देखते-ही-देखते उस लड़की और अधेड़ को करीब चालीस टॉमीगनयुक्त इंसानों ने घेर लिया। इस बार स्थिति ऐसी थी कि अधेड़ कुछ करने में असमर्थ था। हॉल में उपस्थित आदमी कभी मृत जिम्बोरा के भयानक जिस्म को देखते और कभी उस अधेड़ को- जिसने जिम्बोरा जैसे शक्तिशाली भैंसे को गहरी नींद सुला दिया ।


टॉमीगनधारियों में से एक इंसान आगे बढ़ा--जिसके कंधे पर एक विशेष चिह्न बना हुआ था । यह चिह्न शायद इस बात का प्रतीक था कि वह इन ग्रीन कपड़े वालों का संचालक है । वह आगे बढ़ा- शेष सभी ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया । वह उन दोनों के निकट आया और एक झटके के साथ लड़की को खींचा---लड़की एक चीख के साथ उस इंसान के सीने से जा टकराई | तभी अधेड़ बोला ।


-"अरे... ओए, औरत पै कहां बहादोरी दिखावै है, मर्द है तो इकलो मेरे सामने कू आ "


अधेड़ का उपरोक्त वाक्य सुनकर वह इंसान अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराया और बोला ।


-"मानता हूं चौधरी-मानता हूं कि तुम बहुत बहदुर हो, किंतु मैं यह नहीं मानता कि हमारे जिम्बोरा जैसे आदमी को तुम जैसा साधारण आदमी न सिर्फ परास्त कर दे- बल्कि उसकी हत्या भी कर दे -- दूसरी बात तुम्हारे लड़ने का ढंग साधारण जोशीले इंसान जैसा नहीं बल्कि किसी संयमी और चतुर शातिर जैसा है। और तीसरी बात यह कि तुम जब सुपरिंटेंडेंट की कोठी से फरार हो रहे थे उस समय तुम्हारे वार्तालाप करने का ढंग चौधरी वाला नहीं, बल्कि किसी भयानक अपराधी जैसा था बोलो-क्या अब भी तुम यह कह सकते हो कि तुम्हारा ये चौधरी वाला चेहरा कृत्रिम नहीं?


उसके शब्द सुनकर अधेड़ के होंठों पर रहस्यमय मुस्कान उभर आई तथा वह बिल्कुल ही बदले हुए स्वर में बोला ।


-"जो तुम कह रहे हो वह बिल्कुल सही है, किंतु हमारी बातें अकेले में हों तो अधिक उपयुक्त होगा ।" वह हॉल में उपस्थित आदमियों पर निगाह मारकर बोला । उसके परिवर्तित होते व्यक्तित्व ने सभी की आंखों में आश्चर्य को जन्म दिया। सभी उसे इस प्रकार देख रहे थे-मानो वह चिड़ियाघर का नया एवं आश्चर्यजनक अजूबा हो । वह लड़की भी उसे गहन आश्चर्य से देख रही थी । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या होने लगा ? ।


."आओ मेरे साथ...।" गनधारी बोला- ' किंतु अगर किसी प्रकार की भी चालाकी दिखाने की चेष्टा की तो प्रत्येक टॉमीगन से एक-एक गोली भी निकली तो तुम जीवित नहीं रहोगे।"


उसके वाक्य पर अधेड़ न जाने क्यों फिर एक बार मुस्कराया - मानो वह किसी बालक की शरारत पर मुस्करा रहा हो । और फिर चुपचाप उसके पीछे बढ़ गया । उस लड़की की कलाई उसी इंसान ने थाम रखी थी। टॉमीगन की दो नालें रहस्यमय अधेड़ की पसलियों में आ चिपकीं । न जाने वह क्यों फिर मुस्कराया । हॉल में उपस्थित प्रत्येक इंसान यहां होने वाली अजीब घटनाओं को देखकर आश्चर्यचकित था । कभी लोग मृत जिम्बोरा को देखते तो कभी हॉल से ऊपर जाते हुए अधेड़ को, जो स्वयं एक रहस्य था और इस समय टॉमीगनों के साए में था? हॉल में उपस्थित लोग उन्हें तब तक देखते रहे जब तक कि देख सकते थे, फिर वह उनकी आंखों से ओझल हो गए । -


ऊपर पहुंचकर उस इंसान ने कोई बटन दबाकर एक विशेष कमरे में प्रवेश किया। कमरे में एक लाल वल्ब मानो धीमे से मुस्करा रहा था। लड़की को बाहर खड़े अन्य आदमियों को सौंप दिया गया था, किंतु उन्हें विशेष आदेश दिए गए थे कि वे लड़की के साथ कोई अप्रिय हरकत नहीं करेंगे और उसे साथ लिये बाहर ही खड़े रहेंगे। कमरा अंदर से बंद कर लिया गया । अंदर केवल वह दोनों ही थे । रहस्यमय अधेड़ मुस्कराया और बोला ।


-"अब हम यहां केवल दो हैं । "


-"फिर...?" वह आदमी भी अत्यंत रहस्यमय ढंग से बोला ।


- ''मैं तुम्हारी गरदन मरोड़ सकता हूं । " अधेड़ अजीब ढंग से उसे घूरता हुआ बोला ।


- "बेकार की बातों से कोई फायदा नहीं ।" वह इंसान भी शांति के साथ बोला--" किसी भी इंसान को कभी भी यह नहीं समझना चाहिए कि वही सबसे अधिक चालाक, शक्तिशाली और साहसी है । याद रखना चाहिए कि ऊपर वाले ने प्रत्येक का बाप पैदा किया है। ये मानता हूं कि तुमने जिस ढंग से जिम्बोरा को परास्त किया है, वह वास्तव में सराहनीय है, किंतु ये मत समझो कि तुम मुझे भी किसी तरह परास्त कर दोगे । मैं शक्ति में जिम्बोरा नहीं, किंतु मेरा नाम ब्रिगेंजा है और मैं स्वयं को तुमसे अधिक समझता हूं।" ये शब्द कहते हुए वह लेशमात्र भी कहीं भी उत्तेजित नहीं हुआ था । बड़ी शांति से सब कुछ कहता चला गया था ।


- " स्वयं ही कहते हो कि कभी किसी को हरेक का बाप मत समझो और स्वयं ही ये कह रहे हो कि तुम दिमाग में मुझसे अधिक हो । क्या तुम स्वयं ही अपने कथन के विरुद्ध नहीं जा रहे हो... ? "


-" बेकार की बहस में समय व्यर्थ न करो ।" ब्रिगेंजा का लहजा कुछ सख्त हो गया- ''मैं स्वयं को सबसे अधिक दिमाग वाला न कहकर सिर्फ तुमसे अधिक दिमाग वाला कह रहा हूं । वह भी तुम्हारी मूर्खता को देखकर । "


-"कैसी मूर्खता... ?" अधेड़ कुछ उलझ सा गया!


- "तुम्हारा यह सोचना कि तुम ब्रिगेंजा को कोई हानि पहुंचा सकते हो और वह भी इस कमरे में । तुम ये न देख सके कि जहां इस समय खड़ा हूं- मेरे पैर के नीचे एक ऐसा बटन है जो तुम्हारे लिए क्षणमात्र में मौत भी बन सकता है ।" ब्रिगेंजा के होंठों पर मुस्कन थी।


-"वह कैसे... ?" अधेड़ धीमे से आश्चर्यजनक स्वर में बोला ।


- "इसका पूरा चक्कर तुम्हारी बुद्धि में नहीं आएगा ।" ब्रिगेंजा बोला-' 'तुम सिर्फ इतना समझ लो कि यह ब्रिगेंजा का खास कमरा है । यहां टॉमीगनें, रिवॉल्वरें, एल. एम. जी. इत्यादि भयानक हथियार कमरे की दीवारों तथा छत में इस प्रकार संयोजित किए गए है कि कमरे के प्रत्येक कोण पर खड़ा आदमी किसी-न-किसी हथियार की रेंज में है। कहां खड़ा आदमी किस हथियार की रेंज में है और उसके चलाने के लिए कौन-सा बटन किस ढंग से दबाना चाहिए - यह रहस्य ब्रिगेंजा के अलावा कोई नहीं जानता ।"


- "मान गए मिस्टर ब्रिगेंजा, हम मान गए कि तुम हमसे अधिक बुद्धिमान हो ।' अधेड़ मुस्कराता हुआ बोला ।


-"अब चुपचाप उस चेयर पर जाकर बैठ जाओ और मेरे प्रश्नों का उत्तर दो ।"


अधेड़ चुपचाप उस कुर्सी पर बैठ गया जिसकी तरफ ब्रिगेंजा ने इशारा किया था। तभी ब्रिगेंजा ने मेज में लगा एक बटन दबाया -परिणामस्वरुप अधेड़ ने स्वयं को पूर्णतया बंधनों में पाया । वह कुर्सी से इस प्रकार जकड़ा हुआ था कि तनिक भी नहीं हिल सकता था। तभी ब्रिगेंजा ने एक अन्य बटन दबाया और अगले ही पल वह कुर्सी - जिस पर वह बंधा हुआ था, ऊपर उठने लगी । कुर्सी के निचले भाग में फौलाद का मोटा सरिया था जो निरंतर कमरे के फर्श से बाहर आ रहा था और कुर्सी अधेड़ सहित ऊपर उठ रही थी। उस समय अधेड़ का सिर छत से कुछ ही नीचे था कि चेयर रुक गई ।


- "इसक क्या मतलब ?" वह अधेड़ बोला ।


- "इसका मतलब ये है कि तुम ये तो देख ही रहे हो कि कमरे की छत लोहे की बनी है। ध्यान रहे - अगर किसी भी प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश न की अथवा मेरी आज्ञाओं का उल्लंघन किया तो एक बटन दबाते ही तुम्हारी खोपड़ी लोहे की छत से इस तरह टकराएगी जैसे रिवॉल्वर से निकली गोली । उसका परिणाम क्या होगा? तुम सहज ही उसका अनुमान लगा सकते हो ।" ब्रिगेंजा का लहजा अपेक्षाकृत सख्त था ।


अधेड़ धीमे से मुस्कराकर बोला- "इसकी क्या जरूरत थी ब्रिगेंजा-मै तो यूं ही तुम्हारी बातों का सही जवाब दे देता । खैर, यूं ही सही पूछो क्या पूछना है?


ब्रिगेंजा ने एक बटन दबाया-जिससे अधेड़ के दोनों हाथ स्वतंत्र हो गए । ब्रिगेंजा बोला-"अब तुम्हारे दोनों हाथ स्वतंत्र हैं -सबसे पहले अपना यह चौधरी वाला कृत्रिम चेहरा उतारो ।"


मुस्कराते हुए अधेड़ ने ब्रिगेंजा की आज्ञा का सहर्ष पालन किया - उसने चौधरी वाला फेसमास्क अपने चेहरे से उतार दिलाया । उसके पीछे एक खूबसूरत नवयुवक छुपा था - वास्तव में युवक सुंदर था । वह मुस्करा रहा था। ब्रिगेंजा उसे बड़े ध्यान से देखता रहा, किंतु जब वह उसे पहचान न सका तो उसने प्रश्न किया ।


- "कौन हो तुम?"


- "मेरा एक नाम नहीं है, अलग-अलग स्थानों पर मैंने अलग-अलग नाम रख छोड़े हैं, जैसे बेरुत में जिम्बो, न्यूयॉर्क में मार्टिन-काहिरा में जैब्रीन-चीन में हाईतोश इत्यादि-यूं मैंने भारत में अपना नाम संग्राम रखा है । " नवयुवक आराम से मुस्कराता हुआ कह रहा था ।


'ओह-तो तुम नए उभरते इंटरनेशनल अपराधी हो ।" ब्रिगेंजा उसे घूरता हुआ बोला ।


"जैसा ठीक समझौ-यूं तो मैं हूं बहुत पुराना ।"


- " किंतु मैंने कभी तुम्हारा नाम सुना ।"


-''मैं कोई बेवकूफ अपराधी नहीं-- जो प्रत्येक स्थान पर एक ही नाम रखकर इंटरपोल के जासूसों की निगाहों का कांटा बनूं । मैं अलग-अलग नामों से अपराध करता हूं- ताकि इंटरपोल कभी न जान सके कि कोई इंटरनेशनल अपराधी उनकी जड़ों को खोखली कर रहा है, तुम इसी कारण मुझे नहीं जानते ।' युवक निरंतर मुस्करा रहा था ।


वैसे तुम्हारा वास्तविक नाम क्या है ? " ब्रिगेंजा की बंधक दृष्टि उसे घूर रही थी ।


- "वास्तविकता पूछो तो मैं अब तक अपने लिए इतने नाम प्रयोग कर चुका हूं कि मैं अपना वास्तविक नाम लेते हुए संकोच में पड़ जाता हूं कि क्या वास्तव में मेरा यही नाम है । वैसे अच्छा होगा अगर तुम मुझे संग्राम ही कहो।"


- "खैर माना कि तुम संग्राम हो ।" ब्रिगेंजा बोल उठा-"किंतु भारत में क्या कर रहे हो ?"


अगर आप कहें तो एक ही सांस में अपनी पूरी कहानी सुना दूं- उसके बाद जो प्रश्न रह जाए- आप उसे पूछ लेना, किंतु कहानी सुनाने से पूर्व मैं आपसे छोटा-सा प्रश्न करना चाहूंगा


-"कैसा प्रश्न...?"


- " प्रश्न सिर्फ ये है कि क्या मैं आग के बेटे से बात कर रहा हूं ?"


"इसका उत्तर हां में है।" ब्रिगेंजा ने स्वीकार किया ।


-'"बस तो ठीक है...।" संग्राम बोला- अब आप सुनिए-आज से एक हफ्ता पूर्व मैं जिम्बो के नाम से बेरुत में था- मैंने अपने कुछ साथियों के साथ वहां का खजाना लूटने की योजना बनाई, न जाने कैसे यह भनक वहां की सीक्रेट सर्विस को लग गई अभी हम लोग अपनी योजना पर विचारकर ही रहे थे कि सीक्रेट एजेंटों ने हमारे हैडक्वार्टर पर हमला बोल दिया । परिणामस्वरूप वहां आतंक फैल गया । हम सब दोस्त अपनी-अपनी जान बचाकर भागे । जिसमें किसी को किसी का पता न रहा कि किसके साथ क्या बीती? कौन मरा और कौन मेरी तरह फरार होने में सफल हो गया? खैर.. मैंने अपना जिम्बो वाला मेकअप उतार दिया और भारत चला आया । मेरा अगर कोई दोस्त पकड़ा भी गया होगा तो वे मुझे सिर्फ जिम्बो के रूप में ही जानते हैं। वे नहीं जानते कि जिम्बो के पीछे वास्तविक चेहरा क्या है? अत: बेरुत की पुलिस को तलाश करती रही। जबकि जिम्बो संग्राम में बदल चुका था,ऐसे संग्राम में जो केवल बेरुत पुलिस के लिए ही नहीं बल्कि जनता कि लिए भी भोला और नवपरिचित चेहरा था। मैंने स्वयं को यहां भारतीय पर्यटक बताना प्रारम्भ कर दिया। पुलिस बेचारी क्या जानती थी कि संग्राम ही जिम्बो है । स्वयं मेरे साथी नहीं जानते थे कि जो व्यक्ति जिम्बो के नाम से उनक साथी है वास्तव में कुछ और ही है। खैर... बेरुत से मैं भारत आया-यहां अधेड़ का रूप धारण करके अपना नाम घासीराम रख लिया । यहां आते हो मैंने आग के बेटों के विषय में सुना । वास्तविकता यह थी कि मैं भारत में किसी ऐसे शक्तिशाली संगठित अपराधी दल की तलाश में था जिसके साथ रहकर मैं कार्य कर सकूं । इसलिए आग के बेटों से मुलाकात करने मैं घासीराम बना ही रघुनाथ की कोठी की पिछली गली में गया था, किंतु वहां किन्हीं अनजाने लोगों से टकरा गया । तभी रघुनाथ की कोठी का दरवाजा खुला और एक व्यक्ति वहां से कूदकर मेरी सहायता करने लगा, फिर अचानक वे अनजाने लोग पता नहीं कैसे मरने लगे? खैर.. तभी मिलिट्री के जवानों के गली में आने की ध्वनि ने मुझे चौंकाया । मुझे क्योंकि अपने पकड़े जाने का भय था । अत: अपने मददगार को धोखा देकर मैं बड़ी कठिनाई से उस बालक के जरिए यहां से निकला और अंत में आज जब जिंबोरा उस लड़की को घसीट रहा था तो मुझे क्रोध आ गया और उससे भिड़ गया। उसके बाद अचानक तुमसे मुलाकात हुई और मैं समझता हूं यह अच्छा हुआ, क्योंकि मैं तो स्वयं ही तुम्हारे दल में शामिल होना चाहता था ।" संग्राम ने एक गहरी सांस ली ।

“हूं! " ब्रिगेंजा एक ठंडी सांस लेकर बोला- "तो इस समय मैं जो चेहरा देख रहा हूं क्या यह वास्तविक है? ।।

- "नकली चेहरा तो तुमने अपनी चालाकी से उतरवा ही लिया । अत: यह चेहरा मेरा वास्तविक चेहरा है । वैसे नाम वास्तविक नहीं है।" संग्राम मुस्कराकर बोला ।

ब्रिगेंजा को उसकी कहानी सुनकर लगा कि वास्तव में यह व्यक्ति काफी दूरदर्शी और चालाक है । शक्ति और लड़ने का ढंग वह देख ही चुका था । वास्तव में ब्रिगेंजा इस व्यक्ति के व्यक्तित्व से प्रभावित था । अत: वह बोला ।

-" तो तुम हमारे साथ काम करना चाहते हो?

- " पहले ही कह चुका हूं-मैं स्वयं इसके लिए उत्सुक हूं, किंतु अब मैं एक शर्त पर काम करूंगा।"

"शर्त... कैसी शर्त ? " ब्रिगेंजा उलझा |

-"यही कि मैं अपनी इस वास्तविक सूरत को छिपाकर प्रत्येक कार्य करूंगा।"

- ''इससे हमें कोई मतलब नहीं यह तुम्हारा अपना काम करने का ढंग है तुम चाहे किसी भी मेकअप में कार्य करो ।' ब्रिगेंजा उसकी चालाकी पर मुस्कराया । ब्रिगेंजा यह सोचकर मुस्कराया कि कितना धूर्त है यह व्यक्ति जो कभी अपनी असली को पुलिस रिकॉर्ड में नहीं आने देना चाहता।

उसके बाद ब्रिगेंजा ने उससे कहा कि उसे आग के स्वामी के सामने पेश किया जाएगा- तत्पश्चात बटन दबाकर उसकी कुर्सी साधारण हालत में कर दी गई। उसे बंधमें से मुक्त कर दिया गया उसने फिर अधेड़ वाला चेहरा लगाया और उसके बाद ब्रिगेंजा की आज्ञा पर उस लड़की को कमरे में भेजा गया । कमरा अंदर से फिर बंद कर लिया गया । अब कमरे में वे तीनों थे । लड़की सहमी-सी खड़ी हो गई। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है? तभी ब्रिगेंजा ने उसकी और देखा, लड़की ने नजरें झुका ली। ब्रिगेंजा शांत और गंभीर स्वर में बोला।

-" बैठ जाओ।"

वह लड़की हौले से उस कुर्सी पर बैठ गई जिसकी ओर ब्रिगेंजा ने इशारा किया था ।

- "तुम्हारा नाम क्या है ? " ब्रिगेंजा ने पूछा ।

-"स...स... सविता! " लड़खड़ाते-से शब्दों में उसने संक्षिप्त उत्तर बड़ी कठिनाई से दिया ।

- "तुम्हें वह आदमी कहां से लाया था?

- -"म...म... मैं !" वह लड़की गरदन उठाकर बड़ी ही कठिनाई से बोली- "मैं होटल के बाहर से गुजरती हुई अपनी सहेली के साथ जा रही थी कि उस बदमाश ने मुझे पकड़कर अंदर खदेड़ा ।" और उसके बाद वह कुछ न कह सकी, बल्कि उसके नेत्रों से आंसू निकल पड़े और वह फफककर रो पड़ी । तभी संग्राम बोला ।

- "अरे.. बड़ी पागल हो सविता बहन... अब क्यों घबराती हो.. .तुम्हारा भाई तुम्हारे पास है।"

"भैया...ऽऽऽ ! " सविता इस कठिन समय में एक
अनजान को भाई के इस रूप में देखकर भावनाओं में बह गई । संग्राम के सीने से लग गई। तभी संग्राम ब्रिगेंजा से बोला ।

- "मिस्टर ब्रिगेंजा... मैंने सविता को अपनी बहन बना लिया है । अत: किसी की भी गंदी नजर मैं इसकी ओर उठती नहीं देख सकता और इस समय यह ऐसे स्थान पर आ गई है जहां प्रत्येक मर्द की नजर प्रत्येक स्त्री के लिए गंदी होती है । अत: सबसे पहले मैं चाहूंगा कि सविता को उसके घर पहुंचा दिया जाए।"

-"ठीक है!" ब्रिगेंजा ने बेहद ही गंभीरता के साथ बोला"सविता जी आप कहां रहती है ? " .

- "पैंतीस, गांधी रोड ! " अब सविता की सिसकियां समाप्त प्राय हो गई थी ।

- "पिता का क्या नाम है ? " ब्रिगेंजा का अगला प्रश्न ।

- "मेरे पिता वैज्ञानिक है। नाम है- प्रोफेसर हेमंत! "

-"क्या...हेमंत !" और ब्रिगेंजा की खोपड़ी मानो हवा में चकरा रही थी । संग्राम ने उसके चेहरे के बदलते भावों को अनुभव किया कि ब्रिगेंजा बुरी तरह चौंका है। उसके चेहरे पर उभरने वाले भाव सख्त हो गए हैं... शायद उसके इरादों में भयानक परिवर्तन होना चाहता था- ब्रिगेंजा के बदले भाव आने वाले खतरे के प्रतीक थे ।

नाटे नकाबपोश का रहस्य तो आग के बेटों और आग के स्वामी पर खुल चुका था । उसे देखकर सब आश्चर्यचकित तो रह ही गए थे, किंतु न जाने उन्होंने क्या सोचा था कि उसे उसकी नकाब वापस करके कमरा नंबर चार में एक प्रकार से कैद कर दिया गया । इस समय भी उसके चेहरे पर वही काली नकाब थी । वैसे उसे आग के बेटों पर अपने रहस्य के खुलने का दुख था, किंतु ऐसा लगता था जैसे वह कुछ अंशों तक अपनी योजना में सफल भी था। कुछ आग के बेटे उसे इस कमरे में डाल गए थे। कमरा गोल था, जिसमें जीरो वाट का छोटा बल्ब जल रहा था । एक तो उसका प्रकाश स्वयं ही अत्यंत क्षीण था, दूसरे बल्ब पर जमी गर्द ने और अधिक सहायता की थी । अतः छोटे-से गोल कमरे में क्षीण-सा पीला प्रकाश फैला हुआ था । वहां सिर्फ एक पलंग था- जिस पर कपड़े बिछे हुए थे... वह शायद नाटे के सोने अथवा आराम करने के इरादे से डाल दिया गया था और इस समय वह उसी पर पड़ा न जाने क्या सोच रहा था ।

एकाएक नाटे नकाबपोश की निगाह अपने कमरे के दाई ओर बने एक जंगले पर पड़ी । यह शायद रोशनदान था जो किसी अन्य कमरे में खुलता था । शायद नंबर पांच में... उसके दिमाग का न जाने कौन-सा शरारती कीड़ा कुलबुलाया । वह यह सोचने लगा कि कमरा नंबर पांच में कौन होगा? यह देखने के लिए वह रोशनदान तक पहुंचने का उपाय सोचने लगा । उसे अधिक दिमाग नहीं लगाना पड़ा । तुरंत और फुर्ती, किंतु इस सतर्कता के साथ कि कहीं कोई आहट उत्पन्न न हो, पलंग से समस्त कपड़े समेटकर एक ओर को रख दिए और पलंग उठाकर रोशनदान के नीचे दुपाया खड़ा किया । पलंग का दूसरा सिरा रोशनदान तक लगभग पहुंच ही गया । उसने फुर्ती के साथ कमरा अंदर से बंद किया, ताकि अचानक ही कोई अंदर न आ सके-फिर वह फुर्ती के साथ पलंग पर चढ़ गया और बहुत ही सतर्कता के साथ कमरा नंबर पांच में झांका ।

वहां विकास था- जो अपने पलंग पर बैठा बड़े आराम से कुछ गुनगुना रहा था । देखने में विकास तनिक भी चिंतित नहीं आता था । वह पूर्ण लापरवाह था-मानो इस कैद की उसे लेशमात्र भी चिंता नहीं है । उस शरारती को देखकर नाटे साए के अधरों पर धीमी-सी मुस्कान नृत्य कर उठी । अगले ही पल उसने अपने मुख से सी... सी की धीमी, किंतु ऐसी ध्वनि निकाली जिसे पलंग पर बैठे विकास ने सुन लिया । विकास इस आवाज को सुनकर धीमे से चौंका, एक झटके के साथ उसकी बड़ी-बड़ी आंखें रोशनदान की ओर उठ गई । वह अभी कुछ बोलने ही जा रहा था कि नाटे स्याहपोश ने तुरंत उसे चुप रहने का संकेत किया ।

विकास एकदम चुप हो गया और ध्यान से उसे देखने लगा । स्याहपोश ने उसे रोशनदान तक आने का संकेत किया ।

विकास ने भी सांकेतिक भाषा में ही पूछा-"कैसे...?'

संकेत में ही नाटे ने विकास को रोशनदान तक आने की तरकीब बताई - विकास ने भी अपनी कोठरी की सांकल अंदर से बंद की और उसी प्रकार रोशनदान के नीचे पलंग लगाकर रोशनदान तक आ गया ।

- "इन्होंने तुम्हें कोई यातना तो नहीं दी? " तभी नाटा साया बोला ।

-"नहीं - यहां मैं आराम से हूं। " विकास तुरंत बोला- "किंतु तुम यहां कैसे फंस गए?"

-''परिस्थितियां बड़े अजीब मोड़ ले रही हैं । " नाटा अत्यंत गंभीर स्वर में बोला- ' 'मेरा विचार था कि प्रोफेसर हेमंत ही आग के बेटों का सरदार है, किंतु ऐसा लगता है कि चक्कर कुछ और ही है- प्रोफेसर हेमंत को तुम्हारे द्वारा स्टार से डराया जाना आग के बेटों से कुछ अलग की ही बात लगती है- मेरे विचार से उसका डरना और यह केस अलग-अलग

बात है क्योंकि ये लोग हेमंत का अपहरण करके लाए है और इनके चीफ ने उसे कमरा नंबर एक में रखने का आदेश दिया है।"

-"तो इसका मतलब, हमारा सोचना गलत साबित हो गया ?" विकास भी रहस्यमय स्वर में फुसफुसाया ।

"ऐसा ही लगता है क्योंकि इन्होंने स्वयं प्रोफेसर हेमंत को उठवाया है।"

- " किंतु अगर प्रोफेसर हेमंत का आग के बेटी से कोई संबंध नहीं है तो अपहरण उसी का क्यों कराया गया? "

- "इस प्रश्न का उत्तर अभी पूर्ण रूप से मैं कुछ नहीं दे सकता, किंतु अनुमान के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि शायद हेमंत से कोई खतरा उत्पन्न हो गया होगा।" दोनों की बातें अत्यंत धीमे और रहस्यमय ढंग से हो रही थी ।

. - "कहीं प्रोफेसर हेमंत के अपहरण के पीछे उनकी विजय अंकल से की गई वह घोषणा तो नहीं जिसमें उन्होंने तीन दिन में आग के बेटों को विफल कर देने के विषय में कहा था?" विकास का स्वर अत्यंत धीमा था ।

- "संभव है वह कारण भी रहा हो, किंतु इन्हें उस घोषणा का पता कैसे लगा होगा ?"

"ऐसे दलों के हाथ बहुत लम्बे होते हैं किसी भी तरीके से पता लगा सकते हैं।"

- "खैर सब पता लग जाएगा... | " नाटा साया बोला- अब तुम एक अन्य घटना सुनो - जिसे तुम सुनकर निश्चित रूप से चौंक पड़ोगे । " नाटा साया अत्यंत रहस्यमय प्रतीत होता था ।” । ।

-"कैसी घटना...?"

-" आग के बेटों पर मेरा रहस्य खुल चुका है ।" वह मुस्कराकर बोला ।

-"क्या कहा... कैसे...?" वांस्तव में विकास चौंक पड़ा, फिर बोला- ' 'अब इस षड्यंत्र का लाभ ही क्या रहा? "

"मजबूरी है... ।" नाटा बोला- "लो अब यह नकाब तुम पहनो ।" कहते हुए नाटे ने अपना हाथ नकाब को उतारने के लिए बढ़ाया ही था कि वह बुरी तरह चौंक पड़ा । कोई व्यक्ति बाहर से उसकी कोठरी का दरवाजा खटखटा रहा था।