दफ्तर में धड़ाधड़ काम हो रहा था। खबरें आ रही थीं और शब्दों में ढलती हुई कागजों के पन्नों पर उतरती चली जा रही थीं। सारा स्टाफ बाहरी दुनिया से बेखबर मशीन की तरह काम कर रहा था । एडीटर रिपोर्टरों से शिकायत कर रहा था कि वे अखबार के लिए सनसनीखेज खबरें नहीं लाते और रिपोर्टर झल्ला कर सोच रहे थे कि क्या एडीटर को मशीन में झोंक देने की खबर सनसनीखेज सिद्ध हो सकती है |
आफिस में घुसते ही चपरासी उसके पीछे लग लिया ।
“आज तो आपकी नाइट ड्यूटी नहीं थी साहब ?” उसने खुशामदी स्वर में कहा ।
"अबे मर गये साहब" - सुनील अपने केबिन में घुसता हुआ झल्लाकर बोला- "अभी जितने सलाम मारने हैं मार ले, अब इस दुनिया से हमारा दाना पानी समाप्त होने वाला है।"
"ऐसी क्या बात है साहब ?"
"अबे सुन !" - सुनील कुर्सी पर बैठकर मेज पर टांगें फैलाता हुआ बोला- "तुझे कभी फांसी हुई है ?"
“आज तक तो नहीं हुई। वैसे बचपन में कभी हुई हो तो मुझे याद भी नहीं । "
"सुना है बहुत तकलीफ होती है।'
"हां साहब, गरदन सुराही के सिर की तरह ये... लम्बी हो जाती है। बस एक ही खराबी है कि प्राण निकल जाते हैं।”
"हे भगवन !" - सुनील माथे पर हाथ मारकर बोला "अब क्या होगा ?"
चपरासी मूर्खों की तरह खड़ा उसका मुंह देखता रहा ।
"कभी बिजली की कुर्सी पर बैठा है ?" - सुनील ने फिर पूछा ।
“अजी साहब, हमारी ऐसी किस्मत कहां ! हमें तो स्टूल मिल जाए तो वही गनीमत है। बिजली की कुर्सियां तो आप जैसे बड़े बड़े लोगों के लिये हैं।"
"तेरा सत्यानाश हो कम्बख्त, क्यों जवानी में ही ऊपर भेजना चाह रहा है। साला कुछ करता-धरता तो है नहीं, खड़ा-खड़ा बददुआयें दिये जा रहा है।"
"क्या करू साहब ?"
"सन सत्तावन की ब्लास्ट की फाइलें निकालकर ला और, चाहे नरक में से लानी पड़े, एक कप काफी लेकर आ, नहीं तो अभी गर्दन की सुराही बना दूंगा।"
चपरासी चुपचाप चला गया और थोड़ी देर बाद थर्मस में काफी और फाइलें लेकर लौटा।
सुनील बड़ी गम्भीरता से नैशनल बैंक की चोरी की रिपोर्ट पढता रहा और लगभग एक घन्टा गुजर जाने के बाद उसने फिर यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिये ।
"कोई नई बात ?" - रमाकान्त के फोन पर बोलते ही उसने पूछा ।
"भई बहुत बुरी खवर है।" - रमाकांत बोला"तुम्हारी रमा खोसला फंस गई है।"
"कैसे ?”
"मुझे मुख्य मुख्य बातें ही मालूम हैं, वही बताता हूं। लेक होटल में मेरे दो आदमी, मोहन और राकेश रमा की निगरानी कर रहे हैं। राकेश जब मुझे फोन करने आ रहा था तो उसने रमा को पिछवाड़े के रास्ते होटल से बाहर निकलते देखा था। राकेश को तो अचानक रमा दिखाई दे गई थी, नहीं तो जिस सफाई से वह बाहर आई थी उससे पुलिस की आंखों में तो धूल झोंक ही दी थी उसने । वहां उसने एक पैट्रोल पम्प पर जाकर टैक्सी के लिये फोन किया। राकेश को कोई टैक्सी नहीं मिल पाई थी। उसने बड़ी मिन्नत करके एक कार वाले को इस बात के लिए तैयार किया कि वह उसके कहे अनुसार रमा का पीछा करेगा और इसकी एवज में तीस रूपये भी देने पड़े जो मैं तुमसे वसूल करूंगा..."
"रुपयों को मारो गोली, यार" - सुनील ने चिढकर कहा "काम की बात करो।"
...... टैक्सी रमा को जयनारायण के घर ले गई । एक कार पहले से ही कारीडोर में खड़ी थी और भीतर से बातें करने की आवाज भी आ रही थी। रमा आई तो जयनारायण से मिलने ही थी, लेकिन किसी की मौजूदगी में शायद वह कोठी में घुसना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने टैक्सी को बिल चुकाकर भेज दिया और स्वयं कोठी के पिछवाड़े आकर खड़ी हो गई। राकेश को ड्राइंग रूम में किसी की छाया घूमती दिखाई दे रही थी, लेकिन वह उसे पहचान नहीं पाया । उसी समय वह आदमी खिड़की के पास आया उसने खिड़की को खींचकर नीचे गिराये जाने वाला दरवाजा लगभग दो फुट नीचे खींचा और फिर ऊपर कर दिया। शायद वह आदमी किसी को सिगनल कर रहा था । "
" राकेश ने उस आदमी की सूरत पहचान ली थी ?" - सुनील ने अपनी उत्कंठा दबाने की भरपूर चेष्टा करते हुए कहा ।
"शायद नहीं, क्योंकि वह आदमी केवल पांच पा छ: सैकंड ही खिड़की के पास रुका था।"
सुनील ने शन्ति की गहन निःश्वास ली ।
"उससे थोड़ी देर बाद ही वह आदमी कोठी से बाहर निकल आया और कारीडोर में खड़ी कार में बैठकर चलता बना। बस यहीं राकेश धोखा खा गया। उसने समझा था कि कार जयनारायण की है और इसीलिए उसने कार का नंबर नोट नहीं किया और अब हमारे पास उस आदमी को ट्रेस करने का कोई साधन नहीं है । "
सुनील मन ही मन मुस्कराया । अगर राकेश नम्बर नोट कर लेता तो रमाकांत यह जानकर फट ही तो पड़ता कि नंबर उसकी अपनी ही कार का है।
"फिर ?" - उसने प्रत्यक्ष में पूछा ।
" उस आदमी के जाते ही रमा कोठी में प्रविष्ट हो गई ।" रमाकांत ने कहा -
"कैसे ?"
"अब यहीं से मुसीबत शुरू होती है। वह मूर्ख लड़की पिछवाड़े की खिड़की से कोठी के अन्दर घुसी थी।"
"फिर ?"
"फिर लगभग पांच मिनट बाद वह झपटी हुई सामने के दरवाजे में से बाहर निकली। वह इतनी घबराई हुई थी कि उसने दरवाजा भी बन्द नहीं किया ।"
"राकेश ने उसका पीछा किया ?"
"हां, लेकिन पांच-छ: ब्लॉक पार करने के बाद ही उसे महसूस हो गया कि उसका पीछा किया जा रहा है और वह राकेश को डॉज दे गई।"
“ अब रमा कहां है ?"
“भगवान जाने।"
" और राकेश !"
"वह वापिस लेक होटल के बाहर मोहन के पास पहुंच गया है। "
"राकेश मुझे पहचानता है ?"
"केवल सूरत से । यदि तुम उससे मिलना चाहते हो तो मैं फोन कर दूंगा।"
"अच्छा ।"
“अच्छा क्या, आज आओगे न, आज तो यूथ क्लब इन्द्र का अखाड़ा बनी हुई है। अभी तो महफिल शबाब पर है, भगवान कसम सारे गम भूल जाओगे और हां नलिनी भी है। आज तो वह उन लोगों के साथ भी डांस कर रही हैं, जिन्हें वह कभी पास नहीं फटकने देती ।"
"बरखुरदार" - सुनील ने विचित्र स्वर में कहा "अगर मैं आ गया न, तो वह उन लोगों के साथ भी डांस नहीं करेगी जिनके साथ वह गलबहियां डाले घूमती है।"
"तो आओ न, आज हम भी तुम्हारे जौहर देख लें ।” "आयेंगे बेटा, पहले जो सर पर तलवार लटक रही है उससे बच लें।"
"फंस रमा रही है, फिक्र तुम्हें हो रही है ?"
" तुम नहीं समझोगे ।" - सुनील ने फोन बन्द करते हुए कहा । "
सुनील केबिन से बाहर निकला ही था कि उसे कोई बात याद आ गई और वह फिर वापिस चला गया। उसने फिर रमाकांत को फोन किया ।
"अब क्या है ?" - रमाकांत की आवाज आई।
"चिढ क्यों रहे हो ?" - सुनील ने उसके स्वर की तल्खी का अनुभव करते हुए कहा ।
"यहां बाहों में से हूर निकल गई और तुम पूछ रहे हो चिढ क्यों रहा हूं। अब क्या बात है ?"
"देखो रमा अपने होटल में से बाहर निकली है और जयनारायण की हत्या हो गई है, ये दोनों बातें केवल राकेश जानता है।"
"फिर ?"
"न राकेश के साथी मोहन को और न सीक्रेट सर्विस के जो लोग रमा की निगरानी के लिए तैनात हैं उन्हें ही पता है कि रमा अपने कमरे में नहीं हैं।"
"फिर ?"
“अगर राकेश अपनी जबान न खोले तो...'
"यह असम्भव है।"
"क्यों ?"
"पहले तो मैं ही नहीं चाहूंगा कि मेरा कोई आदमी किसी गड़बड़ में फंसे, दूसरे अगर राकेश कुछ न भी कहे तो जिस आदमी की उसने मोटर इस्तेमाल की थी, वह तो चुप नहीं रहेगा ।"
"लेकिन उसे क्या पता कि जयनारायण की हत्या हो गई है ?"
"लेकिन पता लग तो जायेगा और उस समय जो पुलिस को बयान देगा वह भयानक सिद्ध हो सकता है। "
"क्या तुम इस समाचार को एक दिन भी लेट नहीं कर सकते ?"
"क्या मतलब ?"
"मतलब ये कि राकेश यह प्रकट करे कि उसे जयनारायण की हत्या का पता ही नहीं है । "
"ये नहीं हो सकता । मैं यूथ क्लब पर ताला नहीं पड़वाना चाहता । यह हत्या का केस है। पुलिस को जब यह पता लगेगा कि हमने जान-बूझकर कोई खबर छुपाई है तो वह हम पर चढ दौड़ेगी। मैं अधिक से अधिक इतना कर सकता हूं कि पुलिस को किसी और सोर्स से हत्या की सूचना मिलने तक प्रतीक्षा करू और फिर राकेश को अपनी ओर से सूचना देने कई लिए भेजूं।"
"इस ढंग सें तुम मुझे कितना समय दे सकते हो ?"
"अधिक नहीं, केवल एक या दो घंटे । जयनारायण की हत्या की जानकारी किसी को मिलते ही राकेश पुलिस स्टेशन अपनी दास्तान सुना आयेगा ।"
"अच्छा, मैं इतने समय का ही प्रयोग करूंगा, ओ के।"
***
ब्लास्ट के ऑफिस में से निकलकर लेक होटल पहुंचने में सुनील को केवल दस मिनट लगे । उसने कार को सड़क पर ही पार्क किया और रमाकांत के आदमियों की तलाश शुरु कर दी। थोड़ी ही देर बाद उसे राकेश मिल गया ।
"राकेश, कार में बैठो तुमसे कुछ बातें करनी हैं । " सुनील ने उसे पहचानकर कहा ।
राकेश के कार में बैठत ही सुनील ने कार स्टार्ट कर दी
"लेकिन मेरी यहां ड्युटी थी।" - राकेश ने प्रतिवाद किया।
"चिन्ता मत करो, तुम्हारा दूसरा आदमी तो यहां है ही, मैं तुम्हें यहीं छोड़ जाऊंगा। रमाकांत तुमसे एक्सप्लेनेशन नहीं मांगेगा ।"
राकेश सन्तुष्ट हो गया ।
"देखो" - सुनील ने कहा- "मेरे पास समय कम है। रमाकांत ने मुझे लगभग सारी बातें बता दी हैं, मैं कुछ बातें तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं... जयनारायण की कोठी में जिस आदमी का जिक्र तुमने किया है, क्या उसे पहचान
सकते हो ?"
"मैं उसका चेहरा नहीं देख पाया था, मैं तो केवल उसका कद-काठ बयान कर सकता हूं। हालांकि मैंने उसे दो बार देखा था। एक बार जब वह खिड़की के पास आया था और दूसरी बार जब वह कोठी में से निकलकर कार में बैठा था। "
"तुम उसका हुलिया बयान कर सकते हो ?"
"देखिये, सूरत तो मैं देख ही नहीं पाया था, वैसे वह लम्बा-ऊंचा आदमी था, कन्धे चौड़े थे, चाल में एक विशेप प्रकार की शान थी ... मिस्टर सुनील, अगर आप उसकी सही तस्वीर अपने दिमाग में बिठाना चाहते हैं तो यह समझ लीजिये कि कद काठ में आप जैसा ही था ।"
सुनील क्षण कर के लिए बौखला गया और फिर संयत स्वर में बोला- "देखो राकेश, जब पुलिस तुमसे यही प्रश्न करेगी उस समय मुझे माडल की तरह पेश करने की सहूलियत नहीं होगी । तुम्हें उसकी बनावट को बयान करने के लिये अपनी स्मरण शक्ति को ही प्रयोग में लाना होगा।"
"इस सूरत में मैं पुलिस की कोई सहायता नहीं कर सकूंगा।"
यही तो सुनील सुनना चाहता था, उसने मुक्ति की एक गहन निःश्वास ली।
"देखो तुम्हें मैं एक नेक सलाह देता हूं, जब पुलिस तुम्हें बयान देने के लिए बुलाए तो केवल वही बताना जो तुम जानते हो। अगर उनके रौब में आकर कोई उल्टी-सीधी बात कर बैठे तो बाद में दुखी हो जाओगे ।”
"लेकिन मुझे पुलिस में बयान देने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी ?”
"क्योंकि... उस कोठी के मालिक जयनाराण की हत्या हो गई है ।"
"क्या !" - राकेश हैरान होकर चिल्लाया ।
"यह सत्य है" - सुनील ने शान्त स्वर में कहा"क्योंकि तुम्हीं एक मौके की शहादत हो इसलिए पुलिस तुम्हें बहुत चक्कर देगी।" -
राकेश क्षण भर के लित विचारमग्न हो गया ।
"तुमने अभी बताया था कि उस आदमी ने खिड़की के पल्ले को लगभग दो फुट नीचे खींचा था और क्षण भर उसी स्थिति में रखे रहने के बाद उसे फिर ऊपर कर दिया था । भला उसने ऐसा क्यों किया होगा ?"
"वह जरूर किसी को सिग्नल दे रहा होगा । "
"लेकिन किसे ?"
"शायद रमा को, जिस समय रमा टैक्सी से उतरी थी लगभग उसी समय वह आदमी खिड़की पर दिखाई दिया था । उसने जरूर रमा को ही इशारा किया था ।"
"फिर रमा ने क्या किया ?"
"वह पहले मुख्य द्वार की ओर गई और फिर वहां से लौट आई और पिछवाड़े चली गई और उसी समय वह आदमी सामने के मुख्य द्वार से बाहर निकला और अपनी कार में बैठकर चल दिया।"
"फिर ?”
"जब वह आदमी दृष्टि से ओझल हो गया तो रमा ने कहीं से खोजकर किचन की खिड़की के नीचे एक लकड़ी की पेटी रखी और किचन में फांद गई। लगभग पांच मिनट तक वह भीतर रही और फिर मुख्य द्वार में से भागती हुई निकली 1"
"फिर ?"
"फिर हमने रमा का पीछा किया लेकिन उसे शायद हमारी मौजूदगी का पता लग गया और वह हमें डाज दे गई |"
"रमा तुम लोगों की नजर बचाकर होटल में से बाहर कैसे निकली ?”
"हमें नहीं मालूम वह तो एक संयोग था कि मैं उसी समय रमाकांत को फोन करने जा रहा था और वह मुझे टैक्सी बुलाती दिखाई दे गई, वर्ना हम तो यहां बैठे रहते और यही समझते कि रमा अपने कमरे में है जैसा कि अभी तक सीक्रेट सर्विस वाले समझ रहे हैं।"
" उन्हें मालूम है कि तुम लोग भी रमा की निगरानी कर रहे हो ।"
"यह बात छुपाई ही नहीं जा सकती। न सीक्रेट सर्विस वाले हमसे छुप सकते हैं न हम उनसे । "
" उन्होंने तुम्हें हटने को नहीं कहा यहां से ?"
"कैसे कह सकते हैं, यह पब्लिक प्लेस है, सबका बराबर हक है इस पर ।"
"बस इतना ही काफी है।" - सुनील ने कार वापिस मोड़ते हुए कहा - "मैं तुम्हें वापिस लेक होटल छोड़ आता हूं, तुम रमाकांत को रिपोर्ट भेजते रहना। पुलिस देर सवेर तुम्हें तंग तो करेगी ही, इसलिए जरा सावधानी से बयान देना और जो सत्य है वही बताना । वहां भी कोई ऐसी बात मत कह देना कि उस आदमी की बनावट ब्लास्ट के रिपोर्टर जैसी थी ।"
"बहुत अच्छा, जनाब।"
0 Comments