उस काली इमारत से बहुत दूर मैदान जैसी खुली जगह में मोना चौधरी, जगमोहन, पारसनाथ, सोहनलाल, महाजन, राधा, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव बैठे थे। जब वे दोनों इमारत से बाहर आये तो उन सबके चेहरे खुशी से भर उठे थे। वरना वो तो आशा ही छोड़ चुके थे उनके बाहर आने की।

क्योंकि जब उन्हें वापस आने में देर होने लगी तो बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव ने भीतर जाने का प्रोग्राम बनाया, परन्तु खुले गेट से भीतर जब पांव रखना चाहा तो पांव भीतर नहीं रख सके। ऐसा लगा जैसे रास्ते में कोई रुकावट खड़ी कर दी हो। सबने ही भीतर जाने की कोशिश की, परन्तु कोई सफल नहीं हो सका।

परेशान हो गये सब कि ये क्या हो रहा है।

उन्होंने गेट फलांग कर भीतर जाना चाहा तो भी उन्हें ऐसा ही लगा कि जैसे किसी ने उन्हें भीतर जाने से रोक दिया हो। हर कोशिश कर ली परन्तु कोई भी भीतर नहीं जा सका।

ऐसा होने पर वे समझ गये कि मोना चौधरी और जगमोहन किसी मुसीबत में फंस गये हैं। उनकी सहायता के लिये वे न तो भीतर जा पा रहे थे और न ही वहां से कहीं और जाने की इच्छा हो रही थी। जायें तो जायें कहां! शैतान की धरती पर उनकी स्थिति हर तरफ एक जैसी ही थी।

ऐसी बुरी सोचों के वक्त के बीच जब दोनों को बाहर आते देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

उन्होंने बताया कि भीतर मोगा था और वहां क्या-क्या हुआ। ये सुनकर राधा ने महाजन से कहा कि वो भागकर, इमारत में से शैतानी शक्तियां और शैतानी हथियार ले आयें।

बाकी सब भी भीतर चलने के लिये तैयार हो गये।

परन्तु मोना चौधरी ने उन्हें रोक दिया कि मोगा तो मर गया। हो सकता है भीतर कोई और भी हो। या फिर किसी रूप में वहां मुसीबत मौजूद हो। अब भीतर जाना किसी भी स्थिति में ठीक

नहीं होगा।

मोना चौधरी की बात सबको ठीक लगी।

मोगा के मुताबिक उनके लाये हथियार और शैतानी ताकतों वाले मोती सिर्फ उनके हक में ही काम कर सकते थे। अगर वे किसी को देते हैं तो ताकतें उनके लिये काम नहीं कर करेंगी।

उसके बाद वे सब वहाँ से दूर खुले मैदान की छत पर जा बैठे थे। शैतान की जमीन पर भागदौड़ का सिलसिला जारी था। लोगों को व्यस्तता भरे अंदाज में आता-जाता देखा जा सकता था। वाहन भी आ-जा रहे थे।

“अब हमारे पास शैतानी ताकतें और शैतानी हथियार आ गये हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसे में शैतान की ताकतों का हम मुकाबला कर सकते हैं। अब हमें पहले की तरह चिन्ता करने की जरूरत नहीं-।”

“गलत कह रहे हो जगमोहन-।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी-“प्रेतनी चंदा और द्रोणा को शैतान ने पुनः जीवन दे दिया था। उनकी शक्तियां उन्हें लौटा दी गई हैं कि वे हमें समाप्त कर सकें। कभी भी उनसे हमारा सामना हो सकता है। शैतान की धरती पर, उनसे जीत पाना आसान काम नहीं।”

मोना चौधरी की बात पर सब चौंके।

“प्रेतनी चंदा जिन्दा हो गई। उसे तो मार दिया था।” राधा के होंठों से निकला।

“बाप-!” रुस्तम राव के होंठों से निकला-“शैतान के अवतार को मोना चौधरी, प्रेतनी चंदा के खंजर से मारेला। फिर बा कैसे जिन्दा होईला बाप-।”

“यो तो शैतान की माया हौवे छोरे।” बांकेलाल राठौर व्याकुल

स्वर में बोला-“वडने के बादो भी वो जिन्दो हो गयो। म्हारे को

तो धारी बोत चिन्ता लगो हो। थारा का हौवे।”

“आपुन नेई समझेला बाप-।”

“प्रेतनी चंदा थारी वार से ही मरो हो। तन्ने तब समझदारी से काम लयो तो वो जीतो जाती। मोना चौधरी को वो ‘वड’ देती। ईब वो थारे को स्पेशल नोट करो हो।”

“आपुन नेई मरेला प्रेतनी चंदा से।” जालिम छोकरा गुर्रा उठा-“आपुन फिर उसे मारेला।”

“जोशो में होशो मत छोड़ो छोरे। यो गम्भीर बात हौवो।”

“ये तो बहुत बुरी खबर है।” महाजन ने कहा और बोतल में घूंट भरा।

“नीलू! मैं जानती हूं तू बहादुर है। किसी से डरता नहीं। शैतान और प्रेतनी के चक्कर में पड़ने से तो अच्छा है कि हम वापस काला महल में जाकर बैठ जायें। काली बिल्ली ने बताया था कि जो काला महल के भीतर होगा, उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा।”

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।

पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा।

“ये बुरी खबर है हम सबके लिये। शैतान की धरती पर द्रोणा और प्रेतनी चंदा से मुकाबला करना बेहद कठिन होगा।”

“छोरे!” बांकेलाल राठौर व्याकुल स्वर में बोला-“ईब का हौवे?”

“तमाशा देखेला बाप। आपुन नेई छोड़ेला दोनों को।”

बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव को देखा और गहरी सांस लेकर रह गया।

“रुस्तम!” जगमोहन ने भिंचे स्वर में कहा-“द्रोणा और प्रेतनी चंदा के पुनः जिन्दा होने और शैतान के आदेश पर हमें खत्म करने का मामला बहुत गम्भीर है। बाद में क्या होगा मालूम नहीं। लेकिन हममें से कई तो पक्का मरेंगे।”

“थारी बातो बीसो आनो सच्चो हौवे।”

मोना चौधरी ने सोच भरे गम्भीर स्वर में कहा।

“मेरे ख्याल से हम ऐसे हालातों में आ फंसे हैं कि हमें चिन्ता छोड़कर मुकाबले की तैयारी के बारे में सोचना चाहिये। द्रोणा और प्रेतनी चंदा जाने कब हमें अपनी शैतानी शक्तियों से घेर ले। कहीं ऐसा न हो कि उनका घिराव इतना सख्त हो कि मुकाबले के लिये हम अपने हाथ पांव भी न हिला सकें।”

मोना चौधरी की बात सबको ठीक लगी कि उन्हें आने वाले हालातों के प्रति बेहद सतर्क रहना चाहिए। अपने बचाव में जो कर सकें, वो पहले ही कर लेना चाहिये।

☐☐☐

नगीना, जानकीदास के साथ सीढ़ियों से नीचे उतर आई। हर तरफ तीन प्रकाश फैला था। वहां से चार दिशाओं में, चार रास्ते जा रहे थे। गोलाई लिए ये बहुत खूबसूरत गोलराहा था।

नगीना ने वापस सीढ़ियों की और ऊपर के रास्ते को देखा।

“ये रास्ता खुला ही रहेगा?” नगीना ने पूछा।

“नहीं। पांच मिनट का वक्त होता है। रास्ता खुलने और बंद है होने के बीच।” जानकीदास ने कहा-“पांच मिनट पूरे होने ही वाले होंगे। कुछ ही देर...वो देखो-रास्ता-।”

नगीना ने जल्दी से ऊपर देखा।

जिस रास्ते से उन्होंने सीढ़ियों पर पांव रखा था। वो रास्ता अब धीरे-धीरे बंद होने लगा था और फौरन ही बंद हो गया। फिर हौले से कम्पन हुआ। कम्पन हौले-हौले होता रहा।

“फर्श में कम्पन क्यों हो रहा है?” नगीना के होंठों से निकला।

“जिस जगह पर हम खड़े हैं। ये जगह कहीं और से हट कर यहां आई है और शायद अब वापस जा रही है। इस कम्पन की असल वजह सिर्फ यही हो सकती है।”

उसी पल ही कम्पन उठना बंद हो गया।

नगीना ने बंद हुए सीढ़ियों वाले रास्ते को देखा फिर अन्य जगहों की तरफ।

“अगर हमने बाहर जाना हो तो हमें रास्ता कहां से मिलेगा?” नगीना ने जानकीदास को देखा।

“मैं नहीं जानता। लेकिन इतना तो मालूम है कि एक सौ आठ रातों के बाद ये रास्ता पांच मिनट के लिये अवश्य-।”

“एक सौ आठ रातों के बाद-।” नगीना के होंठ भिंच गये।

“लेकिन मुझे तो पन्द्रह दिन पहले वापस पहुंचना है। वरना अनर्थ हो जायेगा। महामाया ने शैतानी शक्ति छोड़ रखी है। उस शक्ति ने ठीक पन्द्रहवें दिन काला महल को जलाकर रख कर देना है, जिससे हम वापस नहीं जा पायेंगे। उसमें और भी कीमती चीजें हैं।”

“कीमती चीजें-?” जानकीदास ने कहा।

“हां। गुरुवर की शक्तियां और-।” नगीना पल भर के लिये

खामोश हुई फिर कह उठी-“खैर छोड़ो जानकीदास। बाहर निकलने के और भी रास्ते होंगे। पहले मैं देवराज चौहान की आत्मा हासिल कर लूं। उसके बाद रास्ता भी ढूंढ लेंगे।”

“ठीक कहती हो। मैं भी जल्दी से अपने बेटे की आत्मा पा लेना चाहता-।”

नगीना की निगाहें नजर आने वाले चार रास्तों पर घूम रही थीं।

“तुमने तो कहा था कि यहां एक रास्ता है।” नगीना बोली-“लेकिन यहां तो चार रास्ते हैं।”

“मैंने कहा था यहां से एक रास्ता वहां जाता है, जहां शैतान आत्माओं को कैद रखता है।”

“हां। शायद-।”

चारों रास्ते एक-जैसे नजर आ रहे थे।

“कौन-सा रास्ता आत्माओं के कैदखाने की तरफ जाता है?” नगीना ने जानकीदास को देखा।

जानकीदास ने एक रास्ते की तरफ देखा।

“ये रास्ता आत्माओं के पास ले जायेगा हमें।”

“यकीन है?”

“पक्का। इस बात की मुझे अच्छी तरह जानकारी है।” जानकीदास ने आगे बढ़ते हुए कहा-“आओ।”

जानकीदास उस रास्ते में प्रवेश कर गया।

तलवार को सतर्कता से थामे नगीना भी उस रास्ते में प्रवेश कर गई।

पक्के-चमकदार फर्श का रास्ता था वो। रोशनी कहां से उस रास्ते पर आ रही थी, ये तो मालूम नहीं हो पा रहा था। परन्तु तीव्र प्रकाश था वहां। जानकीदास दो कदम आगे चल रहा था और नगीना पीछे।

“तुम तो इस तरह रास्ते पर आगे बढ़ रहे हो, जैसे पहले भी कई बार आ चुके हो।” नगीना ने कहा।

“मैं पहली ही बार इस रास्ते पर आया हूं।” जानकीदास ने शांत स्वर में कहा-“परन्तु जब महामाया की सेवा में था और उसकी

बातें सुनता था, उससे ये रास्ता पूरी तरह मुझे पहचाना-सा महसूस होता है। तुम अच्छे वक्त पर मुझे मिल गई। अगर गलती से इस रास्ते पर अकेली आ जाती तो, जाने कैसी मुसीबत में फंस जाती।”

नगीना जानकीदास के पीछे चलती रही।

कुछ आगे जाने पर वो रास्ता बाई तरफ मुड़ गया।

आगे रास्ता बन्द था।

दोनों ठिठक गये।

“आगे दीवार है।”

“हां।” जानकीदास ने सोच भरी निगाहों से नगीना को देखा-“इस दीवार को हटाने की तरकीब आती है मुझे।”

“कैसे?”

“नीचे देखो। फर्श के पास, दीवार में एक छोटा-सा हुक लगा हुआ है।” जानकीदास ने नीचे देखा-“उसे पकड़कर खींचो।”

नगीना दो कदम आगे बढ़ी। पांवों के बल नीचे बैठी। दीवार में धंसा छोटा-सा हुक उसे दिखाई दिया।

“इस हुक की बात कर रहे हो।” नगीना ने हुक को छूते हुए कहा।

“हां-। इसे सख्ती से पकड़कर, अपनी तरफ खींचो।”

नगीना ने उंगलियों से हुक को सख्ती से पकड़ा और अपनी तरफ खींचा।

हाथ को हल्का-सा झटका लगा। हुक दो इंच बाहर आ गया।

इसके साथ ही वो दीवार धीमे से ऊपर की तरफ उठने लगी। नगीना ने तुरन्त हुक को छोड़ दिया और उठ खड़ी हुई। दीवार ऊपर उठती जा रही थी। दीवार के पार गहरी खाई जैसी जगह नजर आने लगी। ये देखकर नगीना फौरन एकदम पीछे हट गई। उठती दीवार, छः फीट ऊपर जाकर ठहर गई। आगे जाने के लिये रास्ता बन गया था, परन्तु आगे जायें कहां। दो कदम आगे ही खाई थी। आगे बढ़े और नीचे गिरे।

“आगे तो रास्ता ही नहीं है। खाई है।” नगीना के होंठों से निकला।

“रास्ता है। मेरी मजबूरी है मैं आगे नहीं जा पाऊंगा।” जानकीदास शांत स्वर में बोला-“आगे तुम्हें ही जाना होगा।”

“क्या मतलब।” नगीना ने पलटना चाहा-“मैं-।”

तभी जानकीदास ने फुर्ती के साथ नगीना को पूरी ताकत से धक्का दे दिया।

इस बात के लिये नगीना बिल्कुल भी तैयार नहीं थी।

उसके पांव उखड़े और किसी खम्बे की तरह खुली खाई में गिरती चली गई। जानकीदास के कानों में नगीना की चीख पड़ती रही। फिर दूर होती चीख थम गई।

जानकीदास की आंखों में तीव्र चमक और होंठों पर खुशी से भरी मुस्कान थी। उसने नीचे झांकने की चेष्टा नहीं की। हाथ ऊपर करके नगीना द्वारा खींची गई हुक को दबाया तो वो दीवार नीचे आने लगी। जब वो दीवार पहले की तरह नीचे आ गई। रास्ता बन्द हो गया तो पलट कर वापस चल पड़ा।” जानकीदास के बारे में पाठकों ने कुछ पहले पढ़ा ही है कि नगीना के साथ जाने के कुछ पश्चात ही वापस झोपड़ी में पार्वती के पास आ गया था।

☐☐☐

नगीना तेज रफ्तार के साथ नीचे गिरती जा रही थी। जितना दम था, वो चीखी थी। परन्तु चीखना भी शांत पड़ गया था। उसे महसूस हो चुका था कि वो अब नहीं बच सकेगी। अंत आ गया है। इतना कुछ होने के बाद भी हाथ में दबी तलवार जुदा नहीं हुई थी। पंजा तलवार के हत्थे के गिर्द लिपटा हुआ था।

तेजी से नीचे जाते नगीना के शरीर को हल्का सा झटका लगा। उसके नीचे जाने की रफ्तार कम हो गई। वो बेहद मध्यम गति के साथ नीचे जाने लगी थी फिर कुछ देर बाद उसका शरीर थम गया। हवा में लटका था नगीना का शरीर। चेहरे पर बदहवासी फैली थी। नगीना ने हर तरफ निगाह मारी। उसने खुद को प्याले समान गहरी घाटी में पाया। नीचे, बहुत नीचे, खाई-घाटी का अंत था ऊपर देखती तो बहुत ऊपर फैले घाटी के किनारे नजर आते। उनके बीच में से आसमान दिखाई दे रहा था। खुद वो हवा में लटकी धीरे-धीरे डोल रही थी।

नगीना खुद को अजीब-सी स्थिति में महसूस कर रही थी।

इतना तो वो समझ ही चुकी थी कि जानकीदास धोखा था। उसे फंसाने के लिये। देवराज चौहान की आत्मा लेने आई थी और खुद ही फंस गई थी।

“बाबा-।” नगीना के होंठ हिले।

“धोखा खा गई नगीना बेटी।” पेशीराम के शब्द उसके मस्तिष्क से टकराये।

“हां-।” नगीना के चेहरे पर दुःख के भाव उभरे-“धोखा खा गई। मुझे अपना गम नहीं, बल्कि इस बात का गम है कि जिस काम के लिये निकली थी वो अधूरा रह गया।”

“तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता तो वो भी धोखा खा जाता।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क की तरंगों को महसूस हुए-“कोई गलती नहीं है तुम्हारी। जो हुआ उसे रोक पाना तुम्हारे बस में नहीं था।”

“मैं कैसे हवा में लटकी हुई हूँ? मेरे साथ क्या हो रहा है?” नगीना बुदबुदाई।

“नहीं जानता कि अब क्या होगा और-।”

“यो देखो। बाबा उधर-।” नगीना एक तरफ देखती बुदबुदा उठी।

चाँदी जैसा चमक रहा था वो पिंजरा। जो कि हवा में लहराता इस तरफ बढ़ रहा था। वो आठ फीट लम्बा और चार फीट चौड़ा था। नगीना के देखते ही देखते वो पास आकर नीचे झुका। नगीना ने देखा कि पिंजरा ऊपर से खुला है। नीचे से पिंजरे का खुला हिस्सा ऊपर होने लगा। देखते ही देखते नगीना के पांव और टांगें पिंजरे में चली गई। फिर वो पिंजरा ऊपर होता चला गया। नगीना का हवा में लटकता शरीर, पूरी तरह पिंजरे में आ गया था। तभी जाने कहां से आकर पिंजरे के ऊपर के हिस्से पर ढक्कन आ लगा।

नगीना असमंजसता-उलझन और परेशानी में नजर आ रही थी। सब कुछ समझ कर भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके साथ ये सब क्या हो रहा है।

तभी वो पिंजरा तेजी से एक तरफ बढ़ने लगा। उसकी रफ्तार बढ़ती ही जा रही थी।

पिंजरे के हर तरफ मोटी-मोटी सलाखें थीं।

“बाबा!” नगीना के होंठ हिले-“शैतान मुझे अपनी कैद में ले चुका है।” नगीना भिंचे दांतों से बड़बड़ाई।

“तुम सच कह रही हो।” पेशीराम के शब्दों में चिन्ता भरी हुई थी।

पांच मिनट पश्चात वो पिंजरा एक समतल जमीन पर पहुंचकर उतर गया।

नगीना ने हर तरफ नजरें दौड़ाई।

जंगल जैसा नजारा था। कोई भी दिखाई न दिया।

“नगीना बेटी। तेरे को यही पर कैद भुगतनी होगी।” पेशीराम की आवाज परेशान थी-“तभी इस पिंजरे को यहां रखा गया है। तू चिल्ला के पूछ कि किसने तेरे को कैद किया है?”

अगले ही पल नगीना ऊंचे स्वर में चीखी।

“किसने मुझे कैद किया है? कौन है? जो भी है। सामने आये-।”

तभी नगीना के देखते ही देखते चंद कदमों के फासले पर धुआं सा उठा फिर वो धुआं आकृति का रूप लेने लगा। चंद क्षणों में धुएं की आकृति असल व्यक्ति के रूप में नजर आने लगी। पैंतीस बरस का व्यक्ति था वो। सेहमतंद। ऊंचा कद। मूंछ। बाल पीछे को संवारे हुए। बदन पर सिर्फ धोती ही थी।

नगीना हैरान भरी निगाहों से उसे देखने लगी।

“बंगा है मेरा नाम।” उसने बेहद सामान्य स्वर में कहा-“सौदागर सिंह का हुक्म मानता हूँ। उस दरवाजे से जो भी घाटी से नीचे गिरेगा। उसे पिंजरे में कैद करके, यहां रखने और कैदी की देखभाल का काम मेरे हवाले है।”

तभी नगीना के मस्तिष्क को हल्का-सा झटका लगा। नगीना को अपने हाथ-पांव-हरकतें कंट्रोल से बाहर होती लगीं। वो समझ गई कि फकीर बाबा की आत्मा ने पूरी तरह उसके मस्तिष्क पर अधिकार पा लिया है।

“सौदागर सिंह ने तेरे को ये आदेश दिया है।” नगीना के होंठों से तेज स्वर निकला।

“हां।” बंगा ने शांत स्वर में कहा।

“झूठ बोलता है तू। सौदागर सिंह तो ढाई सौ बरस से शैतान की कैद में है।”

“मैं उससे पहले की बात कर रहा हूं जब सौदागर सिंह ने अपने चक्रव्यूह का निर्माण किया था। तब उसने ये काम मेरे हवाले किया था।” बंगा ने पहले वाले स्वर में कहा।

“तेरा मालिक सौदागर सिंह शैतान की कैद में है और तू यहां है।” नगीना ने तीखे स्वर में कहा-“सौदागर सिंह को शैतान की कैद से आजाद करवा। अपने मालिक के हक में अच्छा काम कर।”

“सौदागर सिंह को शैतान की कैद से आजाद करवाना मेरे बस में नहीं है।” बंगा के होंठों पर पहली बार मुस्कान उभरी-“लेकिन इतना जान चुका हूं कि सौदागर सिंह बहुत जल्द आजाद होने वाला है।”

“तूने कैसे जाना?”

“शैतान और महामाया की बातें सुन लीं थीं दस बरस पहले। शैतान मंत्रों की शक्ति इस्तेमाल करके महामाया को बुलाकर बातें कर रहा था। मेरी आत्मा छिपकर वहीं थी। सब सुना मैंने सौदागर सिंह की बात को लेकर महामाया गुस्से में थी और शैतान परेशान था कि सौदागर सिंह, उसका साथ देने को तैयार नहीं हो रहा। उनकी बातों का मुद्दा ये था कि सौदागर सिंह की कैद समाप्त होने वाली है।”

“ये बातें तूने दस बरस पहले सुनी थीं।”

“हां।”

“तो सौदागर सिंह आजाद क्यों नहीं हुआ?”

“मैं नहीं जानता। मुझे तो इन्तजार है सौदागर सिंह के आजाद होने का।”

“शैतान ने तुझे कभी नहीं पकड़ा-।”

“सौदागर सिंह ने ऐसी शक्ति मुझे दे रखी है कि कोई भी मुझे कैद नहीं कर सकता।”

“तू पूछेगा नहीं कि मैं कौन हूं। और यहां क्यों आई हूं-।”

“तुम अब यहीं रहोगी। मैं तुम्हारे पास आता रहूंगा। बातें होंगी तो सब मालूम हो जायेगा।”

“मुझे खाना-पीना कौन देगा और-।”

“मैं तुम्हारी हर वो सेवा करूंगा, जो तुम कहोगी। सौदागर सिंह का हुक्म है कि हर कैदी को पूरी इज्जत दी जाये। मेरी निगरानी में तुम पिंजरे से बाहर निकलकर टहल भी सकती हो।” बंगा ने शांत स्वर में कहा-“मैं कुछ देर बाद आता हूं। जरूरी काम है।” इसके साथ ही देखते ही देखते बंगा एकाएक गायब हो गया।

उसी पल नगीना के मस्तिष्क को झटका लगा और बेकाबू हुए हाथ-पांव सामान्य महसूस होने लगे।

“बाबा!” नगीना के होंठ हिले।

“हां-।”

“मैंने सब सुना। अब क्या किया जाये? मुझे यहां से आजाद होना है।”

“नहीं। तुम इतनी आसानी से यहां से आजाद नहीं हो पाओगी?” पेशीराम की आवाज मस्तिष्क को महसूस हुई-“ये सौदागर सिंह का चक्रव्यूह है और बंगा ने सौदागर सिंह के हुक्म से ही तुम्हें कैद किया है। ऐसे में बंगा सौदागर सिंह के हुक्म के बिना तुम्हें आजाद नहीं करेगा। किसी के पास बंगा से ज्यादा शक्ति हो तो, शायद वो उन्हें आजाद करा सके।”

नगीना की आंखों में आंसू चमकने लगे।

“ये तो बहुत बुरा हुआ बाबा। मैं भी कैद हो गई। देवराज चौहान की आत्मा भी न ला सकी।”

“फिर भी तुम बची रहोगी।” पेशीराम का गम्भीर स्वर मस्तिष्क से टकराया-“सौदागर सिंह ने बंगा को आदेश दे रखा है कि जो भी उस दरवाजे से घाटी में गिरे, उसे कैद करना है। जान नहीं लेती उसकी। ऐसे में तुम सुरक्षित हो कि-।”

“इसका मतलब मैं हमेशा कि लिये कैद हो गई-।” नगीना के होंठ हिले।

“हमेशा के लिये कैसे?”

“बंगा, सौदागर सिंह का हुक्म मानता है। जब तक बंगा को सौदागर सिंह का हुक्म नहीं मिलेगा, वो मुझे आजाद या दूसरा सलूक नहीं करेगा। मैं यहीं कैद रहूंगी।” नगीना के होंठ हिले-“और सौदागर सिंह, शैतान की कैद में है। शैतान की कैद से आजाद हुए बिना बंगा के पास नहीं पहुंच सकता। उसे अपने पास नहीं बुला सकता। उसे हुक्म नहीं दे सकता।”

“तुम ठीक कहती हो।” पेशीराम की गम्भीर आवाज नगीना के मस्तिष्क को छू रही थी-“सौदागर सिंह के आजाद हुए बिना

तुम भी आजाद नहीं हो सकतीं। और सौदागर सिंह को आजाद

कराना बहुत घातक हो सकता है।”

“फिर क्या किया जाये बाबा!” नगीना का तड़प भरा स्वर था-“मुझे अपनी फिक्र नहीं है। मैं जन्म-जन्म तक कैद रह सकती हूं। मैं तो देवराज चौहान को जिन्दा देखना चाहती हूं। मैंने सोचा था देवराज चौहान की आत्मा को यहां से ले जाकर, काला महल में मौजूद बिल्ली को सौंप दूंगी। बिल्ली आत्मा को पुनः शरीर में डालकर, देवराज चौहान को जिन्दा कर देगी। कुछ करो बाबा। किसी तरह देवराज चौहान की आत्मा को बिल्ली तक पहुंचा दो कि, वो देवराज चौहान को जिन्दा कर दे।”

“ऐसा कर पाना मेरे बस का नहीं है।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना के मस्तिष्क की तरंगों को छू रहा था-“मेरा शरीर धरती पर है। मेरी शक्तियां धरती पर हैं। शक्तियों के साथ मेरी आत्मा शैतान के आसमान पर नहीं आ सकती थी। मैं किसी ऐसे इन्सान को ढूंढता हूं जो बंगा को हटाकर तुम्हें कैद से मुक्ति दिला सके। और देवराज चौहान की आत्मा को, शैतान के कैदखाने से निकालकर, काला महल में मौजूद काली बिल्ली तक पहुंचा सके।”

“शैतान के आसमान पर भला ऐसा कौन मिलेगा जो शैतान के खिलाफ-।”

“आने वाला वक्त मैं नहीं देख पा रहा नगीना।” पेशीराम के शब्द महसूस कर रही थी नगीना-“मेरी शक्तियां यहां मौजूद नहीं। फिर भी मेरे से जो हो सकेगा, मैं करूंगा। तुम्हारे शरीर में रहना वक्त बरबाद करना है बेटी। मैं तुम्हारे शरीर से जा रहा हूं। मालूम नहीं कभी वापस आ पाऊंगा या नहीं।” इसके साथ ही नगीना के शरीर और मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। फिर उसे सब कुछ सामान्य लगने लगा। वो समझ गई कि पेशीराम उर्फ फकीर बाबा की आत्मा उसके शरीर से निकलकर जा चुकी थी।

पिंजरे में कैद बुझे पन से नगीना हर तरफ नजरें घुमाने लगी जहां-जहां भी निगाह जाती, वहां-वहां तक वीरानी ही थी। जंगल जैसा नजारा ही हर तरफ था। दुःखी मन से नगीना ने गहरी सांस ली और पिंजरे में नीचे बैठ गई।

☐☐☐

वही छोटा-सा कमरा था। हर तरफ काली स्याही जैसा समां था।

कमरे के बीचो-बीच हवनकुंड में धुआं उठ रहा था।

शैतान उस कुंड की तरफ पीठ किए घुटनों के बल बैठा था। सामने पड़े थाल से सामग्री को मुट्ठी में भरता और अपने सिर के ऊपर से पीछे, कुंड की तरफ उछाल देता।

कुंड से निकलता धुआं वहां फैलता जा रहा था। मध्यम सी रोशनी में शैतान किसी साये की तरह लग रहा था। तभी कुंड से उठता धुआं सिमटने लगा और देखते ही देखते वो आकृति के रूप में हवा में ही ठहर गया। जैसे आकृति के पांव कुंड में हों। शैतान की उस तरफ पीठ थी।

“मैं आ गई शैतान।” महामाया की गूंजती-सनसनाती आवाज पूरे कमरे में फिर गई।

“महामाया-।” शैतान के होंठों से निकला। वो वैसे ही, उसी मुद्रा में बैठा रहा था।

“मैं खुद भी तुमसे मिलना चाहती थी शैतान। अच्छा हुआ जो तुमने मुझे बुलाया।” महामाया की आवाज पुनः गूंज उठी-“बता क्यों याद किया मुझे?”

“मेरी परेशानी बढ़ रही है।”

“मैंने तेरे को बताया था कि पन्द्रह दिन पूरे होते ही काला महल जलकर राख हो जायेगा। उसके भीतर जो भी होगा। वो भी नहीं बचेगा। गुरुवर की शक्तियां उसी महल में हैं। वो भी राख हो जायेंगी। फिर क्या परेशानी-।”

“वो मनुष्य यहां पर भी उल्टे काम कर रहे हैं। काली इमारत में जाकर हर शैतानी शक्ति को लूट लिया। शैतानी हथियार ले लिए। वहां के पहरेदार मोगा को भी मार दिया।

“इसमें मैं क्या कर सकती हूं-। इन बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं। ये सब संभालना तो तेरा काम है।”

“द्रोणा और प्रेतनी चंदा को कह चुका हूं कि उन्हें खत्म कर दिया जाये। लेकिन अब उनके पास काली इमारत से हासिल की शैतानी शक्तियां और हथियार हैं। वो मुकाबले पर उतर आयेंगे।”

“मामूली सा मामला तुम नहीं संभाल सकते।” महामाया की आवाज गूंजी।

शैतान ने कुछ नहीं कहा।

“अभी तक तूने वो बात नहीं कही जिसके लिये मुझे बुलाया। वो बात कर।”

“महामाया-!” शैतान की आवाज गूंजी-“उस आत्मा की तलाश की जा रही है, जो काला महल से अदृश्य होकर, इस जमीन पर घूम रहा है। देर-सवेर में वो मिल ही जायेगी। अगर तुम बता दो वो कौन है और उसमें दूसरी आत्मा किसकी मौजूद है तो-।”

“वो देवा की पत्नी नगीना है, जो अदृश्य होकर काला महल से बाहर निकली है।” महामाया के शब्द गूंजे।

“नगीना?” शैतान की आवाज गूंजी।

“हां।” महामाया की गूंजती आवाज में गम्भीरता आ गई थी-“देवा की पत्नी नगीना। गुरुवर से उसे अदृश्य रहने की शक्ति मिली है। यही वजह है कि वो किसी को नजर नहीं आ रही।”

“उसके शरीर में मौजूद दूसरी आत्मा किसकी है?” शैतान ने पूछा।

“मैं नहीं जानती। क्योंकि वो आत्मा शरीर से बाहर नहीं निकली। अगर निकली होगी तो मुझे खबर नहीं हुई। तब मैं अवश्य किसी काम में व्यस्त होऊंगी।” महामाया के शब्द कानों में पड़ रहे थे-“लेकिन इतना स्पष्ट है कि वो दूसरी आत्मा हमारी जमीन की नहीं है। वो नगीना के शरीर के भीतर रहकर उसकी मदद कर रही है।”

“लेकिन नगीना कर क्या रही है महामाया?”

“वो देवा की आत्मा लेने आई है।”

“देवा की आत्मा?”

“हां। अगर उसे देवा की आत्मा मिल गई तो काले महल में मौजूद गुरुवर की शक्तियां आत्मा को वापस शरीर में प्रवेश करा कर, कटी गर्दन जोड़कर, देवा को पुनः जीवित कर देंगी।”

“ओह-! किस रास्ते से नगीना देवा की आत्मा लेने गई है महामाया-।”

“सौदागर सिंह को तूने जहां कैद किया है।” महामाया की आवाज उस छोटे कमरे में गूंज रही थी-“मुझे नजर आ रहे थे वे सब। नगीना ने और नगीना के शरीर में मौजूद आत्मा ने, सौदागर सिंह से बात की। लेकिन उन्होंने सौदागर सिंह को तेरी कैद से मुक्ति नहीं दिलाई। नगीना के शरीर में जो आत्मा है, वो सौदागर सिंह के बारे में सब जानती है कि वो अब क्या शक्ति रखता है। यही वजह है कि उसे, तुम्हारी कैद से मुक्ति नहीं दिलाई।”

दो पलों की खामोशी के बाद शैतान ने कहा।

“सौदागर सिंह और नगीना के शरीर में मौजूद दूसरी आत्मा के बीच बातचीत हुई-?”

“हां।”

“तो सौदागर सिंह ने उस आत्मा को नाम से भी पुकारा होगा।”

“अवश्य। लेकिन मैं तुम्हें उसके बारे में बताऊंगी नहीं।” महामाया की आवाज गूंजी-“इतना अवश्य बता सकती हूं कि नगीना, सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में फंस चुकी है। सौदागर सिंह के द्वारा तैनात किए चक्रव्यूह के पहरेदारों ने ही नगीना को कैद में पहुंचा दिया है।”

“ओह! तो नगीना चक्रव्यूह वाले हिस्से में है।”

“हां-।”

“तब मैं आसानी से उसे ढूंढ सकता-।”

“कोई जरूरत नहीं। वो बंगा की कैद में है। वहां से निकल नहीं सकती। देवा की आत्मा तक नहीं पहुंच पायेगी। नगीना का ध्यान छोड़कर सौदागर सिंह की सोचो शैतान।” महामाया का स्वर गम्भीर था।

“सौदागर सिंह-।” शैतान की आवाज में न-समझी के भाव थे।

“हां, मैं सौदागर सिंह के बारे में ही बात कर रही हूं।” महामाया की आवाज में मौजूद गम्भीरता बढ़ गई थी-“दस बरस पहले तुम्हें बताया था कि उसकी कैद का समय पूरा होने वाला है। जितनी जल्दी हो सके, उसे अपने साथ काम करने को राजी कर लो। परन्तु तुम कामयाब नहीं हो सके। सौदागर सिंह के आजाद होने का वक्त आया तो मैंने अपनी शक्तियां इस्तेमाल करके उसकी कैद को जारी रखा। परन्तु तुम सौदागर सिंह को अपने साथ काम करने को तैयार नहीं कर सके। तुम्हारी कैद दो सौ चालीस बरस की थी। कैद के दस बरस मेरी शक्तियों ने बढ़ा दिए। दो सौ पचास बरस से सौदागर सिंह कैद में है। सौदागर सिंह के पास उसकी शक्तियों में एक ऐसी शक्ति भी है जिसे दो सौ पचास बरस से ज्यादा कैद में नहीं रखा जा सकता। उसी शक्ति की वजह से सौदागर सिंह पर से कभी भी कैद के बंधन हट सकते हैं।”

“ओह-!”

“सौदागर सिंह आजाद हो गया तो फिर क्या होगा शैतान-?” महामाया का स्वर सख्त हो गया।

“तबाही मच जायेगी। सौदागर सिंह के पास ऐसी शक्तियां हैं कि उसे संभालना कठिन हो जायेगा।”

“इसका जिम्मेवार कौन होगा?” महामाया की गूंजने वाली आवाज में गुर्राहट आ गई।

शैतान की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।

“जवाब दो शैतान-।”

“मेरे पास जवाब नहीं है महामाया।”

“सौदागर सिंह के आजाद होने और उसके द्वारा जो हालात पैदा होंगे उसके जिम्मेवार तुम हो। क्योंकि तुम सौदागर सिंह को अपनी सेवा में नहीं ले सके। ढाई सौ बरस यूं ही बिता दिए-।”

“मैंने बहुत कोशिश की थी महामाया-।” शैतान ने कहना चाहा।

“ऐसी कोशिश का क्या फायदा जो सफल न हो।” महामाया की आवाज में खतरनाक भाव थे-“सौदागर सिंह के पास गुरुवर की सिखाई शक्तियां भी हैं और शैतानी शक्तियां भी। वो बहुत ही समझदार है। ऐसा इन्सान हमारी सेवा में आ जाये तो बहुत ही बेहतर रहता। तुम नाकामयाब रहे, सौदागर सिंह को तैयार करने में।”

“मैंने बहुत कोशिश-।”

“यूं ही सफाई में कुछ कहने की जरूरत नहीं-।”

शैतान की तरफ से कोई जवाब नहीं आया।

“मुझे भी ऊपर जवाब देना होता है कि शैतान ठीक तरह शैतानियत को दुनिया में फैला रहा है या नहीं। सच बात तो ये

है कि तुम कुछ समय से ठीक काम नहीं कर रहे।” महामाया के गूंजते स्वर में गम्भीरता थी।

“क्षमा महामाया-।”

“तुम अच्छी तरह जानते हो कि क्षमा शब्द हमारी दुनिया में नहीं चलता।” महामाया की गम्भीर आवाज में सख्ती झलक उठी थी-“मुझे मजबूर मत करना कि मैं तुमसे सारी शक्तियां वापस ले लूं और किसी दूसरे को शैतान बना दूं। अभी भी समझने का वक्त है तुम्हारे पास। अपने कर्मों को संभाल लो।”

“मैं और भी अच्छे ढंग से काम करूंगा महामाया।” शैतान ने जल्दी से कहा।

“सौदागर सिंह अगर आजाद हो गया तो तुम्हारे लिये समस्या खड़ी हो सकती है।”

“वो कैसे महामाया?”

“ढाई सौ बरस से सौदागर सिंह को तुमने कैद कर रखा है। सौदागर सिंह सबसे पहले तुम्हारा अंत करेगा।”

“ये बात तो सच है महामाया।”

“तुम्हारा अन्त होने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि तुम अपनी गलतियों की वजह से मरोगे। वैसे तुम्हारे पास ऐसी शक्तियां हैं कि सौदागर सिंह को मुकाबला कर सको।” महामाया का गम्भीर और कठोर स्वर उस छोटे से कमरे में गूंज रहा था-“प्रश्न तो ये पैदा होता है कि आजाद होने के बाद सौदागर सिंह क्या करेगा? तुम्हारी सेवा में वो आना नहीं चाहता। तुम कोशिश करके देख चुके हो। ऐसे में अगर वो वापस गुरुवर की सेवा में चला गया तो हमें बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा। पहले ही गुरुवर की वजह से हमारे कई शैतानी खेल अधूरे रह जाते हैं। सौदागर सिंह के गुरुवर के साथ मिल जाने पर, हमारे शैतानी खेलों को कदम-कदम पर हार मिल सकती है।”

“तुम सच कह रही हो महामाया।” शैतान का स्वर धीमा था-“अब क्या किया जाये?”

“तुम बताओ शैतान-।”

“अभी मैं ठीक से कुछ भी सोच-समझ नहीं पा रहा।”

“मैं तुम्हें यही राय दे सकती हूं कि सौदागर सिंह की शक्तियों का लोभ छोड़ दो।”

“उसकी शक्तियां हमारे बहुत काम आ सकती हैं।”

“तुम्हें बरबाद भी कर सकती हैं सौदागर सिहं की शक्तियां-।”

शैतान ने कुछ नहीं कहा।

“जवाब दो। हमारी बातचीत वो भी सुन रहा है, जो मेरे ऊपर है।”

“इसमें कोई शक नहीं कि सौदागर सिंह आजाद हो गया तो मुझे बरबाद भी कर सकता है। तुम राय दो महामाया।”

“मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकती हूं कि इससे पहले कि वो आजाद हो, उसे खत्म कर दो। आने वाले खतरों का अंदेशा हमेशा के लिये समाप्त हो जायेगा।”

“ये बात ठीक कही महामाया।”

“काला महल से बाहर निकले मनुष्य जो कि काली इमारत से शैतानी शक्तियां और शैतानी हथियार लेकर बाहर आ गये हैं, उन्हें भी खत्म करो। ऐसे मनष्यों को हम अपनी जमीन पर सहन नहीं कर सकते।”

“ठीक है महामाया। मैं अभी द्रोणा और प्रेतनी चंदा को सख्त

आदेश देता हूं।” शैतान ने कहा-“महामाया तुम्हें इतना तो पता ही होगा कि सौदागर सिंह कब आजाद होगा कैद से?”

“वो किसी भी वक्त आजाद हो सकता है। उसकी कैद के ढाई सौ बरस पूरे हो चुके हैं।”

“सौदागर सिंह ये बात जानता है?”

“जानता है।” तभी कुंड से धुएं के रूप में उठी आकृति वापस कुंड में समाती चली गई। इसके साथ ही कुंड से आग भड़क उठी।

शैतान समझ गया कि महामाया चली गई है। वो जल्दी से उठ खड़ा हुआ।

☐☐☐

काला महल।

दो दिन बीत गये थे दया-सरजू को वहां रहते हुए। डर कुछ कम हो गया था। क्योंकि दो दिन का समय बहुत ही शान्ति से बीता था। मिट्टी के बुत वाली युवती और भामा परी भी वहां थी।

देवराज चौहान की लाश देखकर मिट्टी के बुत वाली युवती परेशान-व्याकुल हो जाती। लेकिन वो कुछ कर नहीं सकती थी। देवराज चौहान ने मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार से उसे मिट्टी के बुत से जीती-जागती युवती में बदल दिया था। उसमें जान डाल दी थी। पढ़िये अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘दूसरी चोट’, ऐसे में वो हर हाल में देवराज चौहान का भला चाहती थी। परन्तु देवराज चौहान जान गंवा चुका था। उसके दुःखों का अंत नहीं था।

भामा परी व्याकुल-परेशान थी।

वो तो सबका भला चाहती थी। सबको पृथ्वी पर पहुंचाकर अपने लोक चली जाना चाहती थी। परन्तु इन लोगों को इस तरह छोड़कर नहीं जा सकती थी। अस्सी बरस की तकलीफदेह कैद से इन लोगों ने उसे मुक्ति दिलाई थी। वो पुनः परी के रूप में आ सकी थी। कारी राक्षस पुनः उसे खत्म करने आया तो इन सबने अपनी जान पर खेलकर उसे बचाया था। ऐसे में इन्हें मुसीबत में छोड़कर नहीं जा सकती थी। महल से बाहर निकलना उसके लिये घातक था। शैतान की दुनिया के वासी उसे पकड़कर खा सकते थे। यहां उसकी पवित्र ताकत नहीं चल सकती थी। काला महल के भीतर ही रहना उसकी मजबूरी थी। उसे उन सबकी चिन्ता थी, जो काला महल से बाहर निकलकर गये थे।

उनकी आपस में खास बात भी नहीं हो रही थी।

सब चुप-चुप से थे।

भामा परी कभी टहलती तो कभी थम जाती।

काली बिल्ली उसी प्रकार हवा में मौजूद थी। बैठने के अंदाज में दिखाई दे रही थी वो। उसके गिर्द बेहद मध्यम गति से गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल घूम रही थी।

बिल्ली की चमकदार आंखें बारी-बारी उन सब पर जा रही थीं।

“बिल्ली।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा-“जो लोग बाहर गये हैं, उनके बारे में बता सकती हो।”

“क्या जानना चाहती हो परी?” बिल्ली का मुंह हिला।

“यहां से बाहर जाने वाले किस हालत में हैं?” भामा परी ने पूछा।

“नगीना-।” मिट्टी के बुत वाली युवती कह उठी-“नगीना को देवराज चौहान की आत्मा मिल गई।”

“नहीं। नगीना कैद हो चुकी है।”

“क्या?” मिट्टी के बुत वाली युवती के माथे पर बल पड़े।

भामा परी चौंकी।

“नगीना कैद हो गई?”

“हां।” काली बिल्ली ने कहा-“आत्मा को शैतान की कैद से जाल छुड़ाकर लाना आसान नहीं। रास्ते में बहुत धोखे हैं। उन धोखों के जाल में आसानी से फंस जाना मामूली बात है, नगीना भी फंस गई।”

“ओह!” भामा परी की आंखें भर आईं-“तो अब देवराज

चौहान जिन्दा नहीं हो पायेगा।”

“देवराज चौहान की आत्मा कोई वहां से ले आये तो मैं देवराज चौहान को पुनः जीवित कर दूंगी।”

तभी सरजू कह उठा।

“देवराज चौहान को मरे बहुत देर हो गई है। परन्तु इसका शरीर वैसा ही है। खराब नहीं हुआ।”

“गुरुवर की शक्तियों ने देवराज चौहान के शरीर को खराब होने से रोका हुआ है।” बिल्ली ने कहा।

“बिल्ली-।” मिट्टी के बुत वाली युवती बोली-“बाकी लोग किस स्थिति में हैं?”

“वो सब मुसीबत में फंसने वाले हैं।”

“कैसी मुसीबत?” भामा परी के होंठों से निकला।

“शैतान ने द्रोणा और प्रेतनी चंदा को शक्तियों सहित पुनः शरीर दे दिया है। वो दोनों उन सबको खत्म करने की सोच रहे हैं।”

“ओह, मेरे देवता-।” भामा परी के होंठों से निकला।

“ये तो बहुत बुरी खबर दी तुमने।” मिट्टी के बुत वाली युवती बोली।

बिल्ली हंसी।

“शैतान की जमीन पर तुम लोग किस अच्छी बात की उम्मीद रखते हो। यहां बुराई ही बुराई है।”

“नगीना के शरीर के भीतर एक अन्य आत्मा भी थी।” भामा परी कह उठी-“वो नगीना को नहीं बचा सकी।”

“बुरी शक्ति, अच्छी शक्ति पर कभी-कभी हावी हो जाती है। शैतान की धरती पर तो वैसे भी शैतानी शक्तियों का बोलबाला है। ऐसे में कोई अच्छी आत्मा यहां अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकती। वो नगीना को कैद में जाने से नहीं बचा सकी।”

“अफसोस तो इस बात का है कि मैं किसी के लिये कुछ नहीं कर सकती।” भामा परी ने दांत भींचकर कहा।

“यही दुःख मुझे खाये जा रहा है।”

“अब क्या होगा?” भामा परी कह उठी-“कुछ तो बताओ। ये सारे मनुष्य यहां से वापस लौट सकेंगे या नहीं?”

बिल्ली ने मुंह खोला।

“म्याऊं-।” उसके बाद उठी और इस तरह चहलकदमी करने लगी जैसे पांवों के नीचे हवा न होकर जमीन हो।

भामा परी और मिट्टी के बुत वाली युवती समझ गईं कि बिल्ली उनकी बात का जवाब नहीं देगी।

☐☐☐

मोना चौधरी, महाजन, राधा, पारसनाथ, जगमोहन, सोहनलाल, रुस्तम राव, बांकेलाल राठौर, बीते दो-तीन घंटों से वहां की सड़कों पर आगे बढ़ते हुए शैतान की दुनिया को समझने की चेष्टा कर रहे थे। वे कोई ऐसा रास्ता तलाश कर रहे थे कि जिससे शैतान के बारे में खबर मिले। या उस तक पहुंचा जा सके।

शाम होने वाली थी।

तभी अन्य मकानों के बीच एक काले रंग का मकान नजर आया।

काले मकान को देखते ही मोना चौधरी ठिठक गई। बाकी भी रुक गये।

“ये काला मकान शैतान की ही कोई जगह है।” सोहनलाल ने कहा।

“हां।” जगमोहन बोला-“जिस भी जगह का रंग काला हो, वहां शैतान के ही कार्य होते हैं।”

“छोरे! चल्ल भीतरो चल्लें-।” बांकेलाल राठौर कह उठा।

आंखें सिकोड़े महाजन ने घूंट भरा।

“बाप! भीतर शैतान के आदमी होएला। शैतानी पावर हौएला उनके पास। वो आपुन को खलास कर देगा।”

“मौत से डरो हो तम-।”

“यस बाप। फालतू में कौन जान देईला।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा।

“रुस्तम राव का कहना ठीक है कि जब मालूम हो कि अगले कदम पर जान जानी है तो कदम नहीं उठाना चाहिये।” जगमोहन दांत भींचकर कह उठा।

“मेरे पास शैतानी शक्तियां हैं जिन्हें मैंने काली इमारत से हासिल किया है। मैं भीतर जाता हूं। काले मकान में अवश्य शैतान की ताकतों के साथ, आदमी होंगे। अगर मुकाबला करने की जरूरत पड़ी तो मुकाबले के साथ-साथ अपना बचाव भी कर सकूँगा।”

“लेकिन तुम भीतर जाना क्यों चाहते हो?” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए पूछा।

जगमोहन की निगाह पारसनाथ की तरफ उठी।

“हमें शैतान की जरूरत है। जब तक हम शैतान के खिलाफ कोई हरकत नहीं करते। उसे परेशान नहीं करते, वो हमारे सामने नहीं आयेगा। अपने आदमी हमारे सामने नहीं भेजेगा, मुकाबले के लिये-।” महाजन बोला।

जगमोहन कुछ कहने लगा कि बांकेलाल राठौर कह उठा।

“शैतान को बिलो से बाहरो काडने को वास्तो म्हारो आईडियो मानो भायो-शैतानो का जो भी बंदो दिखो उसो ‘वड तो’ जायो। शैतान कभी तक चुपो बैठो। दर्द हौवो तो सामनो आयो ही-।”

बांकेलाल राठौर की बात सुनकर सब एक-दूसरे को देखने लगे।

जगमोहन के दांत भिंच गये।

“बांके ठीक कहता है।” मोना चौधरी गुर्रा उठी-“शैतान के खिलाफ कुछ किया जाये तो वो बाहर निकलेगा।”

“यहां पर जिस काले मकान में। काली इमारत में शैतान के सेवक हों, उन्हें खत्म करना शुरू कर देते हैं। हमारे पास शैतानी हथियार के साथ-साथ शैतानी शक्तियां भी हैं।”

“शुरूआत इसी मकान से करते हैं।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा-“भीतर शैतान के सेवक अवश्य होंगे।”

“आओ-।” कहने के साथ ही जगमोहन मकान के गेट की तरफ झपटा।

“तुम सब यहीं रहना। भीतर आने की गलती मत करना।” मोना चौधरी कहते हुए जगमोहन के पीछे भागी।

दोनों के चेहरों पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।

पन्द्रह मिनट पश्चात मोना चौधरी और जगमोहन बाहर निकले। दोनों के कपड़ों पर खून के छींटे दिखाई दे रहे थे। मोना चौधरी के हाथ में थमा खंजर खून में डूबा था। हाथ भी खून से लाल हुआ पड़ा था। कुछ ऐसा ही हाल जगमोहन के हाथ में थमी तलवार का था।

दोनों के चेहरों पर कठोरता और दरिन्दगी नाच रही थी।

उन्हें ठीक-ठाक देखकर सबने राहत की सांस ली।

“भीतर तगड़ा ही रगड़ा होएला।”

“नीलू-!” राधा कह उठी-“मोना चौधरी और जगमोहन भी तुम्हारी तरह बहादुर हैं। सबको मारकर आ गये।”

“क्या हुआ?” सोहनलाल ने पूछा।

“भीतर दस-बारह लोग थे। शायद वे किसी बात को लेकर मीटिंग कर रहे थे। जगमोहन दांत भींचकर गुर्राहट भरे लहजे में कह उठा-“वो सब हमारे हाथों मारे गये।”

“यो-बढ़िया हो गयो। ईब शैतान को तकलीफ होवो।”

“आगे चलते हैं। पारसनाथ भिंचे स्वर में कह उठा-“जो भी काली इमारत-मकान दिखाई देगा, जहां-जहां भी शैतान के सेवक होंगे। उन सब को इसी तरह खत्म करना होगा।”

“आओ बेबी।” महाजन ने मोना चौधरी के कठोर हुए पड़े चेहरे पर निगाह मारी।

दांत भींचे भोना चौधरी ने सिर हिलाया।

वो सब आगे बढ़ने को हुए कि तभी मोना चौधरी के सिर को तीव्र झटका सा लगा। तेज दर्द-सा उठा। दूसरे ही क्षण सब कुछ सामान्य लगने लगा मोना चौधरी को।

“मिन्नो।”

मोना चौधरी को अपने मस्तिष्क में सरसराहट-सी महसूस हुई।

“बाबा-। पेशीराम-।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“हां मिन्नो। मैं पेशीराम ही हूं।”

“तुम-तुम कहां हो?”

“तुम्हारे भीतर। पहले मैं नगीना बेटी के भीतर था।”

“ओह! नगीना तुमसे बातें करती थी।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“हां। नगीना बेटी मुझसे ही बातें करती थी।” पेशीराम की आवाज मोना चौधरी को महसूस हो रही थी-“मेरा शरीर तो नीचे लोगों के साथ मेरी आत्मा ही है।”

“याद आया। तुम तो नगीना के साथ गये थे। देवराज चौहान की आत्मा लेने-।” मोना चौधरी बुदबुदाई।

सब मोना चौधरी को देख रहे थे। वे हैरत और उलझन में थे।

“मोना चौधरी के अन्दर कोई भूत घुस आया है।” राधा की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।

जगमोहन चेहरे पर अजीब-से भाव समेटे मोना चौधरी को देख रहा था।

सबकी निगाह मोना चौधरी पर थी।

मोना चौधरी भी सबको देख रही थी।

“हां। नगीना, देवा की आत्मा लेने गई थी। मैं उसके साथ था-।” पेशीराम का गम्भीर स्वर मोना चौधरी के मस्तिष्क को छू रहा था-“मैं जितनी उसकी सहायता कर सकता था, कर रहा था। परन्तु सौदागर सिंह के फैलाये चक्रव्यूह से वो खुद को न बचा सकी और कठोर कैद में पहुंच गई।”

“सौदागर सिंह-?” मोना चौधरी बुदबुदाई-“कौन सौदागर सिंह?”

प्रिय पाठकों, आप देख ही रहे हैं कि कहानी का दायरा कुछ इस तरह फैल गया है कि इसे समेटा नहीं जा सकता। जबकि पहले यही तय था कि इसी उपन्यास में सारी घटनाएं समेट देनी हैं। कहानी से वास्ता रखते ये सवाल हमारे सामने हैं कि देवराज चौहान की आत्मा को लाकर, देवराज चौहान को जिन्दा किया जा सका या नहीं? नगीना का क्या हुआ? वो बंगा की कैदी बनकर लोहे के पिंजरे में ही रही या किसी तरह वो आजाद हो सकी? मोना चौधरी अब देवराज चौहान की आत्मा लेने गई है। उसके सामने कैसे-कैसे हैरतअंगेज हादसे आये। द्रोणा और प्रेतनी चंदा ने घेरा जगमोहन को और सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, महाजन, राधा और पारसनाथ को। क्या जगमोहन द्रोणा और प्रेतनी चंदा का मुकाबला कर सका? सौदागर सिंह क्या ढाई सौ बरस की कैद से आजाद हो सका? हुआ तो क्या किया सौदागर सिंह ने। महामाया ने अपनी शैतानी शक्ति छोड़ रखी है काला महल पर और वो काला महल पन्द्रह दिन बाद जल कर राख हो जायेगा। जबकि उसमें गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल मौजूद है। आगामी उपन्यास में मजबूर होकर महामाया को भी मैदान में उतारना पड़ता है और जमीन-आसमान हिला दिया “महामाया की माया ने”? सांसों को रोक देने वाला शैतानी-दैविक शक्तियों के बीच मुकाबला। ये सब आप पढ़ें रवि पॉकेट बुक्स में प्रकाशित होने वाले अनिल मोहन के आगामी नये उपन्यास “महामाया की माया” में। तो अब आगे-।

“मिन्नो! सौदागर सिंह के बारे में बताऊंगा। पहले मेरे आने की वजह जान लो।”

“कहो पेशीराम-।”

“देवा की आत्मा को लाने में तुम्हारी दिलचस्पी है?” पेशीराम की आवाज मस्तिष्क को महसूस हुई।

“पूरी दिलचस्पी है।” मोना चौधरी के होंठ सख्त से अंदाज में हिले-“देवराज चौहान इस वक्त मेरे साथ होता तो हम दोनों ने अब तक जाने क्या कर देना था।”

“ठीक कहती हो। तुम्हारे और देवा के ग्रह ही ऐसे हैं कि इकट्ठे होकर कदम आगे बढ़ाओगे तो सामने वाला टिक नहीं पायेगा।” पेशीराम का स्वर मोना चौधरी को महसूस हो रहा था-“देवा की आत्मा को लाने के लिये तुम जाना चाहती हो? नगीना तो अब इस काबिल नहीं कि ये काम कर सके।”

“मैं अवश्य देवराज चौहान की आत्मा को लाना चाहूंगी।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“लेकिन तुम्हारे ग्रह इस काम के लिये ठीक नहीं है। हो सकता है तुम्हारी जान न बचे, इस काम में।”

“परवाह नहीं। लेकिन मैं इस काम को करने जाऊंगी।” मोना चौधरी के होंठों से बुदबुदाहट निकली-“लेकिन देवराज चौहान

को फिर से जिन्दा देखने में, तुम दिलचस्पी क्यों ले रहे हो।”

“क्योंकि मैं गुरुवर से मिले श्राप से मुक्ति पाना चाहता हूं। तीन जन्मों से मैं भटक रहा हूं। तेरे और देवा में दोस्ती कराकर मैं श्राप से मुक्त हो सकता हूं।” पेशीराम की आवाज को मोना चौधरी महसूस कर रही थी-“देवा मर चुका है। मुझे उसके और तुम्हारे चौथे जन्म का इन्तजार करना होगा। यही कोशिशें मुझे फिर अगले जन्म में करनी पड़ेंगी। इस बूढ़े और पुराने शरीर से मुझे छुटकारा नहीं मिलेगा। मैं गुरुवर के श्राप से मुक्ति पाकर इस शरीर को त्याग देना चाहता हूं। मुझे लम्बा इन्तजार न करना पड़े, इसलिये मैं देवा को जिन्दा करने की चेष्टा में हूं। नगीना के ग्रह इस काम के लिये अनुकूल थे, लेकिन वो सौदागर सिंह चक्रव्यूह में जा फंसी।”

“ये तो मैं नहीं जानती पेशीराम कि तुम्हें गुरुवर के श्राप से मुक्ति मिल सकेगी कि नहीं। आने वाले वक्त में जाने क्या होना है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बुदबुदाई-“देवराज चौहान पुनः जिन्दा हो जाये, ऐसी दिलचस्पी मेरे को सिर्फ इसलिये है कि हम शैतान की जमीन पर, शैतानी दुनिया में हैं। शैतान से मुकाबला करना है। देवराज चौहान के साथ होता तो उसका भी और मेरा भी हौसला कायम रहता।”

चंद क्षण की खामोशी के बाद पेशीराम का स्वर मस्तिष्क में महसूस हुआ।

“यहां से चलें मिन्नो?”

“हां। मुझे रास्ता बताते जाना।”

“ठीक है। नगीना तब अदृश्य होकर उस तरफ गई थी। परन्तु तुम अदृश्य नहीं हो सकतीं। तुम्हें सावधान रहना होगा। रास्ते में तुम्हें सौदागर सिंह के बारे में बताऊंगा और सौदागर सिंह से मुलाकात भी होगी तुम्हारी।”

“ठीक है पेशीराम।” मोना चोधरी के होंठ हिले-“मैंने शैतान की एक इमारत से शैतानी हथियार और शैतानी शक्तियां हासिल कर ली हैं। रास्ते में वो मेरे काम आयेंगी। मैं इन्हें अपने जाने के बारे में कह दूं।” इसके साथ ही मोना चौधरी ने सबको देखा और सामान्य स्वर में कह उठी-“मैं तुम लोगों से अलग होकर किसी काम के लिये जा रही हूं।”

“कहां बेबी?” महाजन के होंठों से निकला।

“तुम किसी से बात कर रही थीं क्या? तुम्हारे होंठ हिल रहे थे-।” बोला जगमोहन।

“मैं पेशीराम की आत्मा से बात कर रही थी-।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“पेशीराम की आत्मा?”

“हां। वो देवराज चौहान की आत्मा लाकर, देवराज चौहान को जिन्दा कराना चाहता है।” मोना चौधरी का स्वर गम्भीर ही था-“पेशीराम का शरीर नीचे है। वो नगीना के साथ देवराज चौहान की आत्मा लेने गया था। परन्तु पेशीराम ने बताया कि नगीना कहीं कैद होकर रह गई है।”

“ओह-! तो तब काला महल में नगीना पेशीराम की आत्मा से बात कर रही होती थी।”

“तो मोना चौधरी तुम क्यों खुद को खतरे में डाल रही हो।” राधा कह उठी।

“खतरे में तो हम सब पड़ चुके हैं। तुम क्या सोचती हो कि शैतान की जगह पर आकर यहां से निकल जाना आसान है। कभी भी हमें मौत का सामना करना पड़ सकता है।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कर उठी-“देवराज चौहान की आत्मा लाने में कामयाब रही। देवराज चौहान फिर जिन्दा हो गया तो शायद शैतान से मुकाबला किया जा सके।”

“मैं नहीं जानता मोना चौधरी कि वो रास्ता कैसा होगा।” पारसनाथ बोला-“लेकिन शैतान जहां पर आत्माओं को कैद करके रखता है, वहां पहुंचना आसान नहीं होगा। जैसे नगीना कहीं फंसी, वैसे तुम भी कहीं फंस सकती हो।”

“ठीक कहते हो पारसनाथ।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी-“फिर भी मैं कोशिश करूंगी कि अपने काम को किसी

तरह पूरा कर सकूँ। मेरे पास प्रेतनी चंदा का खंजर, शैतानी हथियार और शैतानी शक्तियां भी हैं। ये शैतानी ताकतें ही शैतानों को मारती हैं। सामने पड़ने वाली हर स्थिति का मैं मुकाबला करने की चेष्टा करूंगी।”

सोहनलाल ने व्याकुलता से गोली वाली सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

“छोरे! म्हारे को बुरो ग्रहों नजर आवे।” बांकेलाल राठौर बेचैन-सा हुआ।

“आपुन तेरे पे विश्वास करेला बाप।” रुस्तम राव भिंचे स्वर

में बोला-और मोना चौधरी से कहा-“आपुन तेरे साथ चलेगा-।”

दो पलों तक मोना चौधरी खामोश रही फिर बोली।

“पेशीराम का कहना है कि उस रास्ते पर दो का जाना ठीक नहीं।”

रुस्तम राव हाथ की मुट्ठियां भींचकर रह गया।

मोना चौधरी ने जगमोहन को देखा।

जगमोहन गम्भीर निगाहों से मोना चौधरी को देख रहा था।

“जगमोहन-!” मोना चौधरी धीमे स्वर में कह उठी-“मेरी मजबूरी है कि तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ रहा है। जबकि तुम्हारे सामने कभी भी द्रोणा और प्रेतनी चंदा आ सकते हैं। तुम्हारे पास कुछ शैतानी शक्तियां और शैतानी हथियार हैं। लेकिन उनसे उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता। जैसे भी हो, इन सबको बचाना अब तुम्हारे हाथ में है।”

“मैं कोशिश करूंगा कि द्रोणा और प्रेतनी चंदा से सबको बचा सकूँ।” जगमोहन कह उठा।

मोना चौधरी सिर हिलाकर सबको देखते हुए फिर गम्भीर स्वर में बोली।

“जा रही हूं मैं। अपना ध्यान रखना।” उसके बाद होंठों ही होंठों में बुदबुदाई-“पेशीराम-!”

“हां-।”

“चलो। बताओ मुझे मैं किधर को चलूं-!”

“पलट कर वापस चलो। रास्ता मैं बताता जाऊंगा।”

मोना चौधरी पलटने को हुई कि जगमोहन का कम्पन भरा स्वर उसके कानों में पड़ा।

“मोना चौधरी-!”

मोना चौधरी की नजरें जगमोहन पर गई।

जगमोहन की आंखों में भरा पानी स्पष्ट तौर पर चमक-मार रहा था।

“कहो जगमोहन-।” मोना चौधरी उसकी आंखों में ठहरे आंसुओं को पहचान चुकी थी।

“को-को-शिश करना।” जगमोहन की रुलाई फूट पड़ी-“देवराज चौहान की-की आत्मा को ले आना। भाभी को भी बचा लाना। मैं इन दोनों के बिना खुद को अनाथ महसूस कर रहा हूं। इनके बिना जी नहीं पाऊंगा।” रोते फफकते हुए जगमोहन घुटनों के बल नीचे बैठ गया। रोता रहा। दोनों हाथों से चेहरा ढापे फफकता रहा।

किसी ने भी उसे रोकने की चेष्टा नहीं की।

सब परेशान, व्याकुल और गुस्से से भरे हुए मजबूर से दिखाई दे रहे थे।

होंठ भींचे मोना चौधरी पलटी और पेशीराम की आत्मा के बताये रास्ते पर बढ़ती चली गई।

समाप्त