तब तेरहवें दिन की रात के बारह बजे थे।
रात को गुजरने वाले ट्रैफिक का शोर रोज की ही तरह बराबर सुनाई दे रहा था। यह वैसी ही रात थी, जैसी कि अन्य रोज की रातें होती थीं।
परंतु मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ के लिए यह खतरों से भरी रात थी।
तीनों बंगले से कुछ दूर बंगले पर नजरें लगाए, अंधेरे में खड़े थे। मोना चौधरी के गले में छोटा सा बैग लटक रहा था। जिसमें दो फोल्डिंग गन थीं। पैंट की जेब में साइलेंसर लगी रेवॉल्वर । महाजन और पारसनाथ के पास भी साइलेंसर लगी रिवॉल्वरें थीं और सिर पर न दिखने वाला, कफन बांध रखा था।
करीब आधे मिनट से उनके बीच खामोशी थी।
“मैं बता चुकी हूं कि तुम दोनों ने कब और कैसे हरकत में आना ।" मोना चौधरी धीमे स्वर में बोली-"मेरे जाने के आधे घंटे बाद तुम दोनों ने हरकत में आना है। सबसे बड़ा खतरा बंगले की छत पर है, जहां लाइट मशीनगनों के साथ दो व्यक्ति मौजूद हैं। वे ऊपर से नीचे का निशाना आसानी से, फौरन ले सकते हैं। सबसे पहले मैं छत पर पहुंचकर उन्हें संभालूंगी। इस काम में आधा घंटा लग जाएगा। पाली कहां है?"
"उधर—।" महाजन ने अंधेरे में एक तरफ देखा।
"उसे लेकर आओ। वो मेरे साथ जाएगा। हम ऊपर से नीचे आएंगे और तुम दोनों नीचे से ऊपर आओगे। हमला इस तरह होना • चाहिए कि वो समझ न पाएं कि क्या हो रहा है। " मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
महाजन उस तरफ बढ़ गया। जहां अंधेरे में पाली खड़ा था।
मोना चौधरी ने गले में लटकते बैग को उतारा और उसमें से एक. फोल्डिंग गन के 'पीस' निकालकर एक तरफ रखे और बैग बंद करके गले में डालते हुए बोली।
"पारसनाथ गन को जोड़ लो। इसे तुम या महाजन कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। "
पारसनाथ अंधेरे में नीचे बैठकर गन के टुकड़ों को जोड़ने लगा। "तुम्हारा क्या ख्याल है, मोना चौधरी सारा काम कितनी देर में खत्म हो जाएगा। " पारसनाथ ने पूछा।
"ज्यादा से ज्यादा एक घंटा। "मोना चौधरी भींचे स्वर में बोली।
"फायरिंग का शोर सुनकर, पुलिस आ सकती है। "
"मेरे ख्याल में ऐसा नहीं होगा।" मोना चौधरी ने कहा- "यह शंकर भाई का बंगला है। आने से पहले पुलिस दस बार सोचेगी और तब पहुंचेगी, जब फयरिंग रुके दो घंटे हो चुके होंगे। मेरे ख्याल में पुलिस वाले पहले शंकर भाई से बात करेंगे कि वो आये या नहीं?" "शंकर भाई बंगले में होगा?" पारसनाथ ने पूछा।
“हो भी सकता है और नहीं भी। इस बारे में कोई खबर नहीं मिल पाई।"
महाजन, पाली को लेकर वहां आ पहुंचा।
पली पचास बरस का, पांच फीट का स्वस्थ इंसान था। गठा हुआ जिस्म । हाव-भाव में चुस्ती और फुर्तीलापन स्पष्ट नजर आ रहा था। "तुम मेरे साथ आओ। " कहकर मोना चौधरी अंधेरे में एक तरफ बढ़ी।
पाली, उसके साथ हो गया।
"मोना चौधरी वो तिजोरी कहां है, जिसे—।"
"वहीं चल रहे हैं। "
“वो तो मैं समझता हूं लेकिन कुछ पता तो चले कि इस काम का मुझे कितना पैसा मिलेगा ?" पाली बोला। । "
"तुम्हारी सोच से ज्यादा मिलेगा“
"मतलब कि ये मुफ्त वाला काम तो नहीं है। कहीं बाद में तुम लात मारकर-।"
"मैं मेहनत का पैसा देती हूं। लात नहीं मारती ।" पाली सिर हिलाकर रह गया। उसके गले में औजारों वाला बैग लटका था। शंकर भाई के साथ वाले बंगले की दीवार के पास पहुंचकर मोना चौधरी ठिठकी। अंधेरे में आसपास देखा।
"पाली। "मोना चौधरी का स्वर धीमा था।
"हां। "
"वो, साथ वाले बंगले की छत पर हमें पहुंचना है।"
पाली ने शंकर भाई के बंगले की छत पर नजर मारी।
"मुझे ऐसा लगता है, जैसे छत पर कोई है। "पाली की आवाज भी धीमी थी।
"मालूम है मुझे। वहां दो व्यक्ति हैं। उन्हें मैं देख लूंगी।"
कहते हुए मोना चौधरी के होंठ भिंच गए "वो बंगला जगह के बीच बना हुआ है। आसपास जगह खाली है। हर तरफ पहरा है। ऐसे में पहले हम इस बंगले में प्रवेश करेंगे। दोनों बंगलों के बीच की दीवार मिली हुई हैं। हम उस दीवार से उस बंगले की साइड में भीतर प्रवेश करेंगे। वहां गनमैन है, उनकी निगाहों से बचना है। बहुत हल्की रोशनी वहां है। ऐसे में संभल कर चला जाए, तो उनसे बचा जा सकता है।"
" कैसे?" पाली ने पूछा।
"लेकिन बंगले की छत पर जाएंगे "रेन वॉटर पाइप को पकड़कर ऐसे चढ़ सकते हो ऊपर?"
“क्यों नहीं, यह तो मेरा बाएं हाथ का खेल है। " पाली ने जवाब दिया——“बंगला है किसका?"
"यह जानने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं। "
"और वो तिजोरी कहां है, जिसे मैंने खोलना है।"
"बंगले की पहली मंजिल पर। " मोना चौधरी की निगाह अंधेरे में फिर रही थी—“हम छत से वहां तक पहुंचेंगे और वे दोनों नीचे से गनमैनों को साफ करते हुए, वहां तक आएंगे।"
'खून-खराबा होगा।"
"हां"
"ये तो गलत बात है। बाद में मामला बढ़ा तो, मेरा नाम भी बीच में घसीटा जाएगा। "- पाली ने कहा।
"इस बारे में निश्चिंत रहो। तुम्हारा नाम कहीं नहीं आएगा।"
"लेकिन—। "इसकी भी तुम्हें कीमत मिलेगी। क्योंकि तुम हमारे साथ खतरे में चल रहे हो। "
“कितनी?”
"भरोसा रखो। जो मिलेगा। वो तुम्हें कम नहीं लगेगा। रिवॉल्वर पास में?"
"वो तो मैं हमेशा रखता हूं, जब काम पर होता हूं। "उस पर साइलेंसर तो नहीं लगा होगा?"
"नहीं।"
"तो अपनी रिवॉल्वर का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर तब ही करना, जब फायरिंग का शोर होने लगे। जब तक खामोशी से काम चल रहा हो अपनी रिवॉल्वर को बीच में मत लाना। "
"समझा।" "
"आओ।
बंगले की सात फीट ऊंची दीवार पहले मोना चौधरी ने फलांगी फिर पाली ने। इस बंगले में हर तरफ शांति थी। दोनों दीवार के साथ-साथ दबे पांव आगे बढ़े। आधी दीवार जितना रास्ता तय करके मोना चौधरी ठिठकी और पाली को रुकने का इशारा किया।
पाली रुका।
"इस वक्त हम बगल वाले बंगले के सेंटर में हैं। " मोना चौधरी दोनों बंगलों की जुड़ी दीवार की ऊंचाई देखते हुए बोली- "ये दीवार आठ फीट ऊंची है। इसे पार करके उस बंगले के हिस्से में पहुंचना है।"
"पार हो जाएगी।" पाली दीवार की ऊंचाई पर निगाह मारते हुए कह उठा।
“पहले मैं जाऊंगी। मेरे जाने के पांच मिनट बाद तुम उस तरफ आओगे।" मोना चौधरी बोली- "पांच मिनट बाद क्यों ?"
“उस तरफ कोई खतरा हुआ तो पांच मिनट के दौरान उसे मैं निपटा लूंगी। मैं नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ हो। क्योंकि यह सब उस तिजोरी तक पहुंचने के लिए किया जा रहा है और तिजोरी को तुमने खोलना है। तुम्हारे बिना हम तिजोरी तक पहुंच भी गए तो सब बेकार रहेगा। क्योंकि उसे हम नहीं खोल सकते। " पार्ली ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।
"हाथ दूं, ऊपर चढ़ने के लिए। "- पाली बोला।
"जरूरत नहीं। तुम जब उधर वाले बंगले में पहुंचो तो आहट मत पैदा होने देना।"
कहने के साथ ही मोना चौधरी ने खड़े ही खड़े उछाल भरी और दीवार की मुंडेर थाम ली। उसके बाद उसने खुद को जरा-सा ऊंचा किया तो शंकर भाई के बंगले का बाहरी नजारा उसके सामने था।
यहां बेहद मध्यम सी रोशनी फैली नजर आ रही थी। एक ही बार में देखने पर तो वहां अंधेरा ही नजर आता था। बराबर देखते रहने पर, मध्यम सा नजारा देखने लायक रोशनी का एहसास होता था।
मोना चौधरी वहां की हर चीज को स्पष्ट देख रही थी।
हर तरफ उसे लॉन की मखमली घास ही नजर आई। बंगले के साथ-साथ ढाई फीट का पक्का रास्ता था, वहां से गुजरने के लिए और उसी रास्ते पर उसे एक गनमैन गुजरता नजर आया।
मोना चौधरी ने अपनी गर्दन नीचे कर ली। उसे देखती रही।
हाथ में गन पकड़े गनमैन उसी पक्के रास्ते से धीरे-धीरे गुजरता. चला गया। इस दौरान उसकी सतर्क निगाह हर तरफ घास पर जा रही थी। वो नजरों से ओझल हो गया।
मोना चौधरी वैसे ही दीवार थामें लटकी रही। निगाहें रेन वाटर पाइप पर जा टिकी थी जो ठीक सामने थी और छत तक जा रही थी। कठिनता से मिनट भर बीता होगा कि एक और गनमैन पक्के रास्ते पर से आता नजर आया। उसने गन को कंधे पर लटका रखा था। चाल में लापरवाही थी, परंतु निगाहें आसपास अवश्य घूम रही थीं।
वो गनमैन भी वहां से निकलता चला गया।
मोना चौधरी वैसे ही रही।
फिर एक मिनट बाद पुनः गनमैन नजर आया जो तीसरा था और गन को हाथ में पकड़ा हुआ था। इसका मतलब कम से कम तीन गन मैन हर वक्त बंगले के गिर्द चक्कर लगाते रहते हैं। बाकी के तीन अपनी-अपनी जगहों पर स्थाई रूप से टिके खड़े होंगे।
एक के बाद एक गनमैन गुजरने के बीच एक मिनट का वक्त होता या।
मोना चौधरी आहिस्ता से वापस नीचे आ गई।
"क्या हुआ?“
"भीतर हो रही पहरेदारी का सिस्टम समझ लो।" मोना चौधरी धीमे स्वर में कह उठी- "बंगले के गिर्द कम से कम तीन गनमैन बराबर राउंड ले रहे हैं। एक के पीछे एक, यानी की एक गनमैन निकल जाता है तो बीच में एक मिनट का खाली वक्त होता है, मिनट पूरा होते ही दूसरा आ जाता है। समझे?"
"समझा।" “यानी कि हमारे पास एक मिनट होगा। इस एक मिनट में हमने दीवार फलांग कर बीच की खाली जगह तय करके रेन वॉटर पाइप पर चढ़कर, बंगले की छत की मुंडेर तक पहुंचना है।"
“समझा। पूरी तरह समझा।"
"याद रखना पाली जरा सी चूक होते ही खेल खत्म हो जाएगा। एक मिनट का एक-एक पल कीमती होगा। जो पल खराब किया। वो ही मौत की वजह बन जाएगा।" मोना चौधरी ने उसे सावधान किया।
"चिंता मत करो मोना चौधरी " पाली की आवाज में
विश्वास था— "एक मिनट बहुत होता है। इतने वक्त में तो बहुत कुछ हो जाता है। यह तो मामूली सा काम है। "
मोना चौधरी अंधेरे में पाली का चेहरा देखती रही। फिर बोली।
"मैं जब दीवार फलांग कर उस तरफ निकल जाऊं तो तुमने, इस दीवार की मुंडेर थामकर उधर का नजारा देखते रहना है। ताकि तुम्हें पता रहे कि, तुमने कैसे हरकत में आना है। "
"ठीक है।"
मोना चौधरी पलटी। खड़े ही खड़े टांगों को झटका दिया तो उसका शरीर ऊपर को उठा और उसने दीवार को थामकर जरा-सा सिर ऊपर करके भीतर झांका।
ठीक सामने से एक गनमैन गुजर रहा था।
मोना चौधरी उसे देखती रही।
वो गनमैन निकल गया।
मोना चौधरी बिजली की सी रफ्तार से उछली। पल भर के लिए उसका शरीर दीवार पर चढ़कर रुका। फिर बे-आवाज नीचे गिरता चला गया। वो फौरन संभली खड़ी हुई और तेजी से रास्ता पार करती हुई, सामने बंगले की दीवार पर, ऊपर की तरफ जा रहे रेन वॉटर पाइप की तरफ दौड़ी।
अभी आधा रास्ता ही तय किया होगा कि उसका पांव जोरों से किसी चीज से टकराया और वो लुढ़कती हुई नीचे जा गिरी। खुद संभालते हुए, मोना चौधरी जल्दी से उठी। जिस चीज से उसे ठोकर लगी थी, वो घास को पानी देने वाली पाइप का वाल्व था। अंधेरा और घास होने की वजह से वो नजर न आ सका था। एक मिनट में से दस सैकिंड गिरने और उठने में खराब हो गए थे।
दौड़ते हुए मोना चौधरी रेन वॉटर पाइप तक पहुंची और उसे पकड़कर उछली फिर बंदरों की तरह कुलांचे मारती हुई, पाइप पर चढ़ने लगी। इस दौरान निगाहें नीचे भी जा रही थीं। मोना चौधरी छत तक न पहुंच सकी। जरा सा फासला रह गया था कि राउंड वाला गनमैन नजर आया।
मोना चौधरी ने खुद को पाइप से चिपका लिया। इस वक्त उसका जरा सा हिलना भी उसे भारी खतरे में डाल सकता था। नीचे से गनमैन उसे गोलियों से भून सकता था और वह बचाव में कुछ भी नहीं कर सकती थी। क्योंकि वो पाइप के साथ ऊंचाई पर चढ़ी फंसी हुई थी।
लेकिन कोई ख़तरा पैदा न हुआ। गनमैन ने इधर-उधर तो नजर मारी। परंतु ऊपर नहीं। वो सोच भी नहीं सकता था कि इस सख्त पहरे के बीच कोई पाइप पर चढ़ा भी हो सकता है
गनमैन निकल गया।
मोना चौधरी ने गर्दन घुमाकर, उधर दीवार पर निगाह मारी। वहां पाली के सिर का साया सा नजर आया। वो अभी दीवार नहीं फलांग रहा था। शायद उसे इंतजार था कि पहले वो छत पर पहुंच जाए। उसके बाद ही, वो इधर आने की कोशिश करेगा।
मोना चौधरी ऊपर चढ़ी।
कुछ ही सैकिंडों में वो छत की दीवार की मुंडेर कूद चुकी थी। दूसरे हाथ से उसने कपड़ों में फंसा रखी साइलेंसर लगी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली। उसकी बिल्ली की सी तेज निगाहें अंधेरे से भरी छत पर फिर रही थीं।
एक साया नजर आया।
उसकी निगाहें दूसरे साये को ढूंढ़ने लगी। जब तक दूसरा निगाह में नहीं आता, तब तक एक को शूट करना खतरनाक था। दूसरा मुसीबत बनकर खड़ा हो सकता था।
तभी दूसरा भी नजर आया। वो दूर छत के कोने में था। शायद उधर झांक रहा होगा। अब वो पलटा और अपने साथी की तरफ आने लगा था। चंद्रमा की रोशनी में उनके हाथों में पकड़ी गन स्पष्ट नजर आ रही थीं। उसके जूतों की आवाज छत पर गूंज रही थी।
मोना चौधरी ने दांत भींचकर साइलेंसर लगी रिवॉल्वर वाली कोहनी दीवार पर रखी, हाथ सीधा किया और उन्हें निशाने पर लेने लगी।
मोना चौधरी के दांत भींचे हुए थे और आंखों में वहशी चमक नाच रही थी। वो दोनों करीब आए। दूर थे, परंतु रिवॉल्वर की रेंज में थे।
निशाने पर आते ही मोना चौधरी ने एक के बाद एक, दो चार ट्रेगर दबाया। रिवॉल्वर की नाल से जैसे बिजली निकली हो। कुछ ऐसा ही लगा।
दोनों गनमैन गिरते नजर आए।
मोना चौधरी उछली छत पर आई और रिवॉल्वर सख्ती से थामे उनकी तरफ दौड़ी। अभी चंद कदम दूर ही थी कि उसने एक गनमैन को पास पड़ी गन उठाते महसूस किया।
मोना चौधरी ने पुनः उसका निशाना लिया।
गोली उसकी छाती में लगी। वो जोरों से तड़पा और शांत पड़ गया।
पास पहुंच कर मोना चौधरी ने उसे देखा। उसकी पहली गोली उसकी बांह पर लगी थी। स्पष्ट था कि अगर वह सतर्क न होती तो अब तक ये गनमैन उसे शूट कर चुका होता। दूसरे गनमैन को चैक किया। गोली ठीक उसके दिल वाले हिस्से में लगी थी।
तभी छत पर आहट हुई।
मोना चौधरी रिवॉल्वर सहित फुर्ती से घूमी। आने वाला पाली था। वो पास आया।
"सब ठीक है?"
“हां। " मोना चौधरी ने भींचे स्वर में कहा।
"कितनो को मारा?" पाली ने अंधेरे में पड़ी लाशों पर नजरे दौड़ाते पूछा ।
मोना चौधरी खामोश रही।
"दो।"- पाली बड़बड़ाया था "अब क्या करना है?" पाली ने उसे देखा।
"महाजन और पारसनाथ के हरकत में आने का इंतजार।" मोना चौधरी ने पूर्ववतः स्वर में कहा- "उनकी हरकत के साथ ही हम नीचे जाने वाली सीढ़ियों से नीचे चलेंगे।"
“लेकिन ये कैसे मालूम होगा कि वो हरकत में आ गए हैं?' पाली ने पूछा।
तभी बंगले में फायरिंग की आवाजें और चीखों पुकार गूंज उठी।
"मालूम हो गया। " पाली के होंठों से निकला।
"आओ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी सीढ़ियों की तरफ बढ़ी।
पाली ने रिवॉल्वर निकाली और मोना चौधरी के पीछे हो गया।
***
"छोरे। " अंधेरे में खड़े रुस्तम राव पर, बांकेलाल राठौर ने निगाह मारी- "मोना चौधरी तो एको के साथ दार्थों तरफ से भी चल्लो गयो ईब, यो दोनों बंगलों की तरफ बढ़ो हो। एको के हाथों में गन हौवे और दूसरो रिवॉल्वर पकड़ो हो।
"हां बाप। दोनों बंगले में हमला बोलने जाएला है। " रुस्तम राव ने कहा। मोना
"तन्ने दोनों को पहचानो? अंम तो देखते ही पहचानो। चौधरी के खासो बंदो होचो दोनों।
"पहचाना बाप एक का नाम नीलू महाजन होएला। दूसरे का पारसनाथ | "
और फिर उनके देखते ही देखते पारसनाथ और महाजन ने अलग-अलग तरफ से बंगले की दीवारें फलांगी और दूसरे ही पल कानों को फाड़ देने वाला फायरिंग का शोर गूंज उठा।
"यो तो काम शुरू हो गयो।" बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी पर पहुंच गया।
मूंछ रुस्तम राव की चमक से भरी निगाह बंगले पर थी। फायरिंग शुरू होते ही आस-पास के बंगलों की लाइट ऑन होने लगी। नींद से लोग जागने लगे।
"छोरे—।"
"बोल बाप"
"लोगों नींद से उठो हो। पुलिस को ये फोन करो कि - "
"कुछ नेई होएला बाप ये शंकर भाई का बंगला है। इत्ता जल्दी पुलिस नेई आएला।"
"बात तो धारी ठीको हौवो पण एक बात म्हारे दिमाग में खटको।" बांकेलाल राठौर बोला।
"क्या?"
"वो मोना चौधरी फाइल न लावो तो उसो के साथ-साथ म्हारे प्लान भी फेल हो जायो।
"देखता रह बाप। वो फाइल पक्का लाएला। " रुस्तम राव अंधेरे में मुस्कराया।
बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव पर निगाह मारी फिर दूसरी तरफ देखा।
"वो म्हारो तीन बंदो वालो कार नजर न आवे?"
“कार अंधेरे में होएला। उनको सब ठीक-ठाक समझायेला। वो अपना काम एकदम फिट करेला। मोना चौधरी फाइल लेकर बंगले से बाहर आएला तो, फाइल बचने का नेई बाप"
अब तक बंगले में फायरिंग का शोर जोर पकड़ चुका था।
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