रात के खाने के समय सन्नाटा रहा। सबने बड़ी ख़ामोशी से खाना ख़त्म किया और फिर काफ़ी पीने के लिए बरामदे में जा बैठे।

‘सूफ़ी।’ कर्नल डिक्सन बोला, ‘मैं कहता हूँ कि पुलिस को इसकी ख़बर ज़रूर मिलनी चाहिए!...’

‘मेरी भी यही राय है।’ बारतोश ने कहा। वह बहुत कम बोलता था।

‘मैं क्या करूँ...?’ सोफ़िया ने उकताये हुए लहजे में कहा, ‘डैड इस मामले को आम नहीं करना चाहते!...पुलिस के तो सिरे से ख़िलाफ़ हैं!...उन्होंने तो एक बार यह भी कहा था कि अगर मैं कभी अचानक ग़ायब हो जाऊँ तो तुम लोग फ़िक्रमन्द मत होना। मैं ख़तरा दूर होते ही वापस आ जाऊँगा, लेकिन पुलिस को इसकी ख़बर हरगिज़ न हो!’

इमरान ने सोफ़िया की तरफ़ प्रशंसात्मक नज़रों से देखा।

‘ज़रग़ाम हमेशा रहस्यमय रहा है!’ कर्नल डिक्सन बड़बड़ाया।

‘यहाँ सभी रहस्यमय हैं।’ इमरान ने कहा और मार्था की तरफ़ देख कर हँसने लगा।

‘मैं सच कहता हूँ कि तुम्हें अभी तक नहीं समझ सका।’ कर्नल डिक्सन ने इमरान से कहा, ‘मुझे हैरत है कि ज़रग़ाम ने तुम्हें अपना सेक्रेटरी कैसे बना रखा है। वह तो बहुत ही ग़ुस्से वाला है!’

‘मैं उन्हें कनफ़्यूशियस सुनाया करता हूँ।’ इमरान ने संजीदगी से कहा।

‘तुमने फिर उसका नाम लिया। क्या तुम मुझे चिढ़ाते हो?’ कर्नल बिफर गया।

‘नहीं अंकल!’ सोफ़िया जल्दी से बोली, ‘यह इनकी आदत है।’

‘गन्दी आदत है!’

इमरान लापरवाही से कॉफ़ी पीता रहा।

‘ये एम.एस-सी. और पी-एच.डी. हैं!’ आरिफ़ हँस कर बोला।

‘फिर तुमने बकवास शुरू की!’ अनवर ने दाँत पीस कर कहा।

‘बोलने दो, मैं बुरा नहीं मानता, कनफ़्यूशियस...अर्र...नहीं हिप!’ इमरान ने कहा और बौखलाहट की ऐक्टिंग के साथ अपना मुँह दोनों हाथों से बन्द कर लिया। मार्था और सोफ़िया हँस पड़ीं। इस बार कर्नल भी हँसने लगा। बारतोश का चेहरा बंजर-का-बंजर ही रहा। हल्की-सी मुस्कुराहट की झलक भी न दिखाई दी।

अचानक उन्होंने फाटक पर क़दमों की आवाज़ सुनी। आने वाला इधर ही आ रहा था। वह अँधेरे में आँखें फाड़ने लगे। बाग़ के आख़िरी सिरे पर काफ़ी अँधेरा था। बरामदे में लगे हुए बल्बों की रोशनी वहाँ तक नहीं पहुँचती थी। फिर आने वाले की टाँगें दिखाई देने लगीं। उसने रास्ता देखने के लिए एक छोटी-सी टॉर्च जला रखी थी। आने वाला रोशनी में आ गया। वह उन सब के लिए अजनबी ही था। एक स्वस्थ आदमी जिसने कत्थई सर्ज का सूट पहन रखा था।

‘माफ़ कीजिएगा।’ उसने बरामदे के क़रीब आ कर कहा, ‘शायद मैंने डिस्टर्ब किया। क्या कर्नल साहब तशरीफ़ रखते हैं?’

‘जी नहीं!’ सोफ़िया जल्दी से बोली, ‘तशरीफ़ लाइए।’

आने वाला एक कुर्सी पर बैठ गया। सोफ़िया बोली-

‘वो बाहर गये हैं!’

‘कब तक तशरीफ़ लायेंगे?’

‘कुछ कहा नहीं जा सकता। हो सकता है कल आ जायें। हो सकता है एक हफ़्ते के बाद!’

‘ओह...यह तो बुरा हुआ।’ अजनबी ने कहा और मौजूद लोगों पर उचटती-सी नज़रें डालीं। इमरान को देख कर एक पल उस पर नज़र जमाये रहा फिर बोला, ‘कहाँ गये हैं?’

‘अफ़सोस कि वे अपना प्रोग्राम किसी को नहीं बताते।’ सोफ़िया ने कहा, ‘आप अपना कार्ड छोड़ जाइए। आते ही उन्हें बता दिया जायेगा।’

‘बहुत जल्दी का काम है।’ अजनबी ने अफ़सोस ज़ाहिर किया।

‘आप वह काम मुझसे कह सकते हैं।’ इमरान बोला, ‘मैं कर्नल का प्राइवेट सेक्रेटरी हूँ!’

‘ओह,’ अजनबी ने आश्चर्य व्यक्त किया। फिर सँभल कर बोला, ‘तब तो ठीक है। क्या आप अलग थोड़ी-सी तकलीफ़ करेंगे?’

‘बस इतना ही-सा काम था?’ इमरान ने मूर्खों की तरह कहा, ‘लेकिन मैं अलग थोड़ी-सी तकलीफ़ का मतलब नहीं समझ सका। वह तकलीफ़ किस क़िस्म की होगी। गला तो न घोंट दिया जायेगा।’

‘ओह...मेरा मतलब है, ज़रा अलग चलेंगे!’

‘मैं अलग ही चलता हूँ। आज तक किसी से टाँग बाँध कर नहीं चला।’

‘अरे साहब! कहने का मतलब यह कि ज़रा मेरे साथ आइए!’

‘ओह, तो पहले क्यों नहीं कहा।’ इमरान उठता हुआ बोला, ‘चलिए, चलिए।’

वे दोनों उठ कर बाग़ के फाटक पर आ गये।

‘आप अली इमरान साहब हैं!’ अजनबी ने पूछा।

‘मैं कर्नल का सेक्रेटरी हूँ।’

‘सो तो ठीक है...देखिए, मेरा ताल्लुक़ गुप्तचर विभाग से है और नाम है ख़ालिद। हमें फेडरल डिपार्टमेंट के कैप्टन की तरफ़ से हिदायत मिली है कि हम आपकी हर तरह मदद करें।’

‘ओह...फ़ैयाज़! हा-हा...बड़ा ग्रेट आदमी है और यारों-का-यार है!...मुझे नहीं मालूम था कि वह इतनी-सी बात के लिए अपने महकमे के आदमियों को ख़त लिख देगा, वाह भाई!’

‘बात क्या है?’ इन्स्पेक्टर ख़ालिद ने पूछा।

‘क्या उसने...वो बात नहीं लिखी?’

‘जी नहीं...!’

‘लिखता ही क्या...बात यह है मिस्टर ख़ालिद कि मुझे बटेर खाने और बटेर लड़ाने दोनों का शौक़ है और आपके यहाँ बटेरों के शिकार पर पाबन्दी है। फ़ैयाज़ ने कहा था कि मैं इजाज़त दिला दूँगा!’

ख़ालिद कुछ पल हैरत से इमरान को देखता रहा फिर बोला, ‘आपने यह क्यों कहा था कि आप कर्नल के सेक्रेटरी हैं?’

‘फिर क्या कहता...? शायद आपको दूसरी हैसियत से एतराज़ है। बिलकुल ठीक मिस्टर ख़ालिद! बात दरअस्ल ये है कि मैं यहाँ आया था मेहमान की हैसियत से, लेकिन बाद में नौकरी मिल गयी...कर्नल ने मुझे बेहद पसन्द किया है। मैं उनके लिए दिन भर एयरगन से मक्खियाँ मारता रहता हूँ।’

‘आप मुझे टाल रहे हैं जनाब।’ ख़ालिद हँस कर बोला। फिर उसने गम्भीरता से कहा, ‘हालाँकि यह मामला बहुत अहम है।’

‘कैसा मामला?’ इमरान ने हैरत से कहा।

‘कुछ भी हो! आप बहुत गहरे आदमी मालूम होते हैं। इसका मुझे यक़ीन है कि आप कैप्टन फ़ैयाज़ के ख़ास आदमियों में से हैं। अच्छा चलिए, मैं आपसे सिर्फ़ एक सवाल करूँगा।’

‘ज़रूर कीजिए!’

‘क्या! कर्नल ने सीधे फ़ेडरेल डिपार्टमेंट से मदद माँगी थी?’

इमरान चौंक कर उसे घूरने लगा।

‘मदद? मैं नहीं समझा।’ उसने कहा।

‘देखिए जनाब!’ ख़ालिद ने कहा, ‘हो सकता है कि आप इस महकमे में बहुत दिनों से हों, लेकिन मैं अभी अनाड़ी हूँ। यक़ीनन आप मुझसे सीनियर ही होंगे। इसलिए मैं आपसे मुक़ाबला नहीं कर सकता। लिहाज़ा अब खुल कर बात कीजिए तो शुक्रगुज़ार हूँगा!’

‘अच्छा, मैं खुल कर बात करूँगा लेकिन पहले मुझे बात तो समझने दीजिए। आपके ज़ेहन में कर्नल के बारे में क्या है?’

‘कुछ नहीं! लेकिन एक बात।’ ख़ालिद कुछ सोचता हुआ बोला, ‘ठहरिए! मैं बताता हूँ। बात यह है कि आप सोनागिरी में नये आये हैं। हम लोग पिछले एक माह से एक रहस्यमय आदमी या गिरोह शिफ़्टेन की तलाश में हैं, जिसने यहाँ के दौलतमन्द लोगों को धमकी-भरे ख़त लिखे हैं। उनसे बड़ी रक़मों की माँग की है। धमकी के मुताबिक़, पैसा न देने पर उन्हें क़त्ल कर दिया जायेगा। हाँ, तो कहने का मतलब यह है कि उन सबने इसकी रिपोर्ट की है...मगर...’

‘मगर क्या?’ इमरान जल्दी से बोला।

‘हमें कर्नल ज़रग़ाम की तरफ़ से इस क़िस्म की कोई शिकायत नहीं मिली।’

‘तो आप ज़बरदस्ती शिकायत कराना चाहते हैं।’ इमरान हँस पड़ा।

‘ओह, देखिए, आप समझे नहीं। बात यह है कि आख़िर कर्नल को क्यों छोड़ा गया और अगर इसी तरह की कोई धमकी उसे मिली है तो उसने उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की?’

‘वाक़ई आप बहुत गहरे आदमी मालूम होते हैं!’ इमरान ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा। ‘अच्छा चलिए। फ़र्ज़ कीजिए कि कर्नल को भी धमकी का ख़त मिला तो क्या यह ज़रूरी है कि आपके महकमे को इसकी ख़बर दे। मुमकिन है उन्होंने उसे मज़ाक़ समझा हो। और मज़ाक़ न समझा हो तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने अलावा और किसी पर भरोसा नहीं होता।’

‘मैं सिर्फ़ इतना मालूम करना चाहता हूँ कि कर्नल को भी इस क़िस्म का कोई ख़त मिला है या नहीं?’

‘मैं भरोसे से नहीं कह सकता!’ इमरान बोला। ‘मुझे इसकी जानकारी ही नहीं!’

‘आपको कैप्टन फ़ैयाज़ ने यहाँ क्यों भेजा है?’

‘मेरी खोपड़ी के अन्दर का भेजा बीच से क्रैक हो गया है। इसलिए गर्मियों में ठण्डी हवा ही मुझे रास आती है!’

‘ओह...आप कुछ नहीं बतायेंगे...ख़ैर...अच्छा...इस तकलीफ़ का बहुत-बहुत शुक्रिया! मुझे कर्नल की वापसी का ही इन्तज़ार करना पड़ेगा।’

‘वैसे हम फिर भी मिलते रहेंगे!’ इमरान ने हाथ बढ़ाते हुए कहा।

‘ओह...ज़रूर...ज़रूर!’ ख़ालिद ने कहा और हाथ मिला कर विदा हो गया।

इमरान फिर बरामदे में लौट आया। यहाँ सब लोग बैचैनी से उसकी वापसी का इन्तज़ार कर रहे थे।

‘कौन था?’ सोफ़िया ने पूछा।

‘गुप्तचर विभाग का इन्स्पेक्टर ख़ालिद।’

‘क्या?’ कर्नल डिक्सन ने आचर्य व्यक्त किया।

‘क्या बात थी?’ सोफ़िया ने अधीर हो कर पूछा।

इस पर इमरान ने पूरी बात दुहरा दी...वे सब हैरत से उसकी तरफ़ देख रहे थे।

उसने सोफ़िया से पूछा, ‘क्या कर्नल को शिफ़्टेन की तरफ़ से कभी कोई ख़त मिला है?’

‘नहीं।’

‘यही तो मैं कह रहा था कि आख़िर उन्होंने अपने प्यारे सेक्रेटरी से उसका ज़िक्र क्यों नहीं किया?’

‘तुमने दूसरे मामले का ज़िक्र नहीं किया? कर्नल डिक्सन ने पूछा।

‘हरगिज़ नहीं! भला किस तरह कर सकता था।’

‘तुम वाक़ई क्रैक मालूम होते हो।’

‘जी हाँ...! कनफ़्यूशियस...अर्र नहीं, मेरा अपना क़ौल है कि अच्छा मुलाज़िम वही है जो मालिक के हुक्म से न एक इंच इधर जाये न एक इंच उधर!’

‘जहन्नुम में जाओ।’ कर्नल ग़ुर्रा कर बोला और वहाँ से उठ गया।