हरीश खुदे उस बंगले के बाहर अंधेरे में डटा, बंगले पर नज़र रख रहा था। इस वक्त वो सिर्फ सौ फीट के फासले पर था। बंगले में दो-तीन जगह रोशनी हो रही थी। आस-पास के बंगलों का भी ये ही हाल था। सड़क की रोशनी नहीं जल रही थी। अभी तक विलास डोगरा नहीं लौटा था। ऐसे में बंगले पर कोई पहरा नहीं था। एक आदमी बंगले के गेट के भीतरी तरफ कभी-कभाद टहलता दिख जाता था। उसके बाद वो फिर गायब हो जाता था, जैसे कि कहीं पर कुर्सी रखी हो, उस पर बैठकर सुस्ताने लगता हो। दूसरा आदमी कभी-कभाद बंगले की छत पर दिखाई दे जाता था। उन दोनों के अलावा, तीसरा कोई नहीं दिख रहा था जबकि खुदे जानता था कि भीतर पाँच-छः आदमी हैं।
सुबह के चार बजने वाले थे।
देवराज चौहान और जगमोहन साढ़े ग्यारह बजे दीवार फांद कर बंगले में प्रवेश कर गये थे और बंगले में कहीं दुबके पड़े डोगरा के वापस आने का इन्तजार कर रहे थे। जब वे दोनों भीतर गये थे, तब खुदे का दिल जोरों से धड़क रहा था कि कहीं वो भीतर के लोगों की नज़रों में ना आ जायें। गोलियां ना चलने लगे।
परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। आधे घंटे की शान्ति के बाद खुदे समझ गया था कि देवराज चौहान और जगमोहन बंगले के भीतर किसी अंधेरे में खामोशी से सैट हो चुके हैं। वो बंगले पर नज़र रखे रहा और वक्त बीतने के साथ-साथ बेचैन होने लगा कि डोगरा अभी तक वापस लौटा क्यों नहीं? अब सुबह के चार बजने पर खुदे बहुत ज्यादा, परेशान हो उठा था। बेचैनी से खुदे की नज़रें इधर-उधर घूमने लगी कि तभी उसकी आँखें सिकुड़ी। होंठ भिंच गये। उसके देखते ही देखते, बंगले से सत्तर कदम पहले सड़क के किनारे तीन कारें रुकी और उनकी हैडलाइटें बंद थी। यही वजह थी कि खुदे को बात अटपटी लगी थी।
हरीश खुदे कारों की तरफ देखता रहा।
अगले ही पल कारों के दरवाजे खुलने लगे और देखते ही देखते वहाँ पन्द्रह के करीब आदमी दिखने लगे। जिनके हाथों में, कुछ के पास गनें भी दिखी। खुदे सतर्क हो गया कि गड़बड़ है। वो लोग बिना देरी के तेजी से दबे पाँव उसी बंगले की तरफ बढ़ने लगे, जिसमें कि डोगरा ठहरा हुआ था।
खुदे हक्का-बक्का रह गया।
तो क्या डोगरा को पता चल गया है कि भीतर देवराज चौहान और जगमोहन मौजूद हैं और उन्हें खत्म करने के लिए डोगरा ने आदमी भेजे हैं। पर बंगले में तो शान्ति है। अगर किसी को पता होता कि बंगले में वे दोनों हैं तो भीतर से कब का शोर-शराबा उठ जाना था। खुदे ने जल्दी से मोबाइल निकाला और देवराज चौहान को फोन किया। देवराज चौहान और जगमोहन के फोन वाईब्रेशन (कम्पन) पर थे, इसलिये बेल की आवाज वहाँ नहीं गूंजनी थी।
अंधेरे में बैठे खुदे की निगाह बंगले की तरफ बढ़ते हथियार बंद लोगों पर थी।
"कहो।" देवराज चौहान की मध्यम सी आवाज खुदे के कानों में पड़ी।
"बाहर गड़बड़ है कुछ। पन्द्रह के करीब हथियार बंद लोग बंगले पर पहुँचे हैं। अभी बाहर ही हैं, उनके हाथों में हथियार हैं। लगता तो नहीं कि वो डोगरा के आदमी हों। मुझे तो उनका इरादा हमला करने का लगता है।"
"कौन हैं वो लोग ?" देवराज चौहान की मध्यम सी आवाज खुदे के कानों में पड़ी।
"क्या पता।" बात करते खुदे की बेचैन निगाह उन आदमियों पर जा रही थी जो बंगले के गेट पर आ पहुँचे थे।
तभी गेट के भीतर, वो आदमी थोड़ा सा दिखा जो पहरेदारी में टहल रहा था।
उसी पल 'ठाँ-ठाँ' वातावरण में गोलियाँ चलने की आवाज आई।
उस पहरेदार को खुदे ने उछल कर पीछे की तरफ गिरते देखा । इसके साथ ही आने वाले लोगों ने गेट खोला और भीतर प्रवेश करने लगे कि छत पर मौजूद गनमैन ने गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। खुदे ने गेट पर खड़े तीन-चार लोगों को गिरते देखा, चीखें गूंजी। वहाँ भगदड़ मच गई। छः सात लोगों ने पोज़िशन ले ली। बाकी पहले ही भीतर प्रवेश कर चुके थे। पोज़िशन ले चुके आदमियों ने छत की तरफ फायरिंग करनी शुरू कर दी। छत पर से भी नीचे की तरफ गोलियाँ चलने लगी।
चंद पलो में ही शांत माहौल, गोलियों में बदल चुका था।
खुदे दूर मौजूद सब देख रहा था। उसे देवराज चौहान और जगमोहन की चिन्ता थी। आस-पास के बंगलों में गोलियों की आवाजें सुनने के बाद, रोशनियाँ जलने लगी थी। जाग हो गई थी। खुदे व्याकुल था कि जो हमलावर भीतर प्रवेश कर गये थे वो देवराज चौहान और जगमोहन को नुकसान ना पहुँचा दें। खुदे को ये बात तो अब तक समझ आ गई थी कि हमलावर ये सोचकर बंगले पर पहँचे थे कि वहाँ पर विलास डोगरा मौजूद होगा, उसे खत्म करने आये थे वे ।
खुदे होंठ भींचे वहीं टिका, सब कुछ देखता रहा ।
फायरिंग की आवाज बराबर गूंज रही थी। फायरिंग भी इस तरह हो रही थी कि जैसे हमलावर सब कुछ फौरन करके वहाँ से निकल जाना चाहते हों। इन हालातों में खुदे, चाहकर भी देवराज चौहान और जगमोहन के लिए कुछ नहीं कर सकता था। हमलावरों की संख्या ज्यादा थी। आगे जाना मौत के मुंह में जाने के बराबर था। मन ही मन वो ये सोचकर ज्यादा परेशान हो रहा था कि अगर देवराज चौहान को कुछ हो गया तो डकैती करने का प्रोग्राम खत्म हो जायेगा। देवराज चौहान ने उससे वादा कर रखा है कि ये काम खत्म होते ही, उसे लेकर डकैती करेगा और उसे काफी मोटा पैसा इकट्ठा करके देगा।
देखते ही देखते दस मिनट बीत गये।
तभी खुदे की आँखें सिकुड़ी। उसने अंधेरे में किसी को देखा जो कि दीवार फांद कर कूद रहा था। वो समझ नहीं पाया कि वो कौन हो सकता है। उसी पल एक ओर को उसी प्रकार दीवार फांद कर बाहर कूदते देखा। खुदे को लगा हो-ना-हो दोनों देवराज चौहान और जगमोहन हो सकते हैं। खुदे ने अपनी जगह छोड़ी और तेजी से उस तरफ दौड़ा, जिस तरफ वे दोनों खिसक रहे थे।
मिनट भर में खुदे उनके पीछे पहुँच गया। तब तक वो समझ चुका था कि वो देवराज चौहान और जगमोहन ही है। एक घर से आती रोशनी में दोनों को स्पष्ट रूप से देखा था।
"निकल आये तुम दोनों वहाँ से।" खुदे ने पीछे से कहा।
वो देवराज चौहान और जगमोहन ही थे। खुदे की आवाज सुन कर वे ठिठके ।
खुदे पास जा पहुँचा।
तीनों आगे बढ़ने लगे। जगमोहन ने पूछा।
"कार किधर है?"
"उस तरफ। हमें घूम कर उस तरफ जाना होगा।" खुदे ने कहा--- "भीतर क्या हुआ?"
"डोगरा तो नहीं आया?" देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं। सिर्फ ये ही हमलावर आये हैं।" खुदे ने कहा--- "मेरे ख्याल में ये लोग डोगरा को मारने आये थे।”
“और डोगरा बंगले पर वापस आया ही नहीं।" जगमोहन ने कहा।
"पार्क होटल में, नाथ नाम के आदमी से मिलकर उसने वापस बंगले पर ही आना था।" जगमोहन ने कहा--- "हमें डोगरा पर भी नज़र रखनी चाहिये थी कि उसका प्रोग्राम पता चलता रहे। पता तो चलता कि वो बंगले पर वापस आया क्यों नहीं ?"
"वो शायद पार्क होटल से, किसी और काम के लिए निकल गया होगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं तो डर रहा था कि तुम लोगों को भीतर कुछ हो ना जाये।" खुदे बोला।
“कठिनता से ही निकल पाये हम। उन लोगों ने हमें देखा नहीं, वरना गड़बड़ हो जाती।" जगमोहन ने कहा।
तीनों तेजी से अंधेरे में आगे बढ़े जा रहे थे।
"अगर डोगरा हाथ लग जाता तो काम निपट जाता।" जगमोहन गुर्रा उठा।
"अगर डोगरा कहीं और निकल गया है और यहाँ पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया है तो अब हम उसे कहाँ ढूंढेंगे।" खुदे बोला--- "वो यहाँ वापस तो लौटेगा नहीं। कल वो कहाँ जायेगा, कुछ पता है?"
"कल क्रिस्टन रोड पर माल्टा होटल ग्यारह बजे डोगरा ने नसीमबानो नाम की औरत से मिलना है, जो कि साऊथ इंडिया में ड्रग्स के धंधे की बेताज बादशाह है। मल्लिका है। हम वहाँ से डोगरा को अपनी नज़र में ले सकते हैं।" देवराज चौहान ने कहा--- "प्रकाश दुलेरा का बताया प्रोग्राम हमारी बहुत सहायता कर रहा। वरना हम इतनी देर तक डोगरा का पीछा ना कर पाते।"
"आज रात डोगरा लौटा नहीं बंगले पर ।" जगमोहन कह उठा--- "वरना काम खत्म हो गया होता अब तक।"
"ये शुक्र करो कि उन हमलावरों से बचकर निकले आये बंगले से।" खुदे बोला--- "वरना तुम्हारा काम हो गया होता। पता नहीं वो कौन थे, पर आये पूरी तैयारी से थे कि डोगरा को खत्म करके ही लौटना है। बच गया डोगरा, जो वहाँ नहीं था।"
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हवेरी में ही, काफी बड़ा फार्म हाऊस था, जो कि हवेरी की सीमा पर स्थित था। फार्म हाऊस में रंग-बिरंगे फूलों की कतारें दूर तक लगी नज़र आ रही थी। फार्म हाऊस की दीवारें दस फीट ऊँची थी फिर उस पर कंटीले तार लगे हुए थे। दो मंजिला शानदार बंगला बना हुआ था और जरूरत की हर चीज वहाँ मौजूद थी। ये जगह कुट्टी की आरामगाह थी। रात को वो डोगरा के साथ उसी फार्म हाऊस में पहुंचे थे और छः आदमी पहरे पर लग गये थे. बाकी सब सोने चले गये थे कि सुबह तरोताजा होकर, सुरक्षा देने का काम कर सकें।
कुट्टी भी रात भर बंगले पर ही रहा था। वो मात्र तीन घंटे ही सो सका था फिर सुबह उठकर वहाँ के सारे इन्तजामों को देखने लगा और फोन पर भी व्यस्त हो गया था।
सुबह के दस बजे रीटा ने चाय के प्याले के साथ डोगरा को नींद से उठाया।
"आज दिन भर सोने का ही इरादा है डोगरा साहब।" रीटा ने मीठे स्वर में कहा।
डोगरा ने आँखें खोली। रीटा को देखा।
रीटा दिलकश मुस्कान के साथ कह उठी।
"उठ भी जाइये। गर्मा-गर्म चाय हाजिर है।"
“भाई रीटा डार्लिंग।” डोगरा उठकर बैठता कह उठा--- “तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो। इस तरह हर रोज़ मुझे आँखें खोलते ही तुम्हारा चेहरा देखने को मिल जाये और गमा-गर्म चाय मिले तो मैं हर वक्त नींद में ही रहूँ।"
"आप हुक्म तो कीजिये।" रीटा हंसी--- "हर रोज के लिए ये इन्तजाम भी हो जायेगा ।"
डोगरा चाय का प्याला थामता कह उठा।
“इस तरह हंसते हुए तुम कितनी खूबसूरत लगती हो। मैं यूं ही तो नहीं, तुम्हें साथ-साथ सौ बरस तक रहने के सपने देखता हूँ। तुममें बहुत कुछ है। अदा है। खुशी है। प्यार है। खूबसूरती है, तुम्हें देखते ही मेरी परेशानियाँ दूर चली जाती हैं और ।"
"बस भी कीजिये। इतनी तारीफ करना अच्छा नहीं होगा। नज़र लग जाती है।"
"किसकी ?"
"अपनी ही नज़र लग जाती है।" रीटा, डोगरा के सिर के बालों में उंगलियां फिराती कह उठी।
डोगरा ने चाय का घूंट भरा।
"स्वामी ने तो बहुत जल्दी दिखाई रात।" रीटा बोली।
"अच्छा।" डोगरा ने चाय का दूसरा घूंट भरा--- "क्या हो गया ?"
“कुट्टी ने बताया। रातों रात उसने उस बंगले पर अपने आदमी भेज दिए। गोलियाँ बरसा दी वहाँ। छः आदमी थे हमारे उधर। सब मारे गये। अच्छा ही हुआ डोगरा साहब जो आप उधर गये ही नहीं रात में।" रीटा डोगरा के सामने आ बैठी ।
"मुझे रात में ही शक हो गया था कि स्वामी कुछ करेगा। तभी तो मैंने जगह बदल ली थी।"
"वो अपनी बहन का हत्यारा आपको मानता है।"
“स्वामी की मैं परवाह नहीं करता। जरा कुट्टी को तो बुलाना रीटा डार्लिंग। स्वामी के बारे में उससे बात करनी पड़ेगी ।"
रीटा ने कुट्टी को बुला लिया।
"स्वामी ने तो बुरा किया रात ।" डोगरा बोला--- “रात मेरी जान लेने के लिए बंगले पर आदमी भेज दिए।"
"अच्छा हुआ जो आप वहाँ नहीं थे।" कुट्टी का चेहरा सख्त हुआ।
“ये स्वामी तो मुझे हमेशा काँटे की तरह चुभता रहेगा। वो तो मेरे पर हाथ डालने की सोचे बैठा है। ये तो गलत बात है।"
"हुक्म कीजिये।"
"कैसे खत्म करेगा स्वामी को ?"
"मुरली ये काम कर सकता है। लेकिन वो पैसे ज्यादा लेगा।"
"मुरली?" डोगरा ने चाय का खाली प्याला, रीटा की तरफ बढ़ाया।
रीटा ने प्याला लेकर, टेबल पर रख दिया।
"ये हत्यारा है। पेशेवर हत्यारा। पैसे लेकर हत्या करता है। भाव ज्यादा है इसके। पर काम पूरा करता है। मैंने कई बार मुरली से काम लिया है और मुझे शिकायत का मौका नहीं दिया। स्वामी की हत्या के लिए एक करोड़ से कम नहीं लेगा ।"
"दे दे करोड़।" डोगरा ने कहा--- "स्वामी को खत्म हो जाना चाहिये। जो आदमी धंधे में अपनी बहन का इस्तेमाल करे, वो तो मुझे वैसे भी पसन्द नहीं। मुरली को आज-कल में ही काम पर लगा दे।"
"मैं अभी उससे बात करता हूँ।" कुट्टी बोला।
"डोगरा साहब, ग्यारह बजे नसीमबानो से माल्टा होटल में मिलना है।” रीटा बोली--- "साढ़े दस तो यहीं बज रहे हैं।"
"कुट्टी।" डोगरा बोला--- “जब तक मैं हवेरी में हूँ, मेरे आसपास सुरक्षा के तगड़े इन्तजाम रखना। स्वामी की तरफ से समस्या खड़ी हो सकती है। हम कब तक हवेरी में हैं रीटा डार्लिंग ?"
"कल तक। परसों सुबह हमारे टूर का आखिरी पड़ाव चिकमंगलूर है।" रीटा कह उठी ।
"टूडे किधर है?" डोगरा ने कुट्टी को देखा।
“बाहर। फूलों के पास कुर्सी रखे बैठा है।" कुट्टी ने कहा।
"ठीक है। माल्टा होटल चलने की तैयारी कर कुट्टी। आधे घंटे में हम यहाँ से चल रहे हैं।" डोगरा ने सोच भरे स्वर में कहा
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किस्टन रोड की शान था माल्टा होटल।
सफेद पत्थरों से बहुत ही शानदार और विशाल बिल्डिंग थी। पाँच मंजिला था होटल और काफी बड़ी जगह में फैला हुआ था। भीतर प्रवेश करते ही किसी राजा के महल होने जैसा एहसास होता था। 11:40 बजे डोगरा वहाँ पहुँचा। उसकी सुरक्षा में लगे सब लोग होटल के बाहर ही रह गये और डोगरा, रीटा, कुट्टी भीतर आ गये थे। कट्टी की अगवानी में डोगरा और रीटा होटल की तीसरी मंजिल के एक छोटे से हॉल में पहुँचे जहाँ फानूस रोशन थे। बहुत अच्छे ढंग से उनकी रोशनी वहाँ फैली हुई थी। कमरे की बीचो-बीच लकड़ी की काफी बड़ी गोल टेबल मौजूद थी, जिसके गिर्द पन्द्रह कुर्सियां रखी थी। टेबल की शान देखते ही बनती थी। टेबल के लकड़ी के टॉप के भीतर, कहीं-कहीं मध्यम सी लाल नीली रोशनियां रोशन थी। उस हॉल की खिड़कियों पर पर्दे पड़े थे। वो पैतालिस बरस की औरत थी जो कि पहले से ही वहाँ मौजूद थी। उसने कमीज-सलवार के ऊपर बुर्का पहन रखा था। वो लम्बी-चौड़ी थी। चेहरे पर से बुर्का हटा रखा था। उसका रंग गोरा और बहुत खूबसूरत थी वो। उसके साथ वहाँ सूट पहने दो लम्बे-चौड़े व्यक्ति मौजूद थे। उनके अलावा वहाँ पर कोई नहीं था। होटल का कोई कर्मचारी भी नहीं था।
कुट्टी ने हॉल का शीशे का दरवाजा बंद कर लिया कि आवाज बाहर ना जा सके।
"सलाम वालेकुम डोगरा साहब।" वो औरत मुस्करा कर कह उठी।
"वालेकुम सलाम। नसीमबानो जी ।" डोगरा भी मुस्कराया--- “तीन "सालों के बाद हमारी मुलाकात हो रही है।"
"आप तो ज़रा भी नहीं बदले।” नसीमबानो बोली।
“ऊपर वाले की मेहरबानी से आप तो और भी हसीन हो गई लगती हैं।"
नसीमबानो कुर्सी पर बैठी।
डोगरा भी बैठा रहा। हमेशा की तरह रीटा डोगरा के कंधों पर हाथ रखे पीछे खड़ी हो गई।
कुट्टी पास ही सतर्कता से भरे अंदाज में खड़ा था।
इसी तरह नसीमबानो के दोनों आदमी, दो-दो कदमों की दूरी पर सतर्क थे।
"आपने तो हवेरी में कदम रखते ही हंगामा बरपा दिया।" नसीमबानो बोली--- "रात स्वामी ने आपके उस बंगले पर हमला कराया, वो तो अच्छा हुआ कि आप वहां नहीं थे, वरना आज हमारी मुलाकात न होती।"
“आपको इतना भरोसा है उस पर कि वो मेरी जान ले लेगा।" डोगरा मुस्कराया।
"बात भरोसे की नहीं डोगरा साहब। लेकिन स्वामी बहुत दम-खम रखता है। ये मुम्बई नहीं हवेरी है।"
“मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये हवेरी है। मेरे लिए सब जगह एक सी ही हैं।"
"मैं आपकी ताकत कम नहीं आंक रही।"
“आपके आंकने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। स्वामी मेरे सामने कुछ भी नहीं है।" डोगरा मुस्कराकर बोला।
"स्वामी की बहन ने आत्महत्या कर ली।"
“ये सब स्वामी की गलती से हुआ।"
“मुझे क्या।" नसीमबानो, डोगरा की आंखों में झांकती कह उठी--- "उसने आत्महत्या क्यों की और कैसे की हमें अपनी बात करनी चाहिए।"
डोगरा ने कुट्टी की तरफ इशारा करके कहा।
"कुट्टी को लगता है कि आप हमारे साथ नाराज हैं?"
"ऐसा क्या हो गया?"
"बोलो कुट्टी ।"
"इनकी बहन ने हमारी आठ पार्टियां तोड़ ली हैं, जो हमसे ड्रग्स लेती थी।" कुट्टी बोला।
डोगरा की निगाह नसीमबानो पर टिकी थी।
नसीमबानो पहले मुस्कराई फिर कह उठी।
"डोगरा साहब, आप तो ड्रग्स के बादशाह हैं। जितना माल हम आपसे लेते हैं, उतना कोई नहीं लेता। हमारा इलाका बहुत बड़ा है ड्रग्स के धंधे का । इस पूरे कर्नाटक में ही नहीं, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, केरला, तमिलनाडु, को हम ही कवर करते हैं। हमारा पूरा परिवार इस काम में लगा है और ड्रग्स आपसे लेते हैं अब तो मेरी शिकायत है आपसे कि आप ड्रग्स का फुटकर धंधा क्यों करते हैं वो सब हमारे लिए रहने दीजिए और माल हमें देते रहिए। मेरी बहन का कहना है कि वो आपकी सब पार्टियां तोड़ लेगी, जहां भी फुटकर माल आप देते हैं। जानते हैं मेरी बहन ने खुद नुकसान में रहकर आपकी पार्टियों को सस्ते में माल सप्लाई किया। और आगे भी वो ये ही इरादा रखती है। उसका कहना है कि आप पार्टियों को फुटकर माल देना बंद कर दें और सिर्फ हमें ही दें। जितनी ड्रग्स आप देंगे हम लेंगे। अगर आप भी फुटकर माल पार्टियों को देते रहे तो नुकसान हमें ही होगा। बादशाह को बादशाह बनकर रहना चाहिए। थोड़े से लालच के लिए जनता को मुंह नहीं लगाना चाहिए। उसके लिए हम हैं डोगरा साहब।"
डोगरा ने अपना कान खुजाया।
कुट्टी की गंभीर निगाह डोगरा पर थी।
“डोगरा साहब। मुझे तो लगता है मैडम ने सही कहा है। फुटकर धंधा इन्हें ही करने दीजिए।" रीटा कह उठी।
“कुट्टी हमारे पास फुटकर पार्टियां कितनी हैं ?" डोगरा ने पूछा ।
"चार सौ से ऊपर हैं।" कुट्टी ने कहा।
"उनमें से हमारे लिए जरूरी कितनी हैं ?"
"कनाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु और केरला को मिलाकर करीब तीस पार्टियां हमारे लिए जरूरी हैं। उन्हें तो हर हाल में हम ही माल देंगे। वरना हमें काफी बड़ा नुकसान होगा।" कुट्टी ने सोच भरे स्वर में कहा।
"इन खास तीस पार्टियों को अपने लिए रख लो, बाकी सब नसीमबानो के हवाले कर दो।" डोगरा बोला।
"जी।"
डोगरा ने नसीमबानो को देखा।
"थैंक्स डोगरा साहब। आपने तो बहुत जल्द फैसला कर दिया।" नसीमबानो कह उठी।
"कुट्टी आपको मिलेगा और सब पार्टियों के नाम-पते दे देगा। परंतु जो तीस पार्टियां हमारे पास हैं उस तरफ देखना तो क्या सोचना भी नहीं है आपके परिवार ने। ऐसा हुआ भी तो हमें पसंद नहीं आएगा।" डोगरा बोला।
"हमें उन तीस पार्टियों के नाम-पते दे दीजिए, उन्हें माल देना तो दूर अगर उनमें से कोई हमारे पास ड्रग्स लेने आया तो भी हम उसे नहीं देंगे। ये हमारा वादा रहा।” नसीमबानो ने कहा।
"समझे कुट्टी ?" डोगरा बोला।
“समझ गया डोगरा साहब।"
"मैं आपको किसी भी हालात में नाराज नहीं करना चाहता नसीमबानो जी, जब तक आपकी डिमांड हमें सही लगती है।"
“शुक्रिया।” नसीमबानो ने कहा।
"और क्या समस्या है कुट्टी ?" डोगर ने पूछा।
"तीन महीनों से मैडम ने हमसे बहुत कम ड्रग्स ली, जबकि आगे ये ड्रग्स की सप्लाई बराबर कर रहे हैं।" कट्टी ने कहा--- "मुझे पता चला है कि इन्होंने साठी ब्रदर्स से ड्रग्स लेनी शुरू कर दी है। हालांकि पूरबनाथ साठी को महीना भर पहले देवराज चौहान ने मार दिया था।"
डोगरा की निगाह नसीमबानो पर जा टिकी ।
"ये तो गलत बात है नसीमबानो। सालों से तुम हमसे ड्रग्स ले रही हो और अब?"
"साठी हमें सस्ते में ड्रग्स दे रहा है।" नसीमबानो कह उठी।
"उस कीमत पर हम भी ड्रग्स दे सकते हैं। ऐसा कुछ करने से पहले तुम्हें हमसे बात करनी चाहिए थी।" डोगरा ने शिकायत की।
"मेरी बहन को आप पर नाराजगी थी कि आप फुटकर क्यों ड्रग्स देते हैं?"
“अब तो नाराजगी दूर हो जानी चाहिए।"
“हो गई। साठी के भाव में हम आपसे ही ड्रग्स लेंगे।" नसीमबानो ने सिर हिलाया--- "परंतु इस बार कट्टी की भेजी ड्रग्स कम निकली है। हम बुरा धंधा जरूर करते हैं, परंतु बेइमानी नहीं करते।"
"तो इसी कारण तुमने हमारी सौ करोड़ की पेमेंट रोक रखी है ?" डोगरा कह उठा ।
"कुछ भी समझिए।"
"डोगरा साहब।" रीटा, डोगरा का कंधा थपथपाते कह उठी--- "माल का कम निकलना तो बुरी बात है।"
"बहुत ही बुरी बात है।" डोगरा ने गर्दन घुमाकर कुट्टी को देखकर कहा-- "ऐसा क्यों हुआ?"
"मैडम की ये शिकायत मुझ तक पहुंची थी। मैंने अपने सब ठिकानों पर छानबीन की, जहां-जहां से माल निकलता था। परंतु हमारी तरफ से माल पूरा भेजा गया है।" कुट्टी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
"लेकिन हमें माल कम मिला।" नसीमबानो ने कहा।
"माल रास्ते में भी गायब किया जा सकता है।" डोगरा ने कहा।
“माल लाने वाले हमारे सब आदमी भरोसे के हैं और पुराने हैं।" उसने कहा।
"हेरा-फेरी भरोसे का ही आदमी करता है। नए आदमी को हेराफेरी का मौका नहीं मिलता।" डोगरा ने नसीमबानो से कहा--- "ये मामला ऐसा है कि हम आपको कहते रहेंगे, आप हमें। हल नहीं किलेगा। माल तभी गायब होता है, जब किया जाए ये काम आपके या हमारे आदमी, कोई भी कर सकते हैं। बातों से ही इसका हल नहीं निकलेगा ।"
"डोगरा साहब।" रीटा कह उठी-- "मेरे ख्याल में इनका आज तक जितना माल कम निकला है, उसका आधा आपको इन्हें दे देना चाहिए। और भविष्य में कुट्टी साहब की निगरानी में माल भेज जाएगा और मैडम की तरफ से दो खास भरोसेमंद आदमी माल की कुट्टी से लेंगे। इस तरह हेराफेरी जहां भी हो रही है, रुक जाएगी।"
दो पलों के लिए चुप्पी रही। फिर डोगरा ने सिर हिलाकर नसीमबानो से कहा।
"ये रास्ता ठीक है। आपको मंजूर है?"
"हां। ऐसा करना ही मुनासिब होगा।" नसीमबानो कह उठी।
"कोई और बात कट्टी ?" डोगरा कह उठा।
"नहीं ।"
"तो नसीमबानो जी। सौ करोड़ की हमारी पेमेंट जल्द-से-जल्द हो जानी चाहिए। हमें भी लोगों की पेमेंट देनी होती है।"
“शाम की चार बजे वैसे ही पेमेंट मिल जाएगी, जैसे कि हमेशा मिलती रही है। पैसा आपका तैयार रखा है, बल्कि संभालने में हमें ही दिक्कत हो रही है।" नसीमबानो उठते हुए बोली--- “जनाब कुट्टी साहब से जब भी हमारी बहन का सामना होता है तो ये उन पर डोरे डालने की कोशिश में रहते हैं। धंधे में ऐसा नहीं होना चाहिए।"
“अच्छा।” उठते हुए डोगरा मुस्करा पड़ा--- "मुझे नहीं मालूम था कि कुट्टी जवान हो गया है। इसमें नाराजगी की कोई बात नहीं आपने कह दिया कुट्टी ने भी सुन लिया। अब आपको शिकायत नहीं होगी।"
नसीमबानो, दोनों आदमियों के साथ बाहर निकल गई।
डोगरा वापस कुर्सी पर बैठा। रीटा भी बैठती हुई कह उठी।
"अभी तक नाश्ता नहीं किया डोगरा साहब? हो जाए क्या?"
"क्यों नहीं रींटा डार्लिंग।” डोगरा मुस्कराकर बोला--- "कुट्टी अभी नाश्ते का इंतजाम कर देगा।"
“मैं अभी इंतज़ाम करता हूँ।" कहकर कुट्टी जाने को हुआ।
“नसीमबानो की बहन बहुत सुंदर है क्या ?" डोगरा ने एकाएक पूछा।
“ज... जी...जी हां।" कुट्टी ठिठका। सकपकाया कह उठा।
"धंधे में ये बातें नहीं होनी चाहिए। जा नाश्ता लेकर आ ।"
कुट्टी वहां से बाहर निकल गया।
“मेरी रीटा डार्लिंग से सुंदर कोई भी नहीं है। नसीमबानो की बहन भी नहीं।” डोगरा मुस्कराकर रीटा को देखता बोला।
"रहने दीजिए मैं तो कुछ भी नहीं। मेरे से भी ज्यादा सुंदर...।"
"मेरी नज़रों से तुम्हें कोई देखे तो उसे तुमसे ज्यादा सुंदर कोई भी नहीं लग सकता।" डोगरा बोला।
रीटा भी हँस पड़ी।
“आपकी बातें सुनकर तो कोई भी आप पर जान न्यौछावर कर देगी।" रीटा ने कहा--- “इतनी प्यारी बातें आप...।"
तभी डोगरा का फोन बजा ।
"हैलो।" बात की फोन पर डोगरा ने।
"डोगरा साहब। मैं गोवा से गोरा बोल रहा...।" आवाज में बेहद हड़बड़ी थी।
“कहो गोरे तुम।"
“गजब हो गया डोगरा साहब। कैस्टो ने गोवा में काम करने वाले आपके हर आदमी पर हमला कर दिया है। ये काम रात तीन बजे चुपके से उसके आदमियों ने शुरू किया। वो आपके आदमियों को मारते जा रहे और लाशें भी हाथों-हाथ उठाते जा रहे हैं। आपका हर खास आदमी गायब हो चुका है। सब काम पूरी योजना के साथ हो रहा है। पुलिस तो ऐसे सोई पड़ी है, जैसे उन्हें कुछ पता ही ना हो। कैस्टो के आदमी साइलेंसर लगे हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं कि शोर ना उठे। खामोशी से पूरे गोवा में खूनी खेल हो रहा है। आपके ड्रग्स के गोदाम लूट लिए गए हैं। मैंने बहुतों को फोन किया है, पर किसी से भी मेरी बात नहीं हो सकी। डेढ़ घंटा पहले मुझे पता चला कि क्या हो रहा है। मैं उसी पल अंडरग्राउंड हो गया। कैस्टो ने गोवा में आपके खिलाफ जंग छेड़ दी है। वो शाम तक ही आपका धंधा खत्म कर देगा ।"
"ये...ये नहीं हो सकता।" डोगरा के होंठों से निकला।
"ये हो गया है।" गोरे की सूखी आवाज कानों में पड़ी--- "मेरी राय है कि आप गोवा में अभी पैर न रखें। कैस्टो बहुत गुस्से में है। वो आपको भी नहीं छोड़ेगा। मेरे ख्याल में गोवा का धंधा तो आपके हाथों से गया।
डोगर के दांत भिंच गए।
"कैस्टो ने अपनी पूरी ताकत दिखा दी है। इस वक्त तो उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। वो आपके हर आदमी को मारे जा रहा है, जो ड्रग्स के धंधे में शामिल है।" गोरे की आवाज पुनः आई।
डोगरा ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर गुस्सा था।
"क्या हुआ डोगरा साहब?" रीटा कह उठी।
"कैस्टो गोवा में मेरे धंधे का तख्ता पलट रहा है। वो मेरे आदमियों को मार रहा है। ड्रग्स के गोदाम लूट लिए हैं उसने।” कहने के साथ ही डोगरा फोन से नम्बर मिलाने लगा।
"तो कैस्टो समझ चुका था कि वो पैन, उसे खत्म करने के लिए ही आपने उसे दिया था। जिससे माईकल मारा गया।" रीटा सिर हिलाकर होंठ सिकोड़ कह उठी--- "वरना कैस्टो की हिम्मत नहीं थी कि ऐसा करता ।"
डोगरा की फोन पर गोवा के कमिश्नर से बात हो गई।
"कमिश्नर...।" डोगरा बोला--- "कैस्टो ने क्या कर डाला गोवा में? तुमने उसे रोका क्यों नहीं?"
"राँग नंबर...।" उधर से कह कर फोन बंद कर दिया गया।
डोगरा ने गहरी सांस ली और फोन वाला हाथ नीचे हो गया।
"क्या बोला कमिश्नर?" रीटा बोली।
"राँग नम्बर।"
"मतलब कि गोवा आपके हाथ से निकलकर कैस्टो के हाथ में पहुंच गया?" रीटा कह उठी।
ठीक उसी समय होटल के बाहर भी कुछ हो रहा था।
माल्टा होटल के बाहर इधर-उधर तीन कारें खड़ी थीं, जिसमें कि डोगरा को सुरक्षा देने वाली आदमी बैठे हुए थे। वो कारों से बाहर नहीं निकले थे। कुट्टी उन्हें हिदायत देकर गया था कि जब तक उसका फोन ना आए तो तब तक खामख्वाह वे सड़क पर ना टहलें और भीतर बैठे ही वो बाहर का जायजा लेते रहें। सबसे पीछे एक तरफ रमेश टूडे की कार खड़ी थी। कुछ देर तो टूडे कार में ही बैठा रहा। फिर बाहर निकलकर इधर-उधर टहलने लगा और अपनी कार से कुछ दूर चला गया था।
सड़क पर से ट्रैफिक बराबर आ-जा रहा था। सूर्य की तीखी धूप वहां फैली थी।
सड़क के दूसरी तरफ पहले से ही खड़ी कार में देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे थे। वो दस बजे ही वहां पहुंच गए थे और विलास डोगरा के आने का इंतजार करने लगे थे। उन्हें पूरा यकीन नहीं था कि डोगरा वहां आएगा। परंतु दुलेरा की कही बातें अब तक सही थी तो डोगरा के माल्टा होटल ग्यारह बजे आने की बात सही हो सकती थी।
11:40 पर उन्होंने डोगरा को कारों में घिरे आता देखा।
डोगरा की कार होटल में चली गई। बाकी कारें बाहर ही बिखर कर ठहर गईं।
"लगता है कि डोगरा ने हवेरी में किसी के साथ पंगा ले लिया है। जगमोहन बोला--- “तभी वो इतने लोगों को अपने आगे-पीछे रखे घूम रहा है तभी रात उसके बंगले पर हथियारबंद लोगों ने जबरदस्त हमला किया, उसे मारने के लिए।"
"रात की बात मत करो।” खुदे ने गहरी सांस ली--- "तुम लोग बच आए, ये यही बहुत है।"
देवराज चौहान की निगाह हर तरफ फिर रही थी। उन्होंने रमेश टूडे को भी कार से निकलकर टहलने के अंदाज में इधर-उधर बढ़ते देखा।
"इसे देखकर तो मुझे डर लगने लगता है।” खुदे कह उठा।
"तुम...।" जगमोहन ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा--- "इस हत्यारे को मारने क्यों नहीं देते?"
“अभी नहीं...।” देवराज चौहान की कठोर निगाहें टूडे पर थीं--- "इसके मरते ही डोगरा जरूरत से ज्यादा सावधान हो जाएगा। या हो सकता है कि वो कहीं छिप जाए। डोगरा को इस हत्यारे का बहुत सहारा है, ये है भी खतरनाक।"
“ये दो बार हमें मारने की कोशिश कर चुका है। एक बार तुम्हें फिर मुझे। मैं तो किस्मत से, महाजन की वजह से बच...।"
"इस हत्यारे की परवाह मत करो। लेकिन पहले डोगरा...।"
"हर बार ये ही कहते हो।"
"एक बात बार-बार मत कहो।" देवराज चौहान आस-पास देखता कह उठा--- "हमें डोगरा के ठिकाने का पता करना है। अगर हम इनके पीछे जाएंगे तो इनकी निगाहों में आ सकते हैं क्योंकि ये काफी लोग हैं।"
"तो...?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"मैं टूडे की कार की डिग्गी में बैठने जा रहा हूं।” देवराज चौहान बोला--- "आखिरकार हमें पता चल ही जाएगा कि डोगरा कहां पर टिका हुआ है। अभी हम नहीं जानते कि डोगरा ने यहां से कहीं और भी जाना है या नहीं। ज्यादा देर हम कार से इनके पीछे रहेंगे तो इन्हें पीछा होने का पता चल जाएगा। अगर हमें डोगरा का ठिकाना पता चल गया तो रात को हम वहां हमला कर सकते हैं। आसानी से डोगरा तक पहुंच जाएंगे। मतलब कि मेरा डिग्गी में बैठना ही मुनासिब होगा।"
"मैं बैठूं डिग्गी में " जगमोहन बोला।
“एक ही बात है, मुझे वहां बैठने दो। तुम दोनों मेरे फोन का इंतजार करना।" देवराज चौहान ने नज़रें घुमाकर रमेश टूडे को देखा जो अपनी कार के काफी आगे सड़क के किनारे-किनारे चला गया था--- "वो दूर है, ये मौका अच्छा है। जब मैं कार की डिग्गी में बैठ जाऊं तो तुम लोग यहां से चले जाना। मैं नहीं चाहता कि टूडे तुम लोगों को देख ले। मेरे फोन का इंतजार करना और पीछे लगे रहने की गलती मत करना।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलकर दरवाजा बंद करते हुए तेजी से टूडे की कार की तरफ बढ़ गया।
सड़क पर ट्रेफिक आ-जा रहा था।
लोग पैदल चले जा रहे थे।
देवराज चौहान भी उसी भीड़ में शामिल हो गया और मिनट भर में टूडे की कार के पास जा पहुंचा। कार की डिग्गी खोलनी चाही परंतु वो बंद थी। देवराज चौहान ने अपने जूते की एड़ी में चार इंच लंबी लोहे की सींख निकाली जो कि आगे से चपटी थी और उससे आधे मिनट में कार की डिग्गी खोली ली। डिग्गी के भीतर झांका वहां स्टैपनी पड़ी थी। परंतु पर्याप्त जगह थी कि भीतर सिकुड़कर टेड़ा होकर बैठ सकता था। उसने आते-जाते लोगों पर निगाह मारी। थोड़ा इंतजार किया। वो उस तरफ भी देख रहा था जिधर टूडे गया था। उसे इस बात का भी ध्यान था कि टूडे वापस ना लौट आए। तभी आस-पास से निकलते लोगों को चंद पलों के लिए गायब पाया तो फौरन ही डिग्गी में जा बैठा और डिग्गी बंद कर ली।
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विलास डोगरा के चेहरे पर परेशानी दिखाई दे रही थी। रह-रहकर होंठ भिंच जाते थे। गुस्सा चेहरे पर दिखने लगता। टेबल पर खाने का ढेर सारा सामान पड़ा था। वो ज़रा-ज़रा करके कुछ-कुछ खा रहा था। परंतु खाने का मन ही नहीं हो रहा था उसने रीटा पर निगाह मारी, जो कि धड़ाधड़ खाये जा रही थी। कुट्टी चंद कदमों की दूरी पर टहल रहा था। रीटा ने डोगरा को अपनी तरफ देखते पाया तो बोली---
"खाने पर ध्यान दीजिए डोगरा साहब। गोवा की चिंता मत कीजिए। ये ठीक है कि कैस्टो ने बहुत खतरनाक गेम खेली। पर आप भी तो खेल खेलना जानते हैं। हम कैस्टो के पर ही काट डालेंगे। खाने पर ध्यान दीजिए डोगरा साहब ।"
“रीटा डार्लिंग। मैं बहुत परेशान हूं गोवा की हालत पर। खाना भी नहीं खाया जा रहा।"
“आपने तो दिल छोटा कर लिया डोगरा साहब। मुझे देखिए। गोवा की बात सुनकर मुझे इतनी घबराहट हो रही है कि मैं खाए जा रही हूं। पर सोच भी रही हूं कि गोवा के हालातों को कैसे सुधारा जाए। खाये बिना सोचा भी तो नहीं जाता। पुलिस कमिश्नर ने तो आपकी आवाज सुनते ही राँग नम्बर कहकर फोन बंद कर दिया। बहुत मोटा माल चढ़ाया होगा कैस्टो ने पुलिस को, आप ठीक कहते थे कि पुलिस की रजामंदी के बिना कुछ नहीं हो सकता। पुलिस जिसे चाहेगी, वो ही गोवा में ड्रग्स का धंधा कर सकेगा।"
"कुछ समझ में नहीं आता।" डोगरा ने दांत भींचकर कहा।
"कैस्टो ने तो कमाल ही कर दिया। जब तक आप गोवा में रहे, वो चुप रहा। आपके निकलते ही शुरू हो गया।” रीटा ने पुनः खाना शुरू कर दिया--- "मैंने कुछ सोचा है डोगरा साहब।"
“क्या?"
“आपने कुछ नहीं सोचा ?" रीटा ने खाना छोड़कर प्लेट सरका दी और डोगरा को देखा।
"अभी मैं कुछ भी सोचना नहीं चाहता। रात तू मुझे अपने हाथों से पिलाना। उसके बाद सोचूंगा कि...।"
"तो फिर मेरा सोचना सुनिए।"
"बता रीटा डार्लिंग ?"
"आपका अभी गोवा में कदम रखना खतरनाक है। इसलिए आप तो गोवा से दूर ही रहिए।" रीटा ने कहा--- "परंतु अपने खास-खास आदमियों को चुपके से वहां भेजना शुरू कर दीजिए। वो पुलिस के छोटे-बड़े आफिसरों से मिलेंगे। उनके घर भर देंगे। नोटों से भरे ब्रीफकेस उनके पास पहुंचाते रहिए। महंगे तोहफे, जैसे कि हीरे जवाहरात से जड़े गहने, अंगूठियां ऐसा सब कुछ पुलिस को देना शुरू कर दें और कैस्टो के खिलाफ उन्हें पटाइये।"
डोगरा ने होंठ भींचे। सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।
"उस पुलिस कमिश्नर को इतने नोट दे दीजिए कि वो दोबारा कभी आपकी आवाज सुनकर रांग नंबर कहकर फोन ना रख सके। दोबारा कभी कैस्टो जैसा कोई, पुलिस को अपनी तरफ ना कर सके। गोवा के गोदाम में कितनी ड्रग्स थी ?"
“सौ करोड़ के आस-पास। कुछ दिन पहले ही माल पहुंचा था।" डोगरा गुर्रा उठा ।
"कैस्टो ने सौ करोड़ का आपका माल लूटा। उसमें से पंद्रह-बीस करोड़ पुलिस वालों को दे दिया होगा तो उसका क्या गया। आपकी दौलत से आपका ही गला काट दिया। हद हो गई डोगरा साहब ये तो।" रीटा गंभीर स्वर में कह रही थी--- "कैस्टो ने सच में कमाल का काम किया, लेकिन आपको उससे भी बड़ा कमाल करना है। गोवा में धंधे के बारे में मत सोचिए, सिर्फ पुलिस के बारे में सोचिए। नये सिरे से नई शुरुआत कीजिए। पुलिस अपने हाथ में होगी तो कैस्टो बेकार हो जाएगा। इसी बीच टूडे जैसे कुछ लोग गोवा जाएंगे और कैस्टो के साथ-साथ उसके हर खास आदमी को खत्म कर देंगे। वैसे बॉब तो गोवा में, कैस्टो के पीछे लग चुका होगा। मेरे ख्याल में तो सब ठीक किया जा सकता है, चिंता की कोई बात नहीं।"
चेहरे पर कठोरता समेटे, डोगरा कश लेता रहा।
"कहां खो गए डोगरा साहब?"
“तुमने तो सोच लिया, रीटा डार्लिंग।” डोगरा शब्दों को चबाकर कह उठा-- "लेकिन मेरा सोचना अभी बाकी है। मैं अब वापस जाऊंगा। आराम करूंगा। कैस्टो के बारे में सोचूंगा। सोचना ही पड़ेगा। कुट्टी ।" डोगरा ने कुट्टी को पुकारा।
"जी।" कट्टी फौरन पास पहुंचा।
"वापस जाना है मैंने अभी फार्म हाऊस पर। आज के बाकी के सारे प्रोग्राम कैंसिल करके शायद कल मुम्बई वापस ही जाना पड़े। यहां से चलो।"
"आपने तो अपना मूड ऑफ कर लिया डोगरा साहब।" रीटा गहरी सांस लेकर कह उठी।
डोगरा ने जवाब में कुछ नहीं कहा और उठ खड़ा हुआ।
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1:25 बजा था।
विलास डोगरा का छोटा-सा काफिला अब हवेरी से बाहर जाता जा रहा था। फार्म हाउस हवेरी शहर की सीमा पर स्थित था, जहां पर भीड़-भाड़ ना के बराबर थी। आगे एक कार थी उसके पीछे डोगरा की कार थी। उसके पीछे दो कारें और आदमियों से भरी चल रही थी। सबसे पीछे रमेश टूडे कार चलाता आ रहा था। सड़क के दोनों तरफ अब जंगल जैसा इलाका था। सुनसानी थी। पांच-सात मिनट में फार्म हाऊस आने वाला था। टूडे की सतर्क निगाह हर तरफ थीं वो इस बारे में सतर्क था कि कोई, खासतौर से स्वामी के आदमी उनका पीछा ना कर रहे हों। परंतु सब ठीक था। उसे तसल्ली थी कि कोई पीछे नहीं है। टूडे कुछ थकान महसूस कर रहा था। और सोच रहा था कि फार्म हाऊस पर पहुंचकर शाम तक सोएगा, लेकिन पहले खाना खाएगा। जब से डोगरा के साथ मुम्बई से निकला है तब से भागता ही रहा है। ठीक तरह आराम नहीं कर पाया। तभी सड़क के बीचों-बीच गड्डा आया। गड्डे से बचने का वक्त नहीं था। पहले कार का अगला पहिया गड्डे में पड़ा, कार बुरी तरह उछली फिर पिछला पहिया गड्डे में पड़ा तो कार उछली। कार गड्ढे को छोड़कर आगे निकल गई। परंतु टूडे की आंखें सिकुड़ी, उसी पल उसने कार रोक दी। आगे जाती कारों को देखने लगा, जो कि धीरे-धीरे नज़रों से ओझल हो गई। वो कई पलों तक कार की सीट पर बैठा रहा। हाथ स्टेयरिंग पर टिके थे। कार को जब गड्डे ने उछाला तो उसके कानों में मध्यम सी कराह पड़ी थी। कि किसी की कराह उस आवाज को कार के इंजन के शोर में सुन पाना आसान नहीं थी, परंतु टूडे के कानों ने उस कराह को सुन लिया था और समझ गया था कि कार में कोई है। उसे हैरानी हुई कि उसकी कार में कोई है और उसे पता तक नहीं। टूडे के चेहरे पर सर्द भाव जा ठहरे। उसने शांत भाव से कार का दरवाजा खोला और बाहर आ गया।
सड़क के दोनों तरफ जंगल जैसी जगह थी। ये सुनसान इलाका था और कोई आता-जाता नज़र नहीं आ रहा था। टूडे ने जेब में हाथ डालकर रिवॉल्वर निकाली और दो कदम पीछे उठाकर कार के भीतर झांका। पीछे की सीट पर या आगे पीछे की सीटों के बीच कोई नहीं था। अगले ही पल उसकी नज़र डिग्गी पर पड़ी वो आगे बढ़ा और डिग्गी के पास पहुंचा।
कई पल खड़ा डिग्गी को घूरता रहा।
फिर रिवॉल्वर की नाल से डिग्गी को ठकठकाया।
परंतु जवाब में किसी भी प्रकार की कोई आहट उसे नहीं मिली।
टूडे लगभग आधा मिनट बंद डिग्गी को देखता रहा फिर हाथ आगे बढ़ाकर डिग्गी का हैंडिल थामा और तेजी के साथ डिग्गी खोलते हुए रिवॉल्वर वाला हाथ आगे कर दिया। परंतु डिग्गी के भीतर मौजूद देवराज चौहान उसकी आशा से कहीं ज्यादा तेजी से हरकत में आया। टूडे ठीक से कुछ देख भी नहीं पाया था कि डिग्गी में उकडूं बैठा देवराज चौहान उछलकर किसी मेंढक की भांति टूडे से आ टकराया। जो हुआ था, उसकी टूडे को आशा जरा भी नहीं थी।
टूडे के पांव उखड़ गए।
वो पीछे को जा गिरा। देवराज चौहान उसके ऊपर गिरा। टूडे के होंठों से चीख निकली। रिवॉल्वर हाथ से निकालकर दूर फिसलती चली गई। इस वक्त वो पेट के बल कच्ची-पक्की सड़क पर जा पड़ा था। ऊपर मौजूद देवराज चौहान ने खुद को संभाला और फुर्ती से रिवॉल्वर निकाल कर नाल टूडे की गर्दन पर रख दी।
टूडे थम सा गया।
देवराज चौहान के दांत भिंचे हुए थे। माथे से खून की धार बहकर आंख के बालों तक आ रही थी। कार जब गड्डे में उछली थी तो उसका माथा बंद डिग्गी से टकराया था, तभी उसके होठों से तीव्र कराह निकली थी।
टूडे ने सिर घुमाकर उसे देखना चाहा, परंतु देवराज चौहान ने उसका सिर दबा दिया।
चंद पल इसी मौत भरी खामोशी में निकल गए।
"कौन हो तुम?" टूडे के होंठों से निकला ।
“मैं हूं देवराज चौहान।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
"तुम? नहीं, तुम तो गोवा से मुम्बई चले गए थे।" टूडे ने जैसे तड़पकर कहा ।
"तुम्हें दिखाने के लिए।" देवराज चौहान उसी स्वर में बोला--- "जबकि मैं हवेरी आ गया था।"
टूडे उसी प्रकार पड़ा रहा।
"तुमने जगमोहन को मार दिया। ये ही सोचते हो ना? पर वो जिंदा है।" देवराज चौहान ने दरिंदगी से कहा--- "अब तुम मरने जा रहे हो, मैं गोली चलाने जा रहा हूं। गर्दन पर लगी मेरी एक गोली से तुम्हारा काम हो जाएगा। तुमने सोचा था कभी कि इस तरह...।"
उसी पल टूडे ने अपने हाथ नीचे टिका खुद को जोरों से झटका दिया और उसकी पीठ पर मौजूद देवराज चौहान तीव्र झटके से पीछे को होता चला गया। झटका ज़रा जोरदार था कि रिवॉल्वर हाथों से निकल गई। वो एक तरफ लुढ़कता चला गया। परंतु उसी पल खुद को संभालते हुए फुर्ती से उछलकर खड़ा हो गया।
सामने टूडे खड़ा था। खूनी निगाहों से उसे देख रहा था।
दोनों के पास रिवॉल्वर नहीं थी।
देवराज चौहान की आंखों मैं मौत नाच रही थी। दोनों घायल शेरों की तरह एक-दूसरे को देख रहे थे।
कई पल यूं ही बीत गए ।
फिर देवराज चौहान मौत भरे अंदाज में टूडे की तरफ बढ़ा।
टूडे के दांत भिंच गए।
देवराज चौहान जब पास पहुंचा तो टूडे खतरनाक अंदाज में उस पर झपट पड़ा। टूडे का घूंसा देवराज चौहान के चेहरे पर लगा, जबकि देवराज चौहान ने उसके पेट पर घूंसा मारा और उसे पीछे उछाल दिया।
टूडे पीछे की तरफ लड़खड़ाया और संभल गया। देवराज चौहान पुनः टूडे पर झपटा। टूडे फूर्ती से झुका और सिर की ठोकर देवराज चौहान के पेट से मारते, दोनों हाथों ने उसकी टांगों को पकड़कर झटक दिया।
देवराज चौहान बुरी तरह कूल्हों के बल नीचे जा गिरा।
टूडे ने उसी पल उस पर छलांग लगा दी।
टूडे देवराज चौहान के ऊपर जा गिरा। देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली। दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए। टूडे अपने हाथ का पंजा उसकी गर्दन पर टिकाने की फिराक में था कि देवराज चौहान ने अपने ऊपर पड़े टूडे की कमर में जोरों से घूंसा मारा टूडे तड़पा जरूर परंतु अपनी कोशिश में लगा रहा और एकाएक उसका पंजा देवराज चौहान की गर्दन पर जा टिका।
टूडे ने पंजे का दबाव बढ़ा दिया।
देवराज चौहान का दम घुटने लगा। चेहरा लाल होता चला गया। वो तड़पा और बहुत तेजी से अपने ऊपर पड़े टूडे की गर्दन पर पीछे से अपने टांगों की कैंची डाली और झटके के साथ उसे पीछे को लुढ़का दिया।
टूडे धूल भरी सड़क पर लुढ़कता हुआ सड़क किनारे ढलान पर चला गया।
देवराज चौहान उठा और टूडे पर झपटा।
टूडे को उठने का मौका नहीं मिला था कि पास आ चुके देवराज चौहान की टांगों पर अपनी दोनों टांगें मारकर देवराज चौहान को गिरा दिया और नीचे पड़े ही पड़े उस पर झपट पड़ा। वो देवराज चौहान से टकराया। उठने की कोशिश में लगा देवराज चौहान संभल ना सका और पुनः लुढ़क गया। तभी टूडे की बांहें उसकी गर्दन से लिपट गई।
देवराज चौहान तड़पा ।
टूडे की बांह ने देवराज चौहान की गर्दन को भींच लिया। दरिंदा लग रहा था टूडे । चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे। दांत भिंचे थे। वो लगातार बांह से देवराज चौहान की गर्दन पर दबाव बढ़ाता जा रहा था।
देवराज चौहान की सांस रुकने लगी। चेहरा लाल-सा हो गया। आंखें फटती जा रही थी। वो तड़पा कि आजाद हो सके, परंतु टूडे की बांह का दबाव उसकी गर्दन पर हर पल बढ़ता ही जा रहा था। एकाएक देवराज चौहान की आंखों के सामने अंधेरे से भरे काले बादल उभरने लगे। वो जानता कि हर पल मौत की तरफ बढ़ता जा रहा है। नीचे पड़े उसकी टांगें आजाद थीं और उसी पल उसने अपनी दोनों टांगों से टूडे को मारने की असफल चेष्टा की।
टूडे का दबाव और बढ़ गया।
जिंदगी मौत की लकीर को छूने का प्रयत्न कर रही थी। तभी देवराज चौहान के जूते की एक एड़ी टूडे की टांगों के बीच जा लगी। ऐसी लगी कि टूडे गला फाड़कर चीखा और देवराज चौहान की गर्दन से लिपटी बांह फौरन हट गई। उसने दोनों हाथ अपनी टांगों के बीच रखे और लुढ़कता हुआ तीन-चार कलाबाजियां खाता चला गया। चेहरे पर दर्द के भाव आ गए थे।
गर्दन को आजाद होते पाकर देवराज चौहान मुंह खोले लंबी-लंबी सांसें लेने लगा। चेहरा अभी भी लाल सुर्ख था। उसने टूडे को देखा जो अभी भी टांगों के बीच में हाथ रखे उसे पीड़ा भरी निगाहों से देख रहा था। देवराज चौहान ने निगाह घुमाई और उठने लगा था कि थम सा गया। सामने झाड़ियों में उसकी रिवॉल्वर फंसी थी।
टूडे ने देवराज चौहान की नज़रों का पीछा किया और उसने भी रिवॉल्वर को देख लिया।
देवराज चौहान तेजी से उठा और रिवॉल्वर की तरफ लपका। टूडे ने बैठे ही बैठे छलांग लगाई और देवराज चौहान की पिंडली पकड़कर झटका दिया। देवराज चौहान लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा। टूडे फुर्ती से उठकर रिवॉल्वर की तरफ दौड़ा। देवराज चौहान ने दो-तीन कलाबाजियां खाई और टूडे के रास्ते में आ गया। टुडे लड़खड़ाकर नीचे आ गिरा। देवराज चौहान उस पर झपट पड़ा। दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए।
वो ऐसे लड़ने लगे जैसे दो भैंसे लड़ रहे हो। मुंह से खतरनाक आवाजें निकलने लगीं। तभी टुडे ने देवराज चौहान को टांगों पर रखकर उछाल दिया। देवराज चौहान तीन कदम पीछे जाकर गिरा। टूडे फुर्ती से उठकर झाड़ियों की तरफ दौड़ा, जहां रिवॉल्वर पड़ी दिख रही थी। देवराज चौहान उठकर टूडे को रोकने के लिए भागा। तभी टूडे ने रिवॉल्वर पर लंबी छलांग लगा दी और झाड़ियों पर जा गिरा। अगले ही पल उसके हाथ में रिवॉल्वर थी। वो फुर्ती से देवराज चौहान की तरफ घूमा जो कि तीन कदमों की दूरी पर था। टूडे ने उसी पल गोली चला दी।
जल्दबाजी में चलाई गोली देवराज चौहान के कानों को हवा देती निकल गई और देवराज चौहान सीधा टूडे पर आ गिरा। टूडे को झाड़ियां चुभी तो कराह निकली होठों से। देवराज चौहान ने उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई को पकड़ा। उस हाथ को जोरों से जमीन पर मारा परंतु टूडे ने रिवॉल्वर नहीं छोड़ी। देवराज चौहान ने तभी एक उंगली उसकी आंख में दे मारी।
टूडे गला फाड़कर चीख उठा। रिवॉल्वर हाथ से छूट गई। उसकी आंखों से खून निकलने लगा ।
देवराज चौहान ने रिवाल्वर थामी और उठकर खड़ा हो गया।
टूडे दोनों हाथों से अपनी आंख को दबाए कराहने लगा। हाथ खून से रंगते जा रहे थे। उसने दूसरी आंख से देवराज चौहान को देखा जो दांत भींचे पांच कदमों के फासले पर खड़ा उसे देख रहा था। परंतु टूडे की हिम्मत अभी भी कायम थी। वो उठा और देवराज चौहान पर पागलों की तरह झपट पड़ा। देवराज चौहान ने ट्रेगर दबा दिया। फायर का तेज धमाका हुआ और गोली टूडे के पेट में जा लगी। टूडे के शरीर को झटका लगा वो रुक गया। देवराज चौहान ने पुनः फायर किया।
इस बार गोली उसके माथे के ठीक बीचों-बीच जा घुसी थी।
देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन करके बता दिया था कि टूडे उसके हाथों मारा गया और इस वक्त वो उस जगह के आसपास ही है, जहां पर विलास डोगरा मौजूद है। जगमोहन ने वहां आने को कहा, परंतु देवराज चौहान ने ये कहकर मना कर दिया कि अभी जरूरत नहीं। पहले वो आस-पास की जगहों की छानबीन कर ले। उसके बाद देवराज चौहान ने सड़क पर खड़ी रमेश टूडे की कार को सड़क से उतारकर, टूडे के पास ही पेड़ों और झाड़ियों के बीच खड़ा कर दिया फिर अपनी कार लेकर आगे चल पड़ा।
कुछ आगे जाने के बाद उसे फार्म हाउस बने दिखे। चार दीवारियां उठी देखी। देवराज चौहान समझ गया कि डोगरा का ठिकाना इस वक्त इन्हीं फार्म हाउसों में से ही कोई है। परंतु ये पता लगाना आसान नहीं था कि वो किस में है। देवराज चौहान कार पर से फार्म हाउसों की छोटी सी कच्ची सड़क से आगे बढ़ने लगा। साथ ही वो रास्ते में पड़ने वाले फार्म हाउस पर नज़र मारता रहा।
"घंटे भर बाद उसे ऐसा फार्म हाउस दिखा, जिसके लोहे के गेट के भीतर उन सब कारों को कतार में खड़े देखा, जिनके पीछे-पीछे वो इस तरफ आया था। कारों के पास तीन-चार आदमी भी दिखे। देवराज चौहान रुका नहीं, आगे बढ़ता चला गया। डोगरा के इस नए ठिकाने का उसे पता चल गया था।
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रात 9:10 बजे ।
फार्म हाउस का सारा इलाका सन्नाटे से घिरा हुआ था। कहीं पर कोई लाइट नहीं जल रही थी। यहां सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें नहीं थीं। फार्म हाउसों के भीतर अवश्य रोशनियां हो रही थी। वो भी किसी-किसी में। करीब आधे फार्म हाउसों में लाइटें जल रही थी, आधो में नहीं। बीते एक घंटे से कोई कार आते-जाते नहीं देखी गई थी। जिस फार्म हाउस में विलास डोगरा मौजूद था, वहां भी खूब रोशनी थी। ऊपर की मंजिल के दो कमरों में रोशनी हो रही थी और नीचे भी पर्याप्त रोशनी थी। गेट से भीतर नज़र मारने पर रोशनी के अलावा दो-तीन लोगों की झलक मिल जाती थी जो कि पहरा देते वहां तैनात थे। परंतु भीतर से कोई आवाज नहीं उठ रही थी।
देवराज चौहान, जगमोहन, हरीश खुदे बांकेलाल राठौर, नगीना, सरबत सिंह, देवेन साठी और साठी के चार आदमी शाम ढलते ही बाहर मौजद थे। साठी वहां से दो सौ कदम दूरी पर वैन में मौजूद था और उसके पास बांकेलाल राठौर और सरबत सिंह मौजूद थे। कभी-कभाद नगीना भी वहां चक्कर मार जाती था। पास ही एक कार में साठी के चारों आदमी बैठे थे। साठी ने उन्हें कार के भीतर रहने को ही कहा था। मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ कुछ दूर अंधेरे में खड़ी कार में मौजूद थे और हर तरफ नज़र रखे थे। देवराज चौहान, जगमोहन, नगीना और हरीश खुदे अंधेरे में अलग-अलग बिखरे दो घंटों से फार्म पर नज़र रख रहे थे। कोई उस फार्म हाउस में आया गया नहीं था तब से ।
9:30 से कुछ ऊपर का वक्त था कि वो इकट्ठे हुए।
"हम फार्म हाउस पर हमला करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
"अभी?" खुदे के होंठों से निकला ।
"अभी क्या परेशानी है?"
"मेरा मतलब है कुछ रात हो जाए तो तब हमारा भीतर घुसना सही होगा।" खुदे बोला ।
"इस वक्त फार्म हाउस में वो लोग निश्चिंत हैं कि कोई वहां हमला नहीं कर सकता। ये खाना खाने का वक्त है। हो सकता है कि हथियार उन्होंने एक तरफ रखे हुए हों। ये बेहतर वक्त है।" देवराज चौहान ने कहा--- “हम लोग साइलेंसर लगे हथियारों का इस्तेमाल करेंगे ताकि शोर ना हो और हम आसानी से डोगरा तक जा पहुंचेंगे। देखो और मारो की नीति पर हमे चलना होगा। जो भी दिख जाए, उसे खत्म करते जाओ नहीं तो वो हमें शूट कर देंगे। हमें इस तरह काम करना है कि शोर डोगरा तक ना पहुंचे। बहुत तेजी से हमें काम करना होगा ।"
“हम ऐसा ही करेंगे।" जगमोहन गुर्रा उठा ।
"तुम तैयार हो नगीना ?” देवराज चौहान ने पूछा।
“एकदम से।” नगीना के स्वर में कठोरता थी सतर्कता थी।
"बांके और सरबत सिंह को साथ लें क्या?" खुदे बोला।
"नहीं। उन्हें साठी के पास रहने दो।" देवराज चौहान बोला।
“मैं ज़रा उनके पास होकर आती हूं।" कहने के साथ ही नगीना दूर खड़ी वैन के पास जा पहुंची। उसने वैन का दरवाजा खटखटाया। तो भीतर से दरवाजा खोला गया। वैन के भीतर अंधेरा था।
"साठी---।" नगीना बोली ।
"हां।" साठी की आवाज आई।
"हम बंगले में जा रहे हैं। फार्म हाउस के बंगले में। तुम से भागने की कोशिश मत करना।"
"मेरा परिवार तुम लोगों के पास कैद है। मैं क्यों भागूंगा?" साठी ने रूखे स्वर में कहा--- "लेकिन मैंने अब ये भी सोच लिया है कि अब तुम लोगों की बात मानकर इस तरह साथ नहीं रहूंगा। बहुत हो गया। देवराज चौहान ने मेरे भाई को शूट किया है। मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता हूं। इसलिए...।"
"तुम यहीं रहना साठी ।” नगीना बोली--- ''मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है।"
"अंम भी थारे साथ चलत बहणीं।" बांकेलाल राठौर कठोर स्वर में कह उठा।
"तुम दोनों साठी के पास रहो।" कहने के साथ ही नगीना वहां से हटी और दूर खड़े देवराज चौहान के पास जा पहुंची।
"आओ।” देवराज चौहान एक तरफ अंधेरे में बढ़ता कह उठा--- "हमें कार तक जाना है कि वहां से साइलेंसर लेकर, रिवाल्वरों पर लगा सकें।"
गेट से मात्र दस-बारह कदम भीतर, कार के पास, दीवार पर लगी, लाइट के नीचे वो तीन आदमी खड़े बातें कर रहे थे। उनके हाव-भाव में भरपूर लापरवाही थी, जैसे कि उन्हें पूरा यकीन था कि वहां पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता। तभी बे-आवाज सी गोली एक के सिर में जा लगी। वो बातें करता-करता एकाएक अपने साथी पर जा गिरा। उसके साथी ने उसे संभालने की चेष्टा की लगा वो मजाक कर रहा है कुछ। तीसरा अभी तक आराम से खड़ा था कि एक गोली उसके सिर में आ धंसी। वो उसी पल कार से टकराता नीचे जा गिरा। ये देखकर दूसरा वाला चौंका, उसका जो साथी उस पर गिरा था, वो उसके हाथों से निकलकर नीचे जा गिरा था। तभी उसे अपनी कमीज पर गीलापन सा महसूस हुआ तो उसे समझते देर ना लगी कि कुछ गड़बड़ है। कुछ हो रहा है। परंतु तभी एक गोली उसके सिर में आ लगी और वो भी नीचे लुढ़कता चला गया। इस सारे काम में कोई आहट नहीं उठी थी।
गेट पर से जगमोहन ने भीतर हाथ डाला और सावधानी से बे-आवाज गेट का कुंडा खोलने में मिनट-भर लगाया और पल्ले धकेलकर एक-सवा फीट भीतर को किया और उसके पोछे हरीश खुदे, देवराज चौहान, नगीना प्रवेश करते चले आए। हाथों में साइलेंसर लगी रिवॉल्वरें दबी थीं और चेहरों पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।
■■■
डोगरा की आंखें नशे से लाल हो रही थीं। रीटा उसे पिला रही थी और वो पीता जा रहा था। गोवा उसके दिमाग से नहीं निकल रहा था। कैस्टो को वो बार-बार मार देने को कह रहा था। तभी कुट्टी ने भीतर प्रवेश किया और खड़ा हो गया। रीटा ने कुट्टी को देखा तो डोगरा से कह उठी।
"कट्टी आया है डोगरा साहब... ।"
कुर्सी पर बैठे-बैठे डोगरा ने सिर घुमाया और लाल आंखों से कुट्टी को देखा।
"हुक्म डोगरा साहब...।"
"नसीमबानो से नोट आ गये... ?" डोगरा ने पूछा।
"जी हां...शाम को नसीमबानो की बहन हमारे आदमी को नोटों के पैकेट दे गई थी।” कुट्टी बोला--- “फोन पर पता किया है मैंने, हमने जिन लोगों को पैसा देना है, उन्हें दिया जा रहा है। कल तक अस्सी करोड़ बच जाएगा हमारे पास।"
"ठीक है।” डोगरा ने हाथ में पकड़ा गिलास खाली कर दिया। रीटा ने गिलास ले लिया। डोगरा बोला--- "रमेश टूडे किधर है?"
"वो दोपहर में हमारे साथ यहां तक नहीं आया। मेरे आदमियों का कहना है कि उसकी कार पीछे आ रही थी लेकिन अचानक ही दिखनी बंद हो गई। हो सकता है कि उसे कोई काम याद आ गया...।"
"हवेरी में तो उसे कोई काम नहीं है।" डोगरा ने सोच भरे स्वर में कहा।
"आ जाएगा डोगरा साहब... आता ही होगा टूडे ।” रीटा समझाने वाले स्वर में कह उठी।
"मुझे बताए बिना वो गया ही क्यों, उसका फोन नहीं लग रहा।" डोगरा बोला ।
“टूडे की तलाश करवाऊं डोगरा साहब?” कुट्टी बोला।
कुछ पल सोचने के बाद डोगरा ने कहा।
“रहने दो। रीटा डार्लिंग ठीक कहती है। टूडे आ जाएगा। मुझे उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। स्वामी के बारे में बता?"
"उसके आदमी आपको ढूंढते फिर रहे...।"
"तूने स्वामी को साफ करने के लिए...। "
"कह दिया है, काम हो जाएगा...।"
"फिर ठीक है...।” डोगरा अपने कान को मसलता कह उठा--- "सुन कुट्टी, मैं कल वापस जा रहा हूं, सारे प्रोग्राम कैंसिल। गोवा में कुछ गड़बड़ हो गई है। मुम्बई पहुंचकर गोवा का मामला ठीक करना है। कल सुबह मैं निकल जाऊंगा। तू मेरे रीटा डार्लिंग और टूडे के लिए प्लेन में सीटें बुक करा दे। वक्त कम है प्लेन से मुम्बई पहुंचना होगा।"
“मैं अभी बुकिंग करा देता हूं।" कुट्टी ने सिर हिलाया।
"जो पैसा बचेगा, वो गोवा में मेरे होटल पहुंचा देना। अभी काफी पैसा गोवा में लगेगा। उधर जरूरत है।"
"जी... मैं डी-गामा में पैसे पहुंचा दूंगा।" कुट्टी ने कहा।
"जा अब कुछ और याद आया तो दोबारा बुलाऊंगा।"
कुट्टी बाहर निकल गया।
"डोगरा साहब, आप तो गोवा को लेकर बहुत परेशान हो गए हैं।" रीटा ने डोगरा के गले में बांह डालीं।
"परेशान? मैं तो पागल हो जाता रीटा डार्लिंग, ये तो तूने संभाल रखा है नहीं तो...।"
तभी दरवाजे की तरफ से तेज आवाज उभरी और कुट्टी भड़ाक से भीतर आ गिरा।
रीटा चौंककर डोगरा के पास से हटी।
डोगरा ने हैरानी से कुट्टी को देखा।
कुट्टी जल्दी से उठने को हुआ कि 'पिट' की आवाज के साथ गोली उसकी छाती में आ धंसी। डोगरा और रीटा की निगाहें उसी पल दरवाजे की तरफ उठीं।
दरवाजे पर देवराज चौहान रिवॉल्वर थामें खड़ा था। चेहरे पर कठोरता थी।
देवराज चौहान को देखते ही विलास डोगरा और रीटा हक्के-बक्के रह गए। तभी देवराज चौहान के पीछे से जगमोहन रिवॉल्वर थामे कमरे में आ पहुंचा। कुट्टी जो अभी थोड़ा हिल रहा था, जगमोहन ने रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और गोली चला दी। दूसरी गोली से कुट्टी शांत हो गया।
"हैलो डोगरा।” देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला--- "तबीयत कैसी है?"
डोगरा जड़ ।
रीटा धीरे-धीरे डोगरा से पांच-छः कदम दूर खिसक गई।
“रीटा डार्लिंग... ।” डोगरा की आंखें अभी तक फैली हुई थीं--- "हमारे आदमियों ने इन्हें मारा क्यों नहीं ?"
"सब मर गए...।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
"सब मर गए...।" डोगरा जैसे अभी तक झटके खा रहा था--- "ये कैसे हो सकता है, टूडे... टूडे को यहां होना चाहिए वो।"
"वो दोपहर को मर गया था...।" जगमोहन बोला--- "देवराज चौहान ने उसे खत्म कर दिया...।"
“टूडे मर गया, रीटा डार्लिंग ये मैं क्या सुन रहा...?"
“मैं भी यही सुन रही हूं डोगरा साहब... आपको भी मेरी तरह इनकी बातों का भरोसा कर लेना चाहिए।" रीटा कह उठी।
"रीटा डार्लिंग, ये सब क्या हो रहा है? मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा है...।"
"पर मेरी समझ में आ गया है...।"
"क्या...?" डोगरा की नज़र देवराज चौहान और जगमोहन पर थी। वो कुर्सी पर बैठा था।
“अब आपका काम तमाम होने वाला है...।" रीटा ने कहा।
डोगरा की निगाहें रीटा की तरफ घूमी ।
रीटा का चेहरा शांत था।
"तू बोली... मेरा काम तमाम होने वाला है...!"
“मुझे पूरा विश्वास है कि मैंने सही कहा है।" रीटा ने भावहीन स्वर में कहा।
"लेकिन हमने तो सौ साल तक इकट्ठे जीना है रीटा डार्लिंग, मेरा काम कैसे हो सकता है...!"
"इसका जबाव देवराज चौहान और जगमोहन देंगे।" रीटा बोली।
"एक बढ़िया-सा पैग बना...आज का दिन बोत खराब...।"
"तुम अपनी जगह से हिलोगी भी नहीं।" जगमोहन रीटा को देखकर गुर्रा उठा।
"न... न... नहीं हिलूंगी... ।” रीटा बोली।
“मेरे को एक पैग नहीं देगी...?" डोगरा ने रीटा से कहा।
"वो मेरे को गोली मार देगा...।"
"तू मेरे लिए गोली नहीं खा सकती रीटा डार्लिंग...?” डोगरा ने रीटा को घूरा।
"मुझे गोली लग गई तो मैं सौ साल तक कैसे जिऊंगी...?"
तभी देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर दरवाजे के बाहर सतर्क खड़ी नगीना से कहा---
"साठी को बुला...।"
"फोन कर दिया है... बांके और सरबत सिंह उसे लेकर आ रहे हैं।" नगीना ने बिना पीछे देखे उनसे कहा।
"खुदे किधर गया..." देवराज चौहान ने मुंह वापस घुमा लिया।
"बाहर गेट पर गया है।" पीछे से नगीना की आवाज आई।
“सुना डोगरा साहब।” रीटा कह उठी--- "साठी भी आया है।"
"मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।" डोगरा का नशा अब काफी हद तक उतर गया था।
"अभी आप सब कुछ समझ जाएंगे...। देवराज चौहान सब समझा देगा।" रीटा ने कहा।
रिवॉल्वर थामे देवराज चौहान दो कदम भीतर आया और दरिंदगी भरे स्वर में कह उठा।
"डोगरा तेरे को मारना मेरे लिए जरा भी मुश्किल नहीं था, पर तू बचा इसलिए रहा कि तेरी मुलाकात साठी के साथ करानी थी। साठी तेरे मुंह से सुनना चाहता है कि तूने किस प्रकार कठपुतली का इस्तेमाल मुझ पर और जगमोहन पर किया और कैसे हमें ये आदेश दिया कि पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी की जान ले लें। कठपुतली नामक नशे ने हमारे होश पूरी तरह छीन लिए थे। तू सब जानता है जब हमारे दिमाग ने उस नशे की वजह से काम करना बंद किया तो तूने हमारे खाली दिमाग में पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को खत्म करने की बात डाल दी। पूरबनाथ साठी का हत्यारा मैं नहीं तुम हो...।" देवराज चौहान ने रीटा की तरफ देखा--- "तुमने बहुत चालाकी से स्क्वैश में कठपुतली मिलाकर हमें दी...।" ये सब जानने के लिए पढ़े अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'सबसे बड़ा गुण्डा'।"
"मैं तो हुक्म की गुलाम हूं देवराज चौहान जी।" रीटा मुंह लटकाकर कह उठी--- "जो मुझे चिराग में रखेगा, उसी का तो हुक्म मानूंगी, मेरी अपनी पसंद और नापसंद की बात ही क्या है।"
डोगरा ने रीटा को घूरा।
"मैंने क्या गलत कह दिया डोगरा साहब... ?" रीटा बोली ।
डोगरा ने देवराज चौहान को देखा।
"तो तुम मुझसे साठी के सामने कठपुतली वाला सच बुलवाना चाहते हो...?" डोगरा कह उठा।
"तुम बोलोगे...।" देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"मैं बोलूं या ना बोलूं, तुमने मुझे मार ही देना है, फिर क्यों बोलूं, तुम्हें भी तो साठी के हाथों फंसाए रखूं।"
देवराज चौहान कुछ कहने लगा, कि तभी जगमोहन कह उठा।
"हो सकता है सच बोलकर तुम बच जाओ...।"
देवराज चौहान ने होंठ भींच लिए।
“बच जाऊं...!” डोगरा ने जगमोहन को देखा-- "कैसे बचूंगा, तुम लोग मुझे छोड़ दोगे?"
"हाथ-पांव पर गोली मारकर चले जाएंगे।" जगमोहन बोला--- “जान तो बचेगी तुम्हारी।"
"हां कह दीजिए डोगरा साहब...।" रीटा जल्दी से कह उठी--- "जान तो बच रही है।"
"तुम मुझे संभाल लोगी रीटा डार्लिंग...ये मुझे लंगड़ा करने को कह रहे हैं।"
"मैंने क्या संभालना है, डोगरा साहब, लेकिन आपका इंतजाम कर दूंगी, नर्स रखवा दूंगी वो आपको संभालेगी।"
"तू नहीं संभालेगी रीटा डार्लिंग...!"
"मुझे चलते-फिरते लोग अच्छे लगते हैं, टूटी टांग वाले नहीं डोगरा साहब... ।" रीटा बोली।
"बहुत जल्दी रंग बदल रही है रीटा डार्लिंग।"
"आपकी संगत में रहकर ही सब सीखा है, वरना पहले तो मैं बेवकूफ ही हुआ करती थी...।" रीटा ये कहकर जगमोहन से बोली--- "डोगरा साहब को मंजूर है हाथ-पांव पर गोली चलाकर चले जाना...।"
तभी दरवाजे पर आहट गूंजी।
"हम हैं...।" नगीना की आवाज आई।
फिर कमरे में देवेन साठी, मोना चौधरी, महाजन पारसनाथ, सरबत सिंह और बांके ने प्रवेश किया।
डोगरा ने गंभीर निगाहों से साठी और मोना चौधरी को देखा।
“मोना चौधरी भी है डोगरा साहब... ।” रीटा कह उठी।
देवेन साठी ने गहरी निगाहें से डोगरा को देखा।
मोना चौधरी शांत थी।
“बोलो डोगरा... ।” देवराज चौहान गुर्राया--- “पूरबनाथ साठी की मौत का सच क्या है...?"
"अगर मैंने बताया तो मेरी जान बख्श दी जाएगी...!" डोगरा ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान से कहा।
“पक्का... !" जगमोहन ने फौरन कहा--- “मेरी जुबान है, डोगरा जो सच है, वो साठी और मोना चौधरी को कह दे, ताकि साठी के मन से हमारे लिए गलतफहमी दूर हो जाए, उसके बाद तुम आजाद हो...।"
"गोली तो नहीं मारोगे... ?"
"शायद हाथ-पांव में भी ना मारें...।" जगमोहन ने कहा--- "बस हम चाहते हैं कि तुम सच बोलो।"
"कह दीजिए डोगरा साहब ।" रीटा कह उठी--- "मौका अच्छा है, वक्त भी मुनासिब है, शायद जान बच ही जाए...।"
"साठी भी तो मेरे से नाराज हो सकता है...।" डोगरा ने गंभीर निगाहों से साठी को देखा।
किसी के कुछ कहने से पहले ही जगमोहन ने कहा---
"तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा, तुम्हारी जान कोई नहीं लेना चाहता। तुम बस हकीकत सामने रखो।"
कुर्सी पर बैठे डोगरा ने गंभीर निगाहों से मोना चौधरी और साठी को देखा।
कुछ खामोशी-सी आ ठहरी वहां ।
"कहो...।" देवराज चौहान कठोर स्वर में गुर्राया ।
डोगरा ने पहलू बदला और कह उठा।
"मैं मोना चौधरी से नाराज था, मोना चौधरी ने दुबई से बंदा उठा लाने की बात मेरे से की। सब कुछ तय हो गया कि इसने वो काम एकाएक पूरबनाथ के हवाले करके मेरे मुंह पर जैसे थप्पड़ मारा। ऐसा हो जाना मेरे लिए बेइज्जती की बात थी, मुझे ये लगा कि पूरबनाथ ने जान-बूझकर मुझे नीचा दिखाने के लिए, मेरे से ये काम छीना है। तब मैंने फैसला किया कि मोना चौधरी और पूरबनाथ साठी को नहीं छोड़ूंगा, परंतु इन दोनों के मुकाबले पर उतारने के लिए मुझे सख्तजान बंदा चाहिए था। ऐसे में मैंने देवराज चौहान और जगमोहन को इस्तेमाल करने की सोची।”
देवेन साठी ने मोना चौधरी से पूछा---
"डोगरा जो कह रहा है क्या वह सच है...?"
“हां... ऐसा हुआ था।" मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा।
“फिर तुमने क्या किया डोगरा कैसे हमारा इस्तेमाल किया?” जगमोहन ने कहा ।
फिर डोगरा ने सब कुछ बताया। कठपुतली नाम के नशे के बारे में बताया। उसके इस्तेमाल के बारे में बताया। हर वो बात बताई, जो उसने देवराज चौहान और जगमोहन के साथ की थी।
सब सुनते रहे।
सब कुछ बताकर डोगरा खामोश हो गया। फिर रीटा को देखकर बोला---
"रीटा डार्लिंग, मैंने सब कुछ बता दिया ना... कुछ रह तो नहीं गया?"
"डोगरा साहब, आपने तो कमाल कर दिया एक-एक बात इतने बढ़िया ढंग से बताई है कि मैं तो हैरान रह गई कि आपका दिमाग कितना तेज है, किसी भी बात को भूलते नहीं...।" तभी रीटा ने देवेन साठी को रिवॉल्वर निकालते देखा। साठी के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी--- "आप तो गए काम से डोगरा साहब...।"
देवेन साठी ने उसी पल रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और दांत भींचकर ट्रेगर दबा दिया।
"धांय... ।" गोली का जबरदस्त धमाका कमरे में गूंजा और डोगरा की छाती पर लाल रंग का धब्बा-सा उभरने लगा। डोगरा की आंखें फटकर फैल गई। साठी ने एक और फायर किया। एक और धमाका हुआ और दूसरी गोली भी डोगरा की छाती में जा लगी। डोगरा के शरीर को तीव्र झटका लगा। गर्दन नीचे को लटक गई फिर उसका शरीर कुर्सी से फर्श पर लुढ़कता चला गया और एकदम शांत पड़ गया वो ।
साठी चेहरे पर खतरनाक भाव समेटे रिवॉल्वर थामें डोगरा के पास आया और उसकी बांह पकड़कर उसे सीधा किया। डोगरा मर चुका था। आंखें बंद थीं उसकी। साठी के होंठों से गुरार्हट निकली वो नीचे झुका और रिवॉल्वर की नाल उसके सिर से सटाकर फायर कर दिया। पुनः फायर की आवाज गूंजी और डोगरा की खोपड़ी में सुराख दिखने लगा।
साठी सीधा हुआ और रीटा को देखा।
"म... मेरा कोई कसूर नहीं...।" रीटा कांपते स्वर में कह उठी--- "म... मैंने डोगरा को बहुत समझाया था, पर इसने मेरी एक नहीं सुनी फिर मैं तो इसकी गुलाम थी, बांदी थी, नौकरानी थी। मेरी औकात ही क्या है जो ये मेरी सुनता। बहुत घटिया इंसान था ये। मैं तो कब का इसे छोड़कर भाग जाना चाहती थी, परंतु जाती भी कहां, ये मुझे ढूंढकर मेरा बुरा हाल कर देता। आप तो बहुत बढ़िया इंसान हैं साठी साहब, मैं सारी उम्र बिना तनख्वाह के ही आपकी नौकरी करने को तैयार हूँ। हुक्म तो दीजिए, फिर देखिए मैं क्या कमाल दिखाती हूं। आपको इतना खुश कर दूंगी कि...।"
"यहां से दफा हो जाओ।" साठी ने दांत भींचकर कहा--- "फिर कभी भी मुझे दिखी तो तुम्हें मार दूंगा...।"
“मैं जानती थी साठी साहब, आप ये ही कहने वाले हैं ज... .जाती हूं। अपना फोन नंबर दे जाऊं क्या? कभी मेरी जरूरत पड़ी तो मिस्ड कॉल ही कर दीजिएगा, बांदी हाजिर हो...।"
“साली, कुतिया...!” साठी ने गुर्राकर रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया।
रीटा तीर की भांति भीतर से निकलती चली गई।
मोना चौधरी के चेहरे पर शांत भाव थे।
देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में रख ली।
"अब बोल साठी...।" जगमोहन गंभीर स्वर में बोला--- “अभी भी तेरे को कुछ कहना है तो बता।"
"मैंने अपने भाई की मौत का बदला ले लिया, अब मुझे तुमसे या देवराज चौहान से कुछ नहीं कहना।" साठी ने दांत भींचकर कहा---और रिवॉल्वर जेब में रख ली--- "मैं गलती पर था अब सब बातें मैंने समझ ली हैं।"
"तुम हरीश खुदे को भी कुछ नहीं कहोगे।" देवराज चौहान बोला।
"मैं तुम्हारे किसी साथी को कुछ नहीं कहूंगा। ये मामला डोगरा की मौत के साथ पूरी तरह खत्म हो गया...।" साठी ने गंभीर स्वर में कहा--- "तुम जब भी ठीक समझो, मेरे परिवार को और पाटिल को आजाद कर देना।" कहकर साठी बाहर निकलता चला गया।
■■■
रात 12:40 बजे। सरबत सिंह का घर। मुम्बई !
"कर-कर। जरा धीरे तू ऐसे ही पकड़े रह, मैं करता हूं।" हंसा धीमी आवाज में फुसफुसाया।
पाटिल ने अपने बंधे हाथों में खुला चाकू पकड़ रखा था। हंसा उस पर कलाइयों के बंधनों को रगड़कर बंधन काट रहा था। दोनों की पीठें आपस में जुड़ी हुईं थीं। इस कोशिश में चाकू हंसा की कलाई में लग चुका था। और खून निकलने लगा था, परंतु हंसा तो जैसे अपने बंधन हर हाल में काट लेना चाहता था।
जंबाई और प्रेमी सांस रोके बंधनों में जकड़े पड़े ये सब देख रहे थे। बार-बार उनकी निगाहें खुले दरवाजे की ओर जा रही थी कहीं सोहनलाल या रुस्तम राव इधर ना आ जाएं। दूसरे कमरे की रोशनी भी जल रही थी। यदा-कदा सोहनलाल और रुस्तम की बातें करने की आवाज उन्हें सुनने को मिल रही थीं।
और आखिरकार हंसा की कलाइयों के बंधन कट गए।
हंसा तेजी से सीधा हुआ और पाटिल के हाथ से चाकू लेकर पिंडलियों पर बंधी डोरी भी काट ली।
अब वो आजाद था। वो जल्दी से पाटिल की कलाइयों के बंधन काटने लगा।
“पहले मेरे काट।" जंबाई बोला--- “उसे तो बाद में भी खोल देंगे।"
कलाइयों के बंधन काटने के बाद उसकी पिंडलियों के बंधन भी काटे फिर जंबाई और प्रेमी की तरफ आ पहुंचा और उनके बंधन काटने लगा। पहले नंबर प्रेमी को लगा ।
"अबे पहले मेरे काट ।" जंबाई झल्लाकर बोला--- "प्रेमी के तो बाद में भी कट जाएंगे।"
"चुपकर उल्लू के पट्टे ।" प्रेमी ने तीखे स्वर में कहा।
फिर जंबाई के बंधन भी कट गए।
अब वे सारे आजाद थे। अपने हाथ-पांवों को रगड़ने लगे।
चारों की नज़रें मिली। आंखों ही आंखों में बातें हुईं।
“मेरी बात सुनो...।" पाटिल धीमें स्वर में कह उठा--- "दूसरे कमरे में साठी की पत्नी और दो बच्चे हैं, उन्हें ले चलना है साथ में और... ।”
"पांच करोड़ की बात है याद है ना...?" जंबाई बोला--- "जो साठी ने इनाम---।”
"वो तुम्हारा होगा। मैं भूला नहीं हूं... ।”
"तुम इनाम पर अपना दावा नहीं ठोकोगे।" प्रेमी ने कहा ।
"वो इनाम मुझे मिल भी नहीं सकता। आखिर मैं साठी का राइट हैंड हूं... इनाम दूसरे लोगों के लिए होता है।" पाटिल बोला।
"हम जैसे लोगों के लिए...?" हंसा ने दांत दिखाए।
"पांच करोड़ तुमको ही मिलेगा।" पाटिल ने कहा।
“लेकिन उन दोनों का क्या करें, उनके पास रिवॉल्वर भी है।" प्रेमी ने पाटिल को देखा।
“हमारे पास चाकू है।” जंबाई ने फौरन नीचे पड़ा चाकू उठा लिया।
“ऐसे मौके पर चाकू कोई खास काम नहीं करेगा...।" पाटिल ने गंभीर स्वर में कहा--- "हम सबने इकट्ठे होकर उन पर झपट पड़ना है। बहुत आसान है । यहां तुम लोग ऊंची आवाज में बातें करोगे या उन्हें पुकारोगे तो उनमें से कोई यहां आएगा तो हमने उसे पकड़ लेना है। चाकू उसकी गर्दन से लगा देते हैं फिर देखेंगे कि दूसरा क्या करता है। मेरे ख्याल में रिवॉल्वर बड़े वाले के पास है।"
“उसका नाम सोहनलाल है।"
तभी दूसरे कमरे में मोबाइल की बैल बजने लगी ।
"हमें ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा...।” पाटिल उन्हें समझाता हुआ कह उठा--- “हमने अच्छे ढंग से पक्के इरादे के साथ काम करना...।"
"पांच करोड़ का मामला है...।" जंबाई दृढ़ स्वर में बोला--- "ये मौका हाथ से तो जाने नहीं देंगे।"
"सवा-सवा करोड़...।" हंसा ने कहना चाहा।
"सवा-सवा क्यों... ?" प्रेमी ने फौरन कहा--- "सरबत सिंह का इस मामले में कोई मतलब नहीं, वो तो देवराज चौहान के साथ है। मुझे कहता था कि तुम लोगों का बंधे रहना ही ठीक है। आज से वो हमारी दोस्ती से बाहर...।"
"साले को एक रुपया भी नहीं देंगे... ।" जंबाई ने सिर हिलाया ।
"पांच करोड़ हम तीनों में बटेगा।" हंसा ने कहा--- “कभी-कभाद सरबत सिंह को मुर्गा खिला दिया करेंगे और बोतल भी पिला देंगे। साले को सबक तो मिलेगा कि हमारे सामने उड़ने का कितना नुकसान हो गया उसे।"
"रोएगा अपनी किस्मत को ।"
"तुम लोग ये बातें बाद में कर लेना...।" पाटिल ने झल्लाकर कहा--- "काम की तरफ ध्यान दो...।"
उधर से सोहनलाल के फोन पर बातें करने की आवाज आ रही थी।
चारों ने पुनः एक-दूसरे को देखा ।
"हम ऊंची-ऊंची बोलेंगे तो वो जरूर देखने आएंगे कि हम शोर क्यों डाल रहे हैं।" प्रेमी ने कहा--- "जो भी आएगा, उसकी गर्दन पर चाकू लगा देंगे। और आने वाला वो सोहनलाल हुआ तो उसकी जेब से तुरंत रिवॉल्वर निकाल लेनी है...।"
“तैयार...?" हंसा बोला।
“तैयार... ।” जंबाई ने सिर हिलाया।
ठीक इसी पल दरवाजे पर सोहनलाल आ खड़ा हुआ।
चारों इसके लिए तैयार नहीं थे। वो सकपका से गए। उन्हें आजाद पाकर सोहनलाल की आंखें सिकुड़ीं। पलभर के लिए उसे लगा जैसे जंबाई उसकी तरफ लपकने वाला हो, ऐसे में सोहनलाल ने उसी पल रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
"हिलना मत...।" सोहनलाल ने कठोर स्वर में कहा।
उनकी ये हालत थी जैसे रंगे हाथों पकड़े गए हों।
"तो मौजें हो रही हैं...।" सोहनलाल ने कड़वे स्वर में कहते हुए जंबाई के हाथ में थमें चाकू को देखा--- "खिसकने की तैयारी में हो?"
चारों की नज़रें आपस में मिली।
तभी पीछे से रुस्तम राव भी वहां आ पहुंचा।
"क्या होईला बाप...।" उसने कमरे में झांका।
"इन्हें यहां से जाने की बहुत जल्दी है।" सोहनलाल मुस्करा पड़ा।
"तो छोड़ेला बाप...अब अपुन को कष्ट नहीं होईला, इनके बंधनों को खोलने का...।"
"पाटिल...।" सोहनलाल ने कहा--- “अभी देवराज चौहान का फोन आया। वो तुम्हें सबको छोड़ देने को बोला।"
"क्या...?" पाटिल के होंठों से निकला-- "तुम हमको छोड़ रहे हो...।"
“हां... । देवराज चौहान और साठी में मामला खत्म हो गया। तुम लोग आजाद हो और साठी के परिवार को भी ले जा सकते हो।"
"अपुन साठी की पत्नी और बच्चे को बाहर निकाईला।" कहकर रुस्तम राव बाहर चला गया वहां से ।
जंबाई हड़बड़ाकर कह उठा।
"ये... ये कैसे हो सकता है, साठी के परिवार को तो हम आजाद कराने वाले थे...!"
"हम उसे आजाद नहीं कराएंगे तो हमें पांच करोड़ कैसे मिलेंगे...?" हंसा बोला।
“तुम साठी की पत्नी और बच्चे को नहीं छोड़ सकते।" प्रेमी ने कहा--- "उन्हें हम आजाद कराने वाले थे।"
"तुम लोग लेट हो गए।" सोहनलाल ने मुस्कराकर रिवॉल्वर जेब में रख ली--- “अब वो आजाद हैं।"
"पाटिल ।" जंबाई ने जल्दी से कहा--- "हमें पांच करोड़ तो मिलेंगे ना... हमने कितनी मेहनत की है साठी के परिवार को छुड़ाने की खातिर हम यहां हाथ-पांव बंधवा कर पड़े रहे और अब बंधन काटकर आजाद हुए कि साठी के परिवार को छुड़ाया जा सके। तुम तो सब जानते ही हो। अगर ये पंद्रह मिनट देर से आता तो हम यहां से निकल भी चुके होते, उन्हें लेकर... ।”
"पंद्रह मिनट बहुत ज्यादा होते हैं।" पाटिल मुस्कराकर कह उठा--- "हमारे धंधे में तो पंद्रह सैकिण्डों में वक्त बदल जाता है।"
"तुम-तुम अब धोखेबाजी कर रहे हो।" प्रेमी गुस्से से कह उठा ।
“तुम लोगों ने कुछ किया भी तो नहीं।" फिर पाटिल, सोहनलाल से बोला--- "साठी का परिवार मेरे हवाले करो।"
"आओ...।" सोहनलाल ने कहा और पलटकर वहां से चला गया।
पाटिल दरवाजे की तरफ बढ़ा तो जंबाई कह उठा---
"ये तो गलत बात है। पांच करोड़ ना सही, कुछ तो हमें मिलना चाहिए।"
पाटिल ने ठिठककर जंबाई के लटके चेहरे को देखा और सिर हिलाकर जेब में हाथ डालते, उनकी तरफ बढ़ा और जेब से नोट निकालकर तीनों के हाथों में पांच-पांच सौ रुपये का नोट रखा।
"ये क्या...?" हंसा सकपकाया।
"कुछ दे रहा हूं रख लो...।" पाटिल ने मुस्कराकर कहा--- "तुम लोग इसी काबिल हो...।" कहकर पाटिल बाहर निकल गया।
तीनों अपने हाथों में रखे पांच सौ के नोट को देखने लगे।
“ये हमारे साथ क्या हो रहा है... ?" जंबाई रो देने वाले स्वर में कह उठा।
"हमारे पास तो पांच करोड़ आने वाले थे और ये पांच सौ?" हंसा हक्का-बक्का था।
"खाली हाथ तो नहीं रहे। इसी में तसल्ली करो और निकल लो। कहीं ये हमें फिर बांधकर बिठा ले।" प्रेमी ने उखड़े स्वर में कहा।
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दिन के बारह बजे थे।
देवराज चौहान, जगमोहन, नगीना, हरीश खुदे, सरबत सिंह, बांकेलाल राठौर दो कारों में मौजूद हवेरी से मुम्बई के रास्ते जा रहे थे। कारें तेजी से दौड़ रही थीं। देवेन साठी अपने आदमियों के साथ रात को ही मुम्बई के लिए निकल गया था। मोना चौधरी पारसनाथ और महाजन उनसे दो घंटे पहले ही मुम्बई के लिए रवाना हो गए थे। उनकी भाग-दौड़ खत्म हो गई थी। डोगरा खत्म हो चुका था और जैसा कि वो चाहते थे कि विलास डोगरा देवेन साठी के सामने कठपुतली नाम के नशे को लेकर सारी बात कह दे, वैसा हो चुका था। अब सब शांत थे कि इस सिलसिले में कोई काम बाकी नहीं रहा था, परंतु हरीश खुदे की बेचैनी तो काम समाप्त हो जाने पर शुरू हुई थी वो देवराज चौहान से बोला---
“अब तो तुम्हारा सारा काम खत्म हो गया देवराज चौहान...।"
"हां...।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।
"देवेन साठी भी हमारे पीछे से हट गया और डोगरा भी नहीं बचा। सब कुछ अच्छे से हो गया है।" खुदे ने कहा ।
"हां... तुमने हमारा शुरू से ही काफी साथ दिया...।"
“मैंने खुद को खतरे में डालकर तुम्हारा साथ दिया, कभी भी पीछे नहीं हटा... ।"
"ऐसी बातें मैं भूलता नहीं हूं।" देवराज चौहान ने हरीश खुदे को देखा।
"फिर तो तुम्हें ये भी याद होगा कि तुमने वादा किया था कि इस काम से निपटकर तुम डकैती करोगे। उस डकैती में मुझे साथ लोगे और मेरे लिए इतना पैसा इक्ट्ठा कर लोगे कि सारी जिंदगी मजे से कटे मेरी।" खुदे ने बेचैनी से कहा।
"याद है...।"
"डकैती करोगे ना...?”
“हां...। तुम डकैती में मेरे साथ रहोगे, मैं तुम्हें इतना पैसा दूंगा कि पूरी जिंदगी मौज कर सको।"
"क... कब करोगे...।"
"मुम्बई पहुंचकर तैयारी करेंगे। उस जगह का चुनाव करेंगे, जहां से हमें दौलत मिल सके। प्लान बनाएंगे। तुम हर कदम पर मेरे साथ रहोगे। मैंने जो वादा तुमसे किया है वो हर कीमत पर पूरा होगा खुदे... ।” देवराज चौहान ने कहा ।
खुदे की आंखें चमक उठीं।
"थ... थ... थैंक्यू देवराज चौहान ! तुमने तो मेरी जिंदगी बना दी, तुमने तो...।"
"जिंदगी तो तेरी जरूर बनेगी। पहले डकैती हो जाने दे। थैंक्यू बाद में करना।" जगमोहन मुस्कराकर कह उठा।
"मैं... मैं तो कब से बड़ा हाथ मारना चाहता था, परंतु मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या काम करूं। कहां हाथ मारूं, लेकिन अब तुम लोगों के साथ रहकर, मैं पैसे वाला बन जाऊंगा। टुन्नी भी खुश हो जाएगी। सारी जिंदगी मौज से रहेंगे और...।"
तभी खुदे का मोबाइल बजने लगा। उसने बात की। दूसरी तरफ टुन्नी थी।
"टुन्नी मेरी जान...!” हरीश खुदे उसकी आवाज सुनकर ही खुशी से कह उठा--- "तेरी उम्र कितनी लंबी है, तुझे ही याद किया अभी और तेरा फोन आ गया। अब तो तुझे देखे कितनी देर हो गई।"
"तो आ जाओ ना...।" टुन्नी की शिकायत भरी आवाज आई।
"अभी...।"
"अपनी पत्नी के पास आने के लिए भी क्या सोचना पड़ता है, मेरा तो दिल नहीं लगता तुम्हारे बिना...।"
"तो मेरा कहां लगता है। वो तो काम का चक्कर था, इसलिए...।"
"काम खत्म हुआ कि नहीं...?"
"हो गया समझो हाथी निकल गया, पूंछ भर ही निकलनी बाकी है।" खुदे बहुत खुश था।
"क्या मतलब...?"
"देवराज चौहान और जगमोहन के साथ जो काम कर रहा था वो तो निपट गया टुन्नी...।"
"सच। फिर तो तुम आ रहे हो ना...?"
"बस पूंछ का चक्कर है। वो निपटाकर एक बार ऐसा घर आऊंगा कि फिर नहीं जाऊंगा। हर वक्त तेरे पास ही...।"
"पूंछ का क्या चक्कर है?"
"तेरे को बताया तो था टुन्नी।" खुदे ने प्यार से कहा--- "देवराज चौहान अब डकैती करेगा। वो बड़ा डकैती मास्टर है। देवराज चौहान मेरे को डकैती में अपने साथ रखेगा और बाद में मेरे को इतना पैसा देगा कि हम जिंदगी भर ऐश करेंगे...।'
"सच ?"
"तेरी कसम...!"
"लेकिन तुम घर आ जाओ मेरा दिल नहीं लग रहा।" टुन्नी ने उधर से नाराजगी से कहा।
“अब दस-बीस दिन की तो बात है टुन्नी, जहां इतने दिन इंतजार किया है, दस-बीस दिन और सही, फिर तो सारी जिंदगी हमने एक-दूसरे का हाथ पकड़े साथ ही रहना है। अच्छा-सा बंगला खरीदेंगे। कारें होंगी हमारे पास। नौकर होंगे, सब कुछ कितना अच्छा लगेगा जब... ।”
"तुम मुझे झूठे सपने दिखा रहे हो...।" टुन्नी ने उधर से मुंह फुलाकर कहा।
“तेरी कसम टुन्नी... ये सच्चा सपना है, मैं तेरे को...।"
"रात बिल्ला आया था...।" एकाएक उधर से टुन्नी बोली।
हरीश खुदे के हाथ से मोबाइल निकलते-निकलते बचा।
“बि... बिल्ला...।" खुदे के गले में जैसे खराश उभर आई--- "व... वो तो मर चुका है...।"
"पता है, सपने में आया था...।"
“सपने में...!" खुदे एकाएक भड़क उठा--- "तो मरने के बाद उसने तेरे सपनों में आना शुरू कर दिया, साला, हरामजादा...!"
"अपने पास बुला रहा था, पर मैंने मना कर दिया।”
"अच्छा किया, फिर क्या किया उसने?"
"फिर मेरी आंखें खुल गई, मैं उठ बैठी।"
"ये ठीक है, जब भी बिल्ला सपनों में आए तो तू उठ जाया कर। ये बस ज़रा हाथी की पूंछ निकल जाए, उसके बाद मैं घर आकर तेरी झाड़-फूंक करा दूंगा कि बिल्ला तेरे सपनों में ना आ सके... ।”
आगे-पीछे कारें तेजी से मुम्बई की तरफ दौड़ती जा रही थीं। पीछे वाली कार में सरबत सिंह, बांकेलाल राठौर थे। नगीना, देवराज चौहान के साथ आंखें बंद किए बैठी थी। जगमोहन कार ड्राइव कर रहा था और खुदे उसकी बगल वाली सीट पर बैठे टुन्नी से जहान भर की गप्पे हांके जा रहा था। वो नहीं जानता था कि अब होने वाली डकैती में किस्मत उसके सामने कैसा खौफनाक हादसा पेश करने वाली है।
समाप्त
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