सुनील फोर स्टार क्लब के विशाल हाल में एक कोने की मेज पर बैठा था। उसकी बगल में कैलाश भार्गव बैठा था जो कि उसे वहां लेकर आया था। स्टेज पर विदेशी परिधान पहने जो स्त्री मौजूद थी और इंगलिश में जांनिसार का कोई गीत गा रही थी, वह कैलाश भार्गव की बीवी रूही थी । स्टेज पर एक और पांच पीस का बैंड सजा हुआ था जो कि रूही को रिदम दे रहा था । बैंड में जो युवक प्यानो अकार्डियन बजा रहा था, वह टोनी था और उसकी अनुराग भरी निगाहें केवल रूही पर टिकी हुई थीं।


रूही की आवाज में कोई खास दम नहीं था लेकिन आवाज की कमजोरी की कमी वह अपने शानदार जिस्म से पूरी कर देती थी । गाने के साथ-साथ वह ऐसे उत्तेजित अन्दाज से हिलती-डुलती थी कि उसके जिस्म में जो लहरें पड़ती थीं वे दर्शक को अपने कलेजे पर हावी होती महसूस होती थीं ।


रूही को हाल ही में विरासत में ढेर सारी दौलत मिली थी । दौलत के अलावा भी गाती वह शौक के लिए और वाहवाही हासिल करने के लिए थी ना कि पैसा कमाने के लिए । कैलाश भार्गव के कथनानुसार रूही का टोनी के साथ रोमांस चल रहा था और वह कैलाश भार्गव से इस कदर बेजार हो चुकी थी कि वह किसी भी सूरत में उससे तलाक चाहती थी ।


फोर स्टार क्लब के संचालक का नाम निहाल सिंह था ।


सुनील उसे बखूबी जानता था लेकिन जबसे वह क्लब में मौजूद था, तब से उसे निहाल सिंह के दर्शन नहीं हुए थे।


तभी गीत समाप्त हुआ। रूही पर पड़ती स्पाट लाइट बुझ गई । हाल में तालियां बजीं और फिर रूही स्टेज से गायब हो गई ।


संगीत जारी रहा । टोनी अपने संगी साथियों के साथ उनके साजों की ताल पर प्यानो अकार्डियन बजाता रहा।


"तुम्हारा लालच जायच है, दोस्त" - सुनील एक लक्की स्ट्राइक का सिगरेट सुलगा चुकने के बाद बोला - " ऐसी शानदार बीवी को भला कौन छोड़ना चाहेगा ।”


"लेकिन में उसे रोके रख कैसे सकता हूं ?" - कैलाश भार्गव व्यग्र स्वर में बोला ।


"तुम नहीं रख सकते" - सुनील ने बड़ी संजीदगी से कहा - "जब दिल से दिल की रिश्तेदारी न रही हो, जब प्यार मुहब्बत की शमा बुझ चुकी हो तो कोई मर्द अपनी औरत को जबरन अपने साथ नहीं रख सकता । प्यारे लाल, अगर वह तलाक चाहती है तो तलाक दे दो उसे ।"


“यह तुमने मुझे राय दी है !" - भार्गव शिकायत भरे स्वर में बोला - " ऐसी राय तो मैं किसी वकील से भी हासिल कर सकता था । तुम मेरे दोस्त हो । तुम मुझे कोई ऐसी राय दो जिससे मेरी बीवी मुझे छोड़कर न जा सके ।"


"तुम्हें लालच अपने बीवी का है या उसकी दौलत का?"


भार्गव ने बैचेनी से पहलू बदला । उसने उत्तर देने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर होंठ भींच लिए ।


"देखो" - सुनील हमदर्दी भरे स्वर में बोला - "यह हिन्दुस्तान है, विलायत नहीं । यहां तलाक हासिल कर लेना कोई आसान काम नहीं । यहां दो-चार गिनी-चुनी वजहों से ही तलाक होता है और वे वजहें न पैदा हों, ऐसी कोशिश तुम कर ही सकते हो । वैसे तुम्हारा पुलन्दा बांधने के लिए जो कोशिश रूही की तरफ से की जा सकती है वह यही है कि तुम्हें बेवफा साबित किया जा सके ।"


"बेवफा, क्या मतलब ?"


"यह कि तुम्हारा किसी और औरत से लव अफेयर है और तुम अपनी पत्नी की तरफ वह ध्यान नहीं दे रहे हो जो कि एक निष्ठावान पति को देना चाहिए ।”


"लेकिन ऐसी तो कोई बात नहीं है । "


"नहीं है तो बड़ी खुशी की बात है । है तो सावधान हो जाओ ! अपनी दाढी दूसरे के हाथ में देने से परहेज करो । फिर रूही तुमसे तलाक नहीं हासिल कर सकेगी और तलाक हासिल किए बिना वह तुम्हें छोड़ तो सकती है लेकिन किसी दूसरे मर्द से" - सुनील ने एक अर्थपूर्ण निगाह स्टेज की तरफ डाली - "शादी नहीं कर सकती ।"


"हूं।"


"लेकिन अगर वह तुमसे पीछा छुड़ाने को मरी जा रही है तो वह तुम पर बेवफाई की झूठी तोहमत लगाने की कोशिश कर सकती है।"


"क्या मतलब ?"


"वह किसी लड़की को सिखा-पढाकर जबरन तुम पर थोप सकती है और फिर किसी पूर्व निर्धारित योजना पर काम करके तुम्हें गवाहों के सामने उसके साथ रंगे हाथों पकड़ सकती है। अगर वह ऐसे किसी षडयन्त्र में कामयाबी हो गई तो वह तुमसे अदालत में तलाक हासिल करने में कामयाब हो जाएगी ।"


"मैं ऐसी नौबत नहीं आने दूंगा। मैं सावधान रहूंगा।"


"बहुत समझदारी करोगे ।"


वह खामोश रहा ।


“एक बात बताओ” - सुनील तनिक आगे को झुक कर • बोला - "क्या सुलह की कोई गुंजायश नहीं ?"


भार्गव के जबड़े भिंच गए । वह बोला - "उस हरामजादे टोनी के होते नहीं । जबसे रूही टोनी से मिली है तभी से उसे मुझसे दहशत हो गई है। महीनों पहले से उसने मुझसे बोलना-चालना बन्द किया हुआ था और फिर अब तो काफी समय से वह मेरे साथ भी नहीं रह रही । "


'अब कहां रहती है वो ?"


"इस बैंड मास्टर के साथ ही कहीं रहती होगी ।"


“अच्छा !"


"लेकिन तलाक से लिए रूही लगातार मेरे कान खा रही है । यह टोनी का बच्चा उसे सिखाता-पढाता रहता होगा न।"


"तुम उसे किसी सूरत में तलाक देने को तैयार नहीं ?" - सुनील उसके नेत्रों में झांकता हुआ बोला ।


भार्गव निगाहें चुराने लगा ।


“अब तो तुम्हारी बीवी एकाएक बहुत रईस हो गई है ।" - सुनील बोला- "अगर वह तुम्हें एक मोटी रकम की नकद आफर दे तो क्या तुम उसको तलाक देना कबूल कर लोगे ?"


भार्गव ने बैचेनी से पहलू बदला । फिर वह संकोचपूर्ण स्वर में बोला- "अब तुम से क्या छुपाना, यार । बीवी तो हाथ से निकल ही गई है । कुछ माल पानी हाथ आ जाये तो मेरे आंसू पुंछ जायेंगे ।”


"मेरे ख्याल से अपनी आजादी की कोई मुनासिब कीमत अदा करने में रूही को कोई एतराज नहीं होगा । अब तो वह खूब पैसे वाली औरत है ।”


"मगर वह ऐसी कोई आफर पेश करे तब न ।”


"इस बारे में उससे बात की जा सकती है ।"


"मुझसे तो वह कलाम करके राजी नहीं । तुम कर देखो बात । अगर वह किसी इज्जतदार तरीके से कोई ढंग की रकम मुझे आफर करे तो मैं तलाक में अड़ंगा लगाने की कोशिश नहीं करूंगा।"


“ठीक है। मैं उससे बात करूंगा ।"


"अगर वह बात करने को राजी न हो तो उसके वकील से बात कर देखना ।”


"अच्छा, कोई वकील भी है उसका ?"


"हां ! सूर्य नारायण । उसकी विरासत की देखभाल भी वही कर रहा है । अब रूही पैसे वाली औरत है । तजुर्बेकार लोगों की ऐसी सेवायें भला वह क्यों न प्राप्त करे !"


"ठीक है । अब यहां से प्रस्थान किया जाये ?"


भार्गव ने सहमति में सिर हिलाया । उसने हाथ के इशारे से वेटर को बुलाया और उसे बिल लाने को कहा । वेटर ने उसे बिल पेश किया। भार्गव ने अपना पर्स निकाला और सौ-सौ के दो नोट उसकी ट्रे में डाल दिये ।


वेटर वहां से विदा हो गया ।


सुनील ने एक नया सिगरेट सुलगाया और स्टेज की तरफ देखने लगा जहां कि अब एक कैबेरे डान्सर प्रकट हो गई थी ।


तभी दो सूटधारी व्यक्ति भार्गव की कुर्सी के दांये बांये प्रकट हुये । सुनील को उनकी उपस्थिति का तभी आभास मिला जब उनमें से एक बोला ।


"मिस्टर भार्गव !”


भार्गव ने सिर उठाया और बोला - "हां ।”


"आप जरा हमारे साथ क्लब के आफिस में तशरीफ लाइये ।" 


"किसलिये ?" - भार्गव के माथे पर बल पड़ गये. “और हैं कौन आप ?"


"मेरा नाम रमण है" - वह शुष्क स्वर में बोला- "मैं सी. आई.डी. आफीसर हूं । यह रहा मेरा आइडेंटिटी कार्ड ।”


भार्गव मुंह बाये कभी कार्ड को और कभी उसे देखने लगा।


"उठकर मेरे साथ चलिये रमण ने कार्ड वापिस जेब में रख लिया और अधिकार पूर्ण स्वर में बोला ।


भार्गव ने व्याकुल भाव से सुनील की तरफ देखा ।


"मेरा नाम सुनील है।" - सुनील बोला- "मैं मिस्टर भार्गव का दोस्त हूं । क्या मैं भी इनके साथ चल सकता हूं ?"


रमण एक क्षण हिचकिचाया । फिर उसने सहमति में सिर हिला दिया ।


सुनील और भार्गव उठकर रमण और उसके साथी के साथ हो लिये । 


चारों निहाल सिंह के आफिस में पहुंचे।


निहाल सिंह लगभग पचास साल का हष्ट-पुष्ट, सिर से एकदम गंजा आदमी था । वह बड़ी चिन्तापूर्ण मुद्रा बनाये अपनी विशाल मेज के पीछे बैठा था ।


"भार्गव साहब" - वह बोला - "मैं...."


"तुम खामोश रहो, निहाल सिंह !" - रमण बीच में बोल पड़ा- "बैठिये आप लोग।"


सुनील और भार्गव दो कुर्सियों पर अगल-बगल बैठ गये


रमण ने अपनी जेब से सौ-सौ के दो नोट निकाल कर भार्गव को दिखाये और बोला - "सौ-सौ के ये दो नोट तुमने अभी वेटर को दिये थे । ये नोट कहां से आये तुम्हारे पास ?"


"कहां से आये क्या मतलब ?" - भार्गव हैरानी से बोला "कहीं से आये हों मेरे पास । तुम्हें क्या ?"


"हमें है । ये जाली नोट हैं । "


"क्या ?"


"ये जाली नोट हैं । जो किसी निहायत तजुर्बेकार आदमी ने बनाये हैं। इनको जाली नोटों की सूरत में पहचान लेना किसी ऐरे-गैरे आदमी के बस का काम नहीं । ये नोट कहां से आये तुम्हारे पास ?"


"मुझे नहीं पता । भगवान कसम मुझे याद नहीं कि ये नोट मुझे कहां से मिले थे और ये कब से मेरे पास हैं। मुमकिन है ये अपने बैंक से लाया होऊं । कुछ दिन पहले मैंने पन्द्रह सौ का एक चैक भुनवाया तो था जिसके कि भुगतान में मुझे सौ-सौ के नोट मिले थे ।"


"फिर से सोचो ये नोट तुम्हारे पास कहां से आये ?" रमण कठोर स्वर में बोला- "बैंक में जाली नोट नहीं मिला करते मिस्टर । जिस सीरीज के ये नोट हैं, वह सारी सीरीज हमारी निगाह में है। इस सीरीज के और भी नोट इस शहर में पकड़े गये हैं। कई ऐसे नोट पहले भी इस क्लब में चल चुके हैं और हमें खबर लगी कि जब से ये जाली नोट प्रकट हुए हैं तभी से तुम इस क्लब में आ रहे हो ।”


“आप लोग यूं एकाएक, आनन-फानन यहां कैसे पहुंच गये ?" - सुनील ने पूछा ।


"हम यहां न एकाएक पहुंचे हैं और न आनन-फानन पहुंचे हैं।" - रमण बोला- "हम कई दिनों से इस क्लब पर घात लगाये हुए थे । हमने इस सीरीज के नोटों के नम्बरों के बारे में निहाल सिंह को भी बताया हुआ था। निहाल सिंह सौ-सौ के नोटों में हुए हर भुगतान को चैक करता था । इसे फौरन पता लग गया कि ये नोट जाली थे। फिर वेटर ने इसे बताया कि ये नोट उसे भार्गव ने दिये थे । निहाल सिंह ने फौरन ही हमें खबर कर दी ।"


" आई सी ।" - सुनील बड़ी गौर से निहाल सिंह को देखता हुआ बोला ।


"जरा अपनी जेब से बाकी के नोट निकालो।" - रमण भार्गव से बोला ।


भार्गव ने सुनील की तरफ देखा। सुनील ने सहमति में सिर हिला दिया । भार्गव ने अपना पर्स निकाल कर मेज पर रख दिया ।


 रमण ने पर्स उठा लिया और उसे खोल कर उसमें मौजूद अन्य नोटों का बड़ी बारीकी से मुआयना किया । फिर उसने पर्स बन्द करके वापिस भार्गव को दे दिया । प्रत्यक्षतः उसे और कोई सन्देहजनक नोट दिखाई नहीं दिया था ।


"अब सन्तुष्ट हैं आप लोग ?" - भार्गव बोला ।


"नहीं।" - रमण गम्भीरता से बोला- "तुम्हें हमारे साथ हैडक्वार्टर चलना होगा।"


"क्यों ?"


"यह वहीं चलकर बताया जायेगा ।"


"तुम मुझे गिरफ्तार कर रहे हो ?”


"इसकी नौबत नहीं आयेगी । तुम पढे लिखे समझदार आदमी हो । मुझे उम्मीद है कि तुम सरकारी काम में खामखाह अड़ंगा फसाने की कोशिश नहीं करोगे और एक जिम्मेदार शहरी बनकर दिखाओगे ।"


"लेकिन तुम मुझे हैडक्वार्टर ले जाना क्यों चाहते हो ?"


"वहां तुम्हारी मुकम्मल जामा- तलाशी होगी और तुम्हारा बयान रिकार्ड किया जायेगा ।"


भार्गव ने कातर भाव से सुनील की तरफ देखा ।


"चले जाओ।" - सुनील आश्वासन पूर्ण स्वर में बोला “अगर तुम निर्दोष हो तो डरते क्यों हो ?"


"मैं निर्दोष हूं । इन जाली नोटों से मेरा कोई वास्ता नहीं।" - भार्गव बोला ।


“चलो ।” - रमण बोला ।


भार्गव ने शिकायत भरी निगाहों से निहाल सिंह की तरफ देखा ।


"मेरी मजबूरी थी ।" - निहाल सिंह दबे स्वर में बोला "मैं इन लोगों से छुपा कर नहीं रख सकता था कि जाली नोट वेटर को तुम्हारे से मिले थे ।”


"लेकिन..."


" अब चलने की करो।" - रमण कठोरता से बोला ।


“अच्छी बात है।" - भार्गव ने अब हथियार डाल दिए "चलो ।”


 वे लोग भार्गव को अपने साथ लेकर वहां से विदा हो गये।


सुनील भी वहां से विदा हो गया ।


सारे रास्ते वह भार्गव और जाली नोटों के बारे में सोचता रहा । भार्गव को पैसे का बहुत लालच था । सुनील को यह बात एकदम असम्भव नहीं लगती थी कि उसकी जाली नोट खरीदने या किसी और तरीके से हासिल करने का कोई साधन दिखाई दिया हो और उन्हें हासिल कर लिया हो । लेकिन यह असम्भव था कि वह जाली नोट खुद छापता हो या उनका व्यापार करने वाले किसी गैंग में शामिल हो ।


***


अगले दिन टेलीफोन की निरन्तर बजती घन्टी की आवाज से सुनील की नींद खुली । रिसीवर उठाने से पहले उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । नौ बज चुके थे और चमकीली धूप खिड़की के रास्ते भीतर दाखिल हो रही थी ।


"हैल्लो ।" - वह रिसीवर उठाकर माउथ पीस में बोला


"सुनील ?" - दूसरी ओर से पूछा गया ।


“हां । कौन ?”


"मैं कैलाश भार्गव बोल रहा हूं।"


"कहां हो ?" 


"जेल में ।" 


"क्या ?"


"मैं गिरफ्तार कर लिया गया हूं । कल ही पुलिस ने मेरे फ्लैट की तलाशी ली थी। पुलिस कहती है कि तलाशी में मेरे फ्लैट में से बीस हजार रुपये के सौ-सौ के जाली नोट और बरामद हुये हैं ।"


"नहीं ।”


"पुलिस वाले कहते हैं कि मैंने वे नोट एक जूतों के डिब्बे में बन्द करके अपने कपड़ों की अलमारी में छुपा कर रखे हुये थे ।”


"तुमने ऐसा किया था ?"


“सवाल ही नहीं पैदा होता ।”


"तो फिर वे नोट तुम्हारे फ्लैट में किसने रखे ?”


"मुझे क्या पता ? लेकिन सुनील, मुझे फंसाया जा रहा है। भगवान कसम उन जाली नोटों से मेरा कोई वास्ता नहीं "


"तुमने फोन कैसे किया ?"


"दस बजे मुझे अदालत में पेश किया जाने वाला है । भगवान के लिये मुझे जमानत पर छुड़वाने के लिये अदालत में पहुंच जाना ।"


"ओ.के. । मैं पहुंच जाऊंगा ।"


सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।


सुनील बिस्तर से निकला और जल्दी-जल्दी तैयार होकर अपने फ्लैट से कूच कर गया ।


वह कचहरी पहुंचा ।


वहां उसने सबसे पहले भार्गव के लिए एक वकील किया और उसे सारी स्थिति समझाई । फिर वह वकील के साथ जज की कोर्ट में पहुंचा जहां भार्गव को पेश किया गया था।


जमानत के नाम पर सरकारी वकील यूं भड़का जैसे उसने गाली सुन ली हो । उसने भार्गव को एक खतरनाक मुजरिम और जाली नोट बनाने वालों के गिरोह का सरदार साबित करने की कोशिश की। उसने कहा कि अभी केवल बीस हजार के नोट बरामद हुये थे । अगर उसे आजाद कर दिया गया तो वह फरार भी हो सकता था और जाली नोटों के उस स्टाक को नष्ट भी कर सकता था जो कि अभी पुलिस के हाथ लगना था ।