एक विचित्र कहानी
सोनिया ने खाना समाप्त करते ही सिर दर्द का बहाना किया और अपने कमरे में चली आई । मेजर ने लाला केदारनाथ के प्रश्नों का उत्तर जल्दी से दिया और कहा, "मेरा सिर भी आज जरा भारी है।" और वह भी उठ खड़ा हुआ। चाचा और चाची को नमस्ते की, रीटा और रूबी के सिर पर हाथ फेरा और दरवाजे की ओर बढ़ा ।
अपने कमरे में पहुंचकर उसने दरवाजा वन्द कर लिया। सोनिया सोने के वस्त्र उतार चुकी थी ।
फिर मेजर भी प्लाईवुड के पार्टीशन के पीछे वस्त्र बदलकर तुरन्त वापस आ गया | सोनिया पलंग पर लिहाफ ओढ़े बैठी थी | मेजर भी लिहाफ का दूसरा सिरा
ओढ़कर बैठ गया और सोनिया से बोला, "अब अपनी कहानी सुनाओ।"
सोनिया ने सुनाना आरम्भ किया, "लक्ष्मी एक साफगो औरत है। उसकी भाषा भी लच्छेदार है। मैं उसके कमरे में उससे मिली। उस समय वह अपने स्वेटर का उघड़ा हुआ भाग बुन रही थी। उसने मुझे बैठने के लिए मोढ़ा दिया और मुझसे मेरे आने का कारण पूछा। मैंने पैरों पर पानी न पड़ने दिया। केवल इतना कहा कि इस घर में ठहरना मुश्किल हो गया था। इसलिए मैं उकताकर उसके पास चली आई थी। उसने मुझसे पूछा कि मैं रजनी के पास क्यों नहीं गई। मैंने जवाब दिया कि मुझे फैशनेबल और नए जमाने की लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं। आपको याद होगा कि आज मैं सादी-सी धोती पहनकर गई थी | मेरी यह बात उसे बहुत पसन्द आई और वह मुझसे घुल-मिलकर बातें करने लगी। उसने बताया कि कामिनी वीवी भी रजनी के पास विल्कुल नहीं बैठती थी। इसके बाद उसने कामिनी के गुण गाने शुरू कर दिए । मैंने इस अवसर को गनीमत जाना और उसे रोहिणी का चित्र दिखाया | उस चित्र को देखते ही उसके मुंह से निकला~'कामिनी दीदी !' वह मेरे पास कामिनी का चित्र देखकर बहुत हैरान हुई । पूछने लगी कि वह चित्र कैसे मेरे हाथ लग गया। मैंने उसे बताया कि कामिनी मेरी सहेली थी । बम्बई में हम दोनों एक ही जगह काम करती थीं । बस, फिर क्या था, लक्ष्मी विल्कुल बिछ गई । उसने एक ही सांस में कामिनी के बारे में दसियों सवाल पूछ डाले। मैंने उसके सवालों का मुनासिव जवाब देने की कोशिश की। मैंने देखा कि उसकी आंखें भीग गई थीं । ऐसा लगा कि कामिनी से उसे गहरा लगाव था । वह उठी और ट्रंक में से एक थैला, निकाल लाई । उसने मुझे कामिनी के कई चित्र दिखाए जो स्वयं कामिनी ने दिए थे । उसके पास कामिनी के कई पत्र भी थे । वह कामिनी के चित्र दिखा रही थी और साथ-ही-साथ बचपन से लेकर अब तक की उसकी सारी बातें सुनाती जा रही थी ।”
सोनिया सांस लेने के लिए रुकी। फिर वह अपने बालों को संवारते हुए बोली ।
"लक्ष्मी की जबान से कामिनी के बारे में जो वातें मुझे मालूम हुई, उनका सारांश यह है कि कामिनी एक सीधी-सादी लड़की है । न जाने क्यों हमेशा उदास रहती है। वह प्रोफेसर मोरावियो के मरने के बाद अधिक उदास रहने लगी थी। लक्ष्मी ने मुझे इसका कारण भी बताया जो बहुत ही विचित्र और दुःखद था— प्रोफेसर मोरावियो कामिनी का पिता था— दीवान सुरेन्द्रनाथ नहीं।"
“यह तो एक बिल्कुल नई बात है। विश्वास नहीं आता ।” मेजर ने कहा।
आप जरा सुनते जाइए । कामिनी लक्ष्मी से कोई बात नहीं छुपाती थी । वह लक्ष्मी को अपना राजदार बना चुकी थी। कामिनी ने ही लक्ष्मी को बताया था कि वह प्रोफेसर मोरावियो की बेटी है । यही कारण है कि रजनी की सूरत कामिनी से बहुत मिलती है। कामिनी को एक गहरा दुःख था । इसीलिए उसने लक्ष्मी को अपना राजदार बना लिया था ताकि कभी-कभी अपना मन हलका कर सके । वह अवसर पाकर लक्ष्मी के पास आ बैठती थी और लक्ष्मी उससे बड़ी बहन की तरह प्यार करने लगी थी । एक दिन उसने लक्ष्मी को अपने जन्म का किस्सा सुनाया । कामिनी को अपने जन्म को किस्सा प्रोफेसर मोरावियो की जबानी मालूम हुआ था और प्रोफेसर मोरावियो ने मृत्यु- शय्या पर इस भेद का रहस्योद्घाटन किया कि कामिनी उसकी बेटी थी । उसने उसे एकान्त में बुलाया था और जो भेद वह एक समय से अपने दिल में छिपाए हुए था, उसे प्रकट कर दिया था। इस किस्से के अनुसार जब प्रोफेसर दारुल्सलाम में रहता था तो उसकी शादी हो चुकी थी। वहां उसकी साली भी यानी रजनी की मां की बहन भी उसके पास रहती थी । दीवान सुरेन्द्रनाथ से उसकी गहरी मित्रता थी । प्रोफेसर की पत्नी चूंकि एक समझदार महिला थी इसलिए उसने उचित समझा कि दीवान साहब को उससे शादी कर लेनी चाहिए। दीवान साहब यों भी उस पर मुग्ध हो चुके थे। शादी हो गई लेकिन शादी के पन्द्रह दिन बाद एक खुदाई के दौरान दीवान साहब के साथ एक ऐसी दुर्घटना हो गई कि वे" सोनिया कुछ कहते-कहते लजा गई ।
"कहो-कहो, रुक क्यों गईं ? " मेजर ने कहा ।
"उस दुर्घटना के बाद दीवान साहब की पौरुष शक्ति जाती रही । देखने में के एक अच्छे-भले पुरुष दिखाई देते थे, लेकिन उस दुर्घटना का उन पर मनोवैज्ञानिक रूप से गहरा प्रभाव पड़ा । वे अपना दाम्पत्य सम्बन्ध भी कायम रखना चाहते थे और संतान के भी इच्छुक थे । प्रोफेसर मोरावियो को अपने मित्र का यह भेद अपनी पत्नी से मालूम हो चुका था । दीवान साहब को चूंकि अपने मित्र प्रोफेसर मोरोवियो से प्रेम था इसलिए उन्होंने अपने मित्र से प्रार्थना की कि वे उनको इस हीन भाव से मुक्ति दिलाएं और उनकी कामना पूरी करने का साधन बनें । 'प्रोफेसर ने पहले तो हीलदुज्जत की, लेकिन अन्त में अपने मित्र की बात टाल न सके ।"
"ओह, कितनी विचित्र कहानी है।" मेजर ने कहा ।
"यह मनुष्य के दुःखमय जीवन की दुःखमय कहानी है। जब रजनी और कामिनी की माताएं महामारी में मर गयीं तो दीवान साहब अपनी बेटी को साथ लेकर भारत आ गए। उनका खयाल था कि कामिनी को वे अपनी बेटी समझ सकेंगे, लेकिन यह सत्य वड़ा ही अप्रिय था कि कामिनी उनकी बेटी नहीं थी | उन्होंने जाहिरदारी तो बनाए रखी लेकिन कामिनी से सगी बेटी की तरह प्यार न कर सके। जब आप किसी से विमुखता से पेश आते हैं तो उसके मन में भी विमुखता आ जाती है। कामिनी शुरू से ही उनसे खिंची खिची रहती थी | खिचाव में साल दर साल वृद्धि होती गई। जब प्रोफेसर मोरावियो दीवान साहब के यहां चले आए तो कामिनी और प्रोफेसर के खून ने जोर मारा। प्रोफेसर साहब कामिनी की ओर कुछ ऐसे अन्दाज से देखते और उसे कुछ ऐसे ढंग से अपने पास बुलाते कि कामिनी अपने आप उनकी ओर खिंच जाती। वह दिन-ब-दिन उनके अधिक निकट होती चली गई । दीवान साहब वाप-बेटी को जब भी एक साथ देखते तो उनके दिल पर छुरियां चलने लगतीं । कामिनी को भी पता चल गया कि दीवान साहब उसके पिता प्रोफेसर मोरावियो के साथ उनके बढ़ते हुए स्नेह को पसन्द नहीं करते। यही कारण था कि कामिनी ने कलकत्ता से छुट्टियों में आना बन्द कर दिया। दीवान साहब से कामिनी की अनबन बढ़ती गई और दीवान साहब भी उससे दूर होते चले गए और उसे सताने की कोशिशें करते रहे । कामिनी के दिल में एक प्रकार की उद्दण्डता और विद्रोह जन्म ले चुका था, कि वह दीवान साहब की इच्छा के सामने सिर नहीं झुकाएगी--और उधर दीवान साहब इस बात पर तुल गए थे कि वे कामिनी से अपनी हर बात मनवाकर रहेंगे। और जब प्रोफेसर साहब ने कामिनी को यह भेद बता दिया तो कामिनी को उद्दण्डता और भी प्रखर हो उठी। दीवान साहब भी ताड़ गए कि कामिनी उनका भेद जान चुकी है । उनकी दबी हुई घृणा उग्र हो उठी और वे कामिनी को और अधिक परेशान करने लगे । उनको जब मालूम हुआ कि कामिनी किसी फिल्म में काम करने के लिए बम्बई चली गई है तो उन्होंने धमकी दी कि वह अपने उस इरादे से बाज आ जाए, नहीं तो उसे जायदाद से वंचित कर दिया जाएगा। उन्होंने डेढ़ महीना पहले कामिनी को अपने पास बुलाया था। वह कुछ दिन यहां रही। दीवान साहब ने उसे पन्द्रह दिन की मोहलत दी । लक्ष्मी ने कामिनी को बहुत समझाया-बुझाया कि वह जान-बूझकर इतनी दौलत को क्यों ठुकरा रही है। लेकिन कामिनी के दिल में एक गांठ पड़ चुकी थी । दोवान साहब का एक भी पैसा लेने के लिए तैयार नहीं थी । वह उसे हराम का समझती थी । जो हो, लक्ष्मी के समझाने पर कामिनी कुछ नरम पड़ गई और जाते जाते कह गई कि वह कुछ दिन बाद अपना फैसला बताएगी। जब कामिनी ने बम्बई जाकर कोई जवाब न भेजा तो दीवान साहब ने अपनी वसीयत को कानूनी रूप दे दिया, जिसमें कामिनी को अपनी जायदाद से बिल्कुल वंचित कर दिया ।"
"कामिनी बम्बई जाकर गुम हो गई तो कौन जवाब देता। हो सकता है कि मन ही मन में वह जायदाद प्राप्त करने के लिए अपने आप को तैयार कर चुकी हो । मुझे कामिनी का इस प्रकार गायब हो जाना भी एक गहरा रहस्य मालूम होता है।" मेजर ने कहा, "उसकी जीवनी कितनी दर्दनाक है ! इस संसार में मनुष्य पर क्या कुछ बीत सकता है-यह सोचकर कलेजा मुंह को आता है।"
" मैंने जब लक्ष्मी को 'विदा' कहा तो उसने मुझे बम्बई से कामिनी के नाम आया हुआ एक पत्र दिया और बताया कि जिस दिन कामिनी यहां से गई थी, उस दिन वह पत्र लक्ष्मी की मार्फत आया था । लक्ष्मी ने मुझसे कहा कि मैं वह पत्र कामिनी को जाकर दे दूं ।”
"वह पत्र कहां है ? लाओ, वह पत्र हमारे लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकता है । " मेजर ने कहा ।
सोनिया उठी और अपने बैग में से पत्र ले आई जो लक्ष्मी ने उसे दिया था और जो कामिनी के नाम का था |
मेजर ने वह पत्र खोला |
पत्र अंग्रेजी में था ।
ऊपर यह पता लिखा हुआ था – ४३ ए, वार्डन रोड, बम्बई|
नीचे पत्र यों शुरू होता था :
"रोहिणी डालिंग !
मेरा यह अनुभव विश्वास में बदल चुका है कि तुमसे मेरी संक्षिप्त-सी भेंट ने गहरे प्रेम का रूप धारण कर लिया है। तुम्हारे बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मेरा एक-एक क्षण सदियां बनकर गुजर रहा है। मैं जानता हूं कि तुम्हारा भी यही हाल होगा । दिल को दिल से राहत होती है । तुम्हें भी मुझसे बहुत लगाव है । यह वात मुझसे छिपी हुई नहीं हैं । शीघ्र वापस आओ । मेरी आंखों को अब तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता।
तुम्हारा प्रदीप"
मेजर ने उठकर वह पत्र अपने कोट की जेब में रख दिया । फिर उसने पूछा, "क्या तुम आज रजनी से भी मिली थीं ?"
“जी हां।" सोनिया बोली, "दोपहर के खाने के बाद उससे मिली थी। वह कमरे में अकेली थी । रजनी के साथ भेंट में मुझे बड़ी तकल्लुफी से काम लेना पड़ा । कामिनी की बात छेड़ने में भी बड़ी सावधानी बरतनी पड़ी । रजनी से मुझे कामिनी के विषय में कुछ अधिक बातें मालूम नहीं हो सकीं । रजनी ने कामिनी के बारे में जो राय दी, वह संक्षेप में यह है कि कामिनी एक घमंडी लड़की है । स्वेच्छाचारी है । अपने अतिरिक्त उसे कोई भी एक आंख नहीं भाता । जो लड़की अपने पिता से घृणा करती है उसके बारे में और क्या कहा जा सकता ! कामिनी उससे बहुत कम मिलती थी । उसने कामिनी के निकट जाने की कोशिश की थी लेकिन असफल रही थी । "
" इसका मतलब तो यह हुआ कि रजनी को यह बात मालूम नहीं कि कामिनी उसकी सगी बहन है ! "
"हां ।” सोनिया बोली ।
मेजर कामिनी के नाम प्रदीप का पत्र फिर देखने लगा | पत्र के भीतर प्रदीप ने कामिनी को रोहिणी लिखा था लेकिन लिफाफे पर 'मिस कामिनी' लिखा था । मेजर सोचने लगा कि कामिनी को सचमुच प्रदीप से प्रेम होगा । इसीलिए तो उसने उसको अपना असली नाम बता दिया था | सोनिया ने जमहाई ली तो मेजर बोला, ‘‘तुमने आज बहुत अच्छा काम किया है— जाओ, जाकर सो जाओ । बातों-बातों में साढ़े बारह बज चुके हैं ।”
बाहर से टेलीफोन की घंटी बजने की आवाज आई । किसी ने दबे पांव चलते हुए टेलीफोन का चोंगा बठाया | दो मिनट के बाद मेजर के दरवाजे पर दस्तक हुई । मेजर ने दरवाजा खोला | सामने लाला केदारनाथ वर्मा खड़े थे।
“आपको इन्स्पेक्टर धर्मवीर फोन पर बुला रहे हैं ।" लाला जी ने कहा ।
मेजर उछलकर विस्तर से नीचे कूदा और फोन की ओर लपका |
"हैलो, इन्स्पेक्टर साहब ?" दूसरी ओर से इन्स्पेक्टर धर्मवीर की आवाज आई, “जी हां, आप सो तो नहीं गए थे ?"
"नहीं। क्यों क्या बात है ? "
"डाक्टर साहब पर किसी ने कातिलाना हमला करने की कोशिश की है।"
"डाक्टर साहब पर ? मैं कैसे मान लूं ? यह बात तो मेरी आशा के विल्कुल उलट हुई है। अच्छा ठहरिए, मैं अभी तैयार होकर आपके पास जाता हूं।"
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