नागेश कदम ने अपनी रॉयल एनफ़ील्ड को ‘सिनलाइफ बार’ की पार्किंग में रोका। अपना हेलमेट रिव्यू मिरर पर टाँग कर वह बार के मेनगेट की तरफ बढ़ा। रिसेप्शनिस्ट से जब उसने गिरिजा के बारे में पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए ऑफिस की तरफ इशारा कर दिया।
दरवाजा ठेल कर वह ऑफिस में दाखिल हुआ तो गिरिजा अपनी चेयर पर बैठा हुआ छत की तरफ टकटकी लगाए हुए देख रहा था और बीयर का एक गिलास उसके सामने रखा हुआ था। नागेश के कदम ऑफिस में आने की आहट से उसकी तंद्रा भंग हुई।
“बड़ी लम्बी लाइफ जिएगा, भाऊ, तुम। मैं अभी तुम्हारे बारे में ही सोचता था कि मैं तुम्हें अभी फोन करे कि नहीं।”
“मैंने छत से एंट्री करना था क्या जो टकटकी लगाए छत की तरफ देखता था।”
“अब मुसीबत का क्या पता किधर से आ जाए। तभी मैं उधर की तरफ देखता था।” कहकर वो हो-हो करके हँसा।
“तो मैं अब मुसीबत लगता मेरे गिरिजा को। कभी मेरे सामने अपना पिछवाड़ा करके मुझसे अपनी जान की भीख माँगता था अपना चिकनी कुर्सी वाला भिड़ू।”
“अब क्यों खाली-पीली भाव खाता है, भाऊ। मेरा अक्खा जिंदगी अमानत है तेरा। लगता है आजकल बड़ी भागम-भाग चल रही है मुंबई पुलिस में, शायद इसी चक्कर में नाश्ता करने का भी टाइम नहीं मिला तुमको। खाली पेट की गर्मी दिमाग में पहुँचती हुई मालूम होती है।”
“सही कह रहा है। ये लफड़ा इतना बढ़ जाएगा, मैंने सोचा ही नहीं था।”
“कुछ खाने के लिए मँगाऊँ क्या? अगर अपने भाऊ के पास टाइम हो तो।”
नागेश ने हामी में गर्दन हिलाई। गिरिजा ने वेटर को वेज़ कबाब और जूस लाने के लिए कहा।
“मैंने एक काम दिया था तेरे को, कुछ हाथ-पैर हिलाया या इसी कुर्सी पर बैठा बस झूलता ही रहा है।” नागेश तल्खी भरे अंदाज में बोला।
“अरे भाऊ, मैं आते ही बोला था कि मैं यही मगज़मारी करता था कि तुम्हें अभी फोन करे या बाद में। मेरा पोपट मेरे को बताया कि तुम्हारा वो छोकरा राहुल तात्या बहुत दिनों से किसी बड़ी चोट की फिराक में था, मालूम!”
“फिराक में था? अरे, वो नामुराद चोट कर के गया। उसी के अगले एपिसोड में अभी एक मल्टीपीस बॉडी बांद्रा में पुलिस को मिला। ये वो नयी बात है जो तुम मेरे को बता रहे हो ?”
गिरिजा हड़बड़ाया।
“अरे भाऊ, मेरी पूरी बात तो सुनने का पहले। फिर डिसाइड करने का कि मैं कोई नयी बात बताया कि नहीं।”
“ओह! तो फिर बोल ना पूरी बात। इतना लंबा काहे खींचता है रबड़ की माफिक। चल बोल।”
आगे बोलने की जगह गिरिजा ने अपना फोन नागेश के सामने रखा। उसमे एक फोटो थी जिसमे राहुल तात्या एक शख़्स के साथ किसी जगह पर बैठा दिखाई दे रहा है। उस आदमी को देख कर नागेश की आँखें कुछ सिकुड़ गयी।
“ये तो दिलावर टकला है! भायखला का कुख्यात फिरौतीबाज और हत्यारा। रंगदारी तो इसका फेवरेट पेशा है। बहुत टाइम से गायब है यह तो।” नागेश उस पिक को देखता हुआ बोला।
“हाँ! टकला दिलावर। एक बात मैं तुमको और बताता है कि अमीन गोटी, जिसको तुमने मोहन डेयरी में टपकाया है, वो आजकल इसका खासमखास आदमी होता था। अगली फोटो में तुम्हें इसके साथ बैठा हुआ मिलेगा।” गिरिजा ने नागेश की बात पर मोहर लगाई।
“इसका मतलब तो यह हुआ कि इस अपहरण की साजिश के पीछे इस टकले का हाथ है।”
“इस तरह का काम इस दिलावर टकले का स्पेशियल्टी है। वो क्या कहते हैं कि ये हरामी आँख से काजल चुराने के माफिक अपने शिकार को गायब करता है।”
“वो तो दिखता है मेरे को। साला, यह बात तुम मुझको अब बता रहा है। इस टकले का तो अभी तक कहीं से भी कोई लिंक इस मामले में सामने नहीं आया। उस अमीन गोटी पर आकर हमारी सुई अटक गयी थी। ये तो डेढ़ श्याणा निकला। आजकल कहाँ पर मिलता है यह हरामी।”
“इसका परमानेंट ठिकाना भायखला में चंडूवाड़ी चाल के पास है। आम तौर पर वहीं पर छिप कर लोगों से मिलता है। आजकल यह आदमी अपने ठिकाने बार-बार बदल रहा है। कुछ लोग तो मार्केट में यहाँ तक सरकाते है कि बाहर नेपाल से ऑपरेट करता है आजकल।”
“ठीक है। मैं लगाता हूँ इसके पीछे अपने आदमी। ये सारी फोटो तुम मेरे पास फॉरवर्ड कर दो।”
गिरिजा ने अपना मोबाइल अपने हाथ में लिया और मैसेज फॉरवर्ड करने लगा। इतने में वेटर नाश्ता ले आया। नागेश जल्दी से उस प्लेट पर टूट पड़ा और खाते-खाते वो उन तस्वीरों को देखने लगा जो गिरिजा ने ट्रांसफर की थी। उसका हाथ उनको देखता ही तुरंत रुक गया।
एक फोटो में राहुल तात्या दिलावर टकले के साथ बैठा हुआ खीसें निपोर रहा था। अगली फोटो में उन दोनों के साथ जो इंसान उन्हें बैठा दिखाई दे रहा था उसे देख कर नागेश के मुँह से निवाला अंदर नहीं गया। वह अमीन गोटी था और साथ में दो और आदमी थे जो दिलावर के खास सिपहसालार थे। उन दोनों के नाम अबरार और ऑलिवर थे। एक और इंसान को वह पहचान नहीं पाया। वह इतनी तेजी से अपनी कुर्सी से उठा कि वो पलटते-पलटते बची। वह तुरंत दरवाजे की तरफ लपका।
“अरे भाऊ, क्या हुआ? यह नाश्ता तो लेते जाओ ?”
“फिर कभी, गिरिजा। अपने वेटर को कहना कि मेरी तरफ से तुम्हारा मुँह चूम ले।”
गिरिजा ने अपना माथा पीट लिया।
☸☸☸
ठीक साढ़े तीन घंटे के बाद मुंबई पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय के ऑफिस के फोन की घंटी बजी। शाहिद रिज़्वी उसके सामने बैठा हुआ कॉफी पी कर अपने आप को आगे की घटनाओं के लिए तरोताजा करने की कोशिश कर रहा था।
धनंजय रॉय ने अपने फोन को तुरंत पिक किया। वही पहले वाली आवाज़ फिर से गूँजी।
“हमारे तोहफ़े के बारे में अपने आला-दिमाग सरकार के नुमाइन्दों को आगाह कर दिया आपने रॉय साहब?”
“हाँ। उन तक इन्फॉर्मेशन पहुँच गयी है और तुम्हारी बातों पर विचार चल रहा है। जल्दी ही... ”
“अभी तक सिर्फ़ सलाह मशविरा ही चल रहा है, रॉय साहब। हमने आप को तीन घंटे की मोहलत दी थी। क्या आप लोगों को अपने मुल्क के बाशिंदों की जान प्यारी नहीं?”
तभी धनंजय रॉय ने फोन शाहिद रिज़्वी के हवाले कर दिया क्योंकि राजीव जयराम की सबको हिदायत थी कि उसके अलावा अब और कोई दूसरे पक्ष से बात नहीं करेगा। उस बातचीत को रिकॉर्ड करने की उस कमरे में पूरी व्यवस्था थी।
“हिंदुस्तान में तो परिंदों की जान भी बेशकीमती समझी जाती है, मेरे दोस्त, और वे लोग तो आखिर इंसान ठहरे जो तुम्हारे कब्जे में हैं।” शहीद रिज़्वी की शांत आवाज़ कमरे में गूंजी।
“वाह, नयी आवाज़। चलो, शायद हमारी बात तुम्हारे जहन में जरा जल्दी आ जाये। क्या मैं जान सकता हूँ कि मेरी सरकार में किस दर्जे के ओहदेदार से बात हो रही है।” उस आवाज़ ने पूछा।
“मैं शाहीद रिज़्वी बोल रहा हूँ। मैं तुम्हारी बात अपने आला अधिकारियों तक पूरी शिद्दत से पहुँचाऊँगा। तुम पूरी तरह से मेरा एतबार कर... ”
“रिज़्वी साहब! अच्छा आदमी चुना है हिंदुस्तानी सरकार ने। हमारी माँग कुछ ज्यादा बड़ी नहीं है। तुम लोगों ने महज एक आदमी छोड़ना है हमारा, बदले हम तुम्हारे सब आदमी छोड़ देंगे और साथ में डेढ़ हजार करोड़ रुपए तुम्हें हम तक पहुँचाने होंगे।”
“तुम लोगों की माँगे जरूर मान ली जाएँगी लेकिन एक बात तुम्हें भी माननी होगी।”
“तुम तो अपनी शर्त लगा रहे हो, रिज़्वी साहब। इस तरह से तो हम आगे बात नहीं करेंगे।”
“यह कोई कंडिशन नहीं है। मैं सिर्फ़ यह अर्ज कर रहा हूँ कि जब तक हमारी बातचीत चल रही है, किसी भी अगुवा किए गए आदमी को नुकसान न पहुँचाया जाये। वो लोग सही सलामत रहेंगे तभी तो हमारी बात आगे बढ़ेगी। अगर वही नहीं बचे तो फिर हम आगे क्या बात करेंगे।”
“ठीक है। हम अगले एक घंटे में फिर बात करते हैं। अगर मुझे तुम्हारी तरफ से कोई उम्दा जवाब नहीं मिला तो एक और तोहफ़ा तुम तक पहुँच जाएगा।”
“उस बातचीत से पहले हमें बाकी सभी आदमियों की सलामती का सबूत चाहिए, खासतौर से नीलेश पासी का। तभी हम इस बातचीत को किसी अंजाम तक पहुँचा सकते हैं।”
बिना किसी जवाब के लाइन कट गयी।
शहीद रिज़्वी ने फोन रख दिया। उसने अपने पॉकेट से सिगरेट का पैक निकाला। एक सिगरेट निकाल कर अपने होठों तक ले गया तो उसे सामने बैठे रॉय का ख्याल आया।
“आप...”
“नो। इफ यू वांट, गो अहेड।”
“ओह...” उसने उस सिगरेट को सुलगाने की जहमत नहीं की। अपना फोन निकालकर उसने राजीव जयराम को फोन लगाया।
“यस रिज़्वी। एनी अपडेट?”
“उस तरफ से अभी फोन आया था। न जाने मुझे क्यों लग रहा है कि जिस आदमी से मैंने अभी बात की है, उस शख़्स से मैं पहले भी बात कर चुका हूँ।”
“कब?”
“वो आदमी वॉइस मोड्युलेटर का इस्तेमाल कर रहा है जिससे मैं फिलहाल पहचान नहीं पा रहा हूँ लेकिन उसका अंदाज मेरा जाना पहचाना है। बहरहाल, मैं उसकी रिकॉर्डिंग आपके पास भेज रहा हूँ। मेरे ख्याल से कश्मीर में हाल ही में हुए पिछले चार-पाँच ऑपरेशंस में यह आदमी शामिल था।”
“हम्म... तुम वॉइस रिकॉर्डिंग मुझे भेजो। मैं पता लगवाता हूँ।”
“उनकी डिमांड के बारे में आप लोगों ने क्या डिसीजन लिया है? वो एक घंटे बाद फिर फोन करेगा।”
“शाहिद, तुम उन लोगों से जितना वक्त ले सकते हो, लो। वक्त आने पर जो होगा सो देखा जाएगा।”
“इस वक्त की कीमत हमें फिर किसी बेगुनाह की जान से न चुकानी पड़े।”
“राजनीति एक चौसर का खेल है, शाहिद। जो खेल हम खेल रहें हैं वो हमारी जिंदगी की एक नयी बाज़ी है। इस खेल में पासे चाहे कैसे भी पड़ें लेकिन हम लोगों से उम्मीद हमेशा जीत की ही होती है।”
“इंशाल्लाह। ऐसा ही होगा।”
“आमीन।”
और लाइन कट गयी।
अब एक घंटा इंतज़ार...
☸☸☸
नागेश कदम अपनी रॉयल एनफील्ड पर सवार होकर अंधेरी के पुलिस स्टेशन में पहुँचा। ऑफिस में मिलिंद राणे नैना दलवी के साथ बांद्रा रेलवे पुलिस के मार्फत मिली मेल एक्सप्रेस के रास्ते में पड़ने वाले मुंबई और महाराष्ट्र एरिया में पड़ने वाले सभी स्टेशनों की वीडियो फुटेज देख रहा था।
“क्या राणे? सुधाकर भाऊ आया नहीं अभी तक।”
“वह और श्रीकांत बांद्रा स्टेशन से हॉस्पिटल गए हैं। बस आते ही होंगे।”
“हम्म। ये सारे फुटेज देख कर कुछ मिला भी है, राणे, या यूँ ही फौकट में मगजमारी चालू है।”
नैना दलवी ने तिरछी निगाहों से नागेश की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा कर दूसरी तरफ देखने लगा। फिर उसने वो तस्वीरें राणे और नैना को दिखाई जो उसे गिरिजा से मिली थी।
“जरा इन तस्वीरों को जरा ध्यान से देख, राणे। इसमें वो आदमी हमें मिल गया लगता है जो इस कांड के पीछे है।”
“कौन?” नैना ने उलझे स्वर में पूछा।
“ये कौन है? जरा मैं भी देखूँ।” मिलिंद राणे फोन के ऊपर झुकता हुआ बोला। “ये... ये तो राहुल तात्या के साथ दिलावर टकला है। यह आदमी है इस सब के पीछे ?”
“हो भी सकता है। अगली तस्वीर में जो लोग इन दोनों के साथ हैं उनको देखो।” नागेश ने पिक को स्क्रॉल करते हुए कहा।
मिलिंद के उस पिक पर निगाह मारने बावजूद भी वो उन लोगों को पहचान न सका।
“ये दोनों दिलावर टकले के खास आदमी। अबरार और ऑलिवर। मेरा मतलब है कि उसके दायाँ और बायाँ बाजू। इन तीनों के राहुल तात्या के साथ होने का मतलब है कि वो लोग इसी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हो सकते थे।” नागेश कदम उत्साहित होता हुआ बोला।
“तो फिर मैं इन लोगों की ट्रैकिंग का इंतजाम करवाओ और उनकी पिक मुझे सेंड करो।” नैना दलवी ने कहा। “मैं भी यहाँ के इंटेलिजेंस के ऑफिसर्स को भेजती हूँ।”
तभी ऑफिस के फोन कीघंटीबजी। मिलिंद राणे ने फोन को पिक किया।
“यस, अंधेरी पुलिस स्टेशन।” राणे बोला।
“सर, मैं होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ से असिस्टेंट मैनेजर संजय चुटानी बोल रहा हूँ। आपको एक इन्फॉर्मेशन देनी थी?” फोन पर आवाज आयी।
मिलिंद की आँखों में संजय चुटानी का चेहरा उभरा जब वह सुधाकर शिंदे के साथ होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में शुरुआत में माधव अधिकारी और उससे तहक़ीक़ात करने पहुँचा था।
“बोलो, चुटानी। क्या इन्फॉर्मेशन देनी थी तुमको?”
“वो... जिस कस्टमर के गायब होने पर हमने आपको पिछले दिनों रिपोर्ट कारवाई थी... वो वापस लौट आया है।” चुटानी की थर्राती हुई आवाज फोन पर आयी।
“क्या... क्या बोल रहा है तू... तुम। नीलेश वापस आ गया है। साला, इतने टाइम से हम यहाँ अपनी घिस रहें हैं। तुम कह रहे हो वो वापस...” मिलिंद फोन पर तमतमाती आवाज में बोला।
“नहीं। नीलेश नहीं... प्रदीप नाम का आदमी वापस आया है।” संजय चुटानी बेसब्री से बीच में बोला।
“ओह... अभी कहाँ है वो?” राणे ने पूछा।
“अपने कमरे में।” जवाब मिला।
“क्या हुआ, राणे।” नागेश कदम ने मिलिंद राणे से पूछा।
मिलिंद ने उसे जल्दी से बताया।
“क्या? ऐसे कैसे ? इसका मतलब वो उन लोगों के चंगुल से भाग निकला।” नागेश ने हैरानी से कहा। “तू होटल वाले को बोल उस आदमी को… क्या नाम उसका... प्रदीप... हाँ, उसे उधर ही होटल में रोक कर रखें। हम लोग पहुँचते हैं अभी उधर।” नागेश अपनी सीट से खड़ा होता हुआ बोला।
थोड़ी देर में वो दोनों ‘पर्ल रेसीडेंसी’ की तरफ बढ़ चले।
नैना ने इस बात की सूचना श्रीकांत को फोन पर दी। श्रीकांत ने उससे हॉस्पिटल से फारिग होकर ‘पर्ल रेसीडेंसी’ के लिए रवाना होने की बात कहकर फोन काट दिया।
☸☸☸
‘कॉसमॉस’ की कॉर्पोरेट बिल्डिंग में चेयरमैन ऑफिस के अंदर दो नीली निगाहें अपने ऑफिस में शेयर बाजार की उठा-पटक को देख रहीं थी।
आँखों के ऊपर टिके गोल्ड के फ्रेम से झाँकती आँखों में स्क्रीन की चमक उन आँखों में छुपी बेचैनी को छुपा नहीं पा रहीं थी।
उन आँखों का मालिक था फिलिप्स जेक्सन।
‘कॉसमॉस’ को पूरे विश्व की सबसे बड़ी कंपनी बनाने का उसका सपना था। जिस रफ्तार से पिछले दस सालों में वह एशिया और यूरोप के देशों में बिजनेस को कॉसमॉस की तरफ एक तरफा झुकाने में कामयाब रहा था उससे उसके ख्वाबों को भी रफ्तार मिली थी। इंफोसिस, टीसीएस जैसी आइटी कंपनियाँ उसे कड़ी टक्कर दे रही थी लेकिन इन कंपनियों की मार्केट कैपिटल बहुत ज्यादा बढ़ चुकी थी। इसलिए उसकी निगाहें फिलहाल विस्टा टेक्नोलॉजी पर टिकी थी जिसका अधिग्रहण वह हर हालत में करना चाहता था। अगर वह यह करने में कामयाब हो जाता तो उसका सपना सच हो सकता था। ये मौका उसे अब की बार मिला था लेकिन अचानक से विस्टा के शेयर संभलने लगे थे। उसका दाँव उल्टा पड़ गया था।
कोई तो था जो उसे उसके ही खेल में मात दे रहा था!
उसने अपना फोन उठाया और एक नंबर मिलाया। दूसरी तरफ से फोन उठाया गया। दूसरी तरफ फोन उठाने वाला महाराष्ट्र का कद्दावर नेता था जो इस वक्त विपक्ष में था।
उसका नाम नाम था बसंत पवार।
“हैलो। क्या बात है फिलिप्स? कैसे फोन किया?” बसंत पवार की आवाज आयी।
“आपको जगाने के लिए फोन किया मैंने। जो मार्केट में उठा-पटक चल रही है, वो देख रहे हैं आप?”
“अरे, मार्केट की उठा-पटक को तुम देखो? मेरे को यह सिस्टम नहीं जमता। मैं पॉलिटिक्स की धोबी-पछाड़ का खिलाड़ी हूँ। जहाँ तक जागने और जगाने की बात है तो जब से कुर्सी का चस्का पड़ा है, बरसों से सोया नहीं हूँ मैं।”
“अगर आप सो नहीं रहे हो तो फिर उस काम में देरी क्यों हो रही है जिसकी जिम्मेवारी आपने ली थी।”
“जो तुम चाहते हो वो इतनी जल्दी नहीं होने वाला। हर पल परिस्थितियाँ बदलती रहती है। चिंता मत करो... ”
“चिंता तो करनी पड़ेगी। पिछले दो महीने से विस्टा के शेयर खरीदने में कॉसमॉस के सारे रिजर्व फंड खर्च हो रहें हैं। आज हमारी ही कंपनी के शेयर लोअर सर्किट में बंद हुए हैं। उस पर मैं आप पर भी दाँव लगा रहा हूँ। इतने ज्यादा फंड मैं ज्यादा दिन तक नहीं लगा पाऊँगा।”
“अरे, तो मिलकर बात करते हैं। आजकल तुम्हारी ही खुराफाती कंपनियों ने पता नहीं क्या-क्या बना रखा है हम नेताओं की जासूसी के लिए। कभी पेगासस... कभी कुछ जासूसी करतब। अपन आमने-सामने बैठ कर बात करते हैं, ठीक।”
“जरा जल्दी... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है।”
“ठीक। अब फोन पर नहीं।”
लाइन कट गयी।
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