बाल बाल बचे

रास्ते भर शौकत का दिमाग़ सुई और कुत्ते की मौत में उलझा रहा। साथ-ही-साथ वह ख़लिश भी उसके दिल में चुभ रही थी जो नजमा से बात करने के बाद पैदा हो गयी थी। उसका दिल तो यही चाह रहा था कि वह ज़िन्दगी भर खड़ा उससे इसी तरह बातें करे। औरतों से बात करना उसके लिए नयी बात न थी। वह तक़रीबन दिन-भर नर्सों में घिरा रहता था और इसके अलावा उसका पेशा भी ऐसा था कि दूसरी औरतों से भी उसका साबक़ा पड़ता रहता था। लेकिन नजमा में न जाने कौन-सी ऐसी बात थी जिसकी वजह से रह-रह कर उसका चेहरा उसकी नज़रों के सामने आ जाता था।

डॉक्टर तौसीफ़ के घर पहुँचते ही वह सब कुछ भूल गया। क्योंकि अब वह ऑपरेशन की स्कीम तैयार कर रहा था। वह एक ज़िन्दगी बचाने जा रहा था...उसे अपनी कामयाबी का उसी तरह यक़ीन था जिस तरह इसका कि वह ग्यारह बजे खाना खायेगा।

लगभग एक घण्टे के बाद डॉक्टर तौसीफ़ नवाब साहब की कार ले कर घर पर आ गया।

‘‘कहिए डॉक्टर साहब, कोई ख़ास बात?’’ डॉक्टर शौकत ने पूछा।

‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, अलबत्ता कुत्ते की मौत से हर शख़्स हैरान है। लाइए, देखूँ तो वह सुई।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने सुई लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा।

‘‘यह देखिए...बड़ी अजीब बात है। मालूम नहीं सुई किस ज़हर में बुझायी गयी है।’’ डॉक्टर शौकत थर्मामीटर की नलकी से सुई निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोला। ‘‘देखते-ही-देखते कुत्ता ख़त्म हो गया।’’

‘‘ग्रामोफ़ोन की सुई है।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने सुई को ग़ौर से देखते हुए कहा। ‘‘मालूम नहीं किस ज़हर में बुझायी गयी है।’’

‘‘मेरे ख़याल में पोटैशियम सायानाइड या उसी क़िस्म का कोई और ज़हर है,’’ डॉक्टर शौकत ने सुई को ले कर फिर थर्मामीटर की नलकी में रखते हुए कहा।

‘‘मुझे तो यह सुई पागल प्रोफ़ेसर की मालूम होती है।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा। ‘‘उसकी अजीबो-ग़रीब चीज़ें और हरकतें दूर तक मशहूर हैं।’’

‘‘मुझे अभी तक प्रोफ़ेसर के बारे में कुछ ज़्यादा नहीं मालूम। लेकिन मैं उस शाख़्सियत के बारे में और जानना चाहता हूँ। वैसे तो मैं यह जानता हूँ कि वह एक मशहूर अन्तरिक्ष वैज्ञानिक है।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।

‘‘उसकी ज़िन्दगी अभी तक एक राज़ है।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा। ‘‘लेकिन इतना मैं भी जानता हूँ कि अब से दो साल पहले वह एक ठीक दिमाग़ का आदमी था। उसके बाद अचानक उसकी आदतों में तब्दीलियाँ आने लगीं और अब तो सभी का यह ख़याल है कि उसका दिमाग़ ख़राब हो गया है।’’

‘‘मैंने तो साहब, इतना भयानक आदमी आज तक नहीं देखा।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।

थोड़ी देर तक ख़ामोशी छायी रही उसके बाद डॉक्टर तौसीफ़ बोला, ‘‘हाँ तो आपका क्या प्रोग्राम है। मेरे ख़याल से तो अब दोपहर का खाना खा लेना चाहिए।’’

खाने के दौरान ऑपरेशन और दूसरे विषयों पर बातचीत होती रही। अचानक डॉक्टर शौकत को कुछ याद आ गया।

‘‘डॉक्टर साहब, मैं जल्दी में अपने असिस्टेंट को कुछ ज़रूरी बात बताना भूल गया हूँ...अगर आप कोई ऐसा इन्तज़ाम कर सकें कि मेरा पर्चा उस तक पहुँचा दिया जाय तो बहुत अच्छा हो।’’ डॉक्टर शौकत ने कहा।

‘‘चलिए, अब दो काम हो जायेंगे।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा। ‘‘मैं दरअसल शहर जाने के लिए ही नवाब साहब की कार लाया था। आप पर्चा दे दीजिएगा और हाँ, क्यों न आपके साथियों को अपने साथ लेता आऊँ।’’

‘‘इससे बेहतर क्या हो सकता है।’’

‘‘इस पर्चे के अलावा कोई और काम...?’’

‘‘जी नहीं, शुक्रिया। मेरे ख़याल से आप उन लोगों को उसी तरफ़ से कोठी लेते जाइएगा।

‘‘ठीक है...छै बजे आप के लिए कार भिजवा दी जायेगी।’’

‘‘नहीं, इसकी ज़रूरत नहीं। मैं पैदल ही आऊँगा।’’

‘‘क्यों....?’’

‘‘बात दरअसल यह है डॉक्टर साहब, कि ऑपरेशन ज़रा नाज़ुक है। मैं चाहता हूँ कि ऑपरेशन से पहले इतनी कसरत हो जाये जिससे जिस्म में चुस्ती पैदा हो सके।’’

‘‘डॉक्टर शौकत, मैं आपकी तारीफ़ किये बग़ैर नहीं रह सकता। हक़ीक़त में एक अच्छे डॉक्टर को ऐसा ही होना चाहिए।’’

डॉक्टर तौसीफ़ के चले जाने के बाद डॉक्टर शौकत ने एक के बाद एक वे किताबें पढ़ना शुरू कीं जो वह अपने साथ लाया था। एक काग़ज़ पर पेंसिल से कुछ ख़ाके बनाये और देर तक उन्हें देखता रहा। पुराने रिकॉर्डों की कुछ फ़ाइलें देखीं। इस तरह दिन ख़त्म हो गया। तक़रीबन पाँच बजे उसने किताबें और फ़ाइलें एक तरफ़ रख दीं। उसे ठीक छै बजे यहाँ से निकलना था। दिसम्बर का महीना था। शाम की किरनें फीकी-फीकी लाली में बदलती जा रही थीं। डॉक्टर तौसीफ़ का नौकर अण्डे के सैंडविच और कॉफ़ी ले आया। रात का खाना उसे कोठी में खाना था, इसलिए उसने सिर्फ़ एक सैंडविच खाया और दो कप कॉफ़ी के बाद सिग्रेट सुलगा कर टहलने लगा। घड़ी ने छै बजाये...उसने कपड़े पहने और चेस्टर कन्धे पर डाल कर रवाना हो गया। वह धीरे-धीरे टहलता हुआ जा रहा था। चारों तरफ़ अँधेरा फैल गया था। सड़क की दोनों तरफ़ घनी झाड़ियाँ और पेड़ों की क़तारें थीं जिनकी वजह से सड़क और ज़्यादा अँधेरी हो गयी थी। लेकिन डॉक्टर शौकत ऑपरेशन के ख़याल में मगन बेख़ौफ़ चला जा रहा था। उससे तक़रीबन पचास फ़ुट पीछे एक दूसरा आदमी झाड़ियों से लगा हुआ चल रहा था। शायद उसने रबड़सोल के जूते पहन रखे थे जिसकी वजह से डॉक्टर शौकत को उसके क़दमों की आवाज़ सुनायी नहीं दे रही थी। एक जगह डॉक्टर शौकत सिग्रेट सुलगाने के लिए रुका, तो वह शख़्स भी रुक कर झाड़ियों की ओट में चला गया। जैसे ही शौकत ने चलना शुरू किया, वह फिर झाड़ियों से निकल कर उसी तरह उसका पीछा करने लगा।

सड़क ज़्यादा चलती हुई न थी। वजह यह कि सड़क महज़ कोठी के लिए बनायी गयी थी। अगर नवाब साहब ने अपनी कोठी बस्ती के बाहर न बनवायी होती तो फिर इस सड़क का वजूद भी न होता। शौकत के वज़नी जूतों की आवाज़ इस सुनसान सड़क पर इस तरह गूँज रही थी जैसे वह झाड़ियों में दुबक कर टीं-टीं, रीं-रीं करने वाले झींगुरों को डाँट रही हो...शौकत चलते-चलते हल्के सुरों में सीटी बजाने लगा। उसे अपने जूतों की आवाज़ सीटी की धुन पर ताल देती मालूम हो रही थी। किसी पेड़ पर एक बड़े पक्षी ने चौंक कर अपने पर फड़फड़ाये और उड़ कर दूसरी तरफ़ चला गया। झाड़ियों के पीछे क़रीब ही गीदड़ों ने चीख़ना शुरू कर दिया। जो शख़्स डॉक्टर शौकत का पीछा कर रहा था, उसका अब कहीं पता न था। कुछ आगे बढ़ कर बहुत ज़्यादा घने पेड़ों का सिलसिला शुरू हो गया। यहाँ पर दोनों तरफ़ के पेड़ों की डालियाँ इस तरह आपस मिल गयी थीं कि आसमान नहीं दिखायी देता था। डॉक्टर शौकत दुनिया से बेख़बर अपनी धुन में चला जा रहा था। अचानक उसके मुँह से एक चीख़ निकली और हाथ ऊपर उठ गये। उसके गले में एक मोटी-सी रस्सी का फन्दा पड़ा हुआ था। धीरे-धीरे फन्दे की पकड़ कसती गयी और साथ-ही-साथ वह ऊपर उठने लगा। गले की रगें फूल रही थीं। आँखें निकली पड़ रही थीं। उसने चीख़ना चाहा, लेकिन आवाज़ न निकली। उसे ऐसा मालूम हो रहा था जैसे उसका दिल कनपटियों और आँखों में धड़क रहा हो। धीरे-धीरे उसे अँधेरा गहरा होता हुआ मालूम हुआ। झींगुरों और गीदड़ों का शोर दूर क्षितिज में डूबता जा रहा था। फिर बिलकुल ख़ामोशी छा गयी। वह ज़मीन से दो फुट की ऊँचाई पर झूल रहा था। कोई उसी पेड़ पर से कूद कर झाड़ियों में ग़ायब हो गया। फिर एक आदमी उसकी तरफ़ दौड़ कर आता दिखायी दिया। उसके क़रीब पहुँच कर उसने हाथ मलते हुए इधर-उधर देखा...दूसरे पल में वह फुर्ती से पेड़ पर चढ़ रहा था। एक डाल से दूसरी डाल पर कूदता हुआ वह उस डाल पर पहुँच गया जिससे रस्सी बँधी हुई थी। उसने रस्सी ढीली करनी शुरू की और धीरे-धीरे डॉक्टर शौकत के पैर ज़मीन पर टिका दिये। फिर रस्सी को उसी तरह बाँध कर नीचे उतर आया। अब उसने जेब से चा़कू निकाल कर रस्सी काटी और शौकत को हाथों पर सँभाले हुए सड़क पर लिटा दिया। फन्दा ढीला होते ही बेहोश डॉक्टर गहरी-गहरी साँसें ले लेने लगा था। उस अजनबी ने माचिस जला कर उसके चेहरे पर नज़र डाली। आँखों की पलकों में हरकत पैदा हो चुकी थी। मालूम हो रहा था जैसे वह दस-पाँच मिनट के बाद होश में आ जायेगा। दो-तीन मिनट गुज़र जाने पर उसके जिस्म में हरकत पैदा हुई और अजनबी जल्दी से झाड़ियों के पीछे छिप गया।

थोड़ी देर के बाद एक कराह के साथ डॉक्टर शौकत उठ कर बैठ गया और आँखें फाड़-फाड़ कर चारों तरफ़ देखने लगा। धीरे-धीरे कुछ देर पहले के वाक़यात उसके दिमाग़ में कौंध गये...न चाहते हुए भी उसका हाथ गर्दन की तरफ़ गया, लेकिन अब वहाँ रस्सी का फन्दा न था। अलबत्ता गर्दन बड़ी बुरी तरह दुख रही थी। उसे हैरत हो रही थी कि वह किस तरह बच गया। अब उसे फ़रीदी मरहूम के अल्फ़ाज़ बुरी तरह याद आ रहे थे और साथ ही सविता देवी की ख़्वाब की बड़बड़ाहट भी याद आ गयी थी। ‘‘राजरूप नगर!’’ उसके सारे जिस्म से ठण्डा-ठण्डा पसीना छूट पड़ा। वह सोचने लगा, वह भी कितना बेवकूफ़ था कि उसने फ़रीदी के शब्द भुला दिये और ख़ौफ़नाक जगह पर अँधेरी रात में अकेला चला आया। उसकी जान लेने की यह दूसरी कोशिश थी। उसकी आँखों के सामने उस नेपाली का नक़्शा घूम गया जिसने उसे धमकी दी थी। फिर अचानक वह ज़हरीली सुई याद आयी और प्रोफ़ेसर का भयानक चेहरा...जो उसने उससे हाथ मिलाते हुए देखा था। और ठीक उसी जगह कुत्ता भी उछल कर गिरा था। तो क्या प्रोफ़ेसर...प्रोफ़ेसर...लेकिन आखिर क्यों? यह सब सोचते-सोचते उसे अपनी मौजूदा हालत का ख़याल आया और वह कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हो गया। चेस्टर क़रीब ही पड़ा था। उसने जल्दी से चेस्टर उठा कर कन्धे पर डाला और तेज़ी से कोठी की तरफ़ रवाना हो गया। उसने सोचा कि घड़ी में वक़्त देखे, लेकिन फिर माचिस जला कर देखने की हिम्मत न पड़ी।

कोठी में सब लोग बेसब्री से उसका इन्तज़ार कर रहे थे। उसने सात बजे आने का वादा किया था, लेकिन अब आठ बज रहे थे।

‘‘शौकत बहुत ही पंक्चुअल आदमी मालूम होता है। ना जाने क्या बात है।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने बाग़ में टहलते हुए कहा।

नजमा बार-बार अपनी कलाई पर बँधी हुई घड़ी देख रही थी।

‘‘क्या बात हो सकती है।’’ कुँवर सलीम ने पंजों के बल खड़े होते हुए माथे पर हाथ रख कर अँधेरे में घूरते हुए कहा।

‘‘मेरा ख़याल है कि वह देर में घर से रवाना हुआ। मैं तो कह रहा था कि कार भिजवा दूँगा, लेकिन उसने कहा कि मैं पैदल ही आऊँगा। अरे, यह कौन आ रहा है...हैलो... डॉक्टर... भई इन्तज़ार करते करते आँखें पत्थरा गयीं।’’

डॉक्टर शौकत बरामदे में दाख़िल हो चुका था। वह रास्ते भर अपने चेहरे से परेशानी के भाव मिटाने की कोशिश करता आया था।

‘‘मुझे अफ़सोस है।’’ डॉक्टर शौकत ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘‘अपनी बेवकूफ़ी की वजह से चलते वक़्त टॉर्च ले कर नहीं चला...नतीजा यह हुआ कि रास्ता भूल गया।’’

‘‘लेकिन आपके सिर में यह इतने सारे तिनके कहाँ से आ गये...जी, वहाँ नहीं। पीछे की तरफ़...!’’ नजमा ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘तिनके...ओह...बताइए ना....आखिर बात क्या है?’’ कुँवर सलीम ने गम्भीरता से पूछा।

‘‘अरे, वह तो एक पागल कुत्ता था...राह में उसने मुझे दौड़ाया। अँधेरा काफ़ी था...मैं ठोकर खा कर गिर पड़ा। वह तो कहिए एक राहगीर उधर आ निकला वरना...!’’

‘‘आजकल दिसम्बर में पागल कुत्ता?’’ नजमा ने हैरत से कहा। ‘‘कुत्ते तो ज़्यादातर गर्मियों में पागल होते हैं।’’

‘‘नहीं...यह ज़रूरी नहीं।’’ कुँवर सलीम ने जवाब दिया। ‘‘अकसर सर्दियों में भी कुछ कुत्तों का दिमाग़ ख़राब हो जाता है। ख़ैर...आप ख़ुशक़िस्मत थे डॉक्टर शौकत...पागल कुत्तों का ज़हर बहुत ख़तरनाक होता है। आप तो जानते ही होंगे।’’

‘‘हाँ भई डॉक्टर...वह आपके आदमियों ने बीमार के कमरे में सारी तैयारियाँ पूरी कर ली हैं।’’

‘‘वे लोग इस वक़्त वहीं हैं...!’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।

‘‘आपके इन्तज़ार में शायद उन लोगों ने भी अभी तक खाना नहीं खाया।’’ नजमा बोली।

‘‘मेरा इन्तज़ार आप लोगों ने बेकार किया। मैं ऑपरेशन से पहले थोड़ा-सा सूप पीता हूँ। खाना खा लेने के बाद दिमाग़ किसी काम का नहीं रह जाता...!’’

‘‘जी हाँ! मैंने भी अकसर किताबों में यही पढ़ा है और जहाँ तक मेरा ख़याल है कि दुनिया के किसी बड़े आदमी ने यह ज़रूर कहा होगा।’’ नजमा ने शोख़ी से कहा। डॉक्टर शौकत ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ़ देखा। नजमा से निगाहें मिलते ही वह ज़मीन की तरफ़ देखने लगा।

‘‘ख़ैर साहब...वह सब कुछ ठीक है, पर मैं तो दिन भर में पाँच सेर से कम नहीं खाता।’’ कुँवर सलीम ने हँस कर कहा। ‘‘खाना देर से इन्तज़ार में है। हर तन्दुरुस्त आदमी का फ़र्ज़ है कि उसे इन्तज़ार की ज़हमत से बचाये।’’

सब लोग खाने के कमरे में चले गये।