प्राईम सस्पेक्ट

अर्ली मॉर्निंग की फ्लाईट लेकर वंश वशिष्ठ सुबह साढ़े नौ बजे पटना पहुंचा। वह अपने साथ बस एक छोटा सा बैग लेकर आया था, इसलिए लगेज बेल्ट पर समय बर्बाद करने से बच गया।

बाहर आकर उसने अशोक राजपथ के लिए ओला की कैब बुक की, जहां पीएमसी (पटना मेडिकल कॉलेज) स्थित था। वह सफर करीब करीब ग्यारह किलोमीटर का था, जहां पहुंचने में आधे घंटा से ज्यादा का वक्त लग गया, क्योंकि पीक ऑवर के कारण टै्रफिक बहुत ज्यादा था।

कैंपस पहुंचकर उसने बीस मिनट का वक्त अपने काम का आदमी तलाशने में गुजार दिया, फिर जो मिला वह अव्वल दर्जे का लालची निकला। वंश को पूरी उम्मीद थी कि बड़ी हद पांच सौ में उसका काम बन जायेगा, लेकिन वह दो हजार मांग रहा था।

जबकि करना बस इतना था कि उसके पास मौजूद डॉक्टर बरनवाल के रजिस्ट्रेशन नंबर के जरिये उसकी डिग्री को वेरिफाई कर के दिखा देता। क्योंकि रजिस्ट्रेशन नंबर वंश पहले ही एनएमसी (नेशनल मेडिकल कमीशन) की वेबसाईट पर चेक कर चुका था, जो कि जेनुईन था। उस लिहाज से उसकी डिग्री भी सही ही होनी थी, मगर जब यहां तक आ ही गया था तो चेक करने में कोई हर्ज उसे नहीं दिखाई दिया।

“मामूली काम है यार - वह अपने सामने खड़े सफारी सूट और चमड़े की जैकेट पहने शख्स को घूरता हुआ बोला - क्यों इतनी हुज्जत कर रहे हो?”

“का कह रहे हैं सर, मामूली कैसे है? आपको पता भी है कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। इहां क्या सबका रिकार्ड धरा है जो हम रजिस्ट्रेशन नंबर से ई पता कर लें कि मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कब उत्तीर्ण किये थे।”

“वह तो सर्टिफिकेट पर ही लिखा हुआ है भई कि कब पास किया था। और मैं एमबीबीएस की नहीं बल्कि एमडी के डिग्री की बात कर रहा हूं, जो उसने वर्ष 2010 में हासिल की थी। तुम्हें बस ये चेक करना है कि वाकई में उसका नाम यहां के रिकॉर्ड में मौजूद है, जो कि कंप्यूटराईज्ड होने के कारण मिनटों में मालूम पड़ जायेगा।”

“सब ताडे़ बैठे हैं वंश बाबू - कहकर उसने जोर का ठहाका लगाया - अच्छा पंद्रह सौ तो दीजिए, बदले में वैरिफिकेशन के साथ-साथ दुआ फ्री में देंगे हम।”

“किस बात की दुआ दोगे?”

“जिस काम से आये हैं वह पूरा हो जाये, अब कहिए का कहते हैं?”

“ठीक है भाई पी लो मेरा खून, जाओ चेक कर आओ, लेकिन काम में ईमानदारी बरतना, मतलब वापिस लौटकर यूं ही मत बोल देना कि चेक कर लिया।”

“काहे जूता मार रहे हैं सर? हम आपको धोखा देंगे? बाहर से आये आदमी को धोखा देंगे? ना ऐसे जीव नहीं हैं हम। फिर स्क्रीन शॉटवा भी तो ला के देंगे आपको, प्रूफ के तौर पर।”

“ठीक है लेकर आओ।”

“चाय पीयेंगे?”

“नहीं।”

“अरे पीकर जाइये, सामने सड़क के उसपर राजाराम हलवाई की दुकान है, कुल्हड़ वाली चाय देता है वह भी बस सात रूपया में, आत्मा तृप्त हो जाती है, दिल्ली में तो का मिलती होगी।”

“ठीक है तुम मेरा काम पूरा करो, उसके बाद जाते वक्त मैं राजाराम की चाय भी पी लूंगा।”

“ये हुई न बात, अब वेट कीजिए हम यूं गये और यूं आये।” कहकर वह गायब हो गया।

वंश इंतजार करने लगा, जो कि महज पांच मिनट का साबित हुआ, ऐन छठें मिनट में वह वापिस उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

“क्या हुआ काम नहीं बना?”

“अरे काहे नहीं बनेगा, इहां अईसा का है जो मंगलदास नहीं कर सकता - कहकर उसने अपना हाथ आगे फैला दिया - निकालिये।”

“क्या?”

“पंद्रह सौ रूपिया दीजिए भाई, और क्या मांगेंगे आपसे?”

सुनकर उसने पर्स निकाला और पांच सौ के तीन नोट उसे थमा दिये, तब उसने अपनी पैंट की जेब से एक तह किया हुआ कागज निकालकर वंश को थमा दिया, “सब जेनुईन है सर, और ऊ बात हम पर्सनली भी जानते हैं, काहे कि हमारे और डॉक्टर बरनवाल साहब के बहुत मित्रवत संबंध रहे हैं।”

“पहले क्यों नहीं बताया?”

“फीस भी तो कमानी थी सर।”

“जानते कैसे थे डॉक्टर को?”

“ऊ का है न वंश साहब कि मनुष्य सामाजिक प्राणी होता है, आप भी पढ़े होइयेगा, लेकिन असल बात ये है कि आजकल सामाजिक रह कोई नहीं गया है, सब अपने आप में मगन हैं। दोस्त यार पड़ोसी सब जायें भाड़ में। लेकिन मंगलदास ऐसे नहीं हैं। उल्टा हम बहुत ज्यादा सामाजिक प्राणी हैं। इसलिए मां भगवती की कृपा से पटना सिटी में सैकड़ों लोग हमें जानते होंगे, और हम उन्हें जानते होंगे।”

“बात डॉक्टर की हो रही थी।”

“हम उहें पहुंच रहे हैं भाई, इतने उतावले काहे हो रहे हैं?”

“ठीक है बताओ।”

“हमारे एक चच्चा हैं जिनका घर राजीव नगर में है, जहां डॉक्टर साहब का भी घर है। और अपने चच्चा के घर हम अक्सर आते जाते रहते हैं, क्या समझे?”

“यही कि अपने चाचा के घर आने जाने के कारण तुम्हें मालूम है कि डॉक्टर बरनवाल कौन थे।”

“नाहीं ई तो आप गलत अंदाजा लगाये, असल में हम जब चच्चा के यहां जाते हैं तो अक्सर उनकी दुकान पर भी जा बैठते हैं, अब पूछिये कि उनकी दुकान कहां है?”

“कहां है?” वंश बोर होता हुआ बोला।

“गांधी पार्क के ठीक सामने वाली मार्केट में, अब बूझे की ना बूझे?”

“नहीं बूझा।”

“अरे भई इहां से पासआउट होने के बाद डॉक्टर साहब बहुत दिनों तक गांधी मैदान के सामने क्लिनिक चलाये थे, और हमारे चच्चा मेडिकल स्टोर चलाते हैं। चच्चा की दुकान आज भी वहीं है लेकिन डॉक्टर साहब का क्लिनिक नहीं है, पूछिए काहे नहीं है?”

“बता दो।”

“अरे ऊ दिल्ली चले गये तो इहां का क्लिनिक कैसे चलता रह सकता था?”

“और क्या जानते हो डॉक्टर के बारे में?”

“आप का जानना चाहते हैं?”

“उनके दोस्तों और दुश्मनों के बारे में।”

“दोस्तों का तो नाहीं पता हमें लेकिन किसी से दुश्मनी बराबर हो गयी थी। हमारे चच्चा बताये थे कि ऊ ससुरा बहुते नमकहराम आदमी निकला। कई साल डॉक्टर साहब के साथ कंपाउंडरी किया फिर जब डॉक्टर साहब निकाल बाहर किये तो धमकी देकर गया कि उन्हें छोड़ेगा नहीं।”

“नाम क्या था उसका?”

“ई तो हम नहीं बता सकते आपको - वह दायें बायें मुंडी हिलाता हुआ बोला - ना बिल्कुल नहीं बता पायेंगे।”

“क्यों?”

“क्योंकि उसका नाम हमारे ध्यान से उतर गया है।”

वंश ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।

“लेकिन पता लगा लेना कोई बड़ी बात नहीं होगी, काहे कि डॉक्टर साहब को गांधी मैदान के इलाके में बहुते लोग जानते थे। फिर भी बात न बने तो श्याम मेडिकल स्टोर पर हमारे चच्चा से पूछ लीजिएगा, ऊ आपको पक्का बता देंगे कि डॉक्टर साहब के कंपाउंडर का नाम क्या था।”

“तुम्हारे पास अपने चाचा का नंबर नहीं है?”

“नहीं है, पूछिये क्यों नहीं है?”

“क्यों नहीं है?”

“क्योंकि आज गलती से हम अपना मोबाईल घर पर भूल आये हैं।”

“ठीक है राजाराम जी थैंक यू।”

“लगता है बादाम नहीं खाते।”

“मतलब?”

“तबहीं भूल गये कि हमारा नाम मंगलदास है और राजाराम ऊ हलुआई है जिसके यहां कुल्हड़ वाली चाय पीकर जाने को बोले थे हम आपसे।”

“ओह सॉरी, अब चलता हूं।”

“अरे हम लेकर चल रहे हैं न।”

“किसलिए?”

“इतनी दूर से आये हैं आप, अब क्या हम आपको एक चाय भी नहीं पिला सकते, नहीं पिलायेंगे तो बेइज्जती नहीं हो जायेगी हमारी।”

वंश की चाय पीने की इच्छा तो नहीं थी लेकिन उसने मंगलदास को मना भी नहीं किया। आगे पांच मिनट में दोनों ने कुल्हड़ वाली चाय पी, जो टेस्टी तो वाकई में थी, बल्कि वंश को याद तक नहीं आया कि उससे पहले इतनी बढ़िया चाय कब पी थी। तत्पश्चात राजीव नगर के लिए एक कैब बुक करके उसने मंगलदास से विदा ली और वहां से निकल गया।

पटना मेडिकल कॉलेज से राजीव नगर पहुंचने में उसे करीब चालीस मिनट लग गये जबकि दूरी महज बारह किलोमीटर की थी। आगे डॉक्टर बरनवाल का घर तलाशने में दस मिनट और जाया हो गये।

मकान दो मंजिलों तक उठा हुआ था, और बहुत ही आधुनिक तरीके से बनाया गया था, जबकि आस पास के घर कुछ खास नहीं थे। दरवाजे पर खूब बड़ा ताला झूल रहा था, और वहीं चबूतरे पर कुछ आवारा कुत्ते बैठे हुए थे, जिन्होंने उसे देखते ही भौंकना शुरू कर दिया।

“विश्वजीत और चाची तो दिल्ली गये हुए हैं।” किसी की आवाज उसके कानों में पड़ी। फिर मुड़कर दाईं तरफ देखा तो बगल वाले घर के बाहर एक 25-26 साल का युवक खड़ा दिखाई दिया, जो पजामा कुर्ता पहनकर कंधे पर गमछा डाले, मुंह में पान या गुटखा चबा रहा था।

“तुम जानते हो विश्वजीत को?”

“हमारा क्या है सर, हम तो पूरे पटना को जानते हैं, आप बताईये कि आप का जानना चाहते हैं, कहीं बाहर से आये हैं शायद।”

“दिल्ली से।”

“ऊ तो आपके माथे पर ही लिखा हुआ है।”

“ओह सॉरी, मैं मिटाना भूल गया।”

सुनकर युवक ने जोर का ठहाका लगाया और उसके करीब आकर खड़ा हो गया, “विश्वजीत से मिलने आये हैं?”

“नहीं, क्योंकि मुझे पहले से पता है कि वह दिल्ली में है।”

“ताला तोड़ने का इरादा तो नहिये रखते होंगे, काहे कि सूट बूट में एकदम जैंटलमैन दिखाई दे रहे हैं, कौन हैं आप?”

“पत्रकार हूं भई, भारत न्यूज से।”

“ओह तभी कहें आपकी सूरत हमें कुछ जानी पहचानी काहे लग रही थी।”

“मतलब जानते हो?”

“वैसे नहीं जानते लेकिन टीवी पर देखे हैं आपको, वंश वशिष्ठ साहब हैं न आप?”

“एकदम सही पहचाना।”

“कौनो हैल्प कर सकते हैं हम आपकी?”

“बहुत कर सकते हो।”

“बताईये।”

“विश्वजीत मुसीबत में है।”

“मालूम है टीवी पर देखे थे हम।”

“मैं उसी की सहायता करने की कोशिश में लगा हूं, जिसके लिए कुछ जरूरी जानकारियां हासिल करनी हैं। अब तुम पूरे पटना को जानने का दम भर के हटे हो तो उम्मीद है मुझे जो चाहिए उसके लिए भटकना नहीं पड़ेगा।”

“पूछ कर देखिये सरकार, ऐसे का पता लगेगा कि अमरेश बरनवाल क्या जानता है और क्या नहीं जानता।”

“अमरेश तुम्हारा नाम है?”

“और कोई दिख रहा है आपको इहां?”

“नहीं।”

“फिर काहे पूछ रहे हैं, जबकि पढ़े लिखे जान पड़ते हैं, बल्कि होइबे करेंगे तभी तो पत्रकार बन गये, या अनपढ़ों को भी नौकरी मिल जाती है आपके शहर में।”

“कुछ तो पढ़ लिख गया ही था, ये बताओ कि डॉक्टर साहब के बारे में क्या जानते हो?”

“चच्चा थे हमारे, अफसोस कि अब नहीं रहे। दिल्ली में शिफ्ट होने से पहले गांधी मैदान के सामने एक क्लिनिक चलाते थे। ऊ दिमागी मरीजों का इलाज करने वाला क्लिनिक, फिर एक बार प्रदेश की राजधानी लांघकर देश की राजधानी में कदम क्या रखा वहीं के होकर रह गये। सुने थे कि उहां बहुत बड़ा क्लिनिक खोल लिये थे।”

“यानि यहां वाला बंद कर दिया?”

“हां कर दिया, अब एक ही वक्त पर आदमी दो जगह चिकित्सा सेवा कैसे प्रदान कर सकता है। उड़नतश्तरी से आना जाना करते तो पता लगता नौ की लकड़ी और नब्बे खर्चा हो जाता, इसलिए वहीं बस गये। बीच बीच में चाची और विश्वजीत जाकर मिल आते थे उनसे। कभी कभी विश्वजीत अकेला भी चला जाता था।”

“डॉक्टर साहब साथ नहीं रखते थे उन्हें?”

“ऊ तो चाहते थे लेकिन चाची को दिल्ली पसंद नहीं थी। इहां चार लोग उन्हें जानते हैं, जो दुःख सुख में काम आते हैं। दिल्ली में तो सुना है पड़ोसी का मर्डर भी हो जाये तो अगल बगल के लोग झांकने नहीं जाते। जबकि इहां ऐसा नहीं है। अभी हम जोर से चिल्ला दें ‘बचाओ’ तो आस-पास के लड़के तुरंत लाठी डंडा लेकर बाहर निकल आयेंगे, कहिये का आपकी दिल्ली में ऐसा हो सकता है?”

“नहीं हो सकता।”

“जबकि कहते हैं दिल्ली दिल वालों की है, का खाक है, जब एक भाई दूसरे भाई की मदद को तैयारे न हो तो सिर्फ कहने से क्या हो जाता है।”

“ठीक कहते हो, अच्छा ये बताओ कि क्या बीच बीच में तुम्हारे चाचा, मेरा मतलब है डॉक्टर बरनवाल भी यहां का फेरा लगाते थे, या पूरी तरह दिल्ली वाले ही होकर रह गये थे?”

“उनके दिल्ली में बस जाने के बाद मिले तो नहीं कभी हम लेकिन कई बार आये थे, शाम को आते थे और सुबह की फ्लाईट से वापिस लौट जाते थे, इसलिए मुलाकात तो नहीं हो पाई कभी।”

“उनका कत्ल बीते साल 31 जनवरी को हुआ था, तब उनकी पत्नी और बेटा दोनों दिल्ली में ही थे, है न?”

“अरे नहीं साहब, चाची उन दिनों मायके में थीं, जो कि हाजीपुर में है, विश्वजीत भी उनके साथ गया था। जरा भगवान राम की लीला तो देखिये, उस रात वहां रामचरित मानस का पाठ चल रहा था, और दिल्ली में कोई सरवा हमारे चाचा का कत्ल कर रहा था। मिल जाये तो इहां से गंगाघाट तक दौड़ाकर मारें ससुरे को, फिर ले जाकर गंगा मईया में ऐसी डुबकी लगवायें कि अगली सांस नसीब न हो।”

“यहां तो क्या आयेगा वह?”

“आयेगा, कभी तो अइबे करेगा, काहे कि हमें पूरा यकीन है कि चच्चा का कत्ल उमेशवा किया था। हम विश्वजीत से कहे भी कि साले के खिलाफ कंप्लेन दर्ज करवा दो, मगर उसे हमारी बात पर यकीन आता तब तो कुछ करता।”

“उमेश कौन है?”

“उमेश अहिर, चाचा के गांधी मैदान वाले क्लिनिक में कंपाउंडर हुआ करता था। इत्तेफाक से पढ़ लिख भी खूबे गया था, उसी बात का घमंड हो गया था उसे। मगर हमारे चाचा भी कम नहीं थे, दिखा दिये औकात एक दिन ससुरे को और पिछवाड़े पर लात मारकर क्लिनिक से बाहर कर दिये। हमें लगता है उसी बात का बदला चुकता किया था उमेशवा।”

“डॉक्टर साहब को मारकर?”

“और नहीं तो क्या।”

“यहां से कत्ल करने दिल्ली पहुंच गया?”

“पता नहीं कहां से पहुंच गया, इधर तो वह सात आठ सालों से नहीं दिखा है - फिर थोड़ा रुककर बोला - जानते हैं चाचा के कत्ल की खबर लगने के बाद हमने क्या किया? माने अमरेश ने क्या किया?”

“क्या किया?”

“जाकर उमेशवा के भाई और उसके बाप को जम के तोड़े और पूछे कि उमेशवा कहां है, मगर ससुरे बस इहे कहते रहे कि उन्हें नहीं मालूम कि कहां है।”

“कभी लौटकर आया ही नहीं वो?”

“नहीं, एक बार का गया वापिस कभी नहीं आया। लेकिन इतनी गारंटी है कि कोई दो नंबर का धंधा करता है, और वैसा आदमी एक तो क्या दस कत्ल कर सकता है।”

“ये कैसे कह सकते हो कि दो नंबर का धंधा करता है?”

“काहे कि इधर ऊ गायब हुआ और उधर उसके घर में नोट बरसने लगे। पहले झोपड़ी जैसे घर में रहते थे, अभी तीन तल्ला मकान में रहते हैं। दो साल पहले एक बोलरो भी खरीद लिया था, जबकि उसके भाई और बाप दोनों निठल्ले हैं। थोड़ी जमीनें हैं मगर उनसे तो घर का साल भर का खर्चा ही नहीं चल सकता, ऐश कहां से कर पाते।”

“मतलब ऐश के लिए उमेश पैसे भेजता है, है न?”

“हमें तो यही लगता है। वैसे उमेश के गायब होने से पहले उनके पास बहुत जमीने थीं, स्टेशन रोड पर एक कटरा (ऐसी बिल्डिंग जिसमें कई दुकाने हों) भी था, जिसे ऊ ससुरा बेचकर गायब हो गया था, काहे कि उसी के नाम से था।”

“कितने में बेच गया?”

“क्या पता, हम क्या पूछने गये थे उससे।”

“गायब कब हुआ था वह?”

“जब चाचा ने कंपाउंडर के काम से भगाया था, उसके कुछ दिन बाद ही निकल गया, मेरे ख्याल से तो आठ साल पूरे होने को होंगे। और तभी से वापिस कदम नहीं रखा राजीव नगर में। इसलिए हमें पक्का यकीन है कि चाचा को उसी ने मारा होगा। हम तो बस राह देख रहे हैं, जिस दिन भी यहां कदम पड़े उसी दिन निबटा देंगे ससुरे को।”

“चाचा से कुछ ज्यादा ही मोहब्बत थी, है न?”

“नाहीं, हमारी तो बातचीत भी बहुते कम हुई होगी, लेकिन सवाल खानदान का है, बिरादरी का है, कैसे चुप रह सकते हैं हम।”

“सगे चाचा थे?”

“नहीं, चार पीढ़ी पहले से जोड़ेंगे तब जाकर रिश्ता बनता है, लेकिन खून तो एकही है न, इसलिए बदला तो हम लेईबे करेंगे।”

“तुम्हारे चाचा ने उसे नौकरी से निकाला क्यों था?”

“इसलिए निकाल दिये क्योंकि एक बार उनकी गैरमौजूदगी में उसने किसी पेशेंट को खुद ही दवा लिख दी थी। कुछ ऊंच नीच हो जाती तो भुगतना तो चाचा को पड़ता न, ऊ सरवा का क्या जाता, इसलिए जमकर धोये साले को और बाहर का रास्ता दिखा दिये।”

“उमेश की कोई फोटो होगी तुम्हारे पास?”

“नहीं, लेकिन ओकर घरवा में एक फोटो हम देखे थे, जो उसने चाचा के साथ खिंचवाकर फ्रेम कराने के बाद दीवार पर टांग दिया था। अभी भी वहीं टंगा हो सकता है, लेकिन ऊ बहुत पुरानी फोटो है - कहकर उसने पूछा - देखना चाहते हैं?”

“चाहता तो हूं।”

“तो चलिए दिखाये देते हैं।”

“कहीं तुम्हें देखकर उसके परिवार के लोग भड़क न जायें?”

“ऐसी की तैसी ससुरों की, मजाल है जो कोई चूं भी कस जाये, बारात नहीं निकाल देंगे हम उनकी, आईये दर्शन कराये देते हैं।”

वंश को वह साफ-साफ पंगे वाला काम लग रहा था, लेकिन उसके साथ जाने से इंकार नहीं कर पाया। क्योंकि लड़का जो कुछ भी बता रहा था उसके कोई मायने हो सकते थे, भले ही बड़बोला था इसलिए बढ़ा चढ़ाकर बयान करता हो सकता था।

उमेश का घर वहां से दो गली छोड़कर तीसरी में था, जहां पहुंचकर अमरेश ने दरवाजा खटखटाया, तो जवाब में एक 15-16 साल की लड़की सामने आ खड़ी हुई।

“तुम इहां क्या कर रहे हो?”

“घबरा मत ई शहरी बाबू को कुछ दिखाने लाये हैं।”

“क्या?”

“उमेश की फोटो।”

“वह इहां कहां धरी है?”

“काहे दीवार से हटा दिये?”

“अच्छा ऊ वाली?”

“हां ऊ वाली, अब साईड हट।”

सुनकर लड़की ने घूरकर उसे देखा, फिर दरवाजे से हटकर खड़ी हो गयी। दोनों भीतर दाखिल हुए, जहां अमरेश दाईं तरफ को इशारा करता हुआ बोला, “वो रही तस्वीर, रुकिये जरा साफ कर देते हैं, काहे की धुंधला गयी है।”

कहकर वह तस्वीर के करीब गया और कंधे पर टंगे अंगोछे से उसे रगड़ रगड़कर साफ कर दिया। उसमें डॉक्टर बरनवाल के साथ उसी का हमउम्र एक युवक खड़ा मुस्करा रहा था। जिसके बारे में वंश श्योर था कि उसे पहले कभी नहीं देखा था।

“मैं इसकी एक फोटो ले लूं?”

“पूछ काहे रहे हैं, जो चाहे कीजिए, चाहें तो तस्वीर ही उठा ले जाईये।”

“नहीं बस फोटो खींचनी है - कहकर उसने मोबाईल से दो तीन तस्वीरें क्लिक कर लीं - फिर बोला - चलो अब चलते हैं यहां से।”

तत्पश्चात दोनों जब वापिस विश्वजीत के घर के सामने पहुंच गये, तब जाकर वंश को यकीन आया कि कोई बवेला नहीं हुआ, वरना उम्मीद वह बराबर कर रहा था।

“देखे हैं कभी उमेशवा को दिल्ली में?” अमरेश ने पूछा।

“नहीं, लेकिन अब तलाशने की कोशिश जरूर करूंगा।”

“हम तो कहते हैं टीवी पर फोटो दिखा दीजिए, फिर साला जहां भी होगा, आस-पास के लोग पहचानिये लेंगे, मतलब बिल से बाहर आना ही पड़ेगा उसे।”

“जरायमपेशा था?”

“नहीं, लेकिन बदला लेने का जुनून तो किसी के भी सिर पर सवार हो सकता है न?”

“ठीक कहते हो।”

“अब चलिए जलपान कराते हैं आपको।”

“अरे नहीं भई, इतनी हैल्प कर दी तुमने वही बहुत है।”

“काहे बेइज्जती कर रहे हैं, आप इतनी दूर से आये हैं, जलपान कराये बिना कैसे जाने दे सकते हैं।” कहकर उसने वंश का हाथ थामा और अपने घर में खींच ले गया।

जहां उसे जबरन मिठाईयां खिलाई गयीं, जबरन इसलिए क्योंकि वह एक से ज्यादा रसगुल्ले नहीं खाना चाहता था जबकि अमरेश ने जोर डालकर तीन खिला दिये। फिर चाय और नमकीन का दौर चला, और आगे उसकी मां पूरी सब्जी बना लाई। जिसे हजम करने लायक जगह उसके पेट में नहीं थी, क्योंकि इतनी सुबह खाना नहीं खाया करता था वह, मगर आग्रह ऐसा कि ठुकराना संभव नहीं हो पाया। और मुसीबत ये कि मना करने के बावजूद थाली में और पूरियां डाल दी गयीं।

“ई वंश साहब हैं माई, पत्रकार हैं, दिल्ली से आये हैं।”

“विश्वजीत की वजह से?”

“हां।”

“सुना है बेटा की वहां वह बड़ी मुसीबत में फंस गया है?”

“फंस गया था लेकिन अब मुसीबत दूर हो गयी है।”

“चलो अच्छा ही हुआ, वरना हम तो यही सोचकर परेशान हो रहे थे कि बाप की मौत के बाद अब बेटा भी विपत्ति में फंस गया। अरे तुम रुक क्यों गये बेटा, खाओ न, मैं और पूरी लाती हूं।”

“अब नहीं मां जी, पहले ही बहुत खा चुका हूं।”

“ठीक है फिर एक गिलास दही का शरबत हो जाये वंश बाबू।”

“माफ करो भाई - उसने दोनों हाथ जोड़ दिये - अगर खाया पिया यहीं नहीं निकलवा लेना चाहते तो अब और कोई आग्रह मत करना प्लीज।”

“हाजमा कमजोर है क्या आपका?”

“हां बहुत कमजोर है।” वह बात वंश ने यूं ही कह दी।

“अरे तो पहले काहे नहीं बोले, रुकिये जरा - कहकर वह एक कमरे में गया और उल्टे पांव वापिस लौटकर दो गोलियां जबरन उसकी मुट्ठी में थमा दीं - पतंजली पाचक है, खाकर देखिये फिर एक क्या दो गिलास शरबत पी जायेंगे।”

“मैं रास्ते में खा लूंगा, और शरबत फिर कभी, अब चलता हूं।”

“कहां जाईयेगा?”

“गांधी मैदान।”

“हमारा मोबाईल नंबर ले लीजिए कोई जरूरत हो तो कभी भी कॉल कर सकते हैं।”

“ठीक है दे दो।” कहकर वंश ने उसका बताया नंबर अपने मोबाईल डॉयल कर के कट कर दिया।

“कहें तो हम मोटरसाईकिल से पहुंचाये देते हैं।”

“नहीं मैं चला जाऊंगा, थैंक यू।”

“अरे हम फॉर्मेलिटी नहीं दिखा रहे हैं सर।”

“मैं जानता हूं, फॉर्मेलिटी दिखाने वाले लोग एक अंजान आदमी की इतनी खातिरदारी नहीं करते, इसलिए थैंक यू कबूल करो। दोबारा कभी पटना आना हुआ तो दही का शरबत पीने जरूर आऊंगा।”

“हम इंतजार करेंगे आपका।”

तत्पश्चात वह यूं तेजी से गेट की तरफ बढ़ गया जैसे अमरेश द्वारा जबरन रोक लिये जाने का अंदेशा हो। इस बात में कोई शक नहीं था कि उसने बहुत इज्जत दी थी उसे। मगर हर चीज की कोई हद होती है। जो पार हो जाये तो सबकुछ बदमजा लगने लगता है। इस वक्त ठूंस ठूंसकर खाने के बाद उसका भी वैसा ही हाल हो रहा था। फिर उसे मुट्ठी में थमी गोलियों का ख्याल आया, जिन्हें फेंकने की बजाये उसने मुंह में डाल लिया।

गांधी मैदान पहुंचकर वंश ने अमरेश को कॉल लगाया और संपर्क होने पर जब ये सवाल किया कि वहां उसके चाचा का क्लिनिक कहां हुआ करता था, तो उसने इतने विस्तार से समझाया कि उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा। मगर आगे उस लड़के ने ये कहकर उसकी राह आसान कर दी कि वहां पटना मेडिकल स्टोर पर जाकर भी वह क्लिनिक के बारे में दरयाफ्त कर सकता था, क्योंकि वहां का दुकानदार उसके चाचा को बहुत अच्छे से जानता था।

वक्त तो खैर मेडिकल स्टोर तलाशने में भी लग गया, मगर दस मिनट से ज्यादा नहीं लगा। वहां काउंटर पर 40-45 के पेटे में पहुंचता एक शख्स बैठा था, जिससे उसने डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल की बाबत सवाल किया तो उसने जानता होने की हामी भर दी।

“ऊ सामने जो लाल कलर की बिल्डिंग दिखाई दे रही है न, उसी में पहली मंजिल पर होता था डॉक्टर साहब का क्लिनिक। लेकिन कुछ खास नहीं चलता था।”

“क्यों?”

“वह सायकियाट्रिस्ट था, और इधर खुद को दिमागी मरीज मानने वालों की संख्या बस गिनी चुनी ही होती है। किसी के दिमाग में परेशानी आती है तो उसे लगता है कोई कुछ करा दिया है, मतलब ऊपरी हवा। जिसके इलाज के लिए सायकियाट्रिस्ट के पास नहीं ओझा के पास जाया जाता है। इधर एक मतहा बहुत फेमस हुआ करते थे उस काम के लिए। लंबी भीड़ लगी रहती थी उनके दरवाजे पर, अब नहीं रहे।”

“मरे कैसे?”

“एक बार किसी पिशाच को काबू करते हुए जान चली गयी।”

“ओह, अच्छा ये बताईये कि क्या आप उमेश को जानते थे, डॉक्टर साहब का कंपाउंडर हुआ करता था?”

“हां जानते थे, बहुते होशियार लड़का था, साइंस से स्नाकोत्तर किया था। फिर जाने क्या हुआ कि एक रोज बालकृष्ण ने उसे भगा दिया। और उसके बाद दूसरा कंपाउंडर भी कभी नहीं रखा।”

“सुना है उसके साथ कोई मारपीट भी की थी?”

“हमने भी सुना था, लेकिन देखा नहीं, इसलिए पक्के तौर पर नाहीं बता सकते।”

“आपको डॉक्टर साहब के कत्ल की खबर है?”

“हां है, टीवी पर देखे थे, दिल्ली रास नहीं आई बेचारे को।”

“इधर किसी के साथ उनकी कोई दुश्मनी वगैरह रही हो?”

“अगर थी भी तो हमें नहीं मालूम। और इतना कट्टर दुश्मन तो कोई नहीं हो सकता कि जाकर दिल्ली में डॉक्टर को मार आया हो। बाकी क्या पता लगता है, आज के वक्त में जो न हो जाये वही कम है।”

“कोई और बात जो उनकी हत्या की वजह बन गयी हो?”

“नहीं ऐसी तो कोई बात हमें याद नहीं आ रही।”

“ठीक है सर, शुक्रिया।”

“मुसलमान हो?”

“नहीं, क्यों पूछ रहे हैं?”

“तो शुक्रिया क्यों बोल रहे हो, धन्यवाद बोलने में दिक्कत होती है?”

“दिक्कत वाली तो कोई बात नहीं है।”

“धन्यवाद बहुत मीठा लगता है, बोला करो। तुम जैसे नौजवानों को खासतौर से ये बात समझने की जरूरत है, वरना हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति एक दिन रसातल में मिल जायेगी, इसलिए विदेशी भाषा का पूर्णतः त्याग कर देने में ही भलाई है।”

“फिर तो थैंक यू भी पसंद नहीं होगा आपको, है न?”

“काहे?”

“वो भी तो विदेशी भाषा ही है।”

“बहस मत करो, तुम्हारी उम्र के चार पैदा कर रखे हैं मैंने, और मजाल क्या कि कोई उर्दू का एक शब्द भी बोल जाये, काहे कि हमें अपने धर्म की, अपनी संस्कृति की बहुते परवाह है, अपनी भाषा की भी, समझे?”

“आपकी जानकारी के लिए बता दूं सर कि ‘शुक्रिया’ उर्दू नहीं फारसी है।”

“हमारे लिए सब एक ही है।”

“तो फिर ‘मजाल’ बोलने की भी क्या जरूरत है, वह भी तो हिंदी की बजाये अरबी है?”

“देखो इससे पहले कि हम अपना धैर्य खो बैठें जाओ यहां से, और जाकर जितना चाहे सर्वनाश करो देश का, क्योंकि समझाने से तो कुछ समझ में आता नहीं तुम जैसे लोगों के।”

“ठीक कहते हैं क्योंकि ऐसी बातें समझने में मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं जिनके कोई मायने न हों। रही बात किसी भाषा के मीठा और तीखा लगने की तो वह इस बात पर डिपेंट करता है कि बोलने वाला किस वे में बोल रहा है। जैसे कि अभी आपकी हिंदी जरा भी मीठी नहीं लग रही। और त्यागना ही है तो तमाम विदेशी भाषाओं से पीछा छुड़ा लीजिए, अंग्रेजी से भी क्योंकि उन्होंने भी हमारे देश पर बहुत लंबे समय तक कब्जा जमाये रखा था। लेकिन वह आप नहीं कर पायेंगे क्योंकि आपको तो दवाईयों के नाम भी इंग्लिश में ही पढ़ने पड़ते हैं। अब एक आखिरी बात, भाषा कोई भी अच्छी या बुरी नहीं होती, वह अभिव्यक्ति का साधन मात्र होती है। आप इंग्लैंड पहुंचकर हिंदी बोलेंगे तो प्रॉब्लम होगी, अंग्रेज इंडिया पहुंचकर इंग्लिश बोलेंगे प्रॉब्लम होगी। इसलिए मेरी मानिये तो अपने बच्चों से कहियेगा कि जितनी भाषायें सीख सकते हैं सीखें, क्योंकि वह गर्व की बात होती है ना कि शर्मिंदा होने की, अब चलता हूं, बहुत बहुत ‘शुक्रिया’ आपका।”

सुनकर दुकानदार बुरी तरह तिलमिलाकर रह गया।

वंश आगे बढ़ गया, लेकिन थोड़ी दूर ही गया था, कि जाने कहां से चार लड़के एकदम से उसे घेरकर खड़े हो गये। मजबूरन उसे रुक जाना पड़ा।

‘‘क्या चाहते हो?’’

‘‘आपके साथ सेल्फी लेना चाहते हैं सर।’’

‘‘क्यों, मैं कोई सेलिब्रिटी हूं?’’

‘‘ऊ तो आप बराबर हैं, सालों से टीवी पर आपका शो देखते आ रहे हैं हम, देखते ही झट पहचान गये, प्लीज सर मना मत कीजिएगा।’’

‘‘तुम लोग जानते हो मैं कौन हूं?’’

‘‘अरे काहे नहीं जानेंगे सर, इतने फेमस आदमी हैं आप।’’

‘‘ओके ले लो।’’

सुनकर दो दायें और दो बायें खड़े हो गये। फिर एक ने अपना मोबाईल निकाला और तस्वीर क्लिक कर ली। एक के बाद एक कई सारी क्लिक कर लीं। फिर मोबाईल में ओपन कर के देखता हुआ बोला, ‘‘बढ़िया नहीं आई है, तू अपना आईफोन निकाल बे।’’

‘‘वो तो मेरी दुकान पर पड़ा है।’’

‘‘हद कर दी, ये भी कोई वक्त था मोबाईल भूलने का।’’

‘‘मैं चलता हूं।’’ कहकर वंश आगे बढ़ा तो एक जना तुरंत उसके रास्ते में आ गया।

‘‘सर जी, सर जी, बस एक मिनट और।’’

‘‘अब क्या है?’’

‘‘आप अपने मोबाईल से खींच दीजिए न प्लीज, काहे कि बड़े आदमी हैं इसलिए मोबाईल भी महंगा वाला ही रखते होंगे।’’

‘‘आईफोन का लेटेस्ट मॉडल होगा, है न सर जी?’’

सुनकर वंश ने गहरी सांस ली फिर जेब से मोबाईल निकालकर तस्वीर लेने ही जा रहा था कि उनमें से एक ने झपट्टा मारा और वहां से भाग खड़ा हुआ। बाकी के तीनों उल्टी दिशा में भागे।

वंश तुरंत मोबाईल छीनने वाले लड़के के पीछे दौड़ पड़ा।

मगर वह क्योंकि मुख्य रास्ते की बजाये बाजार में दौड़ गया था, इसलिए जल्दी ही वंश ने उसे खो दिया। फिर उसे तलाश करने में वक्त जाया करने की बजाये एक दुकानदार से रिक्वेस्ट कर के उसका मोबाईल मांगा और पुनीत कश्यप को कॉल लगाया, जो कि तुरंत अटैंड कर ली गयी।

‘‘गुड ऑफ्टरनून सर।’’

‘‘नमस्ते, क्या चल रहा है?’’

‘‘बोर हो रहे हैं, कोई लीड हासिल नहीं हो रही।’’

‘‘एक काम करो।’’

‘‘क्या?’’

‘‘मेरा मोबाईल चोरी हो गया है, जितनी जल्दी हो सके उसका डेटा अपने लैपटॉप में कॉपी करो, और मोबाईल फारमेट कर दो।’’

‘‘ठीक है।’’

वंश ने कॉल डिस्कनैक्ट कर के दुकानदार को धन्यवाद दिया और वहां से आगे बढ़ गया। फिर सड़क पर पहुंचकर एक टैंपो में सवार हुआ और उसे थाने चलने को बोल दिया, जहां उसने मोबाईल चोरी होने की कंप्लेन दर्ज कराई, फिर ये सोचकर कि अगर मोबाईल का डेटा किसी वजह से कॉपी नहीं हो पाया तो उमेश की तस्वीर उसके हाथ से निकल जायेगी, एक कैब बुक कर के वापिस राजीव नगर की तरफ चल पड़ा।

रात के आठ बजे थे।

एसआई नरेश चौहान इजाजत लेकर गरिमा के कमरे में दाखिल हुआ और उसका अभिवादन करके उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया।

‘‘कुछ हाथ लगा?’’

‘‘कहां मैडम, परसों रात कविता दस बजे, यानि आपकी कॉल के बाद अपने फ्लैट पर पहुंची थी और बाद में किसी ने उसे बाहर निकलते नहीं देखा। उसकी मोबाईल लोकेशन भी मूव नहीं हुई थी। मगर कातिल वह फिर भी हो सकती है, मोबाईल घर में छोड़ा जा सकता है। और देर रात वहां से निकली हो तो बाहर कौन होगा उसे पहचानने वाला?’’

‘‘उसका हस्बैंड भी तो फ्लैट में ही था चौहान, उसके रहते वह चुपचाप बाहर कैसे जा सकती थी?’’

‘‘अच्छा याद दिलाया आपने, मैं सोच रहा था कि क्या कत्ल में दोनों हस्बैंड वाईफ की मिलीभगत हो सकती है।’’

‘‘कैसा बेतुका सवाल पूछ रहे हो, जो लड़की इस डर से अधमरी हुई जा रही है कि कहीं उसकी आपबीती उसके पति को पता न लग जाये, उससे तुम उम्मीद करते हो कि वह पति के साथ मिलकर अपने साथ हुए दुराचार का बदला लेने के लिए निकल पड़ेगी?’’

‘‘हमें क्या मालूम मैडम कि वह कोई दिखावा नहीं कर रही। जरा सोचकर देखिये कि हमारी सोच के विपरीत अगर उसने कौशल को सब बता दिया हो, और दोनों मिलकर बदला ले रहे हों, तो क्या वह बड़ी बात होगी। जवाब ये सोचकर दीजिएगा कि आज का यूथ ऐसे मामलों में बड़ी सोच रखने लगा है।’’

‘‘तुम तो दिमाग ही घुमाये दे रहे हो।’’

‘‘बस एक बार हमें ये मान लेने की जरूरत है कि दोनों मियां बीवी मिले हुए हैं, उसके बाद तो कहानी एकदम साफ हो जाती है।’’

‘‘नहीं होती, क्योंकि रेप अधिकारी ने किया था। बदला भी उसी से लेते, बड़ी हद दीक्षित से, डॉक्टर को क्यों मार डाला कविता ने?’’

‘‘क्योंकि जो काम अधिकारी ने एक बार किया था वह डॉक्टर उसके साथ सालों से करता आ रहा था। और जब लड़की ने उसपर शादी का दबाव बनाया तो वह बिदक गया। ऐसे में गुस्सा किसी को भी आ सकता था। उसे भी आया और मौका पाकर एक रोज डॉक्टर को खत्म कर दिया। बाकी उसके क्लिनिक में हर महीने पहुंचने वाले सीक्रेट विजिटर की कहानी इंवेस्टिगेशन को भटकाने की कोशिश भी हो सकती है। बाद में हुआ ये कि कत्ल के अगले रोज अधिकारी के दबाव में आकर उसने पूरी कहानी उसे सुना दी, जिसके बाद हमारे ऑफिसर ने अपनी फीस वसूली और कत्ल के इल्जाम से उसे साफ बचा ले गया।’’

‘‘अगर दोनों के संबंध राजी राजी बने थे तो उसने अधिकारी को क्यों खत्म कर दिया?’’

‘‘क्योंकि शादी के बाद वह उसे ब्लैकमेल करने लगा था। लड़की पहले तो उसके दबाव में आती रही, फिर जैसे ही उसे ये खबर लगी कि दोनों पुलिस ऑफिसर्स सस्पेंड हो चुके हैं, और उनपर डॉक्टर की हत्या के मामले को मैनीपुलेट करने का आरोप है, वह बुरी तरह डर गयी, क्योंकि दोनों का मुंह खुल जाता तो उनपर बस कविता को बचाने का आरोप लगता जबकि वह तो सीधा जेल में होती। तब उसने अपने पति को सारी सच्चाई बताकर उससे मदद मांगी, जिसके लिए वह तैयार हो गया। उसके बाद दोनों ने मिलकर अधिकारी और दीक्षित को खत्म कर दिया, ये भी हो सकता है कि वह काम कौशल ने अकेले किया हो।’’

‘‘उसकी मोबाईल लोकेशन नहीं निकलवाई?’’

‘‘नहीं, क्योंकि ये बात तो अभी थोड़ी देर पहले ही मेरे दिमाग में आई कि केस में एक शख्स ऐसा भी है जिसे हम पूरी तरह नजरअंदाज किये जा रहे हैं, लेकिन कल ये काम मैं कर के रहूंगा।’’

‘‘यकीन तो नहीं आता कि सब किया धरा कौशल का रहा हो सकता है, लेकिन कोई बात नहीं, जब तुमने शक जता ही दिया है तो चेक करने में कोई हर्ज नहीं है।’’

‘‘कल पता करता हूं मैडम।’’

‘‘विश्वजीत के बारे में कोई नई जानकारी?’’

‘‘लोकेशन तो उसके मोबाईल की भी हर वक्त संगम विहार की ही दिखाई देती है। जो कभी मूव हुई भी तो बस आस-पास के एरिया में ही हुई थी।’’

‘‘यानि कातिल वह भी नहीं है?’’

‘‘कैसे हो सकता है मैडम, डॉक्टर का कत्ल उसने किया नहीं, इस बात की हम गारंटी कर सकते हैं, और साफ दिखाई दे रहा है कि पूरा मामला डॉक्टर बरनवाल की हत्या से ही जुड़ा हुआ है। और एक बात यहां मैं फिर से दोहराता हूं कि अगर उसने अधिकारी और दीक्षित को खत्म करना ही होता तो चुपचाप दिल्ली पहुंचता और कत्ल कर के वापिस लौट जाता। फिर अमरजीत की हत्या करने की तो दूर दूर तक उसके पास कोई वजह नहीं थी।’’

‘‘अमरजीत को कौशल या कविता ने भी क्यों मारा होगा?’’

‘‘मेरे ख्याल से उसके कत्ल का डॉक्टर बरनवाल की हत्या से कोई लेना देना ही नहीं है। ये भी लगने लगा है कि सच में किसी नशेड़ी ने ही उसकी जान ले ली थी, क्योंकि उसकी हत्या की कोई दूसरी वजह सामने नहीं आ रही। इस तरह से देखें तो दोनों जुदा मामले हुए। डॉक्टर, अधिकारी और दीक्षित का कातिल कोई एक शख्स है जबकि अमरजीत को किसी और ने मारा था।’’

‘‘मनसुख और कौशल्या के बारे में कुछ पता लगा?’’

‘‘जी मैडम, एक बहुत हैरान कर देने वाली जानकारी हाथ लगी है।’’

‘‘क्या?’’

‘‘हमने दोनों मां बेटे का बैंक एकाउंट चेक किया तो पता लगा नौ महीने पहले बेटे के एकाउंट में पूरे एक करोड़ रूपये ट्रांसफर किये गये थे। आगे उस रकम को दो तीन चेक के जरिये दूसरों को सौंप दिया गया। जिसमें से सबसे बड़ा चेक मकान खरीदने के लिए ही जारी किया गया था। दूसरा मारूति के उस डीलर को दिया गया जिससे स्विफ्ट खरीदी थी, जबकि बाकी छोटे मोटे चेक और काटे गये थे।’’

‘‘ये नहीं पता लगा कि रकम मनसुख के एकाउंट में कहां से आई थी?’’

‘‘पता लगा मैडम, वही तो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है।’’

‘‘क्या?’’

‘‘एक करोड़ की वह रकम बबिता बरनवाल के एकाउंट से मनसुख के एकाउंट में ट्रांसफर की गयी थी।’’

‘‘व्हॉट?’’ गरिमा एकदम से उछल ही पड़ी।

‘‘तस्दीकशुदा बात है मैडम।’’

‘‘बबिता भला कौशल्या को एक करोड़ रूपये क्यों देने लगी?’’

‘‘क्या पता, उससे पूछताछ करेंगे तो मालूम पड़ेगा।’’

‘‘और बबिता के एकाउंट में वह रकम कहां से आई, ये पता नहीं चला?’’

‘‘अभी नहीं, लेकिन कल मैं मालूम कर लूंगा।’’

‘‘कमाल का केस गले पड़ा है।’’

‘‘जी हां एकदम मकड़ी के जाले की तरह उलझा हुआ।’’

‘‘सवाल ये है चौहान कि इस पूरे मामले में हम कहां खड़े हैं?’’

‘‘वहीं मैडम जहां पहले थे।’’

‘‘ऐसे कैसे बात बनेगी?’’

‘‘बनेगी अगर आप सस्पेक्ट्स के साथ सख्ती बरतने की इजाजत दे दें तो बनकर रहेगी।’’

‘‘अरे कोई ढंग का सस्पेक्ट होना तो चाहिए।’’

‘‘कई हैं मैडम, जिनमें से प्राईम सस्पेक्ट मुझे कविता कुमावत ही दिखाई दे रही है। दूसरी आयशा बागची, जिसके साथ डॉक्टर के रिलेशन थे। या भीष्म साहनी जिसकी बीवी के साथ डॉक्टर का चक्कर चल गया हो सकता था।’’

‘‘चालीस साल का डॉक्टर न हुआ कामदेव हो गया, जो तमाम लड़कियां और औरतें उसके साथ संबंध बनाने को बेताब हुई जा रही थीं।’’ गरिमा हंसती हुई बोली।

‘‘आयशा ने तो वह बात अपने मुंह से कबूल की थी मैडम।’’

‘‘तो मान लेते हैं कि उन दोनों के बीच रिलेशन थे, लेकिन उसका मतलब ये थोड़े ही हो जाता है कि सबके साथ थे। फिर वह लड़की मुझे हर वक्त नशे में ही जान पड़ती थी।’’

‘‘आपके थप्पड़ के बाद तो होश आ ही गया था मैडम उसे।’’

‘‘अगर ड्रग्स लिया था तो कुछ बातें उसकी कल्पना की उपज भी रही हो सकती हैं। मतलब ये कि उसके कहे पर यकीन नहीं किया जा सकता।’’

‘‘आप कहें तो पकड़ मंगवाऊं उसे?’’

‘‘अभी उसकी कोई जरूरत नहीं है, पहले तुम मनसुख और कौशल्या के रातों रात अमीर बन जाने की वजह तलाश कर लो फिर हम सोचेंगे कि आगे किसके गले पड़ना है। किसके साथ सख्ती बरतनी है और किसके साथ पुच पुच कर के बात करनी है।’’

‘‘जैसा आप कहें।’’

‘‘अब चलो, कल की कल देखेंगे।’’ कहती हुई वह उठ खड़ी हुई।

रात नौ बजे वंश अपने ऑफिस पहुंचा। जहां केबिन में कदम रखते ही वह ये देखकर चौंक गया कि उसकी टीम के तीनों सदस्य जो नागौर गये थे, इस वक्त वहां मौजूद थे।

उनके बीच हाय हैलो हुई फिर वंश ने पूछा, ‘‘इतनी जल्दी निबटा भी दिया?’’

‘‘नहीं।’’ अनिल आर्या बोला।

‘‘नहीं?’’

‘‘बिल्कुल भी नहीं।’’

‘‘वापिस लौटने की वजह?’’

‘‘केस सॉल्व हो गया।’’

‘‘मैं समझा नहीं।’’

‘‘पुलिस ने कर दिखाया।’’

‘‘ओह।’’

‘‘सॉरी।’’

‘‘उसमें तुम्हारी क्या गलती है भई, फिर अच्छा ही हुआ जो तुम लोग वापिस लौट आये, कमी बहुत खल रही थी।’’

‘‘हमें भी आपकी बहुत याद आ रही थी सर - मेघना बोली - इसलिए पुलिस से कह दिया थोड़ी तेजी दिखाओ ताकि हम वापिस जा सकें। उन्होंने हमारी बात मान ली।’’

‘‘इससे बढ़िया बात भला और क्या हो सकती है।’’

‘‘अब तुम बताओ - आर्या ने पूछा - डॉक्टर के केस की क्या पोजिशन है? और ये भी कि पटना में तुम्हारा मोबाईल कैसे ले उड़ा कोई?’’

‘‘पोजिशन अच्छी है, काफी सारी जानकारियां इकट्ठी कर चुका हूं, जिसमें कुछ बेहद हैरान कर देने वाली भी हैं, मतलब ऐसी जानकारियां जिनकी वजह समझ से बाहर है। लेकिन घटनायें इतनी चौंका देने वाली और मजेदार घटित हुई हैं इस केस में कि हमारे ऑडियंस दांतों तले उंगली दबा लेने को मजबूर हो जायेंगे, और उलझा हुआ मामला तो है ही ये।’’

‘‘कल हमें अपना शो करना है वंश।’’

‘‘टेंशन लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब बस कुछ बातों का पता लगाना जरूरी है, जो कि तुम लोगों के वापिस लौट आया होने के कारण आसानी से लग जायेगा।’’

‘‘शक किसपर है?’’

‘‘कई लोगों पर है, जिनमें से सबसे पहला तो विश्वजीत ही है। मुझे लगता है उसने जानबूझकर खुद को गिरफ्तार कराया था। मगर ऐन उसी वजह से इनोसेंट भी जान पड़ता है। क्योंकि अगर गिरफ्तारी उसकी प्लानिंग का हिस्सा थी तो जाहिर है आगे उसने जो कुछ भी किया वह सिर्फ इसलिए किया ताकि पुलिस उसके पिता की केस को री इंवेस्टिगेट करने को मजबूर हो जाती।’’

‘‘दूसरा?’’

‘‘कविता कुमावत।’’

‘‘डॉक्टर की नर्स?’’

‘‘वही, मुझे लगता वह लड़की कोई बड़ा गेम खेल रही है, और खुद को यूं पेश कर रही है जैसे उससे ज्यादा सीधी सादी कोई दूसरी हो ही नहीं सकती। जानकारियां भी टुकड़ों में परोसती है, और ऐसी ऐसी जानकारियां कि सुनकर होश उड़ जायें।’’

‘‘तीसरा कौन है?’’

‘‘आयशा बागची, उसपर शक करने की कोई बड़ी वजह तो नहीं है लेकिन उसका किरदार ऐसा है कि ना चाहते हुए भी उसकी तरफ ध्यान जाकर रहता है। उस मामले में अमरजीत राय की वाईफ मुक्ता की कही तीन बातें गौर तलब हैं, नंबर एक डॉक्टर उस लड़की से तंग आ चुका था और इस बात पर पछता रहा था कि क्यों उसके साथ संबंध जोड़ बैठा। दूसरी ये कि आयशा उसपर शादी के लिए दबाव डाल रही थी।’’

‘‘तीसरी?’’

‘‘डॉक्टर उस लड़की से डरता था। उसे इस बात का अंदेशा खाये जा रहा था कि अगर उसने आयशा से दूरी बनाने की कोशिश की तो वह हंगामा खड़ा कर देगी।’’

‘‘बतौर सस्पेक्ट कोई और नाम भी है?’’

‘‘भीष्म साहनी, वह अपनी बीवी से उम्र में दोगुना है। बीवी को एंजाईटी अटैक पड़ते थे, जिसके लिए डॉक्टर उसके घर का फेरा लगाता था। आखिरी फेरा पिछले साल छब्बीस जनवरी को लगाया, जहां उसे बंद कमरे में कोई ट्रीटमेंट दिया था। उसके बाद 31 तारीख को डॉक्टर का कत्ल हो गया।’’

‘‘तुम्हें लगता है डॉक्टर और भीष्म की बीवी में अफेयर था?’’

‘‘हो सकता है, और अगर था तो कातिल भीष्म साहनी भी हो सकता है।’’

‘‘इन चारों के अलावा कोई?’’

‘‘डॉक्टर का दोस्त उन्मेद कनौजिया, उसने कल मुझे एक ऐसी बात बताई है जिसकी जानकारी उसे उस तरह से हासिल नहीं हुई हो सकती, जैसा वह कहता है कि हुई थी।’’

‘‘क्या बताया?’’

‘‘कोई नाश्ता वगैरह करना हो तो कर लो, फिर केस की पूरी डिटेल ही दिये देता हूं, क्योंकि आगे से हम टीम वर्क करने वाले हैं।’’

‘‘पेट पूजा हम पहले ही कर चुके हैं।’’

‘‘गुड, तो अब अपनी अपनी डॉयरी निकालो और जरूरी प्वाइंट नोट करते जाना। कोई कंफ्यूजन हो तो मार्क कर लेना, लेकिन बीच में मत टोकना मुझे।’’

‘‘ठीक है शुरू करो।’’

जवाब में वंश सिलसिलेवार उन्हें सबकुछ बताता चला गया। ये भी कि किसी बात का उसने क्या मतलब निकाला था, या किस घटना का क्या मतलब हो सकता था।

वह सिलसिला पूरे बीस मिनटों तक चला, फिर उसने सवाल किया, ‘‘अब तुम लोग बोलो, कुछ समझ में आता है?’’

‘‘नहीं - आर्या बोला - क्योंकि तुम्हारी बात अभी महज कहानी की तरह सुनी है। केस पर खुद दौड़ भाग की होती, डिस्कस किया होता, तो कोई ओर छोर समझ में भी आ रहा होता। लेकिन अब हमने तमाम जरूरी प्वाइंट्स नोट कर लिये हैं तो बाकी की रात इसपर दिमाग भी खपायेंगे, ज्यादा गहराई से विचार करेंगे, उसके बाद कुछ न कुछ पल्ले पड़कर रहेगा।’’

‘‘अगर ऐसा है तो अभी निकल लेते हैं, ताकि कल का पूरा दिन केस को दे सकें।’’

‘‘उससे पहले ये बताओ कि कल हममें से किसने क्या करना है?’’

‘‘मेघना मनसुख और कौशल्या के रातों रात अमीर हो जाने का राज पता लगायेगी, बल्कि उस बात की कंफर्मेशन हासिल करेगी जो उनके बारे में मैं अभी अभी तुम लोगों को बताकर हटा हूं।’’

‘‘कविता के कहे का क्या सर? - मेघना ने पूछा - जिसने आपको बताया था कि वह दोनों मनसुख और कौशल्या नहीं बल्कि विश्वजीत बरनवाल और उसकी मां थे?’’

‘‘नहीं उसका कहा सच नहीं हो सकता, क्योंकि दोनों मां बेटे जिंदा हैं, उस बात की औनी पौनी ही सही कंफर्मेशन मुझे पटना से हासिल हो चुकी है। यानि वह विश्वजीत ही है जिसे अमरजीत की हत्या के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार कर के अपनी फजीहत कराई थी।’’

‘‘मतलब कविता झूठ बोल रही है?’’

‘‘यही तो प्रॉब्लम है कि वह झूठ बोलती नहीं दिख रही। फिर ऐसा झूठ बोलने का भी क्या फायदा जो हाथ के हाथ गलत साबित हो जाये। इसलिए मुझे लगता है कि वह किसी गलतफहमी का ही शिकार हो रही है। एनी वे जो होगा कल सामने आ जायेगा, तुम बस उस काम पर ध्यान देना जो मैंने बताया है।’’

‘‘ठीक है।’’

‘‘पुनीत।’’

‘‘यस सर?’’

‘‘मैंने तुम्हें एक तस्वीर व्हॉटसअप की थी।’’

‘‘हां की थी, नंबर किसका था वह?’’

‘‘उमेश अहिर की भतीजी का, वह तस्वीर मुझे सेंड कर दो मैं कल कविता से मिलकर जानने की कोशिश करूंगा कि उसने उस शख्स को डॉक्टर के क्लिनिक में आते जाते देखा था या नहीं। और तुम कल सुबह सुबह वसंतकुंज थाने पहुंचकर पांच छह साल पहले दर्ज कराई गयी गुमशुदगी की रिपोर्ट्स पर अपना दिमाग खपाओगे, देखो कुछ हासिल होता है या नहीं। और डॉक्टर के कत्ल के अगले रोज की यानि एक फरवरी की सीसीटीवी फुटेज भी देखनी है।’’

‘‘इतनी पुरानी फुटेज संभाल रखी होगी उन लोगों ने?’’

‘‘मेरे ख्याल से तो हां।’’

‘‘ठीक है, मैं पता लगा लूंगा।’’

‘‘अभी अभी मेरे दिमाग में एक बड़ा अजीब सा ख्याल आया है वंश।’’ आर्या बोला।

‘‘क्या?’’

‘‘ये कि पटना की तुम्हारी खोज उमेश अहिर कहीं कविता का हस्बैंड कौशल तो नहीं है?’’

सुनकर पुनीत और मेघना ने जोर का ठहाका लगा दिया, जबकि वंश का चेहरा एकदम से गंभीर हो उठा।

‘‘अगर मान लो है, तो आगे मामला एकदम से सुलझ जाता है और नहीं है तो भी सुलझता हुआ दिखाई दे रहा है।’’

‘‘कैसे?’’

‘‘अगर उमेश वही शख्स है जिसे डॉक्टर ने अपने पटना वाले क्लिनिक में धुनकर रख दिया था, तो जाहिर है उसके मन में बदले का ख्याल भी बराबर आया होगा। इसी तरह अगर कविता का डॉक्टर के साथ अफेयर था, और वह शादी के लिए तैयार नहीं हो रहा था, तो उसे भी बदला लेना सूझ गया हो सकता है। फिर दो दुश्मनों ने हाथ मिलाया और डॉक्टर को खत्म कर दिया।’’

‘‘बाद में शादी क्यों कर ली?’’

‘‘क्योंकि दोनों एक दूसरे के राजदार थे।’’

‘‘अधिकारी और दीक्षित को क्यों मार गिराया?’’

‘‘क्योंकि दोनों पर ऑफिशियल इंक्वायरी चल रही थी, अगर जुबान खोल देते तो उनपर तो बस केस को मैनीपुलेट करने का जुर्म आयद होता लेकिन कविता और कौशल तो जेल पहुंच जाते।’’

‘‘मनसुख और उसकी मां को क्यों मार गिराया?’’

‘‘वजह खोजेंगे तो मिल जायेगी।’’

‘‘मैं कौशल से मिल चुका हूं आर्या साहब, और उमेश की तस्वीर भी देख चुका हूं, दोनों मिलते जुलते तो नहीं ही लगे थे मुझे।’’

‘‘ध्यान से देखा था?’’

‘‘नहीं, लेकिन दोनों की उम्र में बहुत फर्क है।’’

‘‘ओह।’’

‘‘एक काम करो, कल तुम ये पता लगाओ कि परसों रात कौशल कहां था, मूवमेंट ट्रेस न हो पाये तो मेघना को बोलना ये किसी न किसी तरह उसकी मोबाईल लोकेशन हासिल कर लेगी। उससे भी साबित हो जायेगा कि रात को वह बाहर गया था या नहीं, अगर गया था तो कहां गया था।’’

‘‘आजकल के अपराधी इतनी छोटी मोटी भूल नहीं किया करते।’’

‘‘भूल भूल होती है, मतलब कत्ल के वक्त वह गलती से भी अपना मोबाईल साथ ले गया हो सकता है।’’

‘‘ठीक है मैं कल पता लगा लूंगा।’’

तत्पश्चात वह मीटिंग समाप्त कर दी गयी।