एयर-इण्डिया का विशाल वायुयान कोलून के थाईताक हवाई अड्डे पर उतर पड़ा ।
सुनील ने अपनी सेफ्टी बैल्ट खोली और एयर बैग सम्भालता हुआ उठ खड़ा हुआ ।
जहाज को सीढी लग चुकने के बाद वह नीचे उतर आया और बाकी यात्रियों के साथ हवाई अड्डे की मुख्य इमारत की ओर बढ गया ।
यात्रियों के चेहरे पर उल्लास दमक रहे थे । हर किसी के नेत्रों में हांगकांग की रंगीन जिन्दगी के मादक सपने तैर रहे थे ।
सुनील गम्भीर था ।
हांगकांग आने का यह उसका दूसरा मौका था । उसे सब कुछ जाना-पहचाना लग रहा था ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद वह कस्टम से निपट कर हवाई अड्डे से बाहर निकला ।
सामने टैक्सी ड्राइवरों और रिक्शा वालों का मेला लगा हुआ था ।
उसी क्षण एक विलायती सूट पहने पीली खाल वाला गंजा चीनी उसकी ओर बढा । वह सुनील के समीप आकर तनिक झुका और फिर आदरपूर्ण स्वर से बोला - “वैलकम टु हांगकांग मिस्टर जैन्टलमैन । मे आई हैल्प यू ? शुड आई काल ए टैक्सी फार यू ? आपके लिए टैक्सी बुलवाऊं ?”
“हां ।” - सुनील उसे सर से पांव तक घूरता हुआ बोला ।
“कहां जाइयेगा ?” - चीनी बोला - “पैनिसुलर या मियाना या ग्लोकेस्टर ?”
“ये क्या बला हैं ?”
“हाई क्लास होटल हैं, सर । कोलून के पैनिसुलर, ग्लोकेस्टर और मियाना होटल तो सारी दुनिया में मशहूर हैं ।”
“मुझे वहां नहीं जाना है ।” - सुनील बोला - “मैं तो वांचाई के एम्पायर होटल में जाना चाहता हूं ।”
“वहां रहेंगे आप ?” - उसने पूछा ।
“हां ।”
“लेकिन वह तो... वह तो शरीफ आदमियों के रहने लायक होटल नहीं है ।”
“मैंने कब कहा है, मैं शरीफ आदमी हूं ।” - सुनील रूखे स्वर में बोला ।
“आई एम सारी सर ।” - चीनी क्षमा मांगता हुआ बोला - “एम्पायर होटल तो हांगकांग द्वीप पर है । आप यहां से टैक्सी लेकर हार्बर तक चले जाइये । वहां से आपको वांचाई जाने के लिए फैरी (किश्ती) मिल जायेगी । एम्पायर होटल दूसरी ओर के फैरी स्टेशन के एकदम पास है ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
चीनी ने एक टैक्सी को आवाज दी ।
टैक्सी आ जाने पर उसने सुनील का सामान टैक्सी में रख दिया और सुनील से बोला - “फैरी स्टेशन तक का किराया एक डालर होगा साहब । अमेरिकन डालर नहीं, हांगकांग डालर । एक अमेरिकन डालर छ: हांगकांग डालरों के बराबर होता है । आप कौन-से देश से आये हैं ?”
“भारत से ।”
“एक हांगकांग डालर मुद्रा अवमूल्यन के बाद भारत के लगभग डेढ रुपये के बराबर है, और यह मेरा कार्ड रख लीजिये, यह नाम, पता और टेलीफोन नम्बर लिखा है । शायद आपको हांगकांग में गाइड की जरूरत पड़े ।”
“थैंक्यू फार दी हैल्प ।” - सुनील बोला और टैक्सी में बैठ गया ।
चीनी ने झुककर उसका अभिवादन किया ।
टैक्सी चल पड़ी ।
थोड़ी ही देर में टैक्सी फैरी स्टेशन पर जा पहुंची ।
सुनील ने किराया चुकाया और टैक्सी से उतर गया ।
उसने बुकिंग से एक टिकट खरीदा और फैरी पर जा बैठा ।
सुनील एक बार पहले भी हांगकांग आ चुका था इसलिए उसे हांगकांग की थोड़ी-बहुत भौगोलिक जानकारी पहले से ही थी । थाईताक का हवाई अड्डा कोलून नामक प्राय द्वीप में था । और स्ट्रेट (जल डमरू मध्य) के दूसरी और हांगकांग द्वीप था । कोलून से हांगकांग के लिए हर पांच मिनट बाद बड़ी तेज रफ्तार से चलने वाली किश्तियां जाती थीं । वांचाई हांगकांग द्वीप में एक समुद्री किनारे पर स्थित इलाका था ।
वांचाई फैरी स्टेशन पर पहुंचकर सुनील फैरी से उतर गया ।
वांचाई एक बहुत घना बसा हुआ शत-प्रतिशत चीनी इलाका था । इस इलाके में विदेशी बहुत कम आते थे । इसलिए हर कोई सुनील को घूर-घूर कर देख रहा था ।
फैरी स्टेशन के सामने ही एक इमारत पर एम्पायर होटल का बोर्ड लगा दिखाई दे रहा था ।
फैरी स्टेशन के सामने रिक्शा वालों का झुंड खड़ा था । उसे देखते ही वे सुनील की ओर भागे और उसे घेरकर खड़े हो गये ।
“मिस्टर जैन्टलमैन ।” - सब अपने-अपने स्वर को ऊंचा कर कह रहे थे - “ग्रेट मिस्टर जैन्टलमैन । हैव मी । आई रन फास्ट । आई रन गुड । प्लीज हैव मी ।”
बड़ी मुश्किल से सुनील उन्हें समझा पाया कि उसे रिक्शा की जरूरत नहीं है ।
उसने अपना अटैची और बैग सम्भाला और एम्पायर होटल के काउण्टर पर पहुंचा ।
काउण्टर पर एक बूढा चीनी बैठा था ।
“मुझे एक कमरा चाहिए ।” - सुनील इंगलिश में बोला ।
बूढे ने मशीन की तरह एक रजिस्टर और पैन उसके सामने रख दिया ।
सुनील ने रजिस्टर में अपना नाम-पता वगैरह लिख दिया ।
“टैन डालर ।” - बूढा नीरस भाव में बोला - “रूम ट्वेन्टी सैवन ।”
लगभग पन्द्रह साले के गन्दे से चीनी लड़ने ने उसका सामान उठा लिया ।
सुनील ने बूढ को दस डालर दिये और उसके पीछे-पीछे चल दिया ।
सत्ताइस नम्बर कमरा दूसरी मन्जिल पर था । एक पतले से गलियारे के दोनों ओर कमरे बने हुए थे ।
अट्ठाइस नम्बर कमरे का द्वार एकदम सत्ताइस नम्बर के सामने था । उस कमरे के द्वार के साथ टेक लगाये एक बेहद खूबसूरत चीनी लड़की खड़ी थी । उसने चीनी ढंग का टाइट फ्राक पहना हुआ था जिसमें से उसकी गोरी-गोरी खूबसूरत टांगें जांघों तक दिखाई दे रही थीं । उसके पीले रंग के मुलायम बाल उसके गुड़िया जैसे मासूम चेहरे और कन्धों पर बिखरे हुए थे ।
सुनील से नजर मिलते ही वह मुस्करा पड़ी ।
सुनील भी मुस्कराया और चीनी नौकर के पीछे-पीछे कमरे में घुस गया ।
लगभग आधे घण्टे बाद सुनील कमरे से बाहर निकला ।
उसी क्षण अट्ठाइस नम्बर का द्वार खुल गया ।
वही चीनी लड़की फिर द्वार पर आ खड़ी हुई और बड़े अनुरागपूर्ण भाव से सुनील को देखने लगी ।
सुनील ने कमरे को ताला लगा दिया ।
उसने गलियारे में कदम बढाया ही था कि लड़की बोल पड़ी - “हैलो मिस्टर जैन्टलमैन !”
“हैलो !” - सुनील मुस्कराया ।
“टूरिस्ट हो ?”
“हां ।”
“यहां क्यों ठहरे ? यह होटल तो अच्छे लोगों के रहने के लायक नहीं है ।”
“मैं अच्छा लोग नहीं हूं ।”
वह हैरानी से उसका मुंह देखने लगी और हंस पड़ी । उसकी खनकती हुई हंसी से सुनील बहुत प्रभावित हुआ ।
“मिस्टर” - एकाएक वह बड़े मायूस स्वर से बोली - “हांगकांग में जब तुम्हें लड़की की जरूरत पड़े तो मुझे बुला लोगे न ? और लड़कियों के मुकाबले में मैं मुहब्बत करने के ज्यादा तरीके जानती हूं । तुम खुश हो जाओगे ।”
“अच्छा ।” - सुनील कठिन स्वर में बोला । वह समझ गया, लड़की क्यों उससे दिलचस्पी ले रही है ।
“अभी आऊं ?” - वह निमन्त्रणपूर्ण स्वर में बोली ।
“नहीं, अभी नहीं ।” सुनील घबराकर बोला - “अभी मुझे काम है ।”
“तो रात को ?”
“मैं बताऊंगा तुम्हें ।”
“आल राइट ।” - वह तनिक निराशापूर्ण स्वर में बोली - “कोई और लड़की साथ मत ले आना । मुझे ही बुलाना । टूरिस्ट जैन्टल मैन हमेशा मेरे से बहुत सन्तुष्ट रहते हैं ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला और आगे बढ गया ।
नीचे काउण्टर पर वह चीनी क्लर्क के पास पहुंचा ।
“यहां तुम्हारे होटल में तिन-हा नाम की एक चीनी लड़की रहती थी । तुम उसके बारे में कुछ जानते हो ?”
“नो स्पीक इंगलिश ।” - बूढा भावहीन स्वर से बोला और फिर अपने रजिस्टर पर झुक गया ।
सुनील बाहर निकल आया, बूढे से बात करना बेकार था ।
पहले की तरह फिर रिक्शा वाले उसकी तरफ भागे लेकिन सुनील ने उन्हें हाथ के संकेत से भगा दिया । वह पैदल ही वांचाई के बाजार में चल दिया ।
हर जगह इतनी भीड़ थी कि हैरानी होती थी कि लोग रहते कैसे हैं ? धक्के खाये बिना कहीं भी चल पाना असम्भव मालूम होता था । बच्चों की चिल्लाहटें, कामगारों की आवाजें, रिक्शा वालों का हल्ला और उसके ऊपर बड़ी-बड़ी अमेरिकन कारों और दो मंजिलों बसों का खतरनाक ट्रैफिक कान को फोड़ता ही था, साथ-साथ हांगकांग में नये आदमी के मन में एक असुरक्षा की भावना भी भर देता था ।
सुनील सबसे बचता हुआ एक ओर चलता रहा ।
वांचाई के इलाके में हर चौथी दुकान बार मालूम होती थी । हर बार के बाहर एक छोटा-सा चीनी लड़का खड़ा होता था जो कि लोगों को भीतर आने के लिए आमन्त्रित करता था ।
सुनील एक बार में घुस गया ।
भीतर बहुत भीड़ थी । ज्यूक बाक्स में से बड़े ऊंचे स्वरों में विलायती धुनें प्रभावित हो रही थीं । सारा हाल सिगरेट के धुयें के बादलों से भरा हुआ था । हाल हर आयु के चीनियों, खूबसूरत और जवान लड़कियों और अमेरिकन नाविकों से भरा हुआ था । हर नाविक अपनी बगल में एक चीनी लड़की दबाये हुए था जो उसके अश्लील चुटकले सुनकर बेतहाशा ठहाका लगाती थी ।
सुनील ज्यूक बाक्स से दूर एक कोने में पड़ी खाली मेज पर जा बैठा ।
वेटर आया और उसने उसे स्काच का आर्डर दे दिया ।
स्काच आई और उसके साथ न जाने कहां से लगभग चालीस साल की चीनी औरत टपक पड़ी । वह अच्छी-खासी सम्पन्न और सम्भ्रान्त महिला मालूम होती थी ।
“मे आई सिट हेयर ।” - वह मुस्कराती हुई बोली ।
“ओ यस, बाई आल मींस ।” - सुनील बोला ।
चीनी औरत बैठ गई ।
“आप कुछ पीयेंगी ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं ।” - वह बोली - “थैंक्स ।”
सुनील चुप हो गया ।
“हांगकांग में पहली बार आये हो ?” - उसने पूछा ।
“दूसरी बार ।”
वह कुछ क्षण उसकी आंखों में झांकती रही और फिर एकाएक बोली - “लड़कियां पसन्द करते हो ?”
“हां, यस । क्यों नहीं । क्यों नहीं ।” - सुनील हड़बड़ा कर बोला ।
“मेरे पास कई बड़े ऊंचे दर्जे की लड़कियां हैं । ऐसी नहीं, जैसी तुम इस बार में देख रहे हो, बल्कि सही मानों में हाई-क्लास माल । तुम अगर हां करो तो मैं कुछ लड़कियां टेलीफोन करके यहां बुला देती हूं । यह जरूरी नहीं होगा कि तुम उनमें से कोई चुन ही लो, लेकिन अगर उनमें से कोई तुम्हें पसन्द आ जाये तो तुम केवल इशारा कर देना, बाकी इन्तजाम मैं कर दूंगी ।”
सुनील समझ गया, वह औरत दलाल थी ।
“लेकिन इतनी लड़कियां आपको मिल कहां से जाती हैं ?”
“सर !” - वह बोली - “हांगकांग में लड़कियां ही एक ऐसी चीज है, जिसे ढूंढना नहीं पड़ता बल्कि वह खुद-ब-खुद ही गले पड़ती चली आती हैं । हांगकांग में लड़कियों के लिए तुम जैसे टूरिस्टों का मनोरंजन करने के अलावा और कोई काम नहीं है । हांगकांग भरा पड़ा है ऐसी लड़कियों से जो कुछ डालर हासिल करने का कैसा भी मौका छोड़ना गवारा नहीं कर सकतीं । मैं तो उनमें से हाई क्लास लोगों के लिए केवल बढिया माल चुन लेती हूं ।”
“लेकिन इतनी लड़कियां हांगकांग में आ कहां से जाती हैं ?” - सुनील ने हैरानी से पूछा ।
“कुछ तो हांगकांग की ही पैदावार हैं, बाकी बाहर से आती हैं ।”
“बाहर से ?”
“हां ! चीनी रिफ्यूजी । ये लोग लाल चीन से लुक-छिपकर अपने बजरों की (एक प्रकार की नाव) सहायता से मकाउ आ जाते हैं । मकाउ पर पुर्तगाल का अधिकार है । पुर्तगाली इन जबरदस्ती घुस आने वाले रिफ्यूजियों को न रोक पाते हैं और न रोकने में कोई विशेष दिलचस्पी दिखाते हैं । मकाउ से ये लोग अपने बजरों को तैराते हुए समुद्र के रास्ते हांगकांग पहुंच जाते हैं । अंग्रेज पुलिस इन बजरों पर बड़ी तेज नजर रखती है और साधारणतया उन्हें हांगकांग की हद में आने नहीं देती लेकिन ये चीनी बहुत चालाक होते हैं । वे बड़े सब्र के साथ मौके की प्रतीक्षा करते रहते हैं । और फिर हांगकांग में पहले से रहने वाली चीनी भी इनकी मदद करते हैं ।”
“कैसे ?”
“हांगकांग में आधी से ज्यादा आबादी पानी में रहती है । पानी में तैरते हुए बजरे ही उनका घरबार हैं । अबर दीन हार्बर पर तुम्हें ऐसे हजारों बजरे तैरते मिलेंगे, जिन पर लोग बरसों से रह रहे हैं क्योंकि समुद्र बहुत विशाल है । उसमें सबके लिए स्थान है लेकिन किसी गरीब चीनी परिवार के लिए हांगकांग द्वीप या कोलून प्रायद्वीप की धरती पर स्थान नहीं है । ये लोग अपने सैकड़ों बजरे तैराते हुए दूर समुद्र में ले जाते हैं । वहां पर नये आये चीनी रिफ्यूजी अपने बजरों को इनके बजरों के झुण्ड में मिला देते हैं । सारे बजरे देखने में एक से लगते हैं इसलिए पुलिस को यह मालूम नहीं हो पाता कि घुसपैठिये कौन हैं ? एक बार जब रिफ्यूजियों का बजरा हांगकांग के पानियों में पहुंच जाता है तो फिर पुलिस भी उन्हें तंग नहीं करती । पुलिस को वास्तव में इन लोगों से सहानुभूति है । पुलिस सोचती है कि जब ये लोग इतनी मुसीबतें उठाने के बाद लाल चीन के चंगुल से निकलकर यहां पहुंच ही गये हैं तो अब उन्हें वापिस भेजना ठीक नहीं । परिणामस्वरूप उन रिफ्यूजियों को मान्यता के सरकारी कागजात मिल जाते हैं और वे हांगकांग के ही होकर रह जाते हैं । ऐसे रिफ्यूजियों में जवान लड़कियों की भरमार होती है । हांगकांग में पेट भरने के लिए उनके पास केवल एक ही धंधा है और वह है साहब लोगों का मनोरंजन । इस व्यापार में माल बहुत ज्यादा है लेकिन ग्राहक कम हैं । इसलिए लड़की हांगकांग के बाजार में सबसे सस्ती बिकने वाली चीज है ।”
वह चुप हो गई ।
सुनील भी कुछ नहीं बोला ।
“मैं टेलीफोन करूं ?” - उसने पूछा ।
एकाएक सुनील को एक ख्याल आया । सम्भव है कि वह औरत तिन-हा को भी जानती हो ।
“कुछ महीने पहले मेरा एक दोस्त हांगकांग आया था ।” - सुनील बोला - “उसने एक चीनी लड़की की बहुत तारीफ की थी । क्या वही लड़की मुझे मिल सकती है ?”
“क्या नाम था उसका ?”
“तिन-हा !”
एक क्षण के लिए उसकी आंखों में हैरानी दिखाई दी । अगले ही क्षण वह अपने सोने से मढे दांत को चमकाती हुई बोली - “हां-हां, मैं जानती हूं उसे । तिन-हा वाकई बड़ी ही शानदार लड़की है । टूरिस्ट जेन्टलमैन उससे बहुत खुश होते हैं । बुलाऊं उसे ?”
सुनील के लिए हैरानी को छुपाना मुश्किल हो गया । वह बोला - “हां-हां, क्यों नहीं ।”
“वह मेरी सबसे शानदार लड़की है । तुम्हें उसके लिए तीस डालर देने पड़ेंगे ।”
“मुझे मन्जूर है ।”
“दस डालर होटल के कमरे के और पांच डालर मेरी कमीशन ।”
“आल राईट ।”
“मैं उसे बुलाती हूं ।”
वह उठी और काउण्टर के पास जाकर टेलीफोन करने लगी ।
दो मिनट बाद वह वापिस आ गई ।
“वह दस मिनट में यहां पहुंच जाएगी ।” - वह बोली ।
“तिन-हा ?”
“हां ।”
वह वापिस भीड़ में जा मिली । शायद और ग्राहक तलाश करने ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद विलायती परिधान पहने हुए एक लड़की गेट पर दिखाई दी ।
इतनी दूरी से सुनील उसकी सूरत को नहीं पहचान सका था ।
चीनी दलाल औरत उस लड़की के पास पहुंची और उसने सुनील की ओर संकेत कर दिया ।
सुनील ने लड़की की ओर देखना बन्द कर दिया और वह लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ अपने विस्की के गिलास पर झुक गया ।
लड़की के समीप पहुंचने पर उसने सिर उठाया ।
दोनों के मुंह से निकला - “तुम ?”
वह वही लड़की थी जो एम्पायर होटल में मिली थी ।
“मेरे लिए तुम्हें मादाम से कहने की क्या जरूरत थी ?” - वह सुनील के सामने बैठती हुई बोली - “मैंने तो पहले भी तुम्हें बुलाया था ।”
“लेकिन उस समय मुझे यह मालूम नहीं कि तुम्हारा नाम तिन-हा है ।” - सुनील ने कहा ।
“कहीं तुमने मुझे इसलिए तो नहीं टाल दिया था कि तुम्हें मेरे से बढिया लड़की की तलाश थी ?” - वह संदिग्ध स्वर से बोली ।
“नहीं, मुझे तो तिन-हा को तलाश थी । मुझे मालूम था कि वह बढिया लड़की है ।”
“गुड !” - वह सन्तुष्ट स्वर से बोली - “अब चलो यहां से ।”
“कहां ?”
“बाहर पहले किसी बढिया होटल में खाना खायेंगे फिर चलेंगे ।”
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“मुझे मादाम के लिए पांच डालर दे दो ।” - वह बोली ।
सुनील ने उसे पांच डालर दिये । उसने वे नोट मादाम को दे दिये ।
“फिर आना ।” - मादाम दांत निकालकर बोली ।
“आऊंगा ।” - सुनील बोला और लड़की के साथ बाहर निकल आया ।
वह उसे अच्छे होटल में ले गई ।
दोनों एक केबिन में जा बैठे ।
लड़की ने खाने का आर्डर दे दिया ।
“खाना आधा घन्टे से पहले नहीं आयेगा ।” - वह बोली और अपनी ड्रेस की जिप खोलने लगी ।
“अभी नहीं ।” - सुनील बोला ।
“क्यों ?” - वह हैरानी से बोली ।
“खाने के बाद होटल में, पहले मैंने तुमसे होटल में कुछ बातें करनी हैं ।”
“आल राइट ।” - वह बोली और जिप बन्द कर दी ।
सुनील ने अपनी जेब से तिन-हा की तस्वीर निकालकर उसके सामने रख दी ।
लड़की चौंक पड़ी लेकिन फिर भी धैर्यपूर्ण स्वर से बोली - “यह क्या है ?”
“यह तिन-हा की तस्वीर है ।” सुनील ने बताया ।
“फिर ?”
“तुम तिन-हा नहीं हो ।”
“हां मैं तिन-हा नहीं हूं ।” - उसने निडर स्वर से कहा - “मेरा नाम ली-आन है । मुझे क्या मालूम था कि तुम्हारे पास तिन-हा की तस्वीर है । मादाम तो कहती थी कि तुम केवल नाम जानते हो सूरत नहीं । इसलिए मैं तुम्हारे लिए तिन-हा बन गई । लेकिन मिस्टर, मैं तिन-हा से ज्यादा खूबसूरत हूं ।”
“तुम तिन-हा को जानती हो ?”
“जानती हूं ।” - वह बोली - “खूब जानती हूं । आज से दो साल पहले वह और मैं इकट्ठे मकाउ से भागकर हांगकांग आये थे । वह भी तो एम्पायर होटल में ही रहती थी ।”
“तुम कब से वहां रहती हो ?”
“डेढ साल से ।”
“डेढ साल से ?”
“हां, अगर तुम्हें तिन-हा के बारे में ही कुछ पूछना था तो होटल में ही पूछ लेते ।”
“क्या मालूम था कि तुम यहां डेढ साल से रहती हो । मैंने तो तुम्हें अपनी ही तरह मुसाफिर समझा था । मैंने होटल के बूढे क्लर्क से पूछने की कोशिश की थी लेकिन वह बोला - मुझे अंग्रेजी नहीं आती ।”
“वह झूठ बोलता है । चिंग एक बेहद हरामजादा आदमी है । मुफ्त में तो वह अपनी उंगली हिलाने को तैयार नहीं है । उसका रिकार्ड चालू करने के लिए तुम्हें चाहिए था कि तुम उसे दस डालर देते ।”
“उसे अंग्रेजी आती है ?”
“खूब आती है ।”
“खैर, छोड़ो ।” - सुनील बोला - “तुम तिन-हा की बातें करो ।”
“क्या ?”
“वह काम क्या करती थी ?”
“शुरू में तो वह यही काम करती थी जो मैं करती हूं ।” - ली-आन ने कहा - “लेकिन बाद में तो वह कहती थी कि उसे रुपया कमाने का एक ज्यादा आसान धन्धा मिल गया है ।”
“क्या ?”
“यह मुझे मालूम नहीं । लेकिन उसने टूरिस्टों का मनोरंजन करना बन्द कर दिया था । उसके पास बहुत डालर होते थे और वह बहुत खुश रहती थी । कई-कई दिन वह होटल से गायब रहा करती थी । जब लौटकर आती थी तो उसके पास बहुत धन होता था । मैं समझती थी कि शायद उसने कोई मोटा टूरिस्ट फांस लिया है, लेकिन वह कहती थी ऐसी बात नहीं है । धन्धा कोई और ही था लेकिन वह उस बारे में कुछ बताती नहीं थी । जिन्दगी में यही एक बात थी जो तिन-हा ने मुझसे छुपाई ।”
“फिर ?”
“उसने रमेश कपूर नाम के एक हिन्दोस्तानी से शादी कर ली ।”
“रमेश कपूर ?”
“हां, रमेश कपूर । उसके पास भी बहुत धन था । शादी के बाद तो वे दोनों बहुत कम ही एम्पायर होटल में आया करते थे ।”
“कहां जाते थे वे ?”
“मुझे नहीं मालूम । लेकिन मेरी और सहेलियों ने एक-दो बार कपूर को रिपल्स वे पर देखा । वहां एक बहुत खूबसूरत सफेद बंगला है । जिसकी सीढियां एकदम समुद्र में उतर जाती हैं और बंगले वालों का अपना प्राईवेट हार्बर है ।”
“मोटर लांच भी है ?” - सुनील ने सतर्क स्वर में पूछा ।
“एक क्या, कई हैं । दो-तीन तो वहां अक्सर ही खड़ी रहती हैं और बाहर से भी आती रहती हैं ।”
“उनमें कौन लोग आते हैं ?”
“मुझे क्या मालूम ? मैंने तो एक बार उनकी सूरतें देखी थीं । मुझे तो सारे ही भयानक गुण्डे मालूम होते थे ।”
“अच्छा, रमेश कपूर उस बंगले में जाता था ?”
“हां, और तिन-हा भी जाती थी । मेरा तो ख्याल है, तिन-हा ही उसे वहां लेकर जाया करती थी ।”
“बंगले का मालिक कौन है ?”
“एक अंग्रेज औरत और आदमी वहां पर पक्के रहते हैं लेकिन यह नहीं मालूम कि वे इस बंगले के मालिक हैं या किरायेदार ।”
“रिपल्स वे पर यह बंगला कहां है ?”
“कहां है क्या ? एक ही तो इतना शानदार सफेद बंगला है वहां । तुम चाह कर भी उसे मिस नहीं कर सकते ।”
उसी क्षण वेटर खाना ले आया ।
ली-आन सारे तकल्लुफ छोड़कर एकदम खाने पर टूट पड़ी ।
सुनील ने भी खाना आरम्भ किया ।
चीनी ढंग का बना भोजन बेहद स्वादिष्ट था ।
ली-आन ने जी भरकर खाया ।
खाने की क्वालिटी के हिसाब से बिल बेहद कम था ।
“मुझे एक सिगरेट दो ।” - वह तृप्तिपूर्ण स्वर से बोली ।
सुनील ने उसे एक सिगरेट दिया और खुद भी सिगरेट सुलगा लिया ।
“अब चलो ।” - वह बोली ।
“कहां ?”
“होटल में । पेट भर खाना खाने के बाद मुहब्बत करने में बड़ा मजा आता है ।”
“चलो ।” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला ।
दोनों होटल से बाहर निकल आये और नादर्न रोड पर चलने लगे ।
“मुझे एक अंगूठी खरीद दो ।” - एकाएक वह बोली ।
“क्या ?”
“अंगूठी ! अंगूठी ! रिंग, महंगी नहीं । कोई सस्ती-सी ही । मुझे अंगूठी पहनने का शौक है ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला । ली-आन की आदतें उसे बड़ी बचकानी लग रही थीं ।
वह उसे एक दुकान में ले गई । एक चीनी सैल्जमैन ने मुस्कराकर उसका स्वागत किया और ली-आन के कहने पर उसे अंगूठियां दिखाने लगा ।
ली-आन ने एक अंगूठी चुन ली । वह बड़ी घटिया अंगूठी थी । उस पर बड़ा-सा काला पत्थर जड़ा हुआ था । सैल्समैन ने उसकी कीमत पचास डालर बताई । ली-आन दस मिनट तक उससे हुज्जत करती रही । अन्त में सैल्जमैन ने सत्ताइस डालर में उसे अंगूठी दे दी ।
सुनील ने नोट दे दिये और वे वापस आ गये ।
ली-आन वह अंगूठी पहनकर बेहद खुश थी ।
“इस अंगूठी के कारण मैं तुम्हें हमेशा याद रखूंगी ।” - वह बोली - “अरे ! एक बात तो मैं भूल ही गई.. नाम क्या है तुम्हारा ?”
“सुनील ।” - सुनील बोला ।
“शो-नील ?”
“नहीं । सुनील ।”
“सूनील । सूनील । कितना अच्छा नाम है ।”
सुनील चुप रहा ।
“टैक्सी ले लो ।” - वह बोली ।
सुनील ने एक टैक्सी वाले को आवाज दी ।
टैक्सी फुटपाथ पर उसके सामने आ खड़ी हुई ।
उसी क्षण एक चीनी उसके साथ टकरा गया । दो चीनी उसके साथ और थे । तीनों सुनील से झुक झुक कर माफी मांगने लगे । कुछ क्षण यूं ही सुनील को घेरे रहने के बाद वे एक कार की ओर बढ गये ।
सुनील ने घूरकर देखा ।
ली-आन गायब थी । जैसे उसे फुटपाथ की कठोर जमीन निगल गई हो ।
***
सुनील एक घण्टे तक ली-आन को नादर्न रोड पर ढूंढता रहा और फिर वापिस होटल लौट आया ।
बूढा चीनी पहले की तरह ऊंघ रहा था ।
“ली-आन वापिस आई है ?” - सुनील ने उसे एक डालर का नोट देते हुए पूछा ।
बूढे ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“तुम्हारे पास टेलीफोन है ?”
बूढे ने काउण्टर के नीचे से टेलीफोन निकालकर उसके सामने रख दिया ।
“डायरेक्ट्री भी दो ।”
बूढे ने डायरेक्ट्री भी दे दी ।
सुनील ने डायरेक्ट्री में पुलिस सुपरिटेन्डेन्ट पार्कर का नम्बर देखा और फिर वह नम्बर डायल कर दिया ।
“पार्कर ।” - दूसरी ओर से कोई बोला ।
“मिस्टर पार्कर ।” - सुनील बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं । मिस्टर मुखर्जी ने...”
“हां-हां मैं जानता हूं ।” - पार्कर एकदम बोल पड़ा - “कब आये ?”
“आज ही आया हूं ।”
“मेरे पास नहीं आये ?”
“मौका नहीं लगा । और सच पूछिये तो मैं तभी आपके पास आना चाहता हूं, जब मुझे आपकी सख्त जरूरत हो ?”
“आल राइट । अब कैसे फोन किया मुझे ?”
“मेरे साथ ली-आन नाम की एक चीनी लड़की थी । वह एकाएक नादर्न रोड से गायब हो गई ।”
“फिर ?”
“मेरे ख्याल से वह जबरदस्ती मुझसे अलग कर दी गई है ।”
“क्यों ?”
“जिस केस की तफ्तीश के सिलसिले में मैं यहां आया हूं, वह उसके बारे में बहुत कुछ जानती थी ।”
“और तुम समझते हो कोई उसे जबरदस्ती भगाकर ले गया ?”
“हां ।”
“बरखुरदार, मैं पन्द्रह साल से हांगकांग में रह रहा हूं और मेरे ख्याल से हांगकांग की लड़कियों की मेरे से ज्यादा जानकारी किसी को नहीं है । तुम उसके लिये खामखाह परेशान हो रहे हो । हुआ यह होगा कि उसको कोई तुमसे ज्यादा तगड़ा ग्राहक मिल गया होगा और वह तुम्हें छोड़कर भाग गई होगी ।”
“क्या ऐसा हो सकता है ?”
“हुआ ही ऐसा है । ये चीनी रण्डियां एतबार के काबिल चीज नहीं हैं ।”
“आल राइट ।” - सुनील दुख भरे स्वर से बोला - “थैंक्यू ।”
“तुम ठहरे कहां हो ?” - पार्कर ने पूछा ।
“वांचाई के एम्पायर होटल में ।”
“मेरे यहां आ जाओ ।”
“नहीं, ठीक है । थैंक्यू ।” - और सुनील ने रिसीवर रख दिया और वापिस अपने कमरे में आ गया ।
उसने कपड़े बदले और सो गया ।
कमरे का द्वार खटखआये जाने पर उसकी नींद खुल गई ।
उसने घड़ी देखी । बारह बजने को थे । उसने द्वार खोला । बाहर एक चीनी लड़का खड़ा था ।
टेलीफोन फार मिस्टर जेन्टलमैन । वह बोला ।
सुनील उसके साथ नीचे आ गया ।
काउन्टर पर बूढा नहीं था । लड़के ने रिसीवर उसके हाथ में दे दिया ।
“हैल्लो । सुनील हियर ।” - वह नींद-भरे स्वर से बोला ।
फोन-सुपरिटेंडेंट पार्कर का था ।
“तुम जिस लड़की का जिक्र कर रहे थे उसकी कुछ पहचान बता सकते हो ?”
“मुझे तो सारी ही चीनी लड़कियां एक जैसी लगती हैं, पार्कर साहब । हां, मैंने उसे एक लाल पत्थर की अंगूठी खरीद कर दी थी ।”
“लाल पत्थर की अंगूठी ! सुनील, तुम टैक्सी लेकर चेथम रोड पुलिस स्टेशन पहुंच जाओ । वहां एक लड़की है । उसकी अंगुली में लाल पत्थर की अंगूठी है, शायद वह वही लड़की हो ।”
“आल राइट ।” - सुनील बोला ।
“वहां इंस्पेक्टर वास के पास चले जाना ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर रख दिया ।
उसने कपड़े बदले । होटल से बाहर आकर टैक्सी ली और चेथम रोड स्थित पुलिस स्टेशन पर पहुंच गया ।
उसने इंस्पेक्टर वास को अपना परिचय दिया ।
“कहां है वह लड़की ?” - सुनील ने पूछा ।
वास सुनील को एक गलियारे में ले जाता हुआ एक कमरे के सामने ले आया । कमरे के द्वार पर लिखा था - मोर्ग ।
सुनील का दिल डूबने लगा ।
वास ने द्वार खोला । दोनों भीतर घुस गये । वास ने बत्ती जला दी ।
एक बहुत बड़ी एयर कंडीशण्ड कैबिनेट में ताबूतों जैसे लोहे के दराज लगे हुए थे ।
वास ने पूरा दराज बाहर खींच लिया ।
“देखो ।” - वह बोला ।
सुनील सांस रोके आगे बढा और उसने दराज के भीतर झांका ।
भीतर ली-आन की लाश पड़ी थी । लाल पत्थर की अंगूठी अब भी उसकी उंगली में थी ।
“यही ली-आन है ।” - सुनील कठिन स्वर से बोला ।
वास ने दराज बन्द कर दिया और कमरे से बाहर की ओर चल दिया ।
“यह कहां मिली आपको ?” - सुनील ने पूछा ।
“यह लाश” - वास बोला - “विक्टोरिया हार्बर के पास समुद्र में से निकाली गई ।”
“किसी ने हत्या की है उसकी ?”
“अभी पोस्टमार्टम नहीं हुआ लेकिन जरूरी नहीं है इसकी हत्या हुई हो । हम लोग हर रोज तीन-चार चीनी नौजवान, चीनी लड़कियां समुद्र में से निकाल कर या हांगकांग की अंधेरा गलियों में से उठवा कर लाते हैं । हांगकांग में जिन्दगी बहुत सस्ती है साहब ।”
सुनील चुप रहा । बहस करना बेकार था । वास उसे हत्या का केस मानकर हत्यारे को ढूंढने की जहमत नहीं लेना चाहता था, विशेष रूप से जब मामला एक लावारिस चीनी वेश्या का हो ।
सुनील ने वास से हाथ मिलाया और भारी मन से वापिस लौट आया ।
***
अगले दिन सुबह ।
सुनील अपने कमरे से निकला और नीचे बूढे चीनी काउन्टर क्लर्क के पास पहुंचा ।
बूढे ने हमेशा की तरह ऊंघते हुए उसे देखा और दृष्टि झुका ली ।
सुनील ने दस डालर का नोट बूढे के सामने रख दिया ।
बूढे की आंखें दिलचस्पी से चमक उठीं ।
“यस सावी ।” - वह बोला ।
“यू स्पीक इंगलिश ?” - सुनील ने पूछा ।
बूढे की लम्बी पतली उंगलियों ने नोट उठा लिया । अगले ही क्षण नोट उसके लम्बे चौगे में कहीं गायब हो गया ।
“यस सावी ।” - वह बोला ।
सुनील ने तिन-हा और रमेश कपूर की तस्वीरें निकालकर उसके सामने रख दीं ।
“इन्हें पहचानते हो ?” - उसने पूछा ।
बूढे ने दोनों तस्वीरें देखीं और बोला - “ये दोनों इसी होटल में रहते थे । आदमी कोलून के इलाके में एक दुर्घटना में मर गया था चीनी लड़की उसकी बीवी थी ।”
“दुर्घटना कैसे हो गई ? लाश की शिनाख्त किसने की थी ?”
“दुर्घटना कैसे हुई, मुझे ठीक-ठीक मालूम नहीं । वैसे सुना है कि बारिश के कारण सड़क गीली थी और वह बहुत तेज गाड़ी चला रहा था । गाड़ी कहीं टकरा कर उलट गई थी और उसे आग लग गई थी । पुलिस के पहुंचने तक लाश एकदम झुलस चुकी थी । तिन-हा ने ही किसी प्रकार उसकी शिनाख्त की थी ।”
“अब तिन-हा कहां है ?”
“पता नहीं । पन्दरह बीस दिन पहले वह चुपचाप होटल छोड़कर चली गई थी । वह होटल का बिल भी नहीं देकर गई ।”
“जाती बार वह अपने कमरे में कोई सामान छोड़ गई थी ?” - सुनील ने सहज स्वर से पूछा ।
“नहीं ।” - बूढा बोला - “वह सब कुछ साथ ले गई थी ।”
बूढा सुनील के ट्रैप-क्वेश्चन में फंस गया ।
“जब उसने अपना बिल नहीं दिया ।” - सुनील एकदम कठोर स्वर से बोला - “तो तुमने उसे अपना सामान कैसे ले जाने दिया ?”
बूढा घबरा गया । वह मरे स्वर से बोला - “मैंने उसका एक सूटकेस जबरदस्ती रख लिया था ।”
“कहां है वह ?”
बूढ चुप रहा ।
“सूटकेस निकालो ।” - सुनील बोला ।
बूढा सिहर गया । वह एकदम उठा और काउन्टर के पीछे के कमरे में घुस गया ।
थोड़ी देर बाद उसने एक सूटकेस लाकर काउन्टर पर रख दिया ।
“खोलो इसे ।” - सुनील बोला ।
बूढे ने एक चाबी निकाली और सूटकेस खोल दिया ।
सुनील ने देखा सूटकेस में कपड़ों के अतिरिक्त कुछ नहीं था । सुनील ने सारे कपड़े बाहर निकाल दिये । नीचे एक भूरे रंग का बड़ा सा लिफाफा रखा था । उसने लिफाफा खोला । भीतर एक कैबिनेट साइज का तिन-हा और रमेश कपूर का फोटो था और एक तह किया हुआ लम्बा-सा कागज था ।
सुनील ने वह कागज खोला ।
वह तिन-हा और रमेश कपूर की शादी का सार्टीफिकेट था । गवाहियों की जगह दो नाम लिखे थे । हाई-तों और चुंग यांग थी ।
सुनील ने दोनों चीजें लिफाफे में डालकर लिफाफा अपनी जेब में रख लिया ।
बूढे ने प्रतिवाद नहीं किया ।
“मैं रमेश कपूर का रिश्तेदार हूं ।” - वह बोला - “अगर कोई बदमाशी नहीं करोगे तो तिन-हा बिल मैं चुका दूंगा ।”
बूढे की आंखें चमक उठीं ।
“रिपल्स वे पर कोई बढ़िया सा होटल है ?”
“यस सावी । रिपल्स वे होटल है ।”
“मेरा बिल तैयार कर दो । मैं वहां जा रहा हूं ।”
बूढे ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
***
रिपल्स वे होटल एकदम समुद्र के सामने था और ली-आन का बताया हुआ सफेद बंगला वहां से दिखाई देता था ।
जो पोर्टर सुनील का सामान होटल के कमरे में रखने आया, सुनील ने उससे पूछा - “उस सफेद बंगले में कौन रहता है ?”
“उस बंगले में विल्सन साहब रहते हैं साहब ।” - पोर्टर बोला ।
“और कौन-कौन रहता है वहां ?”
“एक उसकी बहन रहती है, बाकी नौकर-चाकर हैं ।”
“विल्सन साहब करते क्या हैं ?”
“मुझे नहीं मालूम, साहब ।”
“रईस आदमी हैं ?”
“बेहद ।”
सुनील ने उसे टिप देकर विदा किया ।
सुनील ने देखा होटल का कमरा बहुत शानदार था । बाथरूम तक में टेलीफोन लगा हुआ था ।
लगभग आधे घन्टे बाद वह स्वीमिंग कास्ट्यूम पहने हुए बीच पर फैली हुई भीड़ का एक अंग बना हुआ था ।
उसने एक छोटी सी मोटरबोट किराये पर ली और उसे धीमी गति से समुद्र में चलाने लगा ।
थोड़ी देर बाद उसने बड़ी लापरवाही से मोटरबोट को सफेद बंगले की दिशा में मोड़ दिया ।
सुनील को उनके प्राइवेट हार्बर पर सीढियों के नीचे दो तीन बड़ी-2 मोटर लांच तैरती दिखाई दे रही थीं ।
वह दूर से ही सफेद बंगले का निरीक्षण करने लगा । बंगला तीन मंजिला था और साथ ही बहुत शानदार था ।
उसी क्षण सुनील को दूसरी मंजिल की एक खिड़की में दो रोशनी के धब्बे से चमकते दिखाई दिये । कोई उसे दूरबीन से देख रहा था और दूरबीन के शीशे सूर्य की किरणों से चमक रहे थे ।
सुनील ने मोटरबोट मोड़ दी और वापिस बीच की ओर चल दिया ।
मोटरबोट के साथ-साथ ही दूरबीन का कोण भी बदल रहा था ।
सुनील वापिस बीच पर पहुंच गया ।
वह बीच की रेत में आ लेटा । उसने अपने नेत्र बन्द कर लिये और अपने अगले कदम के विषय में सोचने लगा ।
एक घन्टे तक वह यूं ही ऊंघता रहा ।
एकाएक उसे यूं लगा जैसे कोई उसके बहुत समीप से गुजर गया हो ।
उसने आंखें खोलकर देखा ।
वह एक लम्बे ऊंचे कद की बेहद सुडौल यौरोपियन लड़की थी । उसने एक टू पीस स्वीमिंग सूट पहना हुआ था और सूर्य की किरणों की गर्मी में उसका शरीर सोने की तरह चमक रहा था ।
बीच पर मौजूद हर पुरुष की निगाह उसी पर टिकी हुई थी ।
वह समुद्र के पानी में घुस गई । गहरा पानी आने के बाद वह एक दक्ष तैराक की तरह समुद्र में तैरने लगी । दूर समुद्र में एक लकड़ी के समतल प्लेटफार्म सा बजरा तैर रहा था ।
लड़की उस बजरे पर चढ गई और फिर उस पर चित्त लेट कर सुस्ताने लगी ।
सुनील भी पानी में घुस गया ।
थोड़ी ही देर बाद वह तैरता हुआ उस बजरे के पास जा पहुंचा ।
“तनहाई बहुत पसन्द है तुम्हें ?” - वह यूं बोला जैसे उसे वर्षों से जानता हो ।
लड़की ने आंखें खोलीं, करवट बदली और अपनी हथेली पर सर टिकाये उसे देखने लगी ।
“हां ।” - थोड़ी देर बाद उसने उत्तर दिया ।
“तो फिर मैं चला जाऊं ?” - सुनील ने मासूम स्वर से पूछा ।
“नहीं ।” - वह बोली - “अब आ ही गये हो तो ठहरो ।”
उसके नेत्र दिलचस्पी से चमक रहे थे ।
“टूरिस्ट हो ?”
“हां ।”
“इटेलियन ?”
“क्या मैं इटेलियन लगता हूं ?”
“हां ।”
“मैं हिन्दुस्तानी हूं ।”
“अच्छा, हिन्दुस्तानी भी इतने खूबसूरत होते हैं ?”
सुनील चुप रहा ।
“मेरा नाम ट्रेसी विल्सन है ।” - उसने बताया ।
“मैं सुनील हूं ।”
“होटल में ठहरे हो ?”
“हां, तुम ?”
“मैं तो अपने भाई के साथ उस सामने वाले सफेद बंगले में रहती हूं ।”
सुनील का दिल धड़कने लगा । संयोगवश ही उसकी मुलाकात विल्सन साहब की बहन से हो गई थी ।
“उस सफेद बंगले में तो मेरा एक दोस्त भी रहा करता था ।” - सुनील सहज स्वर से बोला ।
“हमने तो वह बंगला किराये पर लिया है । वह हमसे पहले रहता होगा । क्या नाम था उसका ?”
“रमेश कपूर ।”
ट्रेसी एकदम चौंक पड़ी ।
“तुम जानते थे उसे ?” - वह उसे घूरती हुई बोली ।
“वह मेरा बड़ा पक्का दोस्त था ।”
“वह तो बेचारा कोलून में ही एक मोटर एक्सीडेन्ट में मर गया था, तुम जानते ही होगे ?”
सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“दरअसल वह उस बंगले में रहता नहीं था वह मेरे भाई का दोस्त था इसलिये उससे मिलने चला आया करता था ।”
“तुम्हारा भाई क्या करता है ?”
“कुछ नहीं । वह हांगकांग पर एक किताब लिख रहा है । इसलिये यहां रहता है ।”
“तुम रमेश कपूर की चीनी बीवी को भी जानती थी ?”
“हां, वह भी हमारे यहां आया करती थी ।”
उसी क्षण मोटर चलने की तेज आवाज से उनका ध्यान समुद्र की ओर चला गया ।
मोटरबोट बजरे के साथ आ लगी । स्टियरिंग पर एक लगभग चालीस साल का अंग्रेज बैठा था ।
“हैलो !” - ट्रेसी उठकर बोली ।
“खाने का समय हो गया है ।” - वह आदमी बोला - “सोचा तुम्हें ले चलूं । ..यह कौन साहब है !”
“इसका नाम सुनील है । संयोगवश ये रमेश कपूर के मित्र है । रमेश कपूर तुम्हारा मित्र था । इसलिये ये तुम्हारे मित्र हुए । मिस्टर, यह मेरा भाई है ।”
सुनील ने उसका अभिवादन किया ।
“आइये, आप भी हमारे साथ खाना खाइये आज ।” - विल्सन मित्रतापूर्ण स्वर से बोला ।
“जी नहीं, आज नहीं ।” - सुनील ने शिष्टता से उत्तर दिया ।
“तो फिर आप आज रात को डिनर पर आइये ।”
सुनील कुछ क्षण तो हिचकिचाया और फिर बोला - “आल राईट । आई विल हैव दि डिनर ।”
“आप रिपल्स वे होटल में ठहरे हैं न ?”
“हां ।”
“मैं आठ बजे मोटरबोट भेज दूंगा आप तैयार रहियेगा । हमारे बंगले तक पहुंचने का यही एक तरीका है । आप तैयार रहियेगा ।”
“अच्छा ।”
“चलिये आपको मोटरबोट पर किनारे तक छोड़ आयें ।”
“नहीं आप तकलीफ मत कीजियेगा । मैं तैरकर जाऊंगा ।”
“जैसी आपकी इच्छा ।” - वो बोला ।
ट्रेसी मोटर बोट में जा बैठी ।
सुनील ने दोनों का अभिवादन किया । मोटरबोट चल पड़ी ।
सुनील भी वापिस बीच की ओर तैर गया ।
शाम को ठीक आठ बजे सुनील बीच पर आ खड़ा हुआ ।
विल्सन उसे खुद लेने के लिये आया ।
सुनील उसकी खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुआ ।
ट्रेसी एक शानदार गाउन पहने हुए थी और कृत्रिम प्रकाश में और भी खूबसूरत लग रही थी ।
तीनों डायनिंग टेबल पर आ बैठे ।
चीनी ढंग का खाना सर्व किया गया ।
खाने के दौरान में हल्की-फुल्की बातें होती रहीं । किसी ने भी रमेश कपूर का जिक्र नहीं किया ।
सुनील ने भी उस विषय में चुप रहना ही उचित समझा ।
खाने के दौरान में हर क्षण सुनील को यह अनुभव होता रहा जैसे उसे कोई वाच कर रहा हो । सुनील ने दो तीन बार बहाने से आसपास नजर दौड़ाई लेकिन उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया ।
जहां सुनील बैठा हुआ था उसके एकदम सामने दीवार पर एक शीशा लगा हुआ था । सुनील ने आसपास देखना बन्द कर दिया और थोड़ी-थोड़ी देर के बाद शीशे में देखने लगा ।
एक बार उसे वह दिखाई दिया । वह उसकी पीठ के पीछे की ओर से एक दरवाजे की ओट में से बड़े गौर से देख रहा था । एक क्षण के लिए शीशे में उसकी नजर सुनील से मिली और फिर वह गायब हो गया ।
लेकिन एक क्षण में ही सुनील ने उसे पहचान लिया । वह वही गंजा चीनी था जो कि उसे कोलून के हवाई अड्डे पर मिला था ।
भोजन समाप्त करके वे उठे और टैरेस में आ बैठे ।
नौकर काफी सर्व कर गया ।
बंगले की टैरेस से हांगकांग का बड़ा सुन्दर दृश्य दिखाई देता था । विल्सन वाकई बहुत शानदार जगह में रहता था ।
“कल तुम मेरे साथ चलो ।” - एकाएक ट्रेसी सुनील से बोली ।
“कहां ?” - सुनील ने काफी की चुस्की लेते हुए पूछा ।
“सिल्वर माईन वे ।”
“वहां क्या है ?”
“इसका तो दिमाग खराब है ।” - एकाएक विल्सन बोला - “हमारे यहां एक नौकर था । वह बहुत बूढा हो गया था । इसलिये उसे नौकरी से निकालना पड़ा । अब वह सिल्वर माईन वे के पास रहता है । ट्रेसी हर पन्द्रह दिन के बाद उसका हालचाल पूछने जाती है ।”
“बेचारा भला आदमी है ।” - ट्रेसी बोली ।
“वैसे वहां एक खूबसूरत झरना भी है ।” - विल्सन बोला - “अच्छा है आप हो आइये ।”
“मैं चलूंगा ।” - सुनील ट्रेसी से बोला ।
“गुड !” - ट्रेसी बोली - “सिल्वर माईन वे को स्टीमर जाते हैं । मैं दो बजे हार्बर पर आ जाऊंगी । तुम मुझे वहीं मिलना । अच्छा ।”
“आल राईट !” - सुनील उठ कर खड़ा हुआ - “अब मैं चलता हूं ।”
“अच्छा ।” - ट्रेसी भी उठ खड़ी हुई ।
“चलो, मैं तुम्हें छोड़ आऊं ।” - विल्सन बोला ।
तीनों बंगले से बाहर सीढियों पर आ गये ।
विल्सन और सुनील एक मोटरबोट में आ बैठे । ट्रेसी सीढियों में ही खड़ी थी ।
“गुड नाईट ।” - सुनील बोला ।
“गुड नाईट ।” - ट्रेसी ने उत्तर दिया ।
विल्सन उसे बीच पर ले आया ।
“अभी हांगकांग में कुछ दिन ठहरोगे न ?” - विल्सन ने पूछा ।
सुनील सतर्क स्वर से बोला - “नहीं, एक दो दिन में चला जाऊंगा ।”
“फिर कभी आना ।” - वह बोला ।
“अच्छा ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
मोटरबोट वापिस चली गई ।
***
अगले दिन सुबह सुनील पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
वह सुपरिटेण्डेन्ट के कमरे में पहुंचा ।
सुनील ने उसे अपना परिचय दिया । उसने सुनील से हाथ मिलाया ।
पार्कर सुनील को बड़ा सख्त मिजाज आदमी लगा ।
“मैं आपसे कुछ जानकारी चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“कहो ।”
“आप चुगयांग की नाम के किसी आदमी को जाते हैं जो रमेश कपूर से सम्बन्धित हो ?”
“तुम्हारी क्या दिलचस्पी है उसमें ?” - पार्कर एकाएक दिलचस्पी लेता हुआ बोला ।
“चुंगयांग की रमेश कपूर और तिन-हा की शादी का एक गवाह था ।”
“हांगकांग पुलिस का एक-एक अधिकारी जानता है उसे ।” - पार्कर ने बताया - “वह हेरोईन का एक बहुत बड़ा स्मगलर है ।”
“उसको हांगकांग में कहीं तलाश किया जा सकता है ?”
“हांगकांग में नहीं है वह । हम खुद उसकी तलाश में है । पिछली बार वह हमारी पकड़ में आता-आता रह गया था और फिर वह एकाएक हांगकांग से गायब हो गया था । हांगकांग में नहीं है वह इस बात की मैं गारन्टी करता हूं । मेरे ख्याल से तो वह मकाओ या केन्टन भाग गया ।”
“आपने वहां पूछताछ नहीं करवाई ?”
“मकाओ में करवाई थी । वह वहां नहीं है । केन्टन में पूछताछ करवाने के साधन हमारे पास नहीं हैं ।”
“आखिरी बार आपने उसे हांगकांग में कब देखा था ?”
“इसी महीने की पांच तारीख को ।”
“अर्थात् रमेश कपूर की मृत्यु से दो दिन पहले ?”
“हां । हमें विश्वस्त सूत्रों से पता चला था कि वह हेरोईन की बहुत बड़ी मात्रा हांगकांग से निकालकर भारत ले जाने वाला है । हम कोलून में उसके लिये जाल बिछाये बैठे रहे लेकिन वह हमारे जाल में फंसा ही नहीं । भगवान जाने वह कहां गायब हो गया था ।”
“शादी की दूसरी गवाह हाई-तों नाम की कोई औरत थी । उसके बारे में...”
“मैं कुछ नहीं जानता ।” - पार्कर पहले ही बोल पड़ा ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“थैंक्स फार दि हेल्प ।” - वह हाथ बढाता हुआ बोला ।
“कम अगेन ।” - पार्कर उससे हाथ मिलाता हुआ बोला ।
सुनील बाहर निकल आया ।
कुछ देर वह क्लीन्स रोड पर टहलता रहा और फिर एक टैक्सी लेकर वांचाई पहुंच गया ।
वह उस बार में घुस गया जहा चीनी लड़कियों की दलाल औरत मिली थी ।
बार में भीड़ नहीं थी । सुनील एक खाली मेज पर जाकर बैठ गया ।
मालिक उसे देखते ही पहचान गया । वह स्वयं सुनील की मेज पर आया ।
“गुड मार्निंग सर ।” - वह बोला - “आई एम हैपी टू सी यू अगेन । ए ड्रिंक और लैंच ?”
“ड्रिंक स्काच एण्ड सोडा ।” - सुनील बोला - “मादाम कहां है आज ?”
“यहीं है । बुलाऊं ?”
“हां-हां, बुलाओ ।”
मालिक मुस्कराता हुआ वहां से हट गया ।
थोड़ी देर बाद ही मादाम अपने सोने से मढे दांत चमकाती हुई सुनील की मेज पर आ बैठी ।
“तुमने दोबारा आने के लिए कहा था न, मैं आ गया हूं ।”
सुनील ने कहा ।
“वैरी गुड ।” - मादाम बोली ।
“पिछली बार तो तुमने मुझे धोखा दे दिया । जो लड़की तुमने मेरे साथ भेजी वह तिन-हा नहीं थी ।” सुनील शिकायत भरे स्वर से बोला ।
“लेकिन वह तो तिन-हा से ज्यादा शानदार चीज थी । मेरा ख्याल था तुम ऐतराज नहीं करोगे ।”
“खैर जाने दो । मैं आज एक दूसरी लड़की चाहता हूं । उस का नाम हाई-तों है । तुम जानती हो उसे ?”
“जानती हूं । वह मेरी सबसे शानदार लड़की है ।”
“तुम्हारी तो सारी ही लड़कियां सबसे शानदार हैं ।” - सुनील तनिक चिढकर बोला ।
“यह सच है मिस्टर ! मेरे पास केवल हाई क्लास माल ही रहता है ।”
“लेकिन इस बार कोई धोखा नहीं होना चाहिए ।” - सुनील कठोर स्वर से बोला ।
“नहीं होगा ।” - मादाम ने लापरवाही से उत्तर दिया - “तुम्हें हाई-तों ही मिलेगी, अभी बुलाऊं उसे ?”
“अभी नहीं । मैं रात को नौ बजे के करीब आऊंगा । उसे मेरे लिये तैयार रखना । अगर वह हाई-तों ही हुई तो मैं इस बार तुम्हें पचास डालर दूंगा ।”
मादाम के नेत्र चमक उठे ।
“वह हाई-तों ही होगी ।” - वह दृढ स्वर से बोली ।
“मैं नौ बजे आ जाऊंगा ।” - सुनील बोला और उठ खड़ा हुआ ।
***
सुनील स्टीमर के फर्स्ट क्लास डैक के रेलिंग पर खड़ा ट्रेसी की प्रतीक्षा कर रहा था । स्टीमर खचाखच भर चुका था और उसके छूटने में केवल पांच मिनट शेष थे लेकिन ट्रेसी अभी तक नहीं आई थी ।
सुनील नीचे थर्ड क्लास की भीड़ में झांकने लगा । डेक चीनी बच्चों, औरतों और कुलियों से खचाखच भरा हुआ था ।
एकाएक सुनील चौंक गया ।
नीचे की भीड़ में वह गंजा चीनी भी मौजूद था, जो उसे पहले हवाई अड्डे पर मिला था और जिसे फिर उसने पिछली रात को विल्सन के बंगले पर देखा था । थोड़ी ही देर में गंजा चीनी भीड़ में कहीं गायब हो गया ।
सुनील चिंतित हो उठा ।
स्टीमर चलने से केवल एक मिनट पहले ट्रेसी आई । वह टाईट पतलून और बुशर्ट पहने हुए थी । उसके हाथ में एक बेंत थी, टोकरी थी, जिसमें तरह-तरह का खाने का सामान भरा हुआ था ।
“सारी” - वह बोली - “मुझे देर हो गई ।”
सुनील केवल मुस्करा दिया ।
सिल्वर माइन वे पहुंचने तक वे लोग हल्की-फुल्की बातें करते रहे ।
दोनों किनारे पर उतर गये ।
“मैं अपने काम जाती हूं ।” - ट्रेसी बोली - “तब तक तुम जल प्रपात देख आओ ।”
“अच्छा ।”
“तुम यहां से सीधे चले आओ ।” - ट्रेसी उसे रास्ता बताती हुई बोली - “इस पहाड़ी की गोलाई में घूमते हुए तुम दूसरी ओर पहुंच जाओगे । आगे एक पुल आयेगा । उसे पार करके आगे बढ जाना । उससे आगे एक और पुल है । उसे पार करते ही तुम जल-प्रपात के सामने पहुंच जाओगे ।”
“अच्छा ।”
“पांच बजे स्टीमर वापिस जाता है । तब तक यहां पहुंच जाना ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला ।
ट्रेसी उससे विपरीत दिशा में चल दी ।
सुनील ने आस-पास देखा, उसे गंजा चीनी कहीं दिखाई नहीं दिया । उने लापरवाही से सिर झटका और ट्रेसी के बताये रास्ते पर चल दिया ।
लगभग आधे घण्टे बाद वह जल-प्रपात के सामने जा पहुंचा ।
दृश्य वास्तव में ही शानदार था ।
सुनील कितनी ही देर प्रपात के आसपास घूमता रहा और फिर वापिस चल दिया ।
दो पुलों को पार करके वह पहाड़ी की जड़ में से गुजरती हुई सड़क पर चलने लगा ।
एक ओर ऊंची पहाड़ी थी और दूसरी ओर घाटी की ढलान में हरियाली फैली हुई थी ।
शू की आवाज के साथ एक गोली उसके सिर के पास से होती हुई गुजर गई और फिर उसके साथ राइफल चलने की आवाज आई ।
सुनील एकदम घबराकर जमीन पर लेट गया और फुदकता हुआ सड़क के साथ-साथ ढलान पर उठी लम्बी घास की ओर बढ चला ।
फायर फिर हुआ और गोली सुनील से केवल दो फुट दूर पथरीली जमीन से टकराई । पत्थरों में से चिंगारियों सी फूट निकलीं ।
कोई पहाड़ी के ऊपर से गोली चला रहा था । राइफल की आवाज से पता लगता था कि राइफल वाला काफी दूर था । राइफल वाला पहाड़ी पर था । इसलिये वह उसके सीधे निशाने में था ।
सुनील और तेजी से घास की ओर सरकने लगा ।
तीसरी गोली एकदम सुनील के सिर के पास से गुजर गई ।
शायद हत्यारा टैलीस्कोप वाली राइफल इस्तेमाल कर रहा था ।
सुनील के पसीने छूटने लगे ।
वह जल्दी से एक छोटी सी चट्टान की ओट में हो गया । लेकिन चट्टान उसको कवर कर लेने के लिए काफी नहीं थी ।
दो गोलियां एक साथ चट्टान से टकराई और चट्टान से पत्थरों के चिप्पड़ उखड़ने लगे ।
सुनील ने सिर उठाकर ऊपर पहाड़ी की ओर देखा । उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया, लेकिन वह जानता था कि हत्यारा उसे टैलीस्कोप की सहायता से साफ-साफ देख सकता है ।
सुनील चट्टान से हटकर फिर तेजी से वास की ओर सरकने लगा ।
फायर फिर हुआ लेकिन सुनील बच गया ।
उसकी दाईं ओर एक बेहद गहरी खाई थी । सुनील उसके साथ-साथ होता हुआ घास की ओर बढ रहा था । घास काफी लम्बी थी और उसे आसानी से छुपा सकती थी ।
सुनील को अपना रिवाल्वर साथ न लाने का बेहद अफसोस हो रहा था ।
अब वह लम्बी घास में केवल एक दो फुट ही दूर रह गया था ।
सुनील ने एक जोर की चीख मारी और फिर एक ही धक्के से बड़ा भारी पत्थर खाई में लुढका दिया ।
पत्थर खाई की तलहटी में कहीं टकराया और धड़ाम की आचाज सुनाई दी ।
फिर कोई फायर नहीं हुआ ।
सुनील चुपचाप घास में पड़ा रहा ।
लगभग दस मिनट बाद उसे वहीं गंजा चीनी कन्धे पर राइफल लटकाये पहाड़ी से उतरता दिखाई दिया । उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे । वह लापरवाही से चलता हुआ खाई के पास पहुंचा और नीचे खाई में झांकने लगा ।
सुनील घास में से निकलकर बिजली की तरह गंजे चीनी पर टूट पड़ा । उसके सम्भल पाने से पहले ही सुनील के दोनों पांव दुलत्ती की सूरत में भड़ाक से उसके शरीर के साथ टकराये अपने बचाव के लिये उस चीनी के दोनों हाथ ऊपर को फैले । फिर उसका शरीर अपने स्थान से उछला और फिर एक हृदयविदारक चीख खाई की गहराइयों में डूबती चली गई ।
सुनील ने खाई के पास आकर नीचे झांका । चीनी के शरीर के परखचे उड़ गये थे ।
“बच गये ।” - सुनील बड़बड़ाया और वापिस लौट पड़ा ।
पांच बजने को थे । स्टीमर चलने को तैयार खड़ा था । सुनील स्टीमर में चढ गया ।
ट्रेसी स्टीमर में नहीं थी और न ही स्टीमर चलने तक वह स्टीमर में आई ।
***
रात को ठीक नौ बजे सुनील वांचाई के उस बार में पहुंच गया जहां उसे मादाम मिली थी ।
मादाम फुटपाथ पर ही खड़ी थी । उसने सुनील का अभिवादन किया और बोली - “भीतर बेहद भीड़ है ।”
“लड़की कहां है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हाई-तों यहां आने को तैयार नहीं हुई । तुम्हें उसके अपार्टमैंट में जाना पड़ेगा ।”
“क्यों ?”
“वह हाई क्लास लड़की है इसलिये हाई क्लास ढंग से काम करती है ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “कहां रहती है वह ?”
“टैक्सी बुलाती हूं । टैक्सी वाला तुम्हें वहां ले जायेगा ।”
“अच्छा !” - सुनील अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
मादाम ने एक टैक्सी बुलाई । सुनील उसमें बैठ गया । मादाम ने टैक्सी वाले को चीनी में कुछ कहा । टैक्सी ड्राइवर ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया । फिर उसने सुनील की ओर हाथ बढा दिया ।
“कोई घपला तो नहीं होगा ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं मिस्टर ।”
सुनील ने पचास डालर उसके फैले हुए हाथ पर रख दिये ।
“अगर वह लड़की हाई-तों नहीं हुई तो तुम्हारा गला काट दूंगा ।” - सुनील कठोर स्वर से बोला ।
उत्तर में मादाम ने अपने सोने से मढे दांत दिखा दिये ।
टैक्सी चल पड़ी ।
दस मिनट बाद टैक्सी चीनी इलाके में एक इमारत के सामने रुकी ।
सुनील बाहर निकल आया ।
“चौथी मंजिल पर दाईं ओर वाला अपार्टमेंट है ।” - टैक्सी वाला बोला ।
सुनील ने टैक्सी का बिल दिया और सीढियों के रास्ते निर्देशित फ्लैट के सामने आ पहुंचा ।
उसने द्वार खटखटाया ।
एक खूबसूरत चीनी लड़की ने द्वार खोला ।
“तुम हाई-तों हो ?” - सुनील ने पूछा ।
“यस मिस्टर जेण्टलमैन ।” - वह द्वार से एक ओर हटती हुई बोली ।
सुनील भीतर घुस गया ।
“मादाम ने तुम्हें मेरे बारे में बताया है ?”
“यस ।”
दोनों एक सोफे पर बैठ गये ।
उसने अपनी जेब पैन निकाला और मेज से एक कागज उठाकर दोनों चीजें उसकी ओर बढाता हुआ बोला - “अपने साइन करो ।”
लड़की एक क्षण हिचकिचाई । फिर उसने चुपचाप साइन कर दिए ।
सुनील ने अपनी जेब से रमेश कपूर की शादी का सर्टिफिकेट निकाला और सर्टिफिकेट के साइन को हाई-तों के साइन से मिलाने लगा ।
दोनों साइनें मिलते थे । सुनील संतुष्ट हो गया । इस बार मदाम ने धोखा नहीं दिया था ।
“तुम रमेश कपूर और तिन-हा को जानती हो न ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - वह बोली - “तिन-हा मेरी सहेली थी । मैं उन दोनों की शादी में गवाह थी ।”
“दूसरा गवाह चुगयांग की था ?”
“हां ।”
“वह कहां है ?”
“मुझे क्या मालूम ? मिस्टर, तुम यहां जिस काम के लिए आए हो, उसमें दिलचस्पी लो न ।”
“वह भी करूंगा । पहले तुम मेरे सवालों क जवाब दो ।”
“मिस्टर, तुम कस्टमर हो या कोई जासूस ?”
“सवाल मुझे करने दो । तुम केवल जवाब दो ।”
“अच्छा ।”
“तुम इतने बढिया अपार्टमेंट में कैसे रहती हो ?”
“तुम्हें एतराज है ?” - वह मादक स्वर से बोली ।
“एतराज नहीं, हैरानी है । तुम्हारे जैसी और लड़कियां तो समुद्र में तैरते बजारों या गन्दे होटलों में रहती हैं । इस धन्धे से इतना पैसा कहां मिलता है कि कोई इतने शानदार अपार्टमेंट में रह सके ।”
“मेरे पास बहुत हाई क्लास कस्टमर आते हैं ।”
“फिर भी अपार्टमेंट में रहने के लिए बहुत पैसा चाहिये । वह पैसा कहां से आता है तुम्हारे पास ?”
वह चुप रही ।
“तुम भी हेरोइन के स्मगलर रिंग की मेम्बर हो ?” - एकाएक सुनील बोल पड़ा ।
हाई-तों के चेहरे का रंग फीका पड़ गया ।
“तुम, तिन-हा चुंगयांग की और रमेश कपूर चारों हेरोइन की स्मगलिंग करते थे ।”
“अच्छा, करते थे ।” - एकाएक वह निडर स्वर से बोली - “तुम्हें क्या ? तुम अपने काम से काम रखो मिस्टर । अगर उल्टे-सीधे सवाल पूछने हैं तो चले जाओ यहां से ।”
“तुम तिन-हा को कब से जानती थी ?” - सुनील ने उसकी बात की परवाह किये बिना पूछा ।
“बचपन से, वह मेरी बहुत पक्की सहेली थी ।”
“तुम्हें मालूम है अब वह कहां है ?”
“हां, वह राजनगर में अपने पति के रिश्तेदारों के पास चली गई है ।”
“वह ऊपर पहुंच गई है ।”
“क्या मतलब ?”
“राजनगर पहुंचते ही किसी ने उसे गोली से उड़ा दिया था ।”
उसके मुंह से सिसकारी निकल गई । ऐसा लगता था जैसे किसी ने उसके पेट में घूंसा मार दिया हो । उसने अपने दोनों हाथ छाती पर भींच लिये ।
“सच कह रहे हो ?” - वह भारी आवाज से बोली ।
उसकी आंखों में से आंसू बहने लगे । शीघ्र ही वह हिचकियां से लेकर रोने लगी ।
“तुम्हें उसकी मौत का इतना दु:ख हुआ है ?”
“वह मेरी सगी बहन थी ।” - वह रोती हुई बोली ।
“लेकिन...”
“जाओ प्लीज ।” - और वह उठी और बगल के कमरे में बढ गई । द्वार भीतर से बन्द होने की आवाज आई । भीतर से उस के सिसकियां लेने की आवाज आ रही थी ।
सुनील उठ खड़ा हुआ । वह अपार्टमेंट से बाहर निकल गया । उसने भड़ाक से अपार्टमेंट का द्वार बन्द किया । सुनील कुछ क्षण हिचकिचाया सा वहीं खड़ा रहा, फिर वह घुटनों के बल बैठ गया और उसने की होल में आंख लगा दी ।
लगभग तीन मिनट बाद हाई-तों दूसरे कमरे में से बाहर निकली और टेलीफोन की ओर बढ गई । वह कोई नम्बर डायल करने लगी लेकिन शायद नम्बर नहीं मिल रहा था । तीन-चार बार प्रयत्न करने के बाद उसने टेलीफोन क्रेडिल पर पटक दिया और बाहरी द्वार की ओर बढी ।
सुनील लपककर सीढियों की ओट में हो गया ।
हाई-तों ने बाहर निकल कर अपार्टमेंट में ताला लगाया और तेजी से सीढियां उतरने लगी ।
सुनील भी सावधानी से उसके पीछे हो लिया ।
टैक्सी स्टैंड पर जाकर वह एक टैक्सी में बैठ गई । टैक्सी चल पड़ी सुनील ने भी एक टैक्सी ले ली । उसने ड्राइवर को दस डालर का एक नोट दिया और पहली टैक्सी का पीछा करने को कहा ।
सुनील की टैक्सी पहली टैक्सी के पीछे चल दी ।
हाई-तों स्टीमर फैरी स्टेशन पर उतर गई और जाकर एक स्टीमर में बैठ गई ।
सुनील भी अपनी टैक्सी से उतरा । हाई-तों तीसरे दर्जे में बैठी थी । सुनील ने पहले दर्जे का टिकट लिया और चुपचाप ऊपर चढ गया ।
फैरी चल पड़ी । थोड़ी देर बाद वह कोलून के किनारे से जा लगी ।
हाई-तों फैरी से उतर पड़ी ।
उसने एक रिक्शा लिया और कोलून की एक सड़क पर चल दी ।
रिक्शा एक गन्दे से इलाके में जा पहुंचा । हाई-तों एक भीड़भाड़ भरी पतली सी गली में घुस गई ।
सुनील जानता था वह रास्ता चारदीवारी से घिरे हुए पुराने कोलून शहर के भीतर जाता था । वह इलाका सौ फीसदी चीनी थी और यहां हांगकांग की अंग्रेज पुलिस का भी कोई बस नहीं चलता था । पुलिस से भागे सारे जरायमपेशा लोग यहीं पनाह लेते थे और पुलिस को उनकी हवा भी नहीं लगती थी ।
टूरिस्टों का इधर आना खतरे से खाली नहीं समझा जाता था । लोग एक डालर की खातिर खून कर देते थे ।
सुनील हिम्मत करके हाई-तों के पीछे चलता रहा । हाई-तों गंदगी के मारे चीनियों की भीड़ में से बड़ी तेजी से गुजर रही थी । सुनील उसमें और अपने में लगभग बीस गज का फासला रखे आगे बढ रहा था ।
गलियों में भरे हुए चीनी संदेह और हैरानी भरी निगाहों से उसे घूर रहे थे ।
हाई-तों एक मकान के आगे रुक गई ।
सुनील भी रुक गया ।
हाई-तों ने द्वार को धकेला और भीतर घुस गई ।
सुनील भी उस द्वार के पास पहुंचा । कुछ क्षण वह खड़ा हिचकिचाता रहा । फिर वह भी द्वार ठेलकर भीतर घुस गया ।
वह एक लम्बा गलियारा था और उसके दूसरे सिरे के एक कमरे से हाई-तों के बोलने की आवाज आ रही थी ।
सुनील दबे पांव उस कमरे के द्वार तक जा पहुंचा ।
“यह नहीं हो सकता ।” - कोई पुरुष स्वर थरथराती आवाज से कह रहा था । भाषा अंग्रेजी थी लेकिन उसका उच्चारण एकदम भारतीय था ।
“उसने यही कहा था ।” - उसे हाई-तों का तीव्र स्वर सुनाई दिया - “भारत पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही उसकी हत्या कर दी गई थी ।”
उसी क्षण सुनील को अपने पीछे से एक आवाज आई - “अपने हाथ ऊपर कर लो ।”
और साथ ही रिवाल्वर की नाल उसकी पीठ से जा लगी थी ।
सुनील ने हाथ ऊपर उठा लिये । उसने पीछे घूमकर देखने का प्रयत्न किया लेकिन तभी रिवाल्वर वाला गुर्रा उठा - “पीछे मत देखो, भीतर चलो ।”
सुनील ने पांव की ठोकर से द्वार खोला और हाथ उठाये ही कमरे में घुस गया । रिवाल्वर की नाल अब भी उसकी पीठ पर थी ।
एक सोफे पर हाई-तों बैठी थी और उसके सामने जो एक आदमी बैठा था उसे देखकर सुनील चौंक पड़ा ।
“रमेश कपूर !” - उसके मुंह से बरबस निकल गया ।
हाई-तों और रमेश कपूर ने एक साथ सिर उठाया ।
वह निस्सन्देह रमेश कपूर था ।
सुनील रिवाल्वर की परवाह किये बिना उसकी तरफ को बढ गया ।
उसी क्षण सुनील की खोपड़ी से कोई भारी चीज टकराई । उसकी आंखों के आगे सितारे नाच उठे । उसके मुंह से एक हल्की सी हाय निकली और वह वहीं लहराकर ढेर हो गया ।
चेतना लुप्त होने से पहले उसने रमेश कपूर को अपने स्थान से उछलकर उठते देखा ।
***
सुनील के नेत्र खुले ।
टार्च की तेज रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी ।
उसने अपने आस-पास देखा । वह एक गन्दी सी गली के एक कोने में एक कूड़े के ढेर की तरह पड़ा था । उसने अपनी घड़ी देखी । रमेश कपूर की सूरत देखे उसे आधे घण्टे से ज्यादा समय हो गया था ।
टार्च की रोशनी से उसकी आंखें मिचमिचाने लगीं ।
“टार्च हटाओ ।” - वह उखड़े स्वर से बोला और उठने का प्रयत्न करने लगा ।
टार्च का प्रकाश बन्द हो गया और सुपरिंटेण्डेन्ट पार्कर का स्वर उसके कानों में पड़ा - “यहां क्या कर रहे हो तुम ?”
“पिकनिक मना रहा हूं ।” - सुनील ने चिढकर कहा ।
“क्यों ?”
“आप यहां कैसे पहुंच गये ?” - सुनील ने पूछा ।
“तुम्हारी तकदीर अच्छी थी । एक सिपाही ने तुम्हें यहां आते देखा था । सुरक्षा के ख्याल से उसने इन्स्पेक्टर वास को सूचना दी । वास ने मुझे बताया और हम तुम्हें तलाश करते हुए यहां आ गये ।”
सुनील ने देखा वास भी उसके साथ था ।
“संयोगवश ही तुम यहां पड़े मिल गये हो ।” - पार्कर बोला - “बरखुरदार, यहां तो पुलिस का सिपाही भी आते हुए घबराता है । तुम कैसे पहुंच गये यहां ?”
“मैं हाई तों का पीछा करते हुए आया था ।” - सुनील बोला - “पार्कर साहब, मैंने रमेश कपूर को देखा है । वह जिन्दा है ।”
“नानसेन्स !” - पार्कर होंठ सिकोड़कर बोला - “यह कैसे हो सकता है ?”
“मैं सच कह रहा हूं । मैंने अपनी आंखों से उसे जिन्दा देखा है ।”
“तुम्हें धोखा हुआ है ।”
“मेरी आंखें धोखा नहीं खाती ।”
“लेकिन यह कैसे सम्भव है ? मैंने खुद रमेश कपूर की लाश बरामद की थी । यह ठीक है कि लाश बुरी तरह से जल चुकी थी लेकिन उसकी पत्नी ने उसकी शिनाख्त की थी ।”
“कैसे ?”
“उसके सिगरेट केस से, उसकी घड़ी से, उसके हाथ में पहनी अंगूठी से, उसके कद-काठ से ।”
“लेकिन सूरत से नहीं ।”
पार्कर चुप हो गया ।
“मैंने जली हुई लाश नहीं असली सूरत देखी है । मैं दावा करता हूं वह रमेश कपूर ही था । आप मेरे साथ उस मकान में चलिये जिसमें मैंने रमेश कपूर को देखा था ।”
“चलो ।” - पार्कर बोला ।
बड़ी मुश्किल से सुनील वह मकान दुबारा ढूंढ पाया लेकिन मकान खाली पड़ा था ।
“वे लोग भाग गये ।” - सुनील मरे स्वर में बोला ।
पार्कर चुप रहा ।
“आप हाई-तों की निगरानी करवाइये सुपर साहब ।” - सुनील बोला - “तिन-हा उसकी सगी बहन थी । उस हिसाब से रमेश कपूर की साली हुई । वह जरूर उससे दोबारा सम्पर्क स्थापित करेगी ।”
“अच्छा ।” - पार्कर अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील चुप हो गया । उसका हाथ अपने आप ही अपने सिर के उस भाग पर पहुंच गया जहां अन्डे जितना बड़ा गूमड़ा निकल आया था ।
***
रात को लगभग ग्यारह बजे सुनील रिपल्स वे होटल में पहुंचा ।
उसने काउन्टर से चाबी ली और अपने कमरे में जा पहुंचा ।
गलियारे में खड़े नाईट ब्वाय ने उसे बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से मुस्कराकर सलाम किया था ।
सुनील ने कोट उतारकर सोफे पर फेंका और टाई की गांठ ढीली करता हुआ बैडरूम में घुस गया ।
बैडरूम में पलंग पर ट्रेसी सोई पड़ी थी ।
सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
उसी क्षण ट्रेसी ने आंखें खोल दीं । वह सुनील को देखकर मुस्कराई और बड़े मादक स्वर में बोली - “हल्लो ।”
“तुम ! यहां कैसे आई ?”
“मैं नौ बजे से यहां तुम्हारा इन्तजार कर रही हूं ।” - वह बोली - “मुझे तो तुम्हारी चिन्ता हो गई थी । शाम को कहां गायब हो गये थे तुम ?”
“तुम्हीं तो पांच बजे की स्टीमर पर नहीं आई थीं ।”
“मुझे देर हो गई थी लेकिन, भले आदमी, स्टीमर तो हर एक घन्टे बाद जाता है । तुम मेरा इन्तजार कर लेते ।”
“मैंने समझा था, शायद तुम मुझसे पहले चली गई थी ।”
“यह कैसे हो सकता था ?”
“एक बात बताओ ।” - एकाएक सुनील गम्भीर स्वर से बोला ।
“क्या ?”
“तुम मुझे अपनी मर्जी से सिल्वर माइक बे ले गई थी या किसी ने तुम्हें ऐसा करने के लिये कहा था ?”
“इससे क्या फर्क पड़ता है !”
“फर्क पड़ता है । तुम मेरी बात का उत्तर दो ।”
“न जाने तुम क्यों पूछ रहे हो ।” - वह सहज स्वर से बोली - “लेकिन मेरे भाई ने मुझे कहा था कि मैं तुम्हें सिल्वर माइक बे ले जाऊं ताकि तुम्हारा मनोरंजन हो जाये । क्यों ?”
“वहां मुझे कत्ल करने की कोशिश की गई थी ।”
ट्रेसी के मुंह से सिसकारी सी निकल गई ।
“ट्रेसी ।”
“यस ।”
“क्या विल्सन वाकई तुम्हारा भाई है ?”
ट्रेसी एकदम हड़बड़ा गई ।
“क्यों पूछ रहे हो ?”
“तुम दोनों में कोई समानता नहीं है । वह तुमसे कम से कम बीस साल बड़ा है और तुम दोनों के ही व्यवहार से ऐसा नहीं मालूम होता कि तुम दोनों भाई बहन हो ।”
ट्रेसी कई क्षण हिचकिचाती रही और फिर धीमे स्वर में बोली - “विल्सन मेरा भाई नहीं है । मैं उसे केवल पिछले दो महीने से ही जानती हूं ।”
“किस्सा क्या है ?”
“मुझे एक बदमाश लगभग चार साल पहले न्यूयार्क से भगाकर लाया था । मैं सिंगापुर में स्ट्रिपटीज डांस किया करती थी । विल्सन भी वहां आया करता था । एक बार नाइट क्लब पर पुलिस का छापा पड़ा था । नाइट क्लब के साथ-साथ मैं भी गिरफ्तार कर ली गई थी । विल्सन ने मुझसे कहा था कि अगर मैं उसके साथ रहना स्वीकार कर लूं तो वह मुझे छुड़ा लेगा । मैंने मान लिया विल्सन ने, न जाने कैसे, मुझे पुलिस के चंगुल से बचा लिया । विल्सन मुझे एक जाली पासपोर्ट की सहायता से अपनी बहन बनाकर हांगकांग ले आया । उसने मुझे कहा था कि वह मुझे कुछ महीनों में वापिस मेरे मां-बाप के पास न्यूयार्क भिजवा देगा । लेकिन अब मुझे छोड़ने को उसका जी नहीं चाहता । वह शैतान की तरह मुझसे मोहब्बत करता है । जब तक उसका मुझसे मन नहीं भर जायेगा, वह मुझे न्यूयार्क नहीं जाने देगा ।”
“तुम भाग जाओ । उसने कोई तुम्हें बांध थोड़े ही रखा हुआ है ।”
“भाग कहां जाऊं ? न्यूयार्क पहुंचने के लिये धन की जरूरत है, और धन मुझे केवल विल्सन से हासिल हो सकता है ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम मुझे न्यूयार्क जाने का किराया दे सकते हो !” - ट्रेसी ने उससे याचनापूर्ण स्वर से पूछा - “मैं तुम्हें किसी भी सूरत में तुम्हारा धन लौटाने के लिये तैयार हूं ।”
“मुझे भूख लगी है ।” - एकाएक सुनील बोला - “मैं खाना मंगाने लगा हूं । तुम खाओगी ?”
“लेकिन मैं नहीं चाहती कि किसी को मालूम हो मैं यहां हूं ।”
“जब तुम आई थीं तब भी तो किसी को मालूम हुआ होगा ।”
“नहीं, वह बोली । तुम्हारे फ्लोर तक आते मुझे किसी ने नहीं देखा था ।”
“तुम भीतर कैसे घुसीं ?”
“नाइट ब्वाय को पांच डालर दिये थे । उसने द्वार खोल दिया था । वह समझा था, मैं साहब का मनोरंजन करने आई हूं ।”
“मैं नाइट ब्वाय को ही खाना लाने के लिए कहता हूं ।”
“लेकिन खाना तो वेटर लायेगा ।”
“तब तुम थोड़ी देर के लिए बाथरूम में चली जाना ।”
“अच्छा ।”
सुनील ने द्वार खोलकर नाईट ब्वाय को आर्डर दिया और फिर द्वार भीतर से बन्द कर लिया ।
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ?” - ट्रेसी याचनपूर्ण स्वर से बोली ।
“मैं तुम्हें एक शर्त पर न केवल धन दे सकता हूं ।” - सुनील बोला - “बल्कि न्यूयार्क तक तुम्हारे सुरक्षित पहुंच जाने की गारण्टी भी कर सकता हूं ।”
“क्या ?”
“मुझे विल्सन के बारे में बताओ ।”
“मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानती ।”
“तो फिर मैं धन के बारे में कुछ नहीं जानता ।”
ट्रेसी कितनी ही देर चुप रही और फिर बोली - “तुम मेरे साथ धोखा तो नहीं करोगे ?”
“नहीं ।”
“मेरे ख्याल से विल्सन बहुत बड़ा स्मगलर है । आधी-आधी रात को लोग चुपचाप मोटरबोटों पर बैठकर बंगले पर आते हैं और सुबह होने से पहले ही चले जाते हैं ।”
“वह किस चीज की स्मगलिंग करता है ?”
“नशीली चीजों की । अफीम, कोकीन, हेरोइन वगैरह ।”
“स्टाक कहां रखता है वह ?”
“बंगले के नीचे तहखाना है ।”
“कभी पुलिस को संदेह नहीं हुआ उस पर ?”
“नहीं । हांगकांग में वह बहुत सम्मानित आदमी समझा जाता है ।”
“रमेश कपूर से उसका क्या सम्बन्ध था ?”
“रमेश कपूर भी...”
उसी क्षण किसी ने द्वार खटखटाया ।
“खाना आ गया है ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “तुम जरा बाथरूम में चली जाओ ।”
ट्रेसी चुपचाप बाथरूम में घुस गई और उसने भीतर से द्वार बन्द कर लिया ।
सुनील ने द्वार खोला ।
बाहर वेटर के स्थान पर विल्सन खड़ा मुस्करा रहा था । उसके हाथ में एक 38 कैलिबर की रिवॉल्वर थी जिसका निशाना सुनील के पेट की ओर था ।
सुनील आशापूर्ण नेत्रों से गलियारे में देखने लगा ।
“तुम शायद वेटर के आने की आशा कर रहे हो ।” - विल्सन बोला - “लेकिन वह नहीं आयेगा । नाइट ब्वाय ने खाने का आर्डर आगे पहुंचाया ही नहीं है ।”
सुनील चुप रहा ।
“अपने हाथ ऐसी स्थिति में रखना कि वे मुझे दिखाई देते रहें ।” - वह बोला और उसे रिवाल्वर से धकेलता हुआ भीतर आ गया ।
“तुम बहुत योग्य आदमी हो ।” - वह बोला - “मैं दिल से तुम्हारी तारीफ करता हूं । जो काम मैं और मेरे सारे आदमी पूरे बीस दिन में नहीं कर सके, वह तुमने एक दिन में कर दिखाया ।”
“कौन सा काम ?”
“तुमने रमेश कपूर को खोज निकाला । उस उल्लू के पट्ठे के लिए मैंने हांगकांग का चप्पा-चप्पा छनवा दिया था लेकिन वह मुझे नहीं मिला ।”
“तुम कह क्या रहे हो ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है ।” - सुनील नादान बनता हुआ बोला ।
“मुझे बेवकूफ मत बनाओ । मैं जानता हूं, तुम कौन हो और क्या हो । जब से तुमने हांगकांग में कदम रखा है, मेरे आदमी तुम्हारी निगरानी कर रहे हैं । अच्छा हुआ, वह गंजा चीनी तुम्हें सिल्वर माइक बे में अपनी रिवाल्वर का निशाना न बना सका, वरना रमेश कपूर हमारे हाथ कैसे आता ? तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि रमेश कपूर मरा नहीं है ?”
“मुझे मालूम नहीं था । मैं तो उसके साथी चुंगयांग की की तलाश में था । रमेश कपूर तो मुझे संयोगवश ही मिल गया ।”
“यही बात तो हमें बेवकूफ बना गई । हम चुंगयांग की तलाश कर रहे थे क्योंकि यह सिद्ध हो चुका था कि रमेश कपूर मर गया है ।”
“तुम किस्से बयान करना बन्द करो और बताओ कि तुम मुझे रिवाल्वर क्यों दिखा रहे हो ?”
“रमेश कपूर इस समय मेरे अधिकार में है ।” - विल्सन बोला - “जो दुर्गति उसकी की जा रही है उसके बाद तो शैतान भी अपनी जुबान बंद नहीं रख सकता । मार-मार कर उसके शरीर का कीमा बना दिया गया है लेकिन अभी तक उसने यह नहीं बताया है कि उसने वे लिस्टें कहां छुपाई हैं जिनमें हमारे संसार भर में फैले हेरोइन के एजेन्टों के पते हैं अर चुंगयांग की गद्दारी के कारण जिन्हें वह नकल करने में सफल हो गया है ।”
“इससे मेरा क्या सम्बन्ध है ?”
“मुझे सन्देह है रमेश कपूर ने वे लिस्टें तुम्हें सौंप दी हैं ।”
“मुझे कोई लिस्टें नहीं दी हैं उसने ।”
“मेरे आदमियों को पेट में से बात निकालने के बहुत से तरीके आते हैं । सम्भव है बंगले पर पहुंचने के बाद तुम कोई नया राग अलापने लगो ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम मेरे साथ चलोगे ।” वह बोला - “मेरे साथ दस आदमी और हैं । सभी चाकू चलाने में उस्ताद हैं । तुमने कोई भी उल्टी-सीधी हरकत की तो तुम्हारी लाश तड़पती दिखाई देगी । समझ गये ?”
सुनील चुप रहा ।
“कोट पहन लो ।”
सुनील ने कोट पहन लिया । विल्सन ने उसकी बांह में रिवाल्वर वाली बांह यूं डाल दी कि रिवाल्वर की नाल उसकी पसलियों से जा सटी लेकिन देखने से यूं लगता था जैसे दो गहरे मित्र बांह डाले जा रहे हों ।
“चलो ।” - वह बोला ।
दोनों बाहर आ गये । नाइट ब्वाय ने उन्हें देखा और दांत निकाल दिये । दोनों सीढियां उतरने लगे ।
वे होटल की लाबी में पहुंच गये । काउन्टर क्लर्क कुर्सी पर बैठा ऊंघ रहा था, उसने उनकी ओर ध्यान भी नहीं दिया । लाबी के बाईं ओर दीवार के साथ लगी हुई कुर्सियों में से दो पर दो आदमी बैठे थे । एक सुपरिन्टेन्डेन्ट पार्कर था और दूसरा इन्सपेक्टर बास ।
सुनील ने मन में आशा की किरण जाग पड़ी । लेकिन पार्कर ने एक उड़ती दृष्टि उस पर डाली और सिर झुका लिया ।
सुनील निराश हो गया ।
विल्सन ने उसे रिवाल्वर की नाल से टहोका ।
होटल के बाहर चीनी बदमाश अपनी कोट की जेबों में हाथ डाले लापरवाही से घूम रहे थे ।
सुनील अनिच्छापूर्ण ढंग से तीन-चार कदम आगे बढा । फिर उसने मन ही मन खतरा उठाने का फैसला कर लिया ।
उसी दम रिवाल्वर गरज पड़ी ।
सुनील का दिल बल्लियों ऊंचा कूदने लगा ।
तभी दो फायर और हुए । साथ ही सुनील से दो इन्च दूर फर्श पर एक चाकू आकर टकराया । किसी की चीख सुनाई दी और फिर पार्कर के अधिकारपूर्ण स्वर से लाबी गूंजने लगी ।
“उठ जाओ ।” - वह सुनील की पसलियों को टटोलता बोला ।
सुनील उठ खड़ा हुआ । उसने देखा विल्सन पीठ के बल पड़ा था । पार्कर के हाथ में रिवाल्वर थी जिसकी नाल में से अभी भी धुआं निकल रहा था । भारी कैलिबर की पुलिस रिवाल्वर ने विल्सन का भेजा उड़ा दिया था ।
गेट के पास एक चीनी मरा पड़ा था ।
बाहर पुलिस के कई सिपाही दिखाई दे रहे थे ।
“आपने तो मार ही डाला इसे ।” - सुनील बोला ।
“बरखुरदार” - पार्कर बोला - “अगर मैं इस पर गोली नहीं चलाता तो फर्श पर इसकी जगह तुम्हारी लाश तड़प रही होती ।”
“मेरे कमरे के फ्लोर वाला नाइट ब्वाय भी इसी का आदमी है ।” - सुनील बोला ।
“वह भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा ।” - पार्कर विश्वास पूर्ण स्वर से बोला - “वह औरत कौन है जिसने हमें यहां आने के लिये फोन किया था ?”
“किसी औरत ने आपको यहां आने के लिये फोन किया था ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“और क्या मुझे ख्वाब आया था कि यहां कोई गड़बड़ हो रही है ? किसी औरत ने फोन पर बताया था कि कुछ लोग तुम्हें जबरदस्ती अपने साथ ले जाने की कोशिश कर रहे हैं । कौन थी वह ?”
“भगवान जाने कौन थी ?” सुनील बोला - “मेरी कोई प्रशन्सक होगी ?”
सुनील के दिमाग में ट्रेसी का चेहरा घूम रहा था । वह बाथरूम में थी और बाथरूम में टेलीफोन भी था ।
“हम सफेद बंगले पर धावा बोलने जा रहे हैं ।” - पार्कर बोला - “तुम साथ जाना चाहते हो ?”
“हां ।”
“चलो फिर ।”
सुनील पार्कर के साथ चल दिया ।
***
रात के अन्धकार में पुलिस की मोटरबोटों ने बगल के एकमात्र समुद्री रास्ते को घेर लिया । सर्च लाइटों के प्रकाश से बंगले का कोना-कोना जगमगा उठा ।
बंगले में से लगभग बीस चीनी गिरफ्तार किये गये । कोई भागने में सफल नहीं हो सका ।
गिरफ्तार चीनियों में से ही एक ने बंगले के नीचे बने तहखानों के रास्ते बता दिये ।
तहखानों में हेरोइन और अफीम की पेटियां भरी पड़ी थी । पुलिस ने सारी पेटियां अपने अधिकार में ले लीं ।
एक कमरे में अर्ध मृतावस्था में रमेश कपूर पड़ा था । वह एकदम नंगा था । उसके सारे शरीर से चमड़ी उधड़ी पड़ी थी ।
रमेश कपूर को फौरन अस्पताल पहुंचाया गया ।
आठ दिन बाद वह इस योग्य हो पाया कि वह अपनी जुबान खोल सके । सुनील ने मुखर्जी को सूचना दी तो वे भी हांगकांग आ पहुंचे ।
तिन-हा स्मगलरों के दल की एक बहुत मामूली सदस्या थी । बाद में रमेश कपूर ने बताया - “मेरी उससे अच्छी मित्रता हो गई थी । फिर मित्रता प्रेम में बदल गई और एक दिन मैंने उसे अपने मिशन के बारे में भी बता डाला और उससे सहायता की प्रार्थना की । उसने कहा कि उसकी बहन हाई-तों दल की अधिक विश्वासपात्र सदस्या है इसलिए वह मेरी अधिक सहायता कर सकती है । मैंने हाई-तों को अपने मिशन के बारे में नहीं बताया । मैंने उसे यह कहा कि वह मुझे स्मगलिंग दल का सदस्य बनवा दे । हाई-तों ने चुंगचांग की की सहायता से मुझे सदस्य बनवा दिया । मुझे छोटे-छोटे काम भी मिलने लगे । धीरे-धीरे मैं दल का विश्वासनीय कार्यकर्ता समझा जाने लगा । मैं मोटर लांच की सहायता से कितने ही एशियाई देशों में माल पहुंचाने लगा । दल का सक्रिय और विश्वासपात्र सदस्य होने के बावजूद भी मुझे कभी बंगले में नहीं बुलाया जाता था । मैं धीरे-धीरे प्रयत्न करता रहा । अन्त में विल्सन भी मुझ पर विश्वास करने लगा और मुझे बंगले पर भी बुलाने लगा । विल्सन का मुझ पर विश्वास करने का एक कारण यह भी था कि वह चुंगयांग की से असन्तुष्ट रहने लगा था । चुंग यांग की से भी यह बात छिपी नहीं थी । वह जानता था कि वास की असन्तुष्टि जल्दी ही अविश्वास में बदल सकती है फिर उसकी लाश भी अजरबीन हार्बर की गन्दगी में तैरती दिखाई देगी ।”
“विल्सन चुंगयांग की से असन्तुष्ट क्यों था ?” - मुखर्जी ने पूछा ।
“क्योंकि चुंग यांग की कुछ उखड़ा-उखड़ा रहने लगा । स्मगलिंग के काम में उसकी दिलचस्पी घटती जा रही थी । ऐसे लोग पुलिस के हाथ में पड़कर भारी खतरा उत्पन्न कर सकते हैं । और यह बात सच भी थी । चुंग यांग की वाकई यह धन्धा छोड़ना चाहता था ।”
“फिर ?”
“एक दिन मेरी थोड़ी सी असावधानी से चुंग ने मेरे पास मिनियेचर कैमरा और ट्रांसमीटर देख लिया । उसे समझते देर नहीं लगी मैं कौन हूं । मैं चुंग के अधिकार में था और मुझे लग रहा था कि मेरा खेल खत्म हो गया है । लेकिन चुंग ने मुझे मार डालने या वास के हवाले कर देने के स्थान पर मेरे सामने एक सौदा रखा । मैंने उसे बता दिया कि मैं स्मगलिंग के एजेन्टों की लिस्टें चाहता हूं । उसने मुझे बताया कि विल्सन जहां वह लिस्टें रखता है वह स्थान उसे मालूम है । वह एक शर्त पर मुझे उन लिस्टों की मिनियेचर कैमरे से तस्वीरें लेने का मौका निकाल देने के लिए तैयार था ।”
“शर्त क्या थी ?”
“अगले कुछ दिनों में मुझे बम्बई के बन्दरगाह पर दो हजार आउन्स हेरोइन लेकर जाना थ । चुंग चाहता था कि मैं वह हेरोइन उसके हवाले कर दूं और उसे किसी प्रकार हांगकांग से निकाल ले जाऊं । दो हजार आउन्स हेरोइन आदमी को लखपति बना देने के लिए काफी होती है । वह हांगकांग से बाहर दुनिया के किसी शहर में पहुंच कर नये सिरे से जिन्दगी आरम्भ कर देगा । मैंने सौदा स्वीकार कर लिया । अपने वादे के अनुसार एक बार जब विल्सन कहीं बाहर गया हुआ था, चुंग वे लिस्टें निकाल लाया । मैंने मिनियेचर कैमरे से उन लिस्टों के हर पृष्ठ की तस्वीर ले ली । चुंग लिस्टें वापिस यथा स्थान रख आया । किसी को सन्देह नहीं हुआ ।”
“फिर ?”
“फिर एक दिन मुझे बम्बई ले जाने के लिये दो हजार आउन्स हेरोइन सौंप दी गई । मेरे लिए जिन ड्रिंकर्स पर मोटर लांच तैयार खड़ी थी । मैंने चुंग को भी बुला लिया । हम कार द्वारा कोलून से जिन ड्रिंकर्स की ओर चल दिये । कार चुंग चला रहा था । मैं सीट पर बैठा यह देख रहा था कि कोई हमारा पीछा तो नहीं कर रहा । उसी क्षण चुंग कार का बैलेंस खो बैठा । सड़कें गीली थीं । कार उससे सम्भाली नहीं गई और वह पूरी रफ्तार से एक पेड़ के साथ जा टकराई । चुंग की तत्कल मृत्यु हो गई लेकिन मैं बच गया । मेरा काम तो हो ही चुका था । अब न तो मुझे हेरोइन की जरूरत थी और न स्मगलिंग दल की सदस्यता की । लेकिन हांगकांग से निकल भागना अभी भी समस्या थी । क्योंकि विल्सन की नजरों में मैं दल का सदस्य था और मुझे हेरोइन लेकर बम्बई जाना था ।”
“फिर हांग कांग से भागना क्या मुश्किल था ।” - सुनील बोला - “हेरोइन लेकर तुम बम्बई तो आ ही रहे थे ।”
“मुश्किल था ।” - रमेश कपूर बोला - “मैं अकेला नहीं आ रहा था । मेरे साथ चार आदमी और थे और फिर हम तो बन्दरगाह से कई मील दूर समुद्र में ही दूसरे मोटर बोट को माल सौंप दिया करते थे । अगर मैं वहां से भागने की कोशिश करता तो मेरे साथी मुझे गोली से उड़ा देते और सारे किये-कराये पर पानी फिर जाता ।”
“तो फिर चुंग कैसे भागता ?”
“वह कहता था कि किसी प्रकार मैं उसे किसी दूसरे मुल्क के पानियों में ले जाऊं बाकी इन्तजाम वह स्वयं कर लेगा ।”
“क्या ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“खैर तुम अपनी तरकीब बताओ ।”
“मैंने चुंग की लाश को अपनी घड़ी और अंगूठी पहना दी और फिर कार में आग लगा दी तब तक तिन-हा से मेरी शादी हो चुकी थी । मैंने तिन-हा को सारी स्थिति समझा दी । बाद में पुलिस ने जब लाश की शिनाख्त के लिये उसे बुलाया तो उसने बेझिझक कह दिया कि वह उसके पति की लाश है । लाश उसे सौंप दी गई ।”
“लेकिन चुंग की लाश को राजनगर भेजने का क्या मतलब था ?”
“उसके दो फायदे थे ।” - रमेश बोला - “एक तो तिन-हा बिना किसी संदेह के राजनगर पहुंच जाती और बाद में कर्नल साहब को सारी स्थिति बताकर मेरे बचाव का प्रयत्न करती और दूसरे लिस्टों की माइक्रोफिल्म साहब तक पहुंच जाती ।”
“माइक्रोफिल्म कहां थी ?”
“ताबूत में ।”
“फिर तो वह गई । उस पर तो शत्रुओं का बम पड़ा था और सब कुछ नष्ट हो गया था ।”
“मेरे पास उसकी एक प्रति और है ।”
“कहां ?”
रमेश ने अपने मुंह में से एक दांत निकाल दिया और उसे मुखर्जी को दिखाता हुआ बोला - “यह दांत नकली है और भीतर से खोखला है । माइक्रोफिल्म की दूसरी प्रति इसमें है । इससे सुरक्षित जगह मैं माइक्रोफिल्म के लिये नहीं सोच सका । इसके लिए मुझे अपना एक अच्छा-भला दांत निकलवाना पड़ा था । विल्सन ने मुझे नंगा करके मेरी तलाशी ली थी । यहां तक कि कान और गला तक देख डाला लेकिन उसे नकली दांत का ख्याल नहीं आया ।”
“खैर, तुम अपनी कहानी सुनाओ ।” - कर्नल मुखर्जी बोले ।
“बाकी कहानी यही है कि तिन-हा ताबूत लेकर भारत चली गई और मैं पुराने कोलून में अपने एक चीनी मित्र के घर में रहने लगा । विल्सन के लोग क्योंकि मुझे मरा समझते थे और चुंग को ढूंढ रहे थे इसलिये मैं सुरक्षित था । लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान मुझे यह हुआ कि मैं अपने पासपोर्ट से हांगकांग से बाहर नहीं जा सकता था क्योंकि सरकारी तौर पर तो मैं मर चुका था । मेरा सामान सफेद बंगले में पड़ा था । उसी में ट्रांसमीटर भी था । इसीलिए मैं कर्नल मुखर्जी से सम्पर्क भी स्थापित नहीं कर सका था । सारे हांगकांग में विल्सन के आदमी चुंग को सूंघते फिर रहे थे । मैं बाहर नहीं निकल सकता था । उन्हें मैं दिखाई दे जाता तो मेरा काम हो जाता । फिर एक दिन हाई-तों तिन-हा की अर्थात मेरी बीवी की मौत का समाचार लेकर मेरे पास आई । मेरी सारी उम्मीदें खत्म हो गई अब हर किसी की नजर में मैं मर चुका था । हाई-तों का पीछा करते हुए तुम भी वहां पहुंच गये । मेरे चीनी साथी ने तुम्हें विल्सन का आदमी समझकर तुम पर वार कर दिया और फिर तुम्हारे बेहोश शरीर को बाहर फेंक दिया । लेकिन तुम्हारा भी पीछा हो रहा था । तुम्हारे पीछे आकर विल्सन के आदमियों ने मेरा ठिकाना देख लिया था । तुम्हारे से छुटकारा पाकर वहां से भागने की तैयारी कर ही रहे थे कि विल्सन के आदमियों ने हमें पकड़ लिया । मेरे चीनी साथी को तो उन्होंने तभी मारकर समुद्र में फेंक दिया और मुझे सफेद बंगले में ले गये । बाकी का किस्सा तो तुम जानते ही हो ।”
सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
***
रमेश कपूर की लिस्टें इन्टरपोल को सौंप दी गई । इन्टरपोल ने हर देश को उनके नगरों में मौजूद हेरोइन के एजेन्टों की जानकारी दे दी । सारे संसार में उन एजेन्टों की धरपकड़ शुरू हो गई । भारत के भी हर नगर में से हेरोइन के व्यापारी गिरफ्तार कर लिए गये ।
सुनील ने अपना वादा पूरा कर दिया । उन्होंने ट्रेसी को सुरक्षित ढंग से न्यूयार्क भिजवा दिया । वह उसका अहसानमन्द था । उसी के कारण उसकी जान बची थी ।
समाप्त