बंसीलाल का वो ही बार एण्ड रैस्टोरैंट ।
शाम के आठ बज चुके थे।
रैस्टोरैंट में इस वक्त कम भीड़ थी। बार लगभग खचाखच भरा पड़ा था। तीव्र रोशनियां और वहां की सजावट से लग रहा था, जैसे ये कोई अलग ही दुनिया हो। भीड़ और बढ़ती जा रही थी। आने वालों में शहर के अमीर लोग थे। पैसे वाले लोग थे। क्योंकि ये महंगी जगह थी 1 कोई जोड़ों में था तो कोई परिवार के साथ तो कोई अकेला पार्किंग में महंगी और विदेशी कारों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। वहां छः पार्किंग अटैंडेंड थे। प्रवेश द्वार पर दो दरबान वर्दी पहने मौजूद थे और आने-जाने वालों के लिये फुर्ती से शीशे का दरवाजा खोलने में व्यस्त थे। एक बारगी तो सारा माहौल देखकर लगता था जैसे बहुत अमीर व्यक्ति के यहां शादी हो रही हो ।
तभी प्रवेश द्वार के ठीक सामने टैक्सी आकर रुकी। ड्राईवर ने फुर्ती से उतर कर टैक्सी का पीछे वाला दरवाजा खोला तो जो व्यक्ति बाहर निकला वो सोहनलाल था। उसने सिर्फ दो किलोमीटर दूर से ही टैक्सी ली थी। शेव की होने की वजह से चेहरा चमक रहा था। सिर के बाल अच्छे ढंग से कटे हुए थे। बदन पर सफेद रंग का रेडीमेड ' सूट था, जो कि उसने घंटा भर पहले ही महंगे शो-रूम से खरीदा था। टैक्सी ड्राईवर ने दरवाजा बंद किया।
सोहनलाल ने जेब में हाथ डालकर सौ का नोट उसे दिया तो, पहले से समझाये मुताबिक ड्राईवर ने उसे तगड़ा सैल्यूट दिया और टैक्सी में जा बैठा। टैक्सी आगे बढ़ गई। सोहनलाल ने शाही अंदाज में जेब से गोली वाली सिग्रेट निकाल कर सुलगाई। तगड़ा कश लिया फिर एक हाथ से कोट को ठीक किया और चार सीढ़ियां चढ़कर प्रवेश द्वार के पास पहुंचा। दरबान उसे पहले ही देख रहे थे। उन्होंने फौरन शीशे का गेट खोला और सैल्यूट दिया।
सोहनलाल ने सौ का नोट निकाल कर उसकी जेब में दूंसा और भीतर प्रवेश कर गया। चंद कदम चलकर ठिठका और कश लेते हुए शान भरे ठंग से इधर-उधर देखा।
“गुड इवनिंग सर ।” स्वागत कर्मचारी के पास पहुंचा - "आप यहां शाम का पूरा मजा ले सकते हैं। इधर डिनर हॉल है। यहां का खाना लाजवाब है। यही वजह है कि शाम को रैस्टोरेंट में लोगों को बैठने की भी जगह नहीं मिलती। और वहां बार है। डिनर से पहले कुछ लेना हो तो देश-विदेश की उम्दा से उम्दा व्हिस्की वहां मिलेगी । अगर आप अकेले है तो फिक्र की कोई बात नहीं। बार रूम में जल्दी ही कोई बढ़िया साथी मिल जायेगा गप्पे मारने के लिये - ।”
“गुड - ।” सोहनलाल मुस्कराया- "बहुत सुन रखा है यहां के बारे में। तभी आज की शाम यहां बिताने का फैसला किया।"
“आपको मायूसी नहीं होगी सर ।”
सोहन लाल बिना कुछ कहे बाररूम के दरवाजे की तरफ बढ़ गया। वहां भी होटल का कर्मचारी मौजूद था जो कि आने वालों के लिये दरवाजा खोल रहा था। सोहनलाल को आता पाकर उसने दरवाजा खोला तो वो भीतर प्रवेश कर गया। बाररूम की सारी टेबलें भरी पड़ी थीं। सारे रूम में दीवार के साथ-साथ लम्बे गोल स्टूल रखे हुए थे। जिसे जहां जगह मिलती, वहीं बैठ जाता। यहां आदमी- औरतें, युवक-युवतियां सब थे। बार का पूरा मजा ले रहे थे । व्हिस्की-सिग्रेट की स्मैल। बातों की आवाजें, तो कहीं हंसी। मिला-जुला माहौल था वहां ।
सोहनलाल ने ठिठक कर सिग्रेट का कश लिया । तभी पास से वेटर गुजरा तो सोहनलाल ने टोका।
“सुनो - "
“सर - !" वेटर ठिठका।
“ऐशट्रे कहां है?"
“ऐशट्रे - वो उधर टेबलों पर है। या उधर दीवार के - ।”
“ये लो ।” सोहनलाल ने शाही ढंग से सुलगती सिग्रेट उसके हाथ में थमाई ।
इसका क्या करूं । वेटर अचकचाया।
"ऐशट्रे में डाल दो। फिक्र मत कर जब जाऊंगा तो मुझे याद करेगा तू - ।" सोहनलाल मुस्कराया ।
“याद करूंगा?" वेटर के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे।
“हां भाई । तेरे को बोत तगड़ी 'टिप' देकर जाऊंगा।"
“ओह, थैंक्यू सर ! थैंक्यू..... ।”
“बाद में मिलना। अभी तो मैं आधी रात तक यहीं हूं।" कहने के साथ ही सोहनलाल आगे बढ़ गया। बैठने के लिये कोई जगह नजर नहीं आ रही थी। सोहनलाल व्हिस्की नहीं पीता था। लेकिन बार रूम में मौजूद होने पर व्हिस्की का गिलास हाथ में न हो । पिए न हो तो अटपटा-सा लगता। बार काउंटर की तरफ बढ़ा। लेकिन छिपी निगाह से उस दरवाजे को देख रहा था, जिसके पास गैलरी थी। एक कर्मचारी दरवाजे के पास मौजूद था।"
बार काउंटर पर पहुंचकर सोहनलाल ने पैग लिया, पेमेंट दी और पैग थामे एक तरफ खड़ा होकर इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगा।
कुछ पल यूं ही बीत गये। हर कोई जैसे खुद में बहुत ही व्यस्त नजर आ रहा था । कुछ देर बाद सोहनलाल वहां से हिला और लापरवाही भरे अन्दाज में उस दरवाजे की तरफ बढ़ा, जिसके पास गैलरी थी । चलने का ढंग ऐसा था, जैसे ठीक-ठाक पी रखी हो । दरवाजे के पास ही वहां का कर्मचारी मौजूद था। उसके चेहरे पर बोरियत बरस रही थी ।
सोहनलाल पैग हाथ में थामे पास पहुंचते हुए नशे से भरी
आवाज बनाकर बोला ।
“दरवाजा खोल ।”
“क्यों सर?” उसने सोहनलाल को देखा।
“बाथरूम जाना है।"
“बाथरूम इधर नहीं है सर ! उधर है। कोने में- ।" उसने कहा ।
“तू झूठ बोलता है। बाथरूम इधर भी है।" सोहनलाल ने हाथ हिलाकर कहा ।
“इधर का बाथरूम कस्टमर के वास्ते नहीं है।" उसने कहा।
“तेरे वास्ते है ?”
“नहीं।" वो मुस्करा पड़ा- "इधर का बाथरूम यहां के मालिक बंसी भाई इस्तेमाल करते हैं। प्राईवेट है। उनका ऑफिस इधर ही है। बाहर का कोई आदमी भीतर नहीं जा सकता। मना है । "
“ऐसी बात?”
“यस सर ।”
“ठीक है। लेकिन मैं इधर वाले बाथरूम में ही जाऊंगा। अब देखना है कि प्राईवेट बाथरूम में क्या होता है ।”
“सर !” उसने कहा- “प्लीज अपने पर काबू रखें। आपने शायद ज्यादा पी ली है।”
“ज्यादा पी ली है ?” सोहनलाल नशे भरी आवाज में बड़बड़ाया।
"ये हो सकता है। घर से भी दो-चार पैग मारकर निकला था। पांच-सात यहां लगा लिये। पक्का ज्यादा हो गई होगी।”
"बाहर जाकर बैठ जाईये या फिर डिनर ले लीजिये।" उसने सलाह दी।
“वो तो ठीक है।" सोहनलाल ने हाथ में पकड़े पैग को देखा- "इसका क्या करूं?”
“कहीं रख दीजिये ।”
"ऐस कैसे हो सकता है। व्हिस्की का खराब नहीं करना चाहिये । बेशक पीकर उल्टे लटक जाओ। लेकिन व्हिस्की को खराब नहीं करना चाहिये।” सोहनलाल नशे भरे ढंग में कह रहा था - "तू नहीं पीता ?"
“ड्यूटी पर हूं। बाद में पीता हूं।"
“बाद की, बाद में लेना। पकड़ इसे चढ़ा जा ।”
“नहीं । किसी ने देख लिया तो - ।”
“कोई नहीं देखता । मन का वहम है। टॉप का विदेशी माल है। याद रखेगा मेरे को । ले सरका ले गले में । "
वो हिचकिचाया ।
“गधे की औलाद। पीने वाले इन्सान सोचते नहीं हैं। "
उसने इधर-उधर देखा । सोहनलाल के हाथ से गिलास थामा और दरवाजे की तरफ मुंह कर लिया । तुरन्त ही पलटा तो गिलास खाली था । सोहनलाल ने गिलास थाम लिया ।
“किसी को पता चला ? किसी ने देखा?” सोहनलाल ने अपनी आघाज नशे से भरी बना रखी थी ।
“नहीं - ।"
“वो ही तो मैं कह रहा था कि तू खामखाह घबराता है ।" सोहनलाल सिर हिलाकर बोला- “आज के बाद ध्यान रखना। पीने वाले सोचते नहीं। गिलास पकड़ा और चढ़ा लिया। वैसे ये गिलास खाली करके तूने मेरा बहुत भला किया। अगर मैं पीकर लुढ़क जाता तो मेरा सूट खराब हो जाता । "
“सर! आपका तो भला हो गया। मेरा भला तो नहीं हुआ।"
“क्या मतलब?”
“एक पैग पिलाकर, मेरे भीतर तीली सुलगा दी है। एक और हो जाये तो - ।”
- “समझा-समझा | फिक्र मत कर एक क्या मैं तेरे को छः पिलाकर रहूंगा।" सोहनलाल नशे की एक्टिंग करता हुआ बोला“बहुत खुश हूं मैं। दस साल बाद मेरी बीवी ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है।”
"जुड़वां बच्चे- दो?”
“हां। तेरे को बाद में सारा मामला बताऊंगा। मेरी खुशी में, शामिल होकर पहले पांच-सात पैग मार ले। बातें भी करते रहेंगे। चिन्ता मत कर। आज तेरे साथ भी डिनर करूंगा। पैसे-वैसे की जरूरत हो तो बता देना। वो भी दे दूंगा। बहुत खुश हूं मैं । पैग लेकर आता हूं।” इसके साथ ही सोहनलाल पलटा और नशे से झूमने वाले ढंग में बार काउंटर की तरफ बढ़ गया !
***
सोहनलाल उसकी सेवा में छः मोटे-मोटे पैग पेश कर चुका था। और वो पीठ करके हर पैग को गले के नीचे उतार चुका था। नशे की तरंग उस पर ठीक-ठाक हावी हो चुकी थी। वो दरवाजे के पास ही मौजूद स्टूल पर बैठ गया।
सोहनलाल खाली गिलास रखकर वापस लौटा।
“दो-चार और ले ले-1” सोहनलाल ने कहा।
“नहीं।” उसकी आवाज नशे में लड़खड़ा रही थी- "इस वक्त ड्यूटी पर हूं। एक पैग ज्यादा हो गया लगता है। खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा है। आपने मेरी बहुत सेवा की। आपके जुड़वां बच्चे लम्बी उम्रे पायें ।”
“जब तेरे को यार मान लिया तो फिर सेवा वाली बात कहां से आ गई। अभी हमने डिनर एक साथ करना है।"
“दो घंटे बाद मेरी ड्यूटी खत्म होगी।”
“कोई बात नहीं। दो घंटे बाद डिनर लेंगे। रुपये-पैसे की जरूरत तो नहीं तेरे को ?”
“पैसे की जरूरत तो सबको ही रहती है।” कहते हुए वो नशे वाली हंसी हंसा । उसके दांत दिखे।
“फिक्र न करो। डिनर के बाद तेरे को दस हजार दे दूंगा। मिलता रहूंगा। बाद में और दे दूंगा। तेरे को नहीं मालूम बहुत रईस हूं मैं। एक बार तो मैंने भिखारी को ढाई मंजिला मकान खरीदकर दे दिया था। “क्या कहा-!” नशे में वो पूरा हिला- “भिखारी को ढाई मंजिल मकान-।"
“बाद में बात करूंगा।" सोहनलाल बोला- "मुझे सू-सू आ रहा!"
“तो हलका होकर आ-जा - ।"
“यहां जाऊंगा। तेरे मालिक के बाथरूम में।"
“ठीक है। जब यारी हो गई तो परवाह किस बात की।” वो
स्टूल पर बैठा-झूमता कह उठा-“दरवाजा खोल और भीतर जा।"
"तेरा मालिक भीतर तो नहीं है?"
"नहीं। अभी तक वो आया नहीं- । शायद नहीं आये। उसका कोई भरोसा नहीं- ।
"ठीक है। मैं जाता हूं। सू-सू के साथ आगे का प्रोग्राम भी बन सकता है। कुछ देर भी हो सकती है।"
"चिन्ता मत कर। जाकर शानदार बाथरूम के मजे ले। तू भी क्या याद करेगा।"
“तू जाना नहीं। यहीं रहना। मैं अभी आया।” कहने के साथ ही सोहनलाल ने वो दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गया। सामने पैंतीस-चालीस फीट लम्बी गैलरी थी ।
गैलरी के दोनों तरफ छः दरवाजे नजर आ रहे थे। इस वक्त गैलरी में कोई भी नजर नहीं आ रहा था। बाररूम से आती मध्यम सी आवाजें कानों में पड़ रही थीं। सोहनलाल जानता था कि बंसीलाल का कौन सा ऑफिस है। वो तेजी से गैलरी में आगे बढ़ा और एक दरवाजे के सामने ठिठक कर दरवाजे का हैंडिल दबाया तो दरवाजा खुलता चला गया ।
सोहनलाल ने फुर्ती से भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर लिया ।
उस खूबसूरत ऑफिस में उसने नजरें दौड़ाईं। कोई भी नहीं था वहां । सोहनलाल ने जल्दी से अपना कोट उतारा और कुर्सी पर रख दिया। फिर कमीज उतार दी। उसके सूखे से पेट पर लैदर की चौड़ी बैल्ट बंधी नजर आई। सिर पर छोटे-बड़े ढेरों तरह के औजार लटके हुए थे।
सोहनलाल आगे बढ़कर दीवार के पास पहुंचा। दीवार पर पांच फीट की ऊंचाई पर फ्रेम में खूबसूरत सीनरी लगी हुई थी। सोहनलाल ने सीनरी दीवार से हटाकर नीचे रखी। अब सीनरी वाली जगह में दीवार में फिट लोहे की मजबूत तिजोरी नजर आने लगी। उसे देखते ही सोहनलाल की आंखों में चमक पैदा हो गई। वो जानता था कि कोई भी वहां आ सकता है। एक-एक पल कीमती था। बैल्ट में फंसे औजार निकाले और जल्दी से तिजोरी खोलने में व्यस्त हो गया।
तिजोरी मजबूत अवश्य थी, परन्तु सोहनलाल के लिये वो तिजोरी खास अहमियत नहीं रखती थी। छः सात मिनट की एकसार मेहनत के पश्चात् तिजोरी के लॉक्स बेकार कर दिये। उसके बाद तिजोरी का छोटा सा दरवाजा खोला तो भीतर नोटों की ठुसी गड्डियां नजर आईं। पास ही दो थैलियां थीं छोटी-छोटी । सोहनलाल ने थैलियों को उठाया और खोलकर भीतर देखा ।
दोनों थैलियों में कीमती हीरे थे।
सोहनलाल ने थैलियां पैंट की जेबों में डालीं और नोटों की गड्डियां समेटने जा रहा था कि ठिठक गया। बंसीलाल की शांत किन्तु कठोर आवाज कानों में पड़ी।
“बहुत करामाती हाथ हैं तेरे। इतना आसान नहीं था तिजोरी को खोलना। जितनी आसानी से तुमने इसे खोल लिया ।” सोहनलाल उसी पल पलटा ।
दरवाजे के बीचों-बीच उसने बंसीलाल को खड़े पाया। हाथ में रिवाल्वर दबी हुई थी। चेहरे पर कहर के भाव नाच रहे थे । सोहनलाल ठगा सा उसे देखता रह गया। वो पहले से ही जानता था कि बंसीलाल जैसे गैंगस्टर की तिजोरी पर हाथ डालना खतरनाक काम था। लेकिन खतरा उठा लिया था। सफल भी हो गया था । परन्तु आखिरी वक्त पर फंस गया।
उसे मालूम था कि बंसीलाल से नरमी की आशा रखना बेकार है। औजारों से खेलने वाला सोहनलाल हथियार को आमतौर पर पास नहीं रखता था। इस वक्त भी वो बे-हथियार था ।
बंसीलाल आगे बढ़ा और जूते से दरवाजा बंद करके सोहनलाल की तरफ बढ़ने लगा ।
"बहुत बड़ी हिम्मत का काम किया तूने। बंसीलाल की जेब में हाथ डालने की सोचकर तेरे को डर नहीं लगा। शेर के मुंह में हाथ नहीं डालते। तेरे को किसी ने बताया नहीं क्या ?"
सोहनलाल की तो वास्तव में हवा खिसक चुकी थी। वो जानता था कि उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि बंसीलाल से बचकर भाग सके। बंसीलाल के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो उसे जिन्दा छोड़ने वाला नहीं ।
बंसीलाल ने उसकी जेब से हीरों की थैलियां निकाली और तिजोरी में रखकर तिजोरी बंद की।
सोहनलाल की नजरें बंसीलाल पर थीं।
“जा। कपड़े पहन ले – ।" बंसीलाल ने खतरनाक स्वर में कहा। सोहनलाल उसी पल आगे बढ़ा और कुर्सी पर रखी कमीज और कोट पहनने लगा।
बंसीलाल अपनी कुर्सी पर बैठ गया। रिवाल्वर हाथ में ही थी।
“नाम बोल - ।” बंसीलाल कड़वी निगाहों से उसे घूरते हुए - बोला ।
“सोहनलाल - ।”
“काम क्या करता है?"
“यही काम करता हूं।” सोहनलाल गम्भीर स्वर में कहते हुए कपड़े पहन रहा था
“मेरे माल पर हाथ
डालते डर नहीं लगा ?”
“लगा था।" सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा- "लेकिन जब ये जाना कि तुम्हारी तिजोरी से बहुत अच्छी रकम मिल सकती है तो इस तिजोरी पर हाथ फेरने की हिम्मत कर ही ली।”
“तू क्या समझता है यहां से जिन्दा बच जायेगा? मैं तेरे को छोड़ दूंगा?” बंसीलाल के स्वर में मौत भर आई थी । सोहनलाल ने उसकी आंखों में झांका
“मैं जानता हूं तुम नर्मी दिखाने वालों में से नहीं हो। इसलिए इधर-उधर की बात करना बेकार है।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा -“लेकिन मैं खामखाह मरना भी नहीं चाहता। अपने को बचाने के लिये तुम्हारा कोई भी बड़े से बड़ा काम कर सकता हूं।"
“कैसा काम ?”
“कहीं तिजोरी वॉल्ट-स्ट्रांग रूम खोलना हो तो - ।”
“मुझे ऐसा कोई काम नहीं है।" बंसीलाल दरिन्दगी से कह उठा- “तूने मेरे ठिकाने पर आकर मेरी तिजोरी से माल उड़ाने की बड़ी हिम्मत की है। मैं तेरे को जिन्दा नहीं छोड़ सकता। लेकिन अभी नहीं मारूंगा। यहां बहुत भीड़ है। गोली की आवाज सुन लेंगे लोग। आधी रात के बाद तू मरेगा। तब तक कैद में रहेगा।”
“मेरे बचने का कोई रास्ता हो तो बता दो।” सोहनलाल
बोला
– “मैं तुम्हारे कई काम आ सकता हूं।" -
- “मेरे पास पहले से ही बहुत फालतू आदमी हैं।" बंसीलाल ने पूर्ववतः स्वर में कहा और साथ ही टेबल के नीचे लगे बेल के स्विच को दबा दिया। वो खा जाने वाली निगाहों से सोहनलाल को देख रहा था ।
और सोहनलाल सोच रहा था कि अपनी जान कैसे बचाये ?. आधा मिनट ही बीता होगा कि एक व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया। "बुलाया बंसी भाई?” वो बोला। फिर उसकी नजर रिवाल्वर और सोहनलाल पर पड़ी।
“बाहर सब ठीक है?" बंसीलाल रिवाल्वर जेब में डालते हुए बोला। “हां । दोसा और बाटला के आदमियों की नजर यहां के जरें-जरें पर है।" उसने कहा।
“ फिर ये आदमी यहां तक कैसे पहुंच गया?" बंसीलाल के दांत भिंच गये ।
उससे कुछ कहते न बना ।
"बाहर जो दरवाजे के पास हमारा आदमी खड़ा है, उसने जरूरत से ज्यादा पी रखी है। शायद इसी ने पिलाई होगी। ये मेरी तिजोरी खाली कर रहा था। इसे बेसमेंट में डाल दो। बाहर वाले को स्टोर रूम में डाल दो। जब उसका नशा उतरेगा तब उससे बात करूंगा।”
"ठीक है बंसी भाई।” इसके साथ ही उसने रिवाल्वर निकालर सोहनलाल की तरफ कर दी- “चलो- ।”
अभी तो मुझे कैद में डाल रहे हो।” सोहनलाल ने गम्भीर
“स्वर में कहा- “सोच लेना, मेरे लायक कोई काम तुम्हें याद आ जाये । इस लेन-देन में शायद मेरी जान बच जाये।”
“ले जाओ इसे ।” बंसीलाल ने कड़वे स्वर में कहा ।
उस व्यक्ति ने रिवाल्वर सोहनलाल की कमर से लगाई और बां पकड़ कर उसे बाहर लेता चला गया। गैलरी में स्टाफ का ही एक आदमी सामने पड़ा। लेकिन उसने ये सब होता देखकर परवाह नहीं की। जैसे ऐसा होना उसके लिये मामूली बात हो ।
सोहनलाल को लिये वो एक दरवाजे के सामने ठिठका। “दरवाजा खोलो।”
सोहनलाल ने दरवाजा खोला तो वो उसे धकेलता हुआ भीतर ले गया ।
और ये कमरा प्राइवेट किचन बना रखा था। बहुत साफ-सुथरा जरूरत का हर सामान वहां पर मौजूद था। एक तरफ दीवार में लकड़ी की बहुत बड़ी अलमारी लगी थी। लकड़ी के पल्लों के सबसे ऊपर लगे शीशों में से भीतर रखे कप-प्लेट और केतली नजर आ रहे थे।
दोनों उस अलमारी के पास पहुंचे।
“अलमारी खोलो।" सोहनलाल की कमर से रिवाल्वर लगाये वो व्यक्ति कठोर स्वर में बोला ।
“मेरे से चाय बनावाओगे क्या?” सोहनलाल बचने का मौका
ढूंढ रहा था। लेकिन वो व्यक्ति पूरी तरह सावधान था । “जो कहूं वो कर।"
सोहनलाल ने लकड़ी की अलमारी का पल्ला खोला।
अलमारी में कोई खाना नहीं था। ऊपर जगह थी वहां जहां रखे कप-प्लेट बाहर से ही नजर आ रहे थे। सामने सपाट-सी दीवार थी। कमर से रिवाल्वर लगाये उस व्यक्ति ने भीतर हाथ डालकर साईड में लगा छोटा सा बटन दबाया तो अलमारी के भीतर वाली दीवार बीच में से अलग होकर दायें-बायें सरक गई। वो लोहे के मवजूत पल्ले थे। जिस पर दीवार जैसा पैंट किया हुआ था ।
पल्लों के सरकते ही नीचे सीढ़ियां नजर आईं। “जाओ। नीचे उतर जाओ।"
"ये - ये क्या है?”
"बेसमैंट है। तुम जैसे कुत्तों को कैद करने के लिये ये जगह बना रखी है।" उसने भिंचे स्वर में कहा।
"कुत्तों को?” सोहनलाल के होंठों पर व्यंग्य से भरी मुस्कान उभरी।
“चल नीचे।"
उसने कमर पर रखी रिवाल्वर का दबाव बढ़ाया। सोहनलाल जानता था कि उसका कमजोर शरीर इस व्यक्ति का मुकाबला नहीं कर पायेगा। यूं ही कुछ करके वक्त से पहले मौत को बुलाना समझदारी नहीं थी ।
“मुझे भूल मत जाना। खाना वगैरह देते रहना। "
"फिक्र मत कर।" उसने खा जाने वाले स्वर में कहा- “खाने साथ पानी के बदले कोका कोला दूंगा।"
“भला हो तेरा। मुफ्त का माल मिलेगा। बिल भी नहीं देना पड़ेगा।" उसने सोहनलाल को पुनः आगे धकेला ।
सिर झुकाकर सोहनलाल ने अलमारी वाले रास्ते में प्रवेश किया और मध्यम-सी रोशनी में नजर आ रही सीढियां उतरने लगा। तभी
पीछे से दरवाजा बंद हो गया।
सोहनलाल सीढ़ियां उतर गया। मध्यम-सी रोशनी थी वहा । कुछ ही देर में उसकी मुलाकात थापर से हो गई। बातचीत के दौरान सोहनलाल को थापर से पता चला कि देवराज चौहान किस काम में व्यस्त है।
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