इस बार उसके मस्तिष्क में यह बात बैठ गई कि यह लड़का न होकर कोई खौफनाक प्रेत है अथवा कोई खूंखार शैतान!
वास्तव में इतनी खौफनाक हरकत मानव तो कर नहीं सकता।
टुम्बकटू भी कांपकर रह गया।
वह अवाक्-सा मुस्कराते हुए उस सुंदर लड़के को देखने लगा। उसे देखकर विश्वास नहीं हो सकता था कि इतना खूबसूरत लड़का इतना खतरनाक भी हो सकता है।
वास्तव में टुम्बकटू की निगाहों में विकास इतना खूंखार, इतना खतरनाक था कि मौत भी उसके पास आते-आते ही मृत्यु के भय से थर्रा उठे। कोई क्या जान सकता था कि विकास के इस खूबसूरत चेहरे के पीछे कितना खौफनाक मस्तिष्क छिपा हुआ है! इतना भयानक कि सोचकर भी कंपकंपी आने लगे। इतना खौफनाक कि छलावा भी कांप गया।
विकास ने टुम्बकटू को पूर्णतया सीढ़ी के निचले सिरे में बांधकर कहा।
-----"ठीक रहेगा ना अंकल... अब मैं हेलीकॉप्टर चलाऊंगा और आप आराम से इस सीढ़ी के साथ-साथ मेरे पास रहेंगे और मुझ पर कोई मुसीबत आएगी तो आप मेरी सहायता करेंगे-----क्यों अंकल करोगे ना?''
"तुम तो खुद मुसीबत हो प्यारे शैतान!'' टुम्बकटू मुस्कराकर प्रशंसनीय स्वर में बोला ---- "तुम पर भला मुसीबत को आकर मरना है । "
"ये तो आप अंतरिक्ष में चढ़ाने वाली बात कर रहे हैं अंकल!" मुस्कराता हुआ विकास बोला और हेलीकॉप्टर की ओर चल दिया।
टुम्बकटू आश्चर्य के साथ धरती के सर्वोत्तम और विचित्र अजूबे को देखता रह गया।
हेलीकॉप्टर के निकट पहुंचकर विकास ने टुम्बकटू की ओर देखकर आंख मार दी। परिणामस्वरूप टुम्बकटू मुस्कराकर रह गया, परंतु विकास शरारत के साथ बोला।
-----"क्यों अंकल, यात्रा अच्छी रहेगी ना?"
प्रत्युत्तर में टुम्बकटू भी उसी प्रकार मुस्कराकर बोला-----"अच्छी रहेगी।"
"ओके।" विकास ने दुबारा आंख मारकर कहा-----"वहां पहुंचकर मैं आपको मिट्टी के तेल से तली हुई एक सुंदर दिलजली सुनाऊंगा।" कहने के साथ हेलीकॉप्टर की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
उसने हेलीकॉप्टर स्टार्ट किया।
अगले ही पल हेलीकॉप्टर वायु में उड़ने लगा। साथ ही वह सीढ़ी भी उठती चली गई और उस सीढ़ी के साथ उठता चला गया, उसमें बंधा हुआ टुम्बकटू का बेबस जिस्म ।
टुम्बकटू सीढ़ी के सबसे निचले सिरे पर डोरियों द्वारा ठीक किसी तराजू के पलड़े की भांति लटका हुआ था। टुम्बकटू विकास की हेलीकॉप्टर ड्राइविंग पर दंग रह गया। विकास बड़ी सफाई से न सिर्फ हेलीकॉप्टर को वृक्षों से बचाता हुआ ले गया, बल्कि उसनें नीचे लटकी सीढ़ी को भी किसी वृक्ष इत्यादि से स्पर्श न होने दिया।
कुछ ही देर पश्चात हेलीकॉप्टर खुले वायुमंडल में था। सीढ़ी में नीचे लटका हुआ टुम्बकटू बड़ा अजीब-सा दृश्य लग रहा था। उसका रुख राजनगर की ओर था।
रैना के हृदय में एक मां का दिल धड़क रहा था। कौन नहीं जानता कि पुत्र के लिए मां का हृदय कितना कमजोर होता है?
अगर वह यह सुन ले कि पुत्र की उंगली में हल्की-सी सुई चुभ गई तो मां का दिल ऐसे तड़पता है, जैसे उसके दिल में बर्छियां चल गई हों। और रैना !
रघुनाथ की पत्नी! विकास की जननी !
जब रघुनाथ ने उसे कोतवाली से फोन करके बताया कि विकास की साइकिल विजय की कोठी के पिछवाड़े पाई गई है और वह स्वयं गायब है तो रैना के दिल पर मानो भयानक विस्फोट हुआ ----- वह तड़प उठी-----मचल उठी। उसके हृदय में एक पीड़ा-सी उठी। मां का ममता से भरा हृदय तड़प उठा। नेत्रों में अश्कों ने आना चाहा। उसके हृदय में एक साथ अनगिनत प्रश्न उभरे-----कहां गया मेरा लाल ?
कहां गायब हो गया उसके हृदय का टुकड़ा ?
कहां चला गया उसके जीवन का वारिस ? वह तड़प उठी । काम तो तब कुछ करती, जब उसका हृदय करता । परेशान-सी होकर पहले वह कोठी के द्वार पर जा खड़ी हुई । शीध ही अंदर आई, बेचैनी से इधर-उधर टहलती रही-----एकाध बार फोन किया तो कोतवाली से रघुनाथ ने कहा कि अभी कोई पता नहीं लगा है... घबराने की बात नहीं है... खोज जारी है। परंतु रैना कैसे न घबराए, उसके जिगर का टुकड़ा पता नहीं कहां ठोकरें खा रहा होगा? कहां होगा विकास ?
अंत में जब उससे नहीं रहा गया तो साड़ी बदलकर टैक्सी के माध्यम से कोतवाली पहुंच गई।
रैना ने वहां जाते ही देखा, ठाकुर साहब रघुनाथ पर बिगड़ रहे थे। उसे देखते ही दोनों चौके!
रघुनाथ उसकी ओर बढ़ता हुआ बोला।
--"तुम!"
परंतु अभी कुछ कह भी नहीं पाया था कि ठाकुर साहब बोले । -----"अरे बेटी, तुम यहां क्यों आ गई?"
रैना ने लपककर उनके पैर छुए और ठाकुर साहब ने आशीर्वाद दिया। पैर छूकर रैना ठाकुर साहब से बोली-----"कुछ पता चला पिताजी?"
'अरे!'' ठाकुर साहब मुस्कराने का अभिनय करते हुए रैना की पीठ पर प्यार से हाथ रखकर बोले-"तुम घबराती क्यों हो? अभी मिल जाएगा।"
अभी ठाकुर साहब ने अपने शब्द पूरे भी नहीं किए थे कि सभी चौक पड़े।
गगन से उभरती गड़गड़ाहट ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।
कोई भी ऐसा व्यक्ति न था, जिसकी निगाहें बरबस ही आकाश की ओर न उठी हों तथा जिसने निगाहें उधर उठाई, उन सभी में दृश्य देखते ही हैरत के भाव उभर आए।
ठाकुर साहब, रघुनाथ तथा रैना भी आश्चर्य के साथ उस दृश्य को देखते रह गए। कितना खौफनाक था वह दृश्य ! कितना आश्चर्यजनक, कितना हैरतअंगेज !
वायु में एक हेलीकॉप्टर तैर रहा था और उसकी सीढ़ी नीचे लटकी हुई थी। सीढ़ी में कोई इंसान ठीक किसी तराजू के पलड़े की भांति लटका हुआ था।
सबकी औखें हैरत से फटी रह गई। ऐसा दृश्य न कभी किसी ने आज से पूर्व देखा था और न ही किसी ने कल्पना की थी। दृश्य को देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गए। उनकी समझ में नहीं आया कि ये हो क्या रहा है ।
ठाकुर साहब अथवा रघुनाथ में से भी अभी तक किसी ने यह नहीं जाना कि हेलीकॉप्टर की सीढ़ी में भयानक छलावा अपराधी टुम्बकटू बंधा हुआ है। हेलीकॉप्टर अभी काफी ऊंचा था। उन्होंने महसूस किया कि कोई बड़े इत्मीनान के साथ हेलीकॉप्टर को समूचे राजनगर पर पुमा रहा है।
राजनगर का प्रत्येक निवासी इस आश्चर्यजनक परंतु खौफनाक दृश्य को देख रहा था।
अपनी कोठी में खड़ा हुआ विजय भी इसी दृश्य को देख रहा था, उसकी आखें हैरत से फैली हुई थीं। अभी तक वह भी न पहचान सका था कि सीढ़ी के नीचे लटका यह व्यक्ति टुम्बकटू है।
हेलीकॉप्टर ने तेजी के साथ समूचे राजनगर के दो चक्कर लगाए। इस बीच सीढ़ी हेलीकॉप्टर से विपरीत दिशा में उड़ रही थी। परंतु दो चक्कर लगाने के पश्चात अचानक हेलीकॉप्टर नीचे होता चला गया।
ज्यों ही हेलीकॉप्टर नीचा होकर कोतवाली की ओर बढ़ा, ठाकुर साहब इस प्रकार उछल पड़े, मानो उनके समीप ही कहीं भयानक विस्फोट हुआ हो।
उसी पल रघुनाथ और रैना की आंखों में उपस्थित हैरत के
भावों में वृद्धि हो गई। साथ ही उनके नेत्रों में भय की परछाइयां भी नृत्य करने लगीं। ठाकुर साहब एकदम चौंककर बोले ।
" अरे... यह तो टुम्बकटू है!"
और यही कारण था कि रघुनाथ और रैना की आंखों में भी भय नृत्य करने लगा। वे दोनों भी सीढ़ी से नीचे लटके टुम्बकटू को पहचान गए थे।
चौंकने की बात ये थी कि टुम्बकटू को वे इतनी शीघ्र इस अजीब स्थिति में देखेंगे, ऐसी किसी ने कल्पना भी न की थी, किंतु!
."लेकिन सर !" हड़बड़ाया-सा सुपर रघुनाथ बोला-----"मेरे विचार से विकास भी इसी के साथ होना चाहिए था।"
विकास का नाम आते ही रैना को ऐसा महसूस हुआ, जैसे किसी ने उसके सीने पर जोर से एक घूंसा मारा हो! वह तड़प उठी। इस अजीब दृश्य को देखकर तो वह अपने विकास को ही भूल गई थी। वैसे अभी तक उसकी दृष्टि हेलीकॉप्टर पर ही जमी हुई थी, जो निरंतर नीचा होता जा रहा था और उसका रुख कोतवाली की ओर ही था।
तब, जबकि हेलीकॉप्टर अत्यधिक नीचे आ गया, अचानक हेलीकॉप्टर के चालक विकास ने नीचे ठाकुर साहब, रघुनाथ और रैना की ओर देखा तथा चीखा।
"आपका अपराधी ले आया हूं दादाजी!"
उफ्!
कैसी भावनाएं उठी रैना के हृदय में !
अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में अश्क उभर आए। परंतु ये आंसू किसी एक भावना को प्रदर्शित नहीं करते थे बल्कि इनमें अनेकों भावनाओं का समावेश था । जिनमें जहां अपने बेटे को अनायास देखकर उसके नेत्रों में नीर उभर आया, वहां उन अश्कों में विकास के कार्य पर आश्चर्य भी था, गर्व भी था, परंतु भय भी था।
हजारों भावनाओं से रैना का हृदय तड़प उठा। उसकी स्थिति अजीब-सी हो गई ----वह अपने उस लाडले को देखती ही रह गई, जिसे देखने के लिए वह लालायित थी। परंतु उसे इस अजीब स्थिति में देखकर हजारों-लाखों भावनाएं उसके हृदय में मचली और परिणामस्वरूप उसके नेत्रों में अश्रु उभर आए । चाहते हुए भी वह एक शब्द भी न बोल सकी। उसके शब्द कंठ में ही दबकर रह गए।
स्वयं ठाकुर साहब और रघुनाथ की आंखें विकास को देखकर हैरत से फैल गई। उन्होंने आश्चर्य के साथ एक-दूसरे को देखा, मानो पूछ रहे हो, कि क्या वास्तव में हेलीकॉप्टर की चालक सीट से विकास ही बोला है? परंतु दोनों ही जानते थे कि वह विकास ही है। उनके नेत्रों में महान आश्चर्य था!
एकाएक ठाकुर साहब बुदबुदाए ।
----- "ये लड़का है या शैतान !"
-----"सर!" रघुनाथ भी आश्चर्य के साथ बोला-----"ये शैतान इस छलावे को कैसे पकड़ लाया?'' कहते हुए रघुनाथ के हृदय में भी अजीब-सी भावनाएं उठ रही थीं। एक ओर जहां उसे इस बात पर गर्व महसूस हो रहा था कि उसका पुत्र एक महान अपराधी को गिरफ्तार करके ला रहा है, वहां दूसरी ओर इस बात का भय था कि ये लड़का आखिर इतने भयानक कार्यों में हाथ ही क्यों डालता है? कहीं विकास किसी दिन...?
." विकास नें इस छलावे को गिरफ्तार कैसे कर लिया होगा?" ठाकुर साहब ऊपर हेलीकॉप्टर पर ही दृष्टि जमाए बुदबुदा रहे थे ।
रघुनाथ को एक अजीब-सा भय और गर्व - भरी खुशी अनुभव हो रही थी ।
रैना के नयनों में आश्चर्य, खुशी, गर्व तथा भय इत्यादि अनेक भावनाओं को संयुक्त रूप से लेकर नीर उभर आया था।
हेलीकॉप्टर और अधिक नीचे आ गया तो विकास ने हाथ हिलाकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास दिलाने का प्रयास किया। उत्तर में रैना ने जब रघुनाथ और ठाकुर साहब को हाथ हिलाते देखा तो बरबस ही उसका भी हाथ उठ गया और वह भी अपनी उपस्थिति का आभास देने लगी।
उसके हृदय की अजीब-सी स्थिति थी ।
देखते-ही-देखते हेलीकॉप्टर कोतवाली के लंबे-चौड़े प्रांगण में लैंड कर गया।
लोगों की भीड़ कोतवाली की ओर उमड़ आई थी।
सबसे पहले धीमे से टुम्बकटू फर्श पर आया और उसके बाद विकास ने हेलीकॉप्टर अधिक नीचा करके थोड़ा आगे बढ़ाया और उतार दिया।
लोगों की भीड़ पर पुलिस नियंत्रण कर रही थी।
हेलीकॉप्टर के लैंड करते ही रैना पागलों की भांति उस ओर लपकी।
उधर इंजन बंद करते ही विकास किसी बंदर की भांति उछलकर बाहर आया और रैना की ओर लपका।
मां अपने पुत्र की ओर लपकी, पुत्र लपका मां की ओर !
ममता और प्रेम का ये कैसा मिलन था?
मार्ग में ही वे मिले और रैना ने अपने पुत्र को गोद में लेकर अपने जोर-जोर से धड़कते सीने में छुपा लिया। रैना की आंखों में जैसे बाढ़ आ गई।
कुछ ही पलों पूर्व का शैतान मासूम बालक बनकर मां के वक्ष से जा लिपटा ।
रैना प्यार से विकास के समूचे जिस्म पर हाथ फेरने लगी, मानो देख रही हो कि इस खतरनाक कार्य में कहीं उसके लालको कोई खरोंच तो नहीं आ गई है!
मां और पुत्र के विचित्र परिस्थितियों में इस मार्मिक दृश्य को देखकर कुछ भावुक व्यक्तियों के नेत्रों से तो दो नन्हीं-नन्हीं सरिताएं बह चली। स्वयं ठाकुर साहब और रघुनाथ को ऐसा लगा, जैसे उनके नेत्रों में अश्क आना चाहते हों, परंतु शीघ्र ही उन्होंने स्वयं को संभाल लिया।
और वह खौफनाक छलावा तो बेचारा इस समय कुछ करने की स्थिति में था ही नहीं। अन्य लोगों को उसकी स्थिति पर कुछ क्षोभ था, जबकि वह आराम से अपने स्थान पर खड़ा मुस्करा रहा था।
और उस समय तो वह भी गद्गद होकर रह गया, जब उसने मां और पुत्र का वह मार्मिक मिलन देखा। उस समय टुम्बकटू के मस्तिष्क में एक अन्य यह बात भी आई कि कुछ पलों पूर्व भयानक शैतान लगने वाला ये विकास मां के वक्ष से लिपटा कैसा मासूम बालक-सा लग रहा है। टुम्बकटू सिर्फ मुस्कराकर रह गया।
"टुम्बकटू को संभालो।" ठाकुर साहब ने रघुनाथ को आदेश दिया और स्वयं रैना और विकास की ओर बढ़े। रैना अभी तक पागल-सी विकास के चेहरे के अनेकों चुंबन लिए जा रही थी।
ठाकुर साहब उनके करीब जाकर बोले ।
"रैना बेटी!"
-"जी!" ठाकुर साहब की आवाज ने जैसे रैना को भावनाओं के सागर से खींच लिया। वह एकदम खड़ी हो गई । विकास समीप ही खड़ा मुस्करा रहा था। रैना के नेत्रों में अभी भी आंसू देखकर ठाकुर साहब मुस्कराए और बोले।
"अरे पगली, अब भला ये आंसू क्यों? अब तो ये शैतान आ गया है और ये भी तुम देख रही हो कि कितने खतरनाक अपराधी को गिरफ्तार करके लाया है ? हमारी आज की बात याद रखना रैना बेटी, एक दिन विकास भारत का गौरव बनेगा।"
---"पिताजी!" भावावेश में डूबी रैना केवल यही एक शब्द कह सकी और ठाकुर साहब के सीने से जा चिपकी।
ठाकुर साहब प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगे।
. 'नहीं डैडी!" एकाएक विकास की आवाज ने सबको चौंका दिया----- ''इस तरह तो लंबू अंकल फिर भाग जाएंगे।"
सभी की निगाहें उस ओर उठ गई।
रघुनाथ टुम्बकटू को सीढ़ी से खोलना ही चाहता था कि विकास की आवाज पर उसके हाथ ठिठक गए। चौंककर उसने विकास की ओर देखा।
रैना और ठाकुर साहब का ध्यान भी उस ओर गया।
उन्होंने देखा कि दौड़ता हुआ विकास रघुनाथ के निकट पहुंचा और बोला-----"डैडी, लंबू अंकल को इस तरह नहीं खोलना चाहिए।"
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"पहले लंबू अंकल से एक दिलजली सुनते हैं। क्यों अंकल?'' ये शब्द विकास ने टुम्बकटू की ओर देखकर आंख मारते हुए कहे थे।
उसकी यह हरकत सभी ने देखी और उसकी हरकत पर तो रैना भी बिना मुस्कराए न रह सकी, जबकि टुम्बकटू मुस्कराता हुआ कह रहा था।
''रैना भाभी-----धरती पर कोई बहादुर है तो सिर्फ आपका ये लड़का!"
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