देवा-नीलसिंह ।" दालू का मुंह हैरत से खुला का खुला रह गया ।

देवराज चौहान और नीलसिंह भी दो पल के लिए अचकचाए । उन्हें तो हाकिम के पास पहुंचना था, परंतु वे दालू के पास आ पहुंचे थे । फौरन ही संभले ।

दालू ने अपने पर काबू पाने की चेष्टा की।

"तुम..तुम दोनों महल में कैसे आ गये ?" दालू की आंखों में व्याकुलता भरने लगी--- "असंभव, तुम दोनों मेरे तिलस्म को काटने की शक्ति नहीं रखते । तुम दोनों तिलस्मी विद्या से अनजान हो "

देवराज चौहान के दांत भिंचने लगे ।

महाजन के चेहरे पर क्रूरता मचलने लगी ।

"कुत्ते दालू ।" महाजन गुर्रा उठा--- "बहुत ताकतवर बनता था। साले अब आया है हाथ के नीचे । कोई नहीं बचा सकता तुझे। पहले जन्म का बदला लूंगा अब । तेरे कारण बहुत तबाही हुई थी। गिन-गिनकर हिसाब लूंगा। पिंजरे में कैद रखता है मुझे ।"

दालू अपने पर काबू पाता जा रहा था ।

देवराज चौहान कटार थामे सतर्क खड़ा था ।

महाजन के चेहरे पर ऐसे भाव थे, जैसे शेर की गर्दन गलती से हाथ में आ गई हो ।

"अब तुम लोग बचकर नहीं जा सकते ।" दालू के चेहरे पर गुस्सा झलक उठा--- "तुम लोगों की मौत ही तुम लोगों को यहां लाई है। और कौन-कौन है तुम लोगों के साथ ? मिन्नो भी होगी। उसी ने पहाड़ी पर मौजूद तिलस्म को काटा होगा । वो मेरे बिछाये तिलस्म को आसानी से काट सकती है ।"

"सब साथ हैं ।" देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर बोला-   "जो भी धरती से पाताल नगरी में आया है वो इस वक्त महल में ही है। तेरे सेवकों और पहरेदारों को खत्म किया जा रहा है । ताकि कोई तेरी सहायता न कर सके और हम आसानी से तुझे खत्म कर सकें ।"

दालू हंसा ।

"तुम लोगों को खत्म करने के लिए मुझे किसी की सहायता की जरूरत नहीं देवा ! मिन्नो से निपटने के लिए मुझे कुछ परेशानी अवश्य आ सकती थी, लेकिन उसके लिए हाकिम मौजूद है, वो...।"

"दालू ।" देवराज चौहान की खतरनाक निगाह उस पर थी-   "पहले जन्म में जब मेरी और मिन्नो की लड़ाई हुई थी तो आखिरकार मिन्नो के वारों से घायल होने की वजह से मेरी जान चली गई और मेरे वारों से मिन्नो भी इस हद तक घायल हो चुकी थी उसका बच पाना संभव नहीं था। मिन्नो का कहना है कि सबसे पहले तुम ही उसके पास पहुंचे थे और तुमने उसका उपचार करने की अपेक्षा, वार करके उसकी टूटती सांसों को खत्म कर दिया ।"

यह सुनकर महाजन चौंका।

"क्या ? मिन्नो को तुमने नहीं, इसने मारा था ?" महाजन के होठों से निकला ।

दालू ठहाका लगा उठा।

"मैंने मिन्नो को इस हाल में पहुंचा दिया था कि वो बच नहीं सकती थी ।" देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "लेकिन तब इसने मिन्नो का उपचार करने की अपेक्षा, उसकी जान ले ली और प्रचार कर दिया कि दोनों लड़ाई में एक-दूसरे को मारकर खुद भी मर गये और सबने इसकी बात को सच समझा ।"

"यही तो चाल थी हरामजादे की कि मिन्नो को रास्ते से हटाकर हर चीज पर अपना कब्जा जमा ले। तभी तो हर वक्त मिन्नो को गलत सलाह देता था । मिन्नो के मन में इसी कुत्ते ने तुम्हारे लिए जहर भरा था । तभी तो मिन्नो मरने-मारने के लिए तुम पर चढ़ दौड़ी थी । तब मिन्नो मेरे समझाने पर भी नहीं रुकी ।"

दालू के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी ।

"बातों के जाल में फंसाकर मैंने मिन्नो को इस तरह काबू कर रखा था कि वो अपना सबसे बड़ा हितैषी मुझे ही मानती थी । ऐसे में वो किसी की बात क्यों कर मानती ।" दालू जहरीले स्वर में कह उठा ।

महाजन का चेहरा धड़क उठा ।

"कुत्ते, अब तू मेरे हाथों से नहीं बचेगा ।" तलवार थामे महाजन चेहरे पर दरिंदगी के भाव लिए, दालू पर चीते की तरह झपट पड़ा ।

परंतु तीन कदमों के बाद ही जैसे महाजन किसी अदृश्य दीवार से टकराया और लड़खड़ा कर पीछे हटा।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गई ।

गुस्से में भरा महाजन कुछ न समझ पाया । वह पुनः दालू पर झपटा । परंतु वह फिर न नजर आने वाली दीवार से टकरा कर रह गया । दांत भींचकर महाजन ने तलवार चलाई, तो ऐसे आवाज आई जैसे तलवार किसी ठोस दीवार से टकरा रही हो ।

जबकि सामने खड़ा दालू उसकी बेबसी पर हंसे जा रहा था ।

देवराज चौहान के दांत भिंच गये । वह समझ गया कि दालू ने अपनी सुरक्षा के लिए बीच में तिलस्मी दीवार खड़ी कर दी है कि वह लोग उस तक न पहुंच सकें ।

गुस्से में हांफते महाजन ने देवराज चौहान को देखा ।

"इसने तिलस्मी दीवार खड़ी कर दी है। जो नजर नहीं आयेगी, लेकिन आगे बढ़ने वाले को रोकेगी ।"

"हरामजादे ।" महाजन चिल्ला उठा। चेहरा गुस्से से भरकर स्याह होने लगा ।

दालू उसकी बेबसी पर जोरों से हंसा ।

"तुम दोनों ही तिलस्मी विद्या से अनजान हो । इस दीवार को नहीं हटा सकते । मुझ तक नहीं पहुंच सकते । मैं तो हैरान हूं तुम दोनों की बेवकूफी पर । हथियारों के दम पर मुझ से मुकाबला करने आ गये । जबकि मेरे पास ऐसी शक्तियां हैं कि किसी को खत्म करने के लिए मुझे हथियारों की जरूरत ही नहीं पड़ती।"

देवराज चौहान खुद को बेबस महसूस करने लगा ।

महाजन तलवार थामे दांत पीसता, दालू को देखे जा रहा था ।

"अब देखो, मेरा वार ।" दालू ने जहरीले स्वर में कहा ।

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर फौरन महाजन का हाथ पकड़ा और होठों ही होठों में मोना चौधरी के बताये मंत्र को बुदबुदाया । महाजन ने उलझन भरी निगाहों से उसे देखा ।

"क्या किया तुमने ?" महाजन के होठों से निकला ।

"मोना चौधरी के बताये मंत्र को पढ़ा है ।" देवराज चौहान धीमे स्वर में बोला--- "उसने बताया था कि इस मंत्र को पढ़ने के बाद अदृश्य सुरक्षा कवच हमें अपने घेरे में ले लेगा और हम पर किसी वार का असर नहीं होगा।"

सामने दालू के होंठ तेजी से हिले रहे थे फिर एकाएक उसके होंठ थमे और दायां हाथ उठाकर उंगली से उसकी तरफ इशारा किया तो आग का जलता हुआ गोला तेजी से उनकी तरफ बड़ा ।

देवराज चौहान और महाजन अपनी जगह पर स्थिर खड़े थे ।

उनकी तरफ बढ़ता आग का गोला, दो फीट पहले ही जाने किस चीज से टकराकर रुक गया । स्पष्ट था कि आग का गोला जिससे टकराया था, वह मंत्र द्वारा पैदा किया गया सुरक्षा कवच था ।

दालू के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।

"असंभव । मेरा वार खाली कैसे जा सकता है ।" दालू बड़बड़ाया--- "तुम्हें तो तिलस्मी विद्या का जरा भी ज्ञान नहीं ।"

देवराज चौहान और महाजन खा जाने वाली निगाहों से दालू को घूर रहे थे ।

दालू होठों में पुनः मंत्र बुदबुदाने लगा ।

"कुत्ता फिर कोई नया वार करने जा रहा है ।" महाजन दांत पीसते हुए गुर्राया ।

दालू के हिलते होंठ थमें और पहले की तरह उनकी तरफ उंगली का इशारा किया तो देखते ही देखते, वहां दो भाले प्रकट हुए और तेजी से उनकी तरफ बढ़े ।

परंतु न नजर आने वाले सुरक्षा कवच से टकराकर अदृश्य हो गये।

अब दालू के चेहरे पर क्रोध उभरने लगा । आंखें सुर्ख होने लगी ।

"तो तुम लोग मेरे सामने तिलस्मी विद्या का इस्तेमाल कर रहे हो ।" दालू गुर्राया ।

देवराज चौहान और महाजन की निगाहें दालू पर ही रहीं ।

"अब देखता हूं तुम दोनों को, दालू से मुकाबला ।"

दालू ने आंखें बंद की और तेजी से उसके होंठ हिलने लगे ।

"ये हरामी कोई तगड़ा वार करने जा रहा है ।" महाजन ने सुलगते स्वर में कहा ।

देवराज चौहान की कठोर निगाह दालू पर ही थी ।

"तुम्हारे पास ऐसा कोई तिलस्मी मंत्र नहीं है जिससे इस पर वार किया जा सके ।" महाजन ने पूछा ।

"मोना चौधरी ने जो मंत्र बताये थे वो सिर्फ बचाव के लिए ही थे । वार करने वाला मंत्र नहीं बताया ।" देवराज चौहान ने कहा ।

महाजन के चेहरे पर दरिंदगी के भाव गहरे हुए ।

"इस तरह तो हम कुछ भी नहीं कर सकेंगे । दालू अपने वार करता रहेगा और हम अपने सुरक्षा कवच में पड़े रहेंगे और यह काम ज्यादा लंबा नहीं चलने वाला ।"  महाजन ने कहा--- "बेबी, अभी तक यहां नहीं पहुंची तो स्पष्ट है कि वो हाकिम से टकरा बैठी है । हाकीम ने बेबी की जान ले ली तो, उसके बाद हाकिम यहां आ जायेगा । जिससे कि खुद को बचाना असंभव होगा ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा । चेहरे पर कठोरता समेटे खड़ा रहा ।

तभी दालू ने आंखें खोली और उनकी तरफ इशारा किया ।

देवराज चौहान और महाजन को कुछ नजर तो नहीं आया, परंतु उनके कानों में ऐसी आवाजें पड़ने लगी । जैसे तेज आंधी आ गई हो । अगले पल उन्हें तीव्र झटका लगा । उनके कदम जमीन से उखड़ गये और दोनों दीवार से जा टकराये । उसके बाद जैसे कुछ टूटने की आवाज आई । परंतु टूटता हुआ कुछ भी नजर नहीं आया । देवराज चौहान और महाजन कुछ भी नहीं समझे ।

दालू जोरों का ठहाका लगा उठा ।

"हा...हा...हा । अब तुम लोगों का सुरक्षा कवच टूट गया है । उसे तुम लोग दोबारा खड़ा नहीं कर सकते । मैंने कमरे में तिलस्मी हवा फैला दी है कि वो हवा तुम लोगों को सुरक्षित नहीं होने देगी । दालू से टक्कर । हा...हा...हा...। अब मैं तुम दोनों को खत्म करने जा रहा हूं । मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है । क्योंकि महल के हालातों को भी संभालना है मुझे। मरने के लिए तैयार हो जाओ देवा और नीलसिंह मेरे महल में प्रवेश करने से पहले ही तुम लोगों को समझ जाना चाहिए था कि यहां तुम लोगों के नसीब में सिर्फ मौत ही आयेगी । हा...हा...हा...अभी तो मैं सिर्फ तिलस्मी वारों का ही इस्तेमाल कर रहा था । अब मेरी दूसरी शक्ति का छोटा सा वार होगा, जो पलक झपकते ही तुम दोनों को जलाकर राख में बदल देगा...हा...हा...हा।"

महाजन के चेहरे पर गुस्से से भरे भूचाल के निशान नजर आने लगे ।

"कुत्ते ।" तलवार थामे महाजन दालू की तरफ दौड़ा ।

परंतु बीच में मौजूद अदृश्य दीवार से टकराकर रह गया । महाजन पागलों की तरह गुस्से में न नजर आने वाली दीवार पर तलवार से वार करने लगा । दीवार से टकराने पर तलवार की तेज आवाज वहां गूंज रही थी ।

दांत भींचे देवराज चौहान अपनी जगह पर खड़ा ये सब देख रहा था । उसकी समझ में नहीं आ रहा था । ऐसी लड़ाई में वो क्या करे, जिसमें हाथ या हथियारों का इस्तेमाल ही न हो। मंत्र की शक्तियों से लड़ाई हो ।

एकाएक देवराज चौहान मन ही मन चौंका। उसके कानों में बेला की फुसफुसाहट पड़ी ।

"देवा ।"

"हां ।" देवराज चौहान ने होठों ही होठों में बुदबुदाया ।

"दालू से तुम लोग टकराकर जीत नहीं सकते । अभी ये तुम लोगों से खेल-खेल रहा है । असल में शक्तियों का इस्तेमाल इसने नहीं किया । परंतु अब करके तुम दोनों को खत्म करेगा ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ रही थी।

"दालू का मुकाबला करने का कोई तो रास्ता होगा ?"

"नहीं ! दालू के पास बहुत शक्तियां है । मैं भी इसका मुकाबला नहीं कर सकती । जरूरत पड़ने पर ये लड़ाई में तिलस्मी ताज का सहारा ले लेगा और वो वक्त बहुत भयानक होगा । परंतु मैं तुम्हें एक मौका देती हूं दालू पर वार करने का ।"

"कैसा मौका ?"

"कटार चलाने में तुम्हें महारथ हासिल है देवा । दालू पर सिर्फ एक वार करने का मौका तुम्हें मिल सकता है । उस वार को तुम कितना कामयाब बनाते हो, यह तुम्हारी किस्मत पर है । दालू ने अदृश्य दीवार खड़ी कर रखी है । अभी तक उसे मेरी मौजूदगी का एहसास इसलिए नहीं हुआ कि वो तुम लोगों के साथ व्यस्त हैं। दालू ने जो अदृश्य दीवार खड़ी कर रखी है उसे मैं हटा सकती हूं । इससे पहले कि दालू को दीवार हटने का पता चले तुमने आगे बढ़कर उस पर वार कर देना है । याद रखना दालू  तुम्हें दूसरा वार करने का मौका नहीं देगा । वो एक शब्द के मंत्र से पल के सौवें हिस्से में खुद को सुरक्षित कर सकता है। समझ रहे हो, मेरी बात ?"

"हां ।" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"नीलसिंह को पीछे करो । उसे दीवार पर तलवार मारने से रोको, ताकि मैं उस अदृश्य दीवार को हटा सकूं और इसका पता दालू को न लगे ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

महाजन तलवार का वार बराबर न नजर आने वाली दीवार पर कर रहा था । तलवार टकराने की आवाज वहां गूंज रही थी । महाजन गुस्से में पागल हुआ पड़ा था। चेहरा विक्षिप्त सा हो रहा था । वो सिर से पांव तक पसीने में इस तरह डूबा हुआ था कि जैसे किसी ने पानी की बाल्टी उस पर उड़ेल दी हो ।

और दालू उसकी बेबसी पर ठहाके लगा रहा था ।

देवराज चौहान और आगे बढ़ा और महाजन को रोकने लगा।

"ये क्या कर रहे हो महाजन। पागल हो गये हो क्या ? मैं...।"

"हां, पागल हो गया हूं । मैं भी इसकी जान लिए बिना मर गया तो मुझे चैन नहीं मिलेगा । ये शैतान है । मैं इसे छोड़ूंगा नहीं । तुम नहीं जानते, बीते जन्म में इसने...।"

"होश में आओ।" देवराज चौहान ने झिंझोड़कर महाजन को पीछे धकेला ।

महाजन लड़खड़ाकर तीन-चार कदम पीछे हुआ और गहरी-गहरी सांस लेने लगा ।

वहीं खड़े देवराज चौहान ने हाथ आगे बढ़ाया तो हाथ की उंगलियां अदृश्य दीवार से टकराई । दालू मात्र पांच-छः कदमों की दूरी पर मौजूद चमकती निगाहों से उसे देख रहा था ।

"मौत को सामने देखकर बड़े-बड़े पागल हो जाते हैं देवा । तो फिर नीलसिंह पागल क्यों नहीं होगा ।" दालू हंसा ।

"मैं पागल नहीं हुआ ।"

"तुम पूर्वजन्म में भी निडर इंसान होते थे और इस जन्म में भी निडर हो । मेरे लिए यह हैरत की बात नहीं । इंसान के कर्म हर जन्म में उसके साथ रहते हैं । आदतें भी ज्यादा नहीं बदलती ।"

"तैयार हो देवा ?" बेला की फुसफुसाहट देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।

"हां ।" देवराज चौहान के होंठ जरा से हिले। नजरें सामने मौजूद  दालू पर थी ।

दूसरे ही क्षण बेला का स्वर कानों में पड़ा ।

"जाओ ।" बेला की फुसफुसाहट में व्याकुलता भर आई थी ।

उसी पल देवराज चौहान ने कटार वाला हाथ सिर से ऊपर किया और गले से तेज आवाज निकालते हुए, दालू की तरफ छलांग लगा दी । दालू नहीं समझ पाया कि ये क्या हो गया है । क्योंकि उसने रोक के लिए पारदर्शी दीवार खड़ी कर रखी थी । नीलसिंह कुछ पल पूर्व ही तो उस दीवार पर तलवारें मार रहा था । ऐसे में देवा कैसे उस दीवार को पार कर सकता है ।

यही चार पल थे जिनमें दालू अपने को बचा सकता था ।

परंतु ये पल दालू ने सोच में बर्बाद कर दिए ।

होश तब आया जब देवराज चौहान उसके ठीक सामने था । अचानक बदले हालातों ने उसे हड़बड़ा दिया था, उसकी हड़बड़ाहट ने ही उसे मौत के मुंह में धकेला ।

एकाएक देवराज चौहान ने कटार वाला हाथ नीचे आया और सिर के दो हिस्सों में चीरती कटार गर्दन के पास जाकर ही रुकी। खून के छींटे उस पर भी पड़े। दालू का शरीर थोड़ा सा तड़पा फिर बेजान सा होकर नीचे जा गिरा। फर्श उसके खून से लाल होने लगा।

देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी उभरी पड़ी थी। चेहरे पर मौजूद खून के छींटे उसे और भी भयानक बना रहे थे । हाथ में खून से सनी कटार थी, जिसकी नोक में रह-रहकर लहू की बूंद फर्श पर गिर जाती थी । भिंचे दांत, चमकती वहशी निगाह, दालू की गर्दन तक, ठीक बीचो-बीच में कटे सिर पर टिकी थी । सिर के दो हिस्से माहौल में शोक को और बढ़ावा दे रहे थे।

महाजन ने यह सब देखा तो हक्का-बक्का रह गया। वो जानता था कि दालू  तक नहीं पहुंचा जा सकता, क्योंकि बीच में दालू ने तिलस्मी दीवार खड़ी कर रखी थी । लेकिन जिस तरह देवराज चौहान ने आगे बढ़कर दालू का जो हाल किया, वो उसे हैरान कर देने के लिए काफी था ।

महाजन जल्दी से आगे बढ़ा ।

अब वहां कोई दीवार नहीं थी। वो पास जा पहुंचा। आंखों में तीव्र चमक थी। चेहरे पर नफरत के भाव नजर आ रहे थे । महाजन एक-एक शब्द चबाकर कह उठा ।

"उसे ऐसी ही बुरी मौत मरना चाहिए था । लेकिन उसकी मौत का अफसोस है मुझे ।"

देवराज चौहान ने महाजन को देखा ।

"अफसोस क्यों ?"

"क्योंकि इस कुत्ते को मेरे हाथों से मरना था और मर गया तुम्हारे हाथों ।" महाजन गुर्रा उठा।

देवराज चौहान ने खून से सनी कटार नीचे फेंक दी ।

तभी उसके कानों में बेला की फुसफुसाहट पड़ी ।

"मैं जानती थी मेरा देवा, कटार चलाने में कभी भी चूक नहीं सकता ।"

"मेरा देवा ।" देवराज चौहान के होठों पर बरबस हल्की सी मुस्कान उभरी ।

जवाब में बेला की फुसफुसाहट से भरी खिलखिलाहट उसके कानों में पड़ी।

"मिन्नो कहां है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"वो हाकिम के साथ कमरे में बंद है । मैं नहीं जानती भीतर क्या हो रहा है ।" बेला की फुसफुसाहट में थोड़ी सी गंभीरता आ गई--- "जानने के लिए किसी तरह भीतर प्रवेश कर गई तो हाकिम को तुरंत मेरी आमद की बारे में मालूम हो जायेगा और मैं उसके सामने ठहरने का हौसला नहीं रखती ।"

"वो मिन्नो को मार देगा बेला ।" देवराज चौहान की आवाज में तेजी आ गई ।

"इस बार मैं कुछ नहीं कर सकती ।" बेला की फुसफुसाहट में व्याकुलता के भाव आ गये--- "मैं नहीं जानती कि आने वाला वक्त क्या रंग दिखाएगा । तुम्हें इन बातों में वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए ।"

"क्या मतलब ?"

महाजन अजीब सी निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था । क्योंकि देवराज चौहान की बुदबुदाहट वह स्पष्ट तौर पर सुन रहा था । परंतु समझ नहीं पा रहा था कि वो किससे बात कर रहा है । जबकि यहां उसके अलावा कोई भी नहीं था । आखिरकार वह बोल ही पड़ा ।

"किससे बातें कर रहे हो । कहीं दालू की आत्मा तुम्हारे सिर पर तो नहीं चढ़ गई ।"

देवराज चौहान ने उसे देखा और खामोश रहने का इशारा किया ।

महाजन के होंठ सिकुड़ गये ।

"देवा मेरा ख्याल है कि मिन्नो, हाकिम से जीत नहीं पायेगी ।" कानों में पड़ने वाली बेला की फुसफुसाहट में गंभीरता थी--- "हाकिम कभी भी मिन्नो को खत्म करके बाहर आ सकता है और तब कोई भी हाकिम से टक्कर नहीं ले सकता । उस हाल में तुम उससे टकराने का हौसला कर सकते हो, अगर वो तिलस्मी ताज तुम्हारे पास हो, जिसमें सिद्धियों से भरी ताकतें मौजूद हैं ।"

"ओह ।" देवराज चौहान समझने वाले अंदाज में बड़बड़ाया--- "समझा ! लेकिन मैं उस ताज को कैसे हासिल कर सकता हूं । वो तो तिलस्मी पहरे में रखा हुआ है । उस तक पहुंचने के लिए वहां बिछे तिलस्म को तोड़ना पड़ेगा और मुझे तिलस्मी विद्या का ज्ञान नहीं ।"

"मैं तुम्हारे साथ रहूंगी देवा। मुझसे जितना सहायता हो सकेगी । अवश्य करूंगी । मैं नहीं जानती कि वहां कैसा तिलस्म बिछा रखा है दालू ने । मैं तुम्हें मजबूर नहीं करती, लेकिन हाकिम के खतरे को देखते हुए उस सिद्दियों से भरपूर ताज को पाना जरूरी हो गया है ।"

देवराज चौहान ने गंभीरता से सिर हिलाया ।

"सोच क्या रहे हो देवा ?" बेला की फुसफुसाहट पुनः कानों में पड़ी ।

देवराज चौहान ने महाजन को देखा ।

महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव थे ।

"चक्कर क्या है ?" महाजन ने अजीब से स्वर में कहा।

देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता छाई रही ।

"मैंने पूछा है, किससे बात कर रहे हो ?" महाजन ने पूछा ।

"बेला से ।"

"बेला ।" महाजन की आंखें सिकुड़ी--- "कहां है वो ?"

"इस वक्त तुम उसे नहीं देख सकते । उसने खुद को अदृश्य कर रखा है ।"

"ऐसा क्यों, मेरे से पर्दा कैसा ?" महाजन ने आसपास देखा । फिर पुकारा--- "बेला ।"

बेला की फुसफुसाहट देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।

"हाकिम की वजह से मैं खुलकर सामने आना ठीक नहीं समझती और तुम इस वक्त समय बर्बाद कर रहे हो । हाकिम कभी भी मिन्नो की जान लेकर, यहां पहुंच सकता है।"

"नीलसिंह, मेरे साथ चलेगा ।" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"नहीं । वो मौत का रास्ता है । सिर्फ तुम उस रास्ते पर चलोगे ।"

देवराज चौहान ने महाजन से कहा ।

"महाजन ! अभी बेला किसी वजह से सामने नहीं आ सकती। मैं ताज लेने जा रहा हूं । तुम खुद को कहीं सुरक्षित कर लो । हाकिम कभी भी यहां आ सकता है ।"

"तुम्हारा मतलब कि हाकिम, बेबी को कत्ल कर देगा ?" महाजन के दांत भिंच गये ।

"बेला का कहना है कि ऐसा होने का चांस ज्यादा है ।"

महाजन के चेहरे पर खतरनाक भाव मचल उठे ।

"तुम उस ताज को कैसे ला सकते हो । वो तो तिलस्मी पहरे में है ।" महाजन ने कहा ।

"बेला, मेरे साथ होगी । वो तिलस्म से वाकिफ है " देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।

महाजन के मस्तिष्क में मोना चौधरी थी जो हाकिम के साथ कमरे में बंद थी ।

देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"बेला मैं चलने को तैयार हूं ।"

"जहां ताज मौजूद है । वहां तक चलने के तीन रास्ते हैं। एक रास्ता तिलस्म से जाता है । दूसरा नगरी में से जाता है। और तीसरा इसी कमरे से जाता है दालू ने ये तीन रास्ते इसलिए तैयार कर रखे थे कि जब ताज की जरूरत हो तो उस वक्त वो जाने कहां मौजूद हो । तिलस्म और नगरी के रास्तों के बारे में कोई नहीं जानता । उसके बारे में सिर्फ दालू ही जानता था । हम यहां के रास्ते से, ताज की तरफ बढ़ेंगे ।"

देवराज चौहान सिर हिला कर रह गया ।

तभी उसके देखते ही देखते एक तरफ की दीवार में छोटा सा रास्ता नजर आने लगा ।

"हमें उसी रास्ते में जाना है ।"

"हकीम को अवश्य मालूम होगा कि ताज कहां है । वो हमारे पीछे आ सकता है ।" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"तुम ठीक कहते हो । फिर भी मैं जाते वक्त रास्ते को खास मंत्रों से बांध जाऊंगी । ताकि आसानी से ये रास्ता न भूल सके ।" कानों में पड़ने वाली बेला की फुसफुसाहट में गंभीरता थी--- "परंतु हाकिम किसी न किसी तरह अपनी शक्ति के दम पर रास्ता खोल ही लेगा। ये बाद की बातें हैं, चलो।"

देवराज चौहान ने महाजन को देखा फिर उस रास्ते की तरफ बढ़ गया । महाजन वहीं खड़ा उसे देखता रहा । देवराज चौहान उस रास्ते में प्रवेश कर गया । उसके देखते-देखते वो रास्ता बंद हो गया । वहां पहले की ही तरह सपाट, मजबूत दीवार नजर आने लगी।

महाजन कई पलों तक न समझने वाले अंदाज में खड़ा रहा। चेहरे पर कशमकश के भाव थे । एक निगाह उसने दालू की लाश पर मारी । आंखों के सामने मोना चौधरी का चेहरा नाच उठा। वह नहीं जानता था कि मोना चौधरी हाकिम के साथ कहां है ?

मोना चौधरी को जल्दी ढूंढना होगा ।

यह सोचकर महाजन तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा कि ठिठक गया। कानों में कदमों की तीव्र आहटें पड़ने लगी । जो उसकी तरफ ही आ रही थी । महाजन ने हाथ में दबी तलवार को संभाल कर पकड़ लिया । चेहरे पर खतरनाक भावों के साथ कठोरता आ जमी ।

कदमों की आहटें दरवाजे तक आ पहुंची और फिर उसने शुभसिंह, मोना चौधरी और रुस्तम राव को भीतर प्रवेश करते पाया। महाजन का चेहरा अविश्वास से भरे भावों से भर उठा । वह आंखें फाड़े मोना चौधरी को बुत सा बना देखता रहा ।

"क्या होएला बाप ?"

महाजन का शरीर सिर से पांव तक कांपा खुशी से।

"बे...बी ।" महाजन के होठों से थरथराता स्वर निकला ।

मोना चौधरी शांत भाव से मुस्कुराई ।

"तुम्हारी हालत बता रही है कि तुम सोच बैठे थे कि हाकिम ने मुझे मार दिया होगा ।"

"हां ।" महाजन अभी भी खुशी में डूबा था--  "यही चिंता मुझे खाए जा रही थी । तुम ठीक हो तो क्या हाकिम खत्म हो गया उसे...।"

"हां । हाकिम अब जिंदा नहीं रहा ।" मोना चौधरी कह उठी ।

"ये तो दालू होएला बाप ।"

रुस्तम राव के शब्दों पर सबकी निगाह दालू की वीभत्स लाश की तरफ उठी।

शुभसिंह की आंखों में चैन के भाव उभरे, दालू की लाश देखकर।

"मैं हाकिम से ज्यादा ताकतवर रहा ।" शुभसिंह के होंठ हिले ।

"क्या मतलब ?" महाजन ने उसे देखा ।

"हाकिम, दालू को बचाने आया था और मैं दालू को बर्बाद कर देना चाहता था । वही हुआ जो मैं चाहता था । हाकिम दालू को तो क्या खुद को भी नहीं बचा सका । मेरी कोशिश कामयाब रही ।" शुभसिंह तीखे स्वर में बोला।

"बुरे का अंत बुरेला ही होएला बाप ।"

महाजन ने जेब से सिक्का निकालकर अपने लिए वव्हिस्की की बोतल का इंतजाम किया । इस खास सिक्के के बारे में जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जीत का ताज' जो तगड़े घूंट लेने के पश्चात, उल्टे हाथ से महाजन ने होंठ साफ किए और मोना चौधरी को देखा, जो दालू की लाश के पास जा पहुंची थी ।

फिर मोना चौधरी महाजन से बोली।

"देवराज चौहान ने मारा इसे ।"

महाजन ने मुस्कुराकर सहमति में सिर हिला दिया ।

"कहां है वो ?"

"तिलस्मी ताज लेने गया है ।"

मोना चौधरी जोरों से चौंकी ।

"ताज लेने ?" मोना चौधरी के होठों से अजीब सा स्वर निकला ।

"हां ।"

"दिमाग खराब हो गया है देवराज चौहान का ।" मोना चौधरी के दांत भिंच गये--- "उसे क्या मालूम कि ताज कहां पर है और ताज तक पहुंचने के लिए रास्ते में आने वाली तिलस्मी रुकावटों का मुकाबला वो नहीं कर सकता ।"

"उसके साथ बेला है, तुम्हारी बहन ।" महाजन ने घूंट भरा।

"बेला ?" मोना चौधरी के होठों से निकला ।

"हां । मैंने तो बेला को देखा नहीं, लेकिन देवराज चौहान ने ही बताया कि अदृश्य होकर बेला उसके साथ है । बेला का ख्याल था कि हाकिम तुम्हें खत्म करके, कभी भी यहां पहुंच सकता है और हाकिम से टकराया नहीं जा सकता । ऐसे में अगर तिलस्मी ताज पास हो तो उसकी शक्तियों से कुछ हद तक हाकिम का मुकाबला किया जा सकता है । यही वजह रही कि दालू को खत्म करते ही देवराज चौहान बेला के साथ ताज लेने चला गया ।"

मोना चौधरी के चेहरे पर बेचैनी नजर आने लगी ।

"मैं नहीं जानती कि बेला तिलस्म में किस हद तक माहिर है । परंतु दालू के तिलस्म का मुकाबला करना आसान नहीं होगा, जो कि उसने खासतौर से ताज की सुरक्षा के लिए बिछा रखा होगा और साथ में तिलस्मी विद्या से बिल्कुल अनजान, देवराज चौहान उसके साथ है ।" मोना चौधरी परेशान सी कह उठी--- "देवराज चौहान किस तरफ गया है । कुछ मालूम है तुम्हें ?"

महाजन आगे बढ़ा और दीवार के उस खास हिस्से को हाथ लगाकर कह उठा ।

"यहां से दीवार हटने पर देवराज चौहान भीतर गया था और दीवार अपनी जगह आ गई थी ।"

मोना चौधरी तुरंत आगे बढ़ी और दीवार के उस हिस्से को हाथ लगाकर, हाथ जोड़ते हुए होठों ही होठों में बड़बड़ाने लगी । आधे मिनट बाद होंठ रुके ।

परंतु पहले की ही तरह वो रास्ता नहीं बना ।

मोना चौधरी ने पुनः मंत्र को होंठों ही होंठों में दोहराया ।

लेकिन वह रास्ता नहीं बना ।

मोना चौधरी के चेहरे पर विवशता के भाव आ गये ।

"बहुत गलत किया बेला ने ।" मोना चौधरी तीखे स्वर में कह उठी ।

"क्या मतलब ?"

"जाते हुए वो रास्ते को बंद कर गई है । ताकि हाकिम उसके पीछे न आ सके ।" मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी--  "मुझे समझ में नहीं आता कि अब क्या होगा ।"

"सब ठीक होएला बाप ।" रुस्तम राव सोच भरे स्वर में कह उठा--- "देवराज चौहान तो गएला। बेला उसके साथ ही होएला । जो होएला बैटर ही होएला ।"

मोना चौधरी ने केसरसिंह को देखा ।

"केसरसिंह ! ताज के पास जाने का इस रास्ते के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी होगा ।"

"इस बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं ।" केसरसिंह ने कहा ।

महाजन ने घूंट भरा ।

"अब करने को क्या बचेला है । उधर को ध्यान देने को होएला ।" रूस्तम राव ने कहा ।

मोना चौधरी गहरी सांस लेकर बोली।

"इस महल पर पूरी तरह अपना कब्जा करके, दालू और हाकिम की लाशों को नगरी के चौराहे पर लटकाना है, ताकि नगरी वाले दालू और हातिम के खौफ से बाहर आ सकें। मेरे ख्याल में इन बदले हालातों को देखकर दालू का कोई भी साथी हमारे खिलाफ नहीं जायेगा । अगर ऐसा कोई नजर आये तो उसे खत्म कर दिया जाये ।"

"नगरी वालों का चैन तो तब बहाल होगा, जब नगरी का समय चक्र पुनः चालू हो जायेगा ।" केसरसिंह बोला ।

"नगरी का समय चक्र तिलस्मी ताज द्वारा ही चालू किया जा सकता है और मैं यकीन के साथ नहीं कह सकती कि देवराज चौहान और बेला, उस ताज को लाने में सफल रहेंगे या नहीं ।" मोना चौधरी का स्वर गंभीर था ।

■■■

वो रास्ता बंद होते ही, वहां घुप्प अंधेरा छा गया ।

"यहीं रुक जाओ ।" बेला की फुसफुसाहट देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।

देवराज चौहान ठिठक गया ।

कुछ ही पल बीते होंगे कि एकाएक वहां तीव्र प्रकाश फैल गया । हर चीज स्पष्ट नजर आने लगी। यह गैलरी जैसा रास्ता था । अजीब से खूबसूरत चिकने पत्थरों का फर्श बना हुआ था । दीवारें सपाट और सीधी थी । जिन पर नित्य की मुद्रा में अर्धनग्न युवतियों के बेहद आकर्षक चित्र बने हुए थे । वहां की छत भी बारह फिट ऊंची थी और वहां कलाकार ने बेहद सुंदर आकृतियां बनाई हुई थी। स्पष्ट तौर पर यह बात है कि उस जगह को अति सुंदर बनाने की भरपूर चेष्टा की गई थी ।

"देवा ।" बेला की फुसफुसाहट पुनः कानों में पड़ी ।

"हां ।"

"आगे बढ़ो ।"

"तुम अब असल रूप में सामने क्यों नहीं आती ?" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"अभी नहीं । असल रूप में आने पर मुझे अपने शरीर का बोझ संभलना होगा । जबकि अदृश्य रहकर, हवा की तरह तुम्हारे साथ रहकर, अच्छी तरह तुम्हारी सहायता कर सकती हूं ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "दालू ने ताज तक जाने वाले रास्तों में सख्त तिलस्म बिछा रखा होगा । ऐसे में ताज तक पहुंचना खेल नहीं । मेरी अपेक्षा यह काम मिन्नो अच्छी तरह कर सकती थी, लेकिन वो आ नहीं पाई ।"

देवराज चौहान आगे बढ़ने लगा ।

"तुम्हारा क्या ख्याल है बेला, हाकिम ने मिन्नो को मार दिया होगा ?" देवराज बुदबुदाया ।

"हां। हाकिम से जीतना असंभव है।"

"लेकिन मिन्नो जान चुकी थी कि हाकिम के अमरत्व को कैसे सिद्ध किया जा सकता है । हो सकता है उसने हाकिम को खत्म करने में सफलता प्राप्त कर ली हो ।" देवराज चौहान के होंठ हिल रहे थे।

"तुम्हारा कहना गलत नहीं है देवा । लेकिन अमरत्व के अलावा भी हाकिम बेपनाह शक्तियों का मालिक है और मिन्नो को तिलस्म के अलावा और किसी भी विद्या का ज्ञान नहीं ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

गैलरी में मोड़ आने के पश्चात कुछ आगे जाने पर वो गैलरी समाप्त हो गई और सामने गहरा कुआं नजर आया जो कि तीस फीट के व्यास का था । उसके ठीक बीचो-बीच दस फीट व्यास की मीनार नीचे से ऊपर तक जा रही थी, जो कि करीब पन्द्रह फीट ऊपर थी और उस मीनार पर लोहे की पतली सी फायर बिग्रेड जैसे सीढ़ी ऊपर तक जा रही थी, जिसकी शुरुआत ठीक सामने से ही हो रही थी ।

देवराज चौहान ने कुंए के भीतर झांका ।

परंतु गहराई तक अंधेरा ही अंधेरा नजर आया ।

"देवा ।" बेला की फुसफुसाहट में सोच के भाव थे ।

"हां ।"

"कुंए के बीच में से निकलती मीनार पर जो सीढ़ी लगी है, तुम्हें उस सीढ़ी को थामकर मीनार के ऊपर पहुंचना है ।"

देवराज चौहान ने आंखों ही आंखों में मीनार की दूरी नापी, जो कि करीब बीस फीट थी

"मैं उस सीढ़ी तक कैसे पहुंचूंगा ?" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"कूद कर ।"

"अंसभव ! बीस फीट लंबा रास्ता मैं किसी भी कीमत पर नहीं फंलाग सकता ।" देवराज चौहान बुदबुदाया--- "दालू ने उस सीढ़ी तक पहुंचने का कोई रास्ता बनाया होगा।"

"अवश्य बनाया होगा । लेकिन वो रास्ता किस इस मंत्र से बनता है, मुझे उस मंत्र का ज्ञान नहीं है।  इस वक्त हमारे पास इसके अलावा और कोई तरकीब नहीं कि कूदकर, तुम उस सीढ़ी को थाम सको।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

"बीस फीट का रास्ता मैं नहीं फंलाग सकता।" देवराज चौहान बुदबुदाया--- "बेहतर होगा कि तुम इन सारे रास्तों को तय करके, तिलस्मी ताज को ले आओ ।"

"मेरे लिए ये काम संभव नहीं ।"

"क्या मतलब ?"

"मैंने अदृश्य होकर तिलस्मी जगह में प्रवेश किया है।  इस जगह से बाहर निकलने से पहले मैं सशरीर प्रकृत नहीं हो सकती और अदृश्य रहकर मैं ये सब काम करने के काबिल नहीं हूं । इस वक्त तुम मेरा अस्तित्व सिर्फ हवा की तरह समझो । मैं हर जगह पहुंच सकती हूं लेकिन किसी चीज को छू नहीं सकती ।"

"ओह ।"

"इस वक्त एकमात्र यही रास्ता तुम्हारे सामने है कि कुए को फलांगते हुए, ठीक बीचो-बीच स्थित मौजूद मीनार की सीढ़ी को थामकर ऊपर चढ़ जाओ ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "अगर ये काम तुम किसी हाल में नहीं कर सकते तो फिर मजबूरी में हमें यहां से वापस चलना होगा ।"

देवराज चौहान के चेहरे पर पक्केपन के भाव उभरे ।

"कदम आगे बढ़ा कर, वापस होना, मेरी आदत में शामिल नहीं है ।"

"जानती हूं ?" बेला हौले से खिलखिलाई ।

"जानती हो--- कैसे ?"

"यही आदत तो पहले जन्म में भी तुममें थी ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। उसने एक बार फिर किनारे से कुंए के ठीक बीचो-बीच स्थित मीनार की दूरी को नापा फिर बुदबुदाया ।

"मैं सीढ़ी तक छलांग भरने जा रहा हूं ।"

"ठीक है ।"

देवराज चौहान पीछे हटा । करीब पन्द्रह फीट पीछे हट गया । चेहरा दृढ़ता से चमक रहा था और फिर एकाएक ही वो दौड़ा । रफ्तार से दौड़ा।  गैलरी के किनारे पर पहुंचते ही पूरी ताकत के साथ मीनार की तरफ जम्प लगा दी । लेकिन उसी पल ही उसका बैलेंस बिगड़ गया । हुआ यह कि छलांग लगाते वक्त आखिरी बार जिस फर्श के पत्थर पर पांव रखकर झटका दिया, वो पत्थर कुंए के किनारे पर था और छलांग लगाते समय वो उखड़ गया । इसी वजह से उसका बैलेंस बिगड़ा और मीनार की तरफ जाने की अपेक्षा उसका शरीर लड़खड़ाकर उस अंधेरे कुंए में गिरता चला गया।

रफ्तार से देवराज चौहान का शरीर नीचे की तरफ बढ़ा ।

दो पलों तक तो देवराज चौहान समझ नहीं पाया कि ये सब क्या हो गया है।  परंतु शीघ्र ही इस बात का अहसास हो गया कि वो मरने जा रहा है ।

उसी पल उसे लगा जैसे किसी ने उसे थाम लिया हो । नीचे जाने की रफ्तार बहुत कम हो गई । वो अभी भी उकडू सा गिरने की मुद्रा में था ।

"देवा ! सब गड़बड़ हो गया ।" उसके कानों में बेला की फुसफुसाहट पड़ी ।

"हां, छलांग लगाते वक्त मैं खुद को संभाल ना सका और...।"

"तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। दालू बहुत चालाक निकला।"

"क्या मतलब ?"

"तुम्हारे गिरते ही मैंने कुंए के किनारे पर लगे कई पत्थरों को चैक किया । देखने में यह लगता था कि वो सारे पत्थर फर्श पर चिपके हुए हैं । परंतु वो इस तरह रखे हैं कि किसी के पैर पर दबाव पढ़ते ही वो कुंए में जा गिरे। दालू ने एहतियात के तौर पर ऐसा इंतजाम कर रखा होगा कि अगर कोई यहां तक पहुंच जाये तो ताज तक न पहुंच सके और नीचे गिरकर खत्म हो जाये ।"

ओह, तभी मैं गिरा ।" देवराज चौहान बुदबुदाया--- "तुम मुझे वापस, ऊपर ले चलो ।"

"नहीं देवा, मेरे पास ऐसी कोई ताकत नहीं कि नीचे गिरने वाले को ऊपर धकेल सकूं । अब तुम्हें नीचे ही जाना होगा । मैं अभी रोशनी करती हूं ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

दो पलों के बाद ही वो सारा कुंआ तीव्र रोशनी से जगमगा उठा ।

मीनार नीचे तक जा रही थी और कुंए का तल अब ज्यादा दूर नहीं था, जहां नुकीले सरिये, ऊपर को मुंह किए मौजूद थे कि जो भी गिरे नुकीले सरिये सारे जिस्म को भेद दे । ये देखकर देवराज चौहान के होंठों से गहरी सांस निकल गई ।

"मौत देने का बहुत बढ़िया इंतजाम कर रखा है ।" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई देवा।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

"क्यों ?"

"नीचे कोई रास्ता नहीं है, तुम्हें बाहर ले जाने को और मैं तुम्हें ऊपर ले जा नहीं सकती ।" बेला की बुदबुदाहट में चिंता समा गई थी ।

देवराज चौहान ने भी हालातों को समझा । उसके लिए और बेला के लिए वास्तव में कठिनता के क्षण थे । वह खुद भी नहीं समझ पाया कि ऐसे वक्त में क्या किया जाये।

धीमे धीमे नीचे जाता देवराज चौहान का तरीका सलाखों की नोकों से आधा फीट ऊपर ठहर गया । हर तरफ कुंए की बंद दीवार थी और ठीक बीचो-बीच गोल मीनार खड़ी थी ।

"देवा ।" बेला की सोच से भरी फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

"हां।"

"कोई रास्ता ढूंढना होगा। रास्ता होगा अवश्य । मैं तुम्हें आहिस्ते से सलाखों की नोक पर छोड़ कर जा रही हूं।  चुभन से तुम्हें तकलीफ तो अवश्य होगी, लेकिन इसके अलावा दूसरा रास्ता भी नहीं ।"

"मैं समझता हूं ।" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"और फिर धीरे-धीरे देवराज चौहान का शरीर सलाखों की नोकों पर जा टिका । नोकों की तीव्र चुभन महसूस हुई, परंतु वो हिला नहीं । हिलने का मतलब था, नोकों का शरीर में प्रवेश करके, गहरे घाव बना देना ।

उसी पल उसके शरीर का सलाखों पर दबाव पड़ते ही, करीब ही मीनार का छोटा सा हिस्सा ,दरवाजे के रूप में खुला ।

"देवा ।" बेला की फुसफुसाहट में खुशी के भाव थे--- "रास्ता मिल गया ।

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला उसे एहसास हुआ कि उसके शरीर को उठाया जा रहा है और फिर धीरे-धीरे उसने खुद को उस दरवाजे में प्रवेश करते पाया और फिर फर्श पर ।

वो दस फीट की गोलाई का खाली कमरा था । उसकी दूसरी तरफ ही दरवाजा नजर आ रहा था । वहां अंधेरा था।  चंद्रमा का मध्यम प्रकाश और खुलापन सा महसूस हो रहा था।

देवराज चौहान ने खुद को संभाला और उठ खड़ा हुआ।

"देवा ।" बेला की गंभीर फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "मुझे लगता है तुम मुसीबत में आ फंसे हो ।"

"वो कैसे ?"

'तिलस्मी ताज तक पहुंचने का रास्ता भी मीनार के ऊपर से था । वहां से तुम शीघ्र ही चंद अड़चनों का सामना करके ताज तक पहुंच जाते परंतु अब तुम मीनार के नीचे पहुंच चुके हो।"

होंठ भींचे देवराज चौहान उस दरवाजे से बाहर निकल आया। रात का अन्तिम पहर चल रहा था । चंद्रमा की तीव्र रोशनी में काफी हद तक स्पष्ट नजर आ रहा था ।

"यह कौन सी जगह है ।" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"मैं नहीं जानती। दालू ने ताज को सुरक्षित रखने के लिए इस जगह का निर्माण किया होगा। ये सारी जगह तिलस्मी है।  तुम यहीं रुको। मैं इस जगह के रास्तों का ज्ञान करके लौटती हूं ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी और फिर खामोशी छा गई ।

देवराज चौहान ने पलटकर उस दरवाजे को देखा जहां। जहां से वो बाहर आया था। परंतु वहां उसे कोई मीनार या कुएं की दीवारें नजर नहीं आई । सिर्फ वो छोटा सा कमरा ही नजर आया, जिसमें दरवाजा नजर आ रहा था । वो समझ नहीं पाया कि मीनार कहां गायब हो गई । देवराज चौहान हर तरफ नजरें दौड़ाने लगा । चंद्रमा की रोशनी में ये जगह किसी बाग जैसी लग रही थी । बेला के इंतजार में देवराज चौहान नीचे बैठ गया तो महसूस हुआ कि उम्दा किस्म की घास है । कुछ देर बाद घास पर लेट गया और सोचों ही सोचों में वो नींद में डूबता चला गया।

■■■

देवराज चौहान इतनी गहरी नींद में डूबा कि सूर्य की पहली किरण, जब बंद आंखों से टकराई तो मस्तिष्क में हलचल हुई और उसने आंखें खोली ।

दूसरे ही पल वो जोरों से चौंका ।

मात्र पांच कदमों के फासले पर एक योद्धा खड़ा था।

छः फीट से ज्यादा उसकी लंबाई थी। सिर पर लोहे का टोप डाल रखा था । जिसका कुछ हिस्सा कानों तक आ रहा था। गले में लोहे का गोल चौड़ा पट्टा मौजूद था कि दुश्मन का किसी भी तरह का वार गर्दन पर हो तो, गर्दन सलामत रहे । बांहों पर लोहे के कवर थे, वारों से बचने के लिए पेट और पीठ पर लोहे की चादर जैसी कोई वस्तु लिपटी हुई थी । टांगों और पिंडलियों की नाजुक जगह पर भी लोहे का कवर चढ़ा हुआ था ।

वो नंगे बदन था ।

कमर में धोती लिपटी थी ।

बाल लंबे होकर गर्दन तक ले रहे थे।  होठों पर मूंछे थी । दोनों कानों में बालियां पड़ी थी । चेहरा चट्टान की भांति सख्त था। उम्र में वह पच्चीस बरस से ज्यादा नहीं था। वो एकटक देवराज चौहान को घूर रहा था और हाथ में पांच फीट लंबी तलवार थामी थी।  जो कि धूप की किरणों में चमक रही थी।  कमर में खंजर और कटार फंसी हुई थी।

देवराज चौहान उछल कर खड़ा हो गया ।

उसने तलवार की मूठ को सख्ती से थाम लिया।

"कौन हो तुम?"  देवराज चौहान के होठों से निकला।

"मीनार वाले कमरे में तुम गिरे थे ?" उस योद्धा ने सवाल किया ।

"हां ।"

देवराज चौहान के जवाब से उसकी आंखों में अजीब से भाव उभरे ।

"तुम झूठ बोल रहे हो ।" वो कह उठा ।

"मैं सच कह रहा हूं ।"

"असंभव।" उसके होंठ भिंच गये--- "तुम यकीनन झूठ बोल रहे हो ।"

देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान उभरी ।

"तुम इसलिए मेरी बात को गलत कह रहे हो कि वहां से गिरने वाला जिंदा नहीं बचेगा । नुकीली सलाखें उसका जिस्म भेद देंगी। और मैं तुम्हारे सामने सलामत खड़ा हूं।" देवराज चौहान ने कहा ।

"यकीनन यही बात है ।"

"तो फिर समझो करिश्मे ने मुझे बचा लिया ।"

"कैसा करिश्मा ?"

"मालूम नहीं।" देवराज चौहान के होठों पर पुनः शांत मुस्कान उभरी--- "जब मैं नीचे गिरा तो जाने किसने मुझे थाम लिया और मुझे मीनार के कमरे में पहुंचा दिया ।"

"झूठ बोलते हो तुम। यहां पर कोई बाहरी ताकत प्रवेश नहीं कर सकती । अगर कोई भी भीतर प्रवेश करेगा तो जिंदा नहीं बचेगा । तुम्हारे बच जाने पर मुझे हैरत है ।" उसकी आवाज में तीखापन आ गया ।

"तुम कौन हो ?" देवराज चौहान ने पुनः पूछा ।

"मैं तिलस्मी ताज का सेवक हूं । परंतु ताज तक मैं नहीं पहुंच सकता । इस जगह में कोई प्रवेश नहीं कर सकता । कर जाये तो जान से हाथ धो बैठता है । बच जाये तो मैं उसे खत्म कर देता हूं । लेकिन जिस किसी ने भी इस जगह पर प्रवेश किया वो खुद-ब-खुद ही तिलस्मी जाल में फंस कर जान गंवा बैठा।  तुम डेढ़ सौ बरस में पहले हो जिस पर अपनी तलवार से मुझे वार करना पड़ेगा ।"

"तुम हर वक्त योद्धा के रूप में रहते हो ।"

"नहीं, योद्धा का लिबास पहनकर मुझे इसलिए आना पड़ा कि तिलस्मी लहरों ने मुझे खबर दी है कि मीनार से कोई नीचे गिरा है और सलामत रहकर इस बाग में आ गया है । जब मैं यहां आया तो तुम गहरी नींद में थे । ऐसे में तुम पर वार करना मुझे मुनासिब नहीं लगा।" वो बोला।

"तो अब तुम मुझ पर वार करोगे ?"

"हां, तुम्हारी जान लेना मेरा फर्ज है ।"

"तुम दालू की सेवादारी में हो ।" देवराज चौहान की निगाह उस पर पड़ी ।

"यकीनन ।"

"तो फिर यह खबर तुम्हें देना बहुत जरूरी है कि दालू मर चुका है । उसे जान से खत्म करने के बाद ही मैंने इस जगह में प्रवेश किया है । इसलिए अब तुम सेवादारी से मुक्त हो ।"

"कुछ यकीन नहीं कि तुम सच कह रहे हो कि दालू को तुमने मार डाला है । अगर ये सच भी है, तो भी मैं अपने फर्ज से पीछे नहीं हट सकता । यहां आकर जो जिंदा बचता है, उसे खत्म करना मेरा काम है ।" कहने के साथ ही उसने फुर्ती के साथ देवराज चौहान पर तलवार का वार किया ।

देवराज चौहान सावधान था । उलटी छलांग लेते हुए पीछे जा जरा । फिर तुरंत ही खड़ा हो गया । चेहरे पर कठोरता सिमटने लगी ।

अगर वह सतर्क न होता तो तलवार के वार ने उसके शरीर को काट देना था ।

"तुम हो तो योद्धा लेकिन निहत्थे पर वार करना तुम्हें शोभा नहीं देता ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तो क्या तुम्हारे हाथ में भी तलवार थमा दूं ?" उसने सख्त स्वर में कहा ।

"होना तो ऐसा ही चाहिए ।" देवराज चौहान की निगाह, उसकी आंखों में थी कि अगर वो बातों के दौरान उस पर वार करने का प्रयत्न करे तो उसे पूर्व एहसास हो जाये ।

"मैं यहां जंग पर नहीं आया ।" उसका लहजा कठोर हो रहा--- "मेरा फर्ज है कि इस जगह में प्रवेश करने वाला अगर किसी वजह से बच जाये तो उसे खत्म कर दूं और अब वही करने जा रहा हूं ।"

देवराज चौहान समझ गया कि इसे बातों से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता ।

तभी वो आगे बढ़ा और तलवार का खतरनाक वार उस पर किया ।

देवराज चौहान ने वार से खुद को बचाया और उछलकर दोनों टांगे उसकी छाती पर मारी । जहां लोहे का सुरक्षा कवच लगा हुआ था । जोरों से लड़खड़ाया, परंतु खुद को गिरने से संभाल लिया ।

देवराज चौहान भी संभल गया।

"तुम्हारी हिम्मत को मानना पड़ेगा कि खाली हाथ होते हुए भी मेरे मुकाबले से घबराये नहीं ।"

देवराज चौहान दांत भींचे उसे देखता रहा।

इस बार वो तलवार थामे सावधानी से आगे बढ़ा । देवराज चौहान उल्टे पांव ही धीरे-धीरे पीछे हटने लगा । आंखों में अजीब सी दृढ़ता उभर आई थी । एकाएक वो तेजी से आगे बढ़ा और एक साथ उसने एक के बाद एक तीन वार किए । पहला वार गर्दन उड़ा देने के लिए था।

देवराज चौहान फुर्ती से नीचे झुका और तलवार हवा देती ऊपर से निकल गई । लगे हाथ दूसरा वार तलवार ने नीचे आकर उसकी टांगों पर किया । देवराज चौहान ने खुद को बचाया। दोनों वार खाली जाते पाकर उसी पल उसने तलवार का रुख देवराज चौहान की कमर की तरफ किया।

देवराज चौहान समझ गया कि इस वार से खुद को बचा नहीं पायेगा और कोई रास्ता न पाकर पलक झपकते ही वो उस योद्धा पर कूद गया और उसके गले से लटक गया । तलवार इस बार भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी । परन्तु जल्दी ही कुछ करना था, वरना अब वो उस पर तगड़ा वार कर सकता था ।

देवराज चौहान ने अपना सिर जोरों से उसके माथे पर मारा ।

वो तड़प सा उठा । दो कदम पीछे हुआ । उसके संभलने से पूर्व देवराज चौहान ने पुनः चोट उसके माथे पर मारी तो उसके होठों से कराह निकली । इसके साथ ही देवराज चौहान ने उसके तलवार वाले हाथ मारा, तो झटके के साथ तलवार नीचे जा गिरी । देवराज चौहान ने उसके गले की पकड़ छोड़ी और नीचे गिरी तलवार उठाकर पीछे हटता चला गया ।

मात्र पांच क्षणों में ये सब हो गया था ।

देवराज चौहान अब उससे आठ कदमों की दूरी पर तलवार थामें खड़ा था।

योद्धा की आंखें गुस्से से सुर्ख हो उठी ।

"बहुत हिम्मत वाला है तू । मानना पड़ेगा कि तूने सच ही कहा होगा कि तू दालू की जान लेने के पश्चात ही यहां पहुंचा है ।" कहने के साथ ही उसने कमर में फंसी कटार निकाल ली--- "दालू तेरे से असावधान रहा होगा तभी जान गंवा बैठा, लेकिन मैं असावधान नहीं हूं ।" कटार थामें वार करने की पोजीशन में आ गया।

देवराज चौहान तलवार थामे सतर्क हो चुका था । जबकि उसका पसंदीदा हथियार तो कटार थी । कटार हाथ में हो तो फिर हारने का सवाल पैदा नहीं होता था। बेशक पांच-सात के साथ ही क्यों न मुकाबला करना पड़े । देवराज चौहान की आंखें योद्धा की आंखों में झांक रही थी।

फिर धीरे-धीरे दोनों हथियार थामे, अपनी जगह से धीमे-धीमे हिलने लगे कि वार करने का मौका मिले और सामने वाले को खत्म किया जा सके । देवराज चौहान को, उसके हाव-भाव से इस बात का एहसास हो ही गया था कि उसके सामने खतरनाक योद्धा है । हर वार वो सोच-समझकर समझदारी से कर रहा है । ऐसों पर आसानी से काबू नहीं पाया जा सकता ।

धीरे-धीरे दोनों करीब आने लगे ।

कभी भी वे एक-दूसरे पर वार कर सकते थे ।

और उसी पल दोनों ने एक-दूसरे पर वार किया । दोनों ने ही फुर्ती से खुद को बचाया और कटार-तलवार टकराने की तीव्र आवाज वहां गूंज उठी । इसी के साथ उस योद्धा ने अपने हाथ में दबी कटार को खास अंदाज में झटका दिया तो पलक झपकते ही देवराज चौहान के हाथों से तलवार निकलकर दूर जा गिरी । ऐसा होते ही उसने फौरन कटार का वार देवराज चौहान की गर्दन पर किया।

देवराज चौहान तुरंत नीचे बैठ गया और उसकी दोनों टांगे पकड़ कर जोरो से झटका दिया।  योद्धा के पांव उखड़ गए और वो कूल्हों के बल नीचे जा गिरा ।

देवराज चौहान फुर्ती से उठा और पीछे हटता चला गया ।

तब तक योद्धा भी खड़ा हो चुका था । उसके चेहरे पर कठोरता और सतर्कता नाच रही थी। शायद उसे इस बात का पूरी तरह अहसास हो गया था कि सामने वाला उसकी टक्कर का है और इसे खत्म करने में मेहनत की जरूरत पड़ेगी । दांत भींचकर उसने कटार को हवा में लहराया और पास पड़ी तलवार उठाकर, कटार को वापस कमर में फंसा लिया। तलवार पुनः उसके हाथों में आ चुकी थी । यकीनन तलवार उसका पसंदीदा हथियार था ।

देवराज चौहान समझ नहीं पाया कि इसका मुकाबला कैसे करे?

वो अब तलवार संभाले खतरनाक ढंग से देवराज चौहान की तरफ बढ़ने लगा था ।

देवराज चौहान उसकी आंखों में झांकते पीछे हटने लगा । वह जानता था कि ढेर सारा खतरा सिर पर है, जिससे बच पाना उसे असंभव लग रहा था ।

तभी उसके कानों में बेला की फुसफुसाहट पड़ी ।

"देवा ! मैं बहुत देर से तुम दोनों की लड़ाई देख रही हूं ।"

"मेरे पास हथियार नहीं है ।" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"उसे पास आने दो । इससे जीतने के लिए चालबाजी से काम लेना होगा । क्योंकि ये खतरनाक योद्धा है और दूसरे इसने अपना सारा शरीर कवचों से ढांप रखा है कि होने वाले वारों से इसे नुकसान न हो । जब ये तुम पर वार करने वाला होगा तो तुम्हारे  सामने कटार आयेगी । उस कटार को फुर्ती से थामते हुए इसके कमर वाले हिस्से पर वार करना है, जहां इसने धोती बांध रखी है । तभी तुम इस पर हावी हो सकते हो ।"

देवराज चौहान की निगाह योद्धा की आंखों में थी ।

"ठीक है ।"

तलवार थामे वो पास आता जा रहा था और उसकी आंखों में स्पष्ट रूप से विजयी भाव नजर आ रहे थे और इस बात का भी उसे पूरा विश्वास था कि अब सामने वाले को खत्म करने के लिए एक वार ही बहुत होगा ।

तभी देवराज चौहान बोला ।

"हममें समझौता नहीं हो सकता कि मेरी जान बच जाये ।"

"तुम्हारे पास समझौते के लिए कुछ भी नहीं है ।" योद्धा ने दांत भींचकर कहा । वो काफी पास आ चुका था । दोनों में सिर्फ तीन कदमों का फासला बचा था ।

उसी वक्त उसका तलवार वाला हाथ हिला।

देवराज चौहान के चेहरे के सामने कटार आ ठहरी । फुर्ती के साथ देवराज चौहान ने कटार को मुठ से थामा । इस तरह कटार प्रकट होने पर योद्धा पल भर के लिए हैरान होकर अचकचाया । वार करते-करते वो एक पल के लिए ठिठका। यही एक पल उसकी मौत की वजह बना। देवराज चौहान ने फुर्ती के साथ कटार का वार उसकी कमर के नीचे किया । वो गला फाड़कर चीख उठा ।

तलवार उसके हाथ से छूट गई।

दोनों हाथ लाल हो रही धोती पर आ जमे।

देवराज चौहान ने बिना रुके एक के बाद दो वार पुनः धोती पर किए । एक वार में उसके दोनों हाथों की उंगलियां कट गई और दूसरे वारों ने उसकी कमर पर गहरा असर किया कि वो उछलकर नीचे गिरा और बुरी तरह तड़पने लगा । कमर के गिर्द लिपटी धोती लहू से पूरी तरह सुर्ख हो चुकी थी । खून नीचे की घास को भी रंगने लगा । वो चीखे और तड़पे जा रहा था ।

"अब ये अपने आप मर जायेगा ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

"जब तक इसकी सांसें चल रही है, मैं निश्चिन्त नहीं हो सकता।" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा और उसके पास पहुंचकर सिर पर मौजूद लोहे के टोप की बैल्ट को कटार से काटकर, टोप को एक तरफ किया और कटार का भरपूर वार उसके सिर पर किया।

उसके सिर का काफी बड़ा हिस्सा कटता चला गया और तुरंत ही वो शांत पड़ गया ।

बेला की मुस्कुराहट से भरी आवाज कानों में पड़ी ।

"कटार हाथ में आने पर तुम पहले जन्म वाले ही देवा बन जाते हो ।"

"तुम जानती हो कि मुझे सब याद आ चुका है और मैं वही देवा हूं ।" देवराज चौहान के होंठ हिले और खून से सने अपने हाथ और कपड़ों को देखा--- "यहां कहीं पानी होगा । मैं नहाना चाहता हूं ।"

"हां, मन ही मन पानी को याद करके कटार की नोक जमीन पर मारो ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

देवराज चौहान ने ऐसा ही किया ।

जब कटार को खींचा जहां कटार की नोक धंसी थी, वह जमीन से पानी की मोटी धार पांच फीट ऊपर होती हुई नीचे गिरने लगी । देवराज चौहान कटार नीचे रखते हुए बुदबुदाया ।

"में नहाना चाहता हूं । तुम कुछ देर के लिये यहां से चली जाओ।"

बेला की खिलखिलाहट कानों में पड़ी ।

"मुझसे शर्म आती है देवा।" बेला की फुसफुसाहट में चंचलता थी ।

"बात शर्म की नहीं है ।" देवराज चौहान के होंठ हिले--- "औरत और मर्द के बीच जो फासला होना चाहिये। उसके लिए कह रहा हूं ।"

"तुम्हारी बात मानी देवा । अगर तुम न भी कहते तो भी मैं अवश्य चली जाती। कितनी देर बाद आऊं ।"

"पन्द्रह मिनट बाद ।"

उसके बाद बेला की फुसफुसाहट आनी बंद हो गई।

देवराज चौहान ने अपने कपड़े उतारे और पानी की धार में नहाने लगा । दस मिनट में ही नहा-धोकर कपड़े पहने फिर कटार को उठाकर साफ किया और कमर में फंसा लिया । उसके बाद एक निगाह योद्धा की लाश पर मारी, जो खून से सनी जमीन पर पड़ी थी ।

देवराज चौहान वहां से हटा और बाग में टहल कर इधर-उधर निगाहें घुमाने लगा । वहां पर पेड़-फूलों की क्यारियां और बगीचे के रास्ते बने स्पष्ट नजर आ रहे थे । किसी भी पेड़ पर फल नहीं था। सूर्य धीरे-धीरे तेज होता जा रहा था । देवराज चौहान आगे बढ़ा और पेड़ की छांव में जा बैठा।

पन्द्रह मिनट पूरे होते ही बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

"अब तो हल्का महसूस कर रहे होगे खुद को ।"

"हां, लेकिन तुमने आने में इतनी देर कैसे लगा दी ?" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"इस जगह से मैं दूर तक चली गई थी और उस ताज तक होकर आई हूं ।"

"ताज तक ।" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े--- "तुम ताज तक कैसे पहुंच गई ?"

"मत भूलो ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "मैं हवा के रूप में हूं । बिना शरीर के हूं और ऐसे में मैं कहीं भी आ-जा सकती हूं।  मुझ पर किसी की रोक-टोक नहीं ।"

"ओह ।"

"ताज तक पहुंचने के दो रास्ते हैं ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "एक रास्ता छोटा है और दूसरा बहुत लंबा । दोनों ही रास्ते खतरों से भरे पड़े हैं । छोटे रास्ते में तो बेशुमार खतरे हैं । स्पष्ट बात तो यह है कि कोई भी रास्ता सुरक्षित नहीं है ।"

"छोटे रास्ते पर कैसे खतरे हैं ?" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"छोटे रास्ते पर जगह-जगह ऐसे ही योद्धा मौजूद हैं । उनसे मुकाबला करना आसान नहीं और कई जगहों पर तिलस्मी हवा को छोड़ रखा है, जो भी उस तिलस्मी हवा के घेरे में फंस गया तो हवा उसे तीव्रता से घुमाने लगेगी, जैसे भंवर में फंसने के बाद, बुरा हाल हो जाता है।  उस तिलस्मी हवा के घेरे से कोई भी जिंदा नहीं बचकर बाहर निकल सकता । तिलस्मी कैद है, जो कि न नजर आने वाली दीवारों के बीच फंसकर अपनी जान गंवा बैठता है । यानी कि वहां तरह-तरह के, कदम-कदम पर खतरे भरे पड़े हैं।"

"और लंबे रास्ते पर क्या है ?" देवराज चौहान बुदबुदाया ।

"लंबे रास्ते पर भी पहरेदार मौजूद हैं । जो इसी तरह के योद्धा है । रास्ते भी हैं और चालबाजियों से भरी गुफाएं भी है, जिसमें प्रवेश करने के बाद फिर बाहर नहीं निकला जा सकता । दालू ने यहां उच्च कोटि के तिलस्म का इस्तेमाल किया है । कई जगह का तिलस्म मेरी समझ से बाहर है । यानी कि किसी गलत जगह फंस गये तो शायद मैं भी तुम्हें नहीं बचा सकूंगी देवा ।" बेला की फुसफुसाहट में गंभीरता थी।

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

"तुम्हारे ख्याल से ताज तक पहुंचने के लिए कौन सा रास्ता इस्तेमाल करना चाहिये ।" देवराज चौहान के होंठ हिले

कई पलों के बाद बेला की व्याकुल फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

"देवा, सच कहूं ।"

"सच ही कहना पड़ेगा ।" देवराज चौहान के हिलते होठों पर शांत मुस्कान उभरी--- "यहां झूठ से काम नहीं चलेगा ।"

"ताज तक पहुंचने के लिये दोनों ही रास्तों पर ऐसे तिलस्मी इंतजाम है कि जिनका तोड़ मेरे पास भी नहीं है । मिन्नो होती तो पलक झपकते ही यहां के सारे तिलस्म को समाप्त कर देती । लेकिन उसे तो शायद हाकिम ने जिंदा भी नहीं छोड़ा होगा ।" बेला की फुसफुसाहट में भरपूर व्याकुलता थी--- "अगर मैं तुम्हें ताज की तरफ वाले रास्ते पर ले गई तो तुम कहीं भी फंसकर अपनी जान गंवा सकते हो और सवाल जान जाने का नहीं है, बल्कि बात ये आती है कि जहां पता हो कि कहीं न कहीं फंसना ही है, जान जानी ही है तो उस रास्ते पर क्यों जाया जाये।"

"तुम ठीक कहती हो ।" देवराज चौहान बड़बड़ाया--- "जबकि हमें ताज हर हाल में पाना ही है । उसके बिना काम नहीं चलने वाला तो इस कोशिश में जान जाने को तुम बेकार का सौदा नहीं कह सकती ।"

बेला की फुसफुसाहट नहीं आई ।

"तुमने कुछ कहा नहीं ?" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"देवा मैं दुविधा में फंस चुकी हूं क्योंकि ताज तक पहुंचने का रास्ता ऐसा है कि उसमें आने वाले खतरों से मैं तुम्हें नहीं बचा सकती । ये सब जानते हुए मैं तुम्हें कैसे मौत के...।"

"बेला।" देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती आ गई--- "मैंने नगरी के समय चक्र को हर कीमत पर चालू करना है, जिसे ताज के दम पर दालू ने डेढ़ सौ बरस से रोक रखा है । नगरी वाले, मेरे परिवार वाले, बस्ती वाले, सब इस इंतजार में हैं कि कब वो सामान्य जीवन जी सकेंगे। इसलिए ताज को पाना बहुत जरूरी है । ऐसी कोशिश में अगर मेरी जान भी जाती है तो मुझे परवाह नहीं । तुम मुझे उस रास्ते पर ले चलो । अगर तुमने इनकार किया तो मैं खुद ही आगे बढ़कर रास्ता खोजने की कोशिश करूंगा । जिसमें मेरे लिए ज्यादा खतरे होंगे ।"

बेला की गहरी सांस का स्वर कानों में पड़ा ।

"ठीक है देवा । जैसा तुम कहो ।" बेला के स्वर में चिंता थी ।

"मेरे लिए खाने का इंतजाम हो सकता है ?" देवराज चौहान के होंठ हिले।

"बेशक ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी । इसके साथ ही उसके सामने कई स्वादिष्ट व्यंजन पड़े नजर आने लगे। जो कि गर्म थे और महक सांसों से टकराने लगी--- "खाना खा लो देवा । उसके बाद हम ताज तक पहुंचने वाले रास्ते की तरफ बढ़ेंगे ।"

देवराज चौहान ने खाना शुरू किया ।

"कौन से रास्ते से ताज की तरफ बढ़ना होगा ।" खाना खाते हुए देवराज बुदबुदाया ।

"छोटे रास्ते से ।" बेला की फुसफुसाहट में अजीब सी दृढ़ता आ गई थी--- "जब तुम अपनी जान देने पर उतारू ही हो तो, उसके लिए लंबा रास्ता क्यों चुना जाये।"

देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान उभरी ।

"अब तुमने समझदारी वाली बात कही है ।"

बेला की तरफ से कोई जवाब नहीं आया ।

देवराज चौहान ने खाना समाप्त किया और पेड़ की छांव से उठकर, जमीन से निकलने वाली पानी की धार से हाथ-मुंह धोया । पानी पिया और पास ही पड़ी कटार उठाकर, कमर में फंसा ली।

"अब बताओ बेला।  किस तरफ बढ़ना है ।" देवराज चौहान होठों ही होठों में बुदबुदाया ।

"तुम थके हो। ठीक से आराम नहीं कर पाये । चाहो तो आराम कर लो । ताकि...।"

"रात तुम्हारे जाने के बाद मैंने नींद ले ली थी ।"

"ठीक है । सामने की तरफ बढ़ो । जिधर पीले फूलों की क्यारी है ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी ।

देवराज चौहान उसी तरफ बढ़ गया ।

इस वक्त दिन के दस बज रहे थे । सूर्य की गर्मी तेज हो रही थी।

"छोटे रास्ते से हम कब तक ताज के पास पहुंच जायेंगे ?" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"किसी समय तक भी नहीं ।" बेला के लंबी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा ।

"क्या मतलब ?"

"जिंदा रहे तो वहां पहुंचेंगे और रास्ते में बिछा तिलस्म हर हाल में तुम्हारी जान लेकर रहेगा।"

देवराज चौहान के दांत भिंच गये ।

पीले फूलों की क्यारी पार करने पर बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

"बाईं तरफ हो जाओ । कुछ आगे जो लकड़ी का खूबसूरत दरवाजा नजर आएगा । उसके दायें-बायें से मत गुजरना । बल्कि दरवाजों के दोनों पल्लों को खोलकर चौखट के भीतर प्रवेश करना है।"

"ऐसा क्यों ?"

"जब ऐसा करोगे तो मालूम हो जायेगा ।"

देवराज चौहान तेजी से बाईं तरफ बढ़ गया । दो मिनट ही बीते होंगे कि ठीक सामने बाग के हिस्से में ही लकड़ी का दरवाजा खड़ा नजर आया । इस तरह बाग में मात्र लकड़ी के दरवाजे का इस तरह खड़ा होना अजीब सा लग रहा था । जबकि उसके आसपास कहीं कोई दीवार नहीं थी ।

"ये है वो दरवाजा ?" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"हां ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी--- "इसके पल्ले खोलो और चौखट लांघ जाओ । मेरे ख्याल में ये दरवाजा, ये चौखट तुम्हारे लिए मौत ही साबित होगी ।"

"तुम चाहती हो कि मैं डरकर रुक जाऊं ।" देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया ।

"गलत बात मत कहो देवा । मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं । मैं तुम्हारे मन की भावना को समझ रही हूं कि ताज को पाकर, तुम सबका भला करना चाहते हो।  लेकिन रास्ते में आने वाले खतरों को तुम पार नहीं कर सकते, यह जानकर भी तुम मौत के मुंह में जाने को तैयार हो ।"

कुछ न कहकर देवराज चौहान बाग में मौजूद बंद दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठका और दोनों हाथों से दरवाजे के पल्लों को धक्का दिया तो वो धीरे-धीरे खुलते चले गये। दो पल्लों के खुलने पर देवराज चौहान ने जो देखा उससे चेहरे पर अजीब से भाव आ गये ।

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