मोहिते को होश आया ।
कमरे में रोशनी थी । नजरें आस-पास घुमाईं, वहाँ कोई भी नहीं था । वो उठ बैठा । उसे ध्यान आया कि एक खूबसूरत-सी पुलिसवाली ने अपना कोई दाँव उस पर आजमाया था । उसके बाद उसे होश नहीं रहा था । खड़ा होने के बाद मोहिते ने घड़ी में वक़्त देखा, रात के नौ बज रहे थे । तभी उसकी निगाह फर्श पर पड़े फोन पर पड़ी तो उसे झुककर उठाया और मारियो गोवानी को फोन किया ।
तुरंत ही उधर से मारियो गोवानी ने कॉल रिसीव कर ली ।
"तुम किधर हो मोहिते ?" मारियो का तेज स्वर कानों में पड़ा ।
मोहिते ने बताया कि उसके साथ क्या हुआ था ।
"अब मैं कहाँ पहुँचूँ ?" मोहिते ने पूछा ।
"काम पूरा हो गया है ।" उधर से मारियो गोवानी का खुशी से भरा स्वर कानों में पड़ा, "देवराज चौहान ने डकैती कर ली है । वो सोना ले गए हैं । मैं भी एयरपोर्ट से निकल रहा हूँ।"
"वो वहीं पर गए हैं ?" मोहिते ने पूछा ।
"हाँ ! वही पर । मैं वहीं जा रहा हूँ, तुम भी वहीं पहुँचो । हमें पंद्रह करोड़ का सोना मिलने जा रहा है और काम हमने कुछ भी नहीं किया ।" मारियो गोवानी की खुशी भरी आवाज मोहिते के कानों में पड़ी ।
"डकैती में कोई समस्या नहीं आई ?" मोहिते को भी ये सुनकर चैन मिला था ।
"कोई समस्या नहीं । देवराज चौहान कमाल का डकैती मास्टर है । वहीं पहुँच मोहिते । वहीं मिलते हैं ।"
मोहिते ने फोन बंद करके जेब में रखा और फ्लैट से बाहर निकलकर राहदारी में आगे बढ़ गया । सिर में हल्का-सा दर्द हो रहा था । उस पुलिस वाली ने जाने कैसा दाँव मारा था । उसी के कारण सिर में दर्द था । सीढ़ियाँ उतरकर वो बिल्डिंग से बाहर आ गया । उस तरफ नजर मारी, जिधर उसने सामने कार खड़ी की थी । कार अपनी जगह पर खड़ी थी । वो कार में बैठा और कार आगे बढ़ा दी । तभी पीछे खड़ी टैक्सी भी अपनी जगह से सरकी और कार का पीछा करने लगी । उस टैक्सी की पीछे वाली सीट पर सब-इंस्पेक्टर लेले मौजूद थी । जो दो घण्टे से टैक्सी में इसी तरह बैठी, मोहिते के होश में आने का इंतजार कर रही थी । वो जानती थी कि होश में आते ही मोहिते बाहर आएगा और उसके ख्याल से अपने साथियों के पास जाएगा । ये सोचकर ही मोहिते के पीछे जाने का प्रोग्राम बना रखा था । टैक्सी वाले को अपना पुलिस कार्ड दिखा चुकी थी और वो पूरी तरह सहयोग कर रहा था । मुक्ता लेले ने उसे कह दिया था कि उसे पूरा किराया मिलेगा । इस बारे में निश्चिंत रहे ।
"सावधानी से पीछा करना ।" मुक्ता लेले बोली ।
"जी मैडम !"
"अगर ये नजरों से ओझल हो गया तो बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा पुलिस को ।"
"ऐसा नहीं होगा, मैडम । मैं इसका पीछा नहीं छोड़ने वाला ।" टैक्सी ड्राइवर ने कहा ।
आगे जा रही कार पर नजर रखते हुए मुक्ता लेले ने मोबाइल निकाला और वानखेड़े का नम्बर मिलाकर फोन कान से लगा लिया । दूसरी तरफ बेल गई और फौरन ही वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ी ।
"हेलो !"
"सर, मैं मुक्ता लेले । मैं... ।"
"तुम । कहो मुक्ता, तुम क्या कर रही हो ?" वानखेड़े बोला ।
"सर, मैंने जिसे मोहन भौंसले के फ्लैट पर बेहोश किया था, वो अब होश में आने के बाद कार में कहीं जा रहा है और मैं टैक्सी से उसका पीछा कर रही हूँ । मेरा ख्याल है कि वो अपने साथियों के पास जा रहा होगा ।"
"वेरी गुड मुक्ता । तुम सही काम कर रही हो । बहुत मौके पर तुमने फोन किया । कुछ अंजान लोग एयरपोर्ट पर पाँच सौ करोड़ के सोने की डकैती करने में सफल रहे हैं और सोना एम्बुलेंस में भर कर ले गए हैं । वो आदमी उन्हीं डकैतों का साथी है । तभी वो मोहन भौंसले के फ्लैट पर तब पहुँचा था । उसका पीछा मत छोड़ना ।"
"मैं उस पर नजर रखे हुए हूँ और जल्दी ही आपको खबर दूँगी कि वो कहाँ पर पहुँचा है ।"
"मुझे बेसब्री से तुम्हारे फोन का इंतजार रहेगा ।"
"उस बम का क्या हुआ, जिसे मोहन भौंसले ने... ।"
"उस बम की कोई खबर नहीं है ।"
"वो प्लेन आ गया ?"
"हाँ, वो सुरक्षित लैंड कर गया है । सब ठीक रहा । इन लोगों का मकसद एयरपोर्ट को उलझाकर, कारगो के वाल्ट में पड़े पाँच सौ करोड़ के गोल्ड की डकैती करना था ।"
"मैं समझ गई सर... !"
"तुम मुझे जल्दी खबर देना कि वो आदमी कहाँ पर जाता है ।"
"जी सर !"
■■■
एयरपोर्ट की बेल्ट नम्बर तीन पर फ्लाइट नम्बर 317 का सामान(लगेज) आया था । ये वही फ्लाइट थी, जिसमें कि मोहन भौंसले था । इस वक़्त बेल्ट नम्बर तीन खाली हो चुकी थी, लोग अपना-अपना सामान ले जा चुके थे । यात्री बेहद राहत महसूस कर रहे थे कि प्लेन ठीक से रनवे पर उतर आया । कई तो कानों को हाथ लगा रहे थे कि दोबारा वो प्लेन पर सफर नहीं करेंगे । वही बेल्ट नम्बर तीन अभी भी चल रही थी और उस पर एक काले रंग का ब्रीफकेस पड़ा नजर आ रहा था जिसे लेने कोई नहीं आया था । चार बार वो बेल्ट घूम चुकी थी । परंतु वो ब्रीफकेस बेल्ट पर ही पड़ा रहा ।
एक ऑफिसर जिसकी ड्यूटी दो और तीन नम्बर बेल्ट पर थी, वो देर से बेल्ट पर पड़े उस ब्रीफकेस को देख रहा था । जब उसे विश्वास हो गया कि इस ब्रीफकेस को लेने कोई नहीं आने वाला, ब्रीफकेस का मालिक उसे ले जाना भूल गया है तो उसने ब्रीफकेस उठाया और भीतर जाकर उसने बेल्ट का स्विच ऑफ कर दिया जिससे कि घूमती बेल्ट थम गई । वो ऑफिसर ब्रीफकेस लेकर एक तरफ मौजूद एयरलाइन्स के काउंटर पर जा पहुँचा । वहाँ एक युवती मौजूद थी ।
"ये ब्रीफकेस नम्बर तीन पर से कोई ले जाना भूल गया है । इसे जमा कर लो ।" ऑफिसर ने कहा । उसने ब्रीफकेस को काउंटर पर रख दिया ।
"स्योर सर । मैं इसकी एंट्री करके, ऑफिस वालों को खबर कर देती हूँ ।" युवती कह उठी, "मुझे समझ नहीं आता कि लोग अपना सामान ले जाना कैसे भूल जाते हैं ।"
"जल्दी में ऐसा ही होता है ।" ऑफिसर ने मुस्कुराकर कहा, "और बाद में... ।"
"गुड इवनिंग मैडम ।" तभी पीछे से आवाज आई । ऑफिसर तुरंत पलटा । युवती की नजरें भी उठीं ।
चेहरे पर मुस्कुराहट लिए जैकी वहाँ खड़ा था ।
"यस सर !"
जैकी की निगाह काउंटर पर रखे काले ब्रीफकेस पर पड़ी । वो युवती से बोला ।
"मैडम ! बेल्ट नम्बर तीन पर मैं अपना ब्रीफकेस लेना भूल गया हूँ । फ्लाइट नम्बर 317 का पैसेंजर हूँ मैं । किस्मत अच्छी थी जो बच गया । प्लेन में बम नहीं फटा । अब तो प्लेन के नाम से डर लगने लगा है ।"
"बुरी घटना होते-होते रह गई ।" युवती बोली और ब्रीफकेस की तरफ इशारा करके बोली, "ये ब्रीफकेस ही होगा आपका । यही हमें तीन नम्बर बेल्ट से मिला है ।"
"यही मेरा ब्रीफकेस है मैडम ।" जैकी ने ब्रीफकेस उठाया, "थैंक्स मैडम ।"
जैकी ब्रीफकेस संभाले वहाँ से निकल गया ।
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वानखेड़े ने पुलिस हेडक्वार्टर में कमिश्नर को फोन पर सारे हालात बताकर पूरे मुम्बई पुलिस को रेड अलर्ट पर लाने को कह दिया । बता दिया कि डकैती करने वाले चार एम्बुलेंस पर सोना लादकर निकले हैं । ऐसे में सड़कों पर दौड़ती एम्बुलेंस की अच्छी तरह चेकिंग की जाए । कोई भी खबर हो तो तुरंत कंट्रोल रूम से सम्पर्क करें । इधर वानखेड़े कंट्रोल रूम से जुड़ गया था कि कोई भी खबर मिलते ही उसे तुरंत फोन पर बताया जाए । पूरे मुम्बई में खामोश हलचल पैदा हो गई थी । पुलिस चौकन्नी हो गई । जगह-जगह नाके लगा दिए गए । पुलिस पेट्रोल कारें सड़कों पर चुपके से दौड़ती नजर आने लगीं । पाँच सौ करोड़ के सरकारी गोल्ड पर डकैती की गई थी । ऐसे में वास्ता रखते हुए सरकारी महकमे के लोग भौंचक्के रह गए । खबरी न्यूज़ चैनलों पर डकैती की खबरें आने लगीं । न्यूज़ चैनलों के संवाददाता, कैमरा मैन एयरपोर्ट के बाहर टिक चुके थे कि वे कोई नई खबर पा सकें ।
वानखेड़े अभी तक एयरपोर्ट पर था कि छानबीन में कोई नई बात का पता चले । उसके मन में एक ही बात उठ रही थी कि ऐसी चालाकी से भरी योजना बनाकर डकैती किसने की ? कौन है डकैती के पीछे । रह-रहकर उसके ख्यालों में देवराज चौहान आ रहा था, जिसकी फ़ाइल पहले से ही उसके पास थी । डिपार्टमेंट ने देवराज चौहान को पकड़ने का काम उसे दे रखा था । देवराज चौहान का ख्याल आने की वजह ये थी कि वो किसी भी डकैती में खून-खराबा नहीं करता था और इस डकैती में भी खून-खराबा नहीं किया गया था । ऐसे शांत ढंग से देवराज चौहान डकैती करने में माहिर था । सिर्फ मोहन भौंसले की ही लाश मिली है । उसे शूट किया गया है । ये बात वानखेड़े को खटक रही थी कि देवराज चौहान कभी भी अपने साथियों को नुकसान नहीं पहुँचाता । तो क्या इस डकैती के पीछे देवराज चौहान नहीं, कोई और है ? इन सब बातों के अलावा वानखेड़े को इंतजार था सब-इंस्पेक्टर लेले का फोन आने का । कुछ देर पहले उसने फोन पर बताया था कि वो उस आदमी का पीछा कर रही है जो मोहन भौंसले के फ्लैट पर उससे टकराया था, जो कि डकैतों का ही साथी है ।
"बम ।" इंस्पेक्टर सूरज गहरी साँस लेकर बोला, "बम की खबर सिर्फ एक ड्रामा थी । उस चालाक औरत ने हमारा ध्यान बँटाने के लिए वो नाटक खेला था । प्लेन में बम नाम की कोई चीज नहीं थी ।"
"मैंने तो पहले ही कहा था कि सोनिया शातिर औरत है ।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा, "लेकिन उसके पति मोहन भौंसले की हत्या, रहस्य को और गहरा गई है । वो डकैतों का साथी था तो उसकी हत्या उन्होंने क्यों कर दी ?"
"बम की झूठी खबर... ।" प्रकाश भेड़े ने कहना चाहा ।
"बम था । कहीं पर है ।" वानखेड़े ने कहा, "सब इंस्पेक्टर मुक्ता लेले ने बताया कि उसका पति मोहन भौंसले उससे नाराज होकर अपने कमरे में बन्द रहता था । किसी को कमरे में नहीं झाँकने देता था । बाहर जाता था तो कमरा बन्द करके जाता था । इससे स्पष्ट है कि मोहन भौंसले तब बम बना रहा था । परंतु अभी तक हम नहीं जान पाए कि बम कहाँ पर है ।"
"उसके पास काला ब्रीफकेस था जिसे की बाद में नहीं देखा गया ।" सूरज बोला ।
"अब वो ब्रीफकेस ही बचा है, जिसमें वो बम हो सकता है लेकिन हमें ब्रीफकेस की कोई खबर नहीं ।" वानखेड़े ने कहा, "वो ब्रीफकेस एयरपोर्ट पर भी हो सकता है । अगर उसमें बम है तो ये खबर एयरपोर्ट के लिए खतरनाक है ।"
"ये बातें तुम लोग जानो । तुम लोग ब्रीफकेस की तलाश करो ।" वानखेड़े कह उठा, "मेरा काम अब डकैती करने वालों को ढूँढना है । सोने को वापस पाना है । मेरे लिए शर्म की बात है कि मेरे होते हुए वो डकैती कर गए । मैंने तब तुम्हें कहा था कि सोनिया ड्रामा कर रही है, परंतु तुमने मेरी बात का यकीन नहीं किया । वो इतनी शातिर रही कि प्लेन लैंडिंग के वक़्त होस्टेस को बाथरूम में बेहोश कर गायब हो गई । तुम्हें चाहिए था कि उसके पास दो पुलिस वाले तैनात करते ।"
"मैं अपनी ग़लती मानता हूँ ।" प्रकाश भेड़े ने अफसोस भरे स्वर में कहा ।
"तुम मोहन भौंसले को भी न पकड़ सके और वो प्लेन से खिसकने में कामयाब हो...।"
तभी इंस्पेक्टर शाहिद खान आ पहुँचा ।
"एक काला ब्रीफकेस, फ्लाइट नम्बर 317 का, तीन नम्बर बेल्ट पर रह गया था ।" शाहिद खान ने बताया, "उसे किसी ने नहीं लिया तो तब उसे जमा करने के इरादे से उठा लिया गया कि तभी एक युवक आकर वो ब्रीफकेस ले गया ।
"काला ब्रीफकेस ।" वानखेड़े की आँखें सिकुड़ीं ।
"हाँ ! बेल्ट पर मौजूद ड्यूटी ऑफिसर से ये बात मुझे पता चली ।"
"वो मोहन भौंसले वाला ब्रीफकेस हो सकता है ।" वानखेड़े ने कहा, "मोहन भौंसले को शूट कर दिया गया तभी तो वो अपने ब्रीफकेस को लेने नहीं आ सका तो डकैती करने वालों का कोई साथी आया और ब्रीफकेस ले गया ।"
"संभव है ।" भेड़े सोच भरे स्वर में बोला ।
"मेरे ख्याल में उस ब्रीफकेस में कोई कीमती सामान होना चाहिए तभी तो उसे लेने उसका कोई आदमी आया था ।" शाहिद खान बोला ।
"उसमें ऐसा कुछ होगा जो डकैती करने वालों के लिए कीमती होगा ।" सूरज ने कहा ।
"तुम्हारे ख्याल में उसमें बम होगा ?" भेड़े बोला ।
"बम अगर कहीं नहीं है तो उसी ब्रीफकेस में होगा चाहिए ।" वानखेड़े ने कहा ।
"ये संभव नहीं ।" सूरज बोला, "कोई भी सामान प्लेन तक पहुँचने तक अच्छी तरह स्कैन किया जाता है । ऐसे में अगर उसमें बम होता तो वो पहले ही नजर में आ गया होता ।" इंस्पेक्टर सूरज ने कहा ।
"चलो शाहिद ।" वानखेड़े बोला, "हमें मुम्बई की सड़कों पर दौड़ती उन चारों एम्बुलेंस की तलाश करनी है, जिसमें पाँच सौ करोड़ का सोना भरा हुआ है । उन एम्बुलेंस को कईयों ने देखा होगा ।"
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मुम्बई की बरसात ने कहर ढा रखा था । दोपहर से ही बरसात ऐसी शुरू हुई थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी । शाम को कुछ मध्यम हुई तो बाद में पुनः तेजी से पानी बरसने लगा । ऐसे में पुलिस वालों के लिए भी खुले में आकर काम करना कठिन महसूस होने लगा । एम्बुलेंस की तलाश कमजोर पड़ने लगी । पूछताछ के लिए कोई इस इमारत में नजर नहीं आ रहा था । वानखेड़े और शाहिद खान के सामने भी यही समस्या आई और उन्हें एम्बुलेंसों की कोई खबर नहीं मिल सकी । बरसात ने डकैती करने वालों की भरपूर सहायता की । फिर भी कभी-कभार सड़कों पर सायरन बजाती पुलिस कार दौड़ती नजर आ जाती थी ।
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वो घना गहरा जंगल था । लगातार होने वाली बरसात ने वहाँ कीचड़ कर दिया था और जगह-जगह पानी भरा नजर आ रहा था । आबादी से हटकर वो जगह थी । पेड़-झाड़ियाँ हर तरफ बिखरे हुए थे । परंतु इस बरसात से भरी अंधेरी रात में, वहाँ इतना गहरा अंधेरा था कि हाथ-के-हाथ नजर नहीं आ रहा था । इस तरफ आने वाली सड़क बहुत पहले ही खत्म हो जाती थी और आगे सिर्फ कच्चा रास्ता था ।
चार में से तीन पीछे वाली एम्बुलेंस ने कच्चे रास्ते पर आते ही हेडलाइट बन्द कर दी थी । आगे वाली छोटी एम्बुलेंस की हेडलाइट रोशन रही और तीनों एम्बुलेंस उसके पीछे आती रही । सात-आठ मिनट का वो जंगली कच्चा रास्ता पार करने के बाद वे पेड़ों में घिरी ऐसी जगह पर पहुँचे जो कुछ खुली जगह थी । चारों एम्बुलेंस वहाँ पर पहुँचकर खड़ी हो गईं। इंजन बन्द हो गए । हेडलाइट बन्द हो गई । तेज बरसात लगी थी । आसमान में रह-रहकर बिजली चमक रही थी । बादल गरज रहे थे ।
"बात करनी होगी कि हरामी प्रताप ने मोहन भौंसले को क्यों शूट किया ।" जगमोहन दरवाजा खोलता गुस्से से बोला, "हमारे मना करने के बाद भी उसने डकैती में हथियार साथ में क्यों रखा ।"
पीछे वाले हिस्से में रवीना मौजूद थी ।
"इस तरह जल्दबाजी मत करो ।" देवराज चौहान बोला, "मुझे बात करने दो ।"
"तुम ?" जगमोहन ने गुस्से से देवराज चौहान को देखा, "मैं भी बात कर सकता हूँ ।"
"वो भाई होकर, अपने भाई को क्यों शूट करेगा ?"
"क्यों ?"
"ये भी मत भूलो कि मोहन भौंसले ने बम बनाया था । जबकि वो डकैती करने जा रहा था । ऐसे नाजुक मौके पर वो बम नहीं बनाएगा । बनाएगा तो क्यों बनाएगा ?" देवराज चौहान ने कहा, "स्पष्ट है कि दोनों भाइयों में पहले से ही कोई बात चल रही थी और सोनिया को सब मामला पता है ।"
"ओह !"
"हमें उनसे सारी बात जाननी है । ये तो अच्छा रहा कि इन लोगों ने डकैती होने के दौरान कोई गड़बड़ नहीं की । मोहन भौंसले की हत्या डकैती से वास्ता नहीं रखती, ये इनकी आपसी ही कोई बात है ।"
बाहर बरसात लगी थी । परंतु देवराज चौहान और जगमोहन बाहर आ गए । रवीना भीतर रुक नहीं सकी और बाहर आ गई । तीनों दो पलों में ही बरसात में भीग गए । वो पहले ही भीगे हुए थे जब गोल्ड की डकैती में व्यस्त थे । उन्होंने देखा कि अन्य लोग भी एम्बुलेंस से बाहर आ चुके हैं और जोश भरे अंदाज में चीखते-चिल्लाते एम्बुलेंसों के पीछे के दरवाजे को खोलने में लगे हैं ।
देखते-ही-देखते एम्बुलेंसों के पीछे के दरवाजे खोल दिये ।
भीतर सोने से भरी पेटियाँ थीं । परंतु अंधेरा था ।
उन्होंने एम्बुलेंस के भीतर की लाइट ऑन कर दी । पेटियाँ स्पष्ट नजर आने लगीं । उत्साह से भरा ललित कालिया एक लकड़ी की पेटी को तोड़ने लगा कि सोना देख सके । तभी देवराज चौहान की ऊँची आवाज सबने सुनी ।
"ये क्या हो रहा है ?"
"सोना देखना है हमें ।" प्रताप भौंसले ने खुशी से चिल्लाकर कहा ।
"सब पीछे हट जाओ । तुम लोगों का सिर्फ दस-दस करोड़ है । काका मेहर का बारह करोड़ । पीछे हट जाओ ।"
ललित कालिया ने गर्दन घुमाकर देवराज चौहान को देखा फिर प्रताप को ।
प्रताप, ललित कालिया ने पास आकर फुसफुसाया ।
"अभी सोने से पीछे हट जा ।"
"हरामी को अभी शूट कर दूँ ।" ललित कालिया के होंठों से दबी गुर्राहट निकली ।
"करेंगे, पर अभी नहीं ।" प्रताप धीमे-से बोला, "जैकी को ब्रीफकेस ले आने दे ।"
"क्या बात कर रहे हो तुम दोनों ?" तभी जगमोहन करीब आकर तीखे स्वर में बोला ।
"मैं इसे समझा रहा था कि अपना दस करोड़ गिन और निकल ले यहाँ से ।" प्रताप मुस्कुराकर जगमोहन से बोला ।
"पहले तू समझ, जो हम तुझे समझाना चाहते हैं ।" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला ।
"क्या ?"
"देवराज चौहान के पास चल ।"
काका मेहर, रवीना, ललित कालिया, प्रताप भौंसले, सोनिया, सब इकट्ठे हुए ।
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह प्रताप पर थी ।
"अपना रिवॉल्वर दे ।" जगमोहन, प्रताप से बोला ।
"क्यों ?"
उसी पल जगमोहन का हाथ घूमा और प्रताप के गाल पर पड़ा ।
प्रताप का सिर झनझना उठा ।
"रिवॉल्वर दे ।" जगमोहन गुर्राया ।
प्रताप ने कहर भरी निगाहों से जगमोहन को देखा ।
उसी पल जगमोहन ने अपनी रिवॉल्वर निकाली और आगे बढ़कर प्रताप के पेट से नाल सटा दी ।
"क्या चाहता है तू ?" जगमोहन का स्वर कठोर था ।
तेज बरसात की आवाज के अलावा, वहाँ सन्नाटा छा गया था ।
प्रताप ने शांत ढंग से जेब में हाथ डाला और रिवॉल्वर निकालकर जगमोहन की तरफ बढ़ाया ।
जगमोहन ने प्रताप की रिवॉल्वर ली और पीछे हटता कह उठा ।
"और किसी के पास हथियार है ?"
कोई कुछ नहीं बोला ।
पलभर के लिए प्रताप और ललित कालिया की निगाह मिली थी ।
वे सब बरसात में भीग रहे थे ।
"मैंने कहा था कि डकैती के दौरान कोई भी हथियार पास में नहीं रखेगा ।" देवराज चौहान की निगाह प्रताप पर टिक चुकी थी, "परंतु तुमने रिवॉल्वर पास में रखी और मोहन को शूट भी कर दिया । क्यों ?"
"ये भूल मुझसे हो गई ।" प्रताप बोला ।
"कौन-सी भूल ? रिवॉल्वर रखने की या मोहन भौंसले को शूट करने की ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"रिवॉल्वर रखने की ।"
"मोहन को शूट क्यों किया ?"
"ये मेरा व्यक्तिगत मामला... ।" प्रताप ने लापरवाही से कहना चाहा ।
"डकैती के वक़्त के दौरान की गई तुम्हारी कोई भी हरकत व्यक्तिगत नहीं मानी जाएगी । तब तुम सब मेरे इशारे पर काम कर रहे थे । जैसे मैंने कहा था वैसा ही होना चाहिए था पर तुमने ऐसा नहीं किया । अपनी मनमानी की । मेरे ख्याल में तुमने रिवॉल्वर रखी ही इसलिए कि मोहन को शूट कर सको ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"सही कहा ।"
"अपने भाई को क्यों मारा तुमने ?"
"मैंने तो सोचा था कि मोहन प्लेन से ही नहीं निकल पाएगा ।" प्रताप एकाएक मुस्कुराकर बोला, "पकड़ा जाएगा । लेकिन वो वहाँ से जाने कैसे बच आया । मेरे सामने आ पहुँचा । कमीना, मैंने उसे शूट... ।"
"क्यों मारा ? वजह ?"
दो क्षण चुप रहकर प्रताप ने कंधे उचकाए और सोनिया पर निगाह मारकर बोला ।
"मुझे सोनिया से प्यार हो गया है । सोनिया भी मुझे चाहती है पर मोहन को ये बात पसंद नहीं थी ।"
"तो तुमने मोहन को रास्ते से हटा दिया ।"
"सोनिया भी यही चाहती थी । हमारा ख्याल था कि वो पुलिस के हाथों में फँस जाएगा ।" प्रताप ने सामान्य स्वर में कहा ।
"तो तुम तीनों में ये सब डकैती में शामिल होने से पहले से ही चल रहा था ।" देवराज चौहान बोला ।
"ज्यादा पहले नहीं । यूँ समझो कि दोनों बातें एक साथ ही शुरू हुईं... ।"
"अगर मुझे इस बात का जरा भी पता लग जाता कि तुम तीनों में नाराजगी है तो तुम तीनों से हम काम नहीं लेते ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा, "ये खतरनाक बात थी कि तुम तीनों की आपस में बिगड़ी हुई है और हमारी डकैती पर काम कर रहे हो । तुम्हें इस काम में लेना मेरी ग़लती थी ।"
"ऐसा मत कहो ।" प्रताप बोला, "मैंने अपना काम सही तरीके से पूरा किया है । काम में कोई ग़लती नहीं की ।"
"पर तुम कभी भी कुछ भी कर सकते थे । डकैती असफल हो सकती थी ।"
"इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि डकैती असफल कर दूँ । पैसे के लिए तो मैं सब कुछ कर रहा था ।"
"मेरे ख्याल में तुम मोहन को मारकर, उसका हिस्सा भी ले लेना... ।"
"मैंने जो किया, सिर्फ सोनिया के लिए किया ।" प्रताप ने शांत स्वर में कहा ।
तभी देवराज चौहान बोला ।
"मोहन भी तुम्हारे साथ कुछ करना चाहता था ।"
"क्या करना चाहता था ?"
"ये तो वही जाने । पर उसने बम बनाया था और तुम लोगों को हवा भी नहीं लगने दी कि वो बम बना रहा है । वो बम का इस्तेमाल स्पष्ट है तुम पर करना चाहता होगा ।"
"लेकिन उससे पहले ही मैंने उसे शूट कर दिया ।"
"तुम्हारी वजह से ही उसने ब्रीफकेस में डकैती का पूरा प्लान और सबके नाम लिखकर रख दिये कि तुम उसके साथ कुछ बुरा कर सकते हो । मोहन बेवकूफ नहीं था, उसने तुम्हारी और सोनिया की हरकतें भाँप ली होंगी ।" देवराज चौहान ने कहा, "मोहन के साथ तुम्हारा आपसी मामला था, तुम लोग जो भी करो । परंतु तुमने हथियार रखने की जो ग़लती की है, उसके लिए तुम्हें पाँच करोड़ का नुकसान होगा । अब तुम्हें सिर्फ पाँच करोड़ ही मिलेगा ।"
"ये ग़लत बात है ।" प्रताप तेज स्वर में बोला ।
"ग़लत बात तो ये थी कि तुमने हमारी बात नहीं मानी और हथियार डकैती के बीच पास में रखा ।" जगमोहन बोला, "अभी तुम पर कम जुर्माना लगाया जा रहा है, मैं तो तुम्हारे हाथ-पाँव तोड़ देना चाहता हूँ ।"
प्रताप मुस्कुराकर रह गया । फिर बोला ।
"इतना बड़ा जुर्माना मुझ पर मत करो । मैं... ।"
"वो पाँच करोड़ बाकी सबमें बाँट दिया जाएगा । तुम्हें और सोनिया को नहीं मिलेगा।"
"इसने जो बातें कहीं हैं क्या वो सही है ?" देवराज चौहान ने सोनिया से पूछा, "तुम मोहन से छुटकारा चाहती थी ?"
"हाँ !" सोनिया ने कहते हुए सिर हिलाया ।
"इस मामले से हमारा कोई वास्ता नहीं ।" देवराज चौहान कह उठा ।
"तुम कहते हो कि मोहन ने बम बनाया है ।" सोनिया बोली ।
"हाँ !"
"तो वो बम कहाँ है ?"
"मैं नहीं जानता । परंतु अब कह सकता हूँ कि वो बम का इस्तेमाल तुम पर और प्रताप पर करना चाहता था ।"
"अच्छा हुआ जो मर गया ।" प्रताप हँसा ।
"ये बात मैं भी सोचता हूँ कि आखिर वो बम कहाँ पर है, जो मोहन ने बनाया है ।" देवराज चौहान बोला ।
"क्या पता वो फ्लैट पर ही हो ।" सोनिया बोली, "उसे बम का इस्तेमाल करने का मौका न मिला हो ।"
"जो बम बनाएगा वो उसका इस्तेमाल भी जरूर करेगा ।"
तभी काका मेहर कह उठा ।
"अब वक़्त क्यों खराब किया जा रहा है । डकैती हो गई है । मुझे मेरे हिस्से का बारह करोड़ का सोना दो कि मैं जाऊँ यहाँ से ।"
"पहले ब्रीफकेस आ लेने दो ।" जगमोहन बोला ।
"ब्रीफकेस आता रहेगा ।" रवीना बोली, "तब तक हमारे हिस्से का गोल्ड अलग कर लेते... ।"
रवीना के शब्द अधूरे रह गए ।
दूर पेड़ों के बीच से लाइट चमकी थी ।
सब चौंके । नजरें उधर ही टिक गईं ।
"ये कौन आ रहा है ।" प्रताप गुर्रा उठा, "मेरा रिवॉल्वर वापस दो ।"
जगमोहन आँखें सिकोड़े उसी रोशनी की तरफ देख रहा था ।
"रिवॉल्वर दो ।" प्रताप पुनः बोला, "अब तो डकैती नहीं हो रही । आने वाले पुलिस न हों ।"
"दो लाइटें हैं ।" काका मेहर बोला ।
"कार है ।" रवीना ने कहा, "आने वाला जैकी हो सकता है । काला ब्रीफकेस मोहन का ले आया होगा । जिसमें मोहन ने डकैती का विवरण लिख रखा है ।
"मैं कहता हूँ रिवॉल्वर दो जगमोहन ।" प्रताप पुनः गुर्रा उठा ।
"शांत रहो ।" देवराज चौहान बोला, "आने वाली कार है और उसमें अपना ही कोई आदमी है ।"
"अपना कोई आदमी ?" सोनिया बोली, "सिर्फ जैकी ने ही तो यहाँ आना है ।"
"दो और लोग भी यहाँ पहुँचने वाले हैं । वो लोग जो इस डकैती में हमें बैकअप दे रहे थे कि कोई गड़बड़ होने पर हम फँसने लगें तो वो हमें बचा सकें ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वो । उनका यहाँ क्या काम ?" ललित कालिया कह उठा ।
"उन्होंने भी तो अपना हिस्सा लेना है ।"
"पर उन्होंने तो कोई काम नहीं किया कि... ।"
"अच्छा ही रहा कि उन्हें काम करने का मौका नहीं मिला । उनका काम डकैती असफल होने पर शुरू होना था ।" देवराज चौहान की निगाह करीब आती हेडलाइट पर टिकी थी ।
सबकी नजर उधर ही थी ।
"मैं अभी आया ।" कहने के साथ जगमोहन उस हेडलाइट की तरफ बढ़ गया ।
दो-ढाई सौ कदम पहले वो हेडलाइट रुक गई थी फिर उनकी रोशनी बन्द हो गई थी ।
"हमें सतर्क रहना होगा ।" काका मेहर बोला, "आने वाली पुलिस न हो ।"
"शांत रहो । यहाँ पुलिस नहीं पहुँच सकती ।" देवराज चौहान ने कहा ।
गहरे अंधेरे और तेज बरसात में प्रताप, ललित कालिया के पास जा पहुँचा । दोनों की आँखें मिलीं ।
"ये तो और लोग भी आ रहे हैं ।" ललित कालिया धीमे स्वर में बोला, "मेरी रिवॉल्वर छः गोलियों वाली है । ये लोग गोलियों से ज्यादा हो रहे हैं । जैकी भी और दो अन्य लोग भी आने वाले हैं ।"
"कमीने ने मेरी रिवॉल्वर ले ली ।" प्रताप धीमे से भुनभुनाया ।
"तू कहे तो शूट करूँ सबको । गोल्ड हम आधा-आधा बाँट के निकल जाते हैं ।" ललित कालिया ने कहा ।
"अभी वक़्त नहीं आया ।"
"वक़्त कब आएगा ?"
"जब जैकी, मोहन भौंसले का ब्रीफकेस ले आएगा । हरामी ने हमारा कच्चा-चिट्ठा उसमें लिखकर रख दिया है ।"
"तुम्हारा भाई तुमसे भी तेज निकला । फँसाने का पूरा इंतजाम कर गया वो ।"
"सब ठीक हो जाएगा ।"
"अगर जैकी के हाथ ब्रीफकेस न लगा तो ?"
"देखेंगे । कुछ देर तो जैकी के आने का इंतजार करना होगा ।"
"देवराज चौहान हमें मामूली-सी रकम दे रहा है और बाकी सब खुद ले रहा है । ये पाँच सौ करोड़ का... ।"
"चिंता मत कर । ये सब हमारा होने वाला है । ये सब हमारे हाथों मरेंगे ।" प्रताप ने अपना भीगता चेहरा साफ करते हुए कहा, "वो देख दो या रहे हैं । एक तो जगमोहन होगा, दूसरा शायद जैकी हो ।"
दो लोग बरसाती अंधेरे में पास आ पहुँचे ।
जगमोहन के साथ मारियो गोवानी था । तीन बड़ी एम्बुलेंस के पिछले दरवाजे खुले थे और भीतर मध्यम रोशनी में पेटियाँ चमक रही थीं ।
"ये तो कोई और ही है । जैकी नहीं है ।" ललित कालिया फुसफुसाया ।
पास आते ही मारियो गोवानी ठिठका और खुली एम्बुलेंस के बीच पड़ी पेटियों को देखकर बोला ।
"वाह, ये सब सोने से भरी हैं । पाँच सौ करोड़ का सोना । तुमने तो कमाल कर दिया देवराज चौहान ।" वो खुश था, "अभी तक एक भी पेटी को खोलकर नहीं देखा । कम-से-कम गोल्ड के दर्शन तो कर लेते ।"
"कुछ इंतजार करो ।" चंद कदमों के फासले पर खड़े देवराज चौहान ने कहा, "दर्शन भी हो जायेंगे ।"
मारियो गोवानी, देवराज चौहान के पास पहुँचा ।
"इंतजार किस बात का हो रहा है । तुमने तो कहा था कि यहीं पर बंटवारा कर देंगे । मैं भी तो अपना पंद्रह करोड़ लेने आया हूँ । काम पूरा हो चुका है और मौसम कितना खराब चल रहा है, ये तो तुम देख ही रहे हो ।"
"मोहिते कहाँ है ?"
"पता नहीं । पर वो यहाँ पहुँचने वाला है । फोन पर उससे बात हुई थी ।" मारियो गोवानी ने कहा ।
"उसने तुम्हें बम के बारे में क्या बताया था ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"अब बम की क्या बात करनी ?"
"मेरी बात का जवाब दे कि मोहिते ने तुम्हें फोन पर बम के बारे में क्या बताया था ?"
"उसने कहा मोहन भौंसले ने कोई बम बनाया है । वहाँ पर बम बनाने का सामान मिला है । इससे पहले कि वो कुछ और बताता, फोन कट गया । उसके बाद दो घण्टे बाद फोन आया तो उसने बताया कि तब मोहन भौंसले के फ्लैट पर एक पुलिस वाली मौजूद थी । उसी ने उसे बेहोश कर दिया था । परंतु होश आने पर वो नहीं दिखी ।"
"होश आने पर नहीं दिखी ?"
"नहीं । उसने यही कहा ।"
"और अब मोहिते इधर आ रहा है ।"
"हाँ !"
"वो पुलिस वाली मोहिते को ऐसे नहीं छोड़ सकती । वो उसके होश में आने और उसके पीछे जाने का प्रोग्राम तैयार करके बैठी होगी कि वो होश में आते ही अपने साथियों के पास जाएगा ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा, "और अब मोहिते इधर आ रहा है तो वो जरूर उसके पीछे होगी ।"
ये सुनकर मारियो गोवानी हक्का-बक्का रह गया ।
"ये तो तुमने ठीक कहा ।"
"मोहिते को तुम अभी फोन करो कि वो इधर न आए । वो पुलिस वाली अकेली नहीं होगी । हो सकता है उसके साथ और भी पुलिस वाले हों । तुम्हें ये मामूली-सी बात समझ में नहीं आई ।"
"नहीं आई ।" मारियो गोवानी ने जल्दी-से फोन निकाला और नम्बर मिलाते बोला, "बरसात में फोन भी गीला हो गया है ।"
"मोहिते से कहो कि इस तरफ आ आये ।"
मारियो गोवानी में बार-बार फोन ट्राई किया ।
"मोहिते का फोन नहीं लग रहा ।"
"फोन जरूर लगना चाहिए । कोशिश करो । फिर मिलाओ ।" देवराज चौहान ने दाँत भिंच गए ।
मारियो गोवानी फोन मिलाता रहा ।
ललित कालिया और प्रताप की नजरें मिलीं ।
"ये तो नई मुसीबत खड़ी हो गई ।" जगमोहन कह उठा ।
"बेवकूफ लोगों को अपने काम में शामिल क्यों करते हो ?" प्रताप गुस्से से कह उठा ।
मारियो गोवानी ने फोन मिलाना छोड़कर प्रताप को अंधेरे में कहर भरी निगाहों से देखा।
"तू मारियो को ऐसा बोला ।" मारियो गुर्राकर आगे बढ़ा कि जगमोहन ने उसे रोक लिया ।
"ये साला मुझे... ।"
"मारियो !" जगमोहन गंभीर स्वर में बोला, "मोहिते से बात करो । ये वक़्त कीमती है।"
मारियो गोवानी पुनः नम्बर मिलाने लगा ।
जगमोहन खतरनाक स्वर में प्रताप से कह उठा ।
"जुबान बन्द रखो वरना तुम्हें ये मार देगा ।"
प्रताप ने फिर कुछ नहीं कहा ।
लम्बी कोशिश के बाद मारियो गोवानी कह उठा ।
"नम्बर नहीं लग रहा है । उसका फोन बंद आ रहा है । मेरे ख्याल में चार्जिंग खत्म हो गई होगी ।"
वे सब एक-दूसरे को देखने लगे । लगातार हो रही बरसात की वजह से उन्हें ठंडक महसूस हो रही थी ।
तभी एक कदम आगे आकर रवीना कह उठी ।
"क्या पता उसके पीछे कोई भी न हो । हम यूँ ही घबरा रहे हों ।"
"कुछ भी हो सकता है ।" मारियो कह उठा, "पता नहीं मोहन भौंसले के फ्लैट पर तब क्या हुआ होगा ।"
"मैं कहता हूँ, मुझे मेरे बारह करोड़ दो कि मैं यहाँ से जाऊँ ।" काका मेहर परेशान स्वर में कह उठा, "अगर सच में उस आदमी के पीछे-पीछे यहाँ पुलिस आ गई तो मैं तो अपना पैसा लेकर यहाँ से निकल चुका होऊँगा ।"
"बारह करोड़ का सोना तुम जेब में डालकर तो ले नहीं जा सकते ।" देवराज चौहान ने कहा, "उसके लिए तुम्हें गाड़ी का इंतजाम करना होगा जिसमें काफी वक्त लगेगा । मतलब कि तब तक जो होना है वो हो ही जायेगा ।"
"हम ठिकाना बदल लेते... ।" ललित कालिया ने कहना चाहा ।
"कोई फायदा नहीं ।" देवराज चौहान पुनः बोला, "इस वक़्त पूरे मुम्बई की सड़कों पर एम्बुलेंस की तलाश हो रही होगी । पुलिस अब तक जान चुकी होगी कि हम गोल्ड को एम्बुलेंस में भरकर ले गए हैं । सड़कों पर जगह-जगह नाकेबंदी कर दी गई होगी । यहाँ से निकले नहीं कि फँस गए । इस समय हमारे लिए यही सुरक्षित जगह है ।"
"अगर उसके पीछे यहाँ तक पुलिस आ गई तो ?" काका मेहर पाँव पटकने वाले ढंग से बोला ।
"कह नहीं सकता कि क्या होगा ? हमें इंतजार करना होगा । शायद सब ठीक रहे ।"
मारियो गोवानी की निगाह हर तरफ घूमी और कह उठा ।
"यहाँ दो लोग कम है । मोहन भौंसले और जैकी ? दोनों कहाँ है ?"
"मोहन भौंसले को उसके भाई ने शूट कर दिया, एयरपोर्ट पर ही ।" जगमोहन बोला ।
मारियो गोवानी की निगाह प्रताप की तरफ उठी ।
"ऐसा क्यों किया इसने ?" मारियो ने पूछा ।
"प्रताप और सोनिया का चक्कर है । ये पहले से ही मोहन को रास्ते से हटाने का इरादा बनाये हुए थे ।" जगमोहन ने कहा ।
"तुम्हें ये बात पहले से पता थी ?"
"अब पता चली, इसके मुँह से ।"
"परंतु डकैती के दौरान इन लोगों को पास में हथियार रखने की मनाही थी ।"
"तब भी प्रताप ने पास में रिवॉल्वर रखी ।"
"तो ये अभी तक जिंदा क्यों है, साले को... ।"
"इसके दस करोड़, पाँच करोड़ में बदल दिया गया है । इसका पाँच करोड़ बाँट दिया जाएगा ।"
"मतलब मोहन भौंसले की लाश एयरपोर्ट पर ही कहीं पड़ी है ?"
"हाँ !"
"और जैकी, वो कहाँ... ।"
"इनकी हरकतों से मोहन भौंसले वाकिफ था । शायद उसे पता था कि ऐसा कुछ होने वाला है । उसने डकैती के बारे में सब जानकारी लिखकर, ब्रीफकेस में रखी और ब्रीफकेस एयरपोर्ट पर छोड़ दिया कि सब फँस जाए । जबकि उसका निशाना प्रताप और सोनिया रहे होंगे कि ये जरूर फँसे ।" जगमोहन गंभीर था ।
"ये बात कैसे पता चली ?"
"मोहन भौंसले ने बताया ।"
"ये तो बहुत ग़लत हो रहा है । डकैती को असफल करने की हरकतें शुरू से हो रही थीं।"
"जैकी वो ब्रीफकेस लेने गया है । प्लेन के लगेज में वो ब्रीफकेस रखा हुआ था ।"
"ये सब नहीं होना चाहिए था ।" मारियो गोवानी धीमे स्वर में कह उठा ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
"तो अब जैकी के आने का इंतजार हो रहा है ।" मारियो पुनः कह उठा ।
"हाँ !"
मारियो की निगाह खुली एम्बुलेंस की तरफ उठी ।
"मेरे ख्याल में सबको रकम के बराबर का गोल्ड देना शुरू कर देना चाहिए । इससे वक़्त बचेगा ।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा ।
"मारियो ।" देवराज चौहान कह उठा, "वो बम कहाँ है जो मोहन भौंसले ने बनाया था?"
"उसका कुछ नहीं पता ।"
"कहीं तो वो होना चाहिए ।"
"हाँ, कहीं तो वो होना चाहिए । कहीं होता तो पता चल जाता । कुछ समझ में नहीं...।"
"मोहन भौंसले ने बम प्रताप और सोनिया के लिए ही बनाया होगा । दूसरी कोई वजह नहीं है बम बनाने की ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, "अब सवाल ये है कि ये दोनों यहाँ है तो बम कहाँ है ?"
"मैं कुछ और भी सोच रहा हूँ देवराज चौहान ।"
"क्या ?" देवराज चौहान ने मारियो को देखा ।
"क्या पता मोहन भौंसले बम न बना सकता हो । या बनाने का इरादा बदल दिया हो । बम बनाने का सामान उसके कमरे में ही पड़ा रह गया । मोहिते को जो दिखा, उसने उसके हिसाब से बात कह दी कि मोहन भौंसले ने बम बनाया है ।" मारियो बोला ।
"बहुत अच्छी बात होगी, अगर ऐसा ही हुआ हो । परंतु ये सिर्फ ख्याल ही तो है । मोहिते ही बता सकता है कि बम बनाने के सामान को उसने किस हाल में पड़े देखा ।" देवराज चौहान ने बरसाती अंधेरे में मारियो को देखा ।
"देवराज चौहान ।" रवीना कह उठी, "तुम मोहन भौंसले के इस बात पर इतना ध्यान क्यों दे रहे हो कि उसने बम बनाया है या नहीं । कम-से-कम वो बम यहाँ नहीं है । हमारी डकैती का काम भी पूरा हो चुका है । इन बेकार की बातों की तरफ तुम क्यों ध्यान दे रहे हो । सोने में से सबके हिस्से दो । मौसम कितना खराब है । हम कब से भीग रहे हैं ।" देवराज चौहान ने रवीना को देखा । कहा कुछ नहीं ।
तभी देर से खामोश सोनिया कह उठी ।
"मुझे बीस करोड़ की रकम के बराबर का सोना दो । प्रताप को भी दो कि हम यहाँ से जा सकें ।"
"जब तक जैकी ब्रीफकेस नहीं ले आता । उसमें रखे कागजों को फाड़ नहीं देता, तब तक मैं यहीं रहूँगा ।" प्रताप कह उठा ।
"क्या पता, जैकी को ब्रीफकेस मिले ही नहीं ।" सोनिया बोली ।
"वो बात अलग है । पर जैकी के आने तक हमें इंतजार करना होगा ।"
"मैं भी कुछ ऐसा ही सोचता हूँ ।" ललित कालिया ने कहा ।
"पर मैं ऐसा नहीं सोचता ।" काका मेहर की आवाज तेज थी, "मैं बारह करोड़ का सोना लेकर जाना चाहता हूँ ।"
"तुम ।" देवराज चौहान ने सोनिया से कहा, "ये सोचो कि मोहन भौंसले बम कहाँ रख सकता है ?"
"मैं नहीं जानती । मैंने तो बम को देखा तक नहीं । पुलिस भी मुझसे बम के बारे में पूछ रही थी ।"
"इसका मतलब मोहिते का कहना सही है कि मोहन भौंसले ने बम बनाया है । वहाँ पर एक पुलिस वाली थी । उसने भी बम बनाने का सामान देखा होगा । तभी तो ये बात एयरपोर्ट पर मौजूद वानखेड़े तक पहुँची ।"
"वो पुलिस वाला बहुत तेज है । अभी भी वो एयरपोर्ट पर बम की तलाश कर रहा होगा । शायद उसे मिल भी गया हो ।"
इसी वक्त उन्हें दूर चमकती हेडलाइट दिखाई दी ।
सबकी निगाह उस तरफ उठी ।
"जैकी आ गया ।" प्रताप के होंठों से निकला ।
जगमोहन तेजी से उस रोशनी की तरफ बढ़ गया । जमीन पर पानी भरने लगा था । बरसात कम होने का नाम नहीं ले रही थी । हर कोई जूते से लेकर सिर तक भीगा हुआ था । हल्की ठंडक लग रही थी ।
वो हेडलाइट दूर ही रुक गई थी ।
कुछ देर बाद जगमोहन, मोहिते के साथ लौटा ।
"तुम आ गए मोहिते ?" मारियो गोवानी ने ये कहकर उसका स्वागत किया ।
"काम हो गया ?" उसकी निगाह खुली एम्बुलेंस से झाँकती पेटियों पर पड़ी ।
"तुमसे देवराज चौहान कुछ पूछना चाहता है ।" मारियो बोला ।
देवराज चौहान, मोहिते के पास पहुँचा ।
"मोहन भौंसले के फ्लैट पर तुम्हारे साथ क्या हुआ था ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
मोहिते ने बताया ।
"उसके बाद वो पुलिस वाली कहाँ चली गई ?" सब कुछ जानकर देवराज चौहान ने पूछा ।
"पता नहीं ! मेरे होश में आने पर वो मुझे कहीं नहीं दिखी ।"
"वो तुम्हें छोड़ क्यों गई ?"
"पता नहीं !"
"कहीं वो तुम्हारे पीछे तो नहीं आई ?"
मोहिते की निगाह फौरन पीछे उठी फिर देवराज चौहान को देखा ।
"तुम्हारे होश आने पर वो तुम्हें नहीं दिखी । इसका तो एक ही मतलब निकलता है वो तुम्हारे होश आने और तुम्हारे पीछे जाने का इंतजार कर रही हो । क्या तुमने इस बात का ध्यान रखा कि कोई तुम्हारे पीछे न आ रहा हो ।"
"ऐसी बुरी बरसात में मैं कैसे ध्यान रख पाता ।" मोहिते ने कहा, "ऐसा कुछ करने की मैंने कोशिश भी नहीं की । ध्यान ही नहीं रहा । पर मुझे नहीं लगता कि वो मेरे पीछे आई होगी ।"
"जब तुम्हें पता नहीं तो अपना ख्याल भी जाहिर मत करो ।" देवराज चौहान की निगाह भीगते जंगल की तरफ उठी, "मोहन भौंसले के फ्लैट के कमरे में बम बनाने का सामान तुमने देखा ?"
"हाँ !"
"सामान किस स्थिति में था । बम बनाया जाना था या बम बनाया जा चुका था ?"
"बम बनाया जा चुका था । उस सामान को देखकर साफ महसूस हो गया था कि उसे ताजा-ताजा इस्तेमाल किया गया है । पर तुम इस बात की इतनी गहरी छानबीन क्यों कर रहे हो ?"
"क्योंकि मोहन भौंसले का बनाया बम अभी तक न पुलिस को मिला है न ही हमें । जबकि वो बम कहीं तो होना ही चाहिए । परंतु हर कोई बम के बारे में अंजान है... ।"
"तो मोहन भौंसले से पूछ लो कि... ।"
"उसे उसके भाई प्रताप ने एयरपोर्ट पर ही शूट कर दिया है ।"
"कमीना ।" मोहिते की निगाह प्रताप की तरफ उठी ।
"मेरे ख्याल में तुम सबको उनका हिस्सा देना शुरू कर... ।" मारियो ने कहना चाहा कि तभी जंगल में दूर एक और कार की रोशनी चमकी । सबकी नजर उधर गई ।
"मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि ये जैकी आया है ।" प्रताप कह उठा ।
■■■
सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले टैक्सी में बैठी, मोहिते के पीछे-पीछे यहाँ आई थी । आँधी जैसी बरसात में ड्राइवर के लिए पीछा करना कठिन हो रहा था । परंतु वो लगा ही रहा पीछे । मुक्ता उसका हौसला बढ़ाती रही । जब आगे जा रही मोहिते की कार मुख्य सड़क से हटकर जंगली इलाके की तरफ जाने लगी तो मुक्ता सतर्क हो गई । उसने ड्राइवर से टैक्सी की लाइट बन्द करने को कहा । ड्राइवर ने एतराज जताया कि अंधेरे में रास्ता नहीं दिखेगा । टैक्सी चलाना कठिन हो जाएगा । पर मुक्ता ने उसे समझाया कि हेडलाइट बन्द करना क्यों जरूरी है।
मोहिते की कार की टेल लाइट के सहारे पीछा चलता रहा ।
गहरे जंगल में पहुँचकर उन्होंने मोहिते की कार को रुकते देखा तो मुक्त ने पहले ही टैक्सी रुकवा ली । नजरें काफी आगे खड़ी मोहिते की कार पर ही थीं ।
"वहाँ एक कार और भी पहले से ही खड़ी है ।" टैक्सी ड्राइवर ने बताया ।
"सिर्फ एक कार ? एम्बुलेंस वगैरह नहीं दिखी ?" मुक्ता बोली ।
"एम्बुलेंस ?" टैक्सी ड्राइवर ने मुक्ता को देखा ।
"हाँ ! वो भी कहीं होनी चाहिए । वो देखो, वो कार से बाहर निकल रहा है । सुनो, मैं उसके पीछे जा रही हूँ । तुम यहीं पर रहना । मुझे अकेली छोड़कर चले मत जाना । ये पुलिस का काम है । समझ गए ।"
"जी मैडम !"
"तुम्हें किराये के साथ इनाम भी दूँगी । अपनी टैक्सी कहीं ऐसी जगह लगा लो कि अगर पीछे से कोई और कार भी आ जाये तो तुम्हें न देख सके ।" कहकर मुक्ता लेले ने दरवाजा खोला । बाहर निकली, दरवाजा बंद करके आगे बढ़ गई । बरसात में पूरी तरह भीगने लगी । जूतों में भी पानी भरने लगा । परंतु इस वक़्त उसका ध्यान मोहिते पर था । जो कि कार से निकलकर आगे बढ़ने लगा था पैदल ही ।
हर तरफ रात का अंधेरा और झमाझम बरसात का आलम था ।
मुक्ता खुद को पेड़ और झाड़ियों की ओट में रखती, मोहिते के काफी करीब पहुँच गई। अब उसे लग रहा था कि उसका निशाना सही जगह पर बैठा है । इस आदमी का इस बुरी बरसात के मौसम इधर आने का कोई मतलब नहीं था । तब भी इधर आया है तो इसका खास मतलब ही हो सकता है । वानखेड़े ने उसे बताया था कि पाँच सौ करोड़ के सोने को चार एम्बुलेंस में ले जाया गया है । वो एम्बुलेंस इस इलाके में छिपी हो सकती है । मुक्ता को इतना तो पता ही था कि ये आदमी भी डकैती करने वालों का साथी है ।
मुक्ता, मोहिते की कार के आगे बढ़ी तो आगे खड़ी कार को देखा ।
कोई पहले से भी यहाँ आया हुआ है ।
मुक्ता का दिल ये सोचकर धड़का कि पाँच सौ करोड़ के सोने के साथ डकैती करने वाले यहाँ हो सकते हैं । वरना यहाँ इन्हें क्या काम जो इस बुरे मौसम में यहाँ आयें ।
"बरसात ने तो मेरा सारा मेकअप, मेरे बाल, सब बिगाड़ दिए ।" मुक्ता बड़बड़ा उठी, "कपड़े मेरे जिस्म में चिपक रहे हैं । कोई लफंगा देख ले तो सीटियाँ बजाने लगे । माँ हमेशा पीछे पड़ी रहती हैं कि ऐसे कपड़े न पहनूँ । माँ ने अपनी जवानी के दिनों में जाने क्या-क्या किया होगा, जो मुझे हर पल टोकती रहती हैं ।" इसी तरह बड़बड़ाती मुक्ता आगे बढ़ रही थी। अंधेरे में भी वो मोहिते का आकार देख पा रही थी जो आगे बढ़ा जा रहा था ।
एकाएक मुक्ता ठिठकी और तुरंत पास की झाड़ी की ओट में हो गई ।
उसने सामने से किसी और को भी आते देख लिया था । (वो जगमोहन था)
फिर दोनों को आगे जाते देखा तो वो पुनः पीछा करने लगी ।
जल्दी ही मुक्ता ने उन दोनों को ऐसी जगह पहुँचते देखा जहाँ और लोग भी खड़े थे । ये देखकर मुक्ता का दिल धाड़-धाड़ बजने लगा कि वहाँ चार एम्बुलेंस खड़ी हैं । तीन एम्बुलेंस का पीछे का दरवाजा खुला हुआ था और भीतर मध्यम-सी रोशनी हो रही थी और ठसाठस भरी पड़ी पेटियाँ स्पष्ट दिख रही थीं ।
पाँच सौ करोड़ का गोल्ड ?
तो यहाँ पर मौजूद है डकैती करने वाले ।
वो इत्तेफाक से ही इन तक आ पहुँची थी ।
मुक्ता लेले इस वक़्त उनसे पच्चीस कदम दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी उधर देख रही थी । उसे लगा वे बातें कर रहे हैं, परंतु बरसात में तेज शोर की वजह से कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था । सारी स्थिति मुक्ता के सामने स्पष्ट थी और वानखेड़े साहब को खबर करने का वक़्त आ चुका था । मुक्ता लेले ने जेब से फोन निकाला ।
"ये फोन भी गया । भीग गया । बीस-पच्चीस हजार का नुकसान सीधा-सीधा ।" मुक्ता बड़बड़ाई और फोन से नम्बर मिलाकर कान से लगा लिया । फोन अभी काम कर रहा था, गीला होकर भी । जल्दी ही वानखेड़े से बात हो गई ।
"सर, वो सोना लकड़ी की छोटी-छोटी पेटियों में है क्या ?"
"हाँ मुक्ता, वो... ।"
"सर, वो तीन एम्बुलेंस में पेटियाँ भरी पड़ी हैं । मैं उन्हें देख पा रही हूँ । इस वक़्त डकैती करने वाले भी यहाँ मौजूद हैं । मैं उस आदमी का पीछा करके यहाँ तक पहुँची हूँ । ये जगह कहाँ है, वो भी सुन लीजिए ।" मुक्ता लेले बताने लगी कि वो इस वक़्त कहाँ पर मौजूद है, "जल्दी आइए सर, ये लोग निकल गए तो फिर हाथ नहीं आयेंगे ।"
■■■
जगमोहन, जैकी के साथ वहाँ आ पहुँचा । जैकी के हाथ में काला ब्रीफकेस था ।
"वाह मेरे शेर !" प्रताप उसके हाथ में ब्रीफकेस को अंधेरे में महसूस करते हुए कह उठा, "तू ब्रीफकेस ले आया । साले मोहन ने तो सोचा होगा कि वो हम सब को पुलिस के हाथों फँसा देगा ।" इसके साथ ही प्रताप ब्रीफकेस लेने के लिए आगे बढ़ा ।
"रुक जाओ ।" देवराज चौहान की सख्त आवाज वहाँ गूँजी ।
प्रताप के कदम वहाँ ठिठके । उसने देवराज चौहान की तरफ देखा ।
"मैं ब्रीफकेस में रखे कागजातों को फाड़ देना... ।" प्रताप ने कहना चाहा ।
"वो भी हो जाएगा ।" देवराज चौहान जैकी के पास पहुँचा और उससे ब्रीफकेस ले लिया । चंद पल हाथों में ब्रीफकेस थामे रहा, फिर उसे जैकी को वापस थमा दिया, "इसे पकड़े रहो ।"
जैकी ने कुछ नहीं कहा ।
देवराज चौहान, प्रताप से बोला ।
"मोहन भौंसले ने तुम्हें ब्रीफकेस के बारे में क्या कहा था ?"
"यही कि डकैती के बारे में, हम सब लोगों के बारे में ब्रीफकेस में लिखकर रख दिया है । हम सबको फँसा देगा वो ।"
"ये सब उसने तुम्हारी और सोनिया की वजह से किया । जबकि उसने डकैती में अपने हिस्से का काम बखूबी से पूरा किया । वो डकैती होने तक कोई अड़चन नहीं डालना चाहता था परंतु उसे इस बात का विश्वास नहीं रहा होगा कि तुम इस तरह सीधे-सीधे उसे शूट कर दोगे । वरना वो तुम्हारा और सोनिया का कोई इंतजाम जरूर करता ।"
"अब इन बातों का क्या मतलब ?" प्रताप की आँखें सिकुड़ीं ।
"ब्रीफकेस का ही इंतजार कर रहे थे तुम ।" काका मेहर कह उठा, "वो आ गया है । अब इसका जो भी करो, परंतु मेरा हिस्सा मुझे दो कि मैं जाऊँ । अब तक तो सबके हिस्से मिल जाने चाहिए थे ।"
"पहले हमें इस बात का अंदाजा लगाना होगा कि एक पेटी में सोना कितनी कीमत का होगा । उसके हिसाब से हम सबको सोना दिया जाएगा ।" रवीना बोली, "तुम इसी तरह बंटवारा करोगे न ? हमें अपनी कही कीमत का सोना दोगे ?"
चंद पलों की खामोशी के बाद देवराज चौहान ने कहा ।
"मैं कुछ और ही सोच रहा हूँ ।" देवराज चौहान गंभीर था ।
"क्या ?" ललित कालिया बोला ।
"मैं और जगमोहन, हम दोनों अपने को इसी वक़्त, इस डकैती से अलग कर रहे हैं ।"
देवराज चौहान के शब्द किसी विस्फोट से कम नहीं थे ।
जगमोहन चिहुँक कर देवराज चौहान को देखने लगा ।
"जानते हो तुम क्या कह रहे हो देवराज चौहान ?" मारियो गोवानी के होंठों से निकला।
"क्या तुम सोने में से कुछ नहीं लोगे ?" प्रताप हैरानी से बोला ।
"ये कैसे हो सकता है कि देवराज चौहान कुछ न ले ।" रवीना कह उठी ।
"मैं सारा गोल्ड तुम लोगों को दे रहा हूँ ।" देवराज चौहान बोला, "ये तुम लोग आपस में बाँट सकते हो ।"
"ये... ये तुम क्या कह रहे हो ?" जगमोहन की जान सूखने लगी, "सारा गोल्ड इन सबको... ।"
"हाँ !"
"पर ये तो पाँच सौ करोड़ का गोल्ड है । इनको तो सौ करोड़ की रकम देनी है फिर सारा क्यों ?" जगमोहन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि देवराज चौहान क्या कर रहा है ।
"हम सबने बराबर मेहनत की है तो हिस्सा भी बराबर होना चाहिए । हम अपना हिस्सा भी इन्हें देते हैं ।"
"परंतु... ।" जगमोहन ने कहना चाहा ।
"तुम जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो ?" मारियो गोवानी गंभीर स्वर में कह उठा ।
"अच्छी तरह जानता हूँ गोवानी ।"
"नहीं तुम... ।" जगमोहन ने घबराकर कहना चाहा ।
"तुम चुप रहोगे जगमोहन और मेरी बात को मंजूर करोगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"ये तो पागलपन है कि तुम... ।"
"तुम मेरी बात से सहमत रहोगे ।" देवराज चौहान ने कहा, "और चुप रहोगे ।"
जगमोहन ने होंठ भिंच लिए । परंतु उसे लग रहा था जैसे किसी ने उसकी खुशियाँ छीन ली हों ।
"तुम सोने में से कुछ भी नहीं लोगे ।" सोनिया बोली ।
"कुछ भी नहीं ।"
"ऐसा क्यों ?"
"ये मेरी इच्छा है । तुम्हें क्यों पूछने का हक नहीं । अगर तुम नहीं लेना चाहती तो... ।"
"क्यों नहीं लेना चाहती । मैं लेना चाहती हूँ ।" सोनिया जल्दी-से कह उठी ।
"साली बहुत समझदार है ।" प्रताप हँसा, "इसकी मेरी जोड़ी खूब जमेगी ।"
"मैं तुम्हारे फैसले पर हैरान हूँ ।" मोहिते कह उठा ।
"क्या तुमने कभी पहले भी इस प्रकार हाथ आई दौलत को मर्जी से छोड़ा है ?" मारियो गोवानी ने पूछा ।
"ऐसा मैंने पहले कभी नहीं किया ।" देवराज चौहान ने कहा, "ऐसा पहली बार हो रहा है ।"
जगमोहन समझ नहीं पा रहा था कि देवराज चौहान को क्या हो गया है ?
"तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो ?" मारियो गोवानी बोला, "तुम्हारी जगह मैं होता तो ऐसा कभी नहीं करता ।"
अंधेरे में भीगते देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी और लुफ्त हो गई ।
"तुम सबको खुश होना चाहिए कि मैं इतनी बड़ी दौलत तुम सबके लिए छोड़ रहा हूँ।"
"मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि तुम सैकड़ों करोड़ लेने से पीछे क्यों हट रहे हो ?" जैकी कह उठा ।
जगमोहन, देवराज चौहान से बोला ।
"तुम जरा इधर आओ, तुमसे बात करनी... ।"
देवराज चौहान ने जगमोहन की बाँह पकड़ ली ।
जगमोहन ने अंधेरे में देवराज चौहान को देखा ।
"तुम चुप रहो ।" कहते हुए देवराज चौहान ने जगमोहन की बाँह छोड़ी और ऊँचे स्वर में कह उठा, "इसके साथ ही मैं तुम सबको, प्रताप और सोनिया को छोड़कर, सबको एक ऑफर दे रहा हूँ ।"
"हम दोनों को क्यों छोड़ रहे हो ?" प्रताप कह उठा ।
"क्योंकि तुम दोनों ने मेरी योजना के खिलाफ काम किया है । मेरी डकैती में शामिल रहने के बावजूद भी तुम और सोनिया, मोहन के खिलाफ सोच रहे थे । अपने पास हथियार रखा और मोहन को शूट भी कर दिया । सब ठीक ही चला लेकिन तुम दोनों की हरकतों की वजह से मेरा काम खराब हो सकता था । तुम दोनों ने मेरा कहना नहीं माना । तुम तीनों के बीच झगड़ा चल रहा था और मेरी डकैती में शामिल हो गए और तुम लोगों का झगड़ा जारी रहा । इसलिए मेरा ऑफर तुम दोनों के लिए नहीं है ।"
सब खामोश-से देवराज चौहान को देख रहे थे । जगमोहन परेशानी और उलझन में था कि देवराज चौहान क्या कर रहा है ?
"मैं जल्दी ही बहुत बड़ी डकैती करने जा रहा हूँ । इतनी बड़ी कि उसके सामने ये दौलत कुछ भी नहीं । उस डकैती में एक-एक के हिस्से बड़ी रकम मिलेगी । उस डकैती में वही मेरे साथ शामिल हो सकता है जो इस सोने में से अपना हिस्सा नहीं लेगा और मेरे साथ अभी चल देगा । जिसे मुझ पर भरोसा है, वो मेरी बात जरूर मानेगा ।"
"ये क्या कह रहे हो ।" जगमोहन सकपकाकर बोला ।
एकाएक चुप्पी छा गई वहाँ ।
"तुम्हारा मतलब कि पाँच सौ करोड़ का गोल्ड हम प्रताप और सोनिया के लिए छोड़ दें ?" ललित कालिया बोला ।
"मैं चाहता हूँ गोल्ड को छोड़कर मेरे साथ चल पड़ो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"देवराज चौहान ।" मारियो गोवानी गंभीर स्वर में बोला, "मेरी बात का बुरा मत मानना, पर इतना जरूर कहूँगा कि मैं नहीं जानता था कि सबसे बड़ा डकैती मास्टर इतना बड़ा पागल है । पहले तो अपनी दौलत छोड़ रहा है जो सामने पड़ी है और अब दूसरों को सलाह दे रहा है कि वो भी इतनी बड़ी दौलत को छोड़ दे । तुम सच में पागल हो ।"
देवराज चौहान खामोश खड़ा रहा ।
"मुझे तुम्हारी बात में कोई दिलचस्पी नहीं है ।" मारियो गोवानी ने कहा, "मुझे यहीं से बहुत कुछ मिल जाएगा ।"
"पर मैं देवराज चौहान के साथ हूँ ।" रवीना कह उठी, "मुझे देवराज चौहान पर भरोसा है ।"
"बात भरोसे की नहीं है ।" काका मेहर व्याकुलता से कह उठा, "बात जल्दी की है । मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है । मैं जल्दी से अपनी नई फिल्म फ़्लोर पर लाकर इंडस्ट्री वालों को दिखा देना चाहता हूँ कि काका मेहर में अभी बहुत दम है । इसी गोल्ड से मुझे जो हिस्सा मिलेगा, उससे मेरा काम बढ़िया चल जाएगा ।"
"मैं भी इसी सोने में से हिस्सा लूँगा ।" जैकी बोला ।
"मैं भी ।" ललित कालिया ने कहा ।
मोहिते चुप था । मारियो गोवानी की बात से सहमत था ।
"ठीक है ।" देवराज चौहान बोला, "हम यहाँ से जा रहे हैं । आओ रवीना ।"
रवीना आगे बढ़ी और देवराज चौहान के पास पहुँची ।
जगमोहन की हालत इस वक़्त मूर्खों की तरह हो रही थी ।
"चलो ।" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा फिर मारियो से बोला, "अपनी कार की चाबी मुझे दे दो ।"
"लेकिन मुझे भी तो कार चाहिए । मैं... ।"
"मोहिते के पास कार है । वो भी कार से आया है । तुम्हारा काम चल जाएगा ।"
मारियो गोवानी ने कार की चाबी देवराज चौहान को दे दी ।
तभी रवीना कह उठी ।
"म... मैं यहीं रहूँगी ।"
देवराज चौहान ने रवीना को देखा ।
"मैं इसी सोने से हिस्सा लूँगी ।" रवीना ने पुनः बेचैनी भरे स्वर में कहा ।
"तो तुम मेरे साथ जाने और अगली डकैती तक इंतजार करने को तैयार नहीं ?"
"मैंने हिसाब लगा लिया है । मुझे गोल्ड में से काफी बड़ा हिस्सा मिल जाएगा, जो कि मेरे लिए बहुत होगा ।"
"चलो ।" देवराज चौहान ने जगमोहन की बाँह थपथपाकर कहा ।
थका-झुँझलाया, गुस्से से भरा जगमोहन चल पड़ा ।
"मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ?" पीछे से मारियो गोवानी ने कहा ।
देवराज चौहान ने पीछे देखने की कोशिश भी नहीं की ।
दोनों पेटियों से भरी एम्बुलेंस के पास से निकले तो जगमोहन ठिठका पेटियों को देखकर फिर उसी पल आगे बढ़ा और एम्बुलेंस से एक पेटी उठाने लगा ।
"ये क्या कर रहे... ।"
"तुम चुप रहो ।" जगमोहन भड़क उठा, "इतनी बड़ी दौलत कोई इस तरफ छोड़ता है । अब मैं तुम्हारी कोई बात नहीं मानूँगा और एक पेटी साथ ले जाऊँगा ताकि जब-जब पेटी को देखूँ तो तुम्हारा बेवकूफी से भरा फैसला मुझे याद आता रहे । तुमने तो हद कर दी । इसमें से चार सौ करोड़ का सोना हमारा है जो तुम छोड़ने जा रहे हो ।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान फैल गई ।
"बहुत ज्यादा नाराज हो ।" देवराज चौहान मुस्कान भरे स्वर में कह उठा ।
"बहुत ।"
"ठीक है । एक पेटी ले लो । लेकिन यहाँ से जल्दी निकलो ।" देवराज चौहान बोला ।
"इतनी जल्दी क्या पड़ी है जो... ।"
"मैंने कहा है जल्दी निकलो ।" देवराज चौहान का स्वर कुछ सख्त हुआ ।
बाकी सब कुछ कदमों की दूरी पर खड़े इधर ही देख रहे थे ।
इन लोगों में से कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वहाँ पर कोई उनके इतने करीब है कि जो उनकी हर बात देख-सुन रहा था । वो मोना चौधरी थी जो मात्र बीस कदमों की दूरी पर एक पेड़ की तने की ओट में थी और भीगती हुई यहाँ हो रही हर एक बात को सुन-समझ रही थी ।
जगमोहन ने एक पेटी को संभाला परंतु वो भारी थी । जगमोहन ने हिम्मत नहीं हारी और किसी प्रकार उस पेटी को दोनों हाथों से उठाकर अपने सिर पर रखा और कदम उठाता बोला ।
"आओ ।"
देवराज चौहान और जगमोहन तूफानी बरसात में आगे बढ़ गए ।
"मुझे क्या पता था कि डकैती का अंजाम ये होगा कि एक पेटी सिर पर लादकर... ।"
"तुम्हें तो बहुत बुरा लग रहा होगा । पर मैं सोच रहा हूँ कि वो बम कहाँ है जो मोहन भौंसले ने बनाया था ।"
"कुएँ में गया बम ।" जगमोहन ने सिर पर रखी पेटी को दोनों हाथों से संभाले, आगे बढ़ता कह उठा, "जिसने बनाया वो मर गया । बम का कहीं नामोनिशान भी नहीं, हमारा उससे क्या मतलब । वो तो... ।"
"वो बम यहीं है ।"
"यहीं ?"
"ब्रीफकेस में ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।
"ये क्या कह रहे हो ?" जगमोहन पल भर के लिए ठिठका ।
"रुको मत ।"
जगमोहन चल पड़ा ।
"तुमने इसलिए वो पैसा छोड़ दिया कि बम फटने वाला है ?" जगमोहन बोला ।
"हाँ !"
"तुम बेवकूफ हो । तुम... ।"
"तुम भी जानते हो कि मोहन भौंसले बम बनाने में माहिर था । इन दिनों वो अपनी पत्नी सोनिया और भाई प्रताप से परेशान था । क्योंकि दोनों उसे धोखा दे रहे थे । उन दोनों को खत्म करने की खातिर ही उसने बम बनाया और ब्रीफकेस में सेट कर दिया । तभी तो उसने कहा था कि उसने डकैती का सारा हाल और सबके नाम लिखकर काले ब्रीफकेस में रख दिया है । वो जानता था कि उसके ऐसा कहने के बाद काले ब्रीफकेस को ढूँढ निकाला जाएगा और उसे खोला जाएगा । प्रताप ये काम जरूर करेगा कि उसके लिखित पुलिस के हाथ पड़ने से इस राज का खुलासा न हो जाए कि डकैती करने वाले वो लोग हैं । ऐसे में पुलिस हाथ धोकर पीछे पड़ जाएगी ।"
"ऐसी बात थी तो तुम्हें सबसे कह देना चाहिए था कि... ।"
"मैंने सबको मौका दिया कि वो बम फटने से पहले उस जगह से दूर हो जाएँ । अगली डकैती का लालच दिया परंतु सामने पड़े सोने का लालच उन पर असर दिखा गया । किसी ने मेरी बात नहीं मानी ।"
"तुम मुँह से भी बम के बारे में बता... ।"
"मैंने ऐसे करना ठीक नहीं समझा । मोहन भौंसले ज़ प्रताप और सोनिया में जो खामोश लड़ाई चल रही थी, मैं उसे उनके अंजाम तक पहुँचने देना चाहता था । प्रताप ने मोहन भौंसले को शूट कर दिया, वो मर गया । परंतु मोहन भौंसले उसके लिए जो कर गया है, वो उन्हें भुगतना होगा । अगर मोहन जिंदा होता तो तब मैं बम को न फटने देता ।"
"ले...लेकिन उसके फटने से बाकी भी मारे जायेंगे ?"
"वो सब गोल्ड के लालच में वहीं रह गए । अब उनकी किस्मत ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।
"इतनी-सी बात पर तुमने चार सौ करोड़ का गोल्ड छोड़ दिया । उन्हें वहाँ से कुछ दूर जाकर ब्रीफकेस ।खोलने को कह देते ।"
"मैं इस बात से नाराज हूँ कि प्रताप ने रिवॉल्वर पास में रखी और मोहन भौंसले को शूट किया । तब मोहन भौंसले मेरी टीम का साथी था । उसका इस तरह मारा जाना मुझे पसंद नहीं आया... ।"
"पर तुम कैसे कह सकते हो कि ब्रीफकेस में बम है । तुमने तो उसे खोलकर नहीं देखा।"
"जैकी जब ब्रीफकेस लाया तो मैंने उससे ब्रीफकेस लेकर देखा । उसमें कम-से-कम तीन किलो का वजन था । वो वजन बम का ही हो सकता है, कागजों का नहीं हो सकता । मुझे पूरा यकीन है कि उनके ब्रीफकेस खोलते ही बम फट जाएगा । मोहन भौंसले ने बम की सेटिंग ही ऐसी कर रखी होगी । और वो बम भी मोहन भौंसले ने बदले की भावना से पॉवरफुल बनाया होगा । जैसे कि ब्रीफकेस के भीतर मुझे तीन किलो का वजन महसूस हुआ । तीन किलो का बम तो आस-पास के परखच्चे उड़ा देगा ।"
"ये तो बहुत खतरनाक बात बता रहे हो तुम ।" जगमोहन अजीब-से स्वर में कह उठा, "जो भी हो मेरी ही ग़लती थी ये जो मैंने प्रताप को मोहन भौंसले के कहने पर, इस काम में शामिल कर लिया ।"
"हमारे काम में कुछ भी पता नहीं चलता कि कब मुसीबत सामने आ... ।"
"क्या पता तुम जो सोच रहे हो, ऐसा न हो । ब्रीफकेस में बम न हो ।"
"तो तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं आया कि... ।"
"यकीन है । तुम इस तरह चार सौ करोड़ का सोना नहीं छोड़ने वाले । फिर भी मेरे मन में ख्याल आया कि... ।"
"धमाके की आवाज सुनना चाहते हो ?"
जगमोहन और देवराज चौहान की नजरें मिलीं ।
"यहीं रुक जाओ ।" देवराज चौहान बोला, "धमाके की आवाज सुनाई देने में अब ज्यादा देर नहीं रही ।"
जगमोहन ने सिर से पेटी उतारकर पीछे देखा । पीछे गहरी बरसात और काले अंधेरे की चादर के अलावा कुछ भी नहीं दिखा ।
"बहुत बुरा हुआ । हमारी सारी मेहनत मिट्टी में मिल गई ।" जगमोहन ने गहरी साँस ली, "प्रताप और सोनिया के अलावा बाकी सब बिना वजह अपनी जान गँवाने वाले हैं ।"
"बिना वजह नहीं, लालच की वजह से । मैंने ये कहकर मौका दिया था कि वो इस सोने को छोड़कर मेरे साथ अगली डकैती में शामिल हो जायें । लेकिन वो अभी भी मुझे सबसे बड़ा बेवकूफ समझ रहे होंगे । उन्होंने ये न सोचा, एक बार भी नहीं सोचा कि हम चार सौ करोड़ का सोना खामखाह क्यों छोड़ रहे हैं ? आखिर कुछ तो बात होगी जो हम पीछे हट रहे हैं ।"
■■■
"ये तो मजा आ गया प्रताप ।" ललित कालिया हँसकर कह उठा, "देवराज चौहान अपना सारा हिस्सा छोड़कर चला गया है । बेवकूफ जगमोहन सिर्फ एक पेटी ले गया सोने की । हम मालामाल हो गए ।"
"चार सौ करोड़ का सोना था इसमें ।" सोनिया भी खुश थी, "उसका । वो सब हमारा हो गया ।"
"मैं बड़े बजट की फ़िल्म बनाऊँगा ।" काका मेहर नाच करता कह उठा, "एक बार फिर छा जाऊँगा बॉलीवुड में । ऐसी हिट फिल्म दूँगा कि सब देखते ही रह जायेंगे ।"
"जल्दी से सोना बाँटना शुरू करो ।" रवीना बेसब्र-सी कह उठी, "या खुशियाँ ही मनाते रहोगे ?"
"सोने के हिस्से भी जाएँगे, पहले ब्रीफकेस में से कमीने मोहन के लिखे कागज निकालकर फाड़ो ।" प्रताप कह उठा, "उसके बाद पुलिस कभी नहीं जान पाएगी कि ये डकैती किसने की ।"
"पर पुलिस सोनिया को पहचान चुकी है ।" जैकी ने कहा ।
"सोनिया को तो मैं पुलिस से ऐसा छिपा दूँगा कि पूछो मत ।" प्रताप आगे बढ़ा और सोनिया को बाँहों के घेरे में ले लिया, "क्यों मेरी परी, अब तो मौज ही मौज है ।"
"छोड़ भी । सबके सामने क्या करता है ।" सोनिया ने प्रताप को अपने से जुदा किया ।
प्रताप ठठाकर हँस पड़ा ।
मोहिते, मारियो गोवानी के पास पहुँचकर गंभीर स्वर में बोला ।
"मुझे तो देवराज चौहान पागल नहीं लगता ।"
"वो पागल नहीं है ।" मारियो गोवानी के स्वर में बेचैनी थी ।
"क्यों उसने सोना क्यों छोड़ दिया चार सौ करोड़ का ?" मोहिते की निगाह मारियो पर थी ।
"जरूर कोई बात है ।"
"क्या बात ?"
"यही नहीं समझ आ रहा कि देवराज चौहान को अचानक क्या हो... ।"
"जैकी के यहाँ आने के बाद देवराज चौहान में बदलाव आया... ।"
"जैकी । जैकी तो ब्रीफकेस लाया था । ब्रीफकेस ?" एकाएक मारियो गोवानी ने ठिठककर कहा, "ब्रीफकेस में क्या है ?"
"एक ही चीज हो सकती है जो अभी-अभी मेरे दिमाग में आई है ।"
"बोल ।"
"मोहन भौंसले का बनाया बम हो सकता है ।"
"बम ?"
"ब्रीफकेस भी तो मोहन भौंसले का है । उसने बम बनाया है तो वो कहाँ है अब तक, वो सामने क्यों नहीं... ।"
"ओह ! एयरपोर्ट पर भी पुलिस ब्रीफकेस को ही खोज रही थी । प्लेन में भी ब्रीफकेस ढूंढा जा रहा था ।" मारियो गोवानी का धीमा स्वर मोहिते के कानों में पड़ा, "मोहिते, मुझे लगता है मोहन भौंसले ने झूठ कहा कि ब्रिफकेस में कच्चा-चिट्ठा है डकैती का । उसने ब्रीफकेस में बम लगा दिया होगा । ये बात भी उसने प्रताप से कही थी कि ब्रीफकेस में उसने सब कुछ लिखकर रख दिया है । ताकि प्रताप ही ब्रीफकेस खोले, बम फटे और मारा जाए । ये बात देवराज चौहान ने भाँप ली होगी । तभी उसने यहाँ से निकल जाना ठीक समझा । ब्रीफकेस खुला नहीं कि बम फटा, सब गए ।"
"तो ये बात हमें सबसे कह देनी चाहिए ।"
"कभी नहीं ।" मारियो गोवानी धीमे स्वर में बोला, "जो मरेगा, उसका हिस्सा भी हममें बँटेगा । चुपचाप यहाँ से पीछे हट जाओ । इतना पीछे कि अगर ब्रीफकेस में बम है, वो फटे तो हमें नुकसान न हो ।"
■■■
ब्रीफकेस खोलने का समय आ गया था । प्रताप के कहने पर जैकी ने ब्रीफकेस अपनी दोनों बाँहों में रख लिया था । प्रताप उसके सामने खड़ा, ब्रीफकेस का मुँह अपनी तरफ किए उसे खोलने जा रहा था । काका मेहर, ललित कालिया, रवीना और सोनिया पास ही खड़े थे । उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि मारियो और मोहिते पास में नहीं है । सबके दिमाग में इस वक़्त सैकड़ों करोड़ का सोना नाच रहा था । वो खुश थे, बहुत खुश थे ।
ब्रीफकेस खोला प्रताप ने ।
बस, उनके लिए वही आखिरी वक्त था इस दुनिया में ।
ब्रीफकेस खुलते ही कानों को फाड़ देने वाला धमाका हुआ । कानों को फाड़ देने वाला धमाका । तेज बरसात और गहरे अंधेरे में जैसे वो धमाका कहीं गुम हो गया । सन्नाटा-सा छा गया वहाँ ।
मारियो गोवानी और मोहिते पच्चीस कदम दूर थे । धमाके से जैसे उन्हें जमीन काँपती-सी लगी थी । कान अभी तक बोल रहे थे । सू-सू की आवाज के अलावा कुछ और सुनाई नहीं दे रहा था । उनकी नजरें इधर ही, जहाँ सब मौजूद थे, टिकी हुई थीं । लम्बे पलों तक वो सुन्न-से खड़े रहे ।
"मोहिते ।" मारियो गोवानी हक्का-बक्का-सा कह उठा, "ब्रीफकेस में सच में बम था।"
"देवराज चौहान ने बहुत समझदारी से काम लिया । वो भाँप गया था कि... ।"
"देवराज चौहान से ज्यादा समझदार तो हम निकले ।" मारियो हौले-से हँसा, "बम से भी बच गए और माल भी हमारे पास है । हमें कोई नजर क्यों नहीं आ रहा । चल आ तो, देखें कौन-कौन बचा है ।"
दोनों आगे बढ़े ।
गहरा अंधेरा और तूफानी बरसात थी । वो भीगे हुए थे । पास खड़ी तीनों एम्बुलेंस के भीतर मध्यम रोशनी हो रही थी, उसमें पड़ी पेटियाँ नजर आ रही थी । वो रोशनी वैन के भीतर तक ही सीमित थीं । बाहर नहीं आ रही थीं । उस जगह के करीब पहुँचे तो बारूद की स्मेल साँसों से टकराई । ठिठककर वो आस-पास नजरें घुमाने लगे । कोई नहीं दिखा फिर उनकी निगाह जमीन पर दौड़ने लगी तो किसी का हाथ, किसी की टाँग तो किसी के सिर के अंधेरे में बिखरे होने का अहसास हुआ ।
"लगता है सबका काम हो गया ।" मोहिते कह उठा ।
"कोई है ?" मारियो गोवानी ने ऊँचे स्वर में कहा ।
जवाब में कोई आवाज नहीं आई ।
"कोई है क्या ?" मारियो गोवानी और भी ऊँचे स्वर में पुकार उठा ।
परंतु कोई आवाज नहीं सुनाई दी ।
"मोहिते ।" मारियो गोवानी का स्वर खुशी से काँप उठा, "उस साले मोहन भौंसले ने बहुत जबर्दस्त बम बनाया था, जब फटा तो आस-पास का कोई भी नहीं बचा । हमें वक़्त पर बुद्धि आ गई । हमने मैदान मार लिया मेरे यार । पाँच सौ करोड़ का सोना अब सिर्फ हमारा है। इस सारे सोने के मालिक सिर्फ हम हैं, सिर्फ हम । हमने भी क्या किस्मत पाई है । मेहनत करे देवराज चौहान और झोली हमारी भरे ।"
"हम तो राजा बन गए मारियो साहब ।" मोहिते हँसकर कह उठा ।
■■■
कानों को फाड़ देने वाला धमाका । इस बरसाती जंगल में गूँजता चला गया । देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं । कई क्षणों तक वे चुप-से खड़े रह गए ।
"तुम, तुम सही कह रहे थे ।" जगमोहन ने गहरी साँस लेकर कहा ।
"धमाके की आवाज बताती है कि ब्रीफकेस खोलते वक़्त जो भी पास में होगा वो जिंदा नहीं बच सका होगा ।"
"हमें वहाँ जाकर देखना चाहिए ।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा ।
"क्यों ?" देवराज चौहान ने अपना गीला चेहरा साफ करते हुए पूछा ।
"पता तो चले कि हमारे पीछे वहाँ क्या हो गया... ।"
"कोई जरूरत नहीं । हम वहाँ से आगे आ चुके हैं । वापस जाने का कोई मतलब नहीं उठता ।"
"लेकिन वहाँ पाँच सौ करोड़ का सोना ।"
"जिस दौलत पर खून के छींटे पड़ जाए, वो हमारे काम की नहीं रहती । पहले मोहन भौंसले मारा गया और अब ब्रीफकेस में मौजूद बम से कुछ लोग जरूर जान गँवा चुके होंगे । बहते खून में से हमने दौलत कभी नहीं उठाई ।"
जगमोहन जानता था कि देवराज चौहान अपने उसूलों से पीछे नहीं हटेगा । आज तक जैसी जिंदगी बिताता आया है, उन्हीं उसूलों पर अब भी चलेगा । ऐसे में जगमोहन ने कुछ नहीं कहा और नीचे पड़ी पेटी उठाने लगा ।
उसी पल देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं ।
सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले एकाएक उनसे आठ कदमों की दूरी पर आ खड़ी हुई थी । वो स्कर्ट और टॉप में थी । पूरी तरह भीगी हुई थी । परंतु इस वक़्त दोनों हाथ कमर पर रखे इन्हें ही देख रही थी ।
जगमोहन की निगाह मुक्ता लेले पर पड़ चुकी थी ।
"ये कौन ?" जगमोहन के होंठों से निकला ।
देवराज चौहान की आँखें अभी तक सिकुड़ीं हुई थीं । नजरें मुक्ता पर थीं ।
मुक्ता लेले ने सतर्क अंदाज में अपना गीला कार्ड निकालकर उन्हें दिखाया ।
"मैं सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले, तुम दोनों को डकैती के जुर्म में गिरफ्तार करती हूँ । यहाँ से कहीं जाने की कोशिश मत करना ।" मुक्ता के स्वर में सतर्कता भरी हुई थी ।
"तुम मोहिते के पीछे-पीछे यहाँ तक पहुँची हो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मोहिते, कौन मोहिते ?" मुक्ता लेले कह उठी ।
"वही जो तुम्हें मोहन भौंसले के फ्लैट पर मिला था । जिसे तुमने बेहोश कर... ।"
"खूब !" मुक्ता ने सिर हिलाया, "तो तुम सब जानते हो ।"
"मेरा ये अंदेशा भी सही निकला ।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर जगमोहन को देखा, "कि मोहिते का ये पीछा कर सकती है ।"
"अब तुम दोनों फँस गए हो ।" मुक्ता रोब भरे स्वर में कह उठी, "अपने हथियार जेबों से निकालकर गिरा दो ।"
जबकि मुक्ता लेले के हाथों में कोई हथियार नजर नहीं आ रहा था ।
दोनों खड़े रहे ।
"ये खामखाह बीच में कहाँ से आ गई ?" जगमोहन बोला ।
"इसने पुलिस को खबर कर दी होगी ।"
"सही समझे । मैं सीनियर इंस्पेक्टर वानखेड़े के अधीन काम करती हूँ । वानखेड़े एयरपोर्ट पर पहले से ही इस मामले से जुड़ा हुआ था । मैं काफी देर से यहाँ हूँ और तुम सबके और सोना यहाँ होने की खबर दे चुकी हूँ । अब तक पुलिस आसपास पहुँच चुकी होगी । मेरे ख्याल में अगले दस मिनट में इंस्पेक्टर वानखेड़े पुलिस के दल-बल के साथ यहाँ होंगे ।"
"सुन लो ।" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा ।
"उस ब्रीफकेस में वही बम था जिसे मोहन भौंसले ने बनाया था ?" मुक्ता ने पूछा ।
"हाँ !" देवराज चौहान बोला ।
"और तुम लोग बम फटने से पहले ही फूट लिए । मैं सब देख रही थी । अंधेरा था और बातें सुनकर काफी कुछ समझ चुकी हूँ और तुम, तुम ये पेटी कहाँ लिए जा रहे हो । शायद यही तुम्हारा इनाम है डकैती में शामिल होने का । बहुत कम इनाम मिला । एक ही पेटी देकर टरका दिया ।" मुक्ता लेले पुलिसिया स्वर में बोली ।
"सुन लिया ।" जगमोहन व्यंग्य से देवराज चौहान से बोला, "ये हमें भाड़े का टट्टू समझ रही है ।"
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"डरो मत । मैं तुम दोनों को एक मौका दे रही हूँ । पेटी यहीं छोड़ो और निकल जाओ । मैं झूठ नहीं बोल रही कि पुलिस यहाँ जल्दी-से-जल्दी पहुँचने की कोशिश कर रही है । पाँच-दस मिनट में वो यहाँ घेरा डाल चुकी होगी । तुम दोनों फँसना नहीं चाहते तो निकल लो यहाँ से । पेटी साथ नहीं ले जाने दूँगी ।"
"पेटी भी ले जाते हैं । तुम्हारी मेहरबानी होगी ।"
"मेहरबानी गई चूल्हे में । मेरे भाई की शक्ल तुमसे मिलती है इसलिए रहम खाकर तुम दोनों को जाने दे ।रही हूँ । मेरे से बातें करके तुम दोनों वक़्त खराब कर रहे हो । मेरे ख्याल में पुलिस को आने में पाँच मिनट बचे हैं । अगर यहाँ से नहीं गए तो लम्बे जेल में जाओगे । फिर बाहर तभी निकलोगे जब बूढ़े... ।"
"निकलो यहाँ से ।" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा, "ये ठीक कह रही है । वानखेड़े यहाँ पहुँचने वाला होगा ।"
"लेकिन गोल्ड की पेटी... ।" जगमोहन ने कहना चाहा ।
"फिर पेटी ।" मुक्ता लेले ने रौबदार स्वर में कहा, "खाली हाथ जाना है तो जाओ, नहीं तो अपने आपको गिरफ्तार समझो । मैं समझ रही हूँ कि तुम लोगों की औकात इतनी ही है कि तुम्हें एक ही पेटी मिले । लेकिन जाकर कोई और काम देखो । ये पेटी तुम्हारी किस्मत में नहीं है । जब तक मैं हूँ तुम... ।"
"तेरी तो... ।" जगमोहन ने भड़ककर उसपर झपटना चाहा ।
"बेवकूफी मत करो । वो पुलिस वाली है ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा ।
जगमोहन ठिठक गया ।
"हम पुलिस वालों पर न तो हाथ उठाते हैं और न ही उसने झगड़ा करते हैं ।" देवराज चौहान पुनः बोला ।
"जानता हूँ ।" जगमोहन ने कुढ़कर कहा ।
देवराज चौहान आगे बढ़ता चला गया ।
जगमोहन ने हसरत भरी निगाहों से पेटी को देखा फिर मुक्ता पर तीखी निगाह मारते हुए देवराज चौहान के पीछे आगे बढ़ता चला गया ।
मुक्ता लेले सतर्क अंदाज में खड़ी उन्हें जाते देखती रही ।
दोनों उसकी निगाहों से ओझल हो गए ।
दो मिनट के बाद उसके कानों में कार के इंजन की मध्यम-सी आवाज पड़ी तो वो समझ गई कि दोनों कार में बैठकर चले गए हैं । इसके साथ ही मुक्ता लेले अंधेरे में गीली जमीन पर तेज-तेज कदमों से गुम होती चली गई । दस मिनट बाद वो लौटी तो साथ में टैक्सी ड्राइवर था ।
"ये पेटी उठाओ । संभल के । पुलिस प्रॉपर्टी है ये । इसे टैक्सी की डिग्गी में रखो, हम जिस काम के लिए आए थे वो हो गया है । अब हमें यहाँ से जाना होगा ।" मुक्ता लेले ने जल्दी से कहा ।
"ये तो भारी है मैडम ।" टैक्सी ड्राइवर ने कहा ।
"चलो, मैं हाथ लगाती हूँ । इसे सिर पर रख लेना । चिंता मत कर, तेरे से जो काम ले रही हूँ, उसका भी भाड़ा दूँगी । तू पुलिस के बहुत काम आया है । अच्छा आदमी है तू ।" पेटी टैक्सी ड्राइवर के सिर पर रखी गई, "अब देर मत लगा । निकल ले । नहीं तो इतनी बरसात में मुझे जुकाम हो जाएगा ।
■■■
"बस-बस इधर बाजू को रोक दे । उस दरवाजे के सामने ।" मुक्ता लेले ने कहा ।
टैक्सी बाकी हेडलाइट में गली पूरी चमक रही थी । बरसात गिरती भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी । मुक्ता के कहने पर टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी उसी दरवाजे के सामने रोक दी ।
"शुक्रिया भैया । तुम भी बरसात में खुब भीग गए ।" मुक्ता लेले दरवाजा खोलते कह उठी । बाहर निकली, "वो जो डिग्गी में पेटी रखी है, उसे जरा घर के भीतर रखवा दो ।" कहने के साथ ही आगे बढ़कर, दरवाजे पर लगी कॉलबेल दबाई ।
टैक्सी ड्राइवर बाहर निकलकर डिग्गी ने पास पहुँचा और उसे खोलकर पेटी निकालने लगा ।
तभी दरवाजा खुला । भीतर से थोड़ी-सी रोशनी बाहर आई और एक औरत खड़ी दिखी ।
"आ गई तू... । इतनी बरसात में... ।" उसने तेज स्वर में कहना चाहा ।
"अभी चुप हो जा माँ । ड्यूटी से लौट रही... ।"
"ये कपड़े पहनकर तू ड्यूटी... ।"
"चुप हो जा । जो कहना है बाद में कहना... ।"
तभी माँ की निगाह टैक्सी ड्राइवर पर पड़ गई थी जो कि पेटी उठाये हुए था ।
"माँ, इसे भीतर रखवा ले ।"
"और तू ?"
"मैं भी यहीं हूँ । इसे टैक्सी का भाड़ा तो दे दूँ ।"
माँ, टैक्सी ड्राइवर को भीतर ले गई । आधे मिनट में टैक्सी ड्राइवर बाहर आ गया ।
"बता भैया, कितना भाड़ा हुआ तेरा ?"
टैक्सी ड्राइवर ने मीटर देखकर बताया ।
"ग्यारह सौ साठ रुपए । बाकी बातें अलग से... ।"
"समझ गई । समझ गई ।" मुक्ता लेले स्कर्ट की पॉकेट में हाथ डालती बोली, "तूने बहुत मेहनत की है । तू न होता तो आज मेरा काम नहीं बन पाता ।" जेब से निकाले नोटों में से भीगे हुए पाँच-पाँच सौ के चार नोट उसे दिए, "ये दो हजार है । तेरा भाड़ा और बाकी सब कुछ का भी भाड़ा । बरोबर ?"
"कुछ और... ।"
"ये ले । पाँच सौ और ले ले । तेरे को नाराज नहीं करूँगी ।"
टैक्सी ड्राइवर चला गया ।
मुक्ता दरवाजा बंद करके भीतर गई तो माँ को सोफे पर बैठी, खुद को घूरते पाया ।
पेटी सेन्टर टेबल पर रखी हुई थी ।
"क्या हाल है माँ ?" मुक्ता लेले ने आँखे नचाईं, "आज तो तेरा मूड ऑफ दिख... ।"
"तेरे को कितनी बार कहा है कि ये कपड़े मत पहना कर । पूरी भीगी हुई है । ऐसे में तेरा सब कुछ दिख रहा... ।"
"तो माँ इतनी बरसात में मुझे देखेगा ही कौन... ।"
"तेरी ड्यूटी ऑफ हो गई थी । तू सोने की तैयारी कर रही थी कि फोन आते ही कपड़े पहनकर भाग गई । अमित शाह से मिलने गई थी न तू ? तेरे को कई बार समझा चुकी हूँ । वो बड़े घर का बेटा है । उसका तेरा कोई मेल नहीं । उसका बाप शादी में पचास लाख माँगता है, हमारे पास दस लाख से ज्यादा नहीं है । अमित शाह को भूल जा और अपने बराबर के घराने के लड़के... ।"
"मैं अमित से प्यार करती... ।"
"तो उसका बाप शादी में पचास लाख क्यों माँगता है । वो तो... ।"
"परवाह मत कर ।"
"अब इन बातों को रहने दे ।" माँ ने तीखे स्वर में कहा, "मैं कोई अच्छा-सा लड़का...।"
"चिंता मत कर माँ ।" मुक्ता लेले ने मुस्कुराकर आँखें नचाईं, "अब सब ठीक हो गया है । हम अमित के बाप को पचास लाख नहीं, साठ लाख देंगे । बहुत बढ़िया मेरी शादी होगी और... ।"
"साठ लाख ? तेरा दिमाग खराब हो गया... ।"
"ये देख माँ ।" मुक्ता लेले ने आगे बढ़कर सेन्टर टेबल पर पड़ी पेटी को थपथपाया, "ये तेरे लिए लाई हूँ । सोने से भरी है ये । करोड़ों रुपए का सोना है इसमें । इतना कि... ।"
"ये तू कहाँ से लाई ?"
"एक बदमाश इसे लेकर भाग रहा था कि मैंने उसे पकड़ा । वो पेटी छोड़कर भाग गया।"
"पर तू इसे यहाँ क्यों लाई । इसे पुलिस स्टेशन... ।"
"सारी उम्र यही काम करना है । एक बार पकड़ा माल घर ले आई तो क्या हो गया ?" मुक्ता लेले ने गंभीर स्वर में कहा, "मेरी शादी हो जाएगी माँ । अमित के बाप को पचास लाख मिल जाएगा । सब कुछ ठीक हो जाएगा । मेरी जिंदगी पटरी पर आ जायेगी ।"
माँ कई पलों तक उलझी-सी मुक्ता को देखती रही फिर उठकर कमरे से बाहर गई और तुरंत ही लौट आई, हाथ में हथौड़ी थी । हथौड़ी मुक्ता की तरफ बढ़ाते हुए कहा ।
"खोल इसे ।"
मुक्ता हथौड़ी लेकर पेटी की फट्टियाँ अलग करने में लग गई ।
"ये बन्द है । तेरे को कैसे पता कि इसमें सोना है ?" माँ ने पूछा ।
"उसी भागते बदमाश ने बताया था ।"
मुक्ता ने पेटी की दो फट्टियाँ अलग कर दीं । भीतर थर्माकोल का कवर था । उसे हटाया तो भीतर दस-दस तोले के मोटे-मोटे सोने के बिस्कुट रखे चमकने लगे । माँ की आँखें फैल गईं ।
"इतना सोना ?" उसके होंठों से निकला ।
मुक्ता लेले मुस्कुरा पड़ी ।
"समझ ले ये मुझे मेरी ईमानदारी का इनाम मिला है मुझे ।" मुक्ता हँसकर बोली ।
"कैसी ईमानदारी ?" माँ के हाथ अब पेटी में सोने के बिस्कुटों से खेल रहे थे ।
"यही ईमानदारी कि मैंने आज तक बेईमानी नहीं की । मैं हमेशा ही... ।"
तभी मुक्ता लेले का मोबाइल बज उठा ।
"बरसात में इतना गीला होकर भी अभी तक मोबाइल सलामत है ।" बड़बड़ाते हुए मुक्ता ने फोन निकाला और डिस्प्ले में आया फोन नम्बर देखा तो तुरंत नम्बर को पहचाना, दूसरी तरफ से वानखेड़े था । उसने उसी पल कॉल रिसीव की और तेज-तेज स्वर में कह उठी, "सर, मैं दो बदमाशों का पीछा कर रही हूँ । वो यहाँ से भाग निकले थे । पर अभी-अभी वो मेरी नजरों से दूर हो गए हैं । मैं उन्हें नहीं पकड़ सकी । अभी भी मैं उनकी तलाश में भटकती फिर रही हूँ । शायद वो मिल जाये सर ।"
"वेलडन मुक्ता ।" इंस्पेक्टर वानखेड़े का खुशी से भरा स्वर मुक्ता लेले के कानों में पड़ा, "तुमने बहुत अच्छा काम किया है । सारा इलाका हमारा घेरे में है । हमने वहाँ दो लोगों को पकड़ा है । मारियो गोवानी और उसके साथी मोहिते को । उनसे हमें पता चला है कि वहाँ पर ब्रीफकेस में रखे बम में विस्फोट हुआ और पाँच लोग उसमें मारे गए... ।"
"यस सर, धमाके के वक़्त मैं वहीं थी । मैंने धमाका सुना था । परंतु अंधेरा होने और दूर होने की वजह से मैं ठीक से कुछ समझ नहीं पाई कि तभी दो लोगों को मैंने सोने की एक पेटी उठाए जाते देखा तो उन्हें पकड़ने के लिए पीछे लग गई फिर... ।"
"हाँ ! ये भी हमें पता लगा है कि दो लोग सोने की एक पेटी लेकर गए हैं । मारियो गोवानी ने मुझे ये बात बताई, परंतु वो कहता है कि वो उन दोनों के नाम नहीं जानता कि वो कौन थे । वो कहता है कि ये डकैती मोहन भौंसले का प्लान था । जो भी हो, एक पेटी की कोई चिंता नहीं है । हम उसे भी ढूँढने की कोशिश करेंगे । मारियो और मोहिते से सख्ती से पूछताछ करेंगे । मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी कि तुम मुझे यहाँ नहीं दिखी । तुमने बहुत अच्छा काम किया है । तुम्हारी ही वजह से सोना कुछ ही घण्टों में वापस मिल गया । डकैती करने वाले दो लोग पकड़े गए । तुम्हारी मेहनत से ही ये सब हुआ । मैं तुम्हारा नाम आगे करूँगा कि तुम्हें तरक्की मिल सके ।"
"ओह थैंक्यू, थैंक्यू सर !" मुक्ता लेले खुशी से कह उठी, "अब मेरी जरूरत न हो तो मैं घर जाऊँ सर ?"
"तुम्हारी जरूरत नहीं है । कल ऑफिस में मिलेंगे मुक्ता । इस सफलता का सेहरा तुम्हारे सिर पर रखूँगा ।"
"आपकी बात सुनकर बहुत खुशी हो रही है सर कि मैंने इतना बड़ा काम कर दिया ।" मुक्ता लेले प्रसन्नता से कह उठी ।
तब तक उधर से वानखेड़े फोन बंद कर चुका था ।
"क्या हुआ ?" माँ ने पूछा ।
"तुम्हारी बेटी की वाहवाही हो रही है ।" मुक्ता लेले सीना फुलाकर बोली, "शायद मुझे तरक्की भी मिल जाये । मैंने सरकार का पाँच सौ करोड़ का सोना ढूँढ निकाला । अब हर कोई मेरा ही नाम लेगा डिपार्टमेंट में । मैं कपड़े बदल लूँ । गीले हुए पड़े हैं । तुम कल सुबह अमित के बाप को फोन कर देना कि पचास लाख नकद ले और अमित के साथ मेरी शादी की तारीख पक्की कर दे । इस डकैती में किसी को फायदा हो या न हो, पर मुझे तो हो गया । मेरा घर बस जाएगा अब अमित के साथ ।"
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन वहीं पर, उसी जंगल में, अंधेरे में खड़ी कार में बैठे थे और कुछ दूर हो रही पुलिस की कार्यवाही का अंदाजा लगा रहे थे । बरसात अभी भी जारी थी । पुलिस की आठ कारें और एक छोटी-सी बस पुलिस वालों से भरकर वहाँ पहुँची थी । उनके पास टॉर्चें थीं और वे जंगल में फैलते चले गए थे । जंगल में हर तरफ से पुलिस वालों की आहटें उभर रही थीं । कुछ देर बाद जगमोहन कार से निकला और अंधेरे में एक तरफ बढ़ता चला गया । पच्चीस मिनट के बाद लौटा और कार में बैठता देवराज चौहान कह उठा।
"मारियो गोवानी और मोहिते जिंदा हैं । पुलिस के हाथों में पड़ चुके हैं । सारा सोना अब पुलिस के कब्जे में है ।"
देवराज चौहान ने कार स्टार्ट कर दी । हेडलाइट ऑन नहीं की ।
"अब निकलते हैं यहाँ से ।" कहते हुए देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ा दी ।
"मारियो गोवानी को पुलिस के हाथों से बचाना नहीं है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"उनके और हमारे बीच तभी डील खत्म हो गई थी जब वो हमारे साथ आने की अपेक्षा, सोने में से अपना हिस्सा पाने के लिए वहीं रह गए थे । अब हमारा उनसे कोई मतलब नहीं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"बाकी सब ।" जगमोहन ने गहरी साँस ली, "बम विस्फोट में मारे गए ।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
पाँच-छः मिनट में कार जंगल के कच्चे इलाके से निकलकर सड़क पर आ गई तो देवराज चौहान ने कार की हेडलाइट ऑन की और स्पीड बढ़ा दी । जंगल की तरफ पुलिस कारों की लाइटें चमकती नजर आ रही थीं ।
"इतनी मेहनत के बाद भी हाथ कुछ नहीं आया ।" जगमोहन ने अफसोस भरे स्वर में कहा ।
"मोहन भौंसले, प्रताप और सोनिया ने सारा खेल बिगाड़ा । वरना न तो बम विस्फोट होना था, न ही पुलिस ने आ पहुँचना था । हम सही वक्त पर वहाँ से निकल आये, नहीं तो हम भी पुलिस के हाथों में होते ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
कार तेजी से सड़क पर भागती जा रही थी । हेडलाइट की रोशनी में बरसात गिरती नजर आ रही थी । सड़क पर बहुत कम वाहन थे । कई जगह पानी भरा था । टायर और पानी की आवाजें कानों में पड़ रही थीं ।
तभी पीछे से तेज रफ्तार कार आई । उनकी कार को, उस कार ने ओवरटेक किया और इस तरह उनकी कार के आगे आकर स्पीड कम कर दी कि जैसे वो कार उनकी कार को रोकना चाहती हो ।
देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं ।
"ये कौन है ।" जगमोहन के होंठों से निकला, "हमें रोकना चाहते हैं ।"
"कम-से-कम पुलिस वाले तो नहीं हैं ।" देवराज चौहान ने अजीब-से स्वर में कहा और स्पीड कम कर दी ।
जल्दी ही वो वक़्त आया जब दोनों कारें सड़क के किनारे आगे-पीछे रुक गईं ।
आने वाली कार का दरवाजा खुला और मोना चौधरी बाहर निकली । कार की हेडलाइट में वो सिर से पाँव तक चमक उठी । वो पूरी-की-पूरी भीगी लग रही थी । उसने इस तरफ देखा ।
"मोना चौधरी ।" जगमोहन हैरानी से कह उठा ।
देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब-से भाव या गए ।
"ये हमसे क्या चाहती... ।" जगमोहन ने कहना चाहा ।
"तुम कार में ही रहो । मैं उससे बात करके आता हूँ ।" देवराज चौहान ने हेडलाइट ऑफ की और कार का दरवाजा खोला ।
"कोई पंगा है क्या ?" जगमोहन ने पूछा ।
"कुछ भी हो सकता है ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, दरवाजा बंद किया और मोना चौधरी की तरफ बढ़ गया ।
देवराज चौहान के पास आते ही मोना चौधरी कह उठी ।
"डकैती तुमने अच्छी ही की । प्लानिंग बहुत बढ़िया थी । मैंने तुम्हारे काम पर पूरी नजर रखी, क्योंकि मैं तुमसे बात करना चाहती थी देवराज चौहान, लेकिन तुम बहुत व्यस्त रहे तो मैंने तुम्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा । अब मेरे सवाल का जवाब दो । तुम जानते थे कि हीरा मेरे पास है । तुम ही जानते थे कि मैं होटल डी-वामा मारो के 122 नम्बर कमरे में ठहरी हूँ । इतनी जल्दी समरपाल चित्रा मेरे बारे में नहीं जान सकता था । उसी रात जब मैं नींद में थी तो वहाँ कोई आया, क्लोरोफॉर्म सुंघाकर मुझे बेहोश किया और हीरा ले गया । मैं ये जानना चाहती हूँ कि ये काम तुमने किया या तुम्हारे इशारे पर कोई कर गया । मेरे से झूठ मत बोलना ।" मोना चौधरी का चेहरा और आवाज शांत थी । दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे ।
गिरती बरसात दोनों को भिगो रही थी ।
"मैं गोवा अपने काम से गया था ।" देवराज चौहान बोला, "वहाँ तुम मिलीं, तुमने मेरे से अपने काम में सहायता माँगी । तुम्हारा अहसान मुझ पर था, इसलिए मैंने तुम्हारी सहायता कर दी । लेकिन इसी तरह अर्जुन भारद्वाज का भी मुझ पर अहसान था, वो उस हीरे की सुरक्षा कर रहा था । समरपाल चित्रा के साथ था । वो मुझसे कैसीनो में मिला और मेरे से उसे पता चला गया कि मैं किसी ऐसे इंसान की सहायता कर रहा हूँ, जो हीरा उड़ाने की कोशिश में है । तुम्हारी सहायता करके मैंने एक मौका तुम्हें दिया कि तुम अपना काम पूरा कर सको । उसके बाद अर्जुन भारद्वाज ने मुझसे सहायता माँगी कि हीरा वापस पाने में उसकी मदद करूँ । मुझे उसका अहसान उतारना था तो मैंने एक मौका उसे दिया और बता दिया कि हीरा कहाँ पर है ।"
"मैं जानती थी कि इस काम में तुम जरूर शामिल हो ।" मोना चौधरी कह उठी ।
"ये इत्तेफाक ही था कि एक ही वक़्त में, एक ही काम में, तुमने और अर्जुन भारद्वाज ने मुझसे सहायता माँग ली । तुम समरपाल चित्रा का हीरा पाना चाहती थी और अर्जुन भारद्वाज उस हीरे को वापस पाना चाहता था । तुम दोनों का एहसान था मुझ पर कि मैं किसी को इनकार नहीं कर... ।"
"तुमने अर्जुन भारद्वाज को मेरी खबर देकर ग़लत किया । हीरा मेरे हाथों से निकल गया ।" मोना चौधरी बोली ।
"मैंने उस वक़्त वही किया जो मुझे करना चाहिए था ।"
"मुझे कई बार लगा कि जैसे तुम ही कमरे में आए और मुझे बेहोश करके हीरा ले गए।"
"मैं इस तरह काम नहीं करता मोना चौधरी । ये धोखेबाजी होती ।"
"धोखेबाजी तो तुमने की, अर्जुन भारद्वाज को मेरी खबर देकर ।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा ।
"वो धोखेबाजी नहीं थी । वो तो संयोग था कि एक ही वक़्त में हीरे को लेकर तुम्हारी और अर्जुन भारद्वाज की सहायता करनी पड़ी ।"
"जो भी हो मुझे तुम्हारी ये हरकत पसंद नहीं आई । कभी मौका मिला तो इस बात ल हिसाब जरूर बराबर करूँगी । इस बात की मुझे खुशी जरूर है कि तुमने सच बात मुझे बता दी ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी कार में बैठी और कार को आगे बढ़ा दिया ।
देवराज चौहान, मोना चौधरी की कार को जाते देखता रहा फिर अपनी कार में आ बैठा ।
"क्या हुआ ? मोना चौधरी क्या कह रही थी ?" जगमोहन ने उलझन भरे स्वर में कहा ।
देवराज चौहान ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ाते हुए जगमोहन को गोवा वाली बात बताने लगा ।
समाप्त
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