हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर आत्माराम अपने कमरे में बैठा था । उसके मेज की दूसरी ओर प्रमोद बैठा था । कमरा वैसा ही था, जैसा वह अपने पहले दो बार में आगमन में देख चुका था।
“आपने बहुत गड़बड़ की है, प्रमोद साहब ।" - आत्माराम गम्भीर स्वर में बोला ।
"मैंने केवल सहयोग देने का प्रयत्न किया है । "
“किसे ? हत्यारे को ?"
"नहीं। पुलिस को ।"
"अगर आप यूं ही सहयोग देते रहे तो केस एक ऐसी उलझन भरी गुत्थी बनकर रह जाएगा, जिसे भगवान भी नहीं सुलझा पायेगा । क्या आप बतायेंगे कि अपने उस चीनी लड़की को अपने फ्लैट में से कैसे गायब कर दिया था ?"
"आपको कैसे मालूम है कि कोई चीनी लड़की मेरे फ्लैट में थी ?"
आत्माराम क्षण भर के लिए चुप हो गया ।
"आपने मेरे फ्लैट में होने वाले वार्तालाप सुनने के लिए वहां एक माइक्रोफोन छुपाया हुआ था।" - प्रमोद बोला ।
“आपका इलजाम सच है, साहब ।" - आत्माराम लापारवाही से बोला - "लेकिन कुछ हमारी भी मजबूरियां होती हैं। मामले की तह तक पहुंचने के लिए हमें कई बार इससे अनोखे कार्य करने पड़ते हैं। लोग पुलिस से सहयोग नहीं करते ! अपनी मर्जी से वो तो वे हमें कभी कुछ बताने के लिए तैयार नहीं होते।”
“इसलिये आप उनके फ्लैटों में माइक्रोफोन छुपा देते हैं हैं ?"
"जी हां । देखिए प्रमोद साहब, मैं आपको अपनी सफाई का आखिरी मौका दे रहा हूं। अच्छा है कि आप खुद ही बता दें कि केस के साथ आपका क्या सम्बन्ध है और विशेषरूप से यह कि आपने उर्मिला के फ्लैट से पोर्ट्रेट क्यों चुराई है और वह चीनी लड़की कौन थी ?"
प्रमोद चुप रहा ।
"आप अच्छी तरह सोच कर जवाब दीजिये । मुझे जल्दी नहीं है । यहां अभी इस केस से सम्बन्धित और लोग भी आने वाले हैं ।"
"कौन ?”
"कविता ओबेराय, राजेन्द्र नाथ और..."
“और कौन ?”
"मिस्टर प्रमोद ।" - आत्माराम उसके प्रश्न को एकदम नजर अन्दाज करके बोला- "चोरी और हत्यारे की सहायता करना दोनों ही बड़े गम्भीर अपराध हैं । इनसे आपका छुटकारा केवल इस सूरत में हो सकता है कि आप मुझे यह विश्वास दिला दें कि उन हरकतों में आपकी नियत खराब नहीं थी । वास्तव में आप पुलिस की सहायता ही कर रहे थे ।”
उसी क्षण एक सिपाही कमरे में कविता और राजेन्द्र नाथ को छोड़ गया ।
आत्माराम ने उन्हें बैठने का संकेत किया और फिर बोला - "आप सब एक-दूसरे को जानते हैं ?"
कोई कुछ नहीं बोला । केवल राजेन्द्र नाथ ने एक कहर भरी दृष्टि प्रमोद पर डाली और फिर दृष्टि झुका ली ।
"कविता जी ।" - आत्माराम मीठे स्वर से बोला. "आपको पहले-पहल कब मालूम हुआ था कि आप की बहन ने जगन्नाथ का खून कर दिया है ?"
कविता के कहने से पहले ही प्रमोद बड़े सहज स्वर से बोल पड़ा - "कविता को मालूम नहीं था कि सुषमा ने खून किया है क्योंकि सुषमा ने खून किया ही नहीं है । "
“आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे आप को मालूम है खून किसने किया है।" - आत्माराम बोला ।
प्रमोद ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
"उस चीनी लड़की ने ?"
"नहीं।”
“फिर आपको यह बताने में क्या ऐतराज है कि वह चीनी लड़की कौन थी ?"
"चीनी लड़की के विषय में कुछ नहीं बताऊंगा क्योंकि उसका इस केस से कोई सम्बन्ध नहीं है ।"
आत्माराम ने चुपचाप अपनी मेज की पैनल में लगे पुश बटन को दो बार दबा कर छोड़ दिया ।
अगले ही क्षण एक सिपाही ने बड़े ड्रामेटिक ढंग से कमरे का दरवाजा खोला और सोहा भीतर प्रविष्ट हुई । दरवाजा फिर बन्द हो गया ।
"प्लीज सिट डाउन ।" - आत्माराम बोला ।
सोहा चुपचाप एक कुर्सी पर बैठ गई।
"क्या यही वह चीनी लड़की है ?" - आत्माराम ने प्रमोद से पूछा ।
"हां ।" - प्रमोद बोला । इन्कार करना बेकार था । आत्माराम पहले ही जानता था ।
"और इस लड़की ने तुम्हारे सामने स्वीकार किया था कि जगन्नाथ की हत्या उसने की है । "
"यह सच है ।" - सोहा स्थिर स्वर में बोली- "मैंने उस आदमी की हत्या की है । "
"कविता के मुंह से सिसकरी-सी निकल गई ।"
"इन्स्पेक्टर साहब, यह झूठ बोल रही है । हत्या इसने नहीं की ।" - प्रमोद बोला ।
"आपको कैसे मालूम है ?"
"मुझे इसलिए मालूम है क्योंकि मैं असली हत्यारे को जानता हूं।"
"तो फिर बताइये वह कौन है ?"
"पहले आप मुझे इस चीनी लड़की से एक दो सवाल पूछने दीजिए । "
"पूछिये ।”
प्रमोद सोहा की ओर आकर्षित हुआ ।
"जिस समय तुमने जगन्नाथ की हत्या की थी, उस समय सुषमा कहां थी ?" - उसने पूछा ।
"वह दूसरे कमरे में सोई पड़ी थी।" - सोहा ने एकदम भावहीन स्वर में उत्तर दिया ।
"और उस समय जगन्नाथ क्या कर रहा था ?"
“जगन्नाथ कुर्सी पर बैठा था । उसके सामने मेज पर तुम्हारी स्लीवगन थी ।"
"मेज पर और क्या था ?”
"मेज पर एक काले रंग का हैण्ड बैग रखा था, जो शायद पेंटर महिला का था ।”
प्रमोद कविता की ओर घूमा - "क्या सुषमा ऐसा कोई बैग था ?” के पास
"नहीं।" - कविता बोली- "सुषमा को काले रंग से घृणा है। वह कभी काला बैग नहीं रखती।"
“जगन्नाथ के पास मेरी स्लीवगन कहां से आई ।"
प्रमोद ने फिर सोहा से पूछा ।
"मुझे नहीं मालूम ।"
"तुमने जगन्नाथ की हत्या उस स्लीवगन से की थी ?"
"हां"
"उसके बाद तुम स्लीवगन वहीं छोड़ आई ?"
"नहीं।" - हत्या के बाद मैं स्लीवगन साथ ले आई । मैंने स्लीवगन वापिस तुम्हारे फ्लैट की अलमारी में पहुंचाने का प्रयत्न किया लेकिन अलमारी में ताला लगा हुआ था और इसलिये मैंने...
सोहा एकदम यूं चुप हो गई जैसे कभी बोली ही न हो ।
"फिर तुमने क्या किया ?"
"मुझे और कुछ कहना नहीं कहना है । "
"इन्स्पेक्टर साहब ।" - प्रमोद आत्माराम की ओर घूमा “वह स्लीवगन मेरी थी और किसी ने उसे चुपचाप मेरी अलमारी में से निकाल कर जगन्नाथ के पास पहुंचा दिया था । स्लीवगन एक दुर्लभ चीज है इसलिए जगन्नाथ उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ था। जिस आदमी ने भी मेरी अलमारी में से स्लीवगन निकाल कर जगन्नाथ के पास पहुंची, जगन्नाथ ने उसे भारी लालच दिया होगा। यह जानने के लिए कि वह चोर कौन था, आप जरा इस बात पर विचार कीजिये कि स्लीवगन आपके इस दफ्तर की कुर्सी के गद्दे में कैसे पहुंच गई ? स्लीवगन इस कुर्सी में किसी ऐसे आदमी ने रखी थी जो बड़े अप्रत्याशित ढंग से यहां से आया गया था । अगर उसे पहले से मालूम होता कि पुलिस हैडक्वार्टर ले जाया जाने वाला है तो वह स्लीवगन अपने पास कभी नहीं रखता । अब आपको मालूम ही है कि कल जो भी आदमी मेरे फ्लैट से बाहर निकला था, पुलिस का कोई आदमी आटो सप्लाई के ट्रक से कूदा था और एकाएक उसे घेर लेता था और फिर वह आदमी सीधा इस कमरे में आपके पास पहुंचा दिया जाता था । अब सवाल यह पैदा होता है कि ऐसा कौन सा आदमी हो सकता है जिसके पास मेरे फ्लैट से निकलते समय स्लीवगन मैजूद हो । यह आदमी निश्चय ही वही था, जिसने पहले मेरे फ्लैट से स्लीवगन चुराई थी। स्लीवगन कोई अक्सर इस्तेमाल होने वाली चीज तो है नहीं, इसलिए मेरी अलमारी से स्लीवगन निकल जाने के बाद कई दिन तो मुझे यह पता भी नहीं लगता कि स्लीवगन वहां है भी या नहीं । लेकिन हत्या हो जाने के बाद स्वाभाविक था कि मेरा ध्यान स्लीवगन की ओर जाता क्योंकि हत्या हुई स्लीवगन से भी । इसलिए चोर इस बात के लिए उत्सुक हो उठा कि स्लीवगन वापिस मेरी अलमारी में पहुंच जाये । हत्या के बाद वह स्लीवगन लेकर मेरे फ्लैट पर आया लेकिन उसके दुर्भाग्यवश अनजाने में ही मैंने या याट-टो ने अलमारी का ताला बन्द कर दिया था, इसलिए चोर स्लीवगन वापिस अपने स्थान पर न पहुंचा सका । चोर स्लीवगन वह सोचकर वापिस ले गया कि दुबारा फिर ट्राई करेगा, लेकिन मार्शल हाउस से निकलते ही वह पुलिस के आदमियों द्वारा घर लिया गया और सीधा पुलिस हैडक्वार्टर ले जाया गया । इन्स्पेक्टर साहब, वह चोर सोहा नहीं हो सकती, क्योंकि जैसा कि मेरे आखिरी प्रश्न का उत्तर देते समय एकाएक सोहा ने भी महसूस किया है, अब से पहले सोहा कभी आपके इस कमरे में नहीं आई । इसलिए उसके यहां स्लीवगन पहुंचाने का प्रश्न ही नहीं उठता । यह एक तथ्य है जो प्रकट करता है कि सोहा झूठ बोल रही है । "
"तो फिर आपके खयाल से स्लीवगन का चोर कौन है ?" - आत्माराम ने व्यग्र स्वर में पूछा ।
प्रमोद क्षण भर रुका और उसने बड़े ड्रामेटिक अन्दाज में अपने दायें हाथ की पहली उंगली राजेन्द्र नाथ की ओर उठा दी ।
“राजेन्द्र नाथ ।” - वह बोला "स्लीवगन तुमने मेरे फ्लैट की अलमारी में वापिस रखने का प्रयत्न किया था लेकिन अलमारी का ताला बन्द देखकर तुम गड़बड़ा गये थे । मेरे फ्लैट से बाहर निकलते ही तुम पुलिस द्वारा यहां ले आए गए थे। इस कमरे में पहुंचने से पहले तुम्हें स्लीवगन से छुटकारा पाने का कोई मौका नहीं मिला। लेकिन यहां जिस कुर्सी पर तुम्हें बैठने को कहा गया, उसकी गद्दी में छेद देखकर तुमने स्लीवगन चुपचाप उसमें धकेल दी । "
राजेन्द्र नाथ के चेहरे का रंग उड़ गया था ।
"आपको इस विषय में कुछ कहना है ?" - आत्माराम ने कठोर स्वर में राजेन्द्र नाथ से पूछा । "
राजेन्द्र नाथ कितनी ही देर सूखे होंठो पर जुबान फेरता रहा और फिर एकदम मरे स्वर में बोला- "मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने ही प्रमोद के फ्लैट से स्लीवगन निकाल कर जगन्नाथ तक पहुंचाई थी । जगन्नाथ जानता था कि मैं कविता और सुषमा के सन्दर्भ से प्रमोद के फ्लैट में जाता रहता हूं । वह स्लीवगन के लिए मरा जा रहा था । उसने मुझे केवल दो दिन के लिए प्रमोद के फ्लैट से स्लीवगन निकाल लाने के बदले में पांच हजार रुपये दिए, वह स्लीवगन का एक डुप्लीकेट तैयार करवाना चाहता था और फिर असली अपने पास रख कर डुप्लीकेट वापिस प्रमोद की अलमारी में पहुंचवा देना चाहता था । मुझे रुपयों की जरूरत थी। मैंने स्लीवगन ले जाकर जगन्नाथ को दे दी । अगली ही रात को सुषमा ने आकर बताया कि जगन्नाथ मर गया है। मैंने सोचा कि शायद सुषमा से गलती हुई हो । जगन्नाथ केवल बेहोश हो और वह उसे मरा समझ बैठी हो। मैं अधिक जानकारी हासिल करने के इरादे से वापिस राबर्ट स्ट्रीट चला गया । वहां जाकर मुझे मालूम हुआ कि जगन्नाथ सचमुच ही मर गया है और रात के दो बजे एक औरत जगन्नाथ की पेंटिंग्स के साथ पिछले रास्ते से सीढियां उतरती देखी गई थी। मैं वापिस आ गया । मैंने कविता से कहा कि अगर वह सुषमा के स्कैचों से नई पोर्ट्रेट तैयार कर ले तो सुषमा यह दावा कर सकती है कि दो बजे जगन्नाथ के फ्लैट से निकलने वाली और वह थी । कविता चुपचाप कमला माथुर के फ्लैट में चली गई और उसने कुछ ही घन्टों में एक गुजारे जायक पोर्ट्रेट तैयार कर डाली और..."
"लेकिन हत्या के बाद स्लीवगन तुम्हारे हाथ में कैसे आई ?" - आत्माराम उसकी बात काट कर बोला ।
"स्लीवगन जगन्नाथ के फ्लैट के पिछवाडे की सीढियों के पास पड़ी थी। मैं उसे उठा लाया और अगली सुबह उसे वापिस प्रमोद के फ्लैट में रखने भी गया लेकिन... "1
"तुम झूठ बोल रहे हो।" - प्रमोद उसकी बात काट कर बोला ।
"क्या झूठ बोल रहा हूं ?"
"स्लीवगन तुम्हें सीढियों के पास पड़ी नहीं मिली। उसे तुम जगन्नाथ के फ्लैट से निकालकर लाये थे।"
“नहीं।"
"तुम राबर्ट स्ट्रीट कितने बजे गये थे ?”
"लगभग साढे तीन बजे ।"
"और आप लोग घटना स्थल पर किस समय पहुंचे थे ?" - उसने आत्माराम से पूछा ।
“तीन बजकर चालीस मिनट पर ।"
"पुलिस के आने से पहले तुम पिछले रास्ते से जगन्नाथ के फ्लैट में गये थे?"
"नहीं।" - राजेन्द्र जोर से बोला ।
"झूठ मत बोलो ।"
"मैं सच बोल रहा हूं।"
“राजेन्द्र नाथ, तुम्हारे अपने कमरे में अलमारी में रखी एक अटैची में पच्चीस हजार रुपये के सौ-सौ रुपये वाले नोट मौजूद हैं। तुम्हारे जैसे भूखे आदमी के पास एक ही समय में पच्चीस हजार रुपये के नोट कहां से आये ?"
राजेन्द्र नाथ का चेहरा सफेद पड़ गया ।
"सोहा ने जगन्नाथ को पच्चीस हजार रुपये दिये थे । वही नोट बाद में तुम उसकी मेज पर से उठाकर ले आये थे । तुम पिछले दरवाजे से जगन्नाथ के फ्लैट में गये थे। तभी तुमने वहां से स्लीवगन भी उठाई थी। मेज पर नोट भी पड़े थे । तुम्हारे जैसे आदमी के लिए इतनी मोटी रकम का लालच छोड़ पाना असम्भव था और राजेनद्रनाथ वे नये नोट थे । बैंक द्वारा उन नोटों के नम्बर जाने जा सकते हैं।"
राजेन्द्र नाथ डर गया । वह कांपती हुई आवाज से बोला- "तुम ठीक कह रहे हो। मैं जगन्नाथ के फ्लैट में गया था । वह मरा पड़ा था । मेज पर स्लीवगन भी पड़ी थी और नोट भी । मैं दोनों चीजें उठा लाया था।"
"मतलब कि तुमने जगन्नाथ की हत्या नहीं की ?" - आत्माराम ने पूछा ।
"नहीं । भगवान कसम मैंने जगन्नाथ की हत्या नहीं की । जब मैं वहां गया था तो वह मरा पड़ा था ।" - राजेन्द्र आतंकपूर्ण स्वर में बोला ।
"तो फिर हत्या किसने की ?"
"मैं बताता हूं।" - प्रमोद बोला- "इन्स्पेक्टर साहब, जरा दिमाग से काम लीजिए। आप इस केस के सबसे महत्वपूर्ण सूत्र की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं । आप खोसला के बयान को याद कीजिये । उसने एक लड़की को पिछवाड़े की सीढियां उतरते देखा था, लड़की ने दोनों हाथों से कैनवस को इस प्रकार पकड़ा हुआ था कि तस्वीर वाला रुख उससे विपरीत दिशा में था, क्योंकि शायद पेन्ट अभी गीला था । खोसला ने साफ-साफ देखा था कि लड़की के हाथों में केनवस के अतिरिक्त और कुछ नहीं था । उस समय दो बजे थे । ढाई और पौने तीन बजे के बीच सोहा वहां थी । उसने जगन्नाथ की मेज पर एक काले रंग का पर्स रखा देखा था, जो हमें अभी मालूम हुआ है, भीतरी कमरे में सोई पड़ी सुषमा का नहीं था क्योंकि उसे काले रंग से घृणा है । तीन बजे के करीब सुषमा उठी थी । उस समय जगन्नाथ मर चुका था लेकिन काला बैग वहां नहीं था । इससे प्रकट होता है कि वह काला बैग उस लड़की का था, जो दो बजे वहां से गई थी क्योंकि खोसला को उसके हाथों में बैग दिखाई नहीं दिया था । पौने तीन बजे तक बैग कमरे में था लेकिन तीन बजे नहीं था । इससे प्रकट होता है कि दो बजे वाली वही लड़की पौने तीन और तीन बजे के बीच फिर वापिस आई थी। तभी वह बैग ले गई थी और तभी शायद उसने हत्या भी की थी ।"
प्रमोद चुप रहा ।
सब लोग मन्त्रमुग्ध से उसकी बातें सुन रहे थे ।
"दो बातें और गौर करने की हैं । एक तो यह कि दो बजे वाली लड़की के पास पिछले दरवाजे की चाबी होनी आवश्यक है। क्योंकि वह सामने के रास्ते से फ्लैट में नहीं घुसी वर्ना भीम सिंह ने उसे देखा होता, और दूसरी बात यह कि हत्या पहले से ही इरादा बनाकर नहीं की गई थी । हत्या जिसने भी की है केवल उसी क्षण जोश में आकर की है । "
"क्यों ?" - आत्माराम ने धीरे से पूछा ।
"क्योंकि अगर कोई पहले से ही इरादा बनाकर हत्या करने के लिए आया होता तो हत्या के लिए हथियार साथ लाया होता । स्लीवगन को उस समय जगन्नाथ के हाथ में होना तो केवल एक संयोग था ।"
“आई सी ।" - आत्माराम बोला ।
"उर्मिला, कहती है कि रात को दो बजे जगन्नाथ के फ्लैट में से पोर्ट्रेट के साथ वह निकली थी । आप जानते हैं, उस समय उर्मिला के पास अपना पर्स नहीं था क्योंकि अपने फ्लैट पर पहुंच कर उसने टैक्सी ड्राइवर से खुद कहा था कि वह अपना पर्स कहीं भूल आई है और उसने टैक्सी का किराया टैक्सी ड्राइवर को अपने साथ फ्लैट में से लाकर दिया था । उर्मिला जगन्नाथ के फ्लैट में गई थी लेकिन भीम सिंह ने उसे आते नहीं देखा था। इससे प्रकट होता है कि वह पिछले दरवाजे से भीतर घुसी थी । वह जगन्नाथ की पत्नी थी, इसलिए उसके पास जगन्नाथ के फ्लैट की चाबियां होना कोई हैरानी की बात नहीं । सारे तथ्य इसी बात की ओर संकेत करते हैं कि पौने तीन और तीन बजे के करीब उर्मिला एक अन्य टैक्सी लेकर पर्स लाने के लिये फिर जगन्नाथ के फ्लैट पर गई । तब तक सोहा जा चुकी थी और सुषमा भीतरी कमरे में सोई पड़ी थी । उर्मिला जगन्नाथ के फ्लैट में पहुंची । पिछली बार उसने केवल पोर्ट्रेट ही देखी थी । जिसे वह क्रोध में उठाकर ले आई थी । लेकिन इस बार उसे भीतरी कमरे में सोई सुषमा भी दिखाई दी । उर्मिला क्रोध में अन्धी हो गई । उसने स्लीवगन उठाई और या तो जानबूझ कर तीर जगन्नाथ की छाती में दाग दिया और या फिर तीर किसी दुर्घटनावश चल गया । उर्मिला ने स्लीवगन वहीं फेंकी और अपना बैग उठाकर बाहर निकल आई ।”
"लेकिन अगर वह दूसरी बार सोहा के बाद गई तो पच्चीस हजार के नोट तब भी मेज पर पड़े होंगे ?" आत्माराम बोला । -
"राइट।"
"तो फिर उसने वे नोट क्यों नहीं उठाये ?"
"क्योंकि उसे वे नोट उठाने की जरूरत नहीं थी । वह जगन्नाथ की पत्नी थी और जगन्नाथ की सारी जायदाद अन्त में उसे ही मिलने वाली थी । वह नोट उठाकर क्यों किसी झमेले में फंसती ?"
आत्माराम सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में सिर हिलाने लगा । उसका हाथ फिर मेज की पैनल में लगे बटन पर घूमने लगा । शायद वह फिर किसी को संकेत भेज रहा था ।
"लेकिन प्रमोद" - कविता बोल पड़ी "जब इस चीनी लड़की ने हत्या की नहीं तो इसने हत्या का अपराध स्वीकार क्यों किया ?" -
" यही सवाल मैं भी पूछना चाहता था ।" - आत्माराम बोला ।
JH "ये ऊंचे ज्ञान की बातें हैं ।" - प्रमोद बोला - "आप लोगों की समझ में नहीं आयेंगी ।"
सोहा का चेहरा स्लेट की तरह साफ था ।
"आप उर्मिला को गिरफ्तार करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"बहुत कुछ हो रहा है, प्रमोद साहब।" - आत्माराम मीठे स्वर से बोला - “शायद आपको मालूम नहीं, यहां होने वाला सारा वार्तालाप बगल के कमरे में भी सुना जा रहा है, जहां एक टेप रिकार्डर के साथ हमारे सुपरिन्टेन्डेन्ट साहब बैठे हुए हैं । आपके सामने जो टेबल लैम्प रखा है, वह वास्तव में माइक्रोफोन है। इस समय पुलिस की चार गश्ती गाड़ियां उर्मिला की तलाश कर रही हैं । उसकी गिरफ्तारी कीbखबर किसी भी वक्त यहां पहुंच सकती है।”
प्रमोद हैरानी से आत्माराम का मुंह देखने लगा जो बड़े सन्तुष्ट भाव से मुस्करा रहा था ।
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बज उठी।
***
प्रमोद और सुषमा इम्पीरियल होटल के रेस्टोरेंट के एक कोने में बैठे काफी पी रहे थे ।
"मुझे उर्मिला का दुख है ।" - सुषमा गम्भर स्वर में बोली - “जगन्नाथ जैसे गन्दे आदमी को तो मरना ही चाहिए था।"
"सुना है उसने अपने बचाव के लिए तुम्हारा वाला ही वकील कर लिया है ?" - प्रमोद बोला ।
“हां ।” उर्मिला बोली- "हे भगवान, कैसे-कैसे भयानक रिहर्सल कराता था वह मुझसे । बार-बार वह सोहराब मोदी की तरह डायलाग बोलता हुआ मुझे बताता था कि दुनिया का केवल एक ही बयान मुझे फांसी के तख्ते से बचा सकता है । मुझे जोर-जोर से रोते हुए अदालत में यह बयान देना था कि कैसे जगन्नाथ शैतान की तरह मुझ पर झपटा । उसने मेरे कपड़े फाड़ दिये । उसके पसीने से भरे गन्दे हाथ मेरी बांहों पर फिरने लगे । उसने मुझे अपने शैतानी बांहों में दबोच लिया और मेरा शील भंग करने का प्रयत्न करने लगा। मैं रोई, चिल्लाई, लेकिन सब बेकार । मैं उस शैतान के चंगुल से न छूट सकी और फिर न जाने कैसे वह स्लीवगन चल गई और भगवान ने मुझे बचा लिया । वह कहता था कि मैजिस्ट्रेट एक कुमारी लड़की के सतीत्व हरण की कहानी ज्यादा हमदर्दी से सुनता है। क्या यह सच है ?"
"भगवान जाने ! "
“प्रमोद ।" - सुषमा एकदम प्रमोद की ओर झुककर बोली - “उस चीनी लड़की ने खामखाह हत्या का अपराध क्यों स्वीकार कर लिया ?"
"सोहा समझती थी कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और तुमने सच ही जगन्नाथ की हत्या की है । मुझे खुश देखने के लिए वह आकर बलिदान दे रही थी ।"
"कमाल है !" - सुषमा अचरज भरे स्वर में बोली ।
प्रमोद चुप रहा ।
"क्या तुम भी उससे इतना ही प्यार करते हो ?"
प्रमोद ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“खरगोश, तुम्हारी यह बड़ी बुरी आदत है । मतलब की बात तुम हमेशा गोल कर जाते हो ।”
"चलो, चलें यहां से ।" प्रमोद एकदम उठता हुआ बोला ।
सुषमा भी यन्त्रचलित-सी उठ खड़ी हुई ।
प्रमोद ने बिल चुकाया और दोनों बाहर आ गये ।
सड़क पर 'बलास्ट' का ईवनिंग एडीशन बिक रहा था । प्रमोद ने एक अखबार ले लिया ।
"देखो।" - सुषमा एक स्थान पर उंगली रखकर हैरानी से बोली ।
प्रमोद ने उस स्थान से अखबार पढना शुरू कर दिया । लिखा था, जगन्नाथ की हत्या के अपराध में नाइट क्लब डान्सर उर्मिला गिरफ्तार । उर्मिला, जो वास्तव में जगन्नाथ की पत्नी थी ।
उर्मिला का बयान -
जगन्नाथ ने मुझसे शादी करके भी कभी मुझे पत्नी का दर्जा नहीं दिया । वह मुझे अपने फलैट में नहीं रखता था । लेकिन फिर भी मैं सन्तुष्ट थी, क्योंकि मैं उससे सच्चा प्यार करती थी और समझती थी कि वह भी मुझसे प्यार करता है । लेकिन उस रात मुझे मालूम हुआ कि न केवल जगन्नाथ मुझसे घृणा करता है बल्कि वह मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए तलाक भी लेने वाला है। उस रात मैं उसके फ्लैट पर उससे रहम की भीख मांगने गई । जगन्नाथ अपने हाथ में एक बांस की नली लेकर बैठा हुआ था । मुझे बाद में मालूम हुआ कि वह बांस की नली स्लीवगन नाम का एक खतरनाक हथियार था । जगन्नाथ मेरी बातें सुनकर एकदम भड़क गया और वह मेरी ओर झपटा । मैं डर गई । मुझे लगा कि वह मुझे मार डालेगा । अपने बचाव के लिए मैंने झपट कर मेज से वह बांस की नली उठा ली । जगन्नाथ ने मुझे दबोच लिया। मैं आतंक से चिल्लाई और स्वयं को उसकी शैतानी पकड़ से छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी। उसने मेरे कपड़े फाड़ दिये । उसके गन्दे पसीने से भरे हुए हाथ मेरी नंगी बांहों को जकड़े हुए थे । उसके शरीर का दबाव मेरे शरीर पर बढ़ता जा रहा था । हम दोनों के शरीर के बीच में मेरा हाथ फंस गया था, जिसमें मैं वह बांस की नली थामे हुए थी । मुझे मालूम नहीं मैं था कि मेरे हाथ में रिवाल्वर से भी खतरनाक हथियार है । उसी क्षण न जाने कैसे स्लीवगन का कैच दब गया और उसमें से तीर निकलकर सीधा जगन्नाथ की छाती में घुस गया । जगन्नाथ की पकड़ ढीली पड़ गई । वह धम्म से अपनी कुर्सी पर आ गिरा और उसका सिर मेज पर लटक गया । मैं भयभीत होकर चीखने लगी और...
(शेष अन्तिम पृष्ठ कालम दो)
प्रमोद ने अन्तिम पृष्ठ देखा । वहां कोई विशेष बात नहीं थी ।
“अच्छा हुआ उर्मिला ने मेरे वाला ही वकील कर लिया ।" - सुषमा मजाक भरे स्वर में बोली- "उसकी रेडीमेड स्टोरी काम आ गई ।"
प्रमोद चुप रहा ।
समाप्त
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