जैसा कि शीतल अंबानी पहले ही अंदेशा जाहिर कर चुकी थी, सुबह से शाम हो गयी मगर वॉश रूम जाने की बात कहकर उनके पास से गया अनंत गोयल वापिस नहीं लौटा। और अब तो उसे पूरा-पूरा यकीन हो गया कि लौटने वाला भी नहीं था। लिहाजा अनंत की वापसी की फिक्र करने की बजाय वह इस उधेड़बुन में जुट गयी कि उसके गायब हो जाने का किस तरह से फायदा उठाया जा सकता था।

दो बजे के करीब अंबानी को ओटी से निकालकर आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया, जहाँ एक नर्स को उसकी तीमारदारी में इस हिदायत के साथ नियुक्त किया गया कि वह पेशेंट के पास से हिलने की कोशिश न करे, और ना ही किसी को उसके पास फटकने दे।

तीन बजे रिपोर्ट लिखाने गया आकाश अंबानी भी भाभी के पास वापिस लौट आया। उसने शीतल को सविस्तार सब-कुछ कह सुनाया, जिसके बाद शीतल ने इस बात पर देवर को वहीं गले लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि उसने कितने बढ़िया ढंग से मामले को हैंडल कर दिखाया था।

आकाश ने चैन की सांस ली क्योंकि उसके मन में ये अंदेशा घर किये बैठा था कि किसी ना किसी बात पर उसे शीतल के मुँह से लेक्चर जरूर सुनना पड़ेगा, क्योंकि ये हो ही नहीं सकता था कि उसने पुलिस को संभालने में कोई चूक न कर दी हो।

“जानते हो तुमने सबसे बढ़िया काम क्या किया?”

“क्या?”

“मजूमदार के बारे में चुप्पी साध गये। तमाम बातें अगर उस पुलिसिये को तुम्हारे ही मुँह से सुनने को मिल जातीं तो उसे उस अचीवमेंट का एहसास नहीं होता, जो कि इधर-उधर भटक कर पूछताछ करने के बाद महसूस करेगा।”

“मैंने भी कुछ ऐसा ही सोचा था। फिर मजूमदार के बारे में बताता तो सुमन का नाम लेना पड़ता, और सुमन का नाम लेता तो लंबा किस्सा करना पड़ता, जिसमें मुझसे कोई भूल हो सकती थी, इसलिए मैंने उसके बारे में कुछ ना बताना ही बेहतर समझा।”

“बहुत अच्छा किया बेबी, बल्कि ईनाम के लायक काम किया है।”

“वो यहाँ हासिल कर पाना तो मुमकिन नहीं होगा?”

“शटअप, यहाँ अस्पताल में भला कैसे संभव है।”

“कोई बात नहीं, मैं इंतजार कर लूंगा।”

“जिसका फल हमेशा मीठा होता है।”

सुनकर आकाश ने बड़ी मुश्किल से खुद को ठहाके लगाने से रोका।

देवर-भाभी नर्सिंग होम में बैठे मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते रहे कि अब तो डॉक्टर की तरफ से कोई गुड न्यूज उन्हें हासिल हो जाये, अब तो वह आकर कह दे- ‘ही इज नो मोर।’

मगर प्रार्थना कबूल नहीं हुई।

शाम सात बजे डॉक्टर नरेंद्र पुरी ने उन्हें आंसू बहाने को मजबूर कर देने वाली ये खबर सुनाई कि अब पेशेंट की जान को कोई खतरा नहीं था। सुनकर शीतल की सच में रूलायी फूट पड़ी।

“रो क्यों रही हैं मैडम, ये तो खुशी की बात है?” डॉक्टर ने पूछा।

“आंसू भी तो खुशी के ही हैं डॉक्टर।” कहकर उसने सवाल किया – “हम मिल सकते हैं सत्य से?”

“देख बराबर सकती हैं, मगर नजदीक पहुँचने से परहेज बरतिएगा। और मिलने लायक हालत तो अभी बिल्कुल नहीं है अंबानी साहब की। ऊपर से चेहरे का हाल तो ऐसा हुआ पड़ा है कि देखने भर से हिम्मत जवाब दे जाती है। मगर भला चंगा होने के बाद प्लॉस्टिक और कॉस्मैटिक सर्जरी के जरिये काफी हद तक खोई हुई सूरत वापिस हासिल हो जायेगी।”

“हम दूर से देखकर ही तसल्ली कर लेंगे डॉक्टर।” कहकर वह आकाश के साथ आईसीयू में दाखिल हो गयी।

सत्यप्रकाश वेंटिलेटर पर निढाल पड़ा था, और हालत बहुत हद तक वैसी ही थी, जैसा कि ओटी में नरेश चौहान ने देखा था।

एकदम दिल दहला देने वाली।

उसका चेहरा देखकर शीतल को यूँ कोफ्त महसूस हुई कि लगने लगा उल्टी कर बैठेगी, तब उसने जबरन उधर से निगाहें फेर लीं। वैसा ही हाल कुछ-कुछ आकाश का भी हुआ था। वह भी एक नजर से ज्यादा भाई की सूरत देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया अपने भीतर।

“सत्य चलने फिरने की हालत में कब तक पहुँच जायेंगे डॉक्टर साहब?”

“उसमें वक्त लगने वाला है।”

“कितना?”

“बता पाना मुश्किल है।”

“मैं समझी नहीं।”

“अंबानी साहब कोमा में है।”

“वॉट?”

“लेकिन जिस हालत में वह ऐसी स्थिति में पहुँचे हैं, उसको नजर में रखकर कहूँ तो जल्दी ही कोमा से बाहर निकल आने की पूरी-पूरी गुंजाईश है क्योंकि कम से कम कोई मानसिक आघात तो नहीं लगा है इन्हें, ब्रेन चौकस काम कर रहा है। हॉर्ट बीट्स और बीपी दोनों एकदम नॉर्मल हैं।”

“शरीर पर हमला होने से भी आदमी कोमा में चला जाता है?” शीतल ने हैरानी से पूछा।

“बिल्कुल जा सकता है। ऐसे केस मैं पहले भी कई बार देख चुका हूँ, मगर ज्यादातर यही पाया गया कि यूँ कोमा में पहुँचा आदमी जल्दी ही उससे बाहर भी निकल आता है।”

“इनके चेहरे का अभी कुछ नहीं कर सकते आप?”

“नहीं, उस बारे में जो भी होगा अंबानी साहब के पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद ही होगा। अभी किया गया वैसा कोई ऑपरेशन इन्हें नुकसान भी पहुँचा सकता है।”

“इनका हॉस्पिटल में रहना क्या जरूरी है? घर पर नहीं शिफ्ट कर सकते, जहाँ मैं इनकी बेहतर देखभाल कर पाऊंगी।”

“शिफ्ट किया जा सकता है, करेंगे भी। साथ में एक ट्रेंड नर्स का भी इंतजाम कर दूँगा, जो कि किसी डॉक्टर से कम नहीं होगी, मगर अभी नहीं। कम से कम पंद्रह दिनों तक तो आप इन्हें हमारी ऑब्जर्वेशन में रहने ही दीजिए, एंड प्लीज डोंट माइंड मैडम, एक डॉक्टर से ज्यादा अच्छी देखभाल पेशेंट की कोई नहीं कर सकता, उसकी वाइफ भी नहीं।”

“ठीक है डॉक्टर, जो आपको अच्छा लगे कीजिए, मुझे कोई ऐतराज नहीं है। बस सत्य ठीक हो जाये किसी तरह से।” कहकर वह हौले से सिसक उठी – “अचानक इतनी बड़ी विपत्ति हमारे सिर पर आ जायेगी, कभी सोचा तक नहीं होगा।”

“ईश्वर की मर्जी के सामने हम सब बौने हैं मैडम, बाकी इसे अंबानी साहब की खुशकिस्मती कहिए, जो ऐसे हाल में भी सर्वाइव कर गये। वरना फर्स्ट टाइम जब देखा था तो मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि हम इनकी जान बचाने में कामयाब हो जायेंगे।”

“तभी तो डॉक्टर को भगवान् माना जाता है, थैंक यू।”

“मोस्ट वेलकम मैम, अब आप लोग बाहर जाकर बैठिए, जल्दी ही हम इन्हें वॉर्ड में शिफ्ट कर देंगे, जहाँ आप जब चाहें आ जा सकती हैं।”

जवाब में देवर-भाभी आईसीयू से बाहर निकलकर वहीं एक बेंच पर बैठ गये।

*****

अपने घर के ड्राइंगरूम में अकेला बैठा निशांत मौर्या दोपहर से ही टीवी पर निगाहें टिकाये हुए था। सत्यप्रकाश अंबानी के मौत की खबर सुनने के लिए इतना व्याकुल था कि ऑफिस जाना भी उसने जरूरी नहीं समझा था।

वह शादीशुदा था और दो बच्चे भी थे, मगर साल के तीन सौ पैंसठ दिन बीबी अपने मायके में ही होती थी, इसलिए बच्चे भी वहीं रहते थे। अलबत्ता वह जगह मौर्या के घर से महज दस किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जब चाहता जाकर उनसे मिल आता था।

बीवी मायके में इसलिए रहती थी क्योंकि बाप बहुत पहले दुनिया से निकल गया था, जबकि माँ कई सालों से बिस्तर की मोहताज बनी हुई थी, जिसकी देख-भाल के लिए किसी अपने का घर में होना बेहद जरूरी था।

मगर मौर्या ने सिर्फ उस वजह से बीवी को वहाँ नहीं छोड़ रखा था। बल्कि इसलिए छोड़ रखा था क्योंकि उसकी सास के पास करोड़ों की संपत्ति थी, जिसको हर हाल में वह पूरा का पूरा अपने नाम हुआ देखना चाहता था, जो कि सहज ही हासिल हो जाता अगर उसकी बीवी की एक और बहन नहीं होती।

दूसरी बहन मुंबई में रहती थी, इसलिए साल में एक बार से ज्यादा मायके का फेरा नहीं लगा पाती थी। वह भी तब, जबकि बच्चों के स्कूल की छुट्टियां पड़ती थीं।

ऐसे में मौर्या को पूरी-पूरी उम्मीद थी कि बुढ़िया अपना सब-कुछ उसकी बीवी के नाम कर जायेगी, जिससे रिलेटेड पेपर्स तैयार कर के वह ना सिर्फ अपनी बीवी को सौंप चुका था, बल्कि उसे विश्वास में लेकर इस बात के लिए भी राजी कर चुका था कि मौका पाकर किसी रोज वह बुढ़िया से उन पेपर्स पर दस्तखत करा

लेगी।

ऊपर से बेहद रंगीन मिजाज शख्स था इसलिए घर का सूनापन उसे कभी नहीं अखरता था। बल्कि कई बार तो घर में ही राग-रंग की महफिल जमा लेता था। आज भी उसका यही इरादा था, बस इंतजार कर रहा था कि अंबानी के चल-चल हो जाने की खबर उसे मिल जाये, ताकि अपनी फेवरेट गर्ल को घर बुलाकर मजे कर पाता।

इंतजार करते-करते सुबह से शाम हो गयी, मगर सत्यप्रकाश अंबानी के कत्ल की खबर किसी भी न्यूज चैनल पर उसे देखने को नहीं मिली, जो कि अपने आप में बहुत हैरानी की बात थी।

आठ बजते-बजते मारे उत्कंठा के उसका बुरा हाल हो उठा। उसका हाथ बेध्यानी में ही बार-बार मोबाइल की तरफ बढ़ जाता, जिसे शीतल की कांटेक्ट न करने की चेतावनी याद आते ही वापिस खींच लेता था।

‘नहीं, फोन करना ठीक नहीं होगा।’

मगर इस बात की खबर लगना फिर भी जरूरी था कि बाकी का काम योजना के मुताबिक पूरा हुआ था या नहीं, पुलिस अंबानी के बंगले पर पहुँची थी या नहीं? अगर पहुँची थी तो केस को लेकर उनका क्या रवैया था?

‘कैसे? कैसे पता लगे?’

वह सोच में पड़ गया।

कुछ वक्त और बीता तो उसने अंबानी नर्सिंग होम का फेरा लगाने का फैसला किया। हालांकि वैसा करना भी उसे कुछ ठीक महसूस नहीं हो रहा था, मगर उत्सुकता थी, जिसने उसे मजबूर कर के रख दिया।

आखिरकार साढ़े आठ बजे के करीब उसने ड्राईवर को कार निकालने के लिए कहा, और बाहर निकलकर उसमें सवार होते हुए उसे हौजखास चलने को कह दिया, जहाँ उसका एक परिचित रहता था।

रास्ते में जब उसकी गाड़ी अंबानी नर्सिंग होम के पास पहुँचने को हुई तो उसने ड्राईवर से पेट दर्द का बहाना करते हुए कहा कि आस-पास कोई हॉस्पिटल हो तो वहाँ ले चले।

“सबसे नजदीक में तो अंबानी साहब का नर्सिंग होम ही है सर, वहीं ले चलूं?”

“कहीं भी चल यार, यहाँ जान पर बनी है और तू अस्पताल के मालिक का नाम गिना रहा है मुझे।”

“बस पहुँच ही गये समझिए।”

उसके दो मिनट बाद ड्राईवर ने हॉस्पिटल के सामने पहुँचकर गाड़ी रोक दी।

मौर्या पेट पकड़े कराहता हुआ ड्राईवर के साथ इमरजेंसी में दाखिल हुआ और वहाँ दिखाई दे रहे काउंटर की तरफ बढ़ गया।

“यस सर?” नर्स ने जानना चाहा।

“पेट में हैवी पेन हो रहा है, कुछ करो प्लीज।”

“आप उधर सोफे पर बैठ जाइए सर, मैं अभी डॉक्टर को कॉल करती हूँ।” कहकर उसने मोबाइल पर किसी का नंबर डॉयल किया और कॉल कनेक्ट होने का इंतजार करने लगी।

पांच मिनट बाद निशांत मौर्या स्ट्रेचर पर लेटा था और एक डॉक्टर उसकी तीमारदारी में जुटा हुआ था। उसने फौरी राहत के लिए उसे एक इंजेक्शन दिया और पूछकर एक प्राइवेट वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया।

डॉक्टर के जाने के थोड़ी देर बाद वह बेड पर उठ बैठा। ड्राईवर को उसने इस हिदायत के साथ वापिस लौट जाने को बोल दिया कि फोन करते ही वहाँ हाजिर हो जाये।

देखा जाये तो मौर्या खामखाह का ड्रामा कर रहा था, या यूँ कह लें कि खामखाह की सावधानी बरत रहा था। जबकि चाहता तो किसी बहाने से सीधा सत्य के घर ही पहुँच जाता और वहाँ से उस पर हुए हमले की खबर पाकर नर्सिंग होम, मगर नहीं, वह तो जैसे हर तरफ से खुद को सेफ रखना चाहता था।

बहुत सोच-विचारकर उसने बेड के बगल में लगी घंटी पुश कर दी, जिसके जवाब में थोड़ी देर बाद एक वार्ड ब्वाय उसके सामने आ खड़ा हुआ।

“यस सर।”

“ये अंबानी साहब का नर्सिंग होम है न?”

“जी हाँ, आप जानते हैं उन्हें?”

“बिल्कुल भाई, हम दोनों एक ही बिजनेस में हैं।”

वार्ड ब्वॉय खामख्वाह मुस्कराया।

“उनका आना-जाना तो यहाँ लगा ही रहता होगा, है न?”

“जी कभी कभार, लेकिन इस वक्त यहीं हॉस्पिटल में ही हैं।”

‘हॉस्पिटल में ही हैं?’ बुरी तरह चौंकते हुए उसने सोचा – ‘क्या मतलब हुआ इस बात का, क्या वह मरा नहीं अभी तक? नहीं-नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? जरूर लड़का ये कहना चाहता है कि अंबानी साहब की डेडबॉडी अभी हॉस्पिटल में ही है।’

“पक्का यहीं हैं अभी?” प्रत्यक्षतः उसने सवाल किया।

“जी सर।”

“तो मेरा एक मैसेज पहुँचा दो उन तक।”

“सॉरी सर, पॉसिबल नहीं है।”

‘ओह तो मर चुका है साला।’

“क्यों पॉसिबल नहीं है भाई?”

“आइसीयू में एडमिट हैं।”

“एडमिट हैं?” मौर्या को अपना गला सूखता सा महसूस हुआ – “क्या हो गया उन्हें?”

“मैं नहीं जानता सर, लेकिन बहुत बुरी हालत में हैं।”

“अरे बच तो जायेंगे न?”

“वो तो बच ही गया समझिए, डॉक्टर ने उनकी हालत खतरे से बाहर घोषित कर दी है। खुद सीएमओ पुरी साहब उनके इलाज में जुटे हुए हैं।”

“शुक्र है भगवान् का।” बुरी तरह हकबकाते हुए वह बोला – “ऐसे में उनके फेमिली मेंबर्स तो यहीं होंगे है न?”

“जी हाँ, अंबानी साहब की वाइफ और उनके छोटे भाई आकाश को थोड़ी देर पहले मैंने आइसीयू के बाहर बैठे देखा था, अभी भी वहीं होने चाहियें दोनों।”

“अगर ऐसा है तो मेरा एक छोटा सा काम कर के दिखाओ।”

“क्या सर?”

“मुझे उनके पास लेकर चलो। भगवान् ही जानें किसी हाल में होंगे बेचारे, थोड़ी सांत्वना तो दे पाऊंगा उन्हें।”

“सॉरी सर, मैं ऐसा नहीं कर सकता, डॉक्टर गुस्सा करेंगे। बल्कि नौकरी ही चली जायेगी मेरी।”

“अरे बात समझने की कोशिश कर भाई, ऐसे वक्त में अपनों का साथ बहुत जरूरी होता है। शीतल और आकाश दोनों बच्चे ही तो हैं, कैसे संभाल पायेंगे वे लोग खुद को? मैं चलने फिरने की हालत में होता तो खुद चला जाता, मगर अभी तुम्हें मेरी मदद करनी होगी।”

“सॉरी सर, मैं आपको वहाँ नहीं ले जा सकता।”

“कम से कम मेरा मैसेज तो पहुँचा सकते हो, या वह भी नहीं होगा तुमसे?”

पीछा छुड़ाने की गरज से वॉर्ड ब्वाय ने उस बात की फौरन हामी भर दी।

“ठीक है, आकाश को बता देना कि मैं कहाँ एडमिट हूँ, और कहना कि निशांत मौर्या साहब ने कहा है कि जब भी वक्त मिले यहाँ आकर मिल जाये मुझसे।”

“ठीक है सर।” कहकर वह गेट की तरफ बढ़ा।

“जरा रूक।”

लड़का ठिठक गया।

मौर्या ने पर्स से पांच सौ का एक नोट निकाला और उसे थमाता हुआ बोला- “ईनाम समझकर रख लेना।”

“थैंक यू सर।” कहकर वह फौरन बाहर निकल गया। पहले उसका इरादा बस वॉर्ड से टल जाने का था, मगर पांच सौ के नोट ने अब उसके कदम खुद ब खुद आईसीयू की तरफ बढ़ा दिये थे।  

मौर्या इंतजार करने लगा।

आधा घंटा बाद आकाश अंबानी उसके पास पहुँचकर एक स्टूल पर बैठ गया।

“शुक्र है तुम आ गये।”

“वो तो ठीक है मौर्या साहब, लेकिन आप यहाँ क्या कर रहे हैं?”

“पेट में बहुत भयंकर दर्द उठा था यार इसलिए यहाँ पहुँचकर एडमिट हो गया, मगर जो खबर थोड़ी देर पहले सुनकर हटा हूँ, उससे तो पूरे शरीर में ऐंठन होने लगी है, या गलत सुना है मैंने?”

“पहले पता तो चले कि सुना क्या है?”

“यही कि तुम्हारा भाई आइसीयू में है।” आगे उसका लहजा धीमा पड़ गया – “और अभी ना सिर्फ जिंदा है, बल्कि बच जाने की उम्मीद भी बराबर है।”

“ठीक सुना है।”

“इतना बड़ चमत्कार कैसे हो गया?”

“पता नहीं, खुद हमारे ही कहाँ समझ आ रहा है।”

“कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कोई बुलेट प्रूफ जैकेट वगैरह पहने रहा हो, इसलिए अनंत की चलायी गोली से बच गया?”

“अहमकों जैसी बात मत कीजिए। गोली चलने के बाद खून बहता हम सबने अपनी आँखों से देखा था, और गोली से बच भी गये तो उस छुरे का क्या जो..आप समझ रहे हैं न?”

“हाँ भई समझ रहा हूँ।”

“फिर बाद में आपके उस्तरे ने भी तो कमाल दिखाया था।”

“बावजूद इसके वह बच गया?”

“जिंदा बेशक हैं, मगर कोमा में हैं।”

“ओह कोमा में है, लेकिन बात कुछ समझ में नहीं आ रही, कैसे वह इतना कुछ झेल गया। और तुम लोगों ने अस्पताल पहुँचाने से पहले उसकी नब्ज टटोलकर क्यों नहीं देखा? देख लिया होता तो कुछ घंटे और ज्यों का त्यों पड़े रहने दिया होता, तब हमारा चाहा पूरा होकर रहना था।”

“नब्ज इसलिए नहीं चेक की क्योंकि किसी को भी उनके जिंदा होने का जरा

भी अंदेशा नहीं था। कोई मतलब ही नहीं बनता था कि चार खतरनाक हमलों के बाद घंटों बेड पर पड़े रहकर भी उनके प्राण नहीं निकलते। इतनी देर में तो आदमी हैवी ब्लीडिंग के कारण ही अपनी जान से हाथ धो बैठता है।”

“फिर भी बच गया?”

“हमारी बदकिस्मती।”

“अनंत कहाँ है?”

“भाग गया।”

“क्या मतलब है भई?” मौर्या हड़बड़ा सा गया।

“वही जो आपने सुना। जैसे ही उसे भैया की साँसें चलती हुई होने की खबर मिली, डर के मारे उसका बुरा हाल हो गया, फिर धीरे से बहाना बनाकर खिसक गया यहाँ से। उससे पहले कहकर हटा था कि कहीं दूर निकल जायेगा। ऐसी जगह, जहाँ उसे कोई तलाश न कर सके।”

मौर्या की आँखों में संदेह उतर आया- “निकल गया या निकाल दिया गया?”

“मतलब?”

“कहीं तुम दोनों देवर-भाभी ने उसका भी तो काम तमाम नहीं कर दिया?”

“कहीं आप पागल तो नहीं है?”

“यानि ऐसा नहीं हुआ है?”

“हो भी नहीं सकता था। मत भूलिए कि उसको और आपको हमने इसलिए अपने साथ मिलाया था ताकि मामले को उलझाया जा सके। नये-नये सस्पेक्ट्स परोसे जा सकें केस में। ऐसे में उसे खत्म कर के हम अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी क्यों चलाने लगे? और वैसा किया भी तो कब किया, सुबह से तो हम लोग यहाँ हॉस्पिटल में ही बने हुए हैं। हाँ बीच में एक बार मैं कुछ घंटों के लिए बाहर जरूर निकला था, मगर अकेला नहीं बल्कि उस वक्त पुलिस भी मेरे साथ थी।”

“पुलिस क्यों?”

आकाश ने बताया।

“ओह, सॉरी कि मैंने बेवजह तुम पर शक किया।”

“इट्स ओके।”

“मगर गोयल के फरार हो जाने से प्रॉब्लम तो बढ़ जायेगी हमारी।”

“बेशक बढ़ जायेगी।”

“यूँ तो न मरता हो तो भी मरेगा साला, साथ में हमारे लिए मुसीबतें खड़ी करेगा सो अलग।”

“क्या कर सकते हैं।”

“ये भी सही कहा तुमने।” वह गहरी सांस लेकर बोला – “खैर ये बताओ कि

अब आगे क्या इरादा है?”

“किस बारे में पूछ रहे हैं?”

“अपने शिकार के बारे में, उसे जिंदा तो अब नहीं रहने दे सकते न हम।”

“अभी कुछ सोचा नहीं है।”

“तो जल्दी से सोच डाल मेरे भाई। अव्वल तो शेर से पंगा लेना ही नहीं चाहिये, और ले लिया तो उसे घायल कर के छोड़ देना नादानी होती है।”

“मैं भाभी से बात करूंगा इस बारे में।”

“अच्छा करोगे। जो भी फैसला हो मुझे बताना, मैं कल भी तुम्हारे साथ था और आज भी। अनंत की तरह मैदान छोड़कर भाग निकलने वालों में से नहीं हूँ मैं, चाहे अंजाम जो भी हो।”

“मैं इंफॉर्म करूंगा आपको।” आकाश उठता हुआ बोला – “अब जाता हूँ, मेरा ज्यादा देर तक आपके साथ रहना ठीक नहीं होगा, बात कल को पुलिस तक पहुँच सकती है।”

मौर्या ने समझने वाले अंदाज में सिर हिला दिया।