमानत की फिक्र में तुम्हारा दम निकला जा रहा था । तुम जरायम पेशा लोगों से काफी सम्पर्क रखते हो इसलिये शायद किसी तरह तुम्हारे कानों में भनक पड़ गई थी कि कैलाश भार्गव मर चुका था और समुद्र की तह में पहुंच चुका था । लेकिन जब तक तुम यह बात साबित करके न दिखाते तब तक तुम अपनी जमानत नहीं बचा सकते थे । जब मैंने महेश कुमार से बात की थी उस वक्त तुम मेरे साथ थे । बाद में तुम इस उम्मीद में उसके चक्कर में पड़े कि शायद वह ऐसा कोई नुस्खा तुम्हें बता सके जो कि यह स्थापित कर सके कि कैलाश भार्गव मर चुका था और उसकी लाश बरामद होना मुमकिन नहीं था । "


सुनील ये अधिकतर बातें अनुमान से कह रहा था लेकिन ज्वाला प्रसाद की सूरत बता रही थी कि उसके अन्धेरे में चलाये तीर निशाने पर बैठ रहे थे ।


“तुम महेश कुमार का पीछा करते हुए उसके पीछे-पीछे कैलाश भार्गव के फ्लैट पर पहुंच गये । वह फ्लैट के भीतर चला गया और तुम बाहर खड़े उसके वापिस लौटने का इन्तजार करते रहे । लेकिन जब वह काफी देर तक वापिस न लौटा तो तुम भी कैलाश भार्गव के फ्लैट में घुसे । तब तक निहाल सिंह के आदमी महेश कुमार का पुलन्दा बांधकर वहां से फूट चुके थे । फ्लैट में तुमने महेश को मरा हुआ या मरे जैसी हालत में पाया । उस क्षण तुमने फौरन एक फैसला किया । महेश कुमार और कैलाश भार्गव मोटे तौर पर कद और बनावट में एक जैसे थे। तुमने महेश कुमार के कपड़े उतारे और फ्लैट में मौजूद कैलाश भार्गव के कपड़ों में से मुनासिब कपड़े छांट कर महेश कुमार को पहना दिये । फिर तुमने उसे किचन में ले जाकर उसका सिर गैस के ओवन में रखा, गैस चालू की और जब काफी गैस निकल चुकी तो गैस को आग लगा दी । एक जोर का विस्फोट हुआ और ओवन में रखे महेश कुमार के चेहरे के परखच्चे उड़ गये । अब समझा यह जाता कि गैस की उस दुर्घटना में मरने वाला आदमी कैलाश भार्गव था और इस प्रकार तुम्हारी जमानत की रकम बच जाती । सिलसिला थोड़ा खतरनाक था लेकिन करने लायक था । और फिर अपना एक लाख रूपया बचाने के लिये तुम्हें थोड़ा बहुत खतरा उठाने में कोई ऐतराज नहीं था ।


ज्वाला प्रसाद के चेहरे पर एकाएक हवाइयां उड़ने लगीं ।


" ज्वाला प्रसाद तुम्हारी अक्ल खराब हो गई थी जो तुमने यह सोच लिया था कि इतना बड़ा स्टंट मारकर तुम बचे रह सकते थे।"


वह खामोश रहा ।


“वैसे तुम्हारी तकदीर अच्छी थी। इस सारे सिलसिले में एक अप्रत्याशित मदद तुम्हें खामखाह मिल गई थी ।" - सुनील ने रूही की तरफ देखा- "मैडम जी से ।"


रूही ने सिर उठाकर सुनील की तरफ देखा लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया ।


"मैडम" - सुनील बोला - "तुम्हें मालूम था कि लाश तुम्हारे पति की नहीं थी । फिर भी तुमने लाश की शिनाख्त अपने पति के रूप में की। क्योंकि वास्तव में कैलाश भार्गव गायब था । जब एक गायब आदमी का कोई अता-पता न मिलता हो तो कानूनी तौर से सात साल तक वह आदमी फिर भी अपनी पत्नी का पति रहता है। अगर वह सात साल तक प्रकट नहीं होता तो उसे मरा मान लिया जाता है और तब पत्नी को उसकी आजादी हासिल हो सकती है । तुम्हें निश्चय ही यह कानूनी मुक्ता मालूम था । टोनी से शादी करने के लिए अभी तुम सात साल इन्तजार करो, यह तो कभी हो ही नहीं सकता था । इसलिए तुमने किचन में पड़ी उस लाश को अपने पति की लाश बता दिया ताकि हाथ के हाथ तुम विधवा करार दे दी जाओ और फिर कभी भी टोनी से शादी करने के लिये आजाद हो जाओ।"


"ओ.के. | ओ.के. । लाश की शिनाख्त में मेरे से गलती हो गई । फिर आफत क्या आ गई ?" - रूही तमक कर बोली - "गलती इन्सान से ही होती है ।"


"तुमसे गलती नहीं हुई ।" - सुनील बोला- "तुमने जो किया सोच समझकर किया । और फिर तुम तो.. "


"बस-बस।" - एकाएक निहाल सिंह कर्कश स्वर में बोल पड़ा - "बहुत बातें हो चुकी ।”


सुनील ने उसकी तरफ देखा । उसे निहाल सिंह के हाथ में रिवाल्वर दिखाई दी ।


"साहबान !" - निहाल सिंह फटी-सी आवाज में बोला "जो कुछ भी हुआ है उसमें सुनील के अलावा हम सब बराबर हिस्सेदार हैं। हम सभी की गरदन किसी न किसी रूप में ऐसी फंसी हुई है कि हमें हवालात का मुंह देखना पड़ सकता है। यहां सुनील ही एक इकलौता आदमी है जो हमें कानून के शिकंजे में फंसवा सकता है। अगर यह न रहे तो हम सब सुरक्षित हैं, आजाद हैं । बोलिये क्या राय है आप लोगों की ?"


"साहबान ।" - सुनील उच्च स्वर में बोला- "इसकी बातों पर मत जाइये । आप लोगों ने छोटे-मोटे गुनाह किये हैं लेकिन यह आदमी हत्यारा है । इसका गुनाह बहुत बड़ा है । यह जानता है कि यह पकड़ा गया तो सीधा फांसी के फन्दे पर जाकर लटकेगा लेकिन आप लोगों ने निहायत मामूली सजाओं के बराबर के काम किये हैं इसलिए इसके बड़े गुनाह में आप लोग अपने आपको बराबर का हिस्सेदार न बनायें ।"


लेकिन ज्वाला प्रसाद को शायद अपना कैसा भी गुनाह कबूल करने से ऐतराज था ।


"गोली चलाओ, निहाल सिंह ।" - वह फुसफुसाया - "इस आदमी का एक क्षण भी और जिन्दा रहना ठीक नहीं |"


सुनील ने देखा टोनी का चेहरा कागज जैसा सफेद हो चुका था लेकिन रूही अभी भी पत्थर की प्रतिमा की तरह बैठी हुई थी ।


निहाल सिंह ने रिवाल्वर वाला हाथ ऊंचा किया ओर बोला - "टोनी, तुम बाहर जाकर अपना बैंड शुरू करो । कोई इतने शोर वाली धुन बजाओ कि उसमें गोली की आवाज दब जाये ।"


टोनी भारी कदमों से दरवाजे की ओर बढा । उसने दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढाया लेकिन उसका हाथ दरवाजे तह पहुंचने से पहले ही एकाएक दरवाजा खुला और चौखट पर इंस्पेक्टर प्रभुदयाल प्रकट हुआ। उसने निहाल सिंह के हाथ में रिवाल्वर देखी, उसकी आंखों में वहशत देखी और फिर बिजली की फुर्ती से उसका हाथ अपनी बैल्ट के साथ लगे होलस्टर में रखी रिवाल्वर की ओर बढा ।


"टोनी !" - निहाल सिंह चिल्लाया - "परे हट जाओ।"


और साथ ही उसने फायर किया ।


गोली टोनी के बांये कन्धे में लगी और उसका सारा शरीर फिरकनी की तरह घूम गया । तुरन्त प्रभुदयाल की रिवाल्वर ने आग उगली ।


गोली निहाल सिंह की छाती में धंस गई । तुरन्त उसकी छाती से खून का फव्वारा छूट पड़ा । फिर एकाएक उसके घुटने मुड़े, उसकी अपनी रिवाल्वर पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और फिर उसका शरीर स्लो मोशन में नीचे झुकता हुआ उसकी कुर्सी और मेज के बीच फर्श पर ढेर हो गया ।


टोनी अपने घायल कन्धे को थामे जमीन पर बैठ गया था । उसका चेहरा पीड़ा से विकृत हो उठा था ।


ज्वाला प्रसाद आतंकित भाव से एक दीवार के साथ लग कर खड़ा हो गया । उसकी सांस धौकनी की तरह चल रही थी और उसकी आंखें उसकी कटोरियों से बाहर उबली पड़ रही थीं ।


वहां मौजूद लोगों में से केवल रूही ऐसी थी जिसकी निगाह में वहां कुछ भी नहीं हुआ था। उसका चेहरा अभी भी भावहीन था और वह वहां यूं खामोश बैठी थी जैसे वहां उसके अलावा कोई भी मौजूद नहीं था ।


समाप्त