वो वहां से बाहर निकल आये ।
बाहर आकर ग्रोवर ने जेब से आलायकत्ल निकाला और उसका मुआयना किया ।
गन में जो क्लिप लगा हुआ था, वो आठ गोलियों की कपैसिटी वाला था और तब उसमें पांच गोलियां बाकी थीं ।
उसने गन वापिस अपनी वर्दी की जेब के हवाले की और बोला - "फोन कहां है ?"
"हॉल में।" - शिल्पा बोली- "सीढ़ियों के करीब ।”
वो वहां पहुंचा तो शिल्पा भी उसके पीछे पीछे वहां चली आयी ।
उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से शिल्पा की तरफ देखा ।
"अतुल" वो फुसफुसाती सी बोली- "अगर तुम्हें मेरा जरा भी लिहाज है तो..."
" लिहाज से पुलिस की नौकरी नहीं चलती ।" शुष्क स्वर में बोला । ग्रोवर
"चलती है ।" - वो जिदभरे स्वर में बोली ।
"मेरे मिजाज के पुलिसिये की नहीं चलती ।"
फिर वो फोन की तरफ वापिस घूम कर थाने का नम्बर डायल करने लगा ।
***
ग्रोवर के एस.एच.ओ. का नाम बलवान सिंह था जो कि अब खुद कोठी में मौजूद था।
बारिश तब तक थम चुकी थी ।
बलवान सिंह एक उम्रदराज, निहायत सख्तमिजाज पुलिसिया था जिसकी निगाह ही ऐसी थी कि आम मुजरिमों की रूह कंपा देती थी लेकिन शिल्पा से वो भी सहानुभूति से पेश आ रहा था।
उसने तमाम माजरा सुना। फिर उसकी मौजूदगी में भी रबड़ के जूतों का और बरसाती का सवाल उठा ।
"दोनों चीजें हॉल के क्लोजेट में हैं।" - शिल्पा सहज भाव से बोली- "मैं ले के आती हूं । "
बलवान सिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।
उसके साथ वहां बालकिशन नाम का एक सब-इन्स्पेक्टर भी पहुंचा था जो कि ग्रोवर का दोस्त था ।
"तुम्हारी सूरत पर बारह क्यों बजे हैं ?" - वो ग्रोवर के कान के पास मुंह ले जाकर बोला ।
"क्या ?" - ग्रोवर अचकचाया सा बोला ।
" यूं लगता है जैसे तुम्हारा कोई सगे वाला मर गया हो
"शटअप ।" - ग्रोवर बोला - "मैं तो जानता तक नहीं मरने वाले को ।”
"फिर तो जरूर मारने वाली की फिक्र में दुबले हो रहे हो !"
" ऐसी कोई बात नहीं ।"
" है भी तो इतनी हसीन कि कोशिश करती तो कोई भी आफर कर देता कि बहन जी आप रहने दो जहमत, मैं ही मकतूल का तियां पांचा एक कर देता हूं।"
"चुप कर, यार ।"
चेहरे पर एक धूर्त मुस्कराहट लिये एस. आई. बालकिशन खामोश हो गया ।
बलवान सिंह उस वक्त टी.वी. कैबिनेट का वो दराज खोले उसके भीतर झांक रहा था जिसमें कि सूद की गन की आलायकत्ल की मौजूदगी बतायी गयी थी । -
"गन आप हमेशा यहां रखते थे ?" - उसने सूद से पूछा
सूद ने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
"लोडिड ! ड्राईगरूम में ! जो कि हर किसी की आवाजाही की जगह है !"
"मेहमान आकर दराजों में हाथ थोड़े ही डालने लगते हैं?"
“डालने लग जायें तो कोई रोक तो नहीं ! खासतौर से जबकि इस दराज में ताला लगाया जाने का तो इन्तजाम तक नहीं है । हथियार को अमूमन ताले में बन्द करके रखा जाता है । नहीं ?"
"गन को" - वो कठिन स्वर में बोला- "यहां रखना मेरी नादानी थी ।"
“गन अन्डर लॉक एण्ड की होती तो जो हुआ, वो न हुआ होता।"
“वो तो न हुआ होता लेकिन जो हुआ होता वो और भी बुरा हुआ होता । मेरी बीवी एक बलात्कारी का शिकार बनी होती ।"
तभी शिल्पा जूतों और बरसाती के साथ वापिस लौटी। उसने उन्हें बलवान सिंह को सौंपा ।
"दोनों चीजें अभी भी गीली हैं।" - बलवान सिंह उनका मुआयना करता बोला- "इनसे लगता है कि मिस्टर सूद इन्हें पहन कर बारिश में बाहर गये थे लेकिन इनसे ये नहीं जाना जा सकता कि वापिस कब लौटे थे ?"
कोई कुछ न बोला ।
"जरा इन्हें पहनिये।"
" जी !" - सूद चौंक कर बोला ।
"जरा ये बरसाती पहनिये और ये जूते भी पहनिये ।”
तीव्र अनिच्छा का भाव चेहरे पर लिये सूद ने आदेश का पालन किया ।
सबने देखा कि बरसाती उसके नाप से इतनी बड़ी थी कि वो नीचे से उसके टखनों तक पहुंची और आस्तीनें उंगलियों के आखिरी पोरों तक पहुंची। जूते भी उसके नाप से साफ बड़े लग रहे थे ।
"मकतूल !" - ग्रोवर दबे स्वर में अपने सीनियर से बोला- "मकतूल इनसे काफी लम्बा चौड़ा था।"
बलवान सिंह ने सहमति में सिर हिलाया और सूद से बोला - "उतार दीजिये ।"
सूद ने दोनों चीजें उतार कर फर्श पर एक ओर डाल दीं
"तो ये बरसाती, ये जूते आपके हैं ?"
सूद के मुंह खोल पाने से पहले ही शिल्पा बोली पड़ी - "इन्होंने ऐसा कब कहा ?"
"नहीं कहा ?" - बलवान सिंह की भवें उठीं ।
"नहीं कहा ।"
बलवान सिंह ने उलझनपूर्ण भाव से ग्रोवर की तरफ देखा ।
"मेरे से था कि...." - ग्रोवर तत्काल बोला- "मेरे से आपने कहा था कि"
"ये नहीं कहा था कि ये चीजें मिस्टर सूद की हैं । " शिल्पा बोली - "ये कहा था कि आज रात इन्होंने इन्हें पहना था।”
"क्या फर्क हुआ ?”
"ये दोनों चीजें हॉल क्लोजेट में एक अरसे से मौजूद थीं । कोई मेहमान इन्हें यहां छोड़ गया था और फिर इन्हें लौटा ले जाना भूल गया था।”
"कौन सा मेहमान ?"
“याद नहीं। यहां इतने मेहमान आते हैं। क्या पता कौन ये चीजें यहां छोड़ गया !"
“आई सी ।"
"आज जब ये बारिश में यहां से बाहर निकलने लगे तो ये ही जूते और बरसाती इनके हाथ में पहले आयी, लिहाजा इन्होंने इन्हीं को पहन लिया।"
कोई कुछ न बोला ।
तभी एक हवलदार ने वहां कदम रखा ।
"साहब जी" - वो अदब से एस.एच.ओ. से बोला - "बाहर सड़क पर यहां से कोई सौ गज परे एक नीले रंग की सान्त्रो लावारिस खड़ी है, नम्बर डी एल 7 सी सी 1252 है ।"
"मकतूल की कार है।" - तत्काल ग्रोवर बोला"उसकी जेब से जो उसका बटुवा बरामद हुआ है, उसमें 'पर्सनल मेमेरेन्डा' - व्यक्तिगत जानकारी - वाले कार्ड पर ये नम्बर दर्ज है ।"
"हूं।" - बलवान सिंह बोला- " यानी कि वो अपनी कार पर यहां पहुंचा था !"
“जाहिर है ।”
"क्या ये हैरानी की बात नहीं कि तेज बरसात में कार पर ऐन इस कोठी तक पहुंचने की जगह उसने उसे कोठी से सौ गज परे खड़ा किया और फिर कार वहां छोड़ कर बारिश में भीगता हुआ यहां आया !"
“कार उसकी यहां आमद की चुगली कर सकती थी इसलिये वो कार को परे छोड़ कर चुपचाप पैदल यहां पहुंचा |"
" लिहाजा वो चोरों की तरह, छुपता छुपाता यहां पहुंचा !"
"ऐसा ही जान पड़ता है । "
"इसका मतलब तो ये हुआ" - झुरझुरी लेती शिल्पा बोली - "कि वो मुझे यहां अकेला पाकर आपे से बाहर नहीं हो गया था, घर से ही मेरे बलात्कार का इरादा बना कर आया था।"
“क्या बड़ी बात है !" - बालकिशन धूर्त भाव से बोला - "जब निशाना जन्नत की परी हो तो.... "
ग्रोवर ने जोर से उसे कोहनी मारी ।
बालकिशन खामोश हो गया लेकिन उसके चेहरे से धूर्तता के भाव न गये ।
तभी पुलिस का डॉक्टर वहां पहुंचा ।
बलवान सिंह की प्रश्नसूचक निगाह उस पर टिकी ।
“तीन गोलियां ।” - वो गम्भीरता से बोला - "एक पेट में, एक छाती में, एक चेहरे पर । सैकंडों में मौत ।"
"गोलियां कितने फासले से चलाई गयीं ?" - ग्रोवर ने पूछा ।
"अभी यकीनी तौर से उस बाबत कुछ कहना मुमकिन नहीं ।”
“अन्दाजन ही कहिये । मसलन क्या पेट पर, छाती पर या चेहरे पर कहीं जले बारूद के निशान थे। कहीं कपड़ों पर या जिस्म पर बारूद के कण छितरे पाये गये थे ?"
"नहीं ।”
"गोलियां करीब से चली होतीं तो ऐसा जरूर हुआ होता । इसका मतलब है कि हर गोली कम से कम डेढ़ फुट के फासले से चली थी । "
"हो सकता है। "
ग्रोवर शिल्पा की तरफ घूमा ।
"आप तो कहती थीं कि हाथापायी, छीना झपटी, जोर जबरदस्ती के आलम में आपके हाथों गोली चली थी ! तब गोली चली थी जबकि आप एक बलात्कारी के शैतानी शिकंजे में जकड़ी तड़प रही थीं !”
वो कुछ क्षण खामोश रही और फिर अटकती सी बोली “वो मेरे लिये मौत की घड़ी थी जिसमें मेरे होशोहवास गुम थे । मैं सकते की हालत में थी । ऐसी हालत में हर बात ठीक से, ऐक्यूरेटली, याद रखना मेरे लिये मुमकीन नहीं था । हो सकता है गोली मैंने तब चलायी हो जबकि उसने मुझे जकड़ा नहीं हुआ था, या तब चलायी हो जबकि मैं कुछ क्षणों के लिये उसकी पकड़ से छूट गयी होऊं ।"
"आपने गोली चलने की बात की थी, गोलियां... गोलियां चलने की बात नहीं की थी ! "
"मैंने महज गन का घोड़ा खींचा था, मुझे नहीं मालूम कि मेरे यूं करने से तब एक गोली चली थी, दो गोलियां चली थीं या तीन गोलियां चली थीं । "
"हो सकता है।" - बलवान सिंह बोला - "ऑटोमेटिक वैपन के साथ ऐसा हो सकता है ।"
ग्रोवर ने सहमति में सिर हिलाया और फिर डॉक्टर से सम्बोधित हुआ - "क्या मकतूल के कपड़े गीले थे ?"
"नहीं।" - डॉक्टर बोला- "सिवाय कोट की आस्तीनों के जिनमें थोड़ी नमी थी ।"
"क्योंकि वो बरसाती पहने था। क्योंकि बरसाती ऐन उसके साइज की थी इसलिये उसकी आस्तीनें उंगलियों तक नहीं पहुंच रही थीं, वहीं तक पहुंच रही थीं जहां तक कि उन्हें पहुंचना चाहिये था । इसी वजह से कोट की आस्तीनें बरसाती की आस्तीनों से थोड़ी बाहर थीं और भीग गयी थीं !"
"हो सकता है।"
"है । मकतूल यहां बरसाती और गम बूट्स पहन के आया था । इसीलिये वो तीखी बरसात में कार को कोठी से दूर खड़ी करके पैदल यहां तक आ सकता था और फिर भी भीगने से बच सकता था । इसी बिना पर मेरा दावा है कि ये जूते, ये बरसाती” - उसने फर्श की तरफ इशारा किया - "दोनों चीजें मकतूल की मिल्कियत हैं जिन्हें पहन कर कि वो यहां पहुंचा था ।”
"मैंने उसका कत्ल किया है।" - शिल्पा एकाएक विक्षिप्तों की तरह चिल्लाई - "जब मैं अपना गुनाह कुबूल कर चुकी हूं तो इन बातों की क्या जरूरत है ? क्या एक मुजरिम का इकबालिया बयान आपके लिये काफी नहीं ?"
"नहीं" - ग्रोवर संजीदगी से बोला- "काफी नहीं । इकबालिया बयान को भी सबूत की जरूरत होती है, कोरोबोरेटिंग ईवीडेंस की जरूरत होती है । "
"दिस इज शियर नानसेंस | "
"दैन लैट मी स्टेट दी फैक्ट । मुझे हकीकत बयान करने दीजिये।"
"ह... हकीकत ?"
"जो ये है कि आपने मकतूल पवन गुप्ता का कत्ल नहीं किया...."
"बराबर किया ।"
" ... और इस हकीकत से आपके हसबैंड भी वाकिफ हैं"
"मेरे से ज्यादा हकीकत से न कोई वाकिफ है और न हो सकता है।" - वो चिल्लाई - " और हकीकत यही है कि मैं कातिल हूं, मैंने कत्ल किया है । "
“आपके ऐसा कहने के पीछे कोई वजह है ।"
"कोई वजह नहीं । और तुम्हारा दिमाग खराब है। सर" - वो बलवान सिंह की तरफ घूमी - "कैन यू मेक दिस मैन शटअप |"
"हम इसके इकबालिया बयान को नजरअन्दाज नहीं कर सकते।" - बलवान सिंह धीरे से बोला ।
"वो तो ठीक है" - ग्रोवर आवेश से बोला - "लेकिन....
“अगर ये अपने बयान से मुकर न जाये तो फिलहाल इसका इतना कहना गिरफ्तारी के लिये काफी है, आगे की आगे देखेंगे।"
" जैसा आप ठीक समझें । "
"मैडम, यू आर अन्डर अरैस्ट ।”
"थैंक्यू ।"
"एण्ड यू टू।" - बलवान सिंह सूद से बोला ।
"मैं !" - सूद भौचक्का सा बोला- "मैं किसलिये ?"
"मुजरिम का मददगार होने के लिये ।”
"मैंने ! मैंने क्या मदद की ?"
"करने की तैयारी कर रहे थे । आप मौकायवारदात से लाश गायब करने वाले थे। कर भी चुके होते अगरचे कि हमारा इन्स्पेक्टर वक्त रहते यहां न पहुंच गया होता ।"
सूद गैस निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया ।
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