पैराडाइज क्लब में !
सिर्फ साल भर पहले ही बड़ी भारी इंटीरियर डेकोरेशन करके उसे नई शक्ल दी गयी थी ।
एस० आई० तोमर को मानना पड़ा, क्लब सचमुच शानदार था । छत से झूलते कांच के बड़े–बड़े चमकीले फानूस, वाल–टू–वाल कारपेट, मखमली पर्दे, फर्श पर बिछे मोटे नर्म कालीन, जिनमें पैर टखनों तक धंस रहे थे । सब बेशकीमती थे । तत्परता से काम में लगा बावर्दी स्टाफ । अगर ध्यान से देखा जाये तो उनमें मसलमैन भी आसानी से पहचाने जा सकते थे ।
जिस्म की नुमाइश करती सुडौल शरीर वाली जवान सुंदर लड़कियाँ जिन्हें जाहिरा तौर पर क्लब की ओर से मुहैय्या कराया गया था । तोमर की निगाहें एक बड़ी ही दिलफरेब हसीना पर जम कर रह गयीं । हालांकि उसने अपनी जिंदगी में कभी पैसे से सैक्स नहीं खरीदा था लेकिन उस लड़की को देखकर वह सोचने पर मजबूर हो गया क्या पूरे महीने भर की तनख्वाह में वह कुछ घण्टों के लिये उसे हासिल हो सकती थी । फिर उसे दिमाग से झटककर वह अपने तीनों मातहतों के साथ मनोचा के पीछे चल दिया ।
क्लब विलासपूर्ण था । उतेजक होने के बावजूद वातावरण की अपनी गरिमा थी । अश्लीलता से दूर ।
ग्राउंड फ्लोर पर गेमिंग रूम्स से आती ग्राहकों और क्रुपियर्स की धीमे स्वरों और रुलेट टेबल पर मचलती बॉल की आवाज़ों के अलावा लगभग खामोशी थी ।
जबकि पहली मंज़िल का नज़ारा बदल गया था । गिलासों की खनक और आर्केस्ट्रा की धुन पर उभरती गायक–गायिकाओं की मधुर आवाजें ।
दूसरे खण्ड पर रेस्टोरेंट में ग्राहक अभी कम ही थे लेकिन झक–सफेद वर्दी वाले वेटरों की तत्परता देखते ही बनती थी । तोमर को स्वीकारना पड़ा हसन भाइयों को अपने धंधे की पूरी तमीज थी । क्लब की सालाना मेम्बरशिप की फीस खासी मोटी थी और उसकी तुलना में टेम्प्रेरी मेम्बरशिप और ज्यादा थी । लेकिन वहां पीने, खाने और मनोरंजन के बाद अय्याशी की कीमत बहुत ही ज्यादा होना । फिर भी ग्राहकों की भीड़ लगी रहना । इस अकेले क्लब से ही वे रोजाना लाखों कमा रहे थे विभिन्न टैक्स चुकाने और दूसरे खर्चे उठाने के बाद ।
वे टॉप फ्लोर पर पहुंचे ।
मनोचा ने प्राइवेट की तख्ती लगे एक भारी दरवाजे पर दस्तक दी । वहां की यह एक और खास बात थी–दरवाजे खिड़कियां सब भारी और मजबूत लकड़ी के थे पालिश से चमचमाते हुये ।
चालीस पार कर चुके हसन भाइयों को देखकर कोई उनके सगे भाई होने का आसानी से धोखा खा सकता था ।
जुड़वाँ तक भी लगते थे ।
दोनों छ: फुट लम्बे और चौड़े पुष्ट कंधों वाले थे । सरसरी निगाह से देखने पर भी उनके जिस्म थुलथुले या भारी नहीं लगते थे । कीमती और फैशनेबल सूटों के नीचे उनके बदन सख्त ओर मजबूत थे । उनकी चाल–ढाल से साफ झलकता था, उन्होंने अपने शरीर हर तरह से फिट रखे हुये थे ।
उनकी समानता केवल यहीं तक सीमित नहीं थीं । उनके कठोर चेहरों पर माताओं से मिली बड़ी–बड़ी काली आँखें और लम्बी सुतवां नाक एक जैसी थीं । पिताओं की साइड से मिले घने और काले बालों को सलीके से संवारकर रखते थे । किसी के भी सर पर सफेदी या गंजेपन का कोई चिन्ह नहीं था ।
इन समानताओं के साथ–साथ उनमें अंतर भी थे । अनवर के बायें गाल पर दो रंग का अर्द्ध चंद्राकार जख्म का पूरा निशान था । फारूख के निचले जबड़े की हड्डी कुछ कमजोर थी और अपने भाई के मुकाबले होंठ तनिक मोटे थे ।
जब मनोचा, तोमर और उसके मातहतों सहित कमरे में दाखिल हुआ ड्रिंक्स ट्राली के पास खड़ा फारूख क्रिस्टल गिलास में वोदका डालने वाला था ।
कमरे की दूसरी साइड में चमड़े की बड़ी–सी आरामदेह कुर्सी पर अनवर बैठा था ।
वहां मौजूद एक और आदमी अनवर के पास खड़ा सायंकालीन समाचार पत्र से कुछ पढ़कर सुना रहा था । दोनों भाइयों से दो–तीन साल बड़ा वो आदमी औसत कद का और चेहरे पर झुर्रियों के बावजूद शानदार नीला सूट पहने था ।
तीन लड़कियाँ भी वहां मौजूद थीं ।
उनमें एक ब्राउन बालों वाली बहुत ही कमसिन थी और ड्रिंक्स ट्राली के निकट पड़ी दूसरी कुर्सी के पास फर्श पर बैठी थी । उसकी उम्र सत्रह से बिल्कुल भी ज्यादा नहीं लगती थी ।
बाकी दो खिड़की के पास सोफे पर बैठी थीं । काले बाल और इकहरे शरीर वाली सुंदर युवतियां ।
फारूख हसन ने गरदन घुमाकर मनोचा की ओर देखा तो उसकी आँखें खतरनाक ढंग से चमक रही थीं । उसके एक हाथ में बोतल और दूसरे में गिलास उसी तरह हवा में उठे रह गये थे ।
–"मैंने तुमसे कहा था, हमें डिस्टर्ब न किया जाये ।" उसने कहा फिर तोमर एण्ड पार्टी की ओर देखकर पूछा–"ये पुलिसिये यहां क्या कर रहे हैं ?"
–"सॉरी, फारूख भाई !" मनोचा कमरे में आकर बोला–"ये आपसे मिलने की जिद कर रहे थे ।"
फारूख ने तोमर की ओर निगाहें घुमायीं ।
–"इस इलाके के पुलिस वालों को चंदा हम दे चुके हैं । यह प्राइवेट क्लब है । तुम्हारी औकात से बहुत ज्यादा महंगा ।"
तोमर ने अपना आई० कार्ड निकालकर दिखाया ।
–"में मनोज तोमर हूं । एस० आई० क्राइम ब्रांच ।"
–"यहां किसे ढूंढने आये हो, बेटे ?" अनवर ने पूछा ।
उसकी इस धृष्टता ने तोमर को ताव दिला दिया ।
–"फारूख हसन और अनवर हसन को ।"
–"वे तुम्हारे सामने हैं ।"
–"दोनों ।" फारूख गिलास में वोदका डालता हुआ बोला ।
–"देख रहा हूं ।" तोमर बोला ।
फारूख ने आईस क्यूब्स और टॉनिक भी गिलास में डाल लिये ।
–"तुम्हारी प्राब्लम क्या है ?"
–"तुम दोनों भाई !"
–"सुन रहे हो, अनवर ! हम इन पुलिसिये कार्टूनों की प्राब्लम हैं ।
अनवर बेमन से मुस्कराया ।
–"तुम कैब्रे का मजा लेने आये हो ?"
–"नहीं ।"
–"तो फिर बाजारू औरतों के साथ मौज–मजा करने आये हो ? हमारे यहां रंडिया काम नहीं करतीं । रैड लाइट एरिया में जाओ बच्चे !"
तोमर स्वयं को शान्त बनाये हुये था ।
–"सोमवार तीसरे पहर चार पुलिस अफसर और एक शहरी राकेश मोहन मारे गये थे ।" वह अधिकारपूर्ण स्वर में बोला–"मैं उसी केस की इंक्वायरी कर रहा हूं ।"
–"हमने भी अखबार में इस बारे में पढ़ा था ।" अनवर ने कहा ।
फारूख ने वोदका का ड्रिंक कुर्सी के पास फर्श पर पालतू बिल्ली की तरह शान से बैठी लड़की को थमा दिया ।
–"बुरा हुआ । लेकिन ऐसी वारदात तो बड़े शहरों में होती रहती हैं ।"
–"कल रात होटल अकबर में हुई शूटिंग की जांच भी मैं कर रहा हूं ।" तोमर बोला–"उसमें दो आदमी मारे गये थे–विक्टर सेमुअल और लिस्टर ब्रिगेंजा ।"
अचानक कमरे के माहौल में तब्दीली आ गयी । सोफे पर बैठी लड़कियाँ बेचैन नजर आयीं । कमसिन लड़की डर गयी थी ।
फारूख हसन ने उसके बाल सहलाये ।
–"यह बात समझ में आती है ।"
–"हम खुद ही पुलिस स्टेशन फोन करने वाले थे ।" अनवर कुर्सी में पहल बदलकर बोला–"वो वाकई बुरा हुआ । हमें भी सुनकर दुःख हुआ था ।"
लड़की के बाल सहलाता फारूख का हाथ अब जल्दी–जल्दी चल रहा था ।
–"वे हमारे परिचित थे ।"
–"हमें उम्मीद थी तुम हमारी मदद कर सकोगे । तुम विक्टर और लिस्टर को जानते थे ?"
"तुम्हें पता है हम उन्हें जानते थे । अगर पता नहीं होता तो क्या तुम यहां आते ?"
इससे पहले कि तोमर जवाब देता अनवर की कुर्सी के पीछे खड़ा तीसरा आदमी बोल पड़ा ।
–"लड़कियों को नीचे ले जाऊँ, फारूख भाई !" फारूख हसन तनिक मुस्कराया ।
–"क्यों ? हम सब दोस्त हैं । कानून पूछताछ करने आया है, उसकी मदद करनी चाहिये हमें । क्योंकि हालात इतने खराब हो गये हैं, हमारे जानकार बढ़िया होटल में भी महफूज नहीं रह सकते ।" उसने कहा फिर तोमर की ओर पलट गया–"तुम लोग अपना फर्ज सही ढंग से अंजाम नहीं दे रहे हो, इसलिये अकबर होटल जैसी जगह में लोगों को गोलियों से भून दिया जाता है ।"
तोमर का ध्यान उसकी ओर न होकर तीसरे आदमी की ओर था ।
–"तुम्हारी तारीफ ?"
–"असगर !" लम्बी खामोशी के बाद जवाब दिया गया–"मेरा नाम असगर अली है ।"
–"तुम इस क्लब के मेम्बर हो ?"
–"यह हमारा दोस्त है ।" अनवर बीच में बोल पड़ा ।
–"कारोबार में साथी भी है ?"
–"सिर्फ दोस्त है ।"
–"तुम भी विक्टर और लिस्टर को जानते थे, असगर ?"
–"नहीं ।"
–"नाम सुने थे उनके ?"
–"फारूख भाई और अनवर भाई ने दो–एक बार उनका जिक्र किया था । आज खबर सुनने के बाद भी उनके बारे में बातें की थीं हमने । इन दोनों भाइयों को बहुत दुख हुआ था...शॉक जैसा लगा था सुनकर ।"
–"फारूख भाई आज सुबह बहुत परेशान थे ।" कमसिन लड़की ने कहा । उसकी आवाज़ भी उसकी उम्र से मैच करती थी ।
तोमर की निगाहें अब फारूख पर जमी थीं । उसने नोट किया फारूख की उंगलियां लड़की की गरदन के पृष्ठभाग के बालों पर जोर से कसी फिर फौरन खुल गयीं । लड़की के चेहरे पर पीड़ा की रेखायें उभरकर रह गयीं ।
–"तुम उन दोनों को कितनी अच्छी तरह जानते थे ?" तोमर ने पूछा ।
–"ज्यादा अच्छी तरह नहीं । बस परिचित थे । वे हमारे नाम का रेफ्रेंस लेकर आये थे ।"
–"किससे ?"
–"एक कॉमन फ्रेंड है ।"
–"कौन ?"
–"अब्दुल तारिक !"
–"कहां रहता है ?"
–"दुबई में !"
–"उसका पता ?"
–"याद नहीं ! देखना पड़ेगा ।"
–"मैं बताता हूं ।" अनवर मुस्कराकर बोला–"तीन सौ पचपन, सोहराव अली रोड, दुबई । यह उसके ऑफिस का पता है ।"
–"करता क्या है ?"
–"क्लब और रेस्टोरेंट के धंधे में है ।"
–"तुम दोनों विक्टर और लिस्टर से आखिरी बार कब मिले थे ?"
फारूख हसन के चेहरे पर किसी बच्चे जैसी मासूमियत और उलझन भरे भाव उत्पन्न हो गये ।
–"हमने इतवार रात का खाना उनके साथ खाया था । दरअसल हम उनसे सिर्फ दो…नहीं, तीन बार मिले थे । पिछली दफा जब वे यहां आये थे हमने उनके साथ डिनर लिया था ।"
–"हमने दो बार डिनर लिया था उनके साथ, फारूख !"
–"मैंने भी यही कहा है ।"
–"तो तुम तारिक के जरिये जानते थे उन्हें ?"
फारूख हसन अभी भी लड़की के बालों से खिलवाड़ कर रहा था ।
–"हां ! तारिक यहां प्रापर्टी खरीदना चाहता था । किसी भी बढ़िया इलाके में रेस्टोरेंट खोलने के लिये । उसी सिलसिले में उन्हें भेजा था–लोकेशन देखने और सर्वे करने के लिये । दोनों अच्छे आदमी थे । उनकी मौत की खबर सुनकर मुझे वाकई सदमा पहुंचा था ।"
–"मुझे भी ।" अनवर बोला ।
–"तुम्हारी जानकारी में उनका कोई दुश्मन था ? या इस बारे में उन्होंने कुछ कहा था ?"
–"हम बता चुके हैं ।" अनवर सपाट स्वर में बोला–"हमारी उनसे सिर्फ रस्मी गुफ्तगू हुई थीं, धंधे या कारोबार की नहीं ।"
–"मेरा ख्याल है ।" फारूख बोला–" मैंने उनसे दो–एक लोकेशन का जिक्र किया था ।"
तोमर के पीछे खड़े एक कांस्टेबल ने पैरों पर पहलू बदलकर नोट बुक का पेज पलटा जिसमें बातचीत नोट कर रहा था ।
–"क्या तुम राकेश मोहन के बार में कुछ बता सकते हो ?"
–"नहीं ।" फारूख ने जल्दी से कहा–"अखबार में पढ़ने से पहले उसका नाम भी कभी हमने नहीं सुना था ।"
–"यकीन के साथ कह रहे हो ?"
–"बेशक !"
तोमर ने अनवर की ओर देखा ।
–"और तुम ?"
–"इस नाम के किसी आदमी को मैं भी नहीं जानता । तुम इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हो ?"
–"क्योंकि यह मेरा काम है । बाई दी वे, क्या तुम कुछेक रोज में मुल्क से बाहर कहीं जाने वाले तो नहीं हो ?"
–"क्या मतलब ?"
–"वही, जो मैंने पूछा है ।"
–"किसके बारे में पूछ रहे हो ? मेरे उसके या हम दोनों के ?"
–"तुम दोनों के ही ।"
–"क्यों ? हमारे कहीं जाने पर पाबंदी लगने वाली है ?"
–"यह तो मैंने नहीं कहा ।"
–"फिर इस सवाल की वजह ?"
–"कोई खास नहीं है । तुम्हें जवाब देने से एतराज है ?"
–"हां, क्योंकि यह हमारा जाती मामला है । हमारे बुनियादी हुकूक को जबरन चोट पहुंचाने की...।"
–"तुम जवाब देना नहीं चाहते ?"
–"चाहता तो नहीं हूं । लेकिन अगर तुम्हारे लिये जानना इतना ही जरूरी है तो सुनो, हम फिलहाल कहीं जाने वाले नहीं हैं ।"
–"कब तक ?"
–"कम से कम दो चार महीने ।"
–"फिर जा सकते हो ?"
–"हां ।"
–"कहां ? बीरगंज, नेपाल ?"
–"फारूख हसन के चेहरे की मासूमियत गायब हो गयी ।"
–"ऐसे घटिया मुल्क में हम नहीं जाते ।"
–"मैंने सिर्फ इसलिये पूछा था क्योंकि हमारा कोई बड़ा अफसर तुमसे विक्टर ओर लिस्टर के बारे में बातें करनी चाह सकता है ।"
–"तुम्हारा कोई बड़ा अफसर ही आये तो बेहतर होगा । मामूली पुलिसियों के मुंह लगना हमें पसंद नहीं है ।"
तोमर इसे नज़रअंदाज़ कर गया हालांकि उसकी दिली ख़्वाहिश थी कि उन दोनों के साथ पूरी सख्ती से पेश आया जाये । उन दोनों भाइयों के अंदर घमण्ड, बदमिज़ाजी और कानून के लिये नफरत इतनी ज्यादा कूट–कूट कर भरी हुई थी कि बर्दाश्त कर पाना नामुमकिन था ।
उसने कुछेक और रूटीन सवाल किये । फिर अपने मातहतों के साथ कमरे से निकला ।
मनोचा भी उनके साथ था ।
सीढ़ियों द्वारा नीचे पहुंचकर तोमर ने देखा रिसेप्शन पर कई मेम्बर अपनी फालतू चीजें ओवरकोट, ब्रीफ़केस वगैरा क्लॉकरूम में जमा कराकर अंदर जा रहे थे ।
उन्हीं में एक परिचित चेहरा नजर आया । तोमर रुका नहीं । उस चेहरे को जहन में जमाये वह प्रवेश द्वार से बाहर आ गया । उस चेहरे को वह पहले भी देख चुका था लेकिन नाम नहीं दे पा रहा था ।
पुलिस कार में सवार होते वक्त उसके दिमाग में खतरे की घण्टियां–सी बज रही थीं । चेहरे का सही नाम याद न कर पाने के कारण खुद पर खीज भी आ रही थी । अलबत्ता उसे पूरा यकीन था उस चेहरे का मालिक स्थानीय नहीं था ।
0 Comments