आज जब हम लिखने बैठ रहे हैं तो अचानक वन्दना की याद आ रही है। वन्दना को तो हमने बिल्कुल इस तरह डाल दिया है कि जैसे भूल गए हों। आज सोचते हैं कि क्यों न हम उसका हाल लिखकर पाठकों को रोमांचित करें। हमारे पाठकों को ठीक प्रकार से याद होगा कि वन्दना को पांच नकाबपोश पकड़कर ले गए थे। बाग में उसने संगमरमर की बनी अपनी ही प्रतिमा देखी थी और उसे गिरफ्तार करने वाले नकाबपोशों ने उसे अपनी महारानी अथवा मालकिन बताया था । उसके बाद नकाबपोशों ने उसे एक कैदखाने में डाल दिया था, अभी उसे कैदखाने में अधिक देर न हुई थी कि छत के एक रोशनदान से कमन्द लटका और एक आदमी ने कहा था — "महारानी जल्दी से इस कमन्द पर चढ़ जाइए।" "
उस आदमी का सारा चेहरा काली स्याही से पुता हुआ था और इसके सबब से वह पहचान में नहीं आता था। एक तो वन्दना पहले ही कुछ कम ताज्जुब में नहीं थी...ऊपर से उस आदमी ने उसका ताज्जुब और अधिक बढ़ा दिया। हालांकि वन्दना अभी तक मदने भेष में थी, किन्तु इस आदमी का उसे महारानी कहने का सबब समझ में नहीं आ रहा था । पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिए, लेकिन अन्त में यही निश्चय किया कि फिलहाल उसे कैद से छुटकारा पाना चाहिए, अतः वह कमन्द पर चढ़ती चली गई। जब वह उस आदमी के समीप ऊपर पहुंची तो उसने देखा कि वह एक अन्य कोठरी में है। उसने देखा —उस व्यक्ति के चेहरे पर ही नहीं, बल्कि सारे बदन पर काली स्याही पुती हुई है। उसके बदन पर कपड़े के नाम पर एक काला लंगोटा बंधा हुआ है।
–“आप कौन हैं ?" वंदना ने पूछा ।
मगर काली स्याही से पुता ये आदमी जवाब में होंठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत देता है । कमन्द अपनी कमर से बांधकर वह वन्दना को साथ-साथ आने का संकेत करके दरवाजे की ओर बढ़ता है। एक दालान में से गुजरता हुआ वह उसी बाग में आ जाता है जिसमें वन्दना की प्रतिमा बनी हुई है। वह वन्दना को साथ लेकर अंधेरे में एक तरफ बढ़ रहा है। कुछ देर बाद वह एक सुरंग में दाखिल हो जाता है ।
सुरंग में काजल-सा अन्धकार छाया हुआ है।
“आपके पास मोमबत्ती होगी, महारानी ?" वह आदमी कहता है।
वन्दना अपने ऐयारी के बटुए में से मोमबत्ती और चकमक पत्थर निकालकर मोमबत्ती जला लेती है। सुरंग में प्रकाश हो जाता है। वह आदमी अपने हाथ में मोमबत्ती लिये वन्दना के साथ बढ़ा चला जाता है । – “अब तो बताइए कि आप कौन हैं ?" वन्दना अपनी जिज्ञासा पर संयम न पा सकी थी।
–“मेरा जिस्म काली स्याही से पुता हुआ है, कदाचित इसीलिए आप मुझे नहीं पहचान पाई हैं । " उस आदमी ने कहा – “मेरा नाम महादेवसिंह है और मैं आपका मंत्री हूं...मैं कई वर्ष से आपकी तलाश में था... आज भी आपको जब देखा तो कुछ ध्यान नहीं दिया... परन्तु जब आपकी आवाज सुनी तो मेरा ध्यान आपकी तरफ गया और मैं पहचान गया कि आप ही हमारी महारानी हैं... किसी खास सबब से आपने भेष बदला है । "
वन्दना समझ नहीं पा रही थी कि यह सब क्या गुत्थी है, बोली — "तुम कौन-सी महारानी की बात कर रहे हो ?"
– “महारानी इन्द्रावती । " महादेव ने कहा – “आप हमसे खुद को मत छुपाइए । " (
"लेकिन मेरा नाम इन्द्रावती तो नहीं है । " वन्दना ने कहा।
– “हम जानते हैं कि आपका असल नाम वन्दना है।" उसने कहा — “लेकिन आपने ही कहा था कि हम कभी आपका असल नाम न लें। और हमेशा महारानी इन्द्रावती के नाम से ही पुकारा करें।"
–“मैं वन्दना तो अवश्य हूं लेकिन ।” कहते-कहते एकदम रुक गई वन्दना, जैसे एकदम याद आ गया हो, बोली – “अच्छा... ओह, महादेवसिंह हो... हमारे मंत्री । पहचानें भी कैसे, सारा बदन तो काला कर तुम रखा है, कहो इतने दिन से कहां थे ? " वन्दना ने पूछा ।
– “आपको ही मुक्त कराने के चक्कर में था । " महादेव ने उसके साथ-साथ ही चलते हुए कहा – “अगर मुझे पता होता कि मेरी लड़की कलावती जवान होकर इतनी बकार निकलेगी तो सच कहते हैं महारानी, हम उसका पैदा होते ही गला दबा देते। हमने अपनी सिफारिश से उसे आपकी सेवा में रखा — उसे आपकी खास सखी बनाया, किन्तु वह ऐसी बद्कार निकली कि आपके ही खिलाफ षड्यंत्र रचकर स्वयं हमारी बेनजूर बन बैठी, आपको कैद कर लिया। लेकिन मैं आपका नमकहलाल हूं महारानी — मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैं अपने हाथ से इस दुष्टा लड़की का जीवन-चक्र समाप्त करूंगा और आपको वही सम्मान पुनः दूंगा।"
—“छोड़ो महादेवसिंह-कलावती को ही खुश रहने दो।" वन्दना को कुछ-न-कुछ कहना था अतः यही कह दिया ।
“मैं आपके दयालु स्वभाव से बहुत अच्छी तरह परिचित हूं महारानी।" महादेवसिंह बोला – “आप बड़े-से-बड़े अधर्मी-पापी को क्षमादान दे देती हैं। लेकिन मैं कलावती को जीवित न छोडूंगा—मैंने उसके खिलाफ एक पूरा दल बना रखा है। कल ही मैं उस दुष्टा के महल पर आपके नेतृत्व में हमला करूंगा। उससे पहले मैं यहां —– शहर में सूचना फैला दूंगा कि बेगम बेनजूर दुष्टा है—उससे कोई भी खुश नहीं है। उसने आपकी प्रजा में यही बात घोषित कर रखी है कि आप कहीं बाहर गई हुई हैं और अपने बाद गद्दी का काम उसे सौंप गई हैं, इसीलिए वह दरबार में आपकी प्रतिमा रखती है। उस बाग में, जिसमें से इस समय हम निकलकर आए हैं, उसमें भी आपकी प्रतिमा है। वह आपके सभी मुलाजिमों पर यही प्रदर्शित करती है कि वह आपकी अनुपस्थिति में आपके आदेशों का पालन करके अपना फर्ज पूरा कर रही है। मगर ये असलियत कि उसने आपको कैद कर रखा है, मेरे अतिरिक्त मेरे दल के लोग ही जानते हैं। "
-"क्या मतलब ?" वन्दना उसकी चक्करदार बातों में बुरी तरह उलझी हुई थी ।
—“अभी शायद आपको इस दुष्टा के पूरे पाप कर्मों के बारे में अच्छी तरह पता नहीं है । " महादेवसिंह बोला – “हां – आपको पता भी कैसे हो — आपको तो उसने कैद में डाल रखा है। मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है— आखिर कलावती मेरी लड़की ही तो है । ये आप जानती ही हैं कि उसने आपको कैद कर रखा था । बाहर आपकी प्रजा और सिपाहियों इत्यादि में यही प्रचार कर रखा है कि आप किसी आवश्यक काम से बाहर गई हैं। सब यही समझते हैं कि यहां आपका शासन है, लेकिन असलियत हम जानते हैं, उसने आपको कैद कर रखा है और स्वयं शासन करती है । जब यह वास्तविकता सबको पता लगेगी तो सब मिलकर उस दुष्टा का सिर, धड़ से अलग कर देंगे।"
वन्दना समझ नहीं पा रही थी कि वह महादेवसिंह से क्या बात करे। महादेवसिंह जो भी कुछ कह रहा था, उसे कुछ नहीं पता था, परन्तु एक खास वजह से वह महादेवसिंह का विरोध भी नहीं कर रही थी। एकाएक वे गुफा के अन्त में पहुंच गए। उस स्थान पर गुफा बन्द थी, परन्तु सामने वाली दीवार में एक खूंटी गड़ी हुई थी। महादेवसिंह ने खूंटी नीचे को दबाई तो सामने की दीवार में मार्ग बन गया। उस दरवाजे से दूसरी ओर निकलकर वह रास्ता उसी प्रकार की एक खूंटी को ऊपर करने पर बन्द कर दिया गया।
इस समय वे एक छोटी-सी कोठरी में थे ।
महादेवसिंह ने तीन बार ताली बजाई प्रतिक्रिया यह हुई कि कोठरी की छत में एक मोखला खुला और एक आदमी ने अन्दर झांका। ऊपर से झांकने वाले आदमी के हाथ में भी एक चिराग था, अतः वन्दना ने देखा कि उस आदमी के सारे चेहरे पर सिन्दूर लगा हुआ था। उसका पूरा चेहरा किसी बन्दर की भांति लाल हो रहा था। उसने एक लोहे की सीढ़ी लटका दी। महादेवसिंह ने उसे ऊपर चढ़ने का संकेत दिया और कुछ ही देर बाद महादेव के साथ स्वयं वन्दना भी ऊपर पहुंच गई, ऊपर उसने स्वयं को एक बाग में पाया । जिस आदमी ने सीढ़ी लटकाई थी... उसके पूरे बदन पर सिन्दूर पुता हुआ था। उसके शरीर पर कपड़े के नाम पर केवल एक लंगोट था ।
वह आदमी वहीं रह गया और महादेवसिंह वन्दना को साथ लेकर आगे बढ़ गया । एक छोटे से कोने में एक तिमंजिला छोटा-सा मकान बना हुआ था |
महादेवसिंह उसे लेकर उसी मकान में चला गया। उस मकान के अन्दर
महादेवसिंह के कम-से-कम बीस आदमी थे ।
– “आज मैं महारानी को बेगम बेनजूर की कैद से निकाल लाया हूँ।"
हर्ष से सब उछलने लगे, जबकि वन्दना चमत्कृत-सी थी। अभी तक की घटनाओं का लेशमात्र भी तात्पर्य उसकी समझ में नहीं आ रहा था । उसे बाकायदा इज्जत देकर महारानी साबित किया जा रहा है... उसके पीछे किसी की क्या ऐयारी हो सकती है—यह उसकी समझ से परे था ।
-"महारानी... आपके सेवक आपके दर्शन करना चाहते हैं। " वन्दना ने बिना कुछ बोले अपने चेहरे से दाढ़ी और मूंछें हटा लीं... साथ ही अपने नकली बाल भी हटा लिए । अब वन्दना की सूरत सबके सामने थी। सबने सम्मान के साथ सिर झुका दिए। इसके बाद किसी महारानी की भांति ही वन्दना की खातिर की गई। काफी रात समाप्त हो चुकी थी। सबने मिलकर यही निर्णय किया कि कल अवश्य ही बेगम बेनजूर का तख्ता पलट दिया जाएगा ।
इसके बाद वन्दना के सोने का प्रबन्ध अकेले कमरे में शानदार बिस्तर पर किया गया। कमरे का द्वार अन्दर से बन्द करके वन्दना अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी। परन्तु उसके दिमाग में तरह-तरह के विचार चकरा रहे थे। आज दिन से ही वह बेहद चमत्कारिक घटनाओं में घिर गई थी। असल बात यह थी कि... वह वन्दना नहीं थी, बल्कि वन्दना की खास सखी शीलारानी थी । वन्दना एक आवश्यक काम से कहीं गई थी । उसके गुरु, गुरवचनसिंह ने शीलारानी को वन्दना और केवलसिंह को गौरवसिंह बनाया था। इसके बाद वह इन नकाबपोशों के बीच फंस गई। यहां आकर उसने गजब का ही खेल देखा। यहां के लोग उसे अथवा यूं कहिए कि उसकी सखी वन्दना को महारानी मानते हैं। बाग में महारानी की प्रतिमा बनी हुई है। शीलारानी वन्दना की ऐसी सखी थी कि उसे वन्दना की नस-नस का पता था । उसे अच्छी तरह पता था कि वन्दना कहीं की महारानी नहीं है । फिर यह सब क्या है ? किस ढंग की ऐयारी है ? महादेव उसे जबरदस्ती महारानी बना देना चाहता था। एक बार को तो उसके दिमाग में आया कि वह पूछे कि यह सब चक्कर क्या है ? किन्तु उस समय वह कहती- कहती रुक गई, जब उसे ये ख्याल आया कि कहीं वास्तव में ही तो वन्दना उनसे छुपकर यहां की महारानी नहीं बनी हुई थी, अतः उसे किसी बात में अनभिज्ञता प्रकट नहीं करनी चाहिए। कई बार तो उसके दिमाग में आया कि वह किसी प्रकार की ऐयारी का सहारा लेकर इन लोगों के बीच से भाग निकले। परन्तु दूसरी तरफ उसके दिल में इन उलझी हुई बातों का उत्तर खोजने का विचार था । वह यह जानना चाहती थी कि यह क्या अजीब चक्कर है ।
अभी तक वह अपने विचारों के भंवर में फंसी हुई थी कि-
“शीला... शीला... शीलारानी !”
कोई बहुत धीमी आवाज में उसे पुकार रहा था । वह एकदम चौंक पड़ी... कमरे में चिराग जल रहा था। उसने जल्दी से पलटकर आवाज की दिशा में देखा... कमरे की एक दीवार में एक बालिश्त लम्बा और एक ही बालिश्त चौड़ा, वर्गाकार मोखला बना हुआ था । उस मोखले में एक सुन्दर लड़की का चेहरा उसे बखूबी दीख रहा था । अभी शीला कुछ बोलना ही चाहती थी कि उसने देखा—मोखले के पार खड़ी लड़की ने अपने होंठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत दिया और संकेत से अपने पास बुलाया। शीला की बुद्धि चकराकर रह गई । किन्तु फिर भी वह मोखले के पास पहुंच गई । मोखले के दूसरी ओर खड़ी लड़की ने एक कागज शीला की ओर खिसका दिया ।
— – "तुम कौन हो ?” शीला ने धीरे से पूछा- "और किसे पुकार रही हो ?"
- "बोलो मत... बहुत जबरदस्त ऐयारी चल रही है । उस औरत ने बहुत ही धीरे से कहा—“इस कागज को पढ़ लो... तुम्हारी समझ में सब कुछ आ जाएगा । " इतना कहने के बाद वह लड़की फुर्ती के साथ वहां से गायब हो गई। साथ ही वह मोखला भी बन्द हो गया।
शीला अवाक्-सी खड़ी रह गई। अब एक और नई घटना ने उसे चक्कर में डाल दिया।
उसने कागज खोला और चिराग की रोशनी में पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते उसकी अजीब हालत होती जा रही थी ।
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जेम्स बांड, माइक स्पलेन, बागारोफ और हुचांग ।
दुनिया के तख्ते के चार महान देशों के इन चार महान जासूसों को तो जैसे हम बिल्कुल ही भूल गए | कायदा यह कहता है कि हमें इन चार महान विभूतियों के साथ इतनी नाइन्साफी नहीं करनी चाहिए। कम-से-कम ये तो लिखना ही चाहिए कि ये लोग यहां कैसे फंस गए और इनके साथ क्या गुजरी और अब क्या करना चाहते हैं। सबसे पहले हम इनका संक्षिप्त परिचय दे दें, क्योंकि हम जानते हैं कि हमारे बहुत से नए पाठक सन्तति पढ़ रहे हैं। जेम्स बांड ब्रिटेन का अव्वल दर्जे का जासूस है। माइक का अमेरिका में पहला स्थान है। बागारोफ रूस की नाक है तो हुचांग पर चीनी तानाशाह गर्व करते हैं। आयु की दृष्टि से इन सबमें बड़ा बागारोफ है। सब बागारोफ को चचा कहते हैं और उसकी इज्जत करते हैं। बागारोफ के बात करने का ढंग ऐसा है कि वह बात बात पर ऊटपटांग गालियां दिया करता है। उसके बारे में ये प्रसिद्ध है कि जिसको जितनी अधिक गालियां दिया करता है, समझो उससे उतना ही अधिक प्यार करता है ।
अब हम स्वयं ही इनकी अधिक तारीफ क्या करें। जितनी आवश्यक थी, कर दी — और हां — हम एक महत्त्वपूर्ण बात तो बताना ही भूल गए और वह यह कि बागारोफ को छोड़कर बाकी तीनों ही विकास के कट्टर दुश्मन हैं और हर कीमत पर उसकी जान लेना चाहते हैं । इसका कारण ये है कि वे पहले कई बार विकास के हाथ से बुरी तरह मात खा चुके हैं। उन सबका विस्तृत वर्णन पाठक हमारे अन्य अनेक उपन्यासों में पढ़ चुके होंगे।
इस समय चारों महान विभूतियां एक नदी के किनारे बैठी हैं। नदी बहुत चौड़ी है–उसका बहाव भी आश्चर्यजनक गति तक तीव्र है। जल एकदम निर्मल और स्वच्छ है। अभी उनके चारों ओर अंधकार ही है। जेम्स बाण्ड जेब से पेंसिल-टॉर्च निकालकर अपनी कलाई में बंधी ऑटोमैटिक घड़ी में समय देखता है। सुबह के पांच बजे हैं। माइक आराम से पत्थर पर बैठा हुआ सिगरेट के कश ले रहा है । –“अब प्रकाश होने वाला है।" जेम्स -बांड ने टॉर्च बुझाते हुए कहा ।
—“अबे तो चोट्टी के, उजाला होने पर तू कौन से बल्लम चला देगा।" बागारोफ इस प्रकार बोला, मानो जेम्स बाण्ड ने उससे बहुत गलत बात कह दी हो — “पता नहीं कितनी बार दिन निकला है और कितनी रातों को यहां गुजारा है । उजाला हो या अंधेरा, हमने पत्थरों से सिर टकराने के अतिरिक्त और किया ही क्या है। एक साला वो अलफांसे चमका था—वह भी गधे का सींग बन गया । "
—"मतलब ये, चचा, कि प्रकाश होने पर हम कम-से-कम ये तो जान ही जाएंगे कि हमारे चारों तरफ क्या-क्या है।" माइक ने कहा – “रात के ग्यारह बजे से इस स्थान पर बैठे हैं, लेकिन अभी तक यह भी पता नहीं लगा कि हमारे चारों ओर है क्या । "
— "तू क्यों बीच में टांय - टांय कर रहा है बे ऊंटनी के।" बागारोफ ने कहा – "चारों ओर होगा ही क्या — वही जंगल, पहाड़ ——और नदी । " —
– “संभव है, चचा —हमें कोई बस्ती चमक जाए।" हुचांग ने सम्भावना व्यक्त की।
— " तू तो बोलती पर ढक्कन लगा ले बे चीनी चूहे !" बागारोफ बोला – "वरना चीन की दीवार पर से नीचे फेंक दूंगा।"
—"यहां चीन की दीवार कहां से आएगी, चचा ?" माइक ने मुस्कराते हुए कहा ।
-“देख बे अमरीकन चमगादड़...।"
बागारोफ अभी कुछ कहना ही चाहता था कि एकाएक उसकी गंजी खोपड़ी पर ऐसी चपत पड़ी कि उसकी आंखों के सामने लाल पीले तारे नाच गए। अभी उनमें से कोई समझ भी नहीं पाया था कि —
"ओह यहां तो बड़े-बड़े महानुभाव बैठे हैं !" एकाएक वातावरण में ऐसी आवाज गूंजी, जैसे फुल पावर से चलता हुआ रेडियो एकदम खराब हो गया हो— “लेकिन चपत मारने के लिए सबसे प्यारी चांद बुजुर्गवार की ही है।"
चारों महान जासूसों के दिमाग एकदम भिन्ना उठे। सबके मस्तिष्क में एक ही नाम गूंजा –टुम्बकटू ।
—“अबे कौन है भूतनी का ?" बागारोफ एकदम शुतुरमुर्ग की भांति चारों ओर अंधेरे को घूरता हुआ बोला ।
- – “भूतनी का नहीं बुजुर्ग महोदय — ये हम हैं चटनी के यानी कि टुम्बकटू । "
- “अबे कार्टून !" बागारोफ बोला – “तू तो मर गया था ?"
-" किसने बहका दिया बुजुर्गवार को – हम क्या मर सकते हैं?" टुम्बकटू की आवाज गूंजी।
उधर बांड, माइक और हुचांग का तो आश्चर्य के कारण बुरा हाल था। पहले तो वे अलफांसे को ही देखकर चौंके थे, किन्तु टुम्बकटू की उपस्थिति ने तो उनके दिमाग की समस्त नसों को ही हिलाकर रख दिया। किसी भी ढंग से वे यह नहीं सोच पा रहे थे कि टुम्बकटू यहां आ कैसे गया और क्या कर रहा है।
—“क्यों बांड मियां —–——क्या सोचने में लीन हो ?" एकाएक टुम्बकटू ने उनकी विचारशृंखला भंग की ।
-"कुछ नहीं, आओ बैठो । " बांड बोला— "इस समय अगर हम दोस्त बन जाएं तो अधिक उचित रहेगा।"
- "जीवन में पहली बार अंग्रेजी मच्छर ने पते की बात कही है।" कहता हुआ टुम्बकटू अपने गन्ने जैसे शरीर को लचकाकर बांड के पास बैठ गया।
इसके पश्चात उन लोगों के मध्य इसी प्रकार की बातचीत होती रही।
हम इन लोगों की ऊटपटांग बातों में फंसाकर पाठकों को बोर करना नहीं चाहते। यह छोटी-सी घटना यहां देने से हमारा तात्पर्य केवल यह है कि पाठकों को यह समझा सकें कि टुम्बकटू भी यहीं है और वह भी किसी गहरे चक्कर में उलझा हुआ है। वह किस चक्कर में उलझा हुआ है – यह एक लम्बा किस्सा है, वक्त आने पर अवश्य लिखा जाएगा । फिलहाल हमारे पास स्थान बहुत कम है और हमें अभी लिखना बहुत कुछ है, अतः हम अपने वास्तविक कथानक पर आ रहे हैं। किन्तु हां — टुम्बकटू का संक्षिप्त परिचय देना अत्यन्त आवश्यक है।
टुम्बकटू का नाम जितना विचित्र है, चरित्र उससे भी अधिक विचित्र है। यह व्यक्ति गन्ने की भांति पतला है । चन्द्रमा का निवासी है। किसी भी इन्सान को केवल एक चपत मारकर जान लेने में प्रसिद्ध है, उसके जूते से एक बेहद घातक सिक्का निकलता है। वास्तविकता पूछें तो टुम्बकटू के चरित्र की विशेषताओं पर ही आधारित पूरा एक उपन्यास लिखा जा चुका है। यहां हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम टुम्बकटू के विषय में अधिक लिख सकें ।
उन्हें इसी प्रकार की बातें करते-करते प्रकाश के दर्शन हुए दूर–पहाड़ियों के पीछे गगन लालिमा से लिपट गया। जंगल में चिड़ियों का कलरव गूंज उठा। इतने समय में टुम्बकटू उन चारों का दोस्त बन चुका था। प्रकाश होते ही — जिस वस्तु पर उनकी दृष्टि स्थिर हुई, वह नदी के पार काफी दूर का एक दृश्य था ।
सब उसी तरफ देख रहे थे ।
नदी के पार – काफी दूरी पर, एक स्थान पर वे काफी बड़ा जल से भरा तालाब देख रहे थे, इस तालाब पर उनकी दृष्टि इतनी अधिक स्थिर नहीं थी, जितनी उस तालाब के बीच बने उस खण्डहर पर स्थिर थी । नदी के पार, दूर तक खाली मैदान पड़ा था। अनुमानानुसार यह खाली और रेतीला भाग किसी भी प्रकार सात बीघे ( एक बीघा = १००० गज) से कम नहीं था। उसके बाद पानी का तालाब — और तालाब के पानी में खड़ा वह विशाल खण्डहर ।
–“ये क्या है ? " जेम्स बांड ने पता नहीं किससे प्रश्न किया।
-"आदरणीय भाई साहब !" टुम्बकटू ने जवाब दिया — "यहां जितने अनभिज्ञ आप हैं — उतना ही मैं भी हूं। केवल इतना कह सकता हूं कि हमें चलकर देखना चाहिए कि ये क्या चमत्कार है और इस खण्डहर में क्या है।"
टुम्बकटू का यह वाक्य सर्वमान्य साबित हुआ।
सभी की दिली इच्छा ये थी कि नदी के पार तालाब के किनारे पहुंचकर वहां का असली मामला देखना चाहिए । इसी विचार को दृढ़ करने के लिए उन सबने नदी को तैरकर पार किया और मैदान में से होकर तालाब की ओर बढ़ने लगे ।
आइए, अब हम सब भी इनके साथ चलकर इस तालाब और खण्डहर को ध्यान से देखते हैं, क्योंकि यह तालाब और खण्डहर ही तो हमारी सन्तति का मुख्य कथानक है। हम जानते हैं कि हमारे बहुत से पाठक तैरना नहीं जानते, अतः हम नदी में तैरने के स्थान पर हनुमान की भांति नदी के ऊपर से उड़कर नदी पार हो जाते हैं। अगर हनुमान राम का नाम लेकर समुद्र के ऊपर से उड़ते हुए लंका में पहुंच सकते हैं तो क्या हम राम के नाम पर इस नदी के पार नहीं पहुंच सकते ?
लीजिए हमने नदी पार कर ली है। अब हम जेम्स बाण्ड और टुम्बकटू इत्यादि के साथ उस तालाब के किनारे पहुंच जाते हैं।
यहां पर हम बहुत ही प्यारा एवं आकर्षक दृश्य देखते हैं। समीप आकर हम यहां की भौगोलिक स्थिति भली प्रकार से देखते हैं । हम देखते हैं—–—यह खण्हर तालाब के ठीक बीच में है। उसके चारों ओर एक बीघे लम्बा तालाब है। तालाब में एकदम बिल्लौर (पारदर्शी श्वेत पत्थर) की भांति स्वच्छ जल भरा हुआ है। तालाब अधिक गहरा नहीं है, अतः धरती साफ नजर आ रही है। तालाब के चारों ओर चार बड़े-बड़े हंस बैठे हैं, पहली बार में सबको यही भ्रम होता है कि ये हंस असली हैं, किन्तु वास्तविकता ये है कि वे सब संगमरमर के बने नकली हंस हैं। तालाब में उतरने के लिए चारों ओर सीढ़ियां हैं। सीढ़ियों के दोनों तरफ तीतर, बटेर, मोर इत्यादि अनेक परिन्दे बने हुए हैं। पहली नजर में वे सभी असली होने का भ्रम पैदा करते हैं।
खण्डहर के चारों ओर कुल मिलाकर चार बीघे तक यह तालाब है, अतः पाठक यह तो समझ ही गए होंगे कि अगर कोई उस खण्डहर तक पहुंचना चाहे तो इस तालाब से गुजरना हर हालत में आवश्यक है। तालाब में उतरने के लिए चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं। अब हम तालाब के बीच में स्थित उस खण्डहर का वर्णन करना भी अपना कर्त्तव्य समझते हैं ।
यह खण्डहर करीब तीस बीघे में फैला हुआ है। दीवारें टूट-टूटकर बिखर चुकी हैं। चारों ओर टूटी-फूटी दीवारें खड़ी हैं। दीवारों पर जंगली घास और झाड़-झंखाड़ खड़े हैं। खैर ! इस खण्डहर का विस्तृत वर्णन भी हम किसी खास स्थान पर करेंगे। फिलहाल केवल इतना ही समझ लेना आवश्यक है कि इस खण्डहर के ठीक बीच में एक बुर्ज है— सबसे ऊंचा बुर्ज । बुर्ज इतना ऊंचा है कि गगन को स्पर्श करता-सा प्रतीत होता है । उधर सूर्यदेव पहाड़ के पीछे से झांककर देखने लगते हैं। उनका प्रकाश बुर्ज के शीर्ष पर पड़ रहा है।
– “ये तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने बड़ी कारीगरी से बनवाया हो ।” हुचांग चारों ओर ध्यान देकर मुस्कराकर बोला ।
-"क्यों न खण्डहर में चलकर देखें ?" माइक ने कहा – “लगता है कि कोई अद्भुत वस्तु देखने में आएगी।'
माइक की इस बात को सबने पसन्द किया— सबसे आगे जेम्स बांड बढ़ रहा था । सीढ़ियों के करीब पहुंचकर न जाने उसके दिमाग में क्या आया कि एकाएक वह रुककर बोला – "तुम सब रुको —– जब मैं तालाब में पहुंच जाऊं, तब आना | "
– " तुम्हारे दिमाग का बैलेंस बिगड़ गया है बे अंग्रेज की दुम । " बागारोफ बोला— "तुम्हें हर जगह जासूसी सूझती है।"
परन्तु उसकी बात पर बिना किसी प्रकार का विशेष ध्यान दिए बाण्ड सीढ़ियां उतरने लगा। पहली दूसरी— — तीसरी और चौथी सीढ़ी उतरते ही जैसे कयामत आ गई । समीप ही बना हंस न केवल बड़ी जोर से हरकत में आया, बल्कि वह जेम्स बांड पर झपट पड़ा ।
वह सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि कोई कुछ समझ नहीं पाया और हंस लम्बे-चौड़े बांड को निगल गया । अगले ही पल हंस अपने उसी स्थान पर स्थिर था, जिस प्रकार पहले था । माइक, हुचांग, बागारोफ और टुम्बकटू चमत्कृत से उस हंस को देख रहे थे ।
हंस इस प्रकार स्थिर था, मानो अभी एक ही पल पूर्व उसने कुछ किया ही न हो ।
खैर इन्हें यहीं छोड़कर अब हम जरा जेम्स बांड का हाल लिखते हैं ।
उसके साथ जो भी घटना घटी, इतनी तेजी से घटी कि कुछ करने की तो बात दूर, उसे कुछ समझने तक का अवसर नहीं मिला। उसकी आंखें बन्द हो गई थीं। कुछ देर तक तो वह यही महसूस करता रहा कि वह हवा में उड़ रहा है। एकाएक उसने ऐसा महसूस किया, जैसे वह स्थिर हो गया हो। उसने धीरे से आंखें खोलीं तो स्वयं को एक छोटी-सी कोठरी में पाया । वह उठकर बैठ गया और ध्यान से कोठरी का निरीक्षण करने लगा। वह चारों ओर से बन्द थी और वहां कोई दरवाजा नजर नहीं आता था। वह यह भी नहीं जान सका कि वह किस मार्ग से इस कोठरी में आ गया ।
एकाएक उसकी दृष्टि एक दीवार पर लटकी पेंटिंग पर स्थिर हो गई। पेंटिंग का हुलिया बता रहा था कि जैसे सदियों से यह पेंटिंग यहीं लटकी हुई हो। पेंटिंग में कोई खास बात नहीं थी – केवल एक इन्सान का चित्र बना हुआ था।
और तब जबकि उसने इस चित्र को पहचाना——उसके पैरों से धरती निकल गई ।जेम्स बांड के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि चित्र विजय का था। पेंटिंग में एक तरफ लिखा हुआ था— देव । झपटकर बांड उसके करीब पहुंचा और पुनः ध्यान से चित्र देखा— शत-प्रतिशत विजय का था । कदाचित् बांड के जीवन में विजय का ये चित्र यहां होना सबसे अधिक आश्चर्य की बात थी । दिमाग की समस्त नसें हिलाने के बाद भी वह कुछ समझ नहीं पा रहा था ।
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