देवराज चौहान अब बेहतर हालत में था।
कल शाम हेमराज वक्त पर उसके पास पहुंच गया। हेमराज उसे बसन्त विहार में विनायक की कोठी के गेस्ट रूम में ले गया था और फौरन ही उसे डॉक्टरी सहायता मिल गई थी। डॉक्टर ने ऑपरेशन करके उसकी कमर में फंसी गोली निकाली और दवा खिला दी थी। दवा में नींद का गहरा असर था और उसकी आंख अगले दिन सुबह आठ बजे खुली थी।
तब हेमराज पास ही था।
"कैसे हो?" हेमराज ने मुस्कुराकर पूछा।
"ठीक हूं। शाम को तुम वक्त पर आ गये।" देवराज चौहान ने लेटे-लेटे ही कहा।
"किसने मारी तुम्हें गोली?"
"वीरा त्यागी नाम के आदमी ने...।"
"क्यों? क्या कोई झगड़ा हो गया था?" हेमराज ने पूछा।
देवराज चौहान चुप रहा। आंखों के सामने मोहनलाल दारूवाला का चेहरा नाचा।
"डॉक्टर से पूछो कि मैं चल-फिर सकता हूं?" देवराज चौहान ने कहा।
"उसने तुम्हें पांच दिन तक बेड पर ही लेटे रहने को कहा है। वो मुझे कह गया था रात को।"
"तुम्हें मेरे लिए कुछ काम करना होगा। उस काम के मैं तुम्हें दो लाख रुपये दूंगा।"
"काम क्या है?"
"फरीदाबाद में मोहनलाल दारूवाला नाम का आदमी रहता है। उसे जल्द से जल्द ढूंढ निकालना है।"
"मोहनलाल दारूवाला? ये कौन है?"
"सवाल मत पूछो... इस आदमी को जल्द से जल्द ढूंढ निकालो।"
"काम आसान भी है, कठिन भी। वो मिल गया तो मिल गया, नहीं तो नहीं...।"
"ये जरूरी काम है हेमंत। तुम फरीदाबाद की फोन डायरेक्टरी से...।"
"फरीदाबाद में कहां फोन डायरेक्टरी छपती है। दिल्ली में नहीं छपी सालों से...। परन्तु फरीदाबाद के टेलीफोन एक्सचेंज में नोट देकर इस काम को तलाशा जा सकता है, अगर उसने सरकारी फोन लगा रखा होगा तो---।"
"ये काम करो।"
"मोहनलाल दारूवाला कब से फरीदाबाद में रह रहा है?" हेमंत ने पूछा।
"पता नहीं।"
"इस काम में मुझे और आदमियों की भी जरूरत पड़ेगी, अगर जल्दी उसे ढूंढना है। उन्हें भी नोट देने होंगे।"
"पैसे की परवाह मत करो। मुझे मोहनलाल दारूवाला चाहिए। कैसे भी इसे ढूंढो।"
"ये पक्का है कि ये फरीदाबाद में ही रहता है?"
"कुछ भी पक्का नहीं है। परन्तु ये फरीदाबाद का हो सकता है। तुम इसे फरीदाबाद में ढूंढो।"
"ठीक है। मैं अभी से काम पर लग जाता हूं। कुछ खा कर दवा ले लेना। एक नौकर को तुम्हारे पास छोड़ जाता हूं। उसे समझा दूंगा कि तुम्हें जूस-सूप या उबली सब्जियां ही देनी होंगी।"
"मेरी फिक्र मत करो। मोहनलाल दारूवाला को ढूंढो।"
"डॉक्टर ने जो बातें कही हैं, उनका ध्यान तो रखना ही है। इसमें फिक्र की क्या बात है।" हेमन्त मुस्कुराया और बाहर निकल गया।
कुछ ही देर में चालीस बरस का एक नौकर वहां आ पहुंचा।
"आप क्या खायेंगे या फिर सूप लेंगे...?" उसने पूछा।
"दवा खानी है। थोड़ा-बहुत कुछ भी दे दो।" देवराज चौहान ने कहा।
नौकर जाने लगा कि देवराज चौहान ने पूछा---
"हेमंत कहां है?"
"वो तो अब तक चले गए होंगे। कहीं बाहर जाने को कह रहे थे।" कहकर नौकर चला गया।
मोहनलाल दारूवाला का चेहरा अभी भी आंखों के सामने आ रहा था।
■■■
बारह बजे हेमंत का फोन आया देवराज चौहान को। फोन देवराज चौहान के पास ही रखा था। नौकर ने रिसीवर उठाकर पहले खुद बात की। फिर रिसीवर देना चौहान की तरफ बढ़ा कर बोला।
"हेमंत बाबू आपसे बात करना चाहते हैं।" देवराज चौहान ने रिसीवर कान से लगाया।
"हैलो।" धीमी आवाज थी देवराज चौहान की।
"एक मोहनलाल दारूवाला का पता चला है। मैं फोन एक्सचेंज में बैठे फरीदाबाद के फोन मालिकों के नाम चेक कर रहा हूं। चार और भी लोग हैं मेरे साथ। दस हजार देने पड़े। तब बात बनी और...।"
"काम की बात करो।"
"मोहनलाल दारूवाला के नाम से एक फोन रजिस्टर्ड है। हमने वो पता नोट कर लिया है। अब क्या करें?"
"उसे पकड़कर मेरे पास लाओ।"
"उठा लायें?"
"हाँ।"
"देखो, तुमने दो लाख मुझे देना है, उसे ढूंढने का, उसे उठाने का नहीं...।" हेमंत ने उधर से कहा।
"दो का तीन हो जाएगा, उसे मेरे पास ले आए तो।" देवराज चौहान बोला।
"ये काम मेरे साथ के आदमी करेंगे। उन्हें भी देना होगा।"
"कितना?"
"पचास हजार।"
"मंजूर है।"
"लेकिन ये भी तो हो सकता है कि तुम्हें जिस मोहनलाल दारूवाला की जरूरत हो, वो वो ना हो?"
"कोई बात नहीं, तुम्हारे पैसे तुम्हें मिल जाएंगे।"
■■■
दो बजे हेमराज का फोन फिर आया।
मैं मोहनलाल दारूवाला के घर के सामने मौजूद हूं। घर का दरवाजा बंद है। पूछने पर पड़ोसी ने बताया कि घंटा पहले ही पति-पत्नी दोनों कार पर गए हैं। वो कहता है कि शाम तक तो आ ही जाएंगे।"
"वहीं रहो। नजर रखो। वो लोग जब लौटें तो मोहनलाल को मेरे पास ले आना।"
"ठीक है।"
■■■
मोहनलाल दारूवाला और लक्ष्मी दोपहर एक बजे घर से निकले थे। दोनों नहा-धोकर तैयार थे। उनकी कार के पीछे जुगल किशोर की कार खड़ी थी, परन्तु उन्होंने उस कार की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया। यही सोचा कि आसपास के किसी के घर में कार पर कोई आया होगा और कार यहां खड़ी कर गया। जबकि उस कार के भीतर जुगल किशोर था।
जब वे कार लेकर चले तो जुगल किशोर ने अपनी कार उसके पीछे लगा दी थी।
"रिवाल्वर साथ ले ली?" लक्ष्मी ने गंभीर स्वर में पूछा।
"ले ली है। वो पुरानी रिवाल्वर है। सालों से इस्तेमाल नहीं की।"
"तुम ऐसी चीज अपने पास रखते क्यों हो?"
"हथियार तो फौजी का गहना होते हैं।"
"अब तुम फौजी नहीं हो। रिटायर्ड हो चुके हो।"
"तुम क्या समझती हो कि औरतें बूढ़ी हो जायें तो गहना नहीं पहनतीं?" मोहनलाल दारूवाला मुस्कुराया--- "फौजी फौजी ही होता है, चाहें वो रिटायरमेंट ले चुका हो। फौज की नौकरी बहुत सख्त होती है। वहां पड़ी आदतें छूटती नहीं हैं।"
लक्ष्मी ने गहरी सांस ली फिर बोली---
"मेरी मानो तो यहां से भाग जाना चाहिए।"
"तुम डरती क्यों हो। हम अपना घर छोड़कर भागने वाले नहीं।"
"तुम्हें घर की पड़ी है--- जबकि मुझे डर है कि वो ईराकी लोग हमसे डॉलर ना ले लें।"
"उन्हें डॉयरी चाहिए और वो हम लेने जा रहे...।"
"क्या पता वो झूठ कह रहे हों कि उन्हें डॉयरी चाहिए। वो हमसे डॉलर ले लेना चाहते हों।"
"मुझे तो यही लगा कि उन्हें वास्तव में डॉयरी चाहिए। पर क्या पता वो डॉलर ही चाहते हों।"
"मेरी मानो तो स्टेशन से उन सूटकेसों को लेकर, मुंबई की ट्रेन ले लेते हैं।"
"हीरोइन बनेगी...।" मोहनलाल दारूवाला ने मुस्कुराकर उसे देखा--- "टॉप की हीरोइन। कैटरीना कैफ को पछाड़ना है तुझे।"
"पहले मुंबई तो पहुंच।" लक्ष्मी ने कहा--- "क्या पता वो ईराकी तुम्हें ढूंढ ही ना सकें।"
"ये भी ठीक कहा। फिर भी वो मुझे मिल गए तो डॉयरी उनके हवाले कर दूंगा। तू क्लॉक रूम की रसीद लाई है ना?"
"हाँ।"
■■■
पहले तो जुगल किशोर को लगा कि वो दोनों निजामुद्दीन स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर भागने वाले हैं किसी दूसरे शहर को। जुगल किशोर उनके पीछे जाने को तैयार था। उसके दस करोड़ डॉलर जो उनके पास थे। उन्हें वापस हासिल करना था।
फिर उसने देखा कि उन्होंने स्टेशन के क्लॉक रूम से एक रसीद से मीडियम साइज का सूटकेस हासिल किया और स्टेशन के बाथरूम की तरफ बढ़ गए हैं। जुगल किशोर की आंखों में चमक आ गई। वह समझ गया कि सूटकेस में डॉलर ही हैं। तो यहां छुपा रखे हैं डॉलर! परन्तु यह सूटकेस तो छोटा है। डॉलर तो ज्यादा थे।
जुगल किशोर कुछ उलझन में फंस गया।
और दोनों पर नजर रखे रहा।
■■■
"तू यहीं रुक।" मोहनलाल दारूवाला बोला--- "यह मर्दाना बाथरूम है। मोटा-मोटा बाहर लिखा है।"
"ठीक है, ठीक है। तू जा। जल्दी आना।"
मोहनलाल दारूवाला सूटकेस थामें भीतर प्रवेश कर गया।
लक्ष्मी वहीं खड़ी स्टेशन की चहल-पहल पर नजरें मारने लगी।
परन्तु उसका सारा ध्यान अपने पति की तरफ था, जो कि भीतर गया हुआ था। पन्द्रह कदमों की दूरी पर जुगल किशोर मौजूद था, जो कि उस पर नजर रख रहा था। समझने की चेष्टा कर रहा था कि ये क्या कर रहे हैं। पांच मिनट बाद मोहनलाल दारूवाला सूटकेस उठाये बाथरूम से निकला।
"वो डॉयरी मिली या दूसरे सूटकेस में है?" लक्ष्मी उसके पास आते ही कह उठी।
"मिल गई! इसी सूटकेस में थी।" मोहनलाल दारूवाला ने धीमे स्वर में कहा।
"शुक्र है नई दिल्ली स्टेशन नहीं जाना पड़ा।"
दोनों आगे बढ़ने लगे।
"मेरी बात मानेगा?" साथ चलते लक्ष्मी कह उठी।
"क्या?"
"मुंबई की ट्रेन पकड़ लेते हैं। नई दिल्ली स्टेशन से दूसरा सूटकेस भी ले लेते हैं।"
"अभी हम कहीं नहीं जाएंगे। तू इतना डर मत।"
"मुझे चिंता है कि पैसा हाथ से निकल गया तो हीरोइन नहीं बन पाऊंगी।"
"तुझे हीरोइन बना कर ही रहूंगा। सुन, जरा कम खाया कर। पतली होना शुरू कर दे।"
"क्यों?"
"फिल्म में काम करने के लिए लड़की को स्लिम-ट्रिम होना चाहिए। एक्टिंग बेशक ना आती हो। खूबसूरत तो तू है ही, जरा सी स्लिम-ट्रिम हो जा। वैसे मुंबई पहुंच कर तेरे को पतला होने का कोर्स करा दूंगा।"
"पतला होने का भी कोई कोर्स होता है क्या?"
"समझा कर। जो भी होता है, वो करा दूंगा। तेरे को एकदम फिट कर के पर्दे पर पेश करूंगा। पर तू गड़बड़ मत करना।"
"गड़बड़?"
"किसी हीरो से चक्कर मत चला लेना, ऐसा किया तो तुम दोनों को ही मार दूंगा।"
"तुझे मेरे पर विश्वास नहीं तो पानीपत चलते हैं।" लक्ष्मी ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा।
"पानीपत--- वहां क्या है?"
"सुना है वहां चादरें बनाने का बिजनेस होता है। यही बिजनेस कर लेंगे।"
"कहां फिल्मों का बिजनेस! लाइट-एक्शन-कैमरा की चकाचौंध और कहां बदरंगी चादरें!" मोहनलाल दारूवाला ने मुंह बनाकर कहा--- "तू अब समझदार बन जा। हीरोइन बनने वाली है तू। अपनी सोच को बड़ा रखना शुरु कर दे। चादरों की बातें, वेल्डिंग की बातें मत किया कर। फिल्मी नगरी की बातें...।"
"धीरे-धीरे वैसे ही बन जाऊंगी। ये बता कि डॉयरी कहां है?"
"पैंट के भीतर फंसा ली है।"
दोनों वापस क्लॉक रूम पहुंचे। सूटकेस में जमा कराया और रसीद ले ली।
■■■
जुगल किशोर को पूरा यकीन था कि सूटकेस में डॉलर ही हैं। परन्तु उन लोगों ने सूटकेस वहां से निकाला और वहीं क्यों वापस जमा कर दिया, ये समझ नहीं पाया वो। अंत में यही सोचा कि नोटों की जरूरत होगी। सूटकेस को बाथरूम में ले जाकर, डॉलरों की एक-दो गड्डी निकाली होंगी और वापस रख दिया।
जो कुछ भी था, जुगल किशोर उनके पीछे रहा।
जुगल किशोर को ऐसे किसी मौके की तलाश थी कि उनसे क्लॉक रूम की रसीद हासिल कर सके।
जुगल किशोर उस वक्त कार ड्राइव करता मोहनलाल दारूवाला का पीछा कर रहा था, जो कि वापस फरीदाबाद की तरफ जा रहे थे, तभी उसका मोबाइल बजने लगा। जुगल किशोर ने बात की। दूसरी तरफ जाकिर था।
"तुम्हारा तीस करोड़ हमने तैयार कर रखा है।" जाकिर की आवाज कानों में पड़ी।
"खुशी की बात है।"
"हमें काली जिल्द वाली डॉयरी चाहिए। मोहनलाल दारूवाला को कुछ देर के लिए हमारे हवाले कर दो।"
"कुछ इंतजार करो। तीस करोड़ लेकर तुम्हें डॉयरी दे दूंगा।" जुगल किशोर ने कहा।
"अब इंतजार क्यों? तुम्हारा पैसा तो तैयार है।"
"मोहनलाल अभी तैयार नहीं है, इस वक्त व्यस्त है।"
"वो तुम्हारे पास है?"
"मेरी नजरों के सामने है। मैं उसका पीछा कर रहा हूँ। समझे!"
"तुम उसे पकड़कर हमारे हवाले क्यों नहीं कर...।"
"ये गलती मैं कभी नहीं करूंगा।"
"क्यों?"
"क्योंकि डॉलर उसके पास हैं और मुझे तुम लोगों पर भरोसा नहीं है। इतना भरोसा नहीं कि उसे तुम्हारे सामने कर दूं।"
"दोपहर को तो तुमने कहा था कि...।"
"तुम्हें डॉयरी चाहिए, वो मिल जायेगी।"
"हमें जल्दी चाहिए।"
"जल्दी मिलेगी।"
"तुम्हारा रवैया बदला-बदला सा है। वजह क्या है मिस्टर जुगल किशोर?"
"कोई वजह नहीं है। वहम में मत पड़ो। मेरी नींद पूरी नहीं है और इस वक्त मैं मोहनलाल दारूवाला का पीछा कर रहा हूँ। लेकिन मेरा वादा है तुमसे कि वो डॉयरी तुम लोगों को ही मिलेगी। जुगल किशोर का वादा...।"
"हमें तुम्हारे वादे का यकीन नहीं। तुमने पहले भी हमसे वादा किया था और बदले में धोखेबाजी दी...।"
"गलत मत कहो। मैंने कोई धोखेबाजी नहीं। फिरौती लेने के बाद रिचर्ड जैक्सन को मैं तुम्हारे हवाले करने वाला था। परन्तु तुम लोगों ने वक्त से पहले ही मेरे काम में दखलंदाजी कर दी और सारा काम खराब हो गया।" जुगल किशोर ने कहा--- "तुम लोग मुझे स्पष्ट बताते कि रिचर्ड जैक्सन के पास काली जिल्द वाली डॉयरी है। वो उससे लेनी है तो तुम लोगों का काम कब का हो गया होता। यानि कि जो भी गड़बड़ हुई वह तुम लोगों की नादानी से हुई और दोषी मुझे ठहरा रहे हो।"
"मैं बीते वक्त की बहस में नहीं पड़ना चाहता।" उधर से जकिर ने कहा।
"ये तो अच्छी बात है।"
"तुम हमसे सिर्फ डॉयरी की बात करो कि कब वो हमें दोगे?"
"जल्दी दूंगा। शायद रात तक या फिर कल तक।"
"ठीक है। मैं तुम्हें हर दो घंटे बाद फोन करूंगा।"
जुगल किशोर ने फोन बंद करके वापस जेब में रखा।
मोहनलाल दारूवाला के पीछे लगा रहा वो।
■■■
मोहनलाल दारूवाला ने अपने घर के बाहर कार ले जा रोकी इंजन बंद किया।
"मोहनलाल।" लक्ष्मी कह उठी--- "तुम थक गए होगे, चलो मैं तुम्हें चाय बना कर खिलाती हूं।"
"मैं सोच रहा हूं कि मैं जो उपन्यास लिख रहा हूं, क्यों ना उस पर फिल्म बनाऊं। कहानी अच्छी बन रही है।"
"उसमें हीरोइन है?"
"क्यों नहीं, हीरोइन का तो बहुत ही अच्छा काम है।" मोहनलाल दारूवाला कार का दरवाजा खोलता कह उठा--- "मैं इस बारे में विचार करता हूं और हीरोइन के रोल को और भी बढ़िया बना दूंगा कि तू एकदम फिट हो जाये।"
लक्ष्मी का चेहरा खिल उठा।
मोहनलाल दारूवाला कार से बाहर निकला।
उधर से लक्ष्मी निकली। हीरोइन बनने के सपनों में गुम।
"मोहनलाल, चाय बाद में पियेंगे, पहले वो...वो...।" लक्ष्मी ने आंखें नचाकर कहा।
"क्या वो?"
"वो ही...।" लक्ष्मी ने पुनः भवें हिलाई--- "बहुत दिन हो गए--- वो...।"
"अच्छा-अच्छा वो।" मोहनलाल दारूवाला ने सिर हिलाया--- "लेकिन अभी वो नहीं। मैंने तेरे को टॉप की हीरोइन बनाना है और इस वक्त मेरा दिमाग तेरे रोल में उलझा हुआ है। तू चाय बना और---।"
मोहनलाल दारूवाला कहते-कहते ठिठका।
उसकी निगाह उन चार आदमियों पर जा टिकी जो कि उसकी कार के पास आ पहुंचे थे।
लक्ष्मी ने भी उसे देखा।
"तो मोहनलाल दारूवाला तुम हो?" एक ने कहा।
"मैं....मैं... नहीं तो...।" मोहनलाल दारूवाला के होंठों से निकला।
"अपना लाइसेंस दिखाओ।" दूसरा व्यक्ति तीखे स्वर में बोला।
मोहनलाल दारूवाला ने लक्ष्मी को बेचैनी से देखा।
लक्ष्मी के चेहरे पर घबराहट नाच उठी थी।
"मैं ही हूं मोहनलाल दारूवाला।" उसे कहना पड़ा--- "क्या बात है।"
"चलो हमारे साथ, तुम्हें ले जाना है।"
"क्या मतलब?" मोहनलाल दारूवाला का हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर की तरफ सरका--- "तुम...।"
उसी पल एक ने आगे बढ़कर उसकी कलाई पकड़ी और कठोरता से बोला---
"क्या है जेब में?"
मोहनलाल दारूवाला के चेहरे पर कठोरता उभरी।
उस व्यक्ति ने जेब में हाथ डाला और रिवाल्वर निकाल ली।
"ये तो रिवाल्वर भी रखता है।" दूसरे ने कड़वे स्वर में कहा।
"चल हमारे साथ---।"
"लेकिन...।" मोहनलाल दारूवाला ने कुछ कहना चाहा।
"चुप कर। इस बार एक ने रिवॉल्वर निकालकर उसे दिखाई।
मोहनलाल दारूवाला ने तुरन्त फंसी निगाहों से लक्ष्मी को देखा।
लक्ष्मी उसे ही देख रही थी, जैसे कह रही हो मैंने कहा था ना कि डॉलरों के साथ मुंबई की ट्रेन पकड़ लेते हैं। परन्तु तुम नहीं माने। अब भुगतो इस नई मुसीबत से!
"तू घबरा मत लक्ष्मी--- मैं जल्दी ही वापस आऊंगा।" मोहनलाल दारूवाला और क्या कहता।
"अपनी राजी-खुशी मुझे फोन पर बता देना।" लक्ष्मी ने मन मार कर कहा।
"चल...।"
वो चारों मोहनलाल दारूवाला को लेकर गली के मोड़ की तरफ चल पड़े।
"आखिर तुम लोग हो कौन--- और मुझसे क्या चाहते हो...?"
"जुबान बंद रख। तुझे उठा कर लाने का हमें पचास हजार रुपया दिया गया है।"
"किसने?"
"अभी पता चल जाएगा...।"
तभी सामने से थैला पकड़े चोपड़ा साहब आते दिखे।
चोपड़ा साहब को देखते ही मोहनलाल सीधा होकर चलने लगा।
"कैसे हो मोहनलाल जी, गोल्फ खेलने जा रहे हो?" चोपड़ा ने खुशी भरे स्वर में कहा--- "मुझे छोड़ दिया। बताया नहीं कि गोल्फ...।"
"मैं कहीं और जा रहा हूं...।" चलते-चलते मोहनलाल ने कहा।
"कहो तो मैं भी साथ चलूं। आज फुर्सत में हूं। थैला रखकर आता...।"
"फिर कभी...।" मोहनलाल उन चारों के साथ आगे बढ़ता चला गया।
गली के मोड़ पर कार में आगे वाली सीट पर हेमंत बैठा था। ड्राइविंग सीट पर वर्दी पहने ड्राइवर था। मोहनलाल को कार के पीछे वाली सीट पर बिठाया गया और दो आदमी उसकी अगल-बगल पर बैठ गए। कार आगे बढ़ गई।
"आखिर तुम लोग हो कौन और मुझे कहां ले जा रहे हो?" मोहनलाल दारूवाला हेमंत को देखकर कह उठा।
"तुम मोहनलाल दारूवाला हो?" हेमंत ने गर्दन घुमा कर उसे देखते हुए कहा।
"हां...। परन्तु...।"
"इसकी आंखों पर रुमाल बांध दो कि ये देख ना सके कि इसे कहां ले जाया जा रहा है।" हेमंत बोला।
फौरन ही मोहनलाल दारूवाला की आंखों पर रुमाल बांध दिया गया।
"अपने बारे में कुछ बताओगे कि नहीं?" मोहनलाल दारूवाला गुस्से से बोला--- "ये क्या बदमाशी है।"
"चुपचाप बैठे रहो।" हेमंत ने कहा--- "कोई तुमसे मिलना चाहता है। तुम्हें उसके पास ले जा रहे हैं।"
■■■
कार उस शानदार बंगले में प्रवेश कर एक तरफ बने गेस्ट हाउस के सामने पहुंचकर रुक गई थी। पर बैठे ड्राइवर, हेमंत और मोहनलाल दारूवाला को पीछे दबाए बैठे व्यक्ति उसके साथ बाहर निकले।
मोहनलाल दारूवाला की आंखों पर अभी भी रुमाल बंधा था।
"तुम दोनों जाओ।" हेमंत उन दोनों से बोला--- "कल तुम में से एक आकर पचास हजार ले जाना।"
वो दोनों चले गए।
ड्राइवर भी वहां से हट गया था।
हेमंत ने आगे बढ़कर मोहनलाल दारूवाला की आंखों पर बंधा रुमाल हटाया।
मोहनलाल दारूवाला आंखें मलने लगा फिर आसपास देखकर पूछा---
"यह तुम्हारा बंगला है?"
"यह मेरे मालिक का बंगला है। मैं उनका मैनेजर हूं।" हेमंत ने गेस्ट रूम में सीढ़ियों की तरफ इशारा किया--- "चलो ऊपर।"
"तुम्हारे मालिक ऊपर हैं?" मोहनलाल दारूवाला बोला।
"वो नहीं हैं अभी। तुम्हें किसी और से मिलना है।"
"ईराकी लोग हैं वो?" पूछा मोहनलाल दारूवाला ने।
"ईराकी लोग?" हेमंत की निगाहें उसके चेहरे पर टिकीं--- "मैं समझा नहीं।"
"तुम जिससे मुझे मिलाना चाहते हो, वो विदेशी हैं या हिन्दुस्तानी?"
"हिन्दुस्तानी--- अपने ही देश का है।"
मोहनलाल दारूवाला ने एक निगाह गेस्ट रूम पर मारी। वह चाहता तो हेमंत को निपटाकर आसानी से यहां से निकल सकता था। उसे यहां रोकने वाला कोई नहीं था। परन्तु वह भी जानना चाहता था कि आखिर मामला क्या है? किसने उसे इस प्रकार मंगवाया? उसे एक बार देख लेना चाहता था।
मोहनलाल दारूवाला ने सिर हिलाया और सीढ़ियों की तरफ बढ़ते बोला---
"तुम जिस तरह मुझे उठा लाये, वो तुमने अच्छा नहीं किया।"
"शुक्र करो कि हम तुम्हारे हाथ-पैर तोड़ कर नहीं लाये। तुम आसानी से चलने को तैयार हो गए थे।"
"मेरी रिवाल्वर वापस दे देना।"
"वो मेरे पास नहीं है।" हेमंत उसके पीछे सीढ़ियां चढ़ता कह उठा।
"उन आदमियों के पास है जिन्हें तुमने किराये पर लिया था। कल उन्हें पैसे देने से पहले रिवाल्वर ले लेना। मैं ले जाऊंगा।"
हेमंत ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
सीढ़ियां चढ़ते वे गेस्ट रूम की पहली मंजिल पर पहुंचे।
"बाईं तरफ...।" पीछे मौजूद हेमंत ने कहा।
"तुम मेरे आगे-आगे क्यों नहीं चलते?"
"पीछे मैं सुरक्षित हूं और तुम्हें संभाल सकता हूं...।"
"मैं फौजी हूं...।"
"जो ट्रेनिंग मुझे मिली हुई है, उसका तुम क-ख-ग भी नहीं जानते।"
"तुम मुझे नहीं संभाल सकते।"
"ट्रेनिंग में तुम्हें रिवाल्वर की गोलियों से बचना भी सिखाया है?" हेमंत ने तीखे स्वर में कहा।
मोहनलाल दारूवाला ने गर्दन घुमाकर हेमंत को देखा।
"तुम्हारे पास रिवाल्वर तो है नहीं।"
"उसे मैं जरूरत पड़ने पर ही निकालता हूं। बस यहीं...।" एक दरवाजा आने पर हेमंत ने कहा--- "दरवाजा खोलो और भीतर चलो।"
मोहनलाल दारूवाला ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गया।
हेमंत उसके पीछे था। भीतर आते हुए उसने दरवाजा बंद कर दिया।
मोहनलाल दारूवाला की नजर सामने पड़ी तो आंखें हैरानी से फटती चली गईं।
मुंह खुला का खुला रह गया।
सामने बैड पर देवराज चौहान लेटा उसे देख रहा था। तकिये के सहारे सिर ऊंचा करके टिका रखा था।
देवराज चौहान के चेहरे पर शांत सी मुस्कान नाच उठी।
जबकि मोहनलाल दारूवाला को काटो तो खून नहीं जैसा हाल था।
"त... तुम?" मोहनलाल दारूवाला के होंठों से खरखराता स्वर निकला--- "तुम...तु...।"
"कैसे हो मोहनलाल दारूवाला?" देवराज चौहान बोला।
"तुम जिंदा हो?" मोहनलाल दारूवाला लंबी-लंबी सांसें लेने लगा।
"हां...।"
"मैंने तो सोचा था कि तुम मर गए होगे...।"
"इसे कुर्सी पर बैठाओ।" देवराज चौहान ने हेमंत से कहा--- "मैंने इससे बहुत बातें करनी हैं।"
हेमंत ने कुर्सी को देवराज चौहान के बैड के पास रखा और मोहनलाल से कहा---
"यहां बैठो...।"
मोहनलाल दारूवाला आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठ गया। वो मन की स्थिति के अजीब हाल में था।
हेमंत तीन कदमों के फासले पर खड़ा हो गया।
"अब तुम्हारी हालत कैसी है?" मोहनलाल दारूवाला ने पूछा।
"ठीक है।"
"तुम्हें गोली लगी थी ना कमर में--- मैंने तब देखा था। शुक्र है तुम बच गये। तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं कहां रहता हूं?"
"तुम्हारा नाम मुझे मालूम था। तुमने बताया था तो तुम्हारी तलाश कर ली।"
"मेरा नाम उस हाल में भी तुम्हें याद रह गया--- हैरानी है। मुझे पता होता कि तुमसे मिलना है तो मैं वैसे ही चला आता। मुझे पकड़ा कर मंगाने की क्या जरूरत थी? बोलो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं।"
"तुम कौन हो?"
"मोहनलाल दारूवाला।"
"अपने बारे में पूरी बात बताओ...।"
"मैं फौज से रिटायर्ड हूँ। पेंशन आती है। थोड़ा पैसा जमा कर रखा है। घर का खर्चा चल जाता है। मेरी बीवी है घर पर। बच्चा कोई नहीं है। बस इतना ही है बताने को। तुम क्या जानना चाहते हो?"
"कल तुम जंगल में क्या कर रहे थे?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मैं वहां शिकार करने जाता रहता हूं। एक बार शिकार करने गया था तो सोये हिरण को गोली मारकर शिकार कर लिया। उसके बाद इसी लालच में, वक्त मिलने पर जंगल में पहुंच जाता हूं कि शायद हिरण का शिकार हो जाये। वक्त भी कट जाता है। वैसे इन दिनों मैं उपन्यास भी लिख रहा हूं। क्या करूं, वक्त भी तो काटना है। हर वक्त लक्ष्मी के सिर पर बैठा रहूं तो वह भी चिढ़ जाती है। इसलिए अपने को व्यस्त रखता हूं...।"
"तुम कल वहां कैसे पहुंचे?"
"गोलियों की आवाज सुनकर। मैं एक पहाड़ी पर तब शिकार की टोह ले रहा था कि मैंने गोलियां चलने की आवाज सुनी। उस फायरिंग से इतना तो मुझे पता चल गया कि यह गोलियां कम से कम किसी जानवर का शिकार करने के लिए तो चलाई नहीं जा रहीं। मैं उस तरफ चल पड़ा, जिधर से गोलियों की आवाजें आ रही थीं। करीब आधा घंटा मुझे लग गया था वहां तक पहुंचने में--- तो मैंने वहां लाशें पड़ी देखीं। बुरा हाल था वहां और तभी मैंने तुम्हें कार के भीतर पीछे वाली सीट पर बैठे पाया। तब मैंने तुम्हारे शरीर में मामूली सी हलचल देखी थी। तुम आधी बेहोशी की हालत में थे। मैंने तुम्हें हिलाकर होश में लाने की चेष्टा की। तुमने चंद पलों के लिए आंखें खोलीं और पानी मांगा--- परन्तु मेरे पास पानी समाप्त हो चुका था। फिर तुमने मेरा नाम पूछा और बेहोश हो गए।"
"फिर?"
"फिर मैं वहां से चला आया।" मोहनलाल दारूवाला ने सहज स्वर में कहा।
"चले आये?" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"और क्या, मेरा काम है क्या था वहां...।" मोहनलाल दारूवाला कुछ बेचैन हुआ।
"तुमने पुलिस को खबर नहीं दी कि जंगल में लाशें पड़ी हैं?" देवराज चौहान बोला।
"मैं।" मोहनलाल दारूवाला ने व्याकुलता से पहलू बदला--- "फंसना नहीं चाहता था।"
"क्यों फंसते तुम?"
"क्या पता पुलिस मुझे ही लाशों के मामले में लपेटे में ले लेती।" मोहनलाल दारूवाला बोला।
"तुम गुमनाम फोन कॉल भी पुलिस को कर सकते थे।"
"मेरी मर्जी।" मोहनलाल दारूवाला बोला--- "वो सब देखने के बाद मैं घर जाकर बैठ...।"
"वो डॉलरों वाला सूटकेस कहां है?"
मोहनलाल दारूवाला का दिल तेजी से धड़का।
"क... क्या?" उसके होंठों से निकला।
"तुम अच्छी तरह समझ रहे हो कि मैं क्या कह रहा हूं।"
"मैं कुछ नहीं समझ रहा कि तुम क्या कह रहे हो।" मोहनलाल दारूवाला खुद को संभाल कर कह उठा।
"मैं डॉलरों से भरे सूटकेस की बात कर रहा हूं। जब मैं बेहोशी की हालत में पहुंचा तो डॉलरों का सूटकेस कार की डिग्गी में रखा हुआ था। मुझे जिसने मारा, वो भी वहां मरा पड़ा है। जाहिर है कि वो लोग एक-दूसरे पर गोलियां चला कर मर गये। मैं यह सब नहीं देख पाया क्योंकि गोली लगते ही मेरा सिर कार से टकराया और मैं बेहोश हो गया। उस दौरान तुम ही वहां आए थे। तुम ही कार की डिग्गी से डॉलरों से भरा सूटकेस ले गए।"
"तुम तो बेहोश थे।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा।
"हाँ...।"
"क्या पता मेरे से पहले भी वहां कोई आया हो और सूटकेस ले गया...।"
"कोई नहीं आया।"
"ये तुम कैसे कह सकते हो?"
"उस घने जंगल में कोई राह चलता नहीं आ सकता। तुम्हारी बात अलग है कि तुम पहले से ही वहां मौजूद शिकार कर रहे थे। मैं तुमसे प्यार से पूछ रहा हूँ। झूठ मत बोलो--- और सब डॉलर मेरे हवाले कर दो।"
"मैंने नहीं लिया कुछ भी...।"
"तुमने ही लिया है।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला।
मोहनलाल दारूवाला ने देवराज को देखते हुए कुछ बेचैनी से पहलू बदला।
"जब तक तुम सूटकेस मेरे हवाले नहीं करोगे, मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं।" देवराज चौहान ने बोला--- "अगर तुमने पुलिस को वहां हुए हादसे की खबर दी होती तो मैं सोच सकता था कि सूटकेस तुमने नहीं लिया। परन्तु वहां लाशें देखने के बाद भी तुम खामोश रहे तो इसकी एक ही वजह है कि तुम्हें सूटकेस में पड़े डॉलरों का पता चल गया था और उसे तुम ही ले गए। बनने की कोशिश मत करो। वो सूटकेस तुम्हारे पास ही है। उसे सीधी तरह से हमारे हवाले कर दो।"
मोहनलाल दारूवाला को लगा कि बातें करके वो आसानी से बच नहीं पायेगा। जबकि वो इन लोगों से पीछा छुड़ा लेना चाहता था ताकि डॉलरों के साथ मुंबई पहुंचकर, फिल्म बनाने की तैयारी कर सके। लक्ष्मी को टॉप हीरोइन बना देने की चाहत उसके मन में कूट-कूट कर भर चुकी थी।
"उस सूटकेस में इतने ज्यादा डॉलर हैं कि खर्च करने में तुम्हारी जिंदगी छोटी पड़ जायेगी। वो तुम्हारे लिए बेकार हैं। फिर भी तुम्हें इतने दे दूंगा कि तुम पूरी जिंदगी आराम से बिता सको।" देवराज चौहान ने कहा।
"दौलत जितनी भी हो कम होती है।" मोहनलाल दारूवाला कह उठा।
"वो दस करोड़ डॉलर हैं।"
"क्या?" मोहनलाल का मुंह खुला का खुला रह गया--- "दस करोड़ डॉलर!"
"हाँ। तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा है। तुम्हें एक करोड़ भी मिल जाये तो तुम राजा बनकर जिंदगी बिताओगे।"
मोहनलाल दारूवाला देवराज चौहान को हैरानी से देखने लगा।
"मैं उसमें से एक करोड़ डॉलर दे दूंगा। तुम्हारी सारी जिंदगी मजे में कटेगी।"
"बाकी नौ करोड़ तुम ले लोगे?"
"हाँ।"
"वो तुम्हारे हैं?"
"एक चौथाई तो मेरे थे। बाकी मर चुके हैं। लालच में फंसकर। एक ने सबको मारना शुरू कर दिया।"
मोहनलाल दारूवाला सोच भरी नजरों से देवराज चौहान को देखने लगा।
हेमराज तीन कदमों के फासले पर खड़ा था।
"तुम्हारे पास सोचने को कुछ नहीं है मोहनलाल दारूवाला। वो सारे डॉलर मेरे हवाले...।"
"तुम घायल हो। मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।"
तभी खामोश खड़े हेमन्त ने रिवाल्वर निकाली और आगे बढ़ नाल उसकी गर्दन पर लगाई।
"मुझे भूल गया तू---।"
"तेरे पास तो सच में रिवाल्वर है।" मोहनलाल दारूवाला गर्दन पर नाल का एहसास पाकर कह उठा।
"मैं इतने लोगों की यहां लाइन लगा सकता हूँ कि वो सब तेरे को एक-एक थप्पड़ मारने लगे तो तू थप्पड़ खाते-खाते मर जायेगा, परन्तु मारने वाले तब भी बच जायेंगे।" हेमन्त ने दांत भींचकर कहा।
"साले! अभी तेरी अक्ल ठिकाने लगा दूं।"
मोहनलाल दारूवाला ने उसे गर्दन घुमाकर देखा।
"क्या देखता है, हाँ? क्या देखता है?"
"तुझे तो बाद में देखूंगा।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा, फिर देवराज चौहान ने बोला--- "तुम सीधी बात करो। तुम्हें डॉयरी चाहिए?"
"डॉयरी?" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।
"वो ही डॉयरी जो डॉलरों के ऊपर रखी थी सूटकेस में।" कहते ही मोहनलाल दारूवाला ने कमीज के भीतर और पैंट में फंसा रखी डॉयरी निकालकर देवराज चौहान की तरफ बढ़ाई--- "ये लो।"
"ये क्या है?" डॉयरी थामे देवराज चौहान ने उलझन भरे स्वर में कहा।
"वो ईराकी लोग भी इसी डॉयरी को मांग रहे थे। वैसे ये मैं उन लोगों को देने वाला था, पर अब तू ले ले और मेरी जान छोड़।"
देवराज चौहान थोड़ा सा और सीधा होकर बैठा और उस डॉयरी को देखने लगा। उस पर हाथ से लिखी भाषा उसकी समझ में नहीं आई। परन्तु इतना उसे एहसास हो गया कि डॉयरी पुरानी है। अंत में लगे नक्शों को खोलकर देखा तो काफी देर उसे खोलकर देखता रहा। उसे इतना तो एहसास हो गया कि यह किसी गुप्त जगह का नक्शा है, परन्तु ज्यादा कुछ नहीं समझ पाया।
नक्शा पहले की तरह बंद करके डॉयरी बंद की और मोहनलाल दारूवाला को देखा।
वो उसे ही देख रहा था।
"मिल गई डॉयरी?"
"ये तुम्हें कहां से मिली?" देवराज चौहान ने पूछा।
"उन्हीं डॉलरों वाले सूटकेस में से डॉलरों के ऊपर रखी हुई थी।"
"तुम किन ईराकी लोगों की बात कर रहे थे?"
"तुम्हें नहीं पता?"
"नहीं। मैं उनके बारे में नहीं जानता।"
"उन सालों ने मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर रखी है कल से--- और तुम उन्हें जानते नहीं!" मोहनलाल दारूवाला ने गहरी सांस ली।
"मुझे बताओ उनके बारे में। वो तुम्हें कहां मिले, क्या बातें हुईं?"
मोहनलाल दारूवाला ने वो सब बातें बताईं जो वो जानता था।
देवराज चौहान ने सब सुना।
अधिकतर बातें उसके लिए नई थीं।
उसे तो सिर्फ वीरा त्यागी, प्रेम सिंह और नारायण टोपी के बारे में पता था, जिनके साथ काम करके उसने दस करोड़ डॉलरों को हासिल किया था। अब नई बातें उसे पता चलीं।
"तो वो पांचों ईराकी तुमसे डॉयरी चाहते हैं। डॉलर नहीं।" देवराज चौहान बोला।
"हाँ।"
देवराज चौहान ने डॉयरी उसकी तरफ बढ़ाकर कहा---
"ये लो।"
"क्या मतलब?"
"मुझे डॉयरी नहीं--- डॉलर चाहिए।" देवराज ने डॉयरी उसकी तरफ बढ़ाये रखी।
"तो तुम्हें डॉयरी नहीं चाहिए।" मोहनलाल दारूवाला कड़वे स्वर में बोला--- "डॉयरी मैं उन लोगों को दे दूं। और डॉलर तुम्हें दे दूं--- और मैं उस खाली सूटकेस को ढोल समझ कर बजाता रहूं...।"
"मैं तुम्हें उसमें से एक करोड़ डॉलर दूंगा।"
"तुम कौन होते हो देने वाले? वो अब मेरे पास हैं और मेरे हैं। तुम ये डॉयरी रख लो। खुशी से दे रहा हूं।"
"मुझे डॉयरी नहीं--- डॉलर चाहिए।"
"वो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। मैंने अपनी जिंदगी की प्लानिंग कर ली है, वो डॉलर वहां खर्च हो जाएंगे।"
"डॉलर तुम्हारे नहीं हैं।" देवराज चौहान सख्त स्वर में कह उठा--- "वो मेरे हवाले---।"
"नाम क्या है तुम्हारा?" मोहनलाल दारूवाला ने एकाएक पूछा।
"तू इसका नाम नहीं जानता?" हेमराज कह उठा--- "ये डकैती मास्टर देवराज चौहान है। नाम तो सुना ही होगा।"
"देवराज चौहान--- डकैती मास्टर?" मोहनलाल दारूवाला ने कहा--- "मैंने तो नाम नहीं सुना।"
"नहीं सुना?"
"नहीं।"
"इसी दुनिया में रहता है ना?"
"हाँ।"
"तो तूने डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम नहीं सुना?" हेमराज ने तीखे स्वर में कहा।
"कोई जरूरी है कि मुझे डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना होना चाहिए तो ही मैं सांस लेने का हकदार बनूंगा?"
"उल्लू का पट्ठा!"
"फौजी को गाली मत दे।" मोहनलाल दारूवाला सख्त स्वर में कह उठा--- "मुझे गुस्सा आ गया तो...।"
देवराज चौहान ने इशारे से हेमंत को चुप रहने को कहा।
"मोहनलाल!" देवराज चौहान ने डॉयरी को बैड के किनारे पर रख दिया--- "मुझे इस डॉयरी में कोई दिलचस्पी नहीं है। ये तुम ले लो। मुझे डॉलर चाहिए। उनमें से एक करोड़ डालर तुम्हें दे...।"
"मैं तुम्हें डॉलर नहीं दे सकता।" मोहनलाल दारूवाला ने स्पष्ट कहा।
"वो मेरे हैं।"
"अब वो मेरे हैं।"
देवराज चौहान मोहनलाल दारूवाला को देखने लगा।
"ये ऐसे नहीं मानेगा देवराज चौहान---।" हेमंत गुस्से से बोला--- "इसे मैं...।"
तभी मोहनलाल दारूवाला फुर्ती से उठा और पीछे खड़े हेमन्त पर झपट पड़ा। हेमंत रिवाल्वर तो कब की जेब में रख चुका था। मोहनलाल ने जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर जड़ दिया।
चीख के साथ हेमन्त नीचे जा गिरा।
मोहनलाल जल्दी से आगे बढ़ा और नीचे पड़े, उठ रहे हेमन्त के सिर में जोरदार जूते की ठोकर मारी। हेमंत कराहकर तड़पा और फिर बेहोश होकर वहीं लुढ़क गया।
बैड पर लेटा देवराज चौहान शांत सा यह सब होता देख रहा था।
मोहनलाल दारूवाला पलटकर कठोर स्वर में देवराज चौहान से बोला।
"अब तो तुम्हें समझ आ गई होगी कि मैं पक्का फौजी हूं। मेरे से पंगा लिया तो छोडूंगा नहीं। ये डॉयरी मैंने तुम्हें अपनी खुशी से दी है। तुम्हें पानी पिलाने के चक्कर में मैं मुसीबत में पड़ गया हूं। दोबारा मेरे रास्ते में मत आना। तुम तो मुझे एक करोड़ डॉलर दे रहे थे, परन्तु मैं तुम्हें एक डॉलर भी नहीं दे सकता। उन डॉलरों से मुझे बहुत बड़ा काम करना है। मुझे तो डर है कि उस काम में वो डॉलर भी कम ना पड़ जायें।"
देवराज चौहान मोहनलाल दारूवाला को देखता रहा।
"मैं जा रहा हूं।" कहने के साथ ही आगे बढ़कर मोहनलाल दारूवाला ने बेहोश पड़े हेमंत की तलाशी ली और रिवाल्वर निकालकर अपनी जेब में रखता देवराज चौहान से बोला--- "मेरी रिवाल्वर इसके आदमियों ने ले ली थी। वो दो नंबर की रिवाल्वर है, इसलिए मुझे उसकी परवाह नहीं। बदले में मैंने इसकी ले ली। अब मैं जा रहा...।"
"तुम्हें मेरे डॉलर मेरे हवाले करने होंगे।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"कभी नहीं।" मोहनलाल दारूवाला ने दांत भींचकर कहा।
"वो सिर्फ मेरे हैं।"
"अगर तुम्हारे ये इरादे हैं तो मैं अभी तुम्हारा गला दबा देता हूं।" मोहनलाल दारूवाला देवराज चौहान के पास जा पहुंचा।
"तुम मेरी जान नहीं ले सकते---।"
"क्यों? तू मेरा रिश्तेदार है क्या... जो...।"
"जो आधी रात को एक घायल को पानी पिलाने पहुंच जाये, वह किसी की जान नहीं ले सकता।"
मोहनलाल दारूवाला उसे घूरने लगा फिर बोला--- "किसी भूल में मत रहना। उन दस करोड़ डॉलरों को मैं अपना बनाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं। अगर दोबारा तुम मेरे रास्ते में आए तो मैं तुम्हारी जान जरूर ले लूंगा।" मोहनलाल दारूवाला ने धमकी भरे स्वर में कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया, फिर ठिठककर नीचे बेहोश पड़े हेमराज की तरफ इशारा करता कह उठा--- "इसे भी समझा देना।"
इसके साथ ही मोहनलाल दारूवाला दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। 'धड़ाम' से उसने दरवाजा बंद किया।
देवराज चौहान शांत निगाहों से बंद दरवाजे को देखता रहा, फिर सिर ऊपर करके उसने बेहोश पड़े हेमराज को देखा, उसके बाद बैड पर पड़ी डॉयरी उठाकर उसे खोला और उस पर नजरें दौड़ाने लगा।
■■■
जुगल किशोर, मोहनलाल दारूवाला के पीछे था।
जुगल किशोर ने सब देखा था--- जब मोहनलाल दारूवाला को वो चारों आदमी जबरदस्ती ले जा रहे थे। जुगल किशोर ने अपनी कार उनके पीछे लगा दी थी, परन्तु वह समझ नहीं पाया कि ये लोग कौन हैं, जो मोहनलाल दारूवाला को इस तरह ले जा रहे हैं। कम से कम इराकियों के आदमी तो होने से रहे। ईराकी इतनी जल्दी मोहनलाल दारूवाला तक नहीं पहुंच सकते। हालांकि जुगल किशोर ने सोच रखा था कि जब मोहनलाल दारूवाला घर में चला जाएगा तो घर में घुसकर उस पर काबू पाकर उससे डॉलर और डॉयरी हासिल करेगा, परन्तु ये सब होता पाकर उसे मन मसोस कर रह जाना पड़ा।
उस कार के पीछे जुगल किशोर ने अपनी कार लगाए रखी।
आधे घंटे बाद जुगल किशोर ने उस कार को साउथ दिल्ली के एक बंगले में प्रवेश करते देखा तो जुगल किशोर ने अपनी कार बंगले के सामने मुनासिब जगह पर रोक दी और मोहनलाल दारूवाला के बाहर आने के इंतजार में खड़ा हो गया। वैसे वो नहीं जानता था कि वो बंगले से बाहर निकलने की स्थिति में होगा या नहीं? उसे जबरदस्ती पकड़ कर लाया गया है। परन्तु इतना तो उसे एहसास था कि यह सब डॉलरों की वजह से हो रहा है
जुगल किशोर ने बंगले के बाहर लगी नेम प्लेट पढ़ ली थी, वहां विनायक लिखा हुआ था।
पता नहीं ये विनायक कौन है, जो इस मामले में आ गया। कहीं मोहनलाल दारूवाला उसे डॉलर देने को तैयार ना हो जाये।
जुगल किशोर के मन में ढेरों तरह के अंदेशे नाचते रहे।
आखिरकार एक घंटे बाद जुगल किशोर ने मोहनलाल दारूवाला को बंगले से बाहर निकलते देख कर चैन की सांस ली। वह पैदल ही एक तरफ बढ़ गया। जुगल किशोर कार पर ही उसके पीछे रहा। नजर रखता रहा।
कुछ आगे जाकर मोहनलाल दारूवाला को ऑटो मिला तो उसमें सवार हो गया।
अब जुगल किशोर को ऑटो का पीछा करने में आसानी हो गई।
तभी जुगल किशोर का फोन बजा।
"हैलो।"
"मिस्टर जुगल किशोर...।" हुसैन की आवाज कानों में पड़ी--- "हमारा काम भी कर दो।"
"तुम्हारा ही काम कर रहा हूं। शायद रात तक वो डॉयरी मैं उससे ले लूं।"
"मेरा तो ख्याल था कि तुमने डॉयरी ले ली होगी।"
"फिक्र मत करो। काम जल्दी हो जाएगा।"
"तुम्हारे तीस करोड़ हमारे पास तैयार---।"
"तैयार ही रखो। मैं फोन करूंगा।" कहकर जुगल किशोर ने फोन बंद कर दिया। कार को ऑटो के पीछे लगाए रखा।
फिर उसने मोहनलाल दारूवाला को अपने घर की गली के मोड़ पर उतरते और ऑटो वाले को पैसे देकर गली में जाते देखा। शाम हो चुकी थी। जुगल किशोर ने फैसला कर लिया कि उसके घर में घुसकर ही इस पर कब्जा करेगा और डॉलर लेगा। मोहनलाल दारूवाला जब अपने घर में चला गया तो जुगल किशोर ने कार को गली के भीतर ले जाकर पार्क किया और इंजन बंद कर दिया। नजरें मोहनलाल दारूवाला के घर पर थीं, जिसके भीतर लाइट जल रही थी जुगल किशोर जानता था कि मोहनलाल दारूवाला को ठीक से संभालना होगा, तभी दस करोड़ डॉलर और डॉयरी उसे मिल पाएगी।
शाम का अंधेरा घिरना शुरू हो चुका था। जुगल किशोर कार से निकलकर मोहनलाल दारूवाला के मकान की तरफ बढ़ गया। जेब में पड़ी रिवाल्वर को टटोलकर उसका एहसास पाया तो हिम्मत में बढ़ोतरी महसूस की।
छोटा सा गेट खोलकर भीतरी दरवाजे पर पहुंचा और वहां लगी कॉलबेल बजा दी।
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लक्ष्मी तब तक बेचैन रही थी, जब तक कि मोहनलाल दारूवाला सही-सलामत वापस घर नहीं आ गया था। वरना तब तक वो यही सोचती रही कि कहीं उसका हीरोइन बनने का चांस बिगड़ न जाये।
"तुम आ गये!" लक्ष्मी उसे देखते ही खुशी से उछली और मोहनलाल दारूवाला के गले आ लगी।
"क्या बात है?" मोहनलाल मुस्कुराया--- "इतने प्यार से तो तुम तब भी नहीं मिली थी जब मैं फौज से छुट्टी लेकर घर आता था।"
लक्ष्मी उसी पल उससे अलग होकर कह उठी---
"कौन थे वो लोग--- और तुमसे क्या चाहते थे?"
"वो, वो ही था जिसे मैं पानी पिलाने गया था।" मोहनलाल ने बैठते हुए कहा।
"वो...वो तुम्हें कहां मिल गया? तुम तो कहते थे कि वो मर गया होगा...।"
"सोचा तो मैंने भी यही था परन्तु मुझे ले जाने वाले उसके ही आदमी थे। वो बैड पर घायल पड़ा इलाज करवा रहा है।" मोहनलाल दारूवाला ने गहरी सांस लेकर कहा--- "डॉलर उसी के थे।"
"उसी के थे?"
"हां। वापस मांग रहा था।" मोहनलाल दारूवाला ने बुरा-सा मुंह बनाया--- "कहता था एक करोड़ तेरे को दे देंगे। जानती है लक्ष्मी, वो दस करोड़ डॉलर हैं।"
"दस करोड़ डॉलर?" लक्ष्मी अचकचाई।
"हां। एक डॉलर 45-46 रुपए का है। जरा हिसाब तो लगा कि कितने हुए?"
लक्ष्मी ने हिसाब लगाना चाहा कि हाथ हिला कर कह उठी--- "जितने भी हों, इससे फिल्म तो बन जाएगी?"
"एक क्या, चार बन जायेंगी। छः भी बन जायेंगी।" मोहनलाल दारूवाला मुस्कुराया।
"मेरे लिए इतना ही ठीक है। तो तूने क्या कहा उसे...।"
"मैंने वो डॉयरी उसे दे दी? कहा, डॉलर नहीं दूंगा। वो मुझे चाहिए।"
"डॉयरी उसे दे दी। वो तो तूने दूसरे लोगों को देनी थी मोहनलाल?" लक्ष्मी के होंठों से निकला।
"मैंने तो जान छुड़ाई उसे डॉयरी देकर। जानती है कि एक को बेहोश करके वहां से निकला।"
"वो तो मुझे पता है कि तू बहादुर है मोहनलाल। तू फिल्म में विलेन का रोल करना।"
"विलेन का?"
"वो ही जो सबसे लड़ता रहता है।"
"मुझे इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं। मैं तो फिल्म बनाऊंगा। वो क्या छोटा काम है जो मुझे...।"
"तू अगर मेरी बात मान लेता तो यह सब न होता। हमें सारे डॉलर लेकर मुंबई चले जाना...।"
"जब उन लोगों ने मुझे पकड़ा तो तब मैंने यही सोचा था कि मुझे तेरी बात मान लेनी चाहिए थी।"
"अब मान ले...।"
"सोचने दे। तू मुझे बढ़िया सी चाय बनाकर पिला। कल से मिनट भर का चैन नहीं मिला।"
"शाम को एक पैग मार लेना। थोड़ा आराम मिल जाएगा। बोतल रखी है, जो छः महीने पहले लाया था।"
"वो चालू बंदा था कमीना...।"
"कौन?"
"वो ही जिसे पानी पिलाने गया था, जो आज मिला। मेरे पर रौब मार रहा था कि वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है। मैंने तो साले का नाम कभी सुना नहीं। तूने सुना है लक्ष्मी?" मोहनलाल दारूवाला ने उससे पूछा।
"मैंने भी नहीं सुना...।"
"कोई पागल होगा वो। अब वो मेरे रास्ते में नहीं आएगा। समझा आया हूं अच्छी तरह से। तू चाय...।"
"चाय रहने दे मोहनलाल। एक गिलास दारू मार ले। वो ठीक रहेगा।"
"ठीक है। तू कहती है तो...।"
तभी कॉलबेल बज उठी।
दोनों की नजरें मिलीं।
"अब कौन आ गया?" लक्ष्मी के होंठों से निकला।
"कहीं वो ईराकी ना हों?" मोहनलाल दारूवाला परेशानी से कह उठा।
"मैं देखती हूं...।"
"तू रहने दे।" मोहनलाल उठा--- "ये साले रात को भी चैन से नहीं सोने देंगे।"
मोहनलाल दारूवाला ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला।
सामने जुगल किशोर खड़ा था।
"कहिये...।" मोहनलाल दारूवाला बोला।
"मुझे तुमसे ही मिलना है। बात करनी है।" जुगल किशोर सख्त स्वर में बोला।
"मैं तुम्हें नहीं जानता...।"
"मैं तो तुम्हें जानता हूं कि तुम मोहनलाल दारूवाला हो। तुम्हारे पास डॉलर और डॉयरी हैं। तुम उन ईराकी लोगों को डॉयरी देने को तैयार हो गए थे, फिर एकाएक हजरत निजामुद्दीन की उस पुरानी इमारत की दूसरी मंजिल की खिड़की के साथ लगती पाइप से नीचे उतर आए और एक आदमी की कार लेकर भाग निकले। वहां से तुम जंगल में गए। वो कार वहीं पर छोड़ कर वहां से अपनी कार उठाकर फरीदाबाद के इसी घर में आ पहुंचे। दो-चार घंटे की नींद लेने के बाद तुम अपनी पत्नी के साथ हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर पहुंचे और क्लॉक रूम से सूटकेस निकलवाया, जिसमें की डॉलर भरे हुए थे। फिर तुम अपनी पत्नी को बाहर खड़ा करके बाथरुम में गए सूटकेस के साथ, पांच मिनट बाद बाहर निकले और सूटकेस वापस क्लॉक रूम में जमा कराकर इसी घर में आ पहुंचे, परन्तु भीतर नहीं जा सके। चार आदमी तुम्हें जबरदस्ती पकड़कर बसंत विहार दिल्ली के एक बंगले में ले गए। वहां एक घंटा रहने के बाद तुम अभी-अभी लौटे हो।"
मोहनलाल दारूवाला जुगल किशोर को देखता रह गया।
"तुम बुरी तरह फंसे पड़े हो। परन्तु मैं तुम्हें बचा सकता हूं।" जुगल किशोर पुनः बोला।
"तुम मुझे बचा सकते हो?"
"हां...।"
"मुझे हुआ ही क्या है जो तुम मुझे बचाओगे?" मोहनलाल भिनभिना कर बोला।
"ईराकी लोग तुम्हें ढूंढ रहे हैं--- जिनकी कैद से तुम भाग निकले हो।"
"उनसे मैं निपट लूंगा।"
"मैं उन्हें फोन करके अभी बता सकता हूं कि तुम यहां रहते हो।"
"अभी तक क्यों नहीं बताया?"
"मैं तुमसे बात करना चाहता...।"
"तुमने जो कहा, उससे जाहिर है कि तुम मेरा पीछा करते रहे हो।"
"हां...।"
"कौन हो तुम?"
"जुगल किशोर...।"
"तुम हो जुगल किशोर...।"
"क्या मतलब?"
"वो ईराकी तुम्हें ढूंढ रहे हैं। तुमने उनके साथ कुछ किया था। मैंने उन्हें बातें करते सुना था।"
"वो मेरे दोस्त हैं।"
"जब उनके हाथ लगोगे तो पता चलेगा कि तुम उनके कितने बढ़िया दोस्त...।"
"मेरी उनसे फोन पर बात होती है।"
मोहनलाल दारूवाला ने उसे घूरा, फिर कहा---
"तुम चाहते क्या हो?"
"तुमसे बात करनी है।"
"वो तो कर ही रहे हो...।"
"ये बात नहीं। डॉलरों और डॉयरी की बात। मुझे भीतर आने दो। खड़े-खड़े बात नहीं हो सकती।"
"और तुम्हें भीतर ना आने दूं?"
"तो मैं पुलिस को फोन करके बता दूंगा कि तुम्हारे पास डॉलर हैं और तुमने उन सबकी हत्या की है।"
"मैंने मारा है उन्हें?" मोहनलाल दारूवाला के दांत भिंच गए।
"मैंने ये नहीं कहा। मुझे मालूम है कि उन्हें तुमने नहीं मारा। परन्तु ऐसा मैं पुलिस से कह दूंगा। तुम फंस जाओगे। पुलिस तुम्हारा जीना हराम कर देगी। इसलिए तुम्हारा भला है कि तुम मेरी बात मानो।"
"तीसमारखां...।" मोहनलाल दारूवाला कड़वे स्वर में बोला--- "तुम पुलिस को कुछ नहीं बताने वाले। ये तो मैं जानता हूं। ये खोखली धमकियां किसी और को देना। तुम मुझे डराना चाहते हो।"
जुगल किशोर को ये अक्खड़ टाइप का इंसान लगा।
"मुझे भीतर आकर बात करने दो। हम दोनों के लिए वो ही ठीक रहेगा।" जुगल किशोर ने पुनः कहा।
"आओ...।" मोहनलाल दारूवाला एकाएक पीछे हटता कह उठा।
जुगल किशोर कमरे में आया।
मोहनलाल ने दरवाजा बंद किया।
सामने लक्ष्मी खड़ी थी--- उसने सब सुन लिया था।
"नमस्कार...।" जुगल किशोर ने हाथ जोड़कर कहा।
लक्ष्मी ने जवाब में नाक चिढ़ाई और मुंह फेर लिया।
जुगल किशोर सोफा चेयर पर जा बैठा।
"कहो।" मोहनलाल दारूवाला उसके सामने बैठता कह उठा--- "क्या बात करनी है तुम्हें?"
"वो डॉलर मेरे हैं।" जुगल किशोर ने कहा।
मोहनलाल के माथे पर बल पड़े फिर लक्ष्मी से बोला---
"सुना लक्ष्मी, एक और आ गया! कहता है डॉलर मेरे हैं।" आवाज में व्यंग्य भरा था।
"दो-चार दे दीजिए...।"
"इसका पेट दो-चार से नहीं भरने वाला। क्यों मिस्टर जुगल किशोर?"
जुगल किशोर के चेहरे पर कठोरता आ ठहरी।
"तुम मेरी बात को मजाक में ले रहे हो।" जुगल किशोर सख्त स्वर में बोला।
"नहीं। मैं किसी की बात भी मजाक में नहीं ले रहा।"मोहनलाल दारूवाला तीखी आवाज में बोला--- "इराकियों ने कहा कि उन्हें डॉयरी चाहिए डॉलर नहीं, तो मैंने गंभीरता से उनकी बात सुनी। उधर वो जो खुद को डकैती मास्टर देवराज चौहान कहता है, वो बोलता है कि डॉलर उसके हैं, तो बात को मजाक में नहीं लिया। अब तुम...।"
कहते-कहते ठिठका मोहनलाल दारूवाला।
जुगल किशोर के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे।
"क्या हुआ तुम्हें?"
"डकैती मास्टर देवराज चौहान...वो...वो तो मर गया था कार में...।"
"तुमने मारा उसे?"
"नहीं...।" जुगल किशोर बेचैनी से बोला--- "परन्तु तुम कहते हो कि...।"
"वो मरा नहीं, जिंदा है।"
"ये नहीं हो सकता...।"
"कैसे नहीं हो सकता? तुम उसे जबरदस्ती क्यों मार रहे हो? दोपहर में चार लोग मुझे ले गए थे ना?"
"हां...।"
"वो उसी डकैती मास्टर देवराज चौहान के पास ले गए थे मुझे। उसकी कमर में गोली लगी है। परन्तु वह जिंदा बच गया और वो बैड पर लेटा हुआ था। इलाज चल रहा है उसका। पर तुम उसका नाम सुनकर क्यों हड़बड़ा गये?"
"मैंने सोचा वो मर चुका है।" जुगल किशोर बेचैन था।
"कैसे मर गया? मैं दो घंटे पहले तो उसके पास था।"
"उसने तुमसे क्या कहा?" अपने को संभालते हुए जुगल किशोर ने पूछा।
"वो भी तुम्हारी तरह कह रहा था कि डॉलर मेरे हैं, मेरे हवाले कर दो।"
"फिर--- फिर तुमने क्या कहा?"
"मैंने तो साफ बोल दिया कि नहीं दूंगा। वो अब मेरे हैं। उसके आदमी ने मुझ पर रिवाल्वर लगा दी तो साले को मैंने बेहोश कर दिया। दो बार की ठुकाई में ही बेहोश होकर गिर गया।"
"और देवराज चौहान?"
"उसे क्या मारता वह तो बैड से हिल भी नहीं पा रहा था।"
"मुझे हैरानी है कि तुम उसके पास से बच आये।"
"जबरदस्ती उसे डॉयरी दे आया--- जिसे वो ले ही नहीं रहा था, मुझे वापस कर...।"
"डॉयरी--- काली जिल्द वाली डॉयरी?" जुगल किशोर सकपकाया।
"हां।"
"जो डॉलरों के ऊपर पड़ी थी?"
"हां।"
"वो मैंने ही रखी थी। तब सूटकेस कार की डिग्गी में पड़ा था। तुमने वो डॉयरी देवराज चौहान को दे दी?"
"जान छुड़ाई मैंने। मैंने सोचा इसी बहाने वो डॉलरों को तो भूलेगा।"
"ये तो गड़बड़ कर दी तुमने...।"
"क्यों?"
"छोड़ो! तुम सारे डॉलर मेरे हवाले कर दो।"
"वो अब मेरे हैं।"
"वो मेरे हैं।" जुगल किशोर कठोर स्वर में बोला--- "सीधी तरह वो सब मुझे दे दो।"
"पागल तो नहीं हो गया।" मोहनलाल दारूवाला भड़का--- "एक थप्पड़ मारूंगा तो...।"
उसी पल जुगल किशोर ने रिवाल्वर निकाल ली।
मोहनलाल दारूवाला के शब्द अधूरे रह गए रिवाल्वर देखकर।
"कहां रखे हैं डॉलर? हजरत निजामुद्दीन स्टेशन के क्लॉक रूम में है ना? उनकी रसीद मुझे दो।"
मोहनलाल दारूवाला उसे घूरने लगा।
"सुना नहीं तुमने...।"
"तू मेरे घर पर बैठा मुझे रिवाल्वर दिखा रहा है? जानता नहीं मैं फौजी हूं!" मोहनलाल दारूवाला उसे खा जाने वाली नजरों से देख रहा था--- "फौजी पर रिवाल्वर तानने का मतलब जानता है?"
"डॉलर मेरे हवाले कर वरना गोली मार दूंगा।" जुगल किशोर खतरनाक स्वर में बोला।
"मैंने तुझे डॉलर ना दिए तो तू मुझे गोली मार देगा?" मोहनलाल दारूवाला शब्दों को चबाकर कह उठा।
"हां...।"
"मुझे ना तो इराकियों ने गोली मारी, ना ही उस डकैती मास्टर ने--- तो तू कैसे मार देगा गोली? मैं मर गया तो तेरे को डॉलर कहां से मिलेंगे?" मोहनलाल दारूवाला कड़वे स्वर में बोला। फिर पसरकर बैठता कह उठा--- "तू मुझे गोली नहीं मार सकता।"
जुगल किशोर कुछ बेचैन हुआ, फिर बोला---
"डॉलर तूने निजामुद्दीन की रेलवे स्टेशन के क्लॉक रूम में रखे...।"
"वो आधे हैं।"
"बाकी आधे कहां हैं?"
"तेरे को क्यों बताऊं कि कहां रखे हैं? रिवाल्वर जेब में रख और निकल ले यहां से।"
"तू मुझसे इस तरह बात नहीं कर सकता।" जुगल किशोर ने गुस्से में कहा।
"क्यों नहीं कर सकता?"
"मेरे हाथ में रिवाल्वर है। अगर मैं तेरी जान नहीं लूंगा तो तेरे हाथ-पांव पर तो गोली मार...।"
तभी लक्ष्मी भड़क कर कह उठी---
"समझता क्या है अपने को? मेरे आदमी को गोली मारेगा? मैं तेरा मुंह नोच लूंगी।" कहने के साथ ही लक्ष्मी उस पर झपटी।
जुगल किशोर हड़बड़ा उठा।
लक्ष्मी ने उनकी रिवाल्वर पर हाथ डाल दिया।
"तेरी ये हिम्मत कि...।" लक्ष्मी को अपने हीरोइन बनने की चिंता थी, डॉलरों से।
"छोड़--- वरना मैं गोली चला दूंगा।" जुगल किशोर ने गुर्रा कर कहा।
"चला कर तो देख...।"
तभी मोहनलाल दारूवाला जल्दी से उठा और जेब से रिवाल्वर निकालकर जुगल किशोर के सिर पर लगा दी।
जुगल किशोर सकपकाया।
"छोड़ दे रिवाल्वर!" मोहनलाल दारूवाला तीखे स्वर में बोला--- "वरना मैं तेरी खोपड़ी...।"
"तुम ऐसा नहीं कर सकते।" बौखलाया जुगल किशोर कह उठा।
"ये बात है तो ले--- अब गोली चलाता हूं।"
जुगल किशोर ने हड़बड़ाकर रिवाल्वर छोड़ दी।
रिवाल्वर लक्ष्मी के हाथ आ गई तो उसे थामें पीछे हटती कड़वे स्वर में बोली---
"बड़ा आया मोहनलाल पर गोली चलाने वाला!"
जुगल किशोर अभी तक सकपकाया सा बैठा था।
मोहनलाल ने उसके सिर से रिवाल्वर हटाई और पीछे हटकर जेब में डालता कह उठा।
"निकल जा यहां से। दोबारा मत आना।"
जुगल किशोर की हालत में बदलाव नहीं आया।
"सुना नहीं तूने...।" मोहनलाल गुर्राया।
"वो डॉलर मेरे हैं...।" जुगल किशोर थके स्वर में कह उठा।
"तूने कहां से लिए वो?"
"मैंने अमरीकन जासूस का अपहरण करके उसकी फिरौती में वसूले थे।"
"तो अपहरण-फिरौती जैसे काम करता है तू! लक्ष्मी पुलिस को बुला।"
जुगल किशोर फौरन उठ खड़ा हुआ।
लक्ष्मी रिवाल्वर को नाल से पकड़े खड़ी थी।
"सुनो--- मैं तुम्हें उसमें से लाख डॉलर दे दूंगा।" जुगल किशोर ने कहा।
"लाख! वो देवराज चौहान तो एक करोड़ डॉलर मुझे दे रहा था।" मोहनलाल दारूवाला ने व्यंग्य से कहा।
"मैं भी एक करोड डॉलर दे दूंगा।" जुगल किशोर जल्दी से बोला।
"बड़ा तीर मारेगा। मेरे से दस करोड़ डॉलर लेकर, एक करोड़ मुझे देगा। तेरी तो...।"
"मैं तुम्हें दो करोड़ डॉलर दूंगा।"
"दफा हो जा! वो अब मेरे हैं। सिर्फ मेरे। उस पैसे से बहुत काम करने हैं।"
"तुम वो सारे नहीं रख सकते।" जुगल किशोर को गुस्सा आ गया।
"तो तू क्या कर लेगा।"
"मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं।"
मोहनलाल दारूवाला ने रिवाल्वर निकाली और होंठ भींचकर उस पर तान दी।
"लक्ष्मी मार दूं इसे?" मोहनलाल बोला।
"एक मौका दे दो... शायद सुधर जाये।"
"ये खतरनाक लगता है। अपहरण की फिरौती जैसे काम करता है। गोली मार देता हूं...।"
"इसी से पूछ लो...।" लक्ष्मी नाक सिकोड़ कर बोली।
"बोल, क्या इरादे हैं तेरे? एक शर्त पर छोड़ दूंगा कि तू दोबारा मेरे सामने नहीं पड़ेगा।"
"वहां तुमने लाशें देखी थीं ना?"
"तो?"
"दो को मैंने मारा था। संभल जा, मेरे से पंगा मत ले।"
"मोहनलाल ये तो धमकी देता है।" लक्ष्मी कह उठी।
"सुधरने वाला नहीं। इसे...।"
"मेरी रिवाल्वर दो।" जुगल किशोर कह उठा--- "मैं जा रहा हूं।"
"तेरे इरादे मुझे ठीक नहीं लग रहे।" मोहनलाल दारूवाला आंखें सिकोड़कर कह उठा--- "अब क्या करेगा तू?"
"पता नहीं। अब मैं जाऊंगा।" जुगल किशोर ने सर्द निगाहों से मोहनलाल को देखा--- "मेरी रिवाल्वर वापस दे दो।"
"लक्ष्मी, रिवाल्वर दे दो।"
"इसने मुझ पर गोली चला दी तो?"
"उससे पहले ही मैं इस पर गोली चला दूंगा। दे इसे...।"
लक्ष्मी ने वहीं खड़े रहकर रिवाल्वर जुगल किशोर की तरफ उछाल दी।
जुगल किशोर ने रिवाल्वर थामी और जेब में रख ली।
मोहनलाल दारूवाला रिवाल्वर ताने सावधान खड़ा था।
"कम से कम तुम अब बचने वाले नहीं।" जुगल किशोर ने सुलगे स्वर में कहा--- "मैं ऐसा कर दूंगा कि तुम्हें चैन नहीं मिलेगा। वो ईराकी तुम्हारे पीछे हैं। देवराज चौहान जैसा डकैती मास्टर तुम्हें छोड़ने वाला नहीं। इधर मैं डॉलर लिए बिना चैन से नहीं बैठूंगा। तुम किसी भी स्थिति में नहीं बच सकते। परन्तु मेरी बात मान कर तुम बच सकते हो।"
"कौन सी बात?"
"चुपचाप मेरे को आधे डॉलर दे दो--- तो मैं तुम्हें सबसे बचने का रास्ता बता...।"
"तू जाता है कि नहीं...।" मोहनलाल दारूवाला गुस्से से कह उठा।
जुगल किशोर बिना कुछ कहे, दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजा खोला बाहर निकल गया।
लक्ष्मी ने फौरन आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया और बोली---
"मोहनलाल! लगता है हम पर मुसीबत का पहाड़ टूटने वाला है।"
"तू डरती क्यों है?" मोहनलाल दारूवाला गुस्से में था।
"मैं सच कह रही हूं--- अब हम पर कोई मुसीबत आ सकती है। हमें यहां से भाग जाना चाहिए।"
"नहीं। मैं अपना घर इस तरह नहीं छोडूंगा। फौजी कभी डरता नहीं है। देख लूंगा सालों को।"
"तू हमेशा लड़ने-झगड़ने की ही क्यों सोचता है अक्ल से सोच...।"
"क्या सोचूं?"
"तूने मुंबई जाकर फिल्म बनानी है। मुझे टॉप की हीरोइन बनाना है।"
"इसमें अक्ल की जरूरत नहीं है। इस काम के लिए पैसे की जरूरत होती है। वो हमारे हाथ लग ही गया। तू हीरोइन जरूर बनेगी। अभी मैं कहानी लिख रहा हूं। पहले वो तो पूरी होने दे।"
"कहानी मुंबई जाकर भी तो लिख सकता है।"
"तेरे को जल्दी क्यों है, मुंबई जाने की?" मोहनलाल ने रिवाल्वर जेब में रखते हुए कहा।
"सब लोग तेरे से डॉलर ले लेना चाहते हैं। वो तेरे हाथ से निकल गए तो फिल्म कैसे बनेगी?"
"मैं डॉलर किसी को नहीं देने वाला।"
"तू नहीं देगा तो कोई गुस्से में तेरे को गोली मार देगा। तू मर जाएगा फिर मुझे हीरोइन...।"
"वो भी जानते हैं कि मैं मर गया तो डॉलर उन्हें नहीं मिलने वाले। वो मुझे नहीं मारेंगे।"
"वो मेरे से तो ले सकते हैं।"
"तू यही कहना कि इस बारे में तुझे कुछ नहीं पता। तू इसी बात पर अड़े रहना मेरे मरने के बाद।"
"अच्छा, तू मुंबई मत जा। यहां से हम, मेरी बहन के घर चलते हैं।"
"वहां हर वक्त वैल्डिंग की बदबू आती रहती है। यहीं ठीक हैं हम।"
"यहां हमें खतरा है।"
"मैं संभाल लूंगा।"
"मोहनलाल, तू मेरी बात नहीं मानेगा?" लक्ष्मी हारे स्वर में कह उठी।
"ये बात नहीं मानूंगा। खाने-पीने का इंतजाम कर। मैं सोना चाहता हूं।"
"मेरी बात नहीं मानेगा तो तू पछताएगा। कान खोल कर सुन ले।" लक्ष्मी बोली।
"फौजी कभी पछताता नहीं है।" मोहनलाल दारूवाला छाती फुलाकर कह उठा।
"मेरी मां के घर चल ले। वहां तो वैल्डिंग की बदबू नहीं आती।" लक्ष्मी ने कहा।
"वहां मुझे नींद नहीं आती। तू खाना तैयार कर, मैं यहीं ठीक हूं। देख लूंगा साला कौन आता है।"
■■■
जुगल किशोर कलपा हुआ था।
मोहनलाल दारूवाला और उसकी पत्नी ने खासी फजीहत कर दी थी उसकी। उसने तो सोचा था कि वो रिवाल्वर देखकर डर जाएंगे और आसानी से उसे डॉलर मिल जाएंगे। कुछ उन्हें भी देने पड़े तो दे देगा। परन्तु यहां तो सारा मामला ही उल्टा हो गया था। मियां-बीवी ने उसे कोई भाव नहीं दिया था। वो जरा भी नहीं डरे थे और धक्के मारने वाले ढंग से उसे घर के बाहर कर दिया था। साला फौजी है। तभी अकड़ रहा है।
परन्तु जुगल किशोर चैन से बैठने वालों में से नहीं था।
वो तो इस बात पर यकीन रखता था कि माल उसका नहीं तो किसी का भी नहीं।
पहले तो उसने सोचा कि पुलिस को फोन करके सारी पोल खोल देता है। भुगतता रहेगा फिर फौजी। परन्तु फौरन ही उसने यह विचार छोड़ दिया कि उसे इतनी जल्दी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। कोशिश करने के कई रास्ते बाकी हैं।
बाहर आकर उसने अपनी कार ली और गली से बाहर जाकर कार को सड़क के किनारे रोका। और इराकियों को फोन करने के लिए मोबाइल निकाला और नंबर मिलाकर, फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी, फिर जाकिर की आवाज कानों में पड़ी---
"कहो मिस्टर जुगल किशोर, डॉयरी लेने कब आयें?"
"वो डॉयरी और डॉलर नहीं दे रहा।" जुगल किशोर ने कलपे स्वर में कहा।
'उसे हमारे हवाले कर दो। हम ले लेंगे।"
"इतना करने पर मुझे बीस करोड़ रुपये दे दोगे?"
"दस करोड़---।"
"और वो डॉलर मेरे हैं।"
"वो तुम्हें मिल जाएंगे। डॉलरों में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं। हमें सिर्फ वो डॉयरी चाहिए।"
"जुबान पर पक्के रहना।"
"हम तुम्हारी तरह नहीं जो मौके पर धोखेबाजी दे जाते हैं। जुबान हम देते हैं तो उसे पूरा करते हैं।"
"ठीक है। मैं तुम्हें मोहनलाल दारूवाला के घर का पता बताता हूँ। इस वक्त वो अपने घर पर ही है।" कहकर जुगल किशोर ने मोहनलाल दारूवाला के घर का पता बता दिया।
"शुक्रिया।"
"वो डॉलर मेरे हैं। ये भूलना मत।"
"तुम हमारे पास ही क्यों नहीं आ जाते? अभी भी हम दोस्त हैं।" उधर से जाकिर ने कहा।
"हजरत निजामुद्दीन वाले ठिकाने पर---।"
"तो तुम जानते हो कि हम कहां हैं।"
"हाँ। जब जरूरत पड़ेगी, मैं पहुंच जाऊंगा। अभी तो तुम मोहनलाल दारूवाला को कब्जे में करके डॉयरी और डॉलर लो। मेरा दस करोड़ मत भूलना।" जुगल किशोर ने जैसे याद दिलाया और फोन बंद कर दिया। कार में ही बैठा रहा जुगल किशोर।
वो देख लेना चाहता था कि ईराकी आकर मोहनलाल दारूवाला को ले जाते हैं या उसके घर पर ही पूछताछ करते हैं, परन्तु साथ ही साथ जुगल किशोर का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। मोहनलाल दारूवाला ने कहा कि डॉयरी उसने डकैती मास्टर देवराज चौहान को दे दी है। सच में ऐसा है तो ईराकी देवराज चौहान को भी नहीं छोड़ने वाले। परन्तु उसे इराकियों पर पूरा भरोसा नहीं था कि वो उसके लिए डॉलर पाने की कोशिश करेंगे।
बेशक वो कोशिश करें, परन्तु उसे कुछ भी नहीं करना चाहिये। हाथ पर हाथ रखकर बैठना ठीक नहीं होगा। दस करोड़ डॉलर हाथ से निकल भी सकते हैं। जुगल किशोर कार में बैठा रहा। सोचता रहा।
■■■
रात के ग्यारह बज रहे थे।
मोहनलाल दारूवाला और लक्ष्मी सोने की कोशिश में थे। परन्तु लक्ष्मी की नींद गायब थी। उसकी सोच तो बॉलीवुड में थी--- मुंबई फिल्म नगरी के इर्द-गिर्द घूम रही थी। वह सोच रही थी कि जब उसकी फिल्म रिलीज होगी तो उस दिन उसे कैसा लगेगा? वह मशहूर हीरोइन बन जाएगी हर तरफ उसका नाम होगा। उसके पोस्टर बिकेंगे। वह बहुत बड़े बंगले में रहेगी और बड़ी-बड़ी गाड़ियां शूटिंग के लिए जाया करेंगीं। और मोहनलाल... मोहनलाल उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा था। माँ ने शादी कर दी तो बस मोहनलाल के साथ मजबूरन बंधी पड़ी है। मन ही मन उसने फैसला किया कि टॉप की हीरोइन बनने के बाद मोहनलाल को छोड़कर किसी जवान हीरो का हाथ थाम लेगी जो उसे अच्छा लगेगा। मोहनलाल जिंदगी में सुस्त चलने वाला इंसान था। परन्तु ये सब बातें मोहनलाल पर अभी जाहिर नहीं होने देगी। जब नाम वाली हीरोइन बन जाएगी तो मोहनलाल को छोड़ेगी। अभी तो मोहनलाल को संभाले रहना है कि वो उसे लेकर फिल्म बनाये और फिल्म चल निकले।
"मोहनलाल---।" लक्ष्मी ने लेटे पड़े मोहनलाल के कंधे पर हाथ रखा।
"सोने दे। मेरा वो करने का मन नहीं है...।"
"वो बात नहीं है। मैं तो कुछ और कह रही थी--- कि डॉलर हमारे पास हैं तो हम मुंबई क्यों नहीं चल पड़ते।"
"अभी फिल्म की कहानी पूरी नहीं हुई। इन लफड़ों में फंसकर कहानी के बारे में सोच नहीं पा रहा।"
"तो मुंबई चलते हैं। वहां कोई लफड़ा नहीं होगा। तू कहानी पूरी करना, फिर उस पर फिल्म बनाना।" लक्ष्मी ने कहा--- "जब तक ये लोग पीछे पड़े रहेंगे, डॉलर लेने के लिए, तो तू कहानी कैसे लिख पाएगा?"
मोहनलाल दारूवाला ने करवट ली और उठ बैठा।
कमरे में कम रोशनी का बल्ब जल रहा था।
"बात तो तूने ठीक कही लक्ष्मी।" मोहनलाल दारूवाला कह उठा।
"ये तो मैं तेरे से कब से कह रही हूँ।"
"पर इस तरह तूने बात नहीं की कि सीधी मेरे मन को लगे। सुन, कल सुबह उठकर तैयारी करना।"
"मुंबई जाने के लिए।" लक्ष्मी का चेहरा खिल उठा।
"हाँ--- हम मुंबई ही चलते हैं। वहां मैं आराम से कहानी पूरी कर लूंगा। फिर फिल्म बनाने की तैयारी करूंगा। तूने भी वहां जाकर बहुत मेहनत करनी है। खुद को हीरोइन की फिगर पर लाना है। पतली हो जाएगी ना तू?"
"एकदम पतली हो जाऊँगी। खाना बंद कर दूंगी। एकदम हीरोइन की तरह हो जाऊंगी मोहनलाल।"
"ठीक है। कल सुबह तैयारी कर लेना। घर पर ताला लगा जाएंगे। चोपड़ा साहब से कह जाऊंगा घर का ख्याल रखें। यहां से पहले निजामुद्दीन स्टेशन जाएंगे, वहां से डॉलरों वाला सूटकेस लेकर नई दिल्ली स्टेशन से डॉलर वाला दूसरा सूटकेस लेंगे और मुंबई जाने वाली ट्रेन का टिकट ब्लैक में खरीद लेंगे। उसका कोई इंतजाम हो जाएगा।"
"ओह मोहनलाल...।" लक्ष्मी उछलकर उसके ऊपर जा गिरी--- "तूने तो खुश कर दिया मुझे...।"
उसी क्षण जोरों से बेल बजने लगी।
लक्ष्मी के होंठों से निकला--- "फिर कोई आ गया।"
"ये हरामी लोग पीछा नहीं छोड़ेंगे।" मोहनलाल ने भड़क कर कहा और गुस्से में बैड से उतरा।
"हमें आज ही मुंबई के लिए निकल जाना...।"
"मेरी रिवाल्वर कहां पर है?"
"ड्राज में रखी है।"
मोहनलाल ने टेबिल के ड्राज से रिवाल्वर निकाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। शरीर पर बनियान और पायजामा पहन रखा था। पीछे से आती लक्ष्मी कह उठी---
"झगड़ा मत करना। किसी तरह उनको टालने की कोशिश करना। कल तो हमें चुपके से निकल ही जाना है...।"
मोहनलाल ने एक हाथ में रिवाल्वर पकड़े दूसरे हाथ से दरवाजा खोला।
सामने शेख को खड़े पाया। पीछे उसके आस-पास हुसैन, जाकिर, मौला और वजीर खान खड़े थे।
मोहनलाल जैसे सांस लेना भूल गया।
फटी आंखों से उनको देखता रहा। कुछ पल तो कुछ समझ में नहीं आया।
शेख ने हाथ बढ़ाया और उसके हाथ में दबी रिवाल्वर की नाल पकड़कर बोला।
"छोड़ दो रिवाल्वर...।"
"नहीं।" मोहनलाल ने रिवाल्वर वाला हाथ पीछे किया--- "तुम लोगों ने पहले भी रिवाल्वर मेरे हाथ से ले ली थी।"
"वो तो हम तुम्हें वापस दे देते--- परन्तु तुम तो बिना बताये भाग आये वहां से।" शेख ने शांत स्वर में कहा--- "खिड़की से नीचे उतरते हुए गिरे नहीं लगते तुम। हमें तो चिंता लग रही थी कि तुम्हें चोट ना लग गई हो।"
मोहनलाल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
शेख ने उसे पीछे धकेला और कमरे में आ गया।
बाकी सब भी भीतर आ गये।
वजीर खान ने दरवाजा बंद किया।
"तुम लोग यहां कैसे?" मोहनलाल ने रिवाल्वर पायजामें की जेब में डालते हुए कहा--- "मेरे घर का पता किसने बताया?"
"मिस्टर जुगल किशोर ने फोन पर बताया कि तुम यहां हो।" शेख सामान्य स्वर में बोला।
"साला-हरामी...।"
"तुम हमें गाली दे रहे हो? जबकि हमारे देश में गाली को बुरा मानते हैं।"
"मैं तुम्हें नहीं--- जुगल किशोर को गाली दे रहा हूं। दो घंटे पहले वह घर से गया था। मैंने उसे डॉलर देने से मना कर दिया।"
"हमें डॉलर नहीं चाहिए। तुम ये बात तो जानते ही हो।" वजीर खान पीछे से निकल कर आगे आया।
मोहनलाल की आंखों के सामने डॉयरी नाची और देवराज चौहान का चेहरा भी।
तभी पीछे खड़ी लक्ष्मी ने पूछा---
"मोहनलाल, ये लोग कौन हैं? तुमने इन्हें भीतर क्यों आने दिया?"
"ये---ये ईराकी लोग हैं। वो ही...।"
"तो हम क्या करें? जाने को कह दो इनसे।"
मोहनलाल ने बेचैन निगाहों से सबको देखा।
"तुम तो डॉयरी देने जा रहे थे।" वजीर खान ने चुभते स्वर में कहा--- "फिर भाग क्यों आये?"
मोहनलाल को समझ नहीं आई कि क्या कहे।
"डॉयरी हमें दो। डॉलर तुम ही रखो।" मौला बोला--- "अब देर मत करो--- निकालो डॉयरी---।"
"व-वो मैंने दे दी।" मोहनलाल परेशान स्वर में बोला।
"दे दी--- किसे?" वजीर खान के होंठ भिंच गये।
"देवराज चौहान को।"
"कौन देवराज चौहान?"
"वो अपने को डकैती मास्टर कहता था। उसने मुझसे जबरदस्ती डॉयरी ले ली...।"
"कहां रहता है देवराज चौहान?" वजीर खान गुर्रा उठा।
"मैं नहीं जानता--- परन्तु वो इस वक्त दिल्ली के बसंत विहार इलाके के एक बंगले में है।"
"और तुम्हें मालूम है वो बंगला?" मोहनलाल ने गर्दन हिला दी।
"कब दी तुमने डॉयरी?"
"दोपहर...तीन-चार बजे। वो बहुत खतरनाक है। उसने मुझसे---।"
"हम उससे भी ज्यादा खतरनाक हैं।" हुसैन ने कठोर स्वर में कहा--- "चलो हमें वहां ले चलो।"
"अभी?" मोहनलाल के होंठों से निकला।
"अभी!" मौला ने आगे बढ़कर उसकी कलाई को सख्ती से पकड़ लिया।
"ठ-ठीक है। कपड़े तो पहन लेने दो मुझे...।"
"पहनो। मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। रिवाल्वर घर पर ही रख देना। चलो--- जल्दी करो।"
"मोहनलाल!" लक्ष्मी अधिकारपूर्ण स्वर में कह उठी--- "ये क्या हो रहा है...।"
"सब ठीक है लक्ष्मी! ये लोग सिर्फ डॉयरी चाहते हैं। मैं इन्हें देवराज चौहान के पास छोड़कर आता हूँ। सुबह का जो प्रोग्राम है, वो पक्का है। इन लोगों को डॉलर नहीं चाहिए। क्यों?" मोहनलाल ने वजीर खान को देखा--- "डॉलर तो नहीं चाहिए ना?"
"नहीं।" वजीर खान दांत भींचकर बोला।
"ये हमारा वक्त खराब कर रहा है।" मौला ने गुस्से से कहा--- "जल्दी चलो।"
अगले पांच मिनट में मोहनलाल दारूवाला कपड़े बदल उन लोगों के साथ बाहर निकल गया। रात के 11.40 मिनट हो रहे थे।
और बाहर कार में बैठे जुगल किशोर की निगाह इन सब पर थी।
जब वे लोग कार पर बैठकर निकल गए तो जुगल किशोर कार से निकला और मोहनलाल के घर की तरफ बढ़ गया। दरवाजा खुला हुआ था। जुगल किशोर के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
फिर वो घर में प्रवेश कर गया। छोटे से ड्राइंग रूम में रोशनी हो रही थी।
सामने ही लक्ष्मी परेशान खड़ी थी।
जुगल किशोर को देखते ही लक्ष्मी चौंकी।
"तुम?" लक्ष्मी के होंठों से निकला।
"मैंने कहा था कि तुम लोगों को चैन से नहीं रहने दूंगा।" जुगल किशोर जहरीले स्वर में बोला--- "ले गए वो तुम्हारे पति को? अगर उसने डॉयरी सच में देवराज चौहान को दे दी--- तो तब ना तुम्हारे पति की खैर है, ना देवराज चौहान की। वो खतरनाक लोग हैं...।"
"उन्हें तुमने बताया मोहनलाल के बारे में?" लक्ष्मी गुस्से में बोली।
"हाँ मेरी जान, मैंने ही बताया...।"
"मेरी जान...।" लक्ष्मी गुस्से में आने लगी कि संभल गई, ये सोच कर कि फिल्म हीरोइन को लोग तरह-तरह के सम्बोधन देते हैं। उसे भी अब आदत डाल लेनी चाहिए ऐसे शब्द सुनने की। "तुमने गलत किया मोहनलाल के बारे में बताकर...।"
"वो मेरे साथ आधे-आधे डॉलर कर लेता तो वो भी सुखी होता और मैं भी। पर...।"
"अब यहां क्या करने आए हो?" लक्ष्मी जली-भुनी कह उठी।
"तेरे को ले जाने आया हूं।"
"क्या?" लक्ष्मी के माथे पर बल पड़े--- "तुम मेरा अपहरण करोगे।"
"हाँ--- कहीं बैठ कर आराम से बातें...।"
"ये कोई फिल्म शूटिंग नहीं हो रही जो तू मेरा अपहरण करेगा।" लक्ष्मी ने घूर कर उसे देखा--- "वैसे तू बन सकता है...।"
"क्या?" जुगल किशोर के होंठों से निकला।
"फिल्म का विलेन। तेरे में काबिलियत लगती है विलेन की। तू मुंबई जाकर फिल्मों में ट्राई क्यों नहीं करता?"
जुगल किशोर ने रिवाल्वर निकाली और गुर्रा उठा---
"चुपचाप चल मेरे साथ--- मैं...।"
"तेरी तो...।" लक्ष्मी पहले की भांति जुगल किशोर पर झपट पड़ी।
परन्तु इस बार जुगल किशोर तैयार था।
पास आते ही उसने लक्ष्मी को अपनी बाहों में फंसाया और रिवाल्वर की नाल की चोट उसके सिर पर मारी।
लक्ष्मी कराही बेहोश होते हुए, उसकी बाहों में झूमती चली गई।
■■■
वो इलाका रात के अंधेरे में डूबा था।
जरूरत के मुताबिक सड़कों पर पर्याप्त रोशनी हो रही थी।
वो विनायक का बंगला था, जिसके बड़े से बंद गेट के भीतर स्टूल पर चौकीदार बैठा था। आधी रात हो रही। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। यदा-कदा किसी वाहन की आवाज कानों में पड़ जाती थी।
बंगले के बाहर मौला, हुसैन, जाकिर, शेख, वजीर खान और मोहनलाल दारूवाला मौजूद थे।
"यही है वो बंगला?" हुसैन ने मोहनलाल से पूछा।
"हाँ।"
"अच्छी तरह से देख लो कहीं गलती तो नहीं हो...।"
"बोला ना, ये ही है।" मोहनलाल झुंझला कर बोला--- "अब मैं जाऊँ?"
"चुपचाप खड़े रहो।" मौला कठोर स्वर में बोला--- "तुम हमारे साथ ही रहोगे। अब जाने की बात मत करना। तुम उस आदमी की निशानदेही करोगे, जिसे तुमने डॉयरी दी थी। क्या पता तुम झूठ कह रहे हो कि...।"
"मैं झूठ क्यों बोलूंगा? मैंने किसी को तो डॉयरी देनी थी--- उसे दे दी।"
"तुम्हें वो डॉयरी हमें देनी चाहिए थी। वो ईराक की अमानत है।"
"मैंने थोड़े ना उसे दी, वो तो देवराज चौहान ने जबरदस्ती मुझसे ले ली। मैं तो बस किसी तरह जान बचाकर निकल आया।"
"तुम सब यहीं रहो।" वजीर खान ने कहा और बंगले की दस फीट ऊंची चारदीवारी की तरफ बढ़ गया। दीवार के भीतरी तरफ लंबे पेड़ खड़े थे। सामने की सड़क पूरी तरह सुनसान थी।
वजीर खान ने उछाल भरी और दोनों हाथ से चारदीवारी पर लटक गया, फिर जोर लगाकर कुछ ऊपर हुआ। दीवार को पूरी तरह पकड़ा और झटके के साथ दीवार पर जा लेटा। बंगले के भीतर नजर मारी। कई जगह रोशनी दिखी। परन्तु इस तरफ रोशनी नहीं थी। वो दीवार से नीचे, भीतरी तरफ उतरा और दबे पांव गेट की तरफ बढ़ गया।
कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था।
वजीर खान स्टूल पर बैठे दरबान के पास जा पहुंच।
दरबान बैठे-बैठे ही नींद ले रहा था।
वजीर खान ने उसे संभलने का मौका नहीं दिया, जोरदार घूंसा उसकी कनपटी पर मारा।
दरबान बे-आवाज सा स्टूल से उछलकर नीचे जा गिरा। फिर नहीं उठा। बेहोश हो गया था। एक ही वार में।
वजीर खान ने आगे बढ़कर भीतर से उस विशाल गेट को खोला और सब भीतर आ पहुंचे।
"आओ।" कहकर जाकिर बंगले की तरफ बढ़ा तो मोहनलाल दारूवाला ने टोका।
"इधर नहीं उधर...। वहां कोने में कमरे बने हैं। वो दोपहर को ऊपर के कमरे में था।"
"उधर?" जाकिर ठिठक कर बोला--- "बंगले का मालिक उधर क्यों रहेगा?"
"मैं क्या जानूं? पर दोपहर को मैं उसे वहां ही मिला।"
"ठीक है, उधर ही चलो...।"
सब उधर बढ़ गये।
सीढ़ियां तय कर के ऊपर के हिस्से पर पहुंचे। अब मोहनलाल को आगे कर दिया गया था कि वो बताये कहां जाना है। इस वक्त वहां बाहर भी रोशनियां हो रही थीं। ऐसे में उन्हें आगे बढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी।
फिर मोहनलाल दोपहर वाला दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।
बाकी सब भीतर आ गये।
परन्तु वहां अंधेरा था।
शेख ने स्विच ढूंढा और रोशनी कर दी।
वजीर खान के हाथ में रिवाल्वर आ गई थी।
रोशनी होते ही मोहनलाल दारूवाला चौंका।
सामने का बैड खाली था।
"कहां गया?" मोहनलाल के होंठों से निकला।
"कौन?"
"देवराज चौहान।" मोहनलाल बोला--- "दोपहर को तो वो इसी बैड पर लेटा था।"
वजीर खान मोहनलाल की तरफ पलटा और आगे बढ़कर उसकी छाती पर रिवाल्वर रखकर गुर्राया---
"तुम हमें बेवकूफ बना रहे? हो सच बताओ, वो डॉयरी कहां है?"
"तुम एक फौजी को धमका रहे...।"
"चुप हो जा!" वजीर खान ने दांत किटकिटाये--- "वरना गोली मार दूंगा।"
शेख ने वजीर खान को पीछे किया और कठोर स्वर में मोहनलाल से बोला---
"तुम चालाक बनने की कोशिश मत करो। इस तरह तुम हमारे हाथों से बच नहीं...।"
"मैं जो कुछ कह रहा हूं, सच कह रहा हूं। फौजी कभी झूठ नहीं बोलता। दोपहर को देवराज चौहान यहीं पर इसी बैड पर लेटा था।"
उन पांचों की नजरें मिलीं।
"ये जगह बंगले का गेस्ट रूम लगती है। हमें बंगले के लोगों को कब्जे में लेना होगा। क्या पता ये जिसकी बात कर रहा है--- वो बंगले में हो।" हुसैन ने सोच भरे स्वर में कहा।
"ये हो सकता है।" मोहनलाल बोला।
"हमें यहां की तलाशी लेनी चाहिए।" शेख ने कहा--- "शायद डॉयरी हमें मिल जाये।"
फिर वहां की तलाशी शुरू कर दी गई।
वजीर खान, मोहनलाल दारूवाला गेट पर पहरेदारी करते रहे।
"तुम अच्छे इंसान नहीं हो।" वजीर खान ने होंठ भींचकर, मोहनलाल से कहा।
"तुम्हें क्या पता मैं कैसा हूं...?"
"अगर तुम अच्छे इंसान होते, जुबान वाले होते तो डॉयरी हमें ही देते। इस बारे में हमारी पहले बात हो चुकी थी।"
"मैं क्या करता! देवराज चौहान तो मेरी जान लेने जा रहा था। मैंने तो डॉयरी देकर अपनी जान बचाई। पर डॉयरी में है क्या?"
"खामोश खड़े रहो।"
दस मिनट बाद ही पता चल गया की डॉयरी वहां नहीं है।
"बंगले में चलो।" मौला बोला--- "वहां के लोगों को कब्जे में लेना है। ध्यान रहे कि शोर-शराबा नहीं उठना चाहिए।"
फिर वे सब वहां से निकले और बंगले में जा पहुंचे।
अगले पन्द्रह मिनटों में उन्होंने बंगले में मौजूद सब को बंधक बना लिया।
तीन नौकर, दोनों नौकरानियां और हेमंत था।
सबको नीचे ड्राइंग रूम में इकट्ठे करके बिठा लिया।
हेमंत कहर भरी नजरों से मोहनलाल को घूर रहा था।
"क्या देख रहा है मुझे?" मोहनलाल दारूवाला हेमंत से कह उठा--- "मेरी ठुकाई भूल गया क्या?"
"तू गुंडों को लेकर आ गया अब?"
"ये गुंडे नहीं हैं। साहब लोग हैं।"
"ये कौन है?" जाकिर ने मोहनलाल से पूछा।
"ये देवराज चौहान का ही साथी है। ये गुंडों के साथ मेरे पास आया था और मुझे पकड़कर यहां ले आया था। इसने दोपहर में मुझे पर रिवाल्वर ताने रखी थी। दिखता तो ऐसा है कि ये खतरनाक है, परन्तु दमखम नहीं है इसमें...।"
"तेरे को तो मैं बताऊंगा। हेमंत शब्दों को चबाकर कह उठा--- "एक बार मौका तो मिलने दे---।"
"फौजी से पंगा लेगा तो।"
"चुप रहो...।" जाकिर बोला।
मोहनलाल चुप कर गया।
जाकिर आगे बढ़ा और हेमंत से बोला---
"उठो...।"
हेमंत उठ गया।
"ये जो कहता है, ठीक कहता है?" जाकिर ने सख्त स्वर में पूछा।
"मुझे क्या पता कि ये क्या कहता है?" हेमंत ने कहा।
"तुम इसे दोपहर को पकड़ कर लाये और फिर इससे डॉयरी ले ली।"
"ले ली? बकवास करता है ये, इसने ही जबरदस्ती देवराज चौहान को दी। परन्तु देवराज चौहान ने डॉयरी वापस कर दी थी। ये चला गया डॉयरी लेकर।"
"डॉयरी लेकर चला गया?"
"हां...।"
"साला, झूठ बोलता है ये...।" मोहनलाल गुस्से से कह उठा।
"तुम चुप रहो।" शेख ने मोहनलाल से कहा।
जाकिर ने खतरनाक निगाहों से हेमंत को देखा।
नौकर-नौकरानियां सहमे से बैठे थे। देख रहे थे। सुन रहे थे।
"मैं जानता हूं तुम हमसे झूठ बोल रहे हो। हमसे सच बोलो, सिर्फ सच।" जाकिर ने कठोर स्वर में कहा।
"मैं सच कह रहा---।"
तभी जाकिर का हाथ घूमा और हेमंत के गाल पर जा पड़ा।
हेमंत के होंठों से हल्की सी चीख निकली। वो लड़खड़ाया।
"ये बढ़िया है एक और मारो झूठे को।" मोहनलाल बोला।
जाकिर का हाथ पुनः उठा कि हेमन्त कह उठा---
"रुको! मुझे क्यों मारते हो---। मैंने भला इस मामले से क्या लेना-देना...।"
"डॉयरी कहां है?" जाकिर ने हाथ रोका।
"मेरे पास नहीं है, वो तो देवराज चौहान के पास है।"
"वो कहां है?"
"वो शाम को ही यहां से चला गया। उसे गोली लगी थी, वो आराम कर था कि एकाएक जाने को कहने लगा।"
"ये देवराज चौहान है कौन?"
"मैं बताता हूं।" मोहनलाल बोला--- "ये वो ही है, जो जंगल में कार में बैठा था और तुम लोगों ने समझा कि वो मर गया है।"
"वो बहुत बड़ा डकैती मास्टर है।" हेमराज ने जल्दी से कहा।
"मैंने तो नाम नहीं सुना।" मोहनलाल बोला।
"तेरा दिमाग खराब है जो तूने नहीं सुना...?"
"देवराज चौहान का नाम सुनना जरूरी है क्या?"
"तुम चुप हो जाओ।" शेख ने मोहनलाल से सख्त शब्दों में कहा।
जाकिर, हेमराज से कह उठा---
"हमें वो डॉयरी हर हाल में चाहिए। बेशक तुम दे दो या देवराज चौहान। बोलो, कहां है डॉयरी?"
"देवराज चौहान ले गया...।"
"वो कहां है?"
"मैं नहीं जानता। वो यहां से चला गया...।"
तभी जाकिर का घुटना हेमंत की टांगों के बीच जा लगा।
हेमंत गला फाड़कर चीखा और दोनों हाथ टांगों के बीच दबाये बढ़ता चला गया और पीड़ा से छटपटाने लगा। उसका चेहरा लाल-सा हो गया था। आंखों में पानी चमक उठा था।
जाकिर उसके सिर के बाल मुट्ठी में पकड़े और उसका चेहरा ऊपर करके दरिंदगी से बोला---
"हमसे उलझो मत। अगर तुमने हमें नहीं बताया तो हम तुम्हारी जान ले लेंगे।"
हेमंत गहरी-गहरी सांसें लेने लगा।
वजीर खान आगे बढ़ा और जोरदार ठोकर उसके चेहरे पर मारी।
हेमंत पुनः गला फाड़कर चीखा और नीचे लुढ़कता चला गया।
नौकर और भी सहम गए ये देखकर।
जाकिर ने फौरन उसकी बांह पकड़कर उसे खड़ा किया तो हेमन्त रो देने वाले स्वर में कह उठा---
"मुझे क्यों मारते हो...। मैंने किया ही क्या है?"
"हमें वो डॉयरी चाहिए।"
"वो देवराज चौहान के पास है... और वो तुम लोगों को वो डॉयरी नहीं देगा।"
"क्यों?"
"क्योंकि उसे डॉयरी का महत्व पता चल गया है। वो अब...।"
"कैसे पता चला?" वजीर खान गुर्रा उठा।
"दे-देवराज चौहान ने मोहनलाल के जाने के बाद मुझे कहा कि मैं किसी ऐसे आदमी को लाऊं जो इस डॉयरी पर लिखी भाषा को पढ़ और समझ सकता हो। इत्तफाक से हमारा ड्राइवर मुसलमान है और उसने डॉयरी में लिखी भाषा को पढ़ लिया। डॉयरी के शुरुआती पेज पर ही लिखा था, मैं ईराक का राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन हूं और मैं अपनी दौलत का जिक्र कर रहा हूं--- जो कि इतनी ज्यादा है कि ईराक को दोबारा से खड़ा किया जा सकता है। अमरीकन ने हमारे देश पर हमला बोल दिया है। वो हमें तबाह करने पर लगा है और वजह सिर्फ यह है कि मैंने अमेरिका के सामने बे-वजह झुकना पसंद नहीं किया। मुझे पूरा यकीन है कि अमेरिका मुझे खत्म करके ही रहेगा। इस बात का अंदेशा मुझे महीनों से हो रहा था। यही वजह है कि मैंने अपनी खजाने से भी बड़ी दौलत को जमीन के भीतर कहीं छुपा दिया है और जो लोग मेरे साथ इस काम में सहायक थे उन सब को मैंने मार दिया है, ताकि वो मेरी दौलत के बारे में किसी को बता ना सकें। जहां मैंने अपनी दौलत छिपाई है, उस जगह का सारा हाल मैं इस डॉयरी में लिख रहा हूं कि वहां तक कैसे पहुंचा जा सकता है। उस जगह का नक्शा भी मैंने अपने हाथों से बनाया है और वो डॉयरी में ही मिलेगा...।"
"चुप हो जाओ।" जाकिर गुस्से से कह उठा--- "क्या डॉयरी पूरी पढ़ ली गई?"
"नहीं। पहले के चार पृष्ठ ही पढ़े थे। फिर देवराज चौहान ने आगे पढ़ने को मना कर दिया। डॉयरी अपने पास रख ली। देवराज चौहान जानता है कि ये डॉयरी ईराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की दौलत के संबंध में है कि उन्होंने कहां पर अपनी दौलत छिपाई...।"
"देवराज चौहान कहां है?" वजीर गुर्राया।
"वो...वो चला गया...वो...।"
वजीर खान का जोरदार घूंसा हेमंत के गाल पर पड़ा।
हेमंत के होंठों से चीख निकली। वो लड़खड़ाया और संभलता कह उठा---
"मुझे क्यों मारते हो, सब कुछ मैंने बता तो दिया है...।"
"देवराज चौहान कहां है?" वजीर खान ने वहशी स्वर में कहा।
"वो...वो...।"
वजीर खान का जोरदार घूंसा उसके पेट में पड़ा।
वो पेट पकड़कर चीखा। आंखों में आंसू आ गये।
"हमें सिर्फ देवराज चौहान के बारे में बताओ। कोई और बात तुम्हारे मुंह से नहीं निकले, देवराज चौहान कहां है?"
"वो...वो डॉक्टर के नर्सिंग होम में है।" हेमंत हांफता कह उठा।
"कहां है वो डॉक्टर और---।"
"इसे साथ ले चलो।" मोहनलाल दारूवाला कह उठा--- "क्या पता ये झूठ बोल रहा हो।"
"हरामजादा!" हेमंत में दांत भींचकर कहा।
"फौजी को गाली देता है? दे ले, फौजी को गाली नहीं लगती। दबा कर दे।"
"इसे साथ ले चलो...।" जाकिर गुर्रा उठा।
"ये ठीक है।" मोहनलाल ने कहा--- "अब मेरा कोई काम नहीं रहा, मेरी छुट्टी...।"
"खामोश रहो! तुम भी हमारे साथ चलोगे।"
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