मुझे गागोली गाँव में रहते हुए आठ साल हो गए थे। मैंने इस बीच अपने काम में कई उतार-चढ़ाव देखे पर मैं सफल रहा। जब से मैंने काम शुरू किया था तब से बीस-तीस गुना तरक्की कर ली थी। अब मैं पच्चीस-छब्बीस साल का नवयुवक हो गया था। मेरे पास पाँच गाय से बढ़कर सौ गाय हो गईं। साथ में मैंने सत्ते के साथ मिलकर एक डेयरी ईढरी गाँव में भी लगाई जिस में सौ गायें थी। मैंने इस टाइम में कुछ एकड़ भूमि भी खरीदी। अब इससे आगे का प्लान भी बना लिया।

निधि के साथ प्यार के सफर में अब उतना प्यार नहीं रह गया था जितना उस समय में था। निधि मेरे पास एक साल से नहीं आई थी। वो भी महरौली से वसंत कुंज मेजाकर रहने लगी थी। पर उसका कपड़ों का शोरूम अब भी महरौली में ही था। उसकी पढ़ाई भी बंद थी। इसलिए वो अब अपने पापा का हाथ बटाने के लिए शोरूम में बैठती थी। उसके पिता अब बुजुर्ग से लगने लगे थे।

अब भी वो हर चार-पाँच घंटे में मेरे पास फोन कर देती थी। मैं अब भी उससे प्यार तो करता था, पर शादी उससे नहीं करना चाहता था। वजह था वंश। इतने साल बाद भी वंश के कहे वाक्य मुझे चुभन और दर्द दे रहे थे। निधि की बेवफाई मेरे लिए इसका कारण थी। पर मैं नहीं जानता था मेरे और निधि के रिश्ते की गहराई कितनी है। इन आठ सालों में सत्ते की भी शादी हो गई थी रघुवीर की ही तरह। पर सत्ते चाचा-चाची की तरह ही खुश नहीं था क्योंकि वो दहेज में जो गाड़ी चाहता था वो उसे नहीं मिली थी। ऐसा नहीं था कि‍ वो गाड़ी नहीं खरीद सकता था। वो तो महँगी गाड़ी इसलिए चाहता था जिससे उसका रुतबा गाँव में और दोस्तों में बढ़ सके।

अभी तो मैं गाँव में ही एक बंगला बनवा रहा था और उसी में उलझा था। ये तीन मंजिला मकान था जिसमें मैं अपने परिवार को लाना चाहता था जो मेरे खेत में ही रोड पर था। मैं चाहता तो पास के शहर गुरुग्राम या सोहना या पलवल में इस बंगले को बनवा सकता था पर काम के लिए मुझे गागुली गाँव में ही आना पड़ता। साथ में मैं इस गाँव से बहुत जुड़ा हुआ था। बंगले का काम तेजी से चल रहा था। वैसे तो काम लगभग खत्म था पर अभी इटालियन मार्बल टेल्स इंटीरियर का काम ही रह गया था। बंगले के इंटीरियर के लिए मैंने एक शहर के ही इंटीरियर डिजाइनर को पकड़ा था। 

इसी बीच मेरे पापा की रिटायरमेंट पार्टी भी थी। भाई ने सुबह–सुबह ही फोन करके बता दिया था। “भाई, सुबह ही गाँव से निकल जाना, मैं पार्टी के सारे काम नहीं देख सकता।” अमित ने कहा।

“ठीक है, पर मैं कल से पहले नहीं पहुँच सकता हूँ क्योंकि मकान का भी काम चल रहा है। लेकिन मैं देव और सोनू से तुम्हारी मदद के लिए कह देता हूँ। प्लीज मैं आज नहीं आ सकता हूँ।” और मैंने फोन काट दिया। मैंने फिर देव और सोनू को फोन करके अमित का काम बाँटने को कहा। मैं फिर मकान का जो काम चल रहा था, उसी के लिए इटालियन मार्बल लेने गुरुग्राम चला गया। आते-आते ही शाम हो गई। मैं अब थक गया था और मुझे अगले दिन महरौली भी जाना था। इसलिए मैंने रहीम को कल का काम समझाया और सोने चला गया। सुबह मुझे पता चला कि‍ एक गाय को बच्चा होने वाला है। इसलिए जानवरों के डॉक्टर को बुलाया गया। डिलीवरी आसानी से हो गई थी पर दोपहर हो गई। मैं महरौली के लिए निकल ही रहा था कि‍ तभी मकान के इन्टीरि‍यर वाले ने कुछ फीट मार्बल और लाने को कहा। इसलिए ही शाम तक मैं बिजी रहा।

रात को मैंने अमित से बिजी रहने की सारी बात बताई। अमित ने कहा, “ठीक है। देव और सोनू ने सारा काम सँभाल लिया। पर कल वक्त से आ जाना।” मैंने फोन रखा ही था कि चाची का फोन आ गया। उन्होंने कहा, “बेटा तुम जा ही रहे हो तो हमें भी साथ ले जाना, अलग से पेट्रोल नहीं लगेगा।” 

“ठीक है, पर मैं सुबह छह बजे ही चला जाऊँगा। आप सब समय पर तैयार हो जाना।” 

मैं सुबह सारे काम निपटाकर तैयार था।मेरे साथ सत्ते, चाचा-चाची और उनकी बहूँ थी। इसके अलावा रघुवीर भी गाँव से जाना था, शाम को उसे अलग से अपनी गाड़ी मेजाना था। वैसे तो मेरी गाड़ी सेवन सीटर थी पर चाची ने कहा कि गाड़ी में तो हम फँसकर ही आएँगे, जिसका मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

जैसे ही हम रोड पर पहुँचे तो चाची ने कहा, “बेटा तेरी संगत के कारण ही सत्ते इतना बदल गया है। अब तो डेयरी से चार पैसे भी कमा लेता है। नहीं तो अब तक शराब में ही डूबा रहता था।” मैंने हँसते हुए सोचा की शराब तो सत्ते अब भी पीता है। मैं कुछ और भी सोच रहा था पर चाची ने अगली बात छेड़ दी।

“सुना है बेटा तू कोई दूध का प्लांट लगाना चाहता है? बेटा इस सत्ते को भी अपनी कंपनी में हिस्सेदार बना लेना।” मैंने कोई जवाब नहीं दिया। तो चाची ने कहा, “क्या बेटा कुछ हिस्सेदारी नहीं दोगे?” 

“हाँ चाची मेरी कंपनी में सत्ते कुछ हिस्सेदार तो रहेगा ही, पर मेरे अकेले के बस की बात नहीं है। कई करोड़ का काम है। साथ मेलोन भी चाहिए होगा और रघुवीर ने भी इस प्रोजेक्ट के बारे में कुछ साफ नहीं कहा है। जैसे ही कुछ होगा इस पर काम करेंगे।” 

“क्या वो बड़े जाटों का लड़का भी इस में शामिल होगा?” 

“हाँ चाची।”

“बेटा बचकर रहना उस लड़के से, देखा नहीं कैसे उसने सत्ते को शराबी बना दिया था।” अक्सर हमारे देश में हर माॅ-बाप अपने बच्चो की गलती को औरों पर मढ़ देते है जैसे उनके बच्चे तो दूध के धुले हो।

“नहीं चाची, सत्ते तो अपने आप ही ज्यादा पीने लगा था। उसकी गलती को औरों पर ना थोपो। और फिर इतने बड़े काम के लिए कोई तो पार्टनर होना चाहिए जो धंधे में पैसे लगा सके। ये काम बच्चों का नहीं है।” 

“कहते तो तुम सही हो, जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे पर इल्जाम नहीं लगाना चाहिए।” 

मैंने फिर कुछ नहीं कहा। तभी चाची ने फिर कहा, “राघव, तुम्हारे लिए मेरे पास एक रिश्ता आया है। अगर तुम हाँ कर दो तो आगे बात करें।” 

“नहीं चाची, मैं अभी तीन-चार साल शादी नहीं करना चाहता हूँ।” 

सत्ते ने बात में घुसते हुए कहा, “भाई की भाईली है, ये उनसे ही शादी करेंगे।” चाची ने मुँह पिचकाते हुए कहा 

“हाँ शहर में तो भाईली होती ही है पर भाईली भी कोई अच्छे खानदान की होती है सोचकर ही शादी करना उससे। मैंने भी देखा है उसे बड़े ही फैशन में रहती है। क्या तुम्हारे लिए खाना बनाएगी?” सत्ते फिर से बात में घुसा, “भाई को ये सब अपनी बीवी से कराने की क्या जरूरत है?” सत्ते की बात काटते हुए चाची ने कहा, “जिस लड़की का तुम्हारे लिए रिश्ता आया है, वो लोग एक करोड़ शादी मेलगाएँगे।” सुन कर मेरा पारा बढ गया मैं शादी करके बिकना नहीं चाहता था मैं दहेज के लिए शादी तो हरगिज नहीं कर सकता था। 

“वो बात नहीं चाची, मैं सच में अभी शादी नहीं करना चाहता हूँ। और इस बात को यहीं खत्म कर दो।” 

“तुम चुप नहीं रह सकती हो? सारे रास्ते टर्र-टर्र करती आ रही हो!” चाचा ने चाची को धमकाते हुए कहा। ये बात उनकी बहूँ भी सुन रही थी जिसकी अब उल्टियाँ लग रही थी तो वो खिड़की से उल्टियाँ करने लगी। मैंने सत्ते से कहा, “कोई गुड न्यूज है क्या जो इन्हें उल्टियाँ लग रही हैं।” और मैं हँसने लगा। 

“नहीं भाई, ममता को डीजल की गाड़ि‍यों में उल्टियाँ लग ही जाती हैं।” 

“अगर उल्टि‍याँ नहीं रुक रही हैं तो आप ममता को आगे बैठा सकती हैं।” मैंने चाची को कहा।

“नहीं बेटा, होने दो इसे उल्टि‍याँ। आगे बैठने से क्या रुक जाएगी इसकी उल्टियाँ?” 

“हाँ चाची, आगे बैठने से रुक जाती हैं उल्टियाँ।” पर चाची राजी नहीं हुईं। “गाँव में अपने जेठ के इतने पास कोई बहूँ नहीं बैठती है।” कहकर चाची ने पल्ला झाड़ लिया। 

जब तक हम महरौली पहुँचे चाची की चपड़-चपड़ चलती रही। महरौली में गाड़ी मेरे घर तक नहीं पहुँच सकती थी, इसलिए मैंने गाड़ी स्थानीय पार्किंग मेलगाई और चाचा-चाची के परिवार के साथ मैं घर की तरफ चल दिया। रास्ते में बाजार भी पड़ता था। मैं ये सब कई साल बाद देख रहा था। मेरी नजर एक दुकान पर पड़ी। उसमें बैठा आदमी मुझे जाना-पहचाना लगा। सोचता रहा ये कौन है। वो आदमी सर से गंजा था, पेट भी निकला हुआ था। मैं फिर आगे बढ़ गया। मैंने देखा निधि का शोरूम बंद पड़ा था। सोचा निधि तो ब्यूटी पार्लर में तैयार हो रही होगी पर उसके पापा को तो शोरूम में होना चाहिए। सोचते-सोचते मैं घर पहुँच गया।

घर पहुँचा तो वहाँ अव्यवस्था फैली थी। सभी लोग पापा के दफ्तर पहुँचने के लिए तैयार हो रहे थे। निधि भी वहीं कुर्सी पर बैठी थी और मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी। पापा ने आज कोट-पैंट पहने थे जो उन पर जँच रहे थे। पर मम्मी तैयार नहीं हो रही थी। 

“क्या मम्मी आप पापा के ऑफिस नहीं जाएँगी?” मैंने मम्मी से कहा। 

“नहीं बेटा, तुम सब लोग जाओ। यहाँ मेहमानों को भी देखना है।” 

“मम्मी मैं देख लेता हूँ मेहमानों को, आप जरूर जाइए।” 

तभी पीछे से किसी ने कहा, “आप जरूर जाएँ, ये सब आप राघव पर छोड़ दें।” ये निधि के पापा थे जो मम्मी से कह रहे थे। 

काफी ना-नुकर के बाद मम्मी जाने को तैयार हो गई और मैं सोचने लगा निधि के पापा मेरे पापा के साथ उनके ऑफिस जा रहे हैं। मैंने उन दोनों के बीच कभी बातें भी नहीं होती देखी थी पर वे यहाँ आए और काम भी सँभाल रखा था। वैसे तो निधि के पापा जब तक कोई उनके स्टैंडर का ना हो तो वो उससे बात भी नहीं करते थे। उनका आना बड़ा अजीब था। 

“क्या निधि, तुम भी पापा के ऑफिस जाओगी?” मैंने ऐसे ही पूछ लिया जिस पर निधि ने कहा, “तुम्हें क्यों जलन हो रही है मैं अगर जा रही हूँ? ये तेरे पापा ही नहीं मेरे अंकल भी हैं।” निधि ने ताना मारते हुए कहा। मैंने फिर उससे कोई मजाक नहीं किया। 

मैं फिर मेहमानों को चाय-पानी पूछने लगा। उसके बाद जहाँ पार्टी होनी थी वहाँ के लिए चल दिया। ये पार्टी वसंत कुंज के कम्युनिटी सेंटर में थी। मैंने सोनू, देव और भोपले को फोन करके वहाँ बुला लिया। देव तो वहीं था। सोनू और भोपला टेंट लगवाने के काम से टेन्ट हाउस गए थे। जैसे ही मैं टेंट में पहुँचा तो देव ने मुझे गले लगा लिया। मेरी आँखों में आँसू आ गए। बहुत वक्त से हम नहीं मिले थे।

“देव और बता क्या हाल है?” मैंने आँसू पोंछते हुए पूछा। 

“कुछ खास नहीं।”

“आजकल क्या कर रहा है?” 

“एक कंपनी में काम कर रहा हूँ जो गुरुग्राम में है।” तभी भोपला और सोनू भी वहाँ आ गए। भोपला मेरे पास भागता हुआ गले मिला तो सोनू ने भी गले लग कर कहा, “यार कितने दिनों बाद मिले हो। क्या काम दोस्तों से भी जरूरी हो गया है? सुना है बहुत पैसा कमा लिया है तुमने और गाँव में बंगला बना रहा है। अमित ने बताया। सच में तरक्की तो इसे कहते हैं। लेकिन यार पैसा क्या दोस्ती खरीद सकता है?” 

“फुरसत नहीं मिलती है काम से और निधि से दूर रहने के लिए भी मैं नहीं आता हूँ यहाँ। मैंने सोनू से कहा। “मैंने अभी देखा बाजार में वहाँ वंश की दुकान नहीं थी और दुकान में अजीब-सा जाना पहचाना चेहरे का आदमी बैठा था जिसकी परचून की दुकान थी।” 

वे तीनों सुनकर हँसने लगे सभी पेट पकड़कर इतना हँसे कि‍ पूछो मत। मैंने कई बार पूछा, “भाई क्या बात है जो तुम इतना हँस रहे हो?” कई बार पूछने पर देव ने सबको चुप कराया। 

“यार वो जाना-पहचाना चेहरा वंश का था। कई साल पहले वंश के पिता की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद तीनों भाइयों की नहीं बनी तो वे अलग हो गए और तीनों अपना-अपना काम करने लगे।” 

“तो क्या वंश रणजी की टीम से बाहर हो गया?” मैंने उत्सुकता से पूछा। 

“तू पूरी बात तो सुन। वंश के हिस्से जो शोरूम आया था तीनों में से उसका काम उसने वर्करों पर छोड़ दिया। लेकिन जूतों का वो शोरूम घाटे में आ गया। लड़कों की तनख्वाह भी नहीं निकल पा रही थी। ऊपर से वंश भी खराब खेल के कारण रणजी से बाहर हो गया था वंश की गाड़ि‍याँ तक बिक गईं थी खाने तक के लाले कुछ दिन में पड़ गए थे। उसकी मर्सिडीज कार भी बिक गई। हारकर वंश ने किसी पंडित के कहने पर जूतों की दुकान की जगह पर परचून की दुकान कर ली। और उसकी शादी भी गरीब परिवार में बड़ी मुश्किल से हुई।” सुन कर मुझे झटका लगा मैं उस से इतनी नफरत तो नहीं करता था जो उसका ये हाल हो जाए। पर बातें सुन कर मुझे मजा जरूर आया।

“क्या उसने निधि से शादी के लिए नहीं कहा?” 

“निधि के पापा के पास उसने अपने भाई के जरिये रिश्ता भेजा पर निधि के पापा ने रिश्ता यह कहकर ठुकरा दिया की लड़का पसंद नहीं है। शायद इसका कारण यह था कि‍ वंश बहुत बदनाम था और निधि भी उससे शादी नहीं करना चाहती थी। उसकी शादी भी बड़ी मुश्किल से हुई थी। निधि जैसी भी है, वो तेरे से प्यार करती है।” भोपले ने कहा, जिसका मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

“पर वंश तोंदू और गंजा कैसे हो गया?” यह सुनकर सबने ठहाका लगाया। शाम तक हम काम के साथ हँसते रहे तो कभी हम स्कूल की बात करते रहे और इतने साल ना मिलने का गम बाँटते रहे। शाम को अमित का फोन आया। उसने कहा कि पापा आ रहे हैं। वो रोड से भीड़ के साथ आएँगे तुम सब भी चले आना। पापा के साथ ऑफिस के लोग भी होंगे।

ऑफिस के लोग ऑफिस की पार्टी के बाद यहाँ आ रहे थे। सभी लोग पापा की गाड़ी के आगे नाच रहे थे। वे कुछ टाइम बाद टेंट में पहुँचे। जैसे ही वे पार्टी में आए वे शराब पर टूट पड़े। गुप्ता अंकल भी पापा के साथ ही थे। निधि भी अमित के साथ बीयर पी रही थी एक गाड़ी में। महरौली के स्थानीय एम.एल.ए. भी पार्टी में आए थे। रघुवीर भी आया था और उसने पापा को फूलों की माला पहनाई।

हम चारों दोस्तों ने रात बारह बजे तक किसी ने शराब पी तो किसी ने बीयर पी।

सत्ते भी रघुवीर के साथ शराब पीने लगा। पर मैंने बीयर या शराब नहीं ली।

रात को जब पार्टी समाप्ति‍ पर थी तो मेरे चाचा मेरे पास आए और कहा, “शहर के लोग कैसे खुले में शराब पी लेते हैं पर हमारे गाँव में अगर कोई ऐसे शराब पिए तो हमारे बुजुर्ग हाय-तौबा मचा देते हैं।” मैंने इस बात पर सिर्फ हाँ कहा।

“जानते हो, जो रिश्ता तुम्हारे लिए आया है, बड़े ही पैसे वाले लोग हैं। अगर तुम अपने बिजनेस में पैसा लगाना चाहते हो तो वे लगा देंगे। लड़की भी बहुत खूबसूरत है। ये निधि भी क्या चीज है उसके सामने पानी भरती लगेगी। गाड़ी भी रघुवीर जैसी ही एक करोड़ की देंगे। कहो तो आगे बात चलाऊँ?” 

“नहीं चाचा, मैं शादी में दहेज नहीं चाहता हूँ और मैं अभी शादी भी नहीं करना चाहता हूँ।” पर चाचा के पास इस बात का भी तर्क था मैं नहीं जानता था वे इस शादी के लिए क्यों इतने उत्सुक थे।

“ये कोई दहेज नहीं है, वे ये सब अपनी मर्जी से दे रहे हैं। दहेज तो वो होता है जो लड़के वाले माँगें। वे तो अपनी खुशी से ये सब दे रहे हैं। तेरे जैसे आम लड़के को इससे अच्छा क्या मिलेगा? लड़की सुंदर है सुशील है बेटा, ऐसी मोटी पार्टी तुझे नहीं मिल सकती है। लड़की का फोटो तुम्हें मोबाइल में दिखाते हैं।” और चाचा जेब से मोबाइल निकालने लगे। 

“चाचा इस बारे में मेरे पापा से बात करना।” कहकर मैं वहाँ से खिसकने का बहाना ढूँढने लगा। “चाचा, अमित का फोन आ रहा है। मैं अभी आता हूँ।” कहकर मैं खिसक लिया।

देर रात शराब चलती रही। बारह बजे के बाद ही लोग अपने घर जाने लगे पार्टी से। पापा-मम्मी, चाचा-चाची, अमित, सत्ते हमारे घर लौट आए पर मैं रात को बीयर पीने लगा। इसलिए अभी तक बीयर नहीं पी थी कि कोई काम ना पड़ जाए। जैसे ही मैंने बीयर खोली वहाँ निधि भी आ गई। 

“यार अकेले-अकेले पियोगे? चलो गाड़ी में बैठकर पीते हैं।” निधि ने मुझे कहा। पर मुझे लगा वो बहुत पी चुकी थी। फिर भी मैंने उसे पीने को ना नहीं किया।

“ठीक है चलो। पर तूने तो पहले ही पी रखी है और क्या पियोगी?” हम तब तक गाड़ी में बैठ गए थे। 

अक्टूबर का महीना था। हल्की-हल्की ठंड थी। मैंने निधि से कहा, “गाड़ी का ऐसी चलाऊँ या ऐसे ही बैठना है?”

“ठंड है, ऐसे ही रहने दो।” मैंने दो गिलास में बीयर उडेल दी और चियर्स करके हम दोनों पीने लगे। निधि ने कहा, “यार राघव, हम कहीं घूमने चलते हैं जहाँ हम कुछ वक्त अकेले में बिताएँ।” मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। “कहाँ खोए हो, क्या नशा हो गया?”

“चलेंगे थोड़े समय के बाद। अभी मेरे पास फुरसत नहीं है। गाँव में मकान का काम चल रहा है।”

“एक हफ्ता काम नहीं रोक सकते?” 

“ठीक है, पर जाना कहाँ है?”

“मैं तुम्हारे साथ गोवा जाना चाहती हूँ।”

“पर हम वहाँ अकेले बोर नहीं हो जाएँगे? कहो तो सत्ते और रघुवीर से भी पूछ लेते हैं?”

“पर हम वहाँ जोड़े के रूप मेजाएँगे। वे हमारे बीच क्या करेंगे?” मैं सोचने लगा ये जोड़े का क्या मतलब है मैंने सोचा शायद प्यार करने वाले जोड़ो की तरह। 

मैंने कहा “वे भी अपनी पत्नियों के साथ जाएँगे।” 

“तो फिर ठीक है।” 

“पर तेरे घर वाले ऐसे तुम्हें मेरे साथ जाने देंगे?” 

“मैं कोई बहाना बना लूँगी।” मैं सोचने लगा हाय ये लड़कियो के बहाने किसी को भी इन के बहानो पर शक नहीं होता अगर लड़का हो तो अभीभावक यही सोचते लड़का कहीं बिगड़ तो नहीं गया पर लड़कियों की हर बात उन्हें सच लगती है।

मेरे हाथ की बीयर खत्म हो गई थी तो निधि ने बीयर का तीसरा गिलास भर दिया। मेरी आँख भारी होने लगी थी। मैंने जल्दी से बीयर का गिलास खाली किया। गाड़ी की फ्रंट सीट पर मैं आँख बंद करके लेट गया। तभी मुझे एहसास हुआ कि निधि मेरे पास अपने होंठ लाई और मेरे होंठों को चूमने लगी। रात के दो बज रहे थे। वो मेरे पास ही सो गई। सुबह चार बजे निधि ने मुझे उठाया। मैं जल्दी से उठ गया और गाड़ी से बाहर निकला। उस समय टेंट का सामान जा रहा था। निधि भी गाड़ी से बाहर आ गई। मैंने हलवाई के पास आकर देखा तो वहाँ एक बड़े भगोने में चाय बन रही थी। ये उन लोगों के लिए थी जो वहाँ काम कर रहे थे। मैंने निधि से कहा, “चाय पीनी है?”

उसने हाँ कहा तो मैंने एक वेटर से कहा, “दो कप चाय हमें भी दे देना।” फिर मैंने निधि से कहा, “बीयर की वजह से हैंग ओवर हो रहा है।” 

“मुझे भी हो रहा है।” 

तभी रघुवीर भी वहाँ आ गया। निधि ने रघुवीर से पूछा कि चाय पीनी है? तो उसने भी हाँ कर दिया। कुछ देर हम बातें करते रहे। तभी निधि ने रघुवीर से गोवा जाने के बारे में पूछा। वो फौरन मान गया। इस तरह कार्यक्रम बना दीपावली के बाद नवंबर में गोवा चलने का। सत्ते को भी मुझे जाने के लिए तैयार कर लेना था। सारी बात कर लेने के बाद रघुवीर गाँव के लिए निकल गया। मैं भी अपने घर आ गया। सुबह के छह बजे थे। मुझे गाँव भी लौटना था। 

घर पर सब लोग जाग रहे थे। मुझे पता चला कि मेरी शादी की बात की जा रही थी। चाचा पापा से कह रहे थे, “भाई साहब राघव का एक रिश्ता मेरे पास आया है बड़े ही नेक लोग हैं। खाते-पीते घर के हैं और लड़की भी सुंदर है। आप कहें तो आगे बात चलाऊँ?”

“पहले राघव से ही पूछ ले कि वो शादी करना चाहता है भी नहीं।”चाचा ने मुँह बनाते हुए कहा “बच्चों से क्या पूछना? मैंने भी तो सत्ते से पूछे बगैर ही उसका रिश्ता कर दिया था। आप जानते नहीं हैं, होडल के कितने जाने-माने लोग हैं। साथ ही लड़की का चाचा एम.एल.ए. हैं नूह से।”

“लड़की कितनी पढ़ी है?” पापा ने चाचा से पूछा।अब चाचा को सुन कर साँप सूँघ गया वे ये बात छुपाना चाहते थे पर फिर भी उन्होंने कहा

“पढ़ी तो दसवीं तक ही है पर बहूँ के रूप में देखने-दिखाने लायक है।” 

“हमारे राघव की शादी की बात कहीं और चल रही है, इस रिश्ते को आप अभी रहने दे।”

चाची ने कहा, “भाई साहब, शादी में वे अस्सी लाख की गाड़ी दे रहे हैं।” पापा को अब गुस्सा आ गया लगता था वे भी मुझे बिकता नहीं देख सकते थे वे दहेज के बिलकुल मेरी तरह ही खिलाफ थे पर उन्होंने संयम बरता। और कहा 

“बहन हमारा लड़का तो चार-पाँच करोड़ की गाड़ी पर भी हाँ नहीं करने वाला है। आप रहने दो, उस लड़की की बात किसी और घर चलाओ।” इतना सुनकर चाचा-चाची के मुँह सिल गए। मैंने भी उनसे इस बारे में बात नहीं की और गाँव जाने के लिए तैयार होने लगा। मैंने चाचा से भी तैयार होने को कह दिया।

असलियत में चाचा-चाची का इस रिश्ते को करवाने का कारण था। उन्हें बिचौलिए के तौर पर पैसे मिल रहे थे। ये बात सत्ते को भी पता नहीं थी पर पापा के ना कर देने से बात खत्म हो गई।

कुछ देर बाद मैं गाँव के लिए निकल गया। सारे रास्ते चाची चुप ही रहीं। मैं शांति से गाड़ी चलाता रहा। गाँव पहुँचकर मैं जो मकान बनवा रहा था, उसका सामान खरीदने चला गया। मैंने आकर इंटीरियर डिजाइनर से पूछा कि‍ काम में अब कितना समय लगना था और क्या मैं एक हफ्ते के लिए गोवा जा सकता था, तो उसने कहा कि कुछ सामान की खरीदारी के बाद जा सकते हो।