16 दिसम्बर: सोमवार

सोमवार सुबह तीनों फिर गिरफ्तार किये गये आरोपियों को पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में उसी मैजिस्ट्रेट के कोर्ट में पेश किया गया जिसने कोई डेढ़ महीना पहले उन्हें बरी कर दिया था।
उस रोज धूप नहीं निकली थी। सुबह से ही आसमान पर बादल छाये हुए थे जो किसी भी क्षण बरस पड़ने का संकेत दे रहे थे।
विमल अदालत में मौजूद था।
अशरफ उसके साथ था लेकिन भीतर अदालत में विमल के साथ होने की जगह बाहर गलियारे में खड़ा था।
कीमत राय सुखनानी भी अदालत में मौजूद था। वो कोर्ट में आखिरी बैंच पर कोने में चुपचाप बैठा हुआ था, किसी की उसकी तरफ कोई ख़ास तवज्जो नहीं थी।
वैसे ही विमल ख़ामोश दर्शक था।
वहां एक शख़्स और था जिससे विमल और अशरफ वाकिफ़ नहीं थे और सुखनानी का उससे वाकिफ़ होने का सवाल ही नहीं पैदा होता था।
वो शख़्स जस्से का ख़ास शागिर्द कुलदीप सिंह था जस्से ने जिसको वहां अमित गोयल की वजह से भेजा था ताकि उसे मालूम हो पाता कि कोर्ट में अमित गोयल की उनत्तीस नवम्बर शुक्रवार को हुई बॉबिटाइजेशन की बात उठी थी या नहीं। लेकिन कुलदीप ने वहां और ही नजारा देखा जिसके आगे वो बात गौण हो गयी।
फौरन उसने अदालत से बाहर गलियारे के एक तनहा कोने में जा कर उस्ताद को फोन लगाया।
जस्सा उस वक्त मॉडल टाउन में त्रिपाठी पिता-पुत्र के साथ था और उनके बीच में वही मसला खड़ा था क्या अमित गोयल के अंग भंग की बात उजागर होती!
चिन्तामणि का ख़याल था कि अगर तीनों आरोपियों का पुलिस को मनमर्जी का रिमांड मिल गया तो वो बात उजागर हुए बिना नहीं रहनी थी क्योंकि ऐसा रिमांड मिलने पर बुकिंग से पहले प्रोसीजर के तौर पर आरोपियों का मैडीकल होता था। मैडीकल से ये भी पता लग के रहता कि जो हुआ था, हाल ही में हुआ था। फिर उस पर उसकी इस दशा की हकीकत बयान करने का दबाव बन सकता था। दबाव में आकर वो हकीकत बयान करता तो उस प्रक्रिया में सारी कहानी खुल जाती, पुलिस को ख़बर लग के रहती कि वैसा ही अंजाम उस जैसे, उसके दोस्त दो और युवकों का भी हो चुका था और अभी एक और का होना बाकी था।
यूं अरमान पर फोकस बनना लाजमी हो जाता, और यही उस घड़ी पिता पुत्र को चिन्ता का विषय था।
वो इसी बात का कोई तोड़ सोचने के लिये मन्त्रणा कर रहे थे जबकि जस्से के मोबाइल की घन्टी बजी!
जस्से ने मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर निगाह डाली।
कुलदीप।
‘‘हां, कुलदीपे!’’ – काल रिसीव करता वो बोला – ‘‘बोल।’’
जवाब में जो कहा गया, उसको सुनका उसके नेत्र फैले, कुर्सी पर ढ़ेर हुआ वो तन कर बैठा।
पिता पुत्र से जस्से में एकाएक आयी वो तबदीली छुपी न रही।
‘‘क्या हुआ?’’ – चिन्तामणि व्यग्र भाव से बोला।
जस्से से हाथ उठा कर उसे चुप रहने का इशारा किया और फोन में बोला – ‘‘जो अभी बोला था, वो फिर बोल।’’
तत्काल उसने मोबाइल को लाउड स्पीकर पर लगा कर तीनों के बीच मेज पर रख दिया।
‘‘मैं कया, भ्राजी’’ – कमरे में आवाज गूंजी – ‘‘वो पड़ोसी यहां कोर्ट में मौजूद है।’’
‘‘कौन पड़ोसी?’’ – जस्सा पिता पुत्र को सुनाने के लिये कदरन उच्च स्वर में बोला।
‘‘मॉडल टाउन के डी-नाइन वाला पड़ोसी। जिसे आप हैदराबाद चला गया बताते थे।’’
‘‘कौल? अरविन्द कौल?’’
‘‘यही नाम होगा।’’
‘‘वो वहां उस कोर्ट में मौजूद है जिसमें उन तीन लड़कों के केस की सुनवाई है?’’
‘‘और मैं क्या कह रहा हूं!’’
‘‘क्या कर रहा है?’’
‘‘बैठा है चुपचाप।’’
‘‘फिर तो केस की वजह से ही वहां होगा!’’
‘‘यही जान पड़ता है।’’
‘‘तूने उसे ठीक से पहचाना?’’
‘‘भ्राजी, आप ही ने पहचनवाया था एक बार। आपने ठीक से पहचनवाया था तो ठीक से पहचाना।’’
‘‘शक की कोई गुंजायश नहीं?’’
‘‘न।’’
‘‘ओये, तो ठोक उसे।’’
‘‘अदालत में?’’
‘‘बाहर भी तो निकलेगा। बाहर कहीं। ये मौका हाथ से नहीं निकलना चाहिये।’’
‘‘मेरे पास गन कहां है!’’
‘‘नहीं है?’’
‘‘भ्राजी, कोर्ट में गन साथ ला के मैंने मरना है?’’
‘‘कोर्ट की कार्यवाही शुरू हो गयी है?’’
‘‘टाइम हो गया है। होने ही वाली है।’’
‘‘गन तेरे पास पहुंचती है। बाहर कहीं, कहीं भी, जहां भी दांव लगे, ठोक दे उसको। फिर कहता हूं, कुलदीपे, ये मौका हाथ से नहीं जाना चाहिये।’’
‘‘वो तो ठीक है, भ्राजी, लेकिन गन जल्दी पहुंचेगी तो कुछ होगा न!’’
‘‘जल्दी ही पहुंचेगी।’’
‘‘आप कहां हैं?’’
‘‘मॉडल टाउन।’’
‘‘लो! जब तक मॉडल टाउन से गन यहां पहुंचेगी, तब तक तो कोर्ट की कार्यवाही कब की ख़त्म हो चुकी होगी।’’
‘‘कमला, माईंयवा। जैसे मुझे मालूम नहीं! करीब से पहुंचेगी। बन्द कर अब।’’
सम्बन्धविच्छेद हो गया।
जस्से ने फोन उठा कर जेब में रखा और पिता पुत्र की तरफ देखा।
‘‘वो यही है।’’ – पिता वितृष्णापूर्ण भाव से बोला – ‘‘शुरू से यही है।’’
‘‘हैदराबाद गया ही नहीं!’’ – पुत्र बोला।
‘‘ख़ाली कथा की हैदराबाद जाने की हमें गुमराह करने के लिये।’’
‘‘अन्त भला से सो भला, त्रिपाठी जी।’’ – जस्सा बोला – ‘‘वो दिल्ली में था तो हमें ढूंढ़े नहीं मिलने वाला था। समझो तकदीर ने हमारा साथ दिया जो हमें मालूम है इस घड़ी वो कहां है। अब हम इस सुनहरे मौके को
कैश करने से चूके तो हम से बड़ा ईडियट कोई नहीं होगा। ठेकेदार साहब, अगर इस मौके से चूके तो मैं कहूंगा कि आप का साहबजादा उसी अंजाम के काबिल है जिसकी धमकी की तलवार इसके सिर पर लटक रही है।’’
‘‘शट अप, जस्से! और मतलब की बात कर।’’
‘‘मतलब की बात अभी करनी है? अरे, मतलब की बात एक ही है। गन पहुंचानी है आंधी तूफान की तरह पटियाला हाउस।’’
‘‘ह-हमने?’’
‘‘और किसने?’’
‘‘लेकिन अभी बात हुई न कि जब तक मॉडल टाउन से गन पहुंचेगी . . .’’
‘‘अरे, ठेकेदार साहब, अक्ल से काम लो। टाइम जाया न करो। चौहान को फोन करो। उसके आदमी सारी दिल्ली में हैं, वो इन्तजाम करेगा।’’
‘‘ओह! ओह!’’
तत्काल चिन्तामणि ने ‘गोल्डन गेट’ के सिक्योरिटी चीफ गजानन चौहान का मोबाइल खड़काया। तत्काल उत्तर मिला। उसने जल्दी-जल्दी उससे बात की, फिर फोन बन्द कर दिया।
‘‘हरीश नेगी।’’ – वो बोला – ‘‘चौहान का आदमी। दरियागंज में है। दस मिनट में पटियाला हाउस पहुंच जायेगा।’’
‘‘गन के साथ?’’ – जस्सा बोला।
‘‘और क्या गुलेल के साथ? खाली हाथ?’’
‘‘कनफर्म किया न, त्रिपाठी जी! ठण्ड रखो।’’
कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने तक राघुनाथ गोयल की वहां पहुंच गया। वो सबसे अगले बैंच पर अपनी उम्र के, अपने जैसे ही चिन्तित दो व्यक्तियों के साथ बैठा जिनके बारे में विमल को बाद में मालूम हुआ कि वो विकास जिन्दल और केतन साहनी के पिता थे।
मैजिस्ट्रेट ने आकर अपना आसन ग्रहण किया तो कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई।
सबसे पहले देवन नायर को तलब किया गया।
मैजिस्ट्रेट के सामने नायर का बयान हुआ जो उसने संजीदगी से दिया। कोर्ट में तिलक मार्ग थाने का एसएचओ ख़ुद मौजूद था, उसने तसदीक की कि गवाह थाने में पच्चीस लाख की वो रकम पेश कर चुका था जो बकौल उसके बतौर रिश्वत उसे हासिल हुई थी और वो रकम चौकस तहरीरी कार्यवाही के बाद तिलक मार्ग थाने के मालाखाने में जमा थी।
फिर सरकारी वकील ने अपना केस पेश किया।
‘‘योर ऑनर’’ – वो बोला – ‘‘अब ये बात दिन की तरह साफ है कि गवाह का वही बयान दुरुस्त था जो उसने पुलिस को दिया था और जिस को उसने एनडोर्स किया था। लेकिन दूसरे पक्ष के द्वारा इस पर ऐसा भारी और ग़ैरकानूनी दबाव बनाया गया था, उसे उसके और उसके बीवी बच्चों के अंजाम से इतना त्रस्त किया गया था कि विपक्ष की बाकायदा कोच की गयी तब्दीलियों के तहत ये अपने पुलिस को दिये बयान से मुकरने पर मजबूर हो गया था।’’
‘‘मेरी अपने फाजिल दोस्त से दरख्वास्त है’’ – आरोपियों का वकील पुरजोर लहजे से बोला – ‘‘कि ये पहले ये फैसला कर लें कि गवाह ने अंजाम की दहशत के तहत अपना बयान बदला था या पच्चीस लाख रुपया रिश्वत खा कर अपना बयान बदला था!’’
‘‘वो रकम इसकी किसी मांग के तहत इसकी नजर नहीं की गयी थीं’’ – सरकारी वकील शान्ति से बोला – ‘‘इस पर थोपी गयी थी ताकि इसके अपने बयान से फिर जाने की डबल गारन्टी हो पाती। योर ऑनर, इस बात का पुख़्ता सबूत ये है कि उस गवाही के तकरीबन डेढ़ महीने बाद भी वो रकम गवाह के पास सुरक्षित थी, उसने उसमें से एक काला पैसा भी ख़र्च नहीं किया गया था जबकि जिसके हाथ हराम का पैसा लगा हो, उसका उसे ऐशपरस्ती पर फौरन उड़ाने लगा जाना स्वाभाविक होता है।’’
मैजिस्ट्रेट का सिर सहमति में हिला।
‘‘अगर’’ – विपक्ष का वकील गर्जा – ‘‘गवाह पर कोई गैरकानूनी दबाव बनाया गया था, उस को – जैसा कि सरकारी वकील साहब ने दावा किया – उसके बीवी-बच्चों के किसी बुरे अंजाम से डरा कर गवाही से फिरने पर मजबूर किया गया था तो वो डर, वो दहशत, वो ख़ौफ अब कहां गया! धमकाने वालों के तौर पर ये अब जिनका नाम लेता है वो इस दौरान विलायत तो नहीं माइग्रेट कर गये! वो पहले भी यहीं थे, आज भी यहीं हैं। तो गवाह ने अपने सिर से खौफ की तलवार हट गयी क्यों कर पायी कि वो एक नयी कथा करने के लिये पुलिस के पास चला आया?’’
‘‘योर ऑनर’’ – सरकारी वकील बोला – ‘‘गवाह एक शरीफ, नेक, ऐतबारी शख़्स है, धर्मपरायण शख़्स है, ये एक बार ग़लत लोगों की नाजायज धमकियों के आगे घुटने टेक बैठा, इसका गवाह को शुरू से दुख था। इसकी अन्तरात्मा हर पल, हर घड़ी इसको कचोटती थी, धिक्कारती थी कि ये एक नाजायज, मुजरिमाना दबाव में आकर कोर्ट में परजुरी के लिये मजबूर हुआ। बकौल गवाह, उस नामुराद दिन के बाद से कोई ऐसी रात न आयी जब कि ये चैन की नींद सो पाया हो। आखिर इसकी गैरत जागी, इसके दिल ने, इसके बैटर जजमेंट ने इसे प्रेरित किया कि जो इसकी वजह से बिगड़ा था, ये उसे संवारने के लिये बिना अपने अपनी बीवी बच्चों के अंजाम की परवाह किये कोई मजबूत, कारआमद कदम उठाये जो कि इसने उठाया। पुलिस को गवाह के इस एक्शन की कद्र हुई, नतीजतन अब इसकी फैमिली को पुलिस प्रोटेक्शन हासिल है, ख़ुद इसे पुलिस प्रोटेक्शन हासिल है। योन ऑनर, ये भी एक वजह है, बड़ी वजह है, जिसके तहत ये अपने अंजाम की परवाह किये बिना गवाह के कठघरे में खड़ा है और पूरी मजबूती से, पूरी निष्ठा से सच के दामन को थामे है और इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो भूला नहीं कहलाता।’’
‘‘योर ऑनर’’ – विपक्ष का वकील पुरजोर लहजे से बोला – सरकारी वकील साहब की ये लफ्फाजी, ये हमदर्दी गवाह को परजुरी के अंजाम से नहीं बचा सकती।’’
‘‘गवाह की ऐसी कोई ख़्वाहिश भी नहीं। होती तो गवाह अपनी मर्जी से पुलिस के पास न पहुंचा होता, होती तो बिना किसी दबाव के यहां गवाह के कठघरे में न खड़ा होता। जो ग़लती इससे हुई है, उसका ये कोई भी खामियाजा भुगतने को तैयार है। ये झूठी गवाही देने का गुनहगार है तो . . .’’
‘‘गुनहगार है। बराबर है। जो बात प्रत्यक्ष है इसको रेखांकित करने की जरूरत नहीं है। ये झूठी गवाही का गुनहगार है लेकिन झूठी गवाही इसने पहले न दी, अब दी। झूठी गवाही ये अब दे रहा है ताकि तीन निर्दोष नौजवानों पर विपत्ति का पहाड़ टूटे। इसकी इसी कोर्ट में पिछली गवाही को विश्वसनीय माना गया था, तभी तो इन नौजवानों को इस कोर्ट ने बाइज्जत बरी किया था . . .’’
‘‘बाइज्जत नहीं। सन्देह-लाभ दे कर।’’
‘‘... अब डेढ़ महीने बाद वही गवाह फिर कोई नहीं कहानी कर रहा है तो इसकी कोई वजह होनी चाहिये। और मुझे इसके सिवाय कोई वजह मुमकिन नहीं दिखाई देती कि इस पर ऐसा करने के लिये कोई दबाव बनाया गया है।’’
‘‘क्या दबाव बनाया गया? कौन है बनाने वाला?’’
‘‘ये पता लगाना पुलिस का काम है।’’
‘‘आप दबाव को डिफाइन को कीजिये! उसकी कोई शक्ल तो उकेरिये। कहिये कि रिश्वत खायी।’’
‘‘हो सकता है।’’
‘‘अब रिश्वत खायी?’’
‘‘हो सकता है।’’
‘‘यानी गवाह हराम के पैसे पर निगाह रखने वाला एक लालची शख़्स है!’’
‘‘हो सकता है।’’
‘‘जो पैसे की खातिर कुछ भी कर सकता है?’’
‘‘हो सकता है।’’
‘‘अगर ऐसी इसकी फितरत है तो इसने पहले रिश्वत में हासिल हुआ पच्चीस लाख रुपया सरकारी मालखाने में वापिस क्यों जमा करवाया?’’
विपक्ष के वकील को तुरन्त जवाब न सूझा।
‘‘ये ही तो कहता है!’’ – फिर बोला।
‘‘नहीं, ये ही नहीं कहता। पुलिस भी कहती है। तिलक मार्ग थाने के एसएचओ साहब कोर्ट में मौजूद हैं। आप के कहने पर वो फिर इस बात की तसदीक कर सकते हैं।’’
‘‘ये भी गवाह की कोई शातिर चाल है जो उसने परजुरी की सजा से बचने के लिये चली है।’’
‘‘आपकी ये बात तब कोई वजन रखती मानी जाती जबकि पुलिस ने अपनी कर्मठता दिखाते इसे पकड़कर वापिस कोर्ट में ला खड़ा किया होता। आप बड़े आराम से इस अहमतरीन हकीकत को नजरअन्दाज कर रहे हैं कि इसे यहां पुलिस पकड़ कर नहीं लायी, ये अपनी मर्जी से यहां आया, न आया होता तो पुलिस को कभी इसका ख़याल तक न आया होता।’’
‘‘क्यों आया? इसके यूं यहां आने में भी कोई भेद है।।’’
‘‘कोई भेद नहीं है। जो वजह इसे यहां लाई है, वो एक्सप्लेन की जा चुकी है। इसकी कांशस इसे यहां लाई है। अब आप किसी के कंसैंशस होने को ग़ैरकानूनी करार देना चाहते हैं तो . . .’’
‘‘आर्डर!’’ – एकाएक मैजिस्ट्रेट अप्रसन्न भाव से बोला – ‘आर्डर!’
सरकारी वकील खामोश हो गया।
‘‘कोर्ट की दोनों वकील साहबान को हिदायत है कि वो आपसी तकरीर और तकरार को लगाम दें और जो कहना है, कोर्ट से मुखातिब हो कर कहें। आई विल हैव नो मोर पर्सनैलिटीज इन माई कोर्ट। इज दैट अन्डरस्टुड?’’
‘‘यस, योर ऑनर।’’ – दोनों वकील सम्वेत् स्वर में बोले।
‘‘यू मे प्रोसीड नाओ, मिस्टर पब्लिक प्रासीक्यूटर।’’
‘‘यस, योर ऑनर। थैंक्यू, योर ऑनर। मैं अपने केस की प्रेजेंटेशन के तहत आरोपियों में से एक को – विकास जिन्दल को – चन्द सवालात के लिये तलब करना चाहता हूं।’’
‘‘ऑब्जेक्शन, योर ऑनर!’’ – विपक्ष का वकील बोला – ‘‘ये एक क्लैक्टिव केस है। तीनों पर सामूहिक चार्ज है। फिर किसी एक को बुलाने का क्या मतलब?’’
‘‘सामूहिक चार्ज में जरूरी नहीं’’ – सरकारी वकील बोला – ‘‘कि सवाल का जवाब भी सामूहिक हो।’’
‘‘क्यों जरूरी नहीं?’’
‘‘एक अपने पिता का नाम, फर्ज कीजिये, रामलाल बताये तो तीनों का अपने पिताओं के बारे में सामूहिक जवाब रामलाल होगा?’’
‘‘ऑब्जेक्शन ओवररूल्ड।’’ – मैजिस्ट्रेट बोला – ‘‘विकास जिन्दल मे टेक दि स्टैप्ड।’’
‘‘यू प्लीज स्टैप डाउन।’’ – सरकारी वकील नायर से बोला।
गवाह के कठघरे में उसकी जगह विकास जिन्दल ने ली।
उसे शपथ ग्रहण कराई गयी।
तदोपरान्त सरकारी वकील ने अपलक उसे देखा।
विकास ने पूरी निडरता से उससे निगाह मिलाई।
‘‘आप का नाम?’’ – सरकारी वकील बोला।
‘‘रिकार्ड में दर्ज है।’’ – विकास धृष्ट भाव से बोला।
‘‘मुझे मालूम है रिकार्ड में क्या दर्ज है! ये एक रूटीन सवाल है जो कि रिकार्ड के लिये ही है। जवाब दीजिये।’’
‘‘विकास जिन्दल।’’
‘‘आप का कोई और भी नाम है?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘कोई पैट नेम?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘अममून होता है।’’
‘‘मेरा नहीं है। मेरा एक ही नाम है। विकास जिन्दल।’’
‘‘पहले कभी गिरफ्तार हुए हैं?’’
‘‘आपको मालूम है हुआ हूं। अभी डेढ़ महीना पहले . . .’’
‘‘वो गिरफ्तारी इसी केस के सिलसिले में थी जिसमें पहले रिहा हुए, फिर दोबारा गिरफ्तार हुएा। मेरा सवाल इस केस की बाबत नहीं है। मेरा सवाल है कि क्या आप मौजूदा केस के अलावा कभी किसी केस में गिरफ्तार हुए हैं?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘आप अन्डर ओथ हैं। आपने गीता पर हाथ रखकर सच बोलने की कसम खायी है। झूठ बोलने पर . . . प्राब्लम होगी। आप को।’’
वो ख़ामोश रहा।
‘‘कोई बात नहीं। इंसानी याददाश्त ट्रिकी होती है, कई बार मौके पर काम नहीं देती। मैं आपकी मदद करता हूं। आप दो साल पहले एक कत्ल के केस में गिरफ्तार हुए थे . . .’’
अदालत में सन्नाटा छा गया।
‘‘ऑब्जेक्शन!’’ – विपक्ष का वकील चिल्लाया – ‘‘दिस इज . . .’’
‘‘ओवररूल्ड!’’ – ‘‘मैजिस्ट्रेट बोला – ‘‘लैट दि पब्लिक प्रासीक्यूटर फिनिश हिज पीस, दैन ऑब्जेक्ट।’’
‘‘लेकिन, योर ऑनर, ये गम्भीर इलजाम है।’’
‘‘सरकारी वकील साहब जिस पर खरे उतर कर न दिखा सके तो . . . दिस कोर्ट विल टेक सीरियस व्यू ऑफ इट।’’
विपक्ष का वकील ख़ामोश हो गया।
‘‘दिस इज ए मैटर ऑफ रिकार्ड, योर ऑनर।’’ – सरकारी वकील बोला – ‘‘कि दो साल पहले ये शख़्स सुजाता सुखनानी नाम की एक नौजवान लड़की के कत्ल में गिरफ्तार हुआ था जो कि इसकी लिव-इन कम्पैनियन थी। इसने बिना किसी प्रोवाकेशन के लड़की को चाकू घोंप दिया था और वो ठौर मारी गयी थी। फिर चालाकी से काम लिया था, वही चाकू ख़ुद को मार लिया था, लेकिन इस एहतियात के साथ कि नतीजा गम्भीर न हो, और ख़ुद पुलिस को फोन कर दिया था।’’
‘‘जब इसका पहले से रिकार्ड था’’ – मैजिस्ट्रेट बोला – ‘‘तो टाई अप क्यों न हुआ? आजकल तो ऐसे रिकार्ड्स कम्प्यूट्राइज्ड होते हैं!’’
‘‘क्योंकि तब इसका नाम विकास जिन्दल नहीं, विकी जैगर था। अभी ये ख़ुद कुबूल करेगा कि दो साल पहले ये विकी जैगर के नाम से जाना जाता था।’’
मैजिस्ट्रेट ने उसकी तरफ देखा
‘‘मैं कुछ कुबूल नहीं करने वाला।’’ – विकास ढ़िठाई से बोला।
‘‘तुम उस कत्ल के केस में’’ – सरकारी वकील बोला – ‘‘टैम्परेरी इनसैनिटी की प्ली पर रिहा हुए थे और पुलिस की निगरानी में दो महीने सैनेटोरियम में रहे थे जहां के डाक्टरों ने दो महीने बाद तुम्हें नार्मल करार दिया था और तुम आजाद हो गये थे। . . . ये’’ – सरकारी वकील ने आठ गुणा दस इंच का एक प्रिंट हवा में लहराया – ‘‘उस केस की हिस्ट्री की पुलिस रिकार्ड में से निकाली गयी कत्ल के आरोपी विकी जैगर की तसवीर है। ये’’ – उसने एक दूसरी तसवीर लहराई – ‘‘मकतूला के मोबाइल में से निकाली गयी विकी जैगर की तसवीर है। मैं ये दोनों तसवीरें मिस्टर डिफेंस अर्टनी को सौंपता हूं और एक दूसरा सैट योर ऑनर की नजर करता हूं। आप पायेंगे कि कठघरे में खड़ा ये शख़्स क्लीनशेव्ड है और इन तसवीरों वाले संगीत कलाकार, गिटारिस्ट विकी जैगर के चेहरे पर कलाकारों वाली दाढ़ी है और सिवाय इस एक फर्क के दोनों में कोई फर्क नहीं।’’
दोनों सैट दोनों महानुभावों को सौंपे गये।
‘‘इस बात की और पुष्टि के लिये एक गवाह भी कोर्ट में उपलब्ध है।’’
मैजिस्ट्रेट की भवें उठीं।
‘‘मैं कोर्ट की तवज्जो दर्शकों में आखिरी लाइन में कोने में बैठे हैवी सैट, उम्रदराज महानुभाव की तरफ दिलाना चाहता हूं। वो सज्जन उस नौजवान लड़की सुजाता सुखनानी के पिता हैं दो साल पहले जिसका इस गवाह ने पेट में चाकू घोंप कर कत्ल किया था। अगर इन को बतौर गवाह तलब किया गया तो ये बेहिचक कठघरे में खड़े गवाह की – बियर्ड और नो बियर्ड – बतौर अपनी बेटी के कातिल शिनाख्त करेंगे।’’
कई गर्दनें ये देखने के लिये घूमीं कि किसकी तरफ इशारा किया जा रहा था।
‘‘गवाह इस बारे में क्या कहता है?’’ – मैजिस्ट्रेट ने ख़ुद सवाल किया – ‘‘क्या गवाह कुबूल करता है कि दो साल पहले ये एक कत्ल के केस में गिरफ्तार हुआ था और तब इसका नाम विकी जैगर था?’’
‘‘तो क्या हुआ?’’ – विकास भड़का – ‘‘ठीक है, दो साल पहले मेरे पर एक केस था . . .’’
‘‘गवाह के अपने हित में इसे राय दी जाती है कि ये गुस्ताख़ जवाब देने से परहेज रखे और अदब से कोर्ट से मुख़ातिब हो वर्ना इस पर कन्टैम्प्ट ऑफ कोर्ट का चार्ज भी लगाया जायेगा।’’
विकास के तेवर ढ़ीले पड़े।
‘‘मैं तो सिर्फ ये कह रहा था, सर . . .’’
‘‘काल मी, योर ऑनर।’’
‘‘... योन ऑनर, कि ठीक है दो साल पहले मेरे पर एक केस था . . .’’
मैजिस्ट्रेट ने सरकारी वकील की तरफ देखा।
‘‘मामूली केस नहीं’’ – कोर्ट की शै से उत्साहित सरकारी वकील बोला – ‘‘कत्ल का केस। एक केस ऑफ हीनस क्राइम ऑफ मर्डर। यू स्टैब्ड युअर लिव-इन पार्टनर टु डैथ।’’
‘‘मैं उस केस में बरी हुआ था। मैंने इरादतन चाकू नहीं चलाया था, एक्सट्रीम इमोशनल प्रैशर में मेरे में टैम्परेरी इनसैनिटी आ गयी थी जिसमें मैं चाकू चला बैठा था। अपनी उस हरकत का मुझे इतना शॉक पहुंचा था कि मैंने ख़ुदकुशी करने की कोशिश की थी लेकिन मेरी बद्किस्मती कि कामयाब नहीं हो सकता था। लेकिन जो अहम बात है, वो ये है कि मैं उस केस में बरी हुआ था।’’
‘‘तुम ने अन्डर ओथ झूठ बोला कि विकास जिन्दल के अलावा तुम्हारा दूसरा कोई नाम नहीं था।’’
‘‘नहीं झूठ बोला। कोई दूसरा नाम नहीं था मेरा।’’
‘‘विकी जैगर . . .’’
‘‘मेरा स्टेज नेम था। मैंने वो धन्धा छोड़ दिया था। स्टेज गयी तो मेरा नाम गया। उस टैम्परेरी नाम को कैसे मैं कहता कि वो मेरा पहले नाम जितना ही अहम दूसरा नाम था?’’
‘‘ये डैमेज कन्ट्रोल की कोशिश के सिवाय कुछ नहीं, बट स्टिल आई ग्रांट इट टु यू . . .’’
‘‘मेरी समझ में ये नहीं आता, योर ऑनर’’ – विपक्ष का वकील बोला – ‘‘कि मिस्टर पब्लिक प्रासीक्यूटर यूं गड़े मुर्दे उखाड़ कर साबित क्या करना चाहते हैं!’’
‘‘नहीं समझ में आता?’’ – सरकारी वकील हैरानी से बोला।
‘‘नहीं, नहीं समझ में आता।’’
‘‘मैं ये साबित करना चाहता हूं, कर चुका हूं, कि दिस मैन हैज ए क्रिमिनल माइन्ड। ही हैज एक बैकग्राउन्ड, ए हिस्ट्री आफ क्राइम! ये पहले अदालत से बरी हुआ था या इसने सजा पायी थी, ये एक जुदा मसला है लेकिन जो शाश्वत सत्य है, वो ये है कि ये शख़्स पहले भी एक कत्ल कर चुका है। यानी जघन्य अपराधों का अपराधी होना इसके लिये आम बात है।’’
‘‘ये चरित्र हनन है।’’
‘‘अरे, चरित्र होगा तो हनन होगा न!’’
‘‘आई स्ट्रांगली ऑब्जेक्ट, योर ऑनर!’’
‘‘सस्टेंड।’’ – मैजिस्ट्रेट बोला – ‘‘मिस्टर पब्लिक प्रासीक्यूटर मस्ट कर्ब हिज एन्थूजियाज्म . . .’’
‘‘आई एम सॉरी, यो ऑनर।’’
‘‘... एण्ड कनक्ल्यूड हिज क्वेश्चनिंग ऑफ दि विटनेस।’’
‘‘मैंने और कुछ नहीं पूछता, योर ऑनर। मैं ये स्थापित करना चाहता था कि इस नौजवान की क्रिमिनल हिस्ट्री है, कत्ल जैसा जुर्म भी इसके लिये कोई बड़ा वाकया नहीं। ये एक बार गुनाह के गन्दे तालाब में डुबकी लगा सकता है तो दोबारा भी लगा सकता है, तिबारा भी लगा सकता है। एण्ड ए मैन इज नोन बाई दि कम्पनी ही कीप्स। इसलिये अगर ये क्रिमिनल माइन्डिड शख़्स है तो सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इसके जोड़ीदार कैसे होंगे। इन तमाम बातों के मद्देनजर मैं कोर्ट से दरख़्वास्त करता हूं कि पुलिस की इन आरोपियों के दो हफ्ते के रिमांड की अर्जी मंजूर की जाये।’’
‘‘अर्जी मंजूर की जाती है।’’ – मैजिस्ट्रेट बेहिचक बोला – ‘‘तीनों आरोपियों को चौदह दिन के रिमांड पर पुलिस के हवाले किया जाता है। तीस दिसम्बर सोमवार को तीनों आरोपियों को वैकेशन जज के कोर्ट में पेश किया जाये। ये अदालत पुलिस को हिदायत देती है कि वो गवाह देवन नायर के रिश्वत सम्बन्धी आरोप का संज्ञान ले और अगर एक आरोपी के पिता रघुनाथ गोयल को इस अपराध का अपराधी पाती है तो अन्डर अप्रौप्रियेट पीनल कोड इसके ख़िलाफ केस दर्ज करे और कानूनी कार्यवाही को आगे बढ़ाये। दि कोर्ट नाओ विल हियर दि नैक्स्ट केस।’’
विमल अपने स्थान से उठा, उसने उस कोने की तरफ निगाह उठाई जहां कीमत राय सुखनानी बैठा हुआ था तो पाया वो वहां नहीं था। वो लपक कर कोर्ट से बाहर निकला तो सुखनानी उसे गलियारे के दूसरे सिर पर चला जाता दिखाई दिया। लगभग दौड़ता हुआ वो उसके करीब पहुंचा।
‘‘सर! सर!’’ – वो बोला – ‘‘प्लीज! प्लीज रुकिये जरा। मैंने आप से बात करनी है।’’
‘‘मालूम है क्या बात करनी है।’’ – सुखनानी बिना रुके बोला – ‘‘यहां बात नहीं हो सकती। शाम को घर आना।’’
‘‘शाम को कब?’’
‘‘पांच बजे।’’
‘‘आप घर पर होंगे?’’
‘‘झूले लाल!’’
‘‘सॉरी! ठीक है, पांच बजे हाजिर होता हूं। लेकिन यहां बात न कर पाने की वजह तो बताइये!’’
सुखनानी बिना जवाब दिये आगे बढ़ गया।
विमल वापिस लौटा।
सरकारी वकील अभी गलियारे में ही था।
‘‘नायर की क्या पोजीशन है?’’ – विमल ने पूछा – ‘‘गिरफ्तार है?’’
‘‘अभी नहीं।’’ – वकील बोला – ‘‘लेकिन हो सकता है।’’
‘‘उसकी गवाही के बिना आरोपियों को सजा नहीं होने वाली।’’
‘‘अच्छा! तुम भी वकील हो?’’
‘‘नहीं। लेकिन . . .’’
‘‘तो मुझे कानून क्यों पढ़ा रहे हो?’’
‘‘अरे, जनाब, मैं कहां आपको कुछ पढ़ा सकता हूं! मैं तो सिर्फ ये अर्ज करना चाहता था कि उसने ख़ुद को कानून के रहमोकरम के हवाले करके बहुत हिम्मत का काम किया है। पुलिस उसके साथ अच्छा अच्छा पेश न आयी तो उसकी हिम्मत दगा दे सकती है। उसकी हिम्मत बंधाये रखने के लिये जरूरी है कि उसे भविष्य में कोई आशा दिखाई दे। और ऐसा बेहतरीन तरीके से तभी होगा जब उसे वादामाफ गवाह बनाये जाने का आश्वासन होगा।’’
‘‘वो बात अन्डर एक्टिव कनसिडरेशन है। दोपहरबाद मेरी डीसीपी साहब के पास पेशी है। मेरे ख़याल से हो जायेगा ये काम।’’
‘‘पुलिस प्रोटेक्शन उसको और उसकी फैमिली को वाकेई हासिल है?’’
‘‘हां, भई। और क्या उस बाबत कोई कोर्ट में झूठ बोला मैंने?’’
‘‘सॉरी?’’
‘‘मयूर विहार में वो किराये के फ्लैट में रहता है और उसका फ्लैट गेटिड सोसायटी में है। वहां के सिक्योरिटी स्टाफ को पुलिस की ख़ास हिदायत है कि आने वालों की ऐंट्री को बहुत सख़्ती में स्क्रीन किया जाये। एक पुलिस वाला भी हर घड़ी गेट पर होगा। जमा, उसको राय दी गयी है कि कुछ दिनों के लिये वो बीवी बच्चों को दिल्ली से बाहर कहीं भेज दे। और हो सके तो कुछ दिन के लिये ख़ुद भी अपने शोरूम से छुट्टी ले ले। इससे बेहतर उसके लिये कुछ नहीं किया जा सकता।’’
‘‘काफी है इतना। बाकी वो ख़ुद सयाना है। शुक्रिया, जनाब।’’
वकील ने सहमति में सिर हिला के शुक्रिया कबूल किया।
अशरफ उसके करीब पहुंचा।
‘‘सुबह नाश्ता न कर सका।’’ – विमल बोला – ‘‘यहां आसपास तो कोई इन्तजाम होगा नहीं!’’
‘‘यहीं है।’’ – अशरफ बोला – ‘‘कोर्ट की कैन्टीन है। मेन बिल्डिंग से अलग उधर एक टैम्परेरी हाल में है। आप वहां चल के बैठिये, मैं बड़े मियां को लेकर आता हूं।’’
‘‘बड़े मियां।’’ – विमल सकपकाया – ‘‘मुबारक अली भी यहां है?’’
‘‘है न मामू! मेरी टैक्सी में बैठे हैं।’’
‘‘वहां क्यों बैठे हैं?’’
‘‘गन की रखवाली करनी थी न! कोर्ट में तो ले जा नहीं सकते थे!’’
‘‘ओह! ठीक है, जा।’’
दोनों विपरीत दिशा में आगे बढ़े; अशरफ गेट की तरफ, विमल उधर जिधर कैन्टीन बतायी गयी थी।
हरीश नेगी एक क्रूर सूरत वाला कोई पैंतालीस साल का शख़्स था। उसने मिजाज ही ऐसा पाया था कि त्योरी हर वक्त चढ़ी रहती थी और वो लड़ने झगड़ने को सदा आमादा दिखाई देता था। वो कुलदीप को सूरत से नहीं पहचानता था लेकिन नेगी की सूरत के ख़ास शिनाख़्ती निशान कुलदीप को फोन पर बताये गये थे इसलिये कुलदीप उसके पास पहुंचा और दोनों एक दूसरे से परिचित हुए।
‘‘गन लाया है?’’ – कुलदीप ने पूछा।
‘‘और आया किस लिये हूं?’’ – नेगी आदतन भुनभुनाया।
‘‘मालूम, क्या करना है?’’
‘‘मालूम। ये भी मालूम कि जो करना है, तूने करना है।’’
‘‘अबे, गन तो देगा करने के लिये कि नहीं देगा?’’
‘‘दूंगा न! और आया किसलिये हूं! पहले भी बोला।’’
‘‘सुना मैंने।’’
‘‘मैंने भी सुना कुछ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘कि तू बहुत दिलेर है! गन तेरे पास अन्दर होती तो . . . तो जो करना है, कोर्ट में ही कर डालने से गुरेज न करता।’’
‘‘ठीक सुना है।’’
‘‘वैसे . . . निशाना कौन है?’’
‘‘वो गोरा चिट्ठा क्लीनशेव्ड आदमी जो अभी काले कोट से बात करके हटा है . . . बड़ी-बड़ी आंखें, सुतक नाक, कुछ ज्यादा ही सुडौल दान्त।’’
‘‘आया पकड़ में। अकेला है?’’
‘‘मैंने तो अकेला ही देखा था। कोई साथ होगा तो अभी दिखाई दे जायेगा।’’
‘‘ है। अभी एक नौजवान लड़का उसके करीब पहुंचा। बाहर जा रहे हैं दोनों।’’
दोनों फासला रख के विमल और अशरफ के पीछे चलने लगे।
‘‘दो हैं।’’ – नेगी बोला – ‘‘कैसे होगा?’’
‘‘प्राब्लम तो होगी! लेकिन काम तो करना है जरूर! लगता है दोनों को ख़त्म करना पड़ेगा . . .’’
‘‘वो अलग हो रहे हैं।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘ख़ुद देख। वो लड़का लोहे के फाटक की तरफ जा रहा है, तेरा निशाना, आगे कैन्टीन है, उधर जाता लग रहा है।’’
‘‘बढ़िया। अब काम आसान होगा। कैन्टीन में कई खिड़कियां हैं और सब खुली हैं। बाहर से ही शूट कर दूंगा साले को। गन दे।’’
‘‘गन दूं?’’ वो मेरा पास थोड़े ही है?’’
‘‘पास नहीं है! कहां है?
‘‘बाहर। कार में।’’
‘‘कार में! तू कार में आया है?’’
‘‘लो। तो और खड़े पैर कैसे पहुंचता? चौहान साहब ने चुटकियों में दिलवाई न एक आल्टो!’’
‘‘गन ले के आ। मैं कैन्टीन पर पहुंचता हूं।’’
‘‘ठीक।’’
कैन्टीन काफी बड़ी थी और काफी व्यस्त थी।
काफी बड़ी थी इसीलिये एक टेबल उन्हें आसानी से मुहैया हो गयी।
विमल ने तीनों के लिये चाय, आमलेट, टोस्ट का आर्डर दिया।
‘‘वो सिन्धी सेठ!’’ – मुबारक अली ने पूछा – ‘‘आया तेरी दरख़्वास्त के मुताबिक?’’
‘‘आया तो सही!’’ – विमल संजीदगी से बोला – ‘‘लेकिन हैरानी है कि बात करने को न रुका। पूछने पर कोई वजह भी न बतायी। शाम को कोठी पर आने को बोला और ये जा, वो जा।’’
‘‘ओह!’’
‘‘शाम को कोठी पर बुलाया है।’’
तभी वेटर उनका आर्डर ले आया।
‘‘जायेगा?’’ – वो लौट गया तो मुबारक अली बोला।
‘‘लो! तो क्या नहीं जाऊंगा? आइन्दा होने करने की जो मैं उम्मीद कर रहा हूं, उसका सारा दारोमदार तो सिन्धी सेठ पर है। शाम पांच बजे बुलाया है . . .’’
विमल के हाथ से कांटा छिटका और मेज पर से नीचे फर्श पर जा कर गिरा।
वो कांटा उठाने को आगे को झुका . . .
तभी गोली चली।
और लोहे की चौथी ख़ाली कुर्सी की पीठ से जाकर टकराई।
तत्काल ‘गोली चली, गोली चली’ का शोर उठा।
विमल तकदीर से ही बचा था।
‘‘उधर खिड़की से चली।’’ – अशरफ उठ कर खड़ा हुआ और खिड़की की तरफ भागा।
विमल ने मेज पर एक दो सौ का नोट फेंका और अशरफ के – मुबारक अली उसके – पीछे लपका।
तब तक और लोगों को भी अहसास हो गया था कि क्या हुआ था। ‘गोली चली, गोली चली’ की आवाजों के बीच खलबली मची।
‘‘बाहर! बाहर।’’ – अशरफ जो, उनसे आगे था, चिल्लाया।
‘‘अबे, सब्र कर।’’ – मुबारक अली उसी की तरह चिल्लाया – ‘‘वर्ना लोग समझ लेंगे कि तूने चलाई।’’
‘‘परवाह नहीं, मामू पर वो साला हरामी बच के न जाने पाये।’’
सब बाहर पहुंचे। गेट से थोड़ा परे फुटपाथ से लगी एक ‘आल्टो’ खड़ी थी जिस का इंजन चालू था लेकिन जो हरकत में नहीं थी।
उसका निशाना शख़्स – जो कि कुलदीप था – झपट कर ‘आल्टो’ में सवार हुआ, तत्काल ‘आल्टो’ वहां से यूं भागी जैसी तोप से गोला छूटा हो।
वो तीनों ‘असैंट’ में सवार हुए। स्टियरिंग मुबारक अली ने सम्भाला, विमल ने उसके पहलू में पैसेंजर सीट कब्जाई और अशरफ पीछे सवार हुआ। मुबारक अली ने कार सड़क पर दौड़ाई।
‘‘दिखाई तो नहीं दे रही ‘आल्टो’!’’ – विमल चिन्तित भाव से बोला।
‘‘मेरे को दिखाई दे रही है।’’ – मुबारक अली – ‘‘आगे मथुरा रोड की लाल बत्ती पर खड़ी है। दायें मुड़ेगी। . . . अरे! लाल बत्ती पर ही निकल ली!’’
जब तक ‘असैंट’ सिग्नल पर पहुंची, लाल बत्ती हरी हो गयी। लेकिन तब तक ‘आल्टो’ इतनी आगे निकल गयी थी कि दिखाई देनी बन्द हो गयी थी।
मुबारक अली ने रफ्तार बढ़ाई।
‘‘खिड़की से बाहर’’ – अशरफ भुनभुनाता सा बोला – ‘‘एक ड्रम पर चढ़ा हुआ था ताकि आप को ठीक से निशाने पर ले पाता।’’
‘‘ले ही लिया था।’’ – विमल बोला – ‘‘ऐन मौके पर कांटा हाथ से न छूटा होता, मैं उसे उठाने के लिये आगे न झुका होता तो उसका निशाना हरगिज न चूका होता।’’
‘‘अल्लाह ने करम किया।’’ – मुबारक अली बोला – ‘‘साला हरामी काबू में आ गया तो कच्चा चबा जाऊंगा।’’
‘‘आयेगा?’’
‘‘ट्रैफिक में बहुत आगे है। कभी-कभार झलक मिलती है। साले किसी लाल बत्ती की भी तो परवाह नहीं कर रहे वर्ना किसी न किसी बत्ती पर हम उनके सिर पर होते।’’
‘‘शायद कोई है ट्रैफिक पुलिस वाला चालान के लिये रोके!’’
‘‘अभी तक तो रोका नहीं! ये साले जरूरत के वक्त कभी काम नहीं आते। चौराहे की तरफ पीठ फेर कर खड़े होते हैं कि कहीं काम न करना पड़ जाये।’’
यू ही बकते-झकते मुबारक अली ने कई सिग्नल, कई सड़कें पार कीं।
फिर कार खेल गांव रोड पर पहुंची और आगे सीरी फोर्ट मार्ग पर मुड़ी।
तब तक आसमान पर के बादल घने, काले हो गये थे और किसी भी क्षण बरस पड़ने का संकेत दे रहे थे।
‘‘दिख रही है ‘आल्टो’?’’ विमल ने पूछा।
‘‘हां।’’ – मुबारक अली बोला – ‘‘बीच में थोड़ी देर नहीं दिखी थी लेकिन अब फिर दिख रही है।’’
‘‘यहां ट्रैफिक बहुत कम है। उन से छुपा तो नहीं होगा कि हम पीछे लगे हैं!’’
‘‘अरे, इतनी देर से लगे हैं, कहां छुपा होगा!’’
‘‘गन कहां है?’’
‘‘तेरे सामने के बक्से में।’’
विमल ने ग्लव कम्पार्टमेंट को खोल कर गन अपने कब्जे में की।
‘‘किसी तरह इतना करीब पहुंच’’ – वो बोला – ‘‘कि मैं टायर को निशाना बना सकूं।’’
‘‘अभी। अभी।’’
तब ‘आल्टो’ काफी आगे खेल गांव के जंगल के समानान्तर दौड़ रही थी। एकाएक ब्रेकों की भीषण चरचराहट के साथ वो गतिशून्य होने लगी। फिर उसके पूरी तरह से रुक जाने से पहले ही कुलदीप उसमें से बाहर कूद गया और ‘आल्टो’ ने फिर रफ्तार पकड़ ली।
मुबारक अली भी जैसे ब्रेक के पैडल पर खड़ा हो गया।
‘असैंट’ के जंगल की ओर के दोनों दरवाजे एक साथ खुले, विमल और अशरफ बाहर कूदे और जंगल में भीतर वो भागे।
‘‘गन है उसके पास।’’ – अशरफ बोला।
‘‘वो तो होगी ही! गोली चलाई न मेरे पर!’’
‘‘हाथ में है। मेरे को उसकी अभी एक झलक मिली थी। गोली चला सकता है वो।’’
तभी जैसे उसके अन्देशे पर अमल हुआ।
एक गोली सनसनाती हुई उनके सिरों के ऊपर से गुजरी।
विमल ने फायर किया।
आगे कहीं से एक घुटी हुई चीख की, फिर धप्प से कुछ गिरने की आवाज आयी, फिर ख़ामोशी छा गयी।
‘‘लगता है गोली लगी है उसे।’’ – विमल बोला।
‘‘शायद।’’
तभी आगे राहदारी पर उन्हें गन पड़ी दिखाई दी।
अशरफ ने झुक कर गन उठा ली।
‘‘यकीनन लगी है।’’ – विमल उसके करीब ठिठकता बोला – ‘‘वर्ना गन न गिराई होती।’’
‘‘अब?’’
‘‘इधर पहले ही बारिश हो कर हटी जान पड़ती है जिसकी वजह से जमीन गीली है और जमीन पर बने, आगे बढ़ते उसके पैरों के निशान साफ दिखाई दे रहे हैं। अब दौड़ने की जरूरत नहीं। हम इत्मीनान से इन निशानों को फॉलो कर सकते हैं। जहां ये ख़त्म होंगे, वो वहीं होगा।’’
‘‘जख़्मी? बेहोश?’’
‘‘मुमकिन है।’’
‘‘या मरा पड़ा?’’
‘‘ये भी हो सकता है। क्या पता गोली कहां लगी!’’
‘‘ठीक।’’
‘‘आगे बढ़ो।’’
पैरों के निशान एक घने पेड़ के नीचे जा कर ख़त्म हुए।
वो पेड़ के नीचे िठठके।
‘‘कहां गया?’’ – अशरफ बोला।
विमल ने अनभिज्ञता से कन्धे उचकाये।
तभी एक बून्द टप्प से विमल के गन वाले हाथ पर टपकी।
‘‘बारिश आयी कि आयी।’’ – वो बोला।
उसने दायां हाथ पोंछने के लिये बायां हाथ आगे बढ़ाया तो हाथ ठिठक गया।
जो बून्द उसके हाथ पर टपकी थी, वो पानी की नहीं, खून की
थी।
‘‘खून!’’ – वो फुसफुसाया – ‘‘ऊपर घने पेड़ में कहीं छुपा बैठा है।’’
‘‘पेड़ चढ़ सका’’ – अशरफ भी वैसे ही फुसफुसाया – ‘‘तो ज्यादा जख़्मी तो न होगा!’’
‘‘बिलकुल!’’
‘‘मैं पेड़ पर चढ़ूं?’’
‘‘काहे को! वो नीचे आयेगा।’’ – विमल ने ऊपर की तरफ सिर उठाया और उच्च स्वर में बोला – ‘‘नीचे आ जा।’’
सन्नाटा।
‘‘नहीं तो मैं गोली चलाता हूं। फल की तरह टपकेगा पेड़ पर से।’’
कोई प्रतिक्रिया सामने न आयी।
‘‘आसमान में काले बादलों की वजह से यहां अन्धेरा है।’’ – अशरफ बोला – ‘‘ऊपर तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा! कैसे गोली चलायेंगे उस पर?’’
विमल सोचने लगा।
‘‘ऊपर से नीचे देखना आसान होगा। उसने पहले चला दी तो?’’
‘‘नॉनसेंस! उसकी गन हमारे कब्जे में है।’’
‘‘और हुई तो?’’
‘‘नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल है कि एक शख़्स एक ही वक्त में दो गन लिये फिरता हो। वैसे भी अगर उसके पास और गन होती तो ऊपर पेड़ पर न जा छुपा होता। तो वो ऊपर से हम पर कब का गोली चला चुका होता। तूने ख़ुद बोला कि ऊपर से नीचे देखना आसान होगा।’’
‘‘ठीक। तो?’’
‘‘टार्च! अपने मोबाइल की टार्च आन कर। मैं भी करता हूं।’’
ऊपर पेड़ों पर दो टार्चों की रौशनी पड़ी और दायें बायें पैन हुई।
उन्हें पत्तियों की ओट में एक शाख पर बैठा वो दिखाई दिया।
‘‘तू दिखाई दे रहा है मेरे को।’’ – विमल सख़्ती से बोला – ‘‘नीचे आ जा वर्ना मैं गोली चलाता हूं। इतनी हाइट से गिरेगा तो गोली से ज्यादा डैमेज गिरने से होगा बॉडी को! रीढ़ की हड्डी टूट गयी तो हमेशा के लिये अपाहिज हो जायेगा। मैं चलाऊं गोली?’’
‘‘न-नहीं।’’ – ऊपर से कुलदीप फंसे कण्ठ से बोला।
‘‘नीचे आता है ख़ुद?’’
‘‘हं-हां।’’
‘‘आ। फौरन।’’
वो धीरे-धीरे पेड़ से नीचे उतरा।
विमल और अशरफ उससे दो कदम पीछे हट गये। अशरफ ने टार्च बन्द कर दी, विमल ने अच्छी तरह से उसका – ख़ास तौर से उसकी सूरत का – मुआयना किया और फिर टार्च बन्द की।
‘‘हाथ ऊपर।’’ – विमल ने आदेश दिया।
कुलदीप ने आदेश का पालन किया।
‘‘गोली कहां लगी?’’
उसने अपना दायां हाथ दिखाया जिससे अंगूठे के करीब हथेली से तब भी खून रिस रहा था।
‘‘हड्डी टूटी?’’
उसने इंकार में सिर हिलाया।
‘‘फिर तो खुशकिस्मत है! है कौन तू?’’
उसने जवाब न दिया।
‘‘पहली बार बच गया तो इसका मतलब ये नहीं है कि हर बार बच जायेगा। मैं अभी तेरा घुटना फोड़ता हूं, फिर दूसरा। फिर बस। फिर लुंज पुंज यहां उजाड़ जंगल में पड़ा तू ख़ुद ही मर जायेगा। चाहता है कि तुझे ऐसी मौत आये?’’
उसने जोर से इंकार में सिर हिलाया।
‘‘तो जवाब दे। कौन है तू? किसका हुक्मबरदार है? किसके कहने पर तूने कोर्ट में मुझे मार डालने में कसर न छोड़ी?’’
उसने बेचैनी से पहलू बदला।
‘‘तेरी मेरे से कोई जाती दुश्मनी तो हो नहीं सकती! तूने किसी का हुक्म बजाया जो दिनदहाड़े कोर्ट परिसर में मेरे पर गोली चलाने की जुर्रत की। नाम ले अपने मालिक का! किसके अन्डर में चलता है? ठेकेदार के या . . .’’
‘‘ख़बरदार!’’ – एकाएक पीछे से कर्कश, अधिकारपूर्ण आवाज आयी – ‘‘हिलना नहीं। तुम दोनों नाइन एमएम पिस्टल के निशाने पर हो।’’
विमल सन्नाटे में आ गया।
वो शख़्स पीछे से इनके इतने करीब पहुंच गया था और उन्होंने उसकी कोई आहट नहीं सुनी थी।
‘‘बायें वाले! तेरे को बोल रहा हूं मैं। गन को नाल से पकड़। वर्ना मैं ट्रीगर खींचता हूं।’’
जाहिर था कि उसे इमकान नहीं था कि अशरफ भी – कुलदीप की गन से – हथियारबन्द था।
अशरफ का हाथ धीरे-धीरे जैकेट की दायीं जेब की ओर सरकने लगा जिसमें कि कुलदीप की गन थी।
तीव्र अनिच्छा के हवाले विमल ने आदेश का पालन किया।
‘‘कुलदीपे, गन कब्जा ले।’’
कुलदीप दृढ़ता से आगे बढ़ा।
वो करीब पहुंचा तो विमल ने एकाएक गन हवा में उछाल दी।
कुलदीप और नाइन एमएम वाले दोनों की निगाहें स्वयमेव ही गन के पीछे ऊपर को उठीं।
विमल ने बिजली की फुर्ती से घूम कर पीछे छलांग लगाई और पिछले हमलावर को लिये-दिये जमीन पर लोट गया।
अशरफ आगे बढ़ते कुलदीप पर झपटा।
पिछला हमलावर विमल की अपेक्षा से ज्यादा फुर्तीला था, उसने चुटकियों में विमल को परे धकेल दिया और उछल कर अपने पैरों पर खड़ा हुआ।
कुलदीप ने करीब आते अशरफ पर दोलत्ती चलाई। अशरफ परे जा कर गिरा। उठने की कोशिश की जगह उसने गन के लिये जैकेट की जेब की तरफ हाथ बढ़ाया तो हाथ जैकेट में कहीं उलझ कर रह गया।
‘‘नेगी, भाग!’’ – कुलदीप चिल्लाया।
नेगी फौरन पेड़ों के करीब झुरमुट की तरफ भागा।
कुलदीप ने पांव की एक ठोकर तब भी फर्श पर लुढ़के पड़े अशरफ की पसलियों में जमाई। अशरफ का हाथ जैकेट से अलग हो गया, पीड़ा से बिलबिलाते उसने दोनों हाथों से अपनी छाती थाम ली।
कुलदीप ने बड़ी सहूलियत से उसकी जैकेट की जेब से अपनी गन खींच ली और गोली की रफ़्तार से नेगी के पीछे भागा।
विमल ने झपट कर जमीन पर गिरी अपनी गन उठाई और झुके-झुके ही उसके पीछे दो फायर झोंके।
कोई प्रतिक्रिया सामने न आयी।
प्रत्यक्षतः कोई गोली निशाने पर नहीं लगी थी।
फिर भागते कदमों की आवाज आनी भी बन्द हो गयी।
‘‘निकल गये साले!’’ – हांफता हुआ विमल हताश भाव से बोला।
‘‘पीछे चलें?’’ – अशरफ उठ कर खड़ा होता बोला।
‘‘कोई फायदा नहीं। पहले की गन वापिस उसके पास पहुंच गयी है। वो अब हथियारबन्द है, पीछे आते कदमों की आहट सुनते ही गोली चला देगा।’’
‘‘दूसरा भी।’’
‘‘नहीं, दूसरा नहीं। कमीना ब्लफ खेल गया हमारे साथ। उसके पास गन थी ही नहीं।’’
‘‘ऐसा!’’
‘‘हां। मेरे को पक्का है उसके पास गन नहीं थी। जितनी सहूलियत से उसने मेरे को अपने पर से परे धकेल दिया था, गन होती तो उतनी ही सहूलियत से वो मुझे शूट भी कर सकता था। ऐसा करने की जगह वो भाग खड़ा हुआ। साला श्याना यूं ही नाइन एमएम पिस्टल की हूल दे गया।’’
‘‘भाईजान, इतनी मेहनत की, जान जोखम में डाली, हाथ फिर भी कुछ न आया।’’
‘‘आया न! ये आया कि जिसने कैंटीन में गोली चलाई थी, उसका नाम कुलदीप था और जो ग़ैरहाजिर पिस्टल के साथ बाद में आया था, उसका नाम नेगी था।’’
‘‘नामों से क्या होता है?’’
‘‘भई, भागते भूत की लंगोटी होता है।’’
तभी दूसरे की, नेगी की गर्दन थामे उसे लगभग अपने साथ घसीटता मुबारक अली वहां पहुंचा।
‘‘बल्ले!’’ – विमल बोला – हम तो लंगोटी की ही ख़ैर मना रहे थे, बड़े मिया तो लंगोट ले आये बड़ा वाला।’’
‘‘साला दूसरा पकड़ में न आया।’’ – मुबारक अली हांफता-सा बोला – ‘‘निकल गया।’’
‘‘शक्ल देखी?’’
‘‘नहीं। ख़ाली भागता देखा। पीठ देखी, बस।’’
‘‘ओह!’’
‘‘इधर ही से तो भागा था! तुम लोगों ने तो देखी होगी?’’
‘‘देखी, पर ठीक से न दिखी। मोबाइल की टार्च की चमक में औनी पौनी दिखी।’’
‘‘आसमान में काले बादल थे।’’ – अशरफ बोला – ‘‘यहां घने पेड़ थे। साला दिन में ही रात का माहौल था, मामू।’’
‘‘था कौन कम्बख़्तमारा? क्यों तेरे पर दिन दहाड़े गोली चलाई। वो भी कोरट में?’’
‘‘कुछ पता न चल पाया।’’ – विमल बोला – ‘‘अभी काबू में आया ही था, पूछना शुरू किया ही था कि ये आ गया।’’ – विमल ने घूम कर उसे देखा – ‘‘नाइन एमएम पिस्टल वाला। कहां है बे, पिस्टल? निगल गया? या पिछवाड़े में ले ली?’’
उसने जवाब न दिया। उसके गले की घन्टी जोर से उछली।
‘‘नेगी नाम है तेरा। सबसे पहले पूरा नाम बोल। फिर बोल कि . . .’’
एक गोली सनसनाती हुई आयी और नेगी की कनपटी में धंस गयी।
मुबारक अली ने नेगी का निश्चेष्ट होता शरीर हाथ से निकल जाने दिया और एक तरफ छलांग लगाई।
विमल और अशरफ दोनों ने एक पेड़ की ओट पाने के लिये दूसरी तरफ डाई लगाई।
और गोली न चली।
विमल ओट से निकला और नेगी के करीब पहुंचा।
‘‘ये तो गया!’’ – वो बोला – ‘‘यहां और रुकना ठीक नहीं। निकल लो।’’
शाम को निर्धारित समय पर विमल सिविल लाइंस में सिन्धी सेठ कीमत राय सुखनानी की कोठी पर मौजूद था।
अशरफ उसके साथ था।
सुखनानी उन्हें उसी आफिसनुमा कमरे में मिला, शनिवार सात दिसम्बर को जिसमें वो विमल से मिला था।
अभिवादनों का आदान प्रदान हुआ।
सुखनानी ने अपलक अशरफ की तरफ देखा।
अशरफ विचलित हुए बिना न रह सका।
‘‘लगता है – अशरफ पर से निगाह हटाता सुखनानी विमल से सम्बोधित हुआ – ‘‘जैसे तुम्हारी कोई ख़ास, खुफिया आइडेन्टिटी है, वैसे इसकी भी कोई ख़ास, खुफिया आइडेन्टिटी है; जैसे तुम्हारे किरदार पर पर्दे हैं, वैसे ही टैक्सी ड्राइवर होने के अलावा ये भी कुछ और हैं!’’
‘‘जी हां, है।’’ – विमल सहज भाव से बोला – ‘‘ये मेरा अजीज दोस्त है।’’
‘‘टैक्सी ड्राइवर!’’
‘‘मुझे इसके कारोबार से कुछ लेना देना नहीं। दोस्त दोस्त पहले होता है, बाकी सब कुछ बाद में होता है।’’
‘‘हूं।’’
‘‘आपको इसकी यहां मौजूदगी से कोई परेशानी है तो मैं इसे यहां से रुख़सत कर देता हूं।’’
‘‘अगर ये तुम्हारे भरोसे का है . . .’’
‘‘पूरे भरोसे का है।’’
‘‘... तो मुझे कोई परेशानी नहीं।’’
‘‘शुक्रिया।’’
‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’
‘‘पहले तो ये जानना चाहता हूं कि सुबह कोर्ट में मेरी बात सुनने में आपको क्या प्राब्लम थी!’’
‘‘वहां ‘गोल्डन गेट’ का एक मुलाजिम मौजूद था। वहां का सिक्योरिटी स्टाफ। जो वहां के सिक्योरिटी चीफ गजानन चौहान के अन्डर काम करता है। नाम हरीश नेगी।’’
‘‘नेगी!’’
‘‘हां। वाकिफ हो उससे?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘नेगी सरनेम पर चौंके, इसलिए पूछा।’’
‘‘आप कुछ कह रहे थे!’’
‘‘हां। वो – हरीश नेगी – मुझे पहचानता था मैं नहीं चाहता था कि वो मुझे तुम्हारे से गुफ्तगू में मसरूफ देखता।’’
‘‘इसमें न चाहने वाली क्या बात थी?’’
‘‘बात तुम्हारे मिस्टीरियस किरदार में है। मैं नहीं जानता तुम कौन हो! नहीं जानता क्योंकि तुम बताना नहीं चाहते। मेरे अन्दर से उठती आवाज मुझे कहती है कि तुम कोई ऐसे शख़्स हो सकते हो जिसके इन्टरेस्ट्स उन लोगों के बरखिलाफ हैं।’’
‘‘किन लोगों के?’’
‘‘बोलूंगा। उस वक्त बस, मुझे यही सूझा था कि कोई मुझे तुम्हारे साथ न देखे। मेरे को तो वहां जाना ही नहीं चाहिये था। तुम्हारे कहने पर मैं वहां गया . . .’’
‘‘जोकि बहुत अच्छा किया। आपकी वजह से मैजिस्ट्रेट को यकीन आया कि दस साल पहले जो दड़ियल विकी जैगर आपकी बेटी के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार था, वो ही अब एक दूसरे जघन्य अपराध का अपराधी बन कर बतौर क्लीनशेव्ड विकास जिन्दल उसके सामने खड़ा था। उस लड़के को अपने दो क्राइम के साथियों समेत लम्बी सजा सुनायी जाना अब महज वक्त की बात है। कानून ने उनकी नौजवानी पर रहम भी खाया तो कम-से-कम दस साल की सजा होना लाजमी है, ऐसा न हुआ तो उम्र कैद भी हो सकती है, फांसी भी हो सकती है। जब से निर्भया कांड हुआ है, कानून ऐसे मामलों में बहुत सख़्ती बरत रहा है।’’
‘‘उस सारे केस का दारोमदार एक, महज एक गवाह पर है।’’
‘‘वो गवाह अपनी गवाही से नहीं हिलने वाला।’’
‘‘एक बार हिल चुका है।’’
‘‘अब नहीं हिलने वाला। मैं गारन्टी करता हूं। अब मुजरिमों को बड़ी सजा हो के रहेगी।’’
‘‘न हुई तो?’’
‘‘तो मैं ख़ुद अपने हाथों से आपके गुनहगार को गोली मार दूंगा।’’
वो हड़बड़ाया, फिर बोला – ‘‘पहले ही क्यों न मार दी?’’
‘‘क्योंकि मैं ख़ामख़ाह का ख़ूनख़राबा पसन्द नहीं करता। क्योंकि जब सीधी उंगलियों से घी निकलता दिखाई देता हो तो उंगलियों टेढ़ी करना जरूरी नहीं होता।’’
‘‘तुम कौन हो?’’
‘‘दाता!’’
कुछ क्षण खामोशी रही।
‘‘आप अपनी बेटी के कातिल का बुरा अंजाम चाहते हैं।’’ – फिर विमल ने खामोशी भंग की – ‘‘वो लड़का दस साल की जेल की सजा पाता है तो ये उसका कोई कम बुरा अंजाम न होगा। मैंने पहले ही अर्ज किया कि सजा उम्र कैद भी हो सकती है, फांसी भी हो सकती है। मैंने ये भी कहा कि अगर ऐसा कुछ भी न हुआ तो मैं ख़ुद अपने हाथों से उसे गोली मार दूंगा। और आपको क्या चाहिये? आपकी मुराद पूरी हो तो रही है! वो लड़का जेल में है और एक लम्बे अरसे तक जेल में ही रहेगा, इसका मैं आपको आश्वासन देता हूं। जब ख़ुद आपकी कतई कोई पेश न चली, दो साल बाद भी आप प्रतिशोध की ज्वाला में जल ही रहे हैं तो ये कोई बुरा सौदा नहीं। उसको दस साल की सजा तो होके रहनी है इसलिये इसे आप को आप की बेटी के साथ आखिर हुआ इंसाफ तसलीम करना चाहिये। और अब आपको अपने इस ऐलान पर खरा उतर कर दिखाना चाहिये कि जो कोई भी आपको सुजाता के कातिल के बुरे अंजाम की ख़बर ला के देगा, उसे जो चाहे आप से मांग लेने की छूट होगी। अब आप अपनी बात से मुकरेंगे तो . . .’’
‘‘चड़या हुआ है!’’
‘‘... मैं समझूंगा कि आपने अपना मतलब हल करना था – जो कि आपने कर लिया – बाकी सब जुबानी जमा ख़र्च था, आपका प्रोफेशनल गैम्बिट था जिसे आपने कामयाबी से अंजाम दिया।’’
‘‘अरे, पुटडे़, क्यों मेरे पर बेजा इलजाम लगा रहा है . . .’’
‘‘कहां तो आप कह रहे थे कि मैं आपकी चमड़ी की जूती पहनने की मांग करूंगा तो मेरी मांग पूरी होगी . . .’’
‘‘होगी। होगी। होगी। लेकिन मुझे मालूम तो हो कि मैंने किस की मांग पूरी करनी है। तू पर्देदारी बन्द कर, मैं तेरी मांग पूरी करता हूं। तू मुझे यकीन दिला कि तू इतने दम ख़म, हौसले वाला मानस है कि उस कम्बख़्त लड़के को सजा न हुई तो तू सच में उसको ख़ुद गोली मार देगा, मैं तेरी मांग पूरी करता हूं। मुझे यकीन दिला कि अपना कोई मतलब हल करने के लिये तू भी मेरे साथ कोई गेम नहीं खेल रहा, यकीन दिला कि वो जो प्रोफेशनल गैम्बिट करके तू बोला, तू मेरे पर आजमा नहीं रहा है, मैं तेरी मांग पूरी करता हूं।’’
विमल ने गहरी सांस ली, असहाय भाव से गर्द हिलाई, फिर अशरफ से बोला – ‘‘बता, भई।’’
‘‘सेठ जी।’’ – अशरफ बोला – ‘‘ये सोहल है।’’
‘‘क्या!’’ – सुखनानी चिहुंक कर बोला।
‘‘सोहल! सोहल है ये!’’
‘‘वो . . . वो इश्तिहारी मुजरिम जिसकी गिरफ्तारी पर तीन लाख का ईनाम है . . .’’
‘‘इसके तमाम कारनामे उजागर होते तो ईनाम तीस लाख का होता।’’
‘‘... सात राज्यों की पुलिस को जिसकी तलाश है!’’
‘‘जिनमें एक राज्य दिल्ली है।’’
‘‘झूले लाल! वो इश्तिहारी मुजरिम सोहल मेरे सामने बैठा है!’’
‘‘हां। गिरफ्तार करायें तो तीन लाख का ईनाम आपको मिलेगा।’’
‘‘लक्ख दी लानत हई! तू क्या समझता है मेरे को? धोखेबाज! पीठ पीछे वार करने वाला! अहसानफरामोश!’’
अशरफ चुप रहा।
‘‘यानी मैंने ठीक पहचाना था’’ – सुखनानी मन्त्रमुग्ध भाव से विमल को देखता बोला – कि तुम्हारी पर्सनैलिटी में, तुम्हारे मुकम्मल वजूद में ऐसा कुछ था, जो आम नहीं, ख़ास था। इसलिये तू . . . तुम कोई आम आदमी नहीं, ख़ास आदमी थे। मेरी ये सोच तब पुख़्ता हुई थी जब आनन-फानन उन बलात्कारी छोकरों पर का केस रीओपन हुआ था और आनन-फानन ही वो गिरफ्तार हो गये थे।’’
‘‘फिर भी मुझे परख रहे थे! मेरी कैफियत पर, मेरी कूवत पर शक कर रहे थे?’’
‘‘झूले लाल! अरे, पुटड़े, ख़ास आदमी समझा न, तू इतना ख़ास निकलेगा, सोहल निकलेगा, ये तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।’’
विमल हंसा।
‘‘जो जाना, उसे राज रखेंगे?’’ – फिर बोला।
‘‘कलेजे से लगा कर! मैं नाशुक्रा नहीं, सोहल साईं।’’
‘‘विमल।’’
‘‘मैं नाशुक्रा नहीं। तू बोल, बेख़ौफ बोल, क्या चाहता है!’’
‘‘बोलता हूं। सुनिये। आप ‘गोल्डन गेट’ के रेगुलर पैट्रन हैं . . .’’
‘‘तेरे को कैसे मालूम?’’
‘‘सवाल न करें। बात सुनें मेरी। तवज्जो के साथ।’’
‘‘सॉरी!’’
‘‘आपके वहां पहुंचने का अन्दाज अनोखा भी है और खुफिया भी है। आप लेट नाइट अपनी मर्सिडीज ख़ुद ड्राइव करते सीधे हौजख़ास और आगे ‘गोल्डन गेट’ नहीं पहुंचते, आप ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन पर पहुंचते हैं जहां आप अपनी मर्सिडीज पार्क करते हैं और जहां से आपको एक ‘इडिका’ ‘गोल्डन गेट’ ले जाने के लिये पिक करती है।’’
सुखनानी के नेत्र फैले, उसने कुछ करने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर मजबूती से बन्द कर लिया।
‘‘रेस्टोरेंट में दाखिल होते ही आप सीधे हाल के रियर में पहुंचते हैं जहां रिजर्व्ड की तख़्ती लगी एक टेबल पर बिराजते हैं। फौरन आपको एक वैलकम ड्रिंक सर्व होता है जो कि वहां का रिवाज है, जिसमें कि आप कोई दिलचस्पी नहीं लेते। फिर स्टीवार्ड आपके पास पहुंचता है तो आप उसे अपने मोबाइल की स्क्रीन दिखाते हैं जिस पर एक कोड नम्बर दर्ज होता है . . .’’
‘‘ये . . . ये भी मालूम है!’’
‘‘वो कोड नम्बर आपकी ख़ास शिनाख़्त को पुख़्ता करता है, आपकी प्रिव्लेज्ड पैट्रन होने की आईडेन्टिटी कनफर्म करता है और आपको – एक्सक्लूसिव कस्टमर को-किसी एक्सक्लूसिव एरिया में जाने का हकदार बनाता है। आप उठ कर स्क्रीन के पीछे जाते हैं जहां कि कबाड़ से भरा एक कमरा है और ग़ायब हो जाते हैं। ऐसे ही दो और जने वहां पहुंचते, आप सरीखा ट्रीटमेंट पाते हैं और गायब होते देखे जाते हैं। उन दो में एक विग जैसे घने सफेद बालों वाला आपकी उम्र का शख़्स था . . .’’
‘‘अमृतलाल भसीन। साउथ एक्स में ज्वेलरी का शोरूम है।
‘‘... दूसरा एक लम्बा ऊंचा, रौबदार, उम्रदराज सिख था।’’
‘‘वरयाम सिंह बेदी। ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है। दर्जन भर छोटी बड़ी ‘वोल्वो’ बसें हैं। कनॉट प्लेस में आफिस है।’’
‘‘अब हमारा सवाल ये है सेठ जी, कि ‘गोल्डन गेट’ में ऐसा खुफिया ठिकाना कहां है, और वहां क्या है, जिसकी इतनी बड़ी, रखूस वाली, एक्सक्लूसिव क्लायन्टेल है और जहां की सर्विस क्लायन्ट्स को इतनी एहतियात से, इतने खुफिया तरीके से, इतनी स्क्रीनिंग के बाद हासिल होती है? जहां के ख़ास मेहमान घन्टे दो घन्टे के लिये नहीं आते, सारी रात ठहरते हैं और मुंह अन्धेरे चोरों की तरह निकल कर वहां से जाते हैं। हमारा पहला कयास ये था कि रिजर्व्ड टेबल्स के आगे जो स्क्रीन थी, उसके पीछे कोई एक्सक्लूसिव डायनिंग एरिया था जहां वीआईपी कस्टमर्स को ही जाने की इजाजत थी। वो कयास तब गलत साबित हो गया जबकि मैंने स्क्रीन के पीछे के कमरे में फर्नीचर और किचन एक्विमेंट्स का कबाड़ भरा पाया। जमा, डायनिंग एरिया में किसी के रात भर ठहरने का कोई मतलब नहीं होता। तब उस सैट अप से ताल्लुक रखता दूसरा जवाब हमें ये सूझा कि वहां हाई क्लास, वैस्टर्न स्टाइल का कैट हाउस चलता था . . .’’
सुखनानी की भवें उठीं।
‘‘बारडेलो! व्होर हाउस! ब्राथल! रण्डीखाना!’’
‘‘ओह!’’
‘‘सुबह-सेवेरे, मुंह अन्धेरे वहां से सात-आठ खूबसूरत कड़क नौजवान लड़कियां भी निकलती देखी गयी थीं।’’
‘‘ये सारी निगाहबीनी तूने . . . तुमने की?’’
विमल ने अशरफ की तरफ देखा।
अशरफ ने हौले से सहमति से सिर हिलाया।
‘‘यानी मेरा ख़याल सही था’’ – सुखनानी बोला – ‘‘कि टैक्सी ड्राइवर होने के अलावा तू कुछ और था, बहुत कुछ और था!’’
‘‘आपके ख़याल की क्या बात है, जनाब।’’ – अशरफ अदब से बोला।
सुखनानी ने वापिस विमल की ओर देखा।
‘‘फिर हमें ये भी सुझाया गया कि वो कोई समगलिंग का सैट अप था। लेकिन हम आपका तसव्वुर समगलर के तौर पर न कर सके।’’
सुखनानी ने कृतज्ञ भाव से सहमति से सिर हिलाया।
‘‘फिर वहां नौजवान लड़कियों की मौजूदगी उजागर थी जिनके बारे में हमें बताया गया कि वहां जो समगलिंग के माल के ख़रीदार ख़ुफिया तौर पर जमा होते थे, वो उनकी दिलजोई के लिये होती थीं। हम आप का तसव्वुर एक स्त्री सुख के अभिलाषी शख़्स के तौर पर भी न कर सके। इसलिये अब हमारा सवाल ये है सेठ जी, कि असल में वहां ख़ुफिया क्या है?’’
‘‘क्यों जानना चाहते हो?’’
‘‘जनाब, आपकी पेशकश है कि मैं बदले में जो चाहूं, आप से मांग लूं। मैं कोई जमीन जायदाद, धन दौलत, सोना चांदी नहीं मांग रहा, मैं सिर्फ एक जानकारी शेयर करने की दरख़्वास्त कर रहा हूं जो कि आपको है और मुझे जिसकी जरूरत है।’’
‘‘लेकिन ये नहीं बताओगे कि क्यों जरूरत है?’’
‘‘बताने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। बात सिरे पर पहुंचेगी तो ख़ुद ही समझ जायेंगे।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘तो सुनो। वहां खुफिया जुआघर है।’’
‘‘जी!’’
‘‘कैसीनो। लास वेगास स्टाइल। ब्लैकजैक, बाकराट् (BACCARAT), पोकर, रूले (ROULETTE), दि वर्क्स। वहां एक बेसमेंट है जहां हर तरह के जुए का इन्तजाम है और मिनीमम बैट हजार रुपये है। बड़े, आधुनिक कैसीनोज की तरह कलई चिप्स से गेम होता है जिनकी वैल्यू हजार, दो हजार, पांच हजार और दस हजार रुपये हैं। लाल हजार, सफेद दो हजार, नीली पांच हजार, हरी दस हजार। वैसा जुआ भारत में गैरकानूनी है इसलिये वहां चोरी छुपे होता है, उसका सीक्रेट स्टेटस बना रहे, इसके लिये बहुत एहतियात बरती जाती है। बहुत लिमिटिड प्रीरजिस्टर्ड लोगों को वहां एंट्री अलाउड है। ऐसे मेम्बरान गिनती में नब्बे हैं जिनको रोज मोबाइल पर एसएमएस के जरिये एक कोड इशु होता है जो रोज बदलता है। ऐसे किसी मेम्बर को रात को एक निर्धारित समय के बाद ‘गोल्डन गेट’ पहुंच कर पहले तो वो कोड दिखाना पड़ता है। उसके बाद उसे पिछवाड़े के उस कमरे में जाने की इजाजत मिलती है, प्रत्यक्षतः जो कबाड़ का स्टोर है लेकिन उसके पिछवाड़े में एक खुफिया लिफ्ट है जो मेम्बर को नीचे बेसमेंट में स्थापित कैसीनो में लेकर जाती है।’’
‘‘खुफिया लिफ्ट बोला?’’
‘‘क्योंकि दिखाई देती कहां है! पिछवाड़े में बस एक आम कमरे की एक सपाट दीवार दिखाई देती है। उस दीवार में एक कोने में एक पैनल है, बहुत ग़ौर से देखने पर ही जिस पर निगाह पड़ती है। वो एक कम्प्यूटर सिस्टम की कन्ट्रोल पैनल है जिसमें नब्बे मेम्बरान के थम्ब प्रिंट, बायें हाथ के अंगूठे के निशान, स्कैंड हैं। वो लिफ्ट थम्ब इम्प्रिंट के स्कैन से ही एक्टीवेट होती है। कम्प्यूटर थम्ब इम्प्रिंट को चौकस पाता है तो पैनल की स्क्रीन हरी हो जाती है, नहीं तो उस पर कोई रियेक्शन रिकार्ड नहीं होता। स्क्रीन हरी हो जाये तो दीवार में एक पैनल बेअवाज अपनी जगह से सरकती है और वो लिफ्ट नुमायां हो जाती है जिस पर सवार होकर नीचे बेसमेंट में जाया जा सकता है।’’
‘‘बेसमेंट में भी कोई सिक्योरिटी चैक है?’’
‘‘नहीं। मेम्बर को लिफ्ट उपलब्ध होना उसके सिक्योरिटी स्टेट्स को सबसे बड़ी ओके है जिसके बाद कोई चैकिंग जरूरी नहीं समझी जाती।’’
‘‘आई सी। बेसमेंट इतनी बड़ी है कि तमाम के तमाम मेम्बर उसमें समा जायें?’’
‘‘नहीं। चालीस से ज्यादा मेम्बरान के लिये वहां जगह नहीं है लेकिन इतनी जगह काफी समझी जाती है क्योंकि एक दिन में तीस-पैंतीस से ज्यादा मेम्बरान वहां नहीं पहुंचते।
‘‘पहुंच तो सकते हैं! जब न्योता नब्बे को जारी किया जाता है तो पहुंच तो सकते हैं!’’
‘‘ऐसा अमूमन नहीं होता लेकिन हो जाता है तो फर्स्ट कम, फस्ट सर्व्ड वाला रूल लागू किया जाता है। चालीस मेम्बर बेसमेंट में पहुंच जाते हैं तो उनके बाद जाने वालों को सॉरी बोल कर वापिस भेज दिया जाता है।’’
‘‘जुआ सारी रात चलता है?’’
‘‘सारी रात ही समझो। लास्ट बैट का टाइम साढ़े चार बजे का है। उसके बाद क्लोजिंग की ड्रिल शुरू हो जाती है।’’
‘‘मतलब?’’
‘‘भई, मेहमानों ने टोकन कैश कराने होते हैं। यूं बड़ी ट्रांजेक्शंस होनी होती है, टाइम तो लगता है न!’’
‘‘आई सी।’’
‘‘फिर भी वो सब निपटाया जाने में आधे घन्टे से ज्यादा टाइम कभी नहीं लगता। लिहाजा हद से हद पांच बजे तक मेहमान रुख़सत होने शुरू हो जाते हैं?’’
‘‘सब आखिरकार ही, क्लोजिंग टाइम पर ही रुख़सत होते हैं?’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं। कोई मेहमान जल्दी रुख़सत पाना चाहता है चला जाता है। सारे ही मेहमान ऐसे निकल आयें तो जाहिर है कि कैसीनो जल्दी बन्द हो जाता है लेकिन मेरी जानकारी में ऐसा कभी हुआ नहीं कि कैसीनो बिफोर क्लोजिंग टाइम बन्द हो गया हो।’’
‘‘आप रोज जाते हैं?’’
‘‘रोज तो नहीं जाता लेकिन अक्सर तो जाता ही हूं! बेटी के साथ जो बीती थी, वो मेरे पर बहुत भारी गुजरी थी। उसकी ट्रेजेडी की तरफ से ध्यान बंटाने के लिये, अपनी जेहनी पशेमानी की तरफ से वक्ती तवज्जो हटाने के लिए मेरे को कोई शगल दरकार था और जो शगल सामने दिखाई देता था, वो कैसीनो था। मैं सारी रात कैसीनों में गुजारता था, अगली सुबह टुन्न होके घर लौटता था और सारा दिन सोया रहता था। शाम को फिर चल देता था।’’
‘‘कमाल है! तो अपने कारोबार की तरफ कब तवज्जो देते थे?’’
‘‘नहीं देता था। कारोबार मेरे उसे निगलैक्ट करने के बावजूद कुछ अरसा तो चला क्योंकि लुढ़कती बाल को धक्का न भी दिया जाये तो रुक जाने से पहले कुछ अरसा तो लुढ़कती ही रहती है न!’’
विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘वो नौबत आने से पहले मैं थोड़ा चेता तो सही लेकिन इतना न चेता कि डिजास्टर की तरफ बढ़ते कारोबार को पूरी तरह से काबू में कर पाता। अब पिछले चार पांच महीनों से मैं कैसीनो रोज तो नहीं जाता, जाता हूं तो बिल्कुल ही टुन्न होकर नहीं लौटता हूँ, लेकिन कारोबार फिर भी चौपट है।’’
‘‘दो साल . . . दो साल हो गये आपकी बेटी की ट्रेजेडी को। कहते हैं वक्त बड़े-बड़े गम भुला देता है! आपके साथ ऐसा न हुआ?’’
उसने हताशा की गहरी सांस ली।
‘‘नहीं ही हुआ, पुटडे़!’’ – फिर बोला – ‘‘क्यों न हुआ, इसकी वजह मैंने पिछली मीटिंग में बयान की थी। मैंने ही न होने दिया। मैंने ही वक्त की पेश न चलने दी। मैंने पहले ही बोला था कि उस बद्बख़्त छोकरे ने मुझे ऐसा जख़्म दिया था जो मैं ही नहीं चाहता था कि भरता।’’
‘‘सूखने पर आता है तो आप उसे खुरच के ख़ुद हरा कर देते हैं!’’
‘‘हां। लेकिन अब मेरा मन चैन पायेगा। अब ऐसा नहीं करूंगा।’’
‘‘आप कहते हैं कारोबार चौपट है। कितना चौपट है?’’
‘‘बहुत चौपट है। बुरा हाल है।’’
‘‘अब आपके मन की मुराद पुरी होने के हालात पैदा हुए हैं तो काबू में कर पायेंगे बुरे हाल को?’’
उसने उस बात पर गम्भीर विचार किया।
फिर इंकार में सिर हिलाया।
‘‘मेरे पर बाजार का कर्जा है।’’ – वो ग़मग़ीन लहजे से बोला – ‘‘बाजार से ज्यादा मेरे पर कैसीनो का कर्जा है।’’
‘‘जी!’’
‘‘अपनी बुरी तरह से हिली हुई जेहनी हालत की वजह से मैं जुआ भी तो तवज्जो से नहीं खेल पाता था।’’
‘‘ओह!’’
‘‘इसलिये अक्सर हारता था। इसलिये कैसीनो का क्रेडिट बिल्ड अप होता चला जाता था।’’
‘‘उन्हें ये मंजूर था?’’
‘‘था भी और फिलहाल है भी। उनकी निगाह में मैं बड़ा व्यापारी हूं, मेरा एक्सपोर्ट का बड़ा बिजनेस है जिसकी मौजूदा ख़स्ता हालत की फिलहाल उन्हें कोई ख़बर नहीं है लेकिन आखिर तो ख़बर लगेगी!’’
‘‘तब क्या होगा?’’
‘‘सोचो।’’
‘‘आप बताइये।’’
‘‘उनका कर्जा लौटाने की कोशिश में मैं सड़क पर आ जाऊंगा। क्या ये कोठी, क्या मर्सिडीज सब बिक जायेगा। नहीं लौटाऊंगा तो जान से जाऊंगा।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘जुए के क्रेडिट की वापिसी ऐसे ही होती है, जान से या माल से।’’
‘‘आप मेरा साथ दें तो आइन्दा ऐसे हालात पैदा हुए पायेंगे कि वो नौबत आयेगी ही नहीं। आप न जान से जायेंगे, न माल से।’’
‘‘मजाक कर रहा है! मुझे बहला रहा है! सब्ज बाग दिखा रहा है!’’
‘‘हकीकत बयान कर रहा हूं।’’
‘‘बड़ी उम्मीद जगा रहा है, पर ऐसा क्योंकर होगा?’’
‘‘अब न कैसीनो बचेगा, न कैसीनो चलाने वाले बचेंगे तो कर्जा कौन वसूलेगा?’’
सुखनानी मुंह बाये उसे देखने लगा।
‘‘पुटड़े!’’ – फिर धीरे से बोला – ‘‘वही कह रहा है जो मैं समझ रहा हूं?’’
विमल ने अशरफ की तरफ देखा।
‘‘ये सोहल है, सेठ जी।’’ – अशरफ बोला – ‘‘जो कभी ग़लत बात नहीं कहता, जो कभी ऐसी बात नहीं कहता जिस पर खरा उतर कर न दिखा सकता हो। आपकी जानकारी के लिये अर्ज है कि अन्डरवर्ल्ड में इसकी जुबान टकसाली सिक्के का दर्जा रखती है।’’
‘‘शक्ल से तो . . . मामूली आदमी लगता है!’’
‘‘शक्ल से ही तो! वर्ना सारे हिन्दोस्तान के अन्डरवर्ल्ड में जो दबदबा और जलाल सोहल के नाम का है, वो किसी दूसरे के नाम की नहीं है।’’
‘‘मैं हूं ही मामूली आदमी’’ – अशरफ को हाथ उठा कर चुप कराता विमल बोला – ‘‘जो कभी डाकखाने के सामने बैठकर चार-चार आने में लोगों के मनीऑर्डर फार्म भरता था, जो चार-आठ आने की बख्शीश की ख़ातिर बरसात में दौड़-दौड कर लोगों के लिये टैक्सियां पकड़ के लाता था। जो दो रुपये की उजरत के बदले में दूसरे मुसाफिर की टिकट के लिये आधी रात को एडवांस बुकिंग की लाइन में खड़ा होने को तैयार होता था, जबकि बुकिंग विंडो अभी सुबह नौ बजे खुलनी होती थी, ताकि मुंह तक रोटी का निवाला पहुंच पाता, पेट की भूख की ज्वाला शान्त हो पाती। जो फुटपाथ पर सोता था, पुलिस से मार खाता था, भूखा मरता था। जो मेहनत ख़ुद करता था, उसकी मेहनत का फल दूसरे हज्म करते थे। लेकिन घूरे के भी दिन फिरते हैं, सोहल के भी फिरे और न चाहते हुए भी सोहल अन्डरवर्ल्ड की बड़ी ताकत बन गया। सेठ जी, मैंने भीख मांगी है, मैंने राज दान किये हैं। आज भी भीख ही मांग रहा हूं।’’
‘‘क-क्या?’’
‘‘आपके सहयोग की भीख।’’
‘‘तू . . . तू कैसीनो उजाड़ना चाहता है?’’
‘‘मैं जुर्म की हकूमत चलाने वालों की दुनिया उजाड़ना चाहता हूं।’’
‘‘तू कर सकता है ऐसा। तू यकीनन कर सकता है ऐसा। इस वक्त तेरी आंखों में मुझे ऐसी ज्वाला धधकती दिखाई दे रही है जो मुझे कहती है कि तू अकेला ही, निहत्था, सारी दुनिया को तबाह कर के रख सकता है।’’
विमल ख़ामोश रहा।
‘‘पुटड़े, तू जो कहेगा मैं करूंगा।’’
‘‘आपको ख़ास कुछ नहीं करना होगा। फिलहाल ऐसा कुछ करना होगा कि मैं कैसीनों में दाखिला पा सकूं।’’
‘‘अरे, साईं, मैं तो अब कुछ भी करने को तैयार हूं लेकिन ये नहीं हो सकता।’’
‘‘हो सकता है। होगा। कवन सो काम कठिन जग माहीं!’’
‘‘तेरे अंगूठे के निशान को स्कैनर कैसे पकड़ेगा?’’
‘‘आप साथ होंगे तो मेरे थम्ब इम्प्रिंट के स्कैन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।’’
‘‘वो कैसे?’’
‘‘आप उस खुफिया कैसीनो के नब्बे रजिस्टर्ड, थम्ब इम्प्रिंट स्कैंड मेम्बर बताये जाते हैं। वहां क्या कोई शख़्स तमाम के तमाम मेम्बरान को पहचानता होगा!’’
‘‘नहीं। लेकिन इसीलिये तो डेली कोड जारी किया जाता है, इसीलिये तो हर किसी का थम्ब इम्प्रिंट स्कैन में है जिसके बिना लिफ्ट नुमायां नहीं हो सकती।’’
‘‘लिफ्ट एक मेम्बर के स्कैन से सामने आ कर खुलती है, उसमें दो मेम्बर सवार हो जायें तो लिफ्ट एतराज पेश करेगी, ‘फाउल फाउल’ चिल्लाने लगेगी!’’
‘‘तेरी बात कुछ कुछ समझ तो रहा हूं मैं लेकिन फिर भी तू तरीके से समझा।’’
‘‘कल आपको एसएमएस के जरिये मंगलवार, सत्तरह दिसम्बर पर लागू नया कोर्ड हासिल होगा। वो कोर्ड आप मेरे मोबाइल पर मुझे फॉरवर्ड कर देंगे। ऐनी प्राब्लम?’’
‘‘नो, नो प्राब्लम। लेकिन मोबाइल पर एसएमएस आता है तो टॉप पर भेजने वाले का नाम आता है, तेरे पर पहुंचे मैसेज के टॉप पर – कल के कोर्ड पर – मेरा नाम होगा, न कि कैसीनो के भेजने वाले का।’’
‘‘ ‘गोल्डन गेट’ में जो स्टीवार्ड कोड चैक करता है, मुझे उम्मीद नहीं कि स्क्रीन पर कोड ने अलावा कुछ और देखता होगा, कहीं और तवज्जो देता होगा।’’
‘‘देता होगा तो?’’
‘‘तो खेल ख़त्म। तो मेरा मंसूबा फेल।’’
‘‘फिर तेरा क्या होगा?’’
‘‘जो होगा देखा जायेगा।’’
‘‘मेरा क्या होगा?’’
‘‘आप को क्यों कुछ होगा? आप मेरे एस्कार्ट नहीं होंगे। आप मुझे वहां नहीं लाये होंगे। हम तो बाई चांस ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन की पार्विंफ़ग से शटल सर्विस वाली एक ही ‘इन्डिका’ के मुसाफिर बन गये थे इसलिये हमारे में फार्मल ‘हल्लो’ हो गयी थी। हमारी मंजिल एक थी इसलिये हम रेस्टोरेंट में एक रिजर्व्ड टेबल पर जा बैठे थे। बस, इतनी सी तो बात है! इतने से आप मेरे स्पांसर तो न बन गये!’’
‘‘तेरे फोन पर आये कोड के मैसेज पर मेरा नाम आयेगा जो साबित करेगा कि कोड तुझे मैंने मुहैया कराया था!’’
‘‘आप कोड मुझे फारवर्ड न कीजियेगा, अशरफ को कीजियेगा। अशरफ मुझे फारवर्ड करेगा तो कोर्ड के टॉप पर इसका नाम आयेगा जिसे कि कोई नहीं जानता होगा।’’
‘‘ये ठीक है। समझ ले तू कैसीनो में पहुंच गया। फिर करेगा क्या? जुआ खेलने तो तू वहां पहुंचा नहीं होगा!’’
‘‘वो भी खेल लूंगा वर्ना किसी को शक हो जायेगा। लेकिन मेरा असल काम उस जगह का जायजा लेना होगा।’’
‘‘किस लिये?’’
‘‘अब सब कुछ तो न पुछिये न! कुछ को अपने आप सामने आने का भी तो मौका दीजिये!’’
‘‘ठीक है।’’
‘‘तो कल की बाबत मैं निश्चिन्त हो जाऊं?’’
‘‘हां।’’
‘‘कल रात ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन की पार्विंफ़ग में मैं कब पहुंचूं?’’
‘‘दस बजे। ठीक। वहां मेरी शिनाख़्त मेरी मर्सिडीज। तभी बाहर निकलूंगा तब तू मुझे दिखाई दे जायेगा।’’
‘‘बढ़िया। तो अब . . .’’
‘‘एक सवाल मेरा भी।’’ – अशरफ जल्दी से बोला।
सुखनानी ने उसकी तरफ देखा।
‘‘सोमवार, दो दिसम्बर की सुबह मुंह अन्धेरे जब मैंने मेम्बरान को जुए की शिफ्ट ख़त्म करके रुख़सत होते देखा था जो सात-आठ ख़ूबसूरत, नौजवान लड़कियों को भी वैसे ही जाते देखा था। वो लड़कियां किस लिये?’’
‘‘हां।’’ – विमल बोला – ‘‘अब जब कनफर्म्ड है कि वो जगह अय्याशी का अड्डा नहीं, कैसीनो है, तो लड़कियां किस लिये?’’
‘‘मेम्बरान की ख़िदमत के लिये।’’ – सुखनानी बोला – ‘‘मेहमानों को स्नैक्स, ड्रिंक्स सर्व करने के लिये। लेट, लेट-लेट डिनर सर्व करने के लिये।’’
‘‘ओह!’’ – अशरफ बोला – ‘‘मुलाजिम हैं कैसीनो की?’’
‘‘नहीं। वो लड़कियां इवेंट आर्गेनाइजर प्रोवाइड करता है।’’
‘‘जी!’’
‘‘आजकल ये नया धन्धा चला है। जैसे पार्टी के लिये वेटर्स, बारमैन, गार्ड्स वगैरह इवेन्ट आर्गेनाइजर सप्लाई करता है, वैसे ही वो पार्टी गर्ल्स सप्लाई करता है।’’
‘‘ओह!’’
‘‘उन को’’ – विमल बोला – ‘‘सीक्रेसी रिस्क नहीं माना जाता?’’
‘‘इवेन्ट आर्गेनाइजर कोई अंजान नहीं, नब्बे रजिस्टर्ड मेम्बरान में से एक है। हम मामले में अपनी सप्लाई की लड़कियों की वो पूरी जिम्मेदारी लेता है।’’
‘‘आई सी। इस पर एक बात मुझे भी सूझी है। कैसीनो का कोई रेगुलर स्टाफ भी तो होता होगा! जैसे जुआ खिलाने वाले, वेटर्स, सिक्योरिटी स्टाफ वग़ैरह!’’
‘‘ऐसे दर्जन भर लोग वहां होते हैं लेकिन उनको हिदायत है कि वो वहां से तभी बाहर कदम रखें जब तमाम मेहमान, तमाम होस्टेस लड़कियां जा चुकी हों।’’
‘‘ओह! यानी आखिर में वो इमारत बिल्कुल खाली हो होती है?’’
‘‘हां।’’
‘‘दैट्स गुड न्यूज।’’
‘‘कैसे?’’
‘‘इजाजत चाहते हैं।’’
सुखनानी ने उठ कर, टेबल का घेरा काट कर, विमल के करीब जा कर बड़ी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया।
अशरफ से भी।
रात को विमल मॉडल टाउन थाने पहुंचा।
उसने पहले ही मालूम कर लिया था कि उस रोज अजीत लूथरा की नाइट ड्यूटी थी।
उसने लूथरा के आफिस में कदम रखा तो लूथरा ने उठ कर उसका स्वागत किया और सादर कुर्सी पेश की। दोनों आमने सामने बैठे।
‘‘इतना लेट!’’ – लूथरा की भवें उठीं।
‘‘हां।’’ – विमल बोला – ‘‘लेट ही ठीक था। मेरा मॉडल टाउन में देखा जाना ठीक न होता।’’
‘‘ओह!’’
‘‘मैंने एक बहुत इम्पॉर्टेंट बात तुम से करनी है, यहां कोई विघ्न तो नहीं आयेगा?’’
लूथरा ने घन्टी बजा कर एक सिपाही को तलब किया और उसे आदेश दिया – ‘‘जब तक साहब यहां हैं, कोई मुझे डिस्टर्ब न करे।’’
‘‘जी, जनाब।’’
सिपाही रुख़सत हो गया।
‘‘अब फरमाइये!’’ – पीछे लूथरा बोला।
विमल ने उसे ‘गोल्डन गेट’, हौजख़ास में चलने वाले कैसीनो के बारे में सविस्तार बताया। ज्यों-ज्यों वो बोलता गया, लूथरा के नेत्र फैलते गये।
आखिर विमल ख़ामोश हुआ।
‘‘दिल्ली में ये धन्धा है तो सही!’’ – लूथरा संजीदगी से बोला – ‘‘लेकिन अभी तक जब कभी भी ऐसा जुआघर पकड़ा गया था, वो किसी फार्महाउस में ही निकला था। अलबत्ता ऑन-लाइन कैसीनो कभी-कभार रिहायशी इमारतों में भी चलता पकड़ा गया है। अभी हाल ही में ईस्ट दिल्ली के न्यू अशोक नगर में ऐसा इललीगल कैसीनो पकड़ा गया था। अब ऐसा कोई ठीया रेस्टोरेंट की ओट में चल रहा है, ये मेरे लिये नयी बात है।’’
‘‘मेरा सवाल ये है’’ – विमल बोला – ‘‘कि क्या ऐसा ठीया पुलिस प्रोटेक्शन के बिना चल सकता है? क्या ‘गोल्डन गेट’ में चलते कैसीनो को पुलिस प्रोटेक्शन हासिल हो सकती है?’’
‘‘नहीं।’’ – लूथरा बेहिचक बोला।
‘‘वजह?’’
‘‘अगर वहां कैसीनो पुलिस प्रोटेक्शन में चल रहा होता तो एन्ट्री का जैसा आडम्बर आप वहां फॉलो किया जा रहा बताते हैं, उसकी क़तई जरूरत न होती। तो वहां डेली चेंज होने वाले कोड की, आने वालों के थम्ब इम्प्रैशन के स्कैन जैसी एहतियात बरती जाना जरूरी न होता।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘बिल्कुल! जब सैंया ही कोतवाल हों तो डर कैसा! इतनी एहतियात तो वहां स्थापित ही इसलिये हैं कि वहां कोई पुलिस वाला या पुलिस का भेदिया न घुस आये और यूं उनके ग़ैरकानूनी ठीये के वजूद का पर्दाफाश न हो जाये।’’
‘‘आई सी।’’
‘‘इरादा क्या है, जनाब?’’
‘‘इरादा!’’ – विमल फीके स्वर में बोला – ‘‘इरादा फिलहाल इस फानी दुनिया में अपना मुकाम बनाये रखने का है।’’
‘‘और कैसीनो का?’’
‘‘कैसीनो का वजूद एक मियान में दो तलवारों जैसा हो गया है।’’
‘‘दो तलवारें!’’
‘‘मैं और कैसीनो।’’
‘‘ओह! जनाब, अपना ख़याल रखियेगा।’’
‘‘मेरा ख़याल वो’’ – विमल ने छत की तरफ उंगली उठाई – ‘‘रखेगा जिसने आज तक रखा। नहीं रखेगा तो भी ये उसका अहसान होगा मेरे पर।’’
‘‘जी!’’
‘‘नीलम के पास जल्दी पहुंच जाऊंगा न!’’
लूथरा ने गहरी सांस ली।
‘‘मैं किसी काम आ सकता हूं?’’ – फिर बोला।
‘‘आ ही रहे हो। शुक्रिया। चलता हूं।’’
आंखों में गहन चिन्ता का भाव लिये लूथरा विमल को जाता देखता रहा।
17 दिसम्बर: मंगलवार
एक चमचम ‘ऑडी’ पर रात दस बजे विमल ग्रीन पार्क मैट्रो स्टेशन की पर्विंफ़ग में पहुंचा सुखनानी की मर्सिडीज वहां मौजूद थी।
इत्तफाक से तभी उसके करीब खड़ी एक ‘बालेनो’ वहां से हटी। विमल ने उसकी जगह ‘ऑडी’ खड़ी की और बाहर निकला।
विमल उस घड़ी झक सफेद कमीज, काली पैंट, सफेद कोट पहने था और बो टाई लगाये था। उसके नथुनों में प्लास्टिक की गोलियों के अलावा गालों में लेटैक्स रबड़ के पैड थे जिनकी वजह से चेहरा गोल और भरा-भरा लग रहा था। ऊपरी होंठ पर होंठों की कोरों से बाहर निकलती लम्बी मूंछ थी और सिर पर घने सफेद बालों वाला विग था जिसमें कहीं-कहीं कोई काली लट थी। नाक पर सींग के फ्रेम वाला निगाह का मोटा चश्मा था। जो जूते वो पहने था उसमें दायें का सोल बायें के बराबर हाइट का नहीं था इसलिये चलता था तो चाल में स्वाभाविक तौर पर लंगड़ाहट आ जाती थी।
वो मर्सिडीज की ड्राइविंग साइड में पहुंचा, उसने हौले से बन्द शीशे पर दस्तक दी।
सुखनानी ने स्टियरिंग पर से सिर उठाया और उसकी तरफ देखा।
विमल ने उसका अभिवादन किया।
सुखनानी के चेहरे पर उलझन के भाव आये, हिचकिचाते हुए उसने खिड़की का शीशा नीचे गिराया।
‘‘प्रणाम, सर’’ – विमल बोला – ‘‘ठीक दस बजे बन्दा हाजिर है।’’
सुखनानी के नेत्र फैले। तत्काल उसने शीशा वापिस उठाया और कार से बाहर निकला।
‘‘तुम’’ – वो मन्त्रमुग्ध सा बोला – ‘‘वो ही हो?’’
‘‘जी हां। विमल। कल आपके जाने पहचाने टैक्सी ड्राइवर अशरफ अली के साथ सिविल लाइन्स आपको दौलतखाने पर आप से मिला था न!’’
‘‘कमाल है! थोड़ा बहुत आवाज से पहचाना वर्ना तुम तो किधर से भी कल वाले विमल जैसे नहीं लग रहे हो!’’
विमल शिष्ट भाव से हंसा।
सुखनानी की निगाह ‘ऑडी’ की तरफ उठी।
‘‘किराये की है।’’ – विमल सहज भाव से बोला।
‘‘ओह! आओ।’’
विमल उसके साथ हो लिया।
दोनों पार्विंफ़ग के निकास द्वार पर पहुंचे। वहां एक सफेद ‘इन्डिका’ खड़ी थी जिसकी तरफ वो बढ़े।
‘इन्डिका’ के ड्राइवर ने बाहर निकल कर पिछला दरवाजा खोला। दोनों सवार हो गये तो तत्काल ‘इन्डिका’ वहां से दौड़ चली।
पांच मिनट बाद वो ‘गोल्डन गेट’ के सामने के कम्पाउन्ड में दाखिल हो रही थी।
दोनों प्रवेशद्वार तक जाती सीढ़ियों के सामने ‘इन्डिका’ से उतरे और सीढ़ियां चढ़ने लगे।
‘‘नाम पूछा जायेगा?’’ – एकाएक विमल ने पूछा।
‘‘नहीं।’’ – जवाब मिला – ‘‘मोबाइल में आज का कोड इकलौती शिनाख़्त है जो चैक की जाती है।’’
‘‘ओह!’’
‘‘फिर भी सवाल हो तो नाम दीपक राजदान बताना।’’
‘‘दीपक राजदान!’’
‘‘लिस्ट में दर्ज नब्बे नामों में से एक है। मेरा वाकिफ है।’’
‘‘वो भी भीतर हुआ तो?’’
‘‘नहीं होगा। गोवा गया हुआ है।’’
‘‘ओह!
वो रौनकभरे हाल में दाखिल हुए और दो रिजर्व्ड टेबल्स में से एक पर जा कर बैठे।
तत्काल उन्हें ड्रिंक्स सर्व हुए।
विमल ने हॉल में निगाह दौड़ाई।
डांस फ्लोर के परले सिरे पर गजानन चौहान मौजूद था और करीब खड़ी जसमिन माने से बतिया रहा था।
स्टीवार्ड उनके करीब पहुंचा।
‘‘वैलकम, सर।’’ – एक ‘सर’ में दोनों को लपेटता वो बोला।
सुखनानी ने ख़ामोशी से मोबाइल निकाला, उसे आपरेट किया और स्क्रीन स्टीवार्ड के सामने रख दी।
स्टीवार्ड का सिर सहमति में हिला, उसने विमल की तरफ देखा।
विमल का फोन उसके हाथ में तैयार था, उसने यूं उसे स्टीवार्ड के सामने किया कि मोबाइल वाले हाथ का अंगूठा फोन के टॉप पर वहां था जहां मैसेज सेंडर का नाम होता था। उसने फोन वाला हाथ आगे किया और स्टीवार्ड का सिर सहमति में हिलता पाते ही हाथ वापिस खींच लिया।
स्टीवार्ड पीछे हटा।
दोनों उठ खड़े हुए और आगे बढ़े।
‘‘सर! सर!’’ – तत्काल स्टीवार्ड बोला – ‘‘प्लीज! प्लीज, वन ऐट ए टाइम!’’
‘‘वाट!’’ – सुखनानी अप्रसन्न भाव से बोला – ‘‘पहले तो ऐसा नहीं था!’’
‘‘अब है, सर।’’
‘‘बट दैट्स शियर नॉनसेंस!’’
‘‘सर, दि मैनेजमेंट नाओ वांट्स इट दैट वे।’’
‘‘ओके।’’ – विमल बीच में बोला – ‘‘ओके। आइल गो फर्स्ट।’’
‘‘वैलकम, सर।’’
सुखनानी की विमल से निगाह मिली, विमल ने आंखों आंखों में उसे आश्वासन दिया और लम्बे डग भरता स्क्रीन की दिशा में आगे बढ़ा।
स्टीवार्ड अपनी जगह से हटा और आधे रास्ते विमल के पीछे आया।
विमल ने स्क्रीन के पीछे का दरवाजा खोला और भीतर दाखिल हो गया। आटोमैटिक डोर क्लोजर की वजह से उसके पीछे दरवाजा अपने आप बन्द हुआ। विशाल कमरे में वो बाईं तरफ आगे बढ़ा, सिरे पर पहुंचा तो उस दीवार और फर्नीचर के अम्बार के बीच एक संकरा गलियारा अगले सिरे तक जाता दिखाई दिया। वो उस सिरे पर पहुंचा तो वहां दाईं तरफ कदरन चौड़ा गलियारा पाया। वो उसके सिरे पर भी पहुंचा, वहां वो फर्नीचर की ओर में खड़ा हो गया और प्रतीक्षा करने लगा।
पांच मिनट बाद सुखनानी उस गलियारे में पहुंचा।
उसने दीवार पर कहीं अपना अंगूठा लगाया।
ख़ामोशी से दीवार जान पड़ने वाली बोर्ड की एक पैनल सरकी और लिफ्ट नुमायां हुई।
विमल लपक कर सुखनानी के पास पहुंचा।
निशब्द लिफ्ट का दरवाजा खुला। दोनों ने भीतर कदम रखा। भीतर कन्ट्रोल पैनल पर ‘अप’ और ‘डाउन’ के दो ही बटन थे। सुखनानी ने डाउन बटन दबाया। दरवाजा बन्द हुआ और लिफ्ट नीचे सरकने लगी।
कुछ क्षण बाद लिफ्ट रुकी, स्वचलित दरवाजा खुला, दोनों ने बाहर कदम रखा तो विमल ने पाया कि वो एक ड्योढ़ी-सी में थे जिसकी दायीं तरफ विशाल बन्द दरवाजा था। सुखनानी ने धक्का देकर वो दरवाजा खोला तो विमल को कैसीनो के दर्शन हुए।
वो एक विशाल हाल था जो किसी बड़े बजट की फिल्म के सैट की तरह सजा हुआ था। हाल में लास वेगास स्टाइल जुए की टेबलें बड़े करीने से लगी हुई थीं और कोई बीस के करीब सूरतों से ही सम्पन्न लगने वाले आदमी वहां जुआ खेलने में मशगूल थे जिनके बीच दो होस्टसें ड्रिंक की ट्रे लिये घूम रही थीं। दायी ओर कैशियर का पिंजरा था और उसमें भी एक सुन्दर युवती बैठी दिखाई दे रही थी। पार्टी गाउन्स में सजी-धजी तीन चार सुन्दर युवतियां वहां और थीं जिनका काम मेहमानों को दांव लगाने के लिये प्रोत्साहित करना जान पड़ता था।
‘‘आप क्या खेलते हैं?’’ – विमल बोला।
‘‘ब्लैक जैक।’’ – सुखनानी बोला – ‘‘कभी-कभार रूले!’’
‘‘टोकन लेने पड़ते होंगे?’’
‘‘हां। वो उधर कैशियर का पिंजरा है न!’’
दोनों वहां पहुंचे।
विमल ने दो हजार के नोटों की एक गड्डी विंडों से भीतर सरकाई और बोला – ‘‘ब्लू एण्ड ग्रीन ओनली, प्लीज।’’
सुखनानी प्रभावित दिखाई देने लगा। आखिर उसके साथ आया शख़्स सिर्फ पांच और दस हजार की चिप्स ले रहा था जबकि हजार और दो हजार की लाल और सफेद चिप्स भी उपलब्ध थीं।
कैशियर ने चिप्स से भरी एक प्लास्टिक ट्रे उसे थमाई।
विमल जाकर रूले की एक टेबल पर जम गया।
एक होस्टेस ने उसकी ट्रे में सिर्फ नीली और हरी चिप्स देखीं तो वो मुस्कुराती हुई विमल के पहलू में पहुंची और बड़ी आत्मीयता से यूं उसके कन्धे पर हाथ रखकर खड़ी हो गयी कि उसका उन्नत वक्ष विमल की बगल से सट गया।
विमल ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा।
वो बड़े चित्ताकर्षक भाव से मुस्कुराई।
‘‘विश मी लक।’’ – विमल बोला।
‘‘आई विश यू आल दि बैस्ट, सर!’’ – वो बोली – मे यू बैंक्रप्ट दि हाउस टु नाइट।’’
‘‘अरे, इतना नहीं। इतना नहीं।’’
वो हंसी।
विमल ने ट्रे में से एक नीली चिप उठाई और उसे थमा दी।
उसकी बाछें खिल गयीं, उसने विमल की गोद में ढ़ेर हो जाने में कसर न छोड़ी।
‘‘ट्राई युअर लक विद दिस।’’ – विमल बोला – ‘‘जीत गयीं तो बात ही क्या है! हार गयीं तो समझना कम ईजी, गो ईजी।’’
‘‘दिस इज माई लकी चिप, सर।’’ – वो चहकती-सी बोली – ‘‘फॉर ए व्हाइल आइल कीप इट विद मी।’’
‘‘सूट युअरसैल्फ।’’
‘‘मे आई गैट यू एक ड्रिंक, सर!’’
‘‘यस, प्लीज। ए लार्ज ग्लैनफिडिक-एटीन विद ए डेश आफ सोडा एण्ड सम आईस।’’
‘‘राइट अवे, सर।’’
वो ख़ुद उसके लिये ड्रिंक ले कर आयी।
विमल गेम में मसरूफ हो गया।
वो जानता था रूले में नम्बर लग जाने पर एक के छत्तीस मिलते थे। लेकिन उसी अनुपात में नम्बर लगने के चान्सिज घट भी जाते थे।
दो घन्टे गुजर गये।
उस दौरान पांच, छः मेहमान वहां और पहुंच गये।
और आधे घन्टे बाद विमल की चिप्स की ट्रे में पांच-छः टोकन ही बाकी बचे।
‘‘यहां इंचार्ज कौन है?’’ – विमल ने अपने सिर पर तब भी सवार होस्टेस से पूछा।
‘‘मैनेजर है न, सर!’’ – वो बोली।
‘‘इस वक्त है यहां?’’
‘‘हां।’’
‘‘बुलाओ।’’
वो एक काले सूट वाले को बुला कर लायी।
विमल ने उठ कर उस से बात की।
‘‘युअर टेबल हैज क्लींड मी। मेरे को रोकड़ा मांगता है।’’
‘‘सर’’ – मैनेजर विनीत भाव से बोला – ‘‘इधर लिमिटिड क्रेडिट फैसिलिटी है तो सही लेकिन . . .’’
‘‘क्रैडिट नहीं मांगता, मैन। आई एम लोडिड विद मनी।’’
‘‘सर!’’
‘‘मेरा रोकड़ा मेरी कार में है। एक ब्रीफकेस है उधर, उसमें। ब्रीफकेस इधर मंगवाने का इन्तजाम कर सकते हो?’’
‘‘यस, सर। श्योर, सर। कहां है कार?’’
‘‘पूछता है कहां है कार! जहां से मेरे को ‘इन्डिका’ ने पिक किया था, वहां है न!’’
‘‘सर, मेरा मतलब था मैट्रो स्टेशन की पार्विंफ़ग में कहां है!’’
‘‘ओह, दैट!’’
विमल ने उसे ‘ऑडी’ की चाबी थमाई, उसका नम्बर बताया और बोला कि वो पार्विंफ़ग में कहां खड़ी थी।
‘‘सर,’’ – मैनेजर बोला – ‘‘ब्रीफकेस मजबूती से बन्द है न!’’
‘‘हां।’’ – विमल बोला – ‘‘इतनी मजबूती से कि मेरे सिवाय कोई नहीं खोल सकता। इलैक्ट्रॉनिक लॉकिंग है उसमें। ये तकनीक इन्डिया में अभी आयी ही नहीं। अभी खाली योरोप में है। जनेवा से खरीदा।’’
‘‘ओह!’’
‘‘नाओ स्टैप ऑन इट।’’
‘‘फिफ्टीन मिनट्स, सर।’’
‘‘ओके। पर पहले एक बात बोलो।’’
‘‘यस, सर।’’
‘‘इधर डालर एक्सचेंज होता है?’’
‘‘आपके पास डालर हैं?’’
‘‘हां। आने से पहले मनीचेंजर के पास जाने का टाइम न लगा।’’
‘‘एक्सचेंज होता है, सर, पर इधर रेट थोड़ा कम मिलेगा।’’
‘‘आज सत्तर का रेट था। कितना कम?’’
‘‘पैंसठ।’’
‘‘मेरे को मंजूर, पर एक शर्त के साथ।’’
‘‘बोलिये।’’
‘‘गेम के एण्ड मैं लोकल करेंसी बापिस करेगा तो डालर का पैंसठ का रेट ही लगेगा।’’
‘‘ऐसा ही होगा, सर।’’
‘‘गो अहेड, दैन।’’
मैनेजर चला गया।
डालर के जिक्र ने होस्टेस को और भी प्रभावित किया। वो विमल पर और भी बलिहार होकर दिखाने लगी।
विमल फिर जुए में मसरूफ हुआ।
दस मिनट में उसकी बाकी चिप्स चुक गयीं।
उसके लिये ब्रेक लेना जरूरी हो गया।
वो उठ कर बार पर पहुंचा।
बार पर और लोग भी मौजूद थे।
उसने ड्रिंक हासिल किया।
‘‘हल्लो!’’
विमल ने सिर उठाया तो पाया उससे वो रौबदार, लम्बा-लड़ंगा सिख मुख़ातिब था जिसे उसने एक दिसम्बर रविवार की रात को ऊपर रेस्टोरेंट में रिजर्व्ड टेबल पर आकर बैठते देखा था। उसके करीब घने सफेद बालों वाला दूसरा शख़्स भी मौजूद था। दोनों के हाथों में ड्रिंक्स के गिलास थे।
‘‘आई एम वरियाम सिंह।’’ – सिख मिलनसार लहजे में बोला।
‘‘आई एम नॉट।’’ – विमल बोला।
‘‘क्या! हा हा हा! जोक मारा। आपको पहले कभी यहां देखा नहीं, जनाब! क्या पहली बार आये?’’
‘‘नहीं। पहले मैं बुर्के में आता था। आज वो लांड्री से धुल कर नहीं आया, इसलिये . . .’’
‘‘हा हा! फिर जोक मारा! नाम जान सकता हूं आपका?’’
‘‘खन्ना। वी-के- खन्ना।’’
‘‘ओह! हमारे पंजाबी भ्रा हो। दिल्ली से ही हो?’’
‘‘नहीं। चण्डीगढ़ से।’’
‘‘यहां हाजिरी भरने को स्पैशल आये?’’
‘‘हां।’’
‘‘ये भसीन साहब हैं। बड़े ज्वेलर हैं दिल्ली के।’’
दोनों में ‘हल्लो हल्लो’ हुई।
‘‘मेरा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है। वोल्वो बसों की फ्लीट है मेरे पास।’’
‘‘ग्रेट!’’
‘‘आपका?’’
‘‘मेरा बिजनेस जरा ख़मदार है, पता नहीं आपकी समझ में आयेगा या नहीं!’’
‘‘देखते हैं।’’
‘‘कबूतर उड़ाता हूं।’’
‘‘लो! क्यों नहीं समझ में आयेगा! पंजाब में तो ये धन्धा शहरोशहर है!’’
‘‘मेरी समझ में नहीं आया।’’ – भसीन बोला।
‘‘भसीन साहब, इललीगल इमीग्रेशन के धन्धे को पंजाब में कबूतरबाजी बोलते हैं।’’
‘‘ओह!’’
‘‘आज की तारीख में बड़ा मुफीद, बड़ा कमाऊ-उपजाऊ धन्धा है। पंजाब में लोग बाग खेत बेच देते हैं, घर बार बेच देते हैं अमेरिका, कैनेडा माइग्रेट करने के लिए। खन्ना साहब ढ़ेरों चान्दी पीट रहे होंगे। क्यों, खन्ना साहब?’’
‘‘है तो सही ऊपर वाले की मेहर!’’
‘‘क्यों न हो जी, क्यों न हो! चढ़दी कलां च खो जी, खन्ना साहब। वैसे यहां क्या हाल है?’’
‘‘यहां तो बुरा हाल है। रूले व्हील क्लींड मी।’’
‘‘ओह! तो क्या अभी क्विट कर रहे हैं?’’
‘‘नहीं, जी। और पैसा मंगवाया है।’’
‘‘चण्डीगढ़ से?’’
‘‘नॉनसेंस! कार में से।’’
‘‘ओह! कार में से।’’
तभी मैनेजर वहां पहुंचा। ये देख कर वो बहुत आश्वस्त हुआ कि नया लगता मेम्बर पुराने मेम्बरान से गप्पें लड़ा रहा था। उसके हाथ में मगरमच्छ के चमड़े का बेशकीमती ब्रीफकेस था जो कार की चाबी के साथ उसने विमल को सौंपा।
विमल ने बार काउन्टर पर रख कर ब्रीफकेस खोला।
वरियाम सिंह और भसीन की निगाह ब्रीफकेस के भीतर पड़ी तो दोनों के नेत्र फैले।
वही हाल मैनेजर और होस्टेस का हुआ जो छिपकली बनी विमल से चिपकी हुई थी।
ब्रीफकेस पचास और सौ डालर के नोटों से भरा हुआ था।
देखने वाले नहीं जानते थे – नहीं जान सकते थे – कि ब्रीफकेस में पचास डालर के नोटों की एक ही गुड्डी जेनुअइन थी, बाकी तमाम गुड्डियों में टाप का नोट जेनुइन था और बाकी नीचे उसी साइज के कटे कोरे कागज थे।
उनके नीचे छिपे दस अत्यन्त शक्तिशाली टाइम बम थे।
विमल ने पचास की गड्डी उठाई और उसे मैनेजर को सौंपता बोला – ‘‘ओनली ब्लू एण्ड ग्रीन चिप्स, प्लीज।’’
मैनेजर ने डालर आगे होस्टेस को सौंप दिये।
‘‘बल्ले, भई!’’ – वरयामसिंह प्रशंसात्मक भाव से बोला – ‘‘कबूतरबाजी में तो वाकेई बहुत पैसा है!’’
‘‘रिस्क भी तो कम नहीं, गुरमुखो!’’ – विमल बोला – ‘‘एक बार उलटी पड़ जाये तो लेने के देने पड़ जाते हैं।’’
‘‘अब तक तो नहीं पड़ी न उलटी?’’
‘‘नहीं, अभी तक तो मेहर है ऊपर वाले की।’’
‘‘फिर क्या बात है!’’
होस्टेस सवा तीन लाख रुपये की चिप्स से भरी ट्रे के साथ विमल के करीब पहुंची।
‘‘एक्सक्यूज मी।’’ – विमल बोला। उसने ब्रीफकेस उठाया और होस्टेस के साथ फिर रूले की टेबल पर पहुंच गया।
आइन्दा तीन घन्टों में थक गया होने के बहाने से विमल कई बार अपनी जगह से उठा और पांच-छः विभिन्न जगहों पर चुपचाप दस के दस बम प्लांट कर आया।
साढ़े चार बजे उसने गेम बन्द किया और कैशियर के पास जाकर चिप्स कैश कराये तो उसकी पचास डालर की गड्डी भी उसके पास वापिस आ गयी, दो लाख रुपयों के नोट भी वापिस आ गये और कोई पिच्चासी हजार रुपये वो जीता।
सिर्फ वो जानता था कि शुरू में जानबूझ कर उसने ऐसे दांव लगाये थे जिन में जीत की गुंजायश नहीं के बराबर थी ताकि उसे ‘ऑडी’ में से ब्रीफकेस मंगवाने का बहाना मिल पाता। कैसीनो के तौर तरीकों से वो वाकिफ नहीं था इसलिये ब्रीफकेस साथ लाने से उसने परहेज किया था। जब कि हारते जुआरी का उसकी कार में मौजूद और रोकड़ा मंगवाना स्वाभाविक प्रक्रिया थी।
उसकी चाल कामयाब हुई थी।
फिर कैसीनो बन्द होने की घन्टी बजी।
जुए की टेबलें ख़ाली होने लगीं, मेहमान अपनी चिप्स कैश कराने लगे।
विमल से चिपकी होस्टेस का बस चलता तो वो विमल के साथ ही जाती लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं था। सारे मेहमानों के रुख़सत हो जाने के बाद ही होस्टेसों को वहां से बाहर कदम रखने की इजाजत थी।
सुखनानी और विमल सबसे पहले बाहर आने वालों में से थे। जैसे वो इकट्ठे आये थे, वैसे ही मैट्रो की पार्विंफ़ग तक वो इकट्ठे पहुंचे। सुखनानी अपनी मर्सिडीज पर वहां से रुख़सत हो गया लेकिन विमल ने रुख़सती का खाली बहाना किया।
उसका साढ़े छः बजे तक ‘गोल्डन गेट’ के इर्द-गिर्द कहीं रुकना जरूरी था।
ठीक साढ़े छः बजे लगभग एक साथ तमाम बम फटे और कैसीनो समेत ‘गोल्डन गेट’ मलबे में तब्दील हो गया।
फतह!
अब वो इत्मीनान से वहां से रुख़सत हो सकता था।
18 दिसम्बर: बुधवार
पुलिस पहुंची, क्योंकि ऐसे किसी केस की तफ्तीश करना पुलिस का ही काम होता था।
फायर ब्रिगेड पहुंचा क्योंकि मलबे में लोग दबे हो सकते थे।
तत्काल बाजू की गार्मेंट फैक्ट्री के बारे में सुनिश्चित किया गया कि वो ख़ाली थी क्योंकि कई बार कोई बम फटने से रह जाता था और बाद में – या बहुत बाद में – फटता था।
दूसरी तरफ की इमारत पहले ही एक अरसे से खाली थी।
विस्फोट इतना भीषण हुआ था कि इमारत पूरी तरह से ध्वस्त हो गयी थी लेकिन फिर भी आजू-बाजू की इमारतों को कोई क्षति नहीं पहुंची थी।
फिर मीडिया वाले वहां जमा होने लगे।
साढ़े आठ बजे तक ख़बर टीवी पर आ गयी।
रेस्टोरेंट का मैनेजर सचदेवा, सिक्योरिटी इंचार्ज गजानन चौहान और चिन्तामणि त्रिपाठी वहां पहुंचे।
तब इस बात की पुष्टि हुई कि इमारत में ‘गोल्डन गेट’ नाम का एक थ्री-इन-वन ठीया चलता था जो कि रेस्टोबार, डिस्को और नाइट क्लब था जो हौज ख़ास में तो मशहूर था ही, बाहर से भी दूर-दूर से लोग वहां आते थे। रेस्टोरेंट का क्लोजिंग टाइम बारह बजे का था और एक घन्टा और सब कुछ बन्द करने में और स्टाफ के रुख़सत होने में लगता था। लिहाजा बम विस्फोट के वक्त इमारत बिल्कुल खाली थी, किसी के मलबे में – जिन्दा या मुर्दा – फंसे होने की कोई सम्भावना नहीं थी। बगल की गार्मेंट फैक्ट्री में भी दूसरी शिफ्ट बारह बजे तक चलती थी और साढ़े बारह तक वो भी बिल्कुल खाली हो जाती थी।
ये स्थापित हो जाने के बाद फायर ब्रिगेड वहां से रुख़सत हो गया।
मैनेजर सचदेवा ने पुलिस को बताया कि वहां रात को कोई नाइट वॉचमैन नहीं होता था क्योंकि ऐसी कोई जरूरत कभी महसूस नहीं की गयी थी। बगल की गार्मेंट फैक्ट्री में अलबत्ता एक वॉचमैन होता था लेकिन वो अमूमन सोता ही पाया जाता था। उस रोज भी वो भीषण विस्फोट की आवाज सुन कर ही उठा था और उसने पुलिस को फोन किया था।
फिर सवाल उठा कि ‘गोल्डन गेट’ का मालिक कौन था?
मैनेजर सचदेवा ने उस बाबत अनभिज्ञता प्रकट की तो तफ्तीश के लिये पहुंचा तीन सितारों वाला इन्स्पेक्टर खफा हो गया।
‘‘आप ये कहना चाहते हैं’’ – वो सख़्ती से बोला – ‘‘कि आपको मालूम नहीं कि आप किस की नौकरी करते हैं?’’
‘‘मालूम है न!’’ – मैनेजर बोला – ‘‘मैं ‘गोल्डन गेट’ की नौकरी करता हूं।’’
‘‘तनख़ाह आपको इमारत देती है?’’
‘‘त्रिपाठी जी देते हैं।’’
‘‘वो कौन हुए?’’
मैनेजर ने त्रिपाठी की तरफ इशारा किया।
‘‘मैं हूं त्रिपाठी।’’ – चिन्तामणि आगे बढ़ कर बोला – ‘‘चिन्तामणि त्रिपाठी। मेरा छोटा भाई मॉडल टाउन से दिल्ली विधान सभा का विधायक है। नाम जोगमणि त्रिपाठी। सुना होगा!’’
‘‘विधायक मालिक थे ‘गोल्डन गेट’ के?’’ – इन्स्पेक्टर बोला।
‘‘नहीं।’’
‘‘तो उनका जिक्र किस लिये?’’
‘‘जोग मेरा छोटा भाई है और मैं एक तरह से ‘गोल्डन गेट’ का केयर टेकर था।’’
‘‘ ‘एक तरह से’ से क्या मतलब है आपका?’’
‘‘मालिक मुम्बई में है। वहां उसका बड़ा बिजनेस है। ये कदरन छोटा बिजनेस है। उस के पास इस को देने के लिये टाइम नहीं इसलिये उसका यहां का कारोबार उसके केयरटेकर के तौर पर, नुमायन्दे के तौर पर, मैं सम्भालता हूं।’’
‘‘इमारत मालिक की है या किराये की है?’’
‘‘मालिक की है।’’
‘‘उसको यहां होना चाहिये।’’
‘‘काहे को? जब कोई जान नहीं गयी, जब आसपास की किसी इमारत को कोई डैमेज नहीं पहुंचा तो काहे को?’’
‘‘क्या गारन्टी है कि कोई जान नहीं गयी? क्या गारन्टी है कि मलबे के पहाड़ के नीचे कोई दबा नहीं पड़ा? कोई दबे नहीं पड़े?’’
‘‘आप को बोला तो गया है कि एक बजे के बाद यहां कोई नहीं होता?’’
‘‘फिर भी!’’
‘‘क्या फिर भी?’’
‘‘आप लोग यहां के स्टाफ की इनवेंट्री लें और कनफर्म करें कि सब चौकस हैं।’’
‘‘ठीक है।’’
‘‘और मालिक को यहां बुलायें।’’
‘‘मालिक को ख़बर कर दी जायेगी। आना, न आना उसकी मर्जी पर मुनहसर है।’’
‘‘हमें उससे पूछताछ करनी होगी।’’
‘‘जो पूछताछ करनी है, मेरे से कीजिये। यहां के बिजनेस से मैं मालिक से ज्यादा वाकिफ हूं। मेरे से पूछिये जो पूछना है।’’
‘‘उसको यहां होना पड़ेगा।’’
‘‘तो ख़ुद बुलाइये। पता मुहैया करा दिया जायेगा।’’
‘‘ऐसे विस्फोट की जिम्मेदारी मालिक की होती है।’’
‘‘मालिक की क्या जिम्मेदारी होती है? उसने ख़ुद इमारत उड़ाई जाने का इन्तजाम किया?’’
‘‘मैं कुछ नहीं जानता . . .’’
‘‘तो जानिये न! मैं हूं मालिक का लोकल रिप्रेजेंटेटिव। जो जानना है, मेरे से जानिये। जो पूछना है, मेरे से पूछिये। वर्ना मैं अपने भाई को यहां बुलाता हूं जो कि एमएलए है।’’
‘‘एमएलए क्या करेंगे यहां आके?’’
‘‘पुलिस की हाई हैण्डिडनैस को मॉनीटर करेंगे।’’
‘‘कोई हाई हैण्डिडनैस नहीं हो रही यहां।’’
‘‘नहीं हो रही तो अच्छी बात है। जो पूछना है मेरे से पूछिये।’’
‘‘क्यों किसी ने आपके रेस्टोरेंट को बारूद से उड़ा दिया?’’
‘‘हमें कोई अन्दाजा नहीं!’’
‘‘कोई प्रोफेशनल राइवलरी?’’
‘‘नो!’’
‘‘कोई जाती अदालव?’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’
‘‘बेवजह तो कुछ नहीं होता! क्यों हुई ये वारदात?’’
‘‘हम ख़ुद हैरान हैं।’’
‘‘हूं। आप मालिक को मुम्बई ख़बर कीजिये इस हादसे की। हो सकता है मालिक ख़ुद ही आना चाहे।’’
‘‘हो सकता है। मैं जरूर करूंगा।’’
‘‘और स्टाफ की इनवेंट्री का इन्तजाम जल्द-अज-जल्द कीजिये। जो नतीजा सामने आये – कोई मिसिंग है तो भी, कोई मिसिंग नहीं है तो भी – उसकी ख़बर पुलिस के पास फौरन पहुंचनी चाहिये।’’
‘‘फौरन ही पहुंचेगी।’’
‘‘थैंक्यू।’’
दोपहरबाद चिन्तामणि के घर में जस्सा भी मौजूद था जिसे कि अरमान ने ख़ासतौर से फोन कर के वहां बुलाया था।
‘‘बहुत बड़ी चोट हो गयी।’’ – चिन्तामणि ग़मग़ीम लहजे से बोला – ‘‘मालिक तक ख़बर पहुंचेगी तो उसका कहर हम पर टूटेगा।’’
‘‘अभी पहुंची नहीं?’’ – जस्सा बोला। ख़ास
‘‘वो मुम्बई में नहीं है। उसका ख़ास कहता है कि काठमाण्डू में है लेकिन वहां उसको अप्रोच नहीं किया जा सकता। ख़ास को ख़बर कर दी गयी है, वो कहता है कि वो आगे काठमाण्डू ख़बर पहुंचाने की कोई सूरत निकालेगा।’’
‘‘हूं।’’
‘‘मुझे पड़ोसी बाबू से इतने बड़े वार की उम्मीद नहीं थी।’’
‘‘जैसे लोहार की एक पड़ी हो।’’ – अरमान बोला।
‘‘आप को लगता है कि ये काम पड़ोसी बाबू का है?’’
‘‘लगता है! मुझे गारन्टी है।’’
‘‘जो कि ग़ायब है!’’
‘‘कहां ग़ायब है? कोर्ट में था या नहीं था?’’
जस्सा ख़ामोश रहा।
‘‘इतना अच्छा मौका था साले को उड़ा देने का। जस्से, तू कुछ न कर सका।’’
‘‘हां, मैं कुछ न कर सका।’’ – जस्सा तिलमिलाया – ‘‘क्योंकि मैंने कोई कोशिश ही न की।’’
‘‘मैंने ये कब कहा?’’
‘‘मेरी तो दोनों तरफ से फजीहत है। न मैं लाला जी के लिये – जिन्होंने मेरे पर इतना भरोसा जताया कि जस्सा उनके बेटे की दुरगत करने वाले को पाताल से भी खोद निकालेगा – कुछ कर सकता और न काके के लिए जो कि अब उस शख़्स का आखिरी शिकार बाकी है। अमित जिस केस में अच्छा भला बरी हो गया था, उसमें फिर गिरफ्तार है और ख़ुद लाला जी गवाह को रिश्वत देने के मामले में जवाबदेह हैं। बाप बेटे के लिये फिक्रमन्द था और अब उससे ज्यादा अपने लिये फिक्रमन्द है। और जिम्मेदार कौन? जस्सा।’’
‘‘तू क्यों?’’
‘‘मैं क्यों नहीं? मैं वक्त रहते फैंटम का पता निकाल पाता, उसको जहन्नुमरसीद कर पाता तो क्यों ये सब कुछ होता!’’
‘‘कोशिश तो’’ – अरमान बोला – ‘‘भरपूर की न तूने!’’
‘‘किसी काम तो न आयी? अमित के साथ हुई पहली वारदात के लिये जिम्मेदार शख़्स की टोह में अभी भटक ही रहा था कि उसने वैसी ही दो वारदात और कर डालीं, अशोक और अकील को भी अमित जैसा बना डाला। फिर अमित और उसके साथियों के खिलाफ रेप के बन्द हो चुके केस को उसने फिर खुलवा दिया।’’
‘‘वो भी उसने किया?’’
‘‘और किसने किया? उसने न किया तो क्यों वो केस की फिर सुनवाई के वक्त कोर्ट में मौजूद था?’’
अरमान को जवाब न सूझा।
‘‘कैसीनो तो आपका सैट अप था, ठेकेदार साहब!’’ – जस्से के स्वर में तनिक व्यंग्य का पुट आया – क्योंकर वो उसमें सेंध लगा पाया?’’
‘‘कुछ पूछताछ करवाई है मैंने उस बाबत। एक किसी वी-के- खन्ना का पता लगा है जो पिछली रात कैसीनो में मेहमान था और सारी रात रूले की टेबल पर बड़े-बड़े दांव लगाता रहा था। जस्से, हमारी नब्बे मेम्बरान की पक्की लिस्ट में किसी वी-के- खन्ना का नाम नहीं है। यानी ये नहीं हो सकता कि उसको कल का कोड एसएमएस किया गया होता।’’
‘‘जब वो लिस्ट में ही नहीं है . . .’’
‘‘वही। वही। पर उसको अटैंड करने वाला स्टीवार्ड कहता है कि उसने अपने मोबाइल पर आया कोड उसे बराबर दिखाया था।’’
‘‘कैसे किया?’’
‘‘क्या पता कैसे किया?’’
‘‘जब लिस्ट में उसका नाम नहीं था’’ – अरमान बोला – ‘‘तो लिफ्ट में सवार होने के लिये उसका थम्ब स्कैन भी तो कम्प्यूटर में नहीं हो सकता था!’’
‘‘तो वो लिफ्ट में कैसे सवार हुआ?’’ – जस्सा बोला।
‘‘हुआ तो बराबर! जब नीचे जुआ खेल रहा था, रूले पर निरन्तर दांव लगा रहा था तो हुआ तो बराबर!’’
‘‘इस बारे में मेरे को’’ – चिन्तामणि बोला – ‘‘एक दूसरे मेम्बर पर शक है।’’
‘‘वो कौन हुआ?’’ – जस्सा बोला।
‘‘कीमत राय सुखनानी।’’ – चिन्तामणि बोला – ‘‘हमारा पुराना मेम्बर है। मालूम पड़ा है कि मैट्रो स्टेशन की पार्विंफ़ग से दोनों एक ही ‘इन्डिका’ में सवार हुए थे और आगे रेस्टोरेंट की रिजर्व्ड टेबल पर भी इकट्ठे पहुंचे थे। मेरे को लगता है सुखनानी ने उस शख़्स की कोई मदद की . . .’’
‘‘क्या मदद की? कैसे मदद की?’’
‘‘पता नहीं। लेकिन कैसीनो में वो शख़्स उस मदद के सदके ही दाखिल हो पाया, इसमें मुझे शक की कोई गुंजायश नहीं दिखाई देती।’’
‘‘मैं ख़बर लूं इस कीमतराय सुखनानी की?’’
‘‘तू ले सकता है, बराबर लेकिन मैंने चौहान को बोला है इस काम के लिये। कैसीनो के, ‘गोल्डन गेट’ के उजड़ जाने के बाद अब उसे कोई काम तो है नहीं! इसी बहाने कुछ काम ही करेगा।’’
‘‘कर लेगा?’’
‘‘अरे, तेरे जैसा ही कड़क है। देखा नहीं कैसे चुटकियों में पटियाला हाउस गन पहुंचाई थीं!’’
‘‘हूं। बहरहाल कैसे भी बनायी, उस शख़्स ने कैसीनो में पहुंच बना ली। बमों के साथ बना ली?’’
‘‘स्टीवार्ड कहता है वो ख़ाली हाथ था।’’
‘‘पापा’’ – अरमार बोला – ‘‘इतनी बड़ी इमारत को आमूल चूल उड़ा देने के लिये बहुत . . . बहुत डायनामाइट चाहिये। वो जेबों में लाया होगा इतना डायनामाइट?’’
चिन्तामणि का सिर स्वयंमेव इंकार में हिला।
‘‘जो हुआ, वो उसने कैसे किया’’ – जस्सा बोला – ‘‘ये जुदा मसला है, बड़ी बात ये है कि वो शख़्स आपका नौ नम्बर वाला पड़ोसी था, गैलेक्सी का वाइट कालर एम्पलाई कौल था!’’
‘‘सोहल था।’’ – अरमान ने जिद की।
‘‘सोहल था या नहीं था’’ – चिन्तामणि वितृष्णापूर्ण भाव से बोला – ‘‘लेकिन वो हमारे पड़ोसी के अलावा दूसरा कोई नहीं हो सकता। काश पाटियाला हाउस कोर्ट परिसर में, जस्से, तेरे आदमी कुलदीप का निशाना न चूका होता। हमारी ये भी ट्रेजेडी है कि उसकी उलटी चाल भी सीधी पड़ती हैं, हमारी सीधी भी उलट जाती हैं।’’
‘‘ये सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की बातें हैं।’’ – अरमान बोला – ‘‘हमारे सामने इस वक्त अहम सवाल ये है कि अब करें तो क्या करें?’’
किसी के पास उस सवाल का कोई जवाब नहीं था।
सवाल पूछने वाले के पास भी नहीं।
रात तक बिग बॉस भी दिल्ली पहुंच गया।
दिल्ली में अपनी आमद की ख़बर उसने सबसे पहले अपनी विश्वासपात्र जसमिन माने को दी जो कि एयरपोर्ट पर जाकर उसे मिली और उसे सोहल से अपने टकराव की कथा सुनायी लेकिन जैसी भूरि-भूरि प्रशंसा की उसे आशा थी, वो उसे प्राप्त न हुई।
‘‘उसने तेरे पर कैसीनो की जानकारी निकलवाने के लिये दबाव डाला’’ – फेरा बोला – ‘‘तू ने अक्कल से काम लिया कि उसे उस बाबत समगलिंग की फर्जी कहानी परोसी। ये भी बड़ा काम किया कि तूने उसे बतौर सोहल पहचाना। इसके बाद क्या किया?’’
‘‘क-क्या किया, बॉस?’’ – जसमिन उलझनपूर्ण भाव से बोली।
‘‘कुछ भी न किया।’’
‘‘क-क्या करना था?’’
‘‘तेरे को नहीं मालूम?’’
उसके मुंह से बोल न फूटा।
‘‘तेरे पास इतनी बड़ी जानकारी कि वो सोहल था और दिल्ली में था। पणा तेरे को मालूम वो दिल्ली में किधर है?’’
‘‘न-नहीं।’’
‘‘तो ये जानकारी फेरा के किस काम की?’’
उससे जवाब देने न बना।
‘‘जब तूने इतनी चिल्लाकी से उसको समगलिंग के ऐंगल वाला चक्कर दिया तो इस चिल्लाकी को थोड़ा और आगे बढ़ाना था और उसको बेट देने के इस्टाइल से पूछना था कि अगर तेरे पास उसको देने के काबिल आइन्दा कोई और जानकारी हो तो तू उसको कैसे ख़बर करे, कैसे तू वो, उसके काम की जानकारी उसको पहुंचाये! तब वो कान्टैक्ट का कोई जरिया तेरे को बताता कि नहीं बताता?’’
‘‘वो . . . वो बोलता, वो ख़ुद अक्सर मेरे को फोन लगायेगा।’’
‘‘लगाता न! आजकल मोबाइल ट्रैकिंग सिस्टम से भी मालूम पड़ता है कि दूसरा भीड़ू किधर है। तेरे को अक्कल में आया ये!’’
‘‘सॉरी, बॉस!’’
‘‘तेरे को फोन पर जानकारी फॉरवर्ड करने की जगह मीटिंग के लिये जिद करना मांगता होने का था। वो किधर भी मीटिंग फिक्स करता, हमारे और भीड़ू तेरे को फॉलो करते तो उस तक पहुंचते कि नहीं पहुंचते?’’
‘‘प-पहुंचते।’’
‘‘फिर ख़ाली एक भीड़ू को थामने का। वैरी डिफीकल्ट?’’
जसमिन बड़ी मुश्किल से इंकार में सिर हिला पायी।
‘‘नहीं भी थामने का तो उसको साइलेंटली फॉलो करने का तो वो किधर तो पहुंचता आखिर? ऐसा हुआ होता तो अभी फेरा को मालूम होता कि सोहल इधर दिल्ली में किधर पाया जाता था! अभी फेरा को क्या मालूम? बाबाजी का ठुल्लू!’’
‘‘पर, बॉस, डर के बोलती हूं, फॉरवर्ड करने के वास्ते कोई जानकारी होना भी तो मांगता था! वो मेरे पास किधर था?’’
‘‘बोले तो जब तू स्मगलिंग का एक बोगस इस्टोरी सैट किया और उसको हज्म कराया तो कोई सिमिलर बोगस इस्टोरी सैकण्ड टाइम सैट करने में पिराब्लम तेरे को? साला, बाल्कनी में इतना माल दिया गॉड तेरे को, जरूरत पड़ने पर किसी काम में लाने का था या नहीं लाने का था!’’
‘‘आई एम सॉरी, बॉस।’’
‘‘अब क्या सॉरी। एक बड़ा चानस तेरा हाथ में था जो तू मिस किया।’’
‘‘सॉरी!’’
‘‘फिर भी सोहल को पहचान के तूने शाबाशी के काबिल काम किया है। मिलेगी।’’
तब पहली बार जसमिन के बुझते जाते चेहरे पर रौनक आयी।
‘‘थैंक्यू, बॉस।’’ – वो हर्षित भाव से बोली – ‘‘थैंक्यू वैरी मच।’’
उसी रात बिग बॉस की चिन्तामणि त्रिपाठी से मीटिंग हुई।
मीटिंग चिन्तामणि के घर में हुई जहां उसके और अरमान के अलावा गोल्डन गेट का मैनेजर सचदेवा, सिक्योरिटी इंचार्ज गजानन चौहान और जसवीर सिंह जस्सा मौजूद थे।
‘‘तुम्हारा ब्रदर किधर है?’’ – फेरा शुष्क स्वर में बोला।
‘‘आजकल वो अपनी पोलिटिकल एक्टीविटीज में बहुत बिजी है।’’ – चिन्तामणि विनयशील स्वर में बोला – ‘‘मरने की फुरसत नहीं आजकल उसे। नहीं आ सका। मैं उसकी तरफ से सॉरी बोलता हूं।’’
‘‘ये कौन हैं?’’
चिन्तामणि ने सबका परिचय दिया।
‘‘नहीं मांगता।’’ – फेरा बोला – ‘‘युअर सन कैन स्टे। डिसमिस अदर्स। किधर और जा के बैठने का। मांगता होयेगा तो बोलेगा।’’
सचदेवा, चौहान और जस्सा वहां से उठकर चले गये।
‘‘चिन्तामणि!’’ – फेरा का लहजा सख़्त हुआ – ‘‘मेरे को तुम लोगों से ऐसी नालायकी की, ऐसी बंगलिंग की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी।’’
‘‘सर!’’ – चिन्तामणि बौखलाया।
‘‘पंगा भी लिया तो कहां? सांप को रस्सी समझ लिया! शेर को पूंछ से पकड़ लिया! न दुश्मन को पहचाना, न उसकी ताकत को पहचाना, उस पर ग़लत, नाजायज बेहूदा वार कर दिया। सोहल की बीवी को मार डाला। अब उसके कहर को कौन भुगतेगा? फेरा या चिन्तामणि या कोई साला बाहर से आयेगा?’’
‘‘सर, अभी ये पक्का नहीं है कि जिसकी बीवी को . . . ख़त्म किया गया था, वो सोहल है।’’
‘‘पक्का है। सौ टका पक्का है। वो सोहल है, सोहल है, सोहल है। तुम्हारी नादानी ने, नालायकी ने, नासमझी ने मेरे लिये सोहल से दुश्मनी मोल ली है। जिसने राजबहादुर बखिया की बादशाहत को जड़ से उखाड़ फेंका, जिसने ‘कम्पनी’ का नामोनिशान मिटा डाला, जिनके आगे बखिया जैसे ही जाबर कम्पनी बॉस इकबाल सिंह, व्यास शंकर गजरे न टिक सके, उसके सामने अब साला स्टीवन फेरा टिकेगा! जिसके सामने सारा अन्डरवर्ल्ड थरथराता है, तुम लोगों की कमअक्ली ने, बेहूदा, ग़ैरजरूरी जोश ने मेरे को साला उसके मुकाबिल ला खड़ा किया। अक्ल मारी गयी थी कि उसकी बीवी को मार डाला। साला इतना सूरमा था तो उसको मारता!
‘‘हमने सोचा था बीवी उसकी दुखती रग . . .’’
‘‘सोचा था! सोचा था! सोचा अक्कल से जाता है। वो किधर है तुम लोगों में! होती तो वो बेहूदा कदम उठाया होता जो उठाया?’’
‘‘तब हमें मालूम नहीं था कि हम किस के मुकाबिल थे।’’
‘‘तभी तो बोला कि रस्सी समझ के साला सांप पकड़ लिया!’’
‘‘हमें तो अभी भी नहीं मालूम कि . . .’’
‘‘तो ये फेरा का मिस्टेक?’’
‘‘नहीं। लेकिन . . .’’
‘‘अभी मैं बोलता है न कि वो सोहल है! तभी इतनी जल्दी, इतना बड़ा वार हुआ। साला इतना पर्फेक्ट करके चलता ठीया चुटकियों में ढेर हो गया। इस ठीये की परर्फेक्शन से भाव खा कर मैं साला इधर वैसीच दूसरा ठीया खड़ा करना मांगता था, साला पहले से भी गया। क्यों? क्योंकि तुम लोगों ने सोहल से पंगा लिया, अपनी ऐंठ में ख़ामख़ाह उसे अपना दुश्मन बनाया।’’
‘‘सर, हमें नहीं मालूम था . . .’’
‘‘पहले भी बोला। पहले से पहले भी बोला। नहीं मालूम था तो ये साला मेरा मिस्टेक! नहीं मालूम था तो मालूम करने का था।’’
चिन्तामणि ने बेचैनी से पहलू बदला।
‘‘सोहल इतना बड़ा गैंगस्टर। साला अक्खे हिन्दोस्तान के अन्डरवर्ल्ड में उसका दबदबा। अपने टेम के कितने अन्डरवर्ल्ड बासिज को खल्लास किया उसने? तमाम नाम काउन्ट करे तो साला वन आवर लगे पण अक्खे अन्डरवर्ल्ड को मालूम कि उसने कभी किसी बेगुनाह पर वार नहीं किया। अभी तुम लोग क्या किया! उसकी बीवी को खल्लाल किया। ये अक्कल का काम किया? अभी ख़बरदार जो ‘मालूम नहीं था’ बोला।’’
चिन्तामणि ने जोर से थूक निगली। उसके मुंह से वही निकलने लगा था।
‘‘ये मालूम नहीं था कि वो सोहल की बीवी थी पण साला ये तो मालूम था कि बेगुनाह थी! एक बेगुनाह को तो मारा न बरोबर! बोलता है वो सोहल की दुखती रग। किसी की दुखती रग छेड़ो तो भीड़ू तड़पता है। छेड़ा दुखती रग को! भीड़ू तड़पा बरोबर! तड़पा तो क्या किया? कैसीनो का नामोनिशान मिटा दिया। अभी सेम ट्रीटमेंट वो तुम लोगों को देगा, फेरा को देगा। कौन रोकेगा उसे?’’
‘‘सर, जो हुआ, कुछ मेरी जाती मजबूरी के तहत भी हुआ।’’
‘‘बोले तो?’’
चिन्तामणि ने अरमान और उसके तीन दोस्तों की दुश्वारी की दास्तान बयान की। ये भी बताया कि अपने बाकी दोस्तों के हाहाकारी अंजाम तक पहुंचने वाला अब अकेला अरमान बचा था।
‘‘ये फेरा का प्राब्लम?’’ – वो खामोश हुआ तो फेरा भड़का।
‘‘वो तो नहीं, सर, लेकिन . . .’’
‘‘तुम्हेरा छोकरा जब गुनाह से नहीं डरता तो सजा से क्यों डरता है? जिसकी औरत के साथ इसने और इसके दोस्तों ने बद्फेली की, उससे ये क्या उम्मीद करता था? वो रो-रो के जान दे देता? उसने पलट वार किया तो क्या ग़लत किया? ग़लत किया तो तुम लोगों ने किया जो दुश्मन को कमजोर समझा। साला शेर का पूंछ पकड़ लिया! अब शेर खाने को आता है तो दम निकलता है। तुम बोलों अपने छोकरे को सोहल को ढूंढ़ के निकाले और उसको खल्लास करे। कर लेगा?’’
चिन्तामणि से जवाब देते न बना।
‘‘साला अपना पिराब्लम फेरा के सिर मंढ दिया। दुश्मन तो खल्लास किया न गया, मेरा कैसीनो खल्लास करा दिया। साला करोड़ों का नुकसान। और एक जमा जमाया ठीया हाथ से गया सो अलग।’’
फेरा ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई।
पिता पुत्र में से कोई कुछ न बोला।
कुछ क्षण माहौल नाकाबिलेबर्दाश्त खामोशी के हवाले रहा।
‘‘मैं साला काठमाण्डू में।’’ – फिर फेरा ने खामोशी भंग की – ‘‘मैं साला उधर एक अर्जेंट कर के, सीक्रेट करके मीटिंग अटेंड करता था। साला टीवी में न्यूज देखा। फौरन इतना इम्पॉर्टेंट करके मीटिंग कट किया और साला बुलेट का माफिक इधर रवाना हुआ।’’
‘‘आप मौकायवारदात पर चलना चाहेंगे?’’ – चिन्तामणि झिझकता-सा बोला।
‘‘काहे वास्ते? टीवी सब डिटेल से दिखाया न! देखा न!’’
‘‘ओह!’’
‘‘फिर भी जाना होयेंगा तो डे टाइम में जायेंगा। ये टाइम साला उधर क्या दिखाई देगा?’’
‘‘ठीक।’’
‘‘कैसीनो से फैक्ट्री की तरफ गेम्बलर्स की निकासी का वास्ते जो खुफिया रास्ता है, वो मेरे को इमीजियेट करके क्लोज होना मांगता है। तुम्हेरे मगज में तो ये आया नहीं होगा कि वो रास्ता एक्सपोज नहीं होने का था!’’
‘‘सर, वो रास्ता अपने आप ही क्लोज हो गया है।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘ब्लास्ट इतना फोर्सफुल था कि कैसीनो वाली, ‘गोल्डन गेट’ वाली इमारत का ढेरों मलबा उस रास्ते में जा कर पड़ा था और वो वैसे ही ब्लॉक हो गया है। अब कोई चैक भी करेगा तो यही लगेगा कि ब्लास्ट ने बीच की दीवार फाड़ दी और मलबा फैक्ट्री की इमारत में जाकर पड़ा।’’
‘‘श्योर?’’
‘‘वैरी श्योर, सर!’’
‘‘कैसीनो का गारमेंट फैक्ट्री से कनैक्शन एक्सपोज होना नहीं मांगता मेरे को।’’
‘‘नहीं होगा, सर।’’
‘‘लोकल अथारिटीज मलबा जल्दी हटाया जाने पर जोर देगा तो . . .’’
‘‘नहीं देगा, सर। पुलिस को यकीन दिलाया जा चुका था कि विस्फोट के वक्त इमारत बिल्कुल ख़ाली थी, किसी जान कर कोई नुकसान नहीं हुआ। रात बारह बजे तक ‘गोल्डन गेट’ चलता है और एक बजे तक मुकम्मल स्टाफ भी वहां से रुख़सत हो जाता है। कोई भूला-भटका पीछे रह न गया हो – सो कर या टुन्न होकर – मैनेजर ने उस बाबत भी तसदीक कर ली है। सारे स्टाफ को कान्टैक्ट करके मालूम कर लिया गया है कि भूले से भी कोई पीछे नहीं रह गया था। छः बजे से पहले तक कैसीनो भी हर हाल में खाली हो जाता है। पुलिस को इस बाबत ख़बर कर दी गयी है कि रेस्टोरेंट का सारा स्टाफ चौकस है, मलबे के नीचे किसी के जिन्दा या मुर्दा फंसे
होने की कोई गुंजायश नहीं। जोगमणि ने इस बाबत ख़ुद इलाके के
डीसीपी से बात की थी और अब पुलिस को पूरी तसल्ली है कि कोई कैजुअल्टी नहीं हुई है। लिहाजा मलबा जबरदस्ती हटवाये जाने का हम पर कोई जोर नहीं।’’
‘‘हम्म!’’
‘‘हमने सम्बन्धित अधिकारियों को ये भी आश्वास दिया है कि रीकंस्ट्रक्शन जल्द-अज-जल्द शुरू कर दी जायेगी।’’
‘‘बोले तो मलबे के नीचे दबे पड़े कैसीनो के साजोसामान की किसी को ख़बर लगने का कोई चानस नहीं?’’
‘‘कोई चांस नहीं, सर।’’
‘‘ये सीक्रेट सीक्रेट रहने का कि ‘गोल्डन गेट’ के नीचे गेम्बलिंग कैसीनो चलता था?’’
‘‘यस, सर।’’
‘‘अगर ऐसा हुआ तो कैसीनो फिर इस्टार्ट करना आसान होगा।’’
‘‘लेकिन, सर, उधर रीकंस्ट्रक्शन फौरन भी शुरू की तो एक साल लग जायेगा।’’
‘‘मेरे मगज में दूसरी जगह है, वो जगह है जिधर मैं दूसरा ठीया खड़ा करना मांगता था। टेम ख़ाली गेम्बलिंग इक्विपमेंट मूव इन करने में लगेगा। तुम लोग अक्कल से, होशियारी से काम लेगा तो वन मंथ में कैसीनो इधर फिर चालू हो जायेगा। पण गेम्ब्लर्स को स्क्रीन करने का कोई नया, फूलफ्रूफ सिस्टम सोचना होयेगा। इसका डेली चेंजिग कोड और थम्ब इम्प्रैशन स्कैन वाला सिस्टम तो कोई – डेफिनिट कर के सोहल – ईजीली ब्रेक किया। मेरे को ऐसा फिर नहीं होता मांगता।’’
‘‘नहीं होगा। हम स्क्रीनिंग का कोई ज्यादा पुख्ता सिस्टम तैयार करेंगे।’’
‘‘गुड अभी बोलो, सोहल का क्या सोचा? उसको कैसे ट्रेस करेगा, आया मगज में कुछ?’’
चिन्तामणि हिचकिचाया।
‘‘इस बाबत कुछ न किया गया, फौरन कुछ न किया गया तो न हम सेफ हैं, न हमारा कोई ठीया सेफ है। उसका एक्सपोज होना जरूरी। तब और नहीं तो फेरा उससे कोई सुलह की बातचीत तो कर सकेगा!’’
‘‘सुलह?
‘‘वाई नॉट। जब दुश्मन अपने पर भारी पड़ने वाला हो तो उससे सुलह भी राइट स्ट्रेटेजी। साला दुश्मन की फाइट करने, फेस करने का कोई रूल होता है, कोई सिस्टम होता है, मालूम?’’
पहले तो चिन्तामणि को पता ही न लगा कि उससे सवाल हुआ था, फिर उसने जल्दी से इंकार में सिर हिलाया।
‘‘अभी मैं बोलता है। साला कान खोल के सुनने का। क्या!’’
‘‘जी हां। जी हां।’’
‘‘अगर तुम कम है और दुश्मन ज्यास्ती है तो फौरन कट करने का, फूट लेने का। अगर तुम ज्यास्ती है, दुश्मन कम है तो किसी को जिन्दा नहीं छोड़ने का, साला सबको खल्लास करने का, किसी को भाव नहीं देने का। भाईगिरी में साला लिहाज नहीं चलता, मुलाहजा नहीं चलता। ‘ये टेम मिस्टेक हुआ, आगे नहीं होगा’ नहीं चलता। कभी किसी भीड़ू को अपनी सफाई देने का मौका नहीं देने का। सफाई साला वो देता है जिस की ताकत में लोचा। जो कमजोर, जिसके मन में चोर, जो साला सोच के बैठेला है कि वो बातों से जीत सकता है। जो साला जबर, वो जुबान नहीं चलाता, ताकत चमकाता है, वार करता है। क्या!’’
पिता पुत्र दोनों ने यूं सहमति में सिर हिलाया जैसे किसी स्वामी के धार्मिक प्रवचन में बैठे हों।
‘‘पण अक्कल से काम हर हाल में लेने का – चाहे हालत हमले की हो या बैकफुट पर आने की हो। बोले तो कोई बात बनती लगे तो बनाने का क्योंकि सब को बिजनेस करने का। भेजा मूंडी से बाहर कौन मांगता है? साला। कोई ढक्कन ही मांगता है। तुम है?’’
‘‘क्या?’’ – चिन्तामणि हड़बड़ाया फिर तुरन्त बोला – ‘‘नहीं, नहीं।’’
‘‘पण साला काम किया ढक्कन वाला बरोबर। साला टार्गेट ही गलत चुना। चुना तो इस्तेमाल गलत किया। भीड़ू को खल्लास करना था, जोरू को खल्लास किया!’’
‘‘ग़-ग़लती हुई।’’
‘‘भुगतता है न फेरा! इस वास्ते बैकफुट पर है और सुलह की स्ट्रेटेजी सोचता है।’’
‘‘सर, सुलह की सूरत में अरमान का क्या होगा?’’
‘‘क्या होगा?’’
‘‘उसकी जिस धमकी की तलवार इसके सिर पर लटक रही है, वो उसे वापिस ले लेगा?’’
फेरा ने उस बात पर विचार किया।
‘‘अभी क्या कहा जा सकता है?’’ – फिर बोला – ‘‘जब टेम आयेगा तो . . . देखेगा।’’
‘‘अगर वो न माना तो?’’
‘‘तो भी देखेगा।’’
‘‘सर, गुस्ताखी माफ, सुलह हमें सूट नहीं करती। अव्वल तो इतने फसाद के बाद वो सुलह करेगा नहीं, करेगा तो हो सकता है कि सुलह की कोई शर्त खड़ी कर दे।।’’
‘‘कैसी शर्त?’’
‘‘हमें बर्बाद करने वाली शर्त। वो अपनी बीवी के हश्र के मद्देनजर चिन्तामणि का सिर मांग सकता है, वो अरमान के सिर पर से धमकी की तलवार हटाने से इंकार कर सकता है।’’
‘‘तो क्या करने का?’’
‘‘उसका, आपकी जुबान में, खल्लास होना जरूरी।’’
‘‘हूं।’’
‘‘आप यकीन कीजिये हमें नहीं मालूम था कि वो कौन था। उसके ढोल में कोई पोल थी, इस बात का अन्दाजा तो हमें था लेकिन वो पोल इतनी बड़ी निकलेगी ये हमने सपने में नहीं सोचा था। हमारी सीधी इक्वेशन थी कि बीवी के हलनाक अंजाम से वो पूरी तरह टूट कर बिखर जायेगा और ख़ुद ही मैदान छोड़ के भाग जायेगा। तब हमें हिन्ट भी होता कि वो सोहल था तो हम अपनी स्ट्रेटेजी तब्दील करते और उसकी बीवी की जगह उसको निशाना बनाते। तब ये काम मुश्किल भी नहीं था। वो पड़ोस में रहता था, रोज दिखाई देता था, जैसे उसके घर में घुस कर हमने उसकी बीवी को मारा था, वैसे हम उसे भी मार सकते थे। अरमान ने हिन्ट दिया था कि वो एक वाइट कॉलर एम्पलाई होने की जगह, हमारा पड़ोसी कौल होने की जगह, कोई और हो सकता था लेकिन तब इसकी लॉजिक – आई एम सारी टु से – मुझे कनविंस नहीं कर सकी थी। बाकी हालात तब ऐसे थे कि हमें जरूरी नहीं लगा था कि हम मर्द को अपना निशाना बनाते। तब हमने यही सोचा कि अगर वे आम शहरी होने की जगह कोई ताकतवर आदमी भी निकलता था तो भी उसकी दुखती रग पर वार उसे ज्यादा तड़पा सकता था। औरत हर मर्द की कमजोरी होती है और कमजोर अंग पर वार करना युद्ध की राजनीति होती है। इसलिये मैंने सोचा कि जो शख़्स मेरे बेटे को तड़पाना चाहता था उसकी औरत पर, उसकी कमजोरी पर, उसकी दुखती रग पर वार होगा तो वो बेपनाह तड़पेगा . . . तड़पेगा क्या, जीते जी मर जायेगा।’’
‘‘मर गया जीते जी?’’
‘‘नहीं। क्योंकि . . . क्योंकि . . . अब जाना कि सोहल था।’’
‘‘जो तड़पा बरोबर लेकिन वैसा न तड़पा जैसा उसके तड़पने की तुम लोगों को उम्मीद थी। तुम्हारी स्टार स्ट्रेटेजी ने उलटा असर दिखाया, उसने आग में घी का काम किया। जो आग पहले सिर्फ सुलग रही थी, तुम लोगों की नादानी ने उसे ऐसा भड़का दिया कि शोले आसमान छूने लगे और शोलों के साथ वो ख़ुद शोला बन गया। अब इससे पहले कि वो सब कुछ फूंक कर रख दे, बोलो, क्या करने का? स्ट्रेटेजीज बहुत सोचता है तुम लोग। उस तक पहुंचने की कोई स्ट्रेटेजी है तुम्हारी ऊपर वाले माले में?’’
‘‘वो ग़ायब है। अपने पीछे अपने घर में वो एक बड़ी मुसलिम फैमिली बसा गया है – एक मामू और चौदह भांजे – फैमिली ख़ुद को लैंडलॉर्ड का – अरविन्द कौल का, जो अब आपके जनवाये हम जानते हैं कि सोहल है – किरायेदार बताती है लेकिन मुझे इस सिलसिले में कोई भेद लगता है। मुझे लगता है कि वो लोग किरायेदार नहीं, सोहल के ख़ास हैं जो उसकी किसी स्ट्रेटेजी के तहत वहां बसाये गये हैं। और इसीलिये मुझे यकीन है कि वो सोहल को जानते हैं, सोहल का मौजूदा अता पता जानते हैं।’’
‘‘तो?’’
‘‘मैं सोच रहा था कि क्या उनमें से किसी को अपनी तरफ फोड़ा जा सकता था!’’
‘‘जवाब भी ख़ुद दो।’’
‘‘पन्द्रह भांजों में से कुछ अभी कमउम्र हैं – बालिग हैं लेकिन कमउम्र हैं – मैं समझता हूं कि उन में से कोई प्रलोभन में आ सकता है।’’
‘‘किस में आ सकता है?’’
‘‘लालच में आ सकता है। वन ऑफ दैम मे बी लैड अवे बाई मॉनीटेरी ग्रीड।’’
‘‘वो सब आपस में रिश्तेदार हैं तो ऐसा कोई स्टैप सीक्रेट रह पायेगा?’’
‘‘देखेंगे। कोशिश कर देखने में क्या हर्ज है!’’
‘‘ओके। करो।’’
‘‘ये काम जस्सा कर सकता है या चौहान कर सकता है या दोनों मिल के कर सकते हैं। आप कहें तो मैं उन्हें बुलाऊं?’’
‘‘नो। जो कहना करना है, ख़ुद करो।’’ – वो उठ खड़ा हुआ – ‘‘मेरे को अब जाना मांगता है।’’
‘‘सर, डिनर . . .’’
‘‘नहीं मांगता।’’
‘‘ऑर ए ड्रिंक! वन फॉर दि रोड!’’
‘‘नहीं मांगता। अभी वन वीक मैं इधर है। उतने में कुछ कर के दिखाने का वर्ना मेरे को तुम लोगों से अपनी एसोसियेशन के बारे में फिर सोचना मांगता होयेंगा।’’
बिग बॉस विदा हो गया।
तदोपरान्त मैनेजर सचदेवा को भी विदा कर दिया गया।
फिर त्रिपाठी पिता-पुत्रें की जस्से और चौहान के साथ आइन्दा स्ट्रेटेजी के बारे में गम्भीर मन्त्रण हुई जो कि आधी रात के बाद तक चली।
यही फैसला हुआ कि पड़ोस में बसे भांजों में से किसी भांजे को फोड़ने के काम को जस्सा बेहतर अंजाम दे सकता था।