बहुत देर तक वे कुछ बोल ही नहीं सके । बल्कि अंत तक भी नहीं बोल सके। विभा ने ही कहा ---- “अब सोचिए, रतन डेढ़ बजे जीवित अवस्था में अवंतिका के साथ कैसे हो सकता है ? कैसे किडनेप कर लिया उसे किसी ने ?”


“य... ये झूठ... ये झूठ आवंतिका ने क्यों बोला?”


“यही तो पूछने आई थी मैं अवंतिका से मगर वह नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रही हूं----- क्या आप मुझे इस बारे में कुछ बता सकते है ? "


“इ... इस बारे में हम क्या कह सकते हैं?” विभा जिंदल के इस रहस्योद्घाटन ने उन दोनों के समूचे अस्तित्व को झकझोरकर रख दिया था, पागल से नजर आ रहे थे वे उस वक्त ।


“सोचिए गिरजा प्रसाद जी, इतने बड़े झूठ के पीछे कोई तो कारण होगा? अगर आपको मालूम भी नहीं है तो सोचने की कोशिश कीजिए, क्या कारण हो सकता है ?”


“हे भगवान!” गिरजा प्रसाद ने अपना सिर पकड़ लिया ---- “ये क्या झमेला है? हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा।"


“आपकी समझ में आ रहा है?” विभा का सवाल मिसेज से।


वह इंकार में गर्दन हिलाने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकी।


“इतना तो आप मान गए न कि अवंतिका ने झूठी रिपोर्ट लिखवाई थी। इससे यह भी लगता है कि छंगा - भूरा को खरीदने वाली वही थी । सारा केस खोलने के बाद जब इंस्पेक्टर यहां पहुंचा तो उसने चांदनी का नाम लेकर उसके साथ रतन द्वारा रेप की बात कहकर चांदनी को पूरी तरह रतन की हत्या के इल्जाम में फंसा दिया !"


“मगर अवंतिका ऐसा क्यों करेगी? वह अपने ही पति को..


“वहीं तो... वही तो जानना चाहती हूं मैं आपसे ! क्या अवंतिका और रतन में कोई अनबन थी ?”


“हमें तो कभी ऐसा नहीं लगा।” गिरजा प्रसाद का जवाब


“क्या किसी भी रूप में आपने कभी ऐसा महसूस किया कि वह रतन को पसंद नहीं करती ? ”


मिसेज गिरजा प्रसाद बोलीं-- -- “नहीं ।”


“कभी ऐसा महसूस किया हो कि रतन के मुकाबले वह किसी और को ज्यादा पसंद करती है !”


“हमने ऐसा भी कभी महसूस नहीं किया । "


“ अब जो सवाल मैं आपसे करने वाली हूं उसका जवाब खूब सोच-समझकर दीजिए।” कहने के बाद विभा ने गिरजा प्रसाद और उनकी मिसेज को इस तरह देखा जैसे उन्हें कोई शॉक देने वाली हो ।


और 'शॉक्ड' से नजर भी आने लगे थे वे ।


इस तरह विभा की तरफ देख रहे थे जैसे उसके मुंह से निकलने वाला सवाल जानने के लिए मरे जा रहे हों ।


और वे ही क्यों?


मेरी, शगुन की और गोपाल मराठा की भी तो वैसी ही हालत थी! असल में हम भी तो नहीं समझ पा रहे थे कि उसके मुंह से निकलने वाला वह अगला सवाल क्या है जिसकी उसने इतनी भूमिका बांधी है?


“अशोक के बारे में आप क्या कहते हैं?” विभा ने एकसाथ गिरजा प्रसाद और उनकी मिसेज की आंखों में झांका था ।


“अ... अशोक के बारे में?" दोनों के मुंह से एकसाथ निकला ।


“क्या अशोक और अवंतिका के बीच में कुछ था?”


दोनों में से किसी के मुंह से बोल न फूटा ।


अवाक् से खड़े रह गए थे वे ।


विभा के फेस की तरफ यूं देखते रह गए थे जैसे समझ ही न पा रहे हों कि उसने पूछा क्या है, फिर एक-दूसरे की तरफ देखा ।


“आप ये क्या कह रही हैं?” गिरजा प्रसाद ने जैसे अपनी पत्नी का भी प्रतिनिधित्व करते हुए कहा ---- “मणीशंकर से हमारे फेमली रिलेशन तब से हैं जब रतन और अशोक पैदा भी नहीं हुए थे। उसी नाते अशोक और रतन की दोस्ती हुई । वह चांदनी के साथ चाहे जब यहां आ जाता था। रतन और अवंतिका उनके यहां जाते रहते थे।”


“जिन रिलेशंस की बात मैं कर रही हूं वे रिलेशंस इस किस्म की नजदीकियों के कारण ही ज्यादा पनपते हैं।"


“ ऐसा तो हमने कभी महसूस नहीं किया लेकिन... क्या आप यह कहना चाहती हैं कि अशोक और अवंतिका ने मिलकर रतन की हत्या की और उसमें चांदनी को फंसा दिया ताकि बाद में अशोक और अवंतिका एक हो सकें ?"


“हां ।” विभा ने साफ कहा ---- “मैं यही कहना चाहती हूं और इस कहने के पीछे बहुत ही पुख्ता वजह है । "


“क... क्या वजह है ?”


“जिस तरह पोस्टमार्टम रिपोर्ट निर्विवाद रूप से यह साबित करती है कि अवंतिका ने झूठ बोला उसी तरह चांदनी के ए.टी.एम. कार्ड का रिकार्ड ये साबित करता है कि पैसे उसी के खाते से निकलकर छंगा-भूरा की खोली तक पहुंचे और चांदनी के एकाऊंट से पैसे निकालना चांदनी के बाद सबसे आसान अशोक के लिए ही था | सीधी सीधी कहानी वह बनती है जिसे आप पहले ही समझ चुके हैं।”


“ पर ऐसा होता तो अवंतिका क्यों मारी जाती ?” गिरजा प्रसाद ने सवाल उठाया ---- “उसे किसने और क्यों मार डाला ?”


“ इस बारे में बाद में सोचेंगे । इस वक्त हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि अवंतिका ने कदम-कदम पर झूठ क्यों बोले और मनन कर रहे हैं कि उन झूठों से कौन-कौनसी बातें फूटकर निकलती हैं।”


“हमारी समझ में न आपकी बातें आ रही हैं, न ये झमेला।” गिरजा प्रसाद वाकई बेहद त्रस्त नजर आ रहे थे ---- “ऐसी पेचीदा बातों को समझने में आप ही का दिमाग सक्षम हैं। हम तो बस इतना जानते हैं कि हत्यारा जो भी है उसे सजा मिलनी चाहिए ।”


“मतलब मेरी इतनी देर की मेहनत बेकार गई !” विभा थोड़ी निराश नजर आई----“आप मेरी कोई मदद नहीं कर पा रहे । ” दोनों


चुप।


“हर आदमी के साथ घटने वाली हर घटना का संबंध उसकी दिनचर्या से होता है।" अचानक गोपाल मराठा ने आगे बढ़कर कमान संभाली----“आप हमें अपने बेटे और बहू की दिनचर्या बताइए?”


“ दिनचर्या से मतलब?”


“वे सारे दिन क्या करते थे ?”


“ रतन मेरे साथ बिजनेस में हाथ बंटाता था, बिजनेस इतना बड़ा और फैला हुआ है कि अवंतिका भी उसी में लग गई थी। बहरहाल, पढ़ी-लिखी थी । सारे दिन तो उन्हें इसी से फुर्सत नहीं मिलती थी । ”


“रात को पार्टी - वार्टियां?”


“जो सारे दिन काम करते थे वे रात को डिस्कोथ या क्लब में चले भी जाते थे तो क्या गुनाह करते थे ?” 


“क्या वे रोज जाते थे?” 


"नहीं।” 


“महीने में कितने दिन ?” 


“दस-पंद्रह दिन ।” 


“कितने बजे आते थे ?” 


“क्लब और डिस्कोथ में तो देर हो ही जाती है ।”


“फिर भी, आमतौर पर कितने बजे ?”


“यही कोई एक-दो या कभी-कभी तीन भी बज जाते थे।”


मराठा उसे बहुत गहरी नजरों से देखता हुआ बोला ---- “कभी कभी पूरी रात भी गुजर जाती होगी! सुबह के वक्त ही आते होंगे! "


“हां | ऐसा भी हो जाता था, पर बहुत कम । महीने में एकाध बार ।”


“क्या आप उनके ऐसे दोस्तों के बारे में कुछ बता सकते हैं जो अक्सर ऐसी पार्टियों में साथ रहते हों?”


“अशोक और चांदनी ही थे । ”


“और?”


मिसेज बिड़ला ने नाम बताने शुरू किए ।


मराठा हर नाम को गौर से सुन रहा था ।


उसी क्रम में जब उन्होंने संजय कपाड़िया कहा तो एकाएक चौंका और बोला ---- “संजय कपाड़िया? कहीं आप उसी संजय कपाड़िया की बात तो नहीं कर रही हैं जो प्रसिद्ध उद्योगपति धनजय कपाड़िया का बेटा है ! जो ट्रांसफारमर्स बनाते हैं और जी. के. में रहते हैं!”


“जी, मैं उसी की बात कर रही हूं। रतन कभी-कभी मुझसे अपने दोस्तों का जिक्र करता था, उन्हीं में उसका नाम भी आया था।"


“संजय की पत्नी का नाम ?”


“शायद मंजू ।”


“मराठा ।” विभा रोमांचित-सी थी-“तुम चौंके क्यों?”


“ बात ही चौंकने की है।" मराठा के फेस से ही लग रहा था कि वह कुछ सोच रहा है ---- “आप सुनेंगी तो आप भी चौंक पड़ेंगी, - बल्कि अगर यह कहूं तब भी गलत नहीं होगा कि आपका दिमाग चकरघिन्नी की तरह नाचने लगेगा । "


“तो नचाओ न !”


“वह इनोवा, जिसे बकौल छंगा-भूरा के उन्होंने होटल गुलमोहर की पार्किंग से चुराया था और बाद में जिसकी डिक्की से जमील अंजुम ने रतन की लाश बरामद की, इसी संजय कपाड़िया की थी।"